हरियाणा के प्रमुख लघुकथाकार ( ई लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी
पिता : पूरन सिंह
माता : धनपति देवी
जन्म तिथि : 15.07.1974
जन्मस्थान : हसनपुर
शिक्षा : एम.ए (हिंदी) एमफिल. पीएच.डी (हिंदी लघुकथाओं के आलोक में राष्ट्रीय चेतना)
प्रकाशित पुस्तकें : अभी बुरा समय नहीं आया है । (लघुकथा संग्रह) कीचड़ में कमल( लघुकथा संग्रह) समरीन का स्कूल (बाल कहानी संग्रह) संपादित : हरियाणा से लघुकथाएं : विशेष सहयोग
पुरस्कार: साहित्य समर्था जयपुर की ओर से अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में कहानी 'फसल' को तीसरा स्थान । साहित्य सभा कैथल की ओर से 'स्वदेश दीपक स्मृति पुस्तक पुरस्कार' वीएचसीए फाउंडेशन घरौंडा द्वारा 'हिंदी रत्न' सम्मान
अनुवाद : लघुकथाएं पंजाबी अंग्रेजी और मराठी में अनुवादित।
प्रसारण : कुरुक्षेत्र , रोहतक आकाशवाणी एवं हिसार दूरदर्शन से लघुकथाएं प्रसारित।
पता:
नसीब विहार कॉलोनी घरौंडा - करनाल 132 114 - हरियाणा
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आज दीनानाथ जी मिश्रा जी से मिलने उनके घर आए थे ।
दोनों किसी विषय पर बात करते हैं उससे पहले ही मिश्रा जी ने अपनी पुत्रवधू को चाय के लिए आवाज लगाई ।
थोड़ी देर बाद ही चाय आ गई साथ में बिस्किट भी ।
"यार तुम बहुत सुखी हो तुम्हारी पुत्रवधू तुम्हारा कितना आदर करती है। और एक मैं हूं मेरे बच्चे मुझे खास तवज्जो नहीं देते ।वे तो चाहते हैं कि मैं कोल्हू के बैल की तरह घर के कामों में लगा रहूं। मैंने तो स्पष्ट कह दिया है मुझसे कोई काम नहीं होगा ।" दीनानाथ जी ने चाय का कप उठाते हुए कहा।
"अरे घर के काम तो मैं भी करता हूं। घर के काम करने में क्या परेशानी ?मैं सुबह सैर को निकलता हूं तो ताजा ताजा सब्जियां ले आता हूं। शाम को दूध लेने चला जाता हूं, दूध भी आ जाता है और बाहर मित्र प्रयासों से बात हो जाती है। अरे हमारे बच्चे काम पर जाते हैं तो ऐसे में हमारा भी कर्तव्य बनता है कि हम अपने बच्चों की खुशियों का ध्यान रखें।
"तुम बात तो सही कह रहे हो मिश्रा।" दीनानाथ जी ने कुछ सोचते हुए कहा।
घर आते ही दीनानाथ जी ने पुत्रवधू को आवाज लगाई ,"बहू दूध का बर्तन देना उधर दूध वाले की तरफ जा रहा हूं। आते हुए दूध ले आऊंगा।"
अब दीनानाथ जी बर्तन को हिलाते हुए इस प्रकार चल रहे थे मानो शरीर में खुशी की कोई लहर दौड़ रही हो । ****
2. प्रवासी पंछी
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हर रोज की भांति हम आज भी रेलवे प्लेटफार्म पर पहुंचे।
शाम 5:00बजे वाली गाड़ी एक घंटा लेट पाई। मौसम की वजह से गाड़ियां दिसंबर जनवरी में अक्सर लेट हो जाती हैं।
हम बैठने के लिए बेंच तलाश ही रहे थे कि पक्षियों की चहचहाहट ने हमारा ध्यान अपनी ओर खींचा। पक्षियों का एक झुंड बिजली के खंभों पर कतार बना कर बैठा था ।थोड़ी देर बाद ही वे पंछी उड़कर उस दिशा में चले गए जिधर बहुत से पेड़ खड़े थे। हमने देखा वे फिर दुगनी संख्या में होकर वापस आए ।
"देखो यार इन पंछियों का एक दूसरे के प्रति कितना प्रेम है। कैसे एक साथ रहते हैं ।" साथी बलिंदर ने कहा।
"अरे परिवार है इनका। अपने दुख सुख सांझे करते हैं और रूठे हुए को मनाते हैं । फिर चुपचाप उन पेड़ों पर जाकर सो जाते हैं।" सुभाष शर्मा ने अपना अनुभव साझा किया।
इसी बीच राजीव कहने लगा,"देखो इन्हीं अपनी जन्मभूमि से कितना प्रेम है। हर वर्ष इन्हीं दिनों यहां आते हैं। मैं हर वर्ष इन्हें देखता हूं।"
" अरे अपनी माटी से इतना प्रेम तो होना ही चाहिए ।जिस माटी में खेले कूदे बड़े हुए उसकी खुशबू तो लेते रहना चाहिए । कुछ भी हो यार इन पंछियों को देख कर मेरा मन खुशी से गदगद हो उठा। पर मेरे मन की खुशी ज्यादा देर टिकी न रह सकी । एक वृद्ध दंपत्ति जो हमारे पास ही बैठा था अचानक यह कहते हुए अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ कि हमारे बच्चों से तो यह प्रवासी पंछी अच्छे हैं जो साल में एक बार तो अपने घर आ जाते हैं पर हमारे बच्चे.....! ****
3. कमी
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"अच्छा रमा की मां अब चलती हूं….. बच्चों के आने का वक्त हो गया है" राधा की मां ने सोफे से उठते हुए कहा था ।
"बैठी रहना बहन। मेरा मन लगा रहेगा वैसे भी तुझे घर पर कौन सा काम करना है ।"रमा की मां की वाणी से अपनापन झलक रहा था।
"काम तो नहीं करना। काम तो बहुएं ही कर लेती हैं ।वे तो दोनों बेटे काम से आकर मेरे पास बैठते हैं। वे दो बातें अपनी कह लेते हैं चार मैं सुना देती हूं। बस, मन शांत हो जाता है।रात में ठीक से नींद आ जाती है। सुबह तन मन बिल्कुल रुई के फाहे सा हल्का होकर हवा में उड़ता सा लगता है।"
"तुम्हारे बच्चों का क्या हाल है आजकल?" राधा की मां ने चलते-चलते पूछ ही लिया था।
"मेरे बेटों के फोन आते रहते हैं एक का फोन आया था... कह रहा था घरवाली के जन्मदिन पर नई गाड़ी खरीदी है । इस बार बच्चों को महंगे वाले स्कूल में डाल रहे हैं ।और दूसरा उसकी तो पूछो ही मत । उसके तो टूर ही खत्म नहीं होते। एक देश से दूसरे देश,बस ,उन देशों के बीच अपना ही घर नहीं होता ।"उसकी आवाज से मां होने का दर्द खुद बोल रहा था।
" रमा की मां तुझे तो खुश होना चाहिए तेरे बच्चों के पास सब कुछ है और एक हमारे बच्चे हैं सुबह काम पर जाते हैं शाम को लौटते हैं ।"
"हां सब कुछ है मेरे पास, बस एक चीज की कमी है ।"
"कमी और तेरे पास क्यों मजाक करती हो रामा की मां।"
" मजाक नहीं सच कहती हूं रात भर जल से अलग हुई मछली की तरह तड़पती रहती हूं। तेरे जैसी नींद नहीं है बहन मेरे भाग्य में ।"ऐसा कहते हुए उसकी आंखें न जाने क्यों नम हो गई। ****
4. मुआवजा
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गांव में आंधी और ओलावृष्टि के कारण नष्ट हुई फसल के बदले मुआवजा राशि बांटने एक अधिकारी आया। बारी-बारी से किसान आ रहे थे और अपनी मुआवजा राशि लेते जा रहे थे जब सारी राशि बंट चुकी तो रामधन खड़ा हुआ और हाथ जोड़कर बोला," साहब जी, हमें भी कुछ मुआवजा दे दीजिए"
" क्या तुम्हारे भी फसल नष्ट हुई है?" अधिकारी ने सहज भाव से पूछा।
" नहीं साहब जी, हमारे पास तो जमीन ही नहीं है."
" तो तुम्हें मुआवजा किस बात का?"
" साहब जी, किसान की फसल होती थी ,हम गरीब उसे काटते थे और साल भर भूखे पेट का इलाज हो जाता था। अब फसल तबाह हो गई तो बताइए हम क्या काटेंगे और काटेंगे नहीं तो खाएंगे क्या?"
" तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा । जाइए अपने घर।" इस बार अधिकारी जैसे आपे से बाहर हो रहा था।
रामधन माथा पकड़े वहीं बैठ गया। ****
5. बड़ा हूं ना
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पति-पत्नी किसी पर्यटक स्थल की सैर को रवाना हुए थे। अभी उन्हें घर से निकले 2 घंटे ही हुए होंगे कि बड़े भाई ने फोन कर हालचाल पूछा । साथ में यह भी कहा कि फोन करते रहना। "ठीक है भाई!" इतना कह छोटे ने फोन काट दिया ।
सफर में वह पत्नी से बातें करने में इतना मशगुल हुआ कि फोन करना ही भूल गया ।
बड़े भाई का ही फोन आया," कहां तक पहुंच गए ?कोई परेशानी तो नहीं अपना ख्याल रखना।"
" ठीक है भाई । हम अपना ख्याल रखेंगे। "छोटे ने जवाब दिया।
उसकी पत्नी ने कहा ,"भाई साहब तो आपको बच्चा समझते हैं ।बार-बार नसीहत देते हैं। सफर का सारा मजा किरकिरा कर दिया । लाओ ,मुझे फोन दो , मैं स्विच ऑफ करती हूं ।"और उसने वैसा ही किया
घर पर बड़ा भाई बार-बार फोन मिला रहा था, पर फोन न मिल पाने के कारण बेचैन हुए जा रहा था।
उसकी बेचैनी देख पत्नी ने कहा,"क्यों पागल हुए जा रहे हो ?चिंता छोड़ो और आराम से सो जाओ।"
"कैसे सो जाऊं पता नहीं वह किस हालात में होंगे? फोन भी मिल नहीं रहा। "भाई ने बार-बार फोन मिलाते हुए कहा ।
"सो जाओ ना और भी है इस घर में" पत्नी ने खींझ भरे शब्दों में कहा।
" बड़ा हूं ना !"उसने एक ठंडी आह भरते हुए कहा। ****
6. सुख
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पति पत्नी बेड पर लेटे थे ।
एक बात कहूं ,"पत्नी ने अनमने भाव से पति से पूछा ?"
पति की नजरें छत की ओर लगी थी ।
वे उसी मुद्रा में बोले,"कहो ?"
"आप दूसरी शादी....." पत्नी सिर्फ इतना ही कह पाई ।
थोड़ी देर के लिए उन दोनों के बीच सन्नाटा पसर गया ।
फिर पति के मुख से निकला," क्यों?" "संतान सुख जरूरी है जीवन में।"
फिर चुप्पी ।
इस बार पति ने अपनी नजरें वहां से हटाकर पत्नी के चेहरे पर टिका दी।
"क्या?"
"हां समझा करो।"
"कैसी बातें कर रही हो ।"
"पता है दूसरी शादी ....सौतन आएगी तेरी।"
"यही कहना चाहते हो ना कि मैं कहीं की नहीं रहूंगी.... मैं सब सह लूंगी... सब।"
"मेरे लिए सब सह लेगी और मैं ....सोच कैसे लिया तूने ....मैं तुम्हें नरक में डालकर स्वर्ग पाऊंगा! नहीं नहीं पाऊंगा नहीं।" इतना कह उसने पत्नी को अपनी बाहों में भर लिया।
अचानक पत्नी के भीतर सुख की एक नदी उमड पड़ी और उसने बाहों से पति को दुगने जोश के साथ वैसा ही उत्तर दिया। ****
7. सजा
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आज अदालत में उस मुजरिम को सजा सुनाई जानी थी,जिसने कभी एकतरफा प्यार में दीवाना होकर एक बेकसूर लड़की पर तेजाब फेंका था। लड़की बुरी तरह जल गई थी।
अदालत के कटघरे में मुजरिम रो-रोकर चिल्लाने लगा," जज साहब, मुझे इतनी बड़ी सजा मत दीजिए ....मैं ताउम्र जेल में नहीं सड़ सकता ।मैं मर जाऊंगा ।"
"यह तो तुम्हें लड़की पर तेजाब फेंकने से पहले सोचना चाहिए था।"
"साहब गलती हो गई.... माफ कर दीजिए ...आगे से ऐसी गलती नहीं होगी ।"
"अच्छा ! यह बताओ तुम्हें सजा क्यों न दी जाए ?"
मुजरिम चुप ।
"बोलो? अब जवान क्यों नहीं खुलती तुम्हें सजा जरूर मिलेगी।"
"साहब कम कर दीजिए ।"
जज साहब ने कुछ देर सोचा. फिर बोले," ठीक है तुम्हारे सामने दो विकल्प है एक, तुम्हारे चेहरे पर वही तेजाब डाला जाए। दूसरा, उम्र भर कैद ।"
मुजरिम ने दूसरा विकल्प चुना ****
8. मेरा घर
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पति-पत्नी शाम को ऑफिस से आए तो घर की साफ सफाई... चकाचक बर्तन और धुले कपड़े देख दोनों हैरान रह गए ।
कामवाली बाई तो ऐसे काम करने से रही । अवश्य ही यह सब मां ने ही किया होगा । उन्होंने मन ही मन सोचा मां कल ही गांव से शहर आई थी।
"पुत्र क्या देख रहे हो ? यह सब मैंने किया है ....इन बूढ़ी हड्डियों में इतनी तो जान है कि घर के छोटे-मोटे काम तो निपटा ही सकती हूं। मुझे तो यहां आकर पता चला कि तुम्हारी जिंदगी तो रेल बनी हुई है ..मेरी बहू की तो और भी परेशानी ....खुद तैयार होना.... बच्चों को तैयार करना..... खाना बनाना..... खाना पैक करना ...अरे कितने काम। मैंने सोच लिया है जब तक मैं यहां रहूंगी... ज्यादातर काम निपटा दिया करूंगी. मैंने तो कामवाली बाई से भी कह दिया है कि वह अपना काम कहीं और देख ले ।"
"ठीक है मां जैसा तू चाहती है, वैसा ही कर ।"
रात को खाना खाने के बाद पति पत्नी टहलने छत पर चले गए ।
वहां पत्नी कहने लगी," मैं कहती हूं मां जी ने कामवाली को भी मना कर दिया.... कहीं !"
"ठीक ही तो किया.... दो पैसे बचेंगे ...मां के रहते हम निश्चित भी तो रहेंगे ।बच्चों को दादी का प्यार भी मिल जाएगा । "पति ने पत्नी की बात बीच में काटते हुए कहा।
" वह सब तो ठीक है। पर...!"
" पर क्या ?"
"कहीं मां यहीं रहने की तो नहीं सोच रही?"
" तुम ऐसा क्यों सोचती हो । खुश रहना सीखो ।रहने दो उसका घर है।"
" और मेरा.... मेरा कुछ नहीं....?" इतना कह पत्नी पैर पटकती हुई पति से दूर चली गई ****
9. समाधान
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सपना खाना खाने के बाद बर्तन धो मौज कर जब बेड पर आई तो साहिल ने बातों ही बातों में कहा ,"सपना कोर्ट ने औरतों को कितना सम्मान बढ़ा दिया। वह भी पुरुषों की भांति पैतृक संपत्ति में बराबर की हिस्सेदार बनेंगी। क्या इससे औरतें खुद को गौरवान्वित महसूस नहीं करेंगी।"
"आज यह कोर्ट कचहरी कैसे याद आ गई ।"सपना ने मजाक के लिहाजे में पूछा।
" सपना ,मैं सोचता हूं ....अपनी दुकान के पास एक खाली दुकान बिक रही है क्यों ना उसे खरीद लिया जाए।"
" नेकी और पूछ पूछ .....एक से दो हो जाएंगी।" ऐसा कहते हुए उसका एक-एक शब्द प्रसन्नता से भर उठा था। पर उसकी प्रशंसा उस समय मायूसी में बदल गई जब साहिल ने कहा ,"सपना, तुम्हारा अपने पिता की संपत्ति में जो हक बनता है यदि वह संपत्ति तुम्हें मिल जाए तो वारे न्यारे हो जाए।"
"क्या !" अभी तक खुशी के मारे सांसो का जो विस्तृत फैला हुआ था वह तुरंत सिमट कर रह गया।
"हां सपना !एक बार सोच कर देखो।" कैसी बातें कर रहे हैंआप । पांच पांच बच्चों को पढ़ाना ...उनको अपने पांव पर खड़ा करना.....उनके विवाह करना। ऐसे में आदमी के पास बचा ही क्या है ? आप खुद ही सोचो ।"
"सोचने का वक्त नहीं है मेरे पास। मैं जुबान दे चुका हूं ,यदि हमने वह दुकान नहीं खरीदी तो मार्केट में क्या वैल्यू रह जाएगी हमारी ? इसके लिए अब तुम्हें ही कुछ करना होगा तुम कल अपने पिता के पास जाओगी और रूपयों का प्रबंध करके ही आओगी।समझी! आगे तू खुद समझदार है ।"
"आप पढ़े लिखे हो कर भी?"
" मैं कुछ नहीं जानता। बस, वह दुकान हमारी और केवल हमारी होनी चाहिए। नहीं तो ।"अबकी बार उसने चेतावनी दे डाली ।
उसने साहिल के इस रूप की कल्पना भी नहीं की थी। पहले तो वह एक अनजाने डर से कांप उठी । बाद में गहन चिंतन में डूब गई । वह सुबह उठी भगवान से प्रार्थना की -"हे भगवान ! मैं जो कदम उठाने जा रही हूं उसमें मेरी सहायता करना।" फिर एक दृढ़ निश्चय से इस समस्या का समाधान खोजने हेतु अपने पिता के पास जाने की वजह वह सीधी साहिल की बहन की ससुराल जा पहुंची। ****
10.बाढ़ राहत
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बाढ़ ग्रस्त लोगों की ही सहायतार्थ एक सरकारी आदेश गांव के मुखिया के नाम आया।
"आप दो सूचियां तैयार करें -पहली सूची, उन लोगों की जिनका नुकसान ज्यादा हुआ है उन्हें सहायता राशि पहले दी जाएगी. दूसरी सूची उनकी जिनका नुकसान कम हुआ है, उन्हें सहायता राशि बाद में बांटी जाएगी।
दो दिन बाद एक अधिकारी राहत राशि बांटने आया।
मुखिया द्वारा जो सूची अधिकारी को दी गई उसके अनुसार पहली सूची में वे नाम थे जिन्होंने पंचायत चुनाव में मुखिया का साथ दिया था और दूसरी मे वे नाम जिन्होंने मुखिया के प्रतिद्वंदी का साथ दिया। ****
11.इतिहास
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आज फिर से भेडों का आपस में झगड़ा हो गया।
झगड़ा भेड़ों का और चेहरे पर रौनक छाई भेड़िए के । छानी ही थी क्योंकि हर बार भेड़िया ही तो करवाता आया है भेड़ों का समझौता । भेड़िया इसकी एवज में खाता आया है दोनों पक्षों से खूब मलाई।
आज वह अपने ठिकाने से एक पल को कहीं नहीं गया क्योंकि न जाने कब कौन सा पक्ष आ जाए।
सुबह से शाम हो गई। पर, भेड़ें न आईं। वह यह सोच कर कि कहीं भेड़ें भूल गई हो । वह उनके घर की ओर चल दिया।
वहां पहुंचते ही उसके होश उड़ गए। उसे अपने पैरों तले से जमीन खिसकती नजर आई और उसने देखा कि भेड़ें आपस में बतिया रही हैं और उनकी पढ़ी-लिखी एवं समझदार संताने पास खड़ी खिलखिला रही हैं।ऐसा देख भेडिये को अपना सिंहासन डोलता नजर आया **** =================================
क्रमांक - 02
नाम नीलम त्रिखा
पति का नाम श्री रजनीश चंद्र त्रिखा
शिक्षा एम. ए.(हिंदी,साहित्य,दर्शन शास्त्र, लोक प्रशासन,राजनीति शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र) पत्रकारिता , प्रभाकर ओ. टी, एल एल. बी. अध्ययनरत।
लेखन की विधा : -
कविता ,गीत ,लघुकथा, नाटक, संवाद, दोहे ,लेख हाइकु और भजन।
संप्रति :-
पूर्व कार्यक्रम उद्घोषक- आकाशवाणी दूरदर्शन सह -स्थापिका - उमंग अभिव्यक्ति मंच पंचकूला, स्वतंत्र लेखन, साहित्य सृजन ,गायन मंच संचालिका ,अध्यक्ष प्रगति स्वयंसेवी संस्था, कुरुक्षेत्र हरियाणा। राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य इंटेलिजेंट मीडिया एसोसिएशन(IMA)
प्रकाशन : -
दो काव्य संकलन "महकते एहसास," व "मेरी बेटी मेरा अभिमान" प्रकाशित ,22 संयुक्त संकलन में रचनाएं प्रकाशित तथा लघुकथाओं का व एक कविता संग्रह प्रकाशाधीन ,पाँच संयुक्त का संपादन विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं का नियमित प्रकाशन तथा रेडियो वे दूरदर्शन में कविताओं का नियमित प्रसारण
नॉर्थ जोन जोन कल्चर सेंटर भारत संस्कृति मंत्रालय द्वारा हर महीने हरियाणा वरिष्ठ साहित्यकारों की कार्यक्रम संचालिका।
सम्मान : -
लंदन (यू.के.) वॉल्वरहैंपटन (यू.के.) में साहित्य सृजन हेतु सम्मान प्राप्त कविताओं की नेशनल प्रतियोगिता में रामेश्वर दयाल दुबे साहित्य सम्मान से सम्मानित महिला सशक्तिकरण तथा समाज सेवा हेतु राष्ट्रीय स्तर का इंडिया आइडल अवार्ड प्राप्त अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य पर कई बार साल चंडीगढ़, पटियाला व कुरुक्षेत्र से सम्मानित अनेक प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थाओं से साहित्य सृजन , गायन एवं मंच संचालन हेतु अनेकों बार सम्मान प्राप्त।
पता :-
297/7 पंचकूला - हरियाणा
क्रमांक - 03
जन्म : 03 जून 1965
शिक्षा : एम ए हिन्दी , पत्रकारिता व जंनसंचार विशारद्
फिल्म पत्रकारिता कोर्स
कार्यक्षेत्र : प्रधान सम्पादक / निदेशक
जैमिनी अकादमी , पानीपत
( फरवरी 1995 से निरन्तर प्रसारण )
मौलिक :-
मुस्करान ( काव्य संग्रह ) -1989
प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) -1990
त्रिशूल ( हाईकू संग्रह ) -1991
नई सुबह की तलाश ( लघुकथा संग्रह ) - 1998
इधर उधर से ( लघुकथा संग्रह ) - 2001
धर्म की परिभाषा (कविता का विभिन्न भाषाओं का अनुवाद) - 2001
सम्पादन :-
चांद की चांदनी ( लघुकथा संकलन ) - 1990
पानीपत के हीरे ( काव्य संकलन ) - 1998
शताब्दी रत्न निदेशिका ( परिचित संकलन ) - 2001
प्यारे कवि मंजूल ( अभिनन्दन ग्रंथ ) - 2001
बीसवीं शताब्दी की लघुकथाएं (लघुकथा संकलन ) -2001
बीसवीं शताब्दी की नई कविताएं ( काव्य संकलन ) -2001
संघर्ष का स्वर ( काव्य संकलन ) - 2002
रामवृक्ष बेनीपुरी जन्म शताब्दी ( समारोह संकलन ) -2002
हरियाणा साहित्यकार कोश ( परिचय संकलन ) - 2003
राजभाषा : वर्तमान में हिन्दी या अग्रेजी ? ( परिचर्चा संकलन ) - 2003
ई - बुक : -
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लघुकथा - 2018 (लघुकथा संकलन)
लघुकथा - 2019 ( लघुकथा संकलन )
नारी के विभिन्न रूप ( लघुकथा संकलन ) - जून - 2019
लोकतंत्र का चुनाव ( लघुकथा संकलन ) अप्रैल -2019
मां ( लघुकथा संकलन ) मार्च - 2019
जीवन की प्रथम लघुकथा ( लघुकथा संकलन ) जनवरी - 2019
जय माता दी ( काव्य संकलन ) अप्रैल - 2019
मतदान ( काव्य संकलन ) अप्रैल - 2019
जल ही जीवन है ( काव्य संकलन ) मई - 2019
भारत की शान : नरेन्द्र मोदी के नाम ( काव्य संकलन ) मई - 2019
लघुकथा - 2020 ( लघुकथा का संकलन ) का सम्पादन - 2020
कोरोना ( काव्य संकलन ) का सम्पादन -2020
कोरोना वायरस का लॉकडाउन ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन-2020
पशु पक्षी ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन- 2020
मन की भाषा हिन्दी ( काव्य संकलन ) का सम्पादन -2021
स्वामी विवेकानंद जयंती ( काव्य संकलन )का सम्पादन - 2021
होली (लघुकथा संकलन ) का सम्पादन - 2021
मध्यप्रदेश के प्रमुख लघुकथाकार ( लघुकथा संकलन ) - 2021
बीजेन्द्र जैमिनी पर विभिन्न शोध कार्य :-
1994 में कु. सुखप्रीत ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लालचंद गुप्त मंगल के निदेशन में " पानीपत नगर : समकालीन हिन्दी साहित्य का अनुशीलन " शोध में शामिल
1995 में श्री अशोक खजूरिया ने जम्मू विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजकुमार शर्मा के निदेशन " लघु कहानियों में जीवन का बहुआयामी एवं बहुपक्षीय समस्याओं का चित्रण " शोध में शामिल
1999 में श्री मदन लाल सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी के निदेशन में " पानीपत के लघु पत्र - पत्रिकाओं के सम्पादन , प्रंबधन व वितरण " शोध में शामिल
2003 में श्री सुभाष सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. रामपत यादव के निदेशन में " हिन्दी लघुकथा : विश्लेषण एवं मूल्यांकन " शोध में शामिल
2003 में कु. अनिता छाबड़ा ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लाल चन्द गुप्त मंगल के निदेशन में " हरियाणा का हिन्दी लघुकथा साहित्य कथ्य एवम् शिल्प " शोध में शामिल
2013 में आशारानी बी.पी ने केरल विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. के. मणिकणठन नायर के निदेशन में " हिन्दी साहित्य के विकास में हिन्दी की प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं का योगदान " शोध में शामिल
2018 में सुशील बिजला ने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा , धारवाड़ ( कर्नाटक ) के अधीन डाँ. राजकुमार नायक के निदेशन में " 1947 के बाद हिन्दी के विकास में हिन्दी प्रचार संस्थाओं का योगदान " शोध में शामिल
सम्मान / पुरस्कार
15 अक्टूबर 1995 को विक्रमशिला हिन्दी विद्मापीठ , गांधी नगर ,ईशीपुर ( भागलपुर ) बिहार ने विद्मावाचस्पति ( पी.एच.डी ) की मानद उपाधि से सम्मानित किया ।
13 दिसम्बर 1999 को महानुभाव विश्वभारती , अमरावती - महाराष्ट्र द्वारा बीजेन्द्र जैमिनी की पुस्तक प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) को महानुभाव ग्रंथोत्तेजक पुरस्कार प्रदान किया गया ।
14 दिसम्बर 2002 को सुरभि साहित्य संस्कृति अकादमी , खण्डवा - मध्यप्रदेश द्वारा इक्कीस हजार रुपए का आचार्य सत्यपुरी नाहनवी पुरस्कार से सम्मानित
14 सितम्बर 2012 को साहित्य मण्डल ,श्रीनाथद्वारा - राजस्थान द्वारा " सम्पादक - रत्न " उपाधि से सम्मानित
14 सितम्बर 2014 को हरियाणा प्रदेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा के क्षेत्र में इक्कीस सौ रुपए का श्री रमेशचन्द्र शलिहास स्मृति सम्मान से सम्मानित
14 सितम्बर 2016 को मीडिया क्लब , पानीपत - हरियाणा द्वारा हिन्दी दिवस समारोह में नेपाल , भूटान व बांग्लादेश सहित 14 हिन्दी सेवीयों को सम्मानित किया । जिनमें से बीजेन्द्र जैमिनी भी एक है ।
18 दिसम्बर 2016 को हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा सेवी सम्मान से सम्मानित
अभिनन्दन प्रकाशित :-
डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : बिम्ब - प्रतिबिम्ब
सम्पादक : संगीता रानी ( 25 मई 1999)
डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : अभिनन्दन मंजूषा
सम्पादक : लाल चंद भोला ( 14 सितम्बर 2000)
विशेष उल्लेख :-
1. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन व सम्पादन किया है । जिस कीगिनती 25 है ।
2. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय हिन्दी हाईकू प्रतियोगिता का आयोजन । फिलहाल ये प्रतियोगिता बन्द कर दी गई है ।
3. हरियाणा के अतिरिक्त दिल्ली , हिमाचल प्रदेश , उत्तर प्रदेश , मध्यप्रदेश , बिहार , महाराष्ट्र , आंध्रप्रदेश , उत्तराखंड , छत्तीसगढ़ , पश्चिमी बंगाल आदि की पंचास से अधिक संस्थाओं से सम्मानित
4. बीजेन्द्र जैमिनी की अनेंक लघुकथाओं का उर्दू , गुजराती , तमिल व पंजाबी में अनुवाद हुआ है । अयूब सौर बाजाखी द्वारा उर्दू में रंग में भंग , गवाही , पार्टी वर्क , शादी का खर्च , चाची से शादी , शर्म , आदि का अनुवाद हुआ है । डाँ. कमल पुंजाणी द्वारा गुजराती में इन्टरव्यू का अनुवाद हुआ है । डाँ. ह. दुर्रस्वामी द्वारा तमिल में गवाही , पार्टी वर्क , आर्दशवाद , प्रमाण-पत्र , भाषणों तक सीमित , पहला वेतन आदि का अनुवाद हुआ है । सतपाल साहलोन द्वारा पंजाबी में कंलक का विरोध , रिश्वत का अनुवाद हुआ है ।
5. blog पर विशेष :-
शुभ दिन - 365 दिन प्रसारित
" आज की चर्चा " प्रतिदिन 22 सितंबर 2019 से प्रसारित हो रहा है ।
6. भारतीय कलाकार संघ का स्टार प्रचारक
7. महाभारत : आज का प्रश्न ( संचालन व सम्पादन )
8. ऑनलाइन साप्ताहिक कार्यक्रम : कवि सम्मेलन व लघुकथा उत्सव ( संचालन व सम्पादन )
पता : हिन्दी भवन , 554- सी , सैक्टर -6 ,
पानीपत - 132103 हरियाणा
1. मन को शन्ति
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मैं मन्दिर जा रहा हूँ। सामने से मेरा मित्र आहुजा मिल जाता है वह बोला- मन्दिर से आप को क्या मिला ?
मैं सोच में पड़ गया और कुछ सोचने के बाद बोला- मुझे बहुत कुछ मिला है।
- क्या मिला है साफ - साफ बताओ !
- मुझे भगवान तो नहीं मिले है परन्तु मन को शन्ति अवश्य मिलती है जो मेरे मन के तनाव को दूर करती है। **
2. अमीरी – गरीबी का अन्तर
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साहब के घर का नौकर अपनी ईमानदारी तथा महेनत के बल पर वह साहब बन जाता है । उस ने बड़ी सी बड़ी कोठी बनवाई है। आज उस कोठी का मुर्हत है मैं भी इसी मुर्हत पर आया हुआ हूँ –
कोठी जितनी बड़ी है उतनी सुन्दर है कोठी का एक-एक कमरा देखने लायक है कोठी में लगा एक-एक समान बहुत कीमत का है। सीविगं पुल में गर्म -ठड़ा पानी का एक साथ आनन्द लिया जा सकता है जो एक बर्टन पर चालू होता है। पार्क तो इतना बड़ा और सुन्दर है। इस के आगे सरकारी पार्क भी फेल नंजर आते है। धुमते-धुमते कोठी के एक कोणें में पहुच जाता हूँ –
कोणें में नौकर के लिए तीन कमरें बने है। उन में ना तो रसोई है ना ही स्नान घर है। दरवाजें भी नाम मात्र के है छत्तें के नाम पर सिमेन्ट की चदरें लगी है। मुझे ऐसा लगा-
नौकर से तो साहब बन गया है फरन्तु इस के मन में भी नौकर के लिए कोई सम्मान नाम की कोई चीज नहीं है। ००
3. वारिस का हक
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बैक का मैनेजर खाते चैक कर रहा था। अचानक उस की नंजर एक खाते पर पड़ी। जिस में पिछले तीन साल से कोई लेन देन नहीं हो रहा है। मैनेजर ने उस खाते का नम्बर नोट कर लिया।
पूछताछ करने पर पता चला कि खातेदार मर चुका है। उस का कोई वारिस नहीं है।
मैनेजर ने एक वारिस तथा दो गवाह बना कर उस के खाते से पैसा निकाल लिया और आपस में बांट लिया । ००
4. स्नेंह
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पिता अपने चार-पाँच साल के बच्चे को पढ़ा रहे है - ओ से ओखली , परन्तु बच्चा ओ से नोकली कहता है । पिता बार-बार समझाता है परन्तु बच्चा ओ से नोकली ही कहता है। पिता को गुस्सा आ जाता है। जिस से बच्चे के मुंह पर चार- पाँच थप्पड़ जमा देता है । माँ अन्दर से चिल्लाती है
- ये क्या कर रहे हो ?
- मेरे समझने के बाद भी ओ से नोकली कह रहा है।
- बच्चे को कोई पीटा जाता है बच्चे को स्नेंह से सिखाया जाता है
और अब माँ बच्चे को पढाना शुरु करती है। स्नेंह से ही बच्चा एक दिन में ही ओ से ओखली कहना शुरु कर देता है। ००
5. पढाई
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पार्क में बैठा सोच ही रहा था कि मुझे तीन साल हो गए है नोकरी की तलाश करते करते .....। तभी सामने से नरेश आ गया ।
- क्या सोच रहे हो ?
- भाई ! मुझे एम. ए. किए तीन साल हो गए। परन्तु अब तक नोकरी नहीं मिली, न मिलने की उम्मीद है। क्या मिला मुझे पढा़ई कर के.....?
- कुछ नहीं मिला ? यह गलत है पढा़ई से कम से कम बोलना,उठाना-बैठना आदि तो सीख गए हो ।
- नहीं ? बोलना, उठना - बैठना आदि वैसे भी सीखा जा सकता है। पढा़ई से बेरोजगारी मिली है। ००
6. पढे़-लिखे की नौकरी
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मैं एक दिन लिमिटेड कम्पनी में काम करने के लिए चला गया। वहाँ पर मैंने एक सफाई कर्मचारी को देखा, जो देखने से लगता था कि पढा़ लिखा है। मुझे से रहा नहीं गया और मैंनें उसे बुला कर पूछ लिया
- आप पढे़-लिखे हो ?
- हाँ बाबू जी, मैं हाई स्कूल व आई. टी. आई पास हूँ।
- फिर आप सफाई कर्मचारी का काम क्यों कर रहे है ? यह नौकरी तो अनपढ़ को नगर पालिका भी दे सकती है जो सरकारी नौकरी है।
- बाबू जी ! आजकल नौकरी कहाँ मिलती है नगर पालिका में काम करने से सब को पता चल जाता है। सफाई कर्मचारी बन गया है परन्तु यहाँ कम्पनी में काम करने से किसी को कुछ पता नहीं चलता है।००
7. दरोगा जी
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कोर्ट में मुकदमा जीतने के बाद जज साहब ने बुजर्ग को बधाई देते हुए कहा- बाबा !आप केस जीत गये ।
बुजर्ग ने कहा- प्रभु जी ! आप को इतनी तरक्की दे, आप " दरोगा जी " बन जाए ।
वकील बोला- बाबा! जज तो " दरोगा " से तो बहुत बड़ा होता है।
बुजुर्ग बोला- ना ही साहब ! मेरी नजर में "दरोगा जी" ही बड़ा है।
वकील बोला- वो कैसे ?
बुजुर्ग – जज साहब ने मुकदमा खत्म करने में दस साल लगा दिये जब कि "दरोगा जी" शुरू में ही कहा था। पांच हजार रुपया दे , दो दिन में मामला रफा दफा कर दूगाँ । मैने तो पांच की जगह पंचास हजार से अधिक तो वकील को दे चुका हूँ और समय दस साल से ऊपर लग गये।
जज साहब और वकील तो बुजुर्ग की तरफ देखते ही रह गये। ००
8.परिवार में बेटी
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"पापा ! दीदी की मृत्यु को एक साल से भी अधिक हो गया है। परन्तु आप ने दीदी की कापीयां - क़िताबें अब तक क्यों संभाल कर रखीं हैं ? दीदी अब जिन्दा होकर आने वाली नहीं है जो आगे पढ़ने के लिए ......! " कहते हुए कालिया रों पड़ता है।
अन्दर से मां आती है। कालिया को चुप करवातीं है और अपने साथ अन्दर ले जाती है।
पापा , बेटी की कापियां-किताबें को देख कर ,अब भी गुम सुम से है। बेटी को स्कूल जाते कुछ लड़कों ने अपहरण कर के बलात्कार के बाद हत्या कर दी थी। पापा अब भी सोच रहा है । अगर बेटी को स्कूल ना भेजता तो बेटी भी जिन्दा होती .....! पापा ने ही बेटी को स्कूल भेजने के लिए परिवार पर दबाव बनाया था। पहले परिवार में बेटी स्कूल नहीं जाती थी । °°
9. स्कूल की फीस
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कालिया स्कूल के बाहर खड़ा रौ रहा है। तभी स्कूल का मास्टर राम केसर आ जाता है। कालिया से पूछते है -
" बेटा ! क्यों रौ रहे हो ? "
" पापा ने स्कूल की फीस नहीं दी ।"
" बेटा ! तेरा पापा एक नम्बर का शराबी है ।"
" नहीं मास्टर जी ! मेरे पापा शराब नहीं पीते है ।"
" बेटा ! तेरा पापा एक नम्बर का जुहारी है ।"
" नहीं मास्टर जी ! मेरे पापा जुआ नहीं खेलते है ।"
तभी एक भिखारी आ जाता है और बच्चे से पूछता है - " बेटा ! क्यों रौ रहें हो ? "
" पापा ने स्कूल की फीस नहीं दी है । "
भिखारी पूछता है - " स्कूल की फीस कितनी है ? "
कालिया - " तीस रुपये "
तुरन्त भिखारी तीस रुपये कालिया को देकर चल देता है। कालिया खुशी - खुशी स्कूल के अन्दर चला जाता है। मास्टर राम केसर तो भिखारी को देखता ही रह जाता है। ००
10. ईमानदारी
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सुभाष की पत्नी बहुत बीमार थी। इस लिए सरकारी हस्पताल ले जाता है। डाक्टर साहब पैन हिलाते हुए बोलता है
- कृपा कर के बाहर बैठ जाए।
और बाहर पड़ी कुर्सि पर बैठ जाता है । तभी नज़र चपड़ासी पर पड़ती है तथा उसके पास चला जाता है और पूछ बैठता है
- डाक्टर साहब ! रिश्वत तो नहीं लेते है?
- बाबू जी ! राम का नाम लो। डा. साहब ईमानदार आदमी है।
तभी घन्टी बजती है और चपड़ासी अन्दर चला जाता है। इतने में सुभाष की पत्नी बाहर आ जाती है। पीछे - पीछे चपड़ासी भी आता है
- बाबू जी ! इस काम की फीस दो सौ रूपये है।
सुभाष सोचता है कि यह ईमानदारी कैसी है
- बाबू जी ! यह रिश्वत नहीं है यह डाक्टर साहब की फीस है।
- हाँ भाई !मुझे मालूम है कि डाक्टर साहब ईमानदार आदमी है।००
11. पति महोदय
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रोजाना की तरह डाकं खोल खोल कर पढ़ रहा हूँ। एक डाकं खोली तो देखा, अपने ही शहर में जन्मी लेखिका का संक्षेप परिचय –
अच्छा लगा! अपने शहर की लेखिका का परिचय पढ़ते-पढ़ते बहुत आनन्द मिला,उस ने अपने माता – पिता का भी उल्लेख किया है परन्तु पति महोदय का नाम कहीं पर भी नंजर नहीं आया । लगा!शायद शादीं ही नहीं हुई होगी…। परन्तु फोटो श्रृंखला देखते- देखते पुरस्कार समारोह में पोते का जिक्र कर रखा है अच्छा लगा कि लेखिका शादींशुद्वा है। लगता है पति महोदय का जिक्र करना कहीं तक उचित नहीं समझा है ? ००
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क्रमांक - 05
2 मई को कोटा (राजस्थान ) में जन्म
नारी अभिव्यक्ति मंच " पहचान " ' की संस्थापक / अध्यक्ष हैं।
■इनका सृजन ~~● 2 उपन्यास ● 11 कहानी-संग्रह ●3 लघुकथा-संग्रह ●1 बाल-गीत -संग्रह ● 7 कविता - संग्रह ● 1 स्मृति -ग्रंथ एवं शताधिक संयुक्त संकलनों में सहभागिता है।
■ संपादन ~~● जगमग दीप ज्योति- नारी विशेषांक एवं बाल विशेषांक के अतिथि-संपादन ● अमर भारती की पुस्तकों का संपादन एवं ● " पहचान " पत्रिका का संपादन ।
■ पुरस्कार \ सम्मान ~~ 10 राज्यों से मिले अनेकानेक सम्मानों में उल्लेखनीय ~~● हरियाणा साहित्य अकादमी से-सर्वश्रेष्ठ महिला साहित्यकार सम्मान ● 3 कहानी-संग्रह को सर्वश्रेष्ठ कृति सम्मान ●2 कहानियों को अखिल हरियाणा प्रथम पुरस्कार ● 2 कहानियों को द्वितीय पुरस्कार ।
■ राजस्थान साहित्य अकादमी ~~प्रभा खेतान प्रवासी सम्मान ।
■ ' राष्ट्रधर्म ' , लखनऊ से ● 4 कहानियों को क्मश: प्रथभ द्वितीय पुरस्कार ● कहानी-संग्रह " नीम अब भी हरा है " को अ. भारतीय प्रधान पुरस्कार ।
■ राष्ट्र भाषा पीठ , इलाहाबाद से 2 बार पद्म सम्मान ।
■
यू • ऐस• संस्थान, गाज़ियाबाद - ● हिन्दी साहित्य शिखर सम्मान ● महादेवी वर्मा साहित्य -सम्मान ।
■ कथाबिम्ब , मुंबई से 2 कहानियों को ●कमलेश्वर स्मृति-सम्मान ।
■ प्रज्ञा साहित्य समिति , रोहयक से- श्रेष्ठ हरियाणा महिला साहित्यकार सम्मान ।
■ अनुराग संस्थान , लालसोट राजस्थानी से नीम अब भी हरा है को श्रेष्ठ कृति सम्मान ।
■ कोटा ( राजस्थान ) -● भारतेंदु समिति से श्रेष्ठ हिन्दी साहित्यकार सम्मान ● वीना दीप द्वारा-शिखरचंद स्मृति-सम्मान ● जे डी बी महा विद्यालय , कोटा द्वारा -भूतपूर्व श्रेष्ठ छात्रा सम्मान ।
■ अंतरराष्ट्रीय मंच " जागृति " , कैलेफोरनिया से-श्रेष्ठ हिन्दी साहित्यकार सम्मान।
■ शोभनाथ शुक्ला कथा-संस्थान, सुल्तानपुर द्वारा 2 कहानियों को" धनपति देवी स्मृति-कहानी प्रतियोगिता " के अंतर्गत अखिल भारतीय स्तर पर द्वितीय पुरस्कार।
■फरीदाबाद - उर्दू दोस्त द्वारा- सुभद्रा कुमारी चौहान सम्मान ● मार्था काॅनवेंट ' श्रेष्ठ नगर-नारी सम्मान ● मदन मोहन मालवीय साहित्य-सम्मान।
■ हिन्दी साहित्य प्रचारिणी समिति , बिहार - काव्य- संग्रह " ज़िन्दगी के मोड़ " को यशपाल स्मृति-सम्मान ● कहानी-संग्रह " छाँव " को सुभद्रा कुमारी चौहान साहित्य-सम्मान।
■ शोध -कार्य ~~ P H.D.एवं M. FIL शोधकर्ता अनेक छात्रों द्वारा कृतियों / संपूर्ण साहित्य पर शोध
■~~ विदेश-यात्रा -● अमेरिका●कनाडा ●मैक्सिको ●चीन ●ब्रिटेन।
पता : -
कमल कपूर
2144 /9सेक्टर
फरीदाबाद-121006 (हरियाणा )
जन्म- 24 मार्च 1955
जन्म स्थान -भदौड़, जिला संगरूर (अब बरनाला)पंजाब
शिक्षा- मैट्रिक
कार्य क्षेत्र- सिरसा हरियाणा
सम्मान-
एक पुस्तक सम्मान हरियाणा पंजाबी साहित्य अकादमी।
तीन कहानियों को ईनाम ,हरियाणा पंजाबी साहित्य अकादमी।
एक लाख रुपए का संत तरन सिंह वहमी पुरस्कार घोषित,
हरियाणा पंजाबी साहित्य अकादमी।
बहुत सी साहित्य सभाओं की ओर से सम्मानित ,
पंजाबी साहित्य सभा लुधियाना,कलाकार लेखक मंडल,(कलम) करनाल। पंजाबी साहित्य सभा सिरसा। , प्रगतिशील लेखक संघ। पंजाबी सत्कार सभा सिरसा।, लोक साहित्य सभा रानिया , वरच्यूज क्लब डबवाली, मित्र मंडली नर सिंह कॉलोनी डबवाली , नामधारी पंजाबी साहित्य सभा श्री जीवननगर, समग्र सेवा संस्थान सिरसा, अंतरराष्ट्रीय पंजाबी साहित्य सभा श्री मुक्तसर साहिब, साहित्य सभा कालांवाली, आदि।
प्रकाशित पुस्तकें पंजाबी में -
1. दुनियां जीहदा पीठा खांदी,( गजल संग्रह )2007 , उडान पब्लिकेशन मानसा -
पृष्ठ संख्या 96
2. सुगंध लोचदी समीर (काव्य संग्रह )2009, "हरियाणा पंजाबी साहित्य अकादमी दुआरा पुरस्कार " उडान पब्लिकेशन मानसा- पृष्ठ संखया- 112
3. दुर्गा, (कहानी संग्रह) 2009 उडान पब्लिकेशन मानसा- पृष्ठ संख्या 104
4. रुतां दा सिरनावां, काव्य संग्रह 2010 उडान पब्लिकेशन मानसा,पृष्ठ संख्या 111
5. कैसी कूंज उडारी, (महां काव्य )2010 उडान पब्लिकेशन मानसा ,पृष्ठ संख्या 154
6. सुहाने सफर (सफरनामा )2011 उडान पब्लिकेशन मानसा ,पृष्ठ संख्या 136
7. मरूए दी खुश्बू (गीत संग्रह )2012 तस्वीर प्रकाशन सिरसा ,पृष्ठ संख्या 104
8. बिजड़े दा आहलणा (कहानी संग्रह 2012 उडान पब्लिकेशन मानसा ,पृष्ठ संख्या 112
9. दरिया बनाम समुंदर (काव्य संग्रह )छंद मुक्त कविता 2013 उडान पब्लिकेशन मानसा ,पृष्ठ संख्या 96
10. टप्पियां दे टापू (टप्पा संग्रह )2014 उडान पब्लिकेशन मानसा ,पृष्ठ संख्या 104
11. साचा साहब (प्रबंध काव्य )2014 विश्व नामधारी संगत श्री भैणी साहब । ,पृष्ठ संख्या 252
12. पीर बतंगड़ (हास्य व्यंग्य नाटिकाएं )2015 उडान पब्लिकेशन मानसा ,पृष्ठ संख्या 104
13. कैदो (महा काव्य )2016 उडान पब्लिकेशन मानसा ,पृष्ठ संख्या 136
14. मुक्ति दाता (महां काव्य , श्री सतगुरु राम सिंह जी पर ),2017 विश्व नामधारी संगत श्री भैणी साहब ।- ,पृष्ठ संख्या 504
15. निक्की गल्ल वडा अर्थ (मिन्नी कहानी उडान पब्लिकेशन संग्रह )2018 मानसा ,पृष्ठ संख्या -112
प्रकाशित पुस्तकें हिन्दी में
16. दोहों के दीप (दोहा संग्रह )2018 तस्वीर प्रकाशन कालां वाली सिरसा ।
पता -
गांव -जगजीत नगर (हरिपुरा )
सिरसा - 125075 हरियाणा
1.लक्ष्मी
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दीवाली की रात को बारह बजे जब सभी पटाखे चला कर अंदर सोने के लिए जाने लगे तो दस वर्ष का रोमी दरवाजा बंद करने लगा ।ये देख कर उसके पिता ने कहा, " अरे रोमी बेटे दरवाजा मत बंद करो।खुला रहने दो ।दिवाली की रात दरवाजा बंद नही रखते ।"
" क्यों डैडी ",रोमी ने उत्सुकता वश पूछा ।
बेटा दिवाली की रात घर में लक्ष्मी प्रवेश करती है ।
पर डैडी , मेरे सहपाठी रमेश के घर तो कई वर्षो से दरवाजा ही नही है , वे लक्ष्मी पूजन भी हर वर्ष करते हैं फिर उन के घर अभी तक लक्ष्मी क्यों नही आई ?
उस के पिता के पास इसका कोई जवाब नही था । ***
2.जरूरत
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सरकार के खिलाफ किसानो का अंदोलन डेढ़ महीने से चल रहा था। धरना स्थल पर किसानो की तरफ से व समाजसेवी जथेबंदियों की ओर से लंगर चल रहे थे। वहा नजदीक रहने वाले झुग्गी झौपड़ी वाले बच्चे आते। वहां से पानी की खाली बोतलें वगैरा इकट्ठी करते। किसान उन को भी लंगर खिला देते । वे बहुत खुश थे। इतना स्वादिष्ट खाना उन्होने कभी नही खाया था। जो भी वहां बनता उनको भी मिल जाता।
एक दिन वे सभी बच्चे लंगर से खाना खा कर, वहां सड़क के बीच डिवाइडर की दीवार पर जा बैठे।एक बालक बोला, "देखो ये कितने अच्छे लोग हैं। हमें मुफ्त में खाना खिला देते हैं। "
दूसरा बोला, "हां बहुत अच्छे लोग हैं।मां बता रही थी , इन का सरकार के साथ कोई झगड़ा चल रहा है। ये अपनी मांगे मनवाने के लिए यहां आए हैं। मांगें मनवा कर चले जाएंगे। "
"ये चले जाएंगे ?" दूसरा बोला।
" हां मां कह रही थी। " वे बोला।
"जब ये चले गए तो हमे खाना नही मिलेगा ,काश ये कभी नही जाएं।"एक बोला।
"मां कह रही थी सरकार मान गई तो ये चले जाएंगे। " पहले वाला बोला।
तो दूसरा बोला," काश सरकार कभी न माने और हमें खाना मिलता रहे।"
एक किसान जो ये सब सुन रहा था, वे सोच रहा था, कि ये बच्चे कितने भोले, कितने गरीब हैं। हमारी तरफ होते हुए भी हमारे खिलाफ दुआ कर रहे हैं ।अपनी अपनी जरूरत का सवाल है न।-----फिर वे मुस्कराता हुआ वहां से चल दिया। *****
3.रावण युग
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नैट पर कुछ लोग खूब प्रचार कर रहे थे ।रावण नेक था ।राम में सब ऐब थे ।रावण मत जलाओ ।राम के आगमन पर खुशियां मत मनाओ ।पटाखे मत फोड़ो ।इश्क जायज है ।वासना कुदरत की देन है ।इस को मत रोको ।व्यभिचार को प्यार कहो ।सैक्स दुकाने खोल दो ।नशे के लिए पोस्त की खेती पर से बंधन हटा लो आदि।
भांति भांति की दलीलें, भांति भांति के तर्क वितर्क चल रहे थे ।ये वे लोग थे, जिन में कुछ को मैं निजी तौर पर जानता था ।वे रिशवतखोर थे ।नशा बेचते थे ।व्यभिचारी थे भोली जनता को लूटते थे । मैं अक्सर सुना करता था कि कभी पाप का पलड़ा भारी हो जाता है, कभी पुण्य का ।
अब मैं उस दिन से यही सोच रहा हूं कि क्या सचमुच रावण युग आने वाला है । ****
4. मन का बोझ
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बेटी ने स्कूल से आते ही दर्शना से कहा, "मंमी मैं उस स्कूल में नही पढूंगी ।"
" क्यों क्या हुआ? "दर्शना ने बेटी की तरफ सवालिया नजर से देखते हुए पूछा ।
"वहां पापा माली है न ।"
"अरे फिर क्या हुआ ? तुझे तो फायदा है ।तुम्हारी आधी फीस भी तो माफ है ," मां ने कहा ।
"मम्मी मुझे सब माली की बेटी कहकर चिढ़ाते हैं।"
"बेटा हम गरीब हैं तो क्या हुआ , हम किसी से मांग कर थोड़ा खाते हैं ? "
" पर वे मेरा मजाक उड़ाती हैं । "
"अच्छा ये बता जो लड़कियां तुम्हें मजाक करती हैं उन के बाप क्या करते हैं ? "
" एक का बाप नेता है , वे चिढ़ाने लगी तो सभी उस के पीछे ----।"
"ठीक है, अब वे तुझे कहे तो तुम कहना कि हम मेहनत का खाते हैं ।तेरे बाप की तरह लूट कर नही।"
"ठीक है मम्मी, " कह कर वे खुशी से बाहर को भाग गई ।अपनी सखियों को बताने के लिए कि उस लडकी का बाप हमारे से कितना छोटा है ।वे अभी मन का बोझ हलका चाहती थी । ****
5.पैसे के बल पर
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आज सात साल बाद चौधरी राम लाल का लड़का सतीश अपने गांव के स्कूल में आया तो सभी अध्यापक उस को कौतुहल से देखने लगे ।
सात साल पहिले यही लड़का अवारा व बदमाश होने के कारण स्कूल से निकाल दिया गया था ।सबसे शरारती , पढ़ाई में महा नालायक , किसी भी अध्यापक की बिल्कुल परवाह न करता।अध्यापक उस को मारने के लिए डंडा उठाते तो वे आगे से डंडा पकड़कर हंस देता ।
उसके बाप को कई बार उलाहना आ चुका था ।परंतु वे भी उसी का पक्ष लेता ।मैट्रिक तक तो अध्यापक उसको पास करके पिंड छुड़ाते रहे पर अब वे जवान भी हो गया था इसलिए उसकी शरारतें भी बड़ गई थी ।इस लिए उसको स्कूल से निकाल दिया गया था।
परंतु आज वही सतीश स्कूल के दफ्तर में खड़ा मुस्करा रहा था ।उस ने अपना नियुक्ति पत्र मुख्याध्यापक के सामने रखा तो सभी हैरानी से उसे देखने लगे । वह वही हेडमास्टर था जिसने उसे निकाला था।
उस ने डिग्रियां व नौकरी पैसे के बल खरीद ली थी ।अब उसको कोई स्कूल से नही निकाल सकता था । ****
6. गुलामी
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रीना शादी के बाद पहली बार मायके आई थी ।मां ने हाल चाल पूछा तो उसके ससुराल की बात चल पड़ी ।ससुराल की बात चली तो सास की कैसे न चलती ।सास का नाम सुनते ही उसकी मां ने उपदेश शुरू कर दिया ।
"सास को खूब दबा कर रखना , नही तो वे तेरा जीना हराम कर देगी ।अगर एक बार तू उस से दब गई तो उम्र भर गुलामी भोगने को तैयार रहना ।"
" पर मां भाभी कहां है ?"रीना ने इधर उधर देखते हुए पूछा ।
"अरे क्या बताऊं वे मेरे से लड़ कर कल मायके चली गई है , " मां बोली ।
"मैने भी कह दिया जाती हो तो जाओ मैं तो तेरी गुलामी करने से रही ।"
ये सुनकर रीना सहज से बोली, "पर मां तू बहू की गुलामी करना नही चाहती, तो मेरी सास क्यों करेगी ।तू अपना घर बर्बाद करके मेरा घर भी बर्बाद करने की राय दे रही है ।मैं भी लड़ाई करके यहां आ जाऊं ?क्या ये ठीक रहेगा ?"
मां के पास इसका कोई जवाब नही था । ****
7.अगली दुनिया
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देव नहर की पटरी पर जा रहा था तो उसकी नजर नहर में गिरते गंदे पानी पर पड़ी ।उसे याद आया कि जब वे स्कूल में पढ़ता था तो इसी नहर से पानी पीया करता था ।आज तो शायद कुत्ते भी इस पानी को पीना पसंद न करें ।
उसको याद आया कि एक बार जब वे दस बरस का था तो इसी नहर की पटरी पर अपने पिता के साथ जाते वक्त उसने नहर की तरफ पेशाब कर दिया था ।यह देखकर उसके पिता ने कहा था कि, "बेटा नहर में पेशाब नही करते ।"
" क्यों " उस ने अज्ञानता वश पूछा था ।
" पानी गंदा हो जाता है , सभी लोग व पशु पक्षी पीते हैं ।जल पवित्र होता है लोग इसे देवता मानते हैं ।शास्त्रों में भी लिखा है जो पानी की तरफ या पानी में पेशाब करता है वे अगले जन्म में कुत्ता बनता है , "उसके पिता ने कहा ।
पानी खराब होता है इसीलिए नही पर अगले जन्म में कुत्ता न बन जाऊं इस लिए उसने फिर कभी पानी की तरफ पेशाब नही किया था। जब बड़ा हुआ तो ये बात वहम लगने लगी थी ।
परंतु आज वे सोच रहा था कई बार अंधविश्वास भी कितना कारगर नुस्खा होते हैं ।
फिर वे सोचने लगा अगर शास्त्रों की बात सच्च हो जाए तो - - - -अगली दुनिया - - -या आने वाली दुनिया तो इस हिसाब से कुत्तों की ही होगी ।और वे दुखी मन से भी मुस्करा दिया क्योकि इस बात में उसे सचाई की झलक पड़ रही थी । ****
8.बासमती की महक
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कर्म सिह गांव में पला बडा था ।उसका बाप खेती करता था ।वे दस वर्ष की आयु में बहुत बार खेत में अपने पिता की रोटी लेकर जाता था।उसका पिता धान के खेतों मे मजदूरों के साथ घास निकाल रहा होता ।वे अक्सर रोटी पकड़ा कर धान के खेतों में मेडों पर घूमता रहता ।
उन के खेतों में उन दिनो बासमती बोई जाती थी ।असली बासमती जिस के खेतों में मनमोहक खुश्बू बसी हुई होती ।खेत में घूमते हुए बासमती की भिन्नी भिन्नी सुगंध उस को मंत्रमुग्ध सा कर देती ।इस लिए वे बेसबरी से रविवार का इंतजार करता ।या कभी-कभार स्कूल से आता ही खेतों की तरफ निकल जाता ।वहां बासमती की महक जैसे उस को बुला रही होती ।
परंतु फिर वे ऊंची पढ़ाई कर शहर में ऊंचे पद पर आसीन हो गया और फिर वहीं बस गया।गांव से नाता टूट सा गया ।पर गांव की यादों के साथ उसको बसमती के खेतों के सपने अभी भी आते थे। ।साल में दो बार वे अपनी जमीन का ठेका लेने जरूर जाता।पर वे देखता रिश्तों में पहले जैसा स्निग्ध भी न था।उसका सारा समय भी हिसाब किताब लेन देन के चक्कर में फंस कर तनाव से भरा होता। वही मित्र रिश्ते नाते वही थे परंतु पहले जैसा स्नेह गायब था ।उस समय फसल भी कट चुकी होती ।खेतों से हरियाली भी गायब होती ।ये देख कर उस के मन में बासमती के खेतों में घूमने की चाहत और भी तीव्र हो जाती ।
एक दिन उसके गांव से उसका चचेरा भाई मिलने आया बातों बातों मे बासमती की बात चली तो भाई ने बताया कि हम खाने लायक देशी बासमती अब भी बोते हैं थोड़ी सी ।धान का मौसम था ।बरसात हो कर हटी थी ।उसका मन बासमती के खेतों की सुगंध लेने को मचल उठा ।
दो छुट्टियां थी इस लिए वे भाई के साथ ही गांव आ गया।
शाम को वे भाई के साथ खेतों की तरफ़ चल दिया ।दोनो बासमती के खेत पर जा पहुंचे ।खेत खूब लहलहा रहा था।
लेकिन उस को वे सुगंध नही मिली ।उसने बार बार सांस अंदर खींची पर निराशा ही हाथ लगी ।बल्कि एक भयानक सी बदबू उस के नाक में घुस गई ।
उसके पूछने पर भाई ने बताया कि बासमती पर कीटों का प्रकोप बहुत होता है।इसीलिए चार दिन बाद ही कीटनाशक का छिड़काव करना पड़ता है ।ये बास उसी की आ रही है ।
उस ने निराश मन से पूछा, "क्या अब भी इसके चावलों से खुशबू आती है" ।तो भाई ने कहा ,"नही वे पहले जैसी बात कहां ।बस दूसरी से कुछ ठीक होती है इसलिए बो लेते हैं ।"
उसने धीरे से कहा," इतनी कीटनाशक डाल कर अब खुश्बू की उमीद भी कहां रखी जा सकती है । शायद रिश्ते भी इसी लिए फसलों जैसे हो गए हैं आज कल, बिना महक के।"और वे भारी मन से वापस लौट पडा। ****
9.आज का सुदामा
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एक नेक उच्च अफसर के पास एक चापलूस शख्स चावल भेंट ले गया ।अफसर उसे जानता था।
अफसर ने मुस्करा कर कहा ," ये क्या ?
तो वे बोला, "आप हमारे कृष्ण हो इस लिए "।
तो अफसर ने सहज भाव से कहा," ना मैं कृष्ण हूं न तुम सुदामा हो " ।
" क्यों ?" वे बोला
क्योंकि आप मतलब के लिए रोज रोज कृष्ण बदल लेते हो ।
चापलूस शर्म प्रूफ था बोला, "ही ही ही ही ही---- " ।अफसर ने कहा," भेंट उठाओ और चलते बनो ।"
चापलूस के पांव के नीचे जमीन खिसक गई । ****
10. सोच
****
एक औरत कंडक्टर के साथ किराए को लेकर झगड़ा कर रही थी ।कंडक्टर कह रहा था किराया बड़ गया है परंतु वे मान ही नही रही थी ।बहुत मुश्किल से उसको समझाया ।टिकट देकर कंडक्टर ने उसे पहली सीट पर बैठने को कहा ।
वे वहां बैठने लगी तो उसकी नजर गाए के आकार की गुलक पर पड़ी ।औरत ने जल्दी से दस रूपये निकले व गुलक में डाल दिए ।जिस औरत ने तीन रूपये के लिए घंटा भर झगड़ा किया था उसने ड्राईवर के पास गाय की तस्वीर वाली गुलक में दस रुपए चुपचाप डाल कर माथा टेक दिया था। । ***
11.प्रबंध
*****
दो दिन से उस को मजदूरी नही मिली थी ।घर में आटा नही था ।वे भूखा ही मजदूरी की आशा से घर से निकल पड़ा ।
गेंहू के गोदाम में मज़दूरों की जरूरत है रास्ते में उसको एक दोस्त ने बताया ।वे वहां गया तो एक कर्मचारी उसको गेंहू के सड़े हुए ढेर के पास ले गया ।वहां और मजदूर भी काम कर रहे थे ।
सैकड़ों मन सड़ा हुआ अनाज देख कर वे धीरे से फुसफुसाया, "वाह रे किस्मत ,तू यहां पड़ा पड़ा सड़ गया और हम भूख से मरते रहे ।
तू सड़ना ही था तो किसी की भूख मिटा कर सड़ता ।कितने लोगों की भूख मिटा सकता था तू हाए रे प्रबंध ।
क्या कहा, "कर्मचारी ने पूछा ।"
तो वे कुछ नही कह कर सड़े हुए अनाज को वहां से हटा रहे मजदूरों में जा मिला । ****
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क्रमांक - 07
नाम : मनोज कर्ण
मुन्ना जी उपनाम से मैथिली मे लेखन.
जन्म-27 जनवरी1971 ( पुर्णिया, बिहार)
शिक्षा- स्नातक, मैथिली प्रतिष्ठा
विधा : -
हिन्दी लघुकथा की समकक्ष विधा
मैथिली बीहनि कथा विधा के सूत्रधार
प्रकाशित : -
मैथिली मे तीन बीहनि कथा संग्रह एवं एक गजल संग्रह!
1993 से लघुकथा/ बीहनि कथा मे समान रूप से लेखन
सम्प्रति- भारतीय जीवन बीमा निगम, दिल्ली मे बतौर अभिकर्ता कार्यरत
पता : -
289/7 सुर्याविहार - ३
सेक्टर 91 फरीदाबाद - हरियाणा
1.जमीर
*****
चलो, अब कम से कम जनसंख्या नियंत्रण तो हो पायेगा.हा....हा...हा !
एक भाई जान ,दो- तीन वीवीयाँ, बच्चों की लाइने ....!
अब पाल पोसकर ही तो दम लेंगे.ऐसा तो नही कि चार - छह बच्चे, आठ- दस साल ऐश करने के बाद वीवी हो गई डिस्पोजेवल वस्तु.बस ! एक ही शब्द तो दुहराने है तीन बार, तालाक !
--अरे ! बदरी भइया, इतनी खुशी काहे का ?
न्ययालय ने अपना निर्णय कर गेंद सरकार के गोद मे डाल दिया है. और सरकार है कि हर चुनाव पर ये गेंद उछालती रहेंगी. कभी क्रिकेट तो कभी फुटबॉलके तर्ज पर !
--ओफ्फ! ओ......
--अरे ! परविन्दर ,इस हालात मे अकेली ? रूक जा, तेरा पति कहाँ है ?
-- पति, ओ तो बस रस्म अदायगी के बहाने मनको तृप्त कर विदेश को लौट गया, पैसे बढाने के लिये. लौट कर एक और नया शिकार ढूंढेगा.
-- नही, नही तुझे न्याय मिलेगा, चिन्ता मत कर !
-- देख, न्यायालय ने तालाक पर भी सख्त गश्ती लगा दी.
-- अरे पाजी,बलात् पर तो पहले से कठोर कानून है देश मे, फिर भी वह बेखौफ विदेश की सैर कर रहा.और आप न्यायालय की बात कर रहे ! वहाँ भी तो नही मिला गर्भपात का आदेश ! एम्बुलेन्स... पाजी !
-- कानून बनाने/ बदलने का काम न्यायपालिका कर लेगी .लेकिन इंसानो की जमीर ! कौन बदलेगा ? कहते अवैध प्रसव पीडा़ मे एम्बुलेन्स मे जा लेट गई ! ****
2.चयन
*****
बारिश के कारण पक्की सड़क टूट चुकी थी.सड़क पर बने गड्ढे मे पानी भरा देख मै बगल वाली गली से गुजरने लगा.गली मे घुसते ही नजर पडी़- " नारी शक्ति स्टोर्स ". और वो दुकान एक बुजुर्ग चला रहे थे.मन ही मन हँस पड़ा, आज भी नारी की शक्ति पुरूष ने स्टोर कर रखा है.
दुसरे दिन फिर उस गली से ही गुजर रहा था कि वहाँ पहुँच कर कदम ठीठक से गए. दुकान पर एक दिव्यांग, सुन्दर सी युवती चुस्ती फुर्ती के साथ ग्राहकों को निबटाये जा रही थी.ग्राहकों की लाइन सी लगी थी.लेकिन नारी शक्ति देने के लिए केवल पुरूष ही सामने थे , नारी नदारद !
मैं भी उस भीड़ का हिस्सा बनकर एक पेस्ट खरीद कर चलता बना. फिर दुसरे दिन....तीसरे दिन....और अब हर दिन आते या जाते समय कुछ खरीदने रूक जाया करता कि इस बहाने उसकी शक्ति बढ़ा पाउँ.
क्रमश: मेरी नजरों से गुजरते हुए मेरे दिल की शक्ति बन गइ वह .मैं कायल होता गया उस के जज्बे का लेकिन मन कचोट जाता उसकी विकलांगता याद आते ही........!
अपने यात्रा मे निश्चय किया- "वापस जाकर उसे बता ही दूँ अपने मन का उद्गार !"
२ दिन बाद दुकान पर पहुँचते ही देखा दुकान का शटर गिरा हुआ था और उस पर लिखा था- " यह दुकान शिफ्ट हो गइ है, चिंकी की ससुराल मे " ****
3.गुदड़ी का लाल !
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-- झुग्गी और अपार्टमेन्ट, एक दुसरे के विपरीत. दोनो को अलग करती एक चौड़ी सी सड़क.और सडक किनारे लैम्प पोस्ट !
लैम्प पोस्ट के नीचे झुग्गी का एक बच्चा नवीन, अपनी पढाई मे तल्लीन.जैसे ही उसने पढाई से ध्यान हटाया, उसकी नजर सड़क पर गिरी पर्स पर पड़ा.पर्स मे लगी फोटो को पहचानते हुए....!
अरे ! ये तो करिश्मा अपार्टमेन्ट का जौकी भइया है !
और वह अपना स्कूल बैग पीठ पर और पर्स हाथ मे ले उधर की ओर चल पड़ा....
-- वह जौकी की मम्मी को पर्स देने के लिये हाथ बढाया ही था ,तब तक जौकी आ धमका.
वो, तो पर्स तूने निकाला था ?
-- नही भइया, ये मेरे घर के सामने वाले लैम्प पोस्ट के नीचे गिरा था. इस मे आप का फोटो देख कर आंटी को देने आया .
-- अच्छा बेटे ,इतनी रात को सड़क पर चोरी नही तो चौकीदारी कर रहा था क्या ?
-- आंटी चोरी नही, पढाई करता हूँ.
-- वाह ! एक तो पर्स निकाला उपर से ईमानदारी दिखाने आया.दिखा,कुछ निकाला तो नही ? जौकी ने पर्स झटकते हुए बोला.
-- ले ये ईनाम ! इसमे पडे़ सारे महत्वपुर्ण कागजात सुरक्षित लौटाने के लिये .जौकी ने ५० के नोट पकड़ाते हुए बोला.
-- नही भइया,मुझे कोइ पैसे नहीचाहिए.मै चलता हूँ.
--ऐ सुन, कभी दिया है माँ बाप ने ५० का नोट ?
--हम माँ-बाप से लेते नही, देते हैं भइया. उसने फटाफट अपने पीट्ठू बैग से आज ही स्कूल से मिला स्कॉलरशिप का चेक दिखाते हुए .....ये है हमारे अच्छी पढाई का परिणाम !
--" चेक मे तो तेरा ही नाम है.........साठ हजार !" ****
4.छत्र छाया
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-- ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन !
-- नीमा, कौन आया है ?
-- नीमा.....अरे ! फिर बेहोश !
-- क्या हुआ बहू को ?
-- अरे !आप ? पाँव लागी पापा ?
-- रात को रक्तचाप, मधुमेह बढा हुआ था.सुबह तो नियंत्रित था पता नही अचानक क्या देख ली की ....?
-- बेटे ! चलो, इन्हे किसी चिकित्सक के पास ले चलते हैं .
-- पापा, मुझे कार्यालय जाना है,इतना फालतू समय कहाँ हो पाता मेरे पास.
-- पापा अचानक ! सब ठीक तो है ? आप फोन कर देते,मै स्टेशन आ जाता लेने.
-- ट्रेन नही, बस से आया हूँ." देश बचाओ" रैली मे गाँव से सब को बस मे भरकर शहर लाया हूँ.
-- तो आप के साथ और भी लोग यहाँ आये हैं क्या ? कहाँ हैं वो लोग. ?
-- परेशान मत हो बेटा.सभी को रैली मे भेज, मैं बेटे- बहू और बच्चों से मिलने यहाँ आ गया.बताओ बहू को कहाँ दिखानी है,मैं दिखा लाता हूँ.
--आप को दिक्कत होगी पापा.मै जाते समय दिखाते हुए चला जाउँगा. और वो टैक्सी लेकर घर आ जायेगी.
-- बेटे ! बडों से छोटे तक कई पीढीयों के लोगों को जीवन दान दिया हूँ मैं. अस्पताल का पता बताते जाना.
-- नीमा के साथ कौन है ? कोइ नही है क्या ? चिकित्सक ने पुकारा
-- सर ! उसके पति भर्ती कर अपना कार्ड दे गये हैं,कॉल करना होगा - सिस्टर आ बता गई.
-- जी, डॉक्टर साहेब ! हमारी बहू तो ठीक है ?
-- नही ,आप जल्द से जल्द एक युनिट खून का इंतजाम कीजीए, आप के रोगी का जान खतरे मे है.
-- " मेरा खून चढा दीजिये ना !"
-- डॉक्टर साहेब ! मैं नीमा का पति.कौन सा ब्लड चाहिये ?
-- ब्लड ? वो तो हमने चढा दिया.सिस्टर बतायी नही क्या ?
-- नही सर !
-- वो , पेसेन्ट के साथ आये बाबा ने अपना खून दिया.
-- पापा किधर हैं ?
-- " वो रैली वाली बस मे गाँव चले गए ." ****
5.बढ़ती लकीरें
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वह मैसेज पढ़ते- पढ़ते काठ सा हो गया.जैसे काटो तो खुन नही.....! निढ़ाल हो कुछ देर अकेले बैठ कर सोचता रहा-
" उसे इतना लार प्यार दिया, अच्छी शिक्षा दी और उसने नाक कटबा दी."
एक बार भी तो बतायी होती. कैसे मुँह उठाउँगा रिश्ते और बिरादरी में.
अरे ! कुन्दन - " मुँह मीठा तो करबा दे , सुना हूँ वीणा ने खुद ब्याह रचा ली है."
दादा तुम भी ना !
अब चिन्ता की क्या बात. कल तक तो तु इसी चिन्ता मे दुबला होता जा रहा था.की बेटी की शादी कहाँ, कैसे होगी.ले कर दी ना तेरी सारी चिन्ता दूर.
जा चिन्ता छोड़ ! कर ले भोज- भात का इंतजाम .
वह बेचारा अन्दर ही अन्दर मरा जा रहा था. फिर भी ढ़ाढस बँधाते हुए - शिक्षित और काम काजी तो है ही, सोच समझ कर ही तो कोई फैसला की होगी.जब लौट कर इस चौखट पर आयेगी तब देखेंगे.तब तक क्युँ न' रह लूँ निश्चिन्त !
अजी सुनते हो- चाचा को साथ कर पता तो कर आओ " किस जात- धरम का लड़का है ,और हाँ खानदान जरूर पता कर लेना कहीं नीच....!
"उसके ललाट पर अब शिकन साफ साफ दिख रहा था ! " ****
6.नवोदय
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मिकी, इकलौती बेटी के घर पहुँचते ही किशनपाल जी के घर के बाहर भीड़ उमड़ पड़ी़.बधाई देने वालों का ताँता लग गया.
-- अरे पापा ! इस से पहले इस गाँव की कोई लड़की १२वीं पास नही की थी क्या ?
--नही बेटे, इस गाँव की लड़कियाँ दूसरे गाँव स्थित माध्यमिक विद्यालय नही पहुँच पाती , वह दरिन्दों का शिकार हो जाती है. और सभी तेरी तरह हॉस्टल में रह पढ़ने मे सक्षम नही है न.
सुनो- दरवाजा बन्द रखना, जब तक हम लोग मन्दिर से वापस न आ जाँय.और हाँ कोई पुरूष- गले में गमछा, ललाट पर काला तिलक और हाथ में काला डण्डा हो.....बाहर बिल्कुल नही आना.
-- ठीक है पापा !
-- खट्..खट्..!
मिकी अन्दर से ही उसे देख सहम गई.उस के हाथ में गुलदस्ता ! लेकिन गले में गमछा, माथे पर काला तिलक...पापा की कही बातें याद कर पूरा शरीर पसीने से लथपथ हो गया.
-- आइये...उसने अपने आत्मविश्वास को पक्का कर दरवाजा खोल दी.
बैठिये, कहकर किचेन में जा घूसी.वापस कमर में चाकू और हाथ में पानी का गिलास लिए खड़ी हो गई.
-- बधाई हो !कहते हुए उसने मिकी को बाँहो में जकड लिया.
-- भइया जी, आप तो पुरूष हैं न , तो अपना पुरूषार्थ तो दिखाइये.
--भइया मत कहो मुझे...कहते हुए उसने अपनी पैण्ट उतार दी.
खचाक्.....! छह इंची पुरूषत्व शुन्य में बदल गया.
" गाँव की सारी महिलाएँ जीवन में पहली बार एक नया उत्सव के माहौल मे रंगीन हो गई ! " ****
7.योग्य
****
-- सोसायटी हमारी है तो पहली भागीदारी भी हमारी ही बनती है.क्या जरूरत बाहर वाले आकर वाह वाही लूटें और हम ताली बजाते रह जाँय ?
नही,इस बार कमिटी के सामने यह प्रस्ताव रखना पड़ेगा.
--ठीक है ,होली मिलन समारोह की कविगोष्ठी मे आप सब ही सिरकत करेंगे. इस बार बाहर से कवि आमन्त्रित नही होंगे.
"और जुरी ?"
-- मैडम, जुरी तो बाहर वाले भी रहें हमे कोइ आपत्ति नही .
-- निर्णय सुनते ही तीनो कवियों की बाँछे खिल गइ, आखिर हम तीन मे से ही तो पहला, दूसरा और तीसरे का चयन कर पुरस्कृत करेंगे.
-- कवि गोष्ठी चरम पर थी, श्रोता उँघते,सोते हुए.जुरी हतप्रभ, सुस्त !
-- मंच संचालक कविगोष्ठी की समाप्ति की घोषणा करते हुए....जुरी से निवेदन, अपना निर्णय सुनाये
--जुरी के तीनो सदस्य निस्तब्ध !
"श्रोता, कवि प्रतिक्षारत......शोर गुल शुरू हुइ.
भीड़ से स्वर गुँजा.....जुरी महोदय श्रेष्ठ कवि की घोषणा तो करें....!
--" जुरी के तीनो सदस्य कलम तोड.उठ खड़े हो गए . " ****
8.चेतना
*****
बाल बिखरे पड़े, गाल लाल आँखों से जैसे चिंगारी निकलने वाली हो.एक लड़की चिग्धाड़ती हुई थाने के बरामदे पर आ खड़ी हुई.उसने सभी कक्ष के उपर लिखे शब्दों पर नजरें दौड़ाई और तेजी से थाना प्रभारी के कक्ष मे दाखिल हो चिल्लाने लगी -
-- "दरोगा साहब , मुझे बचा लिजीये....बचा लिजीये . उसे छोड़िये मत प्लीज !"
-- , बैठीये प्लीज ! आप बैठ जाइये.
सतीश पानी लाना - दरोगा साहब चपरासी को आदेश दिये.
-- लिजीये...पानी !सतीश ने गिलास देते कहा.
-- अब बताइये क्या हुआ ?
--" बलात्कार !"
दरोगा साहब ! रिपोर्ट दर्ज कर जल्दी उस पर कारवाई कीजिये.वो शहर छोड़ कर भाग न पाये .
सारे सिपाही/ कर्मचारी , दरोगा साहब के ईर्द गिर्द इकट्ठा हो गया था ..
--" कहाँ हुआ, कैसे हुआ ये सब ? - एक वरिष्ठ सिपाही ने सवाल किया .
-- हुआ है , बस हुआ है ये सब ! लड़की चिखते हुये बोली.
-- शान्त.....शान्त ! आप लोग अपने अपने कक्ष मे जाइये-- दरोगा साहेब आदेश देते हुये बोले .
-- मैडम, उस लड़के को आप के सामने लाऊँ तो पहचान पायेंगे आप ? दरोगा साहब गम्भीर होते हुये बोले.
-- हाँ क्यों नही, पहली बार थोड़े ही देखी हुँ .
-- यानी की पहले भी आपके साथ उसने.....?
-- नही, पहले सहमति से हुआ करता था .हम दोनो पिछले तीन सालों से लिव इन रिलेशन मे हैं.
-- तो आप अपने माता पिता से इस बात का जिक्र कर समझौता कर ले ं तो भविष्य बेहतर होगा - दरोगा साहब कॉन्सिलिंग की मुद्रा मे थे.
--पापा तो शादी का सारा इंतजाम और तारीख भी सुनिश्चित कर लिये हैं .
-- तो फिर दिक्कत क्या है ? दरोगा साहब ने स्थिति स्पष्ट समझने का प्रयास किया .
-- " उसने आज शादी करने से मना कर दिया ."
--ओफ्फ ! तो आप मनाइये न जाकर .तीसरे पक्ष का क्या दरकार ?
--आप गोल मटोल बातें कर बिना रिपोर्ट दर्ज किये यहाँ से वापस भेजना चाहते हैं. इन्तजार कीजिये अभी बताती हुँ आप को.-- लड़की , थानेदार को धमकाते हुए थाने से बाहर हो गई.
-- अब वह थाने के बाहर ,आमंत्रित पत्रकारों के बीच पुलिस प्रशासन और सरकार की धज्जियाँ उड़ा रही थी.
टी.वी प्रसारण होते ही देश भर के युवा/ युवती, बुद्धिजीवी , जो जहाँ थे ,जैसे थे देश के सच्चे सिपाही के तरह अपने अपने फेसबुक पर सक्रिय हो कर पुरी तन्मयता के साथ थाना- पुलिस और सरकार को कोस रहे थे .
" गुमनाम , आँखो से ओझल हो च़ूकी वह लड़की कहाँ किस हालात मे थी.कोई सुध लेने वाला नही था.
" थाना और सरकार का जन सेवा जारी थी . ****
9.नही बनूंगी द्रौपदी
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-- सरपंच चाचा राम राम !
-- जी़ती रहो कान्ति बिटीया .
-- चाचा , आज हमारे द्वार पर आप लोग ?
-- हाँ बेटा ! तुम तो पढ़ी लिखी हो, हमारा कष्ट समझ सकती हो. सवर्णो के घर बेटी का अकाल सा मानो.जो दो चार हैं भी वो दूर शहर में पढ़ रहीं तो समय पर आ नही पाती .तुम तो ठहरी सुसंस्कारी , राखी, भइया दुज पर आकर रस्म अदायगी कर जाती हो .
-- हाँ , तो ?
-- यही कि हमारे चौपाल पर चलती,और भाई- बहन का सामुहिक त्योहार मनाती.
-- नही चाचा ! अन्जानों के साथ पवित्र बंधन ?
-- " अरे बिटीया हमारे टोले जाने से डरती हो क्या ? हम हैं न साथ में." - सरपंच के मुँहलगुए ने व्यंग्यवाण छोड़ा.
-- हाँ चाचा डरती हुँ, अन्दर से डर गई हुँ मैं.
-- क्यों ?
-- " कल को आप लोग सामुहिक बहु बनने का आग्रह लेकर आ गए तो ?" ****
10.विकल्प
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-- ये तेरा घर ही तो है न राकेश ? - गाँव से बहुत दिनो बाद पहली बार आया दोस्त ने आश्चर्य से पूछा.
-- हाँ, मेरा ही घर है .क्यों ?
- अरे ! गाँव मे तो हम अछूतों की बस्ती गाँव से बाहर होता है न.और यहाँ पण्डितों के रहवास के बीच ?
-- भाई राजू, इन सब में ज्यादातर हमारे रिश्तेदारी से ही हैं .
-- पण्डित और तेरे रिश्तेदार ? उल्लू बना रहा क्या ?
--दर असल हमारा खानदान पण्डितो के सताने से मुक्ति हेतु एक नया सामाजिक प्रयोगशाला ही बना डाली.
-- मतलब ! समझा नही.
--हम सभी भाईयों की शादी पण्डित घरानों मे ही हुई है.लव मैरेज के बाद कहा- सुनी के बीच.हुक्का- पानी चलने लगा.
-- और बहनों की ?
--" सारी बहनें भी भाईयों के तरह सामाजिक संतुलन में कामयाब रही है ! *****
11.जगह की तलाश में...!
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तृप्ति पूजा की थाल लिए जैसे ही घर से निकल मन्दिर की ओर बढी उसके कदम ठीठकने लगे.वह सुबह को चीरती हुइ सन्नाटे से डर कर वापस घर को आ गई.
-- अरे ! कुछ भूल गई क्या ? माँ ने जिज्ञासा भरे लहजे मे पूछा .
-- नही मम्मी, सड़क की सन्नाटे से डर गई.
-- अरे ! अब तो सुबह हो चुके हैं , वो देख - दो भईया भी घूम रहे हैं.तुम जानती नही क्या उन्हे ?
मम्मी दरवाजा खोल सड़क पर आ खड़ी हो गई.
-- हाँ मम्मी मैं अच्छी तरह जानती हुँ उन्हें , वो केवल भइया नही दो युवा हैं, युवा !
-- कोई बात नही, जा मैं यहीं खड़ी हुँ.जल्दी आ जाना स्कूल भी तो जाना है.
तृप्ति फिर से घर से निकलते हुए - ओके, बॉय मॉम ! कहते हुए आगे बढ़ गई. सच ! बाहर का अँधेरा तो छँट चूका था., लेकिन मन का अँधेरा अभी भी कायम था.
वह घर से निकल चौराहे तक पहुँची ही थी कि उसके कानो मे कुछ अप्रत्याशित शब्द गूँज उठे. लगा जैसे लड़कों ने फब्तियाँ कसी हो.
-- उसने पीछे मुड़कर दुस्साहस दिखाते हुए पूछ डाला - भइया जी आपने मुझे कुछ कहा क्या ?
-- नही तो....! समवेत स्वर उभरा.
" दरअसल हम दोनो दो धर्म के हैं , तो निश्चय नही कर पा रहे थे कि तुम्हे उठाकर किस सुरक्षित जगह पर ले जाऊँ. मन्दिर मे या मस्जिद मे ! "
हा...हा...हा ! दोनो के ठहाके से उसका सिर चकराने लगा था. ****
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क्रमांक - 08
नाम: हरीश कुमार 'अमित'
जन्म: 01 मार्च, 1958 को दिल्ली में
शिक्षा ,: बी कॉम; एम ए(हिंदी); व पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा
प्रकाशन : -
1,000 से अधिक रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।
विभिन्न विधाओं की 10 पुस्तकें प्रकाशित।
28 संकलनों में भी रचनाएँ संकलित।
प्रसारण : -
लगभग 200 रचनाओं का आकाशवाणी से प्रसारण
पता :
304, एम.एस.4
केन्द्रीय विहार, सेक्टर 56
गुरुग्राम-122011 (हरियाणा)
नाम:- राजश्री गौड़
साहित्यिक नाम:- राजश्री
पिता - श्री भीमसेन पराशर
जन्मतिथि:- 24-11-56
शिक्षा:-BA Bed.,( M A prev Hindi)
व्यवसाय:- लेखन, समाज सेवा
विधा:- कविता, गज़ल, लेख,लघुकथा लेखन,बाल-गीत व बाल-कविता
प्रकाशित पुस्तके :-
काव्य-संग्रह 'धनक', ग़ज़ल-संग्रह ' तुमको भुलाया कहाँ है ' सांझा काव्य-संग्रह।(10)
कविता-कोश, साहित्य-पीडिया, कागज-दिल. कॉम पर रचनाएँ
सम्मान:-
हिन्दी प्रचार प्रसार समिति द्वारा सम्मानित,1.नारी गौरव सम्मान, 2.श्रेष्ठ हिन्दी रचनाकार सम्मान, 3.प्रेम-काव्य सम्मान, 4.भारत के प्रतिभाशाली रचनाकार सम्मान, 5.साहित्य-शिरोमणि सम्मान (साहित्य की 7मुख्य श्रेणी की 24 उप-श्रेणियों में उत्कृष्ट सृजन)
सिद्धी साहित्य सम्मान
अंतरराष्ट्रीय ब्राह्मण मंच द्वारा सम्मानित,
जैमिनी अकादमी हिन्दी भवन पानीपत' द्वारा गणतंत्र दिवस पर 'भारत गौरव' सम्मान।
अंतरराष्ट्रीय क्राईम रिफोर्म समिति द्वारा सम्मानित।
द ग्रेट वूमैन ऑफ द ईयर - 2020.
अंतरराष्ट्रीय ब्राह्मण सभा की (भूतपूर्व) जिला-अध्यक्ष (सोनीपत),
अंतरराष्ट्रीय ब्राह्मण मंच की प्रदेशाध्यक्ष (हरियाणा प्रदेश)
पता : - मकान नं. 1131 , सैक्टर - 15 , सोनीपत - 131001 हरियाणा
1.आग का साम्राज्य
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डोर बैल बजने पर नाश्ता करती तृप्ति ने काम वाली बाई को गेट पर जा कर देखने को कहा, फिर न जाने क्यों स्वयं ही उठ खड़ी हुई। गेट पर बीस बाइस वर्षीय सुदर्शन नव युवक कांधे पर झोला लटकाये खड़ा था। तृप्ति ने प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा तो बोला " आंटी मैं काश्मीरी ब्राह्मण हूँ। दिल्ली शरणार्थी शिविर में रहते हैं। मैं स्टुडैंट हूँ। यदि आप कुछ मदद कर सकें तो......।" उसकी गहरी ,निरीह ,उदास आँखों में विवशता स्पष्ट परिलक्षित हो रही थी। तृप्ति का कुछ क्षण पहले का सशंकित मन ममता से भर गया। उसे अपना बेटा जो लगभग इसी वय का है याद आ गया जो कुछ माह पूर्व ही पुणे जाब पर गया हुआ है।
"आओ बेटा! बैठो।" बरामदे में कुर्सी की तरफ इशारा कर दूसरी पर स्वयं बैठ गई। काम वाली बाई को आवाज लगा लगा चाय-नाश्ता वहीं मंगा लिया, अपने व नव युवक के लिए भी। युवक के द्वारा सुन कर कि किस तरह चरमपंथियों के द्वारा फैलाई गई साम्प्रदायिक आग में काश्मीर झुलस रहा है ,तृप्ति का हृदय दृवित हो गया। अपने घर, ज़मीन व सम्पत्तियों से महरूम हो, पलायन कर, स्वयं के देश में ही शरणार्थी हो कर दयनीय जीवन बिताने के लिए विवश हैं। दहशत के माहौल में कब तक जीवन बिताते।
तृप्ति ने समाचार-पत्रों व तकनीकी मीडिया द्वारा बहुत कुछ सुना व देखा था। पहले एक राजनीतिक पार्टी के नेता, दूरदर्शन केंद्र के निदेशक व दहशत-गर्द को सज़ा सुनाने वाले न्यायाधीश..... एक के बाद एक को मौत के घाट उतार दिया गया।उसके बाद तो कश्मीर में साम्प्रदायिकता की आग फैलती चली गई।
तृप्ति ने युवक को बेटे की अलमारी से कुछ कपड़े, कालेज-बैग, खाने पीने व जरूरत का कुछ सामान व यथा संभव मदद कर भेज तो दिया किन्तु एक प्रश्न जो उसके मन-मस्तिष्क पर टंगा रह गया था कि " कब तक...... आखिर कब तक देश व समाज के कथित ठेकेदार इन्सान व इन्सानियत को अपने स्वार्थ के लिए आग के बवंडर में झौंकते रहेंगे। आखिर कब तक???? ****
2.काल के कोमल हाथ
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अपने प्रिय नेता को देखने जन सैलाव उमड़ पड़ा था। जनता को सिर्फ आधा घंटा ही इंतजार करना पड़ा। नेता जी सपरिवार अपने छुटभैयों के साथ स्टेज पर उपस्थित थे। नेता जी ने अपने सद्विचारों का पिटारा खोलना आरंभ किया " आजकल हर राजनीतिक दल जातिगत राजनीति करता है। भाईयों! मुझे नफरत है ऐसी राजनीति से, मेरे लिए हिंदु-मुस्लिम, ऊंच-नीच जाति का होने से पहले वह एक इंसान है.......। जनता के बीच खड़े एक चमचे ने ताली बजा विचारों का स्वागत किया तो पूरे पंडाल में तालियों के साथ जिंदाबाद के नारे गूँज उठे।
नेता जी स्टेज़ से उतर जनता के बीच आ गये, एक नवयुवक के कांधे पर हाथ रख कुछ बात की , कांधे पर हाथ रखे ही मन्दिर तक गये, हाथ जोड़ प्रार्थना की।धर्म निरपेक्ष नेता जी की जय जयकार होने लगी।
लोग प्रशंसा करते न अघाते थे---" बड़े ही नेक दिल हैं,देश और दलितों का ये ही उद्धार कर सकते हैं।"
चुनाव में नेता जी भारी बहुमत से जीत कर संसद में आ गए।एक दिन अपनी इकलौती पुत्री को एक नवयुवक के साथ देखा। आने पर बेटी को अपने कक्ष में बुलाया, पास बिठा प्यार से सिर पर हाथ फेरते हुए युवक के बारे में पूछा। " पापा ये सुमित है।" बेटी बोली
" कौन सुमित? " " वही जिस के साथ आप दलितों की बस्ती में मन्दिर गये थे, बड़ा इंटैलीजैंट है पापा, इसका एक बड़ी कंपनी में सलैक्शन भी हो गया है, हमें बहुत पसंद है।" ओहहहहह.....वो... ठीक है बेटा! अब जाओ अपने रूम में जाकर सो जाओ, सुबह बात करते हैं।
अगले दिन नेता जी के बंगले पर भीड़ जमा थी। लोग चर्चा कर रहे थे। " कुछ बीमार थी के ?" " अरे कड़ै बमार थी, काल ताईं तै ठीक ठाक थी, रात मैंये पेट में दरद उठा बतावैं अर्... जिब लग ड़ागदर आवै वा चाल बसी, ।"शोक सभा में नेता जी गर्दन झुकाए बेटी के ग़म में नम आँखों से शोक विव्हल बैठे थे।" ओहहहहह... या राम नै बी नेक इंसान के गेलां घना बुरा करा।" ****
3. वो शराबी
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गाड़ी में तीन सीट वाली जगह पर चारों लड़कियाँ बैठ गई थीं। मैं ड्राईवर के साथ वाली सीट पर आगे बैठ गया था। विवाह समारोह से लौटते वक्त रात के ग्यारह बज चुके थे। हर तरफ अँधकार का साम्राज्य। ड्राईवर रास्ता भटक गया और एक अंजान वीरान सड़क का रास्ता....। थोड़ी ही देर में ड्राईवर सहित सबकी समझ में आ गया कि रास्ता अनजाना है। किन्तु अब रास्ता पूछे भी तो किससे? आगे बढ़ते जाने के सिवाय कोई चारा नहीं था।गाड़ी रोककर खड़ा होना ऐसे नितांत जंगल में ख़तरों को दावत देने जैसा था। सड़क के साथ वाले खेत से एक व्यक्ति जो वेशभूषा से किसान लग रहा था,आता दिखाई दिया।
सभी के कहने पर गाड़ी रोक पूछा- "भैया! ये कौन सी जगह है?"
बदले में उसने भी सवाल किया -"आप लोगों को कहां जाना है?"
"सोनीपत।" लगभग सभी एक साथ बोले।
"ये तो तुम बहुत ही गलत रास्ते पर आ गये हो, आगे रास्ता बहुत ही ख़तरनाक है" गाड़ी के अंदर की तरफ झांकते हुए बोला- " लड़कियां भी साथ हैं।" कह कर उस भले आदमी के चेहरे पर कुछ चिंता झलक आई। किसान से रास्ता पूछ व समझ कर ड्राईवर ने गाड़ी का रुख़ मोड़ दिया। वह अंदर ही अंदर बहुत डरा हुआ ,घबराया हुआ था। लड़कियों सहित सभी को वक्त पर व सुरक्षित पहुंचाना उसकी जिम्मेदारी थी।
घबराहट में उसने गाड़ी की रफ्तार बहुत तेज कर दी।पहले से ही डरे-सहमे बच्चे रफ्तार कम करने के लिये चिल्लाने लगे तो ड्राईवर ने रफ्तार कुछ कम की।रात बहुत हो चुकी थी।गाड़ी सही गंतव्य पथ पर बढ़ रही थी। पीछे बैठी नेहा दी बोली " मुझे तो डर लग रहा है।" " तू ड़र मत कोई भी मुसीबत पहले मेरे पास ही आएगी मैं हूं न इधर विंड़ो के साथ।"दी की फ्रैंड विप्रा बोली। अपना डर कम करने के लिए सभी मस्ती करने लगे- "हँसते हँसते कट जाएँ रस्ते, जिंदगी यूं ही.. जिंदगी एक सफ़र है सुहाना यहां कल क्या हो..... मन्नु भाई मोटर चली पम्म पम्म पम्म....आधी रात के बाद गलियों में जब अँधेरा होता है एक आवाज आती है...चोर-चोर... चोर-चोर....कभी
अलविदा न कहना कभी अलविदा न कहना".....मोड़ पर जैसे ही गाड़ी मोड़ी...भड़ाक्.......एक जबर्दस्त धमाके की आवाज के साथ ही सबकी चीख़ एक साथ निकली और फिर निस्तब्धता छा गई।आने जाने वाले वाहन दूर से देख कर आगे खिसक जाते।मुझे सुध सी आई गाड़ी में कुछ सरसराहट सी महसूस हुई फिर कांपती थरथराई सी नेहा दी की मद्धिम सी आवाज " भाई!भाई! तू ठीक तो है न?" "हां बहन मैं ठीक हूं और तू...?" मैंने कँधे के दर्द को सहन करते हुए बोला। अपने साथियों को देखा जो कुछ होश में आने लगे थे सिमरन पूरी तरह टूटे काँच की किरचियों में नहाई थी और पूजाओफ्फ..मुंह से खून बह रहा था जबड़ा हाथ में आ गया और वह हाथ मुंह पर सटाये जबड़े को जबरन चिपकाये थी। विप्रा को हमने बाहर निकालने के लिये बहुत प्रयत्न किया पर वो हिल भी नहीं रही थी। टूटी विंड़ो मे फँस गई थी। कनपटी से बेतहाशा खून बह रहा था। मेरी रूलाई फूट पड़ने को थी पर रोने का वक्त कहां था। इन सबसे छोटा होते हुए भी बडे का फ़र्ज निभाना था।
एक आदमी ज्यों ही हमारे पास आकर खड़ा हुआ बदबूदार भभका मेरे नथुनों में
भर गया व मन शंका से। आस पास खेतों में काम कर रहे किसान जो दिन में अत्यधिक गर्मी के कारण रात को ही धान के खेतों में ट्यूबैल चला कर पानी दे रहे थे, आ गए। सब दूर खड़े थे। एक युवक हमारी तरफ आया तो मैंने भर्राई हुई आवाज मेंही मदद के लिए रिक्वैस्ट की।ग्रामीण आने-जाने वाले वाहनों को रोकने की कोशिश में लगे थे। बड़ी मशक्कत के बाद विंड़ो तोड़ कर विप्रा को निकाला।कनपटी से बहता लहु रुक नहीं रहा था वहअब भी बेहोश थी सिर के दाहिने हिस्से मेंबहुत चोटें आई थीं। उसका व पूजा का तुरंत हॉस्पिटल पहुंचाना बहुत ही जरूरी था। कोई वाहन घायलों को ले जाने को तैयार नहीं था। एक गाड़ी आकर रूकीतो लोगों ने उनसे मदद के लिये कहा पर इंकार कर आगे बढ़ने लगे- "या तै इन घायलां ने अस्पताल पुंच्या दो न तै खैर नहीं सै थारी।हाथ में लाठी दीखै सै न।" वो शराबी गरज कर बोला और हाथ में लाठी लिये सड़क के बीच में खड़ा हो गया।
मजबूरन उन्हें ले जाना पड़ा उनके साथ सिमरन को बिठा दिया। ड्राईवर न जाने कहां गायब हो गया। भीड़ में से एक बोला " तू भी उनके साथगाड़ी में बैठ जा" मैंनेकहा-" मैं अपनी बहन को छोड़ कर नहीं जाता। "ये हमारी भी बहन जैसी है ,हम पहुंचा देंगे।" वे बोले। "नहीं ये सिर्फ मेरी बहन है।" नेहा दी अभी तक डरी सहमी कांप रहीथी हम दोनों बहन भाई लिपट कर रो पड़े।कुछ संभले तो घर फोन कर डैड़ी को सब बताया व विप्रा के घर फोन कर उसके मम्मी पापा को सिविल हॉस्पिटल पहुंचने को बोला। उस शराबी ने लाठी के बल पर एक और गाड़ी रुकवाईऔर हम बहन भाई को संकेत कर बैठने को कहा गाड़ी में महिला व बच्ची को देख हमने बैठना उचित समझा।सब सिविल हॉस्पिटल पहुंच चुके थे। पूजा के पापा वहीं पर डैंटिस्ट थे तो उसका इलाजशुरू हो चुका था, विप्रा को फस्ट ऐड़ देकर दिल्ली जयपुर गोल्ड़न अस्पताल के लिये रैफ़र कर दिया गया।वह दो-तीन महीनों में ठीक होकर घर आगई। आज सब अपनी अपनी जिंदगी में खुश हैं मगर वो शराबी जो उस काली रात में, हमारी जिंदगी में संकट-मोचक बन कर आया था...कभी नहीं भूल पाता। ****
4.जमीर जिन्दा है
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शर्मा जी जब भी दफ्तर में जाते डिप्टी डायरेक्टर से लेकर हैड़ क्लर्क, क्लर्क तक छोटे बड़े सब एक कतार में बैठे नजर आते। क्लर्क से बात करते तो वह हैड़ क्लर्क पर और हैड़ क्लर्क से करते तो वह डिप्टी डायरेक्टर पर टाल देता और डिप्टी डायरेक्टर के पास जाते तो साहेब बोल देते " भाई शर्मा जी मेरे पास तो अभी तुम्हारी पैंशन के कागज़ नहीं आये हैं, आयेंगे तो मैं साइन कर दुंगा। मेरी तरफ से तो कोई ढ़ील नहीं है।" वो रुआंसे हो लौट जाते।
शर्मा जी को रिटायर हुए कई माह हो गये थे, और उतने ही विभाग के दफ्तर में चक्कर लगाते हुए, थक चुके थे। सरकारी विभाग या प्राइवेट की ही बात नहीं बल्कि पूरे समाज की है। छोटी से लेकर बड़ी इकाई तक खाल नोचने को कतार लगाये बैठे हैं। हालात से परेशान असहाय इंसान अपनी खुदी को, अपने ज़मीर को मार अपने काम निकलवाने के लिए जमीन पर ढ़ह जाता है और कुर्सी पर बैठे गिद्ध मांस नोचने को टूट पड़ते हैं ऐसे मुर्दों पर।
जिंदगी भर कभी रिश्र्वत न लेने-देने वाले शर्मा जी ने भी आज निश्चय कर लिया था कि आज वो काम करवा कर ही रहेंगे। सीधे डिप्टी डायरेक्टर के पास ही गये " मिड्ढा साहेब! आज मुझे अपना काम पूरा चाहिए, उसके बिना आज मैं वापिस नहीं जाऊंगा।"
मिड्ढा साहेब क्लर्क व हैडकलर्क की तरफ एक आँख दबा कर बोले " अरे चोपड़ा, अरे श्रीभगवान! आज शर्मा जी का काम पूरा करो भाई।कह रहे हैं मैं काम पूरा करवा कर ही जाऊंगा।" शर्मा जी ने आँख दबाते हुए देख लिया था फिर भी स्वयं को संयत कर कलर्क की तरफ बढ़ गये।वह बोला " शर्मा जी! क्यों दुखी हो रहे हो? कुछ जेब ढीली करो, मुफ्त में ही माल चाहते हो।" शर्मा जी का संयम जवाब दे चुका था। भृकुटी टेढ़ी हो गई। " क्यों? मुफ्त का माल कैसे हैं? साठ साल तक ईमानदारी से विभाग की सेवा की है। तुम्हें तनख़ाह मिलती है, कोई फ्री में काम नहीं करते हो।पेट नहीं भरता है तो हाथ में कटोरा ले लो और चौराहे पर खड़े होकर भीख़ मांगो। दफ्तर वालों को शान्त, हंसमुख प्रकृति वाले शर्मा जी से ऐसी आशा नहीं थी। सब सहम से गये। विभाग व समाज में शर्मा जी का सम्मान था सो दफ्तर वाले चुप रह बगलें झांकने लगे। वो क्रोध में बोले जा रहे थे " मैं रिटायर हो चुका हूं, कुछ काम तो है नहीं, मैं भी यहीं बैठा हूं, जो भी आयेगा सब से कहुंगा कि यहां भिखमंगे बैठे हैं, लोगों! इन्हें भीख देते जाओ।" दफ्तर के दरवाज़े पर कुर्सी लेकर बैठ गये
अंदर कुछ कानाफूसी हुई, चोपड़ा शर्मा जी के सामने करबद्ध आकर खड़ा हो गया। " शर्मा जी आपका काम पूरा हो गया है।" काम तो पहले ही पूरा था परन्तु रोक रखा था लालच में।शर्मा जी का ज़मीर जिंदा रहा वो जान और माल बचा कर चले गए। विभाग के टहने पर के गिद्ध मुंह लटकाते बैठे थे शायद कोई और ही मुर्दा फंस जाये। ****
5. अतिथि देवता
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मई का आखरी सप्ताह था,ज्येष्ठ मास का आग उगलता सूरज अपनी प्रख़र किरणें समेट कर जा चुका था। सुरता किसान घर के दरवाजे के बाहर चारपाई बिछा गली मैं बैठ पसीने सुखा रहा था। दरवाजे पर आगन्तुक को देख उसे भी वहीं चारपाई पर बिठा लिया। सुरता के रिश्तेदार जिस गाँव में रहते थे आगन्तुक वहीं का था। वह अंदर जा पत्नी से बोला-" भोजन बना दो , बाहर एक मेहमान आया है। एक लोटा पानी भी देदो, गर्मी का कोई ठिकाना नहीं है।" पत्नी किसनी घोर चिंता में मग्न थी बोली घर में अनाज का एक दाना भी नहीं भोजन क्या बनाऊँ जो था वो झाड़ पोंछ कर दिन में बना दिया।" " मेहमान आया है तो उसे भूखा थोड़े ही भेजेंगे भाग्यवान ! कुछ तो उपाय करो। रात के वक्त आया मेहमान बिना भोजन किये कैसे भेजूं,वो भी क्या सोचेगा।" किसनी बोली- " यहाँ तो दोपहर में ही अँधेरा हो गया था। किससे आटा उधार लाऊँ पहले लिया उधार अब तक चुकता नही हुआ।"
ऐसा नहीं है कि इस बार फसल कम पैदा हुई किंतु खलिहान में ही तगादगीर आ पहुंचे, घर तक अनाज पहुंच ही नहीं पाया। जो बचा उसमें महीना भर ही निकल पाया, आगे क्या होगा ये तो ईश्वर ही जाने। " बच्चों को तो दाल पिला कर ही सुला दिया, थोड़ी और बची है। पर मेहमान को क्या खिलायें।" किसनी असमंजस में सिर पकड़ कर बैठ गई। सुरता बोला वो देवता के नाम पर उठावा भी तो रखा था वही......।" किसनी झिझकती सी बोली नहीं नही ये ठीक नहीं होगा,देवता नाराज हो जायेंगे ।" " किन्तु इस अतिथि देवता का क्या होगा,देवता कौन सा मुंह से माँगते हैं जब होगा उनका फिर उठा रखना।" कह कर सुरता पानी का लोटा उठा बाहर चला गया। किसनी मन ही मन देवता से क्षमा माँगती हुई छोटी सी हंडिया में रखा आटा उठा लाई अतिथि देवता का भोजन बनाने लगी। देवता से फिर से उठावा रखने का वादा करती हुई। ****
6. सुहानी साँझ
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खाँसी के कारण नींद नहीं आ रही थी, तो बिस्तर से उठ कर लीविंग रूम में चहल-कदमी करने
लगे। महानगर में वो खुले खुले दालान, सेहन कहाँ मिलते है। फ्लैट में तो बरांड़ा, हाल -रूम,
ड्राईंग-रूम सबका काम ये लीविंग-रूम ही देता है। दीनानाथ जी को कुछ सुकून था तो बस यही
कि वो अपने बेटा बहु के साथ थे। आज खांसीं कुछ ज्यादा ही परेशान कर रही थी। चहल-कदमी करते करते उन्हें बेटा नितिन व बहु नीरा के कमरे से दोनों की बात करने की आवाज सुनाई दी। अपना नाम सुन कर बरबस ही उनका ध्यान उधर चला गया। नितिन नीरा को कह रहा
था ---" बाऊ जी को सुबह वृद्ध आश्रम ले के जाना है। अब सो जाओ, सुबह जल्दी उठ कर तैयार हो जाना। मैं वहीं से आफिस चला जाऊँगा।" दीनानाथ जी के मन में जैसे कुछ दरक सा गया था। सोचा बेटा-बहु के कहने पर वो अपना छोटा शहर छोड़ कर यहां क्यों चले आये ?
उन्हें अपना यहां आना ठीक नहीं लग रहा था।
क्या इसी दिन के लिये इंसान सारी उम्र मेहनत करता है। सन्तान की इच्छानुसार े उन्हें कामयाब करने को धनोपार्जन के लिये जी तोड़ मेहनत करते करते कब जीवन की साँझ आ घेरती है पता भी नहीं चलता। बच्चे मनचाही मंजिल वजीवन साथी पा दूर बसेरा कर लेते हैं। अकेलापन, उदासी व वृद्धावस्था की बीमारियां आ घेरती है। रिटायर्मैंट के कुछ बर्ष बाद ही पत्नी का देहावसान होने से दीनानाथ जी नितांत अकेले हो गये थे। अकेलापन दुस्सह हो गया था।
इन्हीं विचारों में खोये हुये रात बीत गई। थक कर वो बिस्तर पर लेट गये।
नितिन बाऊ जी के लिए चाय रख कर जल्दी तैयार होने को कह खुद भी तैयार होने चला गया। बाऊ जी तैयार होकर आए तो बहु नीरा नेपाली नौकर से गाड़ी में सामान रखवा रही थी। दीनानाथ जी ने सोच लिया था कि वो उनका कुछ सामान नहीं लेंगे उनके अपने दो-चार जोड़े पुराने कपड़े ही बहुत हैं।सभी गाड़ी में बैठ चुके थे। रास्ते में पड़ने वाले मंदिर के बाहर सभी उतरने लगे तो वो भी अनमने मन से उतर गए।मन ही मन बुदबुदाय -- हुंह्ह्....मंदिर....।
एक फीकी सी मुस्कराहट उनके चेहरे पर फैल गई। थोड़ी देर में सभी फिर गाड़ी में आ बैठे।
वृद्ध-आश्रम आ गया था। सभी उतरे, नीरा सामान उतरवाने लगी, नितिन मैनेजर के रूम की तरफ बढ़ गया। उदास मन बाऊ जी नितिन के पीछे पीछे चल पड़े। हृदय के दर्द ने बुढापे की चाल को और मंदा कर दिया था। उनके पंहुचते ही मैंनेजर ने खड़े होकर उनका स्वागत कर नमस्कार किया " जन्म दिन मुबारक हो दीनानाथ जी।" वो जब तक कुछ समझ पाते बहु व बेटे नितिन ने एक साथ आकर बाऊ जी के चरण स्पर्श किये-" जन्म दिन मुबारक हो बाऊ जी, आपकी छत्रछाया सदैव हम पर बनी रहे।" बूढ़ी आखों में जल भर आया। इस अप्रत्याशित खुशी से लड़खड़ा से गए वो गिर ही जाते यदि नितिन व नीरा स्फुर्ति से उन्हें सहारा देकर कुर्सी पर न बिठाते।
मैंनेजर ने पानी का गिलास थमाया। पानी पीकर कुछ राहत सी मिली। कुछ देर पहले का दुखी मन फूल सा खिल गया था। उन्हें अब सुहानी सांझ का अहसास होने लगा था।
थोड़ी देर बाद वो अपने बेटा-बहु के साथ मिलकर साथ लाया सामान कपड़े, शॉल, फल व बुजुर्गों की जरूरत की दवाईयां बाँट रहे थे। ****
7. चौकड़ी
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घुप्प अँधेरा चहुँ ओर अपने पंख फैलाए था। समूचे गाँव को अपने स्याह पँखों से ढके,आसमान पर घिरे काले बादलों ने पौष मास की रात्री को भयानक बना दिया था। गाँव की गलियों की नीरवता को चीरती हुई ज्ञानो देवी हाथ में लालटेन लिए चल रही थी।पीछे पीछे आ रही दाई ने भी लपक कर घर में प्रवेश किया ही था कि गरज के साथ बादलों बरसना आरम्भ कर दिया।
मूसलाधार बारिश ने जनवरी की ठंड़ को अत्यधिक तीक्ष्ण बना दिया था। भीतर वाली कोठरी में तीन बेटियों की माँ कमला बेटे की आस में, प्रसव-पीड़ा से छटपटा रही थी। सास उसे ढांढ़स बंधा रही थी-- " बस बेटी इबकै और हिम्मत कर ले, एक छोरा सा हो ज्या तै फेर छुट्टी करिये बालक बनाण की।" तभी पीड़ातिरेक से कमला की चीख और आसमानी बिजली की तेज गर्जना ने गांव की अँधेरी सुनसान गलियों के माहौल को भयानक बना दिया
बाहर दालान में कमला की जेठानी अपनी दोनों बेटियों को अगल-बगल बाहों में समेटे सोने का उपक्रम कर रही थी। अचानक बादलों को फाड़ कर तड़तड़ाती योगमाया(बिजली) जैसे पृथ्वी पर गिरी हो, उसके साथ ही कमला की लम्बी चीख के बाद माहौल जैसे शांत सा हो गया।रजनी अब भी भय से कांप रही थी। उसने अपनी दोनों बेटियों को सीने में समेट लिया।
कमरे से दाई की फुसफुसाहट के साथ ही सास ग्यानो के रोने-चीखने की आवाजें आने लगी बूढ़ी ग्यानो अपनी छाती पीट-पीट कर रो रही थी। "हाय रे!मर ग्ये हम तै या चौत्थी और होगी, चौकड़ी बणगी।" सहसा बूढ़ी का स्वर कठोर होने लगा। रजनी ने जैसे किसी अनजाने भय से बचाने के लिये रजाई को कस कर अपनी लाड़लियों को छुपा लिया। ****
8. दृश्य बदल गया
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गोधूलि का समय होने वाला था, रानो पशुओं को पानी पिलाने के लिये दरवाजे पर खड़ी सासु मां का इंतजार कर रही थी।हमेशा की तरह वो बाड़े से पशुओं को लेने गईं थी। हरिहर चाचा जिन्हें गाँव में सब हरिया कहते थे व लक्ष्मी चाची यानि गाँव भर की लिछमी चाची रानो के घर के सामने से जा रहे थे। हल्का सा घूँघट खींच उसने दोनों के पाँव छू लिये और चाचा की तरफ थोड़ी ओट कर थोड़ी उत्सुकता से पूछ लिया कि" आज साथ-साथ दोनों कहां चले।" उत्साह से भरी चाची चलती-चलती बोली- "चेतन आ रह्या सै, रोहतक तै। बस अड्डे पै उन्नै लेण खातर जावैं सैं। आण कै बात करुँगी बहु।" रानो मुस्कराती उन्हें जाते हुये देखती रही।
थोड़ी ही देर में दोनों सामान से लदे-फंदे आ रहे थे, आगे-आगे चेतन गर्वीली चाल से चला आ रहा था। रानो को " भाभी नमस्ते" कह वह मुस्कराता आगे बढ़ गया। कुछ वर्ष पहले जब चेतन
एम.बी.बी.एस करने गया था वो दृश्य उसकी आँखों के सामने घूम गया। कितना अंतर आ गया था। सीधा-सादा, शर्मीला सा किशोर वय चेतन आज एक शिक्षित गर्वीला युवक हो गया था।
दसवीं की परीक्षा में हरियाणा बोर्ड़ में अव्वल आने पर चेतन की चाहत पूूरी करने के लिये माता-पिता ने उसे अपनी ज़मीन बेच कर डाक्टर बनाने का निश्चय किया था। औलाद की खुशी व उन्नति ही माता पिता के लिए सर्वोपरि होती है। औलाद के लिए हो या न हो। बस अड्डे पर हरिया चाचा उसे बस में बिठाने जा रहे थे। चेतन का सारा सामान चाचा उठाने लगे तो उसने पिता के हाथ से ले सारा सामान खुद उठा लिया था। पिता गर्व से आगे आगे चल रहे थे।
किन्तु आज..........दृश्य बदल गया था। लगा जैसे कुछ खो गया हो। हां सचमुच खो ही तो गया था। माता पिता ने अपनी जमीन-जायदाद, पैसा व संस्कार-वान बेटा और चेतन ने शिक्षित होकर भी अपने संस्कार खो दिये थे। ****
9. हिम्मत सिंह का दर्द
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जब से सर्जिकल-स्ट्राईक-2 हुआ है तमाम देशवासियों की तरह मेरे मुहल्ले के लोग भी बदले व जीत की खुशी से फूले नहीं समा रहे। गली नुक्कड़ पर सभी नव-उत्साह से भरे प्रधान मंत्री जी के साहसिक कदम व सीमा के प्रहरी जाँबाजों की भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहे है। मेरे पडोस में ही रहने वाले हिम्मत सिंह हवलदार ड्युटी पर जाने को निकले तो पड़ोसियों का जमावड़ा देख दुआ-सलाम के साथ ही लगे देश की सुरक्षा सम्बंधी घटनाओं पर अपनी व्यथा उड़ेलने।
"आर्मी और एयरफोर्स तो पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राईक कर चुकी है, हमें भी तो मौका मिलना चाहिए। हम सिर्फ बापुओं व बाबाओं को पकड़ने के लिए ही हैं।"
" साहब "ये बाबा-बापु भी पकड़ने बहुत जरूरी हैं, जो देश की आधी आबादी व संस्कृति को शहीद करने में लगे हैं।" हवलदार हिम्मत सिंह का सीना गर्व से फूल गया। ****
10. एक और शिकार
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कोरोना-वायरस के चलते लॉक-डाउन हुए चार पांच दिन हो गए। सरकार को देश हित में, देश वासियों की सुरक्षा हेतु ये कदम उठाना पड़ा। बच्चे,बूढ़े, युवक युवतियां सभी न चाहते हुए भी महामारी के डर से मजबूरन घरों में कैद हो गये। सोसायटी का गार्डन, प्ले-एरिया, क्लब- हाउस, मंदिर, स्वीमिंग पूल सभी सुनसान। घरों में रह कर खाना-पीना, सोना और फिर पति-पत्नी का झगड़ना बस यही काम रह गया। लॉक-डाउन से पहले हर रोज अपने अपने ऑफिस जाना थके हुए आकर डिनर के बाद सो जाना।अगले दिन फिर वही दिनचर्या। लड़ाई झगड़े का वक्त ही कहाँ था?
इन्हीं विचारों में उलझे रात के ढाई बज गए किन्तु आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं था।दिन में जो सो ली थी। वह बिस्तर पर उठ कर बैठ गई। उसने खिड़की से बाहर रोड पर झांका तो सोलहवीं मंजिल के अपने इस फ्लैट से देखा हाईवे पर दूर तक सन्नाटा पसरा हुआ था।घबरा कर उसने नज़रें सोसायटी की साइड वाली विंडो पर घुमा लीं। दांये-बांये वाली बिल्डिंगों की बत्तियां गुल थीं। लेकिन ये क्या?? सामने वाली बिल्डिंग पर नज़र पड़ते ही वो उत्सुकता से दम- साधे देखने लगी। ठीक उसके सामने वाले फ्लैट की विंडो पर कुछ हलचल सी लगी दो सिर उभरे और अगले ही पल लगा जैसे कोई भारी भरकम चीज़ नीचे के घास वाले एरिया में गिरी है या गिराई गई है। अंधेरे में उसे कुछ दिखाई नहीं दिया।
मोबाइल में देखा तीन बज चुके थे।ओहह लगता है आज तो सारी रात जागते ही निकल जाएगी। वह लेट गई और फिर से सोने का प्रयास करने लगी। किन्तु ग्राउंड से आती आवाज सुन वह फिर से उठ गई नीचे देखने लगी। गार्डन के खम्बे पर लगी लाइट में दो आदमी खडे दिखे। " सर आप कह रहे थे कि आपकी पत्नी गिर गई है उसे उठवाना है।पर ये तो मर गई लगता है।" अरे!ये तो सोसायटी के वॉचमैन की आवाज है। वह हैरानी से सब देख रही थी, दूसरे ने क्या कहा साफ नहीं सुन सकी। " सर मैं इसको हाथ नहीं लगाऊंगा।" वॉचमैन ने दृढ़ता से कहा और वह अपने स्थान पर ही खड़ा रहा। दूसरे ने कुछ धीरे से कहा और वह स्वयं ही दोनों हाथों से खींचते हुए लिफ्ट की तरफ बढ़ने लगा। वह शंकाओं से घिरी सब देख रही थी। वह साथ वाली टेबल से पानी की बोतल उठा गटागट आधी बोतल पी गई।सोचा पति को उठा कर ये सब बताऊं। किन्तु पति की भी नींद खराब होने के डर से नहीं उठाया। अवश्य ही सुबह कोई बुरा समाचार मिलने वाला है यही सोचते सोचते कब आँख लग गई पता ही नहीं चला।
लॉक-डाउन के कारण सुबह किसी को भी बिस्तर से उठने की जल्दी नहीं थी।
" मम्मा सोसायटी में पुलिस आई है, सामने वाली बिल्डिंग में,मम्मा उठो न।" बच्चों की आवाज सुन वह उठी। उठते ही उसे रात वाली घटना याद आ गई। पर मोबाइल पर मैसेज की आवाज सुन वह मैसेज देखने लगी। सोसायटी की लेडीज़ के वट्सैप-ग्रुप पर मैसेज था " श्रुति ने खिड़की से कूद कर जान दे दी।" वह सकते में आ गई, ओह! तो वह श्रुति थी। पर 6 और 2 साल के बेटों को छोड़ कर वो जान क्यों देगी? हमेशा चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लिए शांत रहने वाली श्रुति जब भी प्ले एरिया में दोनों बेटों को खेलने के लिए लाती। थोड़ी देर होते ही बच्चों को बुला चल देती।बच्चे कुछ देर और खेलने की जिद करते तो वह असमंजस की स्थिति में कहती "नहीं बेटा डिनर बनाने में देर हो जायेगी तो आपकी दादी गुस्सा करेगी।" और बेचारी रुआंसी हो जबर्दस्ती बच्चों को ले जाती।
रात के दृश्य उसके मन को उद्वेलित कर रहे थे....तो खिड़की पर वो दो सिर किसके थे, कई हाथों का कुछ भारी फैंकने जैसा आभास, न चीख़ की आवाज।कहीं पहले से बेजान देह ही....। अगले दिन पुलिस फिर आई और चली भी गई। अधिकतर खिड़कियों से निस्पंद नजरें निहार रही थीं। टी वी पर, समाचार पत्रों में ताज़ा समाचार था---
"मुम्बई, महाराष्ट्र में चालीस वर्षीय युवती की कोरोनावायरस से एक और मौत।" *****
11. टीस
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शकीला अभी सेहन में बैठी सांझ के लिए भाजी साफ कर काट रही थी, नौ साल की महरूनिसा दौड़ती हुई आई।-"अम्मी ! क्या ये चच्ची का घर नहीं?” ज्यादा गौर न करते हुए शकीला ने कहा " हां चच्ची का ही है, क्या हुआ मेहरु बेटी ?" मेहरू हंसने लगी, "अम्मी! चच्ची अभी गांव से आई है।मैंने पूछा कि कहाँ गयी थी तो कहने लगी- "अपने घर।" बच्ची और हंस कर बताने लगी. " मैं ने पूछा कि "ये किसका घर है?" तो चच्ची बोली तुम्हारे चच्चा का।" भोली मेहरू हंसते हुए बोली " चच्ची भी कैसी बातें करती है न।" शकीला का मन कसैला सा हो गया। दर्द का एक हल्का सा वर्क चेहरे पर फैल गया। जिसे मासूम बचपन न समझ सका। वह मन ही मन कहने लगी "जब किसी औरत को उम्र के किसी भी पड़ाव पर, किसी भी बात पर, सिर्फ़ तीन बार 'तलाक' कह देने भर से जिस घर से उसे बेदख़ल कर दिया जाये, तो वह घर उसका कैसे हो सकता है।" शकीला की टीस से बेख़बर नन्ही मेहरू मुस्कराये जा रही थी। ****
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लघुकथा के लिए आपके प्रयास बहुत सराहनीय हैं, साधुवाद! शुभकामनाएँ
ReplyDeleteसभी श्रेष्ठ रचनाएँ हैं, सभी को हार्दिक बधाई🎉🎊
जी,बहुत-बहुत शुभकामनाएं आदरणीय, सभी साहित्यकारों को भी शुभकामनाएं💐💐
ReplyDeleteकिसी कारणवश मैं ई लघुकथा संकलन में शामिल न हो सका।पर आपने पढ़ने के लिए प्रेषित की🙏🏼🙏🏼आपका आभार🙏🏼
मैं इन सबको अवश्य पढूँगा🙏🏼
जी स्वस्थ रहे🙏🏼
- राकेशकुमार जैनबन्धु
सिरसा - हरियाणा
(WhatsApp से साभार)
बहुत ही सुंदर संकलन के लिए बधाई। मेरी रचनाएं शामिल करने के लिए आभार। आप लघुकथा विधा की समृद्ध परम्परा को बनाए रखने के लिए प्रयासरत रहते हैं। पुनः बधाई एवं शुक्रिया।
ReplyDeleteबुरा न माने तो एक बात कहना चाहूंगा कि आपको सबसे पहले कमल कपूर जी को लेना चाहिए था। वे वरिष्ठ हैं।
- राधेश्याम भारतीय
घरौंडा - करनाल ( हरियाणा )
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संकलन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, सादर आभार आदरणीय बिजेंद्र जैमिनी जी का💐🙏 लघुकथा-साहित्य जगत में " जैमिनी एकादमी" व बिजेंद्र जैमिनी का अकथ व अथक प्रयास हमेशा स्मरणीय रहेगा। दुआ करते हैं कि एकादमी साहित्य जगत का ध्रुव-तारा बनकर सदैव प्रकाशवान रहे 💐🙏🙏
ReplyDeleteहरियाणा के प्रमुख लघुकथाकार ई- लघुकथा संकलन के लिए बहुत बहुत बधाई बीजेन्द्र जैमिनी जी।रचनाकारों एवं लघुकथाओं का चुनाव बहुत सुंदर है।
ReplyDelete- सुदर्शन रत्नाकर
फरीदाबाद - हरियाणा
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अच्छा संकलन। सभी शामिल लघुकथाकारों को बधाई। आपको साधुवाद।
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