फादर्स डे रत्न सम्मान - 2020

फादर्स डे पर भारतीय लघुकथा विकास मंच , पानीपत - हरियाणा ने 11 लघुकथा को " फादर्स डे रत्न सम्मान - 2020 " से सम्मानित किया गया है । जो फेसबुक ग्रुप द्वारा डिजिटल लघुकथा के साथ सम्मान पत्र दिये गये है । 34 से अधिक लघुकथा आई । सभी एक से एक सुन्दर लघुकथा साबित हुई है । परन्तु नियमानुसार 11 को ही सम्मानित करना हैं । जो इस प्रकार है : -

फादर्स डे पर सम्मानित - 01                                        

                                     लाठी                             

  बेटे ने आकर पिता के चरण-स्पर्श किये।
   पिता ने ढेर सारा आशीर्वाद दिया।
    बेटा बोला-"बापु मैं  कभी विवाह नहीं करूंगा!"
     पिता हँसे-"क्यों बेटा?"
    बेटा-"क्योंकि विवाह के बाद बेटा-बहु  अलग हो जाते हैं,, फिर माता पिता  को अकेले रहना पड़ जाता है।शहर में आजकल ऐसा ही हो रहा है"।
    दरअसल इस पिता के दो पुत्र हैं।बड़ा पढ़ -लिख कर अपनी नौकरी के सिलसिले में शहर में रहता है।छोटा साथ में है।पत्नी का देहांत पिछले वर्ष ही हो गया था।छोटा सा खेत है।अब उन्हें कम दिखता है।खेत छोटा सँभालता है।खाने योग्य अन्न पैदा हो ही जाता है।बड़ा हर माह खर्च के लिये कुछ रूपये  भी भेजता है।छुट्टियों में वे घर भी आते हैं।
    पिता ने बेटे के कँधों पर हाथ रखा-"बेटा हर घर में ऐसा हो यह जरूरी नहीं।फिर यह परिस्थिति पर निर्भर करता है।समय पर तुम्हारा विवाह भी होगा।ईश्वर सब ठीक ही करता है।"

    बेटा पिता के गले लग कर रोने लगा-",नहीं...नहीं... बापु मैं तुम्हारी लाठी बन कर सदा तुम्हारे साथ ही रहूँगा।" ****
 - महेश राजा
महासमुंद - छत्तीसगढ़

फादर्स डे पर सम्मानित - 02                                        

                            किताब थी वो                  

आज पिता जी स्वस्थ हैं और अपनी मूंछों में उतना ही ताव देते हैं।जितना कि अपनी सर्विस यानी केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल में रहते हुए देते थे।या जब 1988 का राष्ट्रीय पुलिस गोल्ड शूटिंग में जीतकर दिया होगा।राइफल शूटिंग में नेशनल तथा बास्केटबॉल और वॉलीबाल में भी अपनी बटालियन के लिए खेलते होंगे।
         पर आज बात अलग है।ये बात तब की है जब में अरुणाचल प्रदेश में आलोंग के असम राइफल्स के हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहा था। मैं कक्षा 4 में पढ़ता था और पिता जी की पोस्टिंग जम्मू कश्मीर में थी।हम खूब मौज करते थे और अक्सर एक दूसरे की चिट्ठियों को गिना करते थे।मेरी ही सबसे ज्यादा हुआ करती थी।शायद तभी से लिखने का शौक भी लग गया होगा।
        आज हॉस्टल वार्डन सर ने बुलवाया और जो बुलाने आया था उसने कहा तुम्हारा पार्सल आया है।वार्डन सर से के पास जाओ। मैं भागता हुआ गया।जब पार्सल देखा तो खुशी से फूले नहीं समा रहा था।पर सच बताऊं तो मन में अब तक चिट्ठियों के बारे में सोचता था आज पार्सल भी देख लिया।कुछ रोज पहले एक बड़े भैया का भी पार्सल आया था और कुछ खाने का समान था।मेरे भी मन में यही  था कि शायद पिता जी ने कश्मीर से खाने का कुछ भेजा होगा।चारों तरफ देखा तो कोई नहीं था।झटपट खोलना शुरू कर दिया।हर परत के साथ उत्सुकता बढ़ती जा रही थी।आखिर अंतिम परत तक पहुंच ही गया।
      मिठाई तो मिली नहीं पर को चमचमाती चीज मिली उस से चेहरे की मुस्कान और बड़ गई।एक मोटी सी किताब जिस पर लिखा था "ईयर बुक" सामान्य ज्ञान।मैंने उसे बड़े जतन से रखा और उसके लिए सबसे अच्छा जिल्द ढूंढा और फिर उस पर अपनी कैलिग्राफी के साथ लिखा... Father's Gift....
Naresh Singh Nayal...with love from Jammu and Kashmir.
          तब से मुझे पढ़ने का शौक चड़ गया।बड़े संभालकर रखा उसे और ना जाने कितने सालों ताक उसी ईयर बुक को पड़ता रहा कि शायद सब इसी में होता होगा।पिता जी का वह उपहार एक किताब के रूप में आज तक पढ़ाई और लिखाई का अंश जीवन में चलता जा रहा है।"पिता जी आप स्वस्थ रहें और अपना आशीर्वाद बनाए रखें।" ****
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड

फादर्स डे पर सम्मानित -03                                          

                                खजूर का पेड़                        

वह अपने घर से बाहर निकल, पार्क में आ गया। उसके दिमाग में अभी भी अपने बेटे के शब्दों को लेकर उथल-पुथल मची थी।
' क्या किया आपने हमारे लिए? अपनी मस्ती के लिए लाइन लगा दी हमारी। न ढ़ंग का खा सकते हैं, न पहन सकते हैं।'
 उसके बेटे ने ठीक ही तो कहा। लेकिन बेटे का कहने का अंदाज तो ठीक नहीं था। मन में इन बातों पर विचार करते हुए, अपनी नम हुई आंखों को, वह पोंछने लगा। 
वह बुदबुदा रहा था, मैं अपने मां बाप का इकलौता बेटा रहा मां बाप को सुख ना दे सका। अब सोचता था कि मेरे चार पांच बेटे होंगे तो मुझे कुछ सुख मिलेगा, लेकिन मैं तो उनकी परवरिश ही ठीक तरह नहीं कर पाया। मैं तो खजूर का पेड़ रहा ना किसी को छाया दे सका और न फल। ****
 - डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश

फादर्स डे पर सम्मानित - 04                                    

                            पिता का प्यार                

बिन्नी को २३वां साल लगा था । उसके भाई सुनील को अब उसकी शादी की चिन्ता है । सुनील ने पापा  के चले जाने के बाद उसको बड़े लाड़ प्यार से पाला है । मामाजी ने बिन्नी के लिए कोई लड़का बताया है । सुनील चाहता है कि लड़का देखने जाने से पहले वह बिन्नी की मर्ज़ी के बारे मे जान ले ताकि बिन्नी ख़ुश रहे । सुबह उठते ही सुनील ने बिन्नी को आवाज लगाई , बिन्नी —- ओ बिन्नी , सुन ,” क्या हुआ भइया क्या बात है ? सुन बिन्नी , मै तुम्हारे  लिए लड़का देखने जा रहा हूँ , तुम्हारी कोई पसंद या मर्ज़ी है तो तुम मुझे बता सकती ।”  जी , भैया  एक बात है , लड़का आप अपनी पसंद का कैसा भी देख लेना पर मै ऐसे लड़के से ही शादी करूँगी जिसका पिता जीवित हो । साथ बैठी हुई बिन्नी की भाभी एकदम से चौंक कर बोली - ,” मै तो बुददु ही रह गई , मुझे भी सुनील से शादी नही करनी चाहिए थी इनके भी पिता नहीं है ।” बिन्नी बोली , “ भाभी आप ऐसा कैसे सोच सकती थी । आप ने कभी पापा की कमी को महसूस ही नही किया । मैंने महसूस किया है इसलिए कह रही हूँ कि मुझे ससुराल मे तो कम से कम पिता ( ससुर ) का प्यार मिले । सुनील और उसकी पत्नी अवाक बिन्नी की ओर देखते रह गए । 
       - नीलम नारंग 
 हिसार - हरियाणा

फादर्स डे पर सम्मानित - 05                                      

                                  पिता                           

बच्चा किलकारी मार रहा था। खूब उछल रहा था। उतने ही उत्साह से बोल रहा था, 
- पापा !....पापा  ! ..... पापा!
पापा की अथाह खुशियों को पर लग गए थे। वे बलि-बलि जा रहे थे। आज दो दिन से मुन्ने की जुबान से फूल झरकर पापा को मस्त किए दे रहे थे। बच्चे की किलकारी उनकी किलकारी में बदल गई थी। 

एक कोने में दो मासूम, मिचमिची बूढ़ी आँखों से बूँदें गिर रहीं थीं, 
टप!.... टप!....टप!!   
- अरे ऽऽ! आप रो रहे हैं? क्या हुआ बाबूजी ?...मुझसे कोई तकलीफ....?.....निशा ने कुछ कह दिया क्या?
- .....अरे, कुछ नहीं बेटे। बस, तुम्हारे पहली बार पापा बोलने की अदा याद आ गई।   ****
- अनिता रश्मि
  रांची - झारखंड

फादर्स डे पर सम्मानित - 06                                           

                               वसीयत                          

"पापा! ये आपने कैसी वसीयत लिखी है? मुझे धर्मसंकट में डाल दिया।" विभोर ने रोते हुए मन ही मन कहा। 
"अरे! इतना क्या सोच रहा है, देहदान कर और करोड़ों रुपये की संपत्ति अपनी मुट्ठी में। वैसे भी तेरे दम पर तू कभी इतनी दौलत नहीं कमा सकता।" विभोर के दिमाग ने सलाह दी। 
" ऐसा सोचना भी मत। दुनिया क्या बोलेगी, इकलौता बेटा और पैसे की खातिर बाप का अंतिम संस्कार भी नहीं होने दिया।" इस बार दिल से आवाज आई। 
" दुनिया का क्या है? यह तुम्‍हारे पिताजी की अंतिम इच्छा है, वसीयत में लिखा है। ज़्यादा भावुक होने की आवश्यकता नहीं है। सोच लो! नहीं तो पूरी दौलत हॉस्पिटल ट्रस्ट के नाम।" दिमाग ने टोका।
" विभोर! जो भी निर्णय करना है, जल्दी करो। अगर एक बार बॉडी खराब होना शुरू हो गई तो फिर ये हमारे किसी काम की नहीं।" विभोर के पिता के डॉo मित्र, जिनकी प्रेरणा से उन्होंने देहदान का संकल्प लिया था, ने कहा।
" मैंने निर्णय ले लिया है अंकल। पापा की अंतिम इच्छा का सम्मान होगा और यह संपत्ति भी ट्रस्ट के नाम। मैं केवल इसका दस प्रतिशत लूँगा वो भी उधार। ऐसा हो सकता है न वकील साहब।" विभोर ने आँसू पोंछते हुए कहा।
दिल और दिमाग दोनों उसके निर्णय पर अचंभित थे।****
 - अजय गोयल
गंगापुर सिटी - राजस्थान

फादर्स डे पर सम्मानित - 07                                       

                                मेरे बाबू जी                        

 ना कह पाने की उन की बेबसी मुझे झकझोर दे रही है ।
मेरे कुछ भी पूछने पर बस हाथ जोड़कर सिर उठा हां ना ,में ही जवाब दे देते है ।
जिस के सामने बोलते हुए कभी हम घिघियाने लगते थे उस की ये दशा । भरा हुआ चेहरा ,लम्बा गठीला बदन  आज एक हड्डी का ढांचा जान पड़ता था । देखकर 
कौन कह सकता था  कि ये वही बाबू जी है जिन के पास आते हुए हम बहन , भाई घबराते थे ।हमेशा अपनी मर्जी करना मां  की कही हर बात को दबा देना उन का  अपमान  ,करना   जन्म सिद्ध अधिकार मानते थे । मां को हमेशा रोते हुए ही देखा था ।
अगर किसी को घर में मान  देते थे तो वह बड़ा भाई ही था ।
उस के बाद  दो बहनों के जन्म से 
ही  मां से नाराज़ रहने लगे थे ।
जैसे मां  ही उन के जन्म की जिम्मेदार हो। मेरे जन्म पर वो नहीं चाहते थे कि मैं इस दुनिया को देखु। मां को वैद्य के पास भी ले गये थे ।पर मां  के इनकार करने पर नानी के पास छोड़ आए थे ।
 मेरे जन्म की  सुचना पा कर भी नहीं आए थे ।
 फिर एक दिन नाना जी ही मां को 
 घर पर छोड़  गये थे ।
मुझे याद नहीं पड़ता की कभी बचपन में मुझे गोदी में उठाया हो।
दोनों बड़ी बहनों भाई  की शादी हो जाने पर मां भी बीमार   रहने लगी थी । दो-तीन बार तो लगा की बस अब उन का अन्त  निश्चित है । जैसे मेरी विदाई का ही इंतजार कर रही थी ।
एक दिन मेरे  ससुराल विदा  होते ही वे भी संसार से विदा हो गयी थी ।
 बाबू जी ने कभी हम बहनों की खबर  नहीं ली थी ।भाई  ही शहर  उनको साथ ले आया था ।
हम बहने अपनी अपनी गृहस्थी में रम गयी  थी । 
उस दिन जब वृद्धा आश्रम में एक बुजुर्ग को अलग बैठे देखा  और सामान देने  के लिए जैसे ही हाथ आगे किया था तो देखती ही रह गयी थी। बाबू जी इस हालत में ! 
अपने साथ घर ले आयी थी ।
आज  तबियत खराब लग रही थी सुबह से कुछ खा भी नहीं पा रहे थे । डाक्टर को दिखाया था ।
दवाई देने लगी तो उस का  हाथ पकड़  रो पड़े बोले बेटी मुझे माफ़ कर दो।  मेरे हालात का जिम्मेदार मैं ही हूं । मैंने तुम को कभी प्यार  नही ....  सिसकने लगे ।
  बरसती आंखों से उस ने बाबू जी 
के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा 
 हो तो आप ही मेरे बाबू जी .....।****
-  बबिता कंसल 
      दिल्ली

फादर्स डे पर सम्मानित - 08                                        

                               मज़बूत कंधे                            

"क्या पापा? कितना समझाया था आपको? फ़िर भी आपने केस वापस नहीं लिया अब तक? दीदी के जाने का दुःख हम सभी को है। पर उसकी बेटी के पालन-पोषण का भार उसके ससुराल वालों पर ही रहने दीजिए ना। कभी सोचा है इस उम्र में कैसे पालेंगे आप उसे? आपके बाद क्या होगा उसका? और रही मेरी बात तो मेरी परेशानी आपसे छिपी नही है?" फोन पर छोटी बेटी की ये बातें सुन लगा मानों सारी उम्मीदें ताश के पत्तों सा एक झोंके में बिखर गयीं। 
"मुझे माफ़ कर देना बेटी, तेरा ये मज़बूर बाप तुझे शायद न्याय ना दिला पाए" बड़ी बेटी की तस्वीर के आगे फफक पड़े थे मनोहर बाबू। 
टूट तो वो तभी गए थे जब दहेज़ दानवों ने बड़ी बेटी की जान ले ली और उसके सदमे ने पत्नी की। सोचा दुधमुही नवासी की कस्टडी मिल जाएगी तो लगेगा बेटी वापस मिल गयी। पर आज, आज तो छोटी की बातों से रही-सही हिम्मत भी जाती रही। 
खुद को बहुत अकेला महसूस कर रहे थे वो। आज केस की सुनवाई शुरु होनी थी, पर हार तो जैसे पहले ही हो चुकी थी। बुझे मन से वो कोर्ट के लिए निकल पड़े।
"राम-राम साहेब!" जानी-पहचानी आवाज़ सुन मनोहर बाबू के पाँव ठिठक गए।
"अरे हरिया! तू यहाँ?"
"बच्चिया के तलाक़ का मुक़दमा चल रहल है ना"
"तलाक़! उसकी तो दूसरी शादी हुई थी ना?"
"का कहें साहेब! उसका तो किस्मते खराब है। पहिलका दमाद के मरने के बाद इहे सोच के उसका फिर से बियाह किये कि बेचारी दू-दू बच्चा ले के अकेले कइसे रहेगी। पर इ तो एकदम्मे नालायक निकला। मार-पीट करने लगा। कहता है दूनो बच्चा को छोड़ के आओ। तब हमहूं सोच लिए, जइसे भी होगा हम ही पालेंगे उ सबको। अब आप ही बताएं साहेब! सब छोड़ देगा तो का हम भी छोड़ दें? आख़िर बाप हैं उसके!"
डूबते को शायद तिनके का सहारा मिल गया था। 
मनोहर बाबू को लगा मानों उनकी नवासी उनके कंधों पर बैठी खिलखिला रही हो। तेज़  कदमों से वो कोर्ट रूम की ओर बढ़ चले। ****
- अमृता सिन्ह
पटना - बिहार

फादर्स डे पर सम्मानित - 09                                       

                                  छुपा प्यार                         

आज वो ससुर की डांट से रुष्ट होकर अपने मायके को चली गई। परिवार के बेटे अपने बाप से नाराज हो गए तथा पत्नी अपने पति को बहू के जाने का दोष मढ़ रही थी। ससुर दीना नाथ भी अपनी डांट के कारण अपने आप को दोषी मान रहा था। शायद भलाई की डांट बहू को रास नहीं आयी थी। दीनानाथ ने सिर्फ यही कहा था बहू की साफ-सफाई का ध्यान रखा करो ताकि घर की साफ सुथरा रहे घर के आने-जाने वाले लोगों को बुरा न लगे।
इसी बात से रुष्ट होकर चली गई थी। बहुत दिन हो गये बहू घर नहीं आ रही थी। दीनानाथ को परिवार के सदस्यों ने कारण मानते हुए बहू को वापिस लाने का जिम्मा सौंपा।
दीनानाथ बहू के मायके वालों से मिला और कहा कि मेरे से गलती हो गई है क्षमा चाहता हूं। बहू माता पिता बहुत क्रोधित हुए थे पंरतु दीनानाथ शांत रहा कुछ नहीं बोला।
बाद में बोला कि मैं बहू को घर की साफ-सफाई के लिए नहीं कहूंगा। 
बहू के मां बाप ने कहा घर की साफ-सफाई के लिए घर छोड़ कर नहीं आ सकती है। हमनें इस प्रकार के संस्कार नहीं दिये हैं। 
दीनानाथ ने बहू से ही पूछ लो जी 
बेटा क्या आप ससुर बोल रहें ठीक है। पहलें बहू कुछ हिचकाई फिर बोली जी साफ-सफाई के लिए ही कहा था 
बहू के मां ने कहा कि घर की साफ-सफाई करने से ही घर की इज्जत होती है। दीनानाथ ने गलत नहीं कहा अपने घर जाओ। यह इनका प्यार ही जो तूझे गलती ना होते हुए भी गलती मान रहें और तूझे घर ले जाने के लिए आये हैं। ऐसा ससुर नहीं मिलेगा जो संस्कार भी साथ-साथ दे रहे हैं। बहू को मन में ग्लानि हो रही थी। ****
- हीरा सिंह कौशल 
 मंडी - हिमाचल प्रदेश

फादर्स डे पर सम्मानित - 10                                          

                            सच हुआ सपना                  

बिन माँ की बच्ची को संभालना आखर सिंग के लिये कोई आसान काम नहीं था, तिस पर उसके रंग-रूप और अंग्रेजी ना आने के कारण लोगों द्वारा मज़ाक बनाये जानें के कारण बिटिया ने खुद को चार दीवारी में कैद कर लिया था ! 
       आखर उसे समझाता कि रूप रंग नहीं, बल्कि व्यक्ति के गुण उसकी पहचान और सुंदरता होते हैं । आखर उसे याद दिलाता कि वो सिलाई बहुत अच्छी कर लेती हैं तो क्युं ना अच्छी मशीन लेकर सिलाई का काम बड़े स्तर पर कर दे,,,,,, वो  समझाता कि स्वावलम्बी वनों और जिंदगी के हर पल को खुलकर जियो  । 
      आखर की समझाइश का बेटी पर कोई असर नहीं हुआ ! हार मानकर उसने एक रोजनदारी पर काम करने वाले लड़के से उसकी शादी कर दी । आखिर बेटी को कब तक घर पर बिठाए रखता,,, कम से कम पिता के बाद जीवन का एक आसरा तो बना रहेगा ।
       पर किस्मत का लेखा कौन बदल सकता है भला,,,,,शराबी पति के घर अपनी बिटिया को एक एक चीज के लिये तरसते देखता तो उसको  बाहर निकलकर अपने हुनर को नये आयाम देने,,,,किसी बड़ी टेलरिंग की दुकान पर काम करने को कहता ।  लगभग रोज ही बेटी के घर जाता,, उसके घर का दरवाजा खुला देख ये सोचकर दुखी हो जाता कि बेटी आज भी काम ढूंढने बाहर नही गयी,,,क्या करता पिता का मन न मानता और वो बेटी  को समझाइश देकर वापस जाते जाते उसके हाथ में पैसे थमा देता । 
         ऐसे ही एक  दिन आखर के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था, वो बिटिया के सामने वाली गली में पहुचा तो देखा कि हमेशा की तरह घर का दरवाजा खुला नहीं था ..दरवाजे पर ताला लगा था और कुंडी पर चिट में लिखा था -पापा काम पर जा रहीं हुं .अब से .रोज शाम ही घर पर मिलूंगी ।  पढ़कर वो  खुशी से फूला न समाया । 
      जेब में हाथ डालकर नोट निकालकर  खुद से ही कहने लगा कि अब उसकी बिटिया को पैसे की जरूरत नहीं, क्यूंकि अब बिटिया आत्मनिर्भर हो गयी हैं । ****
- अंजली खेर
भोपाल - मध्यप्रदेश

फादर्स डे पर सम्मानित - 11                                         

                                 रिर्टन गिफ्ट                            

लॉक डाउन खत्म होते ही शुभम मास्क लगा तेजी से बाहर निकल गया ।जब वापस लौटा तो साथ में ए सी व इलेक्ट्रीशियन था बीमारी से बूढ़े लग रहे पिता जिन्हें कान से कम सुनाई देने साथ ही ज़िद की हॉल में ही रहना है वहीं ए सी फिट करवा दिया । पिता ने कहा बेटा तेरा वर्क फ्रम होम चल रहा है अपने कमरे में लगा। पुत्र ने कहा पापा मुझे याद है मैं इंडिया के सबसे अच्छे कॉलेज से इंजीनियरिंग करना चाहता था प्रवेश लेने के कुछ दिन बाद ही आपको व्यापार में बड़ा नुकसान हुआ और मेरी पढ़ाई न रुके इसलिए आपने फ्लैट व सारी चीज़ें बेच टीन शेड के एक छोटे से कमरे में रहने लगे गर्मी में कूलर ठीक करवाने के पैसे खर्च न कर भरी गर्मी में रात - दिन टीन शेड में निकाले ।आज मुझे अच्छी नौकरी मिल गई मैं सक्षम हूं तो आपने जो मेरे लिए किया इस जनम में तो चुका नहीं सकता पर यूं ही एक रिर्टन गिफ्ट तो दे सकता हूं।यह सुनकर माता - पिता ने नम आंखों से आशीर्वाद की झडी लगा दी।
- डॉ. संगीता शर्मा
हैदराबाद - तेलंगाना

इसके अतिरिक्त नरेश सिंह कौशल , भारती वर्मा , कुमार जितेन्द्र , संतोष सुपेकर , अंकिता सिन्हा ,डॉ. मधुकर राव लारोकर , रंजना वर्मा , डॉ. विनीता राहुरीकर , जय प्रकाश सुर्य वंशी , मंजु गुप्ता , डॉ. अलका पाण्डेय , प्रज्ञा गुप्ता , मनोज सेवलकर , कुन्दल पाटिल , सविता मिश्र अक्षजा , प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र , जगदीप कौर , रेणु झा , गीता चौबे , विजय कुमार , डॉ. अंजुल कंसल कनुप्रिया , डॉ. पूनम देवा , धनश्याम अग्रवाल आदि की लघुकथाएं आई हैं । इन सब का हार्दिक आभार । उम्मीद करता हूँ कि आप सब का सहयोग इसी प्रकार मिलता रहेगा ।
                                                - बीजेन्द्र जैमिनी
                                              संचालक व सम्पादक
                                       भारतीय लघुकथा विकास मंच
                                                पानीपत - हरियाणा



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