क्या स्कूल से ही निकलेगा भारत आत्मनिर्भर का रास्ता ?
भारत आत्मनिर्भर बनाने के लिए बहुत से उपाय की घोषणा की गई है ।आत्मनिर्भर सभी बनना चाहते हैं । परन्तु कोई ना कोई रास्ता तो बनना होगा । इन में से एक रास्ता स्कूल से भी हो कर जाता है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब देखते हैं आये विचारों को : -
हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी ने अपने भारत को आत्मनिर्भर बनाने का जो फैसला लिया है उसके लिए आत्मबल व दृढ़ संकल्पता की अति आवश्यकता है और यह क्षमता पूर्ण रूप से युवा पीढ़ी में देखने को मिलती है। छात्र अपने देश के भावी कर्णधार होते हैं। वे जोश और बुद्धि बल से परिपूर्ण होते हैं। अगर उन्हें सरकार के तरफ से आर्थिक प्रोत्साहन मिले तो वह निश्चित ही अपने देश को नई दिशा प्रदान कर सकते हैं।
यह भी हकीकत है कि हमारे स्कूली पाठ्यक्रम में व्यावहारिक ज्ञान की कमियां पाई जाती हैं। फिर भी यह सत्य है कि छात्र चाहे तो भारत को आत्मनिर्भर बना सकते हैं।
एक उदाहरण प्रस्तुत कर रही हूॅं जिसका जिक्र मोदी जी ने 'मन की बात' में भी किया था। बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के भैरोगंज हेल्थ सेंटर की कहानी। जहां "संकल्प Ninety Five" के नाम से स्वास्थ्य केंद्र खोला गया। जहां मुफ्त में हेल्थ चेकअप शुरू किया गया और हजारों की भीड़ जुटी। यह महान कार्य वहां के हाई स्कूल के 1995 Batch के छात्रों द्वारा चलाया गया अभियान था। छात्रों ने एक Alumni Meet रखी और कुछ अलग करने को सोचा। जिम्मा उठाया Public Health Awareness का । उनके इस मुहिम में बेतिया के सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल जुड़ गए और निशुल्क जांच, निशुल्क दवा जन स्वास्थ्य को लेकर एक अभियान चल पड़ा और यह संकल्प एक मिसाल बनकर सामने आया।
इसी तरह दूसरा उदाहरण बिहार के वैशाली जिले के युवक का है जो सेना में जाने के उद्देश्य से हिमाचल प्रदेश के सैनिक स्कूल में पढ़ाई किया। जब गांव लौटा तब अपना विचार बदल कर लगभग 100 एकड़ में खेती -बाड़ी का काम 150 लोगों को साथ लेकर शुरू किया और आज 40 लाख सालाना टर्नओवर की मुकाम पर पहुंचा है और अब अपने साथ बेरोजगार हो गए लोगों को साथ जोड़ कर रोजगार देने का कार्य कर रहा है।
ऐसे कई उदाहरण हैं जो हमारे स्कूली छात्रों ने बुद्धि बल से कार्य को शीर्ष तक पहुंचाया है। गांधी जी ने भी अपनी उम्र में भारतीय उत्पादों को प्रोत्साहित कर आत्मनिर्भर बनाने का रास्ता दिखाया था।
विवेकानंद जी ने भी कहा है --युवा वह है जो
Energy और dynamism से भरा है। वह हर असंभव को संभव करने की क्षमता रखता है।
इसलिए हम नि:संदेह कह सकते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री जी ने जो सपना देखा है भारत को आत्मनिर्भर बनाने का, उसका रास्ता स्कूल से ही निकलेगा। सरकार को दो कदम आगे चलते हुए युवाओं को प्रोत्साहित कर उनके मनोबल को ऊंचा करने की जरूरत है।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
आज जब लाॅक डाउन में स्कूल द्वारा बच्चों के लिए ऑनलाइन शिक्षा का प्रचार-प्रसार हो रहा है, यह अत्यंत सराहनीय कदम है ।आज के डिजिटल विश्व में बच्चो के साथ-साथ प्रत्येक शिक्षक एवं अभिभावक को भी स्वयं को अपडेट होने और नई तकनीक सीखने का अवसर मिल रहा है ।हर क्षेत्र में वर्क फ्राॅम होम का जो चलन आज नजर आ रहा है, वह 50% सही है लेकिन ये प्रक्रिया मल्टीनेशनल कंपनियों, ऑफिस एवं कुछ आवश्यक स्तर पर ही उचित भूमिका निभा सकते हैं ।
जहाँ तक बच्चों की शिक्षा का सवाल है, उसके लिए ये ऑनलाइन शिक्षण प्रक्रिया सिर्फ आपातकाल तक ही उचित है ।विद्यालय का स्पर्श और शिक्षकों से साक्षात्कार बच्चों में रक्त सा संचार करता है ।विद्यालय केवल शिक्षा का घर नहीं बल्कि एक पवित्र स्थान है जहाँ बालकों में सकारात्मकता जाग्रत होती है ।भले ही आज बच्चों के मुख से सुनने को मिल रहा है कि "ऐसे ही ऑनलाइन शिक्षा "होनी चाहिए, परन्तु वो ये नहीं जानते कि विद्यालय केवल पुस्तकीय ज्ञान के लिए नहीं वरन् शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, व्यावहारिक एवं नैतिक ज्ञान प्राप्त करने की प्रयोगशाला है और इनकी सही आयु बालपन ही है ।इन सभी में सक्षमता हासिल करने का केन्द्र एक मात्र विद्यालय और गुरुजन हैं ।
बचपन से जीवन मूल्यों की सच्ची शिक्षा घर पर बंद कमरे में मोबाइल, लैपटॉप अथवा ऐसे ही तकनीकी यंत्रों से कदापि नहीं हो सकती ।पुस्तक, काॅपी और पैन,पैंसिल का स्पर्श अति आवश्यक है ।साथ ही नियमित नित्यकर्म, अनुशासन, स्वावलंबन, आत्मनिर्भर, आत्मविश्वास, कर्मठता, विनम्रता, सहयोग, बंधुत्व आदि गुण बालक विद्यालय के अतिरिक्त कहीं नहीं सीख सकता ।विद्यालय एक ऐसा मंच है जहाँ उसकी प्रतिभा को निखारने का अवसर मिलता है।उसे प्रतिस्पर्धा में स्वयं को साबित करने का मौका दिया जाता है ।वह समाज के मानवीय मूल्यों से परिचित होता है और अपनी योग्यता का परचम फहराने योग्य बनकर एक कुशल नागरिक बन कर परिवार, समाज ,देश ,राष्ट्र और विश्व में अपनी कुशल भागीदारी निभाने योग्य बन जाता है ।इसलिए विद्यालय के बिना तो बच्चों के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
स्कूल ज्ञान अर्जन करने का मंदिर है। शिक्षा के माध्यम से बच्चों को स्कूल में ही ज्ञान दिया जाता है। ज्ञान से ही बच्चों में समझने की शक्ति होती है समझ ही मनुष्य का ताकत है समझ कर ही बच्चे विचार कर समस्या का समाधान करते हैं और जिंदगी में विकास करते हैं अतः यह कहना अनुचित नहीं होगा कि स्कूल से ही निकलेगा भारत आत्मनिर्भर का रास्ता? आत्म निर्भर का अर्थ है सुरता होकर स्वविवेक से सर्वोत्तम मुखी समाधान में जीना अर्थात समस्याओं से मुक्ति होकर जीना। सभी क्षेत्रों में विकास कर समाधान इस पूर्वक देना यह तभी संभव है जब बच्चों को बचपन से ही संस्कारी और भौतिक ज्ञान देने की आवश्यकता है वर्तमान शिक्षा प्रणाली में भौतिक ज्ञान है लेकिन बौद्धिक ज्ञान अर्थात संस्कारी ज्ञान की कमी है यही भारत की पिछड़ेपन का कारण है पश्चिमी भौतिकवाद वर्तमान पीढ़ी को लपेटा है। संसाधन की कमी भारत में नहीं है समझ की कमी है अतः समस्त ज्ञान से आता है ज्ञान शिक्षा के माध्यम से बच्चों को बचपन से घर परिवार और स्कूल समाज में दिया जाता है अतः हमें बच्चों को कैसे ज्ञान दें ताकि आने वाली पीढ़ी भारत की समृद्धि धारा के संसाधनों का सही उपयोग सदुपयोग और प्रायोजन शीलता में लगा कर आत्मनिर्भर होकर सम्मान के साथ ही पाएं। यही शिक्षा का लक्ष्य है हर मानव को आश्रित या संस्कारित जान के साथ भौतिक ज्ञान ज्ञान की आवश्यकता है वर्तमान में भौतिक संसाधन की कमी नहीं है समझ की कमी के कारण मनुष्य संसाधनों का दुरुपयोग कर प्रकृति की व्यवस्था को बिगाड़ रहा है परिवारिक सामाजिक प्राकृतिक संबंध टूट रहा है। समाज परिवार में मूल्य चरित्र पतन हो रहा है संस्कारी ज्ञान की कमी के कारण देखने को मिल रहा है लोगों की मानसिकता शारीरिक श्रम से अधिक यांत्रिक पर चली गई है लोग बेरोजगार यंत्रों के बदौलत से हो रहे हैं यंत्र की आवश्यकता अनुसार उपयोग है ना कि लोगों को बेरोजगार सेंड कर रोजगार बनाना। वर्तमान में यंत्रों की दुनिया को ही विकसित देश माना जा रहा है अरे यंत्रों की अधिकाधिक प्रयोग से खनिज संसाधनों का दोहन किया जा रहा है जिसका परिणाम धरती की अव्यवस्था से है धरती अव्यवस्थित होने से अपना प्रभाव दिखाती हैं वर्तमान में करुणा महामारी के रूप में और टिड्डा के रूप में भारत के लोग खेल रहे हैं लोगों को सर्व मानव की व्यवस्था बन जाए और धरती की व्यवस्था बनी रहे ऐसे ज्ञान की आवश्यकता है। व्यवस्था को समझना और व्यवस्था में जीने से ही भारत आत्मनिर्भर बन पाएगा कितना भी चिरकुट लो जब तक प्रगति की व्यवस्था के अनुरूप व्यवहार कार्य नहीं होगा भारत तो क्या पूरा विश्व आत्मनिर्भर नहीं बन पाएगा आत्मनिर्भर का आशय है सुख समृद्धि अभय के साथ समस्या मुक्त होकर जीना दोहन कर जीना समस्या ग्रसित जीना है सभी समस्याएं आ रही है अतः आत्मनिर्भर का रास्ता शिक्षा के माध्यम से व्यवस्था वाली शिक्षा देना समाज के लोगों के लिए निहायत जरूरी है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
आत्मनिर्भरता का अर्थ है स्वयं पर निर्भर होना ।भारत पूर्ण रुप से आत्मनिर्भर नहीं है ,कहने का अर्थ है यहाँ कि पचास प्रतिशत जनता खुद में सक्षम नही है ।कह सकते हैं कि सभी जानकारियों का उनमें आभाव है ।स्कूल से भारत आत्मनिर्भरता का रास्ता अवश्य निकल सकता है ।कहते हैं बच्चे कच्चे मिट्टी के घड़े होते है उन्हें हम किसी भी रुप वआकार में ढ़ल सकते हैं ।स्कूल की नैतिकता और परिश्रम की शिक्षा पूरे भारत को ही सक्षम बनायेगी ,स्कूल से निकलने वाला हर बच्चा भारत की आधारशिला है ।स्कूल से शिक्षा पाकर हरक्षेत्र में बच्चे जाते हैं ।कोई शिक्षक ,कोई ,डाक्टर ,वैज्ञािनक ,व्यापारी ,किसान आदि के रुप में ये ढ़ल कर तैयार होते हैं सब के अन्दर यदि सच्चाई और परिश्रम हो तो देश जरुर आत्मनिर्भर बनेगा ।जहाँ करोड़ों की संख्या मे दिमाग और लगन हो वह देश कैसे दूसरों पर आश्रित हो सकता है ।महान कवि ' हरि औधजी ' कि पंक्तियाँ कर्म वीरों के लिए .. भूल कर वे दूसरों का मुंह कभी तकते नहीं ।
कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं ॥
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
स्कूल या विद्यालय वह मंदिर है जहां से जिंदगी का सफर शुरू होता है और यह बिल्कुल हैं सत्य है कि आत्मनिर्भरता की शुरुआत स्कूल से ही होती है प्रारंभिक दिनों में छोटे बच्चे जब स्कूल जाते हैं तो परिवार से अलग रहने की एक कला का विकास होता है अपने साथ अपने सामानों की रक्षा करने का हुनर सीखते हैं दोस्तों से लोगों से मिलने की कला सीखते हैं टीचर और विद्यार्थी के बीच की दूरी उन्हें समझ में आता है अपनी हर क्रियाओं को स्वयं करने की जिम्मेवारी आ जाती है अगर विद्यालय दूर है तो बस में आना है बस में जाना है कहां उतरना है इत्यादि परिस्थितियों के प्रति सजग रहते हैं।
उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनकी भाषा कुशलता शिक्षा मौलिक बिहार इत्यादि में भी परिपक्वता आने लगती है और धीरे-धीरे विद्यार्थी जीवन का सफर आगे बढ़ता जाता है उन्हें यह समझ आने लगती है क्या अच्छा है क्या बुरा है और आत्मनिर्भर बनने लगते हैं इसलिए आज का जो विषय है की आत्मनिर्भरता क्या स्कूल से ही शुरू होंगे यह बिल्कुल सही है लेकिन आज के परिपेक्ष में आत्मनिर्भरता का जो सबक जो पहलू है उसका उद्देश्य कुछ और है हमारे ख्याल से मन की बात में आदरणीय मोदी जी ने आत्मनिर्भर होने की संदेश जो भारत वासियों को दिया है उसका मूल उद्देश्य यह है कि व्यवहार में आने वाले सामानों का उत्पादक भारतवासी बने विदेशों में बने हुए सामान जो आयात होते हैं उनका इस्तेमाल नहीं करें इसके लिए निजी तौर पर स्कूल से ही बुनियादी शिक्षा के साथ-साथ तकनीकी शिक्षा कुशलता का पाठ्यक्रम बनाया जाएगा तभी संभव है सिर्फ सैद्धांतिक शिक्षा से आत्मनिर्भरता आंशिक आएगी पूर्ण रूप से आंशिक अगर होना है तो प्रारंभिक काल से ही या तकनीकी कुशलता कला कौशल के विकास प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा और उन से उत्पादित वस्तुओं का बाजार में बिक्री हेतु योजना तैयार की जाएगी जिससे बच्चों में या भावना आएगी कि हमारे द्वारा उत्पादित वस्तुओं आय एक जरिया है इससे आत्मनिर्भरता की भावना का उदय होगा
सबसे पहले मानसिक तौर पर हर भारतवासी को अपने विचारों में बदलाव लाना आवश्यक है फल स्वरूप उसे बिहार में लाया जा सकता है
आत्मनिर्भरता का दूसरा तरीका यह है कि विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करें
जिन परिवारों में जिन समाज में स्वदेशी वस्तुओं का पूर्णता उपयोग किया जा रहा हो उन्हें पुरस्कृत किया जाए इससे भी अन्य लोग प्रोत्साहित होंगे और धीरे धीरे स्वदेशी के प्रति झुकाव बढ़ता जाएगा
सामान वस्तुओं का मूल्य बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है खरीदारी में अगर स्वदेशी का मूल्य क्वालिटी दोनों उत्तम हो कहने का तात्पर्य है मूल्य कम हो और क्वालिटी उत्तम हो तो निसंदेह उन सामानों का हर परिवार में इस्तेमाल किया जाएगा
स्कूल संबंधित एक उदाहरण प्रस्तुत कर रही हूं पाठ्यक्रम की जो किताबें हैं वह राज्य स्तरीय होते हैं और केंद्र स्तरीय होते हैं और तीसरा जो होता है वह विदेशी स्तरीय होते हैं पुस्तकों की सप्लाई भी इन्हीं तीन वर्गीय से किया जाता है और यह दबाव होता है अभिभावक पर की स्कूल के शॉप से ही खरीदा जाए वैसे स्कूल प्राइवेट स्कूल जिनका रिकॉग्निशन दूसरे देशों के द्वारा है और भारत में बोल स्कूल चल रहे हैं तो भारत का रेवन्यू तो बाहर जा रहा है बड़े-बड़े फीस लिए जा रहे हैं समाज के लोग भी गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं कि मैं ज्यादा फीस देकर अच्छे स्कूल में पढ़ा रहा हूं यह जो मानसिकता बन गई है स्टेटस सिंबल बन गया है इसकी कहीं न कहीं रोक लगानी होगी आत्मनिर्भरता का पाठ स्कूल से अवश्य शुरू होगा और यह हर स्टेज पर हर स्तर पर चलता रहेगा
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
आत्मनिर्भरता का रास्ता सर्वप्रथम घर-परिवार से प्रारम्भ होता है । पारिवारिक वातावरण..........अभिभावकों की सोच ........उनका व्यवसाय और उनके द्वारा प्रदत्त संस्कारों का प्रभाव बच्चों पर सर्वाधिक पड़ता है ।
स्कूलों में चाहे वह सरकारी हो अथवा निजी उनकी वर्तमान स्थिति से सभी वाकिफ हैं । पुस्तकीय ज्ञान सर्वोपरि है ।
शिक्षा का उद्देश्य बालक का सर्वागीण विकास होना चाहिए, जिसमें आत्मनिर्भरता उसके भविष्य के लिए अति आवश्यक है ।
स्कूलों में बच्चों को 3H अर्थात Head, Hand, Heart की शिक्षा दी जाए, जो उसका सर्वांगीण विकास कर सके ।
यदि घर-परिवार और स्कूलों में इस प्रकार से बालकों को तैयार किया जाय तो अवश्य ही भारत को आत्मनिर्भरता का रास्ता मिल सकता है ।
लक्ष्य न ओझल होने पाए
कदम मिलाकर चल सफलता सभी के कदम चूमेगी
आज नहीं तो कल..
- बसन्ती पंवार
जोधपुर - राजस्थान
देश को आगे बढ़ाने के लिए आज का बच्चा ही कल का युवा है इसलिए देश को आगे बढ़ाने का रास्ता हम स्कूलों से ही क्यों ना बीज बोए और उनको आत्मनिर्भर बनाए ऐसी शिक्षा दें जिससे वे अपने जीवन को सफल बनाने के लिए कोई काम कर सके जिस बच्चे की जिस भी पढ़ाई लिखाई पढ़ने में रुचि होगी वह बचावा काम अच्छे से कर सकेगा जैसे उदाहरण के लिए यदि एक बच्चे का गणित तेज है तो वह गणित के द्वारा कैलकुलेशन संबंधी काम कर सकता है एक व्यक्ति यदि कलाम में अच्छा है तो वह व्यक्ति कला में गाना नैतिक आदि में अपना कैरियर बना सकता है।से उसकी शिक्षा सार्थक होगी और वह देश की भी आर्थिक उन्नति कर सकेगा स्वयं का विकास करेगा और सभी को खुश रखेगा क्योंकि मनचाहा काम करना सभी को अच्छा लगता है बेबसी और मजबूरी में यह हिटलर की तरह पुरानी शिक्षा प्रणाली के द्वारा ही हमें पढ़ाया जा रहा है गधे घोड़े ही निकल रहे हैं शिक्षा का कोई मतलब हो या ना हो हमें वही सब बातें सीखने और पढ़नी पड़ती है शिक्षा में अब बदलाव हो गया है बच्चे घर बैठे ऑनलाइन पढ़ने लग गए हैं परिवर्तन प्रकृति का नियम होता है परिवर्तन के द्वारा हम स्वावलंबी बन सकते हैं और बहुत कुछ सीखने को मिला है प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ सकती है अपना ज्ञान यदि हम दूसरों को बांटे और बच्चों को शिक्षित बनाएं यह एक नेक काम है शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन होना चाहिए और बच्चों को उचित शिक्षा देनी चाहिए इस विषय में जरूर कोई सरकार को ठोस कदम उठाना चाहिए।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
अच्छे अच्छे व्यापारियों को कोरोना ने तोड़ कर रख दिया है न केवल बिजनेस घाटे में तोड़ा है बल्कि अब तो आलम ये है कि लोगो की मंशा तक को कोरोना ने तोड़ कर रख दिया है । जिसके बाद अब इस मंशा को पुनः जाग्रित करने की आवश्यकता है । ताकि भारतवासियों की मंशा हमेशा प्रबल ही नजर आए । ये प्रबल इच्छशक्ति ही होती है जो मरने की इच्छा रखने तथा इस दिशा में प्रयासरत व्यक्ति को भी जिंदा रहने के लिए प्रेरित कर दे ।
और इस इच्छा शक्ति को बरकरार रखने के लिए आज मोटिवेशन क्लास लेना अतिआवश्यक हो गया है , जिसकी ओर प्राइवेट सेंटरों से लेकर अब स्कूली छात्र छात्राओं को भी स्ट्रेस से बचाने के लिए ये क्लास देंना आवश्यक हो गया है । जिसकी ओर सरकारी अथवा गैरसरकारी स्कूलों को भी इस दिशा में कदम बढ़ाने की आवश्यकता है । इन क्लासों से न केवल जीने की इच्छाशक्ति मजबूत होती है बल्कि हमारी अन्य कई समस्याओं का भी हल हो जाता है । परंतु ऐसे समय मे स्कूल अथवा प्राइवेट क्लासों को खोलना कितना उचित होगा , इसके बारे में इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आज देश में बड़ी प्रतिशत संख्या में लोगो का कहना है कि यदि हमारा बच्चा नही पढ़ेगा तो जाहिर सी बात है वह आईपीएस ऑफिसर नही बनेगा , परन्तु वह जीवित रहा तो हम उसे नेता बन लेंगे ।।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास और आत्म उन्नति की कुंजी है। विश्व में घट रही तमाम घटनाओं के दृष्टिगत यह आवश्यक है कि भारत आत्मनिर्भर हो। भारत के लिए सुखद पहलू यह है कि विश्व की दृष्टि में भारत आज एक सशक्त स्थान पर है। साथ ही भारतीयों का मनोबल भी उत्तम है। परन्तु इस सशक्तिकरण की प्रक्रिया की निरन्तरता हेतु हमें आत्मनिर्भर होने के लिए प्रवाहयुक्त प्रयास करने होंगे।
यह सत्य है कि एक मानव में संस्कारों की उपलब्धता परिवार के बाद विद्यालय के माध्यम से ही आती है। आत्मनिर्भर होना भी एक संस्कार है और यह संस्कार जब बालपन से ही उत्पन्न होगा तो जीवन-पथ पर यह आत्मनिर्भर रूपी संस्कार सदैव साथ रहेगा। इसलिए एक बालक को जब स्कूल से ही आत्मनिर्भरता के संस्कार मिलेंगे तो यह उसकी आदतों में शामिल हो जायेंगे।
इसलिए अब वह समय आ गया है कि हम स्कूलों में ऐसे पाठ्यक्रम और गतिविधियां संचालित करें जिससे एक बालक आत्मनिर्भर होने की सतत् प्रक्रिया को सहज रूप में स्वीकार करते हुए ग्रहण करे।
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
बिल्कुल सही है विद्यालयों से ही आत्मनिर्भरता आती है क्योंकि कि आज का बालक कल का नेता है और हमारा नेता आज विद्यालय में शिक्षा प्राप्त कर रहा है और आत्मनिर्भरता प्रदान करने हेतु हमें सर्वप्रथम शिक्षा का स्वरूप बदलना होगा मात्र किताबों को रटकर परीक्षा में पेज़ भरना ही एक बालक की योग्यता का आंकलन नहीं होना चाहिए बालक में छुपी उस योग्यता को निखारना चाहिए जिसमें बालक स्वयं रूचि लेता हो जिससे पढ़ रहे अनेक बालक ऐसे ऐसे आविष्कार कर डालेंगे जो हम सोच भी नहीं सकते।
अगर विकसित देशों में बालको की शिक्षा का स्वरूप देखा जाए तो बालक इतिहास रट रटकर पागल नहीं होते बल्कि नये नये आविष्कार करके अपने देश को आत्मनिर्भर बनाते हैं और आज हमारे देश के युवा भी इस सुविधा को पाने हेतु विदेशों में चले जाते हैं । जिससे हमारा देश विकासशील ही रह जाता है अतः देश की आत्मनिर्भरता विद्यालयों में है बस किताबों को प्रयोगशाला बनाने की आवश्यकता है।
- ज्योति वधवा"रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
भारतीय संस्कृति में ज्ञानार्जन का अति वैभव, महत्वशाली इतिहास रहा हैं। विभिन्न अवतरित बाल्यकाल, गुरुकुल में ऋषि-मुनियों, राजा-महाराजाओं के पुत्रों के साथ-साथ सभी समुदायों के जनों द्वारा समस्त प्रकार की शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त कर योग बनें हैं। कोई धर्मपालिक, कार्यपालिक, न्यायपालिक बनें। जिन्होंने अपने-अपने स्तर पर कीर्तिमान स्थापित किया। समय बदला, परिस्थिति बदली, अलग-अलग प्रकार की शिक्षा पद्धति निकली, शिक्षा ग्रहण करने दौड़ पड़े, मंहगी शिक्षा प्रणाली हो गई, बालक बचपन से ही किताबों का बोझ झेलने लगा, कम्प्यूटर, व्हाटसाप, फेसबुक के माध्यम से अपने आपको आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर करने लगा, लेकिन अति शिक्षा प्राप्त कर भटक रहें हैं, उनके पालकों ने अनेकों कर्जों के तले उच्च शिक्षा प्राप्त करवाया, बेरोजगारी बढ़ने लगी, रोजगार प्रतियोगिताओं का महत्व बढ़ गया, इसमें भी भ्रष्टाचार की बूंदों का मायाजाल फैल गया, होनहार छात्र देखता रह गया। फिर किस तरह से आत्मनिर्भरता का रास्ता स्कूलों से निकलेगा। जब पूर्ण रूप से शिक्षित किया जा रहा हैं, तो रोजगार प्राप्तियों हेतु भी आत्मनिर्भर रास्ता निकालना होगा?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
पाश्चात्य शिक्षण और गुरुकुल शिक्षा पर केवल एक नज़र डालें, प्रमाण पत्र वाली शिक्षा युवाओं को 10% रोजगार दिला पाती है शेष युवा तनाव व कुंठा ग्रस्त जीवन जी रहे हैं, परिणाम है मनोविकार तनाव और अंत में आत्महत्या l गुरुकुल शिक्षा के समय भारत सोने की चिड़िया था, आखिर क्यों ? क्योंकि हर परिवार आत्मनिर्भर था l जैसे -बढ़ई बढ़ई का, खाती खाती का, स्वर्णकार स्वर्ण का इत्यादि ये परम्परागत धंधे उनकी जीविकोपार्जन की शिक्षा थी l आज लार्ड मेकाले की शिक्षा बाबू बनाने की फैक्ट्री है l गुरुकुलों में जो शिक्षा व्यवस्था थी पूर्ण रूप से व्यावहारिक होती थी l सबसे पहले स्वावलंबन का पाठ पढ़ाया जाता था जिससे छात्र अपने भावी जीवन में कभी भी, कैसे भी, किसी भी परिस्थिति में अपने पाँव पर खड़ा हो सकता था l गुरुकुल में योग शिक्षा तथा समानता को समर्पित शिक्षा थी l बालक खुश होकर सीखता था l मन को भटकाने वाले कारक नहीं थे, सादगी पूर्ण जीवन होता था l व्यावहारिक जीवन में पारंगत किया जाता था l गुरुकुल से बालक आत्मनिर्भर बन कर ही निकलता था l आज केवल मात्र प्रमाणपत्र लेकर निकलता है l जिसका जीविकोपार्जन के क्षेत्र में कोई योगदान नहीं होता l
स्कूलों और कॉलेजों से निकली हुई अगणित सेना का परिणाम बेकारी और अनीति के रूप में सामने आ रहा है l मनुष्य कार्यक्षम और सुयोग्य बनने की अपेक्षा चालाक और आडंबर के रास्ते चल रहा है l आज हम विचार करे तो पाते है कि न तो गुरुकुलों की स्थापना संभव है और न ही ऋषि मुनि उपलब्ध है और तो और लंगोटी, धोती पहनें, सिर मुंडाए भोजन के लिए भिक्षावृति अंगीकार करने वाले विद्यार्थी की कल्पना भी हास्यास्पद होगी l ऐसी स्थिति में स्कूल कॉलेजों में शिक्षा को रोजगारोन्मुखी बनाना होगा l आधे समय किताबी शिक्षा व आधे समय रोजगारपरक शिक्षा जो जीविकोपार्जन का माध्यम बनकर छात्रों को आत्मनिर्भर बनाकर निकाले l यह होगा ज्ञान के साथ सेवार्थ प्रस्थान का रास्ता l इसके लिए बच्चों की वास्तविक रूचि का परीक्षण कर उसे क्षेत्र का व्यवहारिक ज्ञान दिया जाये, जैसे बच्चों की इलेक्ट्रॉनिक्स में रूचि है तो उसे सर्किट बनाने से लेकर कम्प्यूटर सॉफ्टवियर तक का ज्ञान दे दिया जाये l गुरुकुल शिक्षा व वर्तमान शिक्षा पद्धति दोनों का उद्देश्य पूरा करने वाली बनाने के लिए शिक्षा पद्धति का पुनर्निर्माण करना चाहिए ताकि आज की चर्चा का सार्थक उद्देश्य सामने आ सके l
चलते चलते : -
1. यदि हमने अपनी आबादी को अकुशल लक्ष्य से भागी हुई अस्थिर और बिना प्रेरणा के छोड़ दिया तो यही आबादी हमारे लिए सबसे ज्यादा विनाशकारी साबित होगी l
2. जिनके पास आत्मा है, वह आत्मनिर्भरता की बात करे l
जिनके पास परमात्मा ही है वह क्या ख़ाक बात करे ll
अर्थात अपना आत्मावलोकन करते हुए परमात्मा के मार्ग दर्शन में धर्माचरण करते हुए हम आत्मनिर्भरता पथ के अनुगामी बनें l
- डॉ .छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
आत्म निर्भरता व्यक्ति स्वंय पर निर्भर रहकर एक अच्छी सोच के साथ अपने कार्य को करे। विद्यालय मे शिक्षा तो अवश्य मिलती है पर हमे स्वंय हिम्मत हौसला उत्साह बढ़ना पड़ता है। हमारे शिक्षक विद्यालय में शिक्षा द्वारा हमारा विकास करते है हमे आत्म निर्भर बनाते है नित्य नई शिक्षा द्वारा हमारा नैतिक आध्यात्मिक विकास करते है। विद्यालय आत्म निर्भर बनाता है ये आत्म निर्भर बनने का रास्ता है विद्यालय में सभी विषय को लेकर चर्चा होती है हम ध्यान पूर्वक उसका पालन करते है प्रतिदिन आत्म निर्भरता की सीढ़ी चढ़ते है शिक्षा द्वारा मनोबल बढ़ता है हाँ विद्यालय आत्मनिर्भरता का रास्ता हैै बच्चा विद्यालय जाता है मात पिता को छोड़ गुरूजनो की शरण शिक्षा ग्रहण करने ये प्रथम सीढ़ी आत्मनिर्भरता की वह अकेला माता पिता के बिना कई घंटे अकेला विद्यालय मे बिताता है गुरूजनो के साथ शिक्षा ग्रहण करता हैै धीरे धीरे आत्म बल बढ़ता जाता है वह ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में राजनीति के क्षेत्र मे बढ़ता जाता है वैज्ञानिक मनोवैज्ञानिक चिकित्सक साहित्यकार सब विद्यालय की राह पर चलकर बने कुछ न कुछ विद्यालय मे सीखा और आगे बढ़े आत्मनिर्भर बने।
कोरोना ने बदली रे चाल
हुआ रे बुरा हाल
विदेशी छोड़ो माल
स्वदेशी अपनाओ रे ॥
आत्म निर्भर बनो रे प्यारे
खुशियों के हो बारे न्यारे
घर घर बनाओ तुम माल
मिले रे रोजगार
स्वदेशी अपनाओ रे ...
- नीमा शर्मा 'हंसमुख '
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
हमारे हिंदुस्तान में अनगिनत संभावनाएं हैं।हर क्षेत्र में यहां रोजगार उत्पन्न किए जा सकते हैं। बस बात है! उसको समझने की ज्ञान का भंडार हमें स्कूलों से महाविद्यालयों से और हमारे अनुभव व अभ्यास से हमें प्राप्त होता है। ऐसे में बात है... कि क्या स्कूलों से निकलेगा भारत के आत्मनिर्भरता का रास्ता...! तो यह देखने सुनने में बहुत अच्छा और हल्का फुल्का लगता है।लेकिन इसको प्रैक्टिकल करने में अभी वक्त लगेगा।हमें स्कूलों में हर क्षेत्र की व्यवसायिक जानकारी तथा उसकी बारीकियों को प्रारंभिक शिक्षा से ही आवश्यक विषय के रूप में प्रारम्भ करना होगा। क्योंकि स्कूलों द्वारा ही प्राथमिक शिक्षा से हुनर विषय को हर बालक को उसके रुचि अनुसार एक हुनर जरूर सिखाना होगा। विषयों पर आधारित ज्ञान तो आगे जाकर सिर्फ नंबर तक ही सीमित हो जाता है। लेकिन हुनर को प्रेक्टिकल करके बच्चों को शुरुआत से ही विषय के रूप में अनिवार्य करके पढ़ाया जाए तो निश्चित ही अगले कुछ वर्षो में हमारे देश का हर बालक एक हुनर के साथ आगे बढ़ेगा।और आत्मनिर्भर भारत को बनाने में सक्षम होगा। यदि इस हुनर पद्धति को नई शिक्षा पद्धति में अनिवार्य विषय के रूप में जोड़ा जाए तो आने वाला भारत एक आत्मनिर्भर देश अवश्य बनेगा। लेकिन.. अभी तो सिर्फ स्वप्न मात्र सा प्रतीत होता है।
- वन्दना पुणतांबेकर
इंदौर - मध्यप्रदेश
भारत को आजादी मिले 73 साल होने जा रहा है । इतने दिनों में देश पूरी तरह आत्मनिर्भर नहीं हो सका है। विकास कार्य भी बहुत धीमी गति से हो रहा था। सरकार खुद भी निश्चित नहीं कर पा रही थी कि पहल कहाँ से हो? एक निश्चित योजना नहीं थी । जिसके कारण अन्य देशों की घुसपैठ होने लगी। कोरोना काल में हम बुनियादी कमी को समझ पाए हैं।
आत्मनिर्भरता तभी संभव है , जब नागरिक के ज़ेहन में बचपन से ही उसकी नींव डाली जाए। अभी तक सारी जिम्मेदारी सरकार पर डाल कर नेता जनता को बहका लेते हैं । लेकिन विद्यालय हमेशा शिक्षा और आत्मनिर्भर बनाने का केंद्र रहा है। अगर विद्यालय के स्तर से ही विद्यार्थियों के नैतिक मूल्य को महत्व देकर उनकी शिक्षा का निर्धारण किया जाए तो देश की आत्मनिर्भरता कहीं भी नहीं रुक सकेगी।
आज की पीढ़ी नेट के जरिये अपने रुचि के कार्यों की जानकारी प्राप्त करते हैं । अगर उन्हें यह सब शुरू से ही बताया और सिखाया जाए तो वो आगे बढ़ने में नहीं हिचकिचाएंगे ।
यह समय राजनीति का नहीं बल्कि मिलजुल कर आत्मनिर्भरता के लिए काम करने का है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
आत्मनिर्भर, घर से शुरु होता है अपने छोटे छोटे थाम स्वयंम करना । स्कूलों में पढ़ाया जाता है । प्रेक्टिकल घर में मां करवाती है । आत्मनिर्भर होना बहुत अच्छी बात है पर किसी एक क्षेत्र में नहीं हर क्षेत्र में होना दिनचर्या के हर काम में आत्मनिर्भर होना चाहिए ।
कोई भी पूरी तरह से आत्मनिर्भर अचानक नहीं बनता |
अगर आप सच में आत्मनिर्भर हैं तो हर छोटे-छोटे कामों के लिए या मनोरंजन के लिए दूसरों की ज़रूरत नहीं पड़ेगी |
जो लोग अपने जीवन को अधिक नियंत्रण में रखना चाहते हैं और ये सोचते हैं की अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए उन्हें किसी और की जरुरत नहीं है, उन लोगों के लिए आत्मनिर्भर होना एक बहुत महत्वपूर्ण योग्यता है | आत्मनिर्भरता आपको दूसरों की परवाह किये बिना जो आप चाहते हैं वो करने की आज़ादी देगी और अपनी समस्याओं का मूल रूप से समाधान खोजने के लिए आपको प्रेरित भी करेगी | साथ ही,अध्ययनों से ज्ञात होता है की अधिक आत्मनिर्भर लोग ख़ुद को ज़्यादा ख़ुश महसूस करते हैं,ऐसा इसलिए होता है की जब हम अपनी ज़िन्दगी को अपने हाथों में लेने के काबिल हो जाते हैं तब ज़्यादा राहत और संतुष्टि का अनुभव करते हैं
सबसे पहले स्वयं को जैसे हैं वैसे ही स्वीकार करें अन्यथा आप खुद को मज़बूत और आत्मनिर्भर नहीं बना सकते | अपने शरीर, अपने व्यक्तित्व, अपने विचार, अपनी रूचि और अपने जींवन की कहानी को स्वीकार करें | ये कभी न कहें की परिस्थितियां आपके अनुकूल नहीं हैं | प्रत्येक व्यक्ति अपनी ताक़त को साबित करने के लिए कुछ न कुछ परेशानियाँ उठता है | अपनी ग़लतियों को भूल जाएँ और उनसे सबक लेकर आगे बढ़ें | ख़ुद को बेहतर बनाने की कोशिश करें और सबसे ज़रूरी है की खुद से प्यार करें |
आत्मनिर्भर लोग घमंडी नहीं होते और न ही वो ये मानते है की सारी मानव जाति क्रूर है | आत्मनिर्भर लोग वो होते है जो देख सकते हैं की दुनियां में क्या अच्छा है और क्या बुरा है और सतर्क होकर उनके और दूसरों के लिए दृड़ता से चुनाव करते हैं | अगर आप दूसरों पर भरोसा नहीं करते हैं और सिर्फ अपने बारें में सोचते हैं तो आप आत्मनिर्भर नही हो सकते |
पैसों को सम्भाल कर सही उपयोग करे
पैसे बचाने के रास्ते ढूंढने से आप अधिक आत्मनिर्भर होंगे क्योंकि आपके पास अपने अनुसार खर्च करने के लिए ज्यादा पैसे होंगे |
आत्मनिर्भर में होटल थे खाने से बचें
अपने लिए खाना बनाना सीखने से न सिर्फ़ आप आत्मनिर्भर होंगे बल्कि बहुत सारे पैसे बचने में भी मदद मिलेगी जो आपकी स्वतंत्रता की एक और चाबी है
अन्य लोगों को आपकी सफलता से कोई सरोकार नही होता | प्रोत्साहन और सफलता आदत के कार्य हैं | आपको आज का कम कल पर टालने वाली गलत आदत को छोड़कर अच्छी योजनायें बनाने की आदत डालनी चाहिए | दुनियां के सबसे सफल लोग हमेशा से प्रतिभाशाली या आकर्षक नहीं रहे है | इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता की दूसरों को किन प्रतिभाओं और उपहारों से नवाज़ा गया है, उनके पास उनके आत्मसम्मान का आधार है जो उन्हें छोटे और बड़े दोनों ही तरह के काम सफलतापूर्वक पूरे करने से मिली जीत की श्रंखलाओं के कारण मिला है | यह सब आपके विध्यालय की सीख,विश्वास और ज़िन्दगी में सबकुछ सीखने से मिलता है |
यदि आप तरक्की का लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं तो इसे स्वयं ही हासिल करना चाहिए इसके लिए अपने परिवार का सहारा नहीं लेना चाहिए | अगर आप अद्भुत पद या दर्ज़ा पाना चाहते हैं तब भी ऐसा ही करना सही होता है |
दूसरों को प्रभावित करने के लिए अपना वज़न कम करने, क़िताब प्रकाशित करने, या मकान बनाने के लिए प्रेरित न हों बल्कि स्वयं को सफल बनाने के लिए करें | अपने लिए करें !
स्कूल मददतकर सकता है पर सही आत्मनिर्भर बनने की बहुत सी बाते है हमें हर तरह से आत्मनिर्भर होना चाहिए सिर्फ आर्थिक रुप से नहीं हर अपना काम स्वयं करना भी आत्मनिर्भरता है !
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
कोरोना संक्रमण महामारी के कारण देश मे शैक्षणिक संस्थान बंद है। भारत का भविष्य बच्चों पर ही निर्भर करता है। देश का निर्माण के लिए शिक्षा बहुत ही आवश्यक है। स्कूल से ही निकलेगा भारत आत्मनिर्भर का रास्ता, क्योंकि प्रारंभिक शिक्षा की शुरुआत स्कूल से ही होती है। इसके बाद युवा वर्ग कॉलेज जाते हैं, ताकि उनकी आगे की पढ़ाई पूरी हो सके। इसके बाद कोई इंजीनियरिंग, मेडिकल, एमबीए, यूपीएससी, मैनेजमेंट की शिक्षा हासिल करता है, तो कोई स्किल डेवलपमेंट की तैयारी करता है। इंजीनियरिंग का अपना अलग निर्माण का क्षेत्र है तो मेडिकल की पढ़ाई कर लोग डॉक्टर बनकर मानव सेवा में लग जाते हैं। फिर कोई यूपीएससी की परीक्षा पास कर प्रशासनिक सेवा में लग जाता है, तो कोई राजनीति में जाकर सत्ता संभलता है। युवा वर्ग चाहे जिस क्षेत्र में जाय वह देश हित में ही काम करता है। इसलिए कहा जाता है कि राष्ट्र निर्मित में युवा वर्ग की अहम भूमिका रहती है। युवा वर्ग ही देश की दशा और दिशा बदलने की ताकत रखने हैं। इसलिए भारत का आत्मनिर्भर का रास्ता स्कूल से ही निकलता है, क्योंकि प्रारंभिक शिक्षा स्कूल से ही हासिल होती है। इसके बाद ही युवा वर्ग आगे की पढ़ाई कर देश निर्माण में अपना योगदान देते हैं। हालांकि अभी पिछले 25 मार्च से कोरोना महामारी के कारण स्कूल-कॉलेज सहित सभी तरह के शैक्षणिक संस्थान बंद है। जब तक कोरोना संक्रमण की दवा नहीं बन जाती और इस महामारी पर नियंत्रण नहीं हो जाता तब तक शैक्षणिक संस्थान का खुलने का आसार नहीं दिख रहा है। इससे बच्चों की पड़ बाधित हो रही है। यह भी सच है कि जान है तो जहान है। क्योंकि कोरोना से पहले जान बचानी है। इसके बाद ही आगे पढ़ाई पूरी कर ली जाएगी।
- अंकिता सिन्हा साहित्यकार
जमशेदपुर - झारखंड
हा! भाई हा! स्कुल से ही भारत के आत्मनिर्भर का सटिक रास्ता हैं दुनियाँ ओर खास कर हमारे दुश्मन यह अछ्छी तरह से जानते थे तभी भारत पर हर आक्रमण कारी ने भारत को लुटा भी सही ओर हमारी शिक्षा व्यवस्था को धुमिल करने में कोई कसर बाकी नही रखी मुगल शाशक हो या अंग्रेज दोनो ने ही हमारे शिक्षा के मन्दिरों को सोच समझ कर बरबाद किया हमारे गुरूकुलो को आग के हवाले कर दिया बकायदा उन्होने विशेषग्यों से राय लेकर भारत की कमर तोड़ने का काम किया 200 साल की गुलामी का ही नतीजा हैं की हमारे यहा आज कान्वेन्ट स्कुलो का बोल बाला हैं गुरूकुल परम्परा समाप्त सी हो चली हैं उन्होने हमे अपनी मुल सभ्यता संस्कृती को पढ़यन्त्र के तहत धुमिल किया गया जीसका ही परिनाम हैं की हम आज अपनी सभ्यता संस्कृती ओर देश प्रेम से दूर होते जा रहे हैं यदी स्कुलो को गुरूकुल परम्परा अनुरूम चलाया जाय तो यकिन मानिये भारत न केवल आत्मनिर्भर होगा पहले से ज्यादा ससक्त ओर देश प्रेमी भारत होगी एसा मेरा मानना हैं । - कुन्दन पाटिल
देवास - मध्य प्रदेश
जी हां, स्कूल से ही निकलेगा भारत आत्मनिर्भर का रास्ता। यह कपोल कल्पना नहीं यथार्थ है।आवश्यकता है पूर्ण मनोयोग से स्थानीय हस्तशिल्प और आधुनिक तकनीक का समन्वय हो। हमें याद है प्राथमिक कक्षाओं में हमसे मिट्टी के बर्तन बनाने, तकली चलाने सूत कातते, रंगोली बनवाने,स्कूल में क्यारियां बनवाने, सब्जी उगवाने, कपड़ा रंगवाने जैसे काम कराये जाते थे। कुछ बड़ी कक्षाओं में लकड़ी के खिलौने बनाना, सरकंडे से छोटी छोटी मेज कुर्सी मूढ़े बनवाना, टहनियों को चीरकर टोकरी,छबड़ा बुनवाना,रस्सी बटवाना जैसे काम भी स्कूल में कराये जाते थे। तख्ती पर लिखवाया जाना,तख्ती पुताई सुखाना,कलम बनाना,स्वयं सफाई करना,टाट पट्टी या चटाई बिछाना दैनिक दिनचर्या में शामिल थे। इससे स्वत: ही आत्मनिर्भरता का विकास हो जाता था। अनेक मानवीय मूल्य स्वत: विकसित होने जाते थे। बाद में यह सब बंद हो गया। परिवर्तन के चलते मानसिकता भी बदल गयी। राह के पत्थर को हटाने के लिए भी दूसरों की ओर देखने की सोच बन गयी। बाल अधिकार,श्रम और न जाने क्या क्या कानून, इन सबके चक्कर में आत्मनिर्भरता पीछे छूट गयी। स्कूल की छोड़ो घर वाले भी बच्चों को परंपरागत हुनर न सिखा सके। नौकरी के चक्कर में आत्मनिर्भरता की बात पीछे छूट गयी। बस नौकरी ही लक्ष्य और उद्देश्य हो गया। गांव से पलायन करते लोग बीघों में भूमि बेचकर,शहर में फिटों में खरीदने लगे। आत्मनिर्भरता को लेकर नौकरी और पराधीनता स्वीकार करने लगे।अब आवश्यकता है संपूर्ण स्कूली शिक्षा, बुनियादी शिक्षा बने, प्राथमिक, माध्यमिक नहीं। बुनियादी यानि संपूर्ण विकास करने वाली और आत्मनिर्भर बनाने वाली शिक्षा हो। अब शिक्षाविद विचार कर रहे हैं इस पर। हमारे देश में शिक्षा पिछले 20-25 सालों में प्रयोगशाला बनकर रह गयी है। जिसमें तरह तरह के प्रयोग हो रहे हैं।जिसका नतीजा 'ज्यों ज्यों दवा की मर्ज बढ़ता गया',रहा।आवश्यकता है स्थानीय आवश्यकताओं से शिक्षा को जोड़ा जाये। इसमें आधुनिक तकनीक को भी जोड़ा जाये। आत्मनिर्भरता की राह यहीं से निकलेगी।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
स्कूल से भारत आत्मनिर्भरता कस रास्ता तो तब निकललेगा जब स्कूल खुलेंगे और पूर्ववत काम चलेगा । पहले तो यही तय करना होगा कि कोविद से बचने के लिए बच्चो में पर्याप्त समझ है ? क्या उनकी बालसुलभ चंचलता पर अंकुश लग पायेगा ?क्या उनकी पारिवारिक आदतों को बदला जा सकेगा ? और इन सबसे परे क्या स्कूल खोलनेवालों को यह पता रहेगा कि स्कूल का कौन कर्मचारी या विद्यार्थी कोरोना कैरियर है या नही ?
इस प्रश्नों व आशंकाओ को नकारा नही जा सकता । जब इतने हालात बिगाड़ने के बाद भी कोविद संक्रमण नही रुक पाया तो स्कूल ,कालेज ,संस्थाएँ खोल कर क्या कोरोना डर जाएगा ,छिप जाएगा या झुक जाएगा ?
- सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर - उत्तर प्रदेश
शिक्षण और प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थानों से प्राप्त ज्ञान ही भारत को आत्मनिर्भर करने में सक्षम करेगा। सत्य में ज्ञान ही विकासशीलता का प्रकाश फैलाता है।
ज्ञानपीठों का आधार भी स्कूल होते हैं। प्राथमिक शिक्षा भी सकूलों से प्राप्त होती है। जिसका सीधा अर्थ है कि भारत की आत्मनिर्भरता का रास्ता स्कूलों से ही निकलेगा।
सर्वविदित है ज्ञान से ही विज्ञान संभव है। जैसे भारत ने विश्व को 'शून्य' देकर ज्ञान का डंका बजाया था। क्योंकि शून्य गनित का आधार है और आधार के बिना कोई मंजिल बन नहीं सकती।
अतः ज्ञान की जन्मदाता विद्या है। जिसे न तो खरीदा जा सकता और ना ही चोर उसे चुरा सकता। यह अनमोल रत्न है। अर्थात विद्या सर्वश्रेष्ठ, सर्वशक्तिमान एवं आत्मनिर्भरता रूपी धन की वह कुंजी है। जिसे जितना खर्च करो उतना ही बढ़ता है और इस अनमोल रत्न रूपी धन को केवल स्कूलों से प्राप्त किया जाता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
भारत आत्मनिर्भर हो हमारे देश के माननीय प्रधानमन्त्री जी की ऐसी हार्दिक इच्छा है और यह स्वागत योग्य है। कोरोना काल सम्पूर्ण विश्व में जीवन के पाठ्यक्रम में एक नया अध्याय बन कर आया है जिसका अध्ययन किया जा रहा है। अनेक मुश्किल सवालों को खड़ा करता यह अध्याय सबसे मुश्किल सवाल खड़े कर रहा है जीवन बचाने का और आर्थिक रूप से सम्भलने का। सभी सवालों की गहराई में मन्थन के बाद देश के प्रशासन ने नागरिकों से सहयोग अपेक्षित किया है कि वे आत्मनिर्भर बनने का प्रयत्न करें। प्राचीन काल में गुरुकुल में दी जाने वाली शिक्षा आत्मनिर्भर बनाती है। उसी प्रारूप को आधुनिक ढांचे में डालते हुए हमें बच्चों को आत्मनिर्भर बनाना है और स्वयं भी अनुभव के स्कूल से बहुत कुछ सीख कर आत्मनिर्भर बनना है। अतः यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि स्कूल से ही निकलेगा भारत आत्मनिर्भर का रास्ता। - सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
आज के बच्चे कल के भावी नागरिक हैं। कल इन्हीं को आगे बढ़ कर देश को संभालना है अपनी योग्यता से देश के नगर-महानगर, शहरों-गाँवों, मोहल्लों-समाजों का विकास करना है। इनकी योग्यता को विकसित करने, बढ़ा कर निखारने का सर्वप्रथम स्थान स्कूल ही हैं।
अब जबकि महामारी के बाद के आर्थिक संकटों से निपटने से के लिए स्वदेशी को अपनाने की बात कही जा रही है तो यह बहुत अच्छा अवसर होगा कि हम स्कूल के पाठ्यक्रमों को इसी आधार पर बनाने की ओर शुरुआत करें। शिक्षा का उद्देश्य मात्र डिग्री लेना न हो। हस्तशिल्प, कुटीर उद्योगों को चलाने की व्यावहारिक जानकारी स्कूल से उपलब्ध करवायी जाये ताकि आगे चल कर वह ज्ञान स्वदेशी वस्तुओं को बनाने की ओर परिवर्तित हो। नैतिक शिक्षा और संस्कार भी स्कूली शिक्षा के समय आसानी से दिए जा सकते हैं। शिक्षा का बदला हुआ रूप ही धैर्य, आत्मनिर्भरता, सफलता पाने का मार्ग और असफलता मिलने पर फिर साहस से चुनौती लेना और संघर्ष करना सिखा सकता है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
आत्मनिर्भरता का रास्ता स्कूल से भी निकलेगा और प्रत्येक घर से भी क्योंकि एक किसान जो कि अनपढ़ है तो क्या वह आत्मनिर्भर नहीं है बेशक है चुकी वह अपनी आजीविका स्वयं चलाता है जो किसी पर निर्भर नहीं वही आत्मनिर्भर। दुनिया के कई देशों में बेसिक शिक्षा के साथ बचपन से ही पढ़ाई के दौरान स्कूल में ही उन्हें इस तरह से प्रशिक्षित किया जाता है कि जब वे बड़े हो जाएंगे यानि कि खाने कमाने लायक हो जाएंगे।तब वो कोई न कोई व्यवसाय अपना लेंगे जिसका उन्हें पहले से ही प्रशिक्षण दिया गया है। भारत में अभी यह दूर की कौड़ी है। चुकी दूसरे देशों के जैसा भारत के शिक्षा विभाग में कोई प्रावधान ही नहीं है। यदि है भी तो दसवीं बारहवीं कक्षा पास करने के उपरांत तब तक बच्चों में सीखने की ललक कम हो जाती है। कोई बिरला छात्र छात्राएं ही ऊंचे मुकाम हासिल कर पाते हैं। भारत में स्कूल से ही आत्मनिर्भरता निकले इसके लिए हर संभव प्रयास किया जाना बहुत जरूरी है। तथास्तु
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
गुड़गांव - हरियाणा
हमारा भविष्य तो ये बच्चे ही हैं जो अपना अधिक समय स्कूल और पढ़ने में बिताते हैं चाहे वो गूगल की शिक्षा हो या पुस्तकों की।शिक्षा का उद्देश्य डिग्री लेना और रोजगार पाना नहीं हो बल्कि उन्हें ये शिक्षा भी दी जाए कि अपने गाँव , समाज और देश का विकास कैसे करना है।
एक विडम्बना यह भी है कि बाहरी देशों की सुविधाएं और चकाचौंध युवाओं को प्रभावित करती है।शिक्षा पाकर वे भारत में रहना नहीं चाहते यहां तक कि शिक्षा प्राप्त करने के लिए भी बाहरी देशों में जाना चाहते हैं और फिर वहीं के होकर रह जाते हैं। ऐसे में भारत का विकास में उनका योगदान क्या होगा कहना मुश्किल है। उनकी प्रतिभाओं का पूरा फायदा बाहरी देश उठाते हैं और वे एक मोटी रकम लेकर खुश रहते हैं।
शिक्षित युवाओं के अलावा जो कम पढ़े-लिखे हैं वे भी परदेसों में जाना चाहते हैं क्योंकि कोई न कोई काम मिल ही जाता है और जब गाँव लौटते हैं तो पूरे ठाट बाट के साथ कि लड़का विदेश से आया है।
देश की आत्मनिर्भता की नींव गांव और खेती है जिसे युवा करना नहीं चाहते। अतः स्कूलों में ही ऐसी शिक्षा मिलनी चाहिए कि बच्चों में देशभक्ति, देशसेवा और देश को आत्मनिर्भर बनाने वाले सभी तत्व मौजूद हों।
उन्हें भारतीय सभ्यता और संस्कृति की शिक्षा गहराई से दी जाए और स्वदेशी अपनाओ पर जोर दिया जाए। निश्चित ही स्कूलों से निकलेगा भारत आत्मनिर्भता का रास्ता।।
- डॉ सुरिन्दर कौर नीलम
राँची - झारखंड
इंसान के पहला जगह मां के गोद उसके बाद पाठशाला है। भारत के आत्मनिर्भर का प्रेरणा पाठशाला से ही शुरू होगा।
अभी के समय का नजाकत है, कोरोना संकट के बीच दुनिया के देश बीमार हो गई है और उससे लड़ने में लगे हुए हैं यहां तक कुछ देश घुटनों पर आ गए हैं, अपना अर्थव्यवस्था को कैसे सुधारें।
भारत कोशिश कर रहा है की
दुनिया में मेरा डंका बजे और हम आत्मनिर्भर भी बने अपने स्वदेशी वस्तु को निर्माण करके।
हमारे देश के नेतृत्व करता आशान्वित भी हैं इसलिए और काबिलियत भी है पूरी दुनिया टकटकी लगाए हुए हैं भारत की ओर। मेरे देश के मुखिया आत्मा विश्वास से भरे हुए है हम 1 दिन कामयाब होंगे और विश्व गुरु बनना यह प्रतीत होता है ।
MSME यानी लघु ,मध्यम उद्योग अच्छा कर रहा है इसे विस्तार करने की जरूरत है लेकिन पूंजी के अभाव में नहीं हो पा रहा है। इसके लिए 50 हजार करोड सरकार ने प्रावधान किए हैं जिससे 2500000 उद्योग लाभान्वित होंगे। लोन लेने का तरीका 1 साल तक मूलधन वापस नहीं करना है इसकी गारंटी सरकार ले रही नहै जिससेMSME आत्मनिर्भर हो जाएगा ऐसा अनुमान है हमारे प्रधान सेवक को।
आपको याद दिलाते हैं हमारे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के समय में अनाज की किल्लत हो गया था, उस समय शास्त्री जी देशवासियों से अनुरोध किए थे एक शाम खाना खाने के लिए और पूरे देशवासियों उनका साथ दिया अब अनाज के भंडार भरा रहता है। और उनका नारा था *जय जवान जय किसान* उसके बाद से बाहर से मंगाने की आवश्यकता नहीं पड़ा ।यहां तक हम लोग बाहर भेजते हैं।
उसी प्रकार हमारे देश के प्रधान सेवक का सोच है कि हमारे देशवासियों कठिन परिश्रम करके आत्मनिर्भर बन जाएंगे।
आत्मा निर्भर बनने के लिए पांच पिलर की आवश्यकता है, इकोनामी,इंफ्रास्ट्रक्चर,सिस्टम, डेमोग्राफी,डिमांड।
यह पांचो पिलर से आत्मा निर्भर होना निश्चित है।
आत्मनिर्भर का अर्थ है:- किसानों और मजदूरों को पहले बनाना यह हमारे देश के पहले पंक्ति में है।
लेखक का विचार:- आत्मनिर्भर बनने के लिए पहले मां की गोद उसके बाद पाठशाला जरूरी है वहीं से आत्मनिर्भर बनेगा।
- विजेंयेद्र मोहन
बोकारो - झारखंड
यह प्रश्न चिंतन-मनन योग्य एवं विचारणीय है लेकिन पूर्णतया मान्य करने योग्य नहीं। स्कूल एक दिशा दर्शक रास्ता है - - - मंजिल नहीं। स्कूली बच्चों को इतनी समझ भी नहीं होती कि वे चुन सकें सही क्या है गलत क्या है। स्कूलों को स्वयं नहीं मालूम कि भारत की ही नहीं दुनिया की अर्थव्यवस्था कौनसी करवट बैठेगी। कोरोना या अन्य जैविक परिस्थितियां किस हद तक मानव जाति को प्रभावित करेगी--ये सब अंधेरे में है। ऐसी स्थिति में आत्मनिर्भरता के लिए स्कूलों में कैसे बदलाव किये जाएं-- पढाई वाले विषयों में-- कोर्स में क्या कमी बेसी की जाये सब बातें समय-समय पर निर्धारित होंगी।
स्कूलों को आमूल चूल बदलाव करने होंगे - - पुरातन काल से चली आ रही पद्धतियों को लेकर चलाने के लिए लैब से लेकर ग्राऊंड तक गहन रिसर्च की जरूरत होगी। गाँधी-ग्रामोद्योग और अन्य ग्राम्य विद्यालय, बुनियादी विद्यालय, नवोदय विद्यालय पैटर्न पर पाठ्यक्रम निर्धारित करने होंगे - - तद्नुसार विद्यालयों को शैक्षिक +औद्योगिक विकास के स्वरूप में ढलना होगा - - - और इस सब के लिए एक समय की मांग होगी एक परिपूर्ण अनुसंधान की जरूरत होगी इसलिए हाल फिलहाल तो सिर्फ स्कूलों से आत्मनिर्भरता की दिशा खोजना तर्कसंगत नहीं है।
विश्व गुरु भारत के बच्चे निःसंदेह अष्टावक्र और गार्गी बनेंगे लेकिन उसके लिए इस देश की संस्कृति को जगाना होगा। विदेशी गुलामी को छोड़कर देश के प्रति स्वाभिमान की नयी पौध उगानी होगी तभी आत्मनिर्भर भारत का सपना पूरा होगा!!
- हेमलता मिश्र मानवी
नागपुर-महाराष्ट्र
" मेरी दृष्टि में " आत्मनिर्भरता के लिए स्कूल से ही ऐसी शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए । जिस से रोजगार की भूमिका तैयार हो सकती है । भारतीय शिक्षा प्राणाली ऐसी तैयार करनी होगी । इस पर कार्य करने की आवश्यकता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र
सम्माननीय पाठकों ने अद्भुत विचार प्रस्तुत किए हैं.
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक बेहतरीन विचार सामिल किए गए और अंत में आपका विचार भी सराहनीय बहुत सुंदर अंक सभी प्रकाशित रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएॅं।
ReplyDeleteजनता को जगरूक रखने के लिए दैनिक सामयिक समस्याओं पर चर्चा आवश्यक है जिसे आप गम्भीरता से निभा रहे है
ReplyDeleteसभी बुद्धिजीवियों का विचार अपने आप में अद्भुत और निराला है। यह कहना कि किनका ज्यादा सही है नामुमकिन है। फिर भी मेरे विचार से डॉक्टर छाया शर्मा जी का विचार सटीक लगा ।
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