क्या बुद्धिमानों की परीक्षा वास्तव में संकटकाल में होती है ?

बुद्धिमानों भी कई बार फेल होते देखें गयें हैं । इस से पता चलता है कि बुद्धिमान की असली परीक्षा संकटकाल में होती है । यही कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : - 
संकटकाल, मन-मस्तिष्क को विचलित करने वाला समय होता है। मन में निराशा के भाव जन्म लेने लगते हैं। मनुष्य का साहस कमजोर पड़ने लगता है। बुद्धि की कुशाग्रता कुंठित होने लगती है। 
ऐसे नकारात्मक भाव उत्पन्न करने वाले संकटकाल में बुद्धिमान ही अपने बुद्धि कौशल से अपने साहस को संजोये रखता है और संकटकाल के भय से मुक्ति पाकर विजय प्राप्त करता है। 
तभी तो राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी ने कहा है कि....... 
"भीरु पूर्व से ही डरता है, कायर भय आने पर,
किन्तु, साहसी डरता भय का समय निकल जाने पर।" 
यह प्रकृति का नियम है कि कोई भी काल, चाहे वह संकटमुक्त हो या संकटग्रस्त हो, स्थायी नहीं रहता। 
संकटकाल में मनुष्य के मन-मस्तिष्क की विचलित दशा उसके लिए हानिकारक होती है। परन्तु बुद्धिमान मनुष्य संकट में से ही समाधान खोज निकालते हैं। 
"संकट से बचने की जो है राह,
वह संकट के भीतर से जाती है।"...... 'दिनकर' 
धैर्य, साहस, सचेत मस्तिष्क, परिस्थितियों से संघर्ष की उत्तम क्षमता, उत्कृष्ट कल्पनाशीलता, आत्मविश्वास आदि मनुष्य के बुद्धिमान होने के संकेत हैं। इन गुणों के कारण ही बुद्धिमान मनुष्य प्रारम्भ में परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बिठाकर अंतत: परिस्थितियों को अपने अनुकूल कर लेता है। 
निष्कर्षत: इसमें कोई दो राय नहीं कि बुद्धिमान की परीक्षा वास्तव में संकटकाल में ही होती है क्योंकि जो मनुष्य अपनी बुद्धि का समुचित प्रयोग कर संकटकाल पर विजय प्राप्त करता है, वही बुद्धिमान है। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
यह सच है, कि बुद्धिमानों की परीक्षा वास्तव में संकटकाल में होती है. कोई भी संकटकाल मनुष्य के लिए सिर्फ एक आपदा का समय नहीं होता, बल्कि इस संकटकाल में उसके गुण और भी ज्यादा खिलते हैं. संभव तो यह भी है कि संकटकाल में मानव से बढ़कर मानवेत्तर प्राणी होने की राह में भी जा सकता है. एक संकटकाल मनुष्य के लिए एक परीक्षा का काल तो होता ही है, स्थिति के गहन अध्ययन और आत्म-विश्लेषण का काल भी होता है. ध्यान देने योग्य बात यह भी है, कि बुद्धिमानों की परीक्षा वास्तव में संकटकाल में तो होती ही है, बुद्धिमान लोग संकटकाल आने ही नहीं देते. वे पहले से आने वाले खतरे को भांपकर सतर्क हो जाते हैं और संकटकाल में भी खुद को आपदा से बचा लेते हैं. पांच साल का एक बच्चा पीछा करते हुए दो कुत्तों को अंगद की तरह पांव रोपकर उनको हड़काकर चुप करा देता है, उसी समय पीछे से एक और कुत्ता उसको ललकारता है. बच्चा चुपके से रास्ता बनाकर खिसक जाता है और तीनों कुत्ते आमने-सामने एक दूसरे को देखते रह जाते हैं. इसे कहते हैं वास्तव में संकटकाल में बुद्धिमानी की परीक्षा. 
- लीला तिवानी 
दिल्ली
        हां यह परम सत्य है कि संकटकाल में ही बुद्धिमानों की वास्तविक परीक्षा होती है और उसमें जो सफल होते हैं वही सफलता का झंडा बुलंद करते हुए विजयश्री का शंखनाद करते हैं। उपरोक्त सफल व्यक्तित्व ही मुकद्दर के सिकंदर भी कहलाते हैं।
        सर्वथा संकटकाल में व्यक्ति अकेला रह जाता है। मात्र अकेला नहीं बल्कि नितांत अकेला रह जाता है। मां-बाप, भाई-बहन, रिश्ते-नाते और मित्र ही नहीं बल्कि सात जन्मों तक संबंध निभाने की कसमें खाने वाली धर्मपत्नी के साथ-साथ बच्चे भी साथ छोड़ जाते हैं।
       साधारणतया ऐसी कठिन परीक्षा में बड़े-बड़े विद्वान और बुद्धिमान व्यक्ति दम तोड़ देते हैं या संकट के आगे नतमस्तक हो जाते हैं। परंतु जो कर्मठ बुद्धिमान ऐसी परिस्थितियों में भी अडिग रहते हुए अपने पथ पर अग्रसर होते हैं। उन्हीं पुरुषों को समय आने पर "महापुरुषों" की उपाधि से विभूषित करना सामाजिक रीत पुरानी है। जो युगों-युगों से चलती आ रही है।
       उल्लेखनीय है कि संकटकाल की परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के उपरांत ही समाज ने युग पुरुष राजा दशरथ के पुत्र युवराज राम को श्रीराम और मर्यादा पुरुषोत्तम राम की उपाधियां प्रदान की थीं। संकटों का निवारण करने वाले श्रीराम भक्त हनुमानजी को भी "संकटमोचन" की संज्ञा संकटकाल के आधार पर ही दी गई थी।
        अतः कड़वा सच यह है कि जीवन का स्वर्णिम काल वास्तव में "संकटकाल" होता है। जिसकी पावन परीक्षा में श्री शनिदेव जी और श्री हनुमान जी की अपार कृपा एवं आशीर्वाद से पापों का अंत और पुण्यों का उदय होता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्म् - जम्म् कश्मीर
संकट की घड़ी में मनुष्य की विवेकशीलता की पहचान होती है। बिना घबराए धैर्यपूर्वक जो विकट स्थिति से बाहर निकल कर खुद को सुरक्षित रखता है वही व्यक्ति अपने जीवन में सफल हो पाता है। अपने मंजिल को अपने ध्येय को प्राप्त कर पाता है इसलिए कहा गया है कि बुद्धिमानों की परीक्षा वास्तव में संकटकाल में ही होती है।
   व्यक्ति के कर्म और स्वभाव की पहचान भी विपरीत परिस्थिति में ही हो पाती है। सुनहरे दिनों में तो सभी अपने आप को अच्छा और स्वभाव से मधुर दिखाने का प्रयास करते हैं पर जब आपका समय साथ न दे रहा हो, कोई परिचित भी आपका साथ न दे रहा हो, मुसीबत के इस पल में आर्थिक रूप से भी आप कमजोर महसूस कर रहे हो--- तो बुद्धिमता का परिचय दे जो इस विकट घड़ी से निकल जाए वही समझदार इंसान कहलाने योग्य होता है।
   विकट समय में इंसान की परीक्षा होती है। प्रभु भी उन्हीं का साथ देते हैं जो परिश्रम और विवेक से कर्मशील होते हुए अपने कार्य को पूर्ण करने के लिए प्रयत्नशील रहता है। वास्तविकता यही है कि बुद्धिमानों की परीक्षा संकट काल मे होती है।
    -   सुनीता रानी राठौर
       ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
बुद्धिमानो की परीक्षा नीति निर्धारण के समय होती है। नीति आयोग मैं प्रत्येक वर्ष परामर्श सम्मेलन मैं अपने अपने क्षेत्र के बुद्धिमानो ने अपना-२ सुझाव देते हैं इन्हीं के सुझाव पर हमारे देश के मुखिया एवं सहयोगी सदस्य आगे की कार्रवाई करते हैं जिससे देश का विकास हर क्षेत्र में अग्रसर पर है।
कभी-कभी संकटकाल आ जाती है तब  बुद्धिमानो से परामर्श लेने की आवश्यकता होती है। उनके परामर्श से संकट से निपटते हैं।
लेखक का विचार:--बुद्धिमानो की परीक्षा दो बार होती है पहला नीति निर्धारण के समय दूसरा संकट के समय।
*बुद्धिमानो की आवश्यकता पूरे विश्व में है*
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
सर्वप्रथम बुद्धि के स्वरूप को समझना बहुत कठिन है । क्योंकि यह भावना और अंत:प्रज्ञा से  अलग है। 
सदियों सदियों से इसके स्वरूप पर अनेकों मतभेद चले आ रहे हैं और महान शिक्षाविदों तथा मनोवैज्ञानिकों के लिए बुद्धि आज तक वाद विवाद का विषय बना हुआ है । यही कारण है कि बुद्धि की कोई स्पष्ट परिभाषा आज तक नहीं दे पाया। 
कई बार बुद्धि को हम एक सामान्य योग्यता मान लेते हैं  और कई बार दो-तीन योग्यताओं के मिश्रण को तथा कई बार कुछ विशिष्ट योग्यताओं का योग इस को मानते हैं  और जैसा आज का विषय है , कि क्या बुद्धिमानाें की परीक्षा वास्तव में संकट काल में ही होती है । तो मेरा यह मानना है  , कि बुद्धि का क्षेत्र भले ही कितना ही विस्तृत क्यों न हो  वास्तव में उसकी पहचान विपरीत परिस्थितियों और संकट काल में ही होती है ।
 क्योंकि बुद्धि हमारी वह मानसिक शक्ति है जो किन्ही तथ्यों को समझने में और उनके आपसी संबंध खोजने में तथा तर्कपूर्ण ज्ञान प्राप्त करने में सहायक होती है ।
 बुद्धि के आधार पर ही व्यक्ति परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाता है । अनेक विद्वानों ने बुद्धि के सिद्धांतों पर भी चर्चा की है अपने विचार दिए हैं ।   उनके अनुसार बुद्धि वह शक्ति है जो समस्त मानसिक कार्यों को प्रभावित करती हैं । बुद्धि के आधार पर व्यक्ति नवीन परिस्थितियों के साथ समायोजन करने की योग्यता ग्रहण करता है । बुद्धिमान व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों को अपनी बुद्धिमानी से अपने वश में कर लेता है । 
धैर्य और सहनशीलता जैसे गुणों के आधार पर  समस्याओं के समाधान भी ढूंढ लेता है ।
 - शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
     जीवन में संकटकाल आते-जाते रहते हैं और जिसने इससे निबटने की इच्छा जाग्रत कर ली, उसे हर पल खुशी ही दिखाई देती हैं। यही बुद्धिमानी की पहचान होती हैं। वास्तव में जीवन एक पहेली हैं, जिससे निकलने के लिए विभिन्न सौपानों से गुजरना पड़ता हैं। जब हम शिशु रुप में जन्म लेते हैं, तभी से और अंत तक परेशानियां-संकटकाल के बीच ऐसा समय भी आता हैं, जब आत्म विश्वास को ठेस पहुँचती हैं और आत्म हत्या भी करने पर मजबूर हो जाता हैं। यह समसामयिक या पारिवारिक या अन्य समस्याओं का सामनाओं का समाधान तभी हो सकता हैं जब उससे निपटने का साहसपूर्ण कदम उठाने तत्परता के सामने आकर चुनौतियों को शक्तियों के साथ ही साथ जीवन यापन कर जीवित अवस्था में पहुँचकर सफलता मिलती जाती हैं। इसीलिए कहा जाता हैं, संकल्प और समर्पण एक परिवर्तन परिणाम सार्थक होते हैं और बुद्धिमानों की परीक्षा वास्तव में संकटकाल में ही होती हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
चूहे के माध्यम से सुरंग खोदने का सन्देश पाना और जलने से बच जाना विदुर और पांडव कथा से सिद्ध हो जाता हैं कि बुद्धिमानों की परीक्षा वास्तव में संकटकाल में होती है।
धीरज, धर्म, मित्र, अरु नारी *(दुश्मन स्त्री काली हो जाती है)*।
आपद काल परखिए चारी।।
उपर्युक्त में से बुद्धिमान धीरज यानी धैर्य को अपना मित्र बनायेगा। धैर्य रखते हुए वह उस संकट से बाहर निकलने का सरल उपाय ढूँढ़ लेगा।
बुद्धिमान आपत्तियों और संकटों से तभी तक डरना जानता है जब तक वे उससे दूर हैं।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
बुद्धिमानों की परीक्षा संकट काल में ही होती है। जब कोई संकट आता है तब ही मनुष्य की बुद्धि की परीक्षा होती है कि किस तरह से वो उस संकट से उबरता है। क्या -क्या करने से ,कौन उपाय करने से हम इस संकट से उबर सकते हैं। लड़ाई करने से या प्रेम करने से या भय दिखाने से या चुप बैठने से या शोर करने से या वार्ता करने से हम इस संकट से उबर सकते हैं। कोई अस्त्र या कोई शस्त्र चलाने से संकट से निबटेंगे। किस परिस्थिति में कौन सा प्रयोग कारगर सिद्ध होगा संकट से उबरने के लिए। ये सब एक बुद्धिमान व्यक्ति ही कर सकता है। सिखाई हुई बुद्धि हर जगह काम नहीं करती है या संकट के समय कोई सीखाने वाला नहीं रहेगा। उस वक्त अपनी ही बुद्धि काम आएगी। 
इसलिए ये बात सत्य है कि बुद्धिमानों की परीक्षा संकट काल मे ही होती है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
 कलकत्ता - पं बंगाल
      बुद्धिमान का हर पल कीमती होता है। वह दुख और सुख में  एक समान रहता है। वह परिस्थितियों को जिस तरह भांपता और आंकता है ,उसे कोई भी नहीं समझ सकता। सामान्य लोग किसी भी परिस्थिति या बात को एक सामान्य नजर से देखते हैं लेकिन बुद्धिमान लोगों का देखने का नजरिया थोड़ा अलग होता है। इस की सोच भीड़ से अलग होती है। यह जरूरी नहीं कि उच्च शिक्षित ही बुद्धि मान होगा। शिक्षा और बुद्धिमानी दोनों अलग चीजें  हैं। 
            बुद्धिमानों की परीक्षा वास्तव में संकटकाल में नहीं होती।वो हर समय को समान रूप से देखते हैं। बुद्धिमान मेहनत और कर्म में विश्वास रखते हैं। वो जो कुछ हासिल करना चाहते हैं, उनको पता होता है। वो हवा में तीर नहीं चलाते।वो अपने लक्ष्य पर निशाना साधते हैं। इस लिए हालात कैसे भी हो, वो अपनी बुद्धिमत्ता से उस को काबू में कर लेते हैं। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब 
यह सत्य है कि बुद्धिमानों की परीक्षा वास्तव में संकट काल में होती है।  यूं तो बुद्धिमान अपनी बुद्धि और हाजिर जवाबी के लिए हमेशा से सराहे जाते रहे हैं। बीरबल भी एक बुद्धिमान था और अकबर-बीरबल के किस्से हों, तेनालीराम के किस्से हों, पंचतंत्र की कहानियां हों जिनमें संकटकाल में बुद्धि की परीक्षा बताई गई है, उन्हें आज भी पढ़ा जाता है। उसकी परीक्षा भी अक्सर संकट काल में होती थी।  दरअसल संकट काल ही बुद्धिमान को चुनौती पेश करता है और उसी में बुद्धिमान की परीक्षा होती है। 
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली 
बुद्धिमान व्यक्ति कभी भी संकटकाल से नहीं डरते।वह हमेशा ही संकटकाल की परीक्षा देने के लिए तैयार रहते हैं।बुद्धिमान व्यक्ति में एक खासियत यह भी होती है की वो अपनी प्रशंसा अपने से कभी नहीं करते।उन्हें किसी व्यक्ति से खुद के बारे में मीठी बातें सुनने के बजाय अपनी गलतियां सुनना पसंद है, जिससे वे खुद के अंदर उन गलतियों को सुधार कर बदलाव ला सके। वह कभी बुरे लोगों का संग नहीं करते बुद्धिमान व्यक्ति के लिए उसका सम्मान ही सब कुछ होता है। बुद्धिमान व्यक्ति की हरकतें भी कुछ अजीबो गरीब सा होती है। ऐसे लोग आम लोगों से कुछ हटकर ही होते हैं
वह संकटकालीन परिस्थितियों को जिस तरह भागते और आते हैं उसे कोई भी नहीं समझ सकता।हम लोग किसी भी परिस्थिति यह बात को एक समान नजर से देखते हैं लेकिन बुद्धिमान लोगों के देखने का नजरिया यह कुछ अलग होता है। भीड़ में यह लोग अलग तो नहीं दिखाई थी लेकिन इनकी सोच भीड़ से काफी अलग होती है।पूरा विश्व बुद्धिमान लोगों की कायल है और जो अपनी बुद्धि से दुनिया को झुका सकता है उसके कहने की बात है क्या।हम सभी तो बुद्धिमान नहीं हो सकते, लेकिन हां हम में से कुछ लोग बुद्धिमान जरूर होते हैं जिन्हें हम आसानी से नहीं पहचान पाते हैं।बुद्धिमान लोगों का समाज में एक खास मुकाम होता है ऐसे लोग अपने कर्मों से लोगों को लाभ पहुंचाते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति अपने हर रणनीति के तहत करने की कोशिश करते हैं। बुद्धिमान वही होता है जो अपने रणनीतिक फैसले के तहत समाज में सम्मान की नजरों से देखा जाता है। नीतियों के निर्माता चाणक्य भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में बुद्धिमानी के चलते ख्याति प्राप्त किए थे यह उनकी बुद्धिमानी ही कहेंगे कि उनकी मृत्यु के सैकड़ों वर्षो बाद भी वह किसी पहचान के मोहताज नहीं है भारत ही नहीं बल्कि विश्व में कई जगहों पर उनकी नीतियों के मद्देनजर काम किया जाता है यानी अपनी नीतियों और ज्ञान के बल पर सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी नाम कमाया था। चाणक्य व्यक्ति को बारीकी से समझने की कोशिश और विशेष सकते थे जिसका वर्णन पुराणों में झलकता है। यह बात बिल्कुल ही सत्य है कि बुद्धिमान व्यक्तियों की परीक्षा संकट की घड़ी में ही होती है, लेकिन इस संकट को उबारने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं तभी तो वह बुद्धिमान कहलाते हैं।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
हमारे आसपास ऐसे लोग जिन्हें हम बुद्धिमान मानते हैं,असल में तब हम उन्हें अपना रक्षक मानकर अपना सुरक्षा कवच भी समझते हैं। इनके प्रति हमारे मन में यह भावना गहराई से पैठ कर जाती है कि  संकट के समय हमें ये ही कोई न कोई रास्ता निकाल कर  बचा लेंगे। सच पूछा जावे और गहराई से आकलन किया जावे तो उनकी इसी बुद्धिमानी की हिम्मत ही हमें उनके प्रति उनके मान सम्मान की भावना को प्रखर करती है। हमें विश्वास जगाती है। हमें सहज,सरल और बेपरवाह बनाती है।
  और जब हमारा वास्ता कभी अनायास किसी संकट से पड़ता है तब हम निदान के लिए इन्हीं बुद्धिमानों की ओर बड़े विश्वास और आशान्वित होकर बड़ी बेसब्री से ताकते हैं। सच कहा जावे तो यह स्थिति वास्तव में उनकी बुद्धिमानी की परीक्षा भी  होती है,क्योंकि तब हम इस संकंटकाल के उबरने के बाद जीवन पर्यंत के लिए उनके प्रति अच्छी या बुरी धारणा भी तय करने वाले होते हैं। यदि वे इस संकटकाल में हमें बचाकर ले गए तो उनके प्रति हम और नतमस्तक हो जायेंगे और यदि वे इसमें सफल नहीं हुए तो हमारा उनके प्रति विश्वास डिग जावेगा। हमारा संबंध उनके प्रति मात्र औपचारिक हो जायेगा।
अतः सार यही कि ये सच है कि बुद्धिमानों की परीक्षा वास्तव में संकटकाल में होती है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
कैसी भी व्यक्ति की बुद्धिमता का आंकलन  सम त्वरित  हाजिर जवाब, संकट के समय सही समय पर दिमाग का दौड़ना और  संकट से बाहर निकालना! यह जरुरी नहीं है कि पढ़े लिखे होने से ही अधिक बुद्धिमान कहलाता है केवल किताबी ज्ञान ही सब कुछ नहीं होता! संकट के समय जरुरी नहीं बड़ो की ही बुद्धि काम आती है कभी कभी एक बच्चे की बुद्धि  भी काम आती है! यह उदाहरण नहीं सुचती घटना बता  रही हूं! घर में शादी का माहौल  था सभी मेहमान आये थे अचानक बाथरुम की स्विच दबाते ही करेंट आने लगा रात के एक बज रहा था ....डर था किसी ने रात को जरूर में स्वीच दबा दिया तो क्या करें? जीजाजी ने कहा मेन स्वीच भी बंद नहीं कर सकते तभी बेटी के लड़के ने कहा  जो सातवी पढ़ता है नानाजी चौडी़ ब्लेक टेप लगा दो!सभी ने कहा चिंता में तो दिमाग ही काम नहीं कर रहा था! बच्चे की त्वरित  बुद्धि ने रातभर के संकट का समाधान कर दिया सुबह विद्युत कर्मचारी आकर ठीक कर गया !
            - चंद्रिका व्यास
          मुंबई - महाराष्ट्र
"संकट आया देखि के, 
सुझे नहीं उपाय, 
चतुर होही नर जो, खोजहि तुरंत उपाय"
ऊपर दिए गए दोहे से साफ झलक रहा है कि बुद्धिमान व्यक्ति संकट से घबराते नहीं हैं किंतु  उसका हल जल्दी से ढूंढ    निकालते हैं, 
तो आज  मैं आपको बुद्धिमान व्यक्ति के लक्षण बताने जा रहा हुं और साथ में यह भी जानने की कोशिश करेंगे क्या बुद्धिमान व्यक्ति की परिक्षा वास्तव में संकट काल में ही होती है, 
मेरा तर्क है कि बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो वीचारों के माध्यम से ही सही और गल्त को भली भांति परख ले जिससे संकट काल तक पहुंचने की संम्भावना ही न बन पाये अगर ऐसा संभव भी हो जाए तो वो उसे अपनी वुद्दी  के विकास से ही हंसते हंसते हल कर दे, 
क्योंकी बुद्धिमान व्यक्ति आम लोगों से कुछ अलग होते हैं, यह परिस्थितियों को जिस तरह से महसूस करते हैं, उसे कोई  भी नहीं समझ सकता क्योंकी बुद्धिमान लोगों का हर कार्य को देखने का  नजरिया अलग ही होता है, 
यह अलग तो नहीं दिखाई देते लेकिन  इनकी सोच  भीड़ से काफी अलग होती है इसलिए इनकी पहचान हर कार्य में संभव हो जाती है, 
यह लोग कार्य को आरंभ करने से पहले अच्छी तरह से सोच समझ लेते हैं और कार्य ़़आरंभ करने के  बाद उसे अधूरा नहीं छोड़ते, 
यही नहीं  बुद्धिमान व्यक्ति छोटी छोटी परेशानियों से बिलकुल नहीं घबराते और जीवन के प्रति सकारात्मक सोच रखते हैं, वो समय की कीमत को पहचानते हैं व जीवन में सबसे अच्छा करने के लिए कायम रहते हैं और हर कार्य को पूरी तरह समझ कर करते हैं, 
बुद्धिमान लोग अपनी असफलताओं से भी सम्भावनाएं खोज लेते हैं, व क़भी हार नहीं मानते, 
सच कहा है, 
"यूंही हर कदम पर मत लड़खडाओ, 
कामयाबी पानी है तो संभल  
जाओ, मत शोर करो अपने प्रयत्नों का, 
खामेशी से अपनी जिंदगी बदल जाओ"।  
कहने का मतलब बुद्धिमान लोग हमेशा कुछ नया करने के लिये प्रेरित रहते हैं व दुसरों को कुछ बड़ा करने के लिये प्रेरित करते हैं , 
आखिकार यही कहुंगा बुद्धिमान जरूरत होने पर वोलते हैं और जब वोलते हैं उनकी बात में तर्क होता है, आत्मविश्वास इतना होता है कि बड़े से बड़े बुदिजीवों के  वीच  भी तनिक विचलित नहीं होते, 
सच है, 
" वो जो शोर मचाते हैं भीड़ में
भीड़ ही बनकर रह जाते हैं, 
वही पाते हैं जिंदगी में कामयाबी जो खामोशी से अपना काम कर जाते हैं"। 
मेरे दृष्टीकेण में वह प्रत्येक मनुष्य बुद्धिमान है जो इस निर्भय संसार में स्वंय को जीवत रखने की कला से परिचित हो, इसलिए एक बुद्धिमान की पहचान बुद्धिमान ही कर सकता है मूर्ख नहीं ऐसे लोग अपनी कल्पना मे हकीकत देखना पसंद करते हैं  और एक बुद्धिमान व्यक्ति वोही कहलाने के काविल है जो अपने कर्म व कर्तव्य का सही पालन करता है
सच कहा है, 
"जो खैरात में मिलती कामयाबी, तो हर शख्स कामयाब होता, 
फिर कदर न होती किसी हुनर की, न ही कोई शख्स लाजबाव होता, "। 
 कहने का मतलब बुद्धिमान व्यक्ति को पता होता है कि, 
चाबल से कंकड़ और जीवन में संकट खुद ही निकालने पड़ते हैं, इसलिए बुद्धिमान की सही परिक्षा  ऐसे संकट काल में देखी जाती है जब वो  अपनी बुद्धिमानी से असंभव को भी संभव कर दिखाता है और उसको अपने आप पर ऐतवार होता है कि मैं हर संकट काल में कामयाब ही होकर रहुंगा, 
इसी शेयर के साथ विराम चाहुंगा, 
" जिंदगी में कुछ पाना है तो खुद पर ऐतबार रखना, 
सोच पक्की और कदमों पे रफ्तार रखना, "
कामयाबी मिल जाऐगी एक दिन  निश्चित ही तुम्हें बस  खुद को आगे बढ़ने के लिए तैयार रखना "। 
 - सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
संकटकाल वास्तव में बहुत बड़ी परीक्षा की घड़ी होती है। संकट की घड़ी जिस प्रकार सच्चे मित्रों और रिश्तेदारों की पहचान कराता है उसी प्रकार इंसान की सूझबूझ और बुद्धिमत्ता की परीक्षा भी उसके संकटकाल में ही होती है। 
               एक बुद्धिमान व्यक्ति अपने जीवन में कठिनाइयों के पल आने पर शांत चित्त धारण करते हुए ही सूझबूझ के साथ उस कठिन परिस्थिति का सामना करता है और सरलता पूर्वक अपनी समस्याओं का समाधान ढ़ूँढ़ लेता है। इतना ही नहीं एक प्रबुद्ध और होशियार व्यक्ति अपने साथ ही साथ अपने दोस्तों और संबंधियों की संकट की घड़ी में भी एक ठोस संबल बनता है अपनी होशियारी से उन्हें भी संकट से उबार लेता है। इस विधि अपने समाज में उचित सम्मान भी प्राप्त करता है।
- रूणा रश्मि "दीप्त"
राँची - झारखंड
मानव जीवन में संकट का प्रादुर्भाव नकारात्मक अनुशासनहीन कल्पना के कारण होता है l बुद्धिमानों के लिए वास्तव में संकट काल परीक्षा काल होता है l बुद्धिमान वयक्ति इस परीक्षा काल में अपना धैर्य और विवेक नहीं खोते हैं l
  विवेक के बिना मनुष्य के अच्छे -बुरे, सही गलत का अंतर समझ में नहीं आता और वह संकट में फँस जाता है l
"होइ विवेक मोह भ्रम भागा l
तव रघुनाथ चरण अनुरागा ll "
   संकट की घड़ी से उबरने में आत्मा के प्रकाश से प्रकाशित बुद्धि बुद्धि ही हमारा विवेक है, जो संकट रूपी परीक्षा में हमें सफलता दिलाती है l
"संकट कटे मिटे सब पीरा,
जो सुमिरे हनुमत बल बीरा l
हम चाहें हनुमान को माने या रहीम को l आराधना, उपासना से बल, बुद्धि और विद्या मिलती है, जो हमें संकट से उबारती है l
धैर्य की कसौटी विषम परिस्थितियों में है अर्थात बुद्धिमानों की परीक्षा संकट काल में होती है l
           ----चलते चलते
सहसा विदधीत न क्रियाम विवेकः परमापदा पदम l
वृणते ही विमर्शयकारिणाम गुण लुब्धा स्वयमेव सम्पद :ll
बिना सोचे विचारे किया गया कार्य घर में संकट को आमंत्रण देता है l जो व्यक्ति सहजता से बुद्धि, विवेक से कार्य करता है उसको संकट का सामना करना ही नहीं पड़ता l
      - डॉoछाया शर्मा
 अजमेर - राजस्थान
 जी हां! प्रत्येक व्यक्ति पर संकट की घड़ियां आती हैं भले ही कोई राजा हो रंक हो। यदि सुख है तो दुख भी है। संकट की घड़ियों से गुजरना प्रत्येक व्यक्ति के लिए असहनीय होता है लेकिन जो बुद्धिजीवी होते हैं वह अपने ज्ञान, बल, विवेक से संकट की नौका को धैर्य रखकर आसानी से पार कर लेते हैं। लेकिन कहीं-कहीं ऐसा भी होता है कि संकट काल में व्यक्ति धैर्य खो बैठता है। जो बुद्धिमान लोग होते हैं काल उन्हीं की परीक्षा लेता है। तभी वह इतिहास में अपना नाम अंकित करवा पाते हैं। हमारे महापुरुषों में से कोई भी ऐसा नहीं जो संकट की घड़ियों से न गुजरा हो। इतिहास ऐसे महापुरुषों से भरा पड़ा है जिन्हें संकट की घड़ियों में रोटी का टुकड़ा तक नसीब नहीं हुआ, फिर भी उन्होंने धैर्य नहीं छोड़ा। उन्हीं को देख कर, सुन कर आज का व्यक्ति कड़े परिश्रम से  कर्तव्य पथ पर चलते हुए डगमगाता नहीं क्योंकि वह जानता है कि परीक्षा भी उन्हीं की ही होती है जिनके पास ज्ञान का कोई अध्याय होता है। जिसके पास कुछ है नहीं, जो सिर्फ और सिर्फ आलोचना करना जानता है वह क्या खाक परीक्षा देगा। फिर संकट की घड़ियों में ही पता चलता है कि बुद्धिमान व्यक्ति किस धरातल पर खड़ा है।
- संतोष गर्ग
मोहाली - चंडीगढ़
बुद्धिमान व्यक्ति तो हमेशा ही सोच विचार कर कार्य करते हैं। साधारणतया लोग बाग उस पर ध्यान नहीं देते किंतु संकट के समय जब किसी से समस्या हल नहीं होती कोई निदान नहीं सूझता उस समय बुद्धिमान व्यक्ति से  समस्या का  उपाय पूछा जाता है ।इसी को कहते हैं  बुद्धिमान की संकटकाल में  परीक्षा होना ।उनसे हल पूछे जाने पर  और उनके द्वारा दिए गए सुझावों पर अमल करने से समस्या का हल होना निर्भर करता है। संकट की घड़ी उनकी बुद्धिमत्ता की परिचायक होती है और लोगों के सामने उसे साबित करती है। 
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश

" मेरी दृष्टि में "  संकट के समय अच्छे - अच्छे बुद्धिमान फेल हो जाते हैं । भाषण में बातें अच्छी लग सकती है । हर संकट में सफल हो जाऐ । ये कोई जरूरी नहीं है । 
- बीजेन्द्र जैमिनी 

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