हर किसी में समस्या खोजना क्या उचित है ?
कुछ लोगों की विचारधारा बन गई है कि हर किसी में समस्या खोजने लग जाते हैं । ऐसो लोगों को नकारात्मक सोच के इंसान कहा जाता है । ये कभी सकारात्मक सोच के बारें में सोचते नहीं है । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की सोच " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
"जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत दीखे तिन तेही "आज जिसे देखो वही अशांत है,यहाँ तक कि सफल व्यक्ति सफलता के बाद भी अशांत है और समस्या ग्रस्त है l समस्या ग्रस्त व्यक्ति हर किसी में समस्या ही ढूंढना चाहता है और स्वयं दूसरों के लिए समस्या बन जाता है, जो किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है l
मनुष्य के जीवन में शांति /अशांति का केंद्र मन है जो समस्या का जन्मदाता है l
जीवन जीने के तीन मार्ग बताये गये हैं l1. ज्ञान मार्ग 2. कर्म मार्ग 3. उपासना मार्ग l चौबीस घंटे में कभी ज्ञान मार्ग की अधिकता तो कभी कर्म मार्ग की तो कभी उपासना मार्ग की अधिकता l इन तीनों में संतुलन जीवन प्रबंध है और यही मैनेजमेंट /प्रबंधन न तो हमें समस्या ग्रस्त बनाता है और न ही दूसरों में समस्या ढूंढने के लिए प्रेरित करता है l
मेरे दृष्टिकोण में हमें स्वभाव से व्यवहार बनाना चाहिए l लेकिन हम इसका उल्टा करते हुए व्यवहार से स्वभाव बनाने लगते हैं
ऐसे में स्वयं समस्या ग्रस्त होकर दूसरों में भी समस्या ही खोजेंगे l
प्रसिद्ध वैज्ञानिक जॉर्ज डब्लूयु क्रेन ने अपनी पुस्तक" एप्लाइड साइक्लोजी "में लिखा है कि -याद रखें "कर्म ही भावनाओं के अग्रज होते हैं l हम अपनी भावनाओं को तो सीधे नियंत्रित नहीं कर सकते परन्तु हम अपने कर्मों को नियंत्रित करके अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर सकते हैं l भावना ही हमारे लिए समस्या बनती हैऔर भावना ही समाधान करती है l
आसुदगी से दिल के सभी दाग़ धुल गये,
लेकिन वो कैसे जाये जो शीशे में बल है l
------चलते चलते
मैं जिंदगी भर आईना साफ करता रहा l
गलती मेरी यह थी, धूल मेरे चेहरे पे थी,
धूल मेरे चेहरे पे थी l
- डॉo छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
समस्या खोजी नहीं जातीं, स्वत: ही मनुष्य के समक्ष खड़ी हो जाती हैं। मैं बात कर रहा हूं उन समस्याओं के विषय में जो समय-समय पर मानव के जीवन में स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होती हैं। मनुष्य, इन समस्याओं का सामना करते हुए उन्हें हल भी करता है।
बहुत सारी समस्याएं हमारे सामने दूसरों के द्वारा उत्पन्न की जाती हैं। ये, वे समस्याएं होती हैं जो किसी अन्य के द्वारा हमें परेशान करने के लिए जान-बूझकर उत्पन्न की जाती है और इन्हें खोजने की आवश्यकता नहीं है। इन समस्याओं और इनको उत्पन्न करने वाले लोगों से मनुष्य को संघर्ष करना ही पड़ता है।
"जीवन पथ कहीं समतल कहीं तीखी नोक है।
जीत की चाल चलने की कला है जिन्दगी।।
समस्याएं शत्रु बनकर तेरे सामने होंगी 'मनुज'
समय पर समस्याओं से संघर्ष है जिन्दगी।।"
परन्तु समाज में कुछ व्यक्ति सदैव नकारात्मक मानसिक स्थिति वाले होते हैं। ऐसे लोग हर किसी व्यक्ति, स्थिति अथवा स्थान में समस्या खोजने की प्रवृत्ति से ग्रसित होते हैं और इसलिए वे स्वयं भी परेशान रहते हैं और दूसरों के लिए भी परेशानी खड़ी करते हैं।
निष्कर्षत: व्यक्ति को सदैव सकारात्मक रहना चाहिए। यथासंभव समस्या को अनदेखा करना अथवा अति हो जाने पर समस्या से जूझना तो मनुष्य का गुण है परन्तु हर किसी में समस्या खोजना अवगुण है।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
हर चीज समस्या जनक नहीं होती इसलिए जबरदस्ती किसी चीज में समस्या खोजना उचित नहीं। कई बार तो छुटपुट समस्याओं के होते हुए उन्हें धैर्य पूर्वक सुलझा लिया जाता है और यही समझदारी होती है। बेवजह किसी चीज में समस्या पैदा करना नितांत परिहार्य है। ऐसे तो देखें तो दुनिया की हर चीज में कुछ न कुछ कमी निकल ही आएगी पर जहां बहुत जरूरी हो और उस कमी को बताए बिना काम न चले तब उस कमी का खोजना या बताया जाना जायज होता है अन्यथा नहीं।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
नहीं,हर किसी में समस्या खोजना उचित नहीं।ऐसा करने वाले को खुद ही एक समस्या बनने में देर नहीं लगती। सबमें समस्या को खोजना,
यानि नकारात्मक प्रवृत्ति,और ऐसी प्रवृत्ति से सफलता मिलना अनिश्चित ही होता है।इस आदत के चलते वह व्यक्ति न तो किसी को जोड़ पाता है और न ही कहीं जुड़ पाता है। अपनी सारी ऊर्जा परछिद्रान्वेषण में ही लगा देता है। सृजनात्मक कार्य तो शायद ही करता हो। समस्याओं को खोजने में लगा व्यक्ति एकाकी जीवन की ओर बढ़ता जाता है। अविश्वास और अधैर्य उसके स्थायी साथी होते हैं। इसका एक पहलू और है किसी विशेष लक्ष्य में जुटा व्यक्ति जब एकांत चाहता है तो वह ऐसा व्यवहार करने लगता है, जिससे कि उसके कार्य में कोई भी व्यवधान उत्पन्न न हो।कारण कुछ भी हो, सभी में समस्या खोजने की आदत ठीक नहीं।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
जब कोई कार्य हमारी समझ या विवेक से हटकर किया जाता है तो वह समस्या बनकर उभर सकता है ।
यह सही है कि समस्या का समाधान अवश्य खोजना चाहिए और वह भी समय पर । मानव जीवन है तो समस्याएं हैं सुख-दुख साथ साथ चलते हैं ,प्रयास करके उनका समाधान होना ही चाहिए ।समस्या छोटी या बड़ी हो सकती है परंतु 'प्रयास ' को मुख्यता देते हुए समाधान को संभव बनाया जा सकता है । समस्या को और जटिल रूप न देकर समय पर उसका निदान जरूरी है । हर किसी में समस्या खोजना अपने आपको और समस्याओं में उलझाना है ।
हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि समस्याएं हमारे धैर्य और विवेक की परीक्षा लेती है । कई बार समस्याएं मानव जनित होती है तो कई बार प्रकृति जनित, इन समस्याओं से निपटने के लिए कभी हम अकेले होते हैं तो कभी संयुक्त रूप में । परंतु समाधान समय पर निकालना ही चीहिये । समस्याओं का रूप सदा विकृत ही रहा है अत: विवेक , समझ ,धैर्यशीलता के बल पर उन्हें निपटाने का प्रयास अवश्य करना चाहिए ।
- शीला सिंह
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
मानव चक्र उलझा हुआ हैं, यह पृवति हैं, जो स्वयं अपनी समस्या का समाधान नहीं कर सकते और दूसरों की समस्याओं को खोजने में समय पास कर जीवन बीता रहे हैं, ऐसा करने से मजा तो जरूर आता हैं लेकिन क्या मिलता हैं, यह समझ से परे हैं, याने दूसरों का भला नहीं कर सकते तो बुरा भी नहीं सोचना चाहिए। यह समस्या पूर्व से ही चले आ रही हैं, उत्थान-पतन एक सिक्के के दो पहलू हैं। पारिवारिक हो या समसामयिक हो या राजनीतिक अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए कुछ भी कर सकते हैं। हत्या हो या मिथ्या या दुष्परिणाम जो भी हो ऐसा कुछ नहीं करेंगे तो तब-तक उनकी पाचन क्रिया ठीक नहीं हो सकती हैं। हर किसी में समस्या खोजना उचित प्रतीत नहीं होता, परन्तु दूरगामी परिणामों को देखते हुए अपने, आप में सुधारवादी बनने की नितांत आवश्यकता हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
बिल्कुल नहीं! समस्या सही शब्दों में दूसरों में नहीं बल्कि स्वयं में होती है। कहते हैं 'हम सुधरे तो जग सुधरा।' एक व्यक्ति को सारा संसार सुंदर लगता है और दूसरे को नर्क दिखता है। एक को सभी इमानदार दिखते हैं और दूसरे को बेईमान। एक को किसी अतिथि में भगवान नजर आता है दूसरे को शैतान कि वह आया है अवश्य कुछ बिगाड़ने की सोच कर पहुंचा है। यह तो अपनी-अपनी सोच है। भांति- भांति की दुनिया भांति-भांति के लोग। किसी अन्य में समस्या खोजना बिल्कुल भी उचित नहीं है। पहले हम स्वयं को देखें। यदि हम अपनी समस्या का समाधान स्वयं नहीं कर पाते तब अपने साथ-साथ प्रत्येक के लिए हम बहुत बड़ी समस्या हैं।
- संतोष गर्ग
मोहाली - चंडीगढ़
हर किसी में समस्या खोजना उचित नहीं। इन्सान को तो गलतियों का पुतला कहा जाता है। जो गलती नहीं करता या गलती नहीं देखता वो तो भगवान है।मनुष्य समस्याओं का सामना करने और सुलझाने को कष्ट दायक प्रकिया मानता है।हर आदमी सफल तो होना चाहता है लेकिन यह भी समझना चाहिए कि सफलता के लिए संघर्ष जरूरी है। जबकि मुश्किलें वो औजार है जिन से हम अच्छे कामों के लिए तैयार होते हैं। जब तक मनुष्य है, उसके पास चिंतन,मनन और विचार हैं तब तक समस्याएँ रहेंगी।
निराशावादी व्यक्ति हर अवसर और हर किसी में एक समस्या देखता है। यह हमारी दृष्टि है जो हमारे मन को निराश, हताशा जैसे भाव भरती है। समस्या का मूल हमारा मन है। यह समस्या हमारे मन में उतपन्न होती है। हम नकारात्मक दृष्टिकोण से हर किसी में समस्या खोजने लगते है। यह उचित नहीं। मनुष्य को हमेशा सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
- कैलाश ठाकुर
नंगल टाउनशिप - पंजाब
समस्या खोजना कठिन है लेकिन असंभव भी नहीं है, समझदारी एवं प्रयास यही होना चाहिए की इस समस्या का बड़ा समाधान खोज कर सुविधा दिया जाए ।इसके लिए समस्या को अंदर से उसके मूल तक, विस्तार के पहलू तक जाकर समझना चाहिए। सारे विकल्पों की समीक्षा कर सावधान समाधान किया जाए।
लेखक का विचार:--समस्या से बड़ा समाधान खोजना है, किसी भी कार्य का यदि बिना विवेक के करते हैं तो बस समस्या बन जाता है। अतः दूरदर्शिता के साथ उचित अनुचित को भली-भांति सोचकर कर करने से अपने आप से हर प्रश्न का समाधान होगा।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
हर किसी में समस्या कुछ ना कुछ हद तक उचित भी है जिससे की आगे की समस्या का निदान हो सके। एक तरह से उचित नहीं भी की जो समय शांति का हम गुजार सकते हैं उस पल को भी समस्या खोजने में खो देते हैं। समस्याओं का सामना करना उन्हें जीवन में समझाने में जीवन का अर्थ छिपा हुआ होता है। उपलब्धियों की जन समस्याएं ही है यदि हमारे जीवन में समस्याएं नहीं होंगी तो हमारी अपनी बुद्धि का प्रयोग कम ही होगा। जितनी चुनौतियां हमारे समक्ष होती है हम उतना अधिक अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हैं। समस्या बिना जीवन नीरस सा होता है याद रखो जिस बात से हमें कष्ट होता है उसी से ज्ञान भी मिलता है।
- पदमा तिवारी
दमोह -मध्य प्रदेश
हर किसी में समस्या खोजना उचित नहीं है। क्योंकि गुण अवगुण तो सभी में विद्यमान होते हैं। हम किसी के अवगुण क्यो देखने जायँ। किसी में गुण ज्यादा होता है तो किसी में अवगुण ज्यादा होता है। उसी तरह से हर एक में कोई न कोई समस्या होती ही है। हम कोई भगवान या कोई चमत्कारी व्यकि नहीं जो किसी के अन्दर समस्या ढूंढे और ठीक कर दें।
जब हम उसे ठीक नहीं कर सकते हैं तो हमें समस्या खोजने की क्या जरूरत है। दूसरों की समस्याओं में अपना वक्त क्यो बर्बाद करें। दूसरे में समस्या खोज कर अपने मन को अशांत क्यो करे। इसलिए दूसरों में समस्या नहीं खोजनी चाहिए।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - पं. बंगाल
हर व्यक्ति सफल होना चाहता है और सफलता के लिए जरूरी है समस्याओं से संघर्ष करना। हर किसी में समस्या खोजना कहीं से भी उचित नहीं है। किसी भी व्यक्ति को दूसरे में अपनी बुराई खोजने उसकी ऊंची मानसिकता को दर्शाता है। समस्याओं जैसी चुनौतियों का सामना करने उन्हें सुलझाने मैं जीवन का अपना अलग ही छिपा हुआ रहता है। समस्या हो तो एक दुधारी तलवार जैसी होती है। वह हमारे साथ हमारे समस्याओं को ललकार ती है और दूसरे शब्दों में भी हमने साहस और जनता का सृजन भी करती है। मनुष्य की तमाम प्रगति उसकी सारी उपलब्धियों के मूल में समस्याएं हैं। यदि जीवन में समस्या नहीं हो तो शायद हमारा जीवन ही नहीं जड़ भी हो जाए।यह भी सत्य है कि किसी ने सही कहा है कि हर मुश्किल के पत्थर को बनाकर अपनी मंजिल पर पहुंच जाए उसे इंसान कहते हैं। यह भी सच है कि हर व्यक्ति के जीवन में कुछ ना कुछ समस्याएं आते ही रहती है, लेकिन उसका समाधान भी हो जाता है। कुछ लोग समस्याओं का समाधान खोज लेते हैं और कुछ लोग परेशान हो जाते हैं। जीवन में तो समस्या है और रहेंगी, लेकिन समस्याओं को लेकर दिनभर चिंता मग्न रहने से कुछ हासिल नहीं होगा। समस्याओं को खत्म होने का इंतजार करना समझदारी नहीं बल्कि समस्याओं का समाधान ढूंढने में ही भलाई है। हर कदम हर व्यक्ति को आगे बढ़ने से रोकता है। लेकिन समस्याओं का डटकर मुकाबला करना चाहिए और निरंतर आगे बढ़ने का प्रयास करते रहना चाहिए। समाज में ऐसे बहुत सारे लोग रहते हैं जो दूसरे की बुराई और उनकी परेशानियों को ढूंढने में अपना समय व्यतीत करते हैं। लेकिन ऐसे लोगों से दूर ही रहना चाहिए, क्योंकि समस्या है तो समाधान भी है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
ब्रह्माण्ड में कोई भी समस्या रहित नहीं होता। अर्थात सम्पूर्ण में भी 'म' कटा हुआ है। कहने का तात्पर्य यह है कि सम्पूर्ण कोई नहीं होता और हर किसी में समस्या या कमीं खोजना बिल्कुल उचित नहीं है।
दूसरी ओर मानव को तो यूं भी समस्याओं का जन्मदाता माना गया है। चूंकि उसकी जिज्ञासु प्रवृत्ति उसे कभी अंतरिक्ष में ले जाती है और कभी समंदर तल में ले जाती है। कहने को भले उसे चार रोटी की आवश्यकता होती है। परंतु उसकी इच्छाएं लोक-परलोक के सुख प्राप्त करने के उपरान्त भी तृप्त नहीं होतीं। क्योंकि जितना उसके पास होता है उससे अधिक उसकी चाहत बढ़ जाती है।
यही जीवन का आधार है और यही आधार 'नशा' बन कर जीवन की सारी खुशियां छीन लेता है। चूंकि समस्याओं की जड़ यह बनती है कि मेरे पास वह नहीं है जो पड़ोसी के पास है और पड़ोसी की समस्या यह है कि जो उसके पड़ोसी के पास है वह उसके पास नहीं है।
अतः जीवन का जो समय मिला है वह दूसरों की समस्यायों को खोजने में व्यर्थ करने से उत्तम है कि अपने जीवन को सुखमय बनाया जाए।
- इन्दु भूषण बाली
जम्म् - जम्म् कश्मीर
मनुष्य का स्वभाव विचित्रता से भरपूर है। जितने प्राणी हैं उतने प्रकार का स्वभाव है। लेकिन उसी सोच से वह दूसरे पर भी नजर डालता है। नकारात्मकता के साथ जीने वाले को हर व्यक्ति में खोट दिखती है तथा हर काम में समस्या नजर आती है।
असल में समस्या उसके अपने अंदर होती है। एक बार अपने अंदर झांक कर देखने पर ही पता चलेगा कि समस्या कहाँ है?
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
हर मनुष्य को ईश्वर ने उसके कर्म के आधार पर अलग - अलग विचारों से संजोया है ।अतः उसके जीने का ढ़ंग और व्यवहार भी भिन्न -भिन्न है ।निरंतर उसी पर चलते रहने से वह आदत बन जाती है ।अब यदि दो या समूह में लेगों के विचार और व्यवहार नहीं मिलते फिर यहीं पर समस्या का जन्म होता है । हर चीज एक जैसी नहीं हो सकती । हम किसी का गुण देखें अवगुण नहीं ।हर केई परफेक्ट नहीं होता ।अतः हर किसी में समस्या खोजना उचित नहीं है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
हर किसी में समस्या खोजना किसी भी प्रकार से उचित नहीं है. एक तो हर किसी में समस्या होती नहीं, दूसरे हर समस्या का कोई-न-कोई समाधान अवश्य होता है. किसी भी कार्य का हल यदि बिना विवेक या प्रज्ञा के किया जाता है तो वह समस्या बन जाता है. समाधान तो हर स्थिति में उससे बड़ा ही होगा तभी तो वह उसे दूर करने में सहायक होता है. सूझबूझ से किसी भी समस्या का हल निकाला जा सकता है. समस्या से बचाव के लिए आत्मविश्वास का होना भी आवश्यक है. मानो तो मौज है, वरना समस्या तो रोज है. समस्या से ही समाधान है, बस अपना नजरिया सकारात्मक रखें. सकारात्मकता ही समाधान के लिए मार्गदर्शक ऊर्जा होगी.
- लीला तिवानी
दिल्ली
यह बात तो सच है कि प्रक।ति की लीला न्यारी है ! ईश्वर ने पृथ्वी में जब जीवों की उत्पत्ति की तब सभी का स्वभाव ,चेहरा सभी भिन्न भिन्न दिया !चाहे फिर वह जानवर हो ,पक्षी हो अथवा मनुष्य हो ! कहते हैं न हम सब बदल सकते हैं किंतु नेचर नहीं ! इसी केटिगिरी में ऐसे लोग भी होते हैं जो हर किसी में समस्याएं ढूंढते हैं !ये उनकी फितरत या स्वभाव कह सकते हैं !
समस्या है तो समाधान भी है ! यदि समस्या ही न हो तो हमारा जीवन नीरस है ! समस्याओं से ही तो कई बडे़ बडे़ आविष्कार हुए !
उदाहरण--: आज कोविद की वैक्सीन निकली वैज्ञानिकों ने काफी प्रयत्न से खोज निकाला किंतु फिर भी थोडी भी तकलीफ़ आई तो लाभ हो रहा है वह नहीं दिखेगा किंतु कुछ समस्या आई वह जरुर देखेगा !यह अच्छी बात है अब वह उसका समाधान ढूंढेगा ! समस्या ही तो हमें आगे बढ़ने को प्रेरित करती है ! हां यदि व्यक्तिगत हम आपस में समस्या निकालते हैं तो वह बात अलग हो जाती है बाकि समस्या तो स्वयं एक समाधान है जो हमे प्रोत्साहित करती है ,मार्ग प्रस्त करती है ! समस्याएं ही विज्ञान को जन्म देती हैं ! अतः अगर हमें समस्याएं ही दिखती हैं तो उसके तोड़ के लिए हम काम पर लग जाते हैं !हमारा जीवन नीरस नहीं बल्कि उत्साहित रहता है !
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
समस्याएं दुधारी तलवार होती हैं वह हमारे अंदर साहस, बुद्धिमता का सृजन तो करती हैं पर हमें ललकारती भी हैं।
मनुष्य की तमाम प्रगति और उपलब्धि के मूल में समस्याएं ही हैं। समस्याएं न हो तो इंसान निष्क्रिय और उसका जीवन नीरस हो जाएगा।
मुश्किल पत्थर की सीढ़ियां बना कर मंजिल तक पहुंचने वाला ही 'संघर्षशील इंसान' कहलाता है।
जीवन के हर मोड़ पर अनेकों लोगों से आमना- सामना होता है। कभी कोई मददगार साबित होता है --कभी कोई मुश्किल पैदा करता है। हर इंसान के विचार और कार्य करने की विधियां अलग-अलग होती है।
अपनी समस्या के लिए दूसरों पर दोषारोपण करना उचित नहीं है। ठीक इसी तरह हर व्यक्ति में खामियां निकालना या समस्या खोजना भी उचित नहीं है।
मानवीय प्रवृत्ति भी है कि इंसान को अपनी पीठ नहीं दिखती अर्थात अपनी खामियां नजर नहीं आती--इसलिए जहां असफलता हाथ आती है वहां दूसरे में समस्या ढूंढते हुए दोषारोपण कर देता है जो कदापि उचित नहीं है।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
"अगर मृत्यु ही हर समस्या का हल होती तो, आज सड़कों से ज्यादा शमशान घाट पर भीड़ होती "।
समस्याओं के बगैर जीवन के कोई मायने नहीं हैं, जिन्दगी में जितनी ज्यादा समस्याएं होती हैं सफलताएं भी उतनी तेजी से कदमों को चूमती हैं,
इसलिए अगर कोई अपनी समस्या दिखाता है तो उसकी समस्या को तरूंत दूर करने का उपाय बताना चाहिए न कि समस्या देखकर भाग जाना चाहिए,
आज इसी बात पर चर्चा करते हैं कि हर किसी में समस्या खोजना क्या उचित है,
मेरा मानना है कि हर किसी में समस्या ढूंढने के बजाय हमें हर किसी समस्या का हल ढूंढना चाहिए,
क्योंकी किसी भी समस्या का समाधान संभव है अगर दृष्टिकोण सही हो, सफलता के लिए जरूरी है समस्याओं से संघर्ष, यह हमारी बुदिमता को ललकारती हैं,
इसलिए जीवन में समस्याएं आएं तो विचलित नहीं होना चाहिए
संसार में समस्या हर जगह है,
हर परिवार में हर देश में है इसलिए दुखी नहीं होना चाहिए अपितु इसका हल ढूंढना चाहिए,
जिन समस्याओं का समाधान बाहर नहीं मिलता उसे अंदर ढूंढना चाहिए,
आखिरकार यही कहुंगा हमें चाहिए हर प्राब्लम से सीखें और जिंदगी को खुशनुमा बनाएं
प्राब्लम तो हर किसी के जीवन में है लेकिन हमारी सफलता और असफलता इसी में है कि हम प्राब्लम को डील कैसे करते हैं,
हमारी सफलता इसी बात पर डिपैंड करती है कि हमने समस्याओं का कैसे और कितने धैर्य से किया, याद रखें हर ताले की एक न एक चाबी जरूर होती है, इसलिए हर किसी में समस्या खोजना उचित नहीं है व समस्या का हल ढूंढना उचित है।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जब तक मनुष्य है,,, उसके पास चिंतन है,,, विचार है,,,तब तक समस्याएं तो रहेंगी ही ।
यदि व्यक्ति गहरी नींद में सो जाये, चिंतन बंद हो जाए प्रलय हो जाए तो संभव है समस्याएं नहीं रहें ,,,अन्यथा समस्याएं तो रहेंगी ही ।
विंस्टन चर्चिल का कथन है कि ,आशावादी व्यक्ति हर आपदा में एक अवसर देता है जबकि निराशावादी व्यक्ति हर अवसर में आपदा देखता है ,।
सच तो यह कि 95% समस्याएं हमारे मन से उत्पन्न होटी हैं।
जटिल और मूल समस्या है मन की ।
घर में धन दौलत ,पुत्र ,परिवार स्वास्थ्य सब कुछ होते हुए भी कलह है ,भाई भाई में झगड़ा है।
जहां संपन्नता ज्यादा है वहां झगड़े और अशांति भी अधिक है। जिनके घर में अभाव है वहां झगड़े कम होते हैं ।
इससे स्पष्ट है कि जिसके लिए झगड़े होते हैं वह चीज अभाव ग्रस्त घरों में है ही नहीं ।
तो जाहिर है कि समस्या भौतिक पदार्थों की ही नहीं मन की भी है। क्रोध ,लोभ ,मोह ,वासना ,घृणा, ईर्ष्या , शोक आदि मन के ये आवेग जब तक जीवित है तब तक समस्याएं सुलझने वाली नहीं।
कुछ लोग परिवार में ,मित्रों में इसी बात का रोना रोते रहते हैं कि उनकी समस्याएं कितनी पेचीदी व कितनी दुखदायक हैं । उनकी दृष्टि में यह समस्याएं ना होती तो जीवन सुखद होता।
हमारा जीवन दुखी और कठिन इसलिए है कि हम समस्याओं का सामना करने व उन्हें सुधारने को एक पीड़ादायक प्रक्रिया मानते हैं।
जबकि ऐसा नहीं होता समस्या है तो उनका समाधान भी होता है। समस्याओं को आप किस नजरिए से देखते हैं उसी आधार पर उनके समाधान भी सरल या जटिल प्रतीत होते हैं ।
समस्याएं आकाश की तरह बनने पर ही मिट सकती हैं मिटाई जा सकती हैं ।
सफलता के लिए मनुष्य का सबसे अहम संघर्ष समस्या से निपटारा करना रहता है ।
अब सवाल यह उठता है कि समस्याओं का मूल कहां है? समस्याओं रूपी चुनौतियों का सामना करने व उन्हें सुलझाने में जीवन का एक अर्थ छुपा हुआ है। समस्याएं तो दुधारी तलवार की तरह होती हैं ।वे हमारे साहस व बुद्धिमत्ता को ललकारती हैं।
और दूसरे शब्दों में साहस और बुद्धिमत्ता का सृजन भी करती हैं समस्याएं ।
मनुष्य की तमाम उपलब्धियों का मूल समस्याऐं ही होती हैं ।यदि जीवन में समस्याएं ना होतीे तो हमारा जीवन नीरस और जड़ होता ।
प्रख्यात लेखक फ्रेंकलिन ने सही कहा था की ,,जो बात हमें पीड़ा पहुंचाती है वही हमें सिखाती भी है ,,,।
इसलिए समझदार लोग कभी भी समस्याओं से डरते नहीं उनसे दूर नहीं भागते,,,बल्कि समस्याओं को आगे बढ़कर गले लगाते हैं। जैसे कोई जवान मर्द बैल से डरकर नही भागता बल्कि आगे बढ़कर उसके सींग को पकड़ता है, उस से जूझता है ,उस पर काबू करता है ।
हम सब के लिए ऐसे ही उत्साह, ऐसी ही ललक ,ऐसी ही बुद्धि की जरूरत होनी चाहिए,,,,
समस्याओं से जूझने के लिए,,,,। पर अधिकांश लोग इतने बुद्धिमान व जुझारू नहीं होते, इतने उत्साह से नहीं भरे होते हैं।वह नही समझते कि समस्या में छिपे दर्द से कैसे निपट सकें। अंततोगत्वा वह हार कर इन समस्याओं से निपटने के लिए शराब, सिगरेट ,नींद की गोलियों का सहारा लेते हैं ।
जबकि समस्याओं की अनदेखी और नशे का सहारा मानसिक रुग्णता का मूल कारण है ।
जिंदगी कठिन है अधिकांश लोग यह नहीं देख पाते या देखना नहीं चाहते ।
मानसिक रुग्णता के तो हम सभी थोड़ा बहुत शिकार है कोई थोड़ा ज्यादा कोई थोड़ा कम ।
परंतु यह भी किसी ने सच ही कहा है
कि हर मुश्किल के पत्थर को बनाकर सीढियां अपनी, जो मंजिल में पहुंच जाएं उसे इंसान कहते हैं ,,,।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
सच कहा जाए तो समस्या खोजना हर किसी में बिल्कुल उचित नहीं है पर मानव स्वभाव ऐसा है कि वह अपनी अवगुण कमी समस्या को स्वयं नहीं देख पाता है और उसे दूसरे की समस्या दूसरे का अवगुण तुरंत दिखाई पड़ जाता है यह मानव स्वभाव है हर कोई यह जानता है कि दूसरे में कमी निकालना सही बात नहीं है फिर भी जाने अनजाने में सामाजिक एवं पारिवारिक तौर पर ऐसे व्यवहार होते ही रहते हैं
कबीर दास का एक दोहा है बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय जो दिल खोजा आपने मुझसे बुरा न कोई
आलोचना करना कमी निकालना बहुत आसान होता है लेकिन जिस इंसान के जिस मानव के व्यवहार में अगर अवगुण है तो सद्गुण भी अवश्य होंगे और सद गुणों को देखते हुए अवगुण भुला देना ही उचित है ।
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
" मेरी दृष्टि में " समस्या को जबरन नहीं बनाया जाना चाहिए । यह किसी भी स्तर उचित नहीं है । जबरन समस्या का समाधान भी नहीं होता है । ऐसा अक्सर देखा गया है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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