क्या कोरोना से नागरिकों के अधिकार सीमित हो रहे हैं ?

कोरोना वायरस ने लोगों का सभी कुछ छीन लिया है । रोजगार तक चलें गये हैं । फिर भी कोई दिशा नज़र नहीं आ रही है । रही बात अधिकार की है । यही " आज की चर्चा "  का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
सब कुछ सुमित हो गया है रहन सहन , खानपान, दिखावा बंद हो गया ,फिजूल खर्ची बंद !
हमें कब तक ऐसे रहना है कुछ कहां नही जा सकता इस लिए लोगो के हर काम सुमित हो गया।है , 
कोरोना वैश्विक महामारी के इस माहौल में हमारे संविधान में दिए गए मूल कर्तव्य का हमें स्मरण करना चाहिए। यह समय है जब प्रत्येक नागरिक को अपने नागरिक कर्तव्य को  जागृत कर एक-दूसरे का पूरक बनकर सामने आएं। ‘सहयोग’ शब्द की परिभाषा को परिभाषित करने का हमें ऐतिहासिक अवसर मिला है। आज अधिकारों की कम, कर्तव्यों की चर्चा अधिक करनी है। प्रत्येक राष्ट्र के जीवन-काल में ऐसा अवसर आता ही है। हम जानते हैं रोम, यूनान मिट गए, लेकिन वर्षों की गुलामी के बाद भी हम नहीं मिटे क्योंकि हमारी संस्कृति का मूल आधार है ‘मानवता’। जैसे ही हम यह कहते हैं, उसके मूल में कर्तव्य की आराधना और अर्चना शुरू हो जाती है। प्राचीन काल से ही भारत में लोकतंत्र की गौरवशाली परंपरा विद्यमान थी। इतिहासकारों की मानें तो प्राचीन भारत में गणतंत्र की अवधारणा रोम, यूनान की गणतंत्र से भी पहले की है। इसी प्राचीन अवधारणा में भारतीय लोकतंत्र के वर्तमान स्वरूप की विधा छिपी हुई है।
प्राचीन काल से ही भारत में कर्तव्यों के निर्वहन की परंपरा रही है, जहां व्यक्ति के ‘कर्तव्यों’ पर ज़ोर दिया जाता रहा है। प्राचीन ग्रन्थ रामायण और भगवद्गीता भी लोगों को अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिये प्रेरित करता है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि व्यक्ति को फल की अपेक्षा के बिना अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिये। ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ हम बापू (गांधी जी) की 150वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। उनका कहना था कि "हमारे अधिकारों का सही स्रोत हमारे कर्तव्य होते हैं और यदि हम अपने कर्तव्यों का सही ढंग से निर्वाह करेंगे तो हमें अधिकार मांगने की आवश्यकता नहीं होगी। यहां एक प्रसंग याद आता है एक पति-पत्नी के दो पुत्रियां  और दो पुत्र थे। परिवार में पिता की आमदनी बहुत कम थी। रात को सोते समय पति- पत्नी अपनी पुत्री जो बड़ी हो रही थी, उसके विवाह के विचार में डूबे रहते थे।  आपस में चर्चा करते थे कि बड़ी बेटी विवाह में कर्ज में डूब जायेंगे, बच्चे पढ़ नहीं पायेंगे, और आर्थिक स्थिति बिगड़ जाएगी। एक रात यह चर्चा बड़ी बिटिया ने सुन लिया और सोच में पड़ गई। मां से कहा, मेरे विवाह की चिंता मत करो
तो यह भावना सहयोग की करोना काल में देखने में आई 
और सब को सीमित दायरे में रहने की आदत आ हो गई है ! जीने की कितनी 
जरुरत है ! जीवन के लिऐ क्या आवश्यकता है वस उतना ही खर्च करे बाकी शो।बाजीसब बंद ! 
- आश्विन पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
पूरी दुनिया को हिलाने वाला कोरोना वायरस अब नागरिकों के अधिकार को भी नही छोड़ रहा है। जिसकी बजह से लोग अपने अधिकार का भी उपयोग और प्रयोग नही कर पा रहे है। इनके अधिकार का ज्यादातर हिस्सा नही मिल पा रहा है।  नागरिकों के ज्यादातर अधिकारों को शासन प्रशासन ने अपने कब्जे में ले रखा है।अब जब तक कोरोना वायरस का अंत नही हो जाता है तब ज्यादातर अधिकार सरकार के पास रहेगा। मेरा व्यक्तिगत भी मानना है कि ज्यादातर लोग अपने अधिकार का गलत फायदा उठाते है। और नियमो की धज्जियां खुलकर उड़ाते है। नियम कानून को तोड़ने के मामले में शायद हमारा देश प्रथम है। इसके हिसाब से अभी ज्यादातर अधिकार सरकार अपने पास रखें ताकि लोग डरकर ही सही मगर नियम का पालन करते हुए अपने अधिकार का उपयोग करेंगे।मतलब स्थिति साफ है कि कोरोना वायरस को देखते हुए और  लोगो के बराबर नियम का पालन न करने के कारण नागरिकों के अधिकार सीमित हो रहे है।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
इस प्रकृति में खुली आजादी से घूमने वाला मनुष्य , अब कुछ समय से बंधनो में बंध गया है । जिसके अधिकार सीमित कर दिए गए है । पिछले एक लंबे समय से कोरोना महामारी के चलते मनुष्य घरों में ही बढ़ कर रह गया है , जिसे न कुछ काम करने की अनुमति है , न कहीं आने जाने की और तो ओर न ही किसी से मिलने की । यहां तक कि यदि वह स्वयम को अपनो से भी अलग रखता है अकेला ही रहे तो ओर अच्छा बताया जा रहा है ।
जब देश के नागरिक कहि आ जा न सकते हो , किसी से मिल जुल न सकते हो और उनका कारोबार भी दिशानिर्देशों का पालन करते हुए कभी चले कभी न चलता हो । जिस नागरिक का जीवन सरकार के दिशा निर्देशों पर क्या करें अथवा क्या न करें के माध्यम से हर समय डर डर में गुजर रहा हो वहां नागरिको के अधिकारी सीमित नही बल्कि ऐसा प्रतीत होने लगता है कि उसके अधिकार सस्पेंड कर दिये गए हो / छीन लिए गए हो ।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
जीवन परिवर्तनशील है। यह परिवर्तन चाहे किसी और वजह से हो या फिर कोरोना के कारण से। इस परिवर्तन की प्रक्रिया के तहत ही कोरोना के कारण नागरिकों के कर्तव्य और अधिकार दोनों ही सीमित हो रहे हैं। कोरोना के कारण नागरिकों के व्यक्तिगत, पारस्परिक, सामाजिक, आर्थिक, व्यवसायिक अधिकार सीमित हो रहे हैं। चूंकि यहां प्रश्न अधिकारों के सीमित होने का है तो प्रत्यक्ष है कि सर्वप्रथम नागरिकों का स्वच्छन्द विचरण का अधिकार प्रभावित हुआ है। रोजगार का अधिकार छिन्न-भिन्न हो चुका है। व्यवसायिक रूप से सीमायें निर्धारित हो चुकी हैं।
चिकित्सा, शिक्षा का अधिकार कोरोना की वजह से बाधक हो चुका है। धार्मिक गतिविधियों में संलग्न रहने के अधिकार पर नियमों का पहरा लग चुका है। 
मेरे विचार से अधिकारों की यह सीमितता कोरोना काल तक ही है और वर्तमान समय को देखते हुए यह उचित ही नहीं आवश्यक भी है। 
मैं आशान्वित हूं कि निश्चित रूप से कोरोना का आतंक शीघ्र ही समाप्त होगा और कोरोना की वजह से नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सीमितता समाप्त होगी और नागरिकों के अधिकार कोरोना के प्रतिबन्धों से मुक्त होगें। 
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
कोरोना के कारण आज जीवन अस्त व्यस्त हो गया है।सभी और कोहराम मचा हुआ है।लोग स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।बेरोजगारी बढ़ती ही जा रही है।
     हां..... यह सत्य है कि वैश्विक महामारी के कारण नागरिकों के अधिकार सीमित होते जा रहे हैं।भोजन जैसी मूल आवश्यकता को भी पूरा करने के लिए आज मानव चिंतित है। न जाने यह प्राण घातक महामारी अपने प्रकोप से कितने ही अधिकारों का हनन करेगी।समय का यह कुचक्र शीघ्र ही दुख से सुख की लहर लेकर आए और लोग अपने जीवन को पुनः कोरोना रहित होकर अपने सभी अधिकारों के साथ सुरक्षित रहें।ऐसी मंगल कामनाओं सहित
- डॉ. विभा जोशी (विभूति)
दिल्ली
     लाँकडाऊन के पूर्व आमजन स्वतन्त्रता पूर्वक जीवन यापन कर रहे थे। उसके बाद सभी अपने स्तर पर विभिन्न प्रकार के कार्यों को सीमित संसाधनों के बीच जीवन को करने में विवश हो गये। शादी-विवाह, अंत्येष्टि, दूरदराज अंचलों में यात्राएं, खान-पान-रीति-रिवाज, अन्य समारोह  आदि संकुचित हो गया। सामान्यतः बीमारियों से ग्रसित होकर भी अस्पतालों में जाने को डरने लगे। आगामी माहों से शिक्षण-प्रशिक्षण भी प्रारंभ हो पायेगा की नहीं, कहा नहीं जा सकता हैं। प्रतिदिन स्थितियां अनियंत्रित होते जा रही हैं। आमतौर आमजन स्वतंत्रता पूर्वक रहना चाहता हैं। जो परिवार पर्यटकों के शौकीन थे, वे एक जगहों पर केन्द्रित हो कर रह गये हैं। घर बहार की खरीददारी, धार्मिक अनुष्ठान आदियों में तरह-तरह की अनेकों कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि धीरे-धीरे भविष्य में और नागरिकों के अधिकार भी सीमित होने की संभावनाएं प्रतीत होती हैं। ऐसा न अधिकारों का पूर्णतः हनन न हो जायें?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
 बालाघाट - मध्यप्रदेश
आज की चर्चा के माध्यम से -"एक पहल करें, एक दूसरों के अधिकारों को संरक्षित करने की, एक दूसरे के विचारों को समझने और सहभागिता की एक पहल विस्तृत सोच की ओर स्वयमेव -संकुचन से परे होकर करें l 
            मानव मूल्यों और मानव अधिकारों का घनिष्ठ संबंध है l मानव अधिकार संविधान देता है और उनका संरक्षण मानव मूल्य करते हैं l यह विडंबना ही कहूँगी कि आज दोनों ही कसौटी पर खरे नहीं उतर रहे हैं l ऊपर से कोरोना संक्रमण के चलते नागरिक अधिकार सीमित हो रहे हैं l 
              यदि हमारे मौलिक अधिकारों का हनन होता है तो अनुच्छेद 32 के द्वारा हम सुप्रीम कोर्ट में जा सकते हैं लेकिन इस कोरोना वायरस के खिलाफ भगवान की अदालत में भी नहीं जा सकते l उन्होंने भी अपने तीन माह से द्वार बंद कर रखें हैं l 
    जाये तो जाये कहां, समझेगा कोरोना नहीं यहाँ 
     दर्द भरे दिल की दुआ........ जाये तो जाये कहाँ l
                     लॉक डाउन के कारण सभी नागरिक घरों में बंद हो गये , उद्योग धंधे ही नहीं सब कुछ थम गया है l लेकिन लोगों का जीवन बचाना महत्वपूर्ण हो गया है तदर्थ क़ानून तोड़ने वालों को 10,000/=रूपये जुर्माना व दो वर्ष की सजा का प्रावधान नए महामारी अध्यादेश के जरिये किया गया है l बिना अनुमति के सार्वजनिक समारोह, धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन आदि गतिविधियों  पर पाबंदी लगाई गई है l सवाल सजा या उसके कम या अधिक का नहीं है वरन संक्रमण से आमजन को बचाने का
 है l कोरोना की खास विशेषता यह है कि यह हाथ मिलाने वाले को तुरंत अपने आगोश में ले लेता है l ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग ज्यादा जरूरी है l नागरिकों के अधिकार सीमित होने से अनुशासन कायम करना थोड़ा आसान हो गया है l संक्रामक रोग अधिनियम 1957 में कोविड जैसी महामारियों को रोकने के उपाय नहीं थे l विश्व में यह बीमारी पहली बार आई है लेकिन नए अध्यादेश का यह अर्थ नहीं कि सरकार दण्डात्मकता में विश्वास रख रही है l इसके पीछे "स्टे होम -स्टे सेफ "का सिद्धांत काम कर रहा है l हमें प्रोटोकॉल की पालना करनी चाहिए l एक जरा सी चूक दावानल का रूप ले सकती है l आज सेनेटाइजर और हैंड वाश हर घर की पहली आवश्यकता बन गई है l कोरोना के अनुभव और भयावहता को देखते हमें अधिकार सीमित होने का मलाल नहीं करना चाहिए l सोशल मीडिया की गतिविधि को भी सीमित कर पाबंदियाँ लगाई गई हैं l हमें सीमित अधिकारों में भी वृहद कर्तव्य की पालना करने के लिए ततपर रहना होगा l मानव जीवन को बचाना है l 
                           चलते चलते ----
       भावों को शब्दों में पिरोकर छंद लिख रही हूँ 
       मन में उतपन्न विचारों से ये द्व्न्द लिख रही हूँ 
       कर्तव्यहीनता के माहौल से कर्तव्य निर्वहन सीख रही हूँ 
       कर्तव्य रूढ़ हूँ, कर्तव्य विमुख न हो जाऊं 
       कर्तव्य समिधा बन, कर्तव्य हवन पा जाऊं 
       कर्तव्य परायणी बनके मैं कृतज्ञ हो जाऊँ l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
  यह एक बड़ा ही विचारणीय प्रश्न है कि कोरोना के कारण नागरिकों के कौन से अधिकार सीमित हुए है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि मूल संविधान में भारत के नागरिकों को सात प्रकार के अधिकार प्राप्त थे ।1- समता या समानता का अधिकार 2- स्वतंत्रता का अधिकार 3- शोषण के  विरुद्ध अधिकार 4-  धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार  5- संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार 6-संवैधानिक अधिकार । सातवां अधिकार था संपत्ति का अधिकार जिसे  300(ए)  के अंतर्गत कानूनी अधिकार के रूप में  परिवर्तित कर दिया गया है ।वर्तमान समय में कोरोना के कारण हमारी आने -जाने की स्वतंत्रता का अधिकार सीमित हुआ है। धार्मिक स्वतंत्रता पर भी प्रभाव पड़ा है। आज हम अपनी मर्जी से किसी भी धार्मिक स्थल,मंदिर, मस्जिद या गुरूद्वारे  पर आ-जा नहीं सकते हैं ।इसके अलावा अन्य अधिकारों पर भी थोड़ा बहुत अंकुश आया है और ऐसा  नागरिकों के संक्रमण से बचाव के लिए किया गया है । यदि इन अधिकारों को सीमित नहीं किया जाता तो निश्चय ही  कोरोना संक्रमण पर  नियंत्रण करना सरकार के लिए बहुत मुश्किल होता। इन स्थितियों को देखते हुए हमारे अधिकार  सीमित किये गये हैं और हम इन अधिकारों का कोरोना पूर्व की भांति  आनंद नहीं ले सकते हैं।
- डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम '
दतिया - मध्य प्रदेश
 आज चार महीनों से हर तरफ कोरोना की चर्चाएं हो रही हैं। पूरे विश्व में आज सभी जगह यही चर्चा का विषय बन चुका है।क्षेत्र चाहे कोई भी हो।चाहे  राजनैतिक हो, सामाजिक हो,व्यवसायिक या फिर मानव अधिकारों की बात हो।आज इस कोरोना महामारी ने सब भेद मिटाकर समानता के अधिकार सभी नागरिकों के लिए बना दिए हैं। राजा हो या रंक सब एक ही पटरी पर चल रहे हैं। सभी की इच्छा और ख्वाहिशों पर  ताले लग चुके हैं।सभी अपने सीमित दायरों में रहकर कार्य कर रहे हैं। इससे प्रत्येक व्यक्ति को एक सबक जरूर मिला होगा। की सीमित संसाधनों याअधिकारों में भी सभी अपना जीवन आसानी से यापन कर सकते हैं। रही बात अधिकारों की तो यह बात सरकार ने सभी राज्यों पर छोड़ दी है। कि वहां के नागरिकों को किस प्रकार से अपनी जीविका को इस कोरोना संक्रमण के चलते अपने बचाव के साथ कार्य करना है।आधे से ज्यादा व्यवसाय जैसे रेस्टोरेंट, मॉल खाने-पीने के छोटी-मोटी दुकानें खुलेंगी। तो भी हर व्यक्ति को अपने और अपने परिवार की रक्षा के लिए एक बार जरूर सोचना होगा। कि वहां जाया जाए या नहीं! यह फैसला तो प्रत्येक नागरिक का ही है।कि यदि बाजार मॉल आदि पूरी तरह से खुल भी गए तब भी हमें अपनी सुरक्षा की खातिर सीमित जरूरतों के दायरे में ही रहना चाहिए। नहीं तो आगे क्या होगा यह कहना संभव नहीं है। इसके लिए नागरिकों को अपने सीमित दायरे में ही रहना सीखना होगा,उसी में भलाई है। 
         - वंदना पुणतांबेकर 
               इंदौर - मध्यप्रदेश
      मेरे दृष्टिकोण से देखें तो कोरोना से नागरिकों को अपने अधिकारों एवं कर्त्तव्यों की जानकारी हो रही है। जिसका श्रेय सीधे माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी को और उसके द्वारा लगाई गई 'तालाबंदी' को जाता है। जिसे लाॅकडाउन के नाम से जाना जाता है।
      उल्लेखनीय है कि सम्पूर्ण भारत तालाबंदी से नागरिकों को घरों में बंद कर दिया और उन्हें कोरोना योद्धा भी माना गया। उक्त योद्धा मानव इतिहास में वह पहले योद्धा हैं जिन्हें खाली बैठने पर देशभक्ति के शब्दों से अलंकृत किया गया है। वरना खाली बैठने वालों को क्या-क्या संज्ञा दी जाती है आप भलीभांति जानते हैं।
      अब खाली दिमाग शैतान का घर माना जाता है। ऊपर से प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का तड़का सोने पर सुहागे का काम कर रहा था कि लगे हाथ नागरिकों में अपने अधिकारों को जानने की होड़ लग गई। जिसका प्रमुख कारण पुलिस का सार्वजनिक पारदर्शी पीटना था। क्योंकि कहावत है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते‌। जिसे पुलिस ने कोरोना नियमों के उल्लंघनकर्ताओं पर चरितार्थ किया। जिसका प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्षदर्शियों ने संयुक्त रूप से स्वागत किया।
      क्योंकि सोशल मीडिया में यह तर्क अत्यंत वायरल हो रहा था कि शव उठाने से अच्छा है कि लट्ठ उठा ली जाए। ऐसे में पुलिस ने लट्ठ उठा कर राष्ट्र और राष्ट्र के नागरिकों की आकांक्षाओं को पूरा करते हुए राष्ट्रीय धर्म का पालन किया है। जिससे नागरिक अपने अधिकारों एवं कर्त्तव्यों से अवगत भी हुए।
      प्रशंसनीय यह भी है कि शिरोमणि प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी के कुशल नेतृत्व में नागरिकों ने पहली बार 'जनता कर्फ्यू' का पालन करते हुए नागरिक अधिकारों एवं कर्त्तव्यों का परिचय दिया था। जिसे विश्व ने सराहा था। जिसके लिए 'प्रधानमंत्री और नागरिक' संयुक्त रूप से बधाई के पात्र हैं।
      अतः भारत संवेदनशील प्रतिकूल परिस्थितियों में भारतीय और भारतीयता की अनमोल संस्कृति के धागे में बंधे 130 करोड़ मानवों द्वारा अपने कर्त्तव्यों का पालन दर्शाता है कि कोरोना से नागरिकों के अधिकार सीमित नहीं बल्कि समृद्ध हो रहे हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
आज का विषय भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है विशेषकर कोरोना वायरस के कारण जीवन शैली में बदलाव की वजह से।  कोरोना से नागरिकों के अधिकार अनुशासित हो रहे हैं और अगर कुछेक ऐसे स्वतंत्र अधिकार जो नागरिकों के हित में नहीं कहे जा सकते उन पर अंकुश लगाया गया है तो बेशक हम कह सकते हैं कि कोरोना से नागरिकों के अधिकार सीमित हो रहे हैं।  कोरोना की जकड़ में आने से पूर्व यदि हम अपनी जीवन-शैली को देखें तो पायेंगे कि हमने प्रकृति के साथ बहुत खिलवाड़ किया है।  ऐसा करने में हमने सभी सीमाएं पार कर दीं। पर्यावरण की शुद्धता को हमने ही नष्ट किया है।  गंगा जैसी पवित्र नदी को गंदा नाला बना कर रख दिया था।  अन्य प्रदूषित नदियां और जल स्रोत भी नागरिकों के अधिकारों के सीमित होने से नैसर्गिक सुन्दरता प्राप्त कर रहे हैं।  पेड़-पौधे हरियाली में लहरा रहे हैं तो पक्षी जगत की खतरे में पड़ती प्रजातियां जैसे चिड़िया पुनः लौट कर आ रही हैं। जन्तु जगत को भी प्राकृतिक वातावरण मिला है। मानव निर्मित पोलीथीन के कचरे ने प्रकृति पर बहुत कुठाराघात किया है और अब प्रकृति ने मानो बदला लिया हो जब मनुष्य पोलीथीन पहनने को मजबूर हुआ हो अर्थात् पीपीई किट पहनना, हाथों में दस्ताने पहनना, मुंह को मास्क से ढकना, हाथों को बार बार धोना और सैनेटाइज़ करना।  दरअसल अधिकारों की स्वतंत्रता का दुरुपयोग हो रहा था जिसका खामियाजा अब भुगतना पड़ रहा है। अधिकारों की स्वतंत्रता के साथ-साथ कर्तव्य भी जरूरी होते हैं जिन्हें हम भूलते जा रहे थे।  कर्तव्यों को भूलने की सजा मनुष्य ने पायी है। संभवतः अधिकारों पर अनुशासन की लगाम कस कर उन्हें वापिस सीमा में लाकर सीमित किया जा रहा है और हमें कर्तव्य बोध कराया जा रहा है। 
 - सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
मानव प्रजाति को सबक सिखाता चल रहा है. अभी पता नहीं हैं कि और कितने? और क्या-क्या? सबक मिलेंगे. लेकिन कोरोना ने अब तक जितना सिखाया है, उसे दर्ज करके रखते रहने में ही समझदारी है. ऐसा न हो कि बाद में भूल जाएं. मसलन कोरोना ने अब तक हमें यह पाठ याद दिलाया है कि दुख का सबसे बड़ा कारण अज्ञान है.
कोरोना नाम के जैविक पदार्थ की प्रकृति के बारे अब तक हमें निश्चित रूप से कुछ नहीं पता. उस जैसे दूसरे वायरस के बारे में जितना पहले से ज्ञान था, वह काम नहीं आ रहा है. पुरानी दवाइयां काम नहीं कर रही हैं. यानी जरूरत यह आन पड़ी है कि वायरस के इस नए रूप के गुण-धर्म को जाना जाए. यानी कोरोना वायरस की जीवन शैली या रहन-सहन को फौरन जाने बगैर हम उससे निपट नहीं सकते. जीवविज्ञानी इसे किसी जीव के हैबिटेट को समझना कहते है. सभी विशेषज्ञ मानते हैं कि यह पता चलते ही उस वायरस से निपटने की दवाइयां भी बन जाएंगी और जल्द ही टीका बनाना आसान हो जाएगा. आगे से उसके प्रकोप से बचने के इंतजाम हो जाएंगे.
पर आज हम कोरोना काल में बहुत सुधर गये। बहार का खाना पीना बंद , घर का खाना , 
आत्मनिर्भर बनेअपना काम अपने हाथ से करने लगे 
बिहारी आडम्बर सबलबंद हुए 
सिमीत संसाधनों।में रहना आ गया, अपना थाम स्वंयम।करने में शर्म नहीं आई।
परिवार के लोगों के काम मिलकर होने लगे।
पुरानी शैली अपनाने लगे । 
दादी - नानी के नुक्से।बहुत कामआऐ ! 
बेकार खर्चों बंद पैसों का मूल्य समझे, 
किसानो के प्रति सोच की भावना बदली वो।भगवान नजर आने लगे , 
डाक्टर , नर्स , पुलिस , सफाईकर्मी ,सबके प्रति आदर का भाव पैदा पैदा हुआ । 
गरीबों की तरफ सबके हाथ बढ़ें। 
बहुत कुछ नया सिखा।
अँधिकार।सीमित हुए तो वो हमारी सुरक्षा की दृष्टि से उनका पालन करना चाहिए ।
हम जान हंसे हम कार के बिना मंहगे मंहगे कपड़ों  के बिना जेवर के बिना जी सकते है , पर अनाज के बिना नहीं रह सकते । 
बहुत कुछ सुखद रहा । 
कुछ इस तरह हुआ 
हाथो में झाडू- 
कोरोना ने कैसा किया धमाल सब को घरों में बंद किया !
लाकडाऊन ने तो सारा शहर ही सुनसान किया !!
सुंदर सुदंर मुखड़ों पर सज रहे रंगबिरंगे मास्क 
शादी के किटी पार्टी के मैचिंग वाले मास्क !!
ग्लबजों की बहार आई पर्यावरण साथ लाई !
चून्नरी के नखरे बडें सब को पीछे छोड़ इतराई !!
सेनिटाईजर की डिमांड बढ़ी हर हाथो की जरुरत बनी !
सेनिटाईजर हर जगह घर दुकान अस्पताल , की शान बनी !!
दो फूट की दूरी जरूरी ,नमस्कार की मंजबूरी ! 
छींकने के तरीक़े बदले , निर्देशों में रहने की मजबूरी !!
लाकडाऊन खुल भी जायें तो भी रहेगी वही मजबूरियाँ ! 
पहले की तरह जीवन कहाँ कोरोना की रहेगी पांबदियां !!
सोच कर खर्च करना सोच कर खाना पिना !
होटल , खाऊँ गली ,ठेले की चाट ,सपने में ही खाना !!
सारे श्रृगांर छूटे , चूड़ी बिंदी लिपस्टिक ग़ायब 
हाथो में ग्लोब्ज , मूंह पर मास्क 
सब हो गया नयाब !!
 सेल्फी पांइट सूना , सूना दरिया किनारा ! 
आंशिक रोयें घरों में मिलने का रहा न कोई सहारा !!
न चौपाटी  की भेल , न नारियल पानी , कालागट्टा को मन ललचायें !
न थियेटर के पॉपकार्न न आईसक्रीम, समोसे को मन ललचायें 
फूल पेंट छूटे, बडमुडें , हाँफ पेंट की हो गई वल्ले वल्ले !
कोट टाई सब अलमारी में सजे 
बनियाईन की मुस्कान खिले !!
लैपटॉप हाथ से छूटा , मोबाइल बीबी की निगरानी में 
हाथो में आई झाड़ू , बर्तन करते रहो ,रहो बीबी की नज़रों में 
कोरोना ने कैसा किया धमाल सब को घरों में बंद किया !
लाकडाऊन ने तो सारा शहर ही सुनसान किया !!
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
होने दीजिए।स्वच्छन्दता पर लगाम लगना भी जरूरी है।अधिकारों के नाम पर मनमानी करने की हमेशा आज्ञा नही होनी चाहिए।
हर जगह अधिकारों की बात होती है कर्तव्यों के बारे में कोई कुछ कभी क्यों नही बोलता??
क्या देश समाज के प्रति हमारा कोई कर्तव्य नही रह गया है? हम अपने स्वार्थ में इतने अंधे हो चुके हैं कि हमेशा अपने अधिकार ही दिखते हैं?
आज महाविनाश सामने दिख रहा है।लेकिन हमें घूमने का अधिकार चाहिए।भीड़ मचाने का अधिकार चाहिए।बाहर की चीजें खाने का अधिकार चाहिए।
एक बात जरूर कहना चाहूंगा कि एक बार 10 लाख रुपये जेब मे डाल कर अस्पतालों के चक्कर लगा लें।फर्जी कोविड मरीज बन कर। कोई अस्पताल आराम से ले ले तो कहना।वहां के हालात भी देख लेना। 
अभी जान बचा लो।अधिकार जिंदो के होते हैं मृतकों के नहीं।
- रोहन जैन
देहरादून - उत्तराखंड
कोरोना ने नागरिकों के अधिकार पर लगाया अंकुश ।
कोरोना से नागरिकों के जहां तक अधिकार सीमित होने की बात है तो यह हद तक सही ही माना जाएगा, क्योंकि कोरोना जैसे वैश्विक महामारी से देशवासियों की जान बचाना जरूरी है। केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारों ने कोरोनकाल में उनकी जान की सुरक्षा के लिए कुछ पाबंदिया जरूर लगाई है। ऐसा करना भी नितांत आवश्यक था। जिस तरह से भारत मे कोरोना के केश बढ़ रहे हैं और नागरिकों की मौत हो रही है, वैसी स्थिति में सरकार को जनहित में कड़े कदम उठाने पड़े। नागरिकों के अधिकारों में जो कटौती की गई है, सम सबसे महत्वपूर्ण शादी-व्याह और मरनी-जीनी है। सरकार के आदेश के अनुसार शादी में लड़का व लड़की पक्ष को मिलाकर कुल 50 लोग ही शामिल हो सकते हैं। बारात में दो गाड़ी ही ले जाने की अनुसार है। इसी तरह किसी नागरिक की मृत्यु हो जाती है तो उसके अंतिम दाह संस्कार में 20 लोग से अधिक लोग शामिल नहीं हो सकते। स्कूल बंद है, जिसके कारण ऑनलाइन पढ़ाई कराई जा रही है। जनसभा, भजन, संगीत, मंचों सहित वैसे सभी आयोजन पर रोक लगा दी गई है जहां भीड़ होती है। मंदिरों में भी सिर्फ भगवान के दर्शन कर सकते हैं। प्रसाद व फूल चढ़ाने पर पाबंदी है। इसी तरह 10 साल तक के बच्चों और 60 साल से अधिक उम्र वाले बुजुर्गों को घर से बाहर नहीं निकलना है, क्योंकि इनमें इम्यूनिटी यानी कि रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। 
लोगों को जरूरी काम न हो तो बाहर निकलने से मना किया जा रहा है। इसी तरह यदि आप काम पर जा रहे हैं तो मास्क पहनने के साथ साथ सोशल डिस्टेंसिंग रखें। समय समय पर हाथ साबुन से धोते रहें। ये सब नियम सरकार द्वारा कोरोना महामारी से बचने के लिए लगाया गया है। इस स्थिति में कोरोना से नागरिकों के अधिकार सीमित हो रहे हैं। 
- अंकिता सिन्हा साहित्यकार
जमशेदपुर - झारखंड
राष्ट्रीय संकट के समय मूल अधिकारों की बात करना उचित नहीं है प्राय: देखा गया है कि नागरिकअपने अधिकारों के लिए बेहद सचेत होते हैं लेकिन अपने मूल कर्तव्य को भूल जाते हैं |आज की परिस्थितियों पर दृष्टिपात किया जाए तो ज्ञात होगा  कि लोग कोरोनावायरस महामारी के बीच आ रही कठिनाइयों से  निपटने के लिए सरकारी तंत्र से अपेक्षाकी जाती है|लेकिन यहां यह याद रखना आवश्यक है कि नागरिकों से भी   उनके मौलिक कर्तव्य याद रखने कीअपेक्षा की जाए| सरकार निरंतर लोगों सेभीड़-भाड़ से दूर रहने और सामूहिक कार्यक्रमों मेंजाने से बचने व सामाजिक दूरी बनाकररखने को कह रही है|  लेकिन नागरिकअब भी इन निर्देशों का पालन नहीं कर रहे और कई नागरिक तो सामाजिकऔर सांप्रदायिक मेलजोल को बिगाड़ने में लगे हैं|
ऐसी स्थिति में हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह केवल मौलिक कर्तव्य को याद रखें अपने अधिकारों की बात भूल कर राष्ट्र सेवा में संलग्न हो  तथा भारत के सभी लोगों में समानता की भावना का निर्माण करें |ऐसी भावना जो हर प्रकार के भेदभाव से परे हो |ऐसी भावना जो स्त्रियों का सम्मान करें ,ऐसी भावना जो प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करे  |तथाअपने मानवतावादी दृष्टिकोण को विकसित करे|
लेकिन चिंतनीय बात तो यह है कि सरकार के बार-बार आगाह करने पर  भी लोग घरों में नहीं रह रहे यात्राएं कर रहे हैं असामाजिक तत्वों का निर्माण कर रहे हैं |कुछ लोग बिना किसी कारण केट्रैवल पास बनाकर गाड़ियों में घूम रहे हैं| दुकानों में भीड़ एकत्रित कर दी है बाजारों में लंबी लाइनें लग गई हैं लोग अपना कर्तव्य भूल गए हैं |ऐसे में अधिकारों की बात करना नितांत अशोभनीय है |वास्तव में कर्तव्य ही अधिकार का  आधार है जो व्यक्ति अपने कर्तव्य का पालन पूरी सच्चाई से करता है |उसे अधिकार स्वयमेव प्राप्त हो जाते हैं|और अगर हमें अपने भारतीय समाज को दृढ़ करना है तो अपनेमौलिक अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्य का निर्वाह भी करें |सच तो यह है कि मौलिक अधिकार हमारे कर्तव्यों का आधार है|
इसके लिए यह आवश्यक है कि नागरिकों को अपने कर्तव्यों का ज्ञान होना चाहिए राष्ट्र के प्रति अनुशासनऔर प्रतिबद्धता की भावना होनी चाहिए तभी हम अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं|
- चन्द्रकान्ता अग्निहोत्री 
पंचकूला - हरियाणा
कोरोना से नागरिकों के अधिकार सीमित नहीं बल्कि संविधान में दिए गए मूल कर्तव्य को हमें याद करने के उत्सुक कर दिया है। यह समय की मांग है हर प्रत्येक नागरिक को अपने अपने कर्तव्य का जागृत कर एक दूसरे के पूरक बंनकर सामने आए।
डाक्टर भीमराव अंबेडकर का कथन है;-" संविधान के सफलता जनता और राजनीतिक दलों के आचरण पर निर्भर करता है।"
संविधान से अलग कोई नहीं रह सकता है। "अंदर रहना राष्ट्रीय कर्तव्य भी है"।" संविधान भारत की आत्मा है"।
दुनिया के हर देश की सरकार अपने अपने तरीके से जनता पर निगरानी कर रही हैं। हमारे देश में इलेक्ट्रॉनिक, औद्योगिकी, टेलीकॉम डाटा के माध्यम से निगरानी करने के लिए सरकार सोच रही है। वैज्ञानिक के द्वारा साबित होने के बाद जल्द ही शुरू होगा। इस विधि से देशवासियों और घुसपैठियों क्या पता चलेगा।
ईससे हमारे देशवासियों के अधिकार संविधान के तहत रहेगा। घुसपैठियों पर कानूनी कार्रवाई होगी।
महामारी के बाद देश में बहुत बदलाव आएगा। देश दुनिया के भविष्य अभी गर्भ में है।
लेखक का विचार:- अधिकार सीमित नहीं बल्कि संविधान के  अंदर ही रहेगा। देश दुनिया में परिवर्तन होगा।
- विजेंयेद्र मोहन
मुम्बई - महाराष्ट्र
वर्तमान में कोरोना से जो स्थिति है या होती जा रही है उसमें यदि जरा अधिकारों की कटौती होती भी है तो शायद गलत न होगा।परंतु यदि हम हकीकत पर नजर  डालें तो लॉकडाउन में हमने अपने संप्रेषण या लिखने बोलने में कहीं भी पीछे नहीं रहे हैं।इतना जरूर है कि हम इधर उधर नहीं जा पा रहे हैं पर देखा जाए तो यह हमारी सुरक्षा के लिए ही है।
       जहां तक बात है कि क्या कोराेना से नागरिकों के अधिकार सीमित हो रहे हैं तो शायद नहीं।यह स्थिति क्षणिक है  और अधिकार हमेशा के लिए या जीवनभर।जब तक हम भारत के नागरिक हैं।शेष जितनी भी चीजें या बदलाव है वो केवल कहने की बातें है यथार्थ में कुछ भी नही
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
यह बिलकुल गलत हैं क्यों की आज कोरोना काल चल रहा हैं महामारी का दौर चल रहा हैं ऐसे में सभी सरकारे अपने नागरिको की सुरक्षा के लिये तमाम उपाय कर रही हैं लाॅकडाउन लगाना हो या अलग अलग झोन में क्षेत्रो में बाटना हो या 144 धारा लगाना हो हर तरह से अपने नागरिको की सुरक्षा महत्व पुर्ण हैं ओर उसी के लिये नागरिको को कुछ नियम में बाधा जा रहा हैं जो सही भी हैं अब मुझे ही लेलो मेने मेरे बच्चों को कह दिया हैं अभी कम से कम छेः माह तक बाजार का कुछ नही खाना पिना हैं बिना काम के घर से बाहर नही जाना हैं तो क्या मैं अपने बच्चो के अधिकार छिन रहा हुँ ? यदी जवाब नही हैं तो हम कैसे मान ले की सरकार आपके अधिकार सीमित कर रही हैं जो हो रहा हैं वह हमारी सुरक्षा के लिये हो रहा हैं अतः सरकार का साथ दे ओर नये नियम अनुसार कार्य करे जब हम सजक होंगे तभी कोरोना हारेगा मानवता जीतेगी फिर खुशहाली आयेगी हभारा जीवन फिर मुस्कुरायेगा।
- कुन्दन पाटिल
 देवास - मध्य प्रदेश
क्या कोरोना से नागरिकों के अधिकार सीमित हो रहे हैं। मैं इस बात से सहमत नहीं हूं, क्योंकि जिस तरह से वैश्विक संकट के दौरान हमारी सरकार सुरक्षा के मद्देनजर कदम उठा रही है तब नागरिकों का दायित्व बनता है कि वह अधिकारों से अधिक कर्तव्यों की ओर ध्यान दें। इस समय कर्तव्य है देश की और स्वयं की सुरक्षा। अब हम अधिकारों की बात करते हैं, अधिकारों में समानता, स्वतंत्रता, शोषण के विरुद्ध, धार्मिक स्वतंत्रता, संस्कृति व शिक्षा के संवैधानिक अधिकार देश के सभी नागरिकों को प्राप्त हैं।यह अधिकार कहां सीमित हो गए? मैं समझ नहीं पा रहा। अधिकार सीमित होने की बात वह लोग कर रहे हैं, जो अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाह हैं, जिनकी स्वार्थी प्रवृत्ति इस देश और समाज के प्रति गैर जिम्मेदाराना है। हर नागरिक को उसके अधिकार मिले हुए हैं। किसी अधिकार में कोई कटौती नहीं की गई है । सुरक्षा के मद्देनजर लाकडाउन लागू होने पर कुछ परेशानियां जरूर हुई, लेकिन उन्हें अधिकारों को सीमित करने की संज्ञा देना बेमानी होगा।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर -  उत्तर प्रदेश
बस्तुतः यह सत्य है।
कोरोना एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है, जिसने मानव का वास्तविकता से परिचय करवाया है।
जो जीवन हमसे 1एक या दो पीढ़ी पूर्व हुआ करता था, वही जीवन आज फिर से लौट आया है।
हम सीमित साधनों का उपयोग कर रहे हैं।
सीमित भोजन कर रहे हैं।
वाहनों का उपयोग भी सीमित हो गया है, व्यर्थ का घूमना फिरना लगभग बन्द हो गया है।
आवश्यकताएं अधिक नही रह गयी हैं, हम आवश्यकताओं से समझौता करना सीख रहे हैं।
और भी कई चीजें हैं।
*वास्तव में कोरोना ने जीना सिखा दिया।*
- विकास शुक्ल 'प्रचण्ड'
शिवपुरी - मध्यप्रदेश
             बल्कि करो ना काल में नागरिकों के अधिकार और ज्यादा बढ़ गए हैं  । नागरिकों के जान की परवाह   यानि देश के नागरिकों को स्वस्थ जीवन जीने का अधिकार   प्रमुख है ।
 अपने देश के नागरिकों  के खाने-पीने  व रहने का  ध्यान रखना  महत्वपूर्ण है  ।इस लिए सरकार ने सम्पूर्ण  लॉ कडाउन कर उनके खाने-पीने बे राशन की संपूर्ण व्यवस्था करना आदि ।
 नागरिकों की रक्षा एवं सुरक्षा का अधिकार  बढ़  ही रहे है ।
 कोरोना से संक्रमित होने पर उन्हें घर से ले जाना फिर हॉस्पिटल में उनका इलाज करना तथा ठीक होने पर उन्हें हॉस्पिटल से पुरस्कृत कर विदा करना ।
    नागरिकों के स्वास्थ्य का ही ध्यान रखते हुए अधिकांश कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम का अधिकार दिया  तथा  कुछ विभाग  के   सरकारी कर्मचारियों को घर बैठे ही वेतन की सुविधा प्रदान की है  । 
           दूसरे राज्यों से अपने राज्यों में जाने वाले इच्छुक प्रवासियों को घर वापसी के लिए ट्रेन  व  बस की सुविधा प्रदान की ।      जनधन के खातों में 500- 500 ₹ प्रति खाते तथा हर पंजीकृत मजदूरों के खाते में ₹1000 प्रति मजदूर को रुपए   प्राप्त करने का अधिकार हर नागरिक  को मिला  । किसी भी तरह से हमारे भारत के नागरिकों को ही नहीं भारत में आए मेहमान नागरिकों को भी कोरोना संक्रमण न  हो इस बात का ध्यान विशेष तौर पर रखा गया है। कोई बच्चा भूख से ना मरे  , शिक्षा से कोई वंचित न रहे, उनके लिए ऑनलाइन शिक्षा की व्यवस्था करना आदि
यानिकोरोना काल में नागरिकों के अधिकार असीमित हो गए हैं ।
 और देशों कि तुलना में  हमारे देश  भारत  में नागरिकों को सबसे ज्यादा अधिकार प्राप्त है।
                - रंजना हरित        
       बिजनौर - उत्तर प्रदेश
 वर्तमान में विश्वेश करो ना महामारी के चलते लोगों की जीवन शैली सीमित हो गई है सभी का जीवन शैली शिथिल सी हो गई है तो इसे कहते बन रहा है कि लोगों की जीवन शैली  के साथ-साथ नागरिकों के अधिकार भी सीमित हो रहे हैं सभी की जीवन शैली में आवश्यकता आधारित जीना हो रहा है अभी आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का क्रय विक्रय नहीं हो पा रहा है ऐसा लग रहा है की नाप तोल की जिंदगी है जैसा लग रहा है नागरिकों के अधिकार सीमित होगा ही क्योंकि इनकी जीने की जो क्षेत्र था वह भी सीमित हो गया है सिर्फ घर से दुकान तक है सिमट कर रह गया है कब तक यह चलेगा इसका भी कोई निश्चित नहीं है नागरिकों के अधिकार सीमित है तभी तो अनियंत्रित लोग नहीं हो रहे हैं जो लोग सीमित अधिकार का पालन नहीं कर पा रहे हैं वह अनियंत्रित होकर वैश्विक महामारी में भागीदारी कर रहे हैं सीमित अधिकार से ही लोगों का जीवन शैली नियंत्रण होकर चल रही है अतः यही कहते बन रहा है कि नागरिकों के अधिकार सीमित हो रहे हैं लोगों की जीवन शैली भी सीमित हो गई है अनावश्यक खर्चा नहीं हो रहा है आवश्यकता आधारित जीवन शैली चल रही है ऐसा ही चलने से ही कोरोना से निजात पा सकते हैं अनियंत्रित जिंदगी से करो ना जी फैलाव और बढ़ सकता है अतः नागरिकों के अधिकार सीमित हो और जीवनशैली भी सीमित हो तभी करो ना से निजात पा सकते हैं।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
कोरोना का बम जब फटा तो बहुत कुछ नष्ट हुआ, उसी में नागरिकों के अधिकार में भी बदलाव आया। यह अधिकार हमें संविधान की ओर से दिया गया है। लेकिन उन अधिकारों में बदलाव संविधान से नहीं बल्कि मानव को खुद करना है। 
 कुछ औपचारिकताओं को बदलना होगा, जैसे - गले मिलना, हाथ मिलाना । ये सब अधिकार नहीं हमारे संस्कार थे। इन संस्कारों में बदलाव के साथ-साथ कुछ पुराने नियमों को अपनाना होगा, जैसे - बाहर से आने पर हाथ-पैर धोना, एक चीज को छू कर हाथ धो कर ही दुसरी चीज को हाथ लगाना। इस तरह के अनेकों नियम हमारी नानी-दादी पालन करवाती थीं । आज फिर से उन नियमों का महत्व हमें याद करना है। 
हमारे पूर्वज पेड़-पौधों की पूजा करते थे। एक को भी नुकसान पहुंचने पर घर में मातम छा जाता था। रसोई की गंदगी को कहीं गड्ढे में डाला जाता था। उन्हीं नियमों को आज अधिकार में शामिल करना है। हर सजीव को पनाह देनी है। निरर्थक कटते पेड़ों को रोकना है। जलवायु शुद्ध बनानी है। नदियों के पानी को स्वच्छ और समृद्ध करना है। 
हमें लगता है कि अधिकार का दायरा और बढ़ गया है। साथ ही जिम्मेदारी भी । अब हमारे ऊपर निर्भर है कि हम सभी लोग किस प्रकार अपने दायित्व को निभाते हैं ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
101% हो रहे हैं ! कोरोना जैसी प्राकृतिक वैश्विक आपदा ने तो हमारी पूरी जीवन शैली ही बदल दी है !  हमने अपने पूर्वजों की जीवन शैली ही अपना अपनी आवश्यकताओं की सीमा रेखा बांध ली है! हमारे बाहर खाने पीने, कपड़े, घूमना फिरना ,कार, स्कूटर  चला मजे करना, सिनेमा, पार्टी, झूठी शान दिखाना, सभी फिजूल खर्च तो बंद हो गये हैं फिर भी यदि इसे हम  समझते हैं कि हमारे अधिकार सीमित हो गए हैं तो इसे हमने स्वयं ही कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए सीमित किया है! 
कोरोना की चंगुल से बचना है तो हमे सीमा रेखा में  तो रहना पड़ेगा  !
यदि प्रशासन हमें हमारी सुरक्षा के लिए बिना मास्क पहने बाहर जाने की इजाजत नहीं देता अथवा सोशल डिस्टेंसिंग के नियम के पालन करने के लिए भीड़ भाड़ वाली जगह में जाने की मंजूरी नहीं देता इसका मतलब यह नहीं है कि  नागरिकों के अधिकारों की सीमा रेखा सीमित हो रही है! 
हमारे जीवन सुरक्षा के लिए वर्तमान में स्थिति देखते हुए अनिवार्य है  ! सरकार का कर्तव्य है अपनी जनता की रक्षा करना! हमारा देश लोकतांत्रिक है किंतु इसका यह मतलब यह नहीं  है कि जान बूझकर सरकार अपनी जनता को भट्टी में झोंक देगी! 
कुछ असामाजिक तत्व इसे सरकार का फायदा कह जनता को बरगलाती  है किंतु ऐसी विकट परिस्थिति में हमें स्वयं निर्णय लेना है ! 
इस आपदा से निपटने के लिए  यदि हमारे अधिकार सीमित  हो भी रहे हैं तो उसे कबुल कर फिलहाल कोरोना से कैसे बचा जाए उस पर फोकस  करें चूंकि
"जान है तो जहान है" !
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
कोरोना से नागरिकों के अधिकार क्या सीमित होंगे। मुझे नहीं लगता कि किसी बिमारी से नागरिकों के अधिकार से कोई लेना देना है। नागरिकों के अधिकार पर खतरा तब मंडराता जब सरकार कोई गलत कदम उठाता। जो भी अधिकार दिए गए हैं सब ढाक के तीन पात अब संविधान में तो यह अधिकार तो नहीं दिया गया कि सरकार यदि किसी व्यक्ति को नौकरी पर रख रखा है तो उसका नौकरी छीन लेगा नौकरी या अधिकार तभी छीने जा सकतें हैं।जब कोई गलती हो। स्वास्थ्य सुरक्षा सेवा भावना यही नागरिकों का मूल अधिकार है। और बेरोजगारी की वजह से इन सभी अधिकारों पर खतरा मंडरा रहा है। फिर भी जितने संसाधन मौजूद हैं बचाव के भरसक प्रयास किए जा रहे हैं।
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
गुड़गांव -  हरियाणा
अधिकार  और  कर्तव्य  में  हम  अधिकारों  की  ओर  ज्यादा  ध्यान  देते  हैं  । कर्त्तव्य  भले  ही  भूल  जाएं  मगर  अधिकारों  के  लिए  संघर्ष  तक  करने  को  तैयार  रहते  हैं  ।
        कोरोना  ने  हमारे  अधिकार  स्वत: ही  सीमित  कर   हमारे  जीवन  के  प्रत्येक  क्षेत्र  को  बदल  दिया  है  ।  ऐसे  समय  में  कुछ  अधिकार  सरकार  की  ओर  से  सीमित  कर  दये  गये  कुछ  स्वयं  हमने  ही  स्वेच्छा  से  सीमित  कर  दिये  । 
        संकट  की  घड़ी  में  सिर्फ  उससे  उबरने  की  सोच  ही  हावी  रहती  है  क्योंकि  " जान  है  तो  जहान  है ।" 
          सरकार  की  ओर  से  कोरोना  से  बचने  के  लिए  जो  भी  आवश्यक  निर्देश  दिए  गए  हैं, उनका  पालन  करना  अति  आवश्यक  है  ।  ऐसे  में  हमारी अनेक  प्रकार  की   आवश्यकताएं........इच्छाएं भी  सीमित  हो  गयी  है  ।  जिसका  हमारे  बजट  पर  सकारात्मक  प्रभाव  पड़ा  है ।  फिजूल खर्ची  लगभग  बंद  हो  गई  है  ।  
      भूल  गयी  रागरंग 
      भूल  गयी  छकड़ी 
      तीन  बातां  याद  रैयी
      लूण  मिरच  लकड़ी.....
      भविष्य  में  भी  अगर           वर्तमान  समय  के  सीमित  अधिकारों  के  साथ  चलेंगे  तो  आने  वाले  समय  में  हम  अनेक  कठिनाइयों  से  बचे  रह  सकते  हैं  । 
       - बसन्ती पंवार 
        जोधपुर  -  राजस्थान 
कोरोनावायरस की वर्तमान स्थिति कोई अस्थाई नहीं है जहां तक अधिकार के सीमित होने का सवाल है हमारी समझ से तो यह निराधार लगता है क्योंकि अधिकार और कर्तव्य की रचना संविधान सामाजिक रचना पारिवारिक रचना के आधार पर होता है हां थोड़े समय के लिए जीवन रक्षा के लिए अपने अधिकारों पर पूर्ण रूप से आधिपत्य नहीं किया जा सकता है उसका भी मुख्य कारण है जीवन सुरक्षा।
जीवन को सुरक्षित रखने के लिए ही कुछ अधिकारों से वर्तमान समय में वंचित किया गया है जैसे आवागमन पर लगाई गई रोक, बड़ी-बड़ी पार्टियां उत्सव तीर्थ स्थल मी पूजा पाठ करने की प्रक्रिया पर एक प्रकार का पाबंदी लगाया गया है इस पाबंदी का मुख्य उद्देश्य है नागरिकों के जीवन को सुरक्षा प्रदान करना ना कि उन्हें लापरवाही में उन्हें आपदा के परिस्थिति में ढकेल दें।
इसलिए अधिकार और कर्तव्य दोनों संवैधानिक है संविधान की सुरक्षा आम नागरिकों का दायित्व है अगर अपने देश से इंसान को लगाव है देश के लिए मर मिटने को तैयार हैं उनकी सुरक्षा करना है उनकी विकास करना है तो संवैधानिक नियमों का अनुसरण करना अति आवश्यक है
सामाजिक तौर पर आपस में बहुत सारे अफवाह है उठती रहती हैं लोगों को नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तौर से प्रेरित किया जाता है पर यदि हर इंसान इन पहलुओं पर दोनों पक्षों से स्वयं को उस विषय पर एक एक्टर के रूप में रखकर अवलोकन करे तो उसकी आत्मा उसे सही जवाब दे देगी करना है या ना करना है यह गलत है या सही है उड़ती उड़ती बातों में आने से गलतियां तो होती ही रहेंगे और गलतियों का परिणाम भी दंडनीय मिलता रहेगा अब देखिए अधिकार की जहां तक बात है कुछ ऐसे भी विरोधी समाज हैं जो अपने समाज में इस बात का अफवाह फैलाते हैं की मास्क लगाना बेबुनियाद है सरकार के आदेश का पालन करना आवश्यक थोड़े ही है अपना भी तो सोचना है सरकार तो अपने फायदे की बात करती है पर यह सारे कथन बेबुनियाद हैं सरकार को जनता ने बनाई है और जनता के हित में ही सरकार कार्य करती इसलिए सरकार द्वारा बनाए गए जो भी नियम उनका पालन करना अति आवश्यक है हमारे ख्याल से हमारे किसी भी अधिकार का हनन नहीं हो रहा है यह सोच सोच की बात है वर्तमान में थोड़े समय के लिए इसे हम से अलग रखा गया है पर हमारे अधिकारों का हनन नहीं किया गया है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र


" मेरी दृष्टि में " कोरोना की वजह से मजबूर हो कर घरों में रहना पड़ा है । यह कोई छोटी बात नहीं है । यही से पता चलता है कि नागरिकों के अधिकार सीमित होते जा रहे हैं । 
                                                     - बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र




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