क्या विनम्रतापूर्वक किया गया इन्कार झूठे वादें से बहुत अधिक अच्छा होता है ?
इन्कार करना भी बहुत अच्छा हो सकता है । परन्तु झूठ बोलना कभी भी अच्छा नहीं हो सकता है । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । जो झूठ और विनम्रतापूर्वक इन्कार के अन्तर को स्पष्ट करने का कार्य करेगा । अब आये विचारों को देखते हैं : -
निस्संदेह विनम्रता पूर्वक किया गया वह इंकार झूठे वायदे से बहुत अच्छा होता है, यहां तक कि श्रेयस्कर भी माना जा सकता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहते हुए हमें एक दूसरे से काम पड़ता है और यदि हम एक दूसरे को टालमटोल करके उसका काम नहीं करेंगे तो हम अपने ही व्यक्तित्व को बौना बना देते हैं। जबकि विनय शील व्यक्ति ही योग्य स्थान प्राप्त कर सकता है ।संस्कृत में एक श्लोक है-
विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम् ।
पात्रत्वाध्दनमाप्नोति धनाध्दर्मं ततः सुखम् ।।
यदि आप से किसी ने अपेक्षा रखी है और आप उसका काम नहीं कर सकते तो आप को उसे विनम्रता पूर्वक मना कर देना चाहिए। इसके लिए आप 'कृपया माफ कीजिए', 'क्षमा कीजिए' आदि विनम्रता भरे शब्दों का प्रयोग कर सकते हैं। इससे संबंधों में मधुरता भी बनी रहेगी। कहा भी गया है- जैसे सूखी मिट्टी पर पानी डालकर गीली मिट्टी को मनचाहा आकार दिया जा सकता है, उसी प्रकार ,कठोर से कठोर व्यक्ति से विनय पूर्ण व्यवहार कर वांछित परिणाम प्राप्त किया जा सकता है ।
- डॉ. सुनील बहल
चंडीगढ़
हमारा वादा झूठा कब निकलता है, जब हम असक्षम होते हैं। जब हममें असक्षमता है यह हमें विदित है कि हम पूरा नहीं कर सकते तो क्यों वादा करना!
उस स्थिति में विनम्रतापूर्वक किया गया इन्कार झूठे वादे से बहुत अधिक अच्छा होता है।
हमारे इन्कार करने से समय का बचत होने पर आसानी से दूसरा मार्ग ढूँढ़ लिया जा सकता है। और आपस के सम्बन्ध को बिगड़ने से भी बचाया जा सकता है।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
विनम्रता सर्वोत्तम और सर्वश्रेष्ठ गुण है, झूठे वादे से बहुत अधिक अच्छा होता है।
विनम्रता पूर्वक सामने वाले को सही -सही बात की जानकारी देंगे, तो आप के प्रति अच्छा नजरिया रखते हुए खुद को नहीं बल्कि अपने पास के सभी लोगों को उत्तम तरीके से बताएंगे। क्योंकि ऐसे इंसान को सभी लोग पसंद करते हैं।
दुनिया में हर इंसान अगर विन्रम हो तो दुनिया कितनी खूबसूरत होगी। लोग एक दूसरे से ज्यादा मांग नहीं करेंगे।
यहां पर कबीर दास जी के दोहे के विवरण कर रहा हूं। इस दोहे में विनम्रता के गुण के बारे में कहा गया है:-
*ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोए*।
*अपना शीतल करें, औरन को सुख होए*।।
वाणी ऐसी एक चीज है जो तलवार से भी तेज है, अगर किसी को कोई एक गलत शब्द दिए तो वह शब्द हम आपस नहीं ले सकते हैं और संबंधों में हमेशा गांठ पड़ जाती है।
विन्रम स्वभाव से सभी के दिल को जीता जा सकता है। प्रेम से हम दुनिया को भी अपने वश में कर सकते हैं।
अतः विनम्रता पूर्वक किया गया इनकार झूठे वादे से बहुत अधिक अच्छा होता है।
लेखक का विचार:--विनम्रता हमारी जिंदगी में हमारे स्वभाव के लिए बेहतरीन तोहफा है जिसे अपनाकर हम सामने वाले के साथ-साथ अपने मन पर भी एक सकारात्मक असर डालते हैं।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो -झारखंड
लुट न जाये कहीं खुद से खुद ही कहीं
सच को कहने लगे झूँठ
और गलत को सही l
उपर्युक्त पंक्तियाँ आज की चर्चा को रेखांकित करती हैं कि अपनी आत्मा का सौदा किसी भी क़ीमत पर नहीं करें क्योंकि विनम्रता पूर्वक किया गया इंकार झूँठे वादे से कहीं अच्छा है l
झूँठ जिसे जिसे हम वाक छल या असत्य कहते हैं एक ज्ञात सत्य है, जिसे सत्य के रूप में स्वीकार किया जाता है l यदि हम किसी से झुंठा वादा कर लेते हैं तो उसे पूर्ण करने के लिए हम उदगीन या परेशान रहते हैं शांति भंग होती है अतः झूठे वादे की जगह हम इंकार ही करते हैं l
"न ससखा यो न ददाति सखो "
--ऋग्वेद 10/117/4
वह मित्र ही क्या जो अपने मित्र को सहायता नहीं देता l यदि परमात्मा ने हमें सक्षम बनाया है -
सियाराम राममय सब जग जानी करहूँ प्रणाम जोरि जुग पाणी l
की भावना को पुष्ट करते हुए झूँठे वादे नहीं, सच्चा वादा करके उसे पूरा भी करना चाहिए l
-डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
अवश्य ! विनम्रतापूर्वक किया गया इनकार झूठे वादे से बहुत अधिक अच्छा होता है। क्योंकि अगर हम किसी को किसी चीज के लिए तुरंत इनकार करते हैं तो उसे थोड़ी देर के लिए ही तकलीफ होती है। फिर वह कहीं दूसरी जगह इंतजाम कर लेता है। अगर झुठ का वादा करते हैं और समय पर उसका काम पूरा नहीं होता हैं तो उसके मन में ज्यादा दुःख होता है। वादा करने वाले को लोग धोखेबाज कहते हैं। वो व्यक्ति हमेशा उसके नजरों से गिर जाता है। हरतरफ उसकी बदनामी होती है। लोगों का विश्वास उसके ऊपर से उठ जाता है। एक कहावत है दानी से सोम भला जो ठावें दे जवाब। यानी दानी व्यक्ति से कंजूस व्यक्तिअच्छा होता है जो तुरंत ना में जवाब दे देता है। दानी बोल देता है ठीक है आपको ये चीज देंगे लेकिन समय पर देता नहीं है। तो ऐसी दानशीलता किस काम की। जो समय आने पर धोखा दे दे। इसलिए कहा गया है कि विनम्रतापूर्वक किया गया इनकार झूठे वादे से बहुत अधिक अच्छा होता है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - पं. बंगाल
झूठे वादे विश्वास और भरोसे को तोड़ देता है। अगर झूठा वादा करने वाला इंसान दूसरी बार मदद करने का भरोसा भी दे तो हमें भरोसा नहीं होता क्योंकि हम उसके स्वभाव से परिचित हो चुके होते हैं। इसलिए अगर किसी कारण बस हम किसी की मदद करने में या कार्य पूर्ण कर पाने में खुद को सक्षम नहीं महसूस कर पा रहे हो तो संकोच त्याग कर क्षमा मांगते हुए विनम्रता पूर्वक हकीकत से वाकिफ कराते हुए इंकार कर देना ही उचित होता है।
किसी को अंधेरे में रखकर विश्वास तोड़ने और उसके हृदय को चोट पहुंचाने से अच्छा है कि हम अपने स्पष्ट विचारों द्वारा सच्चाई से अवगत करा दें। कुछ पल के लिए उसे बुरा लगेगा पर आप पर उसका विश्वास बना रहेगा। विनम्रता पूर्वक किया गया इनकार झूठे वादे से बहुत अधिक अच्छा होता है।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
स्पष्ट रुप से विनम्रतापूर्वक किया इंकार,झूठे वायदे से बेहतर होता है।यह केवल अपने ही हित में नहीं,सामने वाले के लिए भी सुविधा जनक होता है। जिस कार्यक्रम में हम जाने में असमर्थ हो उसके आयोजकों से समय रहते अपनी स्थिति बता देना चाहिए। किसी को धन की सहायता करने,किसी भी तरह का सहयोग करने का ऐसा वायदा नहीं करना चाहिए,जिसे हम पूरा न कर सके।इससे एक तो स्वयं हम तनाव से बचेंगे और दूसरा व्यक्ति भी समय रहते अपनी व्यवस्था कर लेगा। बहानेबाजी करना,झूठा वायदा करना एक तरह का मानसिक रोगी होता है। जिसके दुष्प्रभाव का सहज रुप से पता नहीं चलता। परिणाम भयंकर होता है। झूठे वायदे करने के कारण हम सबसे कटते चले जाते हैं। मित्र और रिश्तेदार दूर होते जाते हैं।इससे उत्पन्न एकाकीपन,उपेक्षा और असम्मान की भावना के कारण तनाव, डिप्रेशन,रक्तचाप आदि समस्याएं होने लगती है। इन सबसे बचने के लिए ऐसा वायदा ही न करें जो निभा न सके। इस कार्य के लिए विनम्रतापूर्वक इंकार करना ही श्रेयस्कर होता है।
- डॉ. अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
झूठा वादा करके किसी को भरोसे में रखना अत्यंत ही निंदनीय कार्य है। यदि उस कार्य को करने में असमर्थ है तो विनम्रता पूर्वक इंकार कर देना झूठ बोलने से अधिक अच्छा है। झूठ बोलकर सामने वाले को विश्वास में रखना और फिर वादाखिलाफी कर के दूसरे का विश्वास तोड़ना कदापि उचित नहीं है ।बेहतर है कि अपनी असमर्थता जाहिर करते हुए विनम्र भाव से उस कार्य को नहीं कर सकने का स्पष्ट कह दिया जाए ।उससे क्षणिक दुख जरूर होगा किंतु प्रेम भाव और विश्वास बना रहेगा जो कि जीवन में बहुत जरूरी है।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
जी हां यही शिष्ट आचरण का आधार है मनुष्य का प्राथमिक कर्तव्य भी / व्यवहार में शिष्टता व आचार में स्पष्टता उच्च आचरण व व्यक्तित्व का मूल्यांकन करते समय गुणधर्म स्थापित करने में अग्रणी कह लायेगा // मानसिक द्वेष व खिन्नता व कटुता को निष्पादित कर प्रेम भाव को सामाजिक रूपेण संबोधित करने में लाभकारी होगा - विनम्रता के साथ कहे गये कडवे बोल भी कम से कम एक व्यवहार कुशल मानव को आने अतिअव्श्य्क है / ऐसा व्यक्ति अन्चाहे विपरीत प्रकल्पो से बचा रेह सकता है - अन्यथा जो सामाजिक व्यवहार है उसमे उलझ जाने की अत्याधिक अपेक्षा रेहती है // शब्द ही तो है जो आपके मन को दिमागी तरीके से परोस ने पर आपकी छवि का आधार बनते है / और किसी को अन्यथा अनावश्यक प्रलोभन में उल्झाने से बचाते है
- डॉ. अरुण कुमार शास्त्री
दिल्ली
जी,झूठा आश्वासन देकर किसी को भ्रम में रखकर उससे छल करने जैसा है।सच बोलकर साफ़ साफ़ शब्दों में नम्रता से इंकार करके माफ़ी माँग लेना एक बड़े दिल का परिचायक होता है।किसी को आशा में रखकर,झूठा वादा करके निराश करने से समय के साथ मानसिक क्षति अधिक होती है।कई बार लोग झूठ बोलकर व्यक्ति को झाँसा देते रहते हैं।जिससे अप्रिय घटनाएँ घटित हो जाती है।व्यक्ति में बदले की भावना उत्पन्न हो जाती है,कई बार तो देखा गया झूठ बोलकर पैसों का लेन देन कर लेते हैं और जब वापस करने का वक़्त आता है तब आनाकानी या आज या कल पर टालते जाते हैं।ऐसी परिस्थिति में कई बार दोस्ती दुश्मनी में तब्दील हो जाती है।सही स्थिति से अवगत नहीं कराना फिर वादाखिलाफी करना अत्यंत ही अशोभनीय कृत है।नम्रता से हाथ जोड़ कर यथार्थ से अवगत कराने से ,आपका ना कुछ घटता है ,नहीं घिसता है; बल्कि आपकी इज़्ज़त बढ़ जाती है।झूठा आश्वासन देने से अच्छा है विनम्रतापूर्वक इंकार करना बुद्धिमानी है।नम्रता को हमें अपने स्वभाव एवं व्यवहार का गहना बनाना चाहिए।
- सविता गुप्ता
राँची - झारखंड
जीवन में विनम्रता पूर्वक व्यवहार तात्कालिक तौर पर परिस्थितियों पर निर्भर करता हैं, कई का तो किसी भी तरह से झूठ का सहारा लेकर परेशान करने की प्रवृत्ति होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप वास्तविक तथ्यों में बुरी तरह से सामना करना पड़ता हैं। वर्तमान परिदृश्य में अधिकांशतः तथागत प्रायः देखने में आ रहा हैं। उनकी जिव्हा पर अचानक ही शब्दों में जादू की झरिया-छवियां-छल-कपट का मायाजाल फैला रहता हैं, जहाँ सभी को अपनी ओर आकर्षित करने तत्परता के साथ स्वतन्त्र होते हैं। कई-कई तो सच के सहारे रहते हुए, पूरा जीवन निकल जाता हैं, उन्हें झूठता बरदास्त नहीं होती।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
हां यह बात हंड्रेड परसेंट सच है कि यदि कोई व्यक्ति कोई कार्य को नहीं कर सक रहा है तो वह विनम्रता पूर्वक इंकार कर दे । साफ-साफ बता दे कि भैया मैं यह काम नहीं कर पाऊंगा, ठीक रहता है । बुरा जरूर लगता है पर किसी इंसान को हम धोखे में तो नहीं रखते और किसी को उम्मीद दे दिया कि हम तुम्हारा यह काम कर देंगे और बाद में नहीं कर पाओ उम्मीद टूटने पर उसका विश्वास भी टूट जाता है। इंसान को संभालना बड़ा मुश्किल होता है। किसी के विश्वास के साथ कभी खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। तो वह कार्य शायद वह स्वयं ही कर ले।
किसी की उम्मीद को नहीं तोड़ना चाहिए।
कई बार कोई व्यक्ति कमजोर दिल का है तो वह विश्वास टूटने के कारण ही आत्महत्या जैसे अपराध को कर लेता है।
- प्रीतिमिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
एक कहावत है कि "गुड़ ना दो, गुड़ जैसी बात तो कहो"।
मेरी समझ के अनुसार इस कहावत का तात्पर्य यह है कि "किसी का सहयोग करो न करो पर उसको आश्वासन तो दो"।
परन्तु आज की परिचर्चा के विषय का पूर्ण समर्थन करते हुए मैं इस कहावत से सहमत नहीं हूं।
मेरे विचार से यदि हम किसी की मदद नहीं कर सकते तो हमें निश्चित रूप से विनम्रतापूर्वक इन्कार कर देना चाहिए, झूठा वादा कर उसको भ्रम में नहीं रखना चाहिए।
यह एक सच्चाई है कि जब वादे धरातल पर खरे नहीं उतरते तो उसको मार्मिक पीड़ा होती है, जिससे वादा किया गया है।
झूठे वादों के कारण इन्सान का इन्सान पर से विश्वास उठ जाता है। किसी का साथ देने का वादा करके समय पर कदम पीछे खींच लेने को मैं निकृष्टतम व्यवहार की श्रेणी में रखता हूं।
इसलिए यदि हमारी क्षमता तथा सामर्थ्य किसी को सहयोग देने की स्थिति में नहीं है तो विनम्रतापूर्वक इन्कार ही उचित है।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
मन की कोमलता और व्यवहार में विनम्रता बहुत बड़ी शक्ति है। विनम्रता से असंभव को संभव किया जा सकता है। यह शक्ति तलवार से भी अधिक शक्ति शाली साबित होती है। इस लिए विनम्रता पूर्वक इन्कार झूठे वादे से बहुत अधिक अच्छा होता है।
किसी के साथ झूठे वादे करके पूरा ना करने से हमारे चरित्र पर प्रश्न चिह्न लग जाता है। हम दूसरों की नजरों से गिर जाते है और धोखेबाज जैसे विशेषण लग जाते हैं। इस से सौ गुणा अच्छा है कि हम प्रत्यक्ष रूप से झूठे वादे करने की बजाय विनम्रता पूर्वक इन्कार कर दें।एक मिनट के लिए तो सामने वाले को बुरा लग सकता है लेकिन बाद में हम उस की नजरों में ऊपर उठ जाएँ गे। वो जरूर सोचेगा कि इस ने झूठे वादे करके मेरा और अपना समय बर्बाद नहीं किया है। किसी से झूठे वादे करके उस के मन में आशा का दीप जलाना घोर पाप है। इस लिए विनम्रता से इन्कार करना सीख लो।इस से मन मिटाव और दूरियाँ घटती हैं।
- कैलाश ठाकुर
नंगल टाउनशिप - पंजाब
झूठ,सत्य, वादा वगैरह यह सभी मनुष्य के चरित्र,संस्कार, शिक्षा, पारिवारिक वातावरण पर बहुत कुछ निर्भर करता है।
व्यक्ति बहुत कुछ कार्य करना चाहता है।किन्तु परिस्थिति के हाथों वह मजबूर हो जाता है। ऐसे कोई कार्य अगर हम करने में असमर्थ हैं तो बेहतर है कि हम वह वादा किसी से न करें या विनम्रता पूर्वक मना कर दें।
ऐसा किया गया इंकार असत्य किये गये वादे से बेहतर होता है। जिसे वह कार्य किये जाने से मना किया जा रहा है, वह किसी और से सहायता ले सकता है और अपना काम चला सकता है।
हम किसी से झूठा वादा करके उसे भरोसे में रखते हैं और फिर उसके विश्वास को तोड़ते हैं। फलस्वरूप हमें इसका दुष्परिणाम भी भोगना होता है। हमें झूठे किये गये वादे से हमेशा ही बचना चाहिए। यही तो इंसानियत कहलाया है।
- डाॅ •मधुकर राव लारोकर
नागपुर - महाराष्ट्र
झूठ बोलने से बहुत ही बेहतर है कि विनम्रता पूर्वक इंकार कर दिया जाए, क्योंकि झूठ का कोई अंत नहीं होता है। व्यक्ति को एक झूठ छुपाने के लिए कई झूठ बोलने पर जाते हैं। इन परिस्थिति में विनम्रता पूर्वक किया गया इनकार झूठे वादे से अधिक अच्छा होता है। विनम्रता के जीवन में बहुत सारे लाभ है, इसलिए विनम्रता का गुण अपना कर जीवन में सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ते जाएं। बचपन से ही माता-पिता द्वारा दिए गए संस्कार वह अब तक के जिए इतने लंबे जीवन के आधार पर जो बात अनुभव की है वह यह है कि जो दुर्लभ से दुर्लभ वस्तु हम किसी बल से प्राप्त नहीं कर सकते हैं। वह हमें विनम्रता के बल पर सहज ही प्राप्त हो जाती है। चाहे कोई भी चीज हो हम विनम्रता के आधार पर अपना काम बहुत ही आसान बना सकते हैं। आप कहीं भी जाइए यदि आपने किसी से बैठने के लिए विनम्रता पूर्वक सीट मांगी तो वह कोई वजह नहीं है कि जगह ना होते हुए भी वह आपको इंकार कर दे।
हमारे धर्म ग्रंथों का एक मूल मंत्र है कि जो नंबर होकर झुकते हैं वही ऊपर उड़ते हैं। विनम्रता न केवल आपके व्यक्तित्व में निखार लाती है बल्कि कई बार सफलता का कारण भी बनती है। विनम्रता के बदले में जो सम्मान मिलता है उसका एक अलग ही महत्व है। मन की कोमलता और व्यवहार में विनम्रता का एक बड़ी शक्ति है।कोमलता सदा जीवित रहती है, जबकि कठोरता का जल्दी ही विनाश हो जाता है। तलवार कठोर से कठोर पदार्थ को काट देती है लेकिन कई को कठोर पदार्थों को काटने की ताकत उसमें नहीं होती। विनम्रता से छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर हम अपने जीवन को खुशहाल बना सकते हैं। परमात्मा को भी किसी की अकड़ पसंद नहीं है। वे अपने बच्चों की भलाई के लिए हमेशा खड़ा रहते हैं, परंतु आवश्यकता है कि स्वयं में कुछ मूलभूत सुधार लाने की ताकि जीवन सफल हो सके। इन परिस्थितियों में विनम्रता पूर्वक किया गया इंकार झूठे वादे से बहुत ही अच्छा होता है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
मेरे विचार में हम जो वादा निभा ही न पाएं उसके बारे में विनम्रतापूर्वक इंकार कर देना चाहिए ताकि हमारा आपसी विश्वास बना रहे। झूठा वादा करना समय आने पर विश्वास को तोड़ देगा।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
उपर्युक्त कथन बिल्कुल सत्य है। किसी काम करने के झूठे वादे कभी नहीं करने चाहिए। दूसरों के लिए उस कार्य की महत्ता हम नहीं समझ पाते हैं। पहले झूठे दिलासे देना और समय पर मुकर जाना छवि को खराब करता है। कोई जब किसी के पास जाता है तो उम्मीद लेकर जाता है। अगर हम कार्य को करने में अक्षम हैं, तो नम्रतापूर्वक मना कर देना ही उचित है। ताकि वह नए समाधान की खोज कर सके।
इससे हमें किसी प्रकार की हानि नहीं होती बल्कि हमारा अस्तित्व साफ-सुथरा नजर आता है। मदद न कर पाना भी कोई अपराध नहीं है। यह जरूरी नहीं है कि सभी परिस्थितियाँ हमारे वश में हों। झूठी दिलासा धोखा है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
आज की चर्चा में जहां तक यह प्रश्न है कि क्या विनम्रता पूर्वक किया गया इनकार झूठा वादा करने से ज्यादा अच्छा है तो इस पर मैं कहना चाहूंगा कि हां मेरे विचार से यह बिल्कुल सही बात है किसी को धोखे में रखना और उससे झूठा वादा करना एक बहुत गलत कार्य है जिससे संबंधित व्यक्ति का बहुत अहित हो सकता है और न केवल उसका अहित हो सकता है बल्कि इससे वादा करने वाले की प्रतिष्ठा भी धूमिल होती है और समाज में उसकी नकारात्मक छवि बनती है कि यह व्यक्ति विश्वास के योग्य नहीं है इसलिए ऐसे करने से बचा जाना चाहिए और यदि हम किसी की मदद नहीं कर सकते किसी कारणवश तो यही तरीका सबसे बेहतर है कि हम उसे अपनी विवशता विनम्रता पूर्वक समझाते हुए इंकार कर दें और झूठा वादा करने से बचें ।
- प्रमोद कुमार प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
विनम्रता पूर्वक चाहे सच्ची बात हो या झूठ बात हो अगर उसमें विनम्रता है तो मनुष्य को विनम्रता दुख नहीं देती है बल्कि जो तथ्य को लेकर बात हो रही है उसे सोचने के लिए मजबूर कर देती है विनम्रता एक ऐसा हथियार है जो कड़वे से कड़वी बात को सहज भाव से सामने वाले व्यक्ति के सामने रखकर दिल जीता जा सकता है झूठे वायदे से कहीं अधिक अच्छा विनम्रता पूर्वक जो हमें पसंद नहीं है याची कार्य नहीं है उसे इनकार कर सकते हैं इससे किसी को हानि नहीं होती है बल्कि विनम्रता पूर्वक कही गई बातें अच्छी और बात स्पष्ट हो भी जाती है झूठे वादे बहुत कड़वी और अविश्वसनीय होती है जिसे किसी को स्वीकार्य नहीं होता चाहे वह विनम्रता पूर्वक कही गई हो या कठोरता पूर्वक झूठे वादे हमेशा धोखे वाली बात होती है अतः झूठे वादे से बहुत अधिक अच्छा विनम्रता पूर्वक किया गया इंकार अच्छा है ना तो प्रभाव में जियो ना तो दबाव में जियो हमेशा स्वभाव गति में ही जियो और विनम्रता के साथ व्यस्त हो कर जियो यही मानव की मानत्व है। अतः विनम्रता पूर्वक किया गया इनकार झूठे वादे से बहुत अधिक अच्छा होता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
"न मोहब्बत थी न चाहत थी,
ना ही था उनमें वफा,
कुछ भी न था उनके पास,
बस झूठे वादों के सिवा"।
सच्चाई और ईमामदारी का रास्ता कठिन जरूर होता है लेकिन यही रिश्तों में भरोसा पैदा करता है, मामला चाहे कोई भी हो किसी न किसी रूप में झूठ हर जगह परोसा जाता है,
लेकिन यह याद रहे झूठ से भरोसा टूटता है तो सभी परेशान होते हैं बिखरते हैं टूट जाते हैं यहां तक की गहरे से गहरे रिश्ते झूठ बोलने से ही टूट जाते हैं,
आईये अाज बात करते हैं कि विनम्रतापूर्वक किया गया इन्कार झूठे वादे से बहुत अधिक अच्छा होता है,
मेरा मानना है कि कोई विनम्रतापूर्वक इन्कार करता है तो वो इन्कार भी सहज स्वीकार हो जाता है, क्योंकी विनम्रता सच्चे अर्थ में मनुष्य को श्रेष्ठ बनाती है और ऐसे व्यक्ति का कोई शत्रु नहीं होता,
कईबार हम झूठे वायदे कर देते हैं और उन्हें न होने पर भी लम्वें खींचते चले जाते ह१ं जबकि हम उन्हें करने के काबिल नहीं होते जा करना नहीं चाहते किन्तु दुसरे को जबाब भी नहीं देना चाहते इस बहुत वेहतर यही है कि हम विनम्रतापूर्वक पहले ही उक्त व्यक्ति को जबाब दे दें ताकी वो कहीं और से वो कार्य करबा लेता लम्वा खींचने से एक दो दुसरे को हानी पहुंचती है दुसरा हम दुसरे की नजरों मे गिर जाते हैं इसलिए किसी के साथ वायदा करने से पहले दस बार सोचें फिर वादा करें नहीं तो विनम्रतापूर्वक इन्कार कर दें जिससे आप भी खुश रहेंगे दुसरे का वक्त भी नष्ट नहीं होता,
अक्सर देखने को आया है कईबार किसी को सख्त जरूरत होती है कभी कोई विमार हो जाये और हम से मदद की गुहार लगाए ऐसे में हमे उसे या तो मदद कर देनी चाहिए या विनम्रतापूर्वक इन्कार कर देना चाहिए हमारी टालमटोल उक्त व्यक्ति को परेशानी में डाल देती है,
सोचा जाए विनम्रता सारे सदगुणों की नींव है, यहां नम्रता से काम निकल जाए वहां उग्रता नहीं दिखानी चाहिए,
बात दोस्ती की हो या रिश्ते की या फिर किसी भी रिलेशनस्पि की सही इन्सान वोही है जो विनम्रतापूर्वक तरूंत जबाब दे दे जिससे दोनों में प्यार भावना बनी रहे न भी रहे कम से कमदोनों तरफ से नुक्सान की नौवत न आये यही इन्सानियत कहलाती है,
विनम्रता तथा सरलता ऐसे गुण हैं जो हमे सच्चे अर्थों में मनुष्य बनाते हैं क्योंकी विनम्रता का जादू क्षणभर के क्रोध को शांत कर देता है,
विनम्रता को अपनाकर हम ईष्र्या देष व घृणा और मनोविकार को पराजित कर देता है,
आखिरकार यही कहुंगा की यहां तक संभव हो सके एक दुसरे के काम आंए व उसकी तकलीफ की सांझेदारी ईमामदारी से निभांए अगर आप ऐसा करने में सक्ष्म नहीं हैं तो झूठे वादे करके देर तक मत खींचें केवल विनम्रतापूर्वक इन्कार करने की कोशीश करें यही दुसरे के लिए अति उत्तम होगा और वो कोई दुसरा रास्ता ढूंढ सकता है,
सच कहा है,
"जी भर गया है तो बता दो,
हमें इन्कार पसंद है इंतजार नहीं"।
क्योंकी सौ हां से एक ना ही भली होती है,
हमेशा अपने वायदों पर ईमानदार, स्पष्टवादी और दयालु रहें अगर आप को झूठ बोलना भी पड़े तो उतना ही बोलें जितना जरूरी हो
नहीं तो यही कहा जाऐगा,
" न मोहब्वत थी न चाहत थी
ना ही थी उनसे वफा,
कुछ भी न था उनके पास,
बस झूठे वादों के सिवा"।
इसलिए विनम्रतापूर्वक किया गया इन्कार झूठे वादों से बहुत अधिक अच्छा होता है।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जी हाँ!यदि हम किसी विषय या मुद्दे पर अपनी असहमति दर्ज कराना चाहते हैं, तो बिना किसी दबाव में आए ही हमें विनम्रता पूर्वक इंकार कर
देना चाहिये.
आपने सुना भी होगा-
-"गुड़ नहीं दे सकते हो तो गुड़ जैसी बात तो कह सकते हो"
कभी-कभार हमारे अपने परिवार-जन या दोस्त हमें अपने विचारों और योजनाओं को सानुरोध मनवाने पर बेवजह जोर देने लगते हैं, तो विवशतावश हमें अनचाहे ही मानना पड़ता है,जो अंतर्मन को कुरेदता रहता है.हम अपनी इस छिपी हुई वेदना को बाहर निकालने का प्रयास लेखन,गायन,वाचन अथवा वार्ता के माध्यम से करने लगते हैं।
समाज के दिखावे में आकर हम कई बार बात मानने की स्वीकृति देकर लोगों से मिथ्या वादा भी कर लेते हैं, जो अक्सर हानिकारक सिद्ध होता है.
अतिथि को भी अब तो बताकर ही घर आना पड़ता है।"अतिथि तुम कब जाओगे" जैसी फिल्म ऐसे ही झूठ पर आधारित है,जो हमारे समाज के मुंह पर करारा तमाचा है।
ऐसे दोगुले लोग,जो कहते कुछ करते कुछ हैं, निंदा के पात्र सहज ही बन जाते हैं।
आप कोमलता से अपनी बात रखिये,तो लोग सुनेंगे,सोचेंगे और मानेंगे भी।
एक सच तो हजार झूठ के आगे भी सशक्त है।
सत्यवादी से संसार भय खाता है,जबकि बरगलाने वाले झूठे को शर्मिंदगी उठानी पड़ती है।
अतः झूठा वादा छोड़कर नम्रता से ना करना सीखिये।
- डा. अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
यह कथन बिल्कुल सत्य है ! कभी कभी हम अपनी झूठी शान और अहंकार में अपने बच्चों से भी झूठे वादे कर बैठते हैं ! वादा पूरा न होने पर बच्चों की कोमल भावना पर गलत असर भी पड़ सकता है अथवा किसी पर भी विश्वास करने से वह परहेज करने लगता है ! यही चीज विनम्रता से उसे समझाकर इंकार कर दें तो वह मान जाता है ! उसके मन में कोई दुराव नहीं रहता ! वह वादा पूरा होने का इंतजार कर दुखी नहीं होता बल्कि उनके प्रति विश्वास और आदर की भावना बढ़ जाती है !
कभी कभी मजबूरन ,विवशतापूर्वक हम मदद करने के लिए हां तो कह देते हैं किंतु न कर पाने की स्थिति भय से स्वयं तनाव में आ जाते हैं ! अतः विनम्रता से इंकार कर देना ही बेहतर है !
सच्चाई के साथ इंकार करना सहज नहीं है किंतु जब हम दूसरे से सच्ची आत्मीयता रखते हैं तो इंकार का सच्चाई से सामना भी कर सकते हैं !
--चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
झूठ और झूठे वादे से कहीं अधिक विनम्रतापूर्वक किया गया इन्कार उत्तम होता है। चूंकि एक ओर तो विनम्रता सबको अच्छी लगती है और दूसरी ओर इन्कार से दोनों पक्षों को सत्य का स्पष्ट ज्ञान हो जाता है।
उल्लेखनीय है कि स्पष्ट इन्कार से कोई मानव,राज्य या देश भ्रम में नहीं रहता और अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जी-जान से जुगाड़ लगाकर सफलता प्राप्त करता है। जैसे भारत और पाकिस्तान दोनों एक साथ स्वतंत्र हुए किंतु अमरीका व चीन के झूठे आश्वासनों के कारण पिछड़ गया है जिसका ताजा उदाहरण यह है कि भारत कोविड-19 दूसरे देशों को बेच रहा है जबकि पाकिस्तान उसी कोविड-19 को प्राप्त करने के लिए चीन द्वारा दिए आश्वासन से नाच रहा है।
इसके अलावा विश्व जानता है कि भारत चांद-सितारों पर शोध कर रहा है और पाकिस्तान भारत की सीमाओं को भेदकर कश्मीर आने के लिए जुगाड़ लड़ाता है। उसपर भी पहले तो उसे रास्ता ही नहीं मिलता और यदि वह सीमा पार कर भी लेते हैं तो भारतीय सशक्त सेना उन्हें माननीय शिरोमणि प्रधानमंत्री मोदीजी द्वारा आदेशानुसार आल-आऊट पालिसी के अंतर्गत काले चनों की भांति भून देती है।
अतः उपरोक्त तथ्यों से सिद्ध होता हैै कि आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता के लिए घर,राज्य या देश को विनम्रतापूर्वक किया गया इन्कार झूठे वादे से बहुत अधिक अच्छा होता है?
- इन्दु भूषण बाली
जम्म् - जम्म् कश्मीर
विनम्रता पूर्वक किया गया इनकार झूठे वादे से शत प्रतिशत उत्तम है। विनम्रता अपने आप में एक ऐसा गुण है जो हर व्यक्ति का मन दिल दिमाग जीत लेता है कड़वी बातें भी विनम्रता पूर्वक दूसरे के सामने यदि कहा जाए तो सुनने वाले को तनाव कम होते हैं तकलीफ कम होती है वातावरण मधुर रहता है विनम्रता एक ऐसा जादू है जो लोगों की तकलीफ को कम कर देता है मधुर वाणी को वशीकरण मंत्र है जो दूसरे को अपने वश में कर लेता है ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय खुद भी शीतल होय औरों को भी शीतल करें
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
जो अफसाना किसी अंजाम तक लाना न हो मुमकिन उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा ,,,,
ये गीत बिल्कुल सटीक जबाब है आपके सवाल का ।
जी बिल्कुल झूठे वादों से विनम्रता पूर्वक इनकार करना अधिक सम्मानजनक होता है ।
यूं तो विनम्रता का अर्थ ही है सत्य में जीना , धोखे में नहीं जो चाहे इंकार हो,या इंकार ।
झूठे वादे हमेशा घातक होते हैं जिनके परिणाम भयावह भी हो सकते हैं।
किसी को भरोसे में लेना ,फिर झूठे वादे करना ,लटकाए रखना, झूठी तसल्ली देना ,इन सब का अंजाम दूसरे के नुकसान के साथ खत्म होता है ।
कभी-कभी तो स्थिति बहुत नकारात्मक हो जाती है दूसरे की जान तक जा सकती है।
इससे तो लाख बेहतर है कि जिस कार्य को अन्जाम न दिया जा सके उसे विनम्रता पूर्वक इंकार कर दिया जाए ।जिससे सामने वाला झूठी आस में ना भटके और कोई विकल्प ढूंढ ले या संतोष ही कर ले ।परंतु झूठी तसल्ली के बाद अचानक हुए नुकसान से तो बच जाएगा ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " झूठ बोलने से अच्छा सच्चाई बोलना अधिक सार्थक साबित होता है। बिना मतलब कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए । बाकी तो आपकी सोच पर निर्भर करता है।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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