क्या बुढापा अपनी पुरानी यादों पर जिन्दा रहता है ?

बुढापे में पुरानी यादें ही जीवन का अन्तिम साहारा होती हैं । जिस के आधार पर वह जिंदा रहता है यानि जीवन की पूंजी । जो इन्हें भुनाने में सफल हो जाते हैं । वह बुढापे में भी सफल इंसान कहलाते हैं । यहीं " आज की चर्चा " का विषय भी है ।अब आये विचारों को भी देखते हैं : -
बुढापा  यादो और  अनुभव की  एक  पुस्तक  है  पन्ने  उलटते  जाइये चलचित्र  दिखने लगेगा  हर  अच्छी  यादे एक उर्जा  है  युवा पीढ़ी  को उन  अनुभव  के आधार  पर प्रेरित  करते  रहे  स्वंय  भी  प्रेरित  होते  रहे
- डाँ. कुमकुम वेदसेन
हां कुछ हद तक बुढ़ापा जवानी के बीते लम्हों को याद कर गुजरता है वैसे ही जैसे आम इंसान दिन भर काम करने के बाद थक कर रात को सोता है और दिन भर की अच्छी बुरी बातें अनायास ही उसके जेहन में आ जाती है फिर बुढ़ापा तो पूरा पूरी तरह से आराम करने की स्थिति हो जाती है खासकर भारत में जादा। आजकल युवा पीढ़ी के पास भी वक्त की कमी है चाहे वह किसी भी वजह से हो वह बेचारे क्या करें अपने बीते पलों को याद कर खुश हो लेते हैं।
- मिनाक्षी सिंह
पटना - बिहार
बुढापा पुरानी यादों पर तो ज़िंदा 
नहीं रहता , पर यह सच्चाई है की बुढापे को कई लोग सहजता से नहीं ले पाते , और बात बात में अपनी जवानी के क़िस्से सुना सुना कर उस में जिया  करते है । बुढ़ापे में लोग थोड़ा सा मन से हार जाते हैं जो बुढापा  को सहजता से अपना लेते हैं उन्हें बिते दिनों की यादें दोहराना नहीं पडती वह घर के सदस्यों के साथ व कामों में अपने अनुभवों का उपयोग कर घर वालों के काम में एक कदम बढ़ा ख़ुशियाँक देते है ।  बुढापे में व्यस्त रहना व दोस्तों का होना बहुत जरुरी , जितना बिजी रहेगा उतना ही अपने को स्वस्थ व ख़ुश रह कर नई पीढ़ी को नई मिसाल दे पायेगा । दु:ख पीड़ा से परेशान तन्हा बुढापा तो जवानी की यादों में ही गोते लगा अपने बिते समय को याद कर आज के समय से समझौता करता है । कभी हमारे भी दिन थे 
- डा. अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
बुढ़ापा अपनी पुरानी यादों पर जिन्दा रहता है, यह कहना ठीक नहीं है ।पुरानी यादें सुकून और राहत जरूर देती है, लेकिन वर्तमान में अपना अस्तित्व और सबसे प्यार और सहयोग भी महत्वपूर्ण है ।जवानी में शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला व्यक्ति बुढ़ापा में शरीर से भले ही कमजोर हो ,मस्तिष्क से सशक्त रहता है ।बुढ़ापे की कमजोरी धीरे-धीरे मस्तिष्क को भी कमजोर बनाने लगती है ।तब पुरानी यादों को याद करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है ।इसलिए लोग बुढ़ापे में पुरानी यादों को या पुरानी बातों को साझा करते हैं ।
                                                    - रंजना वर्मा
                                                रांची - झारखण्ड     
यादें  कभी   बुढ़ियाती  नहीं  ।  मानव  का  तन  बूढ़ा  होता  है , मन  नहीं  ।  बुढ़ापे  में  पुरानी  यादें  ही  उनकी  अपनी   हैं  वर्ना  उनके   पास  बैठना......बतियाना  तो  दूर  जरा  सा  मुस्करा  कर  देखने  का  वक्त  भी  किसी  के  पास  नहीं  है  ( मोबाइल  पर  घंटों  बिता देते  हैं) । यादें  ही  उनका  जीवन  है,  वही  सहारा  बनती  है.....वही  उनके  आसपास  रहकर  उनके  अकेलेपन  दूर  करती......कभी  हंसाती   कभी  रूलाती.......कभी  सुकून  देती  है  ।  बुजुर्गों  के  लिए  यादें  ही  उनकी  संपत्ति  है  जिनको  आवश्यकतानुसार   खर्च  कर  वे  अपने  मन  की  भूख-प्यास  शांत  कर,  ज़िन्दा   रहते  हैं  । 
       - बसन्ती पंवार 
      जोधपुर -राजस्थान 
जीवन की कश्ती पर सवार ,व्यक्ति जब बुढ़ापे तक पहुँचता है ;तो पीछे मुड़कर तय किए खुशनुमा सफ़र को या रास्ते में आए झंझावातों को याद कर अपनी आने वाली पीढ़ी संग बाँट कर उन खट्टी-मीठी यादों को ज़िंदा रखता है |
हाँ ,उन यादों या अनुभवों को थोपना नहीं चाहिए अगर कुछ ख़ामियाँ हैं तो उन्हें सुधार कर या फ़ालतू के बहस में न पड़कर ,अपनों संग पुराने और नए में घुलकर जीवन को सरल बना कर व्यतीत करना चाहिए |
        - सविता गुप्ता 
      राँची - झारखंड
बुढ़ापा खाली बुढ़ापा ही नहीं होता उसके साथ अनुभव का बहुत बड़ा अनमोल खजाना होता है कई बार नयी पीढ़ी व पुरानी पीढ़ी के बीच समय व परिवर्तन के कारण नोकझोंक होजाती है ।अनदेखी होने सी लगती है पर पुरानी यादों के महत्व को नकारा नहीं जा सकता इसका समय के सापेक्ष उपयोग किसी भी समाज देश को आगे बढ़ाने का काम करता है ।परिवार के लिए तो सदियों से उपादेय बना ही है ।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
'बुढ़ापा अपनी पुरानी यादों पर जिंदा रहता है '... यह पूर्णतः सत्य नहीं है। हाँ यदि यादें अच्छी हैं तो वर्तमान के माहौल को खुशनुमा बनाए रखने के लिए उसे याद किया जा सकता है, परंतु उसे वर्तमान पर थोपा नहीं जा सकता, क्योंकि दोनों काल की परिस्थितियाँ समान हों, यह जरूरी नहीं है। अतः सकारात्मक दृष्टिकोण से याद कर या उससे सबक ले वर्तमान को बेहतर बनाने में पुरानी यादें सहायक सिद्ध हो सकती हैं। 
         - गीता चौबे
         रांची - झारखंड
यादें कितना छोटा किंतु कितना प्यारा शब्द है जो हमें कभी गुदगुदाता है तो कभी रुला भी देता है ! हमारे जीवन काल में हमारे साथ घटी घटनाएं यानिकी हमारा भूत और यही हमारी यादें बन उम्र भर हमारे साथ रहता है !यादें कितना छोटा शब्द किंतु कितनी गहराई तक उसकी जडे़ हमारे जीवन को कसकर पकड़े रहती है !जब तक जीवन है साथ-साथ समानांतर चलती है !यादें छोटे बडे़ उम्र वाले सभी व्यक्ति के साथ जुडी़ रहती है किंतु उम्र बढ़ते बढ़ते यह वृद्ध के लिए उनका अनुभव कहलाती है ! किंतु कुछ अपनी मीठी यादें भी वह संजोकर रखता है एवं संस्कार भी जो आज उसे दिखाई नहीं देते !मीठी यादें आने से तो उसे गुदगुदी होती है और वह भूतकाल को याद करने लगता है किंतु जिस संघर्ष और संस्कार को लेकर वे रहते थे वर्तमान में वे अपने बच्चों में न देखकर उन्हें अपनी पुरानी यादें कहानी के जरिये सुनाते हैं साथ ही चाहना भी करते हैं अमल करें किंतु उनके न करने पर बस यादों और अनुभव को स्वयं तक सीमित रख उनके साथ यानिकी वर्तमान से जुड़ने की को शिश करते हैं !यादों की जड़े उपर से सुखने तो लग जाती है किंतु गहराई तक जुडी़ होने से कुछ नमी शेष रहती है अत: जीवन के अंतिम छडो़ं तक वह अपने अनुभव और संस्कार से जुडा़ रहता है और वर्तमान में उन्हें ढू़ढने और बांटने की कोशिश करता है ! वह जडे़ और कोई नही उसकी अपनी यादें ही तो है जो उसे अकेला नहीं छोड़ती उसके साथ ही जायेगी !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
निजी जीवन में कुछ मीठे और तीखे दिन भी आते हैं. हमें इस पथ पर चलकर आगे बढ़ना होता है. उन्हीं से उजालों की उम्मीद है.जिनके लिएआँधियो में भी जलते रहे. उन्हें मिली सारी ऊँचाइयाँ जो गिरते रहे और संभलते रहे. व्यक्ति के बुढ़ापे में जीवन के कई रंग न केवल स्थाई हिस्सा बन जाते हैं अपितु वे अपनी जिंदगी के अनुभवों को भी स्थाई शब्द दे रहे होते हैं. जीवन के काँटों भरे रास्ते में श्रद्धा, विश्वास और समर्पण का आगाज़ होगा तो निःसंदेह बुढ़ापा अपनी पुरानी यादों पर जिन्दा रहेगा और जिंदादिली में न जाने कितने पड़ाव आने बाकी होंगे. बचपन, जवानी और बुढ़ापा जिसने जन्म लिया इन तीन पड़ाव /स्टेशन से गुजरना है. हमें ध्यान रखना होगा कि माँ बाप की आग़ोश फूलों की तरह है फिर क्यों हमारा क़िरदार बबूलों की तरह है... इंतहा हो गई इस कदर, जिनके उसूल हमको इबादत में ले गए. अफ़सोस हम उसी को अदालत में ले गए.
- डाँ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
बुढ़ापा जीवन की एक अवस्था है जो हर व्यक्ति के जीवन मैं आती है जीवित हर व्यक्ति रहता है जो इसअवस्था मैं पहुंचता है इस अवस्था  मैं हर व्यक्ति के मन मैं पुराणी यादें ज़िंदा होती हैं पर व्यक्ति वर्त्तमान और पुरानी यादों के सामंजस्य से जीता है यादों को यदि श्रोता मिल जाये और सम्मान भी , तो बुढ़ापे मैं बूढ़े व्यक्ति के लिए आदर्श स्थिति होती है 
- नंदिता बाली 
सोलन -हिमाचल प्रदेश
हाँ ,बुढ़ापा अपनी पुरानी यादों पर जिन्दा रहता है ।साठ वर्ष के बाद की जिन्दगी वक्त के दिए हुए अच्छे -बुरे अनुभवों की अमानत होती है ।यादों की पोटली जब खुलती है अनुभव रुपी रत्न सामने आता है ।दादा ,नाना जैसे बुजुर्ग लोग नाती ,पोतों से शेयर करते हैं और वे सभी इसका लाभ उठाते हैं ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
वृद्धों की समस्याओं की मूल हैं। शारीरिक एवं आर्थिक दृषिट से घुटन भरी जिन्दगी जीने को विवश हो जाती है। चाहे वह शिक्षित हो या अशिक्षित क्यों न हो, इस अवस्था में उनकी गाड़ी चरमराने लगती है, वह युवा पीढ़ी से तालमेल नहीं बैठा पाते है, जिससे उनकी समस्याओं की वृद्धि हो जाती है। विश्व में समाज का बहुत बड़ा हिस्सा ऐसा है कि जहां वृद्धावस्था में अब सामाजिक एवं आर्थिक असुरक्षा के कष्ट झेलते है। युवा वर्ग वृद्धों को कोर्इ महत्व नहीं देते हैं।
- लक्ष्मण कुमार
सिवान - बिहार
बुढ़ापा जीवन का वो समय जब वह अपने हिस्से की जंग लड़ने के बाद,संतुष्टि , अनुभव, अनुभूतियाँ और संघर्षों  की एक थाती अपने पास सुरक्षित रखता है । जी हाँ बुढ़ापा यादों का अथाह सागर है ।जिस में से  वृद्ध जन समयानुसार बच्चों को मोती निकाल कर देते हैं।  उन की यादें मात्र उनकी ही संबल नहीं होती पर हारे-थके, वर्तमान युग की दौड़ संस्कृति में खोए युवाओं के लिए मार्गदर्शक साबित हो सकती हैं। 
उन की यादें जीवंत अनुभवों का पिटारा है। आवशयकता है तो उन को सुनने की। .  उन के पास यादों का इतिहास ,भूगोल और विज्ञान है जो हमे परीक्षीत बना सकता है।
 ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
बुढापा में पुरानी यादो को याद करके थोड़ी देर के लिए मन को सुकून पा सकते हैं पर ये कहना कि बुढापा पुरानी यादों पर जिंदा हैं गलत हैं। वर्तमान में जीना और भविष्य के लिए सकारात्मक सोच के सहारे लोग बुढापा में भी खुद को खुश रख सकते हैं और खुशहाल जीवन जी सकते हैं। हर उम्र का अपना अलग- अलग अंदाज  होता हैं। व्यक्ति के सोच पर निर्भर करता हैं कि बुढापा कैसा हो। दोस्तों के साथ मिलकर देश समाज के कुछ अच्छा काम करके बुढापा काट सकते है, ताकि बुढापा बोझ नहीं लगे।
      - प्रेमलता सिंह
         पटना -बिहार
हर पुरानी व बीती हुई बाते याद आती रहती है। कुछ जीवन के वे पल जो भुलाये से भी भूलते नहीं है। शायद ये ही पल वृद्धा वस्था की वे गुनगुनाते पल हो जाते है जो कि भुलते नहीं।
    जीवन की अच्छी व बुरी बातें हमसे जुड़ी हुई है, जो बीतते उम्र के साथ जीने का एक सहारा बन जाता है। 
अतः इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि बुढापा वो हर बीते पलो, लमहों की यादों में जिंदगी गुजर जाती है, कब बुढापा आया व अपने साथ लेकर चला गया, पता ही नही चलता। पुरानी बातों व पुरानी यादों पर ही हमारी संस्कृति व जीवन जुड़ा हुआ है।
- डॉ. अर्चना दुबे
मुम्बई - महाराष्ट्र
बुढ़ापा जवानी के दिनों की याद ही होता है । बच्चे अपने काम मे इतने व्यस्त होते है कि वह बुज़ुर्गों को समय नही दे पाते । इस उम्र तक आते आते दोस्त मित्रों से मिलना भी कम हो जाता है । नया कुछ करने को होता नही । जवानी की यादें बातें बार बार याद करते है । वटसअप मोबाइल का प्रयोग करने वाले तो फिर भी वर्तमान से जुड़े रहते है । धीरे धीरे ऐसे बुज़ुर्गों की संख्या बढ़ती जा रही है
- नीलम नारंग
हिसार - हरियाणा
बुढापा महज एक शब्द नहीं है ।सारांश है सम्पूर्ण जीवन की यात्रा का ।
अनवरत चलने वाली मृत्यु 
पर्यन्त तक इस जीवन यात्रा में जाने कितने पडा़व आते हैं।जो कभी हमे गुदगुदा जाते हैं और कभी आँसू बन कर आँखों से गालों पर लुढक कर अपनी आप बीती सुनाते हैं ।

जीवन की इस महायात्रा में बचपन की कंचा गिल्ली-डंडा ,जवानी के रंगीन सपने , सहपाठियों के साथ गुनगुनाना वाद- विवाद करना तो कभी परिवारिक सुख -दुख में सिमट कर भविष्य के सपने बुनना ।अनगिनत ऐसे ख्याल बुढा़पे में अक्सर हमे रोमांचित कर जाते हैं और मानस पटल पर दस्तक दे जाते हैं ।समय के साथ बहुत कुछ बदल जाता है ।
लेकिन देखने में अक्सर ये सामने आता है की हम अतीत को कभी नहीं भुला पाते चाहे वो सुखद रहा हो या दुखद ।
यदा कदा हम अतीत के दामन से लिपट कर कभी खिलखिलाते हैं तो कभी उदास हो जाते है ।बुढापा एक महाग्रंथ है इसके हर एक पन्ने में अनुभव और  प्रमाण की स्याही से जीवन का वृतांत अंकित है ।कभी न कभी तो बुढापा इस महाग्रंथ के पन्ने पलटेगा ही ।तो निश्चित है की बुढा़पे में भी  बचपन की तितली के संग बच्चा और जवानी के सुहाने लम्हों में बुढापा भूल कर कुछ पलों के लिये बीती हुई यादों में खो जायेगा ।आज के परिवेश में बुढापा उपेक्षित है माता -पिता दादा - दादी अक्सरअब वृद्धा आश्रम में मिलते है और अपनी पुरानी यादों को धरोहर समझकर जीवन काटते है ।क्योकि अकेला इंसान बुढा़पे में सिर्फ अतीत को याद कर के सुख -दुख का अनुभव कर लेता हैं ।यही वजह है कि बुढा़पा मजबूर हो जाता है यादो पर जीवित रहने के लिए।
- पं0 आभा अनामिका
मंडला - मध्यप्रदेश 
जी, काफी हद तक।माना कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है लेकिन हमारा वर्तमान भी इतिहास का विकसित रूप है और बुढ़ापा अपने यादों की धरोहर वर्तमान पीढ़ी को देना चाहता है ।युवाओं का हालांकि उनके विचारों से तारतम्य नहीं होता लेकिन हम उम्र के साथ अपने बीते सुनहरे पल कभी-कभी उनके लिए ऑक्सीजन का काम करते हैं और उन्हें तरोताजा भी रखते हैं ।नई पीढ़ी के साथ तालमेल बैठाने की कोशिश जरूर करते हैं पर अपनी यादों की जड़े भूल नहीं पाते ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
बच्चे, युवा और बुजुर्गों को यदि उनकी सोच को लेकर समय को बाँटकर समझने का प्रयास करें तो हम कह सकते हैं कि बच्चे वर्तमान ,युवा भविष्य और बुजुर्ग भूतकाल में जीते हैं।
    बच्चे दुनियादारी से अनभिज्ञ होते हैं,उनमें इतनी समझ और जरूरत नहीं होती कि वे अतीत और भविष्य के बारे में जानें।
  युवाओं को उनका बचपना जाते ही उनमें इतनी समझ अपने आप  ही आ जाती है और उन्हें अपना भविष्य दिखाई देने लगता है । वे आने वाले भविष्य के सुहाने सपने देखने और उनको साकार करने की तैयारी और प्रयास करने भी लगते हैं।
   इसी क्रम में हम बुजुर्गों को लें तो उनके पास भविष्य के लिये सिर्फ उम्र गुजारने के अलावा कुछ नहीं बचता। जितना जैसे भी वो जी चुके होते हैं। यहां तक कि वे अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों से भी मुक्त हो गये होते हैं। वे यह जानते हैं कि अब वे जो भी सपने देखें, वे अपने शिथिल होते शरीर की वजह से पूरा करने में असमर्थ रहेंगे, इसीलिये वे वेवजह  जोखिम लेकर मन को दुःखी नहीं करना चाहते और तब वे अपने गुजरे समय के उन सुखद पलों को बात-बात पर याद करते हुये अपने दिलोदिमाग को सुकून महसूस कराते रहते हैं जिसमें वे अपनी वर्तमान की शारीरिक असामर्थ्यता की कड़वाहट को विस्मृत करने का प्रयास भी करते हैं।
औरों की नजर में इसी स्थिति को कहा गया है कि "बुढ़ापा अपनी पुरानी यादों पर जिन्दा रहता है।"
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
हां,,, बहुत हद तक यह सच है ।आज के एकाकी  परिवार में तो बुढ़ापा अभिशाप सा होता जा रहा है। संयुक्त परिवार लगभग समाप्ति के कगार पर है ।नयी पीढ़ी पुरानी पीढ़ी को पुराने अखबार के समान समझती है ।नयी पीढ़ी को खुद अपने लिए समय नहीं है भागम_भाग वाले इस युग में फिर उनसे क्या उम्मीद की जाए । व्यक्ति का अपना तजुर्बा,अनुभव सब उसके बुढ़ापे के समय उसकी "यादों के एलबम" से चलचित्र की तरह हर वक्तआनंदित करतें हैं । बुढ़ापे ‌में यह व्यक्ति की "जीवन पूंजी" रुपी धरोहर होती है जो सदा उसके  नीरस जीवन को रोमांचक बनाती‌ है । इसलिए बहुत हद तक ये सही है कि‌ बुढ़ापा ‌अपनी पुरानी यादों ‌पर जिन्दा ‌रहता है ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
उम्र बढ़ने के साथ-साथ अनुभवों की थाती को समेटे हुए व्यक्ति यादों के सहारे अपने लोगों से  अच्छे बुरे किस्से बाँटना चाहता है जिससे वे उस गलती को न करें जो उन्होंने की थी या उन सुनहरे पलों को न खोएँ जो अक्सर लोग कम महत्व का समझ कर खो देते हैं ।बुजुर्गों के पास बैठने पर कुछ ही पलों में बीते हुए कल में चले जाते हैं और बताने लगते हैं कि कैसे पहले सयुंक्त परिवार होते थे , जहाँ सब मिलजुल कर कार्य करते थे ।  दादा- दादी की गोद में खेलते , कहानी सुनते बच्चे कब बड़े हो जाते थे पता ही नहीं चलता था । अब तो टी. व्ही. , मोबाइल के चक्कर में बच्चे दूर होते जा रहे हैं । दूसरा कारण पढाई व अन्य गतिविधियों के चलते भी बच्चे व्यस्त रहते हैं सो बुजुर्ग अकेले ही समय काटते हैं । उनकी यादों को सुनने वाला भी कोई नहीं मिलता ।  जब तक वे दो रहते हैं तब तक तो ठीक रहता  एक होते ही अकेलापन काटने लगता है । यदि शारीरिक रूप से स्वस्थ रहे तो  हम उम्र मित्रों का साथ उठना - बैठना हो जाता है तथा वे एक दूसरे के संस्मरणों को साझा करते हैं । अन्यथा मन की यादों को समेटे जीवन के आखिरी पलों का इंतजार करते हुए कहते हैं भगवान मेरी सुधि कब लोगे ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
बुढ़ापा पुरानी यादों को याद करते हुए नये युग में नई पीढ़ी से तुलना कर के जीता है! साथ ही अपने आप को अपडेट करते हुए इस नई पीढ़ी के साथ चलना सीखाता है ।अपने अनुभवों को नई पीढ़ी के साथ साझा कर जीवन जीने की कला सिखाने एवं उसी राह पर चलने के लिए प्रेरित करता है । लेकिन सुनने वाला कोई नहीं होता है कयोंकि सोशल मीडिया के चलते नई पीढ़ी की कार्यानुभव अब उसी में सिमट कर रह गई है । बुढ़ापा का अकेलापन अपनी पुरानी यादों को याद करने पर मजबूर कर देता है ।
- राजकांता राज
पटना - बिहार 
जिंदगी का आखरी पड़ाव बुढ़ापा आराम से बैठकर सुस्ताने की उम्र होती है। यादों का खूबसूरत पिटारा एक  साथ दिल पर दस्तक देते है, कुछ यादें रुलाते है तो कुछ गुदगुदाते भी है। बच्चों की यादें सुखद एहसासों से भर देती है। बुढ़ापा यादों के साथ-साथ एक इंतजार भी है कि छुट्टियों में बच्चे आयेंगे और इस बगिया को कुछ दिनों के लिए गुलनार कर जायेंगे।
               पर अब समय की मांग के अनुसार अब बुढ़ापा आर्थिक और सामाजिक निर्भरता के साथ खड़े हो रहे हैं। अगर व्यस्त कार्यशैली में बच्चों को वक्त नहीं मिलता है तो वे स्वयं बच्चों के पास जाकर उनके कुशलक्षेम से अवगत हो जाते हैं। जिंदगी के उतार-चढ़ाव में जो इच्छाएं अधूरी रह जाती है। उसे पूर्ण करने का प्रयास करते हैं। जैसे - बागवानी, लेखन कार्य, तीर्थ यात्रा, सामाजिक क्रियाकलापों में बढ़ - चढ़ कर हिस्सा लेना इत्यादि।
- कल्याणी झा 
रांची - झारखण्ड

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मदन मोहन ' मोहन ' ( अध्यक्ष : पानीपत साहित्य अकादमी ) का अभिनन्दन करते हुए बीजेन्द्र जैमिनी




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