कभी ना भूलने वाला गलवन घाटी का दर्द

गलवन घाटी की भारत- चीन हिंसक झड़प में भारतीय जवानों का शहीद होने का दर्द सबको है । फिर भी ये दर्द सर्दियां तक याद रहेगा । क्या भारतीय यह दर्द भूल सकते हैं । यहीं " आज की चर्चा "  का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
     गलवान घाटी में  चीन के द्वारा भारत के साथ किए गए  विश्वासघात का एक नया और ताजा सबूत इतिहास में दर्ज हो गया है ।मई 2020 के शुरुआत से ही  चीनी सैनिक भारत के गश्त  के कार्यक्रम पर रुकावटें पैदा कर रहे थे और यह उनकी एक सोची समझी साजिश के अंतर्गत था। चीनी सैनिकों का भारतीय सैनिकों पर धोखाधड़ी से हमला करना किसी भी तरह से गश्ती टकराव नहीं था यह एक सोची-समझी रणनीति के तहत किया गया था। 15 जून 2020 को जब हमारे सैनिक चीनी सैनिकों से उनके पीछे हटने पर बातचीत कर रहे थे तभी उन पर अचानक हमला किया गया और उस हमले में 20 भारतीय सैनिकों की मृत्यु हुई। हमारे एक सैन्य अधिकारी की भी इसमें शहादत हुई ।भारतीयों ने  बहादुरी तथा  साहस के साथ जवाब देते हुए उनके 40 से अधिक सैनिक मार दिए। इसके पीछे कारण यह था कि चीन  वहां पर चोरी से अवैध निर्माण कर रहा था और समूची घाटी पर अपने अधिकार का दावा पेश कर रहा था। उसका  नजरिया सदैव येन केन प्रकारेण पडोसी की भूमि हड़प  लेने का रहा है। उसकी सदैव यह रणनीति रहती है कि वह धीरे धीरे पड़ोसी राष्ट्रों की जमीन पर अपना अधिकार दिखाता  चला जाता है और इसी तरह का कार्यक्रम वह भारत के साथ पूर्व में भी कर चुका है ।वर्तमान समय में भारत पूरी तरह से सतर्क, सावधान तथा मजबूत है और अच्छी तरह उसके गलत इरादों का जवाब देने में सक्षम है ।यद्यपि गलवान घाटी का दर्द हम कभी नहीं भूल सकते हैं लेकिन बदले में हमारे द्वारा की गई जबाबी  कार्यवाही हमारे सैनिकों का मनोबल सदैव ऊंचा करती रहेगी और सभी राष्ट्रवादी भारतीयों का सिर अपने सैनिकों की शहादत पर गर्व से तना रहेगा ।चीन का विश्वासघात और धोखाधड़ी से भरे हुए व्यवहार को इतिहास सदैव याद रखेगा।
        - डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
 दतिया  -  मध्य प्रदेश
      गलवान हिंसा चीनी सैनिकों के विश्वासघात का निंदनीय कृत्य है। जिससे उपजा दर्द कभी भूलने वाला नहीं है। हालांकि चीन और चीनी कायर सैनिकों को हमारे वीर साहसी और पराक्रमी सैनिकों ने वीरगति प्राप्त करने से पहले चीनी सैनिकों को उनकी कायरता का वह सबक सिखाया है जिसको उनकी आने वाली पुश्तें भी याद करेंगी।
      उल्लेखनीय है कि हमारे जांबाज देशभक्तों की शूरवीरता का गुणगान विश्व स्तर पर हुआ है और चीनी विश्वासघात के निंदनीय कृत्य पर अपमानित थू-थू  अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्पष्ट शब्दों में हुआ है। जिस पर चीन और चीनी सैनिक स्वयं शर्मशार हो रहे हैं।
      क्योंकि लद्दाख के गलवान में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प में शहीद हुए 20 जवानों को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने श्रद्धांजलि दी है। जबकि चीन अपने सैनिकों के 50 शवों की संख्या बताने में भी असमर्थ हुआ है। जिससे हमारे सैनिकों का मनोबल जहां ऊंचा हुआ है वहीं चीनी सैनिकों के शवों के तिरस्कार से चीनी सैनिकों का मनोबल गिरा है।
      उल्लेखनीय है हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी एवं गृहमंत्री अमित शाह जी के साथ-साथ पूरे देशवासियों ने शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए उनकी वीरगति को नमन किया है और आने वाली पीढ़ियां नमन करती रहेंगी।
      इसके अलावा चीन की उक्त कायरता का बदला लेने के लिए हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी कमर कस चुके हैं। जिसके प्रभाव से और बहादुर सैनिकों के डर से चीन और चीनी सैनिक सहमे हुए हैं। जिसके फलस्वरूप भारत विजयी और चीन अपनी औकात में आने पर विवश हुआ है।
- इन्दु भूषण बाली 
जम्मू - जम्मू कश्मीर
चीन की   खराब मानसिकता जरूरत से ज्यादा स्वार्थ और सभी को आर्थिक रूप से कमजोर करने की मंशा के कारण यह सब विवाद हुआ वह अन अधिकार रुप से दूसरे देशों के क्षेत्रों पर अधिकार करना चाहता है इसी के चलते गलवान घाटी में सेना के बीच संघर्ष हुआ जिसमें पूरी कमी चीन की ही है और वह इस बात को समझना नहीं चाहता अपनी सीमाओं की रक्षा करने में एल ए सी पर जिन सैनिकों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया और जिन सैनिकों के साथ चीन ने बर्बरता दिखाई वह वास्तव में एक ऐसा दर्द है जो कभी नहीं भुलाया नही जायेगा और चीन को इसका खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा जो आवश्यक भी है ताकि वह भविष्य में इस तरह की हरकत करने का दुस्साहस न कर सके भारतीय सेना  अपने देश की सीमाओं की रक्षा बखूबी करना जानती है और दुस्साहस करने वालों को उसका मुंँह तोड़ जवाब भी देती है चीन को भी मुंँहतोड़ जवाब मिला है और वह पीछे हटने पर निश्चित रूप से ही मजबूर होगा भारत की सेना बहुत मजबूती के साथ अपने काम को अंजाम दे रही है समूचे देश को सैनिको को खोने का बहुत दुख है परन्तु उनकी वीरता और  साहस पर देश गौरव का अनुभव करता है.            
-  प्रमोद कुमार प्रेम
 नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
गलवान का दर्द कभी नही भुलाया जा सकेगा।लेकिन सवाल ये है कि ऐसे और कितने दर्द हमको सहने हैं।इनका इलाज क्या है। क्या इस तरह की घटनाओं का कोई अंत है?
अब जरूरत आ गयी है कि हमें ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहिए ताकि कोई हमारी ओर आंख उठा के देखने की हिम्मत न कर सके। तभी ऐसा माना जायेगा कि हमने कोई सबक सीखा है।वरना अभी आगे हजारों गलवान होंगे।
- रोहन जैन
देहरादून - उत्तराखंड
भारत और चीन की विवादित सीमा पर 45 साल बाद पहली बार हमारे भारतीय सेना के जवान शाहिद हुए हैं  है.
पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में अंधियारी रात (15/16 जून)में  चीन ने धोखे से  हमारी  भारतीय  
सेना को कील लगे डंडों , पत्थरों से वार कर करके  भारतीय सेना के एक अधिकारी समेत 19 जवानों की मौत के मुँह में डाल कर शाहिद कर दिया । सारे सैनिक निहत्थे थे और गतिरोध वाले इलाक़े में ड्यूटी के दौरान 17 भारतीय सैनिक गंभीर रूप से ज़ख़्मी हो गए थे. शून्य डिग्री से भी नीचे तापमान और बेहद ऊंचाई वाले इस इलाक़े में ज़ख़्मी इन 17 सैनिकों मौत हुयी। भारत की  सेना देश की अखंडता और संप्रभुता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।जो  दुश्मन सीमा पर आंख दिखाएगा भारत की सेना उसे चकनाचूर कर दी ।
ये घटना चीन की गद्दारी सन्धिवार्ता का उलंघन का सबूत है । वहां पर गलवान घाटी पर अपने नए  कैंप बनाके भारत की गलवान घाटी को हदफ़ना चाहता था ।  
चीन के खिलाफ हमारे वीरों ने आखिरी साँसों तक लोहा लिया ।
गलवान नदी का लाल हुआ पानी  हमारे भारतीय सैनिकों के खूनी संघर्ष की गाथा गा रही है । किसी माँ का लाल , पति  सुहाग का सिंदूर सूना हुआ , किसी बहन की कलाई की राखी बिछुड़ी , किसी की सगाई रूठी ।
दर्दीला मंजर हर भारतीय की आँखों में गम का सागर बन बह रहा है । इतिहास इसे कभी न भूला पाएगा ।
- डॉ मंजु गुप्ता
 मुंबई - महाराष्ट्र
हां यह बात हंड्रेड परसेंट सच है कि  घाटी में चीनी घुसपैठ करके भारतीय सैनिकों को और उनके नायकों को नुक्सान
 पहुंचाया वह तो पूछने गए थे कि आप हमारी सीमा रेखा में क्यों घुस आए हैं चीन यह सब इसलिए कर रहा है क्योंकि घाटी के ऊपरी हिस्सों में हम भारतीयों का कब्जा है नीचे चीनी लोग रहते हैं खाई में रहते हैं वह चाहते हैं कि हम ऊपर की ओर कब्जा कर ले जिससे हम भारत में हमला कर सकेंगे ऐसे धीरे-धीरे करके वह हमारे देश में विस्तार कर सकेंगे उन्होंने हमारे सैनिकों को जो कि नहीं आते थे उन्हें मारा इसके बदले में बिहार रेजिमेंट ने उनके सैनिकों और नायकों को मुंहतोड़ जवाब दिया उन्होंने यह कर दिखाया कि आज का भारत पुराना भारत नहीं है जिसको आप आंख दिखाकर और मार के डर से आप उसका सब कुछ झिन सकोगे आज हम पूरी तरह आत्मनिर्भर  है।
हम दुनिया के किसी भी देश हों में पीछे नहीं रहेंगे हम सबसे आगे रहेंगे हमारे देश में युवाओं के अंदर कूट-कूट के टैलेंट भरा है।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
चीन ने जो कायराना हरकत गलवान घाटी में की है , उसको सदियों तक भी भुलाना नामुमकिन है । जब भी पीठ में खंजर घोपने वाली बात का जिक्र होगा तब तब चीन का उदाहरण सर्वोपरि दिया जाएगा । जो देश के राष्ट्रपति को अपने देश की जनता से ही लगेव न हो , जो अपने ही देश की जनता को कोरोना से मरने पर आमादा हो , ऐसे चालबाज देश से ओर उम्मीद ही क्या की जा सकती है ।
परंतु जिस प्रकार की घटिया हरकत चीन के सैनिकों ने गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों को धोखे से वार कर की है , उस हरकत ने भारत चीनी भाई भाई  के नारे को खत्म करते हुए , भारत चीनी बाय बाय के नए नारे को जन्म दे दिया है । इस तनातनी ने भारत की चीनी सामानों पर बढ़ती निर्भरता को भी देखने का एक मौका प्रस्तुत किया है । जिस प्रकार चीनी सामानो पर भारत के लोगो की निर्भरता आतुर है , उस निर्भरता को समय रहते अब भारत को सुधार लेने की आवश्यकता है । यह निर्भरता सुधरते ही भविष्य में हमे चीन से ऐसे जख्म नही खाने पड़ेंगे । 
- परीक्षित गुप्ता
बिजनौर -  उत्तरप्रदेश
"वसुधैव कुटुम्बकम्" और "सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया" जैसी विचारधारा वाले भारत के साथ जब कोई, चाहे वह चीन हो या पाकिस्तान, छल-प्रपंच से हमला करता है और हमारे वीर सैनिकों की शहादत होती है तो, क्या इन जख्मों से उत्पन्न दर्द को कभी भुलाया जा सकता है? कभी नहीं। 
यदि गलवन घाटी में एक घोषित युद्ध होता तो यह दर्द नहीं बनता परन्तु यह एक कायरतापूर्ण साजिश थी जिसमें हमारे जवानों को असमय कालग्रसित होना पड़ा। 
गलवन घाटी में चीन ने जो साजिश रचकर सुनियोजित तरीके से भारतीय सैनिकों पर हमला किया और जिसमें हमारे 20 वीर जवान शहीद हुए, उसमें भले ही हमने भी चीन के लगभग दोगुने सैनिकों का संहार कर अपने शहीदों की आत्मा को मुस्कराने का अवसर दिया, परन्तु फिर भी शान्ति में आस्था रखने वाले भारत को गलवन घाटी का दर्द दीर्घ समय तक सालता रहेगा। बस हमारी सेना का चीन को दिया गया प्रत्युत्तर इस दर्द पर मलहम का कार्य करेगा। 
इस दर्द में निम्न पंक्तियां हमारे वीर शहीदों को नमन करते हुए उनके शौर्य को समर्पित हैं:-
"दुश्मनों की मांद में भी लिखते हैं शौर्य गाथा जो-जो वीर, 
नमन, वन्दन उन वीरों को जो लड़ते हैं लेकर सौ-सौ पीर। 
प्रत्युत्तर दिया जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों की चाल का, 
तिलक वो ही बनते हैं मां भारती के उज्जवल भाल का।" 
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
'दर्द' तो हमेशा तकलीफ ही देता है। लेकिन सीमा पर होने वाली सैनिकों का बलिदान देश को दर्द दे जाता है। चीन हो या पाकिस्तान दोनों ही हमारे देश की अमूल्य निधि को यूँ ही कुचल देते हैं। उन्हें लगता है कि हमारा देश समझौते की आड़ में कायरता दिखा रहा है। जब कि वे अनेकों छद्म वेश में अपनी कायरता छुपाते हैं ।
अब उन्होंने जबरदस्ती भारतीय सैनिकों को पास बुलाने का मौका दिया और फिर मार दिया । दुःख इस बात का ज्यादा है कि हमारे जवानों को हथियार उठाने तक का मौका नहीं मिला। गलवन हमारा है, जिसके कारण चीनी सेना हमारा सामना नहीं कर पा रही है। ऊंचाई पर होने के कारण चीनी बार-बार वहाँ घुसपैठ की कोशिश करते हैं। भारत ने बात-चीत के द्वारा इसे सुलझाने की कोशिश की । मगर ये दोनों देश 'लात के देवता' हैं ।अब जब बिहार रेजिमेंट ने उन 20 सैनिकों के बलिदान का बदला लिया है, तो उन्हें अपनी सीमा रेखा की पहचान हो गई।
     यह धोखा और जवानों का कत्ल-ए-आम तीर की तरह सीने को भेद गया। हिम्मत थी तो ललकार कर मारना चाहिए था। दर्द इसी बात का ज्यादा है कि शहीद हुए मगर अपनई जांबाजी नहीं दिख पाए। गलवन घाटी उन शहीदों के खून की महक कभी नहीं भुला पाएगी। 
  हमारे पूर्व नेताओं की कमजोरी ने उन्हें यह कदम उठाने का मौका दिया। आज उनकी गलती का खामियाजा पूरा देश भुगत रहा है । अश्रुपूर्ण नेत्रों में हमेशा उनकी याद बनी रहेगी।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
जिस तरह गलवन घाटी में भारतीय जवान शहीद हुए व कभी नही भूलाया जा सकता 
चीन ने ऐसा "दर्द  " दिया  है भारत को की हमेशा उसकी टीस उठती करेगी ....
भारतीय सेना की ओर से जारी किए गए आधिकारिक बयान में कहा गया है, ‘गलवान घाटी में सोमवार की रात को डि-एस्केलेशन की प्रक्रिया के दौरान भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई. इस दौरान भारतीय सेना के एक अफसर और दो जवान शहीद हो गए हैं. दोनों देशों के वरिष्ठ सैन्य अधिकारी इस वक्त इस मामले को शांत करने के लिए बड़ी बैठक कर रहे हैं’.
आपको बता दें कि भारत और चीन के बीच मई महीने की शुरुआत से ही लद्दाख बॉर्डर के पास तनावपूर्ण माहौल बना हुआ था. चीनी सैनिकों ने भारत द्वारा तय की गई LAC को पार कर लिया था और पेंगोंग झील, गलवान घाटी के पास आ गए थे. चीन की ओर से यहां पर करीब पांच हजार सैनिकों को तैनात किया गया था, इसके अलावा सैन्य सामान भी इकट्ठा किया गया था.
 चीन के साथ गलवान घाटी में संघर्ष में भारत के तीन जवान शहीद हो गए हैं। बता दें कि पिछले एक महीने से ज्यादा वक्त से दोनों देशों के बीच तनातनी चल रही है। बता दें कि हाल के दिनों में उसने भारत से लगती लद्दाख सीमा पर अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं और वहां लगातार अपनी ताकत बढ़ रहा है। उसकी सेना ने गलवान घाटी में कई टेंट लगाए हैं और पैगोंग झील में अपनी गश्त बढ़ा दी है। लेकिन सीमा पर तनाव के लिए वह उल्टे भारत को ही जिम्मेदार ठहरा रहा है।
चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स का कहना है कि गलवान घाटी चीन का इलाका है और भारत जानबूझकर वहां विवाद पैदा कर रहा है। भारत गलवान घाटी में चीन के इलाके में अवैध तरीके से डिफेंस फैसिलिटीज का निर्माण कर रहा है। इस कारण चीन की सेना के पास इसका जवाब देने के अलावा कोई चारा नहीं है। इससे दोनों पक्षों के बीच सीमा पर विवाद बढ़ने की आशंका है। 
ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक कुछ भारतीयों को लगता है कि चीन की अर्थव्यवस्था के सुस्त पड़ने और कोरोना के कारण कुछ पश्चिमी देशों के चीन को घेरने से भारत के पास सीमा पर अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका है। कुछ भारतीय अमेरिका के दम पर कूद रहे हैं। लेकिन यह उनकी गलतफहमी है। इससे भारत का ही नुकसान होगा।
चीन को सबक सिखाने की।जरुरत है पर बहुत सोच विचार कर अपनी नुकसान न हो हमारे जवानों को शहीद न होना पड़े जोधोखा हमें गवलन घाटी में उठाना पडा उससे हम सबक ले और हर वक्त होशियारी व बुद्धिमानी से काम ले ! 
भारत की संस्कृति हमें सहनशील व उदारवादी बनाती है पर ँइसका यहमतलब  कदापि नहीं की हम डरपोक है या हमेशा।झुक जायेगे , 
आज भारत का युवा हर तरह से परिपक्व है उसे कोई डरा या धमका नहीं सकता, चीन को भी यह बात समझनी होगी वार में कुछ नही रखा ! ।
- डॉ अलका पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र
     भारत-चीन विवाद पूर्व से चला आ रहा हैं। वर्तमान परिदृश्य में कोरोना महामारी के कारण नया अध्याय का सृजन हुआ। दोनों पक्षों को सुलझाने हेतु अमरीका ने प्रयास किया लेकिन चीन ने तीसरे की मध्यस्थता स्वीकार नहीं किया। परंतु चीन ने भारत को आश्वस्त किया था, किसी भी तरह का आक्रमण नहीं किया जायेगा और अचानक जिस तरह से गलवन घाटी में आक्रामक रुप से आक्रमण किया, यह  दुखद घटना हैं, जिसमें असहाय सैनिकों के प्राण निछावर हो गये। जिसकी प्रबुद्ध राष्ट्रों ने भर्त्सना की हैं।
तदोपरांत भारत ने जवाबी, जवाब तो दिया, लेकिन क्या जो शहीद हुए, वे वापस आ पायेंगे? भारत को भी अब तात्कालीन युद्ध नीतियाँ अपनाते हुए,
हमेशा के लिए कार्यवाही करनी चाहिए तथा युद्ध नीतियों को पारदर्शिता बनानी होगी। लेकिन भारत की कमजोरियाँ यह भी हैं, कि अभी भी समझौता वादी नीति अपनायें हुए हैं, इतना सब कुछ होने के उपरान्त भी,  क्यों?  आज भी चीन अप्रत्यक्ष रूप से अपनी सैन्य शक्तियों को  मजबूत करते जा रहा हैं, ऐसा प्रतीत होता हैं, कि सैन्य शक्तियों के साथ-साथ उसकी खुफिया एजेंसी भी मजबूत होगी? इसलिए तो उसे मालूम था, भारत अभी आराम कर रहा हैं और गलवन घाटी पर आक्रमण कर दिया। अगर भारत की भी खुफिया एजेंसी सुदृढ रहती तो, यह भी सूक्ष्म घटनाएं घटित नहीं हो पाती। भारत को भी चाहिए सैन्य शक्तियों के साथ-साथ चौबीसों घण्टे समूची धरती पर खुफिया एजेंसी सुदृढ करें, ताकि भविष्य में कोई भी राष्ट्र भारत की शांति को भंग नहीं कर सकें?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
      बालाघाट - मध्यप्रदेश
लद्दाख के गलवान घाटी में चीन के हमले से भारत के 20 वीर सपूतों की शहादत का बदला जब तक नही ले लिया जाता है तब तक देशवासियों के कलेजे में ठंडक नही पहुचेगी। सैनिकों की शहादत को तो देश कभी भी भूल नही पाएगा। लेकिन गलवान घाटी का दर्द उन शाहिद परिवार के लोग कभी भी ना भुला पाएंगे। देश की रक्षा के लिए बलिदान देने वाले वीर सपूतों को देशवासी श्रधांजलि,शोकसभा, केंडल जलाकर, आक्रोश रैली निकालकर कुछ दिनों में भूल जाते हैं। पर जिनके घरों में दुख का पहाड़ टूटता है उसके दर्द का अनुमान कोई भी नही लगा सकता। पत्नी के लिए उसका सुहाग उजड़ जाता है। मानो  तो उसकी दुनिया ही उजड़ गई। बच्चों का सहारा छीन जाता है। वहीं माँ बाप का बुढ़ापे का सहारा ही चले जाती है। यह सब वीर शाहिद के परिवार वालो को जीवन भर अपने को चले जाने का दर्द सहना पड़ता है। गलवान घाटी का दर्द कभी ना भूलने वालो घटना है। चीन द्वारा भारत के बीच सिमा विवाद को लेकर तनाव जबरदस्त है। हालांकि दोनों ही देश इसका हल शांति पूर्वक तरीके से निकालना चाहता है। पर दुनिया में कोई भी ऐसा देश नही है जो चीन जैसे धूर्त देश पर भरिसा कर सके। भारत के लोग तो मरते दम तक चीन पर भरोसा नही कर सकते है। गलवान घाटी का दर्द कभी ना भूलने वाली घटना है। 
- अंकिता सिन्हा साहित्यकार
जमशेदपुर -  झारखंड
यह सर्वविदित है, कोई भी घटनाएं हो चाहे व्यक्तिगत, समाज, राज्य एवंम्  देश मे घटती है तो भूलने का प्रश्न नहीं होता है।
हमारे पड़ोसी देश चीन धोखेबाज के श्रेणी में आता है।चूँकि 1959 मे एक स्लोगन उछाला था *भारत-चीन भाई-भाई* हम भारतीय सहृदय अपनाएं उसका नतीजा यह हुआ की 1962 मे युद्ध के लिए ललकारा
उस समय हमारे नेतृत्व करता 
* पंचशील* का पाठ पढ़ते थे जिसके कारण हमारे मातृभूमि  के हजारों मील जमीन हड़प लिया। हमारे देश के नेतृत्वकर्ता शांति पूर्वक स्वीकार कर भी लिए क्योंकि पंचशील के सिद्धांत के कायल थे।
यही ही विचार से धोखेबाज चीन ने 15 जून सोमवार को खूनी झड़प करना शुरू किया। लेकिन तब का समय अब के समय में बहुत बड़ा अंतर है। उस समय  भारत के आजादी हुए  मात्र 15 साल  हुआ था किशोरावस्था था । अब भारत के पास नव युवक -युवती  बहुत संख्या तायदाद में है। सभी लोग  पढ़े लिखे  जागरूक है । इस समय भारत माता को  कोई भी दर्द देगा  तो उसको सबक सिखाने में  कोई कसर नहीं छोड़ा जाएगा । यह बात  हमारे प्रधान सेवक कहते हैं, और साथ-साथ  जनता की आवाज भी है । LAC गलवान पर हिंसक झड़प होने के बाद भारतीय सेना  पूरी तरह  सतर्क और तैयार है  चीन के किसी भी चालबाजी के जवाब देने को। रक्षा मंत्री  रूस के दौरे पर गए हैं  S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम  हासिल करने को । S-400 दुनिया का सबसे शक्तिशाली मिसाइल माना जाता है । इसकी मारक क्षमता इतनी अचूक है की एक साथ तीन दिशाओं में  मिसाइल दाग सकता है। चीन को जानकारी मिलने के बाद  सहमा हुआ है  और बैक टू पवेलियन कर रहा है ।
भारत के लोकप्रिय नेता आदरणीय "मोदी जी"का कहना है अगर कोई पड़ोसी देश आंख दिखाएगा तो हम भी आंख में आंख डालकर बात करेंगे। हमें आंख झुकाना नहीं है।
लेखक का विचार:- भारत में नौजवानों का औसत आयु 27- 28 साल है इस समय कोई दर्द दिया हुआ कोई भी कभी नहीं भूल सकता है।यह दर्द एक पड़ोसी धोखेबाज देश ने दिया भूलने का सवाल ही नहीं उसे आर्थिक रूप से कमजोर कर सबक सिखाना है।
- विजयेंद्र मोहन 
बोकारो - झारखंड
जी हा! यह दर्द कभी न भूलने वाला हैं। शान्ती प्रिय तोर पर समझाने आये हमारे सैनिको की बात न मानना ओर  नियम अनुसार पिछे न हटना फिर भारतीय सैनिको पर घात लगाकर  हमला करना यह कायरता पुर्ण हरकत चीन ही कर सकता हैं। ओर वह भी जब वह हमारे सैनिको से तिन से चार गुना अधिक थे वै सोच रहे थे की भारत को इस बार बड़ा जख्म देंगे जख्म ओर धोखा दोनो ही चीन ने हमे बढा घहरा दिया हैं पर भारत माँ के सपुत कहा हार मानने वाले थे उन्होने अपने प्राणों की परवाह न करते हुये दुश्मन के सैनिको पर टुट पढे जय बजरंग बली का जय घौष करते हुये हमारे बिहार रैजीमेंट के जवानों ने जब हमला बोला तो एक एक ने चार चार पाच पाच को धुल चटाई वही दुसरी ओर हमारी सिख रैजिमेंट ने वाहे गुरू का खालसा वाहे गुरू की फतह के साथ चीन के टैन्ट तम्बु उखाड़ फेके आग के हवाले कर दिया इस बार दूश्मन चीन भी जीवन भर हमारे जवानो का शौर्य याद रखेगा हमारे अन्मोल बिस जवानो का यह बलिदान व्यर्थ नही जाने वाला है दूश्मन चीन को भी अब जीवन भर याद आने वाला हैं। हा! सचमुच में गलवान घाटी का दर्द बहुत याद आने वाला हैं।
- कुन्दन पाटिल
 देवास - मध्य प्रदेश
गलवन घाटी में हुई घटना, जिसमें भारत के बीस सैनिक बलिदान हुए और जवाबी कार्रवाई में चीन के भी सैनिक मारे गए। एक ऐसी नृशंस घटना है जिसे सुन और पढ़कर हृदय द्रवित और आक्रोशित हो जाता है। जिन कटीले मुगदरों से सैनिकों पर हमला कर उन्हें मौत के घाट उतारा गया,उनकी तस्वीरें ही डराती है,कितनी पीड़ा झेली होगी सैनिकों ने। पंद्रह जून को हुई इस घटना ने ऐसा दर्द दिया है,जिसे भुलाना संभव नहीं। विश्वासघात करने में चीन ने कभी कोई कसर नहीं छोड़ी। इसके पूर्व नौ मई को नार्थ सिक्किम के नाकूला सेक्टर में चीन और भारत के सैनिकों के बीच झड़प हुई थी। सीमा पर बढ़ता तनाव हांलांकि अब कम होने की ओर है, लेकिन सतर्कता और सजगता रखनी होगी।चीन फिर हरकत कर सकता है।गलवन घाटी में भारतीय क्षेत्र में चल रहे निर्माण कार्य में भी गति बढ़ा दी गयी है।गलवन घाटी में बलिदान हुए शहीदों को नमन करते हुए जयहिंद।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
गलवान घाटी में जो हुआ वह जग जाहिर है। चीन ने भारत की पीठ में छुरा घोंपने जैसा काम किया है।जिस चीन के साथ हमारा 8 बिलिय का व्यापार होता है, जहां 73% इलैक्ट्रोनिक बाजार पर चीन का कब्ज़ा है, भारत के तीज त्योहारों पर इस्तेमाल होने वाली हर चीज़ चीन से आती है। पिचकारी हो या लाइटें, राखी हो या खिलौने यहां तक कि घर में इस्तेमाल होने वाला सजावट का सामान, जीते, चप्पल ,घड़ियां,  स्टेशनरी का सामान, पर्स मेकअप का सामान, रसोई के उपकरण, इ-रिक्शा और भी अनगिनत सामान का बहुत बड़ा उपभोक्ता भारत में चीनी सामान लेता है। जिससे चीन को बहुत मुनाफा होता है। उनके लोगो को रोजगार मिला,हमने अपने ही लोगों को बेरोज़गार कर दिया। उसी मुनाफे से उसने सैनिक बल बढ़ाया और हमारी सरजमीं को हड़पना चाहता है।
वादा खिलाफी में भी चीन अव्वल नंबर पर है। समझौते के अनुसार बॉर्डर पर दोनों देश चौकसी के दौरान हथियार नहीं इस्तेमाल करेंगे। लेकिन चीन ने पहले तो नियमों का उल्लंघन किया फिर जब मेजर संतोष बाबू अपनी एक टुकड़ी के साथ निहत्थे बातचीत के लिए  चीनी बेड़े में गए तो उन्होंने भारतीय सैनिकों पर पत्थर बरसाए और कंटीले डंडे से उन पर वार किया। जिससे मेजर साहब समेत 20 जवानों की शहादत हुई।
इस दर्द को भारत कभी भूल नहि पाएगा और न ही कभी माफ करेगा। आज देश के बच्चे बच्चे में चीन के प्रति आक्रोश है।
- सीमा मोंगा
रोहिणी -  दिल्ली
  जो दर्द अन्याय पूर्वक मिला हो वह दर्द असहनीय होता है कुछ दर्द का समय निकल जाने के बाद भी वह घटना रह रह कर आती है ऐसे ही गलवन घाटी का  दर्द है जो भुलाने से भी भुलाया नहीं जा रहा है। चीन जैसे मक्कार और धोखेबाज देश इस दुनिया में पता नहीं है कि नहीं लेकिन चीन तो मक्कार और गद्दार देश है अपनी गद्दारी का प्रमाण हो  वैरता भाव से दे रहा है। हमारा भारत उदारवादी देश है जो भी सामने वाला गलती करता है उसको गलती करके रोकने का प्रयास नहीं करता बल्कि समझौता करता है या करना चाहता है लेकिन सामने वाला गद्दारी कर अपनी गलती स्वीकार नहीं करता है ऐसी स्थिति में हमारे देश को भी इस समस्या से निपटने के लिए कुछ ना कुछ रास्ता अपनाना जरूर पड़ता है अब वह भारत नहीं रहा जो कमजोर और भय की स्थिति में पहले दूसरों देशों से चुप्पी लेता था अब वह देश नहीं है अब हर दुश्मनों का मुकाबला करने की क्षमता भारत के लोगों में है और अपने देश के विकास के लिए वह उसका ही तो तत्पर है वह किसी चीज आश्रित में जीने वाला भारत नहीं है वह आत्मनिर्भर की ओर अग्रसर है आत्म निर्भर भारत पर कोई अगर निर्विरोध पूर्वक व्यवहार करता है तो हमारा भारत उसका सम्मान करता है और जो बैर भाव से व्यवहार करेगा उसका मुंहतोड़ जवाब देने की ताकत भारत में है चीन भारत की शक्ति को पहचाना नहीं है इसीलिए बार-बार भारत पर घुसपैठ कर भारत की भूमि को हथियाना चाहता है यह सरासर अन्याय है अन्याय में जीने वाला देश फरेब करने वाला देश कभी आगे नहीं बढ़ सकता एक ना एक दिन उसे अपने करतूत का फल जरूर मिलता है यही दिन बहुत जल्दी चिंकी आने वाली है क्योंकि वह आज पूरे विश्व अच्छे बैर भाव बनाए हुए कांप रहा है  बौखलाया हुआ चीन अपने आसपास को भी समस्या में डाल रहा है। इसी कड़ी में हमारे भारत को उन्होंने बहुत बड़ा गलवन घाटी का दर्द दिया है जो भारत के लोग बुलाने से भी नहीं भूल पा रहे हैं आगे इसका मुंह तोड़ जवाब मिलेगा तभी  चीन की क्या औकात है समझ में आएगा।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
घाटी का नाम गलवन लेह में रहने वाले भारतीय के नाम पर पड़ा ,गुलाम रसूल गलवन नाम का चौदह साल का लड़का अंग्रेजों का गाइड हुआ करता था  वो उन्हें चोटियों पर घूमाने ले जाया करता था ।गलवन गाइड के काम से  अंग्रेज बहुत खुश थे ।उन्होंने उस स्थान का नाम ही गलवन रख दिया ।घाटी में  फिगंर आकार की आठ चोटियाँ है जिनमें एक से चार पर चीन का और  चार से आठ  पर भारत  का कब्जा है ।भारत की चोटियाँ कुछ ऊँचाई पर हैं ।चीन बराबर घुसपैठ के प्रयास में रहता है ।जमीन का टुकड़ा हम भारतियों के लिए माँ समान  है ,हमारे सैनिक भाई जो उसकी रक्षा करते हैं वह टुकड़ा उनकी रुह होता है ,चीनियों के आकस्मिक आक्रमण से हमारे बीस जवानों ने शहादत दी ।इसका दर्द हम सभी को है सैनिक जब बार्डर पर जाता है ,उसका परिवार कितना धीरज धर कर लौटने की आस देखता है ।हम सभी के लिए परिवार बहुत अहम होता है लेकिन उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण भारत की शान है ।जमीन जाए तो भी दर्द ,जान जाए तो भी ।बर्दाश करना बहुत मुश्किल होता है ।जिस वक्त शहीदों का जनाजा पहुँचता है अपार भीड़ को देख कर ही दर्द का अन्दाजा लगाया जा सकता है । किसी भी देश का सैनिक हो केवल चीन की लालच का शिकार होता है ।जिस समय पाँच -छह साल का बच्चा पिता को मुखाग्नि  देता है देखने वालों के रोंगटे खड़े हो जातेे हैं ।दर्द  जो केवल महसूस किया जा सकता है ।शब्दों में ढ़ालना मुश्किल है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
हमारे देश के 20 निहत्थे सैनिक चीनी सैनिकों के साथ बातचीत के दौरान उनकी धोखाधड़ी का शिकार होकर कायराना हमले में शहीद हुए।  चीन हमेशा से ही धोखेबाज रहा है। जबाबी कार्यवाही में भारतीय सैनिकों ने लगभग 47 चीनी सैनिकों को मार गिराया।  यूं तो भारतीय सैनिक किसी को छेड़ते नहीं हैं, पर कोई कायरतापूर्ण हमला करे तो छोड़ते भी नहीं हैं। अपनी फजीहत होने की वजह से चीन सरकार ने अपने मारे गए सैनिकों की संख्या बताने से इंकार कर दिया है, लेकिन भारत सरकार ने शहीद भारतीय सैनिकों की संख्या का विवरण दे दिया है। पूरा देश गुस्से में है। चीन अपनी आजादी के समय 1949 से ही नहीं चाहता है कि एशिया और पड़ोस में उसका कोई भी प्रतिद्वंद्वी हो. भारत पर 1962 के हमले के पीछे भी उसकी यही घृणित सोच थी लेकिन हिन्दी चीनी भाई भाई के नारे से खुश भारतीय नेतृत्व यह समझ नहीं पाया था कि धोखा चीन के खून में है. आज जब कोरोना को लेकर चीन बदनाम हो रहा है और बुरी तरह बौखलाया हुआ है तो पूरी दुनिया में उसकी साख डूब चुकी है। बिना साख के कोई देश व्यापार कर ही नहीं सकता. चीन अपने कुकर्मों की वजह से पूरी दुनिया में घृणा का पात्र बन चुका है. बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ चीन छोड़कर भारत का रुख करने लगी हैं. अगर निवेशक चीन छोड़कर भारत का रूख कर रहे हैं तो चीन तो खिसियानी बिल्ली की तरह नोचने के लिए खम्भा खोजता घूम रहा है। चीन को आज भी सबसे आसान लक्ष्य भारत ही दिख रहा है पर वह यह न भूले कि यह 2020 का भारत है 1962 का नहीं। पहले से अधिक आधुनिक हथियारों से सुसज्जित भारतीय सेना के लिए राष्ट्र का गौरव प्राणों से भी बढ़कर है। गलवन या गलवान घाटी की शहादत भले ही 16 बिहार रेजिमेंट की अगुवाई में दी गई हो और वीर शहीदों में ज्यादातर बिहार के हों लेकिन इसमें तमिलनाडु के भी जवान शामिल हैं और सबसे बढ़कर यह कि उनका नेतृत्व जो कर्नल संतोष बाबू कर रहे थे वे भी सुदूर दक्षिण तेलंगाना के थे। उनकी माँ द्वारा अपने बेटे की शहादत पर कहे गए शब्दों ने न सिर्फ हमारा मस्तक ऊंचा किया है बल्कि चीन को दहला दिया है. इकलौते जवान बेटे की शहादत पर मां ने कहा है कहा है कि उसे अपने बेटे की मौत का दुःख तो है लेकिन उससे ज्यादा इस बात पर गर्व है कि उसके बेटे ने देश के लिए अपना बलिदान दिया है। इस कांड से दुःखी पूरा भारत आक्रोश में है। इस समय भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। सम्पूर्ण भारत में इस समय चीन के प्रति गुस्सा चरमोत्कर्ष पर है। प्रत्येक भारतीय को अपने जवानों की शहादत का बदला चाहता है। सेना और सरकार सजग हैं। हम भी चीन को काफी कमजोर कर सकते है, यहाँ तक कि नेस्तनाबूद कर सकते हैं। चीन में निर्मित सामानों की यदि हम या हमारे व्यापारी बिलकुल भी खरीद नहीं करते हैं तो चीन तिलमिला उठेगा। वक्त आने पर हर भारतीय अधेड़, बच्चे और वृद्ध भी चीन के खिलाफ बन्दूक उठाने को तैयार हैं। हमें इस बात का दृढ़ निश्चय लेना होगा कि जब तक भारत का अंतिम बच्चा, आखिरी व्यक्ति सांस ले रहा है तब तक भारत अपने बिगडै़ल पड़ोसी के साथ युद्ध में अपने कदम एक इंच भी पीछे नहीं लेगा क्योंकि गलवन घाटी का दर्द कभी भुलाया तो नहीं जा सकता पर कम किया जा सकता है। जय भारत, जय जवान।  लेख लिखते हुए अभी समाचार मिला है कि पूर्वी लद्दाख सीमा पर भारत और विश्व के सबसे अचूक प्रहार करने वाले शक्तिशाली टैंक टी-90 भीष्म की तैनाती कर दी गई है। - - सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
गलवन घाटी का दर्द को भुला नहीं जा सकता इस घाटी के निचले हिस्से में चीन हैं और ऊपरी हिस्से में भारत
चीन का ऐसा मानना है कि यह घाटी चीन का है जबकि यह भारत का हिस्सा रहा है इसी विवाद में चीन ने कोरोना से विश्व मैं फैलाकर सभी देशों के लोगों को त्रस्त किया है और दूसरी ओर से भारत के घाटी पर कब्जा करने के लिए सैनिकों को तैनात किया भारत के सैनिक जब नम्रता पूर्वक उनसे बात करने पहुंचे तो उन्हें शहीद होना पड़ा लेकिन भारत इस विषय पर चुप नहीं बैठेगा बैठा उसने भी चीन के सैनिकों को मार गिराया। 
कहीं ना कहीं दोनों देशों के सैनिकों को शहीद होना पड़ा है यह बहुत ही दर्द की घटना है विश्व का अन्य देश भारत देश के सपोर्ट में खड़ा है इसी सिलसिले में रक्षा मंत्री भी विदेश यात्रा पर निकल गए हैं
सैनिक चाहे जिस देश के हो उनका शहीद होना देश के लिए दर्दनाक घटना है चीन हमेशा विस्तार वादी धारणा के साथ भारत के कई हिस्सों को कब्जा किया है तिब्बत पर चीन अपना कब्जा बना लिया है और इसी तरह चाहता है कि भारत के अन्य निकटवर्ती सीमावर्ती राज्यों पर कब्जा बनाते जाएं पर वर्तमान प्रधानमंत्री इसे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं और अपने सैन्य दल को पूरी आत्मनिर्भरता से एक्शन प्लान का आदेश दे चुके हैं उन्हें खुली छूट मिली है आप परिस्थिति देखकर अपना निर्णय ले लीजिए
गलवन घाटी के दर्द को भुलाना नामुमकिन है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
 सच तो ये है कि जिस गालवन घाटी को लेकर भारत और चीन के बीच तनातनी चल रही है  उस गालवन घाटी का दर्द आज का नहीं बहुत पुराना है ,और कभी न भूलने वाला है ।जहां  अभी हाल मे ही हमारे बहादुर अमर योद्धाओं कर्नल सहित दो जवानो ने देश की रक्षार्थ अपने प्राण निछावर कर दिए ।
लद्दाख में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई इस दौरान भारतीय सेना के अफसर शहीद हुए इसी घाटी पर चीन और भारत के बीच 1962 में जंग हुई थी। एक बार फिर इस घाटे को लेकर विवाद खड़ा हो गया है गालवन घाटी लेह से नजदीक है जो भारत के कब्जे में आता है, यह क्षेत्र भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है ।
इस घाटी को लेकर चल रहा विवाद भारत द्वारा  कुछ दिनों पहले 
बनाए जा रहे एक सड़क को लेकर है ।चीन का कहना है कि यह क्षेत्र उसके हिस्से में है ।दारूल  वेग ओल्ड भारत के अक्साई चीन इलाके से लगा है, जिसे चीन ने कब्जा कर लिया है। यह सारा विवाद इसी घाटी को लेकर है ।जिस कारण घाटी पर चीन और भारत आमने-सामने हैं।
 इसका इतिहास काफी पुराना है  भारत और चीन की सीमा में काफी तनातनी हुई है।
करीब 14 हजार फिट की  ऊंचाई और माइनस 20 डिग्री तापमान में जवानों का सब्र टूट रहा है ।यह जगह अक्साई चीन में आती है जिस पर चीन बीते 70 साल से लगाए बैठा है 1962 से लेकर 1975 तक भारत चीन के बीच जितने भी संघर्ष हुए उनमें केवल गालवन  घाटी केंद्र बिंदु रही ।
इस समय 45 साल बाद फिर वही दर्द उभर आया है , हालात बेहद चिंताजनक है।
ऊपर से हमारे भरतीय सैनिको के  बलिदान ने हम भारतीयों के जख्म   को उकसा दिया है हरा कर दिया है जिसका परिणाम चीन को भुगतना ही पड़ेगा ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
हाँ यह एक ऐसा दर्द है जो जिंदगी भर हमें याद दिलाता रहेगा संतोष बाबू और भारतीय सेना के जांबाज सिपाहियों की शहादत का...
इसके साथ ही यह हमें याद दिलाता रहेगा कि किस तरह हमारे सिपाहियों ने शौर्य की अद्वितीय मिसाल कायम करते हुए चीन के सैनिकों को खदेड़ा था और उनको मुँह तोड़ जवाब दिया था।
इसके अतिरिक्त एक और दर्द है जो जीवन भर हमें याद दिलाएगा  कि चीन ने कैसे पीठ पीछे वार किया और  उसका साथ देने के लिए हमारे ही देश के कुछ लोगों ने अपनी ही सेना पर प्रश्न उठाए।यही नही कि हमारे दुश्मनों ने हमारे अपने देश के अंदर किस तरह हमारी जड़ो को खोखला करने का प्रयास किया। 
आज हमें सोचने की आवश्यकता है कि हमारे इतिहास में क्या गलतियाँ हुई और हमें आज क्या करना चाहिए .
- जगदीप कौर
अजमेर - राजस्थान

" मेरी दृष्टि मे " गलवन की हिंसक झड़प का भूलना बहुत ही मुश्किल है । जिन परिवारों के जवान शहीद हुए हैं । उनके लिए तो बहुत बड़ी मुश्किल भरा जीवन है ।  
                                                 - बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र 


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