क्या कोरोना से विचारों में परिवर्तन शुरू हो गया है ?
कोरोना वायरस ने सभी को प्रभावित किया है । जिससे विचारों में परिवर्तन होना जरूरी है । फिर भी लोगों में परिवर्तन देर सबेरे होना शुरू होगा । जबकि कोरोना वायरस से सिर्फ सुरक्षा में ही बचाव है । यहीं " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
जी हां संसार के हर व्यक्ति करुणा से हताहत होकर आगे जीवन शैली के लिए जरूर सोच विचार करने लगे हैं लोगों में थोड़ा जागरूकता आया है हर व्यक्ति का यही कहना है कि आगे की हमारी जीवन शैली कैसी हो हर व्यक्ति समाधान की ओर जाना चाहता है समस्या से निजात होना चाहता है समस्या से निजात होकर सुखी पूर्वक जिंदगी बिताना चाहता है वह समय आने वाली है अतहर मनुष्य को इस सुखद जिंदगी जीने के लिए चिंतन एवं सोच विचार अवश्य करना चाहिए लोगों की जीवनशैली में सुधार आने लगे हैं सभी में सकारात्मक विचार आने लगे हैं सकारात्मक विचार से ही लोग अच्छाई की ओर मानसिकता दौड़ा रहे हैं आडंबर जिंदगी से वास्तविक जिंदगी को महत्व देने लगे हैं रसायनिक भोज्य सामग्री से जैविक भोज्य सामग्री को महत्व देने लगे हैं घुमंतू जिंदगी से अपने परिवार में ही रह कर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वह कोई ना कोई व्यापार या व्यवसाय कर जिंदगी जीना चाहते हैं और विदेशों में जाने का इच्छा नहीं करते हैं और जो भी व्यक्ति ऐसा करता है वह व्यक्ति पैसे की लालच में ही करेगा अभी करो ना कर मारने लोगों को अपने परिवार से अलग करके कितना बड़ा आहत दिया है जो इसके भुक्तभोगी है वही इसका एहसास कर रहे हैं इसी को देखने से पता लगता है कि हर व्यक्ति अपने परिवार के साथ रहकर ही खुशी-खुशी जीना चाहता है भले ही जिंदगी ना हो वास्तविक जिंदगी के साथ जीना चाहता है ऐसी जीवनशैली हर मनुष्य सोचने लगे हैं कि हम किस तरह आगे की जिंदगी सुखद और सार्थक हो हम सब एक दूसरे की पूरा होकर एक दूसरे का सहयोगी बनकर किस तरह से इस संसार में भाईचारे की भावना ऐसा विचार मनुष्य में आने लगे हैं अतः कहा जा सकता है कि करो ना कि हताहत में लोगों को सकारात्मक सोच के लिए मजबूर कर दिया है और सभी सकारात्मक सोच की ओर अपना मानसिकता दौड़ा रहे हैं आगे देखना होगा कि एक कहां तक सफल हो पाता है अभी तो फिलहाल सभी का यही कहना है कि आने वाली पीढ़ी के लिए हमें एक अच्छे विचार की आवश्यकता है और हम भी सकारात्मक सोच लेकर आगे की जीवनशैली को आगे बढ़ाना है तभी हम करो ना जैसे महामारी से निजात पा सकते हैं नहीं तो समस्या में ही जीना होगा। इस समस्या से निजात पाने के लिए हमको जरूर जरूर सकारात्मक सोच कर अपने जीवन शैली में बदलाव लाना होगा। तभी करो ना से छुटकारा पाना होगा।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
कोरोना जैसी संक्रमित वैश्विकरण बीमारी के आने से हमारी जीवनशैली ही बदल गई है! हमारी आर्थिक गतिविधियां बंद पड़ गई है! इसकी हाल कोई वैक्सीन नहीं होने से हमें अभी कोरोना के साथ ही जीना है अतः अब समय के अनुसार हमारे विचारों में भी तबदीली या परिवर्तन आना स्वाभाविक है!
अचानक आई आपदा के लिए कोई तैयार नहीं था! कठिनाइयां सामने आने और उसे झेलने के बाद जो हमें अनुभव हुए हैं उसी के आधार पर परिस्थिति अनुसार हमारे विचारों में भी परिवर्तन आया है --ये परिवर्तन विभिन्न क्षेत्रों के अनुसार भिन्न भिन्न विचार लिए हुए हैं ---
1) सरकार के सम्मुख कोरोना काल में उद्योग की, मजदूरों की, संक्रमण को रोकने के उपाय, जनता की सुरक्षा, नये अस्पताल बनाना, आइसोलेशन वार्ड आदि आदि अनेक कठिनाइयां आई हैं आगे ऐसा न हो उसके लिए क्या क्या करना होगा उसका विचार, आर्थिक गतिविधियां कैसे बढ़ाई जाए, शिक्षा के क्षेत्र में आदि अनेक विचारों में परिवर्तन आया होगा!
2)उद्धयोग धंधे वाले अपने धंधे को फिर से पटरी में कैसे लाया जाय इसका नये सिरे से विचार होता होगा!
3) शिक्षा के क्षेत्र में भी अॉनलाइन शिक्षा की ओर विचार हो रहा है! आफिस भी अॉनलाइन चल रहा है आगे विचारों में परिवर्तन भी हो सकता है!
4)मजदूरों के विचारों में भी बहुत बडा़ परिवर्तन आया है! गांव में ही रहकर आत्म निर्भर बनना, नमक रोटी खाएंगे शहर नहीं आएंगे! बाद में स्थिति देख इन विचारों में भी परिवर्तन आ सकता है!
5) कोरोना वायरस ने हमारी जीवन शैली ही बदल दी है! आज हमारे विचार सकारात्मकता लिए अपने पूर्वजों की जीवनशैली को अपना अपनी आवश्यकताओं की सीमा रेखा बांध ली है! कोरोना काल में आज हमारे विचार पूर्वजों के संस्कार को सही मानते हुए सात्विक और पौष्टिक आहार लेने लगे हैं !
6)मानव में मानवीकरण के गुण होने चाहिए जान गए हैं जो वे भूल गए थे! संवेदनशीलता आ गई है!
7) परिवार रिश्ते की असलियत समझ गए हैं!
8)जाति के अनुसार उद्योग जैसे मोची चमड़े जूते बनाने का काम करता है भूल वे जूते चप्पल, साग भाजी अथवा जो भी काम मिले करने लगे! यह परिवर्तन आया है!
9)अनुशासन में आ गए!
कोरोना के साथ जीना है अतः अनुशासन में रह बाहर निकलते ही मास्क पहनना, सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना, सेनिटाइजर का उपयोग करना, बार बार साबुन से हाथ धोना ही है यह बहुत बड़ा परिवर्तन आया है!
9)दादी नानी के घरेलु नुस्खे लौंग, दालचीनी, सोंठ, कालिमिर्च, तुलसी के काले पर विश्वास होना !
10) योग, व्यायाम, सुबह शाम घूमना मानसिक तनाव से दूर रखता है! यही आज के विचारों में परिवर्तन आए हैं!
सबसे बड़ी बात है लोगों में सकारात्मकता आ गई है सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ रहे हैं!
समय और स्थिति के अनुसार हमारे विचारों में परिवर्तन आते रहते हैं !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
कोरोना एक वैश्विक महामारी है जिससे बच पाना आज़ के समय की पहली मांग है। इसलिए हर व्यक्ति अपने पीछे के कल को छोड़कर आगे आने वाले कल के लिए ज्यादा चिंतित है और इससे बचने हेतु सभी उपायों को अपना भी रहा है। विचार क्या हैं? यह एक प्रकार की मानसिक क्रिया है, जो मस्तिष्क के कोने से बाहर निकल अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। हर व्यक्ति के अलग-अलग विचार होते हैं क्योंकि विचारों से ही व्यक्ति की पहचान होती है।
अब प्रश्न यह है कि क्या कोरोना से विचारों में परिवर्तन शुरू हो गया है? तो इसका सीधा सा उत्तर यह है कि 'हां'।
आज़ सब बस एक ही बात सोच रहे हैं कि किसी तरह यह बीमारी हमसे दूर चली जाय। सामान्य जीवन जीने वाले को तो बस भगवान में ही आसरा दिख रहा है। वह जितना दयालु कल था उससे दोगुना आज हो गया है। इसके विपरीत कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इस समय में भी एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं।
समय की मांग है कि अपने विचारों में परिवर्तन लाओ और राष्ट्र को इस भयानक संकट से उबरने में मदद करो।
यह तभी संभव है जब सभी अपने विचारों में परिवर्तन लाएं।
- नूतन गर्ग
दिल्ली
कोरोना आपदा सभी के जीवन के लिए अप्रत्याशित घटना है। जिसके विषय में कभी कोई परिकल्पना भी नहीं की गई थी। आज जिस वातावरण, संघर्ष, और अदृश्य भय से सहमे हुये हैं, चिंतनीय है और हताशा भरा है। आज हम वैसे स्वछंद नहीं है,जैसे हुआ करते थे। यह बदला हुआ वातावरण, हमारी सोच,व्यवहार, व्यवस्था को प्रभावित करेगा। किन्हीं मामलों में हम भले ही उदार हो सकते हैंं, आर्थिक रूप से तो संभलकर ही रहेंगे। बहरहाल इतना अवश्य है बदलाव होगा, अब उसके परिणाम सुखद होंगे, अनुकूल होंगे कि नहीं, आने वाला समय बतायेगा।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
कोरोना के इस प्रकोप ने हमारी जीवनशैली ही नहीं हमारे विचारों को भी अत्यधिक प्रभावित किया है।
इस भागती हुई जिंदगी में जहाँ इंसान के पास सुकून के दो पल भी नहीं थे, न जाने किस ऊँचाई पर पहुँचने की होड़ ने मनुष्य का चैन छीन लिया था और भावनाएँ मृतप्राय सी प्रतीत हो रही थीं। वहीं संकट की इस घड़ी में अपनों के साथ सुकून के कुछ पल बिताने के बाद लोगों की कई सुप्त भावनाएँ जागृत हो गई हैं, मानवता और इंसानियत का मोल अब पहले से अधिक समझने लगे हैं लोग। इस बात का साक्ष्य हमें मिलता जब हम देखते हैं कि हर इंसान किसी न किसी की यथासंभव मदद करने के लिए तत्पर दिख रहा है।
सेहत के प्रति भी लोगों में जागरूकता बढ़ी है। सभी संयमित जीवन जीने के आदी होते जा रहे हैं। बेलगाम दौड़ पर अब कुछ अंकुश लगता सा भी नजर आ रहा है।
इसलिए हम कह सकते हैं कि यद्यपि कोरोना मानव समाज के लिए एक बहुत ही बड़ा खतरा बनकर आया है तथापि जैसा कि हम सदा से ही सुनते आए हैं कि ईश्वर प्रदत्त प्रत्येक बुराई में कुछ न कुछ अच्छाई अवश्य छुपी होती है, तो कोरोना के खतरे के पीछे की अच्छाई यही है कि इसने मनुष्य के द्वारा भूलती जा रही इन्सानियत को पुनः याद दिला दिया है जो कि मानव समाज के भविष्य के लिए एक सकारात्मक संदेश है।
- रूणा रश्मि "दीप्त"
राँची - झारखंड
परिवर्तन संसार का नियम है । समय बदलता है । मौसम बदलता है । कई दफा स्थिति और परिस्थिति परिवर्तन के प्रवर्तक बन जाती है । कोरोना कालखण्ड़ में बहुत परिवर्तन देखने को मिले । लोगों के व्यवहार , आचरण और दिनचर्या में परिवर्तन आया है । आदतों में भी बदलाव आ गया है । सोच में परिवर्तन देखने को मिल रहा है । कोरोना काल के इस महा विपति के समय में रामायण , महाभारत और श्री कृष्णा जैसे धार्मिक सीरियल का टेलीविजन पर पुनः प्रसारण हुआ । नई पीढ़ी के बच्चों को इन सीरियलों के प्रसारण से प्राचीन संस्कृति और संस्कार की तस्वीर देखने को मिली । समय बिताने के लिए लोगों ने पूजा - पाठ पर ज्यादा ध्यान लगाया । जहाँ पति - पत्नी में ' मैं - मैं , तूँ - तूँ ' अकसर हुआ करती थी उन्होंने आपस में सामंजस्य बैठाना सीख लिया । कुछ लोगों ने नई नई डिश बनाकर खान पान का आनन्द लिया । सृजन शिल्पियों ने लेखन कार्य को ज्यादा तबज्जो दी । किसानों ने खेती बाड़ी को अधिक समय दिया । खेतों और घासनियों की झाड़ियों को काट कर साफ कर दिया । कुछ लोगों ने मिलकर गरीबों , मजदूरों और जरूरतमंदों की सहायता की । भोजन पानी का प्रबंध किया । मास्क और सैनेटाइजर बांटे । मुख्यमंत्री एवं प्रधानमंत्री राहत कोष के लिए धन राशि दी । विदेशों व दूसरे राज्य से अपने घरों को वापस आ गए । इन्होंने सीखा कि संयुक्त परिवार में किस तरह एडजेस्ट किया जाए । इन्होंने अपने बुजुर्गों की सेवा टहल करनी शुरू कर दी और पुश्तैनी काम - धन्धों को पुनः शुरू कर दिया । आजीविका कमाने के लिए नए विकल्पों पर हाथ आजमाने शुरू कर दिए । कार्यालयी कार्य , खरीददारी , नेट बैकिंग और अन्य कार्य के लिए आनलाइन का इस्तेमाल कैसे करना है , सब जाना सीखा ।
- अनिल शर्मा नील
बिलासपुर- हिमाचल प्रदेश
विचारों में बहुत परिवर्तन आया है । अब खर्च के पहले सोचना पड़ता है । क्याजरुरी है क्या
मैं रातों को जागता रहता हूं और सोचता रहता हूं कि मेरे अपनों का भविष्य क्या होगा. मेरे दोस्तों और रिश्तेदारों का क्या होगा?
मेरी इंवेट कम्पनी तो बंद ही जैसी है जल्दी कोई सुधरने के आसार नहीं हैं ।
पर संतोष है की बहुत लोगों से बेहतर है जान है तो जहान है
मुझे लगता है कि हम अपनी स्थिति को समझ सकते हैं. साथ ही दूसरे संकटों को देखकर हम यह भी अंदाज़ा लगा सकते हैं कि हमारा भविष्य कैसा होने वाला है.
कोरोना वायरस महामारी के रेस्पॉन्स दूसरे सामाजिक और पर्यावरणीय संकटों को लाने वाले जरियों का विस्तार ही है. यह एक तरह की वैल्यू के ऊपर दूसरे को प्राथमिकता देने से जुड़ा हुआ है. कोविड-19 से निपटने में ग्लोबल रेस्पॉन्स को तय करने में इसी डायनेमिक की बड़ी भूमिका है.
ऐसे में जैसे-जैसे वायरस को लेकर रेस्पॉन्स का विकास हो रहा है, उसे देखते हुए यह सोचना ज़रूरी है कि हमारा आर्थिक भविष्य क्या शक्ल लेगा?
चीज़ें ख़त्म हो जाने का अर्थशास्त्र बेहद सीधा है. कारोबार होते ही मुनाफ़ा कमाने के लिए हैं. अगर वे उत्पादन नहीं करेंगे तो वे चीज़ें बेच नहीं पाएंगे. इसका मतलब है कि उन्हें मुनाफ़ा नहीं होगा. इसका मतलब है कि उनके पास आपको नौकरी देने की कम गुंजाइश होगी.
कारोबार ऐसे वर्कर्स को अभी अपने पास बनाए रख सकते हैं और रखे भी हुए हैं जिनकी उन्हें तत्काल ज़रूरत नहीं है. आने वाले वक्त में इकॉनमी के फिर से खड़े होने की स्थिति में पैदा होने वाली डिमांड को पूरा करने में उन्हें इन वर्कर्स की ज़रूरत होगी.
हमें अब बहुत सोच समझ कर काम करना है काम करने का तरीक़ा भी बदलना पड़ेगा ।
सबको आत्मनिर्भर बनना होगा लघुउघौग को बढ़ाना होगा
कोरोना ने सबको प्रेम करना , और एक दूसरे के प्रति चिंता और सहयोग की भावना को जन्म दिया है ।
ग़रीबों के प्रति सहानुभूति व मददत के हाथ बढ़ाना युवा पीढ़ी को आ गया , प्रकृति से प्रेम अपनी ग़लतियों को सुधारने का मन बना गया है सेहत का ख़्याल योगा व व्याम पर ध्यान देना शुरु करवा दिया है ,
मैं कह सकता हूँ कोरोना ने मेरी सोच को बहुत बदल दिया मैं पहले से ज़्यादा ज़िम्मेदार व संवेदन शील हो गया हूँ
- आश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
कोरोना काल मे लोगो ने एक दूसरे को काफी समय दिया । जिसमे परिवारों के रिश्ते बेहतर होते देखे गए है , तो वही आपसी मनमुटाव और झगड़े जैसी चीजें भी लगभग शून्य स्तर पर ही देखी गई है । ये ऐसा समय है कि आस पड़ोस के गांव अथवा शहर में भी यदि किसी को कोरोना होने की पुष्टि होती है तो लोग घबरा जाते है और लोगो की जुबान पर बस यही एक बात रहती है कि बस ये कोरोना कला जल्दी खत्म हो जाये और अन्य लोग इससे प्रभावित न हो । जब किसी को पीड़ित न करने व दूसरे के दुख से भी दुख होने की भावनाए मन मे प्रबल होने लगे तब निश्चित ही ये कहा जा सकता है कि हमारी विचार प्रवत्ति उत्थान की ओर है । अतः निश्चित ही हमारे विचारों में परिवर्तन हुआ है और हम निश्चित ही एक दूसरे के सुख दुख की ओर बढ़े है ।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
मन विचारों का उद्गम स्थान है।जहां नित विचारों का जमावड़ा रहता है। काल परिस्थिति के अनुसार विचार कभी सकारात्मक तो कभी, नकारात्मक आते ही जाते हैं।आज वैश्विक महामारी कोरोना ने लोगों को अपनी चपेट में लेे लिया। इसके चलते अधिकतर लोगों के हृदय में खौफ पैदा हो गया है।
समझदारी से यदि विचार किया जाए तो इस विषम परिस्थितियों से जूझने के लिए हमें विचारों का तरीका बदलना पड़ेगा।स्वयं को मजबूती देने के लिए मेडीटेशन और योगा का सहारा लेना चाहिए।विचारों में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करना पड़ेगा।
विचारों में परिवर्तन शुरू हो गया है परन्तु दृष्टिकोण नकारात्मक नहीं सकारात्मक होना चाहिए।
- डॉ. विभा जोशी (विभूति)
दिल्ली
जी कोरोना के कारण अब लोगों के विचारों में बहुत परिवर्तन हुआ है।बहुत कुछ नया देखने को मिल रहा है,जैसे खान पान में बदलाव, हाइजेनिक अवेयरनेस, पुरानी भारतीय संस्कृति की पुनरावृत्ति आदि।दिखावटी जीवन शैली को समझदार लोगों द्वारा लगातार किनारे किया का रहा है।अब लोग केवल स्वस्थ और वास्तविक जीवन पर ही ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।निश्चित रूप से विचारों का ये बदलाव हमें आर्थिक,सामाजिक तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से मजबूत करेगा।
- कवि कपिल जैन
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
देश में कोरोना महामारी का क्या आना हुआ, समुचित व्यवस्थाओं में परिवर्तित की लहर दौड़ गई। लेकिन लाँकडाऊन के दौरान भी जन समुदाय तो समझ ही नहीं पा रहा था, जब घर की चौखट पार निकला, तब समझ में आया लाँकडाऊन क्या होता हैं। उसके बाद सभी अपने-अपने घर संसार में कैद होकर, अपने स्तर पर विभिन्न प्रकार के कार्यों को अंजाम देने में लग गये, कुछ परेशानियां का सामना तो करना पड़ा, फिर व्यवस्थित हो गये। अनलाॅक में शादी-विवाह का सिलसिला शुरू हो गया, जीवन के खर्चीलों को सीमित संसाधनों के बीच
मजबूर हो गया, किसे बुलायें, किसे नहीं, जैसा घर वैसी व्यवस्था, न बाजा, बराती, पंड़ाल, लाइटिंग, समधि-समधि, रिश्तेदारों की सजन भेंट, फूलों की साज-सज्जा, बादशाही भोज की जगह साधारणतः भोज सब शान-शौकत धरा का धरा रह गया। यह व्यवस्था इतनें जल्दी समाप्त होने से रही। एक तरह से तो ठीक-ठाक हैं, अनावश्यक रूप से व्यर्थ व्ययों पर रोकथाम लगीं। व्यर्थ भागा दौड़ की जिंदगी से हट कर, एकजुट होकर
क्रियाशील तो धीरे-धीरे बन रहा हैं। नकारात्मक सोच में बदलाव की जगह सकारात्मकता सोच में परिवर्तित हो गया हैं। पूर्व में बच्चे 12 माहों तक टयूशन पढ़ने जाया करते थे, अब घर में ही उच्च शिक्षा प्राप्त, माता-पिता अपनी-अपनी शिक्षा का ज्ञानवर्धक जानकारियों से अवगत करा रहे हैं।
बाजारों से खान-पान की चीजों का खर्चीला अंबार लगा रहता था, वही चीज़ों को बनाने का प्रयास किया जा रहा हैं। आत्मा विश्वास का एक तरह से उदय तो हुआ ही हैं। साथ ही साथ
नवोदित घरों के प्रतिभाओं को कुछ सिखने के लिए कलात्मक कार्य को करवाने ध्यानाकर्षण करवाया गया हैं। अब हर कोई घर से निकले पूर्व ही मास्क पहनकर निकलने अग्रसर अनिवार्य रूप से हो चुका हैं। परिवर्तन शीलता और समीकरण ही सब कुछ करवाता हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
जी हाँ , कोरोना से लोगों के विचारों , जीवन - शैली में परिवर्तन मुझे लगता है । जग मानव अपनी आदतों का गुलाम है ।
अगर इंसान की सोच सकारात्मक होती तो कोरोना जैसी महामारी विश्व को संक्रमित नहीं करती ।
मनुष्य ने पर्यावरण का संतुलन को बिगाड़ा है और बायोलॉजिकल , वार करने में लगा है ।अब बुराई में अच्छाई की नजर मानव को रखनी चाहिए । जो गलतियाँ की है ।अब इस संकट की घड़ी में मानव जाति को धर्म हमें अदृश्य कोरोना के खिलाफ मार्ग दिखाया सकता है ।
इस स्वार्थी संसार में ऐसे भी लोग हैं जिंदगियों को बचाने में लगे हैं । मनुष्य श्रेष्ठ है , वैसे ही धर्म श्रेष्ठ है ।
हम प्रकृति के साथ उपद्रव न करें । मानव जाति का कल्याण के लिए मानव का जन्म हुआ है ।
हम जीवन की आवश्यकताओं के दुरुप्रयोग कर रहे हैं ।
पानी हर जीवित प्राणी को चाहिए ।
प्रेम के शस्त्र से जग जीत सकते हैं । दुनिया को हम मित्र बनाएँ । यह सोच मन को सकारात्मक बना लें । कोई परिस्थिति कायम नहीं रहती है ।
कोरोना के संकट में वंचित , गरीब वर्ग को हर धर्म के लोगों को भूखा नहीं सोने दिया , उन्हें भोजन कराया ।मानवता ने अपना धर्म निभाया है । किसी भी धर्म , जाति ने मानव सेवा करके इंसानियत का धर्म निभाया है ।
भारत की एकात्मकता , विविधता में एकता , संगठन शक्ति को मजबूत किया ।
कोरोना संकट ने संयम , प्रेम , एकता आदि की सोच दी है ।
दैनिक जीवन में खुद से सब काम करके आत्मनिर्भर बनाया है । हमें अपने देश से प्यार करना है , क्योंकि इसी देश की मिट्टी ने हमें जीवन दिया , भारत की मिट्टी इतनी पावन है कि संसार के लोग भी भारत की संस्कृति में रचना - बसना चाहते हैं ।
ऑनलाइन से वस्तुओं का सामान हमें जो प्राप्त किया है , वे हिन्दू मुस्लिम , सिक्ख नहीं था , वह भारतीय था ।
नया युग , नयी सोच पूरे विश्व को मिली है । हर इंसान वास्तव में इंसान है बना ।
आध्यात्मिकता , धार्मिकता की ओर इंसान का झुकाव हुआ है ।
सामाजिक रूप से दूरी बनानी रखनी पड़ती है ।
साकारकात्मक हो के इस स्थिति को बनाए ।शारीरिक
स्वच्छता, सेनिटाइजेशन , हाथ , पैर , मुँह साबुन से धोना , परिवेश को स्वच्छ रखना , भारत का स्वच्छता का पालन हो रहा है ।
जिस तरह अमावस्या - पूर्णिमा आती हैं , उसी तरह दुख - सुख आते रहते हैं । सुख में बाँटने की भावना हो । दुख में ईश स्मरण ही हमें मजबूत करता है । तन - मन अगर हम शुद्ध रखेंगे तो कोरोना भागेगा ।
सुख की इच्छा में दुख को खुद निमंत्रण मिल जाता है ।
समुद्र मंथन में पहले जहर ही निकला है । बाद में अमृत निकला । दोनों सिथियों में ईश के शरण में रहे ।
10 मिनट की साकारत्मकता की सोच 24 घण्टे को संतुलित कर नकारात्मकता को खत्म कर देती है ।
सुख - दुख ति आते रहते हैं ।
21 वीं सदी वायरस की सदी है । इससे पहले हम स्वाइनफ्लू आदि बीमारी से जग ग्रसित हुआ है ।
अब कोरोना का वायरस अदृश्य दुश्मन बन के तीसरा महायुद्ध कर रहा है ।
समस्या की मायूसी हमें अच्छाई की लहर से किनारे की गोद में जरूर ले आएगी । निराशा में कोरोना का वैक्सीन आशा का संचार करेगा ।
- डॉ मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
क्या कोरोना काल से विचारों में परिवर्तन शुरू हो गया है यह बात किसी हद तक बहुत ठीक दिखाई देती है कि कोरोना नामक इस महामारी में घिरा मनुष्य यह सोचने पर मजबूर हो गया है की अपनी खानपान संबंधी आदतों में सुधार करना अब बहुत आवश्यक है जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर सकारात्मक प्रभाव पड़े और उसमें वृद्धि हो जिससे हम बहुत सी बीमारियों से बच सकें यह नितान्त आवश्यक है इस समय में जबकि समूचा विश्व कोरोना की चपेट में है और बड़ी संख्या में लोग मारे गए हैं तथा अभी तक इसका कोई निदान भी दिखाई नहीं देता कोई वैक्सीन या कोई अन्य टेबलेट इस पर प्रभावी नहीं है दुनिया भर के चिकित्सा विज्ञानी इसके लिए बहुत चिंतित हैं और अपने भागीरथ प्रयास करने में संलग्न हैं ईश्वर करे शीघ्र ही उन्हें उनकी मेहनत का फल प्राप्त हो और विश्व को इसको रोना नामक महामारी से निजात मिले और हम सभी उसी तरह से देश के विकास में सुचारू रूप से संलग्न हो सके बच्चे स्कूल जा सके मरीजों को ठीक ढंग से इलाज उपलब्ध हो सके और विभिन्न उद्योग धंधे अपनी उसी गति के साथ काम कर सकें जिससे मजदूरों वह कामगारों को रोजगार उपलब्ध हो और उनकी आजीविका का संकट मिट सके कोरोना ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है की जान है तो जहान है हमें अब इसी के साथ जीना सीखना होगा क्योंकि लॉक डाउन हमेशा के लिए नहीं किया जा सकता देश के आर्थिक हालातों को देखते हुए सुरक्षा संबंधी उपायों के साथ हमें आगे बढ़ना होगा और अपनी सुरक्षा पर विशेष ध्यान देते हुए विभिन्न कार्य करने होंगे इसी के साथ साथ अपने खान-पान में उन सभी वस्तुओं को शामिल करना होगा जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढे कोरोना महामारी के चलते यह देखने में आया है की जागरूकता बड़ी है लोग सुरक्षा संबंधी उपायों को अपना रहे हैं और और अपनी सुरक्षा पर ध्यान दे रहे हैं यह एक सकारात्मक बात है और इसी में सभी का हित भी है अतः अन्तिम रूप से यह कहा जा सकता है की कोरोना के कारण वैचारिक परिवर्तन आरम्भ हो गया है जोकि बहुत आवश्यक भी है वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए. ।
- प्रमोद कुमार प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
कोरोना ने विचार तो क्या लोगों की दुनिया ही बदल दी है। कारोबार, नौकरी, मजदूरी, पढ़ाई या राजनीति सभी का तरीका बदल रहा है। यह तभी सम्भव है जब विचार बदलेंगे। अब कहीं भी जातिवाद नहीं लादा जा सकेगा। कोई भी व्यक्ति अपना कारोबार बदल कर दूसरे कारोबार को अपना सकता है। हर किसी को स्वतंत्रता मिल गई है। संविधान द्वारा दिये गए अधिकार अब फलीभूत हो रहे हैं । मोची सब्जी बेच रहा है। छोटे होटल वाले फल, मास्क बेचने लगे ।
इस तरह आदमी की आमदनी का जरिया बदल गया तो आदमी की सोच में भी परिवर्तन आया है। लेकिन फिर भी विचारों का परिवर्तन प्रमाण खोजता है। जो समझदार हैं वो तो कुछ सरकार की और कुछ समाज से सुनकर मजबूरी में परिवर्तित हो रहे हैं। लेकिन गरीब मजदूर लाचार हैं ,वे शायद कुछ उनके अपने साथ घटने के इंतजार में हैं।
वे आज भी इस लॉक डाउन की मजबूरी को नहीं समझ पा रहे हैं।हर कमी को सरकार के ऊपर थोप कर अपनी मजबूरी को हथियार बनाने की कोशिश कर रहे हैं। अगर उनमें सावधनी का महत्व समझ सकने की शक्ति आ जाती तो आज पूरी तरह से अनलॉक हो जाता।
विचार बदल रहे हैं, नए पैमाने निश्चित किये जा रहे हैं। दूसरों को सलाह दी जा रही है, परन्तु खुद का विचार बदलना इतना आसान नहीं है। हाँ, वातावरण के प्रति सभी सजग बन रहे हैं, पक्षियों का महत्व समझ रहे हैं । दूसरों के प्रति कटु-व्यवहार में परिवर्तन आया है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
कहते हैं आपदा कुछ देकर जाती है ।कोरोना जैसी महामारी हम सब को विचारों में परिवर्तन जैसा पुरस्कार देकर जायेगी ।आज इस महामारी से हम सभी जीवन में संयम आया है ।संयम जो किसी के पास था किसी के पास नहीं ।परिवारिक जुड़ाव इस महामारी कि सबसे बड़ी देन है ।हाउस वाइफ एक साधारण सा शब्द था, विचारों में परिवर्तन आया गृहणी की महत्ता को सबने समझा ।घर के काम- काज के बीच कुछ प्रेम आया कुछ तकरार लेकिन दोनों ने एक -दूसरे के पुरुषार्थ को स्वीकार किया ।
कोरोना के विकराल रुप ने हमारे अन्दर संवेदना की जड़ें और गहरी कर दी ,देखने और सुनने में आया कितने ही सामर्थवान लोग आगे आये और मदद की ।आज प्रत्येक भारतवासी एक -दूसरे का भला चाह रहा है ,आटे और चावल की पोटली एक घर से दूसरे घर जाना आम बात हो गई ।जिसके पास कुछ नहीं था वह पानी पिलाने में ही लग गया ।सेवा करते कितनो की तो जान चली गई ,विचारों में अद्भुत परिवर्तन दिखा ।
जागरुकता की तो बात ही अनोखी हो रही ,पढ़ेलिखे -अनपढ़ सभी संयमी हो गये ।जान जाने के भय ने उन्हें नियमितता सिखा दी और लम्बे समय तक कोई काम किया जाय वह आदत बन जाती है ।विश्वास है कि कोराना के समाप्त होने के बाद हम सभी भारतीय परिस्थितियों से मुकाबला करना सीख चुके होंगे ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
कोरोना वायरस अभी के दुनिया को पूरी तरह बदल देगा। यानी विचार में बदलाव आएगा। आर्थिक नजरिया से चार संभावित भविष्य है।
1) बर्बरता के दौर से गुजरना।
2) एक सरकारी सहायता आए जो अभी देश में घोषणा हुई है।
3) श्रम शक्ति को पहचानकर प्राथमिकता दिया जाए यह काम हर राज्य को करना है।
4) आपसी सहयोग पर आधारित समाज का निर्माण ।
कोरोना से अनुवांशिक परिवर्तन हुआ है या नहीं।यह ICMR के वैज्ञानिकों के अनुसार लोकडाउन खत्म होने के बाद हर राज्य में जाकर नमूने एकत्रित करेंगे और जांच करेंगे। इसके पता चलने पर किसी संभावित टीके प्रभावी होने का सुनिश्चित करेंगे। जिसे जरूरत होने पर प्रयोग किया जायगा।
कोरोना वायरस से संभवत ग्लोबलाइजेशन श्रम शक्ति पीछे हट रही है। अब भारत के नेतृत्व करता एवं राज्य के सहयोगी मित्र श्रम शक्ति को पहचाने और अपने अपने राज्य को विकसित करें।
हमारे श्रम शक्ति केंद्र और राज्य सरकार की ओर टकटकी लगाकर देख रहे हैं। इस समय केंद्र और राज्य के विचारों में मतभेद ना हो तो राज्य विकास के पथ पर चल पड़ेगा। केंद्र सरकार को भी नजरिया बदलना होगा ताकि श्रम शक्ति का दोहन किया जाय।
लेखक का विचार:- श्रम शक्ति को देखते हुए केंद्र और राज्य मतभेद भूलकर औद्योगिक घरानों को सलाह दे की राज्य सरकार से तालमेल बिठाकर देश को विकास के पथ पर ले चले ।
- विजेंयेद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
कोरोना वायरस के कारण जो आर्थिक क्षति और सामाजिक तनाव सामने आया है, उसे देखते हुए राष्ट्रवादी उभार और ताकतवर देशों की शक्ति प्रतिद्वंद्विता और ज्यादा बढ़ेगी। किसी भी तरह से कोरोना वायरस संकट अंतरराष्ट्रीय शक्ति संरचना में जरूर बदलाव लायेगा। इसके अलावा इस समय और कुछ भी कह पाना मुश्किल है।
कोरोना वायरस से पूरी दुनिया सहमी हुई है। ऐसे में जब मनुष्य को यह मुग़ालता हो गया था कि वह प्रकृति पर विजय पा गया है तब एक न दिखने वाला जीव उसके पूरे जीवन को निर्वीर्य कर देता है। इतना बेबस इंसान पहले कभी नहीं था। इतना डरा हुआ, इतना सहमा हुआ। दोनों विश्व युद्ध से पूरा विश्व प्रभावित नहीं था। हिटलर के डर का एक दायरा था। पर कोरोना का कोई दायरा नहीं है।
मनुष्य को यह मुग़ालता हो गया कि वो प्रकृति पर विजय पा गया है, उसने दुनिया मुट्ठी में कर ली है। समुद्र हो या आकाश या पाताल, सब पर उसका एकक्षत्र राज हो गया है। टेस्ट ट्यूब में बच्चे पैदा कर ईश्वर की सत्ता को चुनौती देने लगा है। वह महाभारत के संजय की तरह कुछ भी, कहीं भी देख सकता है और धरती के किसी भी कोने से लाइव कर सकता है, सोशल मीडिया के ज़रिये किसी से भी जुड़ सकता है। जब उसके विजय को कहीं कोई रोकने वाला नहीं दिखता तब एक न दिखने वाला जीव उसके पूरे जीवन को निर्वीर्य कर देता है। नपुंसक बना देता है। क्या यह महज़ एक इत्तिफ़ाक़ है? या जीवन का कोई संकेत है?
कोरोना का कोलाहल अकारण नहीं है। यह किसी बड़े युगांतकारी बदलाव की आहट है। बचेगा वही जिसमें भारतीय सभ्यता की तरह ख़ुद को बदलने की जिजीविषा होगी। मुझे यह कोलाहल बुद्ध और महावीर के समय के कोलाहल जैसा दिखता है। हो सकता है हमारे जीवन काल में इस कोलाहल का निष्कर्ष न निकले। पर कोरोना बिना कुछ किये यहाँ से चला जायेगा, ऐसा मुझे लगता नहीं है।
यह आया ही है हमारे जीवन शैली को परिवर्तन करने हमें हमारी सही जीवन शैली देने हम भूल गये थे हमारी परम्पराओं , संस्कृति को जो हमें वापस लौटा रहा है । कोरोना हमारे विचारों को हमारी मानवता को संवेदनाओं को जगाने आया है जो सुप्तावस्था मे जा चूकी थी
हमें पाश्चात्य संस्कृति से निकाल भारतीय संस्कृति में वापस प्रवेश करा गया ।
हर मनुष्य अपने से ज़्यादा अपनो केलिये जीना सीखा गया है ।
भारतीय भोजन सबको पंसद आने लगा और विश्व में भी हमारे मसाले कितने जीवनरक्षक यह सिद्ध करवा दिया , लोंग , दालचीनी , गिलोय , हल्दी , सोंठ आदि का महत्व सिखा दिया ।
कोरोना ने हमारे विचारों को हमारे रहन सहन में भी परिवर्तन लाया है , किसके साथ साथ साकारात्मक सोच का बोल बाला किया है , महिलाओं की कार्य क्षमता को सलामी मिली ,
छोटे बच्चों में सहनशक्ती व धैर्य व समझदारी का जन्म कोरोना काल में देखने में आ रहा है
कुछ ग़लत भी हुआ है पर वह सब चर्चा का विषय नही ।
अंत में यही निष्कर्ष जो होता है , अच्छे के लिऐ होता है । सही सोच , सही दिशा का मार्ग प्रशस्त करेगी ।
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
कोरोना वायरस संक्रमण (कोविड 19) वैश्विक महामारी के कारण दुनियाभर में त्रासदी छाई हुई है। कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ते जा रहा है। दुनियाभर में अब तक 4,06,924 मौते हो चुकी है। 71,31,859 लोग संक्रमित हैं, जबकि 34,79,449 लोगों का इलाज चल रहा है। वहीं भारत मे कोरोना से संक्रमितों की संख्या 2,56,611 है। 7,135 की मौत हो चुकी है। जबकि 1,24,094 स्वस्थ हुए हैं। इन परिस्थितियों में कोरोना से लोगों के विचारों में परिवर्तन शुरू हो गया है। विचारों का बदलना भी स्वाभाविक है, क्योंकि कोरोना के कारण देश मे करोडों मजदूर बेरोजगार हो गए हैं। व्यवसाय की स्थिति खराब हो चुकी है। लोगों की नौकरी छीन गई है। लोगों के समक्ष परिवार का भरण पोषण, बच्चों की पढ़ाई की चिंता सताए जा रही है। देश मे बेरोजगारी के कारण लोग आत्महत्या करने लगे हैं। करोड़ो की संख्या में बड़े शहरों में काम करने वाले मजदूर अपने राज्य, शहर व गांव तो पहुंच गए हैं, ताकि वो अपने परिवार के साथ कोरोना से जान बचाकर रह सकें। लेकिन उनके पास कमाई का कोई साधन नहीं दुख रहा है। जब काम ही नही रहेगा तो परिवार का खर्च कैसे उठाएंगे। एक तरफ देश मे लोगों के समक्ष बेरोजगारी की चिंता और दूसरी तरफ कोरोना के बढ़ते नए मामलों ने लोगों के विचारों में परिवर्तन लाना शुरू कर दिया है। भारत मे अमेरिका के बाद कोरोना के गंभीर मरीज हैं। देश मे 8,945 गंभीर कोरोना मरीज हैं। रोजाना लगभग 10 हजार नए संक्रमित मिल रहे हैं। तो इस परस्थिति में कोरोना से विचारों में परिवर्तन होना स्वभाविक है।
- अंकिता सिन्हा साहित्यकार
जमशेदपुर- झारखंड
विषय बहुत ही सारगर्भित है करो ना वायरस के कारण जो लॉक डाउन हुआ और वह सिलसिला अभी तक चल रहा है जिसके कारण विचारों में काफी बदलाव आया है देश में भिन्न-भिन्न तरह के इंसान हैं कुछ काम धंधा के आधार पर अलग अलग तरीके से जीवनयापन करते हैं जैसे व्यापारी वर्ग जिनका अपना व्यापार है उन्हें अपने कार्यों के लिए समय उनके हिसाब से चलता है
दूसरे सरकारी पदाधिकारी जिन की कार्यशैली सरकारी नियमों के अनुसार होती है
तीसरी प्राइवेट कंपनी के पदाधिकारी जिन की कार्यशैली कंपनी के प्रोजेक्ट के ऊपर निर्भर करता है
किसान मजदूर श्रमिक डेली वेजेस पर काम करने वाले महिला पुरुष जिनकी कार्य शायरी प्रायर न सरकारी है और ना गैर सरकारी मेहनत करो पैसा कमाओ की पॉलिसी पर प्रतिदिन काम करते हैं और जीवन की जरूरतों को पूरा करते हैं
सभी लोगों के जीवन शैली पर मूल्यांकन करने पर निम्न तथ्य उभर कर आते हैं
1 सरकारी पदाधिकारी एक ओर से चिंता मुक्त है क्योंकि उन्हें वेतन मिल जाता है पर उनके रहन सहन जीवनशैली संबंधित विचारों में बहुत ही बदलाव आ गया है फिजूलखर्ची बंद हो गए हैं आत्मनिर्भरता बढ़ गई है स्वयं काम करने की आदत कुछ डिवेलप कर गई है
2 जो व्यापारी वर्ग उनकी चिंता गहरी बन गई है क्योंकि व्यापार मैं सुरक्षा बहुत कम होती है हर काम रिस्क पर रहता है लॉक डाउन के कारण पूरी जिंदगी पूरा परिवार सभी रिस्क पर बना हुआ है अब वैसे लोगों में प्रतिदिन के आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए छोटे व्यापार से संबंध जोड़ना उसकी हिम्मत करना थोड़ी मुश्किल तो है पर असंभव नहीं कुछ ऐसे लोग हैं जो नए अवसर की तलाश में चुपचाप बैठे हैं और कुछ ऐसे हैं जो छोटे कार्यों को कर अपनी क्षति को पूरा कर रहे हैं
3 तीसरे प्रकार के लोग जो शिक्षक है उन्हें भी घर से ही शिक्षा देने का कार्य करवाया जा रहा है और आंशिक वे वेतन का भी भुगतान हो रहा है इसलिए कुछ हद तक शिक्षक वर्ग की स्थिति व्यापार वर्ग से बेहतर है
4 श्रमिक मजदूर भी अपने पुराने धंधे को छोड़कर नई खोज में लग गए हैं उनका भी जीवन बहुत ही रिस्क वाला है हर समय इस बात की चिंता बनी होती है आने वाले समय में क्या होगा बहुत ही स्थिरता नहीं है
निष्कर्ष में यह समझने की बात है कि इस लॉक डाउन और कोरोनावायरस के समय अपनी आर्थिक गतिविधियों को हर इंसान समेट लिया है कम से कम खर्च में जीवन जीना सीखा है
विचारों में भी बदलाव आया है परिवार और समाज की सुरक्षा के लिए हर नियम पालन करने को तैयार है
शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए खानपान का विशेष ध्यान है घरेलू चीजें हल्दी लॉन्ग दालचीनी लहसुन तुलसी का पत्ता इत्यादि के महत्व को स्वीकारा गया है पहली इन चीजों का इस्तेमाल सिर्फ थाना में स्वाद के लिए डाला जाता था पर आज के दिनों में इन चीजों का औषधीय गुण समझकर ग्रहण किया जाता है
इंसान अपनी सभ्यता के भूले हुए अंश को फिर से याद किया और उसे अपना रहा है जैसे हेलो हाथ मिलाने की परंपरा को छोड़कर प्रणाम करने की विधि को जीवन में अपनाया है बाहर से घर आने पर पैरों को धोकर घर में प्रवेश करें छोटी छोटी सी परिवर्तन लाकर बच्चों में भी अपनी संस्कृति एवं सभ्यता का परिचय एवं आदत बनाया जा रहा है
बहुत भीड़ वाले जगह में नंही जा रहे हैं किसी भी आयोजन में जाने के पहले बहुत तरह से सोचा जा रहा है
घर की फिजूलखर्ची पैकेजिंग मटेरियल को मार्केट से लाना और तुरंत बनाकर खाने की परंपरा लगभग बंद हो गई
इस तरह से जीवन शैली में बहुत बड़ा बदलाव आया है इस बदलाव का मुख्य कारण विचारों में परिवर्तन है जब तक विचार नहीं बदलेंगे व्यवहार में किसी भी प्रकार का सुधार नहीं हो सकता है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
कोरोना की वजह से जहां एक तरफ बहुत मुश्किलें बढ़ी,लाखों जानें गईं,आर्थिक स्थिति बदहाल हुई,वहीं कुछ अच्छी बातें भी हुईं।लोगों की जीवन शैली में बड़ा बदलाव आया,यंग जेनरेशन के लोग जो बाहर का खाना खाने के आदि थे उन्होंने आदत बदली,खुद से खाना बनाना सीखा,लोग साफ सफाई का ध्यान रखने लगे।जिन महिलाओं का एक दिन भी काम वालियों के बिना नहीं चलता था वो खुद घर का काम करने लगीं,पुरुषों ने भी बढ़ कर हांथ बटाना सीख लिया।लोग पहले से ज़्यादा आत्मनिर्भर हो गए।गृहणियों के काम को महत्ता मिली।परिवार के सदस्यों ने एक साथ समय बिताया।ज़िंदगी जीने के तरीकों के प्रति लोगों ने नज़रिया बदला।लोगों के विचार बदले
- संगीता सहाय
रांची - झारखण्ड
अगर अपने ही घर में देखें क्योंकि बाहर जा नहीं सकते ज्यादा और लोगों से मिलना भी नहीं हो रहा है तो निश्चित हो घर की विचारों में परिवर्तन आना शुरू हो चुका है।जहाँ पहले हम बहुत आगे की सोचकर आज को भूल रहे थे वहीं आज हम वर्तमान को जी रहे हैं।अब विचार बहुत ज्यादा धन दौलत जमा करने से ज्यादा जीवन के मूल रूप को जीने पर आ टिका है।अब देखना देखना ये है कि कितना आगे तक चल पाता है ये विचारों का परिवर्तन।
अपने इर्दगिर्द और आसपड़ोस की विचारधारा में भी परिवर्तन सहज रूप में देखने को मिल रहा है।वो जो परमार्थ का भाव था शायद कुछ हद तक लोगों को इस कोरोना के कारण छूने लगा है।लोग मददगार सिद्ध हो रहे हैं।अपनी-अपनी क्षमता अनुसार हर कोई सहायता करने के लिए निकल पड़ा है।उसे अपने सुख-सुविधाओं में से कुछ औरों के लिए भी निकलना या बचाना आ चुका है।
इतना ही नहीं हमने प्रकृति और प्राकृतिक चीजों से जुड़ना भी सीख लिया है।अपनी संस्कृति और वेदों तक से जुड़ने लगे हैं।उनको सुनने,पढ़ने और जानने लगे हैं।पौष्टिक आहार की तरफ बढ़ने लगे हैं।ये सारा कुछ विचारों में परिवर्तन की ही देन है।बस अब इसका चलन देखना है कि कहाँ तक जाता है मानव संग।
कोरोना तो निकल जायेगा पर जो ये विचारों में परिवर्तन आया है वो यदि रह गया तो आगे चलकर जग बहुत सुंदर होने वाला है।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
कोरोना वायरस ने महामारी का रूप ले लिया ओर पुरी दुनियाँ भर में हलचल मचा दी लाॅकडाउन समान कठौर फैसले हर देश ने लिया अपने यहा लगाकर कोरोना को रोकने के प्रयास किया जो हमारे जीवन में या हमारे पुर्वजो के जीवन काल में नही हुवा वो आज हो रहा हैं पुरी दुनियाँ लाॅकडाउन में नये अनुभवों को संजो रही हैं बहुत पैसा पास था पर कुछ खा नही पा रहे थे किसी का सहयोग नही ले पा रहे थे बहुत कुछ एसा हो रहा हैं पहले कभी नही हुवा ओर यह दौर भी बहुत लम्बा चल गया जीससे हमारे जीवन में एव हमारे विचारों में भी बहुत बढा परिवर्तन देखने को मिल रहा हैं।
- कुन्दन पाटिल
देवास - मध्य प्रदेश
जी हां,कोरोना से विचारों में परिवर्तन शुरु हो गया है। यह परिवर्तन सकारात्मक है या नकारात्मक यह अलग बात है, लेकिन परिवर्तन हुआ है,हो रहा है।इस काल में मानव को अपने पराये की पहचान बखूबी हुई है। इस काल में बनी परिस्थितियों और मानव के व्यवहार का, विचारों पर प्रभाव घर-परिवार, समाज और राष्ट्र में दिखायी देने लगा है।जनजागरूकता,सजगता और सतर्कता बढ़ी है। मानव के विचारों में दृढ़ता आयी है। समाज और राष्ट्रहित के विरोधी अलग-थलग पड़ने लगे हैं,यह विचारों में आये परिवर्तन का ही परिणाम है। स्वार्थी और मौकापरस्त प्रवृत्ति के लोगों की पहचान सबको हो गयी है,जो इस घोर संकट में भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आये।अब उनके प्रति समाज का नजरिया बदल गया है। जरुरतमंदों को सहयोग और सहायता की प्रवृत्ति बढ़ी है। लेकिन इस दौर की एक नकारात्मक बात यह कि मानव आत्मकेंद्रित भी हो गया है। इसे समय की विवशता माना सकता हैं। कुल मिलाकर विचारों में सकारात्मक परिवर्तन शुरु हुए हैं,जो भविष्य के प्रति सुखद संकेत है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
कोरोना की वैश्विक महामारी ने जब पूरी दुनिया में दस्तक दी तो लोगों को अपनी जीवन शैली मैं बहुत बदलाव करने पडे ।
बाहर निकलने से पहले मास्क लगाना, हाथों को बार बार बीस सेकंड तक धोना, भीड़ भाड़ से दूरी बना कर रखना, हमेशा सैनिटाईजर हाथों पर मलना, दूसरे व्यक्ति से दो गज की दूरी रखना, शादी समारोहों से दूर रहना, फालतू में ना घूमना, किसी वस्तु या चीज को ना छूना, बसों में सफर ना करना वा किसी से हाथ ना मिलना या किसी को भी ना छूना इत्यादी ।
अब जबकी ये कोरोना हमारी जिन्दगी के साथ लम्बे समय तक रहने वाला है तो अब आम आदमी उपरोक्त सावधानीयों को जीवन में समाहित कर भविष्य में चलने वाला है । अब भविष्य में मनुष्य के आचरण वा व्यवहार में काफी अधिक फर्क देखने को मिलेगा ।
- सुरेन्द्र मिन्हास
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
महामारी के चलते आज सब के रहन-सहन खाने पीने के तरीके में परिवर्तन हो गया है सब लोग सात्विक भोजन लेने लगते हैं और आयुर्वेद का पालन करने लग गए हैं सब लोग काढ़ा पीने लगते हैं तुलसी नीम हल्दी आदि का प्रयोग ज्यादा करने लग गए हैं हमारे डेली यूज़ के मसाले भी बहुत हैं उन सभी को अच्छे से बच्चे भी खाने लग गए हैं बच्चे भी मैगी ब्रेड और फास्ट फूड अनहेल्दी चीजों को छोड़कर अपना हिंदुस्तानी दाल रोटी खाने लग गए हैं,और उन्हें भी अपने नानी दादी के पुराने आयुर्वेदिक नुस्खों को अपनाने लगे हैं। आजकल तो बच्चे ही मां को स्वस्थ रहने की शिक्षा दे रहे हैं।बच्चों की पढ़ाई लिखाई भी सब ऑनलाइन हो गई है उसके तरीकों में भी बदलाव आया है हम महिलाएं भी सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल करने लग गई हैं अब घर बैठे हम लोग अपना घर का किराने का सामान भी मंगाने लग गए हैं बिजली का बिल और रोजमर्रा के सारे काम ऑनलाइन करने लग गए हैं यह सब परिवर्तन आया है और सब को यह बात समझ में आई है सादा जीवन उच्च विचार।
*अच्छा खाओ और स्वस्थ रहो स्वास्थ ही सच्चा धन है यह बात सबके समझ में आ गई है।
स्वस्थ रहो और मस्त रहो*
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
बेशक कोरोना से लोगों के विचारों मे परिवर्तन शुरू हो गया है ।कोरोना ने लोगों को बदल कर रख दिया है जबरदस्त परिवर्तन लाया है ये कोरोना।
शायद कुदरत वर्तमान मानवीय प्रणाली को कुछ सिखाना चाह रही है ।बहु भृमित हो चुकी मानवीय सभ्यता को,सुधार की राह पर लाना चाह रही है।
,,कोरोना,, अपने आप मे अनोखा है,मात्र एक वायरस ने देशो की सीमाएं तोड़ पूरा एक वैश्विक आकार ले लिया है ।अब तो आपसी युद्ध और नफरत इस समय लगभग समाप्त है। इस वक्त न मिसाइलों की जरूरत है,न तोपो की,जरूरत है तो सिर्फ इंजेक्सन की, थर्मा मीटर की।
अब तो कही धार्मिक उन्माद भी नजर नही आता,मंदिर मस्जिद के झगड़े लगभग खत्म हैं।इस समय जाति पात के झगड़े थम चुके हैं,,,,,।
अब तो लोग परम पिता परमेश्वर को मंदिर ,मस्जिद चर्च और गुरुद्वारों मे खोजने के बजाय अपने अपने हृदय मे खोज प्रार्थना करने मे लगे हैं। खासा आध्यात्मिक हो चले हैं ।
आधुनिक समाज मे फैली अनैतिक सम्बन्धो की बाढ़ लगभग थम चुकी है ,मांसाहार भी अब बन्द है।अब नयी सभ्यता का आलिंगन , चुंबन बन्द होकर प्राचीन मर्यादित प्रणाली ,,नमस्ते,,पूरे विश्व की सभ्यता बन रही है। पूरे मानव समाज ने अनुसाशन मे रहना सीख लिया है।
इस समय अमीर गरीब , सुन्दर कुरूप, अज्ञान विद्वान एवं राजा रंक का भेद भी पूरी तरह इस ,,कोरोना,, ने मिटा रखा है क्योंकि इस वायरस की नजर मे सब बराबर हैं केवल मानव है केवल मानव शरीर ,,,,,।
बेगानो की भीड़ मे खोया आधुनिक मानव समाज अपने अपने ,,परिवारों,, मे वापस लौट चुका है ।
विदेश प्रेमियों को अचानक स्वदेश से प्रेम उतपन्न हो गया है सभी अपने वतन का रुख कर रहे हैं,,,,।
यही आज का कठोर सत्य है,मैं भी इस वैश्विक जनसमूह का अति सूक्ष्म हिस्सा हूँ,,,।कोरोना के बहाने ,लॉक डाउन के बहाने लोग खासा अनुशाषित हो चुके हैं।
मेरी परम पिता परमेश्वर से यही प्रार्थना है कि वह सभी के गुनाह माफ़ कर ,,कोरोना,, नामक कुदरती प्रकोप से रक्षा करें।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
मनुष्य शरीर की सारी गतिविधियों और क्रियाकलापों का संचालन केंद्र मनः संस्थान है, इच्छाएँ, आंकांक्षाएँ, विचारधाराएँ और भावनाएँ मन में ही उठती हैं l स्वस्थ्य मनोभावना ही व्यक्ति के जीवन को सुयोग्य, संस्कारी और जीवन में आत्मविश्वास से परिपूर्ण करती है या यूँ कहे कि संतुलन और सामंजस्य ही कोरोना के साथ हमें जीवन पथ पर तालमेल बैठाकर जीने की राह दिखा रहा है l
संतुलन के चार पक्ष हैं ---
1. सतर्कता और सजगता
2. विचार प्रवाह और कल्पना
3. व्यवहार और अभ्यास
4. रुझान और उत्साह
इन चारों के सुव्यवस्थित क्रमबद्धता को बनाने का कार्य कोरोना संकट ने किया है अर्थात मानव संतुलन के रास्ते दौड़ने लग गया है l निःसंदेह मानव के विचारों में परिवर्तन शुरू हो गया है और परिवर्तन के जिस पथ पर आज हमारा मानव समाज चल रहा है उस रास्ते का मंजर तो देखिये ---
बची है एक ही सूरत, सजल बचाने की
हर एक शक्स को तलवार कर दिया जाये l
सरों पर आ गये हैं अब, सर उतारने वाले
अमीरे शहर को होशियार कर दिया जाये ll
कोरोना संक्रमण ने हमें होशियार कर दिया है l आज हम वैचारिक क्रांति के साथ उसके साथ कदम मिलाने को तैयार हैl
1. आज हमारी नींद अलार्म से नहीं चिड़ियों की चहचाहट, परिंदों के शोर से खुलती है जिनकी आवाज़ भी हम भूल गये थे l सुबह का आलम इतना हसीन है तो शाम का आलम क्या होगा... फलक पर उड़ते हुए सफ़ेद रुई जैसे बादल बेहद दिलकश लगने लगे है l
2. दुनियाँ का लॉक डाउन प्रकृति के लिए बेहद मुफीद साबित हुआ है l वातावरण धुलकर साफ हो चुका है, हाँलाकि ये तमाम कवायत कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए है लेकिन पर्यावरण का बदलाव आज हम देख रहें हैं l हमारा वैचारिक चिंतन ऐसा हो जाये कि यह चिंतन हमेशा के लिए स्थिर हो जाये इसके लिए लोगों को अपनी आदतें बदलनी पड़ेंगी l अगर हम स्वयं नहीं बदलेंगे तो प्रकृति आपको इसके लिए बाध्य कर देगी l हमारी विचारधारा व जज़्बा इस कदर हो गया है कि हम इस समय का अंधकार को स्वच्छ और हरे भरे वातावरण से मिटा देंगे l
3. आज हमारा वैचारिक चिंतन इस तरफ भी है कि जब इस विश्वव्यापी महामारी का आना तय था तो इससे निपटने की
पूर्व तैयारी नाकाफी क्यों थी? लेकिन बीत गया सो बीत गया l आज हमें रोजगार, अच्छे भोजन, सफाई और स्वास्थ्य सेवाओं के सुद्धरणीकरण पर विचार करने होंगे l
4. हमें विचार करना होगा कि कोरोना वायरस से मानव समाज व अर्थव्यवस्था पर पड़ी चोट कितनी बड़ी होने जा रही है l हावड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का मानना है कि दुनियाँ की 20%से 60%आबादी में यह संक्रमण फैलना तय ही है तथा इस वायरस के चलते 1.4करोड़ लोगों से 4. 2करोड़ लोगों की जान जा सकती है l इस खतरे के लिए भी हमें विचार करना होगा l किसी टीके या दवा के बिना अभी कई साल तक हमारी जिंदगी में यह उथल पुथल मचाता रहेगा l
5. सभी जरुरतमंदो को बुनियादी आय देने पर हमारे विचार होने चाहिए ताकि कोई भी व्यक्ति भूखा न सोये l यह हमारा मुख्य एजेंडा होना चाहिए l
6. कोरोना संक्रमण ने आज मानव जीवन में अध्यात्म और अधिभूत की वैचारिक अवधारणा को पुष्ट कर दिया है l प्रातः काल घरों में जहाँ डिस्को डांस के गाने बजते थे आज वहाँ
तेरा मंगल, मेरा मंगल, सबका मंगल होय रे, साँसो का क्या भरोसा रुक जाये चलते चलते -कबीर वाणी सुनने को मिल रही है l मानव भ्रांत अहंकार को त्याग कर --
" माली आवत देख कर, कलियाँ करें पुकार
फूले फूले चुन लिए, काल हमारी बार " की विचारधारा का
पोषक हो गया है मेरी दृष्टि में घर और बाहर दोनों जगहों पर जरूरी पुल बनाने का समय आ गया है l
चलते चलते ----
1. कदेक पृथवी ओढ़णो, कदेक पिलंगा पोस
आलो सूखो देखकर, मत खोवे रे होश
दिन पलटयाँ विपदा बढ़ी, राख हिये में धीर
सुख की घड़ियां सब हँसे, दुःख हाँसे सो वीर l
2. घरां घरां मत जारे दुखड़ा, घणो पछतावेलो
मेरो घर तो खुल्यो पड़ो है, तू कद आवेलो ll
हमारा व्यक्तित्व कोरोना वीर के रूप में उभरे ऐसी परमपिता परमात्मा से प्रार्थना, उपासना और याचना करती हूँ l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
जो चीन के वुहान शहर के रोगियों की आकृतियां देखने पर भय उत्पन्न हुआ था। उससे भारत और भारतीय उबर चुके हैं। विचारों में भी अत्यन्त महत्वपूर्ण परिवर्तन आ चुका है।
जैसे चर्चाओं में डर के स्थान पर कोरोना का उपहास होने लगा है। लोग कहने लगे हैं कि कोरोना जा अब यहां से चला जा। क्योंकि अब तुम्हारी वह इज्जत कहां है? जा-जा अब तेरा सामना करने के लिए सशक्त दृढ़ मोदी सरकार व 130 करोड़ भारतीयों ने कमर कस ली है।
अब तो यहां तक कहने लगे हैं कि कोरोना पाज़िटिव व्यक्ति अपनी इम्युनिटी के बल पर कब कोरोना नेगेटिव हो जाएगा, पता ही नहीं चलेगा? ऐसे-ऐसे साकारात्मक परिवर्तन शुरू हो गये हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जीवन में समय के साथ सब कुछ परिवर्तित होते रहते हैं , कुछ भी स्थाई नहीं है । कुछ परिवर्तित धीरे-धीरे होते हैं जबकि कुछ शीघ्रता से तथा कुछ अकस्मात् ।
कोरोना महामारी ने भी जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया । परिस्थितियों के अनुसार विचारों में भी बदलाव होता गया ।
थमी हुई जिंदगी ने बहुत कुछ नये अनुभव दिये । अपने-पराये का अहसास हुआ .......जो जाने अनजाने दूर हो गये या लाॅकडाउन के कारण उन्हें दूर रहना पड़ा, उन्हें अपनों से दूरी का दर्द महसूस हुआ .......साथ रहने वालों ने विचारों में सामंजस्यता बनाए रखना सीखा........जीवन की गणित को बहुत करीब से समझा .......सोच का दायरा आध्यात्मिकता की ओर भी बढ़ा ........।
सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक, भौगोलिक, वैज्ञानिक आदि सभी क्षेत्रों को लेकर लोगों के विचारों में अनेकों परिवर्तन देखे जा सकते हैं ।
आने वाले समय को भी यह परिवर्तन प्रभावित करेंगे । कोरोना काल को नई वैचारिक क्रांति का युग कहा जा सकता है ।
- बसन्ती पंवार
जोधपुर - राजस्थान
कहा गया है ,कि समय हर किसी को बहुत कुछ सीखा देता है ।यह बात मैंने कोरोना के इस काल में बहुत हद तक देखा ।दया, धर्म, सहनशीलता, धैर्य, परस्पर सहयोग, आत्म संयम, शुद्ध सात्विक भोजन, अत्याधिक सफाई इन सभी गुणों क इस समय सबने पालन भी किया और निभाया भी । मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च जैसे सभी धार्मिक स्थल पूर्णतः बंद थे , लेकिन ईश्वर की आराधना और आस्था घर _घर में यथावत जारी थी । धार्मिक विश्वास और विचारों में कहीं कोई कमी नहीं आई । सारी पुरानी परम्पराओं को पुनः इस कोरोना काल में जीवित पाया गया ।लोग पुराने समय में बाहर से आकर पहले हाथ _ पैर घर के बाहर हीं धोकर अंदर प्रवेश करते थे जो आज सबसे जरूरी है कोरोना काल में।लोग घर से बाहर निकलते समय एक गमछा लेकर निकलते थे , स्त्रियों सिर पर आंचल आज उसी पुराने प्रचलन का प्रवर्तित रुप हमारे विचारों में देखा जा सकता है ।ऐसी बहुत सारी बातें हैं जो इस कोरोना काल में हमारे विचारों को काफी हद तक शुद्ध कर गयी ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
सबसे पहले तो कोरोना से संक्रमण के भय के कारण लोगों में वैराग्य भाव उत्पन्न हुआ है। उन्हें लगने लगा है कि इस संसार में अपना कुछ नहीं है कभी भी संक्रमित होकर कोरोना की लपेट में आने से कुछ भी हो सकता है। लोगों का जमीन जायदाद के प्रति जो मोह था वह कम हुआ है। व्यक्ति को पता चलने लगा है कि सच में दुनिया में कोई भी अपना नहीं है जब कोरोना के पेशैंट को मजबूरी वर्ष घर वाले भी अकेला छोड़ देते हैं तब व्यक्ति को समझ आया है कि सच में कोई भी साथ नहीं देने वाला। हमें अपनी सुरक्षा स्वयं करनी है, अपना ध्यान स्वयं रखना है। हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने सही कहा है कि आत्मनिर्भर बनो। यदि हम अपनी रक्षा स्वयं करते हैं तब ही सब कुछ है।कोरोणा के कारण ही हमें पता चला है कि हमें दोस्तों से हाथ नहीं मिलाना, गले नहीं लगना, किसी को छूना नहीं, मास्क पहनकर रखना है, साफ सफाई रखनी है और उनसे दूरी बना कर रखनी है ..सही शब्दों में कोरोना से हमारे विचारों में जो परिवर्तन आया है उसी से औरों के स्पर्श न करने से छुआछूत जैसी अन्य बीमारियों से भी हम बच सकते हैं। शेष कोरोना ने हमें पढ़ना सिखाया, लिखना सिखाया, बागवानी सिखाई, घर का काम करना सिखाया, औरों की सहायता करनी सिखाई, अपनी ड्यूटी को निभाना सिखाया, परिवार वालों का साथ दिया, जिन महिलाओं को हम कहते थे घर में निठल्ली बैठी रहती हैं अब पता चला कि वह घर में कितना काम करती हैं.. कोरोना के भय से विचारों में परिवर्तन आया। हमें कोरोणा ने सिखाया कि हमें कल के समय के लिए बचत भी करनी चाहिए सारा पैसा नही उड़ाना चाहिए। थोड़े में गुजारा कैसे किया जाता है, हमारा ज्यादा पैसा बाहर दिखावे में ही खर्च होता है, हमने प्रकृति को कितना प्रदूषित किया है। जो देश अपने आपको बहुत धनी समझते थे उन्हें अपनी औकात का पता चल गया। सबसे बडी बात मानव जाति जो घमंड में ऐंठती थी उसे इस प्रकृति ने चौंकन्ना कर दिया कि सत्ता तेरे हाथ नहीं। तू सिर्फ महमान है। सही शब्दों में कोरोना रूपी छोटे से वायरस से पूरी दुनिया के विचारों में अद्भुत परिवर्तन आया है।
- संतोष गर्ग
मोहाली - चंडीगढ़
" मेरी दृष्टि में " कोरोना से सभी के विचार प्रभावित हो रहे हैं । जीवन शैली में परिवर्तन हो रहा है और आगे - आगे देखते है कि परिवर्तन कहाँ तक जाता हैं । यहीं भविष्य की जीवन शैक्षिक बनने जा रही हैं ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र
नूतन गर्ग जी- बहुत सुंदर रचना।
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