क्या लॉकडाउन खुलते ही बंधुनों से मुक्ति शुरू ?
कोरोना वायरस का लॉकडाउन समाप्त कर दिया गया है और बंधुनों से मुक्ति भी शुरू हो गई है । परन्तु कोरोना वायरस अब भी कायम है । इसलिए हमें बहुत सी सावधानियां का पालन लम्बे असर तक करना पड़ेगा । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
वैसे तो जीवन में बंधनों से मुक्ति कभी मिलती ही नहीं है लेकिन जिन्दगी की कुछ महत्वपूर्ण आवश्यकताएं जिनके कारण लाॅकडाउन खोलना पड़ा, कोरोना के चलते इसका अर्थ ये कदाचित नहीं है कि हमारा जीवन पहले की तरह ही सामान्य हो गया है ।
अभी बंधनों से मुक्ति नहीं अपितु कोरोना गाइडलाइन के बंधनों में बंधे रह कर इस पर विजय प्राप्त करने के साथ-साथ स्वयं को सुरक्षित रखते हुए अपने पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक, नैतिक सभी कार्यों का सफलता पूर्वक निर्वहन कर आगे बढ़ते रहना है ।
जरा सी भी स्वछन्दता सभी के लिए घातक सिद्ध हो सकती है । ध्यान रहे ये कुछ बंधन सरकार ने खोले हैं, कोरोना ने नहीं ।
- बसन्ती पंवार
जोधपुर - राजस्थान
खुली हवा में सांस लेने की इच्छा बन्धनमुक्त कहां हो पायी। अनलाॅक केवल शारीरिक रूप से बन्धनमुक्ति है, मन में बैठे हुए कोरोना के भय से मन कहां बन्धनमुक्त हुआ है।
कहा जा सकता है कि लाॅकडाउन खुलते ही सामाजिक, व्यवसायिक कार्यों के प्रारम्भ होने से बन्धनों से मुक्ति शुरू हो गयी है परन्तु सच्चाई यह है कि अब तो बन्धनों की शुरुआत हुई है। सामाजिक जीवन में एक-दूसरे से दूरी का बन्धन, सुख-दुख के कार्यों में सम्मिलित होने वालों की संख्या को नियन्त्रित करने का बन्धन, कोरोना से बचाव हेतु अपनाई जाने वाली सावधानियों का कदम-कदम पर बन्धन, पारस्परिक सम्बन्धों में निकटता की सक्रियता में कमी का बन्धन।
इसके अतिरिक्त व्यवसायिक गतिविधियों का अभी भी सुचारू रूप से बन्धनमुक्त होकर चलना समय की बात है।
निष्कर्षत: जब तक कोरोना का भय व्याप्त है तब तक मनुष्य मानसिक रूप से एक अनजान भय के बन्धन से बंधा रहकर निर्विघ्न रूप से जीवन को नही जी पायेगा और यह भयरूपी बन्धन हमारे व्यक्तिगत, पारस्परिक, सामाजिक, व्यवसायिक जीवन को अवश्य प्रभावित करेगा।
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
लॉक डाउन खुलते ही बंधनो से मुक्ति शुरू सत्य है जनता नियमो का उल्लंघन कर रही है बाजारों सड़को पर भीड़ संक्रमण के खतरे से अनजान अपनी अपनी राह चले जा रहे हैै। लॉक डाउन खत्म हुआ है कोरोना की स्थिति वैसी ही बनी है फिर भी जनता अनजान है।
हमे सर्तक और सावधान रहना है हमे देश की स्थिति को समझना होगा जरूरी कार्य से बाहर जाएँ सड़को पर बिना मास्क के घुम रहे है पता भी हैै कोरोना दबे पाँव कब हमला कर दे। दूरी बनानी है लेकिन लॉक डाउन के खुलने के साथ भीड़भाड़ दूरी घटी है ॥
संक्रमण के मामले रोज बढ़ रहे हैै स्थिति ऐसी रही तो वो दिन दूर नही जब समस्त भारत इसकी चपेट मे होगा। बस एक उपाय हैै नियमो का पालन करे सुरक्षित रहे मास्क लगाकर बहार जाये हाथ साफ करे दूरी बनाकर रखे।
- नीमा शर्मा हंसमुख
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
यह सही है कि लाकडाउन खुल गया पर नियमों पर लाकडाउन अभी भी है इन नियमों रूपी बंधनों से मुक्ति नहीं मिली क्योंकि यही बंधन हमारे स्वस्थ जीवन को बांध कर रखेगा हमारे लिए ।
लगभग तीन महीने हमें हमारी जागरूकता और हमारे देश के सकुशल नेता, डाक्टर, सिपाही,और अच्छे प्रशासन ने हमें बचा कर रखा अब हमारी स्वंम की जिम्मेदारी है कि हम निश्चित नियमों को अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल करें और इस महामारी को हराए
क्योंकि अगर जनता सुरक्षित व स्वस्थ है तभी देश विकासशील से विकसित बन पाएगा।
जैसे बड़े वाहनों का प्रारभ हो जाना और हवाई जहाज की यात्रा भी शुरू कर दी गई है जिससे अन्य राज्यों में देशों में फंस गए लोग अपने गंतव्य तक लोटेगे
परन्तु अगर नियमों का जैसे मास्क लगाना, निश्चित दूरी रखना आदि का उलंघन हुआ तो कोरोना और पैर पसारने लगेगा अतः लाकडाउन से मुक्ति बंधनों से मुक्ति बिल्कुल नहीं।
हम तो सारे राही है
देश के सिपाही है
कोरोना को देनी मात
करारी है
बोलो मेरे संग
जय हिन्द,जय हिन्द
- ज्योति वधवा"रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
लाॅकडाउन खुलते ही जीस बात का डर था वह शुरू हो गया लोग लापरवाह हो गये सुबह ही मैं जब काम पर आ रहा था तभी देखा लोग लाॅकडाउन के पुर्व के भाती ही शेर करने निकल गये हैं इन में भी 70% लोगो ने मास्क नही लगा रखे थे ओर जब साम को घर जाता हु तो वही लाॅकडाउन के समय का सुना रोड़ अब वहा जाम लगने लगा हैं लोगो में सावधानीयों का ध्यान रखना बहुत कम कर दिया हैं भीड़ नजर आने लगी हैं डिस्टेस का पालन नही हो रहा हैं मास्क चेहरे से नदारत हैं। हा! लाॅकडाउन खुलते ही बंधनों से मुक्ति शुरू तो हो गई हैं पर पग पग पर काटे नजर आ रहें हैं।
- कुन्दन पाटिल
देवास - मध्य प्रदेश
आज की चर्चा समय अनुकूल है कोरोना संक्रमण के मामले दिन प्रतिदिन बढ़ रहे हैं और लॉ क डाउन भी खत्म हैं यानी समाज के लिए दृश्य बंधन मुक्त हो गए हैं जो हमारे लिए लॉ कडाउन में बंधन आवश्यक थे उनसे छुटकारा मिल गया है ।
परंतु मेरी राय में लों कडाउन खुलते ही अदृश्य बंधन शुरू हो गए हैं अदृश्य कोरोना वायरस से बचने के लिए अब हमें पग पग पर बंधन से युक्त होकर जीना पड़ेगा । कि कब पता नहीं अदृश्य कोरोना वायरस हमें बंधनों से मुक्त सोचकर हम पर बार( हमला ) न कर दे
सही मायने में अब हम पहले से ज्यादा बंधनों में जकड़ गए हैं ।
लॉ क डाउन खुलते ही अब हमें खुद को आजाद नहीं समझना चाहिए बल्कि अदृश्य कोरो ना वायरस से चारो ओर से घिरा हुआ समझना चाहिए ।
- रंजना हरित
बिजनौर- उत्तर प्रदेश
लाँकडाऊन के विषयों में आमजनों ने कभी भी सपनों में नहीं सोचा था, अपने ही घरों में लम्बे समय तक कैद रहना पड़ेगा और अपनों अपने से दूरी बनते जायेगी साथ ही विवाहोत्सव हो या अंत्येष्टि या समसामयिक व्यवस्थाओं में भी इतना प्रतिबंधित होगा? किसी को कुछ भी समझ में नहीं आया। कोरोना लाँकडाऊन में आया और लाँकडाऊन के विभिन्न चरणों में विभाजित हुआ चले कहां गया, बस आंकड़े ही समझ में आते गये। खांसी-सर्दी-बुखार तो समस्त ॠतुओं में अनियंत्रित रुप से प्रभावित होते रहे हैं, इसका उपचार सहज ही होता गया, हो भी रहा हैं, अगर अघोषित बीमारी से जोड़ कर देखा जाता रहा, तो संख्याओं में रिकॉर्ड तौड़ बढ़ोत्तरी हो रही है तथा इसके बाद हम कहें, बीमारी को नियंत्रित कर लिया गया हैं और आमजन स्वयं आत्म निर्भर बन गया हैं, यह उनके विचार मंथन हैं, अंत में यही कह सकते हैं? इसके पीछे उनकी जो भी मंशा हो, वे जाने इसका भी पूर्णतः खुलाशा होना चाहिए था। आज आमजन सोचने पर मजबूर हो गया हैं। पहले इतिहास बनाया जाता था, अब इतिहास भी दिखाया जा रहा हैं, ऐसा भी हुआ था? लाँकडाऊन खुलते ही बंधनों को स्वतंत्र रुप से मुक्ति नहीं मिली हैं। विवाहोत्सव या अंत्येष्टि या समसामयिक समारोह रीति-रिवाज सबके सब शासनतंत्रों के साये में कैद बनकर रह गया हैं? बंधनों में जकड़े हुए हैं। यह भी ठीक-ठाक हैं, कम व्यय में सभी समुदायों के समारोह हो जायें, लेकिन यह भी संभव नहीं हैं, सब स्वतंत्रता पूर्वक सम्पादित करना चाहता हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
कुछ लोगो के लिए लाक डाऊन खुलते हीबंधनो से मुक्ती शुरू वाली बात होगी। ऐसे उन लोगों के लिए होगा जो मनमानी जीने की आदत होती है। खुद का परवाह ना करने वाले लो क्या औरों का परवाह करेंगे ।खुद समस्या में फसने वाली कार्य कर दूसरों को भी समस्या में फंसाते हैं, ऐसे लोग लापरवाह कहलाते हैं उनको स्वयं का पता नहीं होता कि उसका इस दुनिया में क्या उपयोगिता है, क्या दायित्व है, क्या कर्तव्य है ,गैर जिम्मेदार कहलाने वाले लोग होते हैं।
एक वे लोग हैं जो लॉक डाउन खुलते ही बंधनों से मुक्ति और अपना रोजमर्रा का आय के स्रोत के लिए रोजी-रोटी के लिए काम धंधा शुरू करते हैं ऐसे लोगों की मानसिकता में परिवार की फिक्र रहता है कभी-कभी लाग डाउन का पालन चाहते हुए भी नहीं कर पाते रोजमर्रा की मार के दबाव में भूल जाते हैं। कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो लाभ डॉन खुलते ही बंधनों से मुक्ति और अपना कार्य शुरू करने के साथ-साथ लाभ डाउन का पालन इमानदारी पूर्वक करते हैं स्वयं सुरक्षित रह कर कार्य व्यवहार करते हैं और दूसरों को भी सुरक्षित रखने में सहयोगी बनते हैं ऐसे लोग समझदार लोग कहलाते है यही लोग अपने और अपने देश के विकास में सहयोगी होते हैं। लॉक डाउनलोड उलझे हुए हालात है ,उसमें कुछ सुधार राहत मिल जाए ,इसीलिए लाक डाउन खोलने का मकसद होता है लेकिन कुछ लोग समझना पाने के कारण लाख डाउन का नियम तोड़ तोड़ दे स्वच्छंद होकर उद्दंडता स्वभाव करते हैं ।जिसका परिणाम बाद में समाज के लिए दुःखद हो सकता है अतः लाभ डॉन खुलने से यही कहते बनता है कि बंधन से मुक्ति होते हैं लेकिन करो ना की मार से नियंत्रित भी होते हैं अनियंत्रित होने से कुछ भी दुखद समस्याएं खड़ा हो सकता है अतः हर मानव को समझना चाहिए ,कि लाक डाउन खुलने से बंधनों से मुक्ति का गलत फायदा ना उठाएं और नियम का पालन करते हुए अपनी जिंदगी और करुणा के बीच सामंजस्य बनाए रखें ताकि करो ना का और प्रसार ना हो बल्कि करो ना निःशक्त हो करके जल्दी से जल्दी इस संसार से दूर हो जाए यही सर मानव की कामना है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
समय और वर्तमान हालात मे यह दृष्टिकोण बहुत अच्छा प्रतीत नही होता जो बन्धन लगाये गये है वह जनता के भले के लिए ही है और जो अनलॉक एक अभी लागू हुआ है वह कुछ नियमों के साथ हुआ है और यह निर्णय सभी कुछ देखते हुए लिया गया है हम सभी को यह देखना और सोचना चाहिए कि एक परिवार के सभी सदस्यों को साथ लेकर चलना ही आसान नही फिर यह तो देश का मामला है यदि जनता ने लापरवाही की तो खामियाजा भी भुगतना पडेगा जिस गति से कोरोना का संक्रमण बढ रहा है हालात बेकाबू हो सकते है अतः हम सभी की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि जिम्मेदार नागरिक की तरह व्यवहार करें और सरकार ने छूट दी है जिससे आर्थिक हालात खराब न हो गरीब व मजदूर एंव किसान अपना काम कर सकें पर साथ ही साथ वह सब उपाय भी करने पर और अधिक बल दिया जिनके द्वारा हम सभी अपने परिवारो के साख सुरक्षित रह सकें व संकट और अधिक भयावह रूप न ले पाये लॉक डाउन खुलने का मतलब यह कतई नही है कि हम लापरवाह हो जायें जनता की यह लापरवाही देश के लिए घातक सिद्ध हो सकती है क्योंकि कोई नही जानता यह संकट कब तक चलेगा और कितना भयावह हो सकता है जिसे रोकने का अभी कोई उपाय है ही नही केवल सावधानी ही हमें बचा सकती है.
- प्रमोद कुमार प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
लाॅकडाऊन की अवधियों में अनेक बंधन लगाए गए थे। आरम्भ में बंधन अच्छे लगे थे क्योंकि ऐसा लगा था कि इन बंधनों के कारण लाॅकडाऊन के पूर्व समय के दैनिक बंधनों से, रोजमर्रा की आपाधापी से मुक्ति मिल गई है, शांति मिल गई है, कुछ अवकाश मिला है, आधिकारिक। अवधि बढ़ती गई और लाॅकडाऊन से पूर्व के बंधनों से मिली मुक्ति अन्य बंधनों के रूप में सामने आती गई। लाॅकडाऊन में रहते हुए जीवन नीरस होने लगा, अनेक हथकंडे अपनाए गए, कैरम भी खेला गया, लूडो भी खेली गई। अन्त्याक्षरी पर भी महफिल सजाई गई। विवाहित जोड़ों में आरम्भ में जिम्मेदारी बांटने से स्नेह बढ़ा। परन्तु लाॅकडाऊन के बंधन फिर हथकड़ी समान लगने लगे। छटपटाहट होने लगी। धैर्य के सागर में तूफान आने लगे। अनेक परिवारों में बहस भी छिड़ी और कलह भी हुई। कई महत्वपूर्ण कार्य मुहाने पर आकर रुक गए। लाॅकडाऊन के बंधनों की छुपते छुपाते अवहेलना होने लगी। बिना मास्क लगाए लोग नज़र आने लगे। सामाजिक दूरियों का उल्लंघन दिखने लगा। बंधनों की छटपटाहट पराकाष्ठा पर पहुंच गई। उल्लंघनों का प्रतिशत बढ़ने लगा। इन सब का दबाव लोकतांत्रिक सरकार पर पड़ना निश्चित था। लाॅकडाऊन के बाद अनलाॅक-1 की घोषणा हुई। घोषणा होते ही बंधनों से मुक्ति का एहसास बना। जिस प्रकार स्कूल में आधी छुट्टी के बाद पूरी छुट्टी की घंटी की प्रतीक्षा होती है पर यदि पूरी छुट्टी के बाद एक दो महत्वपूर्ण पीरियड और लगा दिये जायंे तो उस समय विद्यार्थियों की स्थिति देखने वाली होती है। लाॅकडाऊन दर लाॅकडाऊन होने के कारण लोगों में ऐसा ही एहसास हुआ। आखिरकार अनलाॅक-1 की घंटी बजी और लोग अनियंत्रित होकर बाहर निकल पड़े जैसे बहुत देर से बस आने के बाद लाइन में लगे यात्रियों का संयम टूट जाता है। पर एक बात अवश्य देखने को मिली कि अधिकतर लोग स्वयं जागरूक हुए हैं। वे किसी भी तरह से कोरोना से प्रभावित नहीं होना चाहते। लाॅकडाऊन के बंधनों से मुक्ति शुरू हो गई है पर साथ ही स्वानुशासन देखने को मिला है।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
लाकडाऊन हटाना जरुरी हो गया है कब तक हम घर में रह सकते है , सारी व्यवसायिक व सामाजिक गतिविधियों पर लगाम लगा था पुरी अर्थव्यवस्था चरमरा गई ,मानसिक निराशा छाने लगी समाज में बहुत कमजोर दिमाग़ के लोग हैं जो ज़्यादा प्रेशर नही झेल पाते , भूख से हज़ारों लोग मर गए जो रोज़ कमाते खाते हैं उनको क्या क्या झेलना बड़ा है बहुत दर्दनाक है वह ख़ैर संकट के बादल धीरे धीरे छट रहे हैं और हमें नमन करना चाहिऐ हमारे देश के डाक्टर , नर्स , पुलिस , सफ़ाई कर्मचारी , सेना और कोरोना महामारी में जुड़े हमारे साथीयो को जिन्होंने रात दिन एक कर सेवा में लगे रहे , कितनों ने अपनी जान तक दे दी ! हमें चाहिऐ हम उनकी क़ुर्बानी व्यर्थ न जाने दें और स्वंय अपने आप की सुरक्षा वचन ले तथा लाँक के बिना ही हम लाकडाऊन की तरह ही रहे बहुत जरुरी हो तो जाऐ पर पुरी सुरक्षा के साथ , लाकडाऊन से मुक्त हो जायेगे पर कोरोना से तभी बचेंगे जब स्वयम अपनी सुरक्षा व लाकडाऊन करते रहोगे !
मैंने अपने वीर कोरोना योद्धाओं पर एक कविता लिखी है
जिन्होंने लाकडाऊन में दिन रात मानवता की सेवा की
कोरोना योद्धा...
सभी कोरोना योद्धाओं को नमन
करती हूँ .. ...
देश की सेवा में लगा है ,रात दिन
कर्म योद्धाओं का अभिनंदन , करती हूँ !
कोरोना जंग से लड रहा , सुबह , शाम , वीर योद्धाओं का वंदन करती हूँ !!
कोरोना भगाने की मन ने आज ठानी !
नमस्कार , शारिरिक दूरी हमने है अपनाई !!
संडके सुनी गलियाँ सुनी , बंद पड़े चौबारे !
ंअदृश्य वायरस आया , विश्व में हा हा कार मचाया !!
कर्फ़्यू , लाकडाऊन, मास्क , ये हथियार बनायें !
डाक्टर , नर्स , पुलिस फोज लगे सेवा में रातों की नींद गवाई !!
सबके दिलों में डर समाया ,
कोरोना का ख़ौफ़ है छाया !
पर वो कर्म वीर हैं जो महामारी से लड रहा , जीने का हौसला दे रहा !!
रात दिन करते सेवा , घर जाने से डरते है !
भूखे प्यासे करते सेवा , ज़रा नहीं मरने से डरते है !!
नींदे त्यागी , अपनो से दूर मन को मार रहें !,
करते है मानवता की सेवा , दिल का दर्द छिपा रहे !!
जान दांव पर लगाते , कोरोना की जगं लड़ते जा रहें !
हौसले की उड़ान भरते हज़ारों ज़िंदगियाँ बचाते जा रहें !!
सतत कर्तव्य निभा रहे , अपना दुख दर्द भूला रहे !
सुविधाओं का अभाव है , जान जोखिम में डाल रहें !!
डाक्टर , पुलिस , नर्स सफ़ाई कर्मचारी , सेना , कोरोना से जंग जारी है
दिन रात सेवा करते , जाने बचाने की कोशिश जारी है !!
अपनी जान गँवा गये , फर्ज निभाते निभाते !
ये जनता के सच्चे सेवक , भगवान के भी चहेते !!
कर्मवीर है ये करते कर्म महान कहलाते कोरोना योद्धा
सत् सत् नमन उन्हें है सत् सत् वंदन कोरोना योद्धाओं को !!
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
ऐसा होना तो नही चाहिए।लेकिन अगर बंधन मुक्ति चाह ही रहे हैं तो सावधानी जरूर बरतें।कोरोना कभी घर में नही घुसता हम ही लेने उसको बाहर जाते है । सबके घरों में बुजुर्ग और छोटे बच्चे हैं।ये समझदारी हम पर ही है कि इस लॉक डाउन से हम क्या सीखे।सबसे पहले परिवार है उसके बाद धन। अगर परिवार में कोई अनहोनी हो गयी तो हम अपने आपको कभी माफ नही कर पाएंगे।समझदारी इसी में है कि हम चिड़िया घर से छूटे जानवर की तरह व्यवहार न करे थोड़ा समझदार बने जागरूक बने।समाज और देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझें।बिना काम के बाहर न निकले न ही फिजूलखर्च बने।
आगे वो ही होना है जो हम करना चाहेंगे।इतने मत छटपटाओ की अपना ही नुकसान कर लो।
- रोहन जैन
देहरादून - उत्तराखंड
केंद्र सरकार के फैसले के अनुसार 1,जून से लॉक डाउन नहीं अपितु अनलॉक -1 के शुरुआत की घोषणा कर दी गई है तथा 30,जून 2020 तक गाइड लाइन जारी कर दी गई है l ऐसे में हमारे जेहन में कई सारे प्रश्न उठना लाजमी हैं l स्पष्ट किया गया है कि 30,जून तक कन्टेंटमेंट जोन में किसी प्रकार की छूट नहीं होगी, पूरी पाबंदी रहेगी l अनलॉक -1 को निम्न चरणों में विभाजित कर छूट का प्रावधान किया गया है l जैसे -फेज -1, 8जून से ये छूट मिलेगी --धार्मिक स्थलों पर पूजा पाठ की अनुमति, रेस्तरां और अस्तपताल सेवा तथा शॉपिंग मॉल खोलने की इजाजत होगी लेकिन इनसभी को स्वास्थ्य मंत्रालय के दिशा निर्देशों का पालन करना होगा l फेज -2 इसके अंतर्गत स्कूल, कॉलेज खोलने का फैसला राज्य सरकारों पर छोड़ दिया गया है लेकिन अभिभवकों की प्रतिक्रिया व परिस्थितियाँ देखकर निर्णयलेंगे जो कि माह जुलाई से प्रारम्भ होगा इसके लिए भी स्वास्थ्य मंत्रालय की शर्ते लागू होंगी l
Fej-3 हालात को देखते हुए फैसले लिए जायेंगे l और तो और अंतर्राष्ट्रीय यात्रा, मेट्रो सेवा, सिनेमा हॉल, जिम, स्वीमिंग पूल, पार्क, बार आदि सेवाओं पर भी विचार किया जायेगा l samajik,राजनैतिक, खेल /एकेडेमिक /सांस्कृतिक तथा धार्मिक कार्यक्रम पर भी विचार किया जायेगा l
उपर्युक्त के अतिरिक्त देश भर में रात्रि 9 बजे से प्रातः 5 बजे तक कर्फ़्यू रहेगा l दूसरे राज्यों में सोशल डिस्टेंसिंग के साथ जाने पर पाबंदी नहीं होगी l
मानव मन बडा चंचल है l ये बंदिशों /पाबंदियों को स्वीकार नहीं करता है जैसे ही थोड़ी राहत मिली कि मौज मस्ती शुरू करने की चाहना में यत्र तत्र सर्वत्र भटकना शुरू कर देता है और कोरोना संक्रमण की मार को नज़र अंदाज करके हम ऐसा कर रहे है तो स्वयं, समाज और राष्ट्र के लिए घातक हो सकता है l लेकिन आमजन लॉक डाउन सहते सहते ऊब से गए हैं l हालात ये हो गए हैं --
कैसे दिखाऊँ की घायल है दिल का जर्रा जर्रा
अब तो जर्द चेहरा भी, सबको मज़ाक लगता है l
चाणक्य नीति में बताया गया है कि धर्म का ज्ञान और उसके मार्ग पर चलने की प्रवृति मनुष्य को पशुओं से अलग करती है l"पहला सुख निरोगी काया "संक्रमण काल में लॉक डाउन में दी गई छूट का स्वछंद उपयोग करके आप अपनी जान जोख़िम में डाल रहे हैं तो यह कहाँ की बुद्धिमानी है l लॉक डाउन में छूट आपको मौज मस्ती की सौगात नहीं दी गई है l आमजन को भय मुक्त एवं तनाव मुक्त करना इसका एक मात्र मनोवैज्ञानिक उद्देश्य कहा जा सकता है जिसकी नितांत आवश्यकता महसूस की जा रही थी l अनलॉक -1 का आनंद लेना और संक्रमण से मुक्त रहना है तो सार्वजनिक स्थलों व कार्य स्थलों पर फेस कवर का उपयोग सोशल डिस्टेंसिंग (2 गज की दूरी )की पालना रखें l दुकानों पर एक साथ 5 से ज्यादा व्यक्ति भीड़ न करें l समारोह आयोजित नहीं
करें l शादी में 50 और अंतिम यात्रा में 20 से ज्यादा अनुमत नहीं हैं l साथ ही सार्वजनिक स्थलों पर थूकने पर जुर्माना, शराब, पान, गुटखा, तम्बाकू का सार्वजनिक स्थानों पर प्रतिबंध रखा गया है l वर्क फॉर होम को प्रोत्साहित किया जाये l व्यापारी
रोटेशन से रोटेशन सिस्टम अपनावें l स्क्रीनिंग एवं हाइजीन का ध्यान रखें, इत्यादि की पालना सुनिश्चित करते हुए छूट का आनंद भी लें और संक्रमण मुक्त रहें l
चलते चलते --
अनलॉक -1 की मनादि (घोषणा )होते ही बाबरा मन चंचल हो कह उठा --
छूट की बेला से वो बहार आयी कि नगमें उबल पड़े l
ऐसी ख़ुशी है कि आँखों से आंसू निकल पड़े ll
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
लाॅकडाउन खुलने से बंधनों से मुक्ति कहां मिलेगी। बंधन तो शुरू हो चुका है। बैठे ठाले दो महीने ऐसे बीते कि क्या कहें। काम धंधे चलना बिल्कुल बंद हो गया था।न जेब में पैसा बचा और न घूमने टहलने का मौका। अचानक जब काम धंधा शुरू हुआ तो अब काम करना मुश्किल हो गया है।
जो काम करने की रफ्तार थी धीमी पड़ गई। ऊपर से दिन भर मेहनत करके लौटने के बाद शरीर ऐसे तपता है। जैसे लू के थपेड़े खा कर लौटा हो। सच पूछिए तो मुक्ति उस दिन मिलेगी जब कोरोनावायरस जैसी मनहूस बिमारी से लोगों को छुटकारा मिल जाएगा। नहीं तो ऐसे लग रहा है जैसे कोई अदृश्य जीवाणु आम आवाम को धीरे धीरे चपेट में लेते जा रहा है।यह भी एक बंधन ही है डरा हुआ आदमी कभी बंधन मुक्त हो नहीं सकता। मुक्ति या तो तब मिलेगी जब यह शरीर छुटेगा या फिर जब भयावह बिमारी का कहर थमेगा तब। वैसे भी मनुष्य हो या कोई जीव जंतु सबको मुक्ति तभी मिलती है।जब यह नश्वर शरीर छोड़ कर जाता है अन्यथा नहीं। संघर्ष चालू आहे।
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
गुड़गांव - हरियाणा
आज की चर्चा में आपने जो सवाल उठाया है वह बहुत ही महत्वपूर्ण और वर्तमान समय की संचेतना हेतु अति आवश्यक है। एक ओर पूरे देश में लाॅकडाउन खुलने का इंतजार सभी कर रहे थे और दूसरी ओर अपने ही घर में बैठे टीवी चैनलों पर समाचार सुनकर लोग चिंता में भी थे कि जब तक सरकार ने बंद रखा तब तक हमारा देश महामारी से बचा रहा। बचाव के लिए भारत का नाम प्रथम देशों में आ रहा था। भारत के प्रधानमंत्री आदरणीय नरेंद्र मोदी जी की अन्य देशों के मंत्रिमंडल तारीफ कर रहे थे। उनकी सूझबूझ के आगे सभी नतमस्तक थे लेकिन अब जब समय की मांग और जरूरतों के कारण लॉकडाउन को तोड़ना पडा तो पहले से भी ज्यादा सतर्कता की आवश्यकता है। लॉकडाउन था उस समय कोरोना की इतनी चिंता नहीं थी हम सभी अपने-अपने घरों में सुरक्षित थे। जब से बंधनों से मुक्ति मिलने लगी तभी से हमारे देश के भी आसार अन्य देशों के नक्श-ए-कदम जैसे नज़र आने लगे हैं। हैरानी की बात है कि हम सभी देखते हैं, सुनते हैं, पढ़ते हैं, समझते हैं फिर भी सोचते हैं 'यह कोरोना संक्रमण औरों को होगा हमें नहीं। जैसे अचानक मृत्यु दूसरों को आ सकती है अपने को नहीं हम तो बहुत ध्यान से रहते हैं बचाव रखते हैं।' फिर हमारे इतना ध्यान रखने के बावजूद भी लाॅकडाउन ढील मिलते ही संख्या लाखों में कैसे पहुंचने लगी। इसका अर्थ हम बंधन में ठीक थे। बंधन में बचाव था। मुक्ति मिलते ही हम मरने वालों की पंक्तियों में लगना शुरू हो गए। अभी तो पीठ पीछे के समाचार कह रहे हैं कि लोग टेस्ट नहीं करवा रहे और संख्या ज्यादा है। प्रियजनों! लॉकडाउन खोलने का अर्थ बंधनों से मुक्ति कदापि नहीं है बल्कि पहले से हजार गुना ज्यादा सुरक्षा की आवश्यकता अब है। बहुत मजबूरी में ही हम सुरक्षा कवच में घर से बाहर निकले तो अच्छा है।
- संतोष गर्ग
मोहाली -चंडीगढ़
जिम्मेदारी को बन्धन मानकर जो चल रहे थे वो अब खुल्ले घूमने लगे हैं,लॉकडाउन में छूट क्या मिली कि सब सड़कों पर आ गए।एक समय था जब सड़क की बात होती थी तो मजदूर या कामगार ही नजर आते थे परंतु जैसे ही लॉकडाउन खुला तो सड़कें फिर भरी-भरी सी दिखने लगी।अंतर ये है कि अब सब नजर आ रहे हैं और मजदूर छुप गए हैं भीड़ में।ऐसा लग रहा है जैसे कुछ हुआ ही नहीं है।जीवन फिर से रफ्तार पकड़ने लगा है।लोग खुद को खुदा मानकर सर्वपरि जानकर निकलने लगे हैं।
वास्तविक रूप से ये लाजमी और आवश्यक भी है परंतु तब तक जब तक हम सरकार और स्वास्थ्य विभाग के नियमों का पालन करके ही जिन्दगी की दिनचर्या में लौट रहे हैं।यह समझना होगा और छूट का आनंद या फायदा उठाने के लिए स्वयं से जिम्मेदार बनकर ही निकलना होगा।जो मुक्ति मिली है इसी में शक्ति भी निहित है।अर्थात मुक्ति का गलत फायदा उठाया तो हम खुद ही शक्ति के दायरे में आ जाएंगे और फिर से बंधन में यानि वैश्विक महामारी कोरोना को पनपने देंगे।जब ऐसा होगा तो सरकार को फिर से कड़े फैसले लेने होंगे।जो एक बार पुनः हमें बन्धन में धकेल देंगे
अंततः यही उचित होगा कि लॉकडाउन के खुलते ही बन्धनों से मुक्ति की शुरुआत हम पूरी जिम्मेदारी के साथ ही करें।मुक्ति केवल सरकार के कानूनों के बंधन से मिली है ना कि कोरोना की शक्ति से।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून- उत्तराखंड
लॉकडाउन खुलने से और भी रहे सावधान
कोरोना वायरस (कोविड 19) महामारी चरम पर है। हर रोज कोरोना से मरने वालों की संख्या बढ़ते ही जा रही है। इस बीच सरकार ने लॉकडाउन को खोल दिया है। जैमिनी अकादमी द्वारा आज की चर्चा में सवाल पूछा गया है कि क्या लॉकडाउन खुलते ही बंधनों से मुक्ति शुरू? तो यहां सरकार ने लॉकडाउन। जरूर खोल दिया है पर बंधनों से मुक्ति शुरू करने की छूट नहीँ दी है। कोरोना से बचने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जो गाइडलाइंस जारी किए गए हैं उसे अब ऒर भी सख्ती के साथ पालनन करना होगा। देश की अर्थव्यवस्था, लोगों के रोजगार और मजदूरों की स्थिति को पटरी पर लाना भी जरूरी था, इसलिए सरकार ने लॉकडाउन में छूट दिया है। इसका मतलब कतई यह नहीँ है कि आप घर से निकलकर बाहर अपनी मनमानी करें। क्योंकि कोरोना ने छूट नहीं दी है, बल्कि पहले से भी अब और भी तेजी से अपना प्रभाव दिखलाना शुरू कर दिया है। देश की ताजा स्थिति अभी भी भयावह हो गई है। पिछले 4 दिनों में कोरोना के 32 हजार से भी अधिक नए केश मिले हैं। पिछले 24 घंटे में 8,392 नए मामले आए हैं, जबकि 230 लोगों ने दम तोड़ा है। देश मे कोरोना संक्रमितों की संख्या 1,90,535 तक पहुंच गई है, जबकि 5,434 लोग मरे हैं। देश मे अभी 93,323 का इलाज चल रहा है। जबकि 91823 लोग ठीक भी हो चुके हैं। इन हालातों में अब जान बचाने के लिए ओर भी चुनौती बढ़ गई है। कारण की लॉकडाउन खुलने से लोगों की
सरगर्मी तेज हो गई है। गांव हाट बाजार, शहरों में लोगों की भीड़ देखने को मिल रही है। इनमें से कौन कोरोना संक्रमित है कोई नही जानता। यह छुआछूत की बीमारी है। छिकने से हवा में फैल जाती है जिसमे कोरोना के किटाडू रहते हैं, जो नाक के माध्यम से शरीर मे प्रवेश कर जाते हैं। छूने से दूसरों को बीमार बना देते हैं। इसलिए घर से बाहर निकलने पर मास्क जरूर लगाएं। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। साबुन से हाथ धोते रहें। सेनेटर्राईएज भी जरूर है। जो भी सरकार का दिशा-निर्देश है उसका पालन करें। तभी जाकर हम सभी कोरोना को हरा सकते हैं।
- अंकिता सिन्हा लेखिका सह कवयित्री
जमशेदपुर- झारखंड
लाकडाऊन खुलते ही सबसे पहले मिलेगी मृतकों को मुक्ती
अस्थियाँ विसर्जित होते ही वो मुक्त होंगे ।
कोरोना महामारी से बचाव के लिए पूरे देश में जारी लॉकडाउन का फेज ४ शुरु हो ख़त्म हो गया हहै। अब इस महामारी की काली छाया मुक्तिधाम पर भी पड़ती साफ दिखाई दे रही है। जिसके चलते मृतकों की अस्थियां मोक्ष पाने के लिए गंगा में प्रवाहित होने का इंतजार कर रही हैं।
हर मुक्तिधाम का बुरा हाल है है। जहां कोरोना महामारी के ६२ दिन के लॉडाउन के बीच जिन लोगों का स्वर्गवास हुआ उनके परिजनों ने मुक्तिधाम में उनका अंतिम संस्कार तो कर दिया, लेकिन उनकी अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने में लॉकडाउन एक बड़ी बाधा बनकर सामने आया। जिसके कारण लोग अपने पूर्वजों की १०००/अस्थियां विसर्जित ना कर पाने के कारण मुक्तिधाम में ही रखकर लॉकडाउन के खुलने का इंतजार कर रहे हैं।
मुक्तिधाम में रहने कुछ पंडितों ने बताया कि कोरोना महामारी के चलते जारी लॉकडाउन के कारण ही लोग अस्थियां विसर्जित करने नहीं ले जा पा रहे हैं, जिसके कारण वह लोग अस्तियां यहीं पर रख कर चले गए हैं। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन खुलने के बाद अब इन हर मुक्ती धाम में हज़ारों मृतकों की अस्थियों को गंगा में उनके परिजनों द्वारा विसर्जित किया जाएगा। बताया जाता है कि हिंदू धर्म के अनुसार पवित्र गंगा नदी में अस्थियां विसर्जित करने पर मोक्ष की प्राप्ति मिलती है, ऐसा शास्त्रों में लिखा है।
और तो और जो लोग अपने प्रेमिका से नहीं मिल पाऐ है वो तो पागलों की तरह लाकडाऊन खुलने का इंतज़ार कर रहे है ।
लाकडाऊन खुलते ही सारे शेर क़ैद में से भागेंगे पंजरों में बंद सब परेशान हो गये बहुत लोग परिजनों से बिँछडे थे वो अब जाने लगे हैं अपने अपने घरों को
लाकडाऊन खुलने से बंधनों से मुक्ती तो मिलेगी लेकिन हमें अपने बंधन बनाने बहुत जरुरी है कोरोना से बचना है तो सारे नियमों का पालन कर बहार निकले उसी में आप की परिवार की समाज की देश की सुरक्षा तो
बंधन खुल गये सरकारी परन्तु संवयम का बंधन कसना बहुत जरुरी है
- अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
लॉक डाउन खुलते ही लोग अपने आपको बंधनो से मुक्ति पाने की खुशी मना रहे है। ठीक है आप घर के अंदर थे तो आप बच गए किन्तु बंधन से मुक्ति का फायदा कही आपको उल्टा भारी न पड़ जाये। क्योकि हम मुक्ति में इतने उताबले हो गए है कि हमे कोरोना वायरस के कारण लॉक डाउन के नियमों का पालन करना ही भूल गए है। सब जानते हुए भी हम एक दूसरे का मास्क पहने हुए देखकर हम भी मास्क पहन लें रहे है। लेकिन नियम के अनुसार मास्क और सोशल डिस्टेसिंग का पालन ही भूल गए है। और यदि ऐसी बंधनो के मुक्ति से आप अपने आपको सुरक्षित मानते हो तो गलत है। आपको सही होने के लिए लॉक डाउन के नियमो का पालन करना आवश्यक है।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
लोकडाउन खुलते ही बंधनो से मुक्ति मिल जाएगी ऐसा मान लेना बेफिजूल की बात होगी । क्योंकि देश मे लोकडाउन किसी भी व्यक्ति को बन्धनों में बांधने के लिए नही किया गया था बल्कि लोग किसी कोरोना से पीड़ित व्यक्ति के संपर्क में न आ सकें इसलिए किया गया था । अब लोकडाउन खुल जाने के बाद आमजन की चिंता और बढ़ जानी चाहिए । ताकि वह नियमो का पालन करते हुए पग पग पर सावधानी बरतता रहे और कोरोना के बीमार किसी भी व्यक्ति के संपर्क में आने से बच सके ।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
बंधनों से मुक्ति नहीं,कुछ रियायत दी गई है,एहतियात भी,जरूरी है, क्योंकि हमारा देश मैं विशाल जनसंख्या है,और तरह-तरह के मत के लोग रहते हैं। कुछ निर्देशों को कठोर पालन करते हुए लॉक डाउन हो हटाए गये है।केंद्र सरकार सभी राज्य सरकार को गाइडलाइन दिए हैं कि आपने अपने राज्य को समीक्षा करके सख्त नियम के साथ आदेश जारी करें। ताकि अर्थव्यवस्था पटरी पर आए। फिर भी हमें सहने, सारे निर्देशों का पालन करना अपने लिए परिवार के लिए एवं समाज के लिए सुरक्षा की दृष्टि से अनिवार्य है।जैसे:- घर से बिना मास्क पहने कोई भी बाहर नहीं निकले। शारीरिक दूरी बनाए रखें। घर के बुजुर्गों को ध्यान रखें। अपने हाथों को 20 सेकंड तक धोएं। बाहर से घर आने पर गर्म पानी से स्नान करें कपड़े को धोएं।एक दूसरे से दूरी बनाये रखे। 7 सीटों वाला ऑटो पर चार व्यक्ति ही बैठे। रिक्शा पर एक आदमी बैठे । अपनी सुरक्षा स्वंय ले आप अकले नहीं है, आप से परिवार से समाज है। आप सुरक्षित रहेंगे तो परिवार,समाज, देश सुरक्षित रहेगा।यह कोरोना दिनोंदिन बढ़ रहा है लेकिन कठोर नियम निर्देश पालन करेंगे निश्चित रूप से इस महामारी से छुटकारा मिलेगा।
देश को विकास के पथ पर ले जाना है तो नियम से हम लोग रहे।
- विजेंयेद्र मोहन
मुम्बई - महाराष्ट्र
जी हां,यदि सुरक्षा नियमों का पालन बंधन माना है तो मुक्ति शुरू हो ही गयी और यदि सुरक्षा के नियमों का पालन करना अपना दायित्व माना और अब लापरवाह हो गये है तो भी मुक्ति हो जाएगी,यह अलग बात है कि वह मुक्ति जमा पूंजी से लेकर जीवन तक से भी हो सकती है। समझ नहीं आ रहा कि सुरक्षा के लिए हुए लाकडाउन को बंधन मानने की मानसिकता से हम बाहर क्यों नहीं निकल पा रहे? जरा सी छूट मिली और निकल पड़े बाजारों में, सड़कों पर । अब हम खुद संक्रमण के शिकार हो जाए तो क्या,बंधन मुक्त हुए हैं इतना तो हक बनता ही है कि घूमें,फिरें। बसें चली है तो रिश्तेदारियों में भी आना जाना हो ही,फिर नतीजा चाहे जो निकले।कोरोना दिन ब दिन बढ़ रहा है तो क्या, हम तो अभी बचे हुए हैं। हद हो गयी, न खुद की चिंता,न किसी और की फ़िक्र।यह बंधन मुक्ति की मानसिकता,घोर लापरवाही है जो सुखद परिणाम तो कभी देगी नहीं। इसलिए इससे बाहर आकर, नियम पालन की बात करना, मानना ही सुरक्षित तरीका है।
- डॉ.अनिल शर्मा अनिल
धामपुर - उत्तर प्रदेश
कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से नियंत्रित करने के लिए लाॅकडाउन लगाया गया । इकहत्तर दिनों के लाॅकडाउन के बाद पहली जून से अनलाॅक शुरू हो गया । लाॅकडाउन की तरह अनलाॅक भी कितने चरणों का दीदार करेगा , यह अभी पहेली है । लाॅकडाउन खुलते ही अधिकांश पाबंदियां हट गई है । आफिस खुल गए । सौ फीसदी कर्मचारी कार्यालय उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं । दुकानों - बाजारों के खुलने का समय बढ गया है । कम्पनियां - फैक्टरियां पुनः शुरू हो गई । बिना पास के राज्य के भीतर व दूसरे राज्य में आ - जा सकते हैं लोग । बस - टैक्सी सेवा शुरू हो गई । लाॅकडाउन बेशक कार्यालयी बंधनों से मुक्त हो गया है लेकिन लोग अभी तक कोरोना वाजकड़ेयरस के गुलाम हैं । एक मनोवृत्ति की बेड़ियों में हुए हैं । दहशत - भय से घिरे हुए हैं । घर से बाहर निकल तो रहे हैं पर एक अदृश्य खौफ पीछा कर रहा है । आदमी आदमी से डर रहा है । भीड़ से डर रहा है । सार्वजनिक बैंच पर बैठने से हिचकिचा रहा है । रेलिंग छूने से बच रहा है । यदि कोई आदमी किसी से टच हो जाए तो आशंका सी ग्रस लेती है । कुछ सवाल परेशान करने लगते हैं । सरकार ने बसें चलना शुरू कर दी लेकिन बसों में लोग बैठ नहीं रहे हैं । लोग पैदल ही अपने कार्य स्थल आ जा रहे हैं । अदृश्य वायरस का अदृश्य भूत डरा रहा है । लाॅकडाउन अनलाॅक होने पर लोग कुछ वृतियों की पाबंदियों के शिकार हैं ।
- अनिल शर्मा नील
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
1 जून से लॉकडाउन -5 कंटेनमेट जोन में लागू हुआ साथ ही अनलॉक -1भी लागू हो गया है जो देश को बंधनों की बेड़ियां से मुक्ति की शुरुआत कही जा रही है।
पर ध्यान रहे, सरकार भले ही लॉकडाउन खोल दे, सरकार के नजर में आप की मौत एक संख्या हैं लेकिन आप अपने परिवार के लिए पूरी दुनिया हैं इसलिए अपने जीवन को अनमोल समझ कर सावधान रहें।
औद्योगिक क्षेत्रों को खोलने के साथ-साथ यातायात के साधनों को चलाने की मंजूरी मिल गई है। 8 जून से शर्तों के साथ होटल, मॉल, रेस्टोरेंट, धार्मिक स्थल भी स्वास्थ्य मंत्रालय के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए खुलेंगे। एक तरह से आम जीवन पटरी पर आने लगी है। पर अभी पांच राज्यों में जिस तरह वायरस के प्रकोप से स्थिति नाजुक बनी हुई है वैसे जगहों पर ये बंधनों से मुक्ति का दौड़ कहीं जीवन से मुक्ति न साबित होने लग जाए-- यह डर बरकरार है।
आवागमन शुरू होने से ही तीव्र गति से वायरस नगरों से गांव तक पहुंचा। अब कहीं सामुदायिक संक्रमण की हालात न बन जाए, यह डर ज्वलंत प्रश्न बनकर खड़ा है।
भले ही सरकार अपनी वाहवाही लूटने में लगी हो पर जितनी कम मात्रा में टेस्टिंग हो रही है उससे संक्रमितों की संख्या का सही अनुमान लगाना नामुमकिन है। मुंबई, दिल्ली जैसे शहरों के अस्पतालों में वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं है। पैसे वाले लोग सोसायटियों में ऑक्सीजन सिलेंडर तक रखने लगे हैं। यह सारी सूचनाएं आगाह कर रही है कि खतरा टला नहीं बल्कि सिर पर मंडरा रहा है।
इसलिए स्पष्ट शब्दों में कहें तो जनता क्या नेता तक सोशल डिस्टेंसिंग की परवाह नहीं कर रहे। लॉकडाउन के बंधनों से मुक्ति की शुरुआत समझकर कहीं अपने-अपने आयोजनों में न लग जाएं। आम जनता पर तो पुलिस का दबदबा रहता है पर नेताओं की पार्टियां और जनसभाएं जी का जंजाल बनती हैं। बंधनों से मुक्ति कहीं जीवन से मुक्ति ना बन जाए-- इस खतरे को भांप कर सतर्क रहें। नियमों का ध्यान रखते हुए अनिवार्य कार्य को पूर्ण करें। लापरवाही ना बरतें। इसमें ही हमारा, हमारे समाज और देश का भलाई है ।
- सुनीता रानी राठौड़
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
ये सही है कि लॉक डाऊन खुलते ही बंधनों से मुक्ति शुरु हो चुकी है लेकिन अब लोगों की स्वयं की जिम्मेवारी बहुत अधिक बढ जाती है । हमारे देश में लोगों को डन्डे के जोर से काम करने की आदत है हम लोग अधिकारों की हमेशा बात करते हैं किन्तु कर्तव्यों से सदा विमुख रह्ते हैं ।राज्य वा केंद्र सरकारों ने देश के हर नागरिक को कोरोना की भयानकता से वाकिफ करवाया है यहां तक कि प्रधान मन्त्री ने भी अपने अनेक संबोधनों में देश वासियों को बहुत गहराई से इस महामारी के बारे में आगाह किया और बचाव के तरीके भी बताये ।
अभी लोक डाऊन में ढील दिये मात्र दूसरा दिन है और देश के कई भागों से खबरें आना शुरु हो गई कि लोग ऐह्तियात भूल गये ।
ये ऐह्तियात भूलना ही कहीं देश की अन्य कटिबद्ध जनता के लिये घातक ना सिद्ध हो जाये ।
अभी भारत में कोरोना संक्रमण पूरे यौवन पर है और प्रतिदिन 8-9हजार कोरोना पोजिटिव केस आ रहे हैं ।ऐसे में यदि लोगों ने हिदायतों पर अमल करने में जरा सी भी चूक की तो कोरोना के सामुदायिक संक्रमण की सम्भावना हो सकती है और सरकारों के अब तक के सारे प्रयास जीरो हो जायेंगे ।
इसलिये अब2जनता का दायित्व और बढ जाता है कि वे सोशल डिस्टेंस का पालन करें सैनीटिज़र से बार बार हाथ धोएं और बाहर निकलते वक्त हमेशा मुहं को मास्क से ढक कर ही बाहर निकलें ।
- सुरेन्द्र मिन्हास
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " लॉकडाउन तो एक ना एक दिन समाप्त होना ही था । परन्तु इस पीड़ा को भूलना इतना आसान नहीं है । कोरोना वायरस से लड़ना तो अभी बाकी है । कब तक लड़ना पड़ेगा । किसी को भी मालूम नहीं हैं ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र
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