क्या आहार और जीवनशैली से मिलता है आत्मबल ?
आहार और जीवनशैली तो इंसान की मुहँ और आँखें है । जो इंसान के हर कार्य पर अपना प्रभाव छोड़ता है ।यही ही नहीं , जीवन स्तर को भी व्याख्या कर देता है । यही सब कुछ " आज की चर्चा " का विषय भी है । अब आये विचारों को भी देखते हैं : -
अच्छा आहार और जीवनशैली दोनों ही आत्मबल की बृद्धि में सहायक होते हैं । इनका आपस में घनिष्ठ सम्बंध है । जैसा खाओ अन्न वैसा होवे मन । जब हम शाकाहारी, हल्का, सुपच्य व संतुलित भोजन करते हैं तो तन के साथ - साथ मन भी स्वस्थ्य रहता है । सादा जीवन उच्च विचार को अपनाने से जीवनशैली सुदृढ़ होती है जिससे आत्मबल बढ़ता है । इसका सबसे अच्छा उदाहरण महात्मा गांधी जी हैं । जिन्होंने सत्य के प्रयोग को अपनाकर समाज के सामने आदर्श प्रस्तुत किया । व्यवस्थित जीवन जीने से अस्त- व्यस्तता नहीं उतपन्न होती , 24 घण्टे सभी को मिलते हैं इसी अवधि में कोई इतिहास में गुम हो जाता है तो कोई इतिहास रच कर अमर हो जाता है । बिना आत्मबल के मनुष्य कोई भी निर्णय नहीं कर सकता । जितने भी महापुरुष हुए हैं उन सबका आत्मबल मजबूत रहा है क्योंकि उन्होंने अपने आहार व जीवनशैली पर आत्मनियंत्रण रखा ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
यदि ऐसा होता तो सब में आत्मबल होता।चूँकि वर्तमान में आहार सभी अच्छा लेते हैं और उनकी जीवनशैली भी अच्छी ही है।परंतु सत्य बोलना, उसे स्वीकार करना और उस पर चलने का आत्मबल लुप्त है। जिसके कारण देश में बेरोजगारी बढ़ रही है।क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति सरकारी नौकरी चाहता है।अर्थात स्वयं कमाने का आत्मबल नहीं है।जबकि पढ़ाई की उपाधियां एक से एक बढ़ कर प्राप्त की हुई हैं।जिनके अनुसार उनमें योग्यता नहीं है। फिर भी उन्हीं उपाधियों एवं भ्रष्टाचार के आधार पर उन्होंने सरकारी नौकरियां प्राप्त कर ली गई हैं।जिसके घमंड से वह समस्त राष्ट्र का सत्यानाश भी कर रहे हैं।क्योंकि वे घमंडी व भ्रष्टाचारी सरकारी कुर्सी पर विराजमान होकर कारोबारी उद्यमियों का आत्मबल नष्ट करते हैं।जिनके कारण देश में युवा उद्यमी विफल हो रहे हैं।इसी विफलता के कारण देश में बेरोजगारी बढ़ रही है।जिसे रोकने का एक मात्र उपाये विलुप्त हो चुके आत्मबल को जागृत करना है।परंतु जिस देश में आहार और जीवनशैली का आधार भ्रष्टाचार हो वहां आत्मबल कहां ठहर पाएगा?
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
बड़े महापुरुषों ने भी कहा है कि जैसा आहार अन्न खाओ वैसा होवे मन।
चिंता न करें तनाव न ले।
चिंता बताना हमारे लिए फायदेमंद भी हैं और नुकसान भी है , ज्यादा चिंता करने से हमारी कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ता है हम कोई कार्य ठीक से नहीं कर पाते नींद भी नहीं आती और भूख भी उड़ जाती है नकारात्मक सोच की वृद्धि होती है और कहा गया है भूखे पेट भजन भी नहीं होते।
इसलिए हमें संतुलित और पौष्टिक आहार लेना चाहिए सात्विक भोजन लेना चाहिए सात्विक भोजन लेने से हमारे जीवन शांत रहता है मांसाहारी व्यक्ति हिंसक होता है क्योंकि वह मांस खाते खाते उसके दांत और उसकी आत्मा भी मर जाती है और वह कठोर होता है इसलिए जैसा अन्य हम लेते हैं उसका प्रभाव बहुत पड़ता है। पुराने जमाने में ऋषि मुनि महात्मा बहुत सोच समझकर किसी भी व्यक्ति के यहां का अन्य ग्रहण करते थे इसीलिए हमारे यहां पूजा पाठ और वेद मंत्र के उच्चारण के समय लहसुन प्याज खाना बना रहता है और सात्विक आहार लेने की परंपरा है व्रत उपवास भी हम इसीलिए करते हैं। अपने आप को शुद्ध और सात्विक रखने के लिए जैसा हम अनाज खाते हैं वैसे ही हमारे अंदर या हमारे मन की सोच होती है। आत्मा भी शुद्ध रहती है। आजकल सही खान-पान ना होने के कारण ही इतनी हिंसा है। संयमित और संतुलित आहार ग्रहण करना चाहिए पौष्टिक आहार से हमारा शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं बीमारियां भी दूर भागती हैं। आजकल के परिवेश में अपने जीवन शैली को सुचारू रूप से चलाने के लिए यह बहुत आवश्यक बात है कि हमें अपने दिनचर्या में खानपान को सात्विक रखना चाहिए कहा भी गया है कि सुबह का भोजन राजा की तरह करना चाहिए और रात्रि का भोजन भिखारी की तरह।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
जी निःसंदेह। आहार और विहार ही जीवन और स्वास्थ्य की दिशा निर्धारित करते हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों में और आयुर्वेद में भी आहार विहार की महत्ता सदैव उद्घृत है। यहां विहार का अर्थ आपकी जीवन शैली से ही है। "जैसा खाएं अन्न वैसा बने मन"
मन ही आत्म बल का आगार है - - - आधार है। हमेशा पढ़ते आए हैं
"मन के हारे हार है मन के जीते जीत" निःसंदेह मन में ही आत्मबल निहित है। और यह आत्म बल आहार से प्राप्त होता है विहार से पोषित और संवर्धित होता है। पौष्टिक और सुपाच्य भोजन आपके ह्दय को आराम और आनंद प्रदान कर्ता है तन को बल देता है स्वाभाविक ही पुष्ट तन मन आपको सकारात्मक ऊर्जा प्रदान कर्ता है। शाकाहारी भोजन इस दिशा में सर्वोत्तम है प्राकृतिक है--सकारात्मक परिणाम देता है। लेकिन आज गली गली में कुकुरमुत्तों की तरह उग आए फास्टफूड सेंटर पिज्जा हट डोमिनोज और चाइनीज़ डिश सेंटर तन मन धन तीनों के लिए घातक हैं। स्वास्थ्य की बर्बादी के साथ साथ मानसिक व्याधियों को भी आमंत्रित करते हैं। उसी तरह मांसाहार भी हिंसक प्रवृत्तियों को गतिशील बनाता है। हिंसा में आत्मबल नहीं क्रोध होता है। क्रोध पर नियंत्रण ही आत्म बल है मगर हिंसक प्रवृत्ति आत्मबल को खोखला कर देती है और निष्प्रभाविता जीवन का अंग बन जाती है
जीवन शैली भी आत्मबल को बुरी तरह प्रभावित करती है। अनुशासन और आत्मबल का चोली दामन का साथ है। अगर आप अपने रहन-सहन खान-पान और व्यवहार में अनुशासित नहीं हैं तो भीतरी नकारात्मक प्रवृत्ति यां आत्मबल का खात्मा कर देती हैं। शारीरिक और मानसिक दोनों ही रूप में अपराध - भाव से पोषित अनुभूतियाँ आपके आत्मबल को निरंतर छिलती रहती हैं और एक समय ऐसा आता है जब अवसाद जैसी स्थितियां आपको दिग्भ्रमित कर देती हैं। दान तप यज्ञ सत्य अहिंसा ब्रम्हचर्य ये ही जीवन शैली के उन्नायक तत्व आत्मबल के प्रणेता प्रवर्तक संवर्धक होते हैं। इनका अनुपालन करें एवं देश समाज के आत्मांश बनें अपने पुष्ट आत्मबल पुष्ट तन मन के साथ - - ।
- हेमलता मिश्र मानवी
नागपुर - महाराष्ट्र
आहार शरीर के लिए है,जीवन शैली जीने के लिए समझ की आवश्यकता होती है। समझदारी या संयम के साथ आहार कियोा जाता है तो शरीर स्वस्थ रहता है।मन को समझ और शरीर को आहार की आवश्यकता होती है। शरीर और मन को निरंतर आहार और समझ मिलते रहने से आत्मबल मिलता है। पवित्र विचार ही मनोबल है,मनोबल की निरन्तरता से आत्मबल मिलता है।मन और तन दोनो की पूर्ती न होने से,मन दुखी और तन अस्वस्थ हो जाता है।ऐसी स्थिति मे आत्मबल घट जाता है।अतः आहार और जीवन शैली से मिलता है,आत्मबल।क्योकि मन और तन दोनो कि सँयुक्त अभिव्यक्त्ति से ही आत्मबल
मिलता ह।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
जैसा होगा आहार वैसा होगा मन
कहावत है हम जैसा अन्न खाते है वैसे ही हमारे विचार होते है , आत्मबल विचारों से आता है । आहर का हमारे जीवन में बहुत
महत्व है । हवा और पानी के पश्चात् शरीर को चलाने के लिये तीसरी मुख्य आवश्यकता भोजन की होती है। भोजन की शरीर के सभी अवयवों के निर्माण में अहं भूमिका होती है। शरीर को ताकत मिलती है। अतः भोजन के बारे में काफी शोध हो रही है। परन्तु अधिकांश आहार विशेषज्ञों ने शरीर को ताकतवर, शक्तिशाली बनाने हेतु आवश्यक रासायनिक तत्त्व और ऊर्जा को जैसे-प्रोटीन, विटामिन, कार्बोज, लवण, जल, वसा और केलोरीज की मात्रा को तो अत्यधिक महत्त्व दिया। किसी खाद्य पदार्थ में क्या-क्या तत्त्व कितनी-कितनी मात्रा में होते हैं, उनकी जानकारी से जन साधारण को अवगत कराया।
शरीर में ताक़त होगी तो ही हमारे विचार भी बलवान होंगे निस्तेज शरीर में आत्मबल अभी क्षीण हो जाता है । आहर , कब, क्यों, कितना, कैसा और कहाँ करना चाहिए और कब, क्यों, कैसा और कहाँ नहीं करना चाहिये? आहर कहाँ और कैसे वातावरण और बर्तनों में बनाना चाहिये और खिलाना चाहिए? दो भोजन के बीच में कितने समय का कम से कम अन्तराल होना चाहिये? थोड़ा-थोड़ा अथवा बार-बार क्यों नहीं खाना चाहिए? प्रकृति के अनुरूप आहर का सर्वश्रेष्ठ अनुकूल समय कौन सा होता है? रात्रि आहर क्यों नहीं करना चाहिए? आहर करते समय आसपास का वातावरण, हमारी भूख, आसन, विचार, भावना, मानसिकता, चिन्तन कैसा है? आहर मौसम और शारीरिक अवस्था के अनुकूल है अथवा नहीं? उसमें क्या-क्या कितने-कितने उपयोगी अथवा अनुपयोगी पदार्थ हैं? जिस उद्देश्य से आहर किया जा रहा है, उसका कितना प्रतिशत लाभ मिल रहा है? अगर नहीं मिल रहा है, तो क्यों नहीं मिल रहा हैं? खानपान का हमारे जीवन पर बहुत असर पड़ता है इसलिये पहले के लोग आहर को बहुत पवित्रता से बनाते थे व पवित्रता से ग्रहण करते थे । और कहीं का भी किसी के घर का भोजन ग्रहण नहीं करते थे कहावत है कि हमें कभी भी ग़लत तरीक़े से कमाया गया धन वालों के घर आहर नहीं करना चाहिए । क्यो की जैसा हम आहर ग्रहण करेंगे वैसे ही विचार उत्पन्न होंगे और हमारा आत्मबल भी वैसा ही होगा । आहर का संतुलन ही श्रेष्ठ आत्मबल को जन्म देता है ।
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
लोग कहते हैं कि आहार का विचार पर असर होता है ।जैसा हमारा आहार होगा,वैसा ही हमारा आचार ।इसे हम पूर्णतया सत्य नहीं मान सकते ,पर थोड़ा प्रभाव तो जरूर होता है ।
आत्मबल से जीवनशैली शत प्रतिशत उत्कृष्ट होती है।उसी तरह उत्कृष्ट जीवनशैली आत्मबल वृद्धि में अवश्य ही सहायक होती है ।अतः हम कह सकते हैं कि आहार और जीवनशैली से आत्मबल मिलता है ।
- रंजना वर्मा
रांची - झारखण्ड
कहा गया है कि स्वस्थ तन में स्वस्थ मन का निवास होता है अर्थात तन-मन के लिये स्वस्थ होना बहुत जरूरी है। जब तक हम स्वस्थ नहीं रहेंगे, हमारा जीवन दुःख,हताशा, निराशा और निरुत्साह के साथ-साथ अत्यंत संघर्षमय रहेगा। सुख और सफलताएं दूर नजर आयेंगी। अतः हमें अपने स्वास्थ्य के प्रति सदैव सजग और सावधान रहना चाहिए। स्वस्थ जीवन के लिये आहार, विचार और व्यवहार तीनों उत्तम होना आवश्यक है। इस संदर्भ में उत्तम याने अनुकूल माना जाना गलत नहीं होगा। हमारी शारीरिक रचना के अनुसार उचित आहार, मानसिक सामर्थ्य के अनुसार सकारात्मक सोच और हमसे जुड़े रिश्तों से आदर्श व्यवहार आवश्यक और
महत्वपूर्ण है। हम इन्हें निभाने और अपनाने में जितने सक्षम और निपुण होंगे उतनी ही हमारी जीवन शैली मानक और आदर्शमय होगी और यह इसलिए क्योंकि तब हम आत्मविश्वास से भरेपूरे होंगे और यही हमारा आत्मबल बनकर हमें हमारे चहुँमुखी विकास में सफलता के आयाम देगा।
तात्पर्य और सार यह कि आहार और जीवनशैली से हमें मिलता है आत्मबल ,जो हमारे सुखद और सफल जीवन का आधार है,मूलमंत्र है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
जी हां, यह सच है कि शुद्ध सात्विक शाकाहार और जीवन जीने की सहज, सरल, भारतीय पद्धति से हमारे आत्मबल का पोषण रक्षण एवं परिवर्धन होता है। आत्मबल मनुष्य के संपूर्ण व्यक्तित्व का उदबोधक है; जिससे पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय जीवन भी प्रभावित होता है । शुद्ध शाकाहारी भोजन और साग- पात से युक्त हरी सब्जियां दूध, फल, मेवा का खानपान शरीर को बल प्रदान करता है; साथ ही भारतीय शैली के अनुरूप यथा-- सम्यक जीवन, खाना- पीना, उठना -बैठना, सोना- जागना भारतीय महापुरुषों ऋषियों के अनुरूप हो, तो शारीरिक बल से जुड़ा *आत्मबल* मजबूत हो जाता है और हर कार्य को करने में सफलता भी प्राप्त होती है; क्योंकि दोनों की उचित संगति से जीवन में व्यक्तिगतस्तर पर कर्तव्य परायणता, सत्यनिष्ठा, पारिवारिक जीवन में भी स्नेह, सद्भाव और सामाजिक जीवन में शिष्टता, नागरिकता जैसे आदर्शों के प्रति निष्ठा बढ़ने ही लगती है। ऐसे चंद व्यक्ति ही संसार का इतिहास रचते हैं यथा- पूज्य बापू महात्मा गांधी इसका सत्य प्रमाण हैं। इसके विपरीत तामसिक, मांसाहार से तथा पाश्चात्य जीवनशैली से उपजे दुष्परिणाम भी सर्वविदित ही हैं। मांसाहार की वजह से कैरोना जैसी भयंकर बीमारी और उससे पीड़ित भयावह स्थितियों से सभी अवगत हैं। अत: जो हमारा भारतीय दर्शन आहार और जीवनशैली तथा आत्मबल से निर्मित हुआ है।वही संपूर्ण जगत के लिए श्रेष्ठ एवं शिक्षाप्रद है।
- डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
आहार और जीवन जीने की शैली... ये जीवन के महत्वपूर्ण अंग हैं और मनुष्य को आत्मबल देने में पूर्णतः समर्थ हैं।
अपने बड़ों से हम सदा यह सुनते आये हैं कि जैसा खायें अन्न वैसा बने मन। इसीलिए सात्विक भोजन करने को विशेष महत्व दिया जाता है। तामसिक भोजन, मांसाहार को अच्छा नहीं माना जाता। आज समझदार व्यक्ति शाकाहार को ही जीवन में अपना रहे हैं। यह भी सिद्ध हो चुका है कि सात्विक और शाकाहारी भोजन करने वाले दीर्घायु होते हैं। आहार जैसा होगा विचार भी वैसे ही होंगे। कोई माने या न माने लेकिन ऐसा होता है। किसी हत्यारे के हाथ का बना भोजन खाने पर उग्र विचार भी मन में आते देखे गये हैं।
तो जिस तरह आहार का मन पर प्रभाव पड़ता है उसी तरह जीवन शैली भी मानव के जीवन को प्रभावित करती है। संयमित भोजन और संयमित तथा अनुशासित जीवन शैली व्यक्ति को स्वस्थ रखती है। स्वस्थ शरीर में मन स्वस्थ रहता है और स्वस्थ मन सकारात्मक विचारों की ओर प्रवृत्त होता है।इससे आत्मबल स्वयं ही प्रभावित होता है। संयमित भोजन, संयमित और अनुशासित जीवन शैली अपना कर व्यक्ति स्वस्थ रहते हुए, अपने आत्मबल से छोटे ही नहीं बड़े काम भी करने में समर्थ होता है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखण्ड
मानव जीवन के आत्मबल के लिये आहार और जीवन शैली एक दूसरे के पूरक हैं । इनके बिना मानवजाति की स्वास्थ जीवन की कल्पना नहीं कर सकते है । हमारे शास्त्रों , धार्मिक ग्रन्थों , सन्तों , ऋषियों ने मुख्यतः तीन प्रकार के भोजन बताएँ हैं । प्रथम है सात्विक भोजन , दूसरा राजसिक , तीसरे स्थान पर तामसिक भोजन है । इंसान अपनी रुचि के अनुसार भोजन खाना पसंद करता है ।गीता में सात्विक भोजन के लिये श्लोक में बताया है ।
आयुः सत्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनः।
रस्याः स्निग्धाः स्थिर हृद्या आहारः सात्त्विकप्रियाः ।।
अर्थात जिस भोजन के करने से बल , स्वास्थ्य , स्फूर्ति लम्बी आयु , शारीरिक , मॉनसिक सुख और प्रसन्नता प्राप्त होती है । रसीले , रसदार , चिकने स्थिरता प्रदान करनेवाले हृदय से ही पसन्द आने वाले भोजन है । मौसमी फल , सब्जी , अन्न , देसी गाय का दूध , दही , दूध , घी माखन, छाछ , सूखे मेवे , मधुर , शीतल , शीघ्र पचने वाले आज , कांति को बढ़ानेवाले पदार्थ सात्विक होते हैं ।
राजसी प्रवृति के लोगों को खट्टे , कसैले , चटपटे , उष्ण , तीखे आदि भोजन को अहम तत्व मानते हैं ।जिससे दुख ,शोक , रोग्य , क्रोध , काम आदि को जन्म देता है ।
तामसिक प्रवृति के लोग बासी , सड़े -गले , अस्वादु और गंदे कीट -पतंगों द्वारा खाया हुआ , रसविहीन , झूठा , दुर्गन्धयुक्त आदि भोजन तमोगुणी व्यक्ति पसन्द करते हैं ।
तामसिक भोजन खाने से मन , बुद्धि , आत्मा पर खराब असर पड़ता है । स्वास्थ सही नहीं रहता है । व्यक्ति आलसी , अकर्मठ रहता है । तो तामसिक भोजन से पता लगता है हमारे जीवन शैली के लिए हानिकारक है ।अधिक खाना खाना , बार - बार खाना , तामसिक बासी खाना खाना बीमारियों को बुलावा देता है ।अच्छे स्वास्थ के लिए लोग इसका उपभोग नहीं करें । इसका त्याग करना ही श्रेष्ठ है । इंसान के लिए सात्विक , शाकाहारी सन्तुलित आहार और संयमित जीवन शैली के सर्वश्रेष्ठ बताया है । जो हमारे आत्मबल को बढ़ाता है । मानुष्य को जीवन जीने के लिए मिला है । न कि जीवन गुजारने के लिये । जिन व्यक्तियों ने अपने भोजन और जीवन- शैली पर ध्यान दिया है । उनका जीवन निरोगी , आत्मबल से भरा मिला । विश्व सवास्त संगठन के अनुसार भारत में 10से 24 वर्ष वर्ग की 23 लाख युवा आबादी हर साल असामायिक मौत। की शिकार होती है । आधुनिकिकरण ने हमारी जीवन शैली को बदल दिया है । मैकडॉनल्ड का पिज्जा बर्गर , चाइनीज फ़ूड , के साथ कोल्ड ड्रिंक का पीना , डिब्बाबन्द खाना चीजें , होटलों का पोशनविहीन खाना
कुपोषण , रोगों को जन्म दे रहा है । कॉल सेंटर इंटरनेट , सोशलमीडिया आदि ने मॉनव की जीवनचर्या को खरनाक मोड़ पर ला के खड़ा कर दिया है । जिससे इंसान शारीरिक मानसिक रूप से बीमारियों का शिकार हो रहा है । ऐसी जीवन शैली आत्मबल की नकारात्मकता को बढ़ाएगी और स्वास्थ जीवनशैली के लिए हानिकारक है । इंसान अपना आत्मबल खोने लगता है । दुनियादारी उसे बुरी लगती है ।
भारतीय संस्कृति में जल्दी उठना जल्दी सोना , योग अच्छी जीवन शैली का मूल मंत्र माना है । नियमित और निरन्तर योगाभ्यास, प्राणायाम हमारे में आत्मिक बल को बढ़ाता है । हमें ईर्ष्या , द्वेष , लोभ , क्रोध , एवं अंहकार से मुक्त करता है । बुद्व महावीर , महात्मा गांधी जी ने आहार और अपनी योगमय व्रत , उपवास की जीवन शैली से अपना आत्मबल बढ़ाया था । ये व्यक्तित्व संसार के लिए मिसाल है ।आत्मबल यानी अपने अंदर का विश्वास बढ़ाना है । जो हमें सन्तुलित शाकाहारी भोजन और संयम , योग , इंद्रियों के निग्रह की जीवनशैली अपनाकर आत्मबल बाधा सकते हैं ।
कुंभ के धार्मिक आयोजनों पर संत , मुनि कल्पवास करते हैं । जिनमें उनका संयमित आहार , जीवन शैली से ही आत्मबल से विजय प्राप्त कर लेते हैं । जैसे कोई साधु है । ऋषिकेश , हरिद्वार , इलाहाबाद आदि स्थानों पर तपती गर्मी में दिन - रात अंगारों के सामने में धुनी लगा के ईश , ध्यान में लीन है । यह सब विषम परिस्थिति में रहकर आत्मबल की ताकत से आराम से तप करते हैं ।
मेरी आँखें इस दृश्य की गवाह हैं ।
स्व महाप्रज्ञ जी के संग सारे जैन समाज के तीर्थांकर की संयमित आहार , संयमित जीवनशैली से आत्मबल को बढ़ाकर अपने आप को शक्तिशाली बनाया । दिगम्बर जैन के आचार्य गर्मी , बारिश , कड़कती ठंड में नग्नावस्था में रहते हैं । अपनी इंद्रियों को नियोजित करके अपनी शक्तियों को व्यर्थ में न खोकर उनकी ऊर्जा को बढ़ाकर सभी तरह के मौसम को सहने की शक्ति बढ़ाना आत्मबल का उदाहरण ही है ।
लोग पर्वतारोहण करते हैं । जिनका आत्मबल सबल होता है । वही एवरेस्ट की चोटी को छूता है । सरहद पर आठों प्रहर जवान प्रतिकूल परिस्थतियों में अपने आत्मबल से खड़ा हो कर देश की सुरक्षा कर रहा है ।
मैं कह सकती हूँ कि मानव को शाकाहारी भोजन , स्वास्थ जीवन शैली अपनाकर अपने आत्मबल के दम पर समाज को स्वस्थ बनाए सकते हैं । सांस्कृतिक हमलों से बचाने के लिए समग्र विश्व को आत्मबल का सेहरा पहना के जाग्रत कर सकते हैं ।
- डॉ मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
बड़े बुजुर्गों ने कहा है "जैसा खाए अन्न वैसा बने मन"। यदि महाभारत और रामायण के प्रसंगों को याद करे तो भीष्म पितामह भी द्रोपदी वस्त्र हरण के समय मौन रहने का कारण यही बताया कि इन का ही अन्न खाया है। आहार का संबंध शारिरिक व मानसिक ताकत से होता है। अन्न से ही रक्त बनता है ।शारीरिक ताकत ,मन और मस्तिष्क आहार का ही वरदान है।जीवन का आधार जल , वायु ,अग्नि, पृथ्वी, व.जीवन शैली है। जीवन जीने की उतम कला ही प्रगति और उन्नति की चाबी है। अनुशासन, नियमित संतुलित भोजन, उच्च विचार आत्म बल को चौगुना कर देते हैं।
- ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
आत्मबल को मजबूत बनाने में जीवनशैली और आहार की महत्वपूर्ण भूमिका है । जीवन के तीन मुख्य स्तम्भ है
१ आहार आहार का संबंध हमारे भोजन से है । कहा ही गया जैसा खाओगे अन्न वैसा पाओगे मन ।जैसा पीओगे पानी वैसा बोलोगे वाणी
२ सोच विचार
३ जीवनशैली
ये तीनों मिलकर आत्मबल को मजबूत बनाते है।
पहले आहार पर चर्चा करते हैं आहार सात्विक तामसी और मांसाहारी होता है सात्विक भोजन शारीरिक हार्मोन को संतुलित रखते हैं । तामसी और मांसाहारी भोजन शारीरिक हार्मोन को बहुत जल्दी ही असंतुलित करते हैं जिससे संवेगात्मक असंतुलन बढ़ जाता है मानव जल्दी ही क्रोध करने लगता है या यूं कहें कि hyper activity करने लगता है । जिससे कितनी बार पारीवारिक समाजिक माहौल में तनाव बन जाती है इसलिए आहार का आत्मबल को मजबूत करने में अहम भूमिका है। जीवन शैली के अन्तर्गत पहनावा बोलचाल , जीवन के अनुशासन आते हैं पसंद और रुचि के अनुसार पहनावा मन को प्रसन्न रखते हैं जिससे वाणी में मधुरता बनी रहती है । वाणी में यदि मधुरता और मिठास होगी तो विनम्रता सम्मान स्वय बन जाएगा । Perception emotion and behavior का तालमेल होने से आत्मबल याwill power improve हो जाएगा ।अतः आत्मबल को मजबूत करने में आहार और जीवनशैली की महत्वपूर्ण भूमिका है
- डाँ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
आहार हमारी जीवन शैली को सीधे सीधे प्रभावित करता है ।हमारा रहन सहन व्यवहार सब इसी अनुसार ढलते हैं ।वैदिक भारत में वर्ण व्यवस्था खानपान रहन-सहन के आधार पर ही थी अथर्ववेद इस आधार पर बहुत से उपवर्गों के बन जाने की बात करता है ।उसके बाद के भारत में भी जब बाहर अनेक वर्ग समुदाय आये अन्तर दूरी का आधार आहार और जीवन शैली ही थी।हम जैसा खाते हैं उसी अनुरूप सोचते हैं ।अतः हमारा आत्मबल स्वंय प्रभावित हो जाता है ।सात्विक जीवन शैली व आहार विहार अधिक आत्मबल का सदा प्रमाण उदाहरण रही है ।आज भी है और भविष्य में भी रहेगी ।
- शशांक मिश्र भारती
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
हमारे यहां यह कहा जाता है जैसा अन्न वैसी बुद्धि या जैसा आहार वैसा विचार एक ही बात है ! आहार हमारे जीवन में बहुत महत्व रखता है ! सात्विक और पौष्टिक आहार हमारे जीवन शैली की मूल रीढ़ है ! यदि हमारा आहार शुद्ध सादा और पौष्टिक है तो हमारे स्वास्थ्य में भी तंदुरुस्ती रहेगी ! स्वास्थ्य अच्छा तो हममें कार्य करने की क्षमता अधिक होती है एवं हममें आत्मविश्वास ,आत्मबल इतना आ जाता है कि हमारे विचार सकारात्मकता लिए हुए रहते हैं !कि मैं कोई भी काम करने में सक्षम हूं क्योंकि संपूर्ण पौष्टिक आहार की वजह से स्वस्थ हूं हमारी जीवनशैली भी एकदम सादी और उच्च कोटि के विचार लिए होती है ! आजकल लोग अपने खान-पान पर ध्यान नहीं देते !अपने काम की वजह से अपने परिवार से दूर रहते हैं और आजादी मिल जाने से स्वछंद जीवन जीने लगते हैं समय पर भोजन नहीं लेते ,पीना खाना, रात देर से सोना आदि आदि उसकी जीवनशैली ही बदल जाती है ! महिलाएं भी काम करने लगी है अतः समयाभाव के चलते फास्ट फूड और बाहर के खाने का चलन बढ़ जाने से स्वास्थ्य ठीक ना होने की वजह से भी हमारी जीवनशैली में परिवर्तन आता है और अस्वस्थता एवं तंदुरुस्ती के अभाव में हमें गुस्सा और चिड़चिडापन आ जाता है एवं कार्यक्षमता भी कम होने लगती है नकारात्मक विचार आने लगते हैं, आत्मबल भी कम होने लगता है! अतः संयुक्त परिवार में रहना, घर का पौष्टिक आहार एवं संयम और नियम का पालन कर अपनी जीवनशैली को भी हेल्दी रखना चाहिए जिससे हमारा आत्मबल बढ़ता है
अंत में कहूंगी आहार की पौष्टिकता तभी मीठा फल देती है जब हमारे जीवन शैली भी स्वस्थ रहती है और यह तब संभव है जब हम परिवार से दूर रहकर भी नियम का पालन करते हुए संयम से रहते हैं स्वस्थ रहने से हमारा मन भी स्वस्थ रहता है जिससे हमारा आत्मविश्वास, आत्मबल बढ़ता है ! कहते हैं ना तंदुरुस्त तो मन दुरुस्त मन दुरुस्त तो आत्मा और आत्मा दुरुस्त तो सब दुरुस्त!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
आहार शरीर और मन दोनों को प्रभावित करता है ।
भारत में प्राचीन समय से स्वास्थ्य को दृष्टिगत रख कर ही आहार विधान बनाया गया तीन प्रकार के भोजन राजसी , तामसी और सात्विक में सात्विक भोजन को ही प्राथमिकता दी गई । सादा भोजन जिसमें खट्टा, मीठा, तिक्त आदि सभी रसों को भोजन में शामिल किया गया । शाकाहार को महत्व देते हुए मांसाहार या तामसी भोजन की वर्जना का यही उद्देश्य था , कि किसी जीव का भक्षण प्रथम तो दया को समाप्त कर हिंसक प्रवृति को जन्म देता है।( यह आवश्यक नहीं कि सब मांसाहारी हिंसक प्रवृति के ही हो ) इसके मूल में जो बात है वह यह, कि मांसाहार के देर से हजम होने के कारण शरीर में तरह-तरह की पाचन संबंधी बीमारियां घर कर लेती हैं, जिसके कारण व्यक्ति चिड़चिड़ा और गुस्सेल हो जाता है और यही आगे जा कर हिंसा का कारण बनता है । इसलिए सात्विक आहार, जिसका सरलता पाचन होने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है और स्वास्थ्य अच्छा रहने से मन प्रसन्न रहता है, मन प्रसन्न और शांत रहने से सकारात्मक विचार उत्पन्न होते और यही सकारात्मकता मनुष्य को आत्मबल देती है । इसी तरह जीवन शैली भी व्यक्ति के आत्मबल को प्रभावित करती है । देर रात तक जागने वाले, सुबह देर तक सोने वाले व्यायाम को नजरअंदाज करने वाला , बेसमय गरिष्ठ भोजन और अभक्ष्य चीजें खाने वाले , लगातार बैठ कर काम करने वाले लोगों का आत्मबल , उन लोगों की तुलना में कम होता है, जिनकी जीवन शैली व्यवस्थित होती है । जीवनशैली व्यवस्थित रखने वालों के हर काम समय पर होने से उनमें हड़बड़ाहट और तनाव नहीँ रहता । जीवन सरलता से चलता है, इसलिए उनमें आत्मबल की मात्रा अधिक होती है । निश्चित रूप से आहार और जीवन- शैली आत्मबल को प्रभावित करते हैं ।
- वंदना दुबे
धार - मध्य प्रदेश
सनातन धर्म में भोजन को ईश्वर का स्वरूप माना गया है। शास्त्रों में कहा गया है 'अन्नं ब्रह्म' अर्थात् अन्न ब्रह्म है। प्राचीन लोकोक्ति है- 'जैसा खाए अन्न, वैसा होय मन'। हमारे भोजन का सीधा प्रभाव हमारे चरित्र व मन पर पड़ता है। वर्तमान समय में पहले ही कीटनाशकों के बहुतायत प्रयोग से खाद्य पदार्थ विशुद्ध नहीं बचे हैं, वहीं यदि उनके पकाने एवं ग्रहण करने में भी शुद्धता का ध्यान नहीं रखा जाता है तो यह हमारे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।
आज शास्त्रोक्त बातों को रुढ़ियां मानकर इनके उल्लंघन करने के परिणामस्वरूप समाज निरन्तर पतन की ओर अग्रसर होता जा रहा है। विडम्बना यह है कि आज की पीढ़ी भोजन बनाने व ग्रहण करने के नियमों तक से अनजान हैं ऐसी स्थिति में उनके द्वारा उन नियमों के पालन की आशा करना व्यर्थ है।
आप अन्न और मन का आपस में घनिष्ठ संबंध है तभी तो कहा जाता है, जैसा खाएं अन्न, वैसा बने मन। अन्न के प्रभाव से ही मन की सोचने समझने की शक्ति विकसित होती है। प्राचीन काल से ही आपसी रिश्तों में घनिष्ठता और प्रेम बढ़ाने के लिए लोग रिश्तेदारों और मित्रों को अपने घर खाने पर आमंत्रित करते आए हैं और यह परंपरा आज भी निभाई जाती है पर क्या आप जानते हैं हमें किन लोगों के घर का भोजन करना चाहिए और किनका नहीं पुराणों में बताया गया है कि कुछ ऐसे लोग और घर हैं जिनके यहां भोजन नहीं खाना चाहिए क्योंकि इससे पाप तो बढ़ते ही हैं साथ ही पुण्य भी नष्ट होते हैंकिसी भी महिला की पहचान उसके चरित्र से होती है। चरित्रवान महिला ही अपने गुणों से घर को स्वर्ग बनाती है। ऐसी स्त्री के घर में अन्नपूर्णा मां स्वयं निवास करती हैंं। उसकी रसोई में पका भोजन प्रशाद समान होता है। इसके विपरित चरित्रहीन महिला के घर का भोजन खाया जाए तो पाप कर्म बढ़ते हैं।जो लोग दूसरों की मजबूरी का फायदा उठाते हैं, सही और गलत का भेद भुलकर धन कमाने को प्रथामिकता देते हैं ऐसे लोगों के घर मेहमान बन कर जाएंगे और उनके घर का भोजन ग्रहण करेंगे तो आप पर भी उनके चरित्र में बसी नकारात्मकता का संचार होने लगेगा।किसी रोगी के घर उसकी खबर लेने जाएं तो कदापि उस घर का अन्न और जल ग्रहण न करें क्योंकि अस्वस्थ व्यक्ति के घर के वातावरण में भी रोग के कीटाणु हो सकते हैं जो कि निरोगी व्यक्ति को भी रोगी बना सकते हैं।जब कोई व्यक्ति खाना बनाता है तो उस खाने में उस व्यक्ति के व्यक्तित्व के गुण भी आ जाते हैं। अत जो व्यक्ति स्वभाव से गुस्सेल हो उसके हाथ का बना भोजन न खाएं अन्यथा उसके गुस्से का अवगुण आपके भीतर भी प्रवेश कर जाएगा।धर्म शास्त्रों में किन्नरों को दान देने का अत्यधिक महत्व बताया गया है। मान्यता है कि इन्हें खुश करने से असीम सुखों की प्राप्ति की जा सकती है। किन्नरों को दान देने वालों में अच्छे-बुरे, दोनों प्रकार के लोग होते हैं कौन किस भाव से दान दे रहा है यह कोई नहीं जानता इसलिए उनके घर भोजन नहीं खाना चाहिए।जो लोग अपने घर के नौकरों का ठीक ढ़ग से ध्यान न रखते हों, उन्हें बेवजह परेशान करत हों उनके यहां भोजन नहीं खाना चाहिए क्योंकि नौकरों द्वारा दि गई हाय आपको भी लग सकती है। जब भी किसी के घर भोजन के लिए जाए तो वापसी पर उस घर के नौकरों को कुछ इनाम या रूपए पैसे अवश्य दें। इससे वो खुश होकर आपको आशीर्वाद देंगे।निंदा और चुगली से अच्छे खासे रिश्तों में दरार आ जाती है। कुछ लोग अपने घर में दावत इसी प्रयोजन से रखते हैं की दूसरे लोगों की निंदा और चुगली करके आनंद उठाएं। ऐसे लोगों के घर भोजन न करें अन्यथा आप भी अनजाने में पाप के भागी बन जाएंगे। शुद्ध व सात्विक भोजन करने से विचार भी स्वस्थ रहते हैं और आत्मबल भी बढ़ता है पेट भरा होगा तभी हम बहुत कुछ सोच सकते है काम कर सकते है
आत्मबल भी तभी आता है आहर का जीवन में प्रमुख स्थान है
- अश्विन पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
" मेरी दृष्टि में " आहार से ही जीवनशैली पर प्रभाव अवश्य पड़ता है और जीवनशैली से ही आत्मबल का निर्धारित होता है । अतः आहार से बहुत कुछ निर्धारित हो जाता है । कहते हैं कि जैसा अंन वैसा मन ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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