क्यों होते हैं क्षमाशील महापुरुष ?
क्षमा करना सबके बस की बात नहीं है।अच्छे - अच्छे महात्मा मैने फेल होते देखें है । यही बात क्षमा करने वाले मझे आजतक कोई नहीं मिला है । इसलिए क्षमा करने वालें तो महापुरुष ही कहलाते हैं । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । आये विचारों को भी देखते हैं : -
महापुरुष की तो परिभाषा ही है जो अपनी समस्त इंद्रियों को वश में कर, शांत, विनम्र, सहनशील और निष्कपट व्यवहार करे ।एक अनुभवी और संवेदनशील व्यक्ति ही महापुरुषों की श्रेणी में आते हैं ।काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्षा, द्वेष, अहंकार, जलन, से परे की विचारधारा के महापुरुष जानते हैं कि अज्ञानी, नासमझ और विवेकहीन लोग ही गलतियाँ करते हैं ,वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।इसीलिए महान लोग ऐसे लोगों पर दया करते हैं और क्षमा कर उसे भूल सुधारने का अवसर देते हैं ।वे अपनी क्षमता को भी जानते हैं पर उसे कमजोर लोगों में व्यर्थ नहीं करना चाहते ।छोटी छोटी बातों पर ध्यान ना देकर वे अपने मार्ग पर चलते रहते हैं ।जीवन में आए कटु अनुभव ही उन्हें सहनशक्ति प्रदान करते हैं और वे क्षमाशील बन जाते हैं।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
क्षमा महापुरुष का गहना होती है। जिस भी व्यक्ति में सहनशीलता है , वही छोटो को क्षमा कर सकता है। जीवन का महामंत्र है श्रेष्ठतम सदुपयोग। जीवन तो सभी जीते हैं, परंतु दूसरों के प्रति सजग, सचेत, सचेष्ट होती हैं। मानव अपने जीवन के अनमोल रहस्य अपरिचित रहता है। जीवन के प्रबंध में की विद्या जो जान लेता है उसका जीवन ही श्रेष्ठतम बन जाता है। रहीम दास जी ने दोहे सच कहा है : -
क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात।
का रहीम हरि का घटयो,जो भृगु मारी लात।।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
यही गुण तो उन्हें महापुरुष बनाता है , अमर करता है ।
क्षमा आत्मा का गुण है, ये ऐसी दिव्य शक्ति है, जिससे मानव अपने दोषों से मुक्त हो सकता है, ज्यों-ज्यों दोष हम पर हावी होते हैं त्यों-त्यों हम भयभीत दुखी होते जाते हैं। क्षमाशील के निर्भीकता होती है वह वीर कहलाता है। जिस प्रकार तराजू का वही पलड़ा झुकता है जो भारी हो, वृक्ष वही झुकता है जो फलों से लदा हुआ हो, उसी प्रकार वो ही महापुरुष झुक सकता है जो गुणों में भारी हो। जो प्रभु परमात्मा के सामने झुकता है वह सबको अच्छा लगता है किंतु जो सबके सामने झुकता है , महापुरुष होता है । महापुरुष पत्थरों की चोट खाकर भी पत्थर मारने वाले को क्षमा किया करते हैं।
पहले तो महापुरुषों को क्रोध होता ही नहीं है यदि किसी विशेष कारणवश क्रोध हो भी जाय तो वह स्थायी नहीं रहता, क्षण भर में ही शान्त हो जाता है। यदि कोई ऐसा ही भारी कारण आ उपस्थित हुआ और महापुरुषों का कोप कुछ काल तक बना रहा तो उसका परिणाम सुखकारी ही होता है। महापुरुषों को बड़ा भारी कोप और नीच पुरुषों का अत्यधिक स्नेह दोनों बराबर ही हैं। बल्कि कुपुरुषों के प्रेम से सत्पुरुषों का क्रोध लाख दर्जे अच्छा है, किन्तु सत्पुरुषों के क्रोध को सहन करने की शक्ति सब किसी में नहीं होती है। कोई परम भाग्यवान क्षमाशील भगवद्भक्त ही महापुरुषों के क्रोध को बिना मन में विकार लाये सहन करने में समर्थ होते हैं और इसीलिये वे संसार में सुयश के भागी बनते हैं। क्योंकि शास्त्रों में मनुष्य का भूषण सुन्दर रूप बताया गया है, सुन्दर रूप भी तभी शोभा पाता है, जब उसके साथ सदगुण भी हों। सदगुणों का भूषण ज्ञान है और ज्ञान का भूषण क्षमा है। चाहे मनुष्य कितना भी बड़ा ज्ञानी क्यों न हो, उसमें कितने ही सदगुण क्यों न हों, उसका रूप कितना ही सुन्दर क्यों न हो, यदि उसमें क्षमा नहीं है, यदि वह लोगों के द्वारा कही हुई कड़वी बातों को प्रसन्नतापूर्वक सहन नहीं कर सकता तो उसका रूप, ज्ञान और सभी प्रकार के सदगुण व्यर्थ ही हैं। क्षमा वीरों का आभूषण है'। क्षमा मांगने से अहंकार ढलता और गलता है, तो क्षमा करने से सुसंस्कार पलता और चलता है। क्षमा शीलवान का शस्त्र और अहिंसक का अस्त्र है। क्षमा, प्रेम का परिधान है। क्षमा, विश्वास का विधान है। क्षमा, सृजन का सम्मान है। क्षमा, नफरत का निदान है। क्षमा, पवित्रता का प्रवाह है।
सही ही कहा जाता है कि क्षमा बराबर तप नहीं। क्षमा का धर्म आधार होता है। क्रोध सदैव ही सभी के लिए अहितकारी है और क्षमा सदा, सर्वत्र सभी के लिए हितकारी होती है। वैदिक ग्रंथों में भी क्षमा की श्रेष्ठता पर बल दिया गया है। हमारे धर्म ग्रंथों में भी “क्षमाशील “को बड़ा महत्व बताया है ।
क्षमा कर देना दुश्मन पर विजय पा लेने के बराबर है।
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
क्षमा से तात्पर्य-- माफ कर देना ।महापुरुष अपने तप से तपाए गए आत्मज्ञान से उपजे गुणों द्वारा, जान जाते हैं कि क्षमा से अज्ञानी एवं दुष्टों का हृदय परिवर्तित किया जा सकता है। महापुरुष कभी किसी की गलती को दंड देकर नहीं सुधारते; बल्कि उसके द्वारा किए गए अपराध या गलती पर गौर कर उसका निराकरण करने के लिए, व्यक्ति के अपराध को ही क्षमा कर देते हैं; क्योंकि क्षमा मन के मैल को दूर करने की औषधि है। शास्त्रों में भी कहा गया है" क्षमा वीरस्य भूषणम्"। इसके विपरीत क्षमा न करने से मन में सारे अवगुण द्वेष, हिंसा, घृणा, कपट, ईर्ष्या, बदले की भावना पनपती है। जिससे व्यक्ति स्वयं भी दुखी होता है और समाज पर कुप्रभाव छोड़ता है। महात्मा बुद्ध, ईसा मसीह, साईं बाबा जैसे असंख्य महापुरुष, जीवन- जगत के व्यवहार एवं दुखों को सहकर यह स्थापित कर गये कि सुख- शांति, ज्ञान -प्राप्ति के लिए क्षमाशीलता का गुण सर्व सिद्धि कारक है; जहां आनंद की असीम अनुभूति होती है। कबीर दास जी ने भी कहा है कि इस गुण द्वारा व्यक्ति सज्जन बन जाता है ।
जहां दया तहां धर्म है/ जहां लोभ वहां पाप/ यहां क्रोध वहां काल है/ जहां क्षमा वहां आप /
संतो के महापुरुषों के उपदेश सदैव सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। रहीम दास जी ने भी कहा है कि- "क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात/ का रहीम हरि को घट्या जो भृगु मारी लात।" अतः सुखी रहने एवं बिगड़े हुए व्यवहारों को सुधारने के लिए इस महान गुण यानी क्षमा शीलता को अपने जीवन - व्यवहार में लाना चाहिए।
- डॉ रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
मनुष्य का क्षमाशील होना अति आवश्यक है। कोई कुछ भी कहे या अहित कर दे तो भी उसके कृत्यों को अपने दिल से लगाकर नहीं बैठ जाना चाहिए। अनावश्यक रूप से पिष्टपेषण करते रहने से अपने मन में उस व्यक्ति के लिए नफरत की भावना बढ़ने लगती है। उसका बिगाड़ तो समय पर होगा किन्तु अपना मन कलुषित हो जाएगा और उसमें ईर्ष्या-क्रोध आदि की अधिकता हो जाती है। प्रतिकार करने से किसी का भला नहीं होता। किसी को माफ़ कर देने से बड़ा और कोई गुण नहीं होता। जितने भी महापुरुष इस भारतभूमि पर हुए हैं उन सबने इसे अस्त्र के रूप में अपनाया। तभी उन सबको हम याद करते हैं। यह भी सच है कि दूसरों को क्षमा करने वालों को लोग बहुधा कायर समझ लेते हैं। यह क्षमा दूसरों के हृदयों में अपना स्थान बनाने का ब्रह्मास्त्र है जिसका सन्धान करना हर किसी के बस की बात नहीं होती। यह क्षमा रूपी गुण सज्जनों का अमूल्य आभूषण होता है। कहा है कि क्षमा से बढ़कर कोई अस्त्र नहीं होता। सामने वाला व्यक्ति बेमोल अपना बन जाता है। कोई कुछ भी कहता रहे लेकिन दूसरों को क्षमा कर देने से अपना मन कलुषित नहीं होता और हृदय सदा प्रसन्न रहता है। कुछ लोगों का मानना है कि दुर्बल व्यक्ति की क्षमा कोई मायने नहीं रखती। वह क्षमा नहीं करेगा तो क्या करेगा? इसके लिए वे कहते हैं कि क्षमा उसे सुशोभित करती है जिसके पास दूसरे को दण्ड देने की सामर्थ्य हो। मेरे विचार से यह कहना अनुचित है क्योंकि क्षमा करने का गुण उसी में होगा जिसमें आत्मिक व मानसिक बल होगा। शारीरिक दुर्बलता की बात करना बेमायने हो जाती है। यदि शरीर से व्यक्ति दुबला-पतला हो किन्तु उसमें आत्मिक बल हो तो वह संसार की किसी शक्ति से नहीं डरता। सबका डटकर मुकाबला करता है व हर चुनौती से भिड़ने की सामर्थ्य रखता है। शरीर से कमजोर होने पर महात्मा गान्धी की तरह व्यक्ति अपने व्यवहार से सिद्ध कर सकता है कि वह अच्छे अच्छों की हवा टाइट करके उन्हें उखाड़कर फैंक सकता है।
क्षमा को अपनाने वाला व्यक्ति हमेशा प्रथम पंक्ति में रहता है। ऐसे सज्जन की चाहे कोई बुराई कर ले परन्तु उसका यह एक गुण सब पर भारी पड़ता है। ईश्वर को भी विनयी और क्षमाशील लोग पसन्द आते हैं। अगर दान को सर्वश्रेष्ठ बनाना है, तो क्षमादान करना सीखो।
-महात्मा गांधी ने कहाँ था .....
क्षमा दंड से अधिक पुरुषोचित है।
विदूर निति कहती है .....
इस जगत में क्षमा वशीकरण रूप है। भला क्षमा से क्या नहीं सिद्ध होता? जिसके हाथ में शांतिरूपी तलवार है, उसका दुष्ट पुरुष भी कुछ नहीं बिगाड़ सकते।
-इंदिरा गांधी का कहना था ....
* बदला लेने के बाद दुश्मन को क्षमा कर देना कहीं अधिक आसान होता है।
क्षमा करना ही आप को महान बना देता है क्षमा करने से आप .आत्म बल व आपको सकारात्मकता को दर्शाता है आप दुश्मन को भी दोस्त बना लेते है ।
- अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
कहा गया है कि जिसने क्रोध जीत लिया,उसने दुनिया जीत ली। क्रोध हमारे शरीर का सबसे बुरा विकार है। यह उत्तेजना,हिंसा जैसे विकारों को उत्प्रेरित करता है। जो शरीर के लिये अनेक व्याधियों और रोगों को तो जन्म देती ही हैं,बाह्य रूप में व्यवहार और रिश्तों में भी कटुता लाकर सौहार्द भी बिगाड़ती हैं। अतः क्रोध से बचना ही श्रेयष्कर होता है। इससे बचाव का मुख्य उपाय है ,क्षमाशील होना। क्षमाशील होने से धैर्यता और सहिष्णुता के गुण परिपक्व और दृढ़ होते हैं,जो शांति , प्रेम और सोहार्द्र का वातावरण बनाये रखने में मददगार होते हैं। आपसी मतभेद और मनभेद भुलाकर शत्रुता पनपने से बचाव कर मैत्रेय संबंधों को मधुर,सरल और सहज बनाते हैं। इस महती सामंजस्य को, याने ' एकई साधे,सब सधे ' वाले सिद्धांत को महापुरुष भलीभाँति जानते और समझते हैं। इसीलिए वे क्षमाशील होते हैं।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
सामान्य से उपर होना महा की परिभाषा है व्यक्ति मे जब सकारात्मक गुणो की प्रधानता होती है तो वह महापुरुष कहलाता है । क्षमा से बढकर कोई अस्त्र नही है यह तो एक आभूषण है जिसके अपनाने से महापुरुष बनते है क्षमाशील होना अतिआवश्यक है । महापुरुष क्षमाशील होकर सामने बाले को सुधरने का मौका देते है
कबीर ने भी कहा है
क्षमा बडे़न को चाहिए
- डाँ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
क्षमा व्यक्तित्व का एक ऐसा आभूषण है जो हर किसी के पास नहीं होता। जब व्यक्ति राग-द्वेष, लोभ-मोह, अर्थ-काम, उपेक्षा-अपेक्षा....इन सबसे ऊपर उठ कर अपने लिए एक लक्ष्य निश्चित करता है और उसे एक साधना की तरह मान कर, साधक होकर उसे साधता है तो वह स्वयं ही महापुरुष की श्रेणी में पहुँच जाता है। वह दूसरे के विकारों से प्रभावित होकर अपना क्षमा करने का स्वभाव नहीं बदलता और इसी तरह वह दूसरों को अच्छा बनने का संदेश देता है। तभी वे अजातशत्रु कहलाते हैं। अपने क्षमाशील व्यक्तिव और स्वभाव के कारण उनका कोई शत्रु नहीं होता। जब व्यक्ति निस्वार्थ होकर निष्काम भावना से मानवता के कल्याण के लिए कार्य करता है तो वह स्वतः ही क्षमाशील होता चला जाता है। वह करुणा, दया, सेवा से प्रेरित होता है। इसी कारण महापुरुष क्षमाशील होते हैं।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
क्षमाशील मानव मानत्व स्वभाव के कारण महापुरुष क्षमाशील होते हैं। क्षमा का अर्थ है किसी की अयोग्यता से प्रभावित ना होना और अयोग्य व्यक्ति को योग्य बना देना यही गुण के कारण महापुरुष क्षमा शील होते हैं। महापुरुष जानते हैं की कोई भी व्यक्ति अयोग्य है तो वह अज्ञानता के कारण और उसे योग्य बना दिया जाए ना कि उसकी अयोग्यता से प्रभावित हुआ जाए इसीलिए महापुरुष क्षमा शील गुणों का उपयोग करके अपराधी व्यक्ति को दंड ना देकर उसकी अपराध को क्षमा कर देता है और उसके विकास और जागृति के लिए अपने ऊर्जा का सदुपयोग करता है यही गुणों के कारण क्षमाशील व्यक्ति कहलाता है। क्षमा का तात्पर्य दुर्गुणों का क्षय हो ना और सद्गुणों का क्षय ना होना। अगर कोई व्यक्ति अपराध करता है, तो अभाव ,अत्यासा ,और अज्ञानता के कारण करता है । क्षमाशील व्यक्ति कहते हैं,अपराधी व्यक्ति को क्षमा कर सही कि समझ दे दिया जाए तो वह अपराध से मुक्ति होकर ,व्यवहार ,कार्य समझ के साथ कर सकता है ।ऐसे विचार रखने वाले व्यक्ति को ही क्षमाशील महापुरुष कहा जाता है। क्षमाशील महापुरुष समझदार होता है जो स्वयं अपराध नहीं करता और दूसरों की अपराध को स्नेह पूर्वक क्षमा कर उसे समझा देता है यही क्षमाशील गुणों के कारण महापुरुष क्षमाशील कहलाता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
क्षमा व्यक्तित्व का अद्भुत गुण है और धर्म में भी इसे श्रेष्ठ गुण माना जाता है ! माफी मांगना और माफ करना दोनों ही इंसानी व्यक्तित्व को परिपूर्ण करने वाले तत्व हैं ,जो व्यक्ति अपनी इंद्रियों पर विजय पा लेता है वह महान कहलाता है! जो व्यक्ति अपनी गलती स्वीकार कर क्षमा मांगता है वह उसकी महानता है किंतु जो क्षमा करता है वह उसकी दिव्यता है!
माता-पिता अपने बच्चों की गलती करने पर उसे समझाकर विनम्रता के साथ क्षमा कर देते हैं ताकि वह दोबारा गल्ती ना दोहराये ! क्षमा वीरश्य भूषणम! रामधारी दिनकर जी ने भी कहा है क्षमा वीरों को ही सुहाती है ! उन्होंने कहा है क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो ,उसका क्या जो दंत हीन विषहीन, विनीत सरल हो !मनोविज्ञान में भी क्षमा का व्यक्तित्व में बहुत महत्व होता है यदि आदमी गलती कर शमा नहीं मांगता तो इसका मतलब उसके व्यक्तित्व में अहं का विकार है और यदि व्यक्ति क्षमा नहीं करता तो भी उसमें अहं का विकार है ! यानिकी क्षमा मांगना और क्षमा करना बहुत ही कठिन है! अतं में कहूंगी जो व्यक्ति अपनी इंद्रियों पर काबू पा बडपनता दिखाते हुए छोटों को विनम्रता के साथ माफ करते हैं वही उनकी महानता है!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
अष्टावक्र गीता के अनुसार -"राग द्वेषो मनो धर्मों न मनस्ते कदाचिन l निर्विकल्पो s सि बोधात्मा निर्विकार सुखम चर ll
हे मानव ,राग और द्वेष मन के धर्म हैं ,तुम्हारे नहीं हैं l तू तो निर्विकल्प ,निर्विकार बोध रूप आत्मा है l तू इसमें सुख पूर्वक विचरण कर l महापुरुषों का क्षमा शील होना भी "समत्वं योग उच्च्येत *सिद्धांत के अधीन है l जो व्यक्ति अपनी आत्मा का दर्शन करके आत्मा,परमात्मा के साथ तालमेल बैठाकर मन को अपना मालिक नहीं अपितु अपना नौकर बनाते हुए मनोविकारों से मुक्त कर ले वह पुरुष नहीं महपुरुष होते हैं और क्षमा उनका आभूषण होती है l जिस व्यक्ति ने योग द्वारा अपनी इन्द्रियों को जीतकर विजय श्री प्राप्त कर ली हो और राजा बन गए हों ,ऐसे महापुरुष राजयोग के अनुगामी होते हैं l इसपंच तत्व से निर्मित शरीर को चलाने वाला इंजन है ,हमारी आत्मा l जब शरीर से आत्मा निकल जाती है तो आपके नाम ,पद नाम सब छीन लिए जाते हैं और आपका नया नाम बॉडी हो जाता है l आत्मा रूपी इंजन का रख रखाव जो व्यक्ति आत्म कल्याण एवं लोक कल्याण के लिए करते हैं वे निःसंदेह क्षमा शील होते हैं l कहा भी गया है -"तीर्थानां ह्रदय तीर्थः ,शुचीनां ह्रदयं शुचि "अर्थात सब तीर्थो में अंतरात्मा ही परम् तीर्थ है और सब पवित्रताओं में ह्रदय की पवित्रता ही प्रमुख है l यही पवित्रता इस मानव शरीर को महात्मा ,पुण्यात्मा ,पापात्मा और महापुरुष जैसा व्यक्तित्व प्रदान करती है l अतः क्षमा शीलता का संबंध निर्विकार और मनोविकारों की विमुक्ति से है ,इस पंच तत्वों से निर्मित पिंजरे से नहीं l
- डाँ. छाया शर्मा
अजेमर - राजस्थान
वर्तमान सदी में एकल परिवार होने से मानवजाति स्वार्थी , मशीनी होती जा रही है । हाल ही में नागरिकता संशोधन बिल और सीसीए के खिलाफ जेएनयू के साथ पूरे देश में हिंसा , सार्वजनिक वाहनों की आगजनी दुनिया ने देखी । अपने ही भारत देश में अपनी ही जनता ने सरकार से बदला लेने का घिनोंना कदम उठाया । भारतीय संस्कृति के अहिंसा परिवार का क्षमा आभूषण हमको धारण करके व्यवहार में लाना होगा । जितने भी ज्ञानी , ध्यानी , महापुरुष हुए हैं । उन्होंने क्षमा पर अमल किया है । क्षमा की महत्ता की वास्तिवकता से मैं आप सबको रु-ब-रु करा रही हूँ -
शिक्षिका होने के नाते कक्षा में बच्चों को यह दोहा पढ़ा रही थी -
क्षमा बड़न को चाहिए , छोटन को उत्पात ।
कहा विष्णु को घटि गये , जो भृगु मारी लात ।
एक बच्चे ने मुझ से पूछा संत , ऋषि , तपस्वी भृगु थे । फिर उन्होंने भगवान विष्णु को लात नहीं मारनी चाहिए थी । लात मारने से विष्णु की छाती में चोट लगी होगी । पीड़ा हुई होगी । तब संत की मर्यादा , संस्कार किधर चले गए थे ? यह प्रश्न सुन के उसे मैंने जवाब दिया कि भृगु ने लात गुस्से से नहीं मारी थी । बल्कि वह विष्णु जी को क्षमा की कसौटी पर परीक्षा लेना चाहते थे । लात खाने के बाद विष्णु ने भृगु से कहा , आपके चरण सुकोमल है । कहीं आपके चरणों को चोट तो नहीं आयी । यह सुन कर भृगु प्रभु विष्णु की अपार क्षमाशीलता को देख के पश्चाताप कर कहने लगे । मैं तो दंड का भागी हूँ । इस तरह आज की मानव जाति को विष्णु जी के उदात्त चरित्र माफी का , क्षमा का संदेश सारी दुनिया को मिलता है । छात्र यह तर्क सुन संतुष्ट हुआ । कहने का मतलब यही है कि दुष्ट लोग शैतानी करते हैं ।अच्छे लोग , महापुरुष उनकी गलत करतूतों पर ध्यान नहीं देते हैं । उनकी गलतियों को माफ कर देते हैं ।अगर क्षमा का इस तरह का सकारात्मक चिंतन भारतीय दर्शन में नहीं होता तो लड़ाई , झगड़ों से खून बहता । अपराध बढ़ते । अशांति का साम्रज्य होता है ।
क्षमा हमारी वैदिक भारतीय संस्कृति , आध्यात्मिक दर्शन , आगम , जाएं संस्कृति में ऐसा अहिंसक शस्त्र है । क्षमा कह देने मात्र से हमारी सारी गलती , भूल को मुक्ति मिल जाती है । क्षमा करनेवाले को सुखद अहसास का अनुभव होता है । यह हमें संस्कारी बनाता है । क्षमा की शक्ति से लोगों के नकारात्मक व्यवहार में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं । क्षमा करने में ही सच्चा सुख मिलता है । राम , बुद्ध , महावीर , अशोक , गांधी जी , मीरा , कबीर आदि की संस्कृति में क्षमा जीवन का मूल स्तम्भ है । जिन महापुरुषों ने इसे अपनाया । उनका नैतिकपूर्ण संस्कारित जीवन समाज , राष्ट्र , विश्व के लिये मिसाल बन गया । क्योंकि क्षमा करने वाले व्यक्ति की आत्मिक ऊँचाई बढ़ जाती है ।यीशु मसीहा को जब क्रास पर लटकाया तो उन्होंने उन लोगों को माफ कर दिया ।
महान दार्शनिक , विचारक सुकरात को जहर दिया तो उसने खुशी - खुशी पिया । जेल में सेउसने वह भागा नहीं । उसने राजा को माफ किया था । जैन समाज में क्षमा करने का पर्युषण महापर्व यानी क्षमा वाणी पर्व मनाया जाता है । भगवान से वर्ष भर में जाने - अनजाने में हुयी गलतियों के लिए " मिच्छामि दुक्कड़म " कह कर लोगों , दोस्तों , परिवार जनों से एक , दूसरों से क्षमा याचना की जाती है । जिओ और जीने दो को साकार करता है । बच्चे ग़लती करते हैं तो माता - पिता उन्हें माफ कर देते हैं । हमें बच्चों में क्षमा करने की सोच संस्कारों में देनी होगी । आत्मा का सौंदर्य क्षमा है ।आध्यात्मिक विकास की राह में यह कदम उठाना होगा । क्योंकि मानव का स्वभाव गलतियाँ करना और क्षमा करना ईश्वरीय गुण है । कमजोर व्यक्ति क्षमा नहीं कर सकता है । उदार हृदय ही क्षमा कर देता है । जो हमारे मन , आत्मा को पवित्र करती है ।
दोहे में मैं कहती हूँ : -
वैर विकारों को मिटा , करना गलती माफ ।
करे पर्व पर्युषण है , मन - आत्मा को साफ ।
क्षमा है महापुरुष की , जीवन की पहचान ।
सब धर्मों का सार है , करुणा की है जान ।
- डॉ मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
जिन्होंने वास्तव में अपनी इंद्रियों, कामनाओं, इच्छाओं आदि को जीत लिया अथवा संयमित कर लिया, वही महापुरुष कहलाते हैं । अपनी नम्रता, उदारता के कारण ही वे क्षमाशील होते हैं । महापुरुष विशाल ह्रदय के स्वामी होते हैं वे अपशब्द सुनकर भी अपना आपा नहीं खोते । वे सदैव मुस्कुराकर समझाने का प्रयास करते हैं । क्षमाशील बनने में अहम् सबसे अधिक आड़े आता है अतः सर्वप्रथम इसका परित्याग आवश्यक है ।
गलती करने वाला तो गलत होता ही है लेकिन गलती को माफ कर उसे सुधरने का मौका देने वाला महान होता है ।
- बसन्ती पंवार
जोधपुर - राजस्थान
जिसे "महापुरुष" का सम्बोधन मिला हो ,तो वह व्यक्ति निश्चय ही महान् है । उस व्यक्ति में गुणों का समावेश होगा हीं होगा तभी तो वह व्यक्ति विशेष महापुरुष है । सारी इन्द्रियों को अपने वश में रखना भी बहुत खास बात है ।सहनशीलता,धीरता, गम्भीरता के साथ क्षमाशील जैसे गुणों का समावेश महापुरुष की पहचान होती है । क्षमाशील होना यानी व्यक्ति में इतनी क्षमता है कि वह उदारतापूर्वक किसी को क्षमा कर देता है उसकी गलतियों के लिए । व्यक्ति विशेष अपने इसी अलौकिक गुण के कारण महापुरुष कहलाता है ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
महापुरुष अर्थात ऐसे व्यक्ति जिनकी कार्यशैली सामान्य से विशिष्ट हो , जिनसे समाज प्रेरणा ले सके । ऐसे दिव्य पुरुष न केवल दयावान होते हैं वरन क्षमाशील भी होते हैं । ये सुभाषित क्षमा की महत्वा को प्रतिपादित कर रहा है -
क्षमावशीकृतिर्लोके क्षमया किं न साध्यते ।
शांतिखड्गः करे यस्य किं करियस्यति दुर्जनः ।।
क्षमा संसार में सबसे बड़ा वशीकरण मंत्र है । क्षमा से क्या कार्य पूर्ण नहीं हो सकता ? जिसके हाथ मे क्षमा रूपी शस्त्र है, उसका दुष्ट व्यक्ति क्या बिगाड़ सकता है ।
वैसे तो सभी धर्मों का मूल मंत्र प्रेमभाव से जीवन जीना ही होता है किंतु जैन धर्म में अहिंसा व क्षमा को विशेष महत्व दिया गया है । पर्यूषण पर्व के दौरान सभी लोग एक दूसरे सेअपनी वर्ष भर की गलतियों के लिए क्षमा माँगते हैं ।
ऐसे ही हम सबको भी अपने जीवन में क्षमाशील होना चाहिए ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
हम सबने यह दोहा तो सुना ही है कि-
*क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को अपराध ।*
अर्थात बड़ों का यह कर्तव्य है, कि वे छोटों द्वारा की गई, ज्ञात-अज्ञात भूल या गलतियों को क्षमा कर दें । किसी को उसकी गलती पर क्षमा कर देना सहज नहीं । इसमें दो बात विचार करने योग्य है -
पहली यह, कि क्षमादाता में इतनी महानता हो, कि अपने अहं को त्याग कर किसी को क्षमा कर सके । दूसरी और महत्वपूर्ण बात यह कि महापुरुषों के भीतर -
*सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय* की भावना होती है ।
गलती करने के बाद, गलती करने वाले के भीतर एक अपराधबोध जाग्रत हो जाता है । प्रायश्चित के हाव भाव उसमें स्पष्ट दिखाई देते हैं । संकोचवश वह शब्दों से क्षमा नहीं मांग पाता । उसे इस ग्लानि और घुटन से, क्षमा द्वारा ही मुक्त किया जा सकता है । इस समय यदि क्षमा देने में विलंब किया गया तो गलत धारणाएँ सुदृढ़ हो जाती हैं ; जिससे सुधार तो बहुत दूर , धृष्टता बढ़ने के साथ आपसी संबंध भी कटु हो जाते हैं ।
इसलिए क्षमा कर देने से गलती की पुनरावृत्ति की संभावना कम हो जाती है तथा एक सरस और सहज वातावरण निर्मित होकर तनावपूर्ण स्थिति को समाप्त किया जा सकता है ।
महापुरुषों में स्वार्थ एवं अहं का भाव नहीं होता संभवतः इसीलिए वह सबको क्षमा करके -
*सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय ।*
की उक्ति चरितार्थ करते हैं ।
- वंदना दुबे
धार - मध्य प्रदेश
क्षमा ऐसा शब्द है जो आसानी से किसी के अस्तित्व का अंग नहीं बन सकता । मन को बांधने के क्रम में सबसे बड़ा योग है । इसकी साधना सबसे कठिन है । जब व्यक्ति किसी को क्षमा करता है , तब उसे अपने अंदर के जानवर और दुर्विचारों को बाहर फेंकना होता है । दुनिया में कठिन काम है किसी के दुर्व्यवहार को भूल कर उसे क्षमा करना । यही कारण है कि उस गुण को धारण करने वाले को *महापुरुष* नाम दिया जाता है । यह पदवी अपनी महत्ता को सबसे ऊपर के पायदान पर पहुंचाती है ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
क्षमाशील महापुरुष की उत्पत्ति कब कहां और कैसे हुई?मुझे ज्ञान नहीं है।परंतु किसी ऐसे निर्दोष इंसान को क्षमा याचना करने के लिए विवश करना बहुत बड़ा अपराध है।
मुझे इस बात का भलीभाँति ज्ञान है कि जब निरापराध विवश इंसान को उस अपराध की क्षमा याचना करने के लिए विवश किया जाता है।तब उसके मन-मस्तिष्क पर क्या-क्या प्रतिक्रियाएं होती हैं? ऐसा कर उक्त क्षमाशील महापुरुष अपराधिकरण को बढ़ावा देते हैं।मेरे विचार में अपराधी को दण्ड उतना ही आवश्यक है।जितना शाँति के लिए युद्ध आवश्यक होता है।
- इंदु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
" मेरी दृष्टि में " क्षमा नहीं करना चाहिए । जिसनें जो अपराध किया है । उसको सजा अवश्य मिलने चाहिए । क्षमा करने से अपराध बढता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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