क्या उन्नति के लिए सबसे पहले स्वयं को आगें आना चाहिए ?
सभी अपनी उन्नति चाहते हैं । अमीर - गरीब कोई भी हो । सभी अपनी उन्नति की इच्छा रखते हैं । ऐसे में अपने आपको तैयार सबसे पहले करना होता है । यही कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
मेरे विचार में उन्नति के लिए सबसे पहले स्वयं को आगे आना चाहिए, फिर वो उन्नति स्वयं की हो, परिवार की हो, समाज की हो या देश की हो। कोई और पहल करे तब हम आयेंगे यह विचारधारा रखने से उन्नति को गति नहीं मिल पाती है। अतः उन्नति करने की दिशा में स्वयं को पहल करनी होगी बिना यह सोचे कि अन्य कर रहे हैं या नहीं।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
जब उन्नति का रास्ता प्रशस्त होता है तो किसी किसी-न-किसी को पथप्रदर्शक बनना पड़ता है। जिसने भी विकास के सपने देखे हैं और उसकी योजना बनाई है उसे तो आगे चलना ही होगा। उसके परिणाम ही अन्य लोगों को प्रेरित करेंगे।
लाखों में एक होते हैं जो समाज के उत्थान की बात सोचते हैं।जिस प्रकार 'विधवा विवाह' का प्रचार करने वाले विद्यासागर ने खुद भी विधवा से विवाह कर मिसाल बनाई। बदलाव लाने के लिए खुद को अर्पित करना ही पड़ता है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
जब तक स्वयं परिश्रम नहीं किया जाता तब तक उन्नति संभव नहीं है। चूंकि उन्नति का पौधा पसीने से सींचा जाता है और जब तक पसीना न बहाया जाए तब तक जीवन की धारा विकास पथ पर अग्रसर नहीं होती।
इसलिए क्षेत्र कोई भी हो स्वयं का आगे आना अनिवार्य है। जैसे स्वयं खाना खाने से स्वयं के पेट की भूख मिटती है। अतः उन्नति का रास्ता स्वयं ही खोजना पड़ता है और सत्य यही है कि उन्नति के लिए सबसे पहले स्वयं को आगे आना चाहिए।
- इन्दु भूषण बाली
जम्म् - जम्म् कश्मीर
उन्नति के लिए व्यक्ति के जीवन में अनुशासन जरूरी है।
यह क्यों जरूरी है?:--
स्वय पर शासन करना तथा शासन के अनुसार अपने जीवन को चलाना ही अनुशासन है।
इससे विकास होता है :-अपना,परिवार, समाज, राज्य, देश का। अगर हर व्यक्ति अनुशासित हो जाएगा तो समाज के संरचना अपने आप बदलने लगेगा।
अनुशासन सफलता की चाबी है।
जो व्यक्ति अनुशासित होकर उन्नति करता है उसे समाज में उत्तम स्थान दिलाने में सहायता होता है। जो व्यक्ति इस तरह के जीवन यापन करता है वह स्वंय के लिए सुखद और उज्जवल भविष्य निर्धारित करता है।
लेखक का विचार:---यदि आप सकारात्मक होकर अपने मार्ग पसंद करें तो उन्नति स्वंय आगे आ जाएगा जिससे समूह यानी परिवार, गांव, शहर, राज्य, देश विकास के पथ पर अग्रसर होते रहेगा। इससे देश में विकास रुकने की नहीं है।
हर व्यक्ति को यह भावना हो जाए तो भारत जल्द से जल्द विश्व के मानचित्र पर प्रथम स्थान पर आ जायगा।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
परिवार, समाज या देश की उन्नति हो,इन सब के लिए स्वयं को आगे आना चाहिए। अगर हम दूसरों का मुँह ताकते रहें गे तो कभी भी उन्नति के पथ पर अग्रसर नहीं रह सकते। देश और समाज को अगर हम सभ्य और प्रगति के रास्ते पर ले जाना चाहते हैं तो स्वयं का योगदान "अनुशासित "होना है। अनुशासित एक ऐसा गुण है जिसकी आवशयकता पग पग पर पड़ती है।पहले स्वयं पर शासन सीखना होगा। अपने जीवन को अनुशासन में ढालना होगा। अनुशासन सफलता की कुंजी है। अनुशासन लक्ष्यों और उपलब्धियों के बीच सेतु है। किसी भी राष्ट्र की प्रगति तभी हो सकती है जब उस के नागरिक अनुशासित हों।जब हम खुद अनुशासित होंगे तभी दूसरों को अनुशासित रख सकेंगे। अनुशासन ही देश को महान बनाता है और वो देश निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर रहता है।
देश की उन्नति हमारी उन्नति है क्योंकि देश की उन्नति हम पर निर्भर करती है। हमें हमारे देश की उन्नति को महत्व देते हुए हमारा कर्तव्य है कि आर्थिक विकास में वृद्धि, अच्छी शिक्षा, धर्म निरपेक्षता, अनुशासन और समानता आदि के लिए ऐसे लीडर का चुनाव करना चाहिए जो देश को उन्नति के पथ पर ले जाए।हमारे देश की अनेकता में एकता को बरकरार रखे।ऐसा करके हम स्वयं के लिए सुखद और उज्जवल भविष्य की राह निर्धारित करेंगे।
- कैलाश ठाकुर
नंगल टाउनशिप - पंजाब
उन्नती के लिये सबसे पेहले आपके पास आत्मविश्वास का होना नितांत जरुरी है
उन्नति के लिये आपके पास साहस मनोबल तथा पर्याप्त श्रम कर्तव्य होना बहुत जरुरी है
आपका अपना साहस व दूर द्रिष्टी भी इसमे सहायक होती है** स्वयं का आगे आना इसमे एक साधक समान प्रोत्साहन का कार्य करेगा / आप स्वयं आगे न आये तो उन्नति का अवसर निकल जायेगा आपके आगे आने से आपको एक अवसर जो मिला है उसका समय निकल जायेगा / उन्नति के अवसर युं तो हर जगेह है लेकिन जब ये आपके सामने आते है तो आपको भी आगे बढ कर उनका साथ देना पडता है ऐसे परीपेक्ष्य में ही आप उस अवसर को केश कर पाओगे हर अवस्था के लिये एक समय निश्चित है यादी अब चूके तो फिर न जाने कब एक ऐतिहासिक कथा आप सबने सुनी है उसका उदाहरण दे रहा हुं //
प्रीथ्वीराज चौहान दुश्मनो में कब्जे में है उनका सबसे प्रिय मित्र उनके साथ कैद है मुगल बादशाह ने प्रथ्वीराज के धनुर्धर होने के खूब सुना था उनका मित्र उनको कविता के रूप में बादशाह का स्थान बता देता है और उस समय प्रथ्वीराज उस मओक्ने मौके का फायदा उठा कर बादशाह का अपने तीर से सर छेदन कर देता है - यही है इस बात का सबसे बडा उदाहरण
- डॉ. अरुण कुमार शस्त्री
दिल्ली
जी हाँ किसी भी क्षेत्र में जब हमें यह महसूस होता है कि यह पिछड़ा हुआ है तो उस क्षेत्र में विकास हेतू हमें पहल भी करनी चाहिए अन्य लोगों को उस क्षेत्र के पिछड़ेपन के प्रति जागरूक करना चाहिए क्योकि यह भी तय है कि
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता अत: उन्नतिशीलता को लाने हेतु हमें स्वयं को आगे आना चाहिए क्योकि विकास केवल एक व्यक्ति का नहीं होता विकास सम्पूर्ण विश्व का होता है और वह प्रत्येक व्यक्ति के उत्थान से ही सम्भव है।।
अधिकांशत: यही होता है कि सभी पहल करने से कतराते हैं जिससे पिछड़ापन ,पिछड़ापन बना रह जाता है और बातों में ही विकास सिमट कर रह जाता है।
अत: यदि विकास चाहिए तो हमें प्रतिपल आगे आकर पहल करने की हिम्मत रखनी होगी और आगे आना होगा।।।
- ज्योति वधवा "रंजना '
बीकानेर - राजस्थान
अपनी सफलताओं को अग्रसरित करने हेतु स्वयं ही रास्ता निकालना पड़ता हैं, जिस तरह से समस्त प्रकार के निजी कार्यों को अंजाम देना पड़ता हैं, उसी तरह से स्वयं को आगे आकर उन्नति के शिखर पर पहुंचना चाहिए ताकि भविष्य में अनन्त समय तक चलता रहें। आज के परिवेश में कोई भी किसी भी तरह से स्वयं उन्नति के लिए आगे नहीं आता बल्कि चरण वंदना, पीछे के दरवाजे से, अत्याचार, शोषण के अनेकानेक निन्दनीय कृत्यों से ग्रस्त होकर अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल हो रहे हैं, जिसका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से दिखाई देते हैं, मानव रुपी विचलित प्राणायाम हैं, जो क्षणिक में पहुंचना जानता हैं, किसी भी तरह से किसी भी प्रकार से मेहनत और मजदूरी करना चाहता, सब बैठें बिठायें ही मिलता जायें? जिसका प्रतिफल यह भी होता हैं, कि
दुष्परिणाम भविष्य में दिखाई पड़ने लगते हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
इसमें कोई दो राय नहीं है सामने स्वयं को आगे आना ही चाहियें ...शुरुवात अपने घर से ही करते हैं ! माता-पिता बच्चों को अनुशासन का पाठ पढा़ उसे अच्छे संस्कार देते हैं तो प्रथम वे स्वयं इसका पालन करते हैं (सुबह जल्दी उठना ,समय पर नहाना-खाना , ईश्वर में श्रद्धा पूजा पाठ आदि आदि )
गांधीजी ने भी स्वयं ऊंच-नीच ,जाति भेद-भाव मिटाने के लिए हरिजन से गले मिलने एवं सफाई करने की पहल की थी परिणाम आज समक्ष है ! इसी तरह सती-प्रथा ,दहेज-प्रथा , बाल-विवाह ,बेटी बचाओं ,भ्रूण हत्या नारी शिक्षा ऐसे अनेक मुद्दे हैं जिसे दूर करने के लिए प्रथम किसी ने तो पहल की है ,इसीलिए आज हमारा भारत जो पिछडे़ लोगों की गिनती में आता था उन्नति के क्षेत्र में प्रखर है !
ताजा उदाहरण --: आज कोरोना जैसी महामारी से बचने के लिए वैक्सीन तैयार की गई है !लोगों में तरह तरह की भ्रांति है किंतु देश में सभी को इससे बचाने की भावना में प्रथम हमारे रक्षक, हितैषी लगवा रहे हैं ताकि लोगों को विश्वास हो ! अतः देश की उन्नति के लिए प्रथम स्वयं को तो आगे आना होगा !
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
किसी भी काम के लिए पहले स्वयं को ही आगे आना पड़ता है। यदि हम आगे नहीं बढ़ेंगे तो दूसरों को कैसे कह सकते हैं कि तुम आगे बढ़ो। उसी तरह कोई कार्य भले वह स्वयं की उन्नति का हो या समाज का हो या गाँव का हो और वो कार्य करना हम चाहते हैं तो पहले हमें ही आगे बढ़ना होगा। तब पीछे-पीछे बहुत से लोग साथ देने के लिए आने लगेंगे। सब यदि सोचे कि कोई आगे बढ़े तब मैं बढ़ूँ तो किसी की भी उन्नति हो ही नहीं सकती है। इसलिए स्वयं को ही आगे आना पड़ता हैं। हर काम में यदि हम स्वयं आगे नहीं बढ़ेंगे तो दूसरों के भरोसे रहने से काम नहीं हो पायेगा। इसलिए कविगुरु रविंद्रनाथ टैगोर ने कहा है कि यदि बुलाने से कोई नहीं आता है तो तुम अकेला ही चलो। बाद सब आने लगेंगे। इसलिए उन्नति के लिए सबसे पहले स्वयं को ही आगे आना चाहिए।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - पं.बंगाल
एक प्रसिद्ध कहावत है , “पहले घर में चिराग़ जलाओ,फिर मस्जि़द में”| इसी प्रकार यदि हम घर, समाज या देश में किसी भी क्षेत्र में उन्नति चाहते हैं तो हमें खुद पहल करनी होगी| हमें यह इंतज़ार नहीं करना चाहिए कि कौन पहल करेगा अपितु स्वयं आगे बढ़कर पहल करनी चाहिए| परमात्मा भी उसी की मदद करते हैं जो स्वयं अपनी मदद करते हैं | यदि हम किसी अच्छे कार्य की पहल करेंगे तो धीरे- धीरे सभी हमारे साथ जुड़ते जाएंगे और हम अपने कार्य में अवश्य सफल होंगे |
- अंजु बहल
चंडीगढ़
जी हां,यह बात एकदम सही है। अपनी उन्नति के लिए सबसे पहले स्वयं को ही आगे आना चाहिए।हम गाते भी तो है- ना हो साथ कोई अकेले बढ़ो तुम,सफलता तुम्हारे कदम चूम लेगी।सही राह में अकेले चल पड़ने पर कारवां खुद ही बन जाता है। किसी शायर की पंक्तियां याद आती है, मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर,लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया।हम स्वयं की शक्ति से जितना परिचित होते हैं, दूसरे उतना नहीं होते।एक मशहूर कोरियोग्राफर ने कहा था अपने स्ट्रगल के दिनों में मैं गांव,शहर की बारात में बिना बुलाए ही नाचने चला जाता था, इसी से पहचान मिली।यानि वह स्वयं आगे आया और अब कितनों का ही मार्गदर्शक बन गया है। अपने मित्रों को वाशिंग पाउडर बनाने वाले की पहचान निरमा वाशिंग पाउडर बनाने वाली कंपनी के मालिक के रुप में मिली। मसालों की घर घर बिक्री करने वाले महाशय जी देश मे क्या, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध मसाला किंग हुए। धीरुभाई अंबानी की सफलता की कहानी तो सब जानते ही हैं।अनेक उदाहरण है सफलता के,जब लोगों को विशिष्ट पहचान भी मिली। लेकिन इसके पीछे उनकी कड़ी मेहनत, ईमानदारी के साथ साथ स्वयं ही आगे आने का गुण महत्वपूर्ण कड़ी है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
स्वयं की उन्नति किये बिना किसी भी समाज या देश का विकास कैसे संभव है l कोई तो पहल करेगा l जब तक स्वयं के विचार परिपुष्ट एवं सकारात्मक नहीं होंगे, व्यक्ति समाज और देश का भला नहीं कर सकता है l अतः पहले स्वयं की उन्नति तो करनी ही होगी l बड़े बड़े महापुरुषों ने अपने विचारों को लेकर आगे बढे और हम उनके अनुगामी बने l अहिल्या बाई ने स्वयं बचपन से जीव और इंसान पर दया दृष्टि रखी, मिसाल बन गई, पहल तो स्वयं उन्हीं की थी l
दृढ़ संकल्प वाले व्यक्ति अपने महत्वपूर्ण कार्यो द्वारा समय के माथे पर भी मेख गाड़ जाया करते अर्थात अपना एक विशिष्ट इतिहास बना जाया करते हैं l
स्वयं की उन्नति का अर्थ अपना
सर्वागीण विकास करना l आत्मिक, आध्यात्मिक, बौद्धिक, मानसिक विकास करना l जब हम स्वयं इन विचारों से परिपुष्ट नहीं होंगे देश की उन्नति नहीं हो सकती l
जब हम जीवन का लक्ष्य बना आगे बढ़ेंगे तभी उन्नति संभव है l अथर्वेद ने भी यही प्रेरणा दी है -
"आरोहणमाक्रमणम जिवर्ता जीवतोs यनम "अर्थात उन्नत होना और आगे बढ़ना प्रत्येक जीव का लक्ष्य है l
----चलते चलते
इस पथ का उद्देश्य नहीं श्रांत भवन में टिक रहना l
किन्तु पहुँचना उस सीमा तक, जिसके आगे राह नहीं ll
- डॉo छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
प्रत्येक मनुष्य अपनी उन्नति के लिए सदैव प्रयासरत रहता है। उन्नति का मार्ग सहज-सरल नहीं है। अनेक प्रकार की विपरीत परिस्थितियों से सामना करना पड़ता है। यदि उन बाधाओं अथवा परेशानियों से डरकर जब हम स्वयं ही कदम पीछे हटा लेंगे तो कोई भी मनुष्य हमारी मदद कैसे कर सकेगा। हम स्वयं आगे बढ़ते रहेंगे तो निश्चित रूप से हमें मदद भी प्राप्त होगी।
कहते हैं "ईश्वर भी उन्हीं की मदद करता है जो स्वयं की मदद करते हैं। इसी प्रकार मानवीय मदद के हाथ भी उसी मनुष्य के लिए बढ़ते हैं जो परिस्थितियों से स्वयं संघर्ष करते हैं। इसलिए उन्नति के लिए सबसे पहले स्वयं को आगे आना ही पड़ेगा।
"जीतना जरूरी है अपनी उन्नति के लिए,
उन्नति जरूरी है मन की शक्ति के लिए।
जीवन मैदान नहीं है आनंद की दौड़ का,
यहां स्वयं दौड़ना पड़ता है जीत के लिए।।"
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
उन्नति स्वयं की हो या देश की जब हर व्यक्ति को स्वयं आगे आना होगा ।नित की मेहनत उन्नति देती है ।एक उदाहरण प्रस्तुत करती हूँ ... गुलामी के वक्त चम्पारण के किसानों का दुःख दुर करने के लिए वहाँ के निवासी रामचन्द्र शुक्ल प्रयासरत होकर गाँधीजी को वहाँ लाये और वहाँ की परिस्थिती से अवगत कराया जिससे कि सत्याग्रह की शुरुआत हुई । वहाँ के लोगों पर अत्याचार का विरोध हुआ ।सत्याग्रह का रुप इतना विस्तृत हुआ कि अंग्रेजों को जाना पड़ा तो कितने ही स्वयं आगे आये तब सफलता मिली ।उन्नति का मार्ग हम स्वयं प्रसस्त करते हैं कोई दूसरा भी तभी साथ देता है जब हम आगे बढ़ते हैं ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
उन्नति के लिए सबसे पहले स्वयं को तो आगे आना ही होगा। अन्य जो भी हमारे हितैषी हैं उनका हमें सहयोग, मार्गदर्शन और प्रोत्साहन ही मिल सकता है। कहा भी गया है-
उद्यमेन ही सिद्धयंती, कार्याणी न मनोरथै।
न हि सुप्तस्य सिंंहस्थ प्रवशन्ति मुखे मृगाय।।
याने कार्य करने से सफल होते हैं, सिर्फ सोच लेने से कुछ नहीं होता। जिस प्रकार सोये हुए सिंह के मुख में हिरण प्रवेश नहीं कर सकता।
अतः उन्नति के लिए जितनी हम मेहनत करेंगे,जितने हम आगे रहेंगे,उतनी ही हमें उन्नति मिलती रहेगी और इसके साथ हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि हम जितने पीछे होते रहेंगे याने लापरवाह और बेपरवाह होंगे हमारी उन्नति कम होती चलेगी। अतः हमें सदा अपने काम में रुचि रखते हुए साहस और संकल्प के साथ सदैव अग्रसर रहना चाहिए ताकि हमारी उन्नति का पथ सुगम और सरस बना रहे और हम समृद्ध होते चलें।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
उन्नति करना जीवन का नैसर्गिक नियम है। मनुष्य अपने संपूर्ण अपूर्णताओं से ऊपर उठकर उन्नत बनने का प्रयास करता है।
निरंतर पहले स्वयं ऊपर उठने की चेष्टा करता है। वही मनुष्य सर्वतोन्मुखी उन्नति को प्राप्त करने में सफल होता है जो पहले स्वयं को विचारों से, स्वास्थ्य से, बुद्धि से खुद को उन्नत बनाता है। तभी वह समाज के विकास में अपने प्रेरणात्मक विचारों से दूसरे के विचारों को उन्नत करने में सफल होता है और मार्गदर्शन कर पथप्रदर्शक बनता है। समाज और देश को उन्नत बनाने में अहम भूमिका निभाता है।
मौज में पड़े रहना किसी को बुरा नहीं लगता पर उन्नति की ईश्वर-दत्त आकांक्षा इतनी तीव्र है कि उसके लिए मौज छोड़कर कष्ट सहने को तत्पर हो जाता है। उन्नतिशील स्वभाव के लोगों को-- उनके उचित प्रवृति में सहायता करने के लिए परम पिता परमात्मा ऐसे साधन उपस्थित कर देता है जिससे उसकी यात्रा सफल हो जाती है। एक प्रसिद्ध कहावत भी है- ईश्वर उसी की मदद करता है जो खुद परिश्रम करता है।
सफलता का मार्ग सुगम नहीं होता। हर तरह की कठिनाइयों से जूझना पड़ता है। उन्नति हेतु ह्रदय में आकांक्षा को जागृत कर पहले स्वयं को आगे करने की जरूरत होती है तभी हम अपनी मंजिल को प्राप्त कर पाते हैं।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
एक बड़ी पुरानी कहावत है खुद मरे बिना स्वर्ग नहीं मिलता--कितनी सच्चाई है इस बात में कि कुछ अच्छा पाने के लिए स्वयं को आगे आना होगा। एक युग हुआ करता था जब लोगों में गुणवत्ता को पहचानने की क्षमता होती थी लेकिन आज का समय बदल गया है जो दिखता है वही बिकता है "हीरा मुख से कब कहे लाख टका मेरो मोल "ऐसे दोहे अब "आउटडेटेड "हो गए हैं। अब तो उन्नति के लिए प्रचार-प्रसार करना पड़ता है। अपने आप को तराशना भी पड़ता है। झूठी चमक अधिक दिन नहीं टिकती। लेकिन सच्ची चमक को भी आगे होकर दिखाना पड़ता है। गुदड़ी में लाल अब नहीं पहचाने जाते।
ये तो हुई भौतिक दुनियावी उन्नति। मगर आत्मिक और सांस्कृतिक उन्नति जो हमें ऊँचाईयों पर पहुंचाये - - - जिससे हम अपनी उन्नति पायें- कार्यक्षेत्र में सफलता व सक्षमता हासिल करने के लिए स्वयं को आगे आना चाहिए।
- हेमलता मिश्र "मानवी "
नागपुर - महाराष्ट्र
"जब हौंसला बना लिया उंची उड़ान का फिर देखना फिजूल कद आसमान का"।
कामयाब होना किसका ख्वाव नहीं होता
आज के समय में हरेक कामयाबी चाहता है, लेकिन कामयाबी इतनी आसान नहीं,
कामयाबी के लिए बहुत मेहनत करना पड़ती है तधा इसके साथ साथ सही योजना होना जरूरी है व कामयाबी के लिये प्रेरित होना भी जरूरी है क्योंकी प्रेरणा एक ऐसी चीज है जो इंसान से कुछ भी करबा सकती है,
तो आइयै बात करते हैं कि क्या उन्नति के लिये इंसान को स्वंय ही आगे आना चाहिए,
मेरा तर्क है कि उन्नति के लिए इंसान को सबसे पहले खुद आने की जरूरत है क्योंकी जब तक अपनी अंतर आत्मा किसी कार्य को करने के लिए नहीं मानेगी तब तक हम आगै नहीं बढ़ सकते, उन्नति करना आगे बढ़ना प्रत्येक जीव का लक्ष्य होना चाहिए और अधिकार भी है,
इसके लिए निरंतर ऊपर उठने की चेष्ठा करते रहना एक अच्छा गुण है, कुछ लोग मामुली सी उन्नति करके संतोष कर लेते हैं इस लिए उनकी आगे की तरक्की पर रोक लग जाती है, ऐसे लोग जीवन का महत्व नहीं जानते व अनजान रहते हैं,
क्योंकी बराबर आगे बढ़ते रहने से ही नई उर्जा उतपन्न होती है जिससे उन्नति का क्रम कभी रूकता नहीं है,
निरंतर आगे बढ़ते रहना और महानता को बूंद बूंद इक्टठे करते रहना अपनी लघुता को वढावा देने के काविल होता है,
आखिर में यह कहुंगा जो लोग उन्नतिशील स्वाभाव के होते हैं उन्हें कहीं न कहीं से सहायता प्राप्त हो जाती है,
इसलिए उन्नति करने के लिए तीव्र आगे बढ़ने का मूल मंत्र बना लिजिए, ज्ञान को आगे बढ़ाते रहिए विवेक को जाग्रत होने दीजिए सेहत अच्छी रखीए और अपने को कभी भी असमर्थ मत समझिये, ऐसे विचारों का त्याग कर दीजिए जो आप को असहायएंव अशक्त बनाते हों तो आप जरूर तरक्की करोगे,
यदि आपकी आकांक्षांए आगे बढ़ने की हैं व उन्नति करने की तीव्र इच्छा आपके मन में है तो कोई दूनिया की ताकत आपको पीछे नहीं कर सकती इसलिए आगे ब़ढ़ने के लिये आपके प्रयास भी तीव्र होने चाहिए।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जीवन में किसी भी कार्य को करने के लिए स्वयं को ही आगे आना पड़ता है । ऐसी कई कहानियां और उदाहरण सुने तथा पढ़े हैं, जब परायों के भरोसे काम बिगड़ा या हुआ ही नहीं ।
हमारा काम हम स्वयं जितनी अच्छी तरह और ईमानदारी से कर सकते हैं, दूसरे नहीं कर सकते । काम बिगड़ने पर जितनी तकलीफ/दुःख हमें होगा, दूसरों को नहीं होगा ।
लीडर या नेता जब खुद कर्मठ होता है तो वह समूह खूब उन्नति कर सकता है ।
किसी भी क्षेत्र में यदि उन्नति करनी है तो सबसे पहले स्वयं को ही आगे आना होगा । कहा भी है --
"अपने हाथ जगन्नाथ ।"
-बसन्ती पंवार
जोधपुर - राजस्थान
बहुत पुरानी बात है लेकिन मेरे समुन्नतौ/समुन्नति/सर्वतोमुखी स्वभाव के पीछे का आधार है।
मेरे दादा अपने जमीन पर पाँच कुँआ खोदवाये थे। विद्यालय बनवाये थे और अमराई में गोनसार (अनाज भुजने का चूल्हा... तब के ज़माने मिट्टी के एक बड़े चूल्हा पर कई मिट्टी के कड़ाही-घड़ा लगे होते थे) बनवाये थे... । अब वो विद्यालय सरकारी हो गया। गाँव में बिजली हो जाने से नल की व्यवस्था हो गयी।
उन्नति के लिए सबसे पहले स्वयं को आगे आना चाहिए तभी मनुष्य जीवन सफल है।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
उन्नति के लिए सबसे पहले स्वयं को आगे आने की आवश्यकता है ।खुद के इरादों मे इतनी क्षमताओं को समाविष्ट होना चाहिए ताकि उन्नति में निंरतर आगे बढ़े।सैद्धांतिक रूप से सभी की सहमति जताई जा सकती उन्नति पथ निर्माण कार्य करने हेतू परंतु स्वयं को आगे आने के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए।विकल्प विकसित का तभी तय होगा जब खुद के हौसलों मे उड़ान भरने की सर्मथता होगीं।जीवन के हरके परिस्थितियों मे स्वयं को विकसित करने के लिए तैयार होना चाहिए ताकि उन्नति पथ निर्माण हो सके।हमेशा यह देखा जाता है कि विकसित करनेवाले हमेशा आगे आना चाहिए स्वयं को। देश कार्य मे उन्नति हेतू सबसे पहले खुद को आगे आना चाहिए क्योंकि जब आप खुद को निंरतर प्रयासरत होते हैं तो आपसे प्रेरणा लेकर काफी हद तक लोग आपसे जुडऩे लगते है औरसमाज को विकसित करने मे अपनी भूमिका निभाते हैं।जीवन की कसौटियों को हम हमेशा मुस्कराते हुए पार करते हैं और उन्नति मे अपनी अहम भुमिका निभाते हैं।हमारी संस्कृति को मजबूत पद्धति मिलती है ।देश की समाज की उन्नति के लिए हमेशा हमें आगे होना चाहिए।तब ही हमारा समाज विकसित हो सकेगा।स्वयं को जीवन मे सार्थकता बनाने के लिये हमेशा उन्नति के लिए आगे होना चाहिए।
हम जब मुश्किलों का सामना करते हैं हमारे सामने बेहद तकलीफ़ आती है उन्नति की राहों मे हमें हौसलों के पंख साथ हमेशा स्वयं को तैयार रखने की आवश्यकता है।पहले हम समक्षता से परिपूर्ण हो फिर जीवन के सभी चुनौतियों का सामना कर सकते हैं ।इसलिए उन्नति के लिए स्वयं को आगे आना चाहिए।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
बिल्कुल! प्रत्येक अच्छे काम के लिए स्वयं को ही आगे आना पड़ता है। उन्नति भले ही स्वयं की हो, परिवार की हो, समाज की हो, देश की हो.. किसी भी प्रकार की उन्नति के लिए स्वयं को प्रोत्साहित होकर आगे बढ़ना होता है। यदि हम सोचें कि उन्नति तो हो परंतु काम कोई दूसरा करें अथवा हम निठल्ले बैठे रहें और उन्नति किसी दूसरे के काम करने से होगी यह सोचना सरासर गलत है। जो बदलाव हम चाहते हैं उसके लिए स्वयं को पहल करनी होगी। तभी दूसरे कुछ करेंगे क्योंकि एक- एक व्यक्ति से काफिला बनता है उसी काफिले के अच्छे- बुरे कार्यों से उन्नति और अवनति का कारण बनता है। सो सबसे पहले स्वयं को ही आगे बढ़कर कार्य करना होगा हम उन्नति के शिखरों को छू सकते हैं। जो हम चाहते हैं फिर कुछ भी पाना असंभव नहीं होगा।
- संतोष गर्ग
मोहाली - चंडीगढ़
" मेरी दृष्टि में " उन्नति के लिए सबसे पहले कर्म अपने होने चाहिए । तभी कहीं उन्नति सम्भव हो पाती है । दूसरों के भरोसे पर उन्नति सम्भव नहीं होती है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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