क्या ये दौर बदलाव का है जिस की सिर्फ गति धीमी है ?
हर दौर बदलाव का होता है । ये दौर भी बदलाव का है । चाहे ये काल कोरोना काल ही क्यों ना हो ।परन्तु इस काल की गति बहुत धीमी है । यही कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
यह सच है परिवर्तन ही प्रकृति का जीवन है ! परिवर्तन ही हमारे जीवन को आगे बढ़ाता है ! मनुष्य जब किसी चीज पर सफलता प्राप्त करता है तो वह और पाने की चाहना में अपनी तरफ से पूरी कोशिश करता है ! आवश्यकता बढ़ती जाती है ! भौतिक सुख के साथ साथ जीवन के रहन -सहन में ,उसके विचारों, सोच सभी में परिवर्तन आने लगता है ! हर चीज में वह अपना विस्तार बढ़ाने लगता है ! हमारी आवश्यकताओं ने अपने इतने पैर फैला लिए कि आज पर्यावरण को लेकर पूरे विश्व में खतरे की घंटी बजने लगी है ! जंगल ,नहर,नदी नाले, समुद्र धीरे धीरे सभी को हम किसी न किसी तरह से नुकसान पहूंचा रहे हैं ! कोरोना वायरस कहीं न कहीं इसी परिवर्तन की वजह से है !
विज्ञान की दौड़ में डिज़ीटल का दौर भी आया है !यह हमारे जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन लाता है ! धीरे धीरे ही सही इसकी उपलब्धि हमारे जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन लाती है ! डिजि़टल के जमाने में परिवार , समाज, शहर, गांव ,शिक्षा ,देश-विदेश से संबंध सभी में बदलाव आया है ! बच्चे जो हमारे देश के भविष्य है तकनीकी युग के चलते उनमे अच्छे एवं बुरे दोनों दृष्टिकोण से परिवर्तन आया है ! सिनेमा जिसे हम समाज का दर्पण कहते हैं उसे हम भद्दे दृष्य के साथ भी परिवार के साथ हम खुशी से देखते हैं यह परिवर्तन आया है ! प्रेम विवाह जो आज माता पिता बड़े गर्व के साथ स्वीकार करते हैं यह परिवर्तन आया है , विवाह से पहले युवा लिव इन रिलेशनसिप में रहते हैं यह परिवर्तन आया है...समय के साथ इंसान की सोच भी बदलने लगी है ! परिवर्तन के अनेक खट्टै मीठे अनुभव हैं जिसमे रिश्ते भी शामिल हैं...परिवर्तन यदिसीमा लांघे तो वह परिवर्तन विनाश की ओर जाता है चाहे पर्यावरण हो ,राजनैतिक हो ,सामाजिक हो अथवा बढ़ता विज्ञान हो !
मौसम में भी परिवर्तन आता है किंतु ईश्वर ने उसे भी समय दे दिया है कौन कितने महिने तक रहेगा फिर हम कौन होते हैं उसे बदलने वाले !
. - चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
आज ये दौर बदलाव का है , जिसकी सिर्फ गति धीमी है ? देखा जाये तो ये बात 60 / 40 के अनुपात सही है - मै यहा एक उदहरण से अपनी बात को प्रस्तुत करता हूँ , जैसे इस बदलाब के दौर में 5 industry ने stock मार्केट में 20% से 163 % तक returns दिये जो कि सामान्य पिछले 5 सालो के records break हुये / मतलब के हर अच्छाई के साथ बुराई जुडी होती है /और हर बुराई के साथ अच्छाई जुडी होती है // जैसे आज के माहोल में हुआ / अब साहित्य के विषय ही ले लीजिये / इस साल के अंतर्गत lockdown / and home quarantine के चलते असंख्य रूप में ज्ञान अर्जित किया प्रगति की , व असंख्य सम्मान अर्जित किये
बदलाब के दौर में जो इन्सान उसका मौका उठाना जाणता है व व्यवस्थित रूप से गुण धर्म समझता है वो विजयी होता है व द्रुतगती से लाभाव्न्वित होता है // हां सभी विषयो में ये बात दुरुस्त नही है // यहां , आपकी बात चर्चा का विषय मान्य हो सकता है
- डॉ. अरुण कुमार शास्त्री
दिल्ली
जिस तरह की गतिविधियां चल रही है उससे लगता तो यही है कि यह समय बदलाव का है।हां गति अवश्य धीमी है। हर क्षेत्र में क्रमिक बदलाव की स्थिति बन रही है। पुरानी मान्यताएं ,सिद्धांत ,रहन सहन के तौर तरीके, खानपान का तरीका ,मिलने का तरीका ,सभी कुछ बदल रहा है। लोगों की विचारधाराएं बदल रही हैं, मान्यताएं बदल रही हैं। इसी प्रकार बदलते बदलते अंतिम बदलाव की स्थिति आ जाएगी, अभी केवल गति धीमी है।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
बदलाव मानवीय जीवन का एक अभिन्न हिस्सा हैं, जहाँ उतार-चढ़ाव आते जाते रहते हैं, जिसके चलते विभिन्न प्रकार की संवेदनाओं से परिभाषित करना अति आवश्यक हो ही जाता हैं। यहां खरगोश और कछुए की कहानी याद आ ही जाती हैं। कालान्तर में जो भी किसी तरह की कोई विफलताओं का आभास होता हैं, तो स्वयं ही रास्ता की गति धीमी कर देता हैं। दूसरी ओर ध्यान केन्द्रित किया जाये तो अधिकांशतः ये दौर बदलाव का प्रतीक होता हैं, प्राकृतिक रुप से धीमी गति से बदलाव कर, स्थिरता और परिपक्वता के माध्यम से, समुचित व्यवस्थाओं की ओर अग्रसर होने का प्रयास किया जाता हैं। यह बदलाव समसामयिक, पारिवारिक तथा राजनीतिक भी हो सकती हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
सत्य ही कहा है जीवन कहीं ठहरता नहीं और सब कुछ कभी खत्म होता नहीं l कोरोना संकट का वर्तमान दौर बदलाव का है, जिसकी गति धीमी है l
हमारा चैतन्य मस्तिष्क इस बदलाव के दौर का सजग प्रहरी हैl इसी का परिणाम होता है कि कितना ही संकट हमारे सामने हों उसमें अंतर्निहित अर्थ को खोजकर मनुष्य सब कुछ सहन करता हुआ बाहर निकल सकता है l चाहें बदलाव की गति कितनी भी धीमी क्यों न हो क्योंकि विपरीत परिस्थिति में यह जानना महत्वपूर्ण नहीं कि हमें जीवन से क्या अपेक्षा है अपितु यह जानना महत्वपूर्ण है कि इस बदलाव के दौर में जीवन को हमसे क्या अपेक्षाएं हैं l बदलाव की गति को आत्मविश्वास व संघर्ष को देखने का नजरिया प्रभावित करता है l संकट के इस दौर में मुक्ति पाने में काँटों की नहीं फूलों की गणना आवश्यक है l हँसी और आँसू दोनों ही हमारे अंदर हैं अगर सोच सकारात्मक है तो जीवन के बदलाव का दौर रसमय बन कर संकट से उबार देगा l बदलाव के इस दौर में अनेकों उतार चढ़ाव आये हैं और कई विसंगतियों ने जन्म भी लिया है लेकिन चैतन्य मन से इस धीमी गति को सकारात्मक ऊर्जा के साथ गतिमान करना होगा l
बदलाव के इस दौर में मानव समुदाय संकट एवं आशंकाओ के रेगिस्तान में तड़प रहा है और यही तड़प बदलाव की गति को धीमी कर रही है लेकिन हमें आत्मविश्वास, संकल्प, समर्पण, सफलता, सहिष्णुता को इस दौर में पतवार बनाना होगा l इन पंक्तियों के साथ -
लहरों में कितनी बेचैनी, तट की काई क्या जाने l
सागर में कितनी गहराई, नाव बेचारी क्या जाने ll
----- चलते चलते
मृदुल शब्दों से मिट जाये घात,
काली रात भी लगे है प्रभातl
होंठों पर हो प्रेम सुधा संगीत,
बदलाव के इस दौर को बनाओ जीवन का संगीत l
- डॉo छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
बदलाव सृष्टि का शास्वत नियम है। किसी भी समाज और संस्कृति में समयानुसार सकारात्मक परिवर्तन अत्यन्त आवश्यक भी हैं। दौर कोई सा भी हो, बदलाव की प्रक्रिया निरन्तर जारी रहती है। वर्तमान दौर की बात करें तो कोरोना ने मनुष्य की जीवन यात्रा में बहुत से बदलाव किए हैं। बदलाव शनैः-शनैः होते हैं। मानव द्वारा अपनी विकृत सोच एवं प्रकृति से की गयी छेड़छाड़ के कारण पारिस्थितिकी एवं मानवीय आचरण में बदलाव इस दौर की सबसे महत्वपूर्ण घटना है।
साथ ही यह भी देखना आवश्यक है कि बदलाव की यह प्रक्रिया कितनी सकारात्मक है। आर्थिक, सामाजिक, मानवीय दृष्टिकोण से ये बदलाव का दौर उतनी तीव्रता से गतिमान नहीं है जितनी आवश्यकता है। यदि ये बदलाव अपनी निर्धारित प्रक्रिया के तहत होते तो संभवतः लाभकारी होते परन्तु कोविड-19 के कारण उत्पन्न ये बदलाव अपने सकारात्मक और लाभदायक परिणाम देने में बहुत समय लेंगे।
इसलिए मेरा मत है कि बदलाव की यह प्रक्रिया जीवन का एक हिस्सा है परन्तु इस प्रक्रिया की गति धीमी होने के कारण मनुष्य को सुख-शांति-समृद्धि देने में फिलहाल तो सक्षम नहीं है।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
सबको नए साल 2021 की ढेरों बधाइयां और शुभकामनाएं. बदलाव प्रकृति, समय और जीवन का नियम है. प्रकृति रंग बदलती रहती है. उत्तर भारत में आजकल कड़ाके की ठंड चल रही है, जब कि कई देशों में भयंकर गर्मी का साम्राज्य है. जीवन में हर समय बदलाव होता रहता है. उम्र के साथ-साथ ये बदलाव स्पष्ट दिखाई देते हैं. समय के अनुसार देखें, तो साल बदल गया है. बीस-बीस चला गया, अब बीस-इक्कीस आ गया है. सचमुच बीस-इक्कीस का ही अंतर होगा. राजनीति में बदलाव भी स्पष्ट दिखाई पड़ रहे हैं. दल बदल की राजनीति जहां कभी-कभी दिखाई पड़ती थी, आज पल-पल दिखाई दे रही है. कोरोना में बदलाव आ रहा है. जहां कोरोना के केस कम हो रहे हैं, यू.के. के नए स्ट्रेन के केस बढ़ते जा रहे हैं. अनुशासन और नैतिकता में कमी आती जा रही है और प्रजातंत्र को मजाक बनाया जा रहा है. सड़कों पर मनमानी अपनी चरम सीमा पर है. निश्चय ही ये दौर बदलाव का है, बस सिर्फ इसकी गति धीमी है. जैविक ढांचे में फर्क की वजह इंसानों का सतत जैविक विकास है. लेकिन जैविक विकास की रफ़्तार बेहद धीमी होती है.
- लीला तिवानी
दिल्ली
बदलाव के दौर की गति प्राय: धीमी होती है। जो सुख में तो छलांगें मारती चलीं जाती हैं। किंतु दुख की घड़ियां मानों ठहर सी जातीं हैं। परंतु दौर तो दौर है जो बदलता रहता है।
दूसरे शब्दों में गति होती ही चलायमान है। जैसे चलती का नाम गाड़ी होता है। उसी प्रकार सांसों का चक्कर है। जब रूक जाएं तो शरीर शव में बदल जाता है। जिसे संसार ने मृत्यु का नाम दिया हुआ है और संत लोग उसे आत्मा द्वारा चोला बदलने की संज्ञा देते हैं। चूंकि आत्मा अमर है और हमेशा स्वस्थ घोड़े पर सवार होना पसंद करती है।
वैसे बदलते दौर पर बुद्धिजीवियों का अपना अलग ही मत है। वह तो बदलते दौर की चुनौतियों को सहजता से स्पष्ट चुनौती देते हुए कहते हैं कि जब अच्छा दौर न रहा तो बुरे दौर की क्या औकात जो ठहर जाए?
- इन्दु भूषण बाली
जम्म् - जम्म् कश्मीर
आज के दौर में दुनिया में अनेकों बदलाव होेते जा रहे है। बदलाव चाहे आर्थिक हो, मानसिक हो, सामाजिक हो, किसी भी परिपेक्ष्य में हो, लेकिन हो रहा है और इन बदलावों से आज का मानव प्रभावित हो रहा है।
बढ़ती हुई महंगाई और बेरोजगारी आज के दौर की सबसे बड़ी मानसिक समस्या बनी हुई है। इन समस्याओं का शिकार असहाय गरीब व्यक्ति हो रहे हैं ,जो मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए या तो किसी का शिकार हो जाते हैं या किसी गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं। अपराध बढ़ रहे हैं। कोई वैश्विक महामारी ,कोई आपदा और समस्या आज मनुष्य को घेरे हुए हैं ।इन सब से प्रभावित आज का मानव बहुत त्रस्त है। विश्वास के धागे टूट चुके हैं ,लोग अपनी इंसानियत को भूल चुके हैं ,मोह माया के जाल में फंस चुके हैं । आज शासन प्रशासन के मुद्दे भी भटक चुके हैं। भिन्न-भिन्न मतों के अधीन होकर जनता गुमराह हो रही है।
ऐसी स्थितियों में बदलाव आवश्यक बन जाता है। कोई शासन व्यवस्था को बदलना चाहता है कोई राष्ट्र /देश की नीतियों में बदलाव चाहता है। लेकिन देश के नेता केवल अपने तरीके से अपने जीवन में बदलाव कर रहे हैं ।
कोई जनता के मन के आक्रोश को उभरने का मौका देते हैं कोई उसे शांत करते हैं। खींचतान की परिस्थिति बनी हुई है। बदलाव बहुत जरूरी है परंतु इसकी गति धीमी है। इसके लिए कुछ समय अपेक्षित है।
- शीला सिंह
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
देश में अर्थव्यवस्था से जुड़े जो भी आंकड़े सामने आ रहे हैं वह विकास की धीमी चाल की ओर साफ इशारा कर रहे हैं।
औद्योगिक उत्पादन वाहन बिक्री और वित्तीय संस्थानों के ऋण वितरण में गिरावट आर्थिक संकट की पुष्टि करते हैं।
लेकिन भारत दुनिया की अर्थव्यवस्था में सबसे तेज गति के साथ वृद्धि हासिल कर रहा है। इस मामले में हम पड़ोसी देश चीन को भी पछाड़ दिए हैं।
हमारे देश में अर्थव्यवस्था कोरोनावायरस के कारण डूबने की कगार पर आ गई थी।
लेकिन जुलाई में कारोबारी गतिविधियां थोड़ी सुधरी है जिससे धीमी गति से अर्थव्यवस्था सुधर रहा है लेकिन नववर्ष में अनुमान है सर्विस सेक्टर में तेजी आने से सुधार की रफ्तार होगी।
लेखक का विचार:---अर्थव्यवस्था का संकेत देने वाले 8 इंडिकेटर में सिर्फ 5 में पिछले महीने सुधार दर्ज किया है।इससे संकेत मिलता है कि भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार धीरे-धीरे आ रही है।
2021 के शुरुआती महीने से देश में मंदी का असर कम होना हो सकता है शुरू।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
तबदीली कुदरत का नियम है। यह तबदीली चाहे सामाजिक, धार्मिक,आर्थिक और राजनीतिक हो।समय समय पर हर क्षेत्र में तबदीली आती रहती है। इन के कई कारण होते हैं।
आजकल भारत की धीमी गति से विकास के कई कारण हैं। सब से बड़ा कारण दुनिया की सभी अर्थ वयवस्था में गिरावट है।जब सारी दुनिया में धीमी गति से विकास हो रहा हो तो उसके कुछ साझा कारण होते है। जैसे आजकल करोना महामारी ने पूरी दुनिया हिलाकर रख दी है।ऐसी महामारी का प्रभाव विकास शील और कम स्रोत वाले देशों पर पड़ता है। भारत एक विकास शील देश है।यह इस मंदी से उभर नहीं सका।इस लिए इसकी बदलाव के दौर में गति धीमी है। कई बार कुछ सरकारी नीतियां भी गलत होती हैं। भारत में भी धीमी गति के यही कुछ कारण हैं।
- कैलाश ठाकुर
नंगल टाउनशिप - पंजाब
क्या ये दौर बदलाव का है जिसकी सिर्फ गति धीमी है ?
हाँ ! ये दौर बदलाव का है जिसकी गति धीमी है। स्थायी बदलाव धीमी गति से ही होता है। बदलाव तो तूफान से भी होता है पर वो विनाशकारी होता है। विनाशकारी बदलाव हमेशा दुःखदायी होता है। उसे बदलाव नहीं कह सकते हैं। धीमी गति से जो बदलाव होता है वही बदलाव स्थायी होता है और सुंदर भी, सर्वग्राह्य भी।
जिस तरह से दूध जामन डालने के बाद धीरे-धीरे दही ने बदलता है और वो स्थायी हो जाता है फिर दूध नहीं बन सकता। ठीक उसी तरह से जो कुछ भी धीरे-धीरे बदलता है वो स्थायी हो जाता है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - पं. बंगाल
क्या इधर बदलाव का है जिसकी सिर्फ गति धीमी है? जो वर्तमान में क्रियाकलाप हो रहा है उसका अवलोकन करने से यही लगता है कि यह समय बदलाव का है क्योंकि प्राकृतिक नियम के विरुद्ध वर्तमान में मानव का जीना हो रहा है। इसी के चलते दिनोंदिन प्राकृतिक असंतुलन होने के कारण पूरी प्रकृति की व्यवस्था में बदलाव आ रहा है उससे प्रभावित होकर मानव के जीवन में भी बदलाव आने लगा है पृथ्वी और प्राकृतिक वातावरण पतन होने लगा है मानव का बौद्धिक भी पतन होने लगा है जिसके फलन में मानव को सही जिंदगी जीने के लिए बदलना ही होगा मुझे तो लगता है कि यह पाश्चात्य सभ्यता का ब्रेक है भारतीय संस्कृति को भुलावा देकर पाश्चात्य सभ्यता को अपनाने से सभी क्षेत्रों में समस्याएं बढ़ने लगी है अतः यही कहते बनता है कि यह जो समय है बदलाव का वक्त आ गया है बदलाव एकदम से नहीं होता आहिस्ता आहिस्ता होता है बदलाव या परिवर्तन सही की ओर होता है गलत की और होने से समस्या होती है और सही की ओर होने से समाधान होती है अभी करुणा की मार वाली समस्या लोगों को कुछ बदलाव लाने के लिए मजबूर कर दिया है अतः यह समय बदलाव का समय है ऐसा प्रतीत होता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
बदलाव का दौर तो दिख रहा है और ये इसकी गति धीमी है, ऐसा नहीं माना जा सकता। खानपान, रहनसहन, आचार विचार, रीति रिवाज,पढ़ाई लिखाई, गीत संगीत,सभी कुछ में बदलाव स्पष्ट नजर आ रहा है। शायद इसलिए नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी में टकराव और बिखराव भी देखा जा रहा है। पहले भी बदलाव होते रहे हैं,परंतु तब शनैः शनैः होते थे और ऐसे में बदलाव स्पष्ट नजर नहीं आता था। आज जैसे बदलाव हो रहे हैं, पहले से काफी भिन्न हैं। आधुनिकता, फैशन और विकास के नाम पर जो हो रहा है, वह पुरानी पीढ़ी को भले ही सरल और सहज सुविधाएं उपलब्ध करा रहा है परंतु फिर भी उसे रास नहीं आ रहा है। उसकी एक बड़ी वजह उन्हें यह सब हमारी संस्कृति और संस्कार के अनुरूप नहीं लग रहा है। हम अपनी संस्कृति औऋ संस्कारों से परे पाश्चात्य की ओर तेजी से बढ़ते नजर आ रहे हैं। विशेष तौर पर नव पीढ़ी में बुजुर्गों और परिजनों के प्रति जो उपेक्षा बढ़ रही है, उनके प्रति मान- सम्मान को सीधे- सीधे ठेस पहुंचा रही है। अनेक नवयुवक ऐसे मिलेंगे जो अपने खास रिश्तेदारों को पहचानते तक नहीं हैं , परिचय भी कराओ तो न.प्रणाम, न चरण स्पर्श। ये पुरानी पीढ़ी के लिए बोझिल करने वाले पल होते हैं।
नवाकर्षण, नई फैशन,नये-नये उपकरण इतनी ललक पैदाकर पाने को उतावला कर रहे हैं कि वह स्वार्थी होकर सिमटकर अकेला पड़ता जा रहा है।
बस, समाज और परिवार के लिए बदलाव का यही पक्ष कमजोर और चिंतनीय है, वरना विकास और बदलाव एक शाश्वत क्रम है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
इस एक साल में सारे विकास की गति धीमी हो गई है। इस धीमी गति में मानव ने अपनी आदतों में भी बदलाव किया और उसने बदलाव के साथ जीना सीख लिया है। अब नए साल में उम्मीद की नई किरण जगी है। नए तरीके से जिंदगी के रास्ते तय करने हैं तो शुरुआत में सम्भाल कर कदम रखने पड़ेंगे।जिससे खुद भी स्वस्थ्य रहे और परिवार भी सुरक्षित रह सके।
बदलाव हर युग में देखा गया है। इसी बदलाव से हमने पशुत्व से सभ्य समाज का निर्माण किया है। शरीर से लेकर खान-पान, रहन-सहन, व्यवसाय सभी निश्चित समय के साथ बदलाव चाहते हैं। जो भी व्यक्ति इनसे कदम ताल मिला लेता है वही आगे बढ़ कर जमाने के साथ चल पाता है।
इस नए पथ पर गति की रफ्तार धीरे-धीरे बढ़ेगी। अभी तो धीर गंभीर चाल होनी ही है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
बदलाव तो निरन्तर हो रहा है। यहां तक कि जब मनुष्य शरीर रूपी चोला छोड़ता है तो निष्प्राण देह में भी बदलाव होते रहते हैं। वर्तमान दौर भी कोई अपवाद नहीं है। पिछला दशक समाप्त हुआ और नये दशक की शुरुआत हुई अर्थात् बदलाव हुआ। बदलावों का हम नामकरण करते रहते हैं। वर्तमान बदलाव के दौर की गति को धीमी इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि जिस एक ही जीवन-शैली में बरसों से जीते आ रहे थे उसमें कोरोना महामारी के कारण बदलाव लाना पड़ रहा है। मास्क लगाना और दूरी बनाए रखना इसे नियम में ढालने में समय लग रहा है। कार्यालय के स्थान पर घर से कार्य करना, शिक्षा भी आनलाइन प्राप्त करना। ये सिलसिले न जाने कब तक चलेंगे या हमारे जीवन का हिस्सा बन जायेंगे और कब तक, कुछ पता नहीं। जब बदलाव आयेगा तो वह भी एक नया बदलाव होगा।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
बदलाव यानि परिवर्तन, ये तो जीवन का अटल सत्य है। सपूर्ण सृष्टि गतिमान है जो कि परिवर्तन की पहली शर्त है। गति और परिवर्तन दोनों ही परस्पर एक दूसरे के पूरक हैं। दौर कोई भी हो, परिवर्तन तो सतत चलता ही रहता है। मौसम का परिवर्तन, दिवस निशा का परिवर्तन तो सदैव द्रष्टव्य है ही सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन भी शनैः शनैः होते ही रहते हैं। आज के इंटरनेट के इस दौर में जब सारी दुनिया एक साथ जुड़ी हुई है, ऐसी स्थिति में विश्व की सभी संस्कृतियों का एकदूसरे में समागम होता जा रहा है। एक दूसरे से परस्पर प्रभावित होकर सभी संस्कृतियों में बदलाव आ रहा है। तरक्की की चरम सीमा पर पहुँचे इस आधुनिक विज्ञान का भी बदलाव की इस प्रक्रिया में अतुल्य योगदान है। हमारे समाज की ये विस्तृत विचारधारा परिवर्तन का स्पष्ट द्योतक है। नूतन और पुरातन विचारों के मिश्रण से एक नई उत्कृष्ट विचारधारा हमारे समाज में उभरती जा रही है जो निश्चित तौर पर एक सकारात्मक बदलाव को दर्शाती है।
- रूणा रश्मि "दीप्त"
राँची - झारखंड
हम बचपन से ही सुनते आ रहे हैं कि परिवर्तन संसार का नियम है, यदि परिवर्तन ही न होता तो हम आदिमानव से इंसान कैसे बन पाते, इंसान बनने के बाद भी बहुत से परिवर्तन लाना जरूरी है, कूछ हद तक परिवर्तन तो हुए , कहने का मतलब काफी हद तक तकनीकी बदलाव हुए, इंसान खला तक पहुंच गया काफी हद तक अडवांस हो गया लेकिन जिन बातों में परिवर्तन की जरूरत है उसकी गति धीमी लगती है,
तो आईये आज की चर्चा इसी बात पर हो जाए कि क्या ये दौर बदलाव का है पर जिसकी सिर्फ गति धीमी है,
मेरा मानना है कि यह दौर समाज में बदलाव लाने का है लेकिन समाज में बदलाव लाने की गति काफी हद तक धीमी चल रही है जिसके कारण आम आदमी की हालत खस्ता होती नजर आ रही है।
समाज में बदलाव बहुत जरूरी है मगर जैसा बदलाव हो रहा है वह चिंताजनक है,
यह सच है परिवर्तन ही जीवन है, यदि देश, समाज और आसपास के वातावरण में परिवर्तन न हो तो व्यक्ति शीघ्र ही बोर हो जाएगा लेकिन परिवर्तन अच्छा भी हो सकता है खराब भी,
इनमें से कुछ परिवर्तन ऐसे हैं जो सिर्फ दिखावे के लिए हैं और जिनमें बदलाव लाना बहुत जल्द व जरूरी है लेकिन इन को बदलाव लानै की गति बहुत ़धीमी आंकी जा रही है,
देखा जाए आजकल दिखावे और आडम्बर में बहुत वृदि हुई है, मसलन शादी विवाह हो, जन्मदिन या बर्षगांठ व अन्य छोटे मोटे कार्यक्रम इन सभी को देखोदेखी होटलों मे वड़ी धूमधाम से किया जाता है, जो आम आदमी के लिए चिन्ता का बिषय हो गया है, दहेज प्रथा को देखिए जोरों पर है फैशन हो या दुसरे फालतु कार्यक्रम दिन व दिन वढ़ते जा रहे हैं जो चिन्ता का विषय बने हुए हैं,
बच्चे जव ऐसे कार्यक्रम में जाते हैं तो वो अभिभावकों से अपने लिए भी ऐसा ही समारोह करने की जिद्द करते हैं,
कहने का मतलब उपहार के बदले की भावना से उसके मुल्य अधिक हो गया है
इसके पीछे के कारण हैं शिक्षा का अंग्रेजीकरण, दो नंम्वर का पैसा और दुरदर्शन का बढता प्रभाव,
हमें इन सब बातों में बदलाव लाने की शीघ्र जरूरत है जो धीमी गति से चल रहा है।
अब हम पर निर्भर करता है कि हम अपनी पीढ़ी को कैसा वातावरण व संस्कार दे सकते हैं, अगर ऐसा कर पाना संभव नहीं हो पाया तो आम आदमी सुख व चयन खो बैठेगा व यह बुराईयां लगातार बढ़ती ही नजर आऐंगी ओर हम अपने समाज के आगे धकेलने की वजाए फिर पीछे धकेल देंगे,
कहने का मतलब ये दौर बदलाव का है हमैं इसमे तीव्रता लानी होगी ताकी हर इंसान चैन का सांस ले सके।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
परिवर्तन है सत्य अलिखित
अतीत मोह सुषुप्ति की सीमा
अतीव खूबसूरत और विचारोत्तेजक है आज की परिचर्चा का विषय।बदलाव तो प्रकृति का शाश्वत प्रावधान है - - - जीवन का संविधान है----हदय का अनिवार्य अवधान है और इसी बदलाव की प्रक्रिया में मानवमात्र का सम्मान है।
एक अवसर था जब एक दूसरे की आदतों में शुमार थी सामाजिकता। लेकिन अब सोशलडिस्टेंसिंग के नाम पर निरा अरण्य यम-नियम लागू हो रहे हैं जिसमें तन की दूरी जो छुआछूत की वजह से मानी जाती थी--वह स्पर्श-व्यंजना अब स्वास्थ्य के नाम पर चल पड़ी है।
विश्व व्यवस्था में भी बदलाव अति की सीमा तक पहुंच चुका है। कूटनीतिक संबंध की स्थापना अब तकनीकी विकास के साथ बदल रही है। साम्राज्यवाद का विस्तार मानवीय या शस्त्र शक्ति के सिद्धांत "जिसकी लाठी उसकी भैंस" पर आधारित नहीं रह गया है बल्कि चीन जैसा छोटा सा देश जैव-तकनीकी से अमेरिका जैसी महाशक्ति को भी आतंकित कर देता है।
वसुधैव कुटुम्बकम के प्रणेता भारत जैसे संयमी, अहिंसावादी राष्ट्र भी अपनी सामरिक परमाणु क्षमता का प्रदर्शन करते रहते हैं कि "क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो"! युद्ध तामसी प्रवृत्ति है उसके प्रति हीन भाव अब नहीं है। "शक्ति की भक्ति" का प्रदर्शन अहंकार नहीं वक्त की जरूरत माना जाने लगा है।
घर और मकान के बीच एक सापेक्षिक सहजता हो रही है। रिश्तों में मोह-निर्मोह से परे एक परस्पर समन्वयक संबंध निर्माण हो रहे हैं। पुरातन काल से आदर्श माने जाने वाले पारंपरिक रूप बदल रहे हैं। युवाओं में लोकप्रिय हो रही हैँ स्वैच्छिक(लिव-इन) रिलेशनशिप।
बच्चों के लिए पेरेंट्स में और माता-पिता के लिए बच्चों में पश्चिमी सभ्यता ज्यादा मुखर हो रही है! निःसंदेह घर से लेकर बाजार तक और बाजार से लेकर संसद तक--और संसद से लेकर प्रजातंत्र तक और प्रजातंत्र से लेकर विस्तारवाद तक यह धीमा बदलाव परिचालित है - -हाँ प्रगति - गति-अगति की प्रवृति अभी अगम्य है।
- हेमलता मिश्र "मानवी"
नागपुर - महाराष्ट्र
निश्चय ही ये दौर बदलाव का है व इस बदलाव की गति धीमी है ...हो सकता है की बदलाव की गति तेज हो कभी पर आज के दौर मैं यह धीमी है .....सोचने की बात है की इस दौर मैं कौन से बदलाव हो रहे हैं ??
पर्यावरण मैं बदलाव हो रहा है ....वातावरण शुद्ध हो रहा है .....प्रदुषण कम हो रहा है ...लग अब घर का खाना पसंद करने लगे हैं .....बाहर खाने से डरने लगे हैं
....लोग अब घर मैं समय देने लगे हैं ........एक दूसरे को समझने लगे हैं ......रिश्तों को सम्मान देने लगे हैं
ये सारे बदलाव सकारात्मक हैंजिन्होने इंसान को उन मुद्दों पर सोचने को मजबूर कर दिया है जिनसे मनुष्य जानते बूझते भी अनभिज्ञ होने का नाटक करता है
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
पूरा एक साल करोना के विभिन्न रूपों को हमने वैश्विक, सामाजिक , आर्थिक ओर व्यक्तिगत जीवध पर असर ड़ालते देखा। सारा विश्व एक जीवाणु के शिकंजे में ऐसा आया कि गति बदल गयी। सब कुछ थम गया। भय, संत्रास अकेलेपन के विपरीत नैसर्गिक और आत्मिक शक्ति को बढ़ावा मिला। घरों में बंद मानव स्वतंत्रता का सही अर्थ समझा। 2021 बदलाव है तो इस का श्रेय भी 2020को जाता है ।हम ने नये तौर तरीकों में प्रगति की है. पंच तत्वों का उपयोग समझा है ।
बदलाव की गति तो हमेशा ही धीमी होती है।बीज से अंकुरित नन्हा पौधा हो, मनुष्य भ्रुण की गति हो, वाहन की चाल हो। सहज पक्के सो मीठा। बदलाव यदि तवरित होगा तो वो अस्थाई होगा। बदलाव के लिए दृढ़ता की आवश्यक है जो मन ,मस्तिष्क और कर्म का सामंजस्य है
यह साल तो इस बात के लिए जाना जाएगा कि जो परिवर्तन हम ला चुके हैं उस पर स्थिर रहें । सकारात्मकता का दामन पकड़ कर आगे बढ़े।
- ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
बदलाव तो प्राकृतिक नियम है जो शाश्वत है समय अपनी रफ्तार से गुजरता रहता है वक्त करता रहता है साल गुजरते रहते हैं बदलाव होता रहता है वर्तमान समय में अचानक से जीवन जीने के स्तर में बहुत बड़ा बदलाव आया है कुछ तेजी से हम लोग आधुनिकता के पीछे भागे जा रहे थे पाश्चात्य संस्कृति का नकल कर रहे थे और यह इतना स्वाभाविक ढंग से हो रहा था कि खुद को खुद से पता नहीं था पता होने पर नियंत्रण नहीं कर पा रहे थे तो प्रकृति ने एक बीमारी के माध्यम से बहुत बड़ा सामाजिक बदलाव ला दिया लोगों को समझ में आने लगा जीवन क्या है जीवन जीने का तरीका क्या है और अपनी जमीनी अस्तर से जुड़ने लगे
गति धीमी है यह नजर का फेर है गति तो अपने रफ्तार पर जा ही रही है पर हम उसे स्वीकारने में देर करते हैं तो मुझे लगता है की गति धीमी है जितना जल्दी स्वीकार एंगे उतना ही जल्दी हम आगे बढ़ेंगे सब हमारे सोच का और नजरिया का परिणाम है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
समय और वक्त के साथ सब बदलता रहता है,
"संसार में सब नश्वर है मानव माटी का पुतला माटी में ही मिल जाना है।"
इस महामारी के दौर में लोगों का पढ़ाई लिखाई ऑनलाइन ज्यादा काम करना सब ने सीख लिया।
करोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई के कारण शिक्षक और माता-पिता दोनों की मनोदशा मैं बदलाव आया है। कठिन परिस्थितियों में ही हम सही ढंग से काम करना सीखते हैं और बुरा वक्त ही मनुष्य को कुछ ना कुछ अच्छी बातें सिखाता है और हम किसी ना किसी बात का सहारा लेते हैं।
इस समय हमने ज्यादा नई टेक्नोलॉजी का सहारा लिया और ऑनलाइन पढ़ाई के माध्यम से बच्चे घर बैठकर सुरक्षित तरीके से पढ़ाई कर रहे हैं।
माता पिता और शिक्षक दोनों के सहयोग से ही बच्चे की पढ़ाई हो सकेंगी, क्योंकि कोई भी बच्चा पढ़ना नहीं चाहता।
स्कूल नहीं जाना है, होमवर्क नहीं करना उसे डांट भी नहीं पड़ेगी, उसके तो मजे हो गए।
मां का दायित्व बढ़ गया है , कि उसका बच्चा क्या कर रहा है सही ढंग से पढ़ाई कर रहा है या मोबाइल लेकर गेम खेल है।
फिर बुद्धि की परीक्षा इसमें ही निहित है कि आप किस प्रकार से जीवन दर्शन विचार पद्धति को विकसित करते हैं जो व्यक्तित्व अर्थात स्वभाव गुणों के अनुरूप रहता है यह कैसे आपको संघर्षों के मध्य प्रश्न रखता है जीवन के स्तर को उठाने में सहायक हो सकता है।
आपको बदली हुई परिस्थितियों के साथ बुद्धिमत्ता से बिना शिथिल हुए स्वयं को समायोजित करना है ।आप स्वयं को अपने विचारों से नियंत्रित कर सकते हैं बुद्धि का उचित उपयोग आपको आनंद की प्राप्ति के लिए भीतर से ही दिव्य ज्ञान की उन्मुख कर देता है।
इसमें सभी के जीवन में बदलाव हुआ है और हम अपने आपको ज्यादा ध्यान देने लग गए हैं अपने घर परिवार का भी ध्यान देने लग गए जनमानस यह बात को अच्छी तरह से समझ चुके हैं कि स्वास्थ्य ही सच्चा धन है जो लोग पैसे कमाने की होड़ में लगे थे उनको यह समझ में आ गया कि यदि यदि स्वास्तिक नारा तो सारा पैसा धरा का धरा रह जाएगा लोग योग अध्यात्म और आयुर्वेद ज्ञान को अपनाने लगे हैं।
धीमी गति से तो है पर सही दिशा में सकारात्मक कदम हमारे देशवासी सभी उठा रहे हैं और विदेशों में भी हमारा आयुर्वेद योगाभ्यास खानपान सात्विक रहन-सहन सभी लोग अपना रहे हैं जिससे उन्हें आत्म बल मिल रहा है।
जनमानस में बदलाव धीमी गति से हो रहा है पर बदलाव अवश्य हो रहा है आप लोग सुरक्षा को अपनाने लगे हैं।
नव वर्ष में यही आशा है कि बदलाव को अपनाते हुए हम सब अपनी जीवनशैली में मास्क लगाना 2 गज दूरी है जरूरी को भी अपना रहे हैं।
स्वस्थ रहें मस्त रहें नव वर्ष आप सभी के लिए मंगलमय हो।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
बदलाव ही प्रकृति का मूलाधार है । पतझड़ के बाद ही नई कोंपलों का जन्म होता है । जो धीरे - धीरे विकसित होकर नयी पत्तियों का निर्माण करती हैं ।
इस युग में तकनीकी का विकास तेजी से हुआ है । लोगों ने भी इसका खूब लाभ उठाया और शीघ्रता से सब कुछ डिजिटल हो गया । इन सबमें मनुष्य की भावनाएँ अवश्य ही बदली हैं ।
इस समय महामारी के प्रभाव से कार्यों की गति धीमी हुयी जिसका प्रभाव जनमानस के व्यवहार व रोजगार पर आसानी से देखा जा रहा है किंतु जल्दी ही सब कुछ सामान्य होगा और दुगनी तेजी से सभी लोग बदलते युग को स्वीकार कर आगे बढ़ेंगे ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
यह बात सच है कि वर्तमान समय में बदलाव की स्थिति आ गई है, जिसकी गति धीमी होना सवभविक है। ऐसा दौर है कि केंद्र सरकार को अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि वैश्विक स्तर पर मंदी की आहट के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था करीब 7 फीसद की दर से आगे बढ़ी है जिसे संतोषजनक कहा जा सकता है।देश में अर्थव्यवस्था से जुड़े जो भी आंकड़े सामने आ रहे हैं वह विकास की धीमी चाल की ओर साफ इशारा कर रहे हैं।हाल में औद्योगिक उत्पादन मानविकी और वित्तीय संस्थानों के वितरण में गिरावट आर्थिक संकट की पुष्टि करते हैं। इस परिस्थिति में इस बात को लेकर खुश नहीं नहीं रहा जा सकता है कि भारत दुनिया के शीर्ष व्यवस्थाओं में सबसे तेज गति के साथ बीड़ी हासिल कर रहा है। भले ही हमने पड़ोसी देश चीन को भले ही पूछा दिया है लेकिन घरेलू बाजार में मौजूदा हालात ठीक नहीं है घरेलू बाजार में मौजूदा स्थिति ठीक नहीं है। ऊंची आर्थिक वृद्धि दर का असर जमीन पर भी दिखना चाहिए जो नजर नहीं आ रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि वैश्विक स्तर पर मंदी की आहट के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था करीब 7 फीसद जी किधर से आगे बढ़ाई है जिसे संतोषजनक तो कभी भी नहीं कहा जा सकता है लेकिन सरकार ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने और उसे 2024 तक अर्थव्यवस्था को $5 की बनाने जैसे जो लक्ष्य रखे हैं क्या उसे हासिल किया जा सकता है। मौजूद मौजूदा स्थिति में तो यह संभव होता नहीं दिख रहा है लेकिन यदि मोदी सरकार को न्यू इंडिया का सपना पूरा करना है तो इसके लिए आर्थिक मोर्चे पर अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा।आम करदाताओं और निवेशकों पर सिर्फ टैक्स का बोझ बढ़ाने से कोई बड़ा लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता है विदेशी पोर्टफोलियो निवेश को पर यह फार्मूला लागू करने के परिणाम जगजाहिर है बजट के बाद से विदेशी निवेशक पूंजी बाजार में लगातार बिकवाली करके ज्यादा कमाई के लिए दूसरे देशों में पैसा लगा रहे शेयर बाजार में गिरावट की मार से पिछले करीब डेढ़ माह में निवेशकों की ₹120000000 से अधिक की मेहनत की कमाई डूब चुकी है।दरअसल सरकार ने बजट में पूंजी बाजार के संदर्भ में जो प्रदान किए थे वह मौजूदा प्रदेश में उचित नहीं थे उद्योग जगत ने इसके नकारात्मक प्रभाव के बारे में सरकार को अच्छी तरह से अवगत करा दिया लेकिन उस मुद्दे पर सरकार पीछे हटने को तैयार नहीं हुई आप काफी कुछ हाथ से निकल जाने के बाद यह बातचीत को तैयार है हालांकि इस दिशा में अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ है लेकिन निवेशकों के बीच एक सकारात्मक संदेश जरूर गया है इसे बाजार धारणा में मजबूती आई है पुराने अनुभव को देखते हुए सरकार को कभी लकीर का फकीर नहीं बनना चाहिए हमेशा इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि जो भी फैसले लिए जाते हैं जरूरी नहीं कि वह सभी कारगर साबित हो यदि समय के मुताबिक उन में बदलाव कर लिया जाए तो इसमें सवाल नहीं बनता के मामले में सरकार की जितनी तारीफ की जाए वह कम है एवं आमजन की समस्या को देखते हुए इस प्रणाली में कई बदलाव किए जा चुके हैं यही वजह है कि व्यापारी वर्ग अब उसी का दिल से समर्थन कर रहा है सरकार इस मोर्चे पर अपना रुख बदल सकती है तो फिर बजट में कुछ प्रधानों को लेकर क्यों है। यह समझ से परे वित्तीय क्षेत्र और वाहन उद्योग को इस समस्या अब जगजाहिर है इस बात को सरकार को भी स्वीकार कर चुके हैं लेकिन उनके जख्मों पर मरहम लगाने का कोई काम नहीं किया गया है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
" मेरी दृष्टि में " बदलाव के पीछे कोई ना कोई कारण होता है । जिस को रोका नहीं जा सकता है । यही काल का परिर्वतन कहां जाता है ।परन्तु कोरोना काल बहुत ही धीमी गति का काल साबित हुआ है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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