आज के समय में अकेलें का साथ कौन देता है ?

अकेलें पैदा होता है । अकेला ही मरता है । यह जीवन का सत्य है । जिससे कभी झूठलाया नहीं जा सकता है । फिर इंसान अकेलें से क्यों घबराता हैं ? फिर भी अकेलें में कोई साथ देता नहीं दिखाई देता है । जो साथ देता है वह मुर्ख कहलाता है । यही कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
      कहा जाता है कि मनुष्य अकेला ही आया है और अकेला ही जाएगा। जब कि मानव की प्राथमिक व मूलभूत आवश्यकता सामाजिक जीवन है। पर समय के साथ जीवन मूल्य के साथ जीवन जीने का रंग ढंग भी बदल गये हैं ।पुराने जमाने में जब मूलभूत सुविधाएं कम भी ,यातायात के साधन कम थे तब यात्राओं में लोग एक दूसरे का साथ देना पसंद करते थे। सुख दुख में भी भावनात्मक सहयोग भी देते थे पर आधुनिक युग में जब सब कुछ पैसा ही हो गया है। मनुष्य से ज्यादा उसकी आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक वर्चस्व की पूछ होती है । अकेले का साथ कम लोग देते हैं।.उसका सच्चा मित्र ही साथ दे यह बहुत बड़ी बात है ।
अकेले का साथ उसका मनोबल , आत्मविश्वास और संयम ही देता है ।
       - ड़ा.नीना छिब्बर
          जोधपुर - राजस्थान
जोदि तोर दक शुने केऊ ना ऐसे तबे एकला चलो रे"  (यदि आपकी बात का कोई उत्तर नहीं देता है, तब अपने ही तरीके से अकेले चलो) गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर का 1905 में लिखा यह गीत संकेत करता है कि अकेले होना कोई नई बात नहीं है। आजकल अकेले का साथ कौन देता है? यह विषय वर्तमान में बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि आज लगभग हर मानव अकेलेपन की गिरफ्त में हैं। एक में भी तन्हा थे,सौ में भी अकेले हैं जैसी ही स्थिति है। भौतिक रुप से पास होकर भी सब मोबाइल की आभासी दुनिया में इतने व्यस्त हैं कि अकेले ही हैं,और इस अकेलेपन का साथी मोबाइल बन गया है। बड़ी अजीब सी स्थिति बन गयी है आजकल।अब बात अकेलेपन में साथ देने की तो जब किसी शुभ संकल्प को लेकर आगे कोई बढ़ता है तो प्रकृति का नियम है कि उसका साथ देने वालों की कमी नहीं होती। मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर,लोग साथ आते गये और कारवां बनता गया। अकेले मोहनदास करमचंद गांधी ने प्रयास किया और पूरे भारत को ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ खड़ा कर दिया। अकेले के साथ का इससे बड़ा कोई अन्य उदाहरण आवश्यक ही नहीं। अकेलेपन की स्थिति बहुत निराशाजनक होती है। ऐसे में जो व्यक्ति  उस निराशा से बाहर आ जाता है,चल पड़ता है लक्ष्य की ओर,उसको अनेक साथी मिलने में देरी नहीं लगती।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
अकेलापन एक अहसास है. इस अहसास को सकारात्मक रूप से महसूस किया जाए, तो वह एकांतवास हो जाता है, जो अतिरिक्त ऊर्जा का स्त्रोत बन जाता है. इसी अकेलेपन को नकारात्मकता से देखा जाए, तो यह तनाव, बीमारी और आत्महत्या तक पहुंच जाता है. समय आज का हो या कल का व्यक्ति खुद ही अपने अकेलेपन का साथी होता है. अगर वह खुद ही अपने अकेलेपन का साथी है, तो भगवान भी उसका साथ देता है. हम चाहें तो अकेलेपन में अनेक साथी भी बन जाते हैं,  जो समय पड़ने पर एक दूसरे का साथ भी देते हैं. इस प्रकार अकेलापन एक वरदान बन जाता है. अकेलेपन के अहसास को सकारात्मकता से जीकर वर्तमान का आनंद लिया जा सकता है.
- लीला तिवानी 
दिल्ली
आज के समय में अकेले का साथ आपका फोकस और आपका क्रिएटिव होगा।  क्रिएटिव में जैसे:--लिखना पढ़ना, पेंटिंग, म्यूजिक, घर की सजावट इत्यादि करके अपना समय व्यतीत कर सकते हैं। लेकिन मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। यूं कहें सोशल एनिमल यानी वह अकेले जिंदगी बसर नहीं कर सकता है। लोगों के साथ घुलना मिलना उनके साथ समय बिताना पार्टी करना और मिलजुल कर जश्न मनाना हमारी फितरत भी है, और जरूरत भी है।
इसके विपरीत कोई अकेले रहता है तो इसे एक बड़ी परेशानी समझा जा सकता है। अकेलापन एक तरह खतरनाक बीमारी है इससे हर कीमत पर बचना चाहिए।
अकेलेपन से निपटने के लिए मनोवैज्ञानिक से संपर्क करके दूर करना चाहिए।
लेखक का विचार:--अकेलापन से अच्छा है कि आप गिने-चुने दोस्त बनाए उनके साथ क्वालिटी टाइम बिताएं , खुद पर फोकस करें चिंतन -मनन  करें और तालमेल बनाए आपके लिए सबसे ज्यादा अच्छा साबित होगा।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
जब तक इंसान के पास सब कुछ रहता है और उसके साथ देने वाला कोई हो तो सभी उसके साथ लगे रहते हैं वरना आज के समय में  कोई किसी का साथ नहीं देता और फिर अकेले का तो और भी मुश्किल। यह दुनिया भेड़ की चाल जैसी है जहां सब चले जिस तरह को चले उसी तरफ हो जाती है, कई बार नासमझी में और कई बार स्वार्थपरस्ती में। अकेले का साथ बहुत कम नहीं के बराबर लोग ही देते हैं चाहे वह इंसान कितना ही समझदार, ज्ञानवान तथा दूरंगामी क्यों ना हो। कुछ लोग लकीर के फकीर होते हैं जो अपना ही राग अलापते हैं। वास्तविकता यह है कि अकेले का साथ देना कोई नहीं चाहता या यूं कहें कि किसी से कोई बुराई मोल लेना नहीं चाहता कारण वही स्वार्थपरता और यह स्वार्थपरता किसी भी तरह की हो सकती है दैहिक, दैविक या भौतिक
- गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
       मैं अपने अकेलेपन की सौगंध खाकर कहता हूं कि जो कुछ भी कहुंगा "सच" कहूंगा और सच के सिवा कुछ नहीं कहूंगा क्योंकि कड़वा सच यह है कि आज के समय में अकेले का साथ मात्र "ईश्वर" देते हैं।
       चूंकि ईश्वर प्रकृति में वास करते हैं और प्रकृति अकेलेपन को उस समय हरा-भरा कर देती है जब जीवन के कठिन व असंभव कार्य सरल व संभव हो जाते हैं। दूरियां नजदीकियों में परिवर्तित हो जाती हैं और जीवन की खोई हुई प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त हो जाती है।
       उल्लेखनीय है कि अकेलापन "शोधकार्यों" के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। दूसरे शब्दों में इसे तप और तपस्या की संज्ञा भी दी जाती है। जिसका चुनिंदा लोग सदुपयोग करते हुए ऐसी-ऐसी सिद्धियां प्राप्त करने में सक्षम हो जाते हैं जिन्हें ग्रंथों में भी दुर्लभ माना गया है।
       वैसे भी वर्तमान समय कलयुग है। जिसमें तुरंत फल की प्राप्ति होती है। अतः आज के समय में अकेलेपन का साथ ढूंढने से अच्छा है कि अपने सुकर्मों का फैलाव इतना बढ़ाया जाए कि दूर भागने वाले पास आने को तड़पें।
- इन्दु भूषण बाली
जम्म् - जम्म् कश्मीर
जब से संयुक्त परिवारों का विघटन हुआ है एकल जीवन की शुरुआत हो गई है। बदलते जमाने के साथ साथ लोगों का रहन सहन भी बदल गया है ।जीवन जीने का तरीका बदल गया है ,यदि कोई व्यक्ति  एकल जीवन जी रहा है तो उसके पीछे दो ही वजह हो सकती है -अपनी खुशी से या मजबूरी से ।आजकल अपनी खुशी से अकेले रहने का भी रिवाज बन चुका है ,अन्य का प्रभाव या दबाव अच्छा नहीं लगता । कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पढ़ाई इत्यादि या नौकरी के कारण अकेले रहते हैं लेकिन इस कारण के पीछे एक सक्षम आधार होता है ,पढ़ाई अथवा नौकरी लक्ष्य निर्धारित रहता है। 
 किन्ही कारणों से निराशा पूर्ण जीवन जीने वाले लोग अकेले जीवन जीने को विवश होते हैं ।कई बार उनकी निराशा नकारात्मकता में बदल जाती है ,जो हानिकारक सिद्ध भी होती है ऐसे व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार भी हो जाते हैं और जिंदगी के खिलाफ कुछ भी कदम उठा लेते हैं। 
जो लोग अपनी मर्जी से अकेला रहना पसंद करते हैं उनमें कुछ बुनियादी गुण होते हैं जिनके आधार पर उन्हें अकेला रहना अच्छा लगता है।  ऐसे लोग आत्मविश्वास से भरे होते हैं और अपने आप को संपूर्ण मानते हैं भावनात्मक रूप से मजबूत होते हैं समझ समझ कर कदम रखते हैं खुले विचारों के धनी होते हैं आत्मनिर्भरता का गुण इन में सर्वोपरि रहता है।  यही  बुनियादी गुण इनका सबसे बड़ा सहारा बनते हैं। 
- शीला सिंह 
बिलासपुर -  हिमाचल प्रदेश
आज के समय में अकेले का  साथ कौन देता है? 
बात पढ़ने में समझने ठीक तो लगती है लेकिन जचती नहीं है।  कारण इसका एक नहीं अनेक हैं।  जैसे जब नया इंसान / या जीवन सृजित होता है। तो सब आस पास मिलने देखने बधाई देने वेलकम करने स्वागत करने को आते हैं। 
दूसरे भाव में देखिये जब इंसान अकेला देह छोड़ने या छोड़ देता है तो सब घेर लेते हैं।  कोशिश करके मदद करते है नहीं बात बनती तो अस्पताल ले जाते हैं।  वहां डॉ भी स्टाफ भी घेर लेते हैं  बंदा सेव हो / बचना चाहिए।  अर्थात आप दूसरे  देखिये मैं जब जब अकेला होता हूँ तो तुरंत सुबह सुबह बिजेन्दर जी का msg आ जाता है , भाई आज की चर्चा का विषय समय शाम ५ बजे तक कोई टंकण त्रुटि न हो चर्चा संक्षिप्त हो लंबी  हो।  
अब बताइये मैं अकेला हो ही नहीं पाता।  उनकी चर्चा का विषय इतना विशद होता है सारा दिन खोज करने बाद ये लिख पाता हूँ कुछ लाइन्स।  
 और देखिये साहिब / साहिबा जी सुबह , सुबह msg आने लगते है जय राम जय भोले जय माता जी , कसम से सोच कर  भी  अकेला अरे ना रे ना ---- 
आज कल अकेला रहना कितना दिक्कत का काम है
कोई मुझे कह रहा था की मैं बहुत अकेला/अकेली  हूँ जब से बच्चे विदेश गए या व्याहे गए - पति / पत्नी अपने प्रभु के चरणों में  . तो मैं उनको बोला दिल्ली आजाओ - बस इतना कहना था उनका तो शब्द भंडार खुल गया। और तो और एक बात उनकी मुझे बहुत अच्छी लगी के - दोपहर जब घर के काम ख़त्म हो लेते हैं तो पड़ोसी / पड़ोस / वेहड़े में मँझी डाल के  आवाज देती ऊंचे से जिस से सब सुन लें - आ भेंन [ बहन ] लड़िये हह  .....  
अरे भाई साहब - अरे भाई साहब मरने की फुर्सत नहीं है तुम दिल्ली आने को बोलते हो मेरे बिना मेरी हरी भरी बगिया सूख जाएगी।  गाय तो बेचारी भूखी मर जाएगी , और मेरा टोबी उसे खाना कौन देगा कौन उसके साथ खेलेगा अरे राम भाई साहब आप आजाओ  दो चार दिन देखना कितना / कितनी व्यस्त हूँ कसम से।  मुझे बड़ा मजा आया सुन के उनकी वाणी। आप भी आनंद लो एक अकेले / अकेली की ये सच्ची कहानी।  
- डॉ. अरुण कुमार शास्त्री
दिल्ली
         मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वो अकेले जिंदगी बसर नहीं कर सकता। लोगों से मिलना जुलना, उनके साथ समय बिताना मनुष्य की प्रवृति और जरूरत है। 
          लेकिन आज मनुष्य आगे निकलने की होड़ में इतना व्यस्त है कि उस के पास तो खुद के खाने पीने, सोने जगाने का समय नहीं है। इस आपाधापी में मनुष्य रोबेट की भांति हो गया है। एक संवेदनहीन प्रवृति का मालिक ।ऐसे मनुष्य से हम कैसे उमीद कर सकते हैं कि वो अकेले का साथ देगा। 
        मनुष्य सामाजिक प्राणी है। इस लिए उसे अकेले लोगों का साथ देना चाहिए जो किसी कारणवश जिंदगी में अकेले रह गए हैं। उन से मिलकर दुख सुख बांटना चाहिए। हमारे बढ़े बूढ़े तो कहते थे कि हे भगवान ! कोई रुख (पेड़)भी अकेला न हो।अकेले रहने से मनुष्य मानसिक रोगी हो जाता है जो समाज का हित नहीं कर सकता। 
      हमें अकेले लोगों का साथ जरूर देना चाहिए ।दिन त्योहारों पर उन के साथ समय बतीत करना चाहिए ।यह बात भी सच है कि आज की आपाधापी की जिंदगी ने सामाजिक ताने-बाने को उलझा दिया है। लोग अकेले का साथ देने की बजाय फेसबुक और वटसअप पर समय लगाना पसंद करते हैं। मनुष्य खुद में ही सिमट कर रह गया है। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
      जीवन में अकेलापन कई तरहों के होते हैं, उस समय अकेलापन महसूस होता जब सभी तरह-तरह की परेशानियों का सामना करते-करते  अनंत: अपने ही जन मुंह मोड़ लेते हैं। सांसारिक सुखों का परिणाम पारिवारिक, समसामयिक, रचनात्मक कार्यों में प्रायः देखने को मिलता हैं, जिसका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से उदाहरण परिदृश्यों में देखिए अधिकांशतः? यह जनतान्त्रिक व्यवस्थाओं का जहाँ स्वार्थों के बिना कोई भी किसी भी तरह की  विफलताओं का सामना करना पड़ रहा हैं, वहां किसी के त्याग और बलिदान को नहीं देखा जाता हैं, मात्र औपचारिकता पूरी कर दिखाने का प्रयास किया जाता हैं। अनेकों आश्रमों में  आश्रय लिया जाता हैं, परंतु वहां भी दिखावटी सहानुभूति के तौर-तरीकों को उजागर करते हुए, फोटो, समाचार,चैनलों में सिमटकर रह जाते हैं। क्या अकेलापन का अहसास यह संस्थाएँ पूरी कर सकती हैं, फिर मर्यादा विहिन होकर जीवन यापन करने पर मजबूर हो जाता हैं। फिर वही कहावतें चरित्रार्थ हो जाती हैं,  अकेला आया था, अकेला चला गया?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
वैसे तो मनुष्य सामाजिक प्राणी है समाज में रहता है सबके साथ रहना भी जरूरी होता है। लेकिन ऐसा भी कहा गया है कि अकेले आए अकेले जाना है तो जब कभी मानव एकांकी होता है अकेला होता है तो उसका आत्मबल आत्मिक शक्ति ही उससमय अकेले का साथ देती है।
- पदमा तिवारी 
दमोह - मध्यप्रदेश
          वैसे तो लोग भीड़ का ही साथ देते हैं। अकेले का साथ कोई नहीं देता है। उसी अकेले का साथ लोग देते हैं जो समर्थवान हो, पैसे वाला हो, जिससे कुछ मिलने की आशा हो। पहले तो लोग पीछे ही हटेंगें लेकिन उन्हें जब लगेगा कि साथ देने से उनका भी कुछ फायदा होना है तब वह साथ देते है। अकेले चलने वाले  व्यक्ति का साथ अकेले चलने वाला भी दे सकता है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।वह लोगों से मिलजुल कर रहना चाहता है।अपनों के बिना या समाज से विलग वह मानसिक रोगी हो जाता है।इसके विपरीत कुछ मनुष्य हैं जिन्हें अकेलापन पसंद है,वे भीड़ -भाड़ में सहज नहीं होते।लोगों से मिलने जुलने से कतराते हैं।आज बहुत से लोग ऐसे हैं जो अकेले रहना पसंद करते हैं।
अंर्मुखी व्यक्ति अधिकांशत: अपने आप में ही खोए रहते हैं।ऐसे व्यक्ति कभी पेंटिंग तो कभी गायन ,वादन,पठन,लिखना,या अपने शौक़ को पूरा करने में लगे रहते हैं।लेकिन कहते हैं ना-“अकेले चना भाड़ नहीं फोड़ सकता”कोई बड़ा कार्य नहीं कर सकता।ऐसी परिस्थिति में अकेले का साथी अपनी सूझ -बूझ,बुद्धि ,विवेक ही अकेलापन का साथी होता है।कई बार जानवरों में भी देखा गया है कि अकेले मुसीबत से निकलने में वे अपनी बुद्धि का इस्तेमाल कर अपने शावकों को गड्डे से बाहर निकाल लेते हैं।
आज के समय में जब आपके अपने भी मुख मोड़ लेते हैं।उस वक्त अकेले का साथी आपकी जमा -पूँजी ,आपके अच्छे कर्म ,भाग्य और हौसला साथ देता है।
- सविता गुप्ता
राँची - झारखंड
विज्ञान के युग का करिश्मा इंटरनेट-युक्त मोबाइल फोन अकेले का साथ देने में पूर्ण सक्षम है। इसके अतिरिक्त अपनी रुचि की पुस्तकें उन सभी अकेले लोगों का साथ देने में सक्षम हैं जो पुस्तकें पढ़ने में रुचि रखते हैं। हां, सामाजिक ताने-बाने में रहते हुए जब हमारा कोई प्रिय हमसे दूर चला जाता है या सदा के लिए बिछुड़ जाता है तो भी अन्य लोगों के होते हुए भी अकेलेपन का एहसास होता है। सामान्य अवस्था में लौटने में समय लगता है और इस दौरान ऐसी रुचियां मददगार साबित होती हैं।
- सुदर्शन खन्ना 
 दिल्ली 
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है! वह समूह में रहना पसंद करता है ! किंतु आज उसने अपनी जीवनशैली ही बदल ली है ! आज इस विकसित समय में देखा जाये तो सभी भावनात्मक दृष्टिकोण से सभी अकेले हो गए हैं ! किसी को किसी की पड़ी ही नहीं है ! जरुरत पड़ने पर वह उनके संपर्क में रहता है अथवा रिश्तों में बंधता है ! आज डिजी़टल का जमाना है !मोबाइल ही उसके अकेलेपन का साथी बन गया है ! सारे रिश्ते नाते उसे करीब लगने लगे हैं ! उसके सारे काम वह मोबाइल से बैठे बैठे कर लेता है ! माना मोबाइल से दुनिया मुट्ठी में है किंतु हम समाज से कटते जा रहे हैं और अकेले हो गये हैं !  अहम और अहंकार में डूब हम सोचने लगते हैं कि मैं अकेला सब कर सकता हूं मुझे किसी की जरुरत नहीं !ये सच है कभी कभी अकेले रहना हमें अच्छा लगता है !हमे सोचने विचारने का अथवा मौन रहना अच्छा लगता है ! किंतु यदि अकेले रहकर नकारात्मक विचार 
आते है तो हमें ऐसा लगता है कि हमसे कुछ छूट रहा है किंतु यदि सकारात्मक विचार पनपते हैं तो हम अकेले रहकर भी समाज से जुड़े रहते हैं ! अहं ,अहंकार का त्यागकर दें तो अकेले रहकर भी हम ईश्वर से जुड़ जाते हैं ! 
           - चंद्रिका व्यास
          मुंबई - महाराष्ट्र
जी बिलकुल सही है। आज के समय में अकेले का साथ अच्छा और सच्चा इंसान देता है। कारण हमारा समाज सच्चे और इंसान को पसंद नहीं किया जाता है। उसे अकेले यह कहकर छोड़ दिया जाता है कि वह आज के दौर में वह फिट नहीं है। वह किसी काबिल नहीं है। 
  ऐसे व्यक्ति का साथ दिया जाना चाहिए। उसका सहयोग किया जाना चाहिए। 
  - डाॅ•मधुकर राव लारोकर 
   दुर्ग - छत्तीसगढ़
'अकेले'–
बिना शादी किये जीवन व्यतीत करना
विवाहित जोड़ी में से किसी एक का जीवित होना
अपने अहंकार के कारण हो जाना
बिना शादी किये जीवन व्यतीत करना..
अपने शर्तों पर जीने वालों को दूसरे का प्रवेश स्वीकार ही नहीं तो तो उन्हें क्या फर्क पड़ता है कि उनका कोई साथ दे रहा है या नहीं दे रहा..।
विवाहित जोड़ी में से किसी एक का जीवित होना
पास में धन नहीं है तो कोई साथ देने वाला नहीं होता है। अगर धन है साथ देने वाले अनेक आस-पास में होते हैं...। निःस्वार्थ सहायता करने वाले विरले होते हैं। अपवाद तो सब जगह मिल जाता है।
तकनीकी समृद्धि ने कहीं ना कहीं अकेले रहना सीखा दिया है..
वैसे पूरी तरह यह भी सत्य नहीं है..। अपने विचारों के अनुरूप भीड़ सभी जगहों पर एकत्रित कर लिया जाता है।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
ताल्लुक कौन रखता है किसी अकेले से
           लेकिन
मिले जो कामयाबी तो सारे रिश्ते बोल पड़ते हैं
अकेले की एबों पर चर्चा हो तो गूंगे भी
           बोल पड़ते हैं l
आज के जमाने में अकेले का साथ कोई नहीं देता है l अकेले व्यक्ति के लिए जीवन एक समझौता मात्र बनकर रह जाता हैl
व्यक्ति अकेला क्यों पड जाता है? इसके पीछे मुख्य कारण व्यक्ति का भ्रांत अहंकार, अहम है l
  इस दुनियाँ का सारा कारोबार एकदूसरे को समझने व सहन करने की नींव पर खड़ा है l अकेले व्यक्ति को दूसरों को समझने की कोशिश करनी होगी l उनके दृष्टिकोण और परिस्थितियों की भिन्नता को स्वीकार करना होगा इसके विपरीत यदि हम अड़ियल और जिद्दी बनकर अपने ही मन की श्रेष्ठता का प्रतिपादन करते रहेंगे तो कुछ ही दिन में अपने को अकेला और किसी के साथ के अभाव में सफलता के इर्द गिर्द पायेंगे l
जीवन एक समझौता है l सिर उठाकर चलने में सिर कटने का खतरा है l जो पेड़ खड़े रहते हैं वे ही आंधी तूफान में उखड़ते देखें गये हैं और वर्तमान समय में अकेलापन हमारे लिए अभिशाप बन गया है l साथ देने की बात तो दीगर (अलग )है l याद रहे-मस्तिष्क में बुद्धि और हृदय में भावना होती है l दोनों को साधने से हमारी अनुदारता, संकीर्णता, निर्दयता, स्वार्थपरता पर अंकुश लगेगा और दूसरों के सुख दुःख परिलक्षित होने लगेंगे l ऐसे में हम
अकेले नहीं है इसलिए आपका साथ देने को आतुर हैं l
    --------चलते चलते
जीवन एक समझौता है और जीना भी है अतः --
चल अकेला, चल अकेला
 तेरा मेला मेला पीछे छूटा
राही चल अकेला
तेरा कोई साथ न दे तो, तू खुद से प्रीत जोड़ ले
बिछौना धरती को करके अरे आकाश ओढ़ ले
यहाँ पूरा खेल अभी जीवन का तूने कहाँ है खेला l
     - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर-  राजस्थान
आज के समय में अकेले का दिल सेसाथ देनेवाले बहुत कम हैं ....ये अलग बात है साथ देने का उपक्रम करनेवाले असंख्य मिल जाते हैं
अकेला व्यक्ति यदि आर्थिक रूप से सशक्त हो तो उसका साथ देनेवाले इसप्रकार भीड़ की तरह उमड़ते हैं जैसे गुड़ के ऊपर मक्खियां
अकेला व्यक्ति यदि आर्थिक रूप सेकमज़ोर है तो कोई उसका साथ नहीं देता बेशक वह बुध व कौशल से परिपूर्ण हो
योग्य अकेले व्यक्ति का साथ केवल और केवल वह व्यक्ति देता है जो हर हाल मैं दिल से उसका हितचिंतक हो या हितैषी हो
नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
आज के समय अकेले का साथ बेहद ही कम लोग देते है।जहा लोग आज बेहद जरूरी होते है अपने रिश्ते निभाने के लिए वही साथ कोई नही देते हैं जब हम अकेले होते हैं तब बेहद कमजोर महूसस करते है पंरतु जब किसी का साथ होता है तो हम खुद को मुश्किलों से निकाल लेते हैं आज के समय मे अकेले का साथ कोई नही देता पर कुछ लोग जो अपनी भावनाओं को जीवित रखते है।वो लोग साथ अवश्य देते है जो भाव लोक के प्राणी है आपके विपरीत परिस्थितियों में भी आपके साथ खड़े होकर आपका हौसला बढ़ाने मे आपकी सहायता करते हैं।जीवन के हर मोड़ पर अपनी भुमिका निभाते है हम खुद को जब अकेले महूसस करते है तब अपने कुछ खास होते हैं जो साथ देते है।इस संसार मे सब अपने बारे मे सोचते है जिंदगी के रूप मे हम हमेशा आगे बढ़ने की कोशिश करते तब अपने जो भावात्मक रूप से जुड़े हैं वो हमारा साथ देते हैं।जिंदगी के हर पहलुओं मे वो व्यक्ति हमारा साथ देते है जो दिल से हमारे लिए सोचते है और साथ देते हैं वो अकेले में हमेशा साथ देते हैं।हम  अपने परिवार पर विश्वास करते है वह ही हमारी तकलीफों मे साथ देते हैं।परिवार मे विश्वास ही नीवों को लेकर चलते हैं और अकेले का साथ देते हैं।जीवन की हर मुश्किलों मे मात पिता ही जो हमारा साथ पूणर्तः रूप से देते है।जीवन की हर मुश्किलों मे हमारे मात पिता ही हमारी दुखों मे हमारी तकलीफों मे साथ देते यह वह वटवृक्ष है जो सैदव उपकार और छाया ही देते है जीवन के रंग हर रंग  होने पर हमारे साथ खड़े होते हैं जीवन की हर परिस्थितियों मे मे हमारे अकेले होने पर हमारा साथ देते है ।जिंदगी के गतिविधियों मे वो ही हमारे साथ होते है ।अकेले का साथ कुछ लोग ही देते है जो समय पर हमेशा लाभप्रद होता है  आज के समय मे सिर्फ अपने ही हैं जो अकेले का साथ देते हैं
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
अकेलापन एक ऐसी भावना है जिसमें लोग बहुत तीव्रता से खालीपन और एकांत का अनुभव करते हैं ।
ऐसे में अजीब से खयालात आते हैं ,ऐसे लोग आत्महत्या ,शादी न करना, किसी भी तरह की खुशी ना मनाना और सादगी जीवन, को अपनाने को सोचते हैं ,और धीरे-धीरे डिप्रेशन में चले जाते हैं।
 अकेले व्यक्ति  को मजबूत पारस्परिक संबंधों की जरूरत होती है ,क्योंकि अकेलापन बहुत खतरनाक होता है ।
ऐसे लोगों से दोस्ती कर उनका मनोबल बढ़ाना चाहिए ।
उनके रिश्तेदार चाहे वह दूर के ही हों ,उनको भी ऐसे लोगों को घुलमिल कर रखना चाहिए। जिससे उन्हें भावनात्मक सहारा मिलेगा ।
इसके साथ ही अकेले व्यक्तियों को पालतू जानवर ,पंछी पालने चाहिए ।फूल पौधे लगाने चाहिए, साहित्य और संगीत से मित्रता करनी चाहिए ।
यह सभी अकेलेपन के सच्चे साथी साबित होंगें जो अकेले व्यक्तियों को भावनात्मक रूप से मजबूती प्रदान करेंगे ।
- सुषमा दिक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
भीड़ में भी रहकर बहुत अकेले हैं और अकेले होकर भी बहुत के साथ हैं यह दो बात निर्भर करती है व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन स्वभाव के ऊपर।
अकेले को साथ देने वाले बहुत मिलते हैं यदि आप आर्थिक तौर पर बहुत मजबूत हैं तो आपके इर्द-गिर्द बहुत मित्रगण हमेशा इकट्ठा रहेंगे लेकिन यदि आप आर्थिक तौर पर कमजोर हैं और आप में व्यवहारिक ता भी नहीं है तो समझ गए कि बिल्कुल ही आप अकेले हैं इस अकेलापन को दूर करने के लिए खुद का खुद से सहारा बनना पड़ेगा दूसरों से उम्मीद करना कम करिए अगर अपने आप खुद को उस लायक खड़ा कर लेंगे तो आप कभी अकेले नहीं होंगे अकेले का साथ देने वाला यदि पढ़ा लिखा इंसान है तो सबसे अच्छा साथी कलम किताब और पेंसिल है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
आज के समय में अकेले का साथ कौन देता है?
 देखिए! व्यक्ति अकेला कई कारणों से होता है। कई बार अकेला व्यक्ति अपने ज्ञान के कारण होता है उसे ज्यादा शोर में रहना पसंद नहीं होता और कई बार पारिवारिक परिस्थितियों के कारण अकेला होता है और अनेक कारण हैं अकेले रहने के। जब व्यक्ति को अकेला रहना ही पसंद है तो अकेले व्यक्ति का किसी को साथ देना वह कोई मायने नहीं रखता क्योंकि वह इतनी ऊंचाई और गहराई तक पहुंचा होता है कि कोई साथ दे तो अच्छा कोई साथ न दे तो भी अच्छा..। अकेले व्यक्ति के साथ के लिए यह प्रकृति की हर वस्तु है.. पेड़ है, पंछी हैं, झरने हैं, समुंदर है, नदियां हैं, सागर है क्या नहीं है अकेले व्यक्ति के लिए.. अकेले व्यक्ति की एक अपनी ही अलग दुनिया होती है जिसके आनंद में वह जीता है।
- संतोष गर्ग
मोहाली - चंडीगढ़
"जब जिन्दगी का सफर अकेले ही तय करना है
तो क्युं मांगू दो पल साथ 
जिन्दगी का "
 अाजकल अकेले पन का दौर ही गुजर रहा है, हरेक  अपने अपने कार्य मैं व्यस्त है, किसी के पास भी इतना  समय नहीं की कोई किसी का हाल चाल पूछ सके, सब चलते चलतेे ही तब तक ही हाल चाल पूछते हैं जब तक आप चल रहे हो, 
बस जब आपके हाथ पांव कार्य करना बन्द कर देंगे तो कोई भी आपको नहीं पूछेगा  , 
यहां तक आप के करीब सै करीब  रिस्तेदार भी आप से मुहं मोड़ लेते हैं, 
तो आईये आज यही चर्चा करते हैं कि आज के समय में अकेले का साथ कौन देता है, 
मेरा मानना है  आजकल अकेले का साथ कोई नहीं देता, सिर्फ हम भगवान को साक्षी मान कर अपना समय निकाल सकते हैं, 
दुसरा अगर हमारे संस्कार अच्छे हैं हमारी बोलचाल  व रहन सहन अच्छा है तो हम वैगानों को भी अपना बना सकते हैं, 
सच कहते हैं एक अकेला सौ का मेला यह तभी मुमकिन हो सकता है जब हम चरित्रवान व सहनशीलता सेअकेले  भी जी रहे हैं तो फिर भी कोई न कोई आपको सहारा मिल सकता है वर्ना  अगर हम अकेले भी हैं और हुक्म भी चलाते हैं तो आप का कोई साथ नहीं देगा, 
आखिरकार यही कहुंगा की अकेले व्यक्ति की वुद्दी ही सा़थ दे सकती है और वो अपनी  बुद्दी से ही अपना समय निकाल सकता है अकेले मानव को देखना है की वो कैसे अपनी बातचीत से सभी को अपना बना सकता है अगर ऐसा इल्म आप में है तो आप अकेले होते हुए भी सभी के चेहते बन सकते हो वर्ना आज के जमाने में अकेले के केई नहीं पू़छता चाहे आप ज्तने मर्जी भी धनबान क्यों न हों
आप को अपनी जुवां के धनबान बनना पड़ेगा वरना आप अकेले ही रह जाओगे, 
 सच कहा है, 
"जिन्दगी के सफर में हर वक्त
हमसफर नहीं मिलते हैं, 
कुछ सफर अकेले ही तय करने  पड़ते है"। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू  कश्मीर

" मेरी दृष्टि में " अकेलें रहना भी एक कला है । जो भारतीय सन्यासियों में देखी जाती है । जिससे बहुत कुछ सिखा जा सकता है ।  जंगल व पर्वतों में आज भी अकेलें सन्यासी देखे जाते हैं ।
- बीजेन्द्र जैमिनी

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