क्या अच्छा इंसान कभी मतलबी हो सकता है ?

मतलबी इंसान कभी भी अच्छा नहीं हो सकता है । क्योंकि अपने फायदा के लिए कभी भी ,किसी का भी नुकसान करने से पीछे नहीं रहते हैं । यही मतलबी इंसान की पृवत्ति होती है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है। इसी पर आये विचारों को देखते हैं :  -
अच्छा इंसान मतलबी नहीं होता, बस दूर हो जाता है उन लोगों से जिन्हें उसकी कदर नहीं होती। आज के जमाने में ज्यादातर लोग मतलबी ही होते हैं। हर कोई अपने मतलब के लिए काम करता है। अपनी जरूरत के हिसाब से दोस्ती करता है। आजकल तो इंसान बिना मतलब के किसी से बात तक नहीं करता।  लेकिन फिर भी मुझे लगता है कि अगर दुनिया में बूरे लोग हैं तो बहुत से अच्छे लोग हैं। वह लोग कोई भी रिश्ता मतलब के लिए नहीं बल्कि प्यार के लिए बनाते हैं। वह हमारे हर अच्छे-बुरे समय में हमारे साथ खङे होते हैं, अपना मतलब निकल जाने पर भागते नहीं है। बस जरूरत है तो हमें उन लोगों को समझने की और पहचानने की। हमें हर किसी पर विश्वास करके बार बार अपना दिल नहीं दुखाना चाहिए। हमें अपने जीवन में कोई ना कोई अच्छा इंसान तो मिल ही जाता है।
प्रश्न यह है, कि क्या आज के दौर में भी सच्चे इंसान हो सकते हैं? क्योंकि आजकल सभी लोग मतलबी होते हैं। मेरा इस संबंध में यह विचार है, कि पहले दुनिया पर दोष लगाने से हमें यह देखना पड़ेगा, कि हम कैसे हैं ? यदि हम ठीक है, अच्छे है, तो निश्चित रूप से हमें अच्छे लोग ही मिलेंगे और यदि हम बुरे हैं, हम अवसरवादी है और दूसरों से हम यह चाहते हैं, कि वह निस्वार्थ भाव से दोस्ती रखे, तो मुझे लगता है, कि यह हमारी बेईमानी है। जैसा हम होते हैं, हमें वैसा ही सब कुछ मिलता है। वह अलग की बात है, कि हम अपने लिए अलग पैमाना रखते हैं और दूसरों को देखने के लिए अलग, जबकि जिन उम्मीदों को हम दूसरों से करते हैं, उन उम्मीदों पर पहले ही हमें खरा उतरने की आवश्यकता प्रतीत होती है। लेकिन हम ऐसा नहीं करते हैं। हम दूसरों पर दोष लगाते हैं, लेकिन अपने लिए उन्हें चरणों को जीवन में नहीं ला पाते हैं।
यही कारण है, कि हम निराश होते हैं। आज कुछ बदला है, न कल कुछ बदला था, जैसा आज है लगभग वैसा ही कल था और कल से आज बेहतर ही होता है। हर जगह हर, समय लेकिन जैसे-जैसे समय बढ़ता जाता है, बदलता जाता है। हमारा दृष्टिकोण भी बदलता है और आज के युग में हम निहायत स्वार्थी हो गए हैं, लेकिन हम इस चीज को स्वीकार नहीं करते हैं। हम दूसरों पर दोष लगाते हैं, कि अगला ठीक नहीं है, जबकि होता है इसका उल्टा है। अच्छा इंसान शब्द कहना तो बहुत आसान है, सुनने में भी बहुत अच्छा लगेगा, लेकिन वास्तव में इसका पालन करना बहुत कठिन है। आज के युग में हालांकि यह भी सत्य है, कि बिना दोस्ती के बिना मित्रता के आजकल का जीवन बहुत ही निराश हो जाएगा, तो यह आवश्यक है।की अच्छे इंसान से दोस्ती की जाऐ।
अच्छे इंसान से दोस्ती तो आवश्यक है और यह आज से नहीं प्राचीन काल से चली आ रही है। न जाने कब से। जब से हमने सोचने समझने की शक्ति का आभास किया। तब से दोस्ती जैसी भावना पंछी है और आज भी चल रही है। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया दोस्ती के मायने भी बदलते गए, तौर तरीके बदलते गए उसका आधार बदलता गया और आज जो हम देख रहे हैं, वह निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है, कि आज का कोई रिश्ता , रिश्ता  नहीं है। वह तो एक अवसर है, एक आकर्षण है और एक लालच है, इसी में इसी में अच्छा इंसान सिमट कर रह गया है। बहुत कम ही लोग हैं प्रतिशत में, जो सही इंसान मायने को समझते हैं और उसके धन दौलत इत्यादि को ना देखें। हम उसके स्वभाव, उसकी हमारे प्रति भावना और उसका समर्पण हमें देखना चाहिए, यही रिश्ते निभाने के कुछ तरीके हैं, जिनको हम अपना कर और दूसरों में देख कर दूसरों पर आजमा कर स्वस्थ संबंधों का नाम दे सकते हैं। लेकिन आजकल इसके विपरीत ही सब कुछ हो रहा है, फिर भी आत्मीय रिश्तो ,  जैसे शब्द को बदनाम करने की बात की जा रही है। निःस्वार्थ इंसान में कोई मतलबी नहीं होता है, लेकिन अगरपहचान  हो भी तो सही से, हम तो अपना मतलब निकालने के लिएपहचान कर रिश्ते  बनाते हैं, किसी से और जब हम से भी आगे निकल जाता है, वह हमसे पहले अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेता है, तब हम यही कहते हैं कि आजकल आदमी को पहचानने  का युग नहीं है। इस युग में तो सभी मतलबी हैं, जबकि ऐसा नहीं है हम जैसा होते हैं, वैसा ही हमें सब कुछ मिलता है। इस बात को ध्यान में रखना चाहिए।मेरा तो विश्वास यही है, बाकी उस पर विचार किया जाएगा। अच्छा इंसान मतलबी नहीं होता है वह जीवन में बहुत बार ठगा जाता है । धोखा खाता है पर अच्छाई का दामन नहीं छोड़ता । फिर हम कैसे है हमारा आचरण , व्यवहार कैसा है , हमारी सोच पर  सब निर्भर करता है । 
हम अच्छे तो जग अच्छा 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
एक अच्छा इंसान कभी मतलबी भी हो सकता है ।यदि वो अच्छा इंसान है तो उसके मतलबी होने पर भी किसी प्रकार की तकलीफ या परेशानी नहीं होगी ।एक अच्छा इंसान अपने मतलब के लिए किसी को नुकसान नहीं पहुँचा सकता।अपने लिए मतलबी होना या अपने लोगों के हित खातिर मतलबी होना एक प्रकार का स्वाभाविक इंसानी स्वभाव होता है।इसके बावजूद एक अच्छा इंसान कभी भी अपने स्वार्थ की खातिर किसी को तकलीफ पहुँचाने के पूर्व एक बार उसके बारे में अवश्य ही सोचेगा ।
  -  रंजना वर्मा
रांची - झारखण्ड
      मतलब अर्थात स्वार्थ और मतलबी अर्थात स्वार्थी मात्र शब्द हैं।जिन्हें बुद्धिमान लोग लोकतंत्र के चारों स्तम्भों के प्रत्येक तंत्र में अपनी सुविधा अनुसार प्रयोग करते हैं।
      जिनमें राष्ट्रभक्ति भी एक स्वार्थ ही है।बिना स्वार्थ जीवन चल ही नहीं सकता।सुबह उठते ही हम अपने प्राकृतिक नित्य कर्मों को निपटाते हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जीवन में जितनी अनिश्चितता है, उतनी ही जीवन-शैली की भी। कब कौन क्या, कैसा हो जाये,यह कहना स्थायी नहीं हो सकता। जीवन का हर पल और हर डगर नया होता है। सूक्ष्मता से समझने की कोशिश करें तो शरीर की कोशिकाएं भी प्रतिपल बदलती चलती हैं । जो शरीर की आन्तरिक और बाह्य रूप को भी प्रभावित करती हैं। इस वजह से स्वभाव में भी बदलाव आ सकता है। इसके अनेक उदाहरण होते हैं,जिन्हें हम नजरअंदाज कर देते हैं। व्यवहारिक जीवन में हमने अपने अनेक परिचितों में यह बदलाव पाया है। यही वजह है कि हमारे हरेक से संबंध सदैव एक से नहीं रह पाते। कभी मधुर संबंध टूट जाते हैं तो कभी टूटे संबंध जुड़ जाते हैं। जो समझदार होते हैं,इस बदलाव की प्रक्रिया में सजग और सावधान रहते हैं और परिस्थितियों में भी स्थिर रहते हैं,यही श्रेष्ठता है। लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं,जो समय के बहाव में बह जाते हैं और स्वभावगत बदल जाते हैं।बुरे , अच्छे और अच्छे ,बुरे स्वभाव के वाले होते देखे गये हैं। मतलबी होना एक अवगुण है, यदि कोई अच्छा इंसान ये अवगुण धारण कर लेता है तो इसमें अचंभित न होकर ,दुखद कहना ज्यादा उचित होगा। 
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
अच्छे का माप-दंड क्या है? यह हर व्यक्ति के लिए अलग होता है । अच्छा स्वभाव से होता है , उससे यह कतई नहीं कहा जा सकता है कि वह मतलबी नहीं होगा । मतलबी का अर्थ है अपने बारे में सोचना । अपने  लिए सोचना गलत नहीं है । मनुष्य का दिमाग जितना भी काम करता सब के पीछे स्वार्थ होता है। अच्छा हो या बुरा , यहतो मानव प्रकृति  है ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
वो अच्छा ही क्या जो मतलबी हो,अतःअच्छा इंसान कभी मतलबी हो ही नहीं सकता। वक्त और हालात ऐसा भ्रम अवश्य पैदा कर सकते हैं,लेकिन अच्छा इंसान मतलबी नहीं हो सकता।    
- नरेन्द्र आर्य
सम्पादक :  चरित्रवान पत्रिका
गाजियाबाद : उत्तर प्रदेश
इस दुनिया में हर तरह के लोग मौजूद हैं। इसलिए सच्चेइंसान  भी मिल सकते हैं और निश्चित रूप से मिल सकते हैं। हर व्यक्ति मतलबी नहीं होता है और अच्छे इंसान तो बिल्कुल भी मतलबी नहीं होता वह तो धोखे खाता रहता है नेकी करता रहता है । सच्चा इंसान  तो दिल से रिश्ता बनाता है। आप अपने सही आदमी  को मतलबी बोल रहे हो। पहले ये तो देखो आपने उसे क्या माँगा वो उसने आपको नहीं दिया और उसने आपसे माँगा वो आपने उसे नहीं दिया।अच्छा इंसान  मतलबी कभी नहीं होता है। अपने दिल से कभी ये भी सोच लिया करो कि हो सकता है कि वो किसी मुसीबत में तो और आपसे बात नहीं करता हो। रिश्ता वो नहीं रखाता है तो आप रखो। अच्छे इंसान में कोई मतलबी नहीं होता है, लेकिन अगररिश्ता है तो  हो भी तो सही से, हम तो अपना मतलब निकालने के लिए रिश्ते  बनाते  हैं, किसी से और जब हम से भी आगे निकल जाता है, वह हमसे पहले अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेता है, तब हम यही कहते हैं कि आजकलरिश्ते  करने का युग नहीं है। इस युग में तो सभी मतलबी हैं, ऐसा नहीं है । आज भी दुनिया अच्छे लोगों से भरी पड़ी है । अच्छे लोग है तभी सँसार चल रहा है । प्रतिशत कम हो गया है अच्छे इंसानो का परन्तु अभी अभी निःस्वार्थ  सेवा भावी कल्याण करने वाले हर समय मददत को तैयार लोग मिलते है वो कभी मतलब के लिये काम नहीं करते है ।
- अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
अच्छे इंसान सती और परिस्थिति के अनुसार नहीं बदलते हैं परंतु कुछ लोग अपने आप को अच्छे होने का ढोंग करते हैं और वे लोग कथनी कुछ और करनी कुछ होती है वक्त के अनुसार बदल जाते हैं स्वार्थी होते हैं दुनिया में ऐसे बहुत लोग मिल जाएंगे आज के परिवेश में यह समझना कि कौन अच्छा है और कौन बुरा बहुत मुश्किल है मानवीय सभ्यता का इतिहास हजारों वर्षों पुराना रहा है इसमें कई प्रगति यात्रा और वैज्ञानिक उपलब्धियां भी साक्षी रहे हैं जैसे जैसे उपलब्धियां बढ़ती गई वैसे भी रोजगार की समस्या भी बढ़ती गई रोजगार के स्थान पर नौकरियां नहीं है और इसी आभाव के कारण संबंधों में भी मशीनीकरण हो गया है मशीनीकरण के साथ-साथ व्यक्तित्व का निर्माण भी नहीं हो पा रहा है आज मानव इतना मतलबी हो गया है कि वह अच्छे बुरे का खुद को भेज नहीं कर पा रहा है नकारात्मक दृष्टिकोण हो गया है स्वयं के लिए कुछ ज्ञान और प्रवचन और उद्देश्य केवल दूसरों के लिए ही रह गया है जो जितनी अच्छी बातें करता है गुड की तरह वह उतना ही मतलबी इंसान होता है अच्छे बुरे का भेद कर पाना बहुत मुश्किल है। आजकल घर परिवार भी टूट रहे हैं और इस स्वार्थ पन के कारण बाप बेटे का नहीं है भाई भाई का नहीं है मां बेटे का नहीं आदि घटनाएं और समाज में अराजकता फैली हुई है आज के समाज में पहले जैसा परिवेश भी नहीं रहा।
- प्रीति मिश्रा
 जबलपुर - मध्य प्रदेश
सबसे पहले तो हमें यह समझना होगा कि मतलबी किसे कहते हैं, क्योंकि स्वयं के विषय में सोचने का अर्थ कभी मतलबी होना नहीं हो सकता। हां, सिर्फ और सिर्फ अपने ही बारे में सोचने वाला इंसान मतलबी होता होता है। और तब हम कह सकते हैं कि अच्छा इंसान कभी मतलबी नहीं हो सकता है। एक अच्छा इंसान सदैव स्वयं के साथ साथ अपनों और अपने समाज के हित के विषय में अवश्य सोचता है और तभी किसी भी कार्य के लिए अग्रसर होता है। कभी-कभी तो ऐसा इंसान दूसरों की भलाई के लिए अपना नुकसान भी सहर्ष सह लेता है किंतु अपनी खुशी के लिए किसी अन्य  का अहित कभी नहीं होने देता है।
                       - रूणा रश्मि
                      राँची - झारखंड
अच्छे इंसान से तात्पर्य सत्यता, पवित्रता, दया ,क्षमा, सेवा, परोपकार, विनम्रता, स्वभाव में कोमलता , सहिष्णुता, अहिंसा आदि गुणों का स्वामी ।
और बुरे इंसान से तात्पर्य क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष,स्वार्थ, घृणा, कपट, झूठ, निंदा, हिंसा आदि अवगुणों का स्वामी  । यहाँ यह बात विचारणीय है, कि किसी भी एक व्यक्ति में एक साथ अनेक गुणों का होना दुर्लभ होता है । अधिक गुणसम्पन्न व्यक्ति को ईश्वर की उपमा दी जाने लगती है ;  बावजूद इसके, व्यक्ति में अनेक गुणों के होने के साथ कोई न कोई अवगुण तो होता ही है, जो उसे देवत्व से पृथक करता है । अवगुणो के विषय में भी यही अवधारणा है । अवगुणों की मात्रा अधिक होने पर व्यक्ति को राक्षस की संज्ञा दी जाने लगती है । यहाँ प्रश्न यह है कि- क्या अच्छा इंसान कभी मतलबी हो सकता है ?
इसका आदर्श उत्तर तो होगा - *नहीं* ।
किन्तु गहराई में जाने पर ज्ञात होता है कि अच्छा इंसान भी कभी-कभी  स्वार्थी हो सकता  है । जैसे कई लोग ईश्वर आराधना किसी विशेष सिद्धि या उपलब्धि की चाह में करते हैं । माता-पिता पालन पोषण के बदले में, बच्चों से इस बात की आशा रखते हैं कि वह बुढापे में उनकी सेवा करे । अप्रत्यक्ष रूप से यह स्वार्थ ही है; पर इसके बावजूद भी ईश्वर भक्त और माता-पिता अच्छों की श्रेणी में आते हैं । कहने का तात्पर्य यह कि- मतलबी होकर भी इंसान अच्छा हो सकता है क्योंकि एक स्वार्थी व्यक्ति विनम्र भी हो सकता है, मृदुभाषी भी हो सकता है,मददगार भी हो सकता है और अहिंसक भी । किन्तु फिर भी, यह बात सर्वमान्य है, कि सारी बुराइयों का मूल लोभ और स्वार्थ ही है । स्वार्थ सबसे पहले उत्पन्न होता है और उस स्वार्थ के कारण ही ईर्ष्या, द्वेष, छलकपट, घृणा चापलूसी, चोरी और झूठ का जन्म होता हैं और स्वार्थपूर्ति न होने पर अंत में क्रोध, अपशब्द , कटुता और हिंसा तक की स्थिति आ जाती है और इतने सारे अवगुणों के प्रकट होने पर, इंसान अच्छा कहाँ रह जाता है ? उसका स्वार्थ ,उसे बुराइयों की ओर ढकेल देता है । अतः कहा जा सकता है कि- एक अच्छा इंसान कभी भी मतलबी नहीं हो सकता ।
- वंदना दुबे 
  धार - मध्य प्रदेश  
 इंसान की परिभाषा इस तरह  है।अच्छा इंसान  उसे  कहते है जो स्वयं गलती नही करता और दूसरो की गलती को स्नेह पूर्वक एहसास कराकर समझा देता है।इस परिभाषा के अनुसार देखते है ,तो अच्छा इंसान मतलबी नही होता।बल्कि  हर इंसान का शुभ चाहते हुए ,उसका सहयोगी, सहकारिता,सहभागी बन जाता है। अचछा इंसान सभी से प्रेम करता है।उसमे अनन्यता  का भाव होता है।उसके लिए कोई अन्य नही होता।सब अपने होते है।ऐसा भाव रहता है।अतः ऐसा अच्छा इंसान मत लबी नही होता है।और ऐसा भाव वाला इंसान नही होता है। वह मयलबी हो सकता है।अच्छा इंसान मत लबी नही होता।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
सर्वप्रथम हम इंसान किसे कहते हैं । यह जाने ।मनुष्य , मानव , इंसान जिसमें बुद्धि, विवेक , प्रज्ञा , चेतना होती है । इंसान से भाववाचक संज्ञा इंसानियत बनी है । इंसानियत इंसान में हो जैसे  अच्छे गुण  ईमानदारी , , अहिंसा , मैत्री , प्रेम , करुणा आदि सभी सद्गुण मनुष्य में विद्यमान हो । उसकी सोच , मानसिकता में स्वार्थ नामक हीं भाव नहीं होता है । वह स्वार्थ से दूर रहता है । परहित के बारे में सोचता है । जिस तरह पानी में तरलता , सूरज में तपन उसका अस्तित्व होता है उसी तरह  मानवता मानव का अस्तित्व है । मानवता मानव की प्रकृति है । लेकिन मानव जब स्वार्थी , मतलबी हो जाता है । तब  दुर्गुण अमनावियता हावी हो जाती है । इन्हीं गुणों से गढ़ा अच्छा इंसान कभी भी मतलबी नहीं हो सकता है । ऐसे इंसानों की साधना से चेतना ऐशिय जाग जाती है । वह हर प्राणी में ईश का रूप देखगा । वह ऊँच - नीच , अमीर  - गरीब , दलित , वंचित की दीवारों को नहीं खींचेगा । सब इंसान समता की नजरों से देखेगा । सत्यं , शिवं , सुंदरं की भवनाओं से समाज को सुंदर बनाएगा । ऐसा इंसान कभी भी मतलबी नहीं होता है ।अच्छे इंसानों का कथनी करनी में अंतर नहीं होता है । इनका दिल माखन की तरह कोमल , पानी की तरह पारदर्शी होता है । इनके स्वभाव में इंसानियत घुली रहती है । विषम परिस्थितियों में अपने स्वभाव के अनरूप ही काम करेंगे । 
 मर्यादा पुरुषोत्तम राम ,  राजा सत्यवादी हरिश्चंद्र , धर्मनिष्ठ युधिष्ठर ,  को कौन नहीं जानता है । इनके नामों के साथ ही इनके गुणों को जोड़ा गया है । इन अच्छे चरित्र वाले मानव ने अपने समाज , मातृभूमि देश के लिए मैं से ऊपर उठ कर दूसरों  के लिये अपना मान कर काम किया है । अच्छा इंसान  दूसरे के दुख को अपना दुख मानता है ।  श्री राम ने दलित शबरी के झूठे बैर खा के  प्रेम ,  समरसता की मिसाल बने ।  माता कैकयी के वनवास जाने के वचनों को सुन के राम ने अपने कर्तव्य का पालन ताउम्र किया । राम ने निस्वार्थ  हो के समाज की बुराइयों को दूर करके अच्छाइयों से समाज को जोड़ा । अच्छे इंसान अधर्म पर धर्म का परचम फैलाते हैं । 
महात्म।ा गांधी को  महामानव की मिसाल दूँ तो अतिशयोक्ति नहीं है । मानवीय गुणों को अपना कर समाज ,  राष्ट्र उत्थान के लिए देश सेवा की ।  यूँ कह सकती हूँ  इंसानियत से गढ़ा  हर महापुरुष , संत मतलबी नहीं होता है । इनकी सोच , वाणी में अच्छाइयों से  भरी  होती  हैं । एक प्रसंग सटीक है -  एक साधु गंगा के किनारे बैठा था ।  वहीं उधर से बिच्छू को गंगा की धार से जाने पर साधु ने बचाया  तो बिच्छू ने डंक मारा ।  ऐसा साधू ने 3 बार बिच्छू को बचाया । तीनों बार बिच्छू ने डंक मारा । दोनों प्राणियों ने अपना धर्म नहीं छोड़ा । साधु ने अपनी इंसानियत का धर्म , सदवृति का त्याग नहीं किया और बिच्छू ने अपनी कुवृत्ति, दुष्कर्म को नहीं छोड़ा । सज्जन , अच्छे इंसान साधु की तरह होते हैं । मतलबी इंसान बिच्छू की तरह होते हैं । समय - समय पर  मतलबी इंसान स्वार्थ के डंक मार के समाज , मानव जाति को लीलते हैं ।
आज इक्कीसवीं सदी स्वच्छंद यौनाचार , हिंसा , अश्लीलता सांस्कृतिक एवं नैतिक पतन के संग स्वार्थी रिश्तों। के सूत्रों से जुड़ी हुई है । आज स्वार्थी इंसान से इंसान काम पड़ने ही उतना ही मुस्कुराता है । जितना उसका काम होता है । जब मतलब सिद्ध होता है । तब तक साथ निभाता है । फिर वह उस रिश्ते से नो दो ग्यारह हो जाता है । ऐसे मतलबी इंसान की आँखों सूअर का बाल चढा होता है ।आज हमारा समाज  , देश अच्छे इंसानों की इंसानियत  निस्वार्थ हाथों से सुरक्षित है । हमें जागरूक होना होगा और समाज को जागरूक करना होगा । स्वार्थ से रँगी जिंदगी में स्याह अँधेरा जैसी अमानवीयता का नकाब ओढ़े होती  है । उन्हें ईश्वर ऐसी ठोकर मारता है । जहाँ विनाश और निराशा का अँधेरा ही साथ रहता है । इंद्राणी मुखर्जी इस प्रसंग के सटीक है । 
इसलिए हमें खुद अच्छा इंसान बनके इंसानियत के दीप अंधेरी राहों जलाते रहना है । अंत में मैं दोहे में कहती हूँ
मानवता के धर्म ने   , किया  ईश्वर दर्शन ।
पर  दुख को मान खुद का , करें वंदन अर्चन ।
 - डा मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
बिल्कुल हो  सकता है ।यह समय का खेल है समय क्या और कब क्या न करा दे कोई  कह नहीं सकता है ।राजा नल सती सावित्री  सुदामा मीराबाई वीपी सिंह राजीव गांधी वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का जीवन समय अनुसार जिस प्रकार बदला कहाँ से कहाँ पहुँच गए ।ठीक यही हाल अच्छे से अच्छे इंसान का है कि समयकी गति उसको कहाँ ले जाती है वह मतलबी होगा या नहीं ।
- शशांक मिश्र भारती
 शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
अच्छाई  और  बुराई  साथ - साथ  चलती  है,  एक  की  उपस्थिति  में  ही  दूसरी  का  महत्व  है ।  एक  इंसान  में  ये  दोनों  होती  हैं  ।  कोई  भी  इंसान  न  तो  पूर्णरूप  से  अच्छा  होता  है  न  बुरा  ।  परिस्थितियां  इंसान  को  अच्छा   या  बुरा  बनाती  हैं  ।  ऐसे  कई  उदाहरण  हैं  जो  यह  बताते  हैं  कि  जो  कभी  बहुत  अच्छा  इंसान  था  वह  बुरा  बन  गया  और  जो  बुरा  था  वह  अच्छा  ।  अच्छा  इंसान  " सर्वे  भवन्तु  सुखिन........।" वाली  भावना  रखता  है  ।  वह  स्वयं  का  नुकसान  होने  पर  भी  मतलबी  नहीं  बनता  ।
         ऐसे  लोग  स्वयं  का  घर  फूंक  दूसरों  की  भलाई  करने  में  लगे  रहते  हैं  ।   वर्तमान  समय  में  अच्छे  इंसान  तो  मिल  जाएंगे, जिन्हें  मतलबी  नहीं  कहा  जा  सकता   मगर  फिर  भी  वे  पहले  स्वयं  का,  परिवार  का  सोचेंगे  बाद  में  दूसरों  का  । 
       - बसन्ती पंवार 
         जोधपुर  -  राजस्थान 
अच्छा इंसान वो  है जो सदैव परोपकार की भावना से कार्य करता है । जिसका उद्देश्य येसा होता है -
परहित सरस धरम नहि भाई
पर पीड़ा सम नहि अधमाई 
जिसे दूसरों के सुख में अपना सुख व दुख में अपना दुख नजर आता है ।  अधिकांश लोग जब तक कोई व्यक्ति उनका लाभ पूरा करते रहे तो उसे अच्छा कहते हैं किंतु जैसे ही वो जो सही होता है वो करे तो उसे मतलबी कह दिया जाता है । मेरी दृष्टि में मतलबी वे लोग होते हैं जो स्वार्थ की भावना से  रिश्ते बनाते हैं और जैसे जी उनका कार्य रुका तो तुरंत दूसरे पर दोषारोपण करने लगते हैं । मतलब निकल गया पहचानते नहीं । अगर कोई वास्तव में अच्छा तो वो हर परिस्थिति में समभाव रहेगा तथा जिसे उसकी सबसे अधिक जरूरत होगी उसकी मदद करेगा ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
हां कभी-कभी हम अच्छे होने के बावजूद कई बार धोखे के शिकार हो जाते हैं बार-बार धोखे खाने की वजह से हमें ऐसा लगता है शायद लोग हमें बेवकूफ समझ हमारी अच्छाई का फायदा तो नहीं उठा रहे हैं उसका भी मन वितृष्णा से भर जाता है और क्षणभर को उसकी सोच भी बदल जाती है किंतु यह बात तो सच है कि आदमी सीख लेकर फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाता है ! अच्छे इंसान यदि मतलबी हो भी जाते हैं किंतु वह हमसे दूर नहीं जाते उनकी इंसानियत में माफी होती है यदि मतलबी होते भी हैं तो अपने लिए नहीं अपने परिवार, देश और स्वयं की दूसरों के प्रति हित की भावना होती है !उसके भले के लिए कभी-कभी मतलबी हो जाते हैं दूसरों की भलाई के लिए कुछ समय के लिए वे अपनी अच्छाई के त्याग का कड़वा घूंट भी पी जाते हैं ! माता-पिता भी बच्चों को सबक सिखाने के लिए कठोर बन जाते हैं ताकि भविष्य में उन्हें दुख का सामना ना करना पड़े समाज में अच्छे लोग और मतलबी लोग भी होते हैं किंतु संस्कारी मतलबी बन कर भी दूसरों का भला करता है और क्षमादेयी होता है !
 अंत में कहूंगी कभी-कभी बुराई को सबक सिखाने अथवा सही राह दिखाने के लिए मतलबी बनना पड़ता है !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
जो मतलबी हो उसे हम अच्छा कैसे कह सकते हैं? कभी कभी कुछ गलतफहमियां पैदा हो जाती हैं कि हम जिस पर विश्वास करते हैं उसे ही ग़लत समझ लेते हैं परंतु समय आने पर अच्छे इंसान की सच्चाई पता चल ही जाती है। सचमुच जो दिल से सच्चा है, अच्छा है वो कभी मतलबी नहीं हो सकता
- डॉ सुरिन्दर कौर नीलम
रांची - झारखंड

" मेरी दृष्टि में " एक अच्छा इंसान भी मतलबी हो जाऐं तो जीवन में विश्वास फिर किस पर किया जाऐं ? जबकि जीवन  विश्वास पर चलता है । मेरा एक मित्र के एल आहुजा अक्सर कहता है कि जीवन में सिर्फ एक अच्छा इंसान मिल जाऐ । जो पत्नी , पति , मां , बाप , पुत्र या अन्य किसी रूप में या मित्र हो तो फिर भगवान की भी आवश्यकता जीवन में नहीं रहती है । मैं इसे रिश्तों को सत्य कहता हूँ ।
                                                     - बीजेन्द्र जैमिनी





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