क्या भारत तकनीकी दृष्टि से चीन से आगे निकल जाऐगा ?
भारत के इंजीनियर दुनियां के देशों में काम कर रहे हैं । भारत में क्यों नहीं करते हैं । इस की वजह क्या है ? यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । हम सब को इस पर विचार अवश्य करना चाहिए । अब आये विचारों को देखना चाहिए : -
भारत तकनीकी के क्षेत्र में चीन से आगे निकल गया है हमारे यहां के बहुत सारे इंजीनियर सॉफ्टवेयर कंपनियों के मालिक अमेरिका में है। सुंदर पिचाई हमारे भारतीय मूल के ही हैं। अमेरिका में हमारे बहुत सारे डॉक्टर और इंजीनियर काम कर रहे हैं। हमारी सरकार ने भी लोकल उत्पादों को बहुत बढ़ावा दिया है मेड इन इंडिया पर जोर दिया है और हमारे प्रधानमंत्री लोकल फॉर वोकल का नारा भी दिया है कि हमें अपने स्वदेशी उत्पाद का ही प्रयोग करना चाहिए। हम तकनीकी क्षेत्र में किसी को भी पीछे छोड़ सकते हैं। हमने बहुत सारी चीजों का तोड़ बना लिया है और जो चीजें नहीं है उसका भी कोई ना कोई विकल्प बना लेंगे। क्योंकि दुनिया में आयुर्वेद का ज्ञान हमारे ही ऋषि ने दिया है। जीरो और दशमलव भारत की ही खोज है। जिसके सहारे हम तारों की भी गिनती कर सकते हैं।
जो हिम्मत करता है उसकी सहायता भगवान भी करता है हम कर्मशील व्यक्तित्व के धनी हैं हम अपने देश का विकास जरूर कर लेंगे क्योंकि स्वदेशी आंदोलन के सहारे ही हमने अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर किया था अब हमें चीन को सबक सिखाने की बारी है।
हम मानवतावादी दृष्टिकोण से संपूर्ण विश्व को जीने की नई राह दिखाएंगे।
जियो और जीने दो स्वस्थ रहो मस्त रहो।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
तकनीकी दृष्टि में चीन को पछाड़ना कोई बड़ी बात नही नही है यदि इस ओर युवाओ को अवसर देते हुए लगातार इस पर बिना सियासत किये भारत सरकार योजनाओं के अंतर्गत काम करे तो । वही सरकार को ये भी समझ आना जरूरी है कि आत्मनिर्भर भारत के लिए कड़ी मेहनत की जरूरत है । जिसमे सबसे पहली कड़ी भ्रष्ट नेताओं और भ्रष्ट अधिकारियों को उनकी सही जगह दिखाना है ।
वहीं यदि भारत से इसी तरह मंत्री एक दूसरे की खींचा तानी करते रहे तो फिर इनके पिताजी के बसकी भी भारत को आत्मनिर्भर बनाना नही है । आत्मनिर्भर तो छोड़िए साहब यदि यही हाल रहा तो भारतवासी स्वयं किसी के आस्तिक नजर । चीन की तकनीक कमाल की है , जिसका पीछा करते करते भी हमे उस तक आने में काफी समय लग जायेगा ।
वह न केवल स्वयम के देश वासियों को उत्पाद के लिए बढ़ावा देता है बल्कि रियायत ओर सहूलियत भी प्रदान करता । वही आज के समय मे भारत मे उत्पादन करना , व्यापार करना मानो लोहे के चने चबाना है । इस के लिए भारत सरकार को अभी बहुत कुछ सोचने तथा करने की आवश्यकता है ।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
ये निश्चित तौर कहा जा सकता है कि वर्तमान में भारत तकनीकी दृष्टि से चीन से आगे निकलने की प्रतिस्पर्धा कर रहा है और ये प्रतिस्पर्धा अवश्य ही भारत जीत जाएगा । क्योंकि जो इस समय भारत कर रहा है वह युद्ध के लिए नही कर रहा है ये जो विकास की गति को प्राप्त करने का अवसर मिला है उसे पूरी तरह से दोहन कर रहा है ।
युद्ध के परिप्रेक्ष्य में कुछ तथ्य जान लेते हैं चीन की नौसेना की ताकत इस प्रकार है
(1). युद्धपोत 1
(2). विमान वाहक युद्धपोत 48
(3). लड़ाकू युद्धपोत 51
(4). विध्वंसक युद्धपोत 35
(5). छोटे जंगी जहाज़ 35
(6). पनडुब्बियां 68
(7). गस्ती युद्धपोत 220
(8). समुद्री बेड़े 714
आइये अब भारत की युद्ध लड़ने की तकनीकी ताक़त देख लीजिए
(1). युद्धपोत 1
(2). विमान वाहक युद्धपोत 18
(3). लड़ाकू युद्धपोत 15
(4). विध्वंसक युद्धपोत 10
(5). छोटे जंगी जहाज़ 20
(6). पनडुब्बियां 14
(7). गस्ती युद्धपोत 135
(8). समुद्री बेड़े 295
वर्तमान में उपरोक्त बड़ा अंतर है परन्तु तकनीकी रूप से मज़बूत राफ़ेल जैसे लड़ाकू विमान आने वाले हैं जो एक साथ आठ आठ लड़ाकू विमानों को मार गिराने में सक्षम है । फ़्रांस, इज़राइल, अमेरिका, रूस , और आस्ट्रेलिया जैसे देशों से मिलने वाली उन्नत तकनीकी हमें निश्चित ही चीन से बहुत आगे ले जाएगी । स्वदेशी की भावना पनप रही है और नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल हो रहा है जैसे कोरोना काल काल में बचाव के लिए पीपीई किट, मास्क, जो हमेशा बाहर से ही आता था अब देश में निर्मित किया गया है । जिससे भारत में आत्मनिर्भरता बढ़ रही है और भी बहुत से बिंदुओं पर भी देश में प्रबल संभावना को देखा जा रहा है निश्चित तौर पर ये ही क्रम जारी रहेगा और तकनीकी रूप से भारत चीन से बहुत आगे निकल जाएगा ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार धामपुर
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
'आवश्यकता अविष्कार की जननी है'। मानव सभ्यता का विकास इस वाक्य को पूर्णत: सार्थक सिद्ध करता है। भारत भी तकनीकी क्षेत्र में आवश्यकतानुसार नित नये आविष्कार करते हुए इसको चरितार्थ करता है। चीन के विभिन्न एप्स को प्रतिबन्धित करने के उपरांत इनके विकल्प की तलाश भारतीयों के लिए कोई असंभव कार्य नहीं है बल्कि कुछ के भारतीय विकल्प तो सामने भी आ गये हैं। इसी प्रकार जिस तकनीक में भी हम चीन पर निर्भर हैं यदि उस निर्भरता का त्याग करते हुए हम अपनी तकनीक तलाशना प्रारम्भ करेंगे तो निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।
यह सत्य है कि पराश्रित होना कमजोरी और गुलाम मानसिकता का परिचायक है जबकि आत्मनिर्भरता हमें सशक्त बनाते हुए स्वतन्त्र वातावरण उपलब्ध कराती है।
हमारे प्रधानमंत्री द्वारा आत्मनिर्भरता का जो आह्वान किया गया है उसको जीवन की अनेकानेक परिस्थितियों सहित सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्र के साथ-साथ तकनीक के लिए भी पूर्णत: स्वीकार कर तकनीकी विकास के लिए हमारा आत्मनिर्भर होना समय की मांग बन गयी है।
तकनीक में चीन के आगे होने का एक कारण यह है कि भारत सहित विश्व के अनेक देश चीन में बने हुए सस्ते (लेकिन निम्नस्तरीय) उत्पादों पर निर्भर हो गये हैं। जिससे चीन में बनी हुई चीजों की मांग बढ़ती गयी और इससे प्रोत्साहित होकर चीन नये-नये तकनीकी प्रयोग कर अनेक क्षेत्रों में पारंगत होता गया।
अब, जब भारत सरकार ने चीन के एप्स को प्रतिबन्धित कर दिया है, चीनी कंपनियों के कुछ टेन्डर रद्द कर दिये हैं और भारतवासियों द्वारा चीनी सामानों का बहिष्कार करने जैसे कदम उठाए जा रहे हैं तो इसकी प्रतिपूर्ति हेतु भारतीयों को स्वयं तकनीकी प्रयोग करने होंगे। मुझे भारतीय मस्तिष्क की क्षमता में कतई कोई सन्देह नहीं है। बस, शनैः-शनैः विभिन्न क्षेत्रों में तकनीकी विकास के लिए हमें कदम बढ़ाने होंगे।
मार्टिन लूथर का एक वाक्य जीवन की प्रत्येक परिस्थिति में प्रेरक है......
"अगर तुम उड़ नहीं सकते तो, दौड़ो ! अगर तुम दौड़ नहीं सकते तो, चलो ! अगर तुम चल नहीं सकते तो, रेंगो ! पर आगे बढ़ते रहो"
अत: इससे प्रेरणा लेते हुए भारतीय वैज्ञानिक कठिन मेहनत के साथ अपनी बौद्धिक क्षमता में दृढ़ता का समावेश करते हुए तकनीकी क्षेत्र में कार्य करें तो अवश्य ही तकनीकी दृष्टि से भारत चीन के आगे खड़ा होगा।
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
कोरोना संक्रमण फैलाने में दुनियाभर से घिरे चीन से कई देश अपने कारोबार को समेटने लगे हैं। इसमें अमेरिका, आस्ट्रेलिया, जापान, भारत सहित दर्जनों देश शामिल है। भारत के पास इस परिस्थिति में तकनीकी दृष्टि से चीन से आगे निकलने के लिए सुनहरा अवसर है। वैसे भी कई देश चीन से अपने कारोबार को समेटकर भारत मे निवेश करना चाहते हैं। भारत भी चीन से अपनी आत्मनिर्भरता खत्म कर अपने यही वैसे सामानों का उत्पादन करने की प्रक्रिया शुरू कर दिया है। इससे कोरोना के कारण देश मे करोड़ो बेरोजगार हुए तकनीकी से दक्ष मजदूरों को रोजगार मिलेगा। चीन द्वारा भारत पर हमले के बाद गतिरोध जारी है। इसी बीच भारत ने कड़ा फैसला लेते हुए टिक-टॉक सहित 59 मोबाइल एप पर बैन लगा दिया है। भारत मे टिक-टॉक के 60 करोड़ यूजर्स है। यह देश के 130 करोड़ लोगों की सुरक्षा के लिए खतरा था। भारत के इस फैसले से चीन को बहुत ही बड़ा नुकशान होगा। एक तरह से देखा जाय तो भारत की ओर से चीन के खिलाफ आर्थिक मोर्चे पर हमला कर दिया गया है। वहीं लद्दाख के गलवान घाटी सहित हर सीमा पर सैनिकों को युद्ध के लिए तैनात कर दिया गया है। भारत हर हाल में चीन को सबक सिखाने के लिए तैयार बैठा है। इस समय भारत के समर्थन में अमेरिका, आस्ट्रेलिया, जापान सहित कई देश खड़े हैं।
भारत ने यदि समय रहते मौका का फायदा उठाया तो निश्चित तौर पर तकनीकी दृष्टि से चीन से आगे निकल जाएगा।
- अंकिता सिन्हा साहित्यकार
जमशेदपुर - झारखंड
अंग्रेजों के शासन काल के बाद चीन और भारत के उदय की शुरुआत एक साथ हुई ।लेकिन अनुशासन और समर्पण की भावना ने चीन को काफी आगे बढ़ दिया ।हमारे देश में भी प्रगति हुंई लकिन चीन की तुलना में हमारे यहाँ तकनीकी विकास कम हुआ ।1980 में दोनों देशों का तकनीकी विकास एक बराबर था ।हमने रिसर्च के क्षेत्र में कम खर्च किया ।पाँचवे वेतन आयोग लागू होने के बाद से भारत सरकार की स्थिती ऐसी नही रही कि वह अनुसंधानो पर अच्छा खर्च कर सके ।बीच में राजनीति में लगातार परिश्रम न करने की भावना ने घर कर लिया था ।साथ ही भ्रष्टाचार का खेल अपने चरम सीमा पर था ।कहने का अर्थ है कि हमारी सोच और हमीरी व्यवस्था ने ही हमें पीछे धकेल दिया ।अब शोध और शिक्षा दोनों पर ध्यान देना चाहिए ।हर घर में कुछ उत्पादन क्षमता हो ।एक दिन एक -एक मिल कर बड़ी संख्या बनेगी । जब प्रयास शुरु हो चुका है तो कुछ वक्त के बाद भारत तकनीकि दृष्टि से चीन के आगे अवश्य निकलेगा ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
देश आजादी के बाद से समस्त विकासों की ओर अग्रसर हैं। लेकिन परिवर्तित समयों में अपने ही प्रबुद्ध जनों द्वारा विदेश नीतियों को अपनाने के परिप्रेक्ष्य में देशी वस्तुओं का पूर्ण रूपेण महत्व घटता गया, जिसका परिणाम यह हुआ कि अपने ही देश के विदेशी वस्तुओं के गुनगान तथा उसके प्रति आकर्षित हो चले थे। आज वर्तमान परिदृश्य में देशी वस्तुओं का महत्व समझने आया और उनका परित्याग करने लगे और आने वाली पीढ़ियों को देशी वस्तुओं के प्रति महत्ता का जनजागरण अभियान चलाया जा रहा हैं। विदेशी प्रत्यक्ष वस्तुओं की होलियाँ जलाई जा रही हैं, अप्रत्यक्ष वस्तुओं की होलियाँ जलाई जाना शेष हैं। गत दिवस चीन को बायकाॅट याने 59 ऐप्स पर बैन का शुभारंभ किया गया हैं, अभी तो अप्रत्यक्ष सामग्रियों को पूर्णतः प्रतिबंधित की आवश्यकता प्रतीत होती हैं। जिस दिन ऐसा हो गया तो देशी वस्तुओं की खपत चिरस्थायी हो जायेगी। भारत को चाहिए, प्रत्यक्ष तकनीकी दृष्टि से अनुशासित ढ़ंग से
स्थानीय रोजगार, उत्पाद को प्रबुद्ध बनाना होगा, तभी आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर होगा। भारत को चाहिए विदेश नीतियों को शक्तिशाली बनाने प्रयत्नशील होना पड़ेगा और समस्त विदेशी ठेकों को निरस्त कर, भारतीय जन मानस को भावनात्मक सजक हो।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
भारत तकनीकी दृष्टि से माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी के नेतृत्व में अवश्य चीन से आगे निकल जाएगा। बिल्कुल ऐसे जैसे सूर्य सबसे पहले भारत में अवतरित होता है और प्रकाश की किरणें चारों ओर फैला कर भारत को प्रकाशमान करता है।
सच तो यह है कि भारत तकनीकी दृष्टि से ही नहींं बल्कि मानवीय सांस्कृतिक संवेदनाओं सहित हर पहलु में अग्रिम पंक्ति का राष्ट्र था और सोने की चिड़िया कहलाता था। किन्तु हम पश्चिम संस्कृति की चकाचौंध में लुप्त होकर अपनी संस्कृति को भूल बैठे। जिसके दण्ड स्वरूप हम तकनीकी दृष्टि से ही नहीं बल्कि प्रत्येक स्थान पर पिछड़ते चले गए।
सर्वविदित है कि हमारे ऋषियों-मुणियों द्वारा लिखित धर्मग्रंथों में भूगोल ही नहीं बल्कि अंतरिक्ष में उपस्थित तारों की गति का भी स्पष्ट वर्णन किया गया है। जिसकी सत्यता की युगों-युगों के अंतराल उपरांत विज्ञान भी पुष्टि कर रहा है। अर्थात विज्ञान सिद्ध कर रहा है कि भारत हर युग में वैज्ञानिक दृष्टि से भी अग्रसर था।
उल्लेखनीय है कि त्रेतायुग में पूज्य रामायण ग्रंथ में श्रीराम प्रभु के छोटे भाई लक्ष्मण जी ने एक रेखा खींची थी। जो लक्ष्मण रेखा के नाम से आज भी विख्यात है। उस अस्त्र का तोड़ 16 कला सम्पूर्ण महापंडित लंकापति रावण के पास भी नहीं था। इसी प्रकार द्वापर युग में श्रीकृष्ण जी का सुदर्शन चक्र वह अस्त्र था। जो सम्पूर्ण विश्व का नाश करने के उपरांत पुनः उनकी उंगली में आकर विराजमान हो जाता था।
ऐसे पूर्वजों का भारत किसी चीन इत्यादि देश की तकनीक से पीछे कैसे रह सकता है? बस एक संन्यासी के मार्गदर्शन की आवश्यकता थी। जो 'आत्मनिर्भर भारत' के माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी के रूप में घोषित 'वोकल फार लोकल' के मंत्र से कर चुके हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
क्या भारत तकनीकी रूप से चीन से आगे निकल जाएगा जहांँ तक यह प्रश्न है तो मेरा विचार है यह बात बिल्कुल सही है की आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है और भारत के सॉफ्टवेयर इंजीनियर तमाम दुनिया के देशों में फैले हुए हैं इसी प्रकार दूसरे क्षेत्रों में भी भारतीयों ने अपना दबदबा और पहचान कायम की है यदि हम चीन के उत्पादों पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं और उसे उसकी औकात बताना चाहते हैं तो उसके उत्पादों का बहिष्कार करने के लिए हमें अपनी तकनीकी क्षमता और उन्नत टिकाऊ एवं प्रतिस्पर्धी कीमतों पर उत्पादों का निर्माण करता होगा जिससे न केवल उनका उपयोग देश में हो सके बल्कि हम उन्हें विभिन्न देशों को भी निर्यात कर सके और यदि वे उन्नत किस्म और प्रतिस्पर्धी कीमत पर उपलब्ध होंगे तो निश्चित रूप से ही हमारा निर्यात विभिन्न देशों के साथ बढ़ेगा और देश आर्थिक रूप से सबल होगा इसमें कोई दो राय नहीं है कि यदि इस ओर विशेष ध्यान दिया जाए तो भारत तकनीकी दृष्टि से से चीन से आगे निकल जाएगा ......!
- प्रमोद कुमार प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
आज तो चीन बहुत आगे है भारत से तकनिकी दृष्टि से , पर हम आगे निकल सकते है यदि विदेशी निवेश व स्वरोजगार को बढ़ावा दे सरकार लघु उघौग और कई उघौग को बढ़ावा दे और स्वंयम भी लगाये तभी हम आज की स्थिति से ऊबर कर नया भारत का निर्माण कर सकता है , और चीन को टक्कर दे सकते हैं ,
कोरोना संकट के बीच अर्थव्यवस्था के सामने खड़ी हुई चुनौती को साधने के लिए मोदी सरकार ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने की कवायद शुरू कर दी है। भारत को फिर से तेज विकास की राह पर चलने के लिए 5 चीजों इंटेंट (इरादा), इंक्लूजन (समावेश), इन्वेस्टमेंट (निवेश), इन्फ्रास्ट्रक्चर (बुनियादी संरचना) और इनोवेशन (नवाचार) का होना बहुत जरूरी बताया है। लेकिन लक्ष्य तक पहुंचने के लिए भारत को चीन के रास्ते पर चलना होगा। जिस तरह चीन पिछले 40 सालों में आत्मनिर्भर बना और दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन कर उभरा, वो सब कदम भारत को आत्मनिर्भर बनने की सीख और प्रेरणा देते हैं।
हमें गौर करें तो आज चीन दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश है। दुनिया को सुई से लेकर जहाज तक हर चीज निर्यात करता है। आज वह एक प्रमुख आर्थिक शक्ति बन चुका है। चीन ने पिछले तीन-चार दशक में जो हासिल किया है, वो काबिल-ए-तारीफ है। सबसे ज्यादा आबादी वाले देश चीन की अर्थव्यवस्था भारत की तुलना में चार गुनी बड़ी है, और कुछ ही सालों में इसके अमेरिका से भी आगे बढ़ जाने की उम्मीद है। भारत को चीन के आर्थिक विकास और प्रगति से सीखने की जरूरत है।
। देश में आधुनिक तकनीक की फैक्ट्रियां स्थापित कीं और भारी मात्रा में माल का उत्पादन करके निर्यात किया। इस प्रक्रिया में चीन में भारी संख्या में रोजगार के अवसर सृजित हुए और चीनियों की आमदनी भी बढ़ी। इसकी तुलना में भारत में 1992 के बाद ही विदेशी निवेश के लिए दरवाजे खुले। तब भी आधे-अधूरे मन से ही उसे स्वीकार किया गया। ध्यान रहे कि उस समय भारतीय उद्यमियों ने ‘बॉम्बे क्लब’ नाम का गुट बनाया था जिसने विदेशी निवेश का विरोध किया था। हमारी रणनीति यह रही कि हम अपनी सरहदों पर दीवार बनाएं और घरेलू उत्पादों को बढ़ावा दें जिसे ‘आयात प्रतिस्थापन’ कहा जाता है। कुछ अर्थशास्त्री इस विचार के हिमायती रहे।
अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के चीन से भारत आने की शुरुआत जर्मनी की फुटवियर कंपनी 'कासा एवर्ज़ गंभ' के साथ हो चुकी है. वॉन वेल्क्स ब्रांड से फुटवियर बनाने वाली ये कंपनी भारत में शुरुआती 110 करोड़ का निवेश कर रही है. ये कंपनी चीन में सालाना 30 लाख फुटवियर का उत्पादन कर रही थी. जो कि अब उत्तर प्रदेश में लगाई गई यूनिट से किया जाएगा.
सूत्रों के मुताबिक कम से कम 300 कंपनियां मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, मेडिकल डिवाइसेज, टेक्सटाइल्स, लेदर, ऑटो पार्ट्स और सिंथेटिक फैब्रिक्स सहित कई क्षेत्रों के 550 प्रोडक्ट के लिए भारत में फैक्ट्रियां लगाने के लिए सरकार के संपर्क में हैं.
कई कंपनियों के चीन छोड़ भारत में मैन्यफैक्चरिंग यूनिट लगाने की खबर आने के बाद चीन भड़क गया है. चीन की कम्युनिस्ट सरकार के माउथपीस चाइनीज डेली ग्लोबल टाइम्स ने बौखलाते हुए कई आलेख लिखे हैं.
दरअसल चीन जानता है कि दुनिया में अगर उसे कोई टक्कर दे सकता है तो वो है भारत है
इस लिए चीन बौखलाया है भविष्य में चीन से भारत आगे निकल सकता है ।
उसके लिये बहुत कोशिश व आत्मनिर्भर बनने की जरुरत है
जनसंख्या में बृद्धि दर को कम करना ही पड़ेगा तथा जनसंख्या की शिक्षा व स्वास्थ्य पर प्राथमिकता के आधार पर ध्यान देना होगा। कृषि व ग्रामीण क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। इसमें ही बड़ी मात्रा में रोजगार देने की क्षमता भी है। अत: कृषि, छोटी दुकान (फुटकर व्यापार) तथा छोटे उद्योगों पर भी ध्यान देकर भारत में व्यापक रोजगार नीति बनानी पड़ेगी जिससे रोजगार बढऩे से लोगों की जेब में नकदी आये और उस नकदी से वे बाजार में जाकर वस्तुओं की मांग करें। तभी अर्थव्यवस्था में मजबूती आ सकेगी। भारत व चीन में आर्थिक प्रतिस्पर्धा का धनात्मक प्रभाव यह पड़ेगा कि दोनों ही देशों में श्रम शक्ति को महत्व मिल सकेगा।
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
कोरोनावायरस के बाद चीन-भारत सीमा विवाद जब भी होता है तो भारत वासियों के मन में यह बात आती है चीन के सामान को बहिष्कार करना है।
गलवान मे सरहद पर हमारे वीर 20 बहादुर सैनिक का शहीद होने बाद भारत वासियों ने चीनी वस्तु को बहिष्कार करने का मन बना लिए हैं कहीं-कहीं पर तो चीनी सामान का होलिका दहन भी किया गया है। बहिष्कार के रास्ते से उसकी आर्थिक स्थिति कमजोर होगी।
18-19 मे 75 मिलियन डॉलर के चीन ने निर्यात किया। 18-19 मे ही भारत ने 70 मिलियन डॉलर के सामान निर्यात की। ईससे भारत व्यापार घाटा में रह।
यह सब देखते हुए आदरणीय मोदी जी कौशल विकास की आवश्यकता बढ़ाने पर जोड़ दिए है।
नई अनुमान में कहा गया है की 2024 तक भारत कौशल विकास करके तकनीकी दृष्टि से चीन से आगे निकल जाएगा। हमारे यहां कर्मठ युवा शक्ति के आयु 25 से 30 साल के बीच है। युवा शक्ति आत्मविश्वास से भरे हुए हैं जिसके कारण भारत तकनीकी दृष्टि से चीन से आगे निकल जायेगा। जानकार सूत्रों से अवगत हुआ है साथ-साथ अर्थशास्त्री का भी अनुमान है। यह संभव है।
लेखक का विचार:- केंद्र सरकार और राज्य सरकार प्रशासन तीनो के सहयोग से कौशल विकास की गति तेज करे यहां पर कोई राजनीति ना हो तो भारत तकनीकी दृष्टि से चीन से आगे निकलने के बाद भारत का अर्थव्यवस्था भी शुद्धीढ हो जाएगा।
चीन से आगे निकल कर अमेरिका के समकक्ष भारत खड़ा हो सकता है ।यह मेरा अनुमान है। भारत के पास कर्मठ युवा शक्ति है।यह महामारी और सरहद पर 20 जवान के शहीद होने से सब भारतीयों को आत्मविश्वास जग गया है।
*" युवा शक्ति का कहना है मेरा पहचान मेरा वतन"*
- विजयेंद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
तकनीकी रूप से अभी हम चीन से काफी पिछे नजर आते हैं। किन्तु वर्तमान सरकार द्वारा कौशल विकाश योजना के तहत युवाओं को कौशल विकाश से जोड़ कर उन्हे तकनीकी दृष्टी से त्यार किया जा रहा हैं बदली परिस्थिती में जब भारत में दुनियां में सबसे ज्यादा युवा हैं तब हमारे लिये यह एक सुन्हरा मौका हैं। की हम अब अपने सामर्थ को कौशल विकाश पर खर्च कर अपना ओर देश का तकनीकी में आगे बढा सकते हैं ओर दुनियां मे अपना डन्का बजा सकते हैं फिर चीन क्या चिज हैं। कोई शक नही की हम चीन को भविष्य में तकनीकी रूप से काफी पिछे चुके होंगे ।
- कुन्दन पाटिल
देवास - मध्यप्रदेश
तकनीकी दृष्टि से भारत चीन से आगे निश्चित रुप से निकल जाएगा। भारत अपनी क्षमताओं और प्रतिभाओं को भुलाए रहा इसी कारण तकनीकी दृष्टि से पिछड़ता रहा। जबकि यहां की प्राचीन तकनीकी को अध्ययन कर, विदेश के इंजीनियर्स ने अपने यहां बहुत विकास किया। भारत की प्रतिभाओं का पलायन अमीर देशों में लिए होता रहा, और वह आगे बढ़ते रहें। जबकि भारत दूसरे देशों की तकनीक पर आश्रित हो गया। अब वैश्विक परिस्थितियों में परिवर्तन आया है भारत में चाइनीझ तकनीक को दरकिनार करना शुरू कर दिया गया है और अपने भारत के वैज्ञानिक प्रतिभाओं को क्षेत्र में काम करने के लिए प्रोत्साहित किया है।तो अब भारत का तकनीकी रूप से विकसित होना और चीन जैसे देशों को तकनीक के मामले में पछाड़ देना कोई आश्चर्य की बात नहीं होगा। आज भी भारत कई क्षेत्रों में तकनीकी रूप से बहुत समृद्ध है और विश्व के अन्य देशों के मुकाबले बहुत आगे हैं।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उतर प्रदेश
चीन पर भारत ने डिजिटल स्ट्राइक करके चीन की तकनीकी शक्ति का बहिष्कार किया । चीन ने भारत की
गलवान घाटी पर की धोखेबाजी से भारत ने चीन के प्रतिबंध एप पर कर दिया है । फैसला सीमा विवाद की वजह से ले लिया है । अब चीन पर भारत ने डिजिटल स्ट्राइक करके चीन की कंपनियों को करोड़ों रुपये का नुकसान करेगा । अब भारतीयों कब डेटा चोरी नहीं हो
सकेंगे । निजता , गोपिनीयता अब चोरी नहीं हो सकेगी ।
अब भारत के वैज्ञानिक इन तकनीकी के एप , गजट आदि को खुद ही बनाने का सोचेंगे । चीन से डिजिटल पाबंदियां से ही भारत आत्मनिर्भर की दिशा में आगे बढ़ेगा । चीन के 59 एप के डिजिटल खजाने पर भारत ने प्रहार किया ।भारत में पहले भी डेटा लीक हो रहे थे । तब सरकार ने कार्यवाही नहीं की ।
गलवान घाटी में हुई हिंसा में शहीद हुए भारतीय सैनिकों
की शहादत से चीन से आर्थिक संबन्ध खत्म करने का सरकार ये फैसला साकारकात्मक है ।
निश्चित तौर से मनोवैज्ञानिक दवाब तो चीन पर बना ही है ।
- डॉ मंजु गुप्ता
मुम्बई - महाराष्ट्र
निःसंदेह हाँ--!क्योंकि भारत के पास वह दर्शन--वह अध्यात्मिक ज्ञान - - वह शास्त्र- वह ज्ञान विज्ञान है जिसकी आज विश्व को सर्वाधिक आवश्यकता है।
आज विश्व के अधिकांश वैज्ञानिक क्षमता संपन्न देशों ने नित्य नये-नये आणविक और जैविकीय शोध से दुनिया को विनाश की कगार पर ला खड़ा किया है। द्वितीय विश्वयुद्ध में इसके भयावह परिणाम हिरोशिमा और नागासाकी के आज भी डराते हैं। वर्तमान कोरोना महामारी ने कहर मचा रखा है। चीन और भारत भी इस दौड़ में पीछे नहीं हैं। लेकिन भारत एक शाँतिप्रिय एवं संस्कृति जन्य राष्ट्र है अतः भारत की तकनीकी प्रगति सकारात्मक अधिक है मगर चीन का तकनीकी विकास विध्वंसक है--सांस्कृतिक सामाजिक और सामरिक तीनों ही दृष्टि से।
इसमें कोई संदेह नहीं कि कुछ तकनीकी दिशाओं में चीन भारत से आगे रहा है। उसका कारण रहा है भारत की तथाकथित गरीबी और साधनहीनता। बार बार के आक्रमणों और विदेशी शासनों ने असली भारत और उसकी क्षमता को उभरने का अवसर ही नहीं दिया। अँग्रेज़ी शासन ने सिर्फ क्लर्क निर्मित किये। लार्ड मैकाले अपनी षड्यंत्रकारी शिक्षा नीति को लागू करने में सफल रहा और देश की प्रतिभा सिर्फ अँग्रेज़ी भाषा के चलते पाताल में धँस गई। संस्कृत और हिंदी की उपेक्षा ने युगों युगों के ज्ञान विज्ञान को बिसरा दिया।
भारतीय पुराण कपोल-कल्पना हैं या विज्ञान यह प्रश्न आज भी ज्वलंत है। आधुनिक वैज्ञानिक आविष्कारों की कहें तो हमारे वेद पुराण रामायण महाभारत ने उन वैज्ञानिक तथ्यों को प्रमाण सहित दिखा दिया है जिनको आज पश्चिमी और अन्य देश अपना आधुनिक वैज्ञानिक आविष्कार मानते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि वे आविष्कार नहीं (invention)नहीं बस पुनरावृति (डिस्कवरी) हैं।आज के एटम और हमारे पाशुपत--आज के न्यूट्रॉन बम और हमारे शूराशूल में निर्माण विधि में फर्क हो सकता है लेकिन परिणाम में नहीं। जिस तरह से हिटलर वेद की सहायता से एटम का निर्माण करके दुनिया का अधिपति बनने के सपने देखने लगा था - - - कुछ वैसे ही सपने आज गिरगिट चीन देख रहा है। लेकिन अंजाम उसका भी वही होगा जो अब तक ऐसों का हुआ है। महाकाश पर आधिपत्य समझने वालों को महाकाल की सत्ता अपना स्वरूप दिखा ही देती है
प्राचीन युग में भारत ने केमिस्ट्री गणित और भौतिकी आदि दिशाओं में अपना स्थान सबसे ऊँचा बना लिया था। पार्थिव जगत के ज्ञान विज्ञान के चरम पर पहुंच कर भारत ने शांति की खोज की ओर कदम बढाए। यहां के ऋषि मुनि विज्ञानी शांति की तलाश में दर्शनशास्त्र की ओर मुड़ गए। दर्शन (अध्यात्म) ने उन्हें सिखाया कि जहां पहुंचकर विज्ञान खत्म होता है वहां से दर्शन का जन्म होता है
आज भी भारतीय दर्शन संसार में सर्वोच्च स्थान पर विराजमान है--हाँ भारतीय प्रतिभा विनाशकारी विज्ञान को भुला कर कुछ पिछड़ी हुई नजर आ रही है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि चीन जैसे धोखेबाज सांस्कृतिक मूल्यों से हीन पाखंडी आगे निकल जाएंगे। उधार के ज्ञान के आधार पर उनका किसी भी बुलंदी पर पहुंचना आसान है लेकिन बुलंदी पर टिकना मुश्किल है। शारीरिक और मानसिक दृष्टि से दुर्बल चीन की अगली पीढ़ी अगले कुछ ही समय में भारत की पिछलग्गू होगी। चीनी एप्स पर लाए बैन ने नई संभावनाओं की तलाश के रास्ते दिये हैं। आज का परिदृश्य भले ही कुछ भ्रामक है मगर भविष्य फिर से हमारा है - - चीन चीन है और भारत भारत है--अतुल्य भारत
- हेमलता मिश्र मानवी
नागपुर - महाराष्ट्र
आज का भारत पहले से अधिक मजबूत और नई तकनीकी दृष्टि से भी आगे है। खिलौना बनाने वाला चीन हमारी बराबरी नही कर सकता। इसमें कोई शक नही है कि अभी के वक्त में भारत चीन से बहुत आगे है। चीन के हर एप्लिकेशन पर भारत मे प्रतिबंधित कर दिया है। कारण चीन की काली करतूत और हमारी मजबूत अर्थव्यवस्था है। हम अभी भी सारी एप्लिकेशन अपने देश की ही चलाएंगे और अपने देश की अर्थव्यवस्था पहले से और मजबूत करेंगे। आज के समय में हर प्रकार के युद्ध से लड़ने के लिए भारत सक्षम है। और तैयारी भी है कि चीन ने यदि युद्ध की कोशिश भी तो खात्मा तय है। हमारे आज के हथियार चीन को यू ही मिटा सकते है। इसलिए हम गर्व से कह सकते है कि भारत की तकनीक दृष्टि चीन से बहुत आगे है और आगे चलकर और मजबूत होगी।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
भारत तकनीकी दृष्टि से चीन से आगे निकल सकता है बशर्ते सरकार एक अच्छी सोच और दूरगामी नीतियों के साथ इस ओर बढ़े और यहां की जनता भी जागरूकता के साथ विकास को मूल मुद्दा बनाएं।
हमारे यहां वादें ज्यादा की जाती हैं पर काम कम। हल्की एवं थोड़ी देर आंधी तूफान आने पर 5-6 घंटे बिजली बाधित हो जाना साबित करता है कि यहां जनता के मूल मुद्दों से सरकारी तंत्र को कोई सरोकार नहीं है। जमीनी स्तर पर तकनीकी विकास बहुत कम है।
सन् 1990 तक भारत और चीन तकनीकी रूप से एक धरातल पर खड़े थे पर 30 वर्षों में चीन ने विकास की गति में उड़ान भरी और भारत कछुए की चाल में आगे बढ़ता रहा। दोनों की अर्थव्यवस्था में विशाल फासला हो चुका है फिर भी हम नाउम्मीदी के साथ नहीं जी सकते।
हमारी सरकार को शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश को प्राथमिकता देने की जरूरत है। विकास अपने आप होगा। भारतीय बुद्धिजीवी और वैज्ञानिकों को उचित संसाधन मुहैया कराकर नवीनतम तकनीक एवं उपकरणों के माध्यम से प्रगति के रास्ते पर अग्रसर हो सकते हैं। आधुनिकतम तकनीक, स्वचालित मशीनों और साथ ही विकसित देशों से प्राप्त अनुभव और अध्ययन भारत को विकास की दिशा में ले जाने में सहायक हो सकता है।
चीन का क्षेत्रफल भारत से 3 गुना अधिक है। इसके बावजूद चीन अपने देश के प्रत्येक गांव और नगर को रोड से जोड़ने में सफल हुआ। उनके रेलवे स्टेशन किसी आधुनिक एयरपोर्ट से कम नहीं। वहां तेज गति से चलने वाली रेलें यात्रा में रोमांस तो भरती ही हैं साथ ही कम समय में ज्यादा दूरी भी तय करती हैं। हम तकनीक में तो पीछे हैं हीं, अपनी कोशिशों में भी पीछे दिखाई देते हैं।
हमें अपनी इन्हीं खामियों और कमजोरियों पर ध्यान देने की जरूरत है। हमारे देश में चुनाव प्रचार, बेवजह के प्रदर्शन और फालतू कार्यों पर पैसों की बर्बादी बहुत ज्यादा होती है। अगर जनता के टैक्स का सही इस्तेमाल हो , प्रतिभाओं का सदुपयोग हो, राजनेता और अधिकारीगण अपनी जिम्मेदारी इमानदारी पूर्वक निभाएं, सही दिशा में गंभीरता पूर्वक विकास कार्य हो तो निश्चित रूप से हमारा भारत तकनीकी दृष्टि से चीन से आगे निकल जाएगा।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
भारत तकनीकी दृष्टि से चीन से भी आगे निकल ही जाएगा ।
मेरे विचार में हमारा भारत देश चीन से काफी आगे ही निकला हुआ है । क्योंकि हमारा भारत देश अनेक प्रतिभाओं, क्षमताओ की खान है।
तभी तो चीन की कुदृष्टि हमारे भारत पर है ।
क्योंकि अधिकतर हमारे देश के युवा टेक्नीशियन, इंजीनियर, डॉक्टर और रिसर्च में सभी देशों में छाए हुए हैं जिस देश में देखो उसी देश में भारत के होनहार अपना लोहा मनवा रहे हैं। शिक्षित और प्रशिक्षित व्यक्ति ही नहीं बल्कि हमारे देश की अधिकांश लेवर,ड्राइवर आदि दूसरे देशों में अपनी प्रतिभा दिखा रहे हैं।
हर किसी भी परिवार में आपको सुनने को मिलेगा-
कि मेरा बेटा या मेरी बेटी इंग्लैंड में ,लंदन में ,फ्रांस में, रूस में, कनाडा में आदि में इंजीनियर, डॉक्टर ,रिसर्च में है।
हमारा देश आत्मनिर्भर होने जा रहा है या नि सरकार हमारे देश में ही सब सुविधाएं युक्त रिसर्च सेंटर और कंपनिया खोलने जा रही है। तब हमारे देश से होनहार युवाओं का पलायन भी रुकेगा ।
हमारे देश में कुछ वर्षों से अच्छे विद्यालयों में एडमिशन का गलत तरीका तथा नौकरी में चयन का अनुचित तरीका के कारण दुर्भाग्यवश हमारा देश विकासशील ही रहा है, विकसित ही नहीं हो पाया ।
अब उम्मीद है की हमारा देश आत्मनिर्भर बनेगा, तभी पलायन भी रुकेगा ।
और भारत तकनीकी दृष्टि से भी चीन से ही नहीं सभी देशों से आगे निकलकर विश्व गुरु बनेगा ।
- रंजना हरित
बिजनौर -उत्तर प्रदेश
चीन के राष्ट्रपति 67 वर्षीय शी जिनपिंग ने भारतीयों द्वारा चीनी वस्तुओं का बहिष्कार करने और स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने पर कटाक्ष करते हुए कहा कि भारत चीन से आगे निकलने के सपने देखना छोड़ दे। उनके अनुसार न तो भारतीय लोग इतने कुशल और दक्ष हैं और न ही उनमें अधिक मेहनत करने की क्षमता है। भारतीय सिर्फ भार ढोने के काम में परिश्रम दिखा सकते हैं। यह कहते हुए चीनी राष्ट्रपति अत्यधिक आत्मविश्वास में थे। साथ ही उन्होंने भारत में औद्योगिक आधारभूत ढांचे का भी मजाक उड़ाया है। उनका कहना है कि भारत में भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं, औद्योगिक नीतियां स्पष्ट नहीं और इतने अधिक बन्धन हैं कि जितनी मर्जी कोशिश करले भारत पर वह चीन के करीब कभी नहीं पहुंच सकता। उन्होंने भारत को एक सपाट चुनौती दे डाली है। हमारी शिक्षा व्यवस्था बिल्कुल बेकार है। हमारे देश का बहुत कम प्रतिशत युवा उच्च शिक्षा प्राप्त कर पाता है और वह भी देश में अवसर न मिलने पर विदेश चला जाता है। चंद लोगों द्वारा उच्च शिक्षा प्राप्त कर लेना भारत के शैक्षिक इंडैक्स का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता। चीन में घर-घर में उद्योग है, सरकार का पूरा सहयोग है, न केवल आर्थिक अपितु तकनीकी सहयोग भी है। साथ ही उत्पादन को मार्केट करने में सरकार पूरा सहयोग देती है। प्रधानमंत्री मोदी देश में कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने की बात करते हैं जोकि स्वागत योग्य है। पर हमारे यहां कुटीर उद्योग का क्या अर्थ है? घर-घर में उद्योग चलाने जैसी व्यवस्था मास्टर प्लान में ही नहीं है अपितु उस पर सख्त बन्धन हैं। उस पर सर्वोच्च अदालत द्वारा स्थापित मानीटरिंग कमेटी के कदमों से अनेक घरेलू उद्योग बन्द हो गए हैं। अनपढ़ गरीब बेरोजगार महिलाएं और पुरुष जो घर में कुछ काम कर लिया करते थे जैसे राखी बनाना, पैकिंग करना या व्यापारियों से माल लाकर उनकी असेम्बलिंग करना, उन पर भी गाज गिरी और घर में काम करने को व्यावसायिक बता कर उनके घरों को सील कर दिया गया। यदि ऐसा ही रहा तो भारत चीन से आगे निकलने तो क्या उसके आसपास फटकने के सपने भी लेना छोड़ दे। घर-घर काम करने वाले औद्योगिक प्लाट नहीं खरीद सकते और न ही वे बैंक से पूंजी ऋण ले सकते हैं। वे अपने बलबूते पर जो कर रहे थे उन्हें ही बन्द करा दिया। भारत की पारम्परिक बुनकर कला जो दिल्ली में फलफूल रही थी सरकारी नीतियों के चलते अपना अन्त देख रही है। ऐसे बन्धन लगे रहेंगे तो हम चीन से आगे नहीं निकल सकते। कभी सरकारी तंत्र यह बता पाया है कि किस प्रकार चीन में घरेलू उद्योग भी इतनी सुन्दर व सस्ती वस्तुएं कैसे उत्पादित कर पाते हैं? क्या कभी ऐसा सहयोग किया है जिससे भारतीय भी वैसा कर पायें। क्यों चीन के बने सामान को आम आदमी खरीदना चाहता है? क्योंकि वे सुन्दर और सस्ते हैं। दीवाली पर बिकने वाली लड़ियां कभी कोई सोच सकता था कि मात्र 10-15 रुपये में मिल सकेंगी। ऐसा होने से हर गरीब का घर जगमगा उठा। कुल मिलाकर सहयोगी, उदारवादी और भ्रष्टाचारमुक्त औद्योगिक नीति अपनानी पड़ेगी तभी भारत चीन से आगे निकलने की कल्पना कर सकता है। आदरणीय बीजेन्द्र जी, हर बार की तरह एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय उठाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। - सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
क्या भारत तकनीकी दृष्टि से चीन से आगे निकल जाएगा?
कहा जाता है की जहां तीव्र इच्छा शक्ति होती है वहांँ कोई भी ताकत कार्य को करने के लिए नहीं रोक सकता और अपने लक्ष्य पर कामयाबी हासिल कर लेता है। यही स्थिति भारत की है। अगर भारत चीनी सामान का बहिष्कार करेगा तो उस सामान की पूर्ति स्वयं निर्माण करेगा और अपने लक्ष्य पर तीव्र इच्छा शक्ति से डटा रहेगा तो जरूर भारत तकनीकी दृष्टि से चीन से आगे निकल जाएगा ,क्योंकि हमारे देश में संसाधन की कमी नहीं है समझ की कमी है अगर यहां के लोग समझ कर के आगे कार्य व्यवहार अपने देश की उन्नति के लिए करेंगे तो जरूर कामयाबी हासिल मिलेगी ।ऐसी स्थिति अगर बना पाते हैं तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि भारत चीन से आगे निकल जाएगा और किसी के आश्रित नहीं रहेगा और एक आत्मनिर्भर और स्वयं की व्यवस्था में जीने वाला देश बन जाएगा।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
हमारे देश में योग्यता की कोई कमी नहीं है , लेकिन हमारे देश में कुव्यवस्था और भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है ,यह भी एक नगण्य सत्य है।इसका खमियाजा हम सब किसी ना किसी रूप में भुगतते हैं । चीन के नागरिकों में एक बहुत बड़ी खासियत है कि वहां सब देशहित के सिवा और कुछ नहीं सोचते हैं ।सबके मत एक समान होते हैं। चीन में चाहे डर से हो या देश प्रेम से सब चीन हित की बातें हीं सोचते हैं। हमारे देश की ये बहुत अजीब विडंबना है कि हम स्वहित पहले सोचते हैं देशहित उसके बाद आता है जो एक ग़लत मानसिकता है।यह हमारे हीं देश का कोई नागरिक भारत में रहकर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाता है और उस पर कोई कार्रवाई भी नहीं होती है ।भारत सदियों से संघर्षरत रहा है और इस देश में एक से बढ़कर एक सूरमाओं का जन्म हुआ है जिन्होंने भारत देश का सदैव परचम लहराया है ।आज लोकल से भोकल का नारा दिया जा रहा है, लेकिन क्या ये क़दम हम पहले नहीं उठा सकते थे? पूरे भारत में चीनी सामानों का अंबार लगा हुआ है। हमारे पूर्व देशहितैषियो ने सदा स्वदेशी अपनाओ का नारा दिया है ।कोई भी देश जितना उद्योग बाजार में संबल होगा उतना सुखी सम्पन्न समृद्ध होगा । हमारा देश आज काफ़ी हद तक हर तरह से संबल बन रहा है और सफल भी हो रहा है फलत: दुश्मन देशों की आंखों में भारत की ये तरक्की चुभ रही है ।अगर दृढ़ संकल्प लिया जाए और हर पार्टी देश हित में सोचें तो भारत किसी भी हाल में चीन से पीछे नहीं ,आगे बढ़ने का पूर्ण हौसला और हिम्मत रखता है ।जरूरत है एकजुट होकर आगे बढ़ने की ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
जी बिल्कुल ऐसा ही होगा भारत तकनीकी दृष्टि से भी चीन से आगे निकल जाएगा यदि हम सभी आत्मनिर्भर भारत अभियान के मूल मंत्र को आत्मसात कर लें एवं पूरी तरह से अपना लें।
भारत जैसे देश में क्षमता एवं संभावनाओं की कमी नहीं है।
वैसे भी अभी तक भारत की सबसे बड़ी ताकत हमारी कृषि रही है ,एवं यहां की सदियों पुरानी चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद जो विश्व में किसी के पास नहीं है ।अब बहुत जल्द ही हमारी तकनीक भी आगे आएगी ।
इसके लिए आवश्यक है कि भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान और वैज्ञानिकों दोनों को प्रोत्साहन दिया जाए।
टेक्नोलॉजी पर रिसर्च को फोकस किया जाए ।
शिक्षा नीति में ठोस बदलाव किए जाएं ,ताकि कालेज से निकलने वाले युवाओं के हाथ में खोखली डिग्रियों के बजाय उनके दिलों में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो।
विज्ञान शिक्षा के द्वारा हमें अधिक से अधिक प्रतिभावान युवा वैज्ञानिक तैयार करने होंगे। उनकी रुचि रिसर्च अनुसंधान खोज करने की ओर बढ़े और हमें प्रतिभावान युवा वैज्ञानिक अधिक से अधिक मिलें , और यह भी संभव होगा तभी होगा जब हमारे देश की योग्यता से किसी प्रकार का समझौता नहीं किया जाएगा। जब प्रतिभावान युवा वैज्ञानिक भ्रष्टाचार के के कारण विदेश में जाने को मजबूर नहीं होंगे।
हमारे देश ब्रेन डैमेज का शिकार होने से रोकना होगा ।
अगर हम आज से ही इस दिशा में सोचेंगे ,व चीनी सामान का भी पूर्ण बहिष्कार करेंगे तो अवश्य ही हम जल्द ही टेक्नोलॉजी में भी चीन को पछाड़ देंगे ।
दूसरी बात यह भी है कि जो कल से हमारी सरकार द्वारा चीनी के प्रोडक्ट को नकार दिया गया वैन लग गया ये चीन को तकनीकी क्षेत्र मे मात देने का पहला कदम है ।
भारत ने चीन को भारत से अच्छी कमाई रोक दी एवं हमारा पैसा भारतीय टेक्नोलॉजी में जाएगा तो टेक्नोलॉजी भी विकसित होगी आर्थिक सम्बल भी बढ़ेगा ।
भारतीय अवस्था को दीर्घकालिक लाभ पहुंचाने की दृष्टि से उठाया गया एक मजबूत कदम है आत्मनिर्भर भारत ।
जब तक हम आत्मनिर्भर नहीं बनेंगे चीन का आर्थिक बहिष्कार पूरी तरह नहीं करेंगे तब तक टेक्नोलॉजी में चीन से आगे नहीं जा पाएंगे तो चीन को आर्थिक एवं रूप से धराशाई करने का कदम भी चीनी सामानों का बहिष्कार है ।
अब तक आम नहीं खास आदमी भी चीनी सामान के माया जाल में फंसा हुआ था ।
बड़ी-बड़ी कंपनियां भी चीनी के भ्रम जाल में उलझी हुई थी, क्योंकि यहां सिर्फ मोबाइल मार्केट की हिस्सेदारी की बात नहीं टीवी व अन्य इलेक्ट्रानिक उपकरण से लेकर गाड़ियों की मोटर पार्ट्स, चिप्स ,प्लास्टिक फार्मा दवा कंपनियों द्वारा आयातित कच्चे माल की मार्केट भी चीन पर निर्भर रहती थी ।
अब जोश एवं होश से काम लेना होगा ,और चीन के सामान को त्यागते हुए,अपना पैसा अपने देश मे रखना होगा एवं अपने देश के वैज्ञानिकों की क्षमता को पहचानना होगा उनकी वैज्ञानिक क्षमता को और अधिक विकसित करना होगा । तो निश्चय ही हम टेक्नोलॉजी मे चीन से जल्द ही आगे होंगे ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
तकनीकी दृष्टि से भारत की बढ़ती ताकत तो भविष्य के लिए अच्छी बात है। पहले भी भारत ज्ञान की दृष्टि से आगे था। लेकिन उस ज्ञान का फायदा दूसरों ने ज्यादा उठाया। सारी तकनीकी जानकारी हमारे पुराणों में पहले से ही मौजूद हैं। फिर भी हमने उसे अमलीजामा पहनाने में देर की। क्योंकि हम शांति के हिमायती थे।
अब परिस्थिति इतर है। विश्व तकनीकी ताकत के बल पर आँखे दिखा रहा है। हमने पहले के हालातों में लाल बहादुर की हत्या का दर्द अपने अंदर समेट लिया। क्योंकि उस वक्त की राजनीति कमजोर थी। हमारे पास पर्याप्त ताकत नहीं थी, जिसके बल पर हम किसी देश को कटघरे में खड़ा कर सकें।
आज हालात बदले हुए हैं। हम भी उनकी बगल में खड़े होकर अपनी आवाज बुलन्द कर सकते हैं। उनके गलत इरादों के प्रति आवाज उठा सकते हैं। यह तभी सम्भव है जब हमारे पास उनके हथियारों का जवाब देने की ताकत हो।
भारत चीन से आगे बढ़ेगा या अपने हथियारों का चतुराई से उपयोग करेगा यह तो राजनीति का हिस्सा है, परन्तु इतना अवश्य कहूँगी कि इस बार चीन को भारत का सामना करना कठिन होगा।मोदी जी की डिजिटल यात्रा अब नहीं थमेगी।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
" मेरी दृष्टि में " भारत इंजीनियरों को जो सुविधाएं विदेश में मिल रही है । अगर वे सुविधाएं भारत में मिलने लगे तो सभी भारतीय इंजीनियर अपने देश में ही काम करने लगेंगे । तभी भारत तकनीकी दृष्टि से चीन से आगे निकल जागेगा ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र
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