जीवन में संयम का क्या महत्व है ?
संयम से किया गया कार्य सफलता की ओर ले जाता है और सही - गलत की पहचान भी करवा देता है । यही से जीवन के मूल्य में संयम की उपयोगिता सिद्ध होती है । संयम के भी अपने फार्मूले होते है। जिससे संयम को प्राप्त किया जाता है । संयम की परिभाषा भी एक दम स्पष्ट है । शान्त रहते हुये अपने मुकाम तक पहुचना हैं । यही कुछ " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । आये विचारों को देखते हैं : -
सही मायने में यदि हम अपनी इंद्रियों पर काबू पा लेते हैं तो हमने सब पा लिया! संयम ही एक ऐसा मार्ग है जिससे हम उत्कृष्ट जीवन, महानता और सुख- शांति पा सकते हैं !
यदि किसी से झगड़ते समय हमने अपने आप पर संयम रख बात वहीं समाप्त कर दी तो हमने धैर्य, विवेक, विनम्रता, अपनी सहजता सरलता, बुद्धि व्यवहार सभी गुणों को भी ध्यान में रखा (ये गुण है तो संयम है)
यहां हम अपनी इंद्रिय जिह्वा को बस में कर लेते हैं तो बाकी इंद्रियों को भी तथाकथित सभी गुणों के साथ संयमित रख सकते हैं और संयम में विश्वास की भावना प्रचुर वेग में हो तो "सोने पे सुहागा "
हमने अपने काम, लोभ, इच्छा, चाहत पर काबू करने के लिये मन को स्थिर कर लिया या यों कहें मन पर विजय प्राप्त कर ली तो हमें हमारी संयमता से कोई नहीं हिला सकता! हम बड़े से बड़े कार्य कर सकते हैं!
संयम रखना कोई खेल नहीं है!
कठिन परिस्थिति में ही अपने आप में संयम रखना यानिकी अपने आपसे विजय हासिल करना होता है!
जिसने अपनी इंद्रियों पर विजय हासिल कर ली वह कठिन परिस्थिति में भी संयम रखता है एवं बड़े से बड़ा कार्य करने में सक्षम होता है!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
उपदेश देना आसान है मगर जीवन में संयम रखना इतना आसान नहीं है, यह तो तपस्या से भी कठिन कार्य है । लेकिन जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए संयम अति आवश्यक है । घर-परिवार, समाज, परिस्थिति, स्थान विशेष में संयम का विशेष महत्व है । यदि ' पहला सुख निरोगी काया' की बात करें तो खानपान में संयम होगा तभी स्वस्थ रह सकेंगे । घर-परिवार, समाज में मानसिक संयम और वो भी बोलने का संयम नहीं रखेंगे तो हमारे रिश्तों के साथ-साथ हमारी छवि भी खराब होगी और रहीम जी वाली बात हो जाएगी--" रहिमन जिव्हा बावरी कही गई सरग पाताल । आपहु कही भीतर गई जूती खात कपाल ।।"
इस फैशन के युग में यदि अपनी इच्छाओं पर संयम नहीं रखेंगे तो कर्जदार बनने में भी समय नहीं लगेगा । जीवन में ऐसे अनेक क्षेत्र हैं जहां प्रतिपल संयम की आवश्यकता है । संयमित जीवनशैली से जीवन में सुखी रह सकते हैं ।
- बसन्ती पंवार
जोधपुर - राजस्थान
संयम से धैर्य, शुचिता, दृढ़ता, शांति,बुद्धि, ओज,विवेक,व्यवहार आदि ऐसे अनेक गुणों की हममें वृद्धि होती है। जो हमारे चरित्र को संस्कारवान बनाती है। संयम से क्रोध समूल नष्ट होता है,जो जीवन का सबसे बड़ा बाधक माना गया है। इस तरह हम संयम से व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर जीवन-आदर्शों के साथ अपने को सुखी, संपन्न और सरस बना सकते हैं। यही जीवन की सार्थकता है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
संयम एक भावनात्मक नियंत्रण है यह एक साधना है।
इसके महत्व को स्पष्ट करते हुए एक छोटी सी घटना की चर्चा कर रही हू एक हसता खेलता परिवार है जिसका मुखिया बहुत ही अच्छा धन कमाता था और अपनी पत्नी के हाथ मे देता था. ।पत्नी उसे इस तरह खर्च करती मानो पैसे पेड पर फलते-फूलते है ।असंयमित जीवन के कारण कुछ वर्षो बाद धीरे-धीरे वे लोग कर्जदार बन गए और जीवन शर्मनाक हो गया । इच्छा अनन्त है संयम जीवन को बांधती है।चुनाव की कला सिखाती है
सहनशीलता त्याग जैसे गुणो को व्यक्तित्व मे उभारती है।
संयम को साधने के लिए अनुशासन को अपनाना होगा जिसकी शुरुआत वाल्यावस्था मे ही करनी पड़ती है ।
कुछ लोग वचपन से ही अनुशासित होते है और कुछ लोग को उम्र के साथ स्वभाव मे यह कला पनपती है।
अपने विचार भावना इच्छा पर नियंत्रण करना अतिआवश्यक है
संयमित जीवन मे रिश्तो का संतुलन रहता है सफलता लगातार मिलती रहती है । खुश रहकर दूसरो मे खुशिया बांटना संयमित जीवन का मूल मंत्र है
- डाँ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
मनुष्य के जीवन में संयम रखने का विशेष महत्व है। संयम उम्र के साथ-साथ आता है। इसके लिए अनुशासन और अपनी इंद्रियों को वश में रखना चाहिए अपने आप को कुछ नियमों में बांध लेना चाहिए और उन्हीं के अनुसार कार्य करना चाहिए जीवन के नियमों या सिद्धांतों के अभाव में व्यक्ति का जीवन वायु वेग से उड़ते विवश पत्ते की भांति हो जाएगा इसीलिए सभी बुद्धिजीवी व्यक्तियों ने जीवन में अनुशासन को सर्वोपरि स्थान दिया है महात्मा गांधी का कहना है। अनुशासन अव्यवस्था के लिए वही कार्य करता है जो बाढ़ और तूफान के समय जहाज और किला। शरीर को स्वस्थ वाह सुंदर बनाए रखने के लिए जिस प्रकार संतुलित भोजन नियमित व्यायाम आवश्यक है ।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
यदि मनुष्य को शांति पूर्ण जीवन व्यतीत करना है तो संयम अति आवश्यक है ।हर व्यक्ति में काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्षा, द्वेष, अहंकार, जलन की भावना विद्यमान रहती है ।साथ ही धैर्य, संतोष,सहनशीलता, त्याग, परोपकार के गुण भी विद्यमान होते हैं ।अब प्रश्न ये उठता है कि बचपन से हमारे चारों ओर का वातावरण कैसा रहा है।क्योंकि उसका प्रभाव हमारे व्यक्तित्व पर अवश्य पड़ता है ।जहाँ सौहार्द पूर्ण वातावरण हो, एकल दूसरे के प्रति प्रेम और त्याग हो तो संयम स्वतः ही हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन जाता है ।संयम रखने वाला व्यक्ति सदा प्रसन्न रहता है क्योंकि उसका मूल 'संतोषी सदा सुखी 'या 'जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए 'का होता है ।संयमी हमेशा स्वस्थ रहता है, मानसिक तनाव से मुक्त रहता है और बड़ी से बड़ी मुसीबत में भी विचलित नहीं होता ।वह हर बात को धैर्य और शांत रहकर समस्या का समाधान निकाल लेता है ।संयम रखने वाले व्यक्ति आक्रोश, हिंसा, दुराचार, अनैतिकता, व्यभिचार जैसे अवगुणों से दूर रहने का प्रयास करते हैं ।वे 'सादा जीवन उच्च विचार 'पर विश्वास रखने वाले होते हैं और सदा प्रसन्न रहते हैं।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
जीवन में संयम का अति महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि
संयम और धैर्य ही मनुष्य जीवन के ऐसे दो अस्त्र हैं, जो मनुष्य को हर कठिन परिस्थिति में काम आते हैं। किसी भी समय तुरंत लिया गया निर्णय इंसान को असमंजस्य में डाल सकता है। संयम से किए गए कार्य हमें सही निर्णय तक ले जा सकते हैं। और जल्दबाजी में किए गए काम हमें नुकसान करवा सकते हैं।जिसके पास संयम की शक्ति है। वह व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थितियों का सामना सहज रूप कर सकता है।और संयम से लिए गए फैसले कभी भी गलत नहीं हो सकते। अतः प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में धैर्य और संयम से ही कार्य करना चाहिए।
- वंदना पुणतांबेकर
इंदौर - मध्यप्रदेश
जीवन में संयम का होना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है जीवन को सफल बनाने निरोगी बनाने में संयम का अहम किरदार होता है। संयम स्वयं से प्यार करने का एक उपाय है। जिस व्यक्ति में संकल्प और संयम नहीं वह मृत व्यक्ति के समान है। ऐसा व्यक्ति जीवनभर विचार, भाव और इंद्रियों का गुलाम बनकर ही रहता है। संयम और संकल्प के अभाव में व्यक्ति के भीतर क्रोध, भय, हिंसा और व्याकुलता बनी रहती है, जिसके कारण उसकी जीवनशैली अनियमित और अवैचारिक हो जाती है। बिना संकल्पित हुए बगैर जीवन का कोई भी कार्य का आरंभ करना उचित नहीं है क्योंकि इसके बिना हमारा कार्य फलदायक नहीं हो सकता। संकल्प है तो संयम अर्थात धैर्य भी रखना जरूरी है। संयम का जीवन में बहुत ही महत्व है। संयमित जीवनशैली है तो व्यक्ति सदा निरोगी और प्रसन्न चित्त बना रहता है। जो मनुष्य इंद्रियों पर संयम करने में सफल हो जाता है,उसे आत्मशुद्धि में कोई संशय ही नहीं करना चाहिये । संयम ही समस्त दुखों से बचने का एकमात्र उपाय है ।
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
संयम का अर्थ है स्वयं का स्वयं पर भावनात्मक रूप से नियंत्रण । जब तक व्यक्ति अपने विचारों , इन्द्रियों व आचरण पर अनुशासन नहीं रखेगा तब तक वो भोग विलास में उलझ कर क्रोध, लोभ, मोह- माया के जाल में जकड़ा रहेगा ।
सत्संग के प्रभाव से सयंमित जीवन जीना आसान हो जाता है ।अच्छा साहित्य अच्छे विचारों को जन्म देता है व दृढ़ निश्चयी बनाता है ।
*यौवन का मूल: सयंम - सदाचार*
विवेकानंद जी के अनुसार संयमित जीवन शैली से ही मानव की उन्नति सम्भव है ।सपनों को पूरा करने के लिए इसकी बहुत आवश्यकता है । अगर मनुष्य अपनी भाषा पर सयंम रख सके तो आधे से अधिक झगड़े होने से बच जायेंगे ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
जी हाँ !, जीवन में संयम का महत्त्व है ।भौतिकता की दौड़ में मानव तनाव , रोग , लोभ , स्वार्थ के दलदल में धंस रहा है । जिससे उसका जीवन असंयमित हो गया है । खाने , सोने का कोई वक्त निश्चित नहीं रहा है । मैं की पराकाष्ठा को सर्वोत्तम मानता है । जिससे उसमें द्वेष , जलन , ईर्ष्या , क्रोध , असंयम , अभिमान ,हिंसा , झूठ जैसे शत्रुओं से ग्रसित हो रहा है । ऋषि दुर्वासा का क्रोध तो जग जाहिर है । इन दुश्मनों को मार गिराने के लिए संयम के अस्त्र को अपनाना होगा । तभी ये दुर्गुण शांत होंगे । जीवन में संयम का उतना ही महत्व जितना प्राणों को जिंदा रख देने के लिए भोजन , वायु , पानी की अब 6 आवश्यकता होती है । अहिंसा के परिवार का संयम भी एक गुण है । जिसके बल पर मानव महामानव बन सकता है । जितने भी महापुरुष , संत , योगी आदि हुए हैं । उन्होंने संयम को अपनाया है । महामानव कहलाए ।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम , महावीर , बुद्ध , गाँधी आदि ने अपनी इंद्रियों को वश में कर , निज पर अनुशासन कर , मन पर संयम धारण करके महावीर कहलाए । हमारे सम्यक जीवनचर्या में सात्विक सन्तुलित आहार , आचार , विचार , उठना , जागना , सोना , आराम आदि सभी दैनिक क्रिया के अंग हैं । जिसने भी संयम के अनुसार जीवन जिया उन्होंने शिखर को पाया । जो उनका लक्ष्य था । उसको उन्होंने हासिल किया । तभी हमारा संयमित , संतुलित जीवन बनता है । हमने भूख से ज्यादा भोजन कर लिया तो हमें बेचैन कर देगा । रोगों को जन्म देगा । इसलिए कहा भी गया है संयमित , सन्तुलित जीवन जीने के लिए योग को अपने जीवन में अपनाओ । जो हमारे नकारात्मक आचरण गन्दे मनोभावों , आदतों को सुधारने के साथ साकारत्मक बनाकर जीवन में आनन्द भर देता है । आपो दीपो भव का मार्ग चुने । आत्मपरीक्षण करें । चेतना को अंतर्मुखी बनाके परम् सत्य को जाने । स्वस्थ जीवनशैली में संयम को जाने औऱ अपनाएँ । इसे हम उपदेशों बातों से नहीं प्राप्त कर सकते हैं । मानवीयता इस गुण को हम बचपन में संस्कारों अंगीकार करें । जैनियों के गुरु आचार्य महाप्रज्ञ जी को नहीं जानता है।
मैने भी उनके सान्निध्य का लाभ उठाया था । तप , व्रत , संयम को ताउम्र जीवन में अपनाया था ।संसार में अणुव्रत उन्हीं की देन है । मन , वचन , कर्म की मर्यादा से हम आदर्श चरित्र को बना सकते हैं । नियम , विधान , व्रत का संयमी पालन करता है। बन्धन उपयोगी होता है । हम चार दीवारी बाँध के ही घर में रहते हैं । पानी को बाँध कर ही बिजली बनायी जाती है । ऊर्जा हमें देती है । संयम भी हमारे जीवन को ऊर्जा देता है । वाहन सड़क पर अनुशासन से चलते हैं । जहाँ नियम तोड़ा तो वहीँ पर दुर्घटना होती है । समुद्र संयम में रहता है । जहाँ सीमा तोड़ी ।वहाँ सुनामी निश्चित है ।
हाल ही में एन आर सी , सीसीए को ले के भारत में कैसा हाहाकार लोग मचा रहे है । जेएनयू के संग कई विश्वविद्यालयों के छात्रों का, नकाबपोशों असंयमित व्यवहार दुनिया ने देखा । संयम की सीमाओं को तोड़के प्रदर्शन कर रहे थे । क्या ही अच्छा होता लोकतांत्रिक मूल्यों को अपना के आंदोलन करते । नियम , बन्धन में पराधीनता नहीं होती है । मन संयम से बंधा है । तो मुक्ति निश्चित है । सार यही है कि संयम समस्या सुलझाने का साधन है । संयम मूल्यों , नैतिकता की जननी है । नैतिकता के प्रकाश से चहुँ ओर कल्याण का उजाला है । चाँद - सूरज , प्रकृति सब संयम से चलते हैं । माता को संयम की शिक्षा बचहमारा देश्चे को गर्भ से ही देनी चाहिए । राम की मर्यादा का बखान रामायण , रामचरितमानस भी करता है । राम ने वनवास सुन के कैकयी की आज्ञा का संयम से पालन किया था । सदियों से भारत संयम से जीया है । आध्यात्मिक संस्कारों से जगत गुरु बना है । आज हमारे समाज में संयम का प्रतिशत घटा है । परिवार में ही छोटा जन बड़े की बात सुनने को राजी नहीं है । व्यवहार में गिरावट को दर्शाता है ।
हम अपने संयम शक्ति को बढ़ाएँ । हम अपना व्यवहार , जीवन , स्वभाव संयम से महान बनाएँ । ईश की इस दिव्यता से एकाकार हों ।अंत में दोहे में मैं कहती हूँ -
अणुव्रत आंदोलन का , संयम ही है घोष ।
स्वर्ग बने परिवार है , रहे नहीं फिर रोष ।
- डॉ मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
हमारा जीवन निरन्तर गतिमान है,और हर मनुष्य में गुण और अवगुण दोनों होते हैं । जीवन में संयम से हमारे जीवन का संतुलन कायम रहता है ।संयम हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । संयम के कारण हीं हम अपनी सारी इंद्रियों को अपने वश में रख पाते हैं ,जो अत्यंत महत्वपूर्ण है । मानव जीवन इंद्रियों पर हीं आधारित है अतः यदि हमने अपनी इंद्रियों को संयम के अधीन कर लिया तो हमारा जीवन सुखी-संपन्न,सरल हो जाता है। हमारी इंद्रियों के भटकने के बहुत सारे रास्ते हैं जिसे हम संयम से हीं खोल ,बंद कर सकते हैं । पुराने समय में ऋषि मुनि अपनी इसी "संयम" को निरन्तर तपाते रहते थे और अपनी खुद की परीक्षा इसी आधार पर करते थे ,कि वो संयमित करने में खुद सफल हुए या असफल हुए । इसलिए हमारे जीवन में संयम का अत्यधिक महत्व है ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
हमारे जीवन मैं संयम का बहुत महत्व है . संयम के कारण बिगड़ी हुई स्थिति संभल जाती है , अप्रिय घटना नहीं घटती . संयम वो गहना है जो केवल समझदार लोगों के पास होता है .आवेग मैं मनुष्य अच्छे बुरे की कुछ नहीं सोचता और ऐसा कदम उठा लेता है , जिसके लिए वह केवल पछता सकता है , पर बिगड़ी स्थिति संभाल नहीं सकता . संयम के अभाव मैं मनुष्य अच्छा बुरा सोचने की शक्ति खो देता है और आवेग मैं ऐसा तीर चला देता है , जिससेहुए विनाश को वह ठीक नहीं कर सकता
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
संयमपूर्ण जीवन न केवल गलतियों की संख्या न्यूनतम करता है साथ ही तन व मन की स्वस्थता को दीर्घकालिक बनाता है व्यक्ति के द्वारा आरम्भ किये कार्य बिना किसी व्यवधान के समय से पूर्ण होते हैं ।वह परिवार समुदाय के लिए अनुकरणीय भी हो जाता है ।अतः जीवन में संयम का अपना महत्व है ही और सदा होना भी चाहिए ।
- शशांक मिश्र भारती
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
संयमित जीवन हमेशा से सही दिशा प्रकाशित करता है। उचित निर्णय लेने में सहायक होता है । संयमता अनंत बाधाओं का निवारण आसानी से करता है । भगवान बुद्ध या ऋषियों ने अपनी इंद्रियों को संयमित कर लिया था , जिससे उन्हें दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ। संयम व्यक्ति को साधारण मानव से ऊपर उठा देता है । जीवन सार्थक हो जाता है । लेकिन इसे प्राप्त करना ही कठिन है । अगर इसे हम समझ जाएं और अपने जीवन में उतार लें, तो जीवन का अर्थ खुद-ब-खुद बदल जायेगा ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
" मेरी दृष्टि में " जीवन में संयम बहुत जरूरी है । बिना संयम के इंसान अपराध की दुनियां में पहुंच जाता है । संयम ही तो संघर्ष करवाने में सफलता प्राप्त करवाता है । बिना संयम के तो संघर्ष सम्भव ही नहीं है । संयम के लिए ध्यान आदि विधियों से प्राप्त करना चाहिए । ध्यान तो शान्त रहकर प्राप्त किया जा सकता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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