स्वास्थ्य मानसिकता का सबसे बड़ा राज है योग ?

स्वास्थ्य मानसिकता से ही सभी कार्य में सफलता प्राप्त होती है । क्योंकि सकारात्मक विचार स्वास्थ्य मानसिकता के बिना सम्भव नहीं होता है । स्वास्थ्य मानसिकता के लिए सबसे बड़ा योग है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों का भी अध्ययन करते हैं : -
" योग " का स्वास्थ्य मानसिकता पर गहरा असर होता है  । मनुष्य के जीवन में  योग के महत्व  एक व्यापक प्रभाव होता है  । योग का शाब्दिक अर्थ है जोड़ना  , योगफल निकालना और नियमन करना  । यह एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसमें स्वसन , ध्यान और व्यायाम शामिल होते हैं  । इससे  शरीर  , मन और आत्मा को एक साथ लाया जाता है  । योग आत्मा को परमात्मा से मिलाने में काम करता है  । ऋषि पतंजलि को योग का जनक कहा जाता है  । बीकेएस अंयगर और बाबा रामदेव ने योग को विश्व में एक नई पहचान दिलाई है  । संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 11 दिसम्बर 2014 को प्रत्येक वर्ष 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मान्यता दी है  ।
वर्तमान समय में मनुष्य की जीवन शैली व्यस्त हो गई है  । जिस वजह से मनुष्य तनाव ग्रस्त हो गया है  ।जिससे वह शारीरिक और मानसिक व्याधियों का शिकार हो गया है  । योग करने से मनुष्य एक स्फूर्ति  , आनन्द और शान्ति का अनुभव करता है  । मन मस्तिष्क की व्याकुलता समाप्त हो शान्ति हो जाती है  । और यह शान्ति स्वास्थ्य एवं मानसिकता को बहुत प्रभावित करती है  । बुरे विचार नष्ट हो जाते हैं  । आत्मा का शुद्धिकरण हो जाता है  । अस्थमा  , मधुमेह  , माइग्रेन  ,  रक्तचाप  , गठिया  , उदर विकार , सर्वाइकल - डिस्क प्रौबल्म जैसी भयंकर बीमारियां की प्राकृतिक चिकित्सा हो जाती है  । इससे तनाव दूर होने से अनिंद्रा का नाश हो जाता है  । मोटापा भाग जाता है  । इससे  इम्यूनिटी बढकर शरीर बलिष्ठ हो जाता है  । शरीर स्वस्थ है तो आत्मा भी स्वस्थ होगी  ।
- अनिल शर्मा नील 
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
यह सत्य है कि "स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क बसता है"। भारतीय संस्कृति में योग के महत्व को विस्तार से वर्णित किया गया है। निश्चित रूप से स्वास्थ्य और स्वस्थ मानसिकता के लिए योग अति उत्तम साधन है। योग आसन से समाधि तक एक सतत् प्रक्रिया है इसलिए इससे मानव के तन-मन की पूर्ण शुद्धि हो सकती है। 
जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ, शुद्ध और शक्तिशाली बनाने के लिए योग करना आवश्यक है उसी प्रकार मन की शक्ति, शुद्धता एवं स्वच्छता के लिए मनुष्य को योग के साथ-साथ स्वयं से वैचारिक संघर्ष भी करना पड़ता है। योग और वैचारिक उत्कर्षता ही स्वस्थ मानसिकता का विकास करती है। 
योग से तन सुन्दर करूं, मन शुद्धि योग पाऊं कहां। 
तन संग मन विकार हरूं, ऐसी शक्ति पाऊं कहां ।। 
देखकर सुन्दर तन को अपने हर्षाता हूं, 
मन में भाव लिए छल के मुस्कराता हूं। 
पीड़ा होती नहीं मैले मन को देखकर, 
शर्म आती नहीं कुटिल चालों को देखकर।। 
ओम-विलोम से श्वासों को नियन्त्रित करूं, 
विचारों का नियन्त्रण-माध्यम पाऊं कहां। 
प्रयोग कर आसनों का बीमारी दूर करूं, 
कपटी मन हो शुद्ध ऐसा आसन पाऊं कहां।। 
योग ऐसा हो कोई जो दूर करे वासना मेरी, 
दूर करे लोभ-लालच की दुर्भावना मेरी। 
शारीरिक सौष्ठव की चाह अवश्य करूं, 
पर वैचारिक उत्कर्ष हो ऐसी मति बने मेरी।। 
प्राण वायु के लिए नये-नये साधन करूं, 
प्राणों की शुचिता का साधन पाऊं कहां। 
समृद्धि तन की हो योग केन्द्र ढूंढा करूं, 
प्रयत्न किया नहीं इन्सान बनने जाऊं कहां।। 
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
" हम  देखें  सौ  वसंत, जिएं  सौ  वसंत, सुनें  सौ  वसंत, मुखरित  रहें  सौ  वसंत, स्व-निर्भर  बनें  रहें  सौ  वसंत  और  ऐसा  ही  जिएं  शत्तोत्तर  जीवन  भी  ।"
        यदि  हमें  उपरोक्त  जीवन  जीना  है  तो  योग  को  अपने  जीवन  में  शामिल  करना  होगा  क्योंकि  योग  का  अर्थ  ही  जोड़  अथवा  जोड़ना  होता  है  । 
       योग  और  ध्यान से  जहां  मानसिक  शांति  मिलती  है  वहीं  संपूर्ण  शरीर  के  अवयव  सुगठित  होते  हैं  तथा  अपना कार्य  सुचारु  रूप  से  करते  हैं  ।
       जीवन  के  सात  सुखों  में  पहला  सुख  निरोगी  काया  है  ।  अगर  शरीर  ही  स्वस्थ  नहीं  है  तो  बाकी  के  छ: सुख  बेकार  है  । 
      अतः  प्रत्येक  व्यक्ति  को   नियमित  रुप  से  योग  और  ध्यान  को  अपने  जीवन  का  हिस्सा  बनाना  चाहिए  क्योंकि  इसी  में  व्यक्ति  के  संपूर्ण  शारीरिक  और  मानसिक  स्वास्थ्य  का  राज  छुपा  हुआ  है  । 
        - बसन्ती पंवार 
          जोधपुर - राजस्थान 
स्वस्थ मानसिकता के लिए योग बहुत जरूरी है लेकिन किनके लिए जो आफिस वर्क करते हैं घर में खाली बैठे रहते हैं उनके लिए बहुत जरूरी है।एक किसान अथवा मजदूर को योग करने की आवश्यकता नहीं उनका योग स्वत: हो जाता है।पैदल चलने वालों के लिए भी जरूरी नहीं, साइकिल रिक्शा चलाने वालों के लिए जरूरी नहीं। जरूरी है उनके लिए जो दो कदम चलने के लिए भी मोटर कार अथवा मोटरसाइकिल स्कूटर वगैरा इस्तेमाल करते हैं। कहते हैं पहला सुख निरोगी काया दूसरा सुख हाथ में माया। आजकल लोग सेहत बनाने के लिए जिम वगैरा जाते हैं। स्वस्थ मानसिकता के लिए स्वस्थ्यप्रद भोजन की भी आवश्यकता होती है। स्वस्थ मानसिकता केवल योग से हासिल नहीं किया जा सकता। सूरदास जी कहते हैं भूखे भजन न होई गोपाला दूसरे शब्दों में कहूं तो "भरा हो पेट तो संसार जगमगाता है।
भूखा हो पेट तो ईमान डगमगाता है।
सबका निचोड़ एक ही स्वस्थ मानसिकता के लिए स्वस्थ वातावरण खान-पान रहन-सहन सबकुछ व्यवस्थित होना चाहिए।
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
गुड़गांव -  हरियाणा
स्वस्थ मानसिकता का सबसे बड़ा राज योग है, यह कहना शतप्रतिशत सही है। योग करने से  तन-मन में अनेक विशेषताओं या यूँ कहें कि अनेक गुणों के योग में  वृद्धि होती है। योग हमारे तन-मन को स्वस्थ तो करता ही है,विशुद्ध भी करता है जो हमारी मानसिकता में सकारात्मक विकास कर हमारी सोच,संकल्प और संवेदनाओं को मजबूती दे हमें योग्य बनाता है। हमारे ज्ञान चक्षु को प्रबल कर हमें शांत , संयमी और सहिष्णु बनाता है जो पारस्परिक संबंधों को सौहार्द्रमय और मधुर बनाने का मार्ग प्रशस्त करता है। सार यह कि योग जीवन के लिए महत्वपूर्ण ही नहीं आवश्यक भी है। अतः इसे  प्रारंभिक शिक्षा में ही सम्मिलित कर  बच्चों को संस्कारवान और गुणवान बनाने का प्रयास तो किया ही जाना चाहिए। प्रत्येक नागरिक को भी योग करने के लिए प्रेरित करना उचित होगा।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
योग के द्वारा हम हम बड़ी से बड़ी समस्याओं से लड़ सकते हैं और हमारी प्रतिरोधक क्षमता भी मजबूत होती है करोना से लड़ने के लिए हमें योगाभ्यास रोज करना चाहिए।
ओम शब्द का उच्चारण करना चाहिए।
संस्कृत धातु ' युज' से निकल है। जिसका मतलब होता है व्यक्तिगत चेतना या आत्मा का सर्वभौमिक चेतना या यूं कह सकते हैं कि रूह से मिलन।
योग का इतिहास-ऋग्वेद में इसका इतिहास थोड़ा बहुत मिलता है फिर बाद में सिंधु घाटी की सभ्यता में योग के दर्शन होते हैं उनकी मुहर में या सिक्कों में योग की आकृति थी।
छान्दोग्य उपनिषदमैं वेद मंत्र और प्राणायाम के अभ्यास का उल्लेख मिलता है। बाबा याज्ञवल्क्य और उनके शिष्य गार्गी के बीच में कई सांसो संबंधी व्यायाम शरीर की सफाई के आसन के उल्लेख मिलते हैं।
अथर्ववेद में भी सन्यासियों के एक समूह की सभा में योग्य अभ्यास एवं आसन को का विस्तृत रूप देखा गया है।
प्राचीन काल में मुनि द्वारा शारीरिक आचरण ध्यान तपस्या आदि अभ्यास किए जाते थे। श्रीमद्भागवत गीता में भी योग का उल्लेख मिलता है।
योग को सबसे अलंकृत पतंजलि योग सूत्र में मिलते हैं।
*योगा का जीवन में* महत्व-1*नियमित योग करने से सभी आयु वर्ग के लिए बहुत स्वास्थ्यवर्धक है। स्वस्थ शरीर रहता है ,और तन मन में एक ताजगी रहती है।
2* योगा द्वारा शरीर को स्वस्थ रखने मन को शांत करने आत्मविश्वास को सुधारने का बल मिलता है।
3*पुरानी से पुरानी बीमारी से राहत का अनुभव होता है।
4* योग और आयुर्वेद के द्वारा कैंसर पर भी विजय प्राप्त कुछ हद तक होती है।
5*विद्यार्थियों के लिए योग शिक्षा बहुत उपयोगी है प्राचीन शिक्षा में शिक्षा के सूत्र भी विद्यार्थियों को योग माध्यम के द्वारा सिखाए जाते थे।
योग करने से स्मरण शक्ति तेज होती है इसलिए रोज सुबह योगा अभ्यास विद्यार्थियों को करना चाहिए।
6* योगा और नियमित जीवनशैली से हम आयुर्वेद का पालन करते हुए अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं और जीवन में हमें कोई तकलीफ नहीं होती।
बड़े-बड़े महापुरुष चाहे वे खेल जगत के हो चाहे अध्यात्म जगत के हो, सभी योग करते हैं।
7*पंचकर्म द्वारा रोगों का भी निवारण किया जाता है।
योग करने से हमारी जीवनशैली में बहुत परिवर्तन आते हैं और बड़ी से बड़ी बीमारी का भी सामना हम कर सकते हैं ।
अंत में यही कहना चाहूंगी
सूर्य देव का नमन है, विटामिन डी का भोग।
उदय काले नित उठ करो योग भगाए रोग।।
मन के हारे हार है मन के जीते जीत।
तन और मन को ठीक कर योग निभाई रीत।।
*स्वस्थ रहो और मस्त रहो क्योंकि शरीर ही सच्चा धन है।*
- प्रीति मिश्रा
 जबलपुर - मध्य प्रदेश
योग से न केवल शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है अपितु योग से मनसिक तनाव को भी खत्म किया जा सकता है । ये कहना गलत नही होगा कि योग के बिना जीवन कोई जीवन नही है । योग से ही जीवन को संतुलित किया जा सकता है । योग को स्वस्थ मानसिकता का सबसे बड़ा राज इसलिए भी कहा जा कि केवल ओर केवल योग के माध्यम से ही मस्तिष्क को शांत रख कर उच्च व नये विचारों की ओर अग्रेसित किया जा सकता है ।
स्वामी सत्यानंद सरस्वती कहते है कि योग विस्मरण में दफन एक प्राचीन मिथक नहीं है। यह वर्तमान की सबसे बहुमूल्य विरासत है। यह आज की आवश्यकता है और कल की संस्कृति है ।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
आज 21 जून , 2020  को  अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की  छटवीं  साल गिरह को हमारा  देश  भारत विश्व  के साथ मना रहा है । जिसका श्रेय हमारे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी  को जाता है । 193 देशों ने महायोग किया । हमारे देश की 2 हजार पुरानी योग विधा को बाबा रामदेव ने  योग को देश विश्व  के  लोगों में फैलाया । योग तन , मन आत्मा को एकाकार  कर शारीरिक , मानसिक स्वास्थता प्रदान करता है ।  यूनेस्को ने योग को मानव संस्कृति के  जीवन दर्शन  को माना है ।
 कोरोना होने से हर उम्र के जन , मन , बाल ,युवा , बड़ों ने योग घर में किया । मैने भी योग किया ।कोविड से लड़ने के लिए योग मददगार है ।
दो साल पहले कार एक्सीडेंट से मेरे दोनों कूल्हे की हड्डी टूट गयी थी ।  खड़ी नहीं हो सकती , चल नहीं सकती थी । आज मैं    फिजियोथेरपीस्ट बेटी के मार्गदर्शन से और योग करने से मुझेे पुनर्जीवन मिला  मेरा जीवन योग वे मुझ से  प्रेरित होते हैं . मेरा जीवन परहित में काम आए ,यही मेरी उपलब्धि है . योग ,बचपन में  गंगा की पावन नगरी ऋषिकेश में  योग प्रशिक्षकों  के सानिध्य में योग सीखा . स्कूल में भी छात्रों को योग  भी सिखाती थी . 
योग करने से हमारा चित्त , मन आत्मा मस्तिष्क परात्मा से एकाकार हो जाता है ।  कोरोना महामारी की वजह से प्रधानमंत्री मोदी जी ने योग विद होम योग विद फेमिली  के साथ करें । 
84 लाख योनियाँ  जितने योगासन हैं । सिंहासन , भुजंगासन आदि । आसनों के अभ्यास से हम शारीरिक , मानसिक , संवेगात्मक रूप से हम अपने साकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं । हमारी मानसिक , शारीरिक , आत्मिक उन्नति होती है ।आसनों के द्वारा हमारे शरीर के सारे तंत्र को मजबूत करते  हैं  । मांसपेशियाँ शक्तिशाली होती हैं , रक्तसंचार तेजी से होता है । योग को हम नित्य करें । आंतरिक शुद्धि करने के लिए हम ध्यान भी करें ।प्राचीनकाल से लेकर अभी तक योगाचार्यों ने  इसे आगे बढ़ाया है । 
योग के द्वारा हम अनुकूलता , प्रतिकूलता में समान रह सकते हैं । हमारे आंतरिक तंत्र को योग मजबूत करता है । जिससे इंडोकलाइन ग्रन्थियाँ अपना काम करती हैं । हार्मोन्स सही बनते हैं । हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है । 
योग दिवस विश्वबन्धुत्व , भाईचारे के भाव  को जगाता है ।योग अर्थ होता है जोड़ना । जो जोड़े वही योग है । 
अतः दिल , दिमाग को स्वस्थ , सन्तुलित रखने के लिए योग करें , रोग भगाएं ।  तन , मन को गतिमान रखने , प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने , स्वस्थ मन से जीने की कला को हर जन , मन जरूर करे । 
   - डॉ मंजु गुप्ता
 मुंबई - महाराष्ट्र
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर यह विचारणीय विषय  'स्वास्थ्य मानसिकता का सबसे बड़ा राज है योग?' देकर जैमिनी अकादमी ने भारतीय मानस की विश्वव्यापी सोच 'सर्वे संतु निरामया' को और गति प्रदान की है। इसमें कोई संदेह नहीं कि योग,( जिसके आठ अंग है यम,नियम,आसन, प्राणायाम,प्रत्याहार, धारणा,ध्यान और समाधि) को अपनाकर मनुष्य देवत्त्व को भी पर्याप्त कर सकता है। आजकल योग के नाम पर आसन, प्राणायाम और ध्यान ही प्रचारित व प्रचलित है। भारत के योगी बाबा रामदेव जी ने विश्व में योग की पुनर्प्रतिष्ठा स्थापित की है। कोविड-19 संक्रमित मरीज जिन्होंने आसन, प्राणायाम किया जल्दी ठीक हुए।ये मानव के शरीर को विजातीय पदार्थों से मुक्त कराने का उपयुक्त साधन है। सीधी सी बात है,शरीर में टोक्सिन न होंगे,तो शरीर स्वस्थ रहेगा और स्वस्थ शरीर में ही  मस्तिष्क होता है।अब जब इतना होगा तो मानसिकता स्वस्थ होगी ही। भारतवर्ष की स्वस्थ मानसिकता का यही राज है। यदि अष्टांग योग के सभी अंगों को जीवन में उतारा जाए तो अलौकिक आनंद अनुभव होगा।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल' 
धामपुर - उत्तर प्रदेश
आज मानव अपरिचित परिवेश में किस तीव्र गति से जीवन जी रहा है उसका परिणाम एक तरफ आर्थिक समृद्धि तो दूसरी तरफ तनाव ग्रस्त जीवन और मानवता के टूटते तटबंध, मनुष्य आज तनाव से इतना ग्रस्त है कि वह अपनी मेहनत के फल का आनंद भी नहीं ले सकता है अतः स्वस्थ्य मानसिकता के लिए आज योग बडा ही प्रासंगिक है l 
                    कुछ शारीरिक अभ्यास मात्र योग नहीं है l मेरे विचारों में योग शरीर -मन -बुद्धि की एकात्मकता साधते हुए उसे अपने विस्तृत अस्तित्व के साथ साथ परिवार, समाज, राष्ट्र तथा सृष्टि के साथ भी जोड़ा जाता है l आज मानव समाज के समक्ष परिवेश यों है --
साजिशों ने सँवारा है हमको, तुम रहनुमा हो हर रोशनी के 
हम अंधेरों के पाले हुए हैं, जिनको हमने समाधान समझा 
वो खुद ताबीज लपेटे हुए हैं साज़िशों ने सँवारा........ 
              और इस साज़िश का विस्तारजीवन के हर क्षेत्र तक है चाहें परिवार, समाज, सियासत कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं l यहीं से हमारी स्वस्थ्य मानसिकता पर प्रश्न चिन्ह लगना प्रारम्भ हो जाता है समझने ही नहीं देती सियासत हमको सच्चाई, कभी चेहरा नहीं मिलता, कभी दर्पण नहीं मिलता l विकृत मानसिकता का ही परिणाम है कि आज तृतीय विश्व युद्ध के कगार पर मानव सभ्यता ख़डी है l क्योंकि
पड़े हैं नफ़रत के बीज दिलों में, बरस रहा है लहू का सावनl आँगन में हरी भरी है शरों की फसलें, बदन पे जख्मों के गुल खिले हैं ll
प्रधानमंत्री जी ने आज अपने उदबोधन में कहा कि योग एकता की एक शक्ति के रूप में उभरा है और यह नस्ल, रंग, लिंग, धर्म और राष्ट्रों के आधार पर भेदभाव नहीं करता है l आज कोरोना महामारी के समय दुनियाँ को योग की आवश्यकता पहले के मुकाबले ज्यादा है l उन्होंने कहा कोविड -19 हमारे श्वसन तंत्र पर हमला करता है जो प्राणायाम या सांस लेने संबंधी अभ्यास से मजबूत होता है l रोग प्रतिरोधकता बढ़ाता है योग l कहा गया है कि --
युक्त आहार विहारस्य, युक्त चैस्टसये कर्मसु l 
युक्त स्वप्ना -व -बोधस्य योगोभवति दुःख ll अर्थात 
अपना काम सही ढंग से करना ही योग है l गीता में श्री कृष्ण ने कहा कि "योगः कर्मसु कौशलम "अर्थात कर्म की कुशलता ही योग है l इफिशियंसी इन एक्शन इज योगा, समत्वं योग उच्येत अर्थात अनुकूलता -प्रतिकूलता, सफलता- विफलता, सुख दुःख हर परिस्थिति में समान रहने, अडिग रहने का नाम योग है l इस प्रकार का योग स्वस्थ्य मानसिकता को जन्म देता है l परिवार यदि योग से जुड़ता है तो पूरे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है l फेमिली बाउंडिंग भी इसका उद्देश्य है l 
                 योग कोविड -19महामारी द्वारा उतपन्न कई चुनौतियों का बहुआयामी समाधान मुहैया कराता है क्योंकि कोविड -19 मानव मानव को अलग कर रहा है l सोशल डिस्टेंसिंग की स्थिति पैदा कर रहा है l उसका पलटवार है मन और शरीर के बीच की दूरी, जो समाप्त कर दे वही योग है और शरीर और मन की दूरी स्वस्थ्य मानसिकता के लिए घातक है अतः स्वस्थ्य मानसिकता का सबसे बडा राज है योग l आज कोरोना महामारी के कारण मानव जीवन का हर क्षेत्र समस्याओं से घिरा हुआ है जिनसे निज़ात पाने का एक ही रास्ता है योग l जिनसे निज़ात पाने का एक ही रास्ता है l योग इसलिए सारी दुनियाँ में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस स्वीकार्य हुआ l आज जो प्रधानमंत्री जी द्वारा ईवेंट प्रस्तुत किया गया है वह है -माई लाइफ -माई योगा l आज हर आदमी संदेह, अंतर्द्व्द और मानसिक उथल पुथल की जिंदगी जी रहा है l दैनिक जीवन में तनाव महसूस कर रहा है l ऐसे में स्वस्थ्य मानसिकता तो कल्पना से परे है l लेकिन योग ऐसी तकनीकी है, विज्ञान है जो हमारे मन, शरीर, विचार और आत्मा को स्वस्थ्य करती हुई हमें स्वस्थ्य मानसिकता प्रदान करती है l अंत में इतना ही कहना चाहूँगी कि मनुष्य में सकारात्मक और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है योग क्योंकि शीशे में अपना चेहरा तभी दिखाई पड़ेगा जब शीशा साफ हो, स्थिर हो l उसी प्रकार शुद्धअन्तः करण से ही परम् ब्रह्म के दर्शन सम्भव हैं l हनुमान जी महाराज ने कहा है -
     श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि l
     बरनऊँ रघुवर विमल जसु, जो दायक फल चारि ll 
                    चलते चलते ---
सोचने से कहाँ मिलते हैं तमन्नाओं के शहर l 
चलना भी जरूरी होता है मंजिल को पाने के लिए ll
       और चलने के लिए तन और मन दोनों का स्वस्थ्य होना नितांत आवश्यक है l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
                    यह सर्वविदित है कि योग का प्रभाव संपूर्ण जीवन पर पड़ता है । सारी दुनिया योग के महत्व को जान चुकी है। योग न सिर्फ हमारे       तन बल्कि हमारे मन पर भी बहुत अच्छा प्रभाव डालता है।यदि  हमारा शरीर स्वस्थ होता है तो मन भी प्रसन्न और आनंद से भरा होता है ।स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन रहता है ।योग करने से जहां स्मरण शक्ति बढ़ती है, याददाश्त दुरुस्त होती है वहीं मस्तिष्क को शुद्ध रक्त भी मिलता है। इस कारण मन में सदैव खुशी व प्रसन्नता के भाव व्याप्त रहते हैं। हमारे विचार भी परिष्कृत होते हैं ।जो लोग किसी न किसी मानसिक बीमारी से पीड़ित होते हैं अथवा अवसाद ग्रस्त होते हैं उनके लिए योग बहुत प्रभाव कारी है उन्हें न सिर्फ अपने तनाव से मुक्ति मिलती है बल्कि मानसिक अवसाद से भी छुटकारा मिल जाता है। विभिन्न प्रकार के मानसिक रोग मिट जाते हैं। नियमित रूप से योग करने से व्यक्ति को बहुत  गहरी नींद आती है और अच्छी व गहरी नींद उसे अगले दिन सोकर उठने पर प्रसन्न और तरोताजा रखती है। नियमित रूप से योग करने से मन को शक्ति मिलती है और हमारी निर्णय क्षमता भी बेहतर बनती है। हमारे कई बुजुर्ग व्यक्ति जो नियमित रूप से योग से जुड़े हुए हैं आज भी मानसिक तौर पर बहुत मजबूत है उनकी स्मरण शक्ति भी बिल्कुल ठीक है  और जीवन में किसी भी तरह के निराशा के भाव नहीं आते हैं ।आज की बहुत स्पर्धा , भागदौड़ के , आपा-धापी के युग में यह बहुत जरूरी है कि व्यक्ति की मानसिकता स्वस्थ हो और स्वस्थ मानसिकता का सबसे बड़ा राज है योग। नियमित योग; हर स्थिति में योग। धन्यवाद।
 - डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम' 
दतिया - मध्य प्रदेश
यह कथन शत प्रतिशत सत्य है योग का अर्थ जोड़ना । शारीरिक स्वास्थ्य मानसिक स्वास्थ्य के ऊपर आश्रित है
राजेषटर यूनिवर्सिटी में योग को मानसिक ताबीज के नाम से पुकारा गया है
गीता में योग की चर्चा तीन अर्थों में की गई है ज्ञान योग दूसरा कर्म योग तीसरा भक्ति योग। तीनों योगों का समन्वय ही योग है। योग आत्मा और परमात्मा का मिलन है
सामान्य तौर पर योग एक तपस्या है अनुशासन है शारीरिक क्रियाओं का और मानसिक क्रियाओं का अनुशासित होना ही योग कहलाता है इस योग को कई प्रकार से किए जाते हैं प्रातः उठ कर नियम पूर्वक खुली हवा में टहलना भी योग कहलाता है क्योंकि इस योग से आपके शरीर में ताजी हवा प्रवेश करती है ऑक्सीजन भरपूर मिलता है जिससे शरीर का विषाणु टॉक्सिन दूर हो जाता है लेकिन यह प्रक्रिया अनुशासित ढंग से नियम पूर्वक होने पर ही 
योग कहलाएगा।
दूसरा योग प्राणायाम व्यायाम है जिसे नियमित रूप से करने पर मानसिक भावनात्मक पहलुओं पर नियंत्रण आसानी से किया जा सकता है।
तीसरा योग सूर्य नमस्कार है जिसके 12 मुद्राएं हैं इन मुद्राओं से एक अच्छा व्यायाम होता है और शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य लाभ भी होता है
जीवन अपने आप में एक योग है जिसमें खुशी शांति उन्नति साहस सहनशीलता जैसे गुणों को सापेक्ष तौर पर विकसित किया जाता है और जीवन में अनुपालन करते हैं तो जिंदगी अपने आप में एक योग है इसे स्वस्थ बनाना हर इंसान का परम कर्तव्य है
योग विद्या को तीन भागों में बांटा गया है पहला थिंक टावर दूसरा कार्मिक मेमोरी तीसरा साइकिल एनर्जी फ्यूल।
इन तीनों कारक को माध्यम से विकसित किया जाता है पहला तप दूसरा स्वाध्याय और तीसरा प्रबंधन इन तीनों के माध्यम से हर चुनौती का समाधान स्वता मिल जाता है

Healthy body has healthy mind स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का विकास होता है स्वस्थ मन के विकास के लिए नियमित योगा योग अनुशासन शिष्टाचार का होना अति आवश्यक है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्
आज विश्व योग दिवस है। यह हर भारतीय के लिए गर्व की बात है कि 2015 से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों के परिणाम स्वरुप 21 जून को विश्व के हर कोने में योग दिवस मनाया जाता है। स्वास्थ्य मानसिकता का सबसे बड़ा राज योग है। योग के जरिये शरीर, मन और मस्तिष्क को पूर्ण रूप से स्वस्थ्य किया जा सकता है। तीनों के स्वस्थ रहने से आप स्वयं को स्वस्थ्य महसूस करते हैं। योग के जरिये न सिर्फ बीमारियों को ठीक किया जा सकता है बल्कि इससे शारीरिक और मानसिक तकलीफों को भी दूर किया जा सकता है। योग प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाकर जीवन मे नव ऊर्जा का संचार करता है। योग शरीर को लचीला और शक्तिशाली बनाये रखता है। यह तनाव से भी मुक्ति दिलाता है जो रोजमर्रा की भाग दौड़ के लिए आवश्यक है। योग आसन और मुद्राएं तन व मन को क्रियाशील बनाए रखता है। योग भौतिक और मानसिक संतुलन करके शांत शरीर व मन प्राप्त करवाता है। तनाव और चिंता से राहत दिलाता है। यह शरीर मे लचीलापन, मांसपेशियों को मजबूत करने और शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ाने में मदद करता है। यह स्वशन उर्जा व जीवन शक्ति में सुधार लाता है। योग जीने की एक कला है जिसका लक्ष्य है स्वस्थ्य शरीर में स्वस्थ्य मन। मनुष्य का अस्तित्व शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक है। योग इन तीनों के विकास में सहायता करता है। योग शरीर मे प्रवेश करके मन व आत्मा को स्पर्श करता है। उसमें यम व नियम का पालन, प्राणायाम के द्वारा सांसों यानी जीवन शक्ति पर नियंत्रण, बाहरी वस्तुओं के प्रति त्याग, धारण यानी एकाग्रता, धयान यानी चिंतन, और अंत मे समाधि द्वारा योग से मोक्ष तक के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। योग भारत की प्राचीन परंपरा का अमूल्य उपहार है। यह 5000 साल पुरानी परंपरा है। हर व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिए रोजाना सुबह कम से कम एक घंटा समय निकालकर योग करना चाहिए। ताकि वह शारीरिक,  मानसिक रूप से स्वस्थ्य रह सके। सही ही कहा गया है कि स्वास्थ्य मानसिकता का सबसे बड़ा राज योग है। भारत मे योग को विश्वभर में प्रचार प्रसार करने में योग गुरु रामदेव महाराज का बहुत ही बड़ा योगदान है। रामदेव बाबा द्वारा बताए गए आसनों का लाभ कोरोना मरीजों ने उठाया है।कोरोना जैसे बीमारी को संक्रमित मरीज योग करके मात दिए हैं। इसलिए योग करके अपने शरीर को निरोग रखिए। 
अंकिता सिन्हा साहित्यकार
जमशेदपुर -  झारखंड
     भारतीय संस्कृति में योग का महत्वपूर्ण योगदान हैं। योग के माध्यम से ही दिनचर्या निर्धारित होती हैं। पर्यावरण संतुलन था,  इसलिए कहा जाता हैं,  समय पूर्व संध्या-खान-पान- विश्राम तथा प्रातः काल समयसीमा में उठकर निवृत्त हो जायें।
      गुरुकुल में ऋषि मुनि धर्म प्रवर्तक के साथ-साथ सभी तरह से शिष्यों को शिक्षित-प्रशिक्षित करते थे, यही युद्ध नीतियों में अपनी कौशलता दिखाते थे। धीरे-धीरे परिस्थितियों में सुधार होता गया और अलग-अलग तरीके से योगों का परीक्षण दिया जा रहा हैं। जो योग नहीं कर सकते, वे प्रातःकाल खुली हवा में सैर करते हैं, साईकिल पर निकलते हैं, उनके लिए  स्वास्थ्य लाभदायक होता हैं। वर्तमान परिदृश्य में चारों ओर प्रकृति का विनाश, वृक्ष कट रहे हैं,  प्रदूषण फैल रहा, जहाँ-वहां अनियंत्रित रुप से कारखाने, असमय खान-पान-परिवर्तित जिंदगी,
बिजलियों के उपकरण के बीच जीवन व्यतीत हो रहा हैं। भाग-दौड़ पूर्णतः बन्द, आराम दायिनी जीवंत हो गया हैं। जब शरीर से पशीना ही नहीं निकलेगा, तब शरीर स्वस्थ्य कैसा रहेगा। देखिये श्रमिकों को कड़ी मेहनत करता हैं, फिर बेफिक्र होकर आराम करता हैं,  जिसे योग की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती हैं।  जिनका शरीर अनियंत्रित हो गया हैं,हृदय,  मस्तिष्क (सरदर्द,माइग्रेन),अनिद्रा,थकान,तनाव तथा अनेकों शारीरिक-मानसिक रुप से ग्रसित हैं, उनके लिए "योग" फलदायक हैं। स्वास्थ्य ठीक होगा और मानसिक संतुलन को बनाए रखने के लिए सबसे बड़ा राज होगा?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट  - मध्यप्रदेश
 यह बात सही है कि स्वस्थ मानसिकता का सबसे बड़ा राजयोग है सिर्फ मानसिकता ही नहीं शरीर की स्वच्छता का भी सबसे बड़ा राज योग है योग का अर्थ है जुड़ाव या जुड़ना इस तरह पूरे अस्तित्व को देखते हैं तो सभी वस्तुओं एक दूसरे से जुड़े हुए हैं अर्थात एक दूसरे से अंतर्संबंध योग स्वरूप में बना हुआ है योग परमात्मा और आत्मा का मिलन है आत्मा और शरीर का मिलन है मानव और संसार का मिलन है इस तरह मिलन  अर्थात जुड़ाव, जुड़ाव अर्थात मिलन इस तरह से योग मानव जीवन में बहुत बड़ा राज है जो योग्य महत्व को जाता है वह व्यक्ति नित्य प्रतिदिन योग से शरीर आत्मा और परमात्मा का  अनुभव ज्ञान स्वरूप में प्राप्त करता है अतः स्वस्थ मन और तन योग से  प्राप्त किया जा सकता है।  जो शरीर संबंधी योग करता है तो उसे रोग बहुत कम होने की संभावना रहती है और जो व्यक्ति मानसिकता संबंधी योग करता है तो उसे मानसिक टेंशन नहीं होती है बल्कि बुद्धि में ज्ञान का विकास होता है ज्ञान का विकास से ही मनुष्य विवेक से मनुष्य बनता है अतः मन तन धन तीनों के लिए योग सबसे बड़ा राज है अतः मनुष्य को योग अपने आवश्यकता के अनुसार जरूर करना चाहिए एवं दूसरों को भी योग के लिए प्रेरित करना चाहिए। योग करके हमेशा मन और तन से निरोग होकर प्रफुल्लित रहना चाहिए अर्थात सुखी रहना चाहिए यही मनुष्य का लक्ष्य है इस लक्ष्य को पाने के लिए जरूर योग करना चाहिए योग के साथ-साथ योग्य अंतर्गत आने वाली आसन ,प्राणायाम व्यायाम, खेलकूद ,श्रम आदि आते हैं अतः मन और तन को स्वस्थ रखने के लिए कि किन्ही विधाओं का चुनावकर निर्वहन करना चाहिए। अतः हमारा जीवन में योग का सबसे बड़ा राज है योग करते रहिए, स्वस्थ रहिए ,मस्त रहिए और वातावरण को स्वच्छ रखिए।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
स्वस्थ मानसिकता का सबसे बड़ा राज है योग यह बात वास्तव में पूरी तरह से सही है क्योंकि एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है यदि हमारा शरीर स्वस्थ नहीं है और वह लोगों से गिरा है तो किसी ना किसी प्रकार से उसका प्रभाव मस्तिष्क पर अवश्य पड़ता है और यदि रोगों की अवस्था कुछ गंभीर है तो यह मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है और नकारात्मकता हावी हो जाती है जो हमारे जीवन को प्रभावित करती है योग न केवल हमारे शरीर को स्वस्थ रखता है बल्कि विभिन्न रोगों से भी शरीर की रक्षा करता है विभिन्न रोगों के अनुसार ही विभिन्न प्रकार के योग आसनों का भी अपना-अपना महत्व है यदि रोग के अनुसार इन   आसनों को संयमित रूप से ठीक ढंग से प्रतिदिन की दिनचर्या में सम्मिलित कर लिया जाए तो निश्चित रूप से हम स्वस्थ रह सकते हैं और हमारा मस्तिष्क भी नकारात्मकता से बचा रह सकता है यह जीवन के सर्वांगीण विकास में सहायक सिद्ध होता है
-  प्रमोद कुमार प्रेम
 नजीबाबाद- उत्तर प्रदेश
समस्त विश्व को योग के माध्यम द्वारा ‘अहं’ से ‘वयं’, ‘व्यष्टि’ से ‘समष्टि’ तथा ‘आत्म’ को ‘परमात्म’ तत्व से जोड़ने का माध्यम भी यह है । यह सच है कि सदियों से यह ज्ञान ऋषि–मुनियों, साधु–सन्तों और आध्यात्मिक चेतना के संवाहकों द्वारा विभिन्न रूपों में भारतीय उपमहाद्वीप में सुरक्षित था । आधुनिकता और इसके अनुसंधानों की चमक–दमक में आमलोग इसे गम्भीरता से नहीं ले रहे थे । लेकिन विगत दशक में कुछ साधु–सन्तों ने इसे लोक से जोड़ने का प्रयास प्रारम्भ किया और लाखों लोग इससे जुड़ते चले गए तथा इसके महत्व को भी समझा । योग के द्वारा अध्यात्म की साधना के साथ–साथ सम्पूर्ण आरोग्य की चेतना का प्रवाह भी इन्होंने किया 
भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने किया । विगत वर्ष के दिसम्बर में संयुक्तराष्ट्र महासभा में ‘अन्तर्राष्ट्रीय योगदिवस’ मनाने का प्रस्ताव रखा जिसे १७७÷१८० मतों से इस महासभा ने अनुमोदित किया और २१ जून २०१५ को प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय योगदिवस मनाने का निर्णय लिया गया । इसी के परिणामस्वरूप इस दिन १९२ देशों के २५१ से अधिक शहरों में योग के कार्यक्रम हुए और एक तरह से सम्पूर्ण विश्व ने इस पौर्वात्य मनीषा के प्रति सम्मान व्यक्त किया
पतंजलि ने सर्वप्रथम योगसूत्र की रचना की जिसमें इन्होंने योग को पारिभाषित किया ‘योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः ।’ पतंजलि के योग को राजयोग भी कहा जाता है । राजयोग से भिन्न ‘हठयोग’ है जिसका मूल तन्त्र ग्रन्थों में है । योग के ये दो रूप अधिक प्रचलित हैं । इसकी अन्य अनेक प्रणलियाँ भी हैं ।
योग की एक विशेषता यह है कि यह सूक्ष्म के स्तर पर आधिभौतिक सत्ता को नियंत्रित करता है, दूसरे शब्दों में मन के संयमन के द्वारा तन को स्वस्थ रखता है । एक उदाहरण के द्वारा इसे समझा जा सकता है कि होमियोपैथ एक ऐसी चिकित्सापद्धति है जिसमें दवा की मात्रा हम जितना ही कम करते हैं उसकी शक्ति उतनी ही बढ़ जाती है । ‘सम सम शमयति’ के सिद्धान्त पर चलता हुआ यह शास्त्र दवाओं की सूक्ष्म मात्रा से शरीर की रोगमुक्ति की क्षमता को जागृत कर देता है.और बिना किसी कुप्रभाव रोगी क्रमशः रोगमुक्त हो जाता है । योग इससे भी सूक्ष्म चिकित्सा विज्ञान है जिसका सम्बन्ध शरीर और मन दोनों से है । यहाँ विभिन्न आसनों और प्राणायाम के माध्यम से हम अपने शरीर की सुषुप्त शक्तियों को ही जागृत करते हैं और जब हमारी प्राण शक्ति जागृत होती है तो कम परिश्रम में ही वह अपने अनुकूल शरीर को बनाने का प्रयास करती है और हम शीघ्रता से रोगों से दूर भी होते है और रोग से मुक्त भी होते हैं । विज्ञान कहता है कि एक रोटी से हमें इतनी ऊर्जा मिलती है कि हम बारह किलोमीटर तक चल सकते हैं । लेकिन योग के द्वारा महज कुछ आसनों से हम इस ऊर्जा का निष्कासन कर सकते हैं ।
इतने गुणों से परिपूर्ण योग संसार और मानवता के लिए कल्याणकारी है । यह मनुष्य को स्वस्थ रखने के साथ–साथ सात्विक वृत्तियों को जागृत करता है, संसार में रहकर उसके पंक से स्वयं को दूर रखने की क्षमता विकसित करता है । इससे मनुष्य स्वयं को और अपनी क्षमताओं को पहचानता है । संतोष, स्नेह, प्रेम और परोपकार जैसे भाव जागृत होते हैं और वह तनावों से स्वयं को मुक्त रख सकता है । अगर ये वृत्तियाँ मानव मात्र में जागृत हो जाती है तो संसार में जो संघर्ष देखा जा रहा है और दूसरे का स्वत्व हड़पने की प्रवृत्ति देखी जा रही है उससे विश्व मुक्त हो सकता है, संकीर्णताओं की सीमा समाप्त हो सकती है, आतंक के साम्राज्य का अन्त हो सकता है और वेदों के ‘सर्वेअपिसुखिनःसन्तु सर्वेसन्तु निरामया’ की वाणी सार्थक हो सकती
योग का महत्व दर्शाती मेरी कविता 
योग दिवस पर :-

जीवन आंनंद 

योग भगाये सब रोग भैया 
राम देव बाबा ने बतलाया !!
रोज सबेरे उठ कर योग करना 
सेहत का अपनी ध्यान रखना !!
प्रण हम लेते , रहेगे निरोग
स्वस्थ राष्ट्र हो , स्वस्थ हो लोग !!
बड़े बड़े ऋषियों ने बतलाया 
योग से पाओगे जीवन आनंद ! !
योग की महिमा घर घर पहुंचाए 
भारत को समवृद्घ , स्वस्थ बनाए!!
विश्व गुरु है बना भारत आज 
योग जीवन साधना है जान लो आज !!
मुफ़्त ही निरोगी करे , करे कल्याण
शारीरिक कस्ट मिट जाए , देता है वरदान !!
ऋषि मुनियो ने सिद्धियाँ पाई कुण्डली जागृत योग सिद्धांत से हुई !!
योग ही जीवन साधना !
योग ही से लगाये ध्यान !!
योग दे चमकदार निरोगी काया 
पाओगें जीवन भोग और माया !!
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
स्वास्थ्य मानसिकता के लिए शारीरिक स्वस्थ रहना अावश्यक है। स्वस्थ रहना सबसे बड़ा सुख है। कहावत भी है:-" पहला सुख निरोगी काया"। कोई आदमी तभी अपने जीवन का पूरा आनंद उठा सकता है जब व शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहे। स्वस्थ शरीर में ही स्वास्थ मस्तिष्क निवास करता है। यह मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी शारीरिक स्वस्थ अनिवार्य है। दोनों ठीक रहने के लिए "*योग करो निरोग रहो"* हमारे योग गुरु बाबा रामदेव का स्लोगन है। यह बात पूरे देश में एवं विश्व में गूंज उठा है।और आज के दिन अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में 170 देश मना रहा है।
योग करने से मानसिक एवं शारीरिक रूप से मजबूत होकर जीवन यापन कर सकते हैं।
आज विश्व योग दिवस है।इस अवसर पर  हमारे युवा मुख्यमंत्री आज के दिन बच्चों के नाम समर्पित किया, उनका कहना है हमारे बच्चे स्वस्थ मानसिकता एवं स्वस्थ शारीरिक के रहेंगे तो समाज,राज्य,देश,स्वस्थ मानसिकता के होंगे। आज के दिन पूरे प्रशासन यंत्र बच्चों के टोली बनाकर सोशल डिस्टेंस पालन करते हुए योग्य अभ्यास में लगे हुए हैं। इस कार्यक्रम का नाम:-" स्वस्थ भारत यात्रा" रखा गया है। एक टोली मे बच्चों से योग शिक्षक एक प्रश्न किया:- सेहत क्या है? एक बच्चा उठकर जवाब दिया:- दूसरों का मदद करना। इस पर शिक्षक बोले:- यह सबसे अच्छी आदत है की जो लोग दूसरों की मदद करने की प्रवृत्ति रखते हैं वह आदमी स्वस्थ मानसिकता वाला कहलाता है। ऋषियों ने भी कहा है:- *शरीर ही धर्म का श्रेष्ठ साधन है।* शरीर और मानसिकता को तंदुरुस्त रखने के लिए नित्य प्रतिदिन योग करना आवश्यक है। जो व्यक्ति योग करते हैं वह अपने कार्य क्षेत्र में सदा कूल रहते हैं।
लेखक का विचार:- शरीर और मानसिक शांति के लिए नित्य प्रतिदिन योग करना आवश्यक है। जो व्यक्ति इसे अपनाए हुए हैं वह और दीर्घायु हो जाते हैं।* योग करो निरोग रहो*।
- विजेंयेद्र मोहन
बोकारो - झारखंड
योग क्या हैं? हमारे ऋषी मुनियों की मानव समाज को एक अमुल्य देन या धरोहर हैं जब कोई दुख तकलीप लेकर ऋषी मुनियों के पास जाता था तो दुख नाराकरण के साथ स्वस्थ ओर सुखी रहने के गुण भी हमे सिखायें जाते थे। इन दुखों कष्टो के निराकरण के लिये ही ऋषी मुनियों ने सस्ता सुलभ ओर  रह कोई कर सके ऐसा चमत्कारी आविष्कार किया ओर उसे "योग" का नाम दिया योग के कई अलग अलग प्रकार हैं ओर सब के लिये शुलभ हैं जीसको जो समस्या हो फिर वह शारीरीक हो या मान्शीक उसका निराकरण के लिये योग हैं जीसे हष्ट पुष्ट शरीर चाहिये उनके लिये अलग योग हैं जीसे शारीरीक पीढा दूर करना हो वैसी पीढा के हिसाब से अलग अलग योग हो सकते हैं जीसे मन्सशीक शान्ती चाहिये उनके लिये अलग योग हैं ओर जीसे कुछ अलग पाना है मानव के सम्पुरण रहस्य जानना हैं उनके लिये भी अलग योग के साथ ध्यान तपस्या का प्रावधान हैं कहने का मतलब यह है की ऋषी मुनियों की यह खोज समपुर्णाता लिये हैं ।
- कुन्दन पाटिल 
देवास -मध्यप्रदेश
ये बिलकुल सही है कि  स्वस्थ मानसिकता का राज योग ही है 
जब कोई व्यक्ति ब्रम्ह महूर्त में चार और पांच बजे के मध्य जाग कर उठ जाता है तो चाहे विषय वह योग करे या ना करे, मात्र आंगन में टहले ही तब भी लम्बी आयु का जीवन जीता है और स्वस्थ वा निरोगी रहता है ।
    टहलने मात्र से ही उस व्यक्ति के फेफडों  में सुबह की ताजी और शुद्ध वायु घुसती है जिससे व्यक्ति लम्बे समय तक स्वस्थ जीवन जीता है ।
तिसपर यदि व्यक्ति सुबह शौच आदी से निवृत होने के बाद पंद्रह या बीस मिनट तक योग साधना में लगा ले तो इससे व्यक्ति मानसिक रुप  से  स्वास्थ रह्ता है।
योग दो तरह के होते हैं- एक व्यायाम और दूसरा भातियां ।
व्यायाम जहां बाहरी शारीरिक अंगों की कसरत है  वहीं भातियां  हमारे आन्तरिक वायु और रक्त संचार प्रणाली को निर्बाध गति प्रदान करती हैं ।
    अता ये बात सत्य है कि योग हमारी मानसिक शक्तियों का विकास करता है ।
     -  सुरेन्द्र मिन्हास
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
आज विश्व योग दिवस पर परिचर्चा का मुख्य विषय अच्छा है। योग स्वास्थ्य , व मानसिकता का सबसे बड़ा राज है योग का मतलब है जोड़ । 
हम दुनिया भर में दुनिया भर के लोगों से मिलते हैं फेसबुक पर भी अनेक मित्रों से जुड़ते हैं पर कभी खुद से मिलने के लिए उत्सुक रहते हैं क्या  ?
जी हां  योग का मतलब है स्वयं से स्वयं  की मुलाकात । 
स्वयं  की मुलाकात यह नहीं है किसी  शीशे  के सामने अपनी शक्ल देख लो और हो गई खुद से मुलाकात  ।
श्वास और शरीर का एक ही संबंध है दोनों एक एक दूसरे के पूरक हैं हैं  ।
परंतु स्वास  और मन का भी एक संबंध है  ।यानी स्वास ,मन और शरीर के बीच की कड़ी है।
 मान लीजिए मन, पतंग के समान है तो स्वास , धागे के समान।
    धागा जितना लंबा होगा धागे स्वास पर आप जितना ध्यान देंगे पतंग मन उतनी ही ऊ ची उड़ेगी  या नि हमारे मन में उतना ही परिवर्तन आएगा ।
योग के द्वारा सांसो पर थोड़ा सा भी ध्यान देने से हमारे अंदर बहुत अच्छा परिवर्तन आता है लाखों लोगो ने ध्यान और स्वास्थ्य की से अब सातवें मानसिक किलो से से बाहर आते हैं  
क्योंकि सांसों में छिपा है जीवन का राज यदि हम सांसों के द्वारा नकारात्मक भावनाओं पर विजय पा सकते हैं तो हमारा जीवन संगीत के साजो सामान के समान मनमोहक बन जाता है इसलिए हमारा स्वास्थ्य  व मानसिक स्वास्थ्य  का  सबसे बड़ा राज है योग  । 
जो मनुष्य योग करता है उसकी पांचो ज्ञानेंद्रियां  नियंत्रण में रहती है जैसे हाथ ,कान, जीभ  , मुंह त्वचा ।
  कोरोना के संकट काल में भी योगी पुरुष ही कोरोना के संक्रमण से काफी हद तक बच रहे हैं । उन्हें मालूम है के बिना किसी वजह के घर से बाहर नहीं निकलना है तो नहीं निकलना है वह घर से एक कदम भी बाहर नहीं निकालते।और उन्हें मालूम है की हमें अपना हाथ बार-बार मुंह और आंखों तक नहीं ले जाना तो नहीं ले जाते उन्हें अपने शरीर पर नियंत्रण रहता है ।बाहर की वस्तु कोई नहीं खानी है घर की ही  बनी वस्तुएं आहार में लेनी है तब वे घर में बना आहार  ही खाएंगे ।
 इसलिए जो व्यक्ति  प्रतिदिन योग करते हैं उन्हें अपना अच्छा स्वास्थ्य  और मानसिक प्रसन्नता स्वत: ही मिलती रहती है। 
             - रंजना हरित             
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
बिल्कुल सत्य कथन है यह। योग जीवन का एक ढंग, कला और जीवन का एक विज्ञान है। यह समग्र दर्शन पर आधारित एक प्राचीनतम समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। इसका उद्देश्य सामंजस्यपूर्ण तरीके से एक एकीकृत व्यक्तित्व विकसित करना है। यौगिक प्रथाओं ने गुरुकुल शिक्षा का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया। ये प्रथाएं, विशेष रूप से आसन, हमारे महान ऋषियों द्वारा प्रकृति - वृक्षों, जानवरों और सप्तऋषियों को देखकर विकसित की गई थीं। योग में पहले मन और शरीर और आत्मा को बाद में प्रशिक्षित करने पर जोर है। यह स्वीकार करता है कि मन सभी ऊर्जाओं का भंडार है - सकारात्मक और नकारात्मक। सकारात्मक ऊर्जा रचनात्मक और संतोषजनक लक्ष्यों को बनाने और प्राप्त करने में मदद करती है, जबकि क्रोध, शत्रुता, ईष्र्या, भय जैसी नकारात्मक भावनाएं मानसिक अस्थिरता और शारीरिक रूप से टूटने का कारण बनती हैं। मन अपनी अवस्था के आधार पर पूरे शरीर में ऊर्जा को बहा या खिला सकता है।  योग से संभव है सकारात्मक दृष्टिकोण और अंत में पूर्ण संतुलन की मानसिक स्थिति को प्राप्त करना। यौगिक अभ्यास शारीरिक फिटनेस, मानसिक तेज, सतर्कता और स्थिरता, भावनात्मक संतुलन और पर्यावरण समायोजन को प्राप्त करने और बनाए रखने का एक बहुत प्रभावी साधन है। योगाभ्यास जीवन की कठिनाइयों को भारी खतरों के बजाय चुनौतियों और अवसरों के रूप में देखना सिखाता है।  आत्मविश्वास और दूसरों तक पहुँचने, समझने और उनकी देखभाल करने की क्षमता विकसित करता है। योग एक विज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की कला है। निस्संदेह योगाभ्यास सभी मानसिक उतार-चढ़ाव, भावनात्मक असंतुलन, मानवीय मूल्यों, अतार्किक सोच को नियंत्रित कर सकता है। अतः स्वस्थ मानसिकता का सबसे बड़ा राज़ योग है, इसमें कोई सन्देह नहीं है।
 - सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
"योग व्यक्ति को शांति, आत्मविश्वास और साहस प्रदान करता है।योग के द्वारा हम स्वतः प्रकृति से जुड़ जाते हैं।"
योग,ध्यान ये हमारे देश की सदियों पुरानी जीवन को स्वस्थ्य रखने की कला है। गीता में भगवान कृष्ण ने भी इसका वर्णन किया है। हमारे देश के ऋषि मुनियों और ज्ञानियों ने इसे अपनाया और इसके महत्त्व को बताया है। यूं तो योग को लोग शारीरिक फिटनेस के लिए ही जानते हैं लेकिन योग की जो क्रियाएं हैं वो मानसिकता को स्वस्थ्य रखने उत्तम अभ्यास है।ये हम सभी जानते हैं कि हमारा शरीर मन मस्तिष्क के निर्देशन में ही कार्य करता है। योग ऐसी क्रिया है जिसके द्वारा हमारे रक्त कार्बन से मुक्त होकर आॅक्सीजन से परिपूरित हो जाता है यानी आॅक्सीजन की अणुधारा इसमें समाहित हो जाती है और इस प्रवाह के माध्यम से हमारे मस्तिष्क और शरीर के सातो चक्र में नवशक्ति का संचार होता है।योग से नकारात्मक भाव तुरंत मिट जाते हैं। इसके अभ्यास से असाध्य रोग भी जड़ से खत्म हो जाते हैं।योग ऐसी क्रिया है जो कभी विफल नहीं हो सकता। इसके अभ्यास की निरंतरता बनी रहे ये आवश्यक है।ये एक ऐसा जरिया है जिसके नित अभ्यास हमें मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाता है। हमारे शरीर के स्नायुतंत्र और शरीर के प्रत्येक कोष में प्राण का संचार करता है और मानव शरीर में जब प्राण का संचार ऊंचा होता है हम खुशियों से लबालब भरे होते हैं।ये एक सरल प्रणाली है मन और तन को स्वस्थ्य रखने का।इसका अभ्यास किसी भी वक्त किया जा सकता है लेकिन उषा काल की वेला में योगाभ्यास श्रेष्ठ और आनंदमय होता है ये उत्तम समय है। आइए हम सभी योग अपनाएं अपने जीवन को निरोग और सर्वोत्तम बनाएं।
         - रेणु झा
रांची - झारखंड
जी हां वाकई  ये बात अक्षरसः सत्य है हम कह सकते है कि  स्वस्थ मानसिकता का सबसे बड़ा राज योग है।
 ,,करे योग रहे निरोग,,
 यह एक अमोघ मंत्र है, इसे अपनाना होगा ।
योग हमारे देश की प्राचीन परंपरा का ही हिस्सा है ।योग तो  आध्यात्मिक अनुशासन है, जिसमें तन मन और प्रकृति के बीच एकात्म भाव स्थापित किया जाता है। योग न केवल मन को स्वस्थ रखता है बल्कि मानव की संपूर्ण ऊर्जा को भी बनाए रखता है ।एवं शरीर को दुरुस्त रखता है ।विश्व में कई देशों के लोग हमारे देश में योग का प्रशिक्षण लेने आते रहते हैं ।कोविड-19 के दौर में योग एवं प्राणायाम व आयुर्वेद का महत्व बढ़ गया है ।योग, प्राणायाम मानव की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होता है। योग हमें शारीरिक ,मानसिक दोनों ही प्रकार की शक्ति प्रदान करता है। आज हमें फिर से योग को अपनाने का समय आ गया है एवं दूसरों को भी प्रोत्साहित करने का भी ।
 योग करना नितांत आवश्यक है, इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोतरी निश्चित होगी। योग स्वास्थ्य के साथ आपकी मनो स्थिति को बदलने के लिए अमोघ बाण है ।इसके लिए योग करते वक्त हमे कुछ बाते ध्यान मे रखनी आवश्यक हैं  ।योग करते वक्त   जमीन मे चटाई या तख्त पर ढीले कपड़े पहनकर ही योग करना चाहिए । सबसे पहले एकाग्रचित्त होकर अपनी श्वांस को बाहर छोड़कर ही योग प्रारम्भ करना चाहिए ।
 फिर बारी बारी से सांस बाहर निकालने और रोकने द्वारा आपका मन  शांत होता है।
 जब  कभी आप को अशांत सा महसूस हो या काफी क्रोध आए तो गहरा श्वास छोड़ें ।  खुद को कुछ हल्का महसूस करेंगे ।
  जितना संभव हो  स्वांस  को बाहर निकाल देना चाहिए ।वायु बाहर फेंके जाने के साथ मनोदशा बाहर फेंकी जाएगी क्योंकि  श्वांस ही सब कुछ है ।
समग्रता से स्वास छोड़े और समग्रता से सांस खींचें और एक इसके मध्य एक तारतम्य  स्थापित कर लें ,यही योग का सारांश है ।
सांस छोड़ने  और सांस ग्रहण करने के बाद  रुके रहना है ,उसके बाद खुद में एक परिवर्तन सा महसूस होता है जो संपूर्ण अस्तित्व में उतरा उतरा सा प्रतीत होता है ।सुंदर मनोदशा महसूस होती है ।यदि   आप अपनी 
मनोदशा परिवर्तित करते हो तो सोचना परिवर्तित कर देते हो। तुम्हारे पास तुम्हारी मनोदशा की कुंजी है ,जैसी मनोदशा चाहो प्राप्त  कर सकते हो ।यह तुम पर निर्भर है ।
 योग के बाद बहुत सुंदर सा अनुभव प्राप्त करोगे ।यह काम, क्रोध ,मद एवं  मोह की अतिरिक्तता  से मुक्ति दिलाने का कारगर उपाय है ।
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का अमोघ अस्त्र भी  योग ही है ।
अगर तुम किसी मनोदशा को उत्पन्न करना चाहते हो तो इसके साथ ही  योग के ढांचे  को स्वयं मे स्थापित  करो । वर्तमान परिवेश को देखते हुए 
कोविड 19 से बचाने मे योग की अहम भूमिका है ।
कुल मिलाकर हम कह सकते हैं आज के परिवेश में योग को अपनाना नितांत आवश्यक हो गया है ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
ये सही है कि स्वास्थ्य मानसिकता का सबसे बड़ा राज योग है।योग का मतलब है जोड़ना।यह आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है। जिससे आत्मशक्ति और आत्मविश्वास पैदा होता है।योग के अंतर्गत व्यायाम और प्राणायाम आते हैं। व्यायाम से शरीर में ताकत और लचीलापन आता है। प्राणायाम से मन और शरीर दोनों स्वस्थ रहते हैं। प्राणायाम से हमें प्राणवायु मिलती है। सभी जानते हैं कि मनुष्य को जीने और स्वस्थ रहने के लिए आक्सीजन की सबसे अधिक जरूरत है। प्राणायाम से हमें भरपूर आक्सीजन मिलती है जिससे शरीर और मन के सभी तंत्र दुरुस्त रहते हैं। मानसिक शांति मिलती है।मन से नाकारात्मक के भाव दूर होते हैं, आत्मविश्वास और ईश्वर पर भरोसा बढ़ जाता है। डिप्रेशन नहीं होता।शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए प्राणायाम बहुत लाभदायक है। पढ़ने वाले बच्चों का दिमाग तेज होता है, यादाश्त शक्ति बढ़ती है। माइग्रेन रोग, भूलने की आदत,सिर दर्द,ब्लडप्रेशर कम या ज्यादा अथवा कोई भी मानसिक बिमारी हो योग और प्राणायाम से ठीक हो जाता है। सुबह यदि आधा घंटा भी योग कर लिया जाए तो सारा दिन ताजगी महसूस होती है।शरीर भी तभी स्वस्थ रहता है जब मन स्वस्थ हो।योग से अच्छी नींद आती है और अच्छी भूख लगती है।ये दोनों ही अच्छे स्वास्थ्य की निशानी है।
अतः योग और प्राणायाम से मन और तन दोनों ही स्वस्थ रहते हैं।
- डॉ सुरिन्दर कौर नीलम
राँची - झारखंड
स्वस्थ तन तो स्वस्थ मन..यही शाश्वत सत्य है। योग न सिर्फ हमारे शरीर को स्वस्थ बनाता है बल्कि हमें मानसिक बल भी देता है। हमारा देश ऋषियों मुनियों के देश है। जहाँ योग कण कण में बसा हुआ है।  आज कोरोना का जब कोई इलाज नही है और दुनिया लाचार हो गई है, इस समय योग उन्हें मानसिक व शारीरिक तौर पर बेहतर बना रहा है। लोग कोरोना जैसे बीमारी से लड़ पा रहे हैं और जीत भी रहे हैं तभी भारत में मृत्यु दर बहुत कम है। क्योंकि बीमारी से ज्यादा डर उन्हें तोड़ देता है और कोरोना की जीत हो जाती है। लेकिन जिन लोगो ने दवाई के साथ योग को भी अपनाया, बे सब पूर्ण रूप से जल्दी ठीक हुए।
योग मन के अवसादों को दूर करने में बहुत सहायक है। मन की चंचलता को स्थिर करता है। जीवन मे सन्तुष्टि का भाव लाता है। जीवन को सुगम और सहज बनाता है। मन शक्तिशाली बनेगा तो हर मुश्किल आसान हो जाती है। योग हृदय की स्पंदन है। दिखने में आप कितने भी ताकतवर या हृष्ट पुष्ट हो मगर मन स्वस्थ नहीं तो आप जीवन को आनंद से नहीं जी सकते। इसका अभी हाल ही में हुआ अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत का उदाहरण है। रोज जिम जाकर शरीर तो स्वस्थ बना लिया, लेकिन मन के अवसादों से निकल नहीं पाया।
इसलिए स्वस्थ तन में स्वस्थ तन बस्ता है।
- सीमा मोंगा
रोहिणी - दिल्ली
        योग सर्वगुण संपन्न क्रिया है। जिससे मानव का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य स्वस्थ रहता है। यह रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। जिससे शरीर हष्ट-पुष्ट होता है। जिसका शरीर हष्ट-पुष्ट होता है उसका मानसिक स्वास्थ्य संतुलित रहता है।
     वर्तमान समय में कोरोना के भय से यूं भी मानव भविष्य की अज्ञात चिंताओं के कारण अवसाद में जी रहे हैं। जिसके फलस्वरूप कई लोग आत्महत्या कर रहे हैं।जो किसी भी प्रकार की समस्या का समाधान नहीं है।
    आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है।जो प्रतिवर्ष 21 जून को मनाया जाता है। यह दिन वर्ष का सबसे लम्बा दिन होता है और योग भी मनुष्य को दीर्घ जीवन प्रदान करता है। पहली बार यह दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया था। जिसकी पहल भारत के माननीय शिरोमणि प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी नें 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण से की थी। 
     सर्वविदित है कि योग हमारी प्राचीन परंपरा है। यह योगियों मुनियों द्वारा तप, त्याग और तपस्या से संबंधित है। इसका भारत भारतीय और भारतीयता को आत्मनिर्भर बनाने में भी विशेष योगदान है।अब कोरोना काल में 'नमस्ते' परम्परा को भी विश्व में सराहा गया है। चूंकि यह स्वस्थ रहने का मूल मंत्र है। अतः स्वस्थ मानसिकता का सबसे बड़ा गूढ़ रहस्य योग ही है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
योग का अर्थ ही है जोड़ना | योग हमें मन और शरीर दोनों से जोड़ता है|जिसके नियमित अभ्यास से रक्त संचालन ,स्मरणशक्ति,पाचन क्षमता में वृद्धि होती है|नसों  ,मांसपेशियों में उपर्युक्त मात्रा में रक्त का संचार होता है|जिससे मस्तिष्क में शुद्ध रक्त पहुँचता है और हमारी मानसिक शक्ति सुदृढ़ होती है|
आज की हमारी आधुनिक जीवन शैली मानसिक बीमारी और तनाव उत्पन्न करता है|योग श्वास एवं ह्रदय गति को नियंत्रित कर तनाव व चिंताएँ दूर करता है |
योग करने से मस्तिष्क में जाने वाली रक्त सप्लाई में सुधार होता है,योग ,दिल की धड़कन की गति को भी नियंत्रण में रखता है जिससे कठिन परिस्थितियों में शांत रहने में मदद मिलती है तथा हमारी याददाश्त को मज़बूती प्रदान करता है जिससे लम्बे समय तक ध्यान लगाकर काम करने की क्षमता बढ़ती है |अत:स्वस्थ्य मानसिकता में कुछ हद तक योग भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है|
- सविता गुप्ता 
राँची - झारखंड
योग आदिकाल से स्वास्थ्य का साधन रहा है। जब दवा नहीं थी तब योग विद्या ही स्वस्थ रहने का साधन था। स्वरूप अलग हो सकते हैं। 
योग मानसिकता को भी शुद्ध करता है और शरीर के सभी अंगों की हलचल को बनाये रखता है। रक्त के बहाव को हर अंग तक पहुँचाने का कार्य करता है। व्यक्ति अपने आप में जागृत रहता है। 
हर व्यक्ति का विश्वास है योग साधना। उचित योग रोग से मुक्ति दिलाता है ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
         कहते हैं स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन निवास करता है मन का सीधा संबन्ध दिमाग से होता है ।योग करने से शरीर के विकार दूर होगें ,शरीर ऊर्जावान रहेगा ।इतना ही नहीं ,बल्कि हमारी सोच भी सकारात्मक होगी ।अच्छी मानसिकता शरीर और समाज दोनों के लिए लाभप्रद होंगी ।किसी भी मशीन को चलायमान रखने  के  लिए वक्त -वक्त पर उसकी सफाई जरुरी है ।योग से  हमारे शरीर का हर तंत्र ठीक से काम करता है ।हम देखते हैं हमारे सभी योग गुरु हमें निरोगी रहने  के लिए तरह -तरह के योगाभ्यास बताते हैं तो योग हमारे लिए संजीवनी बूटी जैसी ही है ।योग के समय हम बाहरी दुनिया को भूल जाते हैं ।मन में एकाग्रता आती है अर्थ है उतने समय तक हमारी इन्द्रियाँ हमारे वश में रहती है ।मन संयम का पालन सीखता है ।इस प्रकार मानसिकता का राज योग है ।
                         - कमला अग्रवाल
                         गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
“बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते। तस्माद्योगाय युज्यस्व योग: कर्मसु कौशलम्”।।इति।।
श्लोक के उत्तरार्ध पर यदि गौर करें तो दो बातें स्पष्ट होती हैं। पहली योग की परिभाषा एवं दूसरी योग हेतु प्रभु का स्पष्ट निर्देश। उनका उपदेश है कि ‘योगाय’ अर्थात् योग के लिए अथवा योग में, ‘युज्यस्व’ अर्थात् लग जाओ। कहने का तात्पर्य है कि ‘योग में प्रवृत्त हो जाओ’ यानि कि ‘योग करो’। 
व्यायामात् लभते स्वास्थ्यं दीर्घायुष्यं बलं सुखं। आरोग्यं परमं भाग्यं स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम् ।।
व्यायाम से स्वास्थ्य, लम्बी आयु, बल और सुख की प्राप्ति होती है। निरोगी होना परम भाग्य है और स्वास्थ्य से अन्य सभी कार्य सिद्ध होते हैं ।
स्वास्थय और स्वस्थ मानसिकता का राज व आधार है योग। योग का जीवन से गहरा रिश्ता है।यह जीवन को स्वस्थ व ऊर्जावान बनाता है,तथा मनःस्थिति को स्थिर रखता है जिसकी आज के वातावरण में बहुत आवश्यकता है । योग सही तरह से जीने का विज्ञान है और इस लिए इसे दैनिक जीवन में शामिल किया जाना चाहिए। यह हमारे जीवन से जुड़े भौतिक, मानसिक, भावनात्मक, आत्मिक और आध्यात्मिक, आदि सभी पहलुओं पर काम करता है। योग का अर्थ एकता या बांधना है। इस शब्द की जड़ है संस्कृत शब्द युज, जिसका मतलब है जुड़ना। आध्यात्मिक स्तर पर इस जुड़ने का अर्थ है सार्वभौमिक चेतना के साथ व्यक्तिगत चेतना का एक होना। व्यावहारिक स्तर पर, योग शरीर, मन और भावनाओं को संतुलित करने और तालमेल बनाने का एक साधन है। विशेषकर युवाओं को। योग मानव के शरीर ,मन व आत्मा को उर्जा, ताकत व सौन्दर्य प्रदान करता है। योग एक ऐसी क्रिया है जिसमें जोड़ा जाता है।योग को अपनाने से ही आप सेहतमंद बने रहते हैं। योग सबसे पहले लाभ पहुँचाता है बाहरी शरीर (फिज़िकल बॉडी) को, जो ज्यादातर लोगों के लिए एक व्यावहारिक और परिचित शुरुआती जगह है। जब इस स्तर पर असंतुलन का अनुभव होता है, तो अंग, मांसपेशियां और नसें सद्भाव में काम नहीं करते हैं, बल्कि वे एक-दूसरे के विरोध में कार्य करते है। बाहरी शरीर (फिज़िकल बॉडी) के बाद योग मानसिक और भावनात्मक स्तरों पर काम करता है। रोज़मर्रा की जिंदगी के तनाव और बातचीत के परिणामस्वरूप बहुत से लोग अनेक मानसिक परेशानियों से पीड़ित रहते हैं। योग इनका इलाज शायद तुरंत नहीं प्रदान करता लेकिन इनसे मुकाबला करने के लिए यह सिद्ध विधि है।
वर्तमान समय में अपनी व्यस्त जीवन शैली के कारण लोग संतोष पाने के लिए योग करते हैं। योग से न केवल व्यक्ति का तनाव दूर होता है बल्कि मन और मस्तिष्क को भी शांति मिलती है योग बहुत ही लाभकारी है। योग न केवल हमारे दिमाग, मस्‍तिष्‍क को ही ताकत पहुंचाता है बल्कि हमारी आत्‍मा को भी शुद्ध करता है। आज बहुत से लोग मोटापे से परेशान हैं, उनके लिए योग बहुत ही फायदेमंद है। योग के फायदे से आज सब ज्ञात है, जिस वजह से आज योग विदेशों में भी प्रसिद्ध है।
- जगदीप कौर
अजमेर - राजस्थान


" मेरी दृष्टि में " योग से शरीर को स्वास्थ्य रखा जा सकता है । स्वास्थ्य शरीर से मानसिक रूप से भी स्वास्थ्य रहना सम्भव है । यानि योग का महत्व जीवन में बहुत अधिक है । योग भारतीय सस्कृति की देन है । अब तो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता मिल चुकी है ।
                                                    - बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र 



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