अपने डर को कैसे करें दूर ?

डर एक प्रकार से मानसिक बिमारी है । जो आत्मविश्वास को कम करता है और यह शरीर पर भी विपरीत असर डालती है । इन सब का इलाज " योगा " है । नियमित रूप से योगा करना चाहिए । जिससे आत्मबल हासिल किया जा सकता है । यहीं सब कुछ  " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -   
ईश्वर के प्रति पूर्ण निष्ठा रखते हुए अपने कर्तव्यों को पूरा करते रहें । जो होता है वो हमारे भले के लिए होता है ; ये सोच हमें कभी अवसाद में नहीं आने देती ।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोस्त्वकर्मणि ।।
गीता का यह उपदेश हमें बताया है कि कर्म पर आपका अधिकार है उसके फल पर नहीं अर्थात आप कर्त्ता नहीं है इसलिए जो भी परिणाम हो उसके जिम्मेदार खुद को न समझे । ऐसी सोच रखने से मन का डर अपने आप चला जाता है । ध्यान व प्राणायाम से स्वयं पर नियंत्रण बढ़ता है और हम निर्भीक होते जाते हैं ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
डर एक नकारात्मक सोच है  !डर को दूर करने के लिए पहले हमारी सोच हमारे विचार में  सकारात्मकता लानी होगी! 
स्वयं पर, अपने काम करने के तरीके पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए यानिकी अपनी सफलता पर विश्वास  होना चाहिए  !
जो कार्य अभी हुआ नही उसके लिए पहले से ही अपने मन में  डर नहीं  पालना चाहिए मतलब साफ है वर्तमान में  रहें आगे क्या होगा, मुझे सफलता मिलेगी अथवा नहीं  वह ईश्वर पर छोड़ दें! आगे भी सफलता मिलती रहेगी ऐसी सकारात्मक सोच  के साथ आगे बढ़े इससे आत्मबल मिलता है और बिना डर के हम निडरता के साथ समय का सामना करते हैं! 
किसी भी कार्य को पूरी निष्ठा और मेहनत के साथ करें फल तो मिलना ही है! कर्म करते हुए सकारात्मक सोच रखें और  ईश्वर पर पूर्ण विश्वास हो तो डर हमें  छू नहीं  सकता! 
प्राणायाम एवं ध्यान से भी डर से मुक्त  होते हैं  !
बिना मेहनत के परीक्षा में  पास होना नामुमकिन है अतः थोड़ा डर तो होना चाहिए  ताकि  आप पास होने के लिए मेहनत करें अंत में  कहूंगी डर दूर करने के लिए  सकारात्मकता लिए आत्म विश्वास , आत्मबल से कर्म करें एवं ईश्वर पर विश्वास करते हुए वर्तमान में रहें!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
हमारा डर हमारी सबसे बड़ी कमजोरी होती है ।ये हम पर निर्भर करता है कि हम अपनी कमजोरी के साथ जीयें या उसपर विजय पाकर खुशी के साथ जीयें।अपने डर को दूर करने के लिए सबसे बढ़िया उपाय है,उससे भागे नहीं,बल्कि डटकर उसका सामना करें ।दुनिया में कोई भी ऐसी समस्या नहीं है जिसका समाधान न हो ।पहले अपने डर को समझना बहुत जरूरी है ।फिर उससे निबटने के लिए खुद को तैयार करना चाहिए ।अपना डर समझ आ जाने पर कभी कभी उसे दूर करने के लिए हम अपने दोस्त या किसी अपने का भी सहारा ले सकते हैं ।
 - रंजना वर्मा
रांची - झारखण्ड
डर  जैसे दो अक्षर के  शब्द से मानव कितना भभीत रहता है । डर यानी भय ।  जब मानव के  मन , मस्तिष्क के भीतर नकारात्मकता  की मानसिकता भारी होती है । तब भय जैसे रोग का जन्म होता है । सफलता के रास्ते में डर बाधक बन जाता है ।
कोई सपना बड़ा नहीं , सफल  वही जो डरा नहीं ।
 बचपन में पढ़ा था कोई भी प्राणी अकेला नहीं रह सकता है । उसे परिवार , समाज की जरूरत होती है । 
मानव तो विवेकशील  , सामाजिक प्राणी है । समाज , परिवार में रहने के लिए हमें मूल्यों का , अनुशासन का , नियमों का पालन करना होता हैं ।  जब हम इन नियमों का आचरण नहीं करते हैं । तब हमारे नकारात्मकता की मानसिकता बन जाती है जो भी को जन्म देती है ।
  मैने कक्षा पाँचवीं की इतिहास की किताब में पढ़ा था टीपू सुल्तान निडर , साहसी शासक , राजा था । अपने साकारत्मक व्यक्तित्व  गुणों की वजह से डरपोक नहीं था । 18 वीं सदी में उसने अंगेजों से  लोहा लिया था । उसकी वीरता , युद्ध की तस्वीर लंदन के राजमहल में लगी हुई है। जो उसकी निडरता , वीरता को दर्शाती है ।
 डर किनको लगता है । जवाब स्प्ष्ट है जो गलत सोचते हैं । जिनकी मानसिकता गलत , नकारात्मक है ।  जिनकी मानसिकता में रहता है कि लोग क्या कहेंगे ? 
 समाज मानव से बनता है । मानव और समाज में तालमेल बनाने के लिए तैत्तरीय उपनिषद में कहा है , सत्यं वद । धर्म चर । स्वध्यायांमा प्रमदः। 
अर्थात सच बोल । धर्म को आचरण में लाएँ ।स्वाधाय में लगे रहने में आलस्य न करें ।
इन सिंद्धान्तों के पालन से हम समाज और खुद को सुंदर बेहतर और निडर बना सकते हैं ।
हकीकत में मानव इन सूत्र का पालन नहीं करता है । इसलिए मनुष्य भयभीत रहता है । उदाहरण के तौर पर 
जो भ्रष्टाचारी  हैं । जिनकी बईमानी की  कमाई है ।रिश्वत 
लेते हैं । उनको सरकारी छापे का डर सताए रहता है ।
जो भी नेता , व्यक्ति रिश्वत के लिये पकड़ा जाता है ।उन्हें जेल होती है । जेल जाने के डर से उन्हें हृदयाघात होता है । बीमारियां घेर लेती हैं । 
सच की दुकान का सामान रात तक भी नही बिक सका ।झूठ की दुकान का सामान हाथ की हाथ बिक गया ।
 आज समाज में व्यक्ति आत्महत्या कर रहा है । क्यों ? उन्हें  कोई डर तो होगा । तभी गलत कदम उठाता है । 
  हम निडर और भय मुक्त बनने के लिये नियमों का , मूल्यों का पालन करना होगा ।
लोक - व्यवहार , धर्माचरण को अपनाना होगा ।
जितने भी महापुरुष , सन्त , महात्मा हुए है । वे भयमक्त थे । सकारात्मक सोच ,  सदाचरण की आग में वे तपकर कुंदन हुए हैं ।  जिनके हृदय निष्पाप होगा । चल , कपट , द्वेष रहित , शुद्ध हृदय होगा । उन्हें तो डर नही लगता है । हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को पहाड़ से गिराया । तपते लोहे से जलाया । ऐसी क्रूर परीक्षाओं को हँसते हुए प्रह्लाद ने सहा । उसका बाल बांका न हुआ ।  महात्मा गांधी की जीवनी निडरता का पाठ पढ़ाती है ।डरना है तो भगवान से डरो ।चोर चोरी करने जाता है । चुपके -चुपके , डर के साथ  रात के अँधेरे में जाता है । कोई उसे देख न ले ।  कोई उसे देखेगा तो वह नो दो ग्यारह हो जाएगा । महाभारत के युद्ध में अर्जुन स्वजनों को देख के युद्ध न करने के लिए कृष्ण से कहते हैं । तब कृष्ण अर्जुन को डरपोक , कायर न बनने को कहके युद्ध करने की सलाह देते हैं । परिणाम कुरुक्षेत्र के महाभारत में पांडव विजयी हुए थे ।  हमारे प्रधानमंत्री मा नरेंद्र मोदी जी में डर का फेक्टर ही नहीं है ।देश , विश्व की समस्याओं से घिरे मोदी जी  निडर व्यक्तित्व के धनी हैं ।  बियाबान सरहद पर खड़े सैनिक निडर ही तो होते हैं । डर भगाने के मैं अपने अनुभव सांझा कर रही हूँ । आप सब प्रेरित होंगे । हमें किसी बुरे ख्याल से चिंतित न हो । बल्कि उसे अपने वश में करने की सोचे । साकारत्मक दृष्टिकोण रखें । भूत , प्रेत जैसा कोई डर नहीं है । विषम परिस्थियों में हम घबराए नहीं , बल्कि धैर्य से उस परिस्थिति से सामना करें । अधिकतर बच्चों , बड़ों को स्टेज का डर लगता है । वह मंच पर खड़े होकर बोल नहीं सकते  हैं । इसके लिए डर भगाने यही उपाय है । हम बचपन से ही दूसरों के सामने कविता , गीत सुनाने की प्रैक्टिस करें । डरअपने आप ही भाग जाएगा । बचपन में हमारे मा - पिता रिश्तेदारों के समाने हम से कविता , गीत बोलने के लिए कहते थे । शुरू में झिझक होती थी । बाद में यह डर गायब हो गया । मैं एक वक्ता भी हूँ ।शिक्षिका , कवयित्री  होने के नाते वक्ता बनाना जरूरी है । स्कूल , कॉलिज के कार्यक्रमों में एंकरिंग करनी होती थी । डरेगा  तो मरेगा की कहावत चरितार्थ  होती है । व्यक्तित्व विकास में डर को बाहर निकालने का उत्तम मार्ग है । डर की मूल को उखाड़ देता है । यही स्टेज फियर मैंने अपने बच्चों का बचपन में कविता , कहानी दूसरों के समाने सुनवाकर निकला था । इसी तरह स्कूल , कॉलिज में छात्रों का मार्गदर्शन किया ।
छात्र पेपर परीक्षा  का देख के डर जाते हैं । कैसे इतना लंबा उत्तर लिखेंगे । पेपर के प्रश्न छूट जाएँगे । इसके लिए हमें बच्चों से लिखवा क़े प्रेक्टिस  लेनी होगी । उनका डर हमें भगाना होगा । हमारी सकारात्मकता की सोच , आत्मविश्वास हमारे सफल जीवन के स्तम्भ हैं । हमारी सोच को स्वस्थ रखते हैं ।  डर तो लूजर का नाम है और विनाश , दुख असफलता का सूचक है ।निडरता हमारी विजय का उदघोष  है । डर की मूल को ढूंढ़ना होगा । जीवन की सफलता के लिए  डर के दानव  को समूल नष्ट करना होगा । अंतिम सूत्र है कि डरना है तो हमें  नीच , गन्दे कर्म करने से  है । हम ईश्वर से डरे  । अंत में मैं दोहे में कहती हूँ : -
डरने में  होता  सदा  , अपना ही नुकसान ।
 जीता है  मनुष्य वही ,  होय निडर  जो  शान ।
डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
डर तो व्यक्ति को स्वयं ही दूर करना पड़ेगा। डरपोक व्यक्ति कभी भी अपने लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर सकता हर मनुष्य जीवन में डरता है और वह अपने डर को ही जीतकर सिकंदर बनता है। उदाहरण के लिए शुरू में जब महात्मा गांधी ने वकालत शुरू की थी और अपना केस लड़ने के लिए व साउथ अफ्रीका गए थे तो वहां लोगों की चिल्लाहट के बीच में वह बोल नहीं पाते थे और सब उनका मजाक उड़ाते थे लेकिन उस दर पर उन्होंने काबू पाया और आज महात्मा के नाम से प्रसिद्ध हुए। बचपन में हम सभी डरते हैं कभी अपनी परछाई से और कभी गलती करने पर तो हमें सिखाया जाता है कि सच्चाई की राह पर चलो। डरना तो नकारात्मक भाव होते हैं, आशावादी व्यक्ति कभी नहीं डरता। दाढ़ी में तिनका होता है यह कहावत तो सुनी होगी। सत्यवादी तो नजर से नजर मिला कर बात करता है। आलसी व्यक्ति जो मेहनत नहीं करता और पढ़ाई से भागता है वही डरता है। श्री कृष्ण ने भी अर्जुन के मन के डर को भगाने के लिए उपदेश दिए थे। जब डर लगे तो व्यक्ति को अच्छा साहित्य पढ़ना चाहिए वह महापुरुषों के विचार को पढ़ना चाहिए या अपने गुरु से सलाह लेनी चाहिए अच्छे व्यक्तियों के संपर्क में रहने से आपके मन का डर भागेगा और आप अपने जीवन में लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे।
 षड् दोषा: पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता।
निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता।।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
हर किसी इन्सान को किसी न किसी चीज या बात का डर लगता है. अगर कोई बोलता है कि उसे किसी भी बात से डर नहीं लगता तो ये झूट होगा. डर/भय सबको लगता है, लेकिन कुछ लोग इससे निपटने के सही तरीके अपना लेते है, जिससे वे जीवन के अनेकों डर को पीछे छोड़ आगे बढ़ जाते है. डर एक ऐसी चीज है, जो हमें आगे बढ़ने से रोकता है. डर एक नकारात्मक सोच है, जो शैतान हमारे दिमाग में डालता है.
आजकल हमारे आसपास इतनी ज्यादा नकारात्मकता होती है कि मन चाहकर भी अच्छा नहीं सोच पाता है. बहुत कम लोग होते है, जो एक दुसरे को प्रोत्साहित करते है. आगे बढ़ने की होड़ में लोग एक दुसरे को पीछे छोड़ते जाते है. चारों तरफ गलत माहौल होने से लोग भरोसा कम करते है, नकारात्मक ज्यादा हो गए है. यही सोच हमारे अंदर घर कर जाती है, और फिर किसी भी तरह से डर के रूप में सामने आती है.
परीक्षा के समय पढाई नहीं करने पर हमें फ़ैल होने का डर लगता है, कई बार माँ बाप की अधिक अपेक्षाओं के चलते भी फ़ैल होने का डर होता है. किसी बात को कहने से पहले ही डरते है, क्यूंकि लगता है सामने वाला अस्वीकार कर देगा.
लोगों के सामने जाने से डर लगता है, अपमान का डर लगता है. ऑफिस में सही काम न करने पर बॉस का डर.
इन्सान डिप्रेशन में चला जाता है. नकारात्मक सोच के चलते, आत्म विश्वास खो देता है. कई बार आत्महत्या के बारे में भी सोचने लगता है. झूठ बोलना जीवन में आगे नहीं बढ़ता
डर के मारे अपनी सही बात भी नहीं कह पाता है. डर के चलते अपने टैलेंट को दुनिया के सामने नहीं लाता
भीड़ का हिस्सा बन जाता है डर को दूर करने के लिये आत्मविश्वास पैदा करना चाहिऐ. आत्मविश्वास जीवन का आधार हैं, अगर इसमें कमी होती हैं तो जीवन का आधार हिल जाता हैं. किसी में कितना ही बड़ा गुण क्यूँ ना हो अगर उसमे आत्मविश्वास नहीं है तो वह गुमनामी की जिन्दगी जीता हैं.
सबसे पहले अपने अंदर की कमी, डर और आत्मविश्वास में कमी के बारे में खुद से कहे उसे अच्छे से स्वीकार करे और ठान ले कि इसे हर हाल में ठीक करना हैं. किसी से भी बात करते वक़्त उससे नजरे मिलाकर बात करे आपमें अपने आप ही आत्मविश्वास की वृध्दि महसूस होगी.और किसी से बात करते वक्त ना डरे. सामने जो हैं वो भी एक इन्सान हैं और उनमें भी समझ हैं अगर आप नए हैं तो वे समझेंगे आपकी परेशानी को. घर, स्कूल, कॉलेज अथवा ऑफिस जैसी जगहों पर किसी भी गतिविधी में ज़िम्मेदारी ले और उसे जोश के साथ पूरा करे. इससे भी आपमें आत्मविश्वास पनपता हैं|
किसी भी काम के ना हो पाने की आशा लेकर काम ना करें ऐसा करने से आपका आत्मविश्वास और उत्साह दोनों कम होगा हमेशा काम के होने की जितनी भी गुंजाईश हैं उसे लेकर चले. अपने से बेहतर व्यक्ति के अच्छे गुणों को अपने जीवन में शामिल करें. महापुरुषों की जीवनशैली जाने और उन्हें अपने जीवन में उतारे इससे आपमें अच्छी आदतों का विकास होता हैं जिससे अच्छे परिणाम आते हैं और आप अपने आप में आत्मविश्वास का अनुभव करते जीवन में किसी भी परेशानी का हल ना हो ऐसा नहीं हैं, कई कमिया तो सकारात्मक विचारों से ही पूरी हो जाती हैं. आत्मविश्वास की कमी तब ही होती हैं, जब हम किसी बात से डरते हैं या अपने आपमें कमी महसूस करते हैं. और इन दोनों ही कारणों को ख़त्म करना आपके हाथ में हैं. आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए सबसे पहले खुद पर यकीन करे और अपनी कमी को पूरा करने की कोशिश में लग जायें. अगर आप सफल ना भी हो तो ना डरे हर व्यक्ति सभी कार्यों के लिए नहीं बना होता हैं आपने कोशिश की यही सबसे बड़ी जीत हैं.
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
सबसे पहले तो हमें अपने डर को समझना होगा, फिर उस डर से मुँह चुराने के बजाय उसका सामना करने के लिए खुद को शांत रखकर मजबूत करना होगा। दिमाग शांत रहने पर उस डर नामक समस्या का समाधान सरलता से मिल जाएगा।
- गीता चौबे
रांची - झारखण्ड
समस्या के साथ ही समाधान जन्म ले लेता है अतः डर तभी हमको सतायेगा जब मन से कमजोर होंगे ।अपने निर्णय समय पर और अपने आप न ले पा रहे होंगे ।जो जितना डरता है या डर से भागता है डर उतना ही उसके पीछे पड़ता है ।अतः हम यदि अपने मन को मजबूत रख अपने निर्धारित पथ पर बढते रहें।पथ के अनावश्यक अवरोधों पर ध्यान न दें तो डर पास नहीं आयेगा और यदि पहले से डर ने घेर रखा है तो मन को मजबूत कर उसका सामना करें भागें नहीं ।
- शशांक मिश्र भारती
 शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
एक कहावत है:
    "डर के आगे जीत है"
बिलकुल सही, जब हम अपने अंदर के भय को समाप्त कर अपनी मंजिल की तरफ अग्रसर होते हैं, हमें सफलता अवश्य मिलती है। किन्तु मुख्य बात ये है कि हम इस डर को अपने से दूर कैसे करें ? क्योंकि किसी भी प्रकार के डर का पैठ हमारे अंदर इतनी गहराई तक होता है कि हमें उसे दूर करने के लिए अत्यधिक मशक्कत करनी पड़ती है। सबसे पहले तो जिस तरह का भी डर या भय हमारे अंतर्मन में है, हम उसके विषय में सोचना छोड़कर अपने लक्ष्य पर ही अपना ध्यान पूर्णतया केंद्रित करें। अपनी आँखें बंद कर पूर्ण श्रद्धा के साथ ईश्वर को याद करें, या फिर जिसके ऊपर भी हमारे मन में असीम श्रद्धा हो ( हमारे माता पिता या गुरु भी हो सकते हैं ) उनको यादकर, उन्हें नमन करते हुए अपने कर्म पथ पर अग्रसर रहें। डर तो दूर हो ही जाएगा, सफलता भी सुनिश्चित हो जाएगी।
           - रूणा रश्मि
          राँची - झारखंड
डर, लगभग हम सबके जीवन में किसी न किसी बात को लेकर बना रहता है। कोई किसी बात से डरा है तो कोई किसी और बात से। और इस डर की वजह से हम अपना जीवन भी खुल कर जी नहीं पाते हैं। तो फिर आइए जानें कि क्यों लगता है हमें डर और कैसे बचें इससे –
डर जीवन के सबसे अप्रिय अनुभवों में से एक है। आपको जिस चीज का डर लगता है, वास्तव में वह उतनी डरावनी नहीं होती, जितना कि खुद डर। कोई आए और आपका दिल दुखाए, उससे पहले ही आप खुद ही अपने आपको इतना दुख पहुंचा लेते हैं कि उसके करने के लिए ज्यादा कुछ बचता ही नहीं। डर की सबसे बड़ी वजह है कि आपने अपने शरीर और मन के साथ जरूरत से ज्यादा अपनी पहचान बना ली है।
शरीर और मन के साथ कुछ भी गलत नहीं है, वे शानदार चीजें हैं, लेकिन आपने उनका एक बार इस्तेमाल किया और आप उसी में अटककर रह गए। सब कुछ इतनी बुरी तरह से उलझ गया है कि आपको यह भी पता नहीं है कि आप कौन हैं और आपका शरीर कौन हैं। आप कौन हैं और आपका मन कौन है। मान लीजिए, मैं आपका दिमाग ले लूं तो क्या आप डरेंगे? नहीं। या यूं कहें कि अगर मैं आपका शरीर ले लूं, तो क्या उसके बाद आप डरेंगे? हालांकि डर से बचने के लिए आपको अपना शरीर छोडने की कोई जरूरत नहीं है। आपको बस इतना करना है कि अपने शरीर से थोड़ी सी दूरी बनानी है। ठीक इसी तरह आपको अपने मन से भी थोड़ी दूरी बनानी है। एक बार अगर आपके और आपके शरीर और मन के बीच थोड़ी दूरी बन गई, तो फिर आपको भला किस बात का डर होगा?
मान लीजिए, आपके पास एक बहुत पुराना फूलदान है, जो कई पीढ़ियों से चला आ रहा है और अब आपको मिला है। आपको हमेशा यह बताया गया कि यह बहुत भाग्यशाली फूलदान है। हमारे परिवार के लोगों की जिंदगी बस इसी फूलदान की वजह से अच्छी तरह चलती रही है। अगर मैं आकर उस फूलदान को तोड़ दूं तो क्या होगा? आपके दिल में डर बैठ जाएगा कि अब आपके साथ बुरा होने वाला है। क्योकि आपने इस फूलदान के साथ अपनी बहुत ज्यादा पहचान बना ली है।
मान लीजिए, आप हमेशा से बिना किसी तनाव के आराम से कार चलाते रहे हैं। अचानक एक दिन कोई आकर आपकी कार से टकराता है या आप खुद किसी चीज से टकराते हैं। जिसमें आपको जरा सी चोट लगी, बस थोड़ा सा दर्द हुआ। लेकिन अगले दिन जब आप कार में बैठेंगे, तो भगवान से प्रार्थना करेंगे। अभी तक आप सडक़ पर मस्ती से कार चलाते थे, अब अचानक कार चलाने के लिए आप को भगवान की मदद की जरूरत पड़ गई। ऐसा नहीं है कि शुरू से आप में डर नहीं था, यह पहले भी था। लेकिन इसके प्रति सचेत होने के लिए एक दुखद मौके की जरूरत पड़ी। डर जीवन से पैदा नहीं होता है, बल्कि यह आपके भ्रमित मन की उपज है। आप गैरमौजूद चीज को लेकर इसलिए परेशान होते हैं, क्योंकि आप हकीकत में रहने की बजाय उस ख्याली दुनिया में रहते हैं, जो लगातार अतीत के सहारे भविष्य में झांक रही है।
आप वास्तव में भविष्य के बारे में कुछ नहीं जानते। आप सिर्फ अतीत का एक टुकड़ा लेकर उसे कुछ शक्ल देने की कोशिश करते हैं और सोचते हैं कि यही भविष्य है। आप भविष्य की योजना बना सकते हैं, लेकिन उसमें जी नहीं सकते। फिलहाल हो यही रहा है कि लोग भविष्य में जी रहे हैं और यही चीज उनके डर की वजह है। इससे बचने का एक ही तरीका है कि आप वास्तविकता के धरातल पर उतरें। अगर आप बेकार की कल्पना करने की बजाय वर्तमान में मौजूद चीजों में मग्न रहें और उनसे कुशलता पूर्वक निपटें तो फिर डर के लिए कोई जगह ही नहीं बचेगी। अब आपको यह तय करना है कि आप धरती पर जीवन का अनुभव लेने आए हैं या उससे बचने। अगर आप जीवन के अनुभव लेने आए हैं तो उसके लिए सबसे जरूरी चीज है – चाह की तीव्रता, एक जज्बा। अगर आप में तीव्रता नहीं होगी तो आपको जीवन का थोड़ा बहुत ही अनुभव हो पाएगा। दरअसल, जैसे ही डर आपके पास आता है, आपकी तीव्रता कम हो जाती है। जैसे ही यह तीव्रता नीचे जाती है, जीवन को अनुभव करने की आपकी क्षमता गायब हो जाती है। और तब आप मनोवैज्ञानिक समस्या के शिकार बन जाते हैं। ऐसे में आपके मन में चल रही चीजें ही आपके लिए हकीकत बन जाती हैं। उस स्थिति में आप कभी भी कोई शानदार या असाधारण खुशी का अनुभव नहीं कर पाते, क्योंकि जब आप डरे हुए होते हैं तो आप सिर्फ सहमे हुए बैठे रहते हैं। तब आपमें बेफिक्री का भाव नहीं आ पाता। न आप खुलकर गा सकते हैं, न नाच सकते हैं, न हंस सकते हैं न रो सकते हैं, यानी आप ऐसी कोई चीज खुलकर नहीं कर सकते, जिसमें जीवन झलकता हो। तब आप बैठकर जिंदगी और उसकी तमाम दिक्कतों व जोखिमों के बारे में सोच सकते हैं और परेशान हो सकते हैं। आप गौर करें कि यह डर आखिर किस चीज का है। आप पाएंगे कि आप हमेशा ये सोचकर डरते हैं कि आने वाले समय में क्या होगा। आपका डर हमेशा भविष्य को लेकर होता है। उस बात को लेकर, जो अभी हुई नहीं है, बल्कि होनी बाकी है। इसका मतलब है कि फिलहाल इसका कोई अस्तित्व नहीं है। डरने का मतलब है कि आप ऐसी चीज से परेशान हो रहे हैं, जो वास्तव में मौजूद ही नहीं है। आप जिस तरह से गैर मौजूद चीजों से परेशान हो रहे है, उसके आधार पर आपको समझदार माना जाए या पागल? आप बस इसी बात से राहत महसूस कर सकते हैं कि सब लोग आपकी ही तरह के हैं। लेकिन सिर्फ इसी वजह से कि सभी आपकी तरह है, इसे सही तो नहीं कहा जा सकता। तो आप अभी इसी वक्त से वर्तमान में जीने का अभ्यास शुरू करें, न कि भविष्य में। आप का डर धीरे धीरे कम होता जायेगा 
- अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
डर का मूल कारण होता है अज्ञानता । ईश्वरीय सत्ता, विज्ञान एवं  स्वयं की शक्ति पर विश्वास न करने वाला  व्यक्ति भयभीत रहता है  और प्रारब्ध पर भरोसा करके अकर्मण्य हो जाता है ,या अंधविश्वासों होकर, टोने-टोटकों पर भरोसा करने लगता है । ज्ञान का अभाव व्यक्ति को डरपोक बनाता । अज्ञानी की तुलना में , अल्पज्ञानी में  डर की मात्रा , तुलनात्मक रूप से  कम पाई जाती है । शारीरिक और मानसिक कष्ट तथा आर्थिक हानि के अलावा प्रतिष्ठा की क्षति से भी व्यक्ति डरता है । यह डर आजीवन चलता है ,जिसे सहनशीलता और मर्यादा का नाम दिया जाता है । इतना ही नहीं धर्म का भय बताकर, अपनी स्वार्थ पूर्ति करने वालों की भी कमी नही ।
किसी को अंधेरे से भय लगता है तो कोई पानी से भय खाता है ।  और यह सब तभी होता है, जब व्यक्ति किसी भी अनहोनी घटना के लिए, स्वयं  तैयार नहीं होता । 
कूपमंडूकता और अंधविश्वास  व्यक्ति को डराते हैं । अकर्मण्य व्यक्ति , आसानी से सब कुछ प्राप्त लेने की चाह में, अपने ज्ञान का विस्तार न करके भयभीत होकर, इन झमेलों में फंस जाता हैं ।डर को समाप्त करना बहुत आवश्यक है । दूर से ही अंधकार से भयभीत होने की बजाय, उस अंधकार में प्रविष्ट होने का साहस जिसमें होता है , वही अंधकार पर विजय प्राप्त कर पाता है । ईश्वरीय सत्ता एवं अपनी शक्ति पर भरोसा करने वाले व्यक्ति को किसी की बुरी नजर से भयभीत होकर  अंधविश्वास और टोने-टोटके नहीं करने पड़ते । भीतर का भय , साहस से ही दूर हो सकता है और साहस ज्ञान से आता है । अज्ञानता और अल्पज्ञता दोनों ही भय और कष्ट  के जनक हैं और   *ज्ञानार्जन द्वारा ही भय से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है ।
- वंदना दुबे 
  धार - मध्य प्रदेश
 अपने डर को दूर करने के पहले हमको यह जानना होगा कि हमारे पास कितने प्रकार के डर होते हैं। डर अर्थात भय  वर्तमान में मनुष्य चार भय से ग्रसित है।
 पहला प्राण भय, दूसरा मान भय
 तीसरा धन भय , चौथा पद भय, 
  इन चार भय से ग्रसित हो कर इन मानव अपना विकास  नही कर पाता है। जिससे मनुष्य द्वद भ्रष्ट मे जीता हुआ आंतरिक समस्या से ग्रसित रहता है अतः भय के निवारण के लिए मनुष्य जाति को विचार करने की या छुटकारा पाने आवश्यकता है। प्राण भय के निवारण के लिए  शरीर का   नवरत्न आत्मा के अमरत्व को जानने के बाद प्राण भय का डर नही लगता है। सही कार्य  व्यवहार करने से मान भय का निवारण होता है। धन का सदुपयोग  करने से धन भय से निवारण होता है। न्याय पूर्व
जीने से पद भय का निवारण होता है।  इन बातों पर गहरा चिंतन करके अपने डर को दूर कर सकते हैं।भय ग्रसित होकर कोई मनुष्य जीना नही चाहता।  
भय से मुक्ति  पा ना  चाहता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
डर  एक स्वभाविक  नकारात्मक  संवेग  है।डर की  उत्पत्ति  के कारण  को  अच्छी  तरह  से  जाने।डर  हमे  क्यो  लगता है ।
1 दोषपूर्ण  परवरिश  जैसे  एक बच्चे  को किसी  तरह  का डर  नही  होता  है चूंकि  उसके  पास  अनुभव  नही है
2  अज्ञात  से भय  होता  है।
3 नकारात्मक  जुमले  से भय  उत्पन्न  होता  है 
4 प्रयास  मे सफलता  हासिल  न होने  पर  भय 
5।  इस तरह  अनेक  छोटे-छोटे  कारण  है डर  पैदा  होने  का।
डर को दूर भगाने  के  तरीके 
डर एक संवेग  है जो  व्यक्तिगत  होता  है  उसका  निवारण  भी व्यक्तिगत  तरीके  से संभव है जिसमे  आत्मविश्वास  बढाना है। यदि  इंसान  आत्मचिंतन  कर  
Yes I can do को बार बार  अपने  मन  को बोलकर  संदेश  प्रतिदिन देते रहे  तो  निश्चित  ही  आत्मविश्वास  बढेगा  मन का  डर  दूर  होगा ।
दूसरी  बात  यह  है कि ऐसा  करने  से  शरीर  के  अंदर  पॉजिटिव  हार्मोनल  परिवर्तन  होगे ।विचार  स्वत  धीरे-धीरे  बदलते  जाएंगे ।प्राणायाम  व्यायाम  से सकारात्मक  सोच  आ जाएगी  डर  स्वत  दूर  होने  लगेगे ।
एक कहावत  है     भाग लो या भाग जाओ 
भाग लो का अर्थ  डर का  सामना  करो 
भाग  जाओ  का  अर्थ  डर  कर मैदान  छोड़कर  चले  जाओ ।  अपने  निर्णय  पर हर हाल  मे डटे  रहना पूरी मेहनत  और  योजनाबद्ध  होकर  कार्य  को  पूरा  करना  
 डर तीन  तरह  के होते  है 1 डर 2 भय  3 फोबिया 
तीनो  मे डिग्री  का अन्तर है।
रामायण  के सुन्दरकाण्ड  मे यह लिखा  गया  है। बिनु  भय  न  होय प्रीति । भय  होना  भी  आवश्यक  है ।
- डाँ .कुमकुम  वेदसेन  
मुम्बई - महाराष्ट्र
"डर के आगे जीत है" ऐसा कहा गया है । मनुष्य की एक स्वभावविक प्रवृत्ति है  " डर" । ये जानना  चाहिए कि डर का कारण क्या है  ? तभी उसका निवारण हो सकता है । हमें कोशिश ये करनी चाहिए कि हम हर तरह से संबल बने, तभी  हम डर को अपने से दूर रख सकते हैं ।हर समस्या का कुछ ना कुछ समाधान तो होता ही है,फिर डर का भी है ,,बस डर के कारण को हमें ढूंढना है तभी हम उसका निवारण कर सकते हैं ।  
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
 जब कोई परिस्थिति व्यक्ति के तन मन पर हावी हो जाती है और व्यक्ति उस परिस्थिति से बाहर निकलने में स्वयं को अक्षम समझने लगता है | तब उसे समझ नहीं आता कि उस समस्या से कैसे वह बाहर निकले | तब घबराने के कारण व्यक्ति के विवेक पर भय व्याप्त हो जाता है | और व्यक्ति डर का शिकार हो जाता है | चूंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है | 
समाज में लोगों के बीच रहकर प्रत्येक व्यक्ति अच्छा और बुरा बर्ताव करना सीखता है |सामाजिक प्राणी होंने के नाते संवेदनशील व्यवहार के साथ व्यक्ति के कई अनेक संवेग जुडे होते हैं | समाज में भिन्न, भिन्न प्रकृति के लोगों के बीच रहकर मानव को विभिन्न प्रकार की अनेक परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है | जहाँ व्यक्ति बहुत सी अच्छी परिस्थितियों में सुरक्षित होने का अहसास करते हैं | तो वहीं सामंजस्य न कर पाने के कारण भय जैसे संवेगों का भी उन्हें सामना करना पड़ता है |मानसिक रूप से दुर्बल व्यक्ति के मन के किसी कोने में अनेक प्रकार के भावनात्मक सदभाव, दुर्भाव जैसे संवेग छिपे रहते हैं | सामंजस्यता के अभाव में किसी परिस्थिति विशेष में  मनुष्य के व्यक्तिव पर हावी हो जाते हैं |
और व्यक्ति डर जैसे संवेग का शिकार हो जाता है |
ये डर कई प्रकार के होते हैं : -
जैसे ऊँचाई का डर 
भीड का डर 
बंद जगह में रहने का डर 
आग से डर
पानी से डर 
किसी सभा आदि में शामिल होने का डर 
अकेले रहने का डर 
मंच का डर 
ऐसे बहुत से अनेक डर या भय के प्रकार होते हैं जिनसे व्यक्ति का मन भयभीत रहता है | और मनुष्य मनोनुकूल हालात न मिलने के कारण मानसिक अवसाद का शिकार हो जाता है | 
ऐसे डर से बचने के लिए व्यक्ति को सदैव अपने मन में सकारात्मक चिंतन अपनाना चाहिए |किसी भी प्रकार की समस्या होने पर डरना नहीं चाहिए |व्यक्ति को अपने भय पर नियन्त्रण रखना चाहिए | यदि कोई समस्या है तो उसका समाधान भी साथ ही जुडा होता है |आवश्यकता है कि ठंडे दिमाग से बैठकर समस्या का हल निकाला जाए |
किसी भी विशेष परिस्थिति से डरकर घबराकर भागना नहीं चाहिए |वरन् उस परिस्थिति का डटकर सामना करना चाहिए | मन में अपनी मानसिक शक्ति को बढाने हेतु प्रातः खुली हवा में टहलना चाहिये |प्राणायाम के अभ्यास द्वारा अपने श्वांसों पर नियन्त्रण करना चाहिए | योग के अभ्यास ध्यान साधना के द्वारा भी बहुत हद तक भय जैसे संवेग पर काबू पाया जा सकता है |डर जैसे संवेग के अधिक बढने से पहले ही चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए |स्वयं को अवसाद जैसी समस्या से बाहर निकालने की कोशिश करनी चाहिए |
- सीमा गर्ग मंजरी 
मेरठ - उत्तर प्रदेश
    डर कई प्रकार का होता है।जैसे सफलता-असफलता का डर, कानून का डर, मां-बाप व भाई-बहन एवं शाम को देरी होने से बीवी के क्रोध का डर होता है।इसके अलावा मानसिक डर, जिसके पीछे मनोविकारों के सिवा कुछ नहीं होता।ऐसे रोगी अपने साये से भी डरते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि इस डर रूपी भूतों से दूरी कैसे बनाएं?तो इन डर रूपी समस्त भूतों से दूरी बनाने के लिए मात्र निडरता का साहस उत्पन्न करना है।अपने अंदर इतनी सामर्थता पैदा करनी है कि दूसरे अपनी आँखों से आँखे मिलाने का साहस ही न कर पाएं।
       इसलिए प्रत्येक डर से छुटकारा पाने के लिए सदृड़ आत्मविश्वास वह शस्त्र है, जिसके आगे किसी भी प्रकार का डर ठहर ही नहीं सकता है।अता: अपना आत्मविश्वास को बढ़ाना अति आवश्यक एवं अनिवार्य है।
- इंदु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
डर तभी होता है जब हमें जानकारी न हो या ज्यादा जानकारी हो । खतरे से सावधानी ही डर बन जाती है । 'डर से आगे जीत है' वाली बात भी सही है । डरने वाले कभी अपना कर्तव्य नहीं निभा पाते हैं । एक-न-एक को हिम्मत करके आगे बढ़ना ही पड़ता है । वहां डर भी डर जाता है ।खुद को हर सम्भावनाओं के लिए तैयार करना ही डर भगाता है। कोई-न-कोई मनुष्य ही इस काम को करता है फिर हम क्यों नहीं ?
- संगीता गोविल
पटना - बिहार 
मैं तो कहूँगी डर मनुष्य की स्वभाविक प्रवृत्ति है |अबोध शिशु को भी जब हम हवा में उछालते हैं तो वह डर जाता है|उसे ज्ञात नहीं होता कि चोट,दर्द ,मौत कैसा होता है |
अपने डर को दूर हम भविष्य को लेकर अत्यधिक चिंता ना करके वर्तमान में सकारात्मक सोच को लेकर आगे बढ़ने से कर सकते हैं |जिन्दगी में होने वाले दिक़्क़तों,जोखिमों से जो घटित नहीं हुआ उसे लेकर क्यों परेशान होना |मन में साहस और निडरता के बोध से हम अपने डर को जीत सकते हैं |
                - सविता गुप्ता 
             राँची - झारखण्ड
कहते हैं मन के हारे हार है मन के जीते जीत...यह मन ही है जो डरता है और मन तब डरता है जब वह कमजोर होता है। अपने अंदर के डर को समाप्त कर दिया जाये और लक्ष्य की ओर उन्मुख होकर कर्म यात्रा आरंभ कर दी जाये तो सरलता के द्वार खुलते चले जाते हैं।  अब मन का डर समाप्त कैसे हो? इसके लिए यह सोचना है जो करने जा रहे हैं उसे हम कर सकते हैं इसीलिए कर रहें हैं। यह सकारात्मक सोच आत्मविश्वास में वृद्धि करती है।जो घटा ही नहीं उसके विषय में न सोच कर,जो करना है उसे सोचें तो डर भागता दिखाई देगा और इस तरह अपने डर पर विजय पायी जा सकती है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखण्ड
डर पर काबू पाने के लिए हमें अपने आत्मविश्वास को बढ़ाना पड़ेगा । अंतर्मन का यही बल विषय परिस्थितियों में भी अजेय लगने वाली परेशानियों और भय पर विजय दिलाती हैं
- नीलम पाण्डेय
गोरखपुर - उत्तर प्रदेश

          " मेरी दृष्टि में " डर को सिर्फ आत्मविश्वास से ही दूर किया जा सकता है । सकरात्मक सोच से आत्मविश्वास पैदा होता है । नकारात्मक से दूर रहना चाहिए । जो सकरात्मक सोच वाले को डर नहीं लगता है । यही जीवन का सार भी है ।
                                                        - बीजेन्द्र जैमिनी




Comments

  1. पिछले दिनों बड़े प्रयासों से आज की चर्चा की निरन्तरता सक्रियता गम्भीरता व विषय पर प्रस्तुतीकरण के आधार पर चर्चा आरम्भ से जनवरी अन्त तक अंकना की जो निम्नवत है
    आ,अलका पांडेय प्रथम
    आ,छाया सक्सेना द्वितीय
    श्री सीबी व्यास तृतीय
    आ,संगीता गोविल चतुर्थ
    आ,कुमकुम वेदसेन पंचम
    सभी को बहुत बहुत बधाई व शुभकामनाएं
    - शशांक मिश्र भारती
    शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
    ( WhatsApp ग्रुप से साभार )

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  2. धन्यवाद आप सभी का जो परिचर्चा हेतु हम सबको एक मंच प्रदान किया ।

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  3. भय एक वातावरणजनित अवस्था वा एक मानसिक विकृति है।

    अविद्यामाया तंत्र विज्ञान में यह अष्ट पाश के वर्णित आठ बंधनो में एक उग्र ऋणमाव है। मन इनसे बंधा रह सकता है और ऐसे में कोई भी व्यक्ति अपनी गति खो देता है। भय, लज्जा, घृणा, शंका, कुल, शील, मान और जुगुप्सा पर विजय अपने परम अराध्य के प्रति पूर्ण समर्पण भाव जागृत कर नियमित साधना (ध्यान-धारणा) कर नवचक्र शोधन करना होगा। यहीं वृत्तियाँ हमारे व्यक्तित्व पर हावि हो अधोगति का कारण बनती हैं। तंत्र साधना में शिरस्थ कापालिक साधना अमावस्या की अर्धरात्रि एक नरमुण्ड और ड्रैगर ले कर स्मशान में करने के पीछे मन भयमुक्त हो जाता है। विद्यातंत्र घनात्मक और वरणीय श्रेष्ट विधि है।

    भय वृत्ति मणिपुर चक्र (अग्नि तत्व) होती है अतयेव एक भयाक्रांत मनुष्य इस नाभी क्षेत्र में अवस्थित सुर्योदय वर्ण के त्रिकोण चक्र का भेदन करे तो शुभ फलाफलकारी होगा हीं, साथ हीं लज्जा, पिशुनता, ईर्षा, सुसुप्ति, विषाद, कषाय, तृष्णा, मोह और ध्रिणा पर अधिकार पुष्ट कर लेगा।

    मनोचिकित्सक तो दूहन करेगा और विभिन्न उपलब्ध औषधियों के सेवन से हानी भी होगी हीं।
    शुभमस्तु!

    डॉ. कवि कुमार निर्मल
    भु. पु. वरीय चिकित्सक, पश्चिम बंगाल/बिहार सरकार
    एम.. बी. बी. एस. (1978)
    9708055684

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