क्या सुधार की राह अपनी गलती स्वीकार के साथ शुरू होती है ?
जब तक इंसान अपनी गलती स्वीकार नहीं करते हैं तो आप किसी भी समस्या का समाधान नहीं कर सकते हैं यानि सुधार की शुरुआत नहीं हो होती है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । आये विचारों को देखते हैं : -
सुधार की राह में अपनी गलती को स्वीकार करने के साथ सही शुरू होती है। कि मान लेने वाला अपने अंदर पश्चाताप करता है । सही उसका सबसे बड़ा गुण है ,सुधार की ओर।
गुस्से में आपको भी नहीं संभाल सकते लेकिन प्रेम से आप पूरी दुनिया को संभाल सकती हो....
शब्द और सहनशीलता कमजोरी नहीं होती यह तो अंदरूनी ताकत है जो सब में नहीं होती। गलती को मान लेने से बड़ा कोई काम नहीं है वह व्यक्ति किसी कारणवश भटक गया है क्योंकि मनुष्य गीली मिट्टी की तरह होता है उसके संस्कार या परिस्थिति के कारण ऐसा होता है अंदर से आदमी ध्यानी के कारण पुरुष की संगत के कारण उसमें बदलाव आ सकता है मधुर व्यवहार से बढ़कर शत्रु को जीतने वाला कोई हथियार इस पृथ्वी पर नहीं है। हमने साहित्य में भी पड़ा है जिसमें अनेकों उदाहरण है कि इन सब लोग भी अहिंसा के मार्ग पर चलने लग गए गौतम बुध और गांधी जी के बताए हुए संदेश को अपनाकर बहुत सुधार हुआ है। जीवन की सच्चाई है कि अच्छा व्यवहार कठिन से कठिन कार्यों को सरल बनाने का ताकत रखता है,यदि व्यक्ति व्यवहार कुशल है तो मुश्किल अपने आप आसान हो जाती है और वह अपने आप सरल हो जाएगा। जो जो व्यक्ति अपनी गलती की क्षमा मांग ले तो गुस्सा होने वाला व्यक्ति भी तो गुस्सा ठंडा हो जाता है और वह आसानी से क्षमा कर देता है क्योंकि इससे बढ़कर कोई दान नहीं है। अगर हम अपनी गलती स्वीकार करने तो आगे कभी कोई विवाद ना बढ़े ना घर में और ना देश में। जो व्यक्ति स्वयं अपनी गलतियों के लिए लड़ता है उससे कोई कभी हरा नहीं सकता।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
व्यक्ति की आत्मा उसे, सदैव ही एक न्यायाधीश की तरह सलाह देती है ; किन्तु स्वार्थ हावी रहने के कारण , वह आत्मा की सलाह को नजरअंदाज कर देता है । अपने स्वार्थ के वशीभूत वह ऐसे कार्य में जुट जाता है, जो उसे मानसिक पीड़ा तो देते ही हैं, अन्य प्रकार की क्षति भी पहुँचाते हैं ।
अच्छे कार्यों का श्रेय तो व्यक्ति स्वयं लूटता है, लेकिन बिगड़े कार्यों का दोष, दूसरों पर मढ़ देने की प्रवृत्ति आम है । व्यक्ति दोषारोपण और आरोप-प्रत्यारोप में ही, अपना सारा जीवन व्यतीत कर देता है । कभी वह शासन प्रशासन को दोष देता है, कभी माता-पिता को कभी संगी-साथी को, तो कभी परिस्थिति को , कभी मौसम को दोषी मानता है, तो कभी ईश्वर को ,कभी तो वह प्रारब्ध को ही, हर विपरीत परिस्थिति का दोषी मान लेता है । बस, नही मानता, तो केवल अपना दोष । वह सदैव स्वयं को निर्दोष ही सिद्ध करने में लगा रहता है ।अपने गुणावगुण तलाशने के लिए अपने भीतर गोता लगाने पर , पता चलता है, कि हममें खामियों की कमी नही , पर अपने अहंकार और हठधर्मिता के कारण , हम इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं होते और व्यर्थ के विवाद में स्वयं को उलझा कर ,आरोप प्रत्यारोप की निपुणता हासिल करते हैं , व उसे ही अपनी जीत मान आनंदित होते हैं । जब तक व्यक्ति स्वयं को सही और सामने वाले को गलत मानता रहता है , तब तक टकराव बना ही रहता है । अपनी पूरी ऊर्जा,उसे ग़लत सिद्ध करने में खर्च करके, जब वह थक जाता है, और जब अहं की धुंध कुछ छंटती है ,तब वह मनन करता है और पाता है, कि उसकी गलती भी, कुछ कम नहीं थी । जैसे ही उसे अपनी गलती का अहसास होता है, उसके हाव भाव और व्यवहार में परिवर्तन स्पष्ट रूप से परिलक्षित होने लगते हैं । यद्यपि क्षमा मांग लेने का माद्दा, हर किसी में नहीं होता ; पर सुधार की ओर यह पहला कदम अवश्य होता है । क्योंकि अपनी गलती का अहसास होने के बाद, क्षमा मांग कर , स्वस्थ मन से उस दिशा में ,नए सिरे से प्रयास प्रारंभ किये जा सकते हैं ; जिसमें बिगड़ी बात को बनाने की पूरी-पूरी गुंजाइश रहती है । अतः कहा जा सकता है कि-
सुधार की राह अपनी गलती की स्वीकार्यता से ही होकर गुजरती है ।
- वंदना दुबे,
धार - मध्यप्रदेश
यह सही है, सुधार की राह अपनी गलती स्वीकार करने के साथ शुरू होती है। हम सभी मनुष्य हैं और गलती किसी से भी हो सकती है। कोई ऐसा नहीं है जिससे कोई गलती न हुई हो। विनम्रतापूर्वक अपनी गलती मान कर उसे न दोहराने का संकल्प लेकर जो आगे बढ़ता है वही सुधार की राह पर आगे बढ़ता है। जो अहंकारवश अपनी गलती को मानता और उसे सही सिद्ध करने के प्रयास में लगा रहता है वह विगत में की हुई गल्तियों को दोहराता रहता हैं और हानि उठाता है। अपनी गल्तियों से यही सीख लेनी चाहिए कि हम भविष्य वह गलती दोहरायें नहीं, तभी हम आगे बढ़ सकते हैं। गलती स्वीकारने से बढ़ सकने वाले विवाद शांत हो जाते हैं, स्वयं को भी शांति का अनुभव होता है।जीवन में सकारात्मकता आती है। गलती स्वीकारना कठिन अवश्य है, क्योंकि अपने अहं को छोड़ना इतना आसान नहीं होता, पर जो इसे कर पाता है वह जीवन में कभी नहीं हारता।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखण्ड
जी हां अपनी गलती स्वीकार करने के साथ ही सुधार की राह शुरू होती है । गलती स्वीकार करना मनुष्य की सबसे बड़ी महानता है। क्योंकि वर्तमान समय में हर व्यक्ति अपने को ज्यादा समझदार ही मानता है। अपने को दूसरों से कम नहीं समझता, ऐसी स्थिति में अगर कोई गलती उनसे हो जाती ह, और कोई व्यक्ति उसे उसकी गलती का एहसास कराता है तो ऐसी स्थिति में वह अपने को ज्यादा समझदार मानते हुए गलती स्वीकार नहीं करता ।वही व्यक्ति गलती स्वीकार करता है, जो गलत और सही का जानकार होता है अतः जानकार व्यक्ति या समझदार व्यक्ति हीअपनी गलती को स्वीकार कर सुधार की राह अपनाता है क्योंकि मनुष्य गलती करके जीना नहीं चाहता ।अपनी गलती को सुधार कर सही जिंदगी जीना चाहता है ,क्योंकि सही जिंदगी में ही स्वयं का सुख और औरों का सुख समाया रहता है। अत एव जो मनुष्य गलती स्वीकार कर सत्य मार्ग में चलते हुए , सर्व सुख में अपना सुख अनुभव करते हुए जिंदगी जीता है वही सुखी और महान व्यक्ति होता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
हां इसमें कोई दो राय नहीं है !अपनी गलती स्वीकार करने से ही सुधार की राह पकड़ता है माना कि अपनी गलती स्वीकार करना कठिन है किंतु इतना मुश्किल भी नहीं कठिन इसलिए कि दूसरों के सामने अपनी गलती स्वीकारने में अहम् का भाव सामने आता है और आदमी में हीन भावना का प्रवाह आ जाता है किंतु यदि सही मार्गदर्शक मिल जाता है तो वह अपनी गलती सुधारने की कोशिश तो करता है! जो इंसान अपनी गलती स्वीकार करता है वह पहले से बेहतर हो जाता है उसके अंदर अटूट विश्वास और सद्गुणों का विकास होने लगता है आत्म संतुष्टि मिलती है और वह कामयाबी की ओर बढ़ने लगता है ! अपनी गलतियों से ही तो आगे बढ़ता है जीवन में कोई पेट से ही तो सीख कर नहीं आता ! जीवन के लंबे सफर में मनुष्य अपनी गलतियों से ही सीखता है !बचपन में बच्चे अपनी छोटी-छोटी बात पर झूठ बोलते हैं चोरी करते हैं किंतु वो उनकी नासमझी में की गई गल्ती है! माता-पिता ,गुरु उनके मार्गदर्शक बन उन्हें समझाते हैं !गलतियों को सुधारते वक्त मदद लेने में हमे शर्म नहीं करनी चाहिए! गल्तियों से ही तो आदमी सीखता है! अपनी गल्तियां सुधार कर वह अपनी आगे की जिंदगी सुधारता है !जीवन में सुख और खुशी प्राप्त करना चाहता है सही तरीके से जिंदगी जीने में ही अपनी और औरों की खुशी और सुख निहित रहता है !आज देश में विभिन्न मसलों पर जाने अनजाने जो गलतियां हुई है जैसे पर्यावरण, टेक्नीकली गलती, हमारे न्याय में ,संसद के नियमों में जो भी गलती हुई है उसे भी तो हम सुधार रहे हैं !प्लास्टिक का उपयोग हम अपनी सुविधा के अनुसार करते रहे किंतु उससे होते भयानक नुकसान को देख हमें अपनी गलती का अहसास हुआ और आज प्लास्टिक को नेस्तनाबूद करने के लिए हमने मुहिम खड़ी कर दी है और अपनी गलती सुधार रहे हैं !इसमें हम सब की खुशी है विश्व में सभी पशु पक्षी प्राणी सभी का भला है ऐसी अनगिनत गलतियां हैं ! अंत में कहूंगी अपनी गलती को स्वीकारने में शर्म नहीं आनी चाहिए गलती सभी से होती है स्वीकार करना ही कामयाबी की राह है सत्य की राह पर चल एवं दूसरे के सुख में अपना सुख और खुशी देख महानता की ओर बढ़ता है !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
सच ही है जब हमें हमारी गलती का एहसास होगा तब ही हम सुधरने की सोचेंगे जब यह विचार उत्पन्न होगा तभी ही हम सुधरने की गलती न करने की तरफ़ कोशीश करेंगे । जीवन से संतुष्ट होने के लिए आपको बदलना होगा और खुद को बदलावों के अनुरूप बनाना होगा। अच्छा समाचार? यह आपके लिए और कोई नहीं बल्कि आप खुद ही कर सकते हैं। पहला कदम हमेशा सबसे कठिन होता है, पर दृढ़ निश्चय और सही मानसिकता के साथ आप लगभग हर चीज में जीत हासिल कर सकते हैं। वर्तमान में चीजें कैसी हैं यह आपको मालूम हो सकता है, पर आने वाले समय में क्या छुपा है वो बिल्कुल अलग हो सकता है । खुद के बारे में जानना ही एक मात्र तरीका है जिससे आप अपनी सोच बदल सकते हैं। आपकी सोच को बदलना आपके व्यवहार को बदल देता है। और आपके व्यवहार में बदलाव आपके साथ होने वाली चीजों को बदल देता है। अगर आप एक समस्या को खत्म कर देना चाहते हैं, तो आपको इसे जड़ से खत्म करना पड़ेगा। इसलिए जहाँ चीजों को बदल देने की यह बहुत लम्बी और अनावश्यक प्रक्रिया प्रतीत हो सकती है, पर यह है नहीं (कम से कम अनावश्यक वाला हिस्सा तो बिलकुल नहीं)। किसी भी बदलाव को वास्तव में करने के पहले इस पर (आपकी सोच और आपके मानसिक अवरोध) काबू करना सबसे ज्यादा जरूरी है।मानसिक अवरोध टूटेंगे तब ही सुधरने की प्रक्रिया शुरु होगी। जब हम गलतियां से सिखेगे व सुधरेंगे तो हमारा मन मुस्कुरायेगा हम खुश रहेगे हमारें जीवन के दुख ठीक होगे ,फिर हम उदासनहीं होगे , इसलिए किसी भी तरह की ख़राब स्थिति का सामना करते हुए अपने चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कराहट सजाइए।
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महारू
यह आवश्यक नहीं है।चूंकि डाक्टर की गलतियों को रोगी भोगते हैं।पिता की गलतियों को बच्चे भोगते हैं।उसी प्रकार बच्चों की गलतियों का दण्ड मां-बाप भोगते हैं।पत्नीयों की गलतियों को पति भोगते हैं और पतियों की गलतीयां प्राय: पत्नीयां भोगती हैं।राजनेताओं की गलतियों को देशवासी भोगते हैं।मतदाओं की गलतियों को राष्ट्रभक्त भोगते हैं।दहेज प्रथाओं की गलतियों की पीड़ा कोख से लेकर दुल्हनों तक भोगती हैं।भ्रष्ट नेताओं व भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों की गलतियों का दण्ड राष्ट्र भोगता है।मूर्खों की गलतियों का दण्ड बुद्धिमान भोगते देखे जाते हैं।जो आज नहीं सतयुग द्वापर त्रेता इत्यादि युगों से चलता आ रहा है।
सब से बड़ी उल्लेखनीय विडम्बना यह है कि किसी को भी अपनी गलती दिखाई ही नहीं देती।ऐसे में अपनी गलती स्वीकार कर उसे सुधारने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता।क्योंकि दूसरों की गलतियां की भूलों के कारण अपने-अपने जीवन में उत्पन्न हुए मानसिक विकारों एवं तनावों को कम करने के प्रयासों को भी सुधार की राह का शुभारम्भ कहलाता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
ग़लतियों से सिखना चाहते हैं तो सबसे पहले ग़लतियाँ स्वीकार करना सीखें|यह हमारा सीखने की ओर उठाया गया पहला क़दम होगा |हमारे अंदर इतना साहस होना चाहिए कि हम अपनी ग़लतियों को स्वीकार कर सकें |गलतियों से बचने के बहाने और अपना बचाव बिलकुल नहीं करना चाहिए |गलती करने बाद गलती में सुधार न करना दोबारा गलती के बराबर ही होता है |इसलिए सुधार की राह या बड़प्पन इस में है कि अपनी गलती स्वीकार कर लें|
- सविता गुप्ता
राँची - झारखण्ड
जी हाँ , सुधार की राह अपनी गलती स्वीकार करने से होती है । हर इंसान से गलती होती है । वह ईश्वर नहीं होता है । जो गलती नहीं करे । गलती करना हमारी प्रकृति का अंग है । जो व्यक्ति अपनी गलती को स्वीकार कर लेता है । उसके लिए सफलता के द्वार खुल जाते हैं । कहते भी हैं ठोकर लगने से आदमी खुद सीख लेता है ।इसके लिए सामाजिक , ऐतिहासिक, राजनैतिक आदि मिसाल दे रही हूँ ।भारत के प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी की सरकार ने कश्मीर में लगी 370 की की धारा हटाके ऐतिहासिक गलती को सुधारा है । वहाँ पर भारत एक संविधान एक झंडा स्थापित किया । हमारे देश , कश्मीरवासियों , भारतवासियों के उत्थान और हित में है । अब वहाँ अमन , प्रेम का नजारा दिखता है ।तो यह मिसाल यही बताती है गलती में सुधार करना हमारे विकास को बढ़ावा देती है । भोपाल गैस कांड देश की सबसे बड़ी त्रासदी थी । पीढियां मानसिक उद्विग्नता , शारीरीक रूप से अपाहिज हो गयी । क्योंकि प्लांट का रख रखाव सही नहीं था । इस सामाजिक क्षति की भरपाई कभी नहीं हो सकती है । व्यक्तित्व विकास तभी होता है । जब गलतियों के दंड मिलता है । मेरा शिष्य गौतम आईएएस का प्रशासनिक अधिकारी बना तो उन्हें 1 साल की ट्रेनिग से गुजरना पड़ता है । एक दिन लेक्चर में देर से आया तो उसे उस देरी का पुशअप करने का दंड मिला । यह पुशअप उसके लिए शारीरिक व्यायाम ही था । जो हितकारी भी है । एक बार गांधी जी भी व्यायाम के घण्टे में देर से पहुँचे थे । उन्हें वक्त का पालन न करने के लिए दण्ड मिला था । तब से गांधी जी कभी भी कक्षा में देर से नहीं पहुँचे । यह गलतियाँ हमें अपने आपको सुधारने का अवसर देती हैं ।गलतियाँ करके अपने में सुधार करना है। जो इंसान को बेहतर बनाती है । इतिहास में कई मिसाल हैं । जिन व्यक्तियों ने अपनी गलतियों का मंथन नहीं किया था। उन्हें असफलता ही हाथ लगी है । मोहम्मद गोरी ने 17 बार सोमनाथ के मंदिर पर आक्रमण किया था । 18 वीं बार गोरी सफल होगया । गोरी ने अपनी गलतियों से सबक लिया । विजय मिली । हर बच्चा , छात्र गलतियों से सीखता है । सीबीएससी की कक्षा 9 वीं के छात्रों की कभी - कभी मैं श्रुतिलेखन ले लेती थी । तो अधिकतर छात्रों की वर्तनी की ग़लतियाँ रहती थी । फिर उनकी ये गलती दोबारा नहीं हो ।उन शब्दों को लिख के सुधार करवाती थी । इस तरह छात्र शुद्ध हिंदी शब्द लिखना सीख गए । उनके बोर्ड परीक्षा में मैरिट में आने की संभावना बढ़ गयी । हमें अपने अंदर गलतियों को स्वीकार करने की मनोवृत्ति को बढ़ाना होगा । जिससे भविष्य में आगे बढ़ने की राह आसान हो जाती है । अगर हम किसी काम को करने में बार - बार गलती हो रही है ।तो हमें सुधार करने आवश्यकता है । गलती के मूल में जा कर कारण खोजना होगा । फिर उस कारण का निराकरण करना होगा ।
मैं कोई गलती करती हूँ । तो मैं उसे स्वीकार कर लेती हूँ ।
लोग क्या कहेंगे कि मानसिकता को नहीं मानती हूँ । दिल का बोझ उतर जाता है । गलतियाँ हमें सिखाती हैं । हमारे जीवन के सन्देश , सबक का काम करती हैं । गलती करने के बाद असलियत , सही चीजों की जानकारी मिलती है । गलतियों से सीखना हमारे कैरियर को उन्नत पारदर्शी बनाता हैं।हमारे अंतः करण को पवित्र करती है ।जी अज्ञानी लोग हैं वे अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं करते हैं । जो जीवन को संकीर्ण बनाता है । गलती स्वीकार करना हमारे चरित्र , साकारत्मक पक्ष का मानदण्ड है । अंत में मैं दोहे में कहती हूँ : -
जीवन में जन -मन करे , गलती को स्वीकार ।
बनके यह मंजू सबक, विकास को दे धार ।
- डा मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
गलती जब समझ में आये और उसे सही करने की प्रवृति से स्वीकृति हो तभी सुधार की राह बनती है। गलती समझ आने पर पहले पछतावा होता है, परंतु जो गलती मानने का दिखावा करते हैं उन्हें समझदारी तो क्या अपनी गलती का आभास भी नहीं होता । सच्चे दिल से गलती समझने पर अवश्य स्वीकार करना चाहिए। यह आपकी मानसिकता को नई ऊंचाई देती है, साथ ही आप का अस्तित्व भी ऊंचा बनता है । गलत काम किसी भी वक्त हो गलत ही होता है ।वास्तव में वहां से ही जिंदगी की शुरुआत है ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
सुबह का भूला यदि शाम घर वापस आ जाये या कहूं अपनी गलती मान ले तो उसे भूला नहीं कहते ।ठीक यही हाल सुधार का है ।हम जितने जल्दी सुधार कर लें उतना ही हमारा रास्ता आसान व कम हो जायेगा ।गलती न केवल हमें अपने रास्ते से भटकाती है अपितु कई बार मंजिल दूर करती है या मंजिल पर पहुँचने ही नहीं देती ।अतः सुधार की राह जितनी जल्दी पकड़ ली जाये उतना ही हितकर है और यही गलती स्वीकार कर उसकी पुनरावृत्ति न हो सकने आधार भी है ।
- शशांक मिश्र भारती
शाहजहांपुर -उत्तर प्रदेश
जी हाँ, जब हमको अपनी गलती समझ में आ जाए तो बिना न नुकुर किए तुरंत सच्चे हृदय से गलती को स्वीकार कर लेना चाहिए व सम्बंधित व्यक्ति से माफ़ी भी माँग लेना चाहिए ।
गलती करना बुरा नहीं होता क्योंकि जो कुछ करेगा उससे ही तो गलती होगी । अपनी गलतियों से सीखना व भविष्य में ऐसे दुहराव न हों इसका ध्यान रखना ही सफल व्यक्ति की निशानी है । इसका श्रेष्ठ उदाहरण ऋषि बाल्मीकि हैं उन्होंने बहुत समय तक डाकू के रूप में जीवन व्यतीत किया किन्तु जब नारद जी ने उनको गलती का अहसास करवाया तो उन्हें अपनी भूल पता चली और वे सब कुछ छोड़ के राम राम मंत्र का जाप करने लगे किन्तु उनके मुख से मरा मरा ही निकल रहा था पर चूँकि उनकी सोच सच्ची थी; राह नेक थी इसलिए उन पर भगवान की कृपा हुयी और वे स्वयं को बदल सके व भविष्य में रामायण के रचयिता बनें । इसी तरह डाकू अंगुलीमाल को भी भगवान बुद्ध ने सही रास्ता दिखाया और वो खूँखार डाकू होते हुए भी अपने में बदलाव ला सका तथा गाँव के लोगों की मदद करने लगा और बाद अहिंसक नाम से जाना गया। कहने का तात्पर्य है जब जागो तभी सवेरा की राह पर चलते हुए अपनी भूल को स्वीकार कर बीती ताहि बिसार देय, आगे की सुधि लेय को चरितार्थ करते हुए सच्चे मन से नेकी के कार्यों में जुट जाना चाहिए ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
गलतियो को स्वीकार लेने से ही सुधार की गुंजाइश बन जाती है । सुधारात्मक राह पर चलने से सफलता प्राप्त होती है तो एक संतुष्ट होने की भावना आ जाती है और मन खुश हो जाता है ।बाल्मीकि अगुलीमाल की जीवनी इसके उदाहरण है ।व्यवहारिक तौर पर हर समय परिवार समाज देश मे छोटे बडे का सिलसिला जारी है दोनो एक दूसरे की गलतियो को स्वीकार करते है और आनेवाले पीढ़ी मे सुधार की उम्मीद रखते प्रयासरत होते है इसलिए तो हर परिवार की नस्ले दिनोंदिन ऊपर उठती जा रही है। आदरणीय प्रधानमंत्री मोदी जी चाय बेचने से जिन्दगी की शुरुआत की और मुकाम की इस ऊंचाई पर जीत हासिल की । हर दिन समाचार पत्र मे ऐसी खबरे पढ़ने को मिलती है कि पानवाला रिक्शा चालक के बच्चे ने आई ए एस की परीक्षा मे सफलता हासिल की ।यह सभी गलतियो को स्वीकार कर सुधार का ही तो परिणाम है।अज्ञानता गलतफहमी के कारण मन मे भ्रामक विचार जो पनप गये है उन्हे सुधार कर ही तो नये सफल मुकाम मिलते है
- डाँ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
" मेरी दृष्टि में " सुधार और गलती ऐसे दो शब्द है । जो एक दूसरे के विपरीत है । फिर भी सार्थक का निवारण करता है। बिना गलती के सुधार की शुरुआत नहीं होती है बाकी लोगों की अपनी अपनी सोच है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
09 फरवरी 2020 को सिरसा - हरियाणा में सम्मानित होते हुए बीजेन्द्र जैमिनी
समग्र सेवा संस्थान , सिरसा द्वारा बीजेन्द्र जैमिनी को " श्रीमती शाँति देवी मातुश्री - साहित्य गौरव सारस्वत सम्मान " से सम्मानित किया गया है । सम्मानित करने वालें प्रो. आर.पी.सेठी कमल ( कार्यक्रम की अध्यक्षता ) , श्रीमती उषा सेठी , डाँ. शैलजा छाबड़ा ( विशिष्ट अतिथि ) , श्री भूपेश मैहता ( मुख्य अतिथि ) , मिसेज इण्डिया कंचन कटरिया , डाँ. राजकुमार निजात ( संस्था के अध्यक्ष ), मधुकान्त अनूप बंसल आदि है ।
बीजेन्द्र जैमिनी का सम्मान
निमंत्रण पत्र
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