क्या आत्महत्या से किसी समस्या का समाधान होता है ?
फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की खबर ने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आत्महत्या जैसा कदम उठाते क्यों है । क्या इंसान इतना कमजोर हो जाता है । ऐसे ही कुछ प्रश्नों को लेकर " आज की चर्चा " रखी गई है । उम्मीद करते हैं कि चर्चा में शामिल होने वाले भी ऐसे कुछ प्रश्नों के जबाब ढूंढने का प्रयास करेंगे : -
आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है कदापि नहीं। जीवन कितना भी कुरूप क्यों न हो मृत्यु के मुकाबले सुंदर ही होता है ।हमारे आसपास ऐसे असंख्य व्यक्ति हैं जिनका जीवन अत्यंत कठिन है फिर भी वे जीवन को उम्मीद से जी रहे हैं। मनुष्य के लिए जीवन से पराजित होना नया नहीं है ।हर युग में ऐसा होता रहा है ।
आत्महत्या करने के कई गंभीर कारण ही होते हैं अन्यथा कोई भी खुशी-खुशी मौत को गले नहीं लगाता ।आत्महत्या करने वाला व्यक्ति सम्पन्नता एवं विपन्नता से प्रभावित होकर आत्महत्या नहीं करता है ।आत्महत्या समस्या से जूझते जीवन का अंत है न कि उसका समाधान ।जिसके लिए मौत को गले लगाने के लिए मजबूर हो । वास्तव में कोई दुख तकलीफ जिंदगी से बढ़कर नहीं होती ।हर व्यक्ति के जीवन में कभी न कभी निराशा का दौर अवश्य ही आता है ,जब लगता है कि सब खत्म हो गया ,लेकिन इससे आहत होकर व्यक्ति खुद को ही समाप्त कर ले यह तो कायरता पूर्ण कृत्य है ।
हौसला रखना चाहिए यह सोच कर कि जीवन में परीक्षा की घड़ियां चल रही है। जब एक डूबते को तिनके का सहारा हो सकता है तो अंतिम सांस तक कोशिश की जाए ।मौत को दावत देना है हल नही है इसका ।
मौजूदा दौर में आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं इसका प्रमुख कारण है जीवन चक्र मे लोगों की तेजी से बदलती जीवन शैली और बेरोजगारी, प्रेम में असफलता ।
कई ऐसे कारण हैं जो व्यक्ति को आत्महत्या की ओर प्रेरित करते हैं ।धन दौलत को ही सर्वस्व मानने की प्रवृत्ति के कारण भी आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं ।तनाव के क्षणों में मजबूत लोग भी आत्महत्या कर लेते हैं, वह लोग जिनके पास सब कुछ होता है शान ,शौकत ,रुतबा,दौलत , इज्जत सब होता है वह भी ।
इनमें से कुछ भी उन को आत्महत्या के लिए नहीं रोक पाता ।क्या पा जाएंगे मौत को गले लगाकर ,,,।
अगर आत्महत्या समाधान है तो मरने के बाद क्या वह सुख को प्राप्त कर लेंगे जिसके अभाव में उन्होंने जिंदगी का अंत कर दिया। नहीं कदापि नहीं ,सारे सुख और दुख यहीं इसी धरती पर छूट जाते हैं ।बहादुरी तो चुनौतियों को स्वीकार करने में है ना कि हार कर मौत को गले लगाने में ।
वीरता तो प्रतिबद्धता के साथ जुझारू पन दिखाने में है ।
हम कह सकते हैं कि आत्महत्या किसी समस्या का समाधान कदापि नहीं हो सकती ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
"मैंने (ईश्वर) मानव जन्म तुझको हीरा दिया , तू इसको व्यर्थ गंवायें तो मैं (ईश्वर) क्या करूं।" आत्महत्या करने वाले व्यक्ति पर ये पंक्तियां बिल्कुल सटीक बैठती हैं। यदि कोई व्यक्ति मानसिक विक्षिप्तता के कगार पर नहीं खड़ा है तो बड़ी से बड़ी समस्या में भी आत्महत्या जैसा कदम कायरता की निशानी है और उस व्यक्ति के मानव जीवन पर एक कलंक के समान है।
आत्महत्या ही यदि समस्या का समाधान होता तो आज यह दुनिया मनुष्य विहीन होती क्योंकि इस जगत में एक भी प्राणी ऐसा नहीं है जिसके जीवन में कोई समस्या न हो। हां, मनुष्य की स्थिति के अनुसार समस्याओं का रूप अलग-अलग हो सकता है परन्तु प्रत्येक समस्याग्रस्त मनुष्य उन समस्याओं के विरूद्ध संघर्ष करता है और विजय प्राप्त कर अपने मानव जीवन को सार्थक सिद्ध करता है।
आत्महत्या करने वाले व्यक्ति के प्रति सहानुभूति जताते हुए कुछ लोग कहते हैं कि "पता नहीं वह किन समस्याओं के दौर से गुजर रहा था, जो उसने आत्महत्या जैसा साहसिक कदम उठाया।"
आत्महत्या को साहसिक कदम बताने वाले ऐसे व्यक्तियों से मैं यह कहना चाहता हूं कि समस्याओं का सामना करना साहसिक कदम होता है, इसकी अपेक्षा आत्महत्या करके अपनी समस्याओं का पहाड़ अपने परिवार पर थोपकर दुनिया से चले जाना और परिवार को अकेला छोड़ देना स्वार्थता और कायरता के लक्षण हैं।
आत्महत्या करने वाले व्यक्ति के साथ समस्याएं नहीं जाती बल्कि उसके परिवार के समक्ष और अधिक विशालता के साथ ये समस्याएं आ खड़ी होतीं हैं। निष्कर्षत: आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम कभी भी समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता।
अपितु, जीवन का यथार्थ यह है.......
"मिलना विपरीत परिस्थितियों का जीवन में दोस्तों,
समान है, खिलना गुलाब का कांटों के बीच में दोस्तों।
जरूरी हैं उतार-चढ़ाव से संघर्ष मंजिल को पाने में,
कश्ती को भी नहीं मिलता किनारा शांत धारा में दोस्तों।"
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
संघर्ष का दूसरा नाम जिंदगी है। जीवन में समस्याएं आती-जाती रहती हैं। जिंदगी अनमोल है, संघर्ष करें, जिंदगी को यूं जाया न करें --- आत्महत्या से किसी समस्या का समाधान नहीं होता।
आत्महत्या डिप्रेशन में लिया गया कायरता पूर्ण कदम है। खुद मौत को गले लगाते हैं और अपने पीछे अपने परिजनों को भी जिंदा लाश बना देते हैं। ईश्वर ने हमें शारीरिक क्षमता व बुद्धि बल से नवाजा है। मानसिक दुर्बलता में उठाया गया यह कदम अशोभनीय है। अपना जीवन सिर्फ अपना नहीं है, इसे बनाने में कितनों ने खून-पसीना बहाया है और अरमानों को संजोया है। हमारी जिंदगी से कितनों की जिंदगी जुड़ी है। अगर जटिल समस्याएं आई हैं तो अपने परिजनों, दोस्तों के बीच विचार-विमर्श करें। मनोचिकित्सक से संपर्क करें। हर समस्या का निराकरण भी संभव है।
ज़िंदगी सुख-दुख के धूप-छांव से गुजरते हुए परिपक्व बनती है। हमारी जिंदगी एक-दूसरे के लिए प्रेरणास्रोत बननी चाहिए। इस तरह के निराशापूर्ण कदम से हम अपने व्यक्तित्व पर ही सवाल खड़ा कर लेते हैं और समाज में गलत मैसेज भी जाता है।
लाखों गरीब मजदूर जो वर्तमान में विस्थापित जिंदगी जीते हुए लंबी कठिन यात्रा नंगे पैर, भूखे प्यासे पैदल चलते हुए, संघर्ष करते हुए अपने मुकाम तक पहुंचे पर आत्महत्या जैसा कदम नहीं उठाया वह हमारे लिए प्रेरणास्रोत हैं, पर प्रतिभावान , सामर्थ्यवान और धनी व्यक्तित्व संपन्न लोगों द्वारा डिप्रेशन में आत्महत्या कर लेना निंदनीय हैं।
जान है तो जहान है। हम अपने आत्मबल के द्वारा विषम परिस्थिति से बाहर निकल सकते हैं। आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं होता ।इसी संदर्भ में मैं अपनी स्वरचित कविता आपके समक्ष रख रही हूॅं : -
आत्महत्या है कायरता
पढ़े लिखे समझदारों में प्रचलित होती प्रचलन।
आशिकी में डिप्रेश हो उठा रहे निंदनीय कदम।
कायरतापूर्ण फैसला लील लेती कई जिंदगियां।
खुद नहीं मरते, मिटा देते मां-बाप की हस्तियां।
फ़िक्र हो जिसे सिर्फ अपने खुशनुमा अरमानों का,
घोट देते गला मरकर वे पालने-पोषने वालों का।
सुख ना दे सके अपने को , चैन क्यों छीन लेते हो,
जिंदगी बोझ बना कर जिंदा लाश क्यों छोड़ देते हो
संवेदनाएं क्यूं जताऊं खुद मौत गले लगाने वाले पर
संवेदनाएं जाग रही जिंदा लाश मां-बाप के बनने पर
प्रतिभावान,सामर्थ्यवान,धनी व्यक्तित्व के स्वामी जो
कायरतापूर्ण कदम से युवाओं को क्या संदेश देते वो
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
आत्महत्या समाधान नहीं कई समस्याओं को जन्म देता है।मानव जीवन ईश्वर का वरदान है। जिंदगी है तो सब है।इस भौतिक वाद युग में सब कुछ पाने की होड़ लगी है।ना इंसान खुद को समय दे पाता है ना ही परिवार या समाज को सभी खुद में सीमित रह गए हैं
ना सुख ना ही शुकुन। परिवार में बात विचार करना, हंसना सब न बिलुप्तता के कगार है। दिनों-दिन इंसान अकेला होता जा रहा है।बची खुची कसर मोबाइल और इंटरनेट पूरा कर रहा है। अकेले इंसान अवसाद का शिकार जल्दी जल्दी हो जाता है और अवसाद की पराकाष्ठा है आत्महत्या।हम सदा से पढ़ते, सुनते आए हैं मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। लेकिन अब लोग समाज से भी अलग रहते हैं। करीब तीन चार दशक से आत्महत्या के मामले बढ़े हैं जिनमें अकेलापन एक विशेष कारण है। जहां तक समस्याओं की बात है वो तो सभी के जीवन में है भले ही सभी जगहों पर अलग-अलग रूप में है। समस्या है तो समाधान भी है भले देर सबेर हो। धैर्य और साहस से निदान हो जाएगा। वर्तमान समय में धैर्य और साहस में कमी हुई है जो मानव जीवन की रीढ़ हैं।यही कारण है कि आजकल छोटी-छोटी बातें विवाद का रूप ले लेती हैं। सबसे दुखदाई स्थिति आत्महत्या करने बाले के परिजनों की होती है। खासकर माता पिता के कांधे पर संतान की लाश, इससे बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण दशा और क्या हो सकती है।वो नित नयी मौत मरते हैं।
जिन लोगों के पास धन का अभाव रहता था, भौतिक सुखों का आभाव लेकिन वो तनावमुक्त जीवन जीते थे अपनों में हंस बोल कर,रुखी सूखी खाकर भी संघर्ष करने की हिम्मत रखते हुए आगे बढ़ते रहे ये सोचकर कि दुख के बाद सुख आएगा।हर रात के बाद नया सबेरा आता है। हालांकि आत्महत्या करने बालों के अंतर्मन में क्या चल रहा है, मानसिकता का स्तर किस कदर हावी हो जाता है कि वो खुद की सांसें अवरूद्ध कर लेता है। आत्महत्या केवल और केवल दुख देता है। हमें जुड़ना होगा अपनो से, परिवार से सुख दुख बांटना होगा। नैतिकता संग मानवता से जुड़ना होगा। आध्यात्म,योग,ध्यान अपनाना होगा जो सदा से हमारी संस्कृति रही है। जिंदगी बहुत खूबसूरत है इसे जिंदादिली से जीएं।
- रेणु झा
रांची - झारखंड
वैज्ञानिक प्रगति के साथ-साथ आज मनुष्य को सुविधाएं तो सब प्राप्त हैं परंतु अवसाद और तनाव को भी साथ साथ रखते हैं।
संतोष नाम की कोई भावना अपने जीवन में नहीं रखते । आत्महत्या जैसा कदम उठाना एक कायरता पूर्ण कार्य है।
जब हम स्वयं जन्म नहीं ले सकते तब अपने को मृत्यु तक पहुंचाना कहां की समझदारी है ?
यह तन, मन ,पद ,रूप ,जगह जीवन में हमें ईश्वर ने दिया है तो हमें इसे खत्म करने का कोई अधिकार नहीं ।
जीवन को खत्म करके हमारी समस्या का समाधान कभी नहीं हो सकता ।
प्रतिकूल परिस्थितियों में भी बिना विचलित हुए बाधाओं, तूफानों और अनेक प्रकार की झंझावात से जूझते हुए निरंतर लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते रहना ही इंसानियत है । इंसान का धर्म है।
आत्महत्या तो कायरता की पहचान होती है ।आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं बल्कि अपने परिवार के सदस्यों के लिए समस्याओं का पहाड़ खड़ा करना होता है ।
आत्महत्या करते समय परिवार के सदस्यो पर दुखों का पहाड़ टूट जाता है ।
उसके माता-पिता भाई-बहन पर क्या गुजरेगी ?आत्महत्या करने वाला बंदा अगर यह सोचे ? कि अगर परिवार का कोई सदस्य आत्महत्या कर ले तो उस पर क्या बीते गी? अपने प्रियजन का बिछड़ना सहन नहीं कर पाएगा । तो शायद आत्महत्या का विचार त्याग दे ।
जीवन बहुत अमूल्य है इसको व्यर्थ गंवाना अनर्थ है हम आत्महत्या करने के बदले किसी की खुशी का भी कारण बन सकते हैं ।
कितने विकलांग बिना हाथों- पैरों वाले इंसान भी एक जिंदगी में मिसाल कायम कर देते हैं।
इंसान जीवन में क्या कार्य नहीं कर सकता जब जानवर भी इस दुनिया में अपना जीवन जी लेते हैं । जबकि वे बोल भी नहीं सकते तो क्या इंसान अपनी समस्या बता भी नहीं सकता है ? बता सकता है सब समस्या का समाधान संभव है । आत्महत्या समस्या का कोई समाधान नहीं है।
आत्महत्या मानसिक रोग के समान ही है ।
आत्महत्या को बीमारी समझकर इलाज कराना चाहिए क्योंकि आत्महत्या करने से पहले व्यक्ति कई बार आत्महत्या करने की सोचता ही होगा । आत्महत्या करूं या ना करूं ?
उसे काउंसलर के पास जाकर अपनी समस्याओं को बताना चाहिए । तब उसकी समस्याओं का समाधान संभव है और जीवन में नई उर्जा भी मिलेगी ।
सरकार की ओर से भी कानून और काउंसलर के द्वारा स्कूलों में जागरूकता अभियान चलाना चाहिए ।
बचपन से ही जीवन का महत्व बच्चों को बताना चाहिए ।घर में भी माता-पिता को भी अपने बच्चों के सामने उनकी परिवार में कितनी जरूरत है आवश्यकता है समय-समय पर प्यार - प्यार में एहसास कराते रहना चाहिए ।
कहते हैं किसी की हत्या करना पाप है यानि जीव - हत्या पाप है तो आत्महत्या तो महापाप है। किसी समस्या का समाधान नहीं ।
- रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
सद्ग्रंथों में उल्लेख आता है कि प्राकृतिक मृत्यु एक वरदान है और आत्महत्या कर लेना महापाप है।समाज में रहते हुए व्यक्ति पर कितनी ही घोर विपत्तियां आ जाएं, कितने ही दुख के बादल छा जाएं,कितना ही अपमान हो जाए, जीवन में कितनी ही हानि, कितना ही घाटा और कितना ही दुखद कार्य हो जाए लेकिन उसे किसी भी तरह आत्महत्या की ओर नहीं बढ़ना चाहिए। आत्महत्या निश्चित रूप से जीवन का अंत होने के साथ-साथ जीवन दाता का भी अपमान माना जाता है ।मानव को जीवन क्रियाशील होने के लिए, संघर्ष करने के लिए, लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए प्रदान किया गया है और यदि मानव इन सब चीजों को छोड़ कर के अवसाद से ग्रस्त होकर या दुख की स्थिति में आत्महत्या करने को उद्यत होता है तो यह जीवन दाता का अपमान है ;माता-पिता का अपमान है जिसने हमें जन्म दिया, हमारे लिए स्वप्न देखे।आत्महत्या से कभी किसी समस्या का समाधान नहीं होता है। समस्याएं अपनी जगह पर खड़ी रहती है और आत्महत्या कर लेने वाला व्यक्ति इस लोक में निंदा का पात्र होता है और परलोक में भी दुख का सामना करता है इसलिए मानवता के दृष्टिकोण से, ग्रंथों के अनुसार, ईश्वरीय नियमों का पालन करते हुए कभी भी किसी भी बुरी से बुरी स्थिति में मनुष्य को आत्महत्या की ओर नहीं जाना चाहिए । संघर्षशील होकर स्थिति का सामना करना चाहिए ।
- अरविंद श्रीवास्तव 'असीम '
दतिया - मध्य प्रदेश
आत्महत्या से किसी भी समस्या का समाधान नहीं होता बल्कि समाज के लिए एक समस्या है आत्महत्या कायरता है जो व्यक्ति स्वयं को नहीं समझ सकता वह व्यक्ति नासमझी में अपने शरीर की हत्या कर डालता है अपने शरीर की हत्या कर लेने से जो उसके पास समस्या है वह हल हो जाएगा ऐसी बात नहीं है आत्मा में सही का ज्ञान ना हो पाने से ही व्यक्ति कुंठित हो जाता है और कुंठित मन निर्बल होकर जो भी परिस्थितियां या कठिनाई आती है कठिनाइयों का सामना नहीं कर पाता यही वजह होता है आत्महत्या का अतः मनुष्य को आत्महत्या की वजह आत्मज्ञान की आवश्यकता है अतः हर मनुष्य को बचपन से ही आत्मज्ञान की या संस्कारित शिक्षा की अति आवश्यकता है अतः वर्तमान में के लिए जो बुद्धिजीवी लोग हैं अभिभावक है इन सभी को आने वाली पीढ़ी के बारे में सोचना चाहिए और उनको किस तरह से आत्मज्ञान दी जाए इसके बारे में योजना बनाना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ी आत्महत्या से सुरक्षित हो सके। आत्महत्या एक जघन्य अपराध है किसी भी मनुष्य को आत्महत्या करने का अधिकार नहीं है क्योंकि यह शरीर हमारे माता-पिता का बनाया हुआ है और उसके अंदर जो आत्मा होती हैं वह प्रकृति प्रदत्त है दोनों में हमारा कोई अधिकार नहीं है सिर्फ हमारा अधिकार है तो उस आत्मा में ज्ञानअर्जित करने का अधिकार है ज्ञान अर्जित ना होने के कारण है मनुष्य भटक जाता है और साथ में चला जाता है उसे जिंदगी के बारे में कुछ समझ नहीं आता है तभी वह आत्महत्या का मंसूबा बनाता है बिना ज्ञान के आदमी रंगों की तरह है जिस तरह बिना टॉर्च का अगर हम अंधेरे में चलें तो कहीं ना कहीं टकराव होगी ही इसी तरह बिना ज्ञान की रोशनी में जिंदगी जीने से मनुष्य भटक जाता है भटका हुआ मनुष्य को आगे कुछ दिखाई नहीं देता है इसी स्थिति में वह कुंठित होकर इस संसार को उसे विराम लगता है तभी वहां आत्महत्या कर लेता है अगर उसे बचपन से ही वास्तविक ज्ञान अर्थात आत्मज्ञान शिक्षा संस्कार मिला होता तो कोई भी मनुष्य आत्महत्या नहीं कर पाता क्योंकि ज्ञान किसी को मरने नहीं देता अज्ञानता से ही लोग मरते हैं अतः वर्तमान समय में आत्मज्ञान की समीचीन आवश्यकता है इस पर समाज के लोगों को ध्यान देने की आवश्यकता है आत्महत्या कर लेने से कोई भी समस्या हल हो जाती है ऐसा नहीं है बल्कि आत्महत्या प्रभावित करता है समाज को और इसलिए वर्तमान में परंपरा दिख रही है जो समाज के लिए सुकून नहीं है अतः ऐसे अपशकुन समस्या से कैसे निपटा जाए इसके लिए समाज के लोगों को विचार करने की आवश्यकता है ताकि आने वाली पीढ़ी भी हमारा ऐसी समस्या से निजात होकर सुकून का जिंदगी जी सकें।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
एक ब्यक्ति अपने आप मे समाज नही होता है। वह समाज मे जीता है और समाज के परिवेश के साथ सामंजस्य बनाने की पूरी कोशिश करता है। समाज हमारी राजनीतिक ब्यवस्था पर टिकी होती है। अगर राजनीतिक ब्यवस्था पूँजीवादी है तो समाज बाजार ब्यवस्था पर आधारित होगी और अगर राजनीतिक ब्यवस्था समाजवादी है तो समाज समानता एवं शोषण विहीन ब्यवस्था पर आधारित होगी। यह समाजवादी ब्यवस्था समाज मे रह रहे लोगों की चिंता करता है जब कि पूँजीवाद मे समाज के दुःख और कष्ट का निवारण बाजार पर छोड़ दिया जाता है।
कल ही सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या की, इससे समाज मे दुख का माहौल बना हुआ है। बड़े लोग आत्महत्या करते हैं तो मीडिया उन्हें जगह देती है पर छोटे लोग जैसे - किसान ,मजदूर और गरीब आत्महत्या करते हैं तो समाज को पता भी नही चलता है। सुशांत तो कम से कम आर्थिक और सामाजिक रुप से संपन्न थे पर क्यों आत्महत्या किये ये अभी तक रहस्य बना हुआ है। छोटे लोगों की आत्महत्याएं मुख्य रुप से आर्थिक बदहाली के कारण होती है। बाजार ब्यवस्था मे ये छोटे लोग नही खड़े हो पाते हैं परिणामस्वरूप अवसाद मे चले जाते हैं और आत्महत्या कर बैठते हैं। कुछ आत्महत्याएं छोड़ दी जाए जो मानसिक बीमारी के कारण होती है तो अधिकांश आत्महत्याएं राजनीतिक एवं आर्थिक ब्यवस्था के कारण होती है जो एक असमानता पर आधारित समाज का निर्माण करता है।
पूँजीवादी ब्यवस्था मे संघर्ष ज्यादा करना पड़ता है, ब्यर्थ की प्रतिद्वंद्विता समाज के हर वर्ग पर हावी रहता है। एक दूसरे से आगे निकलने के लिए जानवरों जैसी होड़ होती है। ब्यक्ति ब्यक्ति से टकराता रहता है। जहाँ देखो आगे निकलने की हर ब्यक्ति की ख्वाहिश होती है। ऐसे मे एक स्वास्थ्य एवं सुखद समाज बन ही नही सकता है। और समाज ही नही बनेगा तो ब्यक्ति की परवाह कौन करेगा। समानता पर आधारित शोषण विहीन समाज ही मनुष्य को सामान्य जीवन जीने की सुख सुविधाएं सुकून के साथ प्रदान कर सकता है।
- रंजना सिंह
पटना - बिहार
आत्महत्या यानी अपनी हत्या |अपनी जान लेना ;एक बुज़दिल ही कर सकता है|हमारा जीवन क़ीमती है|कहते भी हैं कि 84 लाख योनियों में आत्मा के भटकने के पश्चात मनुष्य जीवन प्राप्त होता है|मनुष्य का जीवन पाना दुर्लभ है |
एक माँ नौ महीने अपने कोख में शिशु को रखती है |अपने खून से सिंचित करती है।जिन्दगी में हार जीत ,उतार -चढ़ाव आता जाता रहता है|हमें हर परिस्थिति में अपने आपको आग में तप कर विषम से विषम परिस्थितियों में भी दिमाग को ठंडा रखते हुए उससे बाहर निकलने की कोशिश करनी चाहिए |
अपनी परेशानीयों को छुपाएँ नही अपने करीबी के साथ साँझा करें |हर समस्या का हल निकल ही आता है| वक्त ऐसा मरहम है जो हर घाव भर देता है|कभी कभी जीवन में सब कुछ सामान्य नहीं होता और व्यक्ति अपने आप को अकेला महसूस करता है ,परेशानियों से लड़ नहीं पाता और मानसिक बीमारी का शिकार हो जाता है|डिप्रेशन की स्थिति में डॉ के निर्देश का हर हाल में पालन करे|हर रोग का इलाज है |आशावादी सोच रखें |आत्महत्या करना कायरों जैसा कृत है|
इस ग़लत कदम से आपसे प्रेम करने वाले परिवार,समाज ,पर बहुत ही बुरा असर पड़ता है |जिसे कोई जायज़ नहीं ठहराता |पीछे छोड़ जाता है सिर्फ़ एक सवाल -आख़िर क्यों?
- सविता गुप्ता
राँची - झारखंड
पूर्णतः मनोवैज्ञानिक है और विशेषकर कोरोना वायरस के परिणामस्वरूप लाॅकडाऊन की स्थिति घोषित किये जाने के बाद की परिस्थितियों में पिछले दिनों टीवी जगत और फिल्म जगत से जुड़े कुछ कलाकारों द्वारा आत्महत्या कर लिये जाने के कारण प्रकाश में आया है। अभी कल ही की घटना ले लीजिए जिसमें उदीयमान अभिनेता सुशान्त सिंह राजपूत द्वारा आत्महत्या करने का समाचार उद्वेलित कर गया हालांकि वस्तुस्थिति के बारे में तहकीकात के बाद ही पता चल पायेगा। अनेक कारणों से इन्सान जब पूर्ण अवसाद की स्थिति में चला जाता है और उससे बाहर नहीं निकल पाता तो उसे आत्महत्या करना ही एक रास्ता नज़र आता है और कुछ लोग इस चरम निर्णय को अन्जाम दे देते हैं। कई लोग इसे कायरतापूर्ण कदम की संज्ञा भी देंगे। मेरे विचार से जब किसी परेशान इन्सान के मन को अत्यधिक उलझनें जकड़ लेती हैं और वह खुद ही उन उलझनों से निजात पाने की भरसक कोशिश करता है पर सफल नहीं हो पाता और ऐसी स्थिति में वो अपने दिल का हाल किसी से साझा नहीं करता तो संवाद की अनुपस्थिति में वह चरम निर्णय ले लेता है। यदि वह इन्सान अकेला रह रहा होता है तो स्थिति और भी खतरनाक हो जाती है। यदि वह परिवार या मित्रों के संग रह रहा है तो परिजनों या मित्रों को उसके हावभाव देखकर उसके परेशान होने का अन्दाजा लग सकता है और संवाद स्थापित करने के सभी प्रयास किये जा सकते हैं। आत्महत्या एक ऐसा निर्णय है जिसे पल भर में लेकर अंजाम दे दिया जाता है। कोई सोच या किसी अन्य कारण से यदि वह पल निकल जाता है तो आत्महत्या करने की सम्भावना नगण्य हो जाती है। कई बार विद्यार्थी परीक्षाओं से पूर्व, मध्य या बाद में परिणाम से घबरा कर ऐसे कदम उठा लेते हैं। उनके परिवार वालों को चाहिए कि ऐसे संवेदनशील समय में उस विद्यार्थी पर निरन्तर ध्यान रखा जाए और यदि वह किसी मुश्किल मनोस्थिति से गुजर रहा हो तो उसके साथ मित्रवत बात करके उसका मनोबल बढ़ाया जाय जिससे उसे कम से कम यह विश्वास हो जाये कि आत्महत्या करना किसी समस्या का समाधान नहीं है अपितु एक अपराध है और परीक्षा में फेल हो जाने का अर्थ यह नहीं है कि जीवन के सभी द्वार बन्द हो गये हैं। इस तरह की हौसला अफजाई अद्भुत परिणाम ला सकती है और एक बहुमूल्य जीवन को नष्ट होने से बचा सकती है।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
आत्महत्या किसी भी स्थिति में किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकती।
मेरी दृष्टि में आत्महत्या परिस्थितियों से पलायन करना है। अधिकतर जीवन में हम देखते हैं कि जब समस्याएँ सामने आती हैं तो व्यक्ति कहने लगता है कि इससे अच्छा तो मुझे मौत आ जाए.... ऐसा वही सोचता और कहता है जो समस्याओं का सामना करने से बचना चाहता है। जीवन में सदा आदर्श स्थितियाँ नहीं होती। जीवन तो जीवन है.... जिसमें सुख-दुख, सफलता-असफलता, उतार-चढ़ाव, मिलना-बिछड़ना, धूप-छाया, अच्छा-बुरा सबका संगम होता है और यह सबके जीवन में होता है। जीवन है तो चुनौतियाँ भी आयेंगी, समस्याएँ भी आयेंगी। इनका सामना करते हुए, संघर्ष करते हुए उनका समाधान ढूँढते हुए जीवन जीना वीरतापूर्ण कार्य है पर इनके सामने हथियार डाल कर समर्पण कर देना, मृत्यु को गले लगाना साहसिक कदम तो कदापि नहीं कहा जा सकता।
आत्महत्या का मार्ग जो चुनते हैं वह विवशता में उठाया गया कदम ही है। जब कोई हर ओर से निराश हो जाता है,अकेला पड़ जाता है, कहिन किसी से भी आत्मीय संवाद स्थापित नहीं कर पाता, अपने मन की कहीं कह कर हल्का नहीं हो पाता, अपनों, विश्वसनीय मित्रों का साथ नहीं मिलता तो ऐसी स्थिति में व्यक्ति अंतर्मुखी होता चला जाता है। निराशा की स्थिति उसे अवसाद में ले आती है, अकेला पड़ जाने पर आत्महत्या की स्थिति तक पहुँचा देती है।
इन स्थितियों से निकलने के समाधान भी होते हैं,यदि समय पर सही रूप में अपना लिए जायें तो। अपनोंसे, परिवार जनों से, माता-पिता, भई-बहनों से संवाद चलता रहे, अपनी समस्याओं को अपने माता-पिता से साझा किया जाता रहे, अच्छा और प्रेरक साहित्य पढ़ा जाता रहे, आध्यात्मिक चिंतन-मनन होता रहे, ईश्वरीय आस्था पर विश्वास हो....इन सब उपायों से समस्याओं, चुनौतियों से संघर्ष करने का साहस मिलता है, समाधान मिलते हैं और आत्महत्या की ओर बढ़ते कदम रुक सकते हैं।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
मनोवैज्ञानिक तौर पर इस प्रश्न का सरल जवाब यह है कि आत्महत्या जिंदगी का एक अंत है यह समस्या का समाधान नहीं।
आत्महत्या करने वाला व्यक्ति को या विभ्रम होता है की अगर आत्महत्या कर लिया जाए तो सारी समस्याओं का हल हो जाएगा इस गलतफहमी में इंसान इतने कठोर कदम उठा लेते हैं।
आत्महत्या करने वाला व्यक्ति सांसारिक उलझन ओ समस्याओं के समाधान के लिए सकारात्मक पहलू पर कभी भी विचार नहीं कर पाता है उसके मस्तिष्क में बार-बार निराशा एंग्जाइटी उदासी भरे विचार आते रहते हैं ऐसी परिस्थिति में इंसान इतने तनाव में चला जाता है की अवसाद बनकर उसे अपना जीवन है बोझ महसूस होने लगता है सारी सुख सुविधाओं के बावजूद भी मन में चिंता बनी रहती है शांति नहीं मिलती है मन दुखी रहता है हर हंसी के पीछे एक दर्द छुपा रहता है हमेशा दूसरों को खुश करने की कला में ही जिंदगी को लगाए रहना अपनी खुशी को नहीं समझ पाना इत्यादि जब इंसान के जीवन में प्रधान रूप से क्रियाशील हो जाते हैं तो व्यक्ति कठोर से कठोर कदम उठा लेता है
मनोवैज्ञानिक विश्लेषण यदि हम आत्महत्या का किया जाए तो निम्न पहलू सामने आते हैं : -
1 जीवन से निराशा, अपने आप से प्यार नहीं करना सेल्फ लव की कमी
2 दिखावटी दुनिया में रहना जिंदगी का सही मकसद नहीं समझ में आना। आपके इर्द-गिर्द साथ में रहने वाले मित्र बंधु परिवार भी चकाचौंध की दुनिया को ही जिंदगी समझकर महत्वाकांक्षी बनाने के लिए प्रोत्साहित करते रहना
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अपने विचारों में संतुलन नहीं बनाए रखना आत्महत्या करने वाला व्यक्ति मनोवैज्ञानिक तौर पर मानसिक रूप से विकृत माना जाता है वह मूड डिसऑर्डर का पेशेंट बन जाता है
इंसान के व्यक्तित्व के कुछ ऐसे गुण हैं जो परवरिश के माध्यम से व्यक्ति में विकसित किया जाता है कभी-कभी कुछ परिवार में बच्चों के विकास में ऐसी गलतियां हो जाती हैं जिसके कारण बच्चे जब समस्या में उलझते हैं तो उन्हें सुलझा ने से ज्यादा अधिक उस से भाग जाने बे आनंद महसूस करते हैं
एक उदाहरण मैं बता रही हूं बच्चों का एक ग्रुप है सभी बच्चों को थोड़ा-थोड़ा खिलौना दिया गया है खेलने के लिए खिलौना ऐसा है जिसमें उलझाने होती हैं देखा गया 4 बच्चों में एक बच्चा ऐसा था जो थोड़ा प्रयत्न किया और प्रयत्न करने के बाद वह खिलौना को पटक कर तोड़ दिया एक बच्चा जो उलझन नहीं सुलझा पाया वाह गेम को छोड़ दिया और दो ऐसे बच्चे थे जो गेम को सुलझाने में ही समय लगा दिए चारों बच्चों का जब पारिवारिक बैकग्राउंड देखा गया तो यह महसूस किया गया कि जिन्हें आसानी से सरलता से सारी चीजें उपलब्ध मिल जाती है वह परेशानी लेना नहीं चाहते हैं उनमें एंजाइटी का मात्रा बहुत अधिक होता है अगर बहुत अधिक होता है और जिन्हें इसके बाद उसके अपनी समस्याओं को खुद करना पड़ता है उनमें सहन शक्ति और काम करने का लग्न अत्यधिक होता है इस छोटे से उदाहरण से मैं यह समझाना चाह रही हूं कि किसी भी आत्महत्या को 1 दिन का परिणाम नहीं है ऐसे विचार इंसान के मस्तिष्क में कुछ दिनों से लगातार आते रहते हैं जिनको वह सुलझा नहीं पाता है और अंत में अपने जीवन का सबसे कठोर कदम उठा लेता है
इसके अतिरिक्त शरीर में एक रासायनिक परिवर्तन होते हैं रासायनिक परिवर्तन के पश्चात इंसान के शरीर में एक प्रकार का स्राव उत्पन्न होता है वह स्राव व्यक्ति को सुखद बनाता है और दुखद बनाता है उसी के आधार पर मानसिक विचार भी उत्पन्न होते हैं अब उस हमारे मस्तिष्क में एक तरंग उत्पन्न होती है जिसका नाम है गामा तरंग। इस तरह के उत्पन्न होने में मेडिटेशन और प्राणायाम का महत्वपूर्ण योगदान है सामान्य तौर पर इंसान इस तथ्य से भली भांति परिचित है पर अपने जीवन में अभ्यास करना मुश्किल बनाए हुए हैं
इसलिए आत्महत्या जैसी घटना किसी एक दिन के सोच का परिणाम नहीं हो सकता है भयंकर निराशा तनावपूर्ण परिस्थितियों से लड़ने की ना कामयाबी इंसान को इतने कठोर कदम उठाने के लिए मजबूर कर देता है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
आत्महत्या तात्कालिक मानसिक अवस्था में उत्तेजित हो क्षणिक आवेश में उठाया हुआ एक कायरतापूर्ण कदम होता है ।यह किसी समस्या का समाधान नहीं है।बल्कि उस पल क्षण भर रूकने, इस कृत्य के परिणाम तथा इससे अपने परिजनों को होने वाले तकलीफ को सोचने मात्र से आत्महत्या का विचार समाप्त हो सकता है ।आत्महत्या कभी भी किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता ।यह निराशा और घोर अवसाद का परिणाम है ।एक कर्मयोगी जीवन में बार बार असफल होने के बावजूद कभी निराश नहीं होता है ।समस्या चाहे कितना भी विकट हो ,उसका समाधान अवश्य ही होता है ।इंसान का निरंतर प्रयास ही सभी समस्याओं का समाधान होता है ।
- रंजना वर्मा "उन्मुक्त "
रांची - झारखण्ड
आत्महत्या करने वाले व्यक्ति को लगता है कि जब वह इस दुनिया में ही नहीं रहेगा तो समस्याएं अपने आप उसकी चिता के साथ दफन हो जाएंगी और वह आज़ाद पंछी की तरह उड़ पाएगा।
परंतु उसको पता नहीं होता कि कई जन्मों के बाद यह मानव जीवन मिलता है। फिर पता नहीं कब नसीब होगा? वह सिर्फ अपने मन की आवाज़ सुनता है। अगर अपने अंतर्मन की आवाज़ सुने तो शायद महसूस कर पाए कि वह इस दुनिया में अकेला नहीं है। उसके पीछे उसके माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी-बच्चे आदि बहुत से ऐसे लोग हैं जो उस पर निर्भर हैं।
समस्या तो ज्यों की त्यों बनी रहती है बस! उसका शरीर ही आत्मा से अलग हो जाता है। आत्महत्या एक बुजदिली को दर्शाता है। अब सवाल आएगा कि जब मैं रहूंगा ही नहीं तो मुझे क्या फर्क पड़ता है?
फर्क पड़ता है साहब क्योंकि जिनको आप अपने पीछे रोते-बिलखते छोड़ जाते हैं, वे उस समस्या पर पुनः विचार करते हैं और अपने जीवन को कोसते हैं। काश! समय रहते सब बता देता तो सब ठीक हो जाता। इससे न तो आपकी आत्मा को शांति मिलती है और न आपके चाहने वालों को।
मेरे विचार से आत्महत्या से किसी समस्या का समाधान नहीं होता बल्कि और अनेकों समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। इसलिए कभी भी ऐसा विचार मन में आए तो एक बार अपनों के बारे में जरूर सोचना यह कोई समाधान नहीं हुआ!
भगवान ने इतना सुंदर जीवन दिया है उसको हंसकर जियो न कि बोझ समझकर।
- नूतन गर्ग
दिल्ली
आत्महत्या से तो कभी भी किसी भी समस्या का समाधान हो ही नहीं सकता है। ईश्वर प्रदत्त इस जीवन को नष्ट करने का, इसे समाप्त करने का हमें कोई अधिकार नहीं है। जीवन के इस सफर में सुख और दुख तो धूप और छाँव की तरह आते जाते रहते हैं। हमें जिन्दगी की प्रत्येक कठिनाई का डटकर सामना करना चाहिए। मुश्किलों भरे ये पल कट ही जाएंगे। जिस प्रकार हर रात के बाद सुबह का आना निश्चित है, उसी प्रकार जीवन में कठिन घड़ियों के पश्चात सुख के पल भी अवश्य आएंगे, ऐसा विश्वास अपने मन में सदैव बनाए रखना होता है। तभी हम विकट परिस्थितियों का सामना सही सूझबूझ के साथ कर सकते हैं और सफलतापूर्वक आगे बढ़ सकते हैं।
यदि परिस्थितियाँ बहुत ही ज्यादा व्यथित करें तब हमें हमारे सगे संबंधियों से अपनी समस्या बाँटनी चाहिए ताकि उसका उचित समाधान मिल सके। कभी कभी जीवन में कुछ ऐसे क्षण भी आते हैं जब मनुष्य का विवेक शून्य हो जाता है और उसे कोई राह नहीं सूझती है। ऐसे समय में हमें अपने माता पिता, भाई बहन या किसी अभिन्न मित्र से मन की बातें साझा करनी चाहिए, न कि आत्महत्या जैसे कायरता पूर्ण कदम उठाना चाहिए। क्योंकि आत्महत्या करने वाला स्वयं तो समस्याओं से पीछा छुड़ाकर दुनिया से पलायन कर जाता है और अपने पीछे शोक संतप्त परिजनों को इस ग्लानि के साथ छोड़ जाता है कि उन्हें अपने प्रिय पात्र की इस हद तक परेशानियों का आभास कैसे नहीं हुआ। और इस ग्लानि के बोझ के साथ ही उन्हें जीवन व्ययतीत करना पड़ता है।
अतः किसी भी समस्या का समाधान आत्महत्या नहीं है। हमें एक कर्मवीर योद्धा बनकर परिस्थितियों का समाधान ढ़ूँढ़ना चाहिए।
- रूणा रश्मि "दीप्त"
रांची - झारखण्ड
आत्महत्या मानसिक रूप से कमजोर लोगों का हथियार होता है । दुनिया सकारात्मक शक्तियों से भरी पड़ी । प्रकृति का कण - कण नव जीवन का संदेश देता है ।
ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका समाधान न हो बस व्यक्ति को धैर्य और सूझबूझ के साथ हल ढूंढना चाहिए । हमें अपने सपनों को पूरा करते समय ये अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि हमारे पैर जमीं पर हों, हमारे शुभचिंतक , दोस्त , रिश्तेदारों से समय- समय पर संवाद होता रहे । परिवार ही हमारी असली पूँजी है । सुख -दुख को साझा करते रहने से व्यक्ति में आत्मबल बढ़ता है तब वो ऐसे निर्णय लेकर स्वयं को मार नहीं सकता है ।
ऐसे समय में ईश्वर के प्रति आस्था भी हमको गलत कदम उठाने से रोकती है । एक वाक्य जो सदैव याद रखना चाहिए कि कैसा भी वक्त हो ज्यादा नहीं ठहरता - ये वक्त भी गुजर जायेगा , जिसने इसे अपना बोध वाक्य बनाया वो अवश्य ही न तो सुख में अहंकारी होगा न दुख में विचलित होगा ।
समस्या से मुकाबला करने वाला व्यक्ति ही विजेता होता है और सबका चहेता भी ।
मानव जन्म अनमोल है इसे व्यर्थ न करें ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
स्थिति परिस्थिति कैसी भी हो हमें उसका डटकर मुकाबला करना चाहिए आत्महत्या करना कायरों का काम है जीवन तो एक संघर्ष है हर दिन इंसान जब सुबह सोकर उठता है तो वह संघर्ष करता है एक बच्चा जब घर से मां के निकलता है तो भी उसको संघर्ष करना ही पड़ता है इसलिए कभी हार नहीं मानना चाहिए हमें डटकर समस्या को हल करना चाहिए ऐसी दुनिया में कोई बड़ी समस्या नहीं बनी जिसका हल ना निकल सके। और अपने आप में घुटने नहीं रहना चाहिए जब कभी कोई समस्या हो तो हमें अपने माता-पिता बड़े बुजुर्ग या किसी मित्र जो हमें सही सलाह दे उससे हमें अपना दुख बांट लेना चाहिए क्योंकि दुख ना बांटने के कारण ही मनुष्य आत्महत्या करता है और इसका एक कारण एकाकी रहना भी है पहले लोग संयुक्त परिवारों में रहा करते थे सब की समस्याएं हल किया करते थे और सबके साथ मिलजुल कर रहते थे और वह अपने मन शक्ति को भी मजबूर किया करते थे नहीं तो हमें अच्छी धार्मिक किताबें पढ़नी चाहिए रामायण या गीता इसको पढ़ने से मन में शांति मिलेगी और हमारा उत्साहवर्धन भी होगा जो भी व्यक्ति निराशावादी या डिप्रेशन के शिकार होते हैं उन्हें रामायण या गीता पढ़ाने को बोलना चाहिए
*मन के जीते जीत मन के हारे हार।*
*मन का हो तो अच्छा न हो तो और भी अच्छा।*
यह सब बातें हमने अपने बड़े बुजुर्गों की जरूर अपने घर में सुनी है लेकिन इनके पीछे एक बहुत गहरा मकसद छुपा रहता है क्योंकि मन से मजबूत होने पर एक चींटी भी पहाड़ पर चढ़ जाती है । कोई भी समस्या बड़ी और छोटी नहीं होती है उसे समझदारी से हल किया जाए तो बड़ी से बड़ी समस्या अभी छोटी हो जाती है।
कल मैंने सुना कि एक अभिनेता ने आत्महत्या कर ली इतनी जल्दी अपने मन से हार गया और अपनी भावनाओं पर काबू नहीं कर पाया जिस का यह नतीजा हुआ कि उसने आत्महत्या कर ली।
इसीलिए हमें मन से मजबूत होना चाहिए यह शिक्षा हमें आज के युवा वर्ग को जरूर देनी चाहिए क्योंकि वह फैशन और आधुनिकता में इतना खो गया है कि अपने आपको व मजबूत नहीं कर सका ।
मन और मस्तिष्क का हमारे सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग है।
इसके द्वारा हमारे सारे क्रियाकलाप संपादित होते हैं।
हमारे शरीर बा जीवन में वही स्थान और महत्व है ,जो एक गणतंत्र राज्य में प्रधानमंत्री का या राजतंत्र में राजा का होता है।
शरीर के सारे दूसरे अंग व इंद्रियां इसके अधीन होते हैं। इसकी आज्ञा के अनुसार कार्यरत रहते हैं।
शरीर का यही वह अंग है, जिस के निष्क्रिय होने पर व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। इसलिए इससे सुरक्षा की दृष्टि से शिर का दुर्ग या किला है।
हमारे जीवन की विभिन्न परिस्थितियो जैसे आशा- निराशा, सुख - दुख, उत्सव- अवसाद, हार- जीत, विजय- पराजय, का यही निर्धारण करता है। हमारी हार या जीत मन की हार या जीत पर निर्भर होती है यदि मन निरूत्साहित, आशा विहीन, निष्क्रिय हो तो पराजय निश्चित है ।इसके विपरीत यदि उसमें उत्साह उमंग आशा और सक्रियता हो तो उसकी विजय सुनिश्चित है।
क्योंकि एक व्यक्ति हिटलर या रावण है और दूसरा गांधी या राम है। इसका मात्र कारण ही है इसी के कारण कुछ लोग असाधारण रूप से सफल समृद्ध प्रतिभाशाली और नेतृत्व का गुण गुणों से युक्त होते हैं तो दूसरी ओर अन्य लोग कलंक, मति हीन, चरित्रहीन और दुष्ट होते हैं।जिनका मन सबल होता है वह आशावाद और क्रियाशील होते हैं। उनके लिए वरमाला लिए सफलता खड़ी रहती है, विजय श्री ऐसे ही मन मस्तिष्क के व्यक्तियों का वरण करती है।
नेपोलियन नेपोलियन ने कहा है की असंभव शब्द कायरों के शब्दकोश में पाया जाता है, और उसे अपने जीवन तथा कार्यों से सिद्ध करके दिखाया। अलेक्जेंडर विश्व विजेता बना क्योंकि उसका मन विजय के लिए स्थिर था । इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण है।
हमें आशावादी और कर्मवीर और धर्मवीर होना चाहिए चाहे स्थिति परिस्थिति कैसी भी हो।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्यप्रदेश
ऐसे लोग जो स्वयम को समाज और अपने घर वालो से भी अलग रखते है , जो लोग खुद को किसी से शेयर नही करते और स्वयम के मन से ही स्वयम का आंकलन करते रहे है । जो स्वयम की बड़ाई से तो प्रसन्न होते है परंतु बुराई जिनसे बर्दास्त नही होती ऐसे लोग अंदर ही अंदर घुटते व कुंठित होते रहते है । ऐसे ही लोग समाज मे लगातार स्वयम मौत को गले लगाते है । आज माँ बाप तथा सगे संबंधियों को अपने व अपनो पर ये नजर बनाए रखने की अति आवश्यकता है कि कहीं उनका कोई अपना किसी समस्या को लेकर लगातार जूझ तो नही रहा , इसी नजर व उनसे अच्छे व्यवहार के जरिये ही हम उनकी मानसिकता तक पहुंच सकते है ।
वहीं ये बात भी साफ कर देनी चाहिए कि यधपि किसी इंसान से कोई गलती जाने - अनजाने में हो जाती है तो उसका प्रयाश्चित किया जा सकता है न कि जीव का स्वयम को मौत को गले लगा लेना उसका कोई समाधान है और मनुष्य का सबसे बड़ा प्रयाश्चित यही होता है कि वो गलती के बाद भी समाज मे खुद को सुधारने की दृष्टि से भले ही लड़खड़ाते ही सही परंतु खड़े होकर चलने की कोशिश तो करता है । मनुष्य को ये भ्रम बिल्कुल निकाल देना चाहिए कि स्वयम को मौत के हवाले कर देने से सारी समस्याएं खत्म हो जाती है , क्योंकि आपकी मौत के बाद समाज मे आपका और ज्यादा अपयश फैलता है । तरह तरह की बाते होती है । आप जिंदा रहकर न जाने कितनी ही जिंदगियां सवार सकते है और एक गलती के बाद कितने ही नेक काम कर सकते है ।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
नहीं...... आत्महत्या से किसी भी समस्या का समाधान नहीं होता है,यह बात केवल आप या मैं ही नहीं बल्कि सभी जानते हैं।उसके बावजूद भी हम प्रतिदिन सुनते हैं कि अमुक व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली है।इस संसार में ऐसी कोई भी समस्या नहीं है जिसका समाधान न हो फिर भी आखिर लोग ऐसा कदम कैसे उठा सकते हैं? आत्म चिंतन करने पर लगता है कि आत्महत्या करने से पूर्व न जाने कितनी बार व्यक्ति सोचता होगा?हम भले ही कह दें कि निराशा जीवन में नहीं लानी चाहिए पर आत्महत्या करने वाले न जाने किस मन: स्थिति से गुजरते होंगे?बहुत मुश्किल है यह कह पाना कि अपने जीवन को समाप्त करने से पहले किन किन विचारों या समस्याओं से अमुक व्यक्ति त्रस्त हुआ होगा।
यकीन मानिए आत्महत्या वास्तव में किसी भी समस्या का समाधान नहीं है।स्वयं से जितना अधिक हो सके प्यार कीजिए।अपने पास जितना कुछ है उसको यह मानकर संतुष्ट रहिए कि करोड़ों लोगों के पास उसका एक अंश भी नहीं है।
जीत आत्महत्या से नहीं होती,
जीत तो आत्मविश्वास से होती।
आवेश में उठाया गया एक कदम,
पीछे अपनों का बन जाता है गम।
- डॉ.विभा जोशी (विभूति)
दिल्ली
सही अर्थों में बात की जाए तो यही कहा जाएगा की आत्महत्या मन की कमजोरी का स्पष्ट उदाहरण है।आत्महत्या से व्यक्ति केवल जीवन को समाप्त करता है न कि उस समस्या को जिस कारण वह इस कदम को उठा रहा है।जब व्यक्ति स्वयं को निर्णय लेने में कमजोर पाता है,या वह निराशा से स्वयं को घिरा पाता है,तो वह नकारात्मकता का तोड़ ढूंढने की बजाए अपने जीवट को उस नकारात्मकता के चरणों में समर्पित कर देता है।यही से प्रारम्भ होता है अवसाद का वह चक्र जिस के भंवर में फंस कर व्यक्ति आत्महत्या जैसा कायरता पूर्ण कदम उठा लेता है।किसी भी समस्या से घिरने पर अपनी बुद्धि विवेक का सही इस्तेमाल तथा अपनों से मन की बात शेयर करने से समाधान की दिशा में कदम आगे बढ़ता है। सभी को यह समझना चाहिए कि जीवन कितना अनमोल है इसे इतनी जल्दी समर्पित कर देने का एक बुद्धिमान व्यक्ति को कोई अधिकार नहीं है।मै बेबाक रूप से कहूंगा कि आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं है केवल मानसिक कायरता की पहचान है।
- कवि कपिल जैन
नजीबाबाद - उत्तरप्रदेश
भारतीय इतिहास उठाकर देख लीजिएगा, जहाँ आत्महत्या या हत्या एक वैचारिक जघन्य कृत्य के तहत ही गिना जाता रहा हैं। लेकिन दूसरी ओर ध्यान केन्द्रित किया जायें तो राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, सीता, बलराम, कृष्ण, ॠषि मुनी, भीष्म पितामह आदियों ने इच्छानुसार मृत्यु ग्रहण की। राजाओं-महाराजाओं ने युद्ध भूमि में अनेकों लड़ाइयों में मृत हुए, जिन्हें वीर गतिविधियों की संज्ञा दी गई। उनकी मृत्यु पश्चात रानियों ने जौहर किया, जिसे सती कहा गया। समय बदला, नारियों के सम्मान में राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा का पूर्ण रूप से विरोध किया। नारियों की सती प्रथा तो रुक गयी, लेकिन जंधन्य हत्या, आत्महत्या का क्रम कम नहीं हुआ, बल्कि किसी भी रुप में प्रति दिन बढ़ता जा रहा हैं। बीमारियों के ईलाजों हेतु वैज्ञानिक डाक्टरों ने शोध के माध्यम से समस्या का समाधान तो निकाल लिया, परन्तु हत्या और आत्महत्या का कोई विकल्प नहीं? ना ही कार्यपालिका और न्यायपालिका की पहल? जब मानसिक प्रवृत्तियां सभी तरह से शून्य हो जाती हैं, तब कुछ भी दिखाई नहीं देता, या तो किसी की हत्या करेगा या स्वयं आत्महत्या? आत्महत्या किसी भी रुप में हो सकती हैं, बेरोजगारी, कर्जों से लथ-पथ, आत्मग्लानी आदि ये व्यक्ति की विचारधारा के ऊपर निर्भर करता हैं। धर्म पथिकों का कहना हैं, कि जो किसी की हत्या और कोई स्वयं आत्महत्या करता हैं। उसे स्वर्ग नहीं,नरक मिलता हैं। प्रश्न उत्पन्न होता हैं, कि उपरोक्त महानुभावों को
क्या मिला? निष्पक्ष विचार मंथन की कड़ी में ध्यानाकर्षण किया जायें, तो सबसे ज्यादा हत्या और आत्महत्या पर चित्रांकन फिल्म उद्योग में काल्पनिक रुप से पथ-पदर्शित किया जाता हैं, लेकिन आत्मजन हिंसक प्रवृतियां सीखता हैं, लेकिन फिल्म उद्योग की माया नगरी में आत्महत्या का पंसग प्रत्यक्ष रूप से सामने आता हैं, तो विचारणीय हैं। इस पर गंभीरता पूर्वक सोचिए परिणाम सार्थक भूमिका होगी, नहीं तो वही हैं, आत्मा हत्या के सिवाए? आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं बल्कि परिवारजन को आघात पहुँचाने के सिवाए कोई चारा नजर नहीं आता, मरने वाले तो चले जाते हैं, एक तथ्य छोड़ जाते हैं, यादें ही शेष हैं....
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
आज के इस दौर में युवाओं के ख्वाब बहुत बड़े हो गए हैं। और इस कंपटीशन की के दौर में आज के युवा भावनात्मक रूप से बहुत जल्दी कमजोर हो जाते हैं।अपने परिवार से अपना दर्द नहीं बांट पाते उन्हें पता नहीं क्यो..? परिवार से बात करने में इतनी झिझक महसूस होती है।आज के बच्चे यदि एक बार अपने माता-पिता से अपने दिल की बात शेयर करने लगे। और माता-पिता भी उनके जज्बातों को समझकर सही मार्गदर्शन करने लगे। तो ऐसी नौबत कि नहीं आएगी। आजकल हर कोई फेसबुक और व्हाट्सएप की आभासी दुनियां में अकेलेपन का शिकार हो गया हैं। ऐसे में लोग भुलावे में आकर अपनी जिंदगी से खिलवाड़ करते हैं। यह कहां तक सही है। कुछ लोग गहरे डिप्रेशन में आकर,चाहे कारण कोई भी हो! आत्महत्या जैसे जघन्य अपराध कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं। जीवन समाप्त करने से कोई समस्या हल नहीं हो होती। बल्कि आप अपने परिवार और अपनों के लिए कई पीढ़ियों तक एक सवाल छोड़ जाते हो। और उसका सामना उनके परिजनों को ना जाने कब तक भुगतना होता है। इसलिए मेरी नजर में आत्महत्या कोई समाधान नहीं बल्कि जिंदगी के सवालों से लड़कर उसका सामना करना ही सही अर्थ में जीवन जीना है। मरना आसान है,लेकिन चेहरे पर मुस्कुराहट लेकर जिंदगी की समस्याओं से जूझ कर जीना बड़ा कठिन है। लेकिन जो जी पाता है.. वही सिकंदर होता है।
- वंदना पुणतांबेकर
इंदौर - मध्यप्रदेश
आत्महत्या से किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता जीवन वास्तव में एक संघर्ष है जिसमें सभी के जीवन में समस्याएं निरंतर आती रहती है और सभी को उनसे जूझना भी पड़ता है समस्याओं से बचा भी नहीं जा सकता बल्कि उनके समाधान सभी को खोजने पड़ते हैं यह अवश्य है कि किसी के जीवन में समस्याएं कम है और किसी के जीवन में बहुत अधिक परंतु कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं होता जिसके जीवन में परेशानियां नहीं आती इनसे हार बैठना कायरता है वास्तव में जिंदगी एक संघर्ष है और इस संघर्ष में हिम्मत के साथ ही काम करना होता है समस्याएं पारिवारिक भी हो सकती हैं सामाजिक भी हो सकती हैं आर्थिक भी हो सकती है और कभी-कभी समय जनित समस्याएं भी हो सकती है चिंता और अवसाद सभी को कभी न कभी अवश्य ही घेरते हैं ऐसे समय में मित्रों और पारिवारिक सदस्यों का सहयोग और आत्मीयता इससे निकलने में मदद करती है परंतु ऐसा लगता है कि वर्तमान समय में कुछ सफल व्यक्तियों को सफलता के साथ-साथ एकाकीपन भी मिलता है और वह धीरे धीरे सभी से दूर होता चला जाता है जबकि यह स्थिति जीवन के लिए खतरनाक हो सकती है और आत्महत्या का कारण भी बनती है अतः ऐसे समय में मित्रों और पारिवारिक जनों से संवाद अवश्य करें ऐसा करने से आत्मबल मिलता है और समस्या का समाधान खोजने में भी मदद मिलती है परंतु जीवन से इस तरह भागना और आत्महत्या कर लेना अपनी जिम्मेदारियों से भागने के अलावा कायरता के सिवाय कुछ भी नहीं है इस तरह आत्महत्या से किसी भी समस्या का समाधान नहीं है - - - प्रमोद कुमार प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
समस्या तो आम बात है । हमेशा सभी का जीवन समस्याओं से घिरा होता है । समस्या न हो तो मानव पशु की श्रेणी में आ जायेगा ।
समस्या का समाधान करना ही मानव में दिमाग के होने का सबूत है, जिससे इसे सजीवों में उच्च स्थान दिया गया है। परन्तु दिमाग में एक सोच बसती है। सोच ही मानव के लिए सही और गलत निर्देश निर्धारित करती है । जिसे मेडिकल की भाषा में डिप्रेशन कहते हैं । यह बीमारी लोगों को आत्महत्या करने पर मजबूर करती है। आत्महत्या का कारण कुछ नहीं होता , केवल आत्म शक्ति का कमजोर होना है। परिस्थिति से लड़ने की क्षमता समाप्त हो जाती है। अगर उसके साथ एक भी प्रबल आत्मशक्ति वाले खड़े होंगे तो ही वह वापस अपनी शक्ति पा सकता है, वरना भयानक परिणाम सामने आते हैं ।
मनुष्य का जन्म पाया है तो समस्या का सामना करना ही पड़ेगा। आप को समझ नहीं आ रहा तो अपने करीबी लोगों बात-चीत करें। उन्हें अपनी समस्या बताएं। उनके सुझावों पर अमल करने की कोशिश करें । सबसे बड़ा कारण तो आजीविका के साधन में गिरावट ही होती है। लेकिन क्या कम में नहीं रह सकते ।
इसलिए मेरे विचार से तो जब समस्या है तो समाधान भी होगा । आत्महत्या कर आप अपने परिवार को सजा देते हैं। जब उसे सजा देते हैं तो एक बार इस गंदे निर्णय को करने से पहले उनसे बात करनी चाहिए।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
आजकल नवजवानों में ख़ुदकुशी के मामले काफी बढ़ गए हैं। कई ऐसे मामले आये हैं, जिनमें ऐसा देखा गया की कुछ पल की निराशा के कारण युवाओं ने आत्महत्या कर ली , अगर वो चाहते तो अपनी मेहनत और लगन से समाज में एक अच्छा मुकाम हासिल कर सकते थे और समाज में अन्य युवाओं के लिए प्रेरणा बन सकते थे।
जो आत्महत्या कर लेते हैं। इनमें से ज्यादातर लोग किसी न किसी रूप से अपनी भावनायें अवश्य प्रकट करते हैं, ऐसा मेरा मानना है । लेकिन अक्सर इनकी भावनाओं और पूर्व संकेतों को हम अनदेखा कर जाते
है।
सामाजिक और आर्थिक वातावरण में आ रहे बदलाव ने उच्च आकांक्षाओं और प्रतिस्पर्धा, सफलता और रहन-सहन के उच्च स्तर की सामाजिक चाह के साथ आंतरिक दबाव पैदा किया है, जिससे सामाजिक सहिष्णुता और मदद में कमी आ रही है जो युवा लोगों को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करती है।
हमारे देश में हर चार मिनट पर कोई न कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है। राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड्स ब्यूरो के अनुसार साल में एक लाख 35 हजार लोग आत्महत्या करते हैं। दुनिया भर में हर साल 10 लाख लोग आत्महत्या करते हैं। इस तरह से विभिन्न आपदाओं, दुर्घटनाओं ओर युद्धों में हर साल मरने वाले लोगों से अधिक लोग आत्महत्या के कारण मौत के ग्रास बन जाते हैं।
हमारे समाज में आत्महत्या को छिपाया जाता है और लोग इस बारे में बात करने से बचते हैं, जबकि यह जरूरी है कि इस पर खुलकर चर्चा होनी चाहिये और इसे अन्य समस्याओं की तरह लिया जाना चाहिये। अगर किसी के मन खुदकुशी की भावना या सोच पैदा हो रही हो तो वह खुलकर व्यक्त कर सके और मदद मांग सके। परिवार के लोगों और दोस्तों को भी चाहिये कि अगर किसी व्यक्ति ने किसी भी रूप में और किसी भी माध्यम से आत्महत्या करने की बात कही है तो अनदेखी नहीं करें, बल्कि उन्हें समय पर समुचित भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक मदद प्रदान करें।
अक्सर लोग अपने मन की बात या भावना को किसी व्यक्ति के सामने प्रकट नहीं करते हैं लेकिन वे फेसबुक जैसी सोशल साइटों पर अपनी भावनायें व्यक्त करते हैं। ऐसे में अन्य लोगों को चाहिये कि ऐसी भावनाओं की अनदेखी नहीं करें और संबंधित लोगों को सचेत करें। यही हमारा कर्त्तव्य है
वर्तमान में आत्महत्या की दर में इजाफा हो रहा है। आए दिन ऐसी खबरें पढ़ने को मिल ही जाती है जिसमें किसी ने फांसी लगाकर तो किसी ने ट्रेन के सामने आकर अपनी जान दे दी। आज जरूरी है लोगों को जागरूक करने की, जिसमें मीडिया का अहम रोल है। लोगों को बताया जाए कि किसी भी समस्या का समाधन आत्महत्या नहीं है। किसी भी समस्या का सामना डटकर करें न कि अपनी जान दे दें। आत्महत्या करने से केवल एक व्यक्ति नहीं मरता, बल्कि मरता है पूरा परिवार। आज लोग यह मानकर आत्महत्या कर रहे हैं कि आत्महत्या करने से हमारी समस्या खत्म हो जाएगी। लेकिन उनको पता नहीं कि वे अपने पीछे कितनी बड़ी समस्या पैदा करके जा रहे हैं।
मीडिया को ज्यादा सजग होने की आवश्यकता है। मीडिया समाज का प्रहरी होता है, जो लोगों को नई दिशा और सकारात्मक सोच पैदा करने में मदद कर सकता है। लेकिन वर्तमान में मीडिया किसी भी खबर को ऐसे सनसनीखेज बनाकर परोसती है, जिससे लोगों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। आत्महत्या और ऐसे कई मुद्दों पर मीडिया कर्मी थोड़ा संवेदनशील हो। ऐसी घटनाओं को सनसनीखेज तरीके से न परोसा जाए। बल्कि लोगों को ऐसे कृत्य करने से बचाया जाए। जागरूक किया जाए और आत्महत्या के दुष्प्रभाव को बताया जाए।
पिछले कुछ दिनों में बॉलीवुड के दिग्गजों की मौत के दुख से हम अभी उबर भी नहीं सके थे कि अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की खबरों ने झकझोर कर रख दिया। युवा फिल्मकार आत्महत्या करते आ रहे है , समझ में नही आता सब कुछ होते हुए भी क्यो ?
प्रत्यूषा बनर्जी ,जिया खान, प्रेम में असफल , आत्महत्या, आत्महत्या, को खिलौना बना लिया।है सहनशक्ति रही नही
नौकरी नहीआत्महत्या।, फेल हो गये पटरी पर लेट कट गये, पति ने डाटा , घर में झगडा फांसी लगा ली, छोटी छोटी बातों को ध्यान मत दो जीवन बहुत बड़ा है और खुबसूरत भी
अब सुशांत सिंह क्या कमी थी
पर नहीं डिप्रेशन अच्छा शब्द , डिप्रेशन नया-नया आया इंसानों को निगल रहा है - हमने कभी अपनी जिंदगी में डिप्रेशन जाना ही नहीं, जिंदगी ने बहुत ही दुख दिए....देती रही ...देती है ...
पर आत्महत्या नहीं की यार ...
सब झेल गईआज खुश हूं ,
दुखो ने मुझे मजबूत बनाया।
पति के अत्याचार ने मुझे हिम्मत दी! ससुराल की तानाशाही से मैने समाज से लडना व निडर होना सिखा , आज समाज की पिडीत , सताई मिलाओ की सहायता करती हूं अग्निशिखा मंच के माध्यम से।मेरा कहना है आत्महत्या समस्या का समाधान नहीं , है नही है । लडो आखिरी दम तक लड़ो जीत निश्चित है
सुशांत राजपूत को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहती हूं ....
गम क्या था ?
क्या गम था ? जो जीवन से भारी हुआ ?
अपनों को गम देगयें , क्या इस गम से तेरा ग़म भारी हुआ !
तुम तो आजाद हुए ,
अपनो को रुला गए
इतने तो कमजोर नहीं थे !
फिर कैसे तुम हार गए
परेशानियाँ आती है जाती है
फाँसी लगाना बुज़दिली है
तुम क्यों कमजोर पड़े
यह पहेली कौन हल करें !!
दर्द सीने में ही दफन किया
अपनो से करते बया
कैसा दर्द था जो अपनो से न बाँटा गया !
मौत को गले लगाना आसान हुआ!
दोस्तों से तो कहते ,
मौत न यू उकसाती
जीवन फिर मुस्कराती
समय तुम्हारा था ,
काम कम न था
फिर क्या हुआ क्यों हुआ?
छोड़ गये अनगिनत प्रश्न ?
देती हूँ भावभीनी श्रद्धांजलि
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं, बल्कि इससे समस्याएं और भी बढ़ जाती है। अभी एक दिन ही पहले चर्चित कलाकार सुशांत सिंह राजपूत द्वारा आत्महत्या किए जाने से फ़िल्म, खेल जगत से लेकर देश के आम से लेकर खाश लोग तक आश्चर्यचकित हैं। फ़िल्म जगत के अमिताभ बच्चन, अनुपम खेर, सन्नी देवल, अक्षय कुमार, अजय देवगम, खेल जगत के सचिन तेंदुलकर, महेन्द्र सिंह धौनी, विराट कोहली से लेकर लगभग सभी दिग्गजों ने ट्वीट कर राजपूत द्वारा आत्महत्या किए जाने पर दुख प्रकट करते हुए उनकी आत्मा की शांति के लिए भगवान से प्राथना किया है। राजपूत के अलावे अभी हाल में ही कोरोना के ख़ौफ से दिल्ली के एक आई आर एस अधिकारी ने आत्महत्या कर ली थी। कोरोनकाल में कइयों ने आत्महत्या की है। देश मे देखा जाय तो हर 4 मिनट पर एक आत्महत्या की घटना होती है। भारत आत्महत्या के मामले में दुनियाभर में 10 वे स्थान पर है। देश मे हर साल 8 से 10 लाख लोग आत्महत्या करते हैं। आत्महत्या करने के कई कारण होते हैं। इसमे मानसिक रोगी भी शामिल है। कोरोनकाल में भी कइयों ने अपनी जान दे दी है। लोग कर्ज़ के बोझ से भी आत्महत्या कर लेते है। खेती अच्छी नही होने पर किसान, बेरोजगारी पर मजदूरों, प्रेम में विफलता से प्रेमी-प्रेमिका, स्कूल, कॉलेज या किसी प्रतियोगिता में फेल होने से युवा वर्ग आत्महत्या कर लेता है। दहेज के कारण नवविवाहिता आत्महत्या कर लेती हैं। इस तरह समाज मे आत्महत्या करने के सैकड़ों कारण है। पर आत्महत्या से किसी भी समस्या का समाधान नहीं होता।
- अंकिता सिन्हा साहित्यकार
जमशेदपुर - झारखण्ड
आत्महत्या कभी किसी समस्या का समाधान हो ही नही सकती। संकट व समस्या सबके जीवन में आते हैं । भगवान राम - कृष्ण भी इस से अछूत नही रहे तो हम तो साधारण मानव हैं। मानव के जीवन में समस्या आनी ही है। जीवन का दूसरा नाम ही समस्या है। समस्या से गुजर कर ही मनुष्य के जीवन में निखार आता है।
समस्या चुनौती है । जिसका पूर्ण आत्मविश्वास से सामना करना चाहिए । जीत या हार आपके आत्मविश्वास पर ही निर्भर है। जब आत्मा का विश्वास कमजोर पड़ने लगता है तब मन -मस्तिष्क भी काम करना कम कर देता है। यही स्थिति मनुष्य को आत्महत्या के द्वार पर धकेलती है । ये सदा सर्वदा अनुचित कदम है ।
भूलो मत आप एक पवित्र आत्मा हो। आपका जन्म विशेष कार्य हेतु हुआ है। आप में परम शक्ति मौजूद है। आपने जो जीवन में उत्कृष्ट कार्य किए हैं उनको सदैव प्रतिदिन स्मरण करो। जिससे आपकी आत्माशक्ति जाग्रत होगी ।
आप संकट को जीवन में हावी न होने दें। कदापि न घबारायें ।दृढ़ता से उसका सामना करें। सहज ही उसे पछाड़ देंगे।अवश्य ही सफलता अर्जित करेंगे। भारतभूमि पर ऐसे अनेकानेक महापुरुषों के उदाहरण हैं जिन्होंने कठिनतम समस्या को भी पछाड़ा है। फिर भी संकट का सरल उपाय हनुमानजी की प्रार्थना भी है । हनुमानजी बडा़ से बडा़ संकट टाल देते हैं । एक बार अवश्य अपनी समस्या लेकर हनुमानजी के दरबार जाना चाहिए तब आप आत्महत्या जैसा जघन्य अपराध करने का विचार भी नही लायेंगे ।
- डॉ.विनोद नायक
नागपुर - महाराष्ट्र
देखा गया है आजकल नवयुवक- नवयुवती मैं खुदकुशी का प्रचलन बढ़ गया है। यगंस्टार्स को किसी पल जिंदगी से निराशा के झलक महसूस होने लगता है तो आत्म हत्या की ओर कदम बढ़ाते हैं।
अगर वह चाहते तो अपनी मेहनत और लगन से समाज में अच्छा मुकाम हासिल कर सकते हैं।
अभी अभी ताजा समाचार है;-
एक्टर "सुशांत सिंह राजपूत," जो 34 बरस के बिहार निवासी थे। डिप्रेशन में आने के बाद इलाज करा रहे थे। फिर भी आत्महत्या करके अपने जीवन लीला समाप्त कर दिए। जबकि उभरता हुआ सितारा सिने जगत में अपने मेहनत के बल पर उभरता हुआ सितारा में अपने को स्थापित कर चुके थे। उनके इस क्षेत्र में कोई *गॉडफादर*भी नहीं थे।
हमारे देश के मनोचिकित्सक का कहना है:- आज के दौर में हमारे देश में 15 साल से कम उम्र में भी आत्महत्या की घटनाएं हो रही है।
15 साल से नीचे तक की घटना उनके अभिभावक के आकांक्षा कारण भी है, अपने बच्चों से अधिक उपेक्षित रखते हैं,नहीं होने पर बच्चे 15 साल से नीचे वाले आत्महत्या की ओर अग्रसर हो रहे हैं। अशांत परिवारिक महोल, जल्द से जल्द लग्जरी जीवन जीने की तमन्ना नहीं पूर्ण होने पर खुदकुशी के रास्ते भटक जाते हैं।
कभी-कभी है सुनने को आता है पूरे परिवार आत्महत्या कर ली है। अपने जीवन काल काल में हैसियत से ज्यादा उम्मीद रखते थे।
लेखक का विचार:-- आत्महत्या किसी समस्या का हल नहीं है, एक डरावना शब्द है जो आज देश,समाज और घर में इस कदर आ गया है कि हर कोई डर- समा गया रहता है। हर आत्महत्या के पीछे कोई वजह होती है। अगर किसी समस्या का हल ना होने पर लोग खुदकुशी कर लेते हैं। जरा सोचिए,:- जाने पर उसका हल निकल जाएगा। *नहीं*!! बल्कि परिस्थितियों से मुकाबला करना है ,चुनौतियों को स्वीकार करना है, अपने को जुझारू पर दिखाएं।" असफलता में ही सफलता छिपा हुआ है" यह जीवनी एक सर्कस है। इसे पूरी जिंदगी भर खेलना है। यह ईश्वरीय देन है बीच रास्ता
मे आत्महत्या करके न छोड़ें। यह कोई जीवन का समाधान नहीं है।
- विजयेंद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
क्या आत्महत्या से किसी समस्या का समाधान होता है?यह प्रश्न मेरे हिसाब से परीक्षा में आए हर उस प्रश्न के माफिक है जिसे हल कर लिया तो आप मेरिट लिस्ट में शामिल भी हो सकते हैं और यदि नहीं किया तो मेरिट से बाहर भी हो सकते हैं।जिन्दगी की किताब का ये सबसे अहम प्रश्न है क्योंकि इसका हल केवल करने वाला ही जानता है और बाकी लोग केवल उसके उत्तर का अपने अपने अनुसार आंकलन ही कर सकता है।
यदि इसी प्रश्न को जीवन मूल्यों और बाहरी तात्पर्य में लिया जाए तो इसका उत्तर केवल नहीं और नहीं है।जीवन एक अनमोल मोती है जिसको कई धागों में पिरोया जाता है तथा कई उत्सवों में सजाया और संवारा जाता है।इसको समाप्त करने का अधिकार उस बाहरी आवरण को भी नहीं है जिसके अंदर आत्मा का वास होता है।यदि हम देखें तो जीवन में कई समस्याएं आती हैं पर हम उनको हल करते हुए या दूसरा उपाय खोजते हुए आगे बड़ जाते हैं।समस्या छोटी और बड़ी हो सकती है पर उसका कोई हल नहीं ऐसी नहीं हो सकती।इसलिए केवल खुद को मजबूत तथा समर्थ रखते हुए सही समय का इंतजार कर सकते हैं।इस प्रकार समस्या का हल तो मिल ही जाता है।
जीवन की सौगात बहुत सुंदर है।उतने ही सुंदर हैं इसके अलग अलग पड़ाव जिसमें कोई यह नहीं कहता कि समस्या का समाधान आत्महत्या है।ऐसा ख्याल तो उसी के मन में आ सकता है जिसको या तो अकेलापन मिल जाए या फिर वो खुद को ही अंधकार के हवाले कर आत्मसमर्पण कर दे।लड़ने का हौसला और सकारात्मकता ही जीवन को उजाले की ओर लेकर जाने वाले मार्ग होते हैं।जिनमें जितना चलो जीवन के प्रति मोह उतना ही बड़ता चला जाता है।सशक्त होता चला जाता है।
आत्महत्या केवल एक प्रश्न है तमाम जुड़े हुए लोगों के लिए हल केवल जीना और जिन्दगी को संवारना ही है।इसलिए राह की अड़चनें कैसी भी हों बस लोगों से बातें करके अपने दिलों को खोल के जिंदगानी के सफ़र में अपनी सांसों का साथ निभाते हुए आगे बड़ते ही चले जाना है।अर्थात आत्महत्या से किसी भी समस्या का समाधान नहीं होता है।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
आतमहत्या से कभी किसी समस्या का समाधान सम्भव ही नही हैं पर जब कोई व्यक्ती किसी
समस्या में उलझ जाता हैं ओर उसे लगता हैं अब मेरे पास कोई रास्ता नही बचा हैं अब वह आत्महत्या समान कार्य करता हैं ओर सोचता होगा अब न रहेगा बास ओर न बजेगी बासुरी जब मैं ही नही रहुगा तो समस्या अपने आप समाप्त हो जायेगी पर ऐसा कुछ होता नही हैं हमारे हर अछ्छे बुरे कर्म का हिसाब हमारे पिछे हमारे उत्तर अधिकारी या पालक को भोगना पढता हैं तमाम तरह की समस्यायें उठ कर अपनों पर आकर लुमट जाती हैं हर अछ्छे ओर बुरे कर्मो का हिसाब फिर आत्महत्या करने वालो के उत्तर अधिकारी या पालक की जुमेदारी हो जाती हैं अतः यह सोचना की मेरे आत्महत्या करने के बाद समस्या समाप्त हो जायेगी सरासर गलत एव अप्राकृतिक अव्यवसारीक हैं।
- कुन्दन पाटिल
देवास - मध्य प्रदेश
क्या आत्महत्या से किसी समस्या का समाधान होता है? यह बात बिल्कुल ऐसी है कि कबूतर आंख बंद करके सोचे कि अब बिल्ली से बच जाऊंगा। नहीं जानता कि बचेगा तब जब प्रयास करें। आत्महत्या को समस्या का समाधान मानने वाले अपने पीछे वालों के लिए और समस्याएं बढ़ा देते हैं। हां,खुद चिरनिंद्रा में जाकर,क्या भोगते हैं ये तो वही जाने। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार तो आत्महंता की, आत्मा चैन नहीं पाती। यह भी एक तथ्य है कि आत्महत्या जीव की स्वाभाविक प्रवृत्ति नहीं होती। आत्महत्या का प्रयास करने वाले मैंने,मुझे बचा लो, की पुकार करते देखे हैं। यह सहज कार्य नहीं। विभिन्न घटनाओं की जांच के बाद पता चलता है कि हत्या को आत्महत्या का रुप दे दिया गया था। हमें बात करनी है समस्या से छुटकारे की तो आत्महत्या करने वाले का तो पता नहीं,क्योंकि किसी ने लौटकर बताया नहीं आज तक कि छुटकारा मिला या नहीं। हां उसके अपने परिवार के लिए समस्याएं बढ़ जरुर जाती है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
"आत्म " शब्द से स्वयं ,निज एवं व्यक्तिगत भाव जुड़ा रहता है । व्यक्ति की आत्मा उसका स्वयं ही उसे सुख-दुख एवं विभिन्न परिस्थितियों में बल प्रदान करता है और.व्यक्ति विषम परिस्थितियों में भी जीवन और सम्मान की रक्षा कर लेता है परंतु ' आत्मघात 'जिसे जघन्य पाप या कृत्य माना गया है, उसके पीछे व्यक्ति के साथ-साथ समाज का भी उतना ही उतरदायित्व है ।आत्महत्या या आत्मघात क्या है ? जिस शरीर एवं आत्मा को संवारने ,सजाने एवं उन्नत करने के लिए व्यक्ति अनेक मानसिक एवं सामाजिक कष्टों को सहता है स्वयं उसकी ही हत्या ? आत्मघात निश्चय ही अति आवेगपूर्ण क्षणों का निणर्यात्मक फैसला है ।
" आत्महत्या वैयक्तिक विघटन का दुखदायी व अपरिवर्तनशील अंतिम परिणाम है।यह व्यक्ति के दृष्टिकोणों में होने वाले इन उभरते हुए परिवर्तनों की अंतिम स्थिति है।जबकि व्यक्ति के मन में जीवन के प्रति आस्था के स्थान पर घृणा की भावना उत्पन्न हो जाती है।"
सिगमंड फ्रायड ने भी आत्महत्या को आक्रामक प्रकृति का रूप माना है ।
मानव समाज का एक प्रमुख घटक है।
समाज में होने वाले सभी अच्छे- बुरे बदलाव का उसपर परोक्ष -अपरोक्ष असर होता ही है। सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक कारणों के साथ आत्महत्या श्रेणी व वर्ग विशेष में भी अधिक होती है ।गाँवों की अपेक्षा शहरों में अधिक क्योंकि गाँवों की सामाजिकता मानव को रिश्तों में जोड़े रहती है जबकि शहर में व्यक्ति ,स्वयं के परिवार में भी ईकाई बनकर रहता है ।
आम व्यक्ति की अपेक्षा उच्च वर्ग ,बौद्धिक वर्ग, डाक्टर, इंजिनियर , वैज्ञानिक, व्यापारिक वर्ग अभिनेता ,मेंअधिक होती हैं क्योंकि उनका अह्म सर्वोपरि होता है । जरा सी भी असफलता वो सहन नहीं कर पाता हैं ।
अब जीवन को नये रूप में परिभाषित करें तो जी+वन । जीना उस वन में जहाँ हरे भरे पेड़ -पौधे, बड़े वृक्ष , सुंदर फल फूल ,कीट पतंगों के साथ काँटेदार वृक्ष ,जहरीले बेलें, खूंखार ,भयावह जानवर भी रहते हैं । मीठे पानी के झरने ही नहीं , गर्म हवा के थपेडों को हस कर सहते हुए यात्रा करनी होती है ।
हर व्यक्ति अपनी जीवन शैली ,आत्मशक्ति , सामंजस्य और संवेदनात्मक अनुभूतियों के अनुरूप जीना चाहता है । मानव यह जानता है कि ईश्वर भी जब मानव रूप में जन्म लेते हैं तो धरती पर अन्य सामान्य जीवों की तरह सुख -दुख ,आशा- निराशा, क्रोध प्रेम , हार -जीत सभी भावनाओं में से उलझते सुलझते ही जीना है ।
बस मन में विश्वास होना चाहिए कि अँधेरे के बाद रोशनी आएगी ही ।
मानव जीवन मूल्यवान है । किसी भी इंसान को बहुमूल्य जीवन का अंत करने का अधिकार नही है । जब कोई समस्या आती है तो हम सब जानते हैं कि उस का हल भी होता ही है ।
हर ताले की चाबी बनी ही है । जीवन में जब भी कठिनाई आए तब अपने भीतर की शक्ति के साथ पारिवारिक और अंतरंग मित्रों से बात चीत करनी चाहिए। मन के भीतर उठे तूफानों को बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए ।
कोई कठिनाई, कोई समस्या, कोई आपदा जीवन से बढ़ कर नही है ।आत्महत्या करना या उस के बारे में सोचना भी कायरता है । उस से समस्या हल नहीं होती पर ,आप के इस कृत्य के बाद अनेक ऐसे प्रश्न खड़े हो जाते हैं जो आप की सारी अच्छाइयों को भी कलंकित कर जाते हैं । लोग तो कान के कच्चे और फिसलने वाली ज़बान वाले होते हैं । आप मरने के बाद उनके अनगर्ल प्रश्नों का उतर नहीं दे सकते ।
आप की इस गल्ती का परिणाम आप के पीछे माता -पिता व परिवार जन जीवन भर भुगतते हैं ।
सफलता और असफलता दोनों को संतुलित करना कठिन है । बस जो इस का मंत्र जान गया वो कभी सफलता में हवा में नहीं उड़ता है और असफलता में दिमागी संतुलन नहीं खोता है । समस्या नहीं थी और आई। आई है तो जायेगी ही । आत्म हत्या किसी भी समस्या का हल हो ही नहीं सकता । आत्म मंथन ,आत्म चिंतन, आत्मीय मित्र यकिनन हल हैं
मौलिक और स्वरचित है
- ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
"बड़े भाग मानुष तनपावा, सुर दुर्लभ सद ग्रंथहि गावा l"
मनुष्य योनि में जन्म होना हमारे अनेकों पूर्व जन्मों के कर्मों का प्रतिफल है और यह मानव जन्म देवताओं को भी दुर्लभ है l भारतीय संस्कृति बड़ी अद्भुत होकर कुछ मामलों में तो बहुत ही व्यापक है l इसमें मानव के लिए चार पुरुषार्थ -धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष बताये गये हैं l इन्हें समझकर जीवन में अंगीकार कर लिया जाये तो जीवन सार्थक हो जाता है लेकिन आज का मानव जीवन में इन शब्दों को अंगीकार करना तो दूर की बात है उनके पास से नहीं निकलते, परिणाम है तनावग्रस्त जीवन व टूटते हुए रिश्तों के साथ हमारी विकृत मानसिकता और इसी मनःस्थिति में हमारे समक्ष कुछ प्रश्न आते है --
1. आनेवाले दिनों में जीवित रह सकना कैसे बन पड़ेगा l
2. विपन्न विग्रह के घटाटोपों से कैसे निपटा जायेगा l
3. इन दिनों अगणित संकटों व झंझटो का सामना हमें करना पड़ रहा है l यदि संकटों व समस्याओं पर मंथन कर हल निकालने की अपेक्षा आज मानव मौत को गले लगा रहा है l आपके माता पिता, परिवार, समाज के जीवन को नरक बना रहा है मेरे विचारों में आत्महत्या किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकता l प्रश्न यह है कि जीवन में विग्रह और संकट आते क्यों है?
1. अपव्यय इन दिनों चरम सीमा पर है l नशेबाजी, फैशन से फैशनपरस्ती, आभूषणों की सजधजता, खर्चीले विवाह, सामाजिक प्रथाएँ आदि ने हमारी आर्थिक कमर तोड़ कररख दी है l सादा जीवन उच्च विचार वाला उपक्रम अपनाने से इस दुखदायी दरिद्रता से आधा छुटकारा मिल जायेगा l
2. अमीरी जताने का उद्धत अहंकार यदि काबू में रह जाये तो इनमें खर्च होनेवाला पैसा और समय तथाकथित बड़प्पन का लबादा ओढ़ने में खत्म हो रहा है इसे सादगी से बचाकर संतोषी सदा सुखी बनकर जीवन जिया जाये तो समस्या ही पैदा नहीं होगी l युवा मन मौत के आगोश में नहीं जायेगा l
3. शिक्षा ही नहीं विद्या भी देय हमारी संस्थाएँ -आज शिक्षा में श्रम का अभाव, व्यवहारिक ज्ञान का अभाव, प्रमाण पत्र प्राप्त करने के बाद नौकरी न लगने पर तथा कथित शिक्षित लोग अपने व दूसरों के लिए भी समस्या बन जाते है l शारीरिक श्रम के कार्य करने में अपनी बेइज्जती समझते हैं और काम के अभाव में मानसिक दवाब आत्महत्या का कारण बन जाता है l शिक्षा को ज्ञान चक्षु की उपमा दी गई है इसके अभाव में व्यक्ति अन्धो के समतुल्य होकर आत्महत्या जैसे विनाशकारी कदम उठाता है l इसके पीछे हमारा भ्र्ष्ट चिंतन, दुष्ट आचरण ही प्रमुख रूपसे जिम्मेदार है l इन समस्याओं के निमंत्रण हेतु मानवीय गरिमा के अनुरूप विभूतियों का समावेश कर शिक्षा नहीं, विद्या के द्वारा हमारे जीवन में होना नितांत आवश्यक है l
4. आज आत्मविस्मृति जिसे हम डिप्रेशन कहते हैं यह मनुष्यों को नर -पशु, वन -मानुष के सम्बोधन देती है l इन सम्बोधनों एवं आत्महत्या जैसे कदमों से दूर रहने के लिए अपने स्तर के गुण, कर्म, स्वभाव के संबंध में बढ़ती जानेवाली जागरूकता को अपनाना होगा l सभ्यता शरीर को, संस्कार मन को प्रभावित करते हैं, परिष्कृत करते हैं l आज हमारे समाज में यह पक्ष उपेक्षित है l आत्महत्या जैसी भीषण घटनाओं को रोकने के लिए हमें खड़ा होना ही होगा l
चलते चलते ----
क्यों सोचता है मरने की, मुसीबतें सबके साथ होती हैं
अपने आप को पहचानकर ही, नई दास्ताँन लिखनी होती है l
ऐ वंदे !जिंदगी जीने का हुनर, थोड़ा उनसे भी सीख ले
जिनके पास देखने को आँखे भी नहीं होती हैं ll
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
आत्महत्या से समस्या का समाधान कतई नहीं होता बल्कि कायरता प्रमाणित हो जाती है। दूसरी ओर सनातन धर्मग्रंथ गीता के उपदेशानुसार आत्मा तो अमर है। फिर उसकी हत्या या आत्महत्या कैसे हो सकती है?
दृष्टिकोण को थोड़ा सा घुमाएं तो आत्मा के चोले रूपी शरीर की हत्या या आत्महत्या हो सकती है। जिसे हम आत्महत्या कहते हैं।
प्रश्नचिन्ह गम्भीर है कि इतने अच्छे चोले की स्वहत्या करने पर विवश क्यों हो जाते हैं? क्यों प्रतिदिन यह समाचार प्रकाशित/प्रसारित होते हैं कि किसान, डाक्टर, जज, जज के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, धनवान एवं गरीब, बेरोजगार, फिल्मी सितारे इत्यादि-इत्यादि ने आत्महत्या कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर दी? उन्हें क्या-क्या तनाव थे और उन तनावों के आधार क्या थे? ऐसी क्या विवशता या समस्या थी? जिसका सामना करने से अधिक उसने कायरता का रास्ता चुना? उसके उपरांत मीडिया जो पानी पी-पीकर आत्महत्या के समाचार प्रकाशित/प्रसारित करता है क्या उसने आत्मघाती की समस्यायों पर तनिक सा भी ध्यान दिया था?उदाहरणार्थ जैसे एक किसान निम्नलिखित प्रार्थना-पत्र पर प्रार्थना-पत्र दे रहा है और अफसर अफसरशाही से बाज़ नहीं आ रहे। तो बताईए इन हालातों का जिम्मेदार कौन है?
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
इस विषय पर गौर करें तो यह बात पूरी तरह से समझ में आती है कि आत्महत्या की राह चुनने वाले लोग प्राया अवसाद से घिरे रहते हैं |वे प्राय:दूरी बनाकर रहते हैं इसका परिणाम यह होता है कि उनकी जिन्दगी में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिसका वे सामना नहीं कर सकते |अपने परिवार से,अपने परिजनों से दूर होने के कारण वे अकेले पड़ जाते हैं और उनमें बिखराव की स्थिति पैदा हो जाती है|मोबाइल और टीवी के कारण पारस्परिक बातचीत कम होती है और किसी के पास किसी से बात करने का समय नहीं होता||
आत्महत्या जैसा शब्द हमारे देश हमारे समाज में इस प्रकार घर कर चुका है कि हर व्यक्ति भयभीत प्रतीत होता है| आज हर कोई अपनी इच्छा को उसी समय पूरा करना चाहता है| जो कि संभव नहीं है| वह कल की प्रतीक्षा करना ही नहीं चाहता |क्योंकि इसके लिए उससे परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा, चुनौतियां स्वीकार करनी पड़ेगी लेकिन अवसाद से भरा व्यक्ति अपनी समस्याओं से जूझने के लिए कतई तैयार नहीं|वह समझता है कि जीवन का अंत करने में ही उनकी समस्या का समाधान है|
सबके जीवन में ऐसा समय आता है जब लगता है ऐसे कि सब कुछ समाप्त हो गया है |लेकिन इसका अर्थ कदापि नहीं कि जीवन को समाप्त कर दिया जाए|प्राय: हम अपने दुखों को दूसरों के दुखों से बड़ा समझते हैं |अपनी समस्याओं को बड़ा करके देखते हैं| लेकिन जिंदगी तो कई बार हमारी परीक्षा लेती है|और अगर अपने भीतर उत्साह को अनुभव करना छोड़ दिया तो हम धीरे धीरे आत्महत्या की ओर ही बढ़ते चले जाते हैं|सोचना तो यह चाहिए अगर डूबते को तिनके का सहारा हो सकता है तो हम अंतिम कोशिश किए बिनाअपनी मृत्यु को समय से पहले गले क्यों लगाएं|
- चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकुला - हरियाणा
आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं अपितु पलायन और कायरता है । ये ऐसा कदम है जो अपनों के लिए ऐसा दर्द छोड़ जाता है कि वे जिन्दा होकर भी मृतप्राय हो जाते हैं ।
संवादहीनता इतनी बढ़ गई है कि अब हर घर में पड़ौसी नज़र आते हैं । रिश्ते वेंटिलेटर पर आ गये हैं .......छोटी-छोटी बातें विवाद और हिंसा का रूप ले लेती हैं ..........अकेलापन हावी ......आगे बढ़ने की हौड़ लगी है .......सहनशक्ति और धैर्य नाममात्र के रह गए हैं ।
सभी जानते हैं कि-
जीवन एक संघर्ष है
अतीत से वर्तमान तक
जीवन से मृत्यु तक ....
खाली दिमाग शैतान का घर होता है अतः जीवन में व्यस्तता बहुत जरूरी है ।
दिमाग में आइस और मुंह में सुगर रख कर रिश्तों में मिठास लाई जा सकती है । मन के दर्द ......समस्याओं को लिख कर मन हलका किया जा सकता है ।
मन के भीतर युद्ध मंत्री के साथ-साथ एक शांति मंत्री का होना भी अनिवार्य है । सकारात्मक सोच ......धैर्य .....आत्मविश्वास .......यह समय भी चला जाएगा जैसी सोच ......ध्यान .....प्राणायाम .....हास्योग......अध्यात्म आदि के द्वारा बहुत हद तक आत्महत्या जैसे जघन्य कदमों को रोका जा सकता है क्योंकि ऐसा कार्य समस्याओं का समाधान नहीं है ।
- बसन्ती पंवार
जोधपुर - राजस्थान
आत्महत्या से समस्या का समाधान हो ही नहीं सकता!
जीवन जीने का नाम है ! जीवन में कई उतार चढ़ाव आते हैं इस धूप-छांव से कैसे निकलना है यह बचपन में हमारी परवरिश के आधार पर भी होती है! बच्चे ने बचपन में केवल छांव ही देखी है वह कभी ताप सहन नहीं कर सकता! कहने का तात्पर्य है कि जीवन में यदि संघर्ष करना पड़े अथवा दुख आ जाए वह उसका सामना नहीं कर पाता! अपनी इस नाकामयाबी से उसमे नकारात्मक विचार पनपने लगते हैं और धीरे धीरे वह अवसाद में चला जाता है !
घर का वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है!
बहुत लोग अपनी जिम्मेदारी को बोझ समझकर आत्महत्या कर संघर्ष से डरकर भागते हैं !
आत्महत्या का विचार तुरंत नहीं आता या तो बचपन में कुछ प्रोब्लम रही हो जो समझ न आई हो जैसे अलग थलग रहना ,किसी से कुछ ना कहना ,खास मित्र का न होना ,अथवा हाइपरटेक्स्ट का होना,घर पर अलग व्यवहार का होना बाहर अलग होना, दिमाग में डबल विचार घूमना , आदि अनेक लक्षण हैं जिसकी भनक नहीं पड़ती उम्र के साथ इसका दिखना!
आदमी के दिमाग में एक साथ बहुत कुछ चलता है !उसे कैसे ग्रहण करना है यह अपनी सोच पर है! अवसाद मे आना एक बीमारी ही है!
आत्महत्या कर वह स्वयं तो मुक्त हो जाता है किंतु पीछे समस्या छोड़ जाता है!
- चंद्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
आत्म हत्या किसी भी समस्या का समाधान कतई नहीं हो सकता है ।यह हम सब जानते हैं। लेकिन आजकल आत्महत्या का प्रचलन बहुत बढ़ गया है समाज में ,जो काफ़ी चिंताजनक और सोचनीय है । कुछ क्षणिक आवेश, अवसाद में कोई भी यह ग़लत क़दम उठा लेता है ।काश आत्म हत्या कर ने के पहले लोग लेशमात्र भी इसका दुष्परिणाम सोचें तो इतना ग़लत क़दम कभी ना उठाए।हर समस्या का समाधान अवश्य ही होता है , लेकिन इसके लिए सहनशीलता, धैर्य ,संयम ,विवेक की अतिआवश्यकता होती है।जो शायद हर किसी में नहीं होती और लोग इतना ग़लत क़दम उठा लेते हैं ।आज कोई भी वर्ग या उम्र का व्यक्ति हो सब ऐसा ग़लत क़दम उठा रहें हैं। किशोर वर्ग, मध्य वर्ग या बुजुर्ग सभी इस बुरी और ग़लत क़दम की ओर अग्रसर हो रहें हैं । लोगों की ख्वाहिश बढ़ती जा रही हैं ।कभी_ कभार उसकी पूर्ति में अगर व्यवधान उत्पन्न हो गया तो बस आत्महत्या हीं लोग इसका निदान मानते हैं ।कभी _कभी सबने सुना होगा छोटी सी किसी बात पर मां या पिता ने कुछ कह दिया और बेटा या बेटी तुरंत जा कर आत्महत्या कर लेते हैं । पति-पत्नी में किसी क्षणिक वाद_विवाद में भी ऐसी आत्महत्या वाली घटना सुनी जाती रही है ।कहने का मतलब ये है कि अब लोगों की सहनशीलता बिल्कुल समाप्त होती जा रही है ,साथ हीं जरा भी रोक _टोक लोगों को अब नहीं पसंद है क्योंकि ऐसा कारण भी सुनने को बराबर मिलता है ऐसी घटनाओं के बाद ।हमने जब मानव रूप में जन्म लिया है तो यह सुख _ दुःख की छांव_धूप तो आजीवन साथ हीं साथ निरंतर चलती हीं रहेगी फिर इससे कैसा घबराना, और भागना । लेकिन नहीं मालूम व्यक्ति क्षण भर में किस क़दर उद्वेलित होकर ऐसा ग़लत क़दम उठा लेता है और निष्कर्ष और निदान उसे आत्महत्या हीं कर लेना सही लगता है। पुराने जमाने में शायद_ संयोग से विरले आत्महत्या की घटनाएं सुनने को मिलती थीं , लेकिन आजकल आज-कल इस घटना में प्रचुर इज़ाफ़ा हुआ है। व्यक्ति को अपनी सोच बदेलने की जरूरत है । ईश्वर द्वारा प्रदत इस खुबसूरत जिंदगी का भरपूर आनंद ले और इसका सदुपयोग करें दुरुपयोग से बचना चाहिए। सदैव इसका ख्याल रखें व्यक्ति , जिंदगी मिलेगी ना दोबारा ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
आज के समाज में युवा आत्महत्या ज्यादा कर रहे हैं । कारण सिर्फ तनाव है । आजका युवा अपने आपको इतना अकेला मानता है कि अपना दुख दर्द किसी को बाँट नहीं पा रहा है । उसे जो लक्ष्य नहीं मिला तो , या परीक्षा में फेल हो गया तो निराशा से साथ रहती है ।समझता है कि बस सब कुछ खत्म हो गया। दूसरा रास्ता उसे नजर नहीं आता है ।माँ - बाप का पढ़ाई , रोजगार के लिए दवाब होने की वजह से , जीवन में प्यार की कमी होना , मन मुताबिक आकांक्षाओं का पूरा नहीं होना , जिससे मन बहुत अशांत रहता है आत्महत्या कर लेना ही उचित समझता है ।
कितनी बड़ी -बड़ी नामी युवा शख्शियत ने निराशा से आत्महत्या का दामन हाथ में थामा । निराशा , अवसाद जब अति कर देते हैं तब आत्महत्या को गले लगाते हैं
हाल ही में 34 वर्षीय सुशांत राजपूत ने अवसाद पीड़ित होने पर आत्महत्या की । जबकि यश , कीर्ति , धन संपदा सब कुछ था । किस कारण यह अवसाद पैदा हुआ । वे नकारात्मक विचार उठते , जागते दिमाग में घूमते रहते हैं । चित्त ,मन नकारात्मक हो जाता है । हमारे हार्मोन्स में तेजी से परिवर्तन आते हैं हमारी अन्तरस्रावी ग्रंथियाँ में रासायनिक परिवर्तन आते हैं । सोचने समझने की शक्ति नकारात्मक हो जाती है । तब व्यक्ति मौत को गले लगाता है । मौत ही उन्हें अपनी मित्र लगती है ।
अवसादित व्यक्ति को डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए क्योंकि उसकी मानसिक अवस्था नकारात्मकता के स्तर पर पहुँच जाती है । शारीरिक , मानसिक बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं । शरीर में रासायनिक क्रियाओं में असंतुलन हो जाता है । डॉक्टर के परीक्षण , चिकित्सा पद्धति , सलाह , दवाइयों से इनका उपचार संभव है ।
आत्महत्या तो समस्या का समाधान नहीं है । ये लोग परिवार , समाज को दुख , पीड़ा से भर देते हैं । ऐसे तनाव में रहनेवाले व्यक्ति के लिए परिवार का साथ होना बेहद जरूरी है । अकेलापन हावी नहीं रहना चाहिए ।
उसके दुखों को मन की बात सुननेवाला करीबी , विश्वास का व्यक्ति उसके पास हो ।
उसके व्यक्ति का ध्यान रखनेवाला कोई आत्मीय उसके साथ रहना चाहिए ।
कोरोना के काल में लाकडाउन होने से लोगों की सामाजिकता खत्म हुई , काम चौपट हुआ है व्यक्ति अकेला महसूस करता है । लोगों का किनारा करना आदि से व्यक्ति बिल्कुल अकेला महसूस करता है । तब आत्महत्या की स्थिति पैदा होती है ।
मन अति संवेदनशील हो जाता है । समस्याओं के बारे में सोचते हैं , जबकि नकारात्मकता को साकारत्मकता के तरीके से समस्या का हल निकालें । माता -पिता की जिम्मेदारी है कि बच्चों के संस्कारों में हर परिस्थिति से लड़ने की शिक्षा देनी चाहिए ।
आशा के दीप की प्रेरणात्मक उजास उसके जीवन में भरना होगा । किसी के अँधेरे निराश जीवन में रोशनी भरे और आशा बनाए रखने के लिए यह आशा का दीपक दसों दिशाओं को प्रकाशित करें ।
- डॉ मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
आत्महत्या से किसी समस्या का समाधान नहीं होता बल्कि आत्महत्या करने वाला व्यक्ति समय से पहले अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेता है। इससे अनेक तरह की कठिनाई उत्पन्न हो जाती है। वह व्यक्ति यदि शादी सुदा है तो कई जिंदगियां एक साथ तबाह कर जाता है। मनुष्य को आत्महत्या जैसे कदम नहीं उठाने चाहिए यह एक जघन्य पाप है।लोग क्यों करते हैं आत्महत्या यह चिंतन का विषय है। अपने आसपास या परिवार का कोई सदस्य यदि अलग थलग गुमसुम उदास रहता हो तो उस व्यक्ति के ऊपर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। दुनिया में आत्महत्या की मुख्य वजह ये कि लोग अवसाद या तनाव में चले जाते हैं। आत्महत्या की बजाय तनाव से मुक्ति के उपाय ढूंढे जाने चाहिए। कोई किसान या असाधारण आदमी मजबूरी में आत्महत्या करता है। वह भी तब जब सामने पेट भरने की समस्या हो। करोड़पति लोग आत्महत्या क्यों करते हैं यह दिमाग से परे की बात है।जिनको भगवान ने सबकुछ दिया है। अभी एक दिन पूर्व ही फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या कर ली। इसका मुख्य वजह हो सकता है उनके प्लेटफार्म पर उनको काम नहीं मिल पा रहा हो अथवा कोई पारिवारिक कलह हो। कोई इस पर कुछ कह नहीं सकता। चुकी हमलोग वस्तुस्थिति से परिचित नहीं हैं। कोई न कोई वजह अवश्य रहा होगा। वैसे कुछ भी कहें यह अच्छा नहीं हुआ जब प्रेरणा पुष्प ही मुरझा जाए तो खिलने वाले पुष्पों का क्या होगा। आजकल बहुत से लेखक भी कहते हैं कि मैं अवसाद में हूॅं। आत्महत्या की सोचने वाले हर उस शख्स के लिए मैं कहूंगा कि जीवन में एक बार यदि पढे लिखे हैं तो डेल कार्नेगी की किताब चिंता छोड़ो सुख से जियो अवश्य पढ़ें यह आपके जीवन जीने का नजरिया बदल देगा। कम लिखना और ज्यादा समझना चाहिए।
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
गुड़गांव - हरियाणा
नहीं आत्महत्या कोई समाधान नहीं है। जीवन तो संघर्षों का नाम है यहां दुख सुख तो आते रहते हैं परंतु रात के बाद दिन अवश्य आता है ये सोचना चाहिए। इसके लिए धैर्य और संयम की आवश्यकता है। आत्महत्या क्षणिक आवेश का फ़ल है जब व्यक्ति जीवन से निराश होकर ऐसा क़दम उठा लेता है।
आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं।हर उम्र के लोग ऐसा करते हैं।कारण जो भी हो लेकिन समाधान आत्महत्या नहीं है। निराशा हो तो भी सोच साकारात्मक होनी चाहिए अपने आसपास के लोगों, परिवार के सदस्यों, दोस्तों आदि से अपनी समस्या बतानी चाहिए। परिवार के लोगों को भी ऐसे सदस्य के बदलते स्वभाव पर ध्यान देना चाहिए।
आजकल अधिकतर परिवारों में बच्चे की परवरिश इस तरह होती है कि उसे कहीं गर्म हवा भी न लग जाए। फूलों की सेज बिछी रहती है। परिवार में कोई अभाव या समस्या हो उसे दूर ही रखा जाता है।ऐसे में बच्चे जिंदगी के दुखों और संघर्षों को नहीं समझ पाते और थोड़ा भी कष्ट मिलता है तो विचलित हो कर गलत क़दम उठा कर जीवन समाप्त कर लेते हैं। बच्चों को जीवन संघर्षों की शिक्षा देनी चाहिए। परिवार में भी और स्कूलों में भी।
मरना आसान नहीं पर आत्महत्या समाधान नहीं।।
- डॉ सुरिन्दर कौर नीलम
राँची - झारखंड
समस्या का समाधान तो समस्या में ही छिपा होता है, जरूरत है कि उस समाधान तक हमारी नजरें पहुँचे, हम उस समाधान की ओर कदम बढ़ायें, वहाँ तक पहुँचने पर समाधान को गले लगायें और फिर उस समाधान को अपना लें। आत्महत्या तो कोई समाधान हो ही नहीं सकता
समस्या का समाधान तो समस्या में ही छिपा होता है, जरूरत है कि उस समाधान तक हमारी नजरें पहुँचे, हम उस समाधान की ओर कदम बढ़ायें, वहाँ तक पहुँचने पर समाधान को गले लगायें और फिर उस समाधान को अपना लें। आत्महत्या तो कोई समाधान हो ही नहीं सकता
- दर्शना जैन
खंडवा - मध्यप्रदेश
" मेरी दृष्टि में " आत्महत्या अकेलेपन का परिणाम है । जो मानसिक तौर पर हार मान लेते हैं । और जीवन को बोझ समझने लगते हैं । वह अपने परिवार व दोस्तों को भी दुश्मनों की तरह समझने लगते हैं । ऐसे स्थिति मे मनोवैज्ञानिक डाक्टर से सलाह अवश्य लेनी चाहिए । इससे लाभ अवश्य होगा ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र
आदरणीय अंत जो विचार आपने व्यक्त किया है वह चिंतन योग्य सभी प्रकाशित रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएॅं बहुत सुंदर अंक।
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