क्या समय से भी बड़ा कर्म है ?

कहते हैं समय बड़ा बलवान है । जो दुबारा लौट कर नहीं आता है । यह सत्य है । परन्तु कर्म भाग्य से बनता है । कर्म के बिना जीवन कुछ भी नहीं है । परन्तु इन में से बड़ा कौन है ? यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब देखते हैं आये विचारों को : - 
अन्तहीन बहस है कि समय बड़ा है या कर्म। 
भोजन की थाली सामने पड़ी हो और बिना मुँह में कौर डाले प्रतीक्षा करें कि समय पक्ष में होगा तो भोजन पेट में चला ही जायेगा यह होशियारी की बात बिलकुल नहीं होगी।
: किसान खेत में बिना बीज डाले यह सोचता रहे कि बारिश होगी या नहीं। जमीन में से बीज से अंकुर फूटेगा या नहीं। अगर पौधे आ भी गए तो उस पर फल आएंगे या नहीं। भाग्य आजमाने के लिए श्रमी होना बेहद जरूरी होता है।
 समय यानी भाग्य के पक्ष में उदाहरण देने वाले यह कह सकते हैं कि दो व्यक्ति एक साथ लॉटरी का टिकट खरीदते हैं पर लगती लॉटरी एक ही व्यक्ति की है। जब दोनों ने लॉटरी खरीदने का कर्म एक साथ किया तो फल अलग-अलग क्यों हुआ..!
विमर्श से हल निकल सकता है बहस से विवाद खड़ा किया जा सकता है। 
समय उनके ही पक्ष में होता है जो श्रमी होते हैं।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
समय और कर्म में छोटा बड़ा देखना मेरे विचार से दोनों  नाइंसाफी होगी समय है तो कर्म है , कर्म है तो समय है अर्थात दोनों एक दूसरे बिना व्यर्थ हैं।  एक  उदाहरण से अपनी बात को आपके सामने रखता हूँ।  इंसान जब पैदा होता है या उससे से भी पहले जब निषेचन के उपरांत माँ के गर्भ में स्थापित होता है या उससे भी पहले पति पत्नी उस प्रक्रिया में होते जिसका फल संतान रूप में उन्हें प्राप्त होता है।  ये सब कर्म की श्रेणी में आता है विज्ञान के या चिकित्सा विज्ञान के छात्र इसको भली भांति समझते हैं ये सब एक बहुत लंबी प्रक्रिया होती है उसमे अनन्य प्रकार के कर्म सहायक होते है लेकिन पहल समयानुसार ही प्राप्त होता है।  
इसीलिए मैंने कहा की समय व् कर्म एक दूसरे के पूरक है इनमें कोई स्पर्धा नहीं कोई छोटा बड़ा नहीं कोई झगड़ा नहीं कोई वैमनस्य नहीं कोई खींचतान नहीं। 
ये एक दूसरे के सही मित्र हैं कर्म के द्वारा जीवन होता है मिलता है चलता है लेकिन  सब समयानुसार ही प्राप्त होता है।  
अब अपनी बात को  लिए बल देने के लिए एक और सटीक उदाहरण पेश करता हूँ हम अपने कर्म अनुसार बहुत मेहनत करते हैं।  सभी करते हैं।  कभी कभी तो मेहनत / कर्म अधिक और फल नगण्य होता है समय के अनुसार भी नहीं होता है।  जैसे कोई ४ घंटे काम करके ज्यादा कमा लेता है कोई १२ घंटे काम करके भी उस से कम कमा पाता है।  ऐसा क्यों क्युकी बीच में प्रारब्ध खड़ा होता है।  उसके चलते भ्रम भी पैदा हो जाता है समय और कर्म के प्रतिफल को लेकर उसके चलते ये प्रश्न ** क्या समय से भी बड़ा कर्म है *** खड़ा हो जाता है।  
अपनी वाणी को विराम देता हूँ और मैं अपने पक्ष के ही भाव को  हूँ।  कि ***समय और कर्म में छोटा बड़ा देखना मेरे विचार से दोनों  नाइंसाफी होगी समय है तो कर्म है , कर्म है तो समय है अर्थात दोनों एक दूसरे बिना व्यर्थ हैं। 
- डॉ. अरुण कुमार शस्त्री
दिल्ली
यद्यपि यह माना गया है कि समय बलवान है  तथापि कर्म के आधार पर  उसका परिणाम आंका जा सकता है कि समय  कब कितना बलवान रहा । मानव जीवन में कर्म को प्रधान माना गया है , वस्तुतः समय के अनुकूल कर्म की महत्ता जांची जाती है । समय अमूल्य है, निरंतर प्रवाहमान है, आज तक कोई भी समय को बांध नहीं सका । परंतु  किसी के द्वारा  समयानुकूल आत्म हित में किया गया कार्य समय को भी अपने पक्ष में कर लेता है ।  समय और कर्म जब एक सीध में हो  तो सर्वप्रथम कर्म की प्रवृत्ति को देखकर समय का सदुपयोग किया जा सकता है। कालांतर में वही समय आपके कर्मों का परिणाम प्रदान करता है । पहले समय का सदुपयोग करके आपने दूसरे समय को प्राकृतिक रूप से अपने हक में कर लिया है। अतः समय निर्बाध रूप से चलायमान है  , कर्म हमारी कोशिशों का अच्छा या बुरा नतीजा है । अच्छे कर्म जीवन को सहज ,सुगम, सफल ,श्रेष्ठ बनाते हैं । वास्तव में यह जरूरी है कि समय से वंचित न होना पाए। समय ही नहीं मिलेगा तो कर्म कैसे करेंगे। कर्म के लिए समय चाहिए। और वह समय भी अनुकूल, उपयोगी।
- शीला सिंह
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
     समय ही बलवान हैं, जिसने समय के सदगुणों को समझ लिया तो उसे हर पल खुशी ही दिखाई देती हैं, फिर प्रारंभ होता हैं, "कर्म" जिसे प्रधानता की संज्ञा दी जाती हैं। जैसा कर्म करोगे तो उसे वैसा ही फल मिलेगा यह चरित्रार्थ हैं। इसीलिए बड़े बुजुर्ग कहा करते थे,  जिस दिन का कार्य उसी दिन समय पूर्व सुचारू रूप से कर ले, अन्यथा पछतायेगा। आज विहंगावलोकन में कोई भी किसी भी तरह का कार्य तत्काल नहीं करना चाहते। क्योंकि सब कल पर छोड़ना पसंद करते हैं। जिसके परिपेक्ष्य में परिणाम सार्थक नहीं हो पाते और दूसरा संकुचित सोच में बदलाव की जगह घेराबंदी कर लिया जाता हैं और अंत में बुरी तरह से सामना करना पड़ता हैं। हमें सृजगता के सहारे जीवित अवस्था में पहुँचानें में परिणाम सफलता मिलते जाती हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
समय अपनी जगह है, कर्म अपनी जगह है। समय के साथ तालमेल बिठाते हुए ,कर्म करना अपने हाथ में होता है। परिणाम अपने हाथ में नहीं होता। कर्म का पलड़ा तो हमेशा ही भारी रहता है। पर जब कभी कर्म करने पर भी उचित परिणाम नहीं मिलता तब कहते हैं "समय बड़ा बलवान" अर्थात नियति को जो मंजूर होगा वही होगा।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर सक्षम 
नरसिंहपुर  - मध्यप्रदेश
समय से भी बड़ा कर्म है? रोचक विषय है यह।इस पर आदिकाल से चर्चा होती रही है। कर्म की महत्ता से इंकार नहीं और साथ ही समय चक्र को भी नकारा नहीं जा सकता।अब बड़ा कौन यह तो कहा नहीं जा सकता लेकिन इतना जरूर है कि कर्म के बल पर समय का सामना किया जा सकता है,और समय अच्छा हो तो बुरा कर्म भी अच्छा फल दे जाता है। पंचतंत्र में ऐसी कथाएं मिलती है। विस्तार भय से यहां कथा देना संभव नहीं। समय बुरा जान महाराजा हरिश्चंद्र ने कर्म नहीं छोड़ा, परिणाम सब जानते हैं।एक कथा सबने सुनी है,बारह वर्ष तक बारिश न होने का योग था। एक दिन बादल ने देखा कि किसान खेत जोत रहा है। किसान ने बताया कि मैं कहीं जुताई करना न भूल  जाऊं, इसीलिए खेत जोत रहा हूं। इस बात पर बादल भी समय के विपरीत बरस पड़ा कि कहीं मैं भी बरसना न भूल जाऊं। कहने का आशय यह कि भगवान ने गीता में कर्म करने का आदेश दिया है,यानि कर्म करना आवश्यक है।कहा भी है कर्म प्रधान विश्व रचि राखा।कर्म का फल अवश्य मिलता है,सही कर्म  समय की गति बदलने की शक्ति रखता है,और समय कर्म की गति बदलने की शक्ति रखता है।अब दोनों ही शक्तिशाली है,तो छोटे बड़े का प्रश्न का ही नहीं। दोनों का महत्व है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
समय रेत की तरह है जो हाथ से फिसल जाता है और कर्म हमारे साथ जाते हैं ! कहने का अर्थ अच्छे कर्म हमें सदगति की ओर ले जाते हैं ! जैसा कर्म करेंगे वैसा फल मिलेगा !
किंतु इसी कर्म को हम समय रहते कर लेते हैं तब तो ठीक है वर्ना समय फिसल जाने से अथवा समय के रहते ना किया तो वही कहावत चरितार्थ हो जाती है " अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत" !
समय कभी नहीं रुकता !समय कीगति तीव्र होती है ...सबसे बड़ी बात यह है कि बीता हुआ समय लौटकर नहीं आता किंतु बिगड़े कर्म को हम पुनः सुधार सकते हैं ! कर्म की गति न्यारी होती है ! अच्छे और बुरे कर्म का लेखा जोखा यहीं प्राप्त हो जाता है !मनुष्य जैसा कर्म करता है फल भी वैसा ही मिलता है अतः हम कहते हैं ना कि समय के रहते समझ जाओ वर्ना कर्म के अनुसार भोगना होगा ! यहां भी हम समय को मानक बना रहे हैं !
हम समय के साथ चलते हैं समय हमारे साथ नहीं...किंतु दूसरी तरफ हमारे अच्छे कर्म हमारे साथ चलते हैं ...कर्म का फल अच्छा समय दिखाता हैं !  कृष्ण भगवान ने भी कहा है कर्म करते जाओ फल की इच्छा मत रखो चूंकि समय बड़ा बलवान है बाकि हमे कर्म करते रहना चाहिए ! 
ईश्वर ने सभी के निर्धारण का समय निर्धारित किया है बाकी समय रहते हमारे कर्म का निर्धारण हमे करना होता है ! हम जैसा कर्म करते है वैसी फल की प्राप्ती होती है अतः हम कह सकते हैं समय सब को साथ लेकर चलता है ! समय हमें सावधान करता है !
               - चंद्रिका व्यास
              मुंबई - महाराष्ट्र
समय और कर्म एक-दूसरे के प्रतिस्पर्धी नहीं है, जो इनमें से किसी को छोटा-बड़ा आंका जाये। समय और कर्म की तुलना ही बेमानी है। 
हमारे इर्द-गिर्द ऐसे उदाहरण अक्सर दृष्टिगत होते हैं कि कर्मशीलता अपना पूरा प्रभाव नहीं दिखा पाती तब हम कह देते हैं कि समय ठीक नहीं है। 
ऐसा भी होता है कि बहुत से मनुष्य उचित समय पर कर्म नहीं करते तो असफलता हाथ लगती है। 
सही समय पर सार्थक कर्म सदैव लाभकारी और सकारात्मक फलदायक होता है।
निष्कर्षत: समय और कर्म, दोनों समान रूप से प्रभावकारी हैं। इनमें से किसी एक का भी अभाव मनुष्य को विपरीत परिणाम दे सकता है। 
"कर्मशीलता के भाव मानव को सफलता दिलाते हैं, 
सद्कर्म मानव को सुखों की अनुभूति कराते हैं। 
समय प्रवाह के साथ कर्मशील रहते जो 'तरंग', 
जीवन-सरिता में वही मनुज आनन्द के पुष्प पाते हैं।"
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
  समय और कर्म दोनों  ही महत्वपूर्ण हैं। समय कभी भी एक सा नहीं रहता और कर्म कोई भी छोटा बड़ा नहीं होता है। भगवदगीता में तो कहा गया हे कि जीवन कर्मप्रधान है। मनुष्य को बिना फल की इच्छा के कर्म करना चाहिए। अपने काम के प्रति सच्चा और ईमानदार 
रहना चाहिए। समय निर्बाध गति से चलता रहता है। सब कुछ रूक सकता है पर समय नहीं। काम भी यदि समय से किया जाए तो ही फलीभूत होता है।  संसार के जीव मात्र का आना और जाना समयानुसार ही होता है। पेड़ पौधे, फल फूल अपने निश्चित समय पर आते हैं और नष्ट होते हैं ।जैविक  जन्म की प्रक्रिया भी समय बद्ध है। 
समय बड़ा बलवान है। जो मनुष्य समय का महत्त्व समझ जाता है उसके सभी कर्म सफल होते हैं ।इस दृष्टि से समय बड़ा है। 
"माली सींचे सौ घड़ा त्रृतु आए फल होए""
      - ड़ा .नीना छिब्बर
      जोधपुर - राजस्थान
मनुष्य जीवन में समय का बड़ा महत्व है। जो व्यक्ति जीवन में समय का महत्व को जान लिया उसका जीवन सफल हो गया है। हर व्यक्ति को समय के साथ चलना पड़ता है जो समय के साथ नहीं चल पाया वह पीछे रह गया।
अच्छा -व-बुरा समय हर एक के जीवन में आता है जिसने बूरे समय पर विजय प्राप्त कर ली। वह यशस्वी कहलाता है।
जिसने बुरे समय को अपने ऊपर हावी होने दिया वह व्यक्ति ऊपर उठ नहीं पाया। समय बहुत चंचल है अच्छा हो या बुरा ज्यादा समय किसी के पास नहीं टिकता है। अच्छा समय शीघ्र ही कट जाता है लेकिन बुरे समय को काटना पड़ता है। राजा हो या रंक सभी को समय के आगे नतमस्तक होना पड़ता है।
वो समय  ही था, भगवान राम को चौदह वर्षो का वनवास भोगना पड़ा। समय यदि सही नहीं है तो हर सीधा दाव भी उल्टा पड़ता है।
इसलिए गीता में कहा गया है कि *समय बड़ा बलवान* है।
लेखक का विचार:--जीवन में समय का सदुपयोग करना चाहिए जिसने समय के महत्व समझ लिया और समय का सदुपयोग किया वही जीवन के हर मोड़ पर सफल हुआ है। *समय बलवान भी है एवं कर्म महान भी है*। कर्म और समय में अंतसंबंध है अगर मनुष्य अच्छे कर्म करेंगे तो भविष्य में उन्हें अच्छा समय मिलेगा।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
”आंसू” जता देते है, “दर्द” कैसा है?
“बेरूखी” बता देती है, “हमदर्द” कैसा है?
”कर्म” जता देते है, “समय” कैसा है?
हम चाहें न चाहें, जीने के लिए किसी-न-किसी प्रकार का कर्म तो करना ही पड़ता है. इसलिए कह सकते हैं, कि वास्तव में कर्म ही जीवन का आधार हैं? कहा जाता है, कि जैसे कर्म करेगा इंसान, वैसा फल देंगे भगवान. भगवान को माना जाए या नहीं, पर कर्म अवश्य अपना असर दिखाते हैं. निष्काम होकर भी हम किसी का भला करते हैं, तो हमारा भला अपने आप हो जाता है और समय अच्छा आ जाता है. बुरे कर्मों का बुरा नतीजा होता है. अच्छे हों या बुरे कर्मों का फल तो मिलकर ही रहता है, चाहे वे कर्म इस जन्म के हों या पिछले किसी जन्म के. कहा जाता है, कि धृतराष्ट्र ने खेल-खेल में 108 जन्म पहले एक तितली की दोनों आंखें फोड़ दी थीं, इसलिए उसको जन्मांध पैदा होने का समय देखना पड़ा. इसलिए निर्विवाद यह कहा जा सकता है, कि समय से भी बड़ा कर्म है.
- लीला तिवानी 
दिल्ली
समय से बड़ा कुछ भी नहीं है। समय के अनुसार ही हम कर्म करते हैं या समय हमसे वो कर्म करवा लेता है जिसकी हमें जरूरत है। हमारे जितने भी दैनिक कर्म हैं ठीक समय पर हम अपने आप उसमें लग जाते हैं। समय हमें आगाह कर देता है कि आपको इस समय ये कार्य करना है। समय के आगे हर कोई विवश होता है। अगर किसी को दफ्तर जाना है या ट्रेन पकड़ना है तो उसके लिए जो कर्म करना है वो अपने आप होता चला जाता है। क्योंकि समय से दफ्तर पहुँचना आवश्यक है। समय पर न पहुँचने से ट्रेन खुल जाएगी। इसलिए कर्म के अनुसार समय नहीं चलता बल्कि समय के अनुसार कर्म चलता है। 
      समय के अनुसार ही सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र को डोम के घर नौकरी करना पड़ा। एक राजा को श्मशान में कफ़न कफ़न वसूली का कर्म करना पड़ा। एक महारानी को डोम के घर नौकरानी बनना पड़ा। इसलिए समय कर्म बदल सकता है कर्म समय नहीं।
समय तो निर्बाध गति से चलता ही रहता है।
          राम तो कोई गलत कर्म नहीं किये थे फिर भी समय ने उन्हें वन-वन भटकाया। सारी सृष्टि के चलाने वाले को दूसरों से सहायता मांगनी पड़ी। इस तरह के बहुत सारे उदाहरण हैं जो ये साबित करते हैं कि समय से बड़ा कोई नहीं चाहे वो कर्म ही क्यों न हो।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
 कलकत्ता - पं. बंगाल
यह सभी जानते हैं कि एक बार जो समय निकल गया वह दोबारा लौटकर नहीं आता। हम सभी के जीवन में समय का बहुत ही बड़ा महत्व है। जिसने समय के महत्व को जान लिया उसका जीवन सफल हो गया। हर व्यक्ति को समय के साथ चलना चाहिए। जो समझे जिम महत्त्व को नहीं जानता पीछे छूट जाता है। अभी बात सच है कि समय का महत्व कर्म से भी बड़ा है। हर एक व्यक्ति के जीवन में अच्छा और बुरा समय आता है। जिसने बुरे समय कुमार के लिए बहुत विजती हो जाता है। अच्छा समय जल्दी कट जाता है, लेकिन बुरे समय को काटना पड़ता है। राजा हो या रंक सभी को समय के साथ नतमस्तक होना पड़ता है। यह समय ही था कि श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास काटना पड़ा था। समय यदि आपके अनुकूल नहीं है तो हर दाव उल्टा पड़ने लगता है और समय यदि सही है तो जो व्यक्ति कुछ भी करें सही हो जाता है। इसलिए गीता में भी कहा गया है कि समय बड़ा बलवान होता है। समय और कर्ण के अलावा एक भाग भी बहुत बड़ा निर्णायक होता है सब का समय एक बराबर नहीं होता है जब समय खराब चल रहा है तो कर्म करते रहना चाहिए मैं विपरीत परिस्थिति में कर्म करने से ही भाग्य प्रबल होता है। गीता कहा गया है कि कर्म से हम समय को बदल सकते हैं। कर्म प्रधान होता है। करूं कि फुल निश्चित मिलते हैं। फल की जगह फल की मात्रा और फल का समय भी निश्चित होता है। अतः इस कर्म का फल कितना किस कितना, किस जगह मिलना है यह भी तय रहता है। कर्म तो हमेशा से ही महान होता है परंतु समय अभी हमारे जीवन पर अपना अलग ही प्रभाव रहता है कहा जाता है कि जब समय अच्छा चल रहा हो तो हर काज आसानी से सफल होने लगता है कर्म महान होता है क्योंकि हमारे कर्म ही हमारे जीवन का आधार है जैसा आधार हम बनाएंगे वैसा ही हमारा व्यक्तित्व बनेगा।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
क्या समय से भी बड़ा कर्म है । नही समय बड़ा है क्योंकि समय तब भी है जब हम कर्म नही करते और समय तब भी उसी गति से विद्यमान है जब हम कोई कर्म करते है । समय सर्वत्र है ये किसी भी क्रिया या कर्म के द्वारा प्रभावित नही होता है । व्यक्ति की मन:स्थिति ज़रूर आभास कर सकती है कि कर्म से समय की गति को बदला जा सकता है । कुछ स्थिति परिस्थिति अवश्य समय की गति को धीमा या तेज आभास करा देती हैं जैसे सुख में समय कब बीत गया पता ही नही चलता जबकि दु:ख में समय बीतने का नाम नही लेता । इसलिए कर्म की अपनी सीमा है और समय की अपनी सीमा है ।अत: न कोई बड़ा है न कोई छोटा । 
- डॉ भूपेन्द्र कुमार
धामपुर - उत्तर प्रदेश
हम सब विधाता की संतान है और समय विधना के आधीन है ।पृथ्वी पर हमारा जन्म कर्म करने के लिए  ही हुआ है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि हम समय के पहिए को अपने  वश में नहीं कर सकते ।समय का चलना प्रकृति की एक प्रक्रिया है ,जब तक ब्रह्माण है समय नहीं रुकेगा ।उदाहरण स्वरुप कोरोना नामक बिमारी के आने से हम सब के कर्म   रुके ,परिवर्तित हुए ।पूरा संसार रुका ,लेकिन घड़ी की सूई चलती रही ।दिन ,रात,पखवाड़े ,महीने सब बदलते रहे ,हम हताश और  बेबस खड़े रहे  । हमारे कर्म नहीं समय बड़ा है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
समय का अपना अस्तित्व है और कर्म का अपना अस्तित्व।  कर्म को ईमानदारी से निभाता समय निरन्तर चलता रहता है। प्रकृति में प्राकृतिक रूप से हो रहे परिवर्तन प्रकृति के कर्म हैं। मनुष्य भी कर्म करता है पर उसके कर्म अलग-अलग प्रकार के होते हैं। वह अपने स्वभाव के अनुसार कर्म करता है और वैसा ही फल पाता है। अच्छे या बुरे कर्मों के जब उसी अनुरूप फल प्राप्त होते हैं तो अक्सर यही कहा जाता है कि उसका समय अच्छा चल रहा है या बुरा चल रहा है। अर्थात् कर्म ने मनुष्य के समय को प्रभावित किया। इस स्थिति में यही कह सकते हैं कि समय से भी बड़ा कर्म है जो उसकी गुणवत्ता को प्रभावित करने की क्षमता रखता है।
- सुदर्शन खन्ना
 दिल्ली 
निश्चित रूप से समय से भी बडा कर्म है l मानस में लिखा है -"कर्म प्रधान विश्व रचि रखा l" विश्व की रचना में कर्म की प्रधानतामहत्वपूर्ण हैl हम जो कर्म कर रहे हैं उसमें कौशल और विद्या की सहभागिता होगी तो निश्चित आपका समय बचेगा और  इसका  श्रेय किये गये कर्म को होगा l कर्म को समय से बडा बनाने के लिए मानसिक ऊर्जा बढ़ाये, जानकारी बढ़ाते रहें, व्यवहार अच्छा रखें बडा सोच और बडा उद्देश्य रखें, ज्ञान एवं कर्म पिपासु बने, भूतकाल के बारे में न सोचें, वर्तमान में जीना सीखें l समय बचाने के लिए जीवन से आलस्य एवं नकारात्मक विचार को छोड़कर कर्म करें l अपने कर्म में ईमानदारी और निष्कपटता
 रखें l
            --- चलते चलते
दुनियाँ के रास्ते सीधे हैं, समय उनके लिए बडा है जिनकी चाल तिरछी है l
     -डॉo छाया शर्मा
 अजमेर -  राजस्थान
      यूं तो कर्म और समय दोनों बलवान होते हैं। परंतु कर्म प्रधान होता है। जो समय को बदलने में सक्षम होता है। 
      कर्मों के फल निश्चित मिलते हैं । उनके स्थान, मात्रा और समय भी निश्चित होते हैं। अर्थात किस कर्म का फल कितना, किस स्थान और किस समय मिलना है यह ईश्वर ने सुनिश्चित किया होता है। परंतु उसका हमें ज्ञान नहीं होता।
      चूंकि संसार में बड़ा मात्र ईश्वर का नाम होता है। बाकी सब नाशवान होता है। समय तो चलता रहता है। जिसे रोकना संभव ही नहीं है और कर्म इंसान के वश में हैं। वह चाहे तो समय का सदुपयोग कर अच्छे कर करे और चाहे तो समय का दुरुपयोग कर अपना सत्यानाश कर ले।
      इसलिए यह मानव पर निर्भर है कि वह जिस कार्य सिद्धि के लिए संसार में पैदा हुआ है। उसे सम्पूर्ण करने के लिए दृढ़संकल्पित है या नहीं। उल्लेखनीय है कि जो अपने कार्य के प्रति दृढ़तापूर्वक अडिग रहते हैं। उन्हें ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है और वह जीवन सफल बना लेते हैं। दूसरी ओर जो कर्म करने में आनाकानी करते हैं वह समय और कर्म रूपी भाग्य को कोसते-कोसते इस दुनिया से चले जाते हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्म् - जम्म् कश्मीर
बेशक समय से बड़ा कर्म है।
 गीता में भी लिखा गया है कि कर्म ही प्रधान होता है ,कर्म से हम समय को बदल सकते हैं ।
रामायण की चौपाई है कि
 कर्म प्रधान विश्व करि राखा ।
जो जस करहिं सो तस फल चाखा।
 समय और कर्म के अलावा भाग्य भी बहुत निर्णायक होता है ।सब का समय एक बराबर नहीं रहता। जब समय खराब चल रहा हो तब भी कभी रुकना नहीं चाहिए ,कर्म करते रहना चाहिए।
 विपरीत परिस्थितियों में कर्म करने से समय भी सुधर जाता है। समय बलवान भी है ,,,एवं कर्म महान  भी है ,,,।
कर्म और समय में अंतर संबंध है, आप अच्छा कर्म करोगे भविष्य में अच्छा समय मिलेगा ।
यह भी सत्य है कि सभी के जीवन में समय का बड़ा महत्व  है। जिसने जीवन में समय के महत्व को जान लिया उसका जीवन सफल हो गया ।
मनुष्य को समय के साथ चलना पड़ता है ।
जो समय के साथ नहीं चलते, पीछे रह जाते हैं ।
लेकिन समय के साथ चलने का मतलब कार्य करते रहने से है, रुकने से नहीं ।
हाथ पर हाथ धरकर बैठने से  कुछ नहीं  होने वाला ।
यह निर्विवाद सत्य है कि कर्म समय से बढ़कर है ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
       समय और कर्म दोनों में अंतर्संबंध है। फिर भी समय से बड़ा कर्म है। अगर अच्छे कर्म करें गे, तो भविष्य में  अच्छा समय मिले गा।अगर समय पर कर्म करें गे तो हमारे विचार भी सकारात्मक होंगे। यदि समय खराब भी चल रहा है तो भी हमें कर्म करते रहना चाहिए। विपरीत परिस्थितियों में कर्म करने से ही भाग्य प्रबल होगा।अगर यह सोचें कि समय खराब चल रहा है, मैं कोई भी काम करूँ गा,उसका फल अच्छा नहीं होगा तो समझो मनुष्य अपने हाथों से ही अपना भविष्य खराब कर रहा है। गीता जी में भी यह लिखा है कि कर्म प्रधान होता है। कर्म से हम समय को अपने अनुकूल कर सकते हैं। 
       कर्म हमेशा से महान होता है क्योंकि हमारे कर्म ही हमारे जीवन का आधार हैं। जैसा आधार हम बनाएँ गे वैसा ही हमारा व्यक्तितव बनेगा। कर्म के आगे समय की कोई पहचान नहीं। अच्छे कर्म करके हम समय को अपनी ओर मोड़ सकते हैं। इस लिए अगर कर्म महान हैं तो समय अपना होगा।इस लिए हम कह सकते हैं कि समय और कर्म मे अंतर्संबंध होते हुए भी बड़ा कर्म है। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
निश्चय ही कर्म सर्वोपरी है व समय सेज़्यादा महत्वकर्म का है
कर्म किये जा ....कर्म किये जा .....फल की इच्छामत कर....इंसान .....जैसे कर्म करेगा ....वैसा फल देगा भगवान् .....ये है गीता का ज्ञान
कर्म ही मुख्यहै क्यूंकि भगवान् भी यदि हमारी सहायता करना चाहतें हो तो बिना कर्म के वो नहीं कर सकते .....समय चाहे अच्छा हो या बुरा ......बिना कर्म के कुछ पाने की इच्छा करना भी व्यर्थ है
कर्म करने के पश्चात ही हम ईश्वर की ओर निहार सकते हैं .......जैसे परीक्षा दिए बगैर हम अंक नहीं पा सकते या उत्तीर्ण नहीं हो सकते
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
समय और  कर्म  अलग-अलग  है  । समय  निरंतर  चलता  रहता है, उसे कोई  रोक  नहीं  सकता   जबकि  कर्म में  ठहराव  संभव है  । 
      कोई  भी जीवित प्राणी   बिना कर्म किए नहीं  रह सकता  । ' तुम  कर्म  करो, फल की  इच्छा  मुझ पर  छोड़  दो ।' ये गीता  में  श्रीकृष्ण  ने कही जो अक्षरशः  सत्य  है  । 
     समय हमारे  हाथ  में  नहीं  है, हम तो सिर्फ  कर्म  ही कर सकते  हैं  । 
      हम देखते  रहते  हैं  और  समय  बिना पंख ही उड़  जाता  है । समय  के लिए  कहा  भी गया  है  कि-' समय  बड़ा  बलवान  है  । ' यह निकल जाता  है  तो दोबारा  जीवन  में  लौटकर  नहीं  आता  । 
      समय  के साथ  चलते हुए  अच्छे कर्म कर्म  करते रहना आवश्यक  है  । 
      - बसन्ती  पंवार 
       जोधपुर  -  राजस्थान 
"कर्म की गठरी लाद जग में फिरे इंसान, जैसा  करे वैसा भरे वि़धि का यही विधान" हम सभी के जीवन में समय का बड़ा महत्व है, जिसने जीवन में समय के महत्व को जान लिया उसका जीवन स़फल हो गया, कहने का मतलब मनुष्य को समय के साथ साथ चलना पड़ता है जो समय के साथ नहीं चलता वह पीछे रह जाता है, 
अब कर्मों की बात करें तो कर्म और समय में अंवसर्बध है, समय बलवान भी है एंव कर्म महान भी, आप अच़्छे कर्म करोगे तो आपको भविष्य में अच्छा समय मिलेगा, लेकिन अगर आप समय पर अपनी अंतर आत्मा को सम़झोगे तो आपके कर्म एंव विचार भी साकारात्मक रहेंगे। तो आईये आज इसी टापिक पर चर्चा करते हैं कि क्या समय से भी बड़ा कर्म है? 
  मेरा मानना है कि समय एक ईश्वरिय चक्र है जिसे परिश्रम के वैंक में भुनने से नकद संपति मिल जाती है, सबका समय एक बराबर नहीं होता इसलिए खराब समय में भी कर्म करते रहना चाहिए लेकिन अच़्छे कर्मों के लिए हमें समय का उचित प्रयोग उचित कर्मों के लिए करना जरूरी है, यहां तक समय का  सवाल है, समय धन से भी ज्यादा कीमती है क्योंकी धन खर्च कर देने पर फिर से हासिल कर लिया जाता है किन्तु गया समय वापिस नहीं आता, 
सच है समय और ज्वारभाटा किसी का इंतजार नहीं करते, समय विना रूकावच चलता रहता है और कर्म सही मायने में समय ही बनाता है यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वो समय का उपयोग कैसे करता है, 
समय पृथ्वी पर सबसे कीमती वस्तु है इसकी तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती, यदि एकबार यह चला जाए कभी वापिस नहीं आता, 
इसलिए इस संसार में सबकुछ समय  निर्भर करता है, कुछ भी हासिल करने के लिए समय की जरूरत होती है अगर आप को अच्छे कर्म करने हैं तो आप को  समय का सही इस्तेमाल करना होगा, 
समय की बर्बादी हमें और हमारे भविष्य व  हमारे कर्मों की बर्बादी करती है, 
समय ही है जो हमें धन, समृदि और खुशी प्रदान करता है, 
यह मत भूलें हर पल जीवन में नए अवसरों व कर्मों का एक भंडार है, यह अपनी गति से निरंतर चलता रहता है, 
अन्त में यही कहुंगा समय धन और व्रहमाण्ड की अन्य सभी वस्तुओं से ज्यादा कीमती है, 
इस संसार में सबकुछ समय के अनुसार चलता है, 
यदि कर्मों की बात की जाए मनुष्य जैसे कर्म करता है वैसा ही फल पाता है, 
और मनुष्य द्वारा किया गया कर्म ही प्रारब्ध बनता है, कहने का मतलब अच्छे कर्मों का फल शुभ व बुरे कर्मों का अशुभ होता है, 
इसलिए अच्छे कर्मों के लिए हमें जीवन के सच्चे मुल्य को समझना होगा यानि सही समय का इस्तेमाल करना होगा, 
कहने का तात्पर यह है कि जो नियमों में बंधकर जीवन मापन करता है वह लक्ष्य की प्राप्ति जरूर करता है, क्योंकी मनुष्य का अधिकार सिर्फ कर्म पर है फल पर नहीं
इसलिए मानव जीवन में कर्म ही सर्वोपरी है पर यह निर्भर करता है कि आप दिन में कितने घंटे अच्छे कार्य करते हैं, कहने का भाव यह है कि समय की भुमिका ही सबसे महत्वपूर्ण होती है और मनुष्यों में क्षमता होती है कि वो समय के प्रभाव को बदल लें जिससे आपके कर्म भी श्रेष्ठ हो जांऐगे। 
सच कहा है, 
"कर्म भूमी की  दूनिया में
श्रम सभी को करना है, 
भगवान सिर्फ लकीरें देता है, 
रंग हमें ही भरना है"। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू  कश्मीर
समय की गति निर्बाध है। वह कभी भी दिशा या दशा या चाल नहीं बदलता , परन्तु कर्म हमारे वश में है। वह हमारे परिश्रम के अनुसार चलता है। हम एक दिन में एक से अधिक लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं, एक से ज्यादा कर्मों को आगे बढ़ा सकते हैं। उसके प्रति निष्ठा और कर्मठता कर्म की गति निर्धारित करती है। अतः निश्चित रूप से कर्म समय से आगे बढ़ जाता है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार 

" मेरी दृष्टि में " कर्म बहुत ही जरूरी है । जो भाग्य को दिशा देता है । बिना कर्म के भाग्य भी  कुछ नहीं रहता है । वह एक जगंल है । जो भुलभुलैया के समान है । जिसमें शुरु और अन्त का कोई अस्तित्व नहीं होता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी

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