हिंसा किसी समस्या का समाधान है ?

हिंसा से किसी का भी हित नहीं होता है । यह सभी जानते हैं । फिर भी हिंसा के रास्ते पर चलते है । क्या ये मुर्खता भरा कदम है ? वर्तमान में हिंसा से कुछ भी हासिल नहीं होता है । यह सत्य है । यही " आज की चर्चा " की विषय वस्तु है । देखते हैं आये विचारों को : -
हिंसा से किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है और शांति हर सवाल के जवाब का आधार होना चाहिये । हम इक्कीसवीं सदी में हैं, जो ज्ञान-विज्ञान और लोक-तंत्र का युग है। क्या आपने किसी ऐसी जगह के बारे में सुना है जहां हिंसा से जीवन बेहतर हुआ हो ?’’ जहाँ शांति और सद्भाव जीवन के लिए मुसीबत बने हों ?’’ हिंसा, किसी समस्या का समाधान नहीं करती| दुनिया की किसी भी समस्या का हल, कोई दूसरी समस्या पैदा करने से नहीं बल्कि अधिक-से-अधिक उसका समाधान ढूँढकर ही हो सकता है।शांति और एकजुटता ही, किसी भी विवाद को सुलझाने का एक-मात्र रास्ता है। पूर्वोत्तर में अलगाववाद काफी कम हुआ है और इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इस क्षेत्र से जुड़े हर एक मुद्दे को शांति के साथ, ईमानदारी से, चर्चा करके सुलझाया जा रहा है।भूख, प्यास और बेबसी से जुड़ी किसी भी समस्या का समाधान हिंसा और आतंक के जरिए संभव नहीं है। यह अपने-आप में एक समस्या है और यह समाधान नहीं हो सकता। हमें गम्भीरता से सोचना होगा समझना होगा हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं बल्कि और कई समस्याओं का जनक है । प्रेम में बड़ी शक्ति है प्रेम से आप संसार जीत सकते है । हिंसा तो राक्षसी प्रवृति है वह सिर्फ़ संकट में भंयकर संकट में फँसाती है । शांति,प्रेम , संयम धैर्य, देविक शक्ति है जो समाधान निकालती है। 
- डॉ.  अलका पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र
नहीं और ऐसा कभी हो भी नहीं सकता अगर हुआ तो हिंसा से सारी समस्या हल हो तो मानव जाति का नामोनिशान खत्म हो जाएगा मनुष्य और जानवर में कोई फर्क नहीं रहेगा।मनुष्य जानवरों से श्रेष्ठ इसलिए है कि वह सोच समझ सकता है कि उसके लिए क्या सही है और क्या गलत है इसके लिए वेद , ग्रंथ, महापुरुषों के बताए हुए मार्ग पर चल सकता है यदि हिंसा ही सबका हल होती तो सम्राट अशोक, डाकू अंगुलिमाल आदि लोग बुद्ध के बताए हुए मार्ग पर नहीं चलते बुद्ध के मार्ग पर चलकर हिंसक मनुष्य भी भक्ति में लीन हो गया रामायण के रचयिता बाल्मीकि जी भी डाकू से एक बड़े ऋषि बन गए और महाकाव्य लिख डाला। आत्मा की आवाज का अनुसरण करना चाहिए हमेशा गलती करने पर हमारा मन हमें रोकता है ,और सही गलत यदि ध्यान से सोचें तो वह हमें गलत की ओर कभी नहीं जाने देता। हिंसा के मार्ग पर चलने वाला नकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाला व्यक्ति होता है। वह शिक्षा के अभाव में ऐसा करता है इसलिए हमें बच्चों को संपत्ति नहीं संस्कार देने चाहिए जिससे वे अच्छे बुरे का भेद कर सके और सही मार्ग पर चल सके इसका योगदान परिवार और शिक्षकों को सही भूमिका निभानी चाहिए। भारतीय मनोविज्ञान का आधार भी संस्कार है अंग्रेज लोग भी हमारे देश में आकर योगा, आयुर्वेद के ज्ञान को और हमारे खान-पान को अपना रहे हैं हिंसा के बहुत दुष्परिणाम होते हैं जापान में हिरोशिमा नागा शाही मैं आज भी बच्चे अपंग हैं। जीवन का वर्तमान अतीत और भविष्य सब कुछ युवाओं के हाथ में है। 
युवा शक्ति को सकारात्मक दृष्टिकोण देना चाहिए क्योंकि इस उम्र में ज्यादा भटकाव रहता है और ज्यादा उत्साह भी सही बुरे की समझ नहीं रहती। उम्र के साथ ही अनुभव आता है महात्मा गांधी ने भी हमें अहिंसा का पाठ पढ़ाया और हमारे देश को स्वतंत्रता दिलाई अहिंसा का मार्ग आज के युवा को चलना चाहिए और उन्हें अच्छा साहित्य पढ़ने की प्रेरणा देनी चाहिए यह पढ़कर उनके अंदर सही गलत का ज्ञान आएगा ।
नए-सूरज की किरण, अब फूटना ही चाहिए। क्रूर तम-दुख स्वप्ना तम के, टूटना ही चाहिए।
- प्रीति मिश्रा
 जबलपुर - मध्य प्रदेश
हिंसा कभी भी किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकती ।मनुष्य और पशु में प्रकृति ने ही अंतर पैदा कर दिया है और वो है विवेक ।मनुष्य के पास भभला बुरा-भला समझने का विवेक है ।वह हिंसा के बिना भी हर समस्या का समाधान ढूँढने में सक्षम है ।हिंसा से बात बिगड़ती जाती है,सम्बन्ध खराब हो जाते हैं, मानसिक तनाव बढ़ता जाता है और वह बीमारी का कारण भी बन जाता है ।इसलिए मनुष्य को धैर्य और समझ से ही समस्या का समाधान खोजना चाहिए ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
हिंसा  एक  नकारात्मक  प्रवृति  है यह सिर्फ  लोगो  को  दुख  हानि  इर्ष्या  क्रोध  बदले  की भावना को  जन्म  दे  सकती  है यह  समस्या  का समाधान  नही  कर सकती  यह एक नकारात्मक  उर्जा  है। परन्तु  विशेष  परिस्थिति  कभी कभी  हिंसा एक  सकारात्मक  भूमिका  निभाती  है पर सामान्य  तौर  पर यह नकारात्मक  उर्जा  है
- डाँ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता ।हिंसा एक नकारात्मक उर्जा है,इसे किसी सकारात्मक समाधान की कल्पना निराधार है ।इससे वैमनस्य की उत्पत्ति तथा  साथ में माहौल भी खराब होता है ।प्रेम और सकारात्मक वातावरण में शांति के साथ वार्ता करने से हर समस्या का समाधान मुमकिन है 
     - रंजना वर्मा
रांची - झारखण्ड
हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता . हिंसा से केवल द्वेष फैलता है व समाधान के बदले हिंसा से वैमनस्य बढ़ता है . हिंसा क्षणिक समाधान हो सकता है जहाँ सेहनेवाला लाचार व बेबस हो . अंततः शान्ति से समस्या का समाधान हो सकता है
- नंदिता बाली 
सोलन - हिमाचल प्रदेश
हिंसा मात्र भय आतंक का पर्याय है ।अनेक प्रकार के दुख समस्याओं को यह जन्म देती है ।मानव धर्म की  बात हो या मानव सेवा सभी को हिंसा ने रुलाया है ।इसके विपरीत अहिंसा की बात करें तो चाहें महात्मा गौतमबुद्ध हों सम्राट अशोक या महात्मा गांधी सभी बातों से नहीं प्रयोग से विश्व स्तर पर सिद्ध किया है ।आज अनेक प्रकार से समाधान देती है ।अतः यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं देती और न भविष्य में देने की संभावना है ।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर -उत्तर प्रदेश
हिंसा अर्थात आसुरी शक्तियों की बृद्धि , जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कही जा सकती है । आज तक जितनी भी समस्या हल हुयी  हैं वे सब आपसी प्रेम , संवाद व परस्पर सहयोग की भावना के चलते हो सकी हैं । त्याग से बड़ा कोई कर्तव्य नहीं होता , प्रेम से ही दुनिया को जीता जा सकता है ।
 *अहिंसा परमोधर्मः* 
हम सबको राम , कृष्ण, बुद्ध,  महावीर, नानक , गाँधी आदि महापुरुषों के सिद्धान्तों का अनुसरण कर  सर्वजन हिताय के नियमों के साथ- साथ हिंसा का त्याग व अहिंसा का पालन भी करना चाहिए ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
अहिंसा से ही हर समस्या का समाधान किया जा सकता है। देश में बढ़ रही आतंकी गतिविधियों का पुरजोर विरोध करना होगा । हिंसा "स्वयं के विरुद्ध, किसी अन्य व्यक्ति या किसी समूह या समुदाय के विरुद्ध शारीरिक बल या शक्ति का साभिप्राय उपयोग है, चाहे धमकीस्वरूप या वास्तविक, जिसका परिणाम या उच्च संभावना है कि जिसका परिणाम चोट, मृत्यु, मनोवैज्ञानिक नुकसान, दुर्बलता, या कुविकास के रूप में होता हैं "शक्ति का उपयोग" शामिल करना शब्द की पारंपरिक समझ को बढ़ाता है । हिसां में क्रिया को ही करने की साभिप्रायता शामिल है, चाहे उससे कुछ भी परिणाम उत्पन्न हो। हालांकि, आम तौर पर, जो कुछ भी हानिकारक या क्षतिकारक तरीके से उत्तेजित किया जाता है, वह हिंसा के रूप में वर्णित किया जा सकता है, भले ही वह हिंसा के मतलब से नहीं हो । पर हिंसात्मक ही होता है । आज देश ही नहीं, दुनिया में हिंसा, युद्ध एवं आक्रामकता का बोलबाला है। जब इस तरह की अमानवीय एवं क्रूर स्थितियां समग्रता से होती हैं तो उसका समाधान भी समग्रता से ही खोजना पड़ता है। हिंसक परिस्थितियां एवं मानसिकताएं जब प्रबल हैं तो अहिंसा का मूल्य स्वयं बढ़ जाता है। हिंसा किसी भी तरह की हो, अच्छी नहीं होती। मगर हैरानी की बात यह है कि आज हिंसा के कारण लोग सामाजिक अलगाव एवं अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं। शिकागो विश्वविद्यालय के द्वारा हाल ही में किये गये अध्ययन में भी यह बात सामने आई है। यह अध्ययन शिकागो के ऐसे 500 वयस्क लोगों के सर्वे पर आधारित है जो हिंसक अपराध के उच्च स्तर वाली जगह पर रहते हैं। तथ्य सामने आया कि हिंसा का बढ़ता प्रभाव मानवीय चेतना से खिलवाड़ करता है और व्यक्ति स्वयं को निरीह अनुभव करता है। इन स्थितियों में संवेदनहीनता बढ़ जाती है और जिन्दगी सिसकती हुई प्रतीत होती है।
- अश्विन पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
हिंसा किसी भी  समस्या का समाधान नहीं अपितु व्यवधान है|हिंसा से बनते हुए कार्य भी बिगड़ जाते हैं |अहिंसा और प्रेम से दुश्मन को भी दोस्त बनाया जा सकता है |
हिंसा स्वयं के विरूद्ध क्रोध में उठाया गया व्यक्तिगत ,शारीरिक,मनोवैज्ञानिक ,सामाजिक शक्ति का साभिप्राय उपयोग है जिसका परिणाम ,हानिकारक ही 
होता है| किसी भी समस्या का समाधान सोच समझ कर ठंडे दिमाग़ से ही निकल सकता है वरना हिंसक पशु के समान व्यवहार से पछतावा के सिवा कुछ भी हासिल नहीं होता|
        -  सविता गुप्ता 
       राँची - झारखंड
यदि हिंसा किसी समस्या का समाधान होती है तो आज समाज में सारे जानवर घूम रहे होते ।मानवता  एक ऐसा आवरण है जिसेओढ़ कर स्वयं को तो संतुलित रखते ही हैं दूसरे को भी संतुलित  रहने के लिए बाध्य करते हैं। अहिंसा चाहे मन क्रम या वचन से हो कभी भी सुखदाई नहीं होती है।
- मोनिका शर्मा मन
गुरुग्राम - हरियाणा
हिंसा से किसी समस्या का निदान  नहीं हो सकता और होता भी है तो स्थायी नहीं होता। हिंसा से भय का माहौल बनता है , पीड़ित जन भयभीत होकर दबाववश सहमत तो हो जाते हैं परंतु भीतर ही भीतर उससे मुक्त होने के प्रयास करते हुये प्रतीक्षारत रहते हैं। यह प्रक्रिया घातक और नुकसानदेय भी हो सकती है। इसीलिये हमेशा समस्या का निदान प्रेम,त्याग ,सामजस्य की भावना के साथ  करना चाहिए जो उचित और न्यायसंगत भी हो तो समाधान के परिणाम सुखद भी रहेंगे और संबंध के साथ-साथ वातावरण भी सुखद और सौहार्दपूर्ण रहेगा।
-  नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
🙏🏻 हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। क्योंकि हिंसा कोई भी मनुष्य को स्वीकार नहीं है ।मनुष्य की मूल प्रवृत्ति है कि वह समाधान पूर्वक इस  संसार मे जी पाये।  कोई भी  मनुष्य  हिंसा के साथ  जीना नहीं चाहते ,इस संसार में जितने भी रहने वाले जीव जंतु ,पशु पक्षी ,पेड़ पौधे , मनुष्य है वे हिंसा   मे जीना नहीं  चाहते है। हिंसा मनुष्य को दुख पहुंचाता है और मनुष्य दुखी होकर जीना नहीं चाहता ।मनुष्य दुखी होकर वर्तमान में जी रहा है, तो वह नासमझी के कारण है। लेकिन मूल रूप में मनुष्य अहिंसा के साथ जीना चाहता है । हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं है अहिंसा से  मनुष्य   सुखी होकर जी सकता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
हिंसा से कभी किसी समस्या का समाधान हो ही नहीं सकता अरे चोट खाया एक हिंसक जानवर भी देखता है कि यह मनुष्य मेरे पैर से कांटा निकाल मेरी पीड़ा दूर करने में मदद कर रहा है तो वह भी कृतज्ञता भरी आंखों से देख आभार प्रकट करता है तो हम तो मनुष्य है जब यह हिंसक जानवर को प्रेम से जीत सकते हैं उसे अपना बना सकते हैं तो हमें हिंसक बनने की क्या जरूरत है ? क्या हम मनुष्य अपनी भाषा प्रेम की ,सौहार्द्र की, दया, करुणा समर्पण ,त्याग की भाषा नहीं समझ सकते ! महात्मा गांधी ने भी तो हमें अहिंसा का पाठ पढ़ाया है ! 15 अगस्त 1947 को जब हम स्वतंत्र हुए तब विश्व यह देखकर चकित रह गया कि सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत में ऐसी क्रांति हुई जो विश्व के इतिहास में अद्वितिय है ! सम्राट अशोक ने भी जब हिंसा का रूप देखा तो उनका ह्रदय परिवर्तन हो गया! वाल्मीकि भी तो हिंसक डाकू थे किंतु उसका परिणाम देख अहिंसा की ओर मुड़ गए ! हिंसा एक नकारात्मक सोच है इससे हमारी उर्जा का ह्रास होता है  ! अहिंसा से प्रेम से हम दुश्मनों को भी परास्त कर सकते हैं !
फिर हिंसा क्यों? अंत में यही कहूंगी कि हिंसा से हमारी बुद्धि का विनाश होता है सोचने समझने की शक्ति ही नहीं रहती तो समस्या का क्या समाधान हो सकता है !अतः अहिंसा परमो धर्म का मंत्र लें! जीवन की हर समस्या से मुक्त रहें !!!!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
आज का 'प्रश्न क्या हिंसा किसी समस्या का समाधान है"।तो मेरे विचार से जिस हिंसा से मानव- जीवन त्राहि-त्राहि होकर पाहि माम, पाहि माम का आतॆनाद कर उठे; वहां ऐसी हिंसा का प्रयोजन वास्तव में ठीक नही है;  पर असत्य पर सत्य, दानवता पर मानवता की विजय के लिए तात्कालिक धर्म( हिंसा) का प्रयोग शास्त्रसम्मत है।ऐसे ही  आतंक की समस्या से निबटने के लिए यदि शस्त्र उठाया  जाता है;  तो वह देश- रक्षा और राक्षसी प्रवृत्तियों को  मिटाने के लिए है।
 अहिंसा अमोघ शक्ति तो है, पर जब विषम स्थितियों में निष्फल हो जाए तो समस्या के समाधान के लिए ,शस्त्र उठाना ही विकल्प रह जाता है। मानती हूं हिंसा संकल्प नहीं है, फिर भी तात्कालिक धर्म तो है हीअति आवश्यक होने पर, जो कि न्याय संगत भी है। सभी धर्मों में जीव- हिंसा वर्जित है पर डेंगू जैसे जानलेवा बुखार से बचाव के लिए मच्छरों को मारकर स्वास्थ्य -रक्षा की समस्या का समाधान तो मिलता ही है।
-  डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
हिंसा जैसे नकारात्मक  शब्द से ही नफरत के भाव का उदय होता है । जब यह गन्दगी मन में आ जाती है । तब अभिमान , ईर्ष्या , जलन , दम्भ , क्रोध , हिंसा जैसे दुर्गण हमारे हृदय में पनपने लगते हैं । हिंसा करने वाले व्यक्ति कुकर्म जैसे दुर्गुण चरम पर आ जाते हैं । वह व्यक्ति हिंसक  काम करने लग जाता है ।  वह दूसरों   के दुखों में खुश होते हैं । आतंकवाद ,  आतंकी इस बात की मिसाल है ।। हिंसक के दिल , दिमाग  दोनों कुवृत्तियों से भरे रहते हैं ।  जो रोगों को  जन्म देते हैं । हिसा जैसा पाप संसार में कोई दूसरा नहीं है ।   हिंसा का पाठ, संदेश  संसार का कोई धर्म नहीं देता है । जब हम सम्यक आचरण नहीं करते हैं । तब इन गलत भावों से मन भर जाता है । यह मार्ग हिंसा की ले जाता है । आज फिर भारत का समाज द्वापर युग के समान लगता है । जहाँ लड़ाई , मार-पीट हिंसा नजर आती है । समाज ने जे एन यू मकई हिंसा , आगजनी देखी है। हिंसा के समाधान के लिए हमें सोचना होगा । माँ पिता अपने बच्चे को इस हिंसक वृत्ति से  धैर्य से छुटा सकता है ।  ऐसे व्यक्ति की कॉन्सिलिंग कराएँ ।  समाज ,बच्चे के प्रति जागरूक रहें । महावीर , बुद्ध , अशोक , गाँधी जी , महापुरुषों  , संतों आदि के दर्शन को अपने चरित्र में उतारना होगा । सार्वजिनक स्थानों में हिंसा के दुष्परिणामों के कविता , दोहे , सुविचार ,  सन्देश आदि लिखने होंगे । जिससे हर व्यक्ति इससे लाभ उठा सके । समाज को भागीदारी देनी होगी ।हिंसा किसी समस्या का समाधन नहीं है । 
आगम की वाणी है - " वह तो ही है जिसे तू मारना चाहता है । किसी का अतिक्रमण मत करो । तुम स्वयं धोखा खाते हो ।" महावीर ने कहा -
" एक प्राणी दूसरे  प्राणी को क्लेश दे क्लेश पा रहा है ।किसी को चोट  पहुंचाने ही खुद कोको चोट पहुँचाना  है । "  गांधी जी ने अहिंसा , सत्याग्रह व्रतों को अपनाके देश को गुलामी से छुटकारा दिलाया। महात्मा महावीर और अर्जुन माली के दृष्टांत देने होंगे । डाकू, हिंसक अर्जुन माली महावीर का शिष्य बना । सत्संगति की धारा में पाप धूल  जाते है । साथ रह
ने  से  हिंसा वृतई पर लगाम लगा सकते हैं । आध्यात्म हिंसा का उपचार है ।अंत में दोहा -
 करे सोच सत्कर्म की , बने तभी  सकारात्म ।
 सीखे साथ रहना सभी , होगी  हिंसा खत्म ।
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
समस्या है तो उसका समाधान धैर्य ,समझदारी ,सकरात्मक दृष्टिकोण से होना चाहिए।हिंसा का अर्थ है तोड़ फोड़, विनाश ,विध्वंस ना  सिर्फ वस्तुओं का पर मानवीय मूल्यों का भी ।
मनुष्य जब हिंसा करने की सोचता ही है तभी से उसके मन  में  नकरात्मक बातें नये नये रूप में जन्म लेने लगती हैं। तब वह सचमुच हिसंक पशु के समान हो जाता है ।  दिमाग पर काबू नहीं रहता इसीलिए समस्या का हल  तो उसे नजर आता नहीं है । हिंसा किसी भी युग में किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकती है।
- ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
हिंसा कभी भी 'सही मार्ग है' नहीं सिखाया जाता है। समस्या का तो बिल्कुल नहीं । समस्या का हल ढूंढने के लिए आपकी आवश्यकता है । जब आप हीं गंदे नाले में गिर जाएंगे तो अन्य को उसी समस्या या कहें उससे बड़े समस्या से जूझना होगा। तो क्या आप चाहेंगे कि आपका परिवार आपके कारण बड़ी बनी समस्या का सामना करे, और आप उसके लिये कुछ न कर सकें । आप खुद ही एक समस्या बन जाएं ?
- संगीता गोविल
पटना - बिहार

              " मेरी दृष्टि में " हिंसा से समस्याओं का जन्म होता है । पुलिस , वकील , कोर्ट - कचहरी आदि से लेकर सजा तक का सामना करना पड़ता है और तो और इंसान कंगाल तक हो जाता है ।  इसलिए हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं है । बल्कि समस्याओं को जन्म देता है ।
                                                       - बीजेन्द्र जैमिनी





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