क्या अंधविश्वास से सफलता सिर्फ एक धोखा है ?

अन्धविश्वास से कोई सफलता नहीं मिलती है। अन्धविश्वास एक धोखा से अधिक कुछ नहीं है । सफलता वैज्ञानिक होनी चाहिए । तभी उसे सफलता की कसौटी पर नाप जा सकता है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख मुद्दा है । अब आये विचारों को देखते हैं : - 
           अंधविश्वास और सफलता का दूर-दूर तक कोई मेल दृष्टि गोचर नहीं होता। जहाँ अंधविश्वास है वहाँ सफलता के लिए कोई स्थान नहीं और जहाँ सफलता है वहाँ अंधविश्वास के लिए कोई स्थान नहीं। ये दोनों बिल्कुल विपरीत ध्रुव हैं जो कभी नहीं मिल सकते ।अंधविश्वास व्यक्ति को केवल भ्रमित करता है। देखने में आता है लोग किसी कार्य के आरंभ से पूर्व पूजा-पाठ करते हैं। धार्मिक आस्था के अनुसार यह ठीक है। पर उसके बाद उस कार्य की पूर्णता के लिए मेहनत को एक ओर कर केवल अनुष्ठानों पर, दान-दक्षिणा, अँगूठी में रत्न पहनने पर निर्भर रहना सफलता तो नहीं दिला सकता, वैचारिक और व्यावहारिक पतन के मार्ग पर अवश्य ले जा सकता है। अंधविश्वास केवल धोखा है। इससे मिली सफलता भी क्षणिक होगी । इसलिए अंधविश्वास से दूर रहें, सफलता के लिए अपने श्रम,दृढ़ इच्छाशक्ति और स्वयं पर विश्वास करें। यही सत्य और उचित है।
 - डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
बिल्कुल, अंध विश्वास से  प्राप्त सफलता एक धोखा है! 
सफलता तो हमें हमारे द्वारा किये गए  कर्म से ही मिलती है! 
अंधविश्वास तो एक आस्था है और यह कैसी आस्था जिसमें हमारा विश्वास ही अंधा हो! सफलता मिलेगी अथवा नहीं आशंकित होते रहते हैं कारण विश्वास का न होना !
हमारा कर्म तो तभी सार्थक हो जाता है जब हम सफल होने के लिए पूरी मेहनत ,लगन और अपना पूरा आत्मबल  ,विश्वास उस कार्य को करने में  लगा देते हैं  ! 
यह अलग बात है कि हमें सफलता उसी समय मिलती है या कुछ समय पश्चात अथवा मिलती ही नहीं किंतु हिम्मत के साथ हम पुनः उठते हैं !अंत में  सफलता तो मिलती ही है चूंकि इरादा पक्का था सफलता प्राप्त तो करनी ही है 
किंतु यदि केवल इच्छा होती तो शायद हार कर आस्था की ओर भी कदम मुड़ जाते! कभी कभी अंधविश्वास की ओर हम जाते हैं तो हमें  सफलता भी मिल जाती है हमारी आस्था बढ़ जाती है किंतु यह सफलता हमारे मेहनत का ही फल होता है जो हमें देर से मिलता है! वो कहावत है न " कौवे को बैठना और डाल का टूटना " बस हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही होता है! अमिताभ बच्चन ने बुरे वक्त के समय आस्था का दामन पकड़ा था और कई तरह की अंगुठियां पहनी थी, वे सफल भी हुए किंतु उनकी सफलता का राज उनकी मेहनत थी! उस समय उन्हें जो भी काम मिला किया! छोटे छोटे एड, छोटे छोटे रोल मिलने पर भी काम किया !उन्होने कोई काम छोटा नहीं  समझा निरंतर करते रहे और सफल हुए! अंधविश्वास आस्था बन अपनी जगह है हकीकत यही है कर्म ही सफलता की सार्थकता है अंधविश्वास  धोखा!!!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
अंधविश्वास और सफलता दोनों शब्दों का कहीं कोई तालमेल नहीं होता।ऐसे में कभी सफलता मिल भी जाती है, वो तुका ही हो सकता है। अन्यथा सिर्फ धोखा ही है।विवेक के उपयोग किए बिना किसी काम में हाथ डालना ओर सफलता के नाम पर आश्वस्त हो जाना निरी मूर्खता है।इसी मूर्खता की. आड़ से निकलकर धोखा  दबोच लेता है। यह बात आज की चर्चा का विषय का प्रथम शब्द अंधविश्वास इसे प्रमाणित करता है।
- डा. चंद्रा सायता
 इंदौर - मध्यप्रदेश
अंध विश्वास सफलता नहीं दिलाता पतन की तरफ़ ले जाता है । हाँ कहीं कहीं धर्म के नाम पर कुछ भय पैदा किया जाताहै जो मनाव पर अंकुश रखता है पर अति सर्वदा वर्जित।
तुलसीदास के अनुसार ‘भय बिनु होई न प्रीत’ यानी भय इनसान को कार्य करने के लिए उकसाने का सर्वोत्तम माध्यम है. मास्टरजी की छड़ी के भय से छात्र पढ़ने बैठ जाते हैं और पिता की डांट के भय से सही आचरण करने लगते हैं. कुछ सीमा तक भय कार्य उद्दीपक एवं प्रेरणा का काम करता है, जो इनसान की प्रगति में सहायक बनता है, मगर वहीं जब इसी भय की अधिकता हो जाती है या भय को स्वार्थसिद्धि का साधन बना कर लोगों की भावनाओं से खेला जाता है, तो यह अंधविश्वास का रूप ले लेता है, जो मानव के पतन का कारण बनता है, उस की प्रगति में बाधक बनता है.
सत्यमेव जयते’ जैसे सामाजिक शो करने वाले आमिर खान दिसंबर महीने को बेहद शुभ मानते हैं. इसीलिए अपनी हर फिल्म वे दिसंबर में ही रिलीज करते हैं. दीपिका पादुकोण भी अपनी फिल्म के रिलीज से पहले मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर दर्शन करने जरूर जाती हैं. एकता कपूर अपने काम से जुड़े हर मामले में ज्योतिष की राय लेती हैं, फिर चाहे वह शूटिंग की तारीख हो, शूटिंग की जगह हो या फिर उन की उंगली की अंगूठी ही क्यों न हो? देश में ही नहीं विदेशों में भी अंधविश्वासियों की कमी नहीं है. औस्कर पुरस्कार विजेता अभिनेता मौर्गन फ्रीमैन की नातिन के प्रेमी ने अंधविश्वास के चक्कर में उस की चाकू से गोद कर हत्या कर दी. मार्क जुकरबर्ग और बराक ओबामा भारत के नीम करोरी बाबा के प्रशंसक हैं. अब क्या कहेंगे इन पढ़ेलिखे अंधविश्वासियों को?
किसी देश की उन्नति अंधविश्वासों के सहारे नहीं होती. उस के लिए कर्मठता की जरूरत होती है. अमीर देशों में भी अंधविश्वासी हैं पर वहां अंधविश्वास विरोधियों, तार्किकों, वैज्ञानिकों की संख्या भी काफी है, जो समाज को निरंतर आगे ले जा रहे है ।
अंधविश्वास से नहीं कर्मणता से 
सफलता अर्जित की जा सकती है 
- डॉ अलका पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र
काली बिल्ली के रास्ता काटने पर, महत्वपूर्ण  कार्य  पर जाने  का समय और दिशा में बदलाव कर देना, घर की मुंडेर पर कौए का बैठ करके कांव-कांव करना, किसी के आगमन की सूचना का संकेत, सिर पर कौवा बैठना, निकट भविष्य में ही मृत्यु होना, ऐसे ही आग का दरिया पार करना,  पृथ्वी पर लेटे मनुष्य के ऊपर से गायों और बैलों के झुंडों को दौड़ाना, **मनोरथ* *सिद्धि*के* *यह* *अंधविश्वास* , व्यक्ति की संकीर्ण मानसिकता के साथ-साथ, अशिक्षा और कुरीतियों को जन्म देते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो ऐसेअंधविश्वास की मनोवृति के लोग अधिक देखे जाते हैं।होता क्या है, हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में जैसे, जहां, शुभ या अशुभ भाव होते हैं, उसी के अनुरूप हम कार्य करते हैं; इनकी इतनी गहरी छाप होती है कि कभी-कभी यह व्यक्तिगत कार्य समाज के लिए परंपरा बन जाते हैं। इन अंधविश्वासों के पालन में सफलता तो  कोसों दूर, मात्र विनाशलीला का प्रभुत्व ही देखने को मिलता है।
 अतः विवेक और दूरदर्शिता से समाजोपयोगी सकारात्मक फलदायी  कर्मों में विश्वास रखना चाहिए। भले ही देव योग से 10% अंधविश्वासी सफलता प्राप्त करते हो।
 सच तो यह होना चाहिए कि मनोनुकूल परिणाम ना भी मिले ,तो भी अंधविश्वास से परे, लक्ष्यपूर्ण कार्य करने का संतोषभर पर्याप्त सुकून मिले, तो बहुत ही उत्तम है। अंधविश्वास से प्राप्त सफलता केवल छलावा ही है। 
 डॉ रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
बिलकुल अंधविश्वास से सफलता सिर्फ एक धोखा है।सफलता का आधार सिर्फ कर्म है एक सार्थक कर्म ।एक लक्ष्य निर्धारित करें और उसे प्राप्त करने के लिए इमानदारी के साथ प्रयास करें ।हमें सफलता  अवश्य ही मिलेगी।कभी सफलता जल्दी तो कभी सफलता मिलने में विलम्ब हो सकती है लेकिन निरंतर प्रयास हमें हमारी मंजिल तक जरूर पहुँचायेगी।अंधविश्वास से सफलता सिर्फ एक धोखा है ,और कुछ नहीं ।
                     -  रंजना वर्मा                    
रांची - झारखण्ड
सही कहा ।सफलता कभी भी अंधविश्वास से नहीं मिलती ।उसके लिए प्रयत्नशील होना पड़ता है ।हम सभी  लोग अपने जीवन में कुछ पाने के लिए निरंतर संघर्ष करते हैं लेकिन कहीं न कहीं उस प्रक्रिया में कमी रह जाने के कारण हमारे काम को बनने में  विलंब हो जा जाता है और हम हताश होकर दूसरे विकल्प खोजने के लिए दूसरों का सहारा लेकर उल्टी सीधी प्रक्रियाएँ करते रहते हैं ।साथ ही कठिन परिश्रम भी ।जब सही दिशा में काम हो जाता है तो मान लेते हैं कि हमारा काम उसके कारण हुआ है ।ऐसा कुछ नहीं होता ।सफलता सिर्फ हमें अपनी मेहनत से ही मिलती है ।
- सुशीला शर्मा
जोधपुर - राजस्थान
जी हाँ मेरे  मतानुसार अन्धविश्वास से सफलता एक 
धोखा है । हमारे देश के समाज में  21 वीं सदी में 17 वीं की सोच  से चल रहे हैं । इसका मुख्य कारण अज्ञानता , अशिक्षा , छुआछूत , अंधविश्वास , गरीबी है । हमारा देश परम्परा , रूढ़ियों , संस्कृति का देश है । कब यही परंपरा अंधविश्वास में कब बदल जाती है । जब लोगों कुछ सफलता मिल जाती है । तो वह यह नहीं सोचता कि उस काम के प्रति समर्पण , एकाग्रता , मेहनत से मिली है । आशाराम पर भक्तों की अंधश्रद्धा दुनिया ने देखी । उसे गुरु  मान के लोग दीक्षा लेते थे । भक्तों के साथ उस बलात्कारी का धोखा दुनिया ने देखा । अभी भो उसके भक्त गुरु मानते हैं । ईश मान के पूजा करते हैं । ऐसे न जाने कितने आशाराम समाज को लूट रहे हैं ।
  राजाराममोहन राय को कौन भूल सकता है ? सती प्रथा को बंद कराया था ।  छुआछूत , पशुबलि , बच्चे की बलि आदि हमारे अज्ञानता का फल है । भीमराव अंबेडकर जी दलितों पर हो रहे अत्याचारों के शोषण को खत्म कर समतामूलक समाज बनाया । हरिजन जो मैला ढोते थे।   तेरहवीं पर पंडित को मनमाना वस्तुएँ न मिले तो अनापशनाप बोलता है । अब तो व्यक्ति की मृत्यु के बाद ही 2 दिन में सारे क्रिया कर्म कर देते हैं । अब तो तेरहवीं के लिए 13 दिन का इंतजार करना पड़ता है । परीक्षा में जाने से  पहले परिवार वाले अपनी संतान को दही शक्कर खिला के भेजती है । पेपर बढिया होगा  ।जो बच्चे बुद्धू हैं ।तो उन पर यह टोटका असर करेगा क्या ? जवाब तो हर हासिल में न में है।  सकारात्मक सोच , गतिशीलता मेहनत  पुरुषार्थ से ही सफलता मिलती है ।
अंत में दोहे में मैं कहती हूँ 
 लंका अंधविश्वास की , करनी हमको खाक ।
कामों से विश्व में  है , देश  जमाए धाक ।
   - डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
जी ,बिल्कुल आँख मूँद कर किसी के बातों में विश्वास करना अपने आप को धोखा देने से ज़्यादा कुछ नहीं |रूढिवादी ,दक़ियानूसी परम्पराओं पर भरोसा करना आज के वैज्ञानिक युग में अपने आँखों में धूल झोंकना है|किसी भी व्यक्ति के जीवन में सफलता सूझ बूझ से कार्य करने से ही मिलती है अंधविश्वास से नहीं ।  हमारे समाज में प्रांतीय स्तर पर बड़े पैमाने पर लोग अंधविश्वास को मानते हैं और विश्वास करते हैं -जैसे -गंडे ,ताबीज़,काला जादू,डाइन ,झाड़ -फूँक आदि अनगिनत ढकोसले और अंधविश्वास को मान कर लोग समय और धन के साथ ही साथ क़ीमती जान गँवा देते हैं या दूसरों की जान ले लेते हैं |जो अनुचित है |अत: हमें चाहिए की लोगों को जागरूक करें उन्हें नुक्कड़ नाटकों के ज़रिए समझाए|पढ़े लिखे लोग भी अंधविश्वास में पड़कर सफलता के बजाय धोखा खाते हैं |अंधविशवास में पड़कर किसी कार्य का होना सिर्फ़ इत्तिफ़ाक़ ही होता है वरना सफलता तो कर्म करने से ही मिलती है |
         - सविता गुप्ता 
     राँची - झारखंड
अन्धविश्वास से सफलता कदापि प्राप्त नहीं हो सकती . सफलता केवल और केवल स्वयं के कर्म और श्रम से प्राप्त हो सकती है . इस तथ्य को भी हम नहीं नकार सकते की हमारे समाज मैं ऐसे  भी  धर्म  के   ठेकेदारों  की   कमीं  नहीं  है  जो  अंधविश्वास  के  बल  पर  सफलता दिलाने का झूठा आश्वासन दिलाकर अपनी दुकान चलाते हैं .
- नंदिता बाली 
सोलन - हिमाचल प्रदेश
अंधविश्वास का अर्थ है , अंधों की तरह विश्वास करना । वह सफलता का आधार बन ही नहीं सकता । जब बिल्ली रास्ता काटती है तो आप कुछ पल रुक जाते हैं । मालूम नहीं उन कुछ पलों में कितने काम छूट जाते हैं । तात्पर्य यह कि कर्म पर ध्यान देना है, लक्ष्य निर्धारित करना है, तभी सफलता हाथ आती है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
अंध विश्वास शब्द ही अपने आप में अपनी कथा कहता है। जो विश्वास स्वयं ही अंधा हो वह सच्ची सफलता कैसे दिला सकता है? सफलता के लिए दिल ,दिमाग,विचार और कर्म सब को एक सूत्र में रख कर काम करना पड़ता है। भारत ही नही विश्व के अनेक देशों में विभिन्न तरह के अंधविश्वास फलते फूलते हैं ।अनेक लोग अंधविश्वास के कारण मिली सफतला   पर इतराते हैं पर यह सफलता अस्थायी ओर धोखा ही होती है ।हमे कोशिश करनी चाहिए कि हम इस से दूर रहें। हार या जीत जीवन का अपरिहार्य हिस्सा है इसीलिए जीत के लिए खुद पल विश्वास करना चाहिए नाकि अंधविश्वास का सहारा लेना चाही।
- ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
हाँ, बिल्कुल ठीक कहा आपने | क्योंकि इस विषय में मेरा मानना है कि ~ हम सभी प्राणियों को इस जीव जगत में ईश्वर के प्रति आस्था रखकर दैनिक कार्यों को सम्पूर्ण करना चाहिए |नैतिक मूल्यों का अनुसरण करने वाला एवं धर्म का आचरण करने वाला व्यक्ति सदैव ईश्वर कृपा का अनुगामी रहता है |
वह नैतिक सदाचार के द्वारा संतोष, संयम,सत्य,त्याग,करूणा आदि गुणों के अनुशीलन द्वारा अपने कर्त्तव्य कर्मों को निपटाता है | एवं उत्तरोत्तर प्रगति पथ की सीढियाँ चढते चला जाता है | कर्तव्यनिष्ठा से युक्त, मानवीय सदगुणों से सम्पन्न मानव समाज में अपने एवं दूसरों के लिए भी अनुकरणीय मार्ग प्रशस्त करते हैं | किंतु जब मानव के जीवन में कर्तव्य करने की अपेक्षा सोच, विचारों में अंधविश्वास की जडें गहरी जमने लगती हैं | तब ऐसी स्थिति चाहे वह कोई भी व्यक्ति क्यों न हो | निश्चित रूप से उसके पतन का कारण बनती है | 
हम सभी आये दिन दूरदर्शन एवं समाचार पत्रों के विज्ञापन में ऐसे ही विज्ञापनों को देखते, सुनते, पढ़ते हैं जिनमें अन्धविश्वास की भरमार रहती है | सच में तो, इन विज्ञापनों के द्वारा भोली, भाली, मासूम जनता के पैसे ऐंठकर उनके संवेदनशील मन को भटकाने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं होता है | जिनमें व्यक्ति को बिना किसी प्रयत्न अथवा बिना परिश्रम के ही मुंगेरीलाल के सपने दिखाकर जनता की गाढे परिश्रम से कमाई गई धनराशि को हड़प कर लिया जाता है | इन विज्ञापनों में विशेष रूप से किसी भी देवी, देवता के नाम के लाकेट, रंग बिरंगी अँगूठियाँ, नाना रत्न,मन्त्रादि  के द्वारा सिद्ध किये जाने का दावा किया जाता है | घर बैठे खरीदकर पहनने मात्र से जीवन में असफल व्यक्ति को सफल बनाने के शेखचिल्ली के सपने जैसे दिवा स्वप्न दिखाये जाते हैं | 
ऐसे झूठे विज्ञापनों पर विश्वास करने वाले लोग अथवा 
किसी ओझा,तांत्रिक,मांत्रिक,पण्डित,पड़िया आदि के पास पहुँच कर बिना परिश्रम किये ही सफलता के सपने खुली आँखों से देखना जैसे कार्य करने वाले व्यक्ति ही  अन्धविश्वासी की श्रेणी में आते हैं | किंतु मनुष्य को यह सदैव याद रखना चाहिए कि कोई भी पण्डित, तांत्रिक, मांत्रिक व्यक्ति के जीवन में किसी भी प्रकार का चमत्कार नहीं कर सकते |प्रत्येक व्यक्ति को अपना जीवन सफल एवं सुखद बनाने के ईश्वरीय शक्ति पर विश्वास रखते हुये परिश्रमशील  कार्य प्रणाली को अपनाने से ही सफलता मिलती है | 
निरन्तर उन्नति ऐसे व्यक्ति के कदम चूमती है | 
-  सीमा गर्ग मंजरी
 मेरठ - उत्तर प्रदेश
जी जब विश्वास से पहले अन्ध लगजाये तो धोखा ही होगा ।हां कुछ लोग अंधविश्वासी होते हैं अपने को उसके सहारे आगे बढ़ा हुआ भी मानते हैं ।आज की सोशल मीडिया टीवी चैनल भी कहीं न कहीं अंधविश्वास में सहभागी हैं कारण कोई भी हों ।पर सच विश्वास के आधार पर खड़ा है वहीं से सत्यमेव जयते निकलता है अतः हमें विश्वास के साथ खड़ा होना है न कि अंधविश्वास के साथ।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर -उत्तर प्रदेश
क्या अंधविश्वास से सफलता सिर्फ एक धोखा है?
 अंधविश्वासों की जननी है पूजा. पूजा ही हमें अंधविश्वास के मकड़जाल में फंसाने का प्रवेशद्वार है. हम सब से ज्यादा भयभीत पूजा करते वक्त ही होते हैं जैसेकि पूजा में हम ने नियम बनाया मंत्र जपने का. अगर स्वास्थ्य ठीक नहीं है या व्यस्तता है तो हम नियम टूटने और प्रभु के नाराज होने के खौफ से मरतेगिरते भी उस नियम को पूरा करने में वक्त बरबाद करेंगे. मैं उन लोगों को जो हजारों माला जपते हैं, घंटों पूजापाठ में शरीर और वक्त की बरबादी करते हैं, यह सलाह देती हूं कि एक बार इस सब को छोड़ कर देखें. आप को खुद पता चलेगा कि आप का कितना भला ये पाखंड करते थे और अब छोड़ने के बाद कितना सुकून आप महसूस कर रहे हैं? एक बार कर के जरूर देखिएगा.
- लक्ष्मण कुमार
सिवान - बिहार
अंधविश्वास  दो  शब्दों  से  मिलकर  बना  है - अंध+विश्वास   जिसका  सीधा  सा  अर्थ  है- अंधा  विश्वास  ।  जब  विश्वास  ही  अंधा  है  तो  सफलता  भी  अंधी  ही  होगी  । 
 प्राचीनकाल  में  जो  परंपराएं,  मान्यताएं  निर्धारित  की  गई  थी,  उन्हें  धर्म  से  जोड़  दिया  गया  था  ताकि  व्यक्ति  गलत  कार्यों  से  डर  कर  रहे  ।  कलांतर  इन्हीं  मान्यताओं  का  फायदा  उठाकर  कुछ  चालबाज  लोगों  ने  सीधे- साधे  लोगों  को  ठगना  शुरू  कर  दिया  ।  फिर  यह  कारोबार  खूब  फूलने- फलने  लगा  जो  आज  अनेकों  रूपों  में  चरम  पर  है  ।  जिसमें  सफलता  की  किरण  दिखाई  देना  तो  स्वप्न  देखने  के  समान है  ।  चारों  तरफ  भ्रांतियाँ,  भ्रामक  प्रचार,  जादू- टोने, पंडितों  द्वारा  बताये  गये  उपाय   आदि  सिर्फ  ठगने  के  साधन  हैं,  सफलता  के  नहीं  ।  क्योंकि--
" मूंड  मुंडाए  हरि  मिले  तो  सब  कोई  लेय  मुंडाय  ।  बार-बार  के  मूंडते  भेड़  न  बैकुंठ  जाय  ।।"
          - बसन्ती पंवार 
           जोधपुर - राजस्थान 
अंधविश्वास को आस्था के रूप में देखा जा सकता है किंतु इससे सफलता का रास्ता तय करना गलत निर्णय होगा। हमारा कर्म पथ प्रभावित होगा,भ्रमित और कमजोर भी होगा। संबंधित कार्य में सफलता के लिये जो नीतिगत एवं वस्तुतः किया जाना है, उसके लिये समुचित तैयारी , निपुणता और परिपक्वता लाने का भरसक प्रयास समर्पित भावना, सच्ची लगन और कड़ी मेहनत से करना होगा , तभी सफलता मिलने के परिणाम सुदृढ़ होंगे।इस कार्य में अंधविश्वास की जगह कहीं भी निहित नहीं है और यदि आप इसे सम्मलित कर रहे हैं तो आप ध्येय से भटक रहे हैं,स्वयं को धोखा दे रहे हैं। हाँ, सफल होने के लिये सभी सार्थक प्रयास करते हुये , सफलता के लिये अपने ईष्ट से प्रार्थना करना और अपनों से आशीर्वाद एवं शुभकामनाएं मांगना कदापि अनुचित नहीं कहा जा सकता।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
अंधविश्वास हमारे समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों में से एक है। सफलता हमें अपने परिश्रम, प्रयास,और सही कर्म से प्राप्त होती है ना कि,,, "दही चीनी" खा कर घर से निकलने पर ।आज भी हमारा समाज बहुत बार, अंधविश्वास के चक्कर में फंस जाता है । जैसे किसी को बच्चा ना होने पर,, ढोंगी बाबाओं के चक्कर में फंस कर किसी दूसरे बच्चे की बलि तक चढ़ा दी जाती है ,,अब ये कैसा अंधविश्वास है कि किसी बच्चे को मार कर खुद के बच्चे की कामना की जाती है । इसी तरह कि बहुत से अंधविश्वास और अंधभक्ति से हम कैसे सफ़लता पा सकते हैं । इसलिए सही मायने में अंधविश्वास से सफलता प्राप्त हो ,,यह बिल्कुल छलावा है,, मृगतृष्णा के समान है ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
जी हाँ,  अंधविश्वास के बल पर कभी भी कोई कार्य पूरे नहीं हो सकते हैं ।  जब तक मनुष्य पूर्ण निष्ठा व दृढ़ विश्वास के साथ परिश्रम नहीं करेगा तब तक उसे  मनोवांछित  परिणाम नहीं मिलेगा । सफलता प्राप्ति हेतु  लगनशीलता, परिश्रम, धैर्य, स्वयं पर पूर्ण विश्वास, कर्तव्य निष्ठा, जुनून आदि गुण होने चाहिए ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
अंधविश्वास  का स्पष्ट  अर्थ है अंधा विश्वास  जो सिर्फ  मन  को  भुलाया मे रखने  की प्रवृति कहलाएगी। इससे  मिलनेवाली सफलता  भी अस्थाई और  बाई चांस  हो सकती  है।मन मे बहुत  भ्रामक  विचार  है जो विश्वास  को कमजोर  कर देता है। कमजोर  मानसिकता वाले बहुत  जल्दी इस  भ्रम  मे उलझ  जाते है। किसी  के जाने के समय  छींक  देने  से काम  काम पूरा  नही होना ।इसे अंधविश्वास  या भ्रामक  धारणा कहना  उचित  होगा । महिलाए  तीज  व्रत  करती है उसकी  कधा  मे यह  लिखा  है कि दूध पीने से साप्ताहिक मे  जन्म  होगा और  इसे डर  से महिलाए  तबियत  खराब  कर लेती है लेकिन  पानी तक  ग्रहण  नही  करती  है ।
अतः अंधविश्वास  से प्राप्त  सफलता  एक धोखा  है यह  बिल्कुल  सत्य  है
- डाँ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
"कर्मण्ये वाधिकारस्ते , मां फलेषु कदाचन:"। गीता में भगवान कृष्ण ने स्वयं अर्जुन को कर्म करने की शिक्षा दी युद्ध के समय अर्जुन हताश और निराश थे तब भगवान ने परिश्रम और कर्तव्य परायण का उपदेश दिया इसलिए अंधविश्वास और पूजा-पाठ बाहरी आडंबर ओं से सफलता नहीं मिल सकती भगवान ने जब इस धरती पर जन्म लिया राम और कृष्ण के रूप में तब उसने भी कर्म किए महात्मा गांधी ने भी कहा है - कर्म ही पूजा है बड़े विद्वानों सभी लोग कर्म पर ही जोर देते हैं श्रम के सुंदर फूल मानवता की देवी के चरणों में अर्पित होते हैं आप दिन-रात पूजा करें और पढ़ाई न करें तो क्या आप परीक्षा में उत्तीर्ण हो सकती हैं ? 
" नर हो न निराश करो मन को, जग में रहकर कुछ काम करो, कुछ काम करो कुछ नाम करो"
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्यप्रदेश

" मेरी दृष्टि में " अन्धविश्वास उसे कहते हैं । जिसमें वैज्ञानिक कोई वैधानिकता नहीं होता है । स्पष्ट है कि इसमे कोई सफलता नहीं होती है । परन्तु लोगों को यह समझ नहीं आता है । अन्धविश्वास की यही सीमा कहीं जा सकती हैं ।
                                                      - बीजेन्द्र जैमिनी


Comments

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

लघुकथा - 2024 (लघुकथा संकलन) - सम्पादक ; बीजेन्द्र जैमिनी

इंसान अपनी परछाईं से क्यों डरता है ?