क्या संवाद के बिना कोई समस्या हल हो सकती है ?
संवाद बहुत सुन्दर प्रयास होता है । जो बड़ी से बड़ी समस्या हल करने में सहायक है । यहीं संवाद की सबसे बड़ी सफलता है । जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
जब समस्या दो या उससे अधिक के बीच की अथवा उससे जुड़ी होती है तो समाधान हेतु आपस में संवाद आवश्यक होता है । किन्तु यदि समस्या व्यक्तिगत होती है तो समाधान हेतु स्वयं से संवाद किया जा सकता है किन्तु दूसरे से आवश्यक नहीं होता ।
- पूनम झा
कोटा - राजस्थान
सारी दुनिया का इतिहास बतलाता है कि बहुत सी समस्याओं का हल समय-समय पर जनता ने,दलों ने,राजनेताओं आदि ने, हिंसा या उग्रता से ढूंढने का प्रयास भी किया लेकिन असफलता मिली।कोई स्थाई हल नहीं ढूंढा जा सका।समस्याओं के हल के लिए दो देश आपस में विनाशक हथियारों के प्रयोग करते हैं, बहुत जन-धन की हानि भी होती है लेकिन अनन्तः उन्हें बात-चीत या संवाद ही करना होता है ।हाल ही में रूस से अलग हुए दो देशों अजरबैजान व आर्मेनिया के बीच भी यही देखने को मिला।अपार जन-धन की हानि के बाद उन्हें संवाद की ओर आना पड़ा। समस्याओं का हल आपस में बैठकर बातचीत या संवाद स्थापित करने से ही निकलता है ।
- डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
दतिया - मध्यप्रदेश
मानव समाज में संवाद शांति स्थापना और समृद्धि की पहली सीढ़ी मानी गई है। किसी भी परिस्थिति में दूसरे पक्ष से संवाद बनाए रखना ही लोकतंत्र का प्राण है और हर समस्या के समाधान का अचूक हथियार है।
किसी भी समस्या के हल यानी निवारण हेतु दोनों पक्षों में संवाद का होना अति आवश्यक है। कभी-कभी पूर्ण जानकारी के अभाव में गलतफहमियों के शिकार होने के कारण भी नाराजगी दिखाई देती है। ऐसे हालात में आपसी चर्चा यानी संवाद के माध्यम से विवाद को सुलझा लिया जाना ही बेहतर विकल्प है।
आंदोलन कर सरकारी संपत्तियों का नुकसान करना या आवागमन के साधनों को रोक कर आम जनता को परेशानियों में डालना बुद्धिमानी नहीं है।
कभी-कभी पूर्वाग्रह से ग्रसित होने पर संवाद भी विफल हो जाता है पर उसे सफल करने हेतु पूर्वाग्रह का निराकरण जरूरी है।
मेरे विचार से आंदोलन समस्या का हल नहीं संवाद से हर समस्या का हल यानी समाधान संभव है।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
किसी भी समस्या का हल अंततः संवाद ही है।
परन्तु विसंगति यही है कि संवाद प्रथम चरण पर नहीं होता। यदि एक पक्ष प्रारम्भ में संवाद करना भी चाहे तो दूसरा पक्ष इसके लिए तैयार नहीं होता। एक लम्बे संघर्ष के पश्चात संवाद की स्थिति आती है परन्तु तब तक दोनों पक्षों को बहुत कुछ झेलना पड़ जाता है, और दोनों पक्षों को ही नुकसान उठाना पड़ता है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि दो में से एक पक्ष गलत होता है और अक्सर देखा जाता है कि गलत पक्ष ही संवाद को टालता रहता है। इससे सही पक्ष को बिना किसी गलती के शारीरिक और मानसिक पीड़ा से सामना करना पड़ता है।
मसला चाहे परिवार, पड़ोस, समाज अथवा राष्ट्र का हो, संवादहीनता सदैव घातक होती है। यह भी सही है कि संवादहीनता की स्थिति किसी एक पक्ष की जिद, स्वार्थ और दूसरे की पीड़ा को ना समझने से जान-बूझकर उत्पन्न की जाती है।
इतिहास में भी और हमारे आसपास भी अनेक ऐसे उदाहरण हैं जब समस्या के विकट रूप धारण करने तक संवादहीनता कायम रहती है और जब दोनों पक्ष बेवजह की बहुत हानि सह लेते हैं तब समस्या को समाप्त करने के लिए संवाद करते हैं। काश यह संवाद प्रारम्भिक चरण में ही हो जाये तो दुनिया तमाशा न देखे और दोनों ही पक्ष बेवजह के नुकसान से बच सकते हैं।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
कुछ कहना और कुछ सुनना हमारे लोकतंत्र का प्राण है और यही प्राण शक्ति किसी भी परिस्थिति में दूसरे पक्ष से संवाद बनाये रखने की परम्परा बन गई है l हर समस्या के समाधान का अचूक हथियार है l वे सभी जीवन कौशल जिन्हें सिखाने का प्रयास परिवार, समाज और शिक्षा करते हैं उसमें संवाद का महत्त्व हमेशा स्वीकारा गया है l
संवाद कई अवसरों पर पूर्वाग्रह /संक्रमित होते हैं तो उनके सार्थक /अपेक्षित परिणाम नहीं निकलते हैं l
संवाद परम्परा का उदाहरण गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन संवाद, महाभारत में श्रीकृष्ण का पांडवों का दूत बनकर जाना, शंकराचार्य और मण्डन मिश्र का शास्त्रार्थ, श्रीराम का अंगद को दूत बनाकर रावण के दरबार में भेजना शांति के लिए किये गये प्रयास हैं जो संवाद में गहरी निष्ठा को रेखांकित करते हैं l
लेकिन जैसे जैसे मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं का ह्रास जीवन के हर क्षेत्र में बढा है इसका प्रतिकूल प्रभाव इन परम्परागत संस्थाओं पर पड़ना ही था लेकिन हम यह न भूलें की संवाद के द्वारा समस्या समाधान, नीति निर्धारण व्यवस्था संशोधन जैसे कार्य आज संवाद के द्वारा ही संभव हो रहें हैंl
मानव समाज में संवाद शांति स्थापना की पहली सीढ़ी है जो अविश्वास, हिंसा और युद्ध से मुक्ति पाने की ओर सार्थक पहला कदम साबित हो सकता है l
वैदिक दर्शन में भी प्रश्न और तर्क को देवता कहा गया है l अंत में कहना चाहूँगी कि सर्वानुमति का अपना अलग ही आनंद है जिसका रास्ता संवाद ही है l
---------चलते चलते
दुनियाँ में वही शख्स है ताजीम के काबिल l
जिसने जरिये संवाद हालाते रुख मोड़ दिया हो ll
- डॉo छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
_ संक्षेप सा उत्तर है नहीं। बिना संभाषण के ,बिना बोले ,बिना सहमति असहमति के समस्या का निदान संभव नहीं है।
समस्या किसकी है, क्या है,क्यों है,समस्या है भी या नहीं, यह तो पहले तय करना होगा। इसमें दो या अधिक लोग हो सकते हैं। उन सभी का मत हम संवाद करने पर ही समझ सकते हैं।
फिर समस्याग्रस्त व्यक्तियों से आपसी विचार विमर्श किया जायेगा। समस्या के निदान हेतु कुछ सुझाव व्यक्त किये जायेंगे। उन सुझावों पर विचार और चिंतन होगा। फिर सहमति या असहमति बनेगी।और बहुमत के आधार पर समस्या का निदान संभव हो पायेगा।
इन सभी बातों के लिए संवाद का होना अत्यावश्यक है। अन्यथा समस्या जस की तस बनी रहेगी।
- डाॅ•मधुकर राव लारोकर
नागपुर - महाराष्ट्र
किसी समस्या के हल के लिए बहुत सी बातों पर ध्यान रखनी होती हैं। अगर समस्या विवाद का है तो संवाद से किस हद तक दूर किया जा सकता है यह दोनों पक्ष के कोशिश पर निर्भर करता है।
एक शिक्षित और उसके साथ संवाद कर रहे अनपढ़ की भाषा में अन्तर साफ-साफ दृष्टिगोचर होता। कभी-कभी एक पक्ष अपने अहम की संतुष्टि के लिए विवाद को खत्म करना ही नहीं चाहता है। उसके संवाद में स्वाभाविकता नहीं हो पाती है जो होनी चाहिए। उन पात्रों की अपनी स्थिति, संस्कार आदि को ध्यान में रखकर जो बोलना चाहिए वे नहीं बोलते हैं बल्कि उनके द्वारा बोले संवाद में अधिक व्यंग्य होने से समस्या और बढ़ जाती है।
समस्या के हल हेतु संवाद की भाषा में शालीनता अवश्य होनी चाहिए। इसमें अशिष्ट भाषा के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। भाषा एक दूसरे को सुनने समझने वालों के सुखद मानसिक स्तर के अनुरूप होनी चाहिए। तभी यथोचित प्रश्नोत्तर सम्भव हो पाता है। संवाद की भाषा सरल तथा सहज होती जाती है तो समस्या का हल निकल आता है।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
सबसे पहली बात ये कि समस्याएँ कई तरह की होती हैं । कुछ समस्याएँ खुद हल करने की होती हैं वहीं कुछ को हल करने के लिये संवाद या कुछ को हल के लिये बिचोलिये की भी जरुरत पड सकती है ।
कुछ समस्याओं को हल के लिये संवाद अति आवश्यक हो जाता है । जो समस्या दो या अधिक लोगों से जुडी हो उसे हल करने के लिये आपस में संवाद सबसे प्रमुख आवश्यकता है ।
अता ये तथ्य है कि द्विसम्बंधी समस्या का हल सम्वाद से ही सम्भव है बिना सम्वाद के समस्या हल नहीं हो सकती ।।
- सुरेन्द्र मिन्हास
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
किसी भी समस्या के हल के लिए संवाद लाभदायक हो सकता है, लेकिन यह समस्या की प्रकृति पर निर्भर करता है और समस्या के हल करने वाले के मनोबल पर भी. अगर मनोबल सुदृढ़ है, तो बुद्धि स्वतः कोई-न-कोई हल निकाल ही लेती है. आवश्यकता पड़ने पर संवाद का सहारा लिया जा सकता है. इसके लिए यह आवश्यक है, कि जिससे संवाद किया जाए, वह बुद्धिमान और तर्कशील होने के साथ निष्पक्ष भी हो. ऐसा न होने पर संवाद कारगर नहीं होगा. एक बात और- संवाद के बावजूद अंतिम निर्णय बहुत सोच-समझकर लेना वांछनीय है.
- लीला तिवानी
दिल्ली
समस्याओं का समाधान उन परिस्थितियों पर निर्भर करती हैं, संवाद के माध्यम से हल किया जा सकता हैं, लेकिन कभी-कभी संवाद के गम्भीर परिणाम भी देखने को मिल जाते हैं, जहाँ आस्था और विश्वास स्थापित करने में अधिकाधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं, फिर प्रश्न उत्पन्न होता हैं, कि ज्ञानियों को समझाया जा सकता हैं, किन्तु अज्ञानियों को समझाया नहीं जा सकता हैं, क्योंकि आमतौर पर उनके मन मस्तिष्क में जो परिभाषित हो गया, उसे निकालना बहुत मुश्किल हो जाता हैं। वर्तमान परिदृश्य में देखिए अधिकांशतः यह सब कुछ होते जा रहा हैं। इसलिए वृहद रुप से प्रवचन-परिचर्चाओं-सभाओं के माध्यम से संवादों से अवगत कराया जाता हैं, कि संवाद स्थापित कर समस्याओं को हल करने पहल करें, जो सार्वजनिक रुप में सार्थकता हो। दूसरी ओर ध्यान केन्द्रित किया जाये तो संवाद के बिना कोई समस्या हल हो ही नहीं सकती, इसके लिए प्रबुद्धजनों को आगे आने की पहल करनी चाहिए ताकि भविष्य में कोई दुष्परिणाम सामने नहीं आये।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
संवाद के बिना भी समस्या हल हो सकती है पर वह संवाद जब आत्म निष्ठ होगा समस्या आत्म निष्ठ होगी तो संवाद के बिना ही समस्या का हल हो सकता है लेकिन जब समस्याएं पारिवारिक हो सामाजिक हो या दो प्रांतों के बीच हो या देश की समस्या हो या अन्य व्यापार की समस्या हो तो इन समस्याओं के समाधान में संवाद का महत्वपूर्ण स्थान है किसी भी समस्या के समाधान में तीन चीजों का मुख्य योगदान होता है पहला समस्या दूसरा संवाद तीसरा वक्त चौथा आर्थिक सहायता पांचवा वी ऑफ कम्युनिकेशन संवाद आसानी से किसी भी समस्या का समाधान कर देती है।
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
संवाद के बिना कोई भी समस्या हल नहीं हो सकती है। अगर आप कोई समस्या हल करते हैं तो एक तरफा समाधान होगा जिससे सामने वाले संतुष्ट नहीं हो पाएंगे।
अतः समस्या का समाधान संवाद से होना उचित है।
अभी देश में ज्वलंत समस्या है किसान आंदोलन ।किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाले संगठन के अध्यक्ष का सुझाव है स्वयं प्रधानमंत्री किसान संगठनों के साथ बातचीत करके किसानों की समस्या का हल ढूंढ। अगर किसान आंदोलन नेतृत्व करने वाले संतुष्ट हो जाते हैं तो यह आंदोलन समाप्त भी हो सकता है। अगर उनके सुझाव है तो कुछ परिवर्तन चाहते हैं करने के लिए स्वयं प्रधानमंत्री उसके जिम्मेवारी लेंगे।
लेखक का विचार:---संवाद बनाए रखने से समस्या हल हो सकती है। सतत संवाद बनाए रखना समस्याओं के निराकरण के लिए ज्यादा कारगर साबित होगा।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
इतिहास गवाह है जब जब कोई समस्या उभरीं है,चाहे वह पारिवारिक, सामाजिक ,देशव्यापी, राष्ट्रव्यापी समस्या हो उसका समाधान केवल बातचीत या संवाद से ही संभव हुआ है।
बिना बातचीत या संवाद के किसी भी विषय की गहराई तक जाना असंभव होता है।
संवाद के माध्यम से तथाकथित विषय के हर पहलू की जांच पड़ताल करके किसी परिणाम तक पहुंचा जा सकता है।
हर समस्या का समाधान तभी संभव होता है जब विषय पर विस्तृत चर्चा हों।
चर्चा का आधार केवल संवाद या बातचीत ही है। संवाद के बिना समस्या विकट से विकट रूप धारण करती रहती है विषय और उलझता जाता है।
अतः समय पर संवाद के माध्यम से या बातचीत के माध्यम से समस्या का समाधान उचित है । इसके अलावा संवाद भी यथार्थ के आधार पर सफल होना चाहिए जो किसी परिणाम तक पहुंचे। भारत में आजकल किसान आंदोलन का विषय सुर्खियों पर है किसान भी अपनी समस्या का समाधान केवल सफल संवाद या बातचीत के माध्यम से चाहते हैं। किसानों के साथ संवाद होना समय की मांग है लेकिन उसमें राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए। मेरा यह मानना है संवाद की कमी ही सारी समस्याओं को बढ़ा रही है ।
अतः इस अराजक स्थिति और अनावश्यक विरोध की राजनीति से बचने के लिए समस्या समाधान हेतु संवाद या बातचीत अति आवश्यक है।
- शीला सिंह
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
बिना संवाद के कोई भी समस्या हल नहीं हो सकती है। अगला व्यक्ति क्या चाहता है। बिना बताये कोई कैसे समझेगा। आप क्या चाहते हैं। आप उसके साथ कैसा बर्ताव करना चाहते हैं वो आपके साथ कैसा व्यवहार करना चाहता है। बिना संवाद के ये सब कैसे संभव हो सकता है। कोई आपसे रूठता है। किसी को आपसे कोई तकलीफ है या आपको किसी से तकलीफ है तो बिना सम्वाद किये समस्या का हल सम्भव नहीं हो सकता है।
महाभारत में जब अर्जुन को मोह होता है तो भगवान श्रीकृष्ण संवाद के जरिये ही उनका मोहभंग करते हैं। झगड़ा हो या शादी विवाह बिना संवाद के संभव ही नहीं है। आंतरिक समस्या हो या बाह्य समस्या हो इसे संवाद के द्वारा ही सुलझाया जा सकता है। या सुलझता है। हर तरह के समस्या का समाधान संवाद के द्वारा हल किया जा सकता है। बिना संवाद के कोई भी समस्या हल हो ही नहीं सकती है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - पं. बंगाल
संवाद के बिना किसी भी समस्या का हल निकालना मुश्किल है। अभिव्यक्ति की आजादी उचित है। पर इससे अराजकता पनपने का सवाल अनुचित है, बल्कि संवाद के माध्यम से बड़े-बड़े गतिरोध, झगड़े, आपसी मतभेद और समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है और निकाला भी गया है। चाहे पारिवारिक उलझन हो, सामाजिक हो, राजनैतिक हो या रोजी रोजगार की समस्या हो। हर समस्या का समाधान संवाद के जरिए निकाला जा सकता है। अभी उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो वर्तमान समय में केंद्र सरकार द्वारा पारित तीन कृषि बिल को लेकर किसान पिछले लगभग 1 महीने से आंदोलन कर रहे हैं। इसको लेकर सरकार और किसानों के बीच समस्या का हल निकालने के लिए कई दौर की वार्ता हो चुकी है। भले ही उसमें भी सफलता नहीं मिली है, लेकिन समस्या का समाधान करने के लिए प्रयास जारी है। इसमें से शिरोमणि अकाली दल बादल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया है कि वह स्वयं किसान संगठनों के साथ बातचीत करके किसानों की शिकायतों का हल ढूंढे। अदालतों में भी पारिवारिक विवाद के मामलों को न्यायाधीशों द्वारा आपसी संवाद के माध्यम से सो जाने का प्रयास किया जाता है। यदि कोई पति पत्नी तलाक लेना चाहते है तो उसको अदालत आपस में मिल बैठकर संवाद के माध्यम से हल निकालने का सुझाव देती है। इसमें कई बार संवाद के माध्यम से समस्या का समाधान भी हो जाता है। न्यायिक मामलों में भी न्यायाधीश की ओर से कई तरह के विवादित मामलों में दोनों पक्षों के बीच संवाद के माध्यम से हल निकालने के लिए लोक अदालतों का भी सहारा लिया जाता है। लोक अदालत में भी समस्याओं का समाधान संवाद के माध्यम से किया जाता है। जिला प्रशासन हो या सरकार हूं इनमें भी समस्याओं का समाधान संवाद के माध्यम से निकाला जाता रहा है और आगे भी यह प्रक्रिया जारी रहेगी। लेकिन संवाद के बिना समस्या का हल निकालना उचित नहीं है
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
जब दुधमुंहे बच्चे को भूख लगती है या कोई पीड़ा होती है तो वह रोता है और संवाद का माध्यम बना रुदन उसकी माता सुनकर व्यवस्था करती है, उपचार करती है। मेरे विचार में संवाद के बिना कोई समस्या हल नहीं हो सकती। समस्या चाहे किसानों की हो या किसी की हो संवाद होना आवश्यक है। संवाद से सफलता के लिए यह आवश्यक है कि एक-दूसरे के संवाद को धैर्य से सुना जाए, विचार किया जाए। मेरी मुर्गी की एक ही टांग वाली बात न हो।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
जी हाँ!बिल्कुल..
संवाद के बिना भी किसी समस्या का निदान करना संभव है.
यदि बोलकर ही समस्याओं के समाधान होते,तो सभी गूंगी,बहरी दिव्यांग शख्सियतें आज गुमनामी और उपेक्षा के अंधेरे में गुम हो जातीं.
पशु,पक्षी,जलचर,कीट,पतंग सभी शब्द मुखरित करने जैसी संवादहीनता के दायरे में आ जाते हैं ,लेकिन सांकेतिक प्रयोगों और स्वरों का वर्चस्व फिर भी है.
उदाहरणार्थ चित्रपट पर 'कोशिश' और 'स्पर्श' जैसी फिल्में काफी सफल रहना इस बात का प्रमाण हैं.
एक लोकोक्ति है,कि-"एक चुप सौ वाचालों को भी हरा देता है".
मनन,चिन्तन,ध्यान,योग आदि में तल्लीन लोग सहिष्णु और संयमित रहते हैं.इन्हें सर्वजन पसंद भी करते हैं.पूजित और सम्मानित भी होते हैं ऐसे शांत स्वभाव के सज्जन.
कहते हैं -"प्रभु ने एक मुख दिया है और दो कान"संदेश यही है,कि -"कम बोलो,अधिक सुनो."
अपवाद यह है,कि लोग बोलते अधिक हैं, सुनते कम हैं,जिससे तनातनी और असंतोष पनपता है और घरों में अशांति होती है.
संवाद कम हों,नहीं हों,तो बेहतर ही है.
कोरोना में चिल्ल पों कैसे बंद हुई,सन्नाटा घेरा बनाकर रहा,भू से गगन तक नीरवता रही,फिर भी जीवन चलता रहा.
संवाद हों ,तो बस आवश्यकतानुसार ही.
खुद से खुद बात करना(स्वगत कथन) ही सर्वश्रेष्ठ होते हैं.
- डा.अंजु लता सिंह 'प्रियम'
दिल्ली
संवाद अर्थात वार्तालाप का रिश्तो में बहुत महत्व होता है। वार्तालाप करने की भावना, परिस्थिति तथा बातचीत करने का ढंग सही रिश्ते बनते और बिगड़ते हैं।
कहा भी गया है - 'पहले तोलो फिर बोलो' । जब कहीं किसी से बात बिगड़ जाती है तो इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है। फिर तो कदम फूँक-फूँक कर रखना पड़ता है अर्थात तोल तोल कर बोलना पड़ता है कि कहीं बात और ना उलझ जाए। बिगड़ी बात को सुलझाने में पहल कोई भी करें पर उसे इस बात का अंदाज़ा होना चाहिए कि उसे संबंधों को और अधिक बिगाड़ना नहीं है बल्कि सुधारना है।
कई बार संवाद अर्थात वार्तालाप की अपेक्षा मौन रहना भी ज़रूरी बन जाता है। संस्कृत की प्रसिद्ध कहावत है-
मौनं सर्वार्थ साधनं अर्थात चुप रहने से सब काम हो जाते हैं। अत: परिस्थितियों के अनुकूल अपने विवेक से काम लेते हुए समस्या का हल निकालने का प्रयत्न करना चाहिए और कबीर की वाणी को अपने जीवन में धारण करना चाहिए।
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय ।
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय ॥
- डॉ. सुनील बहल
चंडीगढ़
किसी भी समस्या का हल संवाद द्वारा ही संभव है !
संवाद के जरिए बड़े-बड़े गतिरोध ,झगडे़ ,आपसी मतभेद खत्म किए जा सकते हैं !वर्तमान में सरकार और किसानों के बीच की समस्या संवाद से सुलझाई जा सकती है !केंद्र से राज्य सरकार तक विपक्ष को भी सकारात्मक भूमिका निभाना चाहिए स्थिति का विश्लेषण किए बिना किसी भी समाधान पर सीधे-सीधे तो संवाद नहीं करना चाहिए !पहले मामले की तह तक हम पहुंचे फिर समस्या को हल करने के लिए इस निष्कर्ष पर पहुंचे ! सौहार्दपूर्ण समाधान पर पहुंचने की चाबी यह है कि दोनों पक्षों के साथ बातचीत करें या संवाद करें !
संवाद निष्पक्ष होना चाहिए
यदि समस्या व्यक्तिगत हो तो आपसी तरीके से समाधान किया जा सकता है किंतु देश में अथवा राज्य में किसी कानून या अन्य कारणों से समस्याएं विरोधी दल में हो जाये तो संवाद के द्वारा आपस में बैठकर समस्या का हल शांतिपूर्वक निकाला जा सकता है ! हमें यह ध्यान रखना चाहिए बात को हम रबर की तरह ना खेंचें ! संवाद एक ऐसा शस्त्र है जो शांतिपूर्वक ,धैर्य और मर्यादा के अंदर हो तो भूकती अग्नि भी शांत होकर ठण्डी हो जाती है ! संवाद के साथ समय और लाभ दोनों पक्षो को मिलता है ! यदि संवाद से भी बात नहीं बनती फिर वह अहम् की लडा़ई बन जाती है !अतः संवाद से ही समस्या का समाधान करना उचित है ! सामने सामने बात करने से मिस अंडरस्टैंडिंग दूर होती है दोनों पक्ष आपस में एक दूसरे की बात समझकर समस्या के समाधान का विष्लेषण करते हैं और समाधान शांतिपूर्वक निकल आता है !
. - चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
संवाद से हर तरह की समस्या का समाधानहो सकता है। संवाद के बल पर ही सावित्री ने यमराज से सत्यवान के प्राण वापस मंगा लिए थे। युधिष्ठिर का यक्ष संवाद जग प्रसिद्ध है जिससे उसने अपने भाइयों को पुनर्जीवित करना लिया था। संवाद किसी भी समस्या का समाधान हो सकता है।यह संवाद लिखित हो,मौखिक हो या फिर मानसिक। लिखित और मौखिक संवाद तो सभी के अनुभव में है।जब यह सफल न हो जब मानसिक संवाद काम करता है,और समस्या का समाधान हो जाता है।प्रभु से प्रार्थना और ध्यान हमारा मानसिक संवाद ही तो है। संवाद की महत्ता व्यापक होती है।सूत जी और ऋषियों का संवाद पुराण बन गये। श्रीकृष्ण और अर्जुन का संवाद श्रीमद्भगवद्गीता बन गयी। वर्तमान में भी हर समस्या के लिए वार्ता और सिर्फ वार्ता ही तो समाधान का तरीका है।
- डॉ.अनिल शर्मा' अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
सबसे पहले यह विचारणीय पहलु है की समस्या की उत्पति कहाँ से होती है ??
समस्या उत्पनहोती है दो व्यक्तियों के मतभेद से ....दो विपरीत विचारधाराओं से ...असंतुष्टि से ....जिसे हम मनमुटाव भी कह सकते हैं
संवाद के बिना दोनों पक्षों की विचारधारा जानना असंभव है अतः संवाद किसी भीसमस्या का हल निकालने के लिए अत्यावश्यक है
संवाद ही वह सेतु है जिस द्वारा किसी भी समस्या का समाधान ढूंढा जासकता है
जब दोनों पक्ष अपने विचारों का आदान प्रदान नहीं करेंगे ....जो केवल संवाद से संभव है .......समस्या का हल नहीं निकलेगा
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
यदि संवाद के बिना समस्याओं का समाधान होता तो त्रेता युग में "अग्निपरीक्षा" से सीता माता की समस्या का समाधान हो जाता और माता सीता जी को धरती में समाने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती।
इसी प्रकार संवाद के बिना समस्याओं का समाधान होता तो द्वापर युग में "महाभारत" के युद्ध से अवश्य हो जाता और इतना रक्तपात न होता। यहां तक कि संवाद के साथ श्रीकृष्ण जी ने पांडवों के लिए कौरवों से मात्र पांच गांव ही मांगे थे।
उल्लेखनीय है कि समस्याओं का समाधान जब भी हुआ "संवाद" से ही हुआ। इतिहास साक्षी है कि प्रथम और द्वितीय "विश्वयुद्ध" से भी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ था। इसलिए जो बात "बोली" से संभव हो वह "गोली" से कदापि पूर्ण नहीं होती। जिसके कारण "कश्मीर समस्या" का समाधान नहीं हो रहा था और अब संवाद के साथ कश्मीर में भारत माता की जय के उद्घोष लग रहे हैं।
अतः युगों-युगों के युद्धों से प्रमाणित हो चुका है कि समस्याओं का समाधान जब भी हुआ "संवादों" के माध्यम से ही सम्भव हो सका है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्म् - जम्म् कश्मीर
स्वयं से भी यदि समस्या है तो व्यक्ति खुद से मन ही मन विचार करता है एक प्रकार से मानसिक संवाद और मन की दुविधा दूर होती है । किसी दूसरे व्यक्ति से वैमनस्य हो तो वह भी संवाद के जरिए दूर होता है ।समाज ,राष्ट्र् और विश्व सबके साथ यही फार्मूला लागू है आपस की समस्यायें बातचीत के जरिए ही हल होती हैं ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
"भले कम हो मगर साथ है,
हमारे दरम्यान एक मुलाकात
तो है,
कुछ नहीं रखा जिरह में,
गहराए इस मौन मैं संवाद तो है "।
देखा जाए तो संवाद किसी भी सम्बंध की जीवन रेखा होती है, जब आप संवाद बंद कर देते हैं तो आप कीमती सम्बधों को खोना शूरू कर देते हैं,
सच कहा है,
रिश्तों में जब बढ़ने लगें दूरियां एहसास कम हो जाते हैं संवाद तो होते नहीं, सिर्फ मौन संवाद शेष रह जाते हैं,
देखा जाए आजकल लड़ाई झगड़े व आंदोलनों का जोर जारी है जिधर भी देखो कोई न कोई समस्या खड़ी है,
आखिर इन समस्याओं का क्या हल है, आंदोलन तो किसी समस्या का हल नहीं, जब तक हम आपस में बैठ कर बातचीत नहीं कर लेते तो समस्या ज्यों की त्यों बनी रहती है तो आईये बात करते हैं कि क्या संवाद के बिना कोई समस्या हल हो सकती है?
मेरा मानना है, हर समस्या ओर शंका का समाधान संवाद ही है, समस्याओं के निराकरन के लिए संवाद जरूरी है क्योंकी संवाद की कमी ही सारी समस्याओं की जड़ है,
संवाद का अर्थ है वार्तालाप, दो घुटों के बीच किसी विषय पर हुई बातचीत को संवाद कहा जाता है,
इसलिए अगर किसी के साथ कोई अनबन हो भी जाती है या कोई ऐसी बात लागू की जाती है जो किसी दुसरे समुदाय को पसंद नहीं है तो उसका हल केवल संवाद ही हो सकता है न की अंदोलन या लड़ाई झगड़ा, मानव समाज में संवाद शांति की पहली सीड़ी है इस के बढ़ाने से अविश्वास, हिंसा और युद्ध से मुक्ति मिलती है,
सोचा जाए सारी समस्याओं की जड़ है आपसी रिश्तों और संवधों में संवाद की कमी, हम किसी से कितने प्रभावित हैं हमारे संबंध कितने सुदृढ हैं हम कितने संवाद कुशल हैं, यह सारी बातें तय करती हैं कि हमारी समस्याएं कितनी बड़ा या छोटी होंगी, क्योंकी कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है अगर हम किसी से अच्छा सबंध चाहते हैं तो हमें उसकी भी सुननी पड़ेंगी केवल अपनी सुनाने से बात महीं बनेगी बाद में चाहो वार्तालाप में आप बात को काट सकतो हो लेकिन जब बात आपसी भाईचारे की हो या कोई भी लेनदेन की हो तो दोनो तरफ के लोगों को देखा जाता है अगर बात न बन पाए या न पच पाए फिर एक ही रास्ता शेष रह जाता है वो है संवाद का मुद्दा कोई भी हो संवाद बहुत जरूरी है,
देखा जाए तो जीवन में दो चीजें बहुत जरूरी हैं पहले किसी के द्वारा समझा जाना दुसरा किसी को समझ पाना हमारे जीवन का सारा खेल इसी पर टिका है,
जब कोई हमें समझता है या सुनता है तब हमारा नर्वस सिस्टम सक्रिय हो जाता है इस स्थिति में हम तनाव रहित हो जाते हैं लेकिन जब वो अपनी बात सुनाता है तो उस की बात को ध्यान से नहीं सुनते क्योंकी हमैं अपनी कमीयों को सुनने की आदत नहीं होती और हमारे नर्वस सिस्टम नकारात्मक प्रभाव पड़ता है ओर एकदम नाराज हो जाते हैं हम यह भी भूल जाते हैं कि हम एक दुसरे से जुडे हुए हैं आखिरकार सारा मामला विगड़ जाता है ऐसे में जब तक हम संवाद नहीं करते तो समस्या का हल नमुमकिन बना रहता है,
इसलिए याद रखैं अगर आपको अच्छाई क्सी शत्रु में भी नजर आती हो तो उसकी प्रशंसा करना न भूलें व जीवन को खुशीहाल बनाने के लिए बेहतर है हम एक दुसरे की भावनाओं को महत्ब दें,
क्रोध, भय, तनाव से बचने के लिए केवल अपनी ही न कहें दुसरों की भी सुनें की वो क्या चाहता है, अगर फिर भी कोई विवाद बनता है तो उसकी हल शेष एक ही रह जाता है वो है संवाद,
आखिर में यही कहुंगा संवादहिनता ही है जिसने सैकड़ों वर्षों से क़ई समुदायों के संबधों को बिगाड़ने का काम किया है,
सकारात्मक वार्तालाप के लिये आच्छी कम्युनिकेशन स्किल बेहद जरूरी है, साकारात्मक ब्यवहार खराब भावनाओं को बदलने और पाजिट्ब इमेज बनाने में मदद करता है,
सच है,
रिश्ते अंकुरित होते हैं प्रेम से,
जिन्दा रहते हैं संवाद से,
महसूस होते हैं संवदेनाओं से,
जिए जाते हैं दिल से,
विखर जाते हैं अंहकार से,
इसलिए प्रेम से रिश्ते बनाऐ रखें।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
मौन रहने से आने वाली समस्या टल सकती है परंतु संवाद के बिना किसी भी समस्या का हल असंभव है। एक दूसरे से संवाद करने से आत्मीयता बढ़ती है बिना संवाद के दूरियां बनती हैं। मौन रहने से उलझने और बढ़ती जाती हैं। यदि हम संवाद नहीं करते तो मकड़ी के जाल की भांति अपने ही द्वारा बनाए गए भूत भविष्य के संकल्प- विकल्पों के ताने-बाने में उलझे रहते हैं। समस्याओं के समाधान के लिए संवाद अति आवश्यक है।
- संतोष गर्ग
मोहाली - चंडीगढ़
" मेरी दृष्टि में " संवाद जीवन की सर्वश्रेष्ठ कला है । जो इंसान को बना भी सकती है और मिटा भी सकती है । संवाद बिना जीवन निर्जीव सा लगता है । इसलिए जीवन में संवाद जरूरी है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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