क्या जीवन मेंं सच का साथ जरूरी होना चाहिए ?
जीवन में प्रगति के लिए सच का साथ होना बहुत ही आवश्यक है । वरन् जीवन भटक जाता है । कई बार तो अपराध की दुनिया तक का सफर तय कर जाते हैं । ऐसे में सच ही जीवन में सच ही मार्गदर्शन का कार्य करता है । फिर भी लोग सच के महत्व से अनजान नंजर आते है । यही " आज की चर्चा " के आयोजन का मुख्य उद्देश्य व विषय है । देखते हैं आये विचारों को : -
प्रथम दृष्ट्या, तो उक्त प्रश्न, यह व्यक्त करता है, कि जीवन में सच और झूठ का प्रयोग परिस्थिति वश हो । और यदि इनका प्रयोग परिस्थिति वश हुआ, तो सच के साथ की, कोई बाध्यता नहीं ; क्योंकि हर झूठा व्यक्ति परिस्थिति की आड़ में झूठ बोलना ही अपना परम कर्तव्य मानेगा और उसे सही सिद्ध करता रहेगा ।
झूठे व्यक्ति की योग्यता -
झूठ को सच
और
सच को झूठ
करने में दिखाई देती है ।
जहाँ झूठ को सही सिद्ध करना एक चातुर्यकौशल है ; वहीं सच को झूठ सिद्ध करने के पीछे छल के अलावा और कुछ नही । लालच और स्वार्थ में, आज बोला गया झूठ , कालांतर में लोगों का विश्वास और स्वयं की प्रतिष्ठा दोनों ही खो बैठता है ; जबकि सच न केवल विश्वसनीय और प्रतिष्ठित होता है बल्कि निश्चिंत भी होता है और इस सच से ,अनजाने में ही, न जाने कितनों का भला हो जाता है ।सच निर्भीकता का सूचक है । झूठा व्यक्ति, सबकी आवाज़ दबाते हुए, ऊँची आवाज में सबको भयभीत करके, अपने झूठ को सही सिद्ध करने की कोशिश में, दो चार झूठ और बोल जाता है, वास्तव में वह भीतर से कमजोर और डरा हुआ रहता है । सच के समक्ष खड़ा हो पाने की क्षमता उसमें नही होती इसलिए वह सच के विरुद्ध सबको भ्रमित करता है ।
ऐसा करते हुए कई बार वह सफल भी भी होता है पर
*साँच को आँच कहाँ*
सच्चा व्यक्ति जितना साहसी होता है उतना ही मानसिक तनाव से मुक्त रहता । क्योंकि सत्य शाश्वत होता है उसे याद रखने के लिये महनत नहीं करनी पड़ती । यह बात अलग है कि उसकी कटु बातों से ,उसके आसपास स्वार्थी और चापलूस लोगों की भीड़ खड़ी नहीं होती , किंतु अपने सत्य की स्थापना से वह श्रद्धा और सम्मान का पात्र होता है । लोग उस पर विश्वास करते हैं, यह उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि है ।
बस, इसीलिए जीवन में सच का साथ जरूरी है ।
- वंदना दुबे,
धार - मध्य प्रदेश
सच की राह आ चलने वालों को जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । लेकिन उसके मन में यह तो संतोष रहता है कि उसने जीवन में सत्य की राह चुनी । यह भी सच है कि जीवन में झूठ भी होता है और एक सच को छुपाने के लिए कई बार सौ झूठ बोलने पड़ते हैं । इससे तो अच्छा है कि एक सच ही बोला जाए । कई बार ऐसी परिस्थिति भी होती है कि सच से किसी का अहित भी हो सकता है । ऐसी स्थिति में अपनी सूझबूझ का परिचय देते हुए सच प्रयोग किया जाना चाहिये । वैसे सच बोलना तो सभी जानते हैं परन्तु सच सुनने की ताकत तो बिरले लोगों में ही होती है अधिकतर तो लोग अपना सच सुनकर आग बबुला हो जाते हैं । मानसिक शांति के लिए जीवन में सच का साथ जरूरी है ।
- बसन्ती पंवार
जोधपुर - राजस्थान
सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ।
जाके हिरदय साच है , ताके हिरदय आप ।।
कबीर दास जी कहते हैं सच बोलने के बराबर कोई तप नहीं है और झूठ बोलने के बराबर कोई पाप नहीं है । जो हमेशा सत्य बोलते हैं उनके हृदय में ईश्वर का वास होता है ।
कबीर दास जी का ये दोहा आज भी प्रासंगिक है । ईश्वर हमेशा सत्य के साथ ही होते हैं । कहते हैं न झूठ के पैर नहीं होती ; एक झूठ सौ झूठ बुलवाता है और अंत में सत्य सामने आ ही जाता है । सत्य से बड़ा कोई तप नहीं होता । सत्यम शिवम सुंदरम अर्थात सत्य ही शिव है शिव ही सुंदर है । जिसने भी सत्य का दामन थामा वो अवश्य ही विजयी हुआ ।
सत्य की राह कठिन अवश्य होती है पर इसमें जीत सुनिश्चित होती है । महाभारत में पांडवों ने सत्य की राह अपनाई तो उनके जीवन के सारथी स्वयं श्रीकृष्ण बनें ।
महात्मा गांधी के सत्य के प्रयोगों से तो हम सभी वाकिफ हैं । उन्होंने जो कहा वही किया और सारे विश्व के प्रेरक बनें । अहिंसा के साथ ही सत्य के मार्ग पर जीवन भर चलते रहे । जीवन में सच का साथ बहुत जरूरी होता है इससे हमें जो मानसिक सुकून मिलता है वही हमारा संबल होता है ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
एक सच ही तो है तो मनुष्य के जन्म से मृत्यु तक साथ देता है ।इसके रहने से न्याय धर्म कर्म लक्ष्मी साद देने को विवश हैं ।सतयुग में राजा सत्यव्रत के द्वारा अपने सत्य की रक्षा के लिए शनिदेव की मूर्ति खरीदने पर चाहकर भी यह सब न जा पाये ।कुछ समय के लिए सच कमजोर हो सकता है ।दब सकता है ।विचलित हो सकता है ।पर अन्ततः सत्यमेव जयते ।अतः जीवन में सच का साथ जरूरी ही नहीं बहुत जरूरी है ।राजा हरिश्चन्द्र ,रामायण में राम , महाभारत में पाण्डव , उन्नीसवीं सदी में गांधी , नेताजी सुभाष इसके उदाहरण हैं ।
- शशांक मिश्र भारती
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
'सच' एक सार्वजनिक शब्द है।
शाश्वत सत्य को छोड़कर सार्वजनि सत्य का जीवन में होना जरूरी है.कितना? इसका परिमाण आज के युग में प्रत्येक व्यक्ति की दृष्टि में अलग - अलग है।कोई नमक जितना तो कोई शक्कर की मिठास जितना उपयोग करता है सच का, फिर भी कोई सौ प्रतिशत तो बिलकुल नहीं। सच सुनने वाले भी तो हो ।उनके बिना तोत्रसचक्षकी कदर भी नहीं। हां इतना अवश्य कहना चाहूंगी, मान सम्मान जितना सच बोलना तो बेहद जरुरी है। कभी सच एक संस्कार था,पर आजझूठ के माथे तिलक लगाने जैसी बात रह गई है, क्योंकिआजखल किसी भी झूठ को सच बना देने वाले बाजीगरों की कोई कमी नहीं रह गई है।धनादि के प्रलोभन इसके मूल मंत्र हैं।
- डा. चंद्रा सायता
इंदौर - मध्यप्रदेश
सच ईश्वर का रूप है, जो सर्वत्र व्याप्त है। सत्य की अभिव्यक्ति अनंत है। निश्चल होकर गंगा की तरह अविरल गति से बहना ही सत्य का धर्म है, जो पावनता से युक्त तन- मन को शुद्ध करने वाला है। राग- द्वेष से मुक्त करता है।जहां सत्य सर्व हिताय के अहिंसक एवं निर्भीक साम्राज्य के विस्तार का परिचायक भी है। जहां मैत्री, मुदिता, करुणा, संयम, अनुशासन, संतोष जैसे परम भावों की अनुभूतियां हैं। वाणी का संयम, भाषा का विवेक सत्य की अपेक्षाएं हैं। जिनको अपनाकर व्यक्ति देवतुल्य हो जाता है; युधिष्ठिर की सत्यवादिता, राम का विवेक, कृष्ण का धर्म- सत्य, वर्तमान में गांधी का सत्य- दर्शन सच के प्रमाण हैं। *सत्यमेव जयते"* भारतीय संस्कृति का उद्घोष है। वर्तमान समय में भौतिकता के पाश में जकड़ी मानव- जाति सत्य के कठोर धरातल पर अपने पग रखने में दूरियां बना चुकी है; पर अंत में सच की सत्यता और आवश्यकता को जानकर अवश्य अपनाना चाहिए ।सच का यथार्थ ही सत्य है; जो जीवन के आत्मिक, परमार्थिक सुख के लिए जरूरी है।
- डॉ रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
सच्चाई बहुत जरूरी चीज होती है सच्चा व्यक्ति नजर से नजर मिला कर बात कर सकता है और जिसके मन में बुराई या चोर बसा होता है वह कभी किसी से नजर मिला कर बात नहीं कर सकता है उसकी नजर हमेशा नीचे झुकी होती है क्योंकि मन सब कुछ जानता है , झूठे का भेद बताता है हम अपने मन को मार कर ही झूठ बोलते हैं। आशावादी और सत्यवादी लोग हमेशा मुसीबत के समय भी सत्य के साथ खड़े रहते हैं और भगवान उनकी मदद करता है। जीवन का कर्म फल को यहीं पर भोक्ता है उसका स्वर्ग नर्क यही है यह सब उसके कर्म के आधार पर होता है सच का रास्ता बहुत कठिन होता है और सच कड़वा भी होता है एक बार बुरा लगता है परंतु बाद में उस व्यक्ति को सब लोग समझ जाते हैं। एक विद्वान ने कहा है-
"संगति मनुष्य के लिए क्या नहीं करती वह उसकी मूर्खता को दूर कर विवेक जागृत करती है उसमें सत्य का सिंचन करती है"मानो तो जन्मजात बुद्धि प्राप्त होती है अच्छे बुरे का भेद नहीं कर पाता यह ज्ञान उसको महापुरुष और सत्संग से ही आता है। तुलसीदास जी ने लिखा है,"बिनु सत्संग विवेक न होई"महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि सत्य की राह में चलने की प्रेरणा उन्हें हरिश्चंद्र नाटक को देखकर मिली बाद में उन्होंने पूरी कथा पड़ी।तुलसीदास जी रचित रामचरितमानस वे वेद व्यास रचित भगवद्गीता आपको जन जन के जीवन में सही मार्ग में चलने की प्रेरणा देती है।साहित्य ना जाने कितने भटके को राह दिखाता है और यह कहना भी कठिन है संगत से जीवन समरता है और कुसंगति से विनाश एवं नष्ट होता है।
कबीर संगति साधु की, बैगि करियै जाई।
दुरमति दूरि गवाइइसौ, देसी सुमति बताई।।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
सच से बड़ा कोई तप नहीं और झूठ से बड़ा कोई पाप नहीं है। यह कबीरदास जी ने ऐसे ही नहीं कहा है। सत्य की राह में बहुत कठिनाइयाँ आती है। अच्छे-अच्छों का साहस टूट जाता है, पर जिसने सत्य की राह पर चलने का हठ ठान लिया है वह इन कठिनाइयों से नहीं घबराता और न ही टूटता है। सत्य की राह पर जो चलता है ईश्वर भी हर कदम पर उसके साथ रहते हैं। जीवन में कोई अपने किसी एक झूठ को छिपाने के लिए झूठ पर झूठ बोलता चला जाता है और हर पल इससे भयभीत रहता है कि कहीं साथ सामने न आ जाए। पर सत्य तो उजागर होकर ही रहता है। इसलिए सदा सत्य ही बोलना चाहिए। सत्य को अपनाने वाला व्यक्ति निर्भीक, स्वाभिमानी होता है, उसके जीवन में सुख-शांति होती है, वह चैन की नींद सोता है। इसलिए सत्य का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए और अपने जीवन को ऐसा बनाना चाहिए कि लोग उसका अनुसरण करें।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
जीवन में सच का साथ जरूरी होना ही नहीं बल्कि अति जरूरी होना चाहिए। सच के बिना आदमी जिंदा मुर्दे की तरह जीता है ।शरीर को जिंदा तो रखता है लेकिन आत्मा को सुखी ,सच के बिना नही रख पाता, आत्मा सुख पूर्वक जीना चाहती है लेकिन सच्चाई की राह पर चलकर ही वह सुखी हो पाती है अतः जीवन को सच का साथ होना जरूरी है बिना सच्चाई के जीते हैं तो समस्या से घिरे रहते हैं अविश्वास का विकार उत्पन्न होता है विश्वास की हनन हो जाती है और बिना विश्वास के संबंधों में खुशी-खुशी नहीं जी पाते है। धन तो संसार में बहुत सारा है लेकिन संबंधों में विश्वास के साथ जीते हुए समाज में कम लोगों को देखा जाता है। वर्तमान में भौतिक सुख-सुविधा के प्रति प्रवृत्ति बनी हुई है सच्चाई के साथ संबंधों में जीना नहीं बन पा रहा है, यही मानव जाति का सबसे दुख का कारण है भौतिक वस्तु से कोई तृप्त नहीं हुए हैं तृप्ति तो सच्चाई की राह पर चलने से ही मिलती है और यह तृप्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक हर मानव के अंदर कामना रूप में रहती है और इसी की तलाश में मनुष्य इस संसार में शरीर यात्रा कर रहा है। सच्चाई के बिना आदमी का सुखी होना असंभव है जबकि मनुष्य का सुख उसका लक्ष्य है इसी सुख की प्राप्ति के लिए मनुष्य हर पल हर क्षण प्रयासरत है सच्चाई समझ में आने के बाद ही मानव का जीना बनता है। अतः हर मानव को सच के साथ जीना जरूरी होता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
हां दर्पण झूठ न बोले और हमारा हिर्दय भी एक दर्पण है! यह सच है जीवन में सच का साथ होना जरूरी है क्योंकि कबीर दास जी ने अपने दोहे में ही कहा है "सांच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप" बचपन में हम अपने मित्रों से कहते थे झूठ बोलना पाप है !सच तो हमें घुट्टी में ही पिलाया जाता है ! सच और झूठ का संबंध अंधेरे उजाले जैसा है सच कड़वा होता है !कभी-कभी हम किसी का सच जो न बोलने वाला है मजाक मजाक में बोल ही देते हैं !कभी-कभी हम अपने आप को दोषी न ठहराते हुए झूठ बोल देते हैं एक झूठ को बचाने के लिए हमें कितने झूठ बोलने पड़ते हैं और आखिर सच आ जाने पर हम आत्मग्लानि का जहर पीते हुए खुद की नजर में गिर जाते हैं !हम अपना कर्तव्य निभाते हुए किसी को भी सत्य की राह पर चलने को कहते हैं सत्य की राह पर चलकर संघर्ष भी करना पड़े हम यही कहते हैं कि देखना सत्य की विजय होगी क्योंकि सत्य कभी छुपता नहीं कभी ना कभी तो उजागर होता है ! सत्य की राह पर चलना कठिन है इसी के सहारे बापू ने हमें गुलामी से आजाद कराया है ! किंतु सत्य का एक दूसरा पहलू भी है कभी कभी झूठ बोलने से किसी के प्राण बचते हैं तो कहते हैं ना एक झूठ सौ सच के बराबर होता है माना कृष्ण सच्चाई के साथ थे किंतु महाभारत के समय उन्होंने भी अर्धसत्य कहा था "अश्वत्थामा हता " अर्जुन को द्रोणाचार्य से बचाने के लिए कहा था हां अश्वत्थामा हाथी का नाम भी था और उसकी मृत्यु हो गयी थी किंतु द्रोणाचार्य ने अपने पुत्र की मृत्यु समझ अपने प्राण त्याग दिए! सत्य सुनने की ताकत सभी में नहीं होती! तो प्रभु कृष्ण ने भी अर्ध सत्य किंतु झूठ कहा था! न्यायालय में वकील भी अपने क्लाइंट को बचाने के लिए झूठ बोलते हैं शायद उस को बचाना उस समय उसका कर्तव्य होता है !द्वेष सच पर हमला करता है यदि साधारण बात हो और कोई बड़ी अनहोनी नहीं होती तो सत्य स्पष्ट बताया जाता है इसके विपरीत हो तो सत्य मौन धारण कर लेता है क्योंकि यदि आप झूठ नहीं कहना चाहते तो सच भी ना बोलो सच वही बोलें जिसमें हमारी आत्मा संतुष्ट हो सत्य हमेशा अकाट्य होता है सत्य सुनने की ताकत सभी में नहीं होती! अंत में कहूंगी हां सत्य हमेशा शत्रु पाल ही लेता है और डर हमेशा बना रहता है तो क्या !कहते हैं न "सांच को आंच क्या"
सत्यम शिवम सुंदरम !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
'क्या जीवन में सच का साथ जरूरी होना चाहिए '।कहने को तो ये बड़े ही आदर्श वचन लगते हैं लेकिन जीवन इतना सरल नहीं है ।हर व्यक्ति को जीवन निर्वाह के लिए अनेक परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है और इस माया जाल में अनेक बार हमारे आदर्श और नियम धराशायी हो जाते हैं।दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं।एक आदर्शवादी और दूसरे अवसरवादी ।आज के स्वार्थ भरे समाज में अवसरवादी लोग चैन की जिंदगी जीते हैं क्योंकि वे कुछ पाने के लिए साम, दाम, दंड, भेद का प्रयोग कर लेते हैं और उनकी दुनिया आगे चल निकलती है ।आदर्शवादी बहुत कम हैं और वे परिश्रम करके ही जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं।सभी उपदेश तो यही देते हैं कि सच का साथ जरूरी होना चाहिए लेकिन जब हम अपने आस-पास झूठ, फरेब, धोखा देने वालों को उच्च शिखर पर देखते हैं तो मन कुंठित हो जाता है । वैसे तो हम ये भी देखते आए हैं कि झूठे और फरेबी कभी न कभी पकड़े ही जाते हैं ।उदाहरण हमारे सामने है नीरव मोदी, दाउद, विजय माल्या आदि ।इस विषय का निर्णय करना अत्यंत कठिन है ।समय और परिस्थिति इंसान को कब बदल दे पता नहीं ।इसलिए सौ प्रतिशत कहना अतिशयोक्ति होगी ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
एक स्मरणीय खूबसूरत जीवन के लिए सच का साथ अत्यंत जरूरी है।सच्चाई का रास्ता कष्टदायक एवं कांटो भरा हो सकता है ,लेकिन इसका परिणाम सदैव सुखद एवं आनन्ददायक होता है ।सच्चाई ईश्वर के पास पहुँचाने वाली सीढ़ी है। सच्चाई के पथ पर चलने वाला व्यक्ति निर्भीक, आत्मविश्वास से भरा हुआ एवं सकारात्मक उर्जा से परिपूर्ण होता है।सच ही कहते हैं कि" *झूठ की आयु बहुत कम होती है ,सच की कभी हार नहीं होती है*। "
अतः इंसान को अपने जीवन के लिए वह रास्ता अपनाना चाहिए जिसके अंत में सुख, शान्ति और परमात्मा की प्राप्ति हो।
- रंजना वर्मा
रांची - झारखण्ड
सत्य तो सत्य ही है ।यही साश्वत है। सत्य का कोई दूसरा विकल्प हो ही नहीं सकता। प्रारंभ में झूठ कितना ही प्रभावशाली क्यों न दिख रहा हो, पर उसकी उम्र ज्यादा लंबी नहीं होती। एक झूठ के लिए आप और अनेकों झूठ बोलते हैं। सत्य की राह में कठिनाइयां हो सकती हैं , लेकिन अंततः विजय सत्य की ही होती है।
- नीलम पाण्डेय
गोरखपुर - उत्तर प्रदेश
जिंदगी की आधार शीला ही सत्य पर टिकी होना चाहिऐ ,
सत्य है तभी जिदंगी है मान सम्मान है वर्ना तिरस्कार और घृणा ही मिलेगी हर जगह ...
जीवन में सत्य (सच) का बहुत महत्व है। हम उन्हीं व्यक्तियों को पसंद करते हैं जो सदैव सत्य बोलते हैं। झूठे और मक्कार लोगों को कोई पसंद नहीं करता है। किसी बात पर विवाद होने पर अदालत में जज भी यही पूछता है कि – सत्य क्या है? इस तरह हमारे जीवन में इसका बहुत अधिक महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि तीन चीजें छुपाए नहीं छुपती- सूरज, चंद्रमा और सत्य। जो लोग सत्य का, न्याय का पक्ष लेते हैं उनकी प्रशंसा सभी लोग करते हैं। सत्य का साथ देने वालों को इतिहास स्वर्णिम पन्नों पर दर्ज करता है। परंतु जो लोग झूठ, असत्य का साथ देते हैं उनकी चारों ओर आलोचना होती है। सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र सदैव सत्य बोलते थे। वह अपने सत्य और न्याय के लिए जाने जाते थे। इसलिए आज भी उनकी कहानियां बड़े सम्मान के साथ सुनाई जाती हैं। उसके बारे में कहावत है
चंद्र टरे, सूरज टरे, टरे जगत व्यवहार, पै दृढ़ हरिश्चंद्र को टरे न सत्य विचार”
राजा हरिश्चंद्र सत्य के कारण आज तक जिवित है हम सबके बीच जब भी सत्य की बात आती है राजा हरिश्चंद्र का नाम ही लिया जाता है
सत्य का साथ बहुत जरुरी है ।
यह देखा गया है कि जो लोग ईमानदार होते हैं वह सदैव सच बोलते हैं। झूठे बेईमान और मक्कार लोग सदैव असत्य का फायदा लेकर अपना काम बनाते हैं। हम ऐसे लोगों से बचना चाहिए जो अपने फायदे के लिए (झूठ) असत्य बोलते हैं।
सत्य के मार्ग पर चलने से आत्म संतुष्टि और मोक्ष प्राप्त होता है सत्य का साथ देना इतना भी सरल नहीं होता। व्यक्ति अनेक बन्धनों से बंधा होता है। वीर पुरुष ही सत्य के मार्ग पर चल पाते हैं। यह मार्ग इतना कठिन है कि हर किसी के बस की बात नहीं है। परंतु सत्य के मार्ग पर चलकर व्यक्ति को आत्म संतुष्टि मिलती है और उसे मोक्ष और यश प्राप्त होता है।
सच् मानव जीवन की अनमोल विभूति है जो सत्य पर चलता है वह इसी धरा पर इसी जन्म में आन्नद भोगता है सत्य मानव जीवन की सबसे अनमोल व कल्याणकारी निती है ।
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
जीवन स्वयं एक झूठ है और झूठ हमेशा सच की तुलना में भारी पड़ा।आप किसी भी दृष्टि अथवा दृष्टिकोन से देख लें,जांचलें और परख लें।शब्दों में भी सच दो शब्दों से बना है और झूठ तीन शब्दों से बना है।जो लोकतंत्र के आधार पर भी विजयी है।सच को सत्य भी कहा गया है।सत्य भी झूठ अर्थात असत्य से जीत नहीं पाया। झूठ पर यदि किसी ने विजय पाई है।तो वह मृत्यु है।यानि जीवित रहते यदि आप सच के साथ चलते हो तो कभी जीत नहीं पाओ गे।इसी प्रकार यदि आप स्वर्ग का सुख भोगना चाहते हो, तो मरना जरुरी है। वैसे भी सुना है कि एक तलाब में सच और झूठ नंगे नहा रहे थे और झूठ ने चलाकी से सच के कपड़े पहन लिए थे।तब से सच नंगा घूम रहा है।जिसे भारतीय संस्कृति कभी नहीं अपनाती।इसलिए पंजाबी की कहावत है कि यदि सच को मनवाना है तो आपको नंगे अर्थात पागल होकर नाचना पड़ता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
सच तो वह भावना है जो आत्मा में बसती है। जीवन झूठ के सहारे नहीं चलता। झूठ जिंदगी को ही झूठ बना देता है। सच हमेशा सच ही होता है। एक सच्चाई जिंदगी को संवार देती है ।संबंधों की बुनियाद तो सच के खंभों पर टिका होता है। सच तो जिंदगी का अभिन्न अंग है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
सांस्कतिक मूल्य वही हैं जिनमें संस्कृति साकार होती है .सत्यम शिवं ,सुंदरम भारतीय संस्कृति के मूल्य हैं .सत्य आधार है .सांस्कृतिक मूल्य की साधना करने पर आदर्श प्राप्त होता है .अर्थात सत्य को आत्मसात करने पर सत्य स्वयं ही आदर्श बन जाता है .शिव की प्राप्ति मंगलकारी होती है .श्रेय में समाहित होकर सत्य कल्याणकारी बन जाता है .सुंदरम में समाहित होकर सत्य और शिव एक पूर्ण सत्य की रचना करते हैं जो संस्कृति के रूप में फलित होता है .
- डाँ. छाया शर्मा
अजेमर - राजस्थान
जी हाँ हमारे जीवन में सच का साथ होना उतना ही जरूरी जितने हमें जीने के लिए साँस और जल ।
कबीर जी का दोहा है : -
" साँच बराबर तप नहीं , झूठ बराबर पाप ।
जाके हृदय साँच है , ताके हृदय आप ।"
मानव के सार्थक जीवन में सत्य की वैसी ही सत्ता है जैसे ईश की सत्ता मानव संसार में होती है । सृष्टि का आरंभ भी सतयुग से हुआ है । जिसमें सत्य जैसे सद्गुण की प्रधानता थी । फिर त्रेता युग में सत्य की प्रधानता कम हुई । फिर द्वापर युग आया । जिसमें सनातन धर्म खत्म होने लगा । धरा पर अशांति , पाप - अत्याचार का बोलवाला था ।ऐसे समय सत्यऔर धर्म की रक्षा के लिये कृष्ण ने जन्म लिया । अब आधुनिक काल यानी कलयुग चल रहा है । भौतिक संपन्नता , कल मशीनों , संपदा , वैज्ञानिक तकनीकों का दौर चल रहा है । जिसमें मूल्यों का पतन हुआ है । सत्य मानव जीवन के आचार से दूर हो गया है । मानव पुर्जों को बनाने में लगा है । खुद कल पूजा ही गया है ।खाने खाने का समय भी नहीं नहीं निकाल पाता है । जीवन शैली अव्यवस्थित ही हो गयी है । रिश्तों को स्वार्थ ने घेरा है । जीवन की हकीकत से दूर हो रहा है ।स्वाभाविक प्रवृति , सहजता से दूर होक दिखावे झूठ का नकाब इधे हुए है । मनुष्य के मरने पर जब शव को कंधों पर श्मशान ले जाते हैं ।उतने समय ही राम नाम सत्य सार्थक लगता है । सच्चे लोग को उँगलियों पर ही गिन सकते हैं । जिनमें सत्य का तपोबल रचा - बसा है । गाँधी जी सत्य को ईश्वर कहा है । क्योंकि सच का अस्तित्व है । शाश्वत है । ईश्वर की सत्ता भी सदा रहती है । ऐसे ही सच हर काल में जिंदा रहता है । विचारों में , मन , वाणी , आचार - व्यवहार में सत्य का पालन होना जरूरी होता है । सच बोलने की हिम्मत होती है ।
कहते भी सच कड़वा होता है । असहनीय होता है । गांधी के चरित्र में सत्यवादी हरिशचंद्र के नाटक का पूरा प्रभाव दिखायी देता है । गांधी जी 150 साल बाद भी उनके सत्य के प्रयोग , उनका जीवन , विचार , दर्शन आज पूरे विश्व में प्रासंगिक है । अंग्रेंजों को भारत से मुक्त कराने में गांधी जी का सत्याग्रह विश्व विख्यात है । सत्याग्रह शब्द गाँधी जी ने ही गढ़ा था । सत्य की जिसने भी तपस्या की उसके जीवन में प्रभु मिलन , सफलता आसानी से मिल जाती हैं । भारत सरकार का राज चिन्ह मौर्य सम्राट के ' सिंह स्तम्भ' से सत्यमेव जयते लिया है । अशोक सम्राट विश्व का पहला राजा था । जिसने कलिंग का युद्ध जीत के बाद युद्ध की अमानवीयता , मानवता को रोता देख के युद्ध न करने का प्रण लिया था । अशोक ने अपने परिवार के अपनी संतानों को पुत्र , पुत्री के द्वारा विश्व में मूल्यों की स्थापना करने के लिए भेजा था । आज भी हमें उनके सन्देश शिलालेखों , अशोक की लाटों पर गढ़े मिलते हैं । आज फिर हमें हमें महावीर , बुद्ध , अशोक , गाँधी , राम , कृष्ण जैसे महामानव की जरूरत है।
आज जीवन में सच का साथ रसातल में चला गया है ।
तभी परिवार , समाज , देश , विश्व में हिसा , अशांति , क्रूरता नंगा नाच कर रही है । यह संसार भी कुछ सत्यवादी लोगों के कारण सुरक्षित है । सत्यं -शिवं - सुंदरं की उक्ति मानव को राह दिखाती है । हम सच के साथ जीवन यापन करें । सच ईश्वर है । जो सर्वगुण संपन्न , सुंदर है । हर जन सुंदरता का दीवाना है । सुंदरता में आकर्षण होता है । मानव इसको धारण करके लौकिक से अलौकिक हो जाता है । सत्य आत्मा की खुराक है । हमें ईश ने अनमोल जीवन दिया है ।सत्य के बल से हम अपना अतीत , आज , और भविष्य सुनहरा बना सकते हैं । सत्य से हम अपना परलोक सँवारे , सजाएं , संभाले। सच को धारण करना उसी तरह है जिस तरह हम बीज को जमीन पर बोते हैं । जिसका परिणाम वृक्ष बनने के बाद फल आने पर ही होता है । ऐसा ही सत्य के आचरण करने वालों को फल देर से मिलता है । सत्य हमारे संकटों में सहारा देता है । क्योंकि सत्य तो ईश है । जो हमारी रक्षा झरते हैं । बाल ध्रुव , प्रह्लाद के ईश ही सहारे थे । कहा भी जो जैसा आचरण करेगा या जो जैसा करेगा वैसा ही भरेगा । उपनिषदों में लिखा है " सत्यमेव जयते नाडनृतम ।"
सत्य की जीत होती है । झूठ की नहीं ।
झूठ का अंधकार जहाँ रहता है । वहाँ अवनति रहती है । वंश के वंश नष्ट हो जाते हैं । रावण , कौरव का वंश खत्म हो गया । रामचरित मानस में तुलसी ने लिखा
धरमु न दुसर सत्य समाना । आगम -निगम पुराण बखाना ।दसहरा , जन्माष्टमी आदि पर्व भारतीय संस्कृति में मनाए जाते है । अच्छाई , सत्य की विजय होती है । बुराई , झूठ का नाश का बोध होता है । सटीबॉडी होने से हमारा आत्मबल , बढ़ता है ।हमारे चेहरे की आभा दुगनी हो जाता है। आत्मा शुद्धता से ओतप्रोत रहती है । सत्य जहाँ रहेगा वहां शांति , सिख , समृद्धि , खुशहाली प्रगति रहेगी । रघुवंश इश्कि मिसाल है ।
गुरु नानक के पिता ने बचपन में 20 रुपये सामान लाने के लिए दिए थे । उन रुपये से गरीबो को खाना खिलाया ।पिता ने पूछा तो नानक ने कहा मैने सच्चा सौदा किया है । यह प्रेरक प्रसंग आज के समाज को राह दिखाता है ।
सत्य से कट के हम अपने अस्तित्व को खत्म करते हैं ।सत्य हमें अपने झाँकने का द्वार है ।आत्मा के सौंदर्य को बढ़ाता है । सच हमारे समाज से डायर होता जा रहा है । जिसके बुरे परिणाम समाज भुगत रहा है । सच हमारे मन को निर्मल , पावन करता है , ऊर्जा देता है । हमारी सोच को साकारतम बनाता है । सच हमारे कर्मों को ताक़त देता है। हमारे मन , वचन , कर्म में सच बस जाए तो जीवन स्वर्ग बन जाता है ।
फहरा झंडा देश में , हुआ देश आजाद ।
सच की होती जय सदा , झूठ न हो आबाद ।
आँखें देखें सत्य को , चले हम सत्य पाँव ।
करें सद्कर्म हाथ से , बसे शांति मन गाँव ।
सत्य से गढ़े धर्म सब , सत्य सुखों की खान ।
सार है सभी ग्रन्थ का , भारत की सच जान ।
- डॉ मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
हां,, बिल्कुल सच का साथ जीवन में जरुरी होना चाहिए । सच और झूठ के अंतर को हम सब जानते है एवं मानते भी हैं । युधिष्ठिर जैसे सत्यपरायण व्यक्ति के एक झूठ "अश्वथामा हत: " के परिणाम से हम सब वाकिफ हैं । झूठ की बुनियाद पर कोई भी व्यक्ति अधिक दिन तक टिक नहीं सकता । इसके विपरित सत्य की राह पर जीवन में चलना कठिन तो अवश्य है पर असंभ्व नहीं है ।सच का साथ हो जीवन में तो हम निर्भय, निश्चल आगे बढ़ते जाते हैं । झूठ,जल ,कपट से कुछ हासिल कर भी ले व्यक्ति, परन्तु उसका परिणाम बुरा हीं होता है। ये क्षणिक सुखदाई होता है । राजा हरिश्चंद्र जैसों ने सत्य के लिए अपना सर्वस्व त्याग दिया था । सच का साथ जीवन में व्यक्ति को सिर उठा कर चलने की प्रेरणा सदैव देता है जिसका हमारे जीवन में अहम महत्व है ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
" मेरी दृष्टि में " सच पर दुनियां आधारित है । बिना सच के दुनियां आपराधिक सी नज़र आती है । महाभारत या रामायण इसके उदाहरण हैं । फिर भी लोगों का सच का ज्ञान होने के बाजूद भी सच से मुँह मोड़ लेते हैं ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
निरन्तर अच्छी चर्चाएं बधाई
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