क्या मन का संतोष सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू है ?

मन का संतोष सबसे अच्छी स्थिति मानी जाती है । जो सकारात्मक सोच के लिए बहुत ही आवश्यक है । यह एक - दुसरे के पूरक है । यही कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
मन का संतोष सबसे बड़ा धन है। संतोष के  अभाव में बड़े-बड़े धनपति भी दुखी रहते हैं। धन के अभाव में व्यक्ति के मन में संतोष है तो वह सुखी रह सकता है क्योंकि संतोष ही सबसे बड़ा धन है।
गरीब हमेशा सो ₹200-300/- की चाह रखता है, आमिर सदा लाख दो लाख की बात करता है। धन की संपन्नता से मन की चाह भी बढ़ जाती है। लेकिन धनसंपदा से महत्वपूर्ण जीवन है। जीवन में धन की नहीं बल्कि जीवनधन की चिंता करो। संपत्ति किसी के साथ नहीं जाती जड़ धन तभी तक उपयोगी है जब तक जीवन है ।जीवन निर्वाह के लिए धन उपयोगी हो सकता है। उसके लिए धनार्जन  करना चाहिए लेकिन पूरी जिंदगी धन के लिए समर्पित कर देना कौन सी बुद्धिमानी है? सारी जिंदगी धन बटोरने पर भी अंत में सब कुछ छोड़ कर जाना पड़ता है। *खुला हुआ हाथ आए हो खुला हाथ जाओगे*। 
मन का संतोष सबसे बड़ा सकारात्मक सोच है।
लेखक का विचार:---जीवन में धन की नहीं बल्कि जीवनधन की चिंता करो। अंत में सब कुछ छोड़ कर जाना पड़ता है। मन का संतोष सबसे बड़ा सकारात्मक सोच है इससे आप सदा सेहतमंद भी रह सकते हैं।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
क्या मन का संतोष सबसे सकारात्मक पहलू है
    *जब आए संतोष धन सब धन धूरि समान**
   .  हम सभी जीवन भर सुख ,धन ,ऐश्वर्य, मान -सम्मान के पीछे भागते रहते हैं और यह भाग दौड़ तब तक चलती रहती है जबतक साँस चलती है । अनेक बार तो शरीर थक जाता है पर मन दौड़ता रहता है।मन की गति तो अश्वों से भी तेज है। यह मानवीय प्रवृत्ति है कि हम बुराई की ओर आसानी से आकृष्ट होते हैं क्यों कि अच्छाई. और भलाई का मार्ग कठिन है। मन में जब नकारात्मक विचार आ जाते हैं तो उथल पुथल मचा देते हैं । जबकि  हमारे ग्रंथ, पुराण, कथा कहानियाँ  , लोक कथाएं ,नैतिक कथाएं भी हमें संतोष का पाठ पढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं। हम यह भी सुनते हैं कि पेट भर गया, पर आँख नहीं भरी। यह आँख नहीं भरना ही  लालच और असंतोष का मूल है। इसी से मुक्ति पानी है।
मन को जब  कम धन या भोजन से संतोष मिल जाता है 
  तो कारू का खजाना भी उसके लिए मिट्टी है ।
हम सब की कोशिश यह होनी चाहिए कि मन   सकारात्मक बातों से भरा रहे।सकरात्मक प्राण वायु 
सब से बड़ी पूँजी है। 
      - ड़ा.नीना छिब्बर
        जोधपुर - राजस्थान
धीरज मन में जो रखे, पाता   वह   संतोष।
पाए शांत  चित्त सदा, निर्भय जीवन कोष।। 
निश्चित रूप से मन का संतोष जीवन का एक सकारात्मक पहलू है। संतोषी मन सदैव सकारात्मकता के भावों से ओत-प्रोत रहता है। 
मन के संतोष का आशय कदापि यह नहीं है कि हम हाथ पर हाथ धरकर बैठे रहें अथवा जिस स्थिति में हैं, उससे ऊंचा उठने के प्रयास ही ना करें। 
मेरे अनुसार सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण संतोषी मन का जीवन के प्रति दृष्टिकोण यह होता है कि वह कर्म-पथ पर सक्रिय भूमिका निभाते हुए उन्नति के प्रयास निरन्तर करता रहता है परन्तु मार्ग की बाधाओं से विचलित नही होता। 
प्रश्न यह भी है कि मन का संतोष प्राप्त कैसे किया जाए? 
मन के संतोष की प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा है....मन में मानवीय दोषों का प्रभाव.... यथा, लालच, लोभ, स्वार्थ, ईर्ष्या, निंदा, बेईमानी, अंहकार, धीरज हीनता आदि। ये सभी दोष मन को नकारात्मक दिशा की ओर अग्रसर करते हैं। नकारात्मकता कुछ समय के लिए मनुष्य को मिथ्या शांति का आभास तो करा सकती है परन्तु कभी भी स्थायी मानसिक संतोष प्रदान नहीं कर सकती। 
इन दोषों पर नियन्त्रण करना मानव-मन के लिए आसान नहीं है परन्तु सृष्टि में एकमात्र मानव मन ही है जो स्वयं को विजयी करता है। 
निष्कर्षत: मन में मानवीय गुणों को संजोए, धैर्य और परिश्रम से जो मनुष्य अपने कर्तव्यों का निर्वहन करता है वह सदैव मानसिक संतोष की सकारात्मक पूंजी से सराबोर रहता है। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
संतोष का धन सबसे बडा़ धन होता है जीवन में जिसके पास यह धन है वह सुखी है ! यह सच है मन बडा़ चंचल होता है ! किसी भी चीज को देख लालायित हो उठता है चाहे हमें उसकी आवश्यकता हो अथवा ना हो हम उसे प्राप्त करके ही संतोष लेते हैं ! तभी हमारे मन को शांति मिलती है ! लालसा का कोई अंत नहीं है अतः हमें हमारी इंद्रियों को वश में करना होगा ! जीवन भर हम असंतुष्ट हो जिस धन के पीछे भागते हैं उससे हमें क्रोध ,अहंकार मिलता है ,हम विवेकहीन हो जाते हैं हमारे जीवन में सुख शांति नही रह जाती नकारात्मक भाव उत्पन्न होते हैं , हमारे मन की शांति छीन जाती है और जीवन के अंत में  वही धन हमें यहीं छोड़कर जाना होता है ! जिसके पास संतोष का धन नहीं है दुखी हैं ! जिसके पास संतोष धन है वह विनम्र एवं विवेकशील हो दूसरों की मदद  कर जीवन में सुखद हवा की लहरों की तरह सकारात्मक सोच लिए सुंदर मन रखते हैं ! 
यह अलग है ..जीवन संसाधन के लिए वैयक्तिक दृष्टि से नहीं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो हम पूर्ण संतुष्ट नहीं रहते  हर चीज का विकल्प एवं शोध करते हैं किंतु यह प्रकृति का नियम है कि मानव शांत नहीं बैठता सदा कर्मशील बन संतोष और असंतोष के दायरे में उलझता रहता है ! 
संतोष का धन सबसे बडा़ सुखद धन है जिसमें मन इंद्रियों को वश में कर हमें मोक्ष की राह भी दिखाता है !
                - चंद्रिका व्यास
             मुंबई - महाराष्ट्र
     मन मस्तिष्क को क्रियान्वित करने में संतोष सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू होता हैं, अगर मन विचलित रहा तो सबसे बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं। आज वर्तमान परिदृश्य में देखिए अधिकांशतः अपराधित्व प्रवृत्तियों का जन्म मन मस्तिष्क से ही उभर कर सामने आते जा रहे हैं, यह प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।  कोई भी किसी भी तरह का मन में संतोष नहीं करना चाहता, जिसके कारण नकारात्मता ऊर्जा का संचार होता हैं। मानव की विचारधारा अनेकानेक रुप में विभक्त होने के कारण इच्छा तंत्र प्रभावशाली हैं, जो मूल स्वरूप को स्थिर करने में अक्षमता का परिचय देता हैं, जहाँ हर जगहों पर असफल होता जाता हैं। मन के विकेन्द्रीकरण को जिसने भी   रोक लिया तो उसे हर पल खुशी ही दिखाई देती हैं और अनन्त समय तक संतोष मिलता जायेगा।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
हाँ मन का संतोष ही सबसे बड़ा सकारात्मक ऊर्जा को प्रदर्शित करता है।जीवन मे अनेक प्रकार के कार्य करने हो मिलते है जिससे मानव कभी कभी अपने संतोष से विचलित हो जाता है पंरतु अनेक बांधाओ को पार करके संतोष से जीवन की सफलता और असफलता को अपनाना चाहिए।ताकि जीवन मे मनकी गतिविधियों मे हम अक्सर खुशियों को लेकर आगे बढ़ने की भुमिका बनाते रहे।जीवन मे सकारात्मकता पहलू को अपना भविष्यफल के प्रति सर्मपण करना चाहिए।मध का संतोष हमें शांतिपूर्ण तरीके से जीने के लिए अग्रसर करता है।भिन्न भिन्न कठिनाई मे हम जब मनोबल हार जाते तो सकारात्मक ऊर्जा ही मन के संतोष को हमे जीवन की चुनौती का सामना करने के लिए हमें तैयार करती है।जीवन की हर मोड़ पर सकारात्मकता का दामन थाम कर आगे बढना ही जीवन की सच्चाई है।संतोष परम सुखद अनुभव देता है।जीवन की हरके मुश्किलों का पतन संतोष रखने से होता है संतोष ही सबसे बडा़ धर्म हैं।इसके कारण ही हम हमेशा अपनी मंजिल को पाने मे सार्मथ्य होते है।संबल देता है संतोष जीवन की अनुकूलता प्रदान करता है।जिंदगी मे हमें संतोष से ही रिश्तों का निर्मल वातावरण को अपनाने की कोशिश करनी चाहिए कभी भी असंतोष की भावनाओं को बढ़ावा नही देना चाहिए।असंतोष हमेशा ही तुक्ष्य भाव को उत्पन्न करती हैं ।सकारात्मक सोच से ही संतोष को पैदा किया जाता हैं।भावनाओं के तालमेल को हमेशा संतोष से बनाया जा सकता है।
मन का संतुलन अनुकलित हेतु संतोष की जड़ी बुटी को अपना कर ही निंरतर आगे बढना चाहिए।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
बेहद सुंदर भाव रखा आज चर्चा का - और सत्य भी कहा इसमे ? की कोई गुंजाईश नही शाश्वत सत्य है - संतोष ऐसा धन है जिसका कोई मुकाबला नही - संतोषी सदा सुखी - जब आबे संतोष धन सब धन धुरि समान -- जय संतोषी मां - संतोष रखिये धैर्य रखिये ये सभी वाक्य इसी विषय को उर्जित करते है - मन में यदि संतोष नही तो आप स्वर्ण चट्टान , शिला खंड भी लेकर कर चिंतित दुखी रेहने वाले है क्युकी अब उस से भी और अधिक का लोलुप भाव सतायेगा - और यदि संतोष है तो एक समय का भोजन धोती लंगोटी पेड की शीतल छाया एक गिलास पानी बस इस जीवन की यही कहानी हाहाह हः हः अर्थात भाई आखिर कही तो रुकोगे //
सम्पूर्ण भाव एक ही बात के लिये है - मन का संतोष और यही आपके व्यक्तित्व का सकारात्मक पेहलू भी है - सिकंदर का उदाहरण सबके सामने है - ब्रिटिश राज्य का उदहरण सबके सामने है प्रसारवाद नीति वाले देशो का उदाहरण सामने है - और तो छोडीये महाभारत रामायण को ही ले लीजिये ...अर्थात ये सब भटक 2 के आज अपने ही कम्बल में ही सिकुडे बेठे है मतलब जहा थे बही वापिस // तो मन का संतोष सबसे बडा सकारात्मक पेहलू है ।
- डॉ. अरुण कुमार शास्त्री
दिल्ली
नाकारात्मक विचार वालों के लिए सामान्य बातों पर भी क्रोध ही प्रतिक्रिया होती है। प्रत्येक घटना के साथ उनका रोष असन्तोष और बढ़ता ही चलता है। 
नकारात्मक विचार वालों के क्रोध की रेखा पत्थरों पर पड़ी गहरी एवं मोटी रेखा सी उत्कीर्ण होती जाती है
–अक्षमता है। अगर क्षमा करने में विफल हैं उन्हें जिनसे गलत व्यवहार मिला हो। ऐसे लोग उद्विग्न और चिड़चिड़े भी रहते हैं।
–अक्सर सबने देखा होगा रेत के घरौंदे और रेत पर लिखे नाम तथा पैरों के उकेरे निशान..., सकारात्मक विचार वाले अपने मन में निराशा व क्रोध को वैसे ही टिकने देते हैं। बदलते पल में अच्छे समय की एक लहर, क्षमा की एक पहल, पश्चाताप की एक झलक जब दोषी की तरफ से दिखने लगती है। वे शीघ्रताशीघ्र ही सबकुछ भूलाकर अपने सामान्य प्रसन्नता की स्थिति में लौट आने में प्रयत्नशील दिखलाई देते हैं।
अतः मन का सन्तोष सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू है।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
दुनिया में संतोष ही एक मात्र ऐसा चीज है जो हर दुःख से मुक्ति दिला सकता है। जीवन का सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू संतोष ही है। जितना मिला जो भी मिला पर यदि हम संतोष कर लें तो हमारा जीवन सुखमय एवं शांतिमय हो जाएगा । सुख एवं शान्ति के लिए हमें कही भी भटकना  नहीं पड़ेगा। मन का संतोष हर तरह के उलझन से बचाता है। कहा गया है जो हमारे तक़दीर में है वही हमें मिला है। इतने में ही हमें संतोष करना है। इस तरह से हम किसी बात से दुःखी नहीं हो सकते हैं। इसलिए ये बात तय है कि मन का संतोष सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
     संतोष के अभाव में बड़े बड़े धनपति भी दुखी रहते हैं। चाहे मनुष्य गरीब भी हो अगर उस में संतोष है तो वह सुखी रहता है। जब तक मनुष्य के पास संतोष रूपी धन नहीं होगा तब तक मनुष्य अपना जीवन खुशी से नहीं जी सकता क्योंकि मन की शांति धन से नहीं खरीदी जा सकती। संतोष रूपी धन से मनुष्य का जीवन खुशियों से भर जाता है। मनुष्य की इच्छाओं का तो कभी भी अंत नहीं होता। इस लिए वह अशांत रहता है। इच्छा पूर्ति के लिए अपना जीवन अंधकार में धकेल देता है। वास्तव में मनुष्य को खुश रहने के लिए धन से ज्यादा संतोष की आवश्यकता होती है। 
               व्यक्ति अपने संस्कारों के द्वारा अपने नैतिक गुणों और सकारात्मक चिंतन के आधार पर संतुष्टि प्राप्त कर अपनी संपन्नता को बता सकता है। सद्विचारों से ही मनुष्य को संतोष मिलता है और संतुष्टि ही समृद्धि का आधार होती है। संतुष्टि के लिए शास्त्रकारों का कहना है कि संतोष प्राप्त कर लेने के बाद सभी धनपति धूल के समान हो जाते हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि मन का संतोष सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू है। 
  -  कैलाश ठाकुर 
   नंगल टाऊन - पंजाब
हमारे द्वारा जो भी कार्य किया जाता है उसमें मन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सच यह भी है कि किसी कार्य की सफलता मन की पूर्ण समर्पित भावना पर ही निर्धारित होती है। यदि हमारा किये जा रहे कार्य करने में नहीं लग रहा है तो उस कार्य में पूर्णतया सफलता मिलना कठिन ही नहीं नामुमकिन ही है। अतः किसी भी कार्य के लिए मन लगना बहुत जरूरी है। इसके लिए हमें अपने मन को जीतना होगा। जीतने से सही आशय यही है कि हम मन के अधीन न हों बल्कि मन हमारे अधीन हो। इसके लिए हमें अपने मन की अधीरता,वाचालता और पिपासा  पर नियंत्रण करना होगा। जो मन के संतोष से ही संभव है। हम जितने संतीषी स्वभाव के होने की सामर्थ्य रखने में सफल होंगे, हमारे मन का भटकाव उतना ही कम होगा। हम मन को उतने ही नियंत्रित करने में सफल होंगे और यही हमारी सफलता और समृद्धि का आधार बनेगा। संक्षेप में इसे ही यूँ मान सकते हैं कि मन का संतोष ही सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
जी हाँ ..मन का संतोष सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू है
संतोष एक गरीब मज़दूर के पसीने मैं हो सकता है ....एक भूखे के खाने मैं होता है ....किसी की लक्ष्य प्राप्ति मैं हो सकता है ..तड़पने मैं हो सकता है ...तड़पाने मैं हो सकता है ....अमीर व्यक्ति की चैन की नींद मैं हो सकता है
हर व्यक्ति की संतुष्टि का पैमाना अलग होता है
संतोष तो मन का वह विकार है जिससे व्यक्ति को खुशी औरशांति मिलती है .....संतोष भी किस्मत से मिलता है ..जो ईश्वर पर विश्वास करते हैं ..हर हाल मैं प्रसन्न व संतुष्ट रहते हैं व कुछ लोग हर चीज़ मैं कमी निकालने की आदत होती है व वे हर हाल मैं असंतुष्ट रहते हैं
मैने तो अनुभव से यह सीखा है की मनुष्य कभी उसमें नहीं संतुष्ट नहीं होता जो उसे प्राप्त है व उसमें संतुष्टि ढ़ूंढ़ता है जो अप्राप्य है।
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
मेरे विचार में मन का संतोष सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू है। यदि कोई ऐसी स्थिति आती है जब नकारात्मकता के हावी होने की संभावनाएं प्रबल हों तो उस समय मन में यह संतोष कर लेना कि यह स्थिति भी गुजर जाएगी न केवल ढाढस बंधाता है अपितु सकारात्मकता का भी संचार होता है।
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली 
संतोष हृदय भंडार का द्वार खोलने वाला तथा सकारात्मक की तरफ ले जाने वाला वह साँचा है जिसमें ढलकर मनुष्य अपने जीवन का सर्वतोन्मुखी विकास कर सकता है l साथ ही साथ जीवन यात्रा में सुरभित वृक्ष लगा सकता है l कहा गया है -
गोधन, गजधन और रतन धन खान रे
पायो रे संतोष धन जब रामा, सब धन धूरि समान रे l
    अर्थात संतोष धन के सामने संसार की धन -माया धूरि के समान है l
   वर्तमान दौर में दूसरों की उन्नति को देखकर ईर्ष्या, डाह से असंतुष्ट रहना आम बात हो गयी है और यही असंतोष, तनाव अवसाद का कारण बन गया है l ऐसे परिवेश में संतोषी बनकर ईमानदारी सज्जनता, संयमशीलता, सुव्यवस्था से भरा जीवन, स्वयं का कल्याण और लोक कल्याण के पुष्प हमारे जीवन को महका सकते हैं l
प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि जीवन में असंतोष, अशांति, चिंता व्यग्रता क्यों उतपन्न होती है? मेरी दृष्टि में हमारा जीवन के प्रति गलत दृष्टिकोण अपनाना इसका मूल कारण है l अतः भाग्य, देव, ग्रह, नक्षत्र, समाज आदि पर असंतोषी मनःस्थिति का दोषारोपण करना न्याय संगत नहीं है l "संतोषी -सदा सुखी "का ध्येय वाक्य ही इसका उपचार है l
     संतोषी बनकर सकारात्मक बनो l अपनी कमजोरी को कभी दुनियाँ के सामने मत लाओ क्योंकि लोग कटी पतंग को जमकर लूटते हैं l
    --------चलते चलते
असंतोष की बानगी तो देखिये -राजस्थान में कुछ दिन पूर्व एक जिलाधीश, दो उपखण्ड अधिकारी के मध्य रिश्वत लेने की प्रतिस्पर्धा इस कदर चली कि -
  "प्याला न मात देगी रकाबी "
और तीनों ही ए सी बी की भेंट चढ़ गये, क्योंकि
राजमहल के दर्पण मैले- मैले हैं
नौकरशाही के पंजे जहरीले हैं
 शासकीय सुविधा बँट गई है दलालों में
क्या संतोषी सदा सुखी रह पायेगा
      इन जहरीले पंजों से
मेरी कलम सत्य की धर्म पीठ है शिवम, सुंदरम एक गाली बन गयी है l
       - डॉo छाया शर्मा
 अजमेर -  राजस्थान
गौधन, गजधन, वाजिधन और रत्नधन खान, जव आवत संतोष धन, सब धन धूरी समान। 
यह दोहा साफ प्रकट करता है कि संतोष धन के आगे  वाकि के सभी धन धूल के समान होते हैं, 
तो आईये आज की चर्चा  इसी बात से करते हैं  कि क्या मानसिक शान्ति यानी संतोष से बड़ा  कोई सुख हो सकता है, 
मेरा मानना है कि जीवन में खुशियों का संबध आर्थिक  स्थिति से ज्यादा मानसिक स्थिति से है, 
यदि हमारी मानसिक स्थिति ठीक है तो हम किसी भी परिस्थति में प्रसन्न रह सकते हैं, कहने का मतलब आर्थिक स्थिति चाहे कितनी भी अच्छी हो लेकिन जीवन  सही आनंद लेने के लिए मानसिक स्थिति का अच्छा होना जरूरी है। 
 हर कोई चाहता है वो ऐसा जीवन जिए जो कष्ट कलेश से मुक्त होकर धन धान्य से भरपूर हो, इसके लिए व्यक्ति को सदाचार जीवन का पालन करना  जरूरी है क्योकी  मानव को सबसे अधिक दुखी उसमें तृष्णा बनाती है जिसके लिए  उसको सारा दिन रात दौड़ धूप करनी पड़ती है लेकिन उसकी तृष्णा तभी भी पूरी नहीं होती जिससे  मन में अशान्ति  ही फैली रहती है, 
 मनुष्य की कामनायें बड़ी विशाल होती है जो कभी पूर्ण तो हो ही नहीं सकतीं किन्तु तृष्णाओं को जन्म देती हैं,  
बढ़ती हुई तृष्णा ही मनुष्य के दुख का कारण है, उसकी इच्छाएं वर्तमान की जरूरतों तक ही कायम नहीं रहती, 
लेकिन आने बाले  रिश्तों के लिए कुछ छोड़ जाने की प्यास ही उनके दुख का कारण बनती हैं, 
स्वार्ध के परिणाम से जो सन्तोष शेष बचता है वही मनुष्य का सच्चा सुख है, 
सोचा जाए मनुष्य को सुखी रहने के लिए सन्तोष एक सर्वोतम पदार्थ है। 
अन्त में यही कहुंगा अगर मनुष्य को अपने भीतर छिपे हुए आनंद को प्राप्त करना है ते उसे अपने मन की राह को बदलना होगा, क्योंकी मन और आनंद का सीधा और गहरा संबध है, यदि आनंद चाहिए तो हमें मानसिक संतुलन बनाए रखना चाहिए, 
यदि हम सामन्य रहें तो  निश्चित ही जीवन मेंआनंद रहेगा, 
संतोष ही सबसे बड़ा सुख है क्योकी मन में संतोष आने पर जिस सुख शान्ति की उपलब्धि होती है उससे बढ़कर संसार में कुछ नहीं है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
 किन्तु 'अति सर्वत्र वर्जयेत्' । कहीं संतोष लालच या बुरी आदत से दूर रखता है तो यही संतोष कहीं अकर्मण्य बनाता है । 
उदाहरण स्वरूप यदि लेखन क्षेत्र में ही तृप्ति हो जाए कि हमने जितना अभी तक लिखा बहुत लिखा । तो क्या हम आगे लिख पाएँगे ? नही न  ?
जीवन में तृष्णा भी बहुत जरूरी है ।
   -पूनम झा
   कोटा - राजस्थान 
मन में अगर संतोष आ जाता है तो मनुष्य परमानंद को प्राप्त करता है। ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। लेकिन मेरे ख्याल में संतोष व्यक्ति की विकासशीलता में बाधक हो जाती है। 
 विकास के लिए कुछ सपने संजोना आवश्यक है। जब तक सपने नहीं होंगे तब तक आगे का लक्ष्य निर्धारित नहीं होगा, उन्नति के रास्ते नहीं खुलेंगे। हाँ, उसमें ईर्ष्या या लालच नही होनी चाहिए।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
संतोष धन हम सबके लिए सबसे मूल्यवान धन है।अधिक लोभ खाई में गिराती है।मन का संतोष हमें सकारात्मक उर्जा प्रदान करता है।हम अपने कार्य क्षेत्र में बेहतर करते हैं। यह हमें सदैव नयी और सच्ची राह की ओर ले जाता है।हृदय में आनंद का स्पंदन होता है।कहा भी गया है," संतोषम परम सुखम "।
           - रीतु प्रज्ञा
        दरभंगा -  बिहार
जीवन की खुशी का मूलमंत्र संतोष ही है। संतोष वास्तव में एक ऐसा सकारात्मक पहलू है जिसको प्राप्त करने के बाद मनुष्य का जीवन सदैव सुखमय रहता है। आज की इस दौड़ती भागती जिंदगी में इच्छा और लालसा का कहीं अंत नहीं है। एक चाहत पूरी होते ही ये मन अगली किसी अन्य चाहत में संलग्न हो जाता है। फिर शुरू हो जाती है उस चाहत की पूर्ति के लिए जीवन में जद्दोजहद। ये सिलसिला अनवरत चलता ही रहता है, अंततः हमें अपने भागते हुए इस मन पर ही लगाम लगानी होती है। लगाम लगाने की इस प्रक्रिया में संतोष ही सहायक सिद्ध होता है। 
कहा भी गया है :
       *संतोषं परमं सुखमं*
     हाँ! ये अवश्य है कि असंतुष्टि ही जीवन को प्रगतिशील बनाता है और नित नए अनुसंधानों और आविष्कारों के लिए प्रेरित करता है। जिसके फलस्वरूप आज हमारा ये समाज प्रगति के पथ पर अग्रसर है। हमारे जीवन में इन सुविधाओं की उपलब्धि इसी का परिणाम है।
     फिर भी सामान्य तौर पर यदि हमें खुशी और आनंद के साथ जीवनयापन करना है तो संतुष्टि अत्यंत आवश्यक है।
- रूणा रश्मि "दीप्त"
राँची -  झारखंड
जी हां , मन का संतोष सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू है। जहां यह हमें अच्छे कार्यों की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है वहीं यह हमारे चरित्र का भी निर्माण करता है। मनुष्य को अपना लक्ष्य बनाना चाहिए और उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कठिन परिश्रम भी करना चाहिए । यहां गीता के अमर संदेश की ओर भी ध्यान रखना चाहिए कि हमारा काम सिर्फ कर्म करना है ,फल की इच्छा रखना नहीं । यदि हम फल की इच्छा रखेंगे और उस फल के प्राप्त न होने पर हम असंयम का मार्ग अपनाकर गलत दिशा की ओर मुड़ जाएंगे ।
दिनकर जी ने भी कहा है , 'उपवास और संयम आत्महत्या के साधन नहीं हैं। भोजन का असली स्वाद उसी को मिलता है जो कुछ दिन बिना खाए भी रह सकता है । त्यक्तेन भुंजीथा- जीवन का भोग त्याग के साथ करो ।यह केवल परमार्थ का ही उपदेश नहीं है, क्योंकि संयम से भोग करने पर जीवन से जो आनंद प्राप्त होता है वह  निरा भोगी बनकर भोगने से नहीं मिल पाता।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने भी संयम पर बल देते हुए 'नवयुवकों के प्रति' कविता में कहा है -
दो पथ  असंयम और संयम हैं अब सब कहीं।
पहला अशुभ है दूसरा शुभ है, इसे भूलो नहीं।।
पर मन प्रथम की ओर ही तुम्हें झुकाएगा अभी ।
यदि अब न संभले तो फिर न संभलोगे कभी ।। 

थॉमस एडिसन ने कहा है ,'आप मुझे कोई पूरी तरह से संतुष्ट आदमी दिखाइए और मैं आपको एक असफल आदमी दिखा दूंगा।'
लियो टॉलस्टॉय नहीं कहा है ,'अगर आप पूर्णता के लिए देख रहे हैं तो आप कभी संतुष्ट नहीं होंगे।'
दुनिया के सबसे बड़े  संत और विचारक कबीर ने कहा है -गो-धन, गज-धन, वाजि-धन और रतन-धन खान। 
जब आवत संतोष-धन, सब धन धूरि समान ॥
इसमें कबीर जी ने कहा है कि हमें जीवन में संतोष को धारण करना चाहिए जब जीवन में संतोष आ जाता है तो सभी धन मिट्टी के समान प्रतीत होते हैं । अतः जीवन में संतोष को धारण करना चाहिए।
- डॉ.सुनील बहल 
चंडीगढ़
संतोष ही सबसे बड़ा धन है, और संतोष के अभाव में बड़े-बड़े धनपति भी दुखी रहते हैं।
 धन के अभाव में भी व्यक्ति के मन में यदि संतोष है तो वह सुखी रह सकता है, क्योंकि संतोष सबसे बड़ा धन है ।
गरीब के अपेक्षा अमीरों की चाह  अधिक होती है ।धन की संपन्नता से मन की चाह भी बढ़ जाती है। जीवन में धन की चिंता नहीं करनी चाहिए  बल्कि जीवन धन की चिंता करनी चाहिए ।
पूरा जीवन धन के लिए समर्पित कर देना कौन सी बुद्धिमानी है।
 अपने जीवन निर्वहन के लिए जितना धन आवश्यक है उतना संग्रह करना चाहिए ,उसके प्रति अधिक आसक्ति नहीं रखनी चाहिए।
 संतोष ही सबसे बड़ा सुख है। यदि आपके अंदर संतोष है तो यह आपका बहुत बड़ा सकारात्मक पहलू है आपके जीवन का ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
जी ...यह सही है कि मानव जीवन में मन का संतोष ही सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू है। आज भौतिक सुख समृद्धि साधनों के पीछे भागता व्यक्ति हर पल अशांति का जीवन जी रहा है। यह आत्मजनित असंतोष है। क्योंकि व्यक्ति की इच्छाऐं कभी मरती नहीं है, जितना मिलताहै, उससेे कहीं अधिक पाने की लालसा बनी रहती है। व्यक्ति यह अवश्य जानता है कि धन से संतोष या शान्ति नहीं मिल सकती फिर भी वह ज्यादा से ज्यादा समृद्ध वान बनना चाहता है। धन, वैभवं पाने के लिए गलत रास्ते का चुनाव भी कर लेता है, बेईमानी करता है, झूठ बोलता है। फिर भी सब कुछ पा लेने पर भी अशांति पीछा नहीं छोड़ती। अतः लालसा विहीन मानव मन ही संतोषी मन कहलाता है जो मानव जीवन में सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू है। 
- शीला सिंह
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
      मन का संतोष वह सकारात्मक पहलू है जिसे धन से खरीदा ही नहीं जा सकता। अर्थात मन का संतोष अनमोल है और यह अनमोल धन संतोष धन से प्रचलित है।
       उल्लेखनीय है कि मानव का मन भटकता रहता है और जितना अधिक उसे प्रर्याप्त होता है उससे कहीं अधिक उसकी इच्छा बढ़ जाती। जब उसको उसकी बढ़ी हुई इच्छा के अनुसार मिलता है और उसके मन-मस्तिष्क की उड़ान उससे भी बढ़ जाती है। किंतु उस मानव के मन को संतुष्टि नहीं मिलती। जो मानव के दुःखों का सबसे बड़ा कारण है और जन्म-मरन के आवागमन का आधार भी यही है।
       इसलिए जब किसी मानव को मानसिक सन्तोष मिल जाए तो समझ लो उसे काम क्रोध लोभ मोह और अंहकार से मुक्त हो कर जीवन के आवागमन से मोक्ष प्राप्ति कहलाती है।
- इन्दु भूषण बाली
 जम्म् -  जम्म् कश्मीर
"संतोषी सदा सुखी" परन्तु  क्या  किसी  के मन में  संतोष  की भावना  है  ? शायद  नहीं  क्योंकि  मन की अभिलाषाएं कभी  पूरी  नहीं  होती  । एक पूरी  हुई  नहीं  कि दूसरी  सिर उठा लेती है  फिर  तीसरी .....चौथी......और  यह सिलसिला  ताउम्र  चलता  रहता है  ।
      मन से
 संतोषी होना इतना  आसान  भी नहीं  है । इस दुनिया  में  कोई  भी अपने  जीवन  से संतुष्ट  नहीं  है । किसी से भी पूछा  जाए तो वह अपने-अपने  दुखों की अंतहीन  राम कहानी सुनाने  लगता  है  । 
      आज के भौतिकवादी  युग  में  इच्छाएं/लालसाएं  द्रौपदी  का  चीर  बन गई हैं । तृष्णा  जीवन  का  महत्वपूर्ण  हिस्सा  है  । मन में  राग-द्वेष, ईर्ष्या, क्रोध, अहंकार, स्वार्थ  भरे पड़े  हैं । ये सब निकल कर  बाहर  आ जाएं......मन के भीतर  का पर्यावरण  स्वच्छ  होगा  तभी तो  संतोष  रुपी सकारात्मक  विचारों  को स्थान  मिलेगा  ।
       शयह सत्य  है  कि  जीवन  में  मन का संतोष  सबसे बड़ा  सकारात्मक  पहलू  है  परंतु  इसे प्राप्त  करने  के  लिए  दृढ़  इच्छाशक्ति  के साथ-साथ  भगीरथ प्रयास  भी अति  आवश्यक  है  । 
        - बसन्ती  पंवार 
         जोधपुर  - राजस्थान 

हाँ मन का सकारात्मक पहलू हमें कभी गलत करने की इजाजत नहीं देता ।दुनिया में  अनेक आकर्षण फैले हुए हैं उनके पीछे भागता व्यक्ति उसे पाना चाहता है यदि मन मे संतोष का सकारात्मक पहलू है तो मेहनत करने में विश्वास रखेगा और यदि इच्छित वस्तु नहीं मिलती तो वह गलत ढंग से पाने की कोशिश  नहीं करेगा ।संतोष कर लेगा ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश


" मेरी दृष्टि में " सकारात्मक रहने के लिए बहुत कुछ करने की आवश्यकता नहीं होती है । सिर्फ मन का संतोष ही काफी होता है । अत: मन को खुश रखना होता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

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