क्या क्रोधी व्यक्ति का व्यवहार मूर्खतापूर्ण होता है ?

क्रोधी व्यक्ति के पास संयम नहीं रहता है । जिसके कारण से  वह अपने ऊपर नियंत्रण खो देता है । वह ना चाहते हुए भी कुछ भी कर जाता है । यह स्थिति मूर्खतापूर्ण कहीं जा सकती है । यही कुछ " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
क्रोध मानव मस्तिष्क का नकारात्मक व्यवहार है ।जो लोग गंभीर नहीं होते वो छोटी-छोटी बातों में नाराज होकर उसे बिना सोचे समझे विराट रूप दे देते हैं और अभद्र व्यवहार करने लगते हैं ।उनका रक्तचाप इतना बढ़ जाता है कि उनके लिए स्वयं को काबू करना मुश्किल हो जाता है ।वे अपने को सही साबित करने के लिए इतने उत्तेजित हो जाते हैं कि मूर्खतापूर्ण व्यवहार करने लगते हैं।गाली-गलौच, हाथापाई, दोषारोपण कर सामने वाले को गलत ठहराने की पूरी कोशिश करते हैं ।यहाँ तक कि वो बीती बातें भी दोहरा कर दूसरे को बेइज्जती करने में पीछे नहीं हटते ।जब क्रोध की पराकाष्ठा हो जाती है तो व्यक्ति अपना मानसिक संतुलन खो कर मूर्खतापूर्ण व्यवहार करने लगता है और आपे से बाहर हो जाता है ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
सब कुछ बनना क्रोधी मत बनना क्योंकि क्रोध में मनुष्य स्वयं सोचने समझने की शक्ति खो देता है और मूर्खता पूर्ण व्यवहार करता है और अपने शरीर को बीमारियों का निमंत्रण देता है तेरी तरह की बीमारी और हिंसा क्रोध के कारण नहीं होती है क्रोध एक नकारात्मक सोच को उत्पन्न करता है। क्रोधी मनुष्य क्रोध में आकर स्वयं को ही हानि पहुंचाता है।
क्रोधी नहीं -प्रभावी बने
एक बार एक व्यक्ति ने ईश्वर से पूछा हे परमपिता क्या आप मुझे ऐसी सीख देंगे कि मैं अपनी जिंदगी में सुख शांति से समृद्ध हो जाऊं?
हम परमपिता की सीखो को यदि अपने जीवन में उतारें तो इसी के दो ही मायने हैं।
१) क्रोध पर नियंत्रण
२) दूसरों को क्षमा कर देने की मानसिकता रखना।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और एक ऐसे समाज में निवास करता है जहां अभिनेताओं की कोई सीमा नहीं है पराया प्रतिकूल परिस्थितियों में उत्तेजित होकर कटु व आहत करने वाले शब्दों का आदान प्रदान कर बैठते हैं। इसी कारणवश हमें तनाव व क्रोध की बलि चढ़ जाते है। सच्चाई तो यह है कि कभी-कभी हम भी हमारी स्वच्छंदता व अधिकारों का उपयोग किसी और की स्वच्छंदता व अधिकारों का हनन करने मे कर देते हैं। हमारी स्वतंत्रता को हम हमारी उद्दंडता से लिए सहमति पत्र के तौर पर लेते हैं।स्वतंत्रता व अधिकारों की दुरुपयोग हमें प्रतिकूल परिस्थितियों में ला खड़ा करता है वह शिकायतों की वजह बनाता है।
 *"काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान।
तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान।।"* 
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
क्रोध मन के विकार से उत्पन्न एक मानसिक क्रिया है। यह कभी अकारण, स्वभावगत भी होता है।कभी-कभी तो दूसरे व्यक्ति की वास्तविक गलतियों को सुधारने के उद्देश्य से या उसे सही रास्ते पर लाने के लिए मात्र प्रेरक के रूप में भी देखा जाता है; यथा- बच्चों के प्रति। इन स्थितियों में क्रोध मूर्खतापूर्ण ना होकर सकारात्मक, सोद्देश्य होता है।
               इसके अतिरिक्त जब व्यक्ति का किसी दुख, होनी ,अनहोनी या अपमान से साक्षात्कार होता है; तब उसके परिणामस्वरूप उपचार करने या फिर उन उपायों में असफल रहने पर क्रोध जैसे मनोविकार से ग्रस्त हो जाता है जिसके फलस्वरूप उसका अनियंत्रित व्यवहार- चीखना, चिल्लाना, गुस्सा करना और यदा-कदा अत्यधिक आक्रामक रूप भी धारण कर लेता है; उस समय क्रोधी व्यक्ति का व्यवहार मूर्खतापूर्ण विवेक शून्य दिखाई देता है। कभी-कभी क्रोधी को स्वयं के अहंकार के अनिष्ट की आशंका भी होती है तो यह क्रोध बैर का स्थाई रूप ले जीवन पर्यंत चलता है; जो कि ठीक नहीं।          क्रोधी व्यक्ति अपने सारे आरोपों को दूसरे पर मढ़ कर स्वयं अक्षम होकर लाभ के विपरीत, अवांछना करता है; तो यह उसकी मूर्खता है; यह स्थिति उसके अहंकार की पराकाष्ठा का घातक एवं सर्व विनाशक रूप भी दिखा देती है।" मानस" में तुलसी ने क्रोधी परशुराम को( राम द्वारा धनुष तोड़ने के प्रसंग में) लक्ष्मण के द्वारा समझाते हुए कहा है-----
 लखन कहेऊ हंसि सुनहु मुनि क्रोध पाप कर मूल ।
 जेंहि बस जन अनुचित करंहि,
 चरहिं विश्व प्रतिकूल"।।
लक्ष्मण ने हंसकर कहा हे- मुनि सुनिए' क्रोध पाप का मूल है; जिसके बस में होकर मनुष्य अनुचित कर्म कर बैठते हैं और विश्वभर के प्रतिकूल चलते(सबका अहित करते) हैं।अतः अधिकांशत क्रोधी व्यक्ति का व्यवहार मूर्खतापूर्ण होता है।
- डाॅ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
कहते हैं, क्रोध एक पागलपन है और पागल के पास यदि बुद्धि होती, तो उसे पागल संबोधित नहीं किया जाता । क्रोध में व्यक्ति पागल की तरह अनर्गल बातें करने लगता है, जाने कहाँ से उसमें इतनी ऊर्जा आ जाती है, कि वह ज़ोर-जोर से चिल्लाने लगता है । वह अपना मान सम्मान तो भूल ही जाता है सामने वाले की प्रतिष्ठा को भी तार-तार कर देता है ।
मुख से अपशब्द और दोषारोपण के साथ ही, उसके हाथ पैर भी चलने लगते हैं । ऐसे में सामने वाले के साथ उसकी स्वयं की भी शारीरिक हानि होती है । वह क्रोध में इस तरह भर जाता है कि उसका विवेक खत्म हो जाता है । उसका उद्देश्य सिर्फ सामने वाले को आहत करना होता है । उस समय उसके मुख से निकले कड़वे शब्द तीर की तरह चुभते हैं, जिनका घाव कभी नही भरता । जब क्रोध शांत होता है और वह चिंतन करता है तो अपने कृत्य पर उसे ग्लानि होती है । पर तब तक बहुत कुछ दरक जाता है । मेरे एक अंकल उच्च शिक्षित, बहुत विद्वान् ,सच्चाई पर चलने वाले , ईमानदार और सेवाभावी व्यक्ति थे , पर क्रोध पर उनका नियंत्रण नहीं था । जब वो क्रोधित होते तो सारा घर सहम जाता । उनके क्रोध के कारण बच्चे उनसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर पाते थे । धीरे-धीरे घर के सारे लोग एक तरफ हो गए और वो अकेले पड़ गए । 
एक दिन मैंने उनसे पूछ ही लिया- आप इतने सुशिक्षित और विद्वान हैं , फिर आप क्रोध क्यों करते हैं ?
 वो मुस्कुराए , बोले- "क्रोध के अलावा मुझ में और कोई बुराई दिखती है तुम्हें ?"
मैंने कहा - "ये तो आप बेहतर जानते हैं कि क्रोध सबसे बड़ी बुराई है, और इससे अनेक दूसरी बुराइयाँ उत्पन्न हो जाती हैं । यह इंसान का विवेक हर लेता है, उसकी भाषा के स्तर को गिरा देता है, जिससे दूसरा व्यक्ति तो आहत होता ही है , वातावरण तनावपूर्ण हो जाता है, कुछ अनहोनी भी हो सकती है, स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है, संबंध खराब होते हैं सो अलग ।- अब आप ही बताइए, एक क्रोध कितनी बुराइयों का जनक है ?"
वो फिर मुस्कुराए- "क्रोध की वजह नहीं जानना चाहोगी ?"
"वजह ?"  "जानती हूँ ।" "अपेक्षा" । यह अपेक्षा ही क्रोध की मुख्य वजह है ।चूँकि आप हर बात में निपुण हैं और यही उम्मीद आप दूसरों से भी करते हैं । आपके अनुकूल कार्य न होने पर आप क्रोधित हो जाते हैं ।"
वो फिर मुस्कुराए- "हर कार्य व्यवस्थित और अनुशासित होने में सबका हित है ।" 
" सबकी अपनी-अपनी योग्यता और गुण है पर ये भिन्नता ही संसार की खूबसूरती है ।"  धैर्य और शांति से समझाईश दी जाए या सबको उनके हाल पर छोड़ दिया जाए ।
कार्यकुशलता अच्छा पुरस्कार तो दिलाती है किंतु इस परफेक्शन के फेर में हम मानसिक शांति के अलावा  बहुत सी चीजें खो देते हैं ।"
मेरे सभी तर्कों से वे पूरी तरह सहमत थे किन्तु विवश ।
- वंदना दुबे
  धार - मध्य प्रदेश
क्रोध में विवेक काम नहीं करता इंसान क्रोध के आवेग में मूर्खतापूर्ण काम कर बैठता है - दुःख या पीड़ा होने पर जो स्वभाविक प्रतिक्रिया होती है वह क्रोध है । इसके द्वारा हम अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं । क्रोध अथवा गुस्से की भावना तब और तीव्र होती है जब किसी ने आपको चोट पहुँचाई हो वो भी जानबूझकर अथवा धोखे-से भी । कभी-कभी हमारा गुस्सा प्राकृतिक परिस्थितियों अथवा जिन पर हमारा कोई वश नहीं है ऐसी चीजों पर भी होता है । इसलिए इसे अपने नियंत्रण में रखना चाहिए ।
क्रोध यदि अधिक दिन तक रह जाए तो वह बैर का रूप धारण कर लेता है । क्रोध एक पूर्ण भाव है और चिड़चिड़ाना , झुँझलाना आदि उसके प्रभाव हैं । गुस्सा लगभग सभी को आता है इसलिए यह असामान्य नहीं लगता ।  
कई लोग मानते हैं कि क्रोध में कई बार कुछ अच्छे काम हो जाते हैं ; हो सकता है । परन्तु मैंने अपने जीवन में क्रोध द्वारा कुछ बनते नहीं देखा है बल्कि बिगड़ते हुए ही पाया है ।
बात चाहे जो भी हो , क्रोध कभी भी सही नहीं ठहराया जा सकता , न ही क्रोधपूर्ण व्यवहार 
आखिर है तो यह अवगुण ही । क्रोध करना छोड़ देने के इतने कारण हैं कि बताए नहीं जा सकते , जो रोजमर्रा में तो आप देखते ही होंगे । अतः आज और अभी से क्रोध त्याग दीजिए और इसमें आपको अपनी मदद खुद करनी होगी !
▶ कैसे - :
देखा जाए , तो इसके लिए बहुत-से उपाय हो सकते हैं जैसे -
तो वह है - ढृढ़ संकल्प , आत्म-विश्वास और आत्मानुशासन यानि क्रोध पर विजय पाने का तरीका कोई भी हो लेकिन जब तक आप उसके लिए प्रतिबद्ध नही हैं , ढ़ृढ़ संकल्पित नहीं हैं और खुद से कोशिश भी नहीं कर रहे हैं तो फिर सफल होना मुश्किल होगा । कोई भी अवगुण छोड़ने के लिए हमें खुद को संयम में रखना होगा और पक्का निश्चय करना होगा क्योंकि यह हमारे लिए और कोई नहीं कर सकता ।
अंततः बदलने की शुरूआत और प्रयत्न आपको ही करना पड़ेगा ।   
अपनी मदद खुद करें
जो आपको क्रोध दिलाता है वह आपको नियंत्रित करता है अतः यह ताकत किसी को मत दीजिए , विशेषकर उसे तो कभी नहीं जिसने ऐसा जानबूझकर कर किया है ।अपने अस्थायी गुस्से में कोई स्थायी मूर्खता मत कीजिए ।
यदि आप दुनिया को जीतने की इच्छा रखते हैं तो पहले अपने गुस्से को जीतिए ।यदि आप पहली बार असफल रहे तो फिर से कोशिश कीजिए । क्रोध रख़तरे  में बस थोड़ा ही अंतर है ; सावधान रहिए । उस बात को कभी मत भूलिए जब किसी ने क्रोध में आपको कुछ कहा हो , क्योंकि क्रोध में ही सत्य सामने आ जाता है । एक अस्पष्ट व्यक्तित्व की कमजोरी होती है - क्रोध । क्रोध  होने के लिए काफी शक्ति  लगानी पड़ती है और उसे बनाए रखने के लिए दोगुनी , अतः एक पुल बनाइए और इससे पार हो जाइए । अपने क्रोध को बाहर निकालो , बस लोगों पर मत निकालो । अतीत का जितना गुस्सा आप अपने दिल पर रखेंगे उतना ही कम प्रेम वर्तमान में कर पाएँगे ।
क्रोध एक ऐसा अनुभव है जिसमें आपका मुँह दिमाग से ज्यादा तेजी से काम करता है ।
क्रोधित रहना इस प्रकार है जैसे जहर आपने पिया हो लेकिन मरने की उम्मीद किसी और की कर रहे हों ।
जब आप गुस्से में हों तो सबसे बुद्धिमानी का काम है - शांत रहना ।
क्रोध आपको भटकाता है ।
गुस्से में कभी कुछ मत करो अन्यथा सबकुछ गलत हो जाएगा । जिसकी शुरूआत गुस्से में होती है उसका अंत शर्म पर होता है ।
क्रोध में कोई जवाब मत दो ।
खुशी में कोई वादा मत करो ।
दुखी होकर कोई निर्णय मत लो ।
मुझमें बात-बात पर क्रोधित होने की आदत नहीं है ; मेरे पास बस मूर्खता , अपरिपक्वता और अज्ञानता के प्रति थोड़ी सहनशीलता है । कोई आपको गुस्सा नहीं दिलाता , आप ही गुस्से को प्रतिक्रिया के रूप में चुनते हैं ।
गुस्से में कुछ मत बोलो , शांत हो जाने पर आपको पछताना नहीं पड़ेगा । जब आप गुस्से में होते हैं , आपकी बोलने की गति अजीब तरीके से बढ़ जाती है ।
बड़े-बड़े सज्जन व महापुरूष भी अपनी मर्यादा निर्धारित करते हैं 
क्रोध सुधारने से ज्यादा बिगाड़ता ही है ।
क्रोध में आदमी का नुक़सान ही होता है । 
क्रोध चौतरफ़ा नुक़सान करता है 
क्रोध में बडे बडे ज्ञानी भी मुर्खता पूर्ण कार्य कर बैठते है 
- अश्विन पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
यदि यह कहा जाय कि क्रोधी व्यक्ति का व्यवहार मूर्खतापूर्ण होता है तो गलत नहीं होगा। क्रोध मानव मन की नकारात्मक अभिव्यक्ति है। क्रोध मनुष्य की बुद्धि, विवेक और सोचने-समझने की शक्ति का हरण कर लेता है। क्रोध में व्यक्ति चीखता-चिल्लाता है, तोड़-फोड़, मारपीट, गाली-गलौज सब करने लगता है, दूसरों को दुख पहुँचाना उद्देश्य हो जाता है। ऐसे में उसका ही अधिक नुकसान होता है क्योंकि क्रोधी व्यक्ति से सब किनारा करके दूर चले जाते हैं।
       क्रोध में व्यक्ति आवेश में निर्णय लेता है जो कभी भी सही नहीं होता। इसलिए क्रोध करने वाले के सामने से हट जाना चाहिए ताकि क्रोध शांत हो सके।
        क्रोध को किसी भी स्थिति-परिस्थिति में सही नहीं कहा जा सकता। प्रयास यह होना चाहिए कि हम अपने क्रोध को नियंत्रित करें, अपने को अनुशासित करें।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखण्ड
 हां ,क्रोधी व्यक्ति का व्यवहार मूर्खता पूर्ण होता है ,जो सभी मानव जाति के लिए दुखद होता है।   मूर्खता पूर्ण व्यवहार किसी भी व्यक्ति को सुखी या संतुष्टि नहीं कर सकता ।मूर्ख व्यक्ति उसे कहते हैं, जो स्वभाव के विरुद्ध व्यवहार करता है अर्थात अन्यायपूर्ण व्यवहार करता है। क्रोधी व्यक्ति आवेश में आकर अन्याय पूर्ण व्यवहार करता है ।तो प्रचलित भाषा में उसे समाज में मूर्ख की संज्ञा दी जाती है। क्रोधी वही व्यक्ति होता है ,जिसे क्रिया की घटना का ज्ञान नहीं होता। क्रोध का अर्थ है स्वयं की अक्षमता ही क्रोध का प्रदर्शन है। अक्षम व्यक्ति को ही क्रोध आता है ।सक्षम व्यक्ति को नहीं। अज्ञानता से अहंकार ,अहंकार से क्रोध ,क्रोध से मूर्खता ,मूर्खता से किया गया   व्यवहार कार्य विध्वंस होता है ।जो अमानवीय व्यवहार के अंतर्गत आता है। अज्ञानता वस क्रोध से आवेश होकर  मनुष्य  कुछ भी घटना को अंजाम दे जाता है ,जिसका बाद में परिणाम दुखद होता है। अज्ञानता वश किया गया कार्य हमेशा विफल होता है इस विफलता का परिणाम दुखद होने के कारण मनुष्य को क्रोध आ जाता है ।ज्ञानी व्यक्ति का कार्य व्यवहार हमेशा सफल होता है। यही मानव का स्वभाव गति कार्य है ।आवेश गति अर्थात क्रोध विध्वंस की ओर और स्वभाव गति समाधान की ओर मनुष्य को ले जाता है ।अतः कहा जा सकता है कि क्रोधी व्यक्ति का व्यवहार मूर्खता पूर्ण होता है ।जिसके फलन में स्वयं दुखी और अन्य को दुखित करना होता है ।।यही मूर्खता का परिणाम होता है। अज्ञानता से अहंकार, अहंकार से क्रोध, क्रोध से मूर्खता, मूर्खता से विध्वंस ,विध्वंस से समस्या, समस्या से दुख की उत्पत्ति होती है ।यही मूर्खता पूर्ण व्यवहार है। जो क्रोधी व्यक्ति में होता है। 
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
क्रोध स्वभाव का सबसे घातक दुर्गुणों में से एक है। इसकी गति इतनी तीव्र होती है कि बुद्धि और विवेक को परिणाम और अंजाम को समझने और तय करने का समय ही नहीं मिल पाता। इससे वह क्रोध के आवेश जो कर बैठता है, वह मूर्खतापूर्ण होता है।वह इसीलिए भी,क्योकि समझदार, विवेकी और बुद्धिमान लोग  ऐसा कर ही नहीं सकते।  चिंता की बात यह है कि ऐसे     स्वभाव के व्यक्ति अपने इस दुर्गुण को दूर करने के प्रति न गंभीर होते हैं और न ही प्रयासरत। यह उनकी मूर्खता का दूसरा पक्ष होता है। समाज और परिवार में क्रोधी व्यक्ति भय और  अशांति का वातावरण बनाकर रहता है। जो चिंताजनक होता है। ऐसे लोग बुद्धि से इतने कुंद हो जाते हैं कि इन्हें अपने न मान-सम्मान की फिक्र होती है,न ही उन्हे मिल सकने वाली किसी सजा ,दंड या यातनाओं का भय। यह मूर्खता की पराकाष्ठा भी है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
सब से अधिक प्रचलित नकारात्मक भावना, क्रोध है और अफसोस की बात है कि यही भावना इतनी शक्तिशाली होती है कि अधिकांश लोग उसके सामने बेबस हो जाते हैं और इस भावना पर नियंत्रण न कर पाने की वजह से बहुत सी मुसीबतों में फंस जाते हैं और फिर , हत्या जैसे अपराध में लिप्त होकर अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर लेते हैं। कोई भी व्यक्ति जब उसे क्रोध आए तो तत्काल रूप  से उसके लक्षण पर ध्यान देकर उस पर नियंत्रण कर सकता है। इसके लिए सब से पहले क्रोधिक व्यक्ति को यह फैसला करना चाहिए कि वह अपना क्रोध किस प्रकार से निकालना चाहता है अर्थात जिस बात पर उसे गुस्सा आया है उस पर उसकी प्रतिक्रिया क्या होना चाहिए। क्रोध में मनुष्य को यह ज़रूर सोचना चाहिए कि उसकी प्रतिक्रिया कैसी है ? 
क्रोध - एक बहुत मजबूत प्रतिक्रिया, जो तुरंत बाहर तोड़ने के लिए चाहता है। क्रोध में फिट होने पर, लोग अक्सर एक-दूसरे के लिए अपमानजनक शब्द फेंकते हैं, जिसे बाद में उन्हें पछतावा होता है। क्रोध को दबाने के लिए सीखने की जरूरत है। इस भावना की अभिव्यक्ति अपरिहार्य है, अगर हर बार इसे दबाने के लिए, एक व्यक्ति अपने "धैर्य कप" को ओवरफ्लो कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप क्रोध और भी भयंकर होगा। संचित, "बिना क्रोध के" अधिक नुकसान करेगा, कुछ मामलों में यह बीमारियों की ओर जाता है। ऐसी मजबूत नकारात्मक भावनाओं का सामना करना सीखना आवश्यक है। मनोवैज्ञानिक उस समय गुस्से पर रोक लगाने की सलाह देते हैं जब वह बाहर जाने के लिए कहता है। क्रोध सबसे महत्वपूर्ण भावनाओं में से एक है। गुस्सा अक्सर एक अवांछनीय प्रतिक्रिया के रूप में माना जाता है, और व्यक्ति इससे बचने के लिए जाता है। निश्चित रूप से आपके जीवन में ऐसे मामले आए हैं, जब परीक्षण किए गए क्रोध को याद करते हुए, आपको शर्मिंदगी और शर्म का अनुभव हुआ, खासकर यदि आपने उस व्यक्ति के सामने क्रोध के फ्लैश को नियंत्रित करने का प्रबंधन नहीं किया था, जिसका आप सम्मान करते हैं और आपकी राय को महत्व देते हैं। आपको उस पर शर्म आती है। क्रोध के गुस्से या अन्य अभिव्यक्तियाँ लोगों के बीच अस्थायी कलह का कारण बन सकती हैं। जैसा कि पहले ही उल्लेख किया गया है, क्रोध को उदासी के साथ जोड़ा जा सकता है, और क्रोध की भावनाएं जो एक व्यक्ति खुद के प्रति अनुभव करता है, उदासी और अन्य भावनाओं के संयोजन में, अवसाद के विकास में योगदान कर सकता है। क्रोध अपराध और भय की भावनाओं के साथ भी बातचीत कर सकता है। 
क्रोध को नियंत्रण करना जरुरी है नहीं तो यह आपकी छबि तो समाज में घर में दोस्तों में बिगड़ता ही है कई बार उपहास का पात्र अभी बनाता है । अपने क्रोध में किये गये मूर्खतापूर्ण काम से हमें शर्मिंदगी उठानी पड़ती है , तो आज से अभी से क्रोध को त्याग करें 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
क्रोध एक नकारात्मक उर्जा है ।यह व्यक्ति की विवेक,बुद्धि,सोचने की शक्ति को बुरी तरह प्रभावित करता है ।इस अवस्था में व्यक्ति का व्यवहार मूर्खतापूर्ण हो जाए तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है ।  ध्यान,संयम से अपनी क्रोध पर काबू पाया जा सकता है ।क्रोध का असर इतना ज्यादा नकरात्मक हो सकता है कि इससे प्रभावित व्यक्ति संयमी से असंयमी,विवेकशील से अविवेकी तथा अत्यंत बुद्धिमान व्यक्ति भी मूर्खतापूर्ण कर्म करने के लिए उद्यत हो जाता है ।अतः हम कह सकते हैं कि क्रोधी व्यक्ति का व्यवहार मूर्खतापूर्ण अवश्य ही हो सकता है ।
-   रंजना वर्मा
रांची - झारखण्ड
 दुनिया में जितने भी गलत कार्य होते हैं वह क्रोध के कारण होते हैं। क्रोधी व्यक्ति का स्वभाव तानाशाही होता है वह औरों को अपनी इच्छा अनुसार चलाना चाहता है जो कि असंभव है। क्रोधी व्यक्ति के आगे चुप रहना ही आवश्यक होता है। कहीं न कहीं उसकी मूर्खता के हकदार हम भी होते हैं। जब हमें पता है अमुक व्यक्ति को क्रोध आता है तब कोई ऐसी हरकत नहीं करनी चाहिए जिसके कारण उसे क्रोध आए। क्रोध विजातीय है सजातीय नहीं। हम शांति में तो कई घंटे रह  सकते हैं लेकिन क्रोध में नहीं। क्रोध की सत्ता कुछ ही मिनटों की होती है। बुद्धि विवेक द्वारा हमें उन पलों से बचकर निकल जाना चाहिए। 
- संतोष गर्ग
 मोहाली -चंडीगढ़
क्रोध अर्थात मानसिक , वैचारिक अग्नि जिससे क्रोधित व्यक्ति को ही अधिक नुकसान पहुँचता है । हम जिसके ऊपर क्रोध करते हैं वो तो केवल दुःखी होता है व कुछ सीख भी लेता है घटनाक्रम से पर जो व्यक्ति अपशब्द बोलकर, मारपीट कर सामने वाले को हानि पहुँचता है वो हमेशा कर लिए अपने मन में एक गाँठ बाँध लेता है जो समय के साथ -साथ  बढ़ती जाती है । ये सही है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते इसलिए क्रोध समय- समय पर करना आवश्यक होता है । हमें सोच समझकर क्रोध करना चाहिए जिससे वो उद्देश्य पूरा हो सके जिस हेतु क्रोध किया जा रहा है  अन्यथा इस अग्नि में  क्रोधी व्यक्ति को ही जलना पड़ेगा । अपने कार्यों को ईश्वर को समर्पित करते रहें जिससे मानसिक सुकून मिलेगा । कबीर दास जी का ये दोहा यही समझा रहा है -
*क्रोध अगिन घर घर बढ़ी, जलै सकल संसार ।*
*दीन लीन निज भक्त जो , तिनके निकट उबार।।*
घर-घर क्रोध की अग्नि से सम्पूर्ण संसार जल रहा है परंतु ईश्वर का समर्पित भक्त इस क्रोध की आग से अपने को शीतल कर लेता है। वह सांसरिक तनावों एंव कष्टों से मुक्त हो जाता है।
जब हम स्वयं पर नियंत्रण रखते हुए क्रोध करते हैं तो वो लाभदायक होता है अन्यथा वो क्रोधी को मूर्खतापूर्ण कार्य करने पर विवश करता है ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
क्रोध एक नकारात्मक संवेग है लेकिन स्वभाविक है हर इंसान में इसकी तीव्रता अलग-अलग होती  है। क्रोध की अवस्था में किया व्यवहार मूर्खतापूर्ण के साथ हानिकारक भी होते हैं। 
क्रोध की अवस्था में विवेक बुद्धि और वाणी तथा शब्दों में भरपूर कड़वाहट होती है। दूसरों को चोट या आघात पहुंचाने की कोशिश रहती है ।क्रोधी व्यक्ति का व्यवहार में वर्तमान के साथ भूतकाल की बात जिसे उलाहना कहते हैं और भविष्य के लिए दिए गए श्राप भी कटुता के साथ शामिल रहते हैं ।यह तों मूर्खतापूर्ण ही व्यवहार  ही कहलायेगा। मनोवैज्ञानिक का क्रोध संवेग संबंधित कुछ इस तरह के विचार है जो इंसान कमजोर प्रकृति के होते हैं वे अपने को शक्तिशाली सिद्ध करने के लिए जोर से‌या चिल्ला कर संवेग का प्रर्दशन करते हैं
रामायण में ‌कहा गया है कि
"काम, क्रोध लोभ सब नरक के पंथ,
क्रोध एक अग्नि हैं जो खुद जलती  है ओर दूसरों को भी जलाती है।
- डाँ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
      क्रोधी व्यक्ति का व्यवहार मूर्खतापूर्ण होता है,उक्त मानसिक अवधारणा आवश्यक नहीं है।चूंकि क्रोध विरोधाभास का एक लक्षण मात्र है।जिसे मूर्खता का शब्द देकर सभ्य समाज उक्त क्रोधी जीव के प्रति सकारात्मकता के स्थान पर नकारात्मक पग है।क्रोधी को यदि मूर्खता अर्थात पागलपन का शब्द दे दिया जाए तो उस पर संवैधननिक कार्यवाही हो ही नहीं सकती।जबकि प्रत्येक क्रोधी स्वभाव पर कानूनी कार्यवाही की जाती और उसके क्रोध के कारण की कई हानि का दण्ड दिया जाता है।  बताना आवश्यक है कि क्रोधी स्वभाव को यदि कानूनी प्रक्रिया में मूर्खता अर्थात मानसिक स्वास्थ्य अर्थात मानसिक रोगी मान लिया जाए, तो संविधान की धारा 21, मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 1887, विकलांगता अधिनियम 1996, और वर्तमान माननीय प्रधानमंत्री दामोदर भाई नरेंद्र मोदी जी की सरकार द्वारा पारित दिव्यांगता अधिनियम 2016 उसके बचाव में सामने आ जाता है।जिसमें उक्त मानसिक रोगियों को सशक्त शक्तियां मिली हुई हैं।जिनके दम पर उनके द्वारा की गई हत्या या हत्याओं के बावजूद उन्हें फांसी नहीं दी जा सकती।ऐसी हालत में समाज क्रोधियों को मूर्खता का शब्द देकर कितनी बड़ी भूल कर अपने मस्तिष्क की बुद्धि पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है?      
      आदरणीयों सब से बड़ा प्रमाण यह है कि ऊपरोक्त विचार मैं क्रोध के चरम शिखर  की परिस्थिति में लिखकर आपको संवैधानिक जानकारियां दे रहा हूँ।इसलिए मेरी विनम्र प्रार्थना है कि कृपया अपनी अज्ञानता की मानसिकता से ऊपर उठ कर 'क्रोधी' के क्रोध का कारण और उसके उपचार के लिए प्रयास कर मानव, मानवता और मानवीयता की सेवा करें।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
क्रोध एक मानसिक वेदना है !क्रोध का आना स्वाभाविक प्रतिक्रिया है! क्रोध में व्यक्ति स्वयं नहीं समझ पाता कि वह क्या करने जा रहा है और क्यों ? हमारी जो मानसिक इन्द्रियां हैं उसमे गुणों के साथ क्रोध जैसे अवगुणों का भी समावेश है! 
वैसे देखा जाए जीवधारी में क्रोध का अंश तो रहता ही है चाहे वह मनुष्य हो अथवा प्राणी ! प्राणियों में यह तुरंत दिखाई दे जाता है !शेर ,कुत्ते ,जंगली जानवर, सांप ,छेड़ने से तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं किंतु मनुष्य को क्रोध कुछ समय के बाद अथवा कभी-कभी आता है और वह भी क्षणिक होता है किंतु यदि क्रोध गांठ बन कर बैठ जाता है फिर दूसरे के लिए घातक होता है स्वयं पर भी वार कर बैठता है ! क्रोध नकारात्मक भाव लिए रहता है ! क्रोध के समय विवेक, ज्ञान, प्रेम ,कुछ नहीं दिखाई देते हमारे सामने कौन है छोटे-बड़े का लिहाज, वाणी असंतुलित हो जाती है ,व्यक्ति कुछ नहीं देख पाता मारपीट गाली-गलौज करने लगता है उसका मानसिक असंतुलन की वजह से वह मूर्खता पूर्ण व्यवहार करने लगता है ! विवेक त्याग मूर्खतापूर्ण  व्यवहार करता है! क्रोध तो बच्चों को भी आता है क्रोध में चीजें  फैकता हैं जिसकी गोद में रहते हैं  उसी को मारने लगता हैं किंतु उसका गुस्सा क्षणिक होता है और नासमझी में !क्रोध तो विश्वामित्र और परशुराम को भी आता था और सामने वाले उनके क्रोध से शापित भी हो जाते थे ! आज कलयुग में हम स्वयं को अपने ही क्रोध से अग्नि में झोंक देते हैं ! क्रोध हमे कई कारणों से आता है  बार-बार अपनी हार से, किसी की उन्नति देख जलन से, अहंकार से, अपने आप को सही साबित करने के लिए,अपनी बात मनाने के लिए ,जाने कितने कारण होते हैं ...ज्यादातर जो लोग बात बात पर क्रोधित होते हैं वह अपने जेनेटिक कारण से भी होते हैं ,बीमारी से हताश हो जाने पर भी क्रोध आता है ,अपमानित जीवन जीने से भी क्रोध आता है ,बीपी, शुगर के बने से भी क्रोध आता है! यह क्रोध स्वयं को ही भारी पड़ता है  हमारे रिश्ते में दरार पैदा करता है शरीर शिथिल पड़ जाता है कभी-कभी अपराधिक रूप भी ले लेता है और सलाखों के अंदर जिंदगी बर्बाद करता है स्वयं तो जलता है दूसरों को भी जलाता है इसके लिए मौन रहना चाहिए थोड़ा समय देना चाहिए और आहार पर खास ध्यान देना चाहिए ताकि स्वास्थ्य अच्छा रहे !अंत में कहूंगी क्रोध का अस्त्र चालक को ही घायल करता है!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
क्रोध,ग़ुस्सा भावातिरेक  की स्थिति है|क्रोध में व्यक्ति भावावेश में मानसिक संतुलन खो देता है|उस स्थिति में नकारात्मकता रोम रोम में हावी हो जाता है ;सही निर्णय लेने की क्षमता भी खो बैठता है|क्रोध में इंसान अपना आपा ,बुद्धि,विवेक सब खो बैठता है और मूर्खता पूर्ण व्यवहार करता है|क्रोध कभी भी किसी को आ सकता है |इसका ज़िम्मेदार व्यक्ति का परिवेश ,विपरीत हालात में मिली असफलता ,तनाव,कुंठा होता है जो ग़ुस्सा के रूप में बाहर निकलता है और अपने क्रोध पर नियंत्रण न कर वह अपना नुक़सान कर बैठता है|यह सही है कि क्रोधी व्यक्ति आवेश में आकर सोचने समझने की शक्ति गँवा कर मूर्खता कर बैठता है|
                - सविता गुप्ता 
                राँची - झारखंड
क्रोध मनुष्य की अंतरात्मा को जला देता है। विवेक जल कर खाक हो जाता है। इसलिए सही वक्तव्य भी गलत नजर आता है। इसके प्रभाव से उसका कर्म भी बदल जाता है । मूर्खतापूर्ण व्यवहार उसकी फ़ितरत बन जाती है। बाद में वह पछताता है, लेकिन कुछ कर नहीं पाता है। अस्तित्व पर एक दाग लग जाता है । इसलिए ऐसी स्थिति आने पर कोई भी प्रतिक्रिया तुरंत न दे कर  दिमाग के शांत होने का इंतजार करना चाहिए। उसके बाद ही परिस्थिति के अनुसार कार्य को अंजाम देना चाहिए । क्रोधवश परशुराम भी भगवान राम को मारने का गए थे। हमेशा क्रोध पर काबू रखना स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होता है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
इंसान के मन जैसे विचार होते हैं । वैसा ही उसका व्यवहार होता है । जैसे युधिष्ठर के नाम के साथ धर्मनिष्ठ युधिष्ठर जुड़ा हुआ है । क्योंकि उनके आचार - विचार,गुण  सभी धर्मानुसार , धर्मनिष्ठ थे । सत्यवादी हरिश्चंद्र से स्पष्ट होता है
  । सच बोलते थे ।परशुराम , दुर्वासा के क्रोध को कौन नहीं जाता है । परशुराम के क्रोध से क्षत्रियों की हत्या कर भूमि।क्षत्रियविहीन हो गयी  थी । मुनि दुर्वासा ने शुकुन्तला को क्रोध में श्राप ही दे दिया था । जिसकी याद में तेरा मन लगा है । वह तुझे भूल जाएगा । वाकई भरत शकुंतला को भूल गया था ।
गौतम ऋषि के श्राप से जीती जागती नारी अहिल्या शिला बन गयी थी । यानी बेजान जड़ , पत्थर बन गयी ।
यह सभी आख्यान  भारतीय संस्कृति काआईना है । 
इन दृष्टांतों से पता लगता है कि क्रोध में किया गया दूसरों के प्रति व्यवहार कितना मूर्खतापूर्ण और कटू है । 
 हमारा इतिहास , समाज , देश विश्व और वर्तमान में न जाने कितने ऐसे उदाहरणों से भरा है। हिटलर के क्रूर शासन में हिटलरशाही का जनता का कत्लेआम हुआ था । इस तरह के मूर्खतापूर्ण कारनामे हर सदी में देखने को मिलते हैं । हमारा स्वभाव में उत्पन्न  क्रोधी टैग चिपक जाता है । जिससे हम दूसरों को डाँटना , कोसते रहना हमारा स्वभाव बन जाता है ।
 क्रोध किसे नहीं आता है । आप अपने परिवार में ही देख सकते हो । किसी न किसी सदस्य को क्रोध जरूर आता होगा । अगर क्रोध नहीं आता है ।तो  उस परिवार में जरूर सदवृतियों का वास होता होगा ।  समाज , देश , विश्व के लोगों की मूर्खतापूर्ण वारदातों से अखबार , दूदर्शन मीडिया की खबरें पटी  पड़ी हैं । हाल ही में   सीसीए के विरोध दिल्ली सुलग रही है । दंगाई , उपद्रवी , असामाजिक तत्व हिंसा , आगजनी का खेल खेल रहे हैं । शाहीन बाग के क्रोध की चिंगारी ऐसी विध्वंसक शोला बन निर्दोषों को लील रही है । ये क्रोध के दुष्परिणाम ही तो हैं । दोहे में मैं कहती हूँ : -
 करते गुस्सा लोग जो , होय तन - मन विकार ।
बिगाड़ देता चेहरा ,  अरु मुँह का आकार।
जब द्रौपदी ने दुर्योधन को व्यंग्योक्ति में कहा था , अँधे का बेटा अँधा । तो गुस्से से पागल दुर्योधन ने  महाभारत का युद्ध कर अपने कुल  को समूल नष्ट कर दिया । 
रावण ने बहन  सुपर्णखा की नाक कटी की का बदला सीताहरण से ले के अपने वंश का   सर्वनाश किया ।
 क्रोध करने के समाज को व्यक्तिगत , सामूहिक हानिकारक परिणाम भुगतने पड़ते हैं । 
कहावत भी है , जिस घर क्रोध होता है , उस घर का पानी का घड़ा भी सूख जाता है । क्रोध से खून भी सूख जाता है । नासमझ क्रोधी अहम की पकड़- अकड़  से 
भड़भड़ कुत्ते की तरह ही भोंकता रहता है ।
सूक्ति हर सबसे बड़ी क्रोध की आग । सबसे बड़ा क्रोध शत्रु । हर जीव इसका भोगी , मरे अपनी मृत्यु ।
क्रोधी व्यक्ति के घर और बाहर मन के अंदर अशांति रहती है । हर बात उल्टी लगती है । करता हर बात का विरोध है ।
 ऐसे क्रोधी व्यक्तियों के जीवन में उद्वेग , हिंसा , द्वेष , वैर , जलन का निवास रहता है ।शांति तो कोसो दूर रहती है  
क्रोधी व्यक्ति का चेहरा  लाल -पीला हो जाता है   झुर्रियाँ जल्दी चेहरे पर आ जाती है । पाचनतंत्र बिगड़ जाता है और  दिल के साथ शारीरिक , मानसिक बीमारियों के चपेट में आ जाता है । क्रोध जब चरम पर आता है तो  विचारशक्ति खत्म हो जाती है । मस्तिष्क , मन गलत दिशा में काम करते हैं और  परिणाम नहीं देखता है । अनहोनी , हिंसा , युद्ध बम जैसे भंयकर परिस्थिति हो जाती है । अभी किसी को क्रोध से कुवचन बोल दो । वह वाद - विवाद करेगा और  बात ऐसी बिगड़ जाए तो मरने मारने की नोबत भी आ जाती है  । क्रोध की काली चाल  से  डराना , मारना , हिंसा तो होती हैं । ऊर्जा , बल , बुद्धि का विनाश होता है । उसका आभामंडल काषाय हो जाता है । लोक -परलोक सुख शांति , सौहार्द , भाईचारे को खो देता है । लक्ष्मी भी ऐसे गंदे मलिन वातावरण में रहना पसंद नहीं करती है । लक्ष्मी उनसे कोसो दूर हो जाती है । क्रोध की आग में मन जलता है । तन में खूब जोर बढ़ जाता है । रक्त का दवाब बढ़ जाता है । ऊर्जा , शजती का क्षय होता है सो अलग । क्रोध का जीवन में कोई मूल्य नहीं होता है । ध्यान , अध्यात्म  का मार्ग उसे बुरा  लगता  है  । ऐसा व्यक्ति अल्पायु के शिकार हो जाते हैं । उसका ज्ञान से संबंध टूट जाता है। अज्ञान के वश में रहकर चीखना -चिल्लाना ही उसका काम होता है ।जो नित्य नयी समस्याओं को जन्म देता है  । मस्तिष्क की कोशिकाएँ , न्यूरॉन्स संकुचित , असन्तुलित होकर काम नहीं करती हैं । स्मृति का विनाश होता है । 
गीता में कहा है 
" स्मृति भ्रसाद बुद्धि नाशो , बुद्धि नाशातं प्रणश्यति।"
क्रोध मन के विचारों पर जंग लगा देती है ।जंग से लोहा सड़  जाता है । ऐसे ही मन , आत्मा मर जाती है । 
अतः हमें अपने अंदर उगे क्रोध के जंगल को उजाड़ने के लिए सर्जनात्मक भावों को अपनाना होगा । क्रोध के शत्रु को मन की जमीन पर मारना होगा ।जिस तरह उबलते दूध को पानी की बूंदों से शांत करते हैं । उसी तरह  क्रोधी व्यक्ति के  संवादों   के सामने मौन हो जाना चाहिये ।तब  क्रोध बेमौत मार जाता है । क्रोध का त्याग ही जीवन में सुख , शांति लाता है । महापुरुषों जीवनी , सत्संग , धार्मिक सम्मेलन , समागम से क्रोध को हर व्यक्ति लगाम लगा सकता है ।ऐसे लोगों के संग   प्रेम का प्रतिदान , क्षमा करना ही क्रोध का हल है। समाज , परिवार में रहने के लिये हमें सुसंस्कारी होना जरूरी है । क्रोध के त्याग करने समय अवश्य लगेगा । हमें अपनी इंद्रियों को मन पर नियंत्रण करना होगा । अपनी सर्जन शक्तियों से अपनी रुचियों के काम करे । जैसे बागबानी , पेंटिग , पठन -पाठन , संगीत आदि । क्रूर डाकू अँगूलीमार बुद्ध की शरण से सज्जन आदमी बन गया । कुवृत्तियों को त्याग के  एकाग्रता , साकारात्मक गतिविधयों से जीवन जी के  समाज में वह मिसाल बना ।
अंत में स्वरचित दोहे में कहती हूँ : -
क्रोधी मानव   क्रोध से , करे खुद  का  विनाश ।
 समाज दुनिया , राष्ट्र  का , करता  महाविनाश ।
क्रोध पाप का मूल है , उगाता हृदय शूल ।
क्षमा हथियार क्रोध  की  , साफ करे  मन धूल ।
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
क्रोध  तब  आता  है  जब  कामनायें  पूरी  नहीं  होती  । यह  एक  ऐसी  क्रोधाग्नि  है  जिसमें  क्रोध  करने  वाला  स्वयं  जलता  है  और  दूसरों  को  भी  जलाता  है  ।  इससे  बेचैनी, निराशा,  तिरस्कार,  पश्चाताप  आदि  महसूस  होते  हैं  । 
       क्रोध  में  व्यक्ति  की  सोच  कुंठित  हो  जाती  है,  विवेक  से  उसका  रिश्ता  टूट  जाता  है  या  वह  विवेक  शून्य  हो  जाता  है  ।  कई  बार  छोटी  सी  बात  भी  बहस  का  रूप  ले  लेती  है  जो  बढ़ती  ही  चली  जाती  है  ।  मर्यादाएं  भी  ताक  पर  रख  दी  जाती  है । अति  क्रोध  में  व्यक्ति  मूर्खतापूर्ण  हरकतें  करने  लगता  है  ।  दूसरों  व  स्वयं  को  हानि  पहुंचाने  से भी  नहीं  चूकता  ।  क्रोध  मूर्खता  से  शुरू  होता  है  और  पश्चाताप  पर  खत्म  होता  है  । ऐसे  संताप  को  मिटाने  के  लिए  धैर्य  और  विवेक  ही  काम  में  आते  हैं  ।  
            - बसन्ती पंवार 
              जोधपुर - राजस्थान 
क्रोध में व्यक्ति लगभग ज्ञान शून्य हो जाता है ,,फलत: उस समय उसके द्वारा किया गया  कोई भी कार्य सही नहीं हो पाता है । कैकयी अपने क्रोध के कारण हीं अपना और अपने पूरे परिवार का विनाश  का कारण बन जाती है ,,राम को वनवास भिजवा कर सारी उम्र अपने मूर्खतापूर्ण  व्यवहार के लिए पश्चाताप करती रह गयी  । इसलिए क्रोध में कोई भी कार्य सही नहीं हो पाता है । हमें क्रोध पर काबू रखनी चाहिए यह हमारे व्यक्तित्व का सबसे नगण्य गुण है ,जो कभी कभार व्यक्ति को अपने चपेट में ले हीं लेता है , अपने इसी अवगुण से हम सब को बचना चाहिए । क्रोध में व्यक्ति का अपने आप पर नियंत्रण हीं नहीं रह पाता है और हमारा व्यवहार मूर्खतापूर्ण हो जाता है और हम अपना कुछ ना कुछ नुकसान हीं कर बैठते हैं जिसका एहसास हमें समय बीत जाने पर होता है ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार

            " मेरी दृष्टि में " क्रोधी इंसान को अपने स्तर पर नियंत्रण करना चाहिए । अगर कोई और अन्य इंसान प्रयास करता है तो क्रोध बढता है । अत : क्रोध का समाधान करने के लिए स्वयं पानी का प्रयोग अवश्य करना चाहिए । ऐसे ही अनेक उपाय हो सकते हैं । 
                                            - बीजेन्द्र जैमिनी



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