क्या धैर्य से टल जाता है संकट ?
धैर्य से बड़ा से बड़ा संकट टल सकता है । यह बड़े से बड़े विद्वानों ने स्पष्ट भी किया है । धैर्य की अपनी क्षमता होती है । जो प्रयोग करने वाले पर निर्भर करती है । यही कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब देखते हैं आये विचारों को : -
धैर्य के बिना जीवन में बड़े कार्यों में सफलता नहीं मिल सकती। धैर्य हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। संकट के समय ही धैर्य की परीक्षा होती है। अगर हमारे ऊपर कोई संकट आन पड़ा है तो हमें उस समय धैर्य रखना चाहिए। धैर्य रखने से हम अपनी अंदरूनी खामियों को जान सकते हैं। अच्छी तरह चिंतन -मनन करके दुबारा प्रयास करने की कोशिश करनी चाहिए। इस तरह धैर्य से सोच विचार करने पर काफी हद तक संकट टल जाता है। अगर कभी असफलता भी मिलती है तो भी हमें अपने प्रयास निरन्तर करते रहना चाहिए। धैर्य रख कर हम बड़े से बड़े लक्ष्य को भी प्राप्त कर सकते हैं और बड़े से बड़े संकट को भी टाल सकते हैं। धैर्य खोने से तो बने काम भी बिगड़ जाते हैं।
धैर्यवान संकट के समय अपनआने मानसिक संतुलन बनाए रखता है और शांतचित होकर संकट पर नियन्त्रण करते हुए दुख से बचने का सरल मार्ग खोज लेता है। मनुष्य को जीवन में अनेक कष्टों का सामना करना पड़ता है, अनेक संघर्ष करने पड़ते हैं। धैर्य की परीक्षा तो संकटकाल में ही होती है। धैर्य से हर मुश्किल का सामना किया जा सकता है। जीवन में सफलता के लिए धैर्य कुंजी की तरह काम करता है।
- कैलाश ठाकुर
नंगल टाउनशिप - पंजाब
हाँ ! धैर्य से संकट टल जाता है। कहा गया है- "धीरज धर्म मित्र अरु नारी आपत्ति काल परखिये चारी"
कहने का मतलब साफ है आपत्ति काल में यदि आप धीरज यानी धैर्य रखते हैं तो आप संकट से आसानी से उबर सकते हैं । थोड़ी देर के लिए हम मान लें कि किसी कारण बस हमारा हाथ या हमारा पैर किसी पत्थर या किसी लकड़ी के टुकड़े से दब गया है। और हम हड़बड़ा कर उसे खींचते हैं तो हाथ पैर छीलने या टूटने का डर रहेगा। इस स्थिति में यदि हम थोड़ा धैर्य धर कर रुकते हैं तो धीरे-धीरे अपना हाथ पैर पत्थर के नीचे से निकाल सकते हैं। या हो सकता है तबतक कोई मदद करने के लिए भी आ सकता है। इसी और संकट में पड़ने पर यदि हम धैर्य धरते हैं तो कोई बुद्धि देने वाला या उपाय बताने वाला या कोई मददगार मिल सकता है।और इस तरह हम संकट से उबर सकते हैं। मैंने देखा है कितना भी विराट संकट आने पर यदि हम घबराते नहीं है तो वह संकट हम आसानी से पार कर जाते हैं। ऐसा बहुतों बार हुआ है। धैर्य से रहने पर संकट से उबरने की शक्ति मिल जाती है जबकि घबराने पर कुछ और ही उल्टा पलटा हो जाता है। इस प्रकार ये बात दावे के साथ कहा जा सकता है कि धैर्य से संकट टल जाता है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - पं.बंगाल
"धैर्य" क्रोध रहित या झल्लाहट से हटकर सहनशीलता की वह अवस्था है जब हम किसी कारणवश दबाव, नकारात्मकता या तनाव का अनुभव करने का लगते हैं , उस अवस्था में जो सहन करने की शक्ति का हम सहारा लेते हैं उसे धैर्य कहा जाता है ।
धैर्य मनुष्य की आंतरिक विशेषता है ,न कि नैतिक गुण, यह एक प्रकार का प्रतिरोध है जो मन पर काबू पाने से प्राप्त होता है और हमारे व्यवहार से इसका परिचय मिलता है,जो हर व्यक्ति के लिए सहज नहीं हो सकती। प्रतिकूल परिस्थितियों में धैर्य को शक्ति की कसौटी पर परखा जाता है । कठिन कार्यों के लिए आसान मार्ग निकल आते हैं ।
धैर्य हमारे चित्त का भाव है, मानस- पटल पर विचारों की उथल-पुथल अवश्य मचती है लेकिन जब आत्मिक शक्ति उस पर नियंत्रण कर लेती है तो वह धैर्यशीलता कहलाती है । धैर्यशील व्यक्ति कई बार जीवन की जटिलताओं को सुगमता में परिवर्तित कर लेता है । इससे मन को भी शांति मिलती है । लेकिन यह भी देखा गया है, कि धैर्य किसी व्यक्ति की कमजोरी मान लिया जाता है, और अन्य उसका अनुचित लाभ ले जाते हैं। धैर्य जीवन में उन्नति का साधन भी बन जाता है क्योंकि कई बार यदि हम धैर्य खो बैठते हैं तो उन्नति के मार्ग से भटक भी जाते हैं । इसलिए धैर्य को जीवन कि किन्हीं विशेष परिस्थितियों में बनाए रखना आवश्यक बन जाता है ।
- शीला सिंह
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
इस आकस्मिक वैश्विक युद्ध काल में किसने कितना धैर्य रखा और किस पर से कितना बड़ा संकट टला इसकी सूची बनाई जाए तो बहुत लम्बी होगी।
9 साल का बच्चा यू ट्यूब चैनल पर वीडियो अपलोड कर सबसे ज्यादा धन कमा लेता है...।
गमला बेच कर कोई बच्चा अपनी माँ को सड़क से उठाकर अपार्टमेंट में पहुँचा देता है... ।
संकट टालने की कोशिश में हर व्यक्ति जंग लड़ रहा और कुछ हार रहे हैं तो ज्यादा जीत भी हासिल कर रहे हैं।
इस काल से ज्यादा क्या साबित करेगा कि धैर्य से टल जाता है संकट..
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
संकट टलता तो नहीं, हां इतना जरूर है कि धैर्य से उसको सहने और उसका सामना करने की शक्ति आ जाती है। धैर्य न हो तो, छोटी सी समस्या भी बहुत बड़ी नजर आती है और धैर्य हो तो बड़ी समस्या भी सहज लगती है। वैसे धैर्य कितना इसकी परख का सही समय संकटकाल ही होता है।बाबा तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है- धीरज,धर्म,मित्र अरु नारी। आपतकाल परखिए चारि। रहीमदास ने कहा है- रहिमन चुप ह्वै बैठिए,देख दिनन को फेर।जब नीकें दिन आएंगे,बनत न लगिहै देर। यह दिनों का फेर ही तो धैर्य रखने का काल है। धैर्य,धीरज,सब्र ऐसा गुण है,जिसे संकट तो क्या, किसी भी काल में नहीं छोड़ना चाहिए।कहां भी है सब्र का फल मीठा।यह तो रही बात किताबी।अब व्यवहारिक बात,धैर्य या धीरज रखना बड़े जीवट का काम है,इसमें एक प्रतिशत भी शायद ही सफल होते हैं। किसी को भूख प्यास में धैर्य नहीं। किसी को कमाने में,तो किसी को खर्च करने में धैर्य नहीं। किसी को सामने वाले की बात सुनने का और किसी को अपनी सुनाने का धैर्य नहीं। किसी को लाइन में लगने, खड़े होने का धैर्य नहीं तो किसी को कोई अन्य।भागमभाग, जल्दीबाजी मची है।आज के डिजिटल युग में तो धैर्य का अभाव हो रहा है।अभी मोबाइल पर पोस्ट डाली और फिर बार बार लाइक और कमेंट को देखना,कम होने पर अजीब सा अहसास,धैर्य की ही तो कमी है।जब छोटे छोटे मसलों में धैर्य नहीं तो,बड़े मसलों में धैर्य की उम्मीद मत कीजिए। हां राजनीति इसमें जरुर सिद्धहस्त होती है, किसान आंदोलन इसका ज्वलंत उदाहरण है।अब इसे किसी पक्ष का धैर्य माने या किसी पक्ष की टालने की नीति,यह स्वयं पर निर्भर करता है। वैसे धैर्य से संकट टलने की बात से हमारी सहमति नहीं।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
सुबह से लेकर शाम तक और शाम से लेकर सुबह तक हमारा जीवन संघर्ष सतत चलता रहता है। जीने के लिए हमें विविध प्रकार की अनेक चीजों की आवश्यकता पड़ती है और इन्हें पाने के लिए तन,मन,धन के माध्यम का सहारा लेना पड़ता है। याने ये माध्यम हमारे पास जितने सशक्त होंगे हम उतने ही सामर्थ्य वान होंगे। इन सब में हमारे स्वभाव की भी विशेष भूमिका होती है। जो इस कशमकश को,संघर्ष को प्रभावित कर सरल या कठिन बनाती है। हमारा स्वभाव सकारात्मक याने विशेषताएं लिए होगा तो हमारा संघर्ष सरल होगा और यदि हमारा स्वभाव नकारात्मक याने खामियां लिए होगा तो हमारा संघर्ष कठिन होगा। इसीलिए हमारे हितैषी ,हमारे संरक्षक, मार्गदर्शक हममें सद्गुणों से लवरेज करने का अथक प्रयास करते हैं और दुर्गणों से बचने की समझाइश देते हैं। नेह,नेकी,निष्ठा, निष्पक्षता, न्यायशील,नम्रता हमारे चरित्र को सँवारने का काम कर व्यवहारिक जीवन को संभालने और सशक्त बनाते हुए सौहार्दपूर्ण वातावरण के निर्माण का काम करते हैं। इन सबको साधने के लिए जो सूत्रधार होता है वह है हमारा धैर्य। हम जितने धैर्यवान होंगे हम शांतचित से बुद्धि और विवेक का सहारा लेकर किसी भी संकट या समस्या का निदान खोजने का सामर्थ्य रखने में सक्षम होंगे। इसके विपरीत उतावलेपन से हम बनाबनाया काम बिगाड़ भी सकते हैं। अतः सार यही कि धैर्य से हमारे हर संकट टल जाते हैं। इसमें जराभी संशय नहीं है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
धैर्य रामबाण नहीं है जो आए हुए संकट को टाल दे। परंतु धैर्य अर्थात पेशेंस सहनशीलता की एक सीमा है। जो कठिन परिस्थितियों में मानव को उसके व्यवहार को क्रोध या खीझ जैसी नकारात्मक अभिवृत्तियों से बचाती है। दीर्घकालीन समस्याओं से घिरे होने के कारण व्यक्ति जो दबाव या तनाव अनुभव करने लगता है उसको सहन कर सकने की क्षमता भी धैर्य का एक उदाहरण है। वस्तुतः धैर्य नकारात्मकता से पूर्व सहनशीलता का एक स्तर है। यह व्यक्ति की चारित्रिक दृढ़ता का परिचायक भी है।
परंतु इतना ध्यान अवश्य रखें कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते और पाकिस्तान या चीन जैसे संकट को धैर्य की श्रेणी में रखना उचित नहीं है। अर्थात थप्पड़ खाने के उपरांत धैर्य दिखाना कायरता कहलाती है।
अतः जिस प्रकार हर किसी की एक सीमा होती है। उसी प्रकार धैर्य की भी एक सीमा होती है और सीमा तोड़ने वालों को अपराधिक दण्ड देना अत्यंत आवश्यक एवं महत्वपूर्ण होता है। जिससे समझौता करना कायरता की पराकाष्ठा है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्म् - जम्म् कश्मीर
किसी के भी जीवन में धैर्य रखना बहुत ही जरूरी होता है। तभी वह व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हो पाता है। माना कि किसी भी व्यक्ति के समक्ष संकट के समय या हार को सामने देखकर धैर्य रखना आसान नहीं होता है, पर धैर्य सबसे बड़ी ताकत है। धैर्य बड़ी से बड़ी समस्याओं को ध्वस्त कर देता है।धैर्यवान व्यक्ति केवल जीवन में सफलता ही प्राप्त नहीं करते बल्कि उनका दृष्टिकोण और जीने जीने का नजरिया भी बदल जाता है। धैर्य मन की सजगता है, इसे धारण करना हमारा धर्म है।
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं इस संसार में जीवन जीने के दो ही रास्ते हैं। एक तो ज्ञान का मार्ग और दूसरा सांसारिक लोभा और लालच का हर इंसान अपने मन का दास होता है। हमारा मन जैसे-जैसे मार्ग दिखाता है उसी और हम चल पड़ते हैं। कई लोग अपने जीवन से संतुष्ट नहीं होते। ऐसे लोगों को जीवन में हर समय ही दुख परेशानियां और निराशा ही रहती है। जो धैर्य, सब्र ऐसे शब्द है जो संकट की घड़ी में काम आता है। किसी संकट के उत्पन्न होने पर मन की दृढ़ता या की सीता को देश कहा जाता है। आज की भागदौड़ की जिंदगी में अगर किसी से कहें किधर रखना सीखो तो लोग इसे बड़े हल्के में लेते हैं। उन्हें लगता है दुनिया इतनी तेज और बात धैर्य रखने की की हो रही है। तेजी से दौड़ते वक्त हम लोगों के पास थोड़ा सब्र करके सोचने का वक्त ही कहा रह पाता है। आजकल तो ऐसा समय आ गया है कि लोग स्टोन नग से बनी अंगूठियां बहुत जल्दी धारण कर लेते हैं, पर थोड़ी देर धैर्य धारण नहीं कर पाते। जल्दी उपलब्धि मुझे मिले इस चक्कर में उपलब्धि से ही हाथ धो बैठते हैं। यह वाकई सच है कि थोड़ा सा धैर्य रखकर हम बड़ी से बड़ी संकट को डाल सकते हैं। उसे सुलझा सकते हैं। एक बहुत पुरानी कहावत है जो आज भी प्रासंगिक है कि सब्र का फल मीठा होता है। धैर्य सबसे बड़ी ताकत है। जो व्यक्ति अधीर होता है वह मुश्किल समय में हार मान जाता है और हर जगह उसे नकारात्मक ही दिखाई देती है।
वहीं दूसरी तरफ धैर्यवान व्यक्ति जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण को अपनाता है और अपनी हर परेशानी का हल समय और बुद्धिमत्ता से प्राप्त कर लेता है। धैर्य एक ऐसा गुण है जो चिंता और घबराहट भरी स्थिति को क्षण भर में शांति में बदल देता है।दिक्कत यह है कि अधिकांश लोग इस गुण के जादुई प्रभाव को नहीं जानते तभी तो आज जिसे देखो वह अधीर होकर अपने और दूसरों के लिए मुसीबत खड़ी करते रहता है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
"चुनौती संग जीवन सजीवता का अहसास कराता है,
विषमता से धैर्यपूर्ण संघर्ष दृढ़ता से परिपूर्ण कराता है।
सौ गुणों के बाद भी अधूरा रह जाता है मनुज,
धैर्य ही वह गुण है जो मानव को सम्पूर्ण बनाता है।।"
मनुष्य के धैर्य की परीक्षा संकटकाल में ही होती है। कोई भी संकट टलने में समय तो लगता ही है। चूंकि मनुष्य में संकटों से संघर्ष का स्वाभाविक गुण होता है। परन्तु संकटकाल में परिस्थितियों के साथ-साथ स्वयं से भी संघर्ष करना पड़ता है। स्वयं से संघर्ष करने का तात्पर्य यही है कि मनुष्य संकट से जूझने के अपने प्रयासों के साथ ही कितने धीरज के साथ संकटमुक्त होने के समय की प्रतीक्षा करता है।
कालिदास जी के अनुसार......
"विकार हेतो सति विक्रियन्ते येषां न चेतांसि त एव धीरा:।"
अर्थात्....."वास्तव में वे ही पुरुष धीर हैं जिनका मन विकार उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों में भी विकृत नहीं होता।"...... (कालिदास)
किसी ने सत्य ही कहा है कि...."धैर्य का फल मीठा होता है।" इसीलिए संकट के समय धैर्यशील मन-मस्तिष्क से निरन्तर प्रयासरत रहना चाहिए।
निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि धैर्य में बहुत ताकत होती है जो मनुष्य स्वयं में धैर्य की शक्ति संजोये है उसका संकट सकारात्मक परिणाम देते हुए निश्चित रूप से टल जाता है।
इसलिए मैं कहता हूं कि......
"जीवन पुष्पलता नहीं है, न ही है सुगम पुष्कर।
आँधियाँ तो हैं हिस्सा, चुनौती है जीवन डगर ।।
धरा से सहनशीलता, पर्वत से शिखरता सीख ।
धैर्य न गंवाना, मुश्किलों के तूफान से डरकर।।"
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
जीवन में धैर्यरता शरीर का अभिन्न अंग हैं। जिसके बिना किसी भी तरह की कई विफलताओं का सामना करना पड़ता हैं। मानवता, मानवीय जीवन का आधार भूत भविष्य की योजनाओं को क्रियान्वित करने में सार्वभौमिकता के लक्ष्य की ओर अग्रसर करती हैं। आजकल जनजीवन धैर्य को त्यागती जा रही हैं और महासंकटों को आमंत्रित करती हैं, प्रायः युवा वर्गों को देखिये, जिनमें धैर्य नाम की कोई चीज नहीं हैं, जो खानपान, रीति-रिवाजों को भूलते जा रहे हैं और बुरी संगति में फसतें जा रहे हैं, जिसे कहा जा सकता हैं, अपनी इच्छानुसार जीवन यापन कर, संस्कृति को विलोपित करने में तत्पर हैं। मानव शरीर मोह माया के जाल में फंसा हुआ हैं और झोला छाप बन कर रह गया हैं, इसलिए धैर्य धारण करते हुए, अनेकों संकटग्रस्त परिस्थितियों से बचा जा सकता हैं, आत्मविश्वास से शक्ति जागृत होगी।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
इसमें कोई दो राय नहीं लंबा इंतजार हमारे धैर्य की परीक्षा लेता है ! ये हमारा स्वभाव है इंतजार किसी भी प्रकार का हो गुस्सा या क्रोध आ ही जाता है ! यदि हम अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण कर ले ते हैं या यूं कहें अपनी नकारात्मक भावों पर नियंत्रण पा लेते हैं तो उस समय आने वाले संकट को हम टाल सकते हैं ! हमारी इंद्रियों में विनय और विवेक ऐसे गुण हैं जो धैर्य के साथ होते हैं ! जीवन में संकट तो आते रहते हैं यदि हमारे संयम और धैर्य का प्रमाण उसके अनुकुल हो रहा है तो संकट टल सकता है किंतु कभी कभी इसके विपरीत भी परिस्थितियां खड़ी हो जाती हैं !
इसी धैर्य को लोग हमारी कमजोरी भी समझने लगते हैं तब हमें अपनी शक्ति और वीरता दिखानी पड़ती है (जैसे मोदी जी ने पाकिस्तान पर स्ट्राइक कर दिखाई )
कोरोनाकाल में सभी नियमों का पालन करते हुए हमने कितना धैर्य रखा और आज वैक्सीन का आना इसी धैर्य का प्रमाण है ! यह हमारे लिये क्या समस्त विश्व के लिए एक बड़ा संकट और चुनौती थी जिसे हमने धैर्य से पार किया !
धैर्य से हमारे सोचने विचारने की शक्ति बढ़ जाती है !शांत चित्त सकारात्मक सोच की जन्मधात्री है !
वह कहते हैं ना धैर्य का फल मीठा होता है सही कहते हैं !
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
धी ध्रिती समाधी तीन मुख्य कल्प है योगिक प्रकरण के अर्थात धैर्य भी इसी का एक भाव है जिस प्राणी में धैर्य नही वो एक अपक्व प्राणी कहलाये गा // देखने वाली बात ये है धैर्य संभवतः एक साधक गुण है - धैर्य से एकाग्रता उत्पन्न होकर आपके उपर आये बुरे समय / संकट का निवारण खोज्ने में सहायक होती है यही बजेह है की ये आज का चर्चा का अतिमह्त्वपूर्ण भाव / विषय उठाया गया है // सोच ने विचार से विवेक जाग्रत होगा ओर कठिन से कठीन समस्या का कोई आसानी का रास्ता निकाल आयेगा ऐसा मेरा अनुभव नही विश्वास भी है
- डॉ. अरुण कुमार शास्त्री
दिल्ली
प्रकृति अथवा मानवीय क्रिया कलापों से उतपन्न होने वाली एक आपात स्थिति जिससे सामान्य जीवन में बड़े पैमाने पर बाधा उतपन्न होती है और संकट उतपन्न हो जाता है l
मानस में कहा है -
धीरज,धर्म, मित्र अरु नारी
"आपत काल परखिये चारि l "
क्योंकि ये चारों ही संकट में आपकी नैया के खेवनहार हैं l
जीवन में हमेशा अनुकूल माहौल नहीं रहता और विपरीत परिस्थिति में मनुष्य टूट जाता है ऐसी परिस्थिति में धैर्य ही हमें उबारकर उन्नति का रास्ता दिखाता है l
मेरी दृष्टि में धीरज धरने का अर्थ है किसी भी मुसीबत को सहना l हिम्मत हारते हुए नहीं अपितु हिम्मत और साहस के साथ, अच्छे कल के साथ, यह एक ऐसा गुण है जिससे इंसान बड़े से बड़े संकट से पार हो सकता है l सच्चा मित्र वही है जो आपको संकट से उबार दे l
और आपके आँख के गिरे आँसू की बूंद पानी में पहचान ले l
मानस में तुलसी ने यश, अपयश, संकट मन के भावों के अधीन होते हैं कहा l उन्होंने शुभ कर्म पर बल दिया l
मनुष्य सामाजिक प्राणी है l समाज से अलग नहीं रह सकता l समाज में उसके सम्मुख सुख दुःख के अनेक उतार चढ़ाव आते हैं ऐसी कठिनाई /विपत्ति के समय धैर्य ही वह शक्ति है जिससे बड़े से बड़े संकटों से उबरा जा सकता है l जिसने सच्चा रत्न धैर्य धारण कर लिया उसका जीवन सुखमय हो जाता है l
अविवेक से कभी कभी हम जीवन में क्रोध और उतावलापन अपनालेते है और अपना आपा खो बैठते हैं, वैमनस्य पैदा हो जाता है, अवगुण प्रकट होने लगते हैं ऐसे विपत्ति के समय धीरता से सोच समझ कर हम तकरार को टाल सकते हैं l धैर्य हमें कुमार्ग पर चलने से रोक लेता है l
"धैर्य है धारण करना धर्म,
समझना दुःख सुख एक समान "
----चलते चलते
धैर्य हमें सोचने की बुद्धि के साथ हमारा मार्ग प्रशस्त करता है, जो किसी अनमोल रत्न से कम नहीं l
अधीरता ----एक समय बाद
धी ----रज में बदल जाती है l
- डॉ छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
धैर्य से गणेश जी का पाठ करें तो भगवान गणेश संकट नाशन है। इनका गणेश स्त्रोत का पाठ बहुत ही शुभ माना गया है। इनका पाठ करने में केवल 5 मिनट समय लगता है यह पाठ करने से बड़े से बड़ा संकट भी टल जाता है। नियमित 40 दिनों तक लगातार पाठ करेंगे तो आप का संकट समय पर टल जाएगा।
लेखक का विचार आपके जीवन में किसी भी प्रकार कोई परेशानी और संकट हो तो भगवान गणेश आपकी रक्षा करते हैं ।इन्हें सभी देवताओं से पहले किसी भी पूजा में आवाहन किए जाते हैं।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
संकट कष्ट मुश्किल बाधाएं वक्त पर आती है और वक्त से ही जाती है यह समय का एक हेरफेर है इंसान इन कष्टों को सहने के लिए हर प्रकार से प्रयत्न करता है लेकिन कष्ट का जो अवधि है वह पूरा लेकर ही वापस जाता है और कष्ट के समय यह अवधि बड़ी लंबी महसूस होती है धैर्य के सिवा और कोई चारा नहीं है जिसके द्वारा हम अपने संकट से अपने आप को उबार सके धैर्य धीरज सहनशीलता मन के आत्मविश्वास को मजबूत बनाता है और संकट से उबरने के लिए एक ताकत देता है इसमें कितने यश मिलेंगे अपयश मिलेंगे बुराइयां होंगी लेकिन कोई न कोई ऐसा रास्ता अवश्य मिलेगा जिसके माध्यम से आप के संकट का दूर होने का तरीका आपको दिखेगा तो धैर्य पूर्वक अगर आप चिंतन मनन करेंगे रास्ता का अवलोकन करेंगे तो भगवान यह कष्ट का समय आपके व्यक्तित्व में एक निखार लाने के लिए प्रदान करते हैं जैसे सोना को आग में जलाकर हम उसे खरा बनाते हैं शुद्ध बनाते हैं चमकीला बनाते हैं उसी प्रकार कष्ट में अपने जीवन को दबा कर धैर्य से सहन कर अपने व्यक्तित्व में निखार लाते हैं
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
संकट की घड़ी में धैर्य बहुत आत्मबल देता है। संकट में धैर्य रखने वालों को संकट से मुक्ति पाने का मार्ग सूझता है। धैर्यहीन होने से वैचारिक शक्ति क्षीण हो जाती है तथा कुछ नहीं सूझता। धैर्य बनाए रखने से विवेक और बुद्धि भी कार्यशील रहते हैं। धैर्य एक ऐसा शस्त्र है जिससे संकट को पूरी तरह न भी टाला जा सके परन्तु संकट से लड़ने की शक्ति मिलती है।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
धैर्य हमारे हृदय में आत्मविश्वास पैदा करता है। आत्मविश्वास और सहनशक्ति से हमें विषम परिस्थितियों में डटकर मुकाबला करने की प्रेरणा मिलती है। उदासीनता को खत्म कर हम आगे बढ़ने का प्रयत्न करते हैं।
तदुपरांत हमें देर से ही सही पर सफलता प्राप्त होती है। इसलिए मन में एक विश्वास पैदा होता है कि धैर्य धारण करें बुरा समय टल जाएगा। कहा भी गया है कि धैर्य का फल मीठा होता है।
धैर्य के साथ सक्रियता दिखाते हुए समस्याओं से उबरने के लिए प्रयत्नशील रहें तो नामुमकिन मुमकिन हो जाता है।
हम आत्मसंयम, आत्मविश्वास, धैर्य, सहनशीलता और अपनी लगन व परिश्रम के द्वारा असंभव को संभव कर सकते हैं और संकट की घड़ी से भी बाहर निकल सकते हैं पर साथ ही साथ दृढ़ विश्वास, दृढ़ निश्चय और दृढ़ संकल्प भी होना अनिवार्य है।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
टूटे सपनों को एक उम्मीद से ही जोड़ा जा सकता है,,
धैर्य रखो, धैर्य से ही मुसीबतों का पहाड़ तोड़ा जा सकता है। आजकल हर व्यक्ति यही चाहता है कि मेरा हर कार्य जल्दी से पूर्ण हो जाए, कहने का मतलब काम करते करते फल की इच्छा रखता है या ऐसा भी कह सकते हैं, कि व्यक्ति हर कार्य मै् उतावला बना रहता है, कई बार जल्द बाजी में ही हम अपने आपे को खो देते हैं , चाहे किसी चीज का वटबारा हो या लड़ाई झगड़ा, बात इस कदर वढ़ती चली जाती है कि व्यक्ति अपना आपा खो देता है जो मन में आता है वोल देता है तो बड़े से बड़ा हादसा कर बैठता है, मगर उसी समय अगर कोई सोच समझ कर बात करने का यत्न करता है या थोड़ धैर्य रखता है तो काफी हद तक झगड़े को टाला जा सकता है,
कहने का मतलब धैर्य धारण कर हम हर कष्ट से मुक्ति पा सकते हैं,
आईये बात करते हैं कि क्या धैर्य से टल सकता है संकट,
मेरा मानना है कि एक व्यक्ति का धैर्य उसकी वाणी में शीतलता लाता है व आचरण में मनुष्यता लाता है, जिससे कई संकट टल सकते हैं,
मनुष्य के पास अनेक प्रकार के धन होते हैं, मगर सच्चा धन मनुष्य को तभी प्राप्त होता है जब वह सहनशीलता रूपी धन को प्राप्त कर लेता है, यह ऐसा धन है जो मनुष्य को महान बनाता है,
धैर्य वुद्दी का साथी है अगर धैर्य और वुद्दी दोनों मिल जाएं तो मनुष्य आसमान की ऊंचाई को छू सकता है,
धैर्य सफलता की वो कुंजी है जो सफलता के ताले को खोलती है, एक नन्ही सी चींटी भी सिखाती है की धैर्य से वड़ी से वड़ी मंजिल तक पहुंचा जा सकता है,
लेकिन आजकल की पीढी में धैर्य व सहनशीलता का अभाव है यही कारण है बच्चों में क्रोध इर्ष्या वा अस्थिरता बढ़ती जा रही है जो झगड़े के कारण बन रहे हैं।
अगर बच्चों मे ही ईष्र्या और क्रोध की भावना होगी तो उससे उनका विकास नहीं हो पायेगा, हमे एक सच्चे देशवासी होने के कारण बच्चों में सहनशीलता लानी होगी जिससे हमारा देश उन्नति की तरफ वढ़ेगा,
धैर्य वह धन है जो मनुष्य को महान बनाता है, धैर्यवान वोही है जो दुख में भी मुस्कराता है व लड़ाई झगड़े मे भी शान्ति दिखाता है,
धैर्य वो सवारी है जो अपने सवार को कभी गिरने नहीं देती, इसलिए मानव के लिए यह गुण अतिआवश्यक है,
अन्त में यही कहुंगा की हर व्यक्ति को धैर्य से काम लेना चाहिए यह वो कुन्जी है जो वड़े से वड़े झगड़े को टाल सकती है व उसको हल करने का साहस भी देती है अता मनुष्य को कोई भी कार्य करते धैर्य नहीं खोना चाहिए।
क्योंकी धैर्य मनुष्य का वह सारथी है,
जो सफलता के शिखर तक ले जाता है और जो हर किसी कार्य को सहजता से निपटाने की ताकत रखता है,
यही नहीं धैर्य और परिश्रम से हम वो सब प्राप्त कर सकते हैं जो शक्ति और शीघ्रता से कभी नहीं प्राप्त कर सकते व यह किसी भी अस्त्र, शस्त्र, तलबार आदि से बड़ी शक्ति है इस के खो देने से एक नहीं अनेक संकट उतपन्न होते हैं, इसलिए इसे हमेशा हर समय बनाये ऱखें।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
संकट बता कर नहीं आता और न ही उसकी प्रकृति का पता होता है। वैसी स्थिति में धैर्य ही समाधान है। धैर्यपूर्वक हम विचार करके उससे निपटने की तरकीब निकाल सकते हैं । जब आसानी से संकट गुजर जाता है तो हम उसे 'टलना' नाम दे देते हैं।
वास्तव में संकट आता है और अपने कारनामे कर जाता है। हमारा धैर्य उससे हुए नुकसान को बर्दास्त करने की क्षमता से हमें परिपूर्ण कर देता है। अतः हम धैर्य को अपनी शक्ति का भी नाम दे सकते हैं ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
हाँ धैर्य से ज्यादातर संकट टल जाते हैं ।धैर्य हमारे अन्दर की सकारात्मक स्थिती है ।धैर्य के रहने से हम विषम परिस्थितीयों में भी अपना संतुलन नहीं खोते हैं ,उसे दूर करने का उपाय खोजते हैं ।धैर्य का सहयोग हमारी मेहनत ,साहस और आत्मविश्वास करते हैं । धैर्यवान व्यक्ति सुख में बहुत उत्साहित और दुख में बहुत विचलित नहीं होते हैं । बहुत से संकट नहीं भी हल होने पाते हैं उन्हें कुछ समय के लिए छोड़ देना चाहिए ,समय आने पर उनका समाधान मिल जाता हैं कहते हैं सब्र का फल मीठा होता है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
जी बिल्कुल संकट आने पर धैर्य बनाए रखना समस्या का उचित हल होता है ।संकट तो नही टलता मगर उसका अहसास कम होता है क्योंकि धैर्य धारण करने वाले समस्या का हल शांतिपूर्वक खोजते हैं।
कठिन परिस्थितियों में व्यक्ति की सहनशीलता की अवस्था को ही धैर्य कहते हैं ं उसके व्यवहार को क्रोध या खीझ जैसी नकारात्मक अभिवृत्ति ओं से बचाती है। दीर्घकालीन समस्याओं से घिरे होने के कारण व्यक्ति जो दबाव या तनाव का अनुभव करने लगता है उसको सहन कर सकने की क्षमता भी धैर्य का ही उदाहरण होती है ।
वस्तुतः धैर्य नकारातमकता से पूर्व सहनशीलता का एक स्तर है यह व्यक्ति की चारित्रिक दृढ़ता का भी परिचायक है ।
अतः धैर्यवान व्यक्ति निश्चित ही चारित्रिक रूप से सुदृढ़ होता है। इसलिए उसे बड़े बड़े संकट भी हल्के लगते हैं ,इसके विपरीत अधैर्यवान व्यक्ति को छोटा संकट भी बड़ा लगने लगता है।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
जी हां! कभी-कभी परिवार में किसी एक व्यक्ति को इतना क्रोध आता है कि उस समय वह कुछ भी कर सकता है। हम सभी ने पढा- सुना है कि क्रोध में व्यक्ति दूसरे का कत्ल तक कर डालता है। क्रोध महाविनाश का जन्मदाता है। जिस समय किसी एक व्यक्ति को क्रोध आता है तब उसके क्रोध की आग को अन्य जनों को भड़काना नहीं चाहिए। यदि उस समय धैर्य रखा जाए तो बड़े से बड़े संकटों के बादल भी छट जाते हैं। हमारे साधु-संतों ने इस विषय पर बड़े- बड़े प्रवचन किए हैं।
अंततः जिस व्यक्ति को क्रोध आता है यदि वह जागरूक होकर उस समय अपनी क्रोध की कोख को देख पाए और धैर्य रखकर पर काबू कर पाए, तब भी वह अपनी बहुत बड़ी हानि से बच जाता है और चारों तरफ उसके क्रोध के कीटाणु जो औरों की शांति भंग करते उस आने वाले संकट के स्थान पर प्रसन्नता और शांति का प्रभाव भी प्रत्यक्ष नजर आता है। जिन्हें अच्छे बुरे समय की पहचान है, जो संकट के समय धैर्य रखते हैं, वह जानते हैं धैर्य का फल कितना मीठा होता है। धैर्य से संकट तो क्या बड़े- बड़े तूफान भी थम जाते हैं।
- संतोष गर्ग
मोहाली - चंडीगढ़
जी, धैर्य अपनी जगह है ,संकट अपनी जगह पर है। आए हुए संकट का सामना तो करना ही पड़ता है। पर उत्तेजित न होते हुए धैर्य पूर्वक उससे निपटना सुविधाजनक हो जाता है। जिंदगी आसान हो जाती है मानसिक ,दबाव कम किया जा सकता है। किसी भी प्रकार का संकट एकदम दूर नहीं होता हर चीज का एक वक्त होता है और उस समय तक उसको धैर्य पूर्वक सहन करना ही पड़ता है। पूर्ण निदान के उपरांत ही संकट टल पाता है। धैर्य एक मानवीय गुण है ,जबकि संकट एक घटनाक्रम, जिसका हर हाल में हर परिस्थिति में सामना करना ही पड़ता है। समझदारी इसी में है कि धैर्य पूर्वक परिस्थिति का सामना किया जाए।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर -मध्य प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " धैर्य में तत्काल व अन्तराल का बहुत महत्व है । जो इस का सही से उपयोग करना सीख जाता है । वह बड़े से बड़े संकट का समाधान सीख जाता है
- बीजेन्द्र जैमिनी
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