मौन का जीवन में क्या महत्व है ?

मौन रहना कोई छोटा कार्य नहीं है। यह एक तरह की साधना है । जिससें हर कोई नहीं कर सकता है । फिर भी जीवन में मौन रहने के अनेक लाभ प्राप्त होते हैं । जीवन अपने आप में शुद्ध करने के लिए मौन का बहुत बड़ा योगदान होता है । यही " आज की चर्चा " का महत्त्वपूर्ण विषय है : -
वार्तालाप भले ही बुद्धि को मूल्यवान बनाता हो, किन्तु मौन प्रतिभा की पाठशाला है। संसार में जितने भी तत्वज्ञानी हुए हैं, सभी मौन के साधक रहे हैं ।आचार्य विनोबा कहते थे -- "मौन और एकांत आत्मा के सर्वोपरि मित्र हैं ।"
सामान्य जीवन में मौन का पालन करना संभव नहीं हो पाता, इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि जितना आवश्यक है , उतना ही बोलें ।बाकी सारा समय यथासंभव मन को शान्त रखें ।मौन रहने से हमारी वाणी की शक्ति का संचय होता है।मौन हमारे जीवन के बहुत से प्रश्नों का उत्तर है।
मौन का अर्थ अन्दर और बाहर से चुप रहना है।
आमतौर पर हम ‘मौन’ का अर्थ होंठों का ना चलना माना जाता है। यह बड़ा सीमित अर्थ है।
कबीर ने कहा है:-
कबीरा यह गत अटपटी, चटपट लखि न जाए। जब मन की खटपट मिटे, अधर भया ठहराय।
अधर मतलब होंठ। होंठ वास्तव में तभी ठहरेंगें, तभी शान्त होंगे, जब मन की खटपट मिट जायेगी। हमारे होंठ भी ज्यादा इसीलिए चलते हैं क्योंकि मन अशान्त है, और जब तक मन अशान्त है, तब तक होंठ चलें या न चलें कोई अन्तर नहीं क्योंकि मूल बात तो मन की अशान्ति है। वो बनी हुई हैl
तो किसी को शब्दहीन देखकर ये मत समझ लेना कि वो मौन हो गया है। वो बहुत ज़ोर से चिल्ला रहा है, शब्दहीन होकर चिल्ला रहा है। वो पागल ही है, बस उसके शब्द सुनाई नहीं दे रहे। वो बोल रहा है बस आवाज़ नहीं आ रही। शब्दहीनता को, ध्वनिहीनता को मौन मत समझ लेना। मौन है- मन का शान्त हो जाना अर्थात कल्पनाओं की व्यर्थ उड़ान न भरे। आन्तरिक मौन में लगातार शब्द मौजूद भी रहें तो भी, मौन बना ही रहता है। उस मौन में तुम कुछ बोलते भी रहो तो उस मौन पर कोई अन्तर नहीं पड़ता। मौन से संकल्प शक्ति की वृद्धि तथा वाणी के आवेगों पर नियंत्रण होता है। मौन आन्तरिक तप है इसलिए यह आन्तरिक गहराइयों तक ले जाता है। मौन के क्षणों में आन्तरिक जगत के नवीन रहस्य उद्घाटित होते है। वाणी का अपव्यय रोककर मानसिक संकल्प के द्वारा आन्तरिक शक्तियों के क्षय को रोकना परम् मौन को उपलब्ध होना है। मौन से सत्य की सुरक्षा एवं वाणी पर नियंत्रण होता है। मौन के क्षणों में प्रकृति के नवीन रहस्यों के साथ परमात्मा से प्रेरणा मिल सकती है। मौन में अथाह शक्ति है , वह आप को नई ऊर्जा ही नहीं देता आप को बाहरी दुनिया से मोह भंग कर आंतरिक दुनियाँ से मेल करा परमात्मा के दर्शनकराता है ।
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
मौन का जीवन मैं बहुत महत्व है . एक बहुत पुरानी कहावत है -- एक चुप , सौ सुख !!कई बार मौन रहना किसी तनावपूर्ण स्थिति का समाधान बन जाता है .शब्दरूपी तीर एक बार जब कमान से निकल जाता है तो लौटकर नहीं आता , इसलिए जब शब्दों पर नियंत्रण न हो तो मौन रहने मैं ही भलाई होती है . मौन किसी विवादित स्थिति का शांतिपूर्ण हल है .
- नंदिता बाली 
सोलन -हिमाचल प्रदेश
मौन जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है मौन कई बार व्यक्ति को श्रेष्ठता की ओर ले जाता है ।विद्वानों की पहचान मौन है ।अधिक बोलना कभी-कभी अनर्गल प्रलाप का आधार है वाचालता में गिनाता है ।लम्बे समय के मौन उपनिषदों के  गहन अनुशीलन से श्री कृष्ण जी ने श्री मद्भागवत गीता जैसा प्रमाणिक ग्रन्थ दिया ।
- शशांक मिश्र भारती
 शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
मौन ह्रदय की भाषा है |बिना एक शब्द कहे भी व्यक्ति भाव संवेदना व्यक्त कर सकता है |जितना असर वाणी डालती है उससे कहीं ज़्यादा असर मौन प्रदान करती है|अनावश्यक बोलने के बजाय वाणी संयम से मानसिक क्रियाओं का अपव्यय होने से बचता है |जो व्यक्ति मौन रहते हैं उनकी बुद्धि अपेक्षा कृत अधिक स्थिर तथा संतुलित होती है |जो हित -अहित ,हानि-लाभ को बेहतर  धैर्यपूर्वक समझते हैं |महात्मा गाँधी जी के सामने भी जब विकट समस्या उत्पन्न होती थी तो वे कुछ समय के लिए मौन धारण कर चिंतन कर हल निकालते थे|महर्षि व्यास जी ने महाभारत रचते समय गणेश जी से महान ग्रंथ लिखने तक मौन धारण का कारण पूछा था तो उन्होंने कहा था कि मौन रहकर मैं आपका काम आसान कर दिया वरना यह भार बन जाता |मौन रहकर एकाग्रता बढ़ती है|
            - सविता गुप्ता 
           राँची - झारखंड 
मौन  रहना  एक भावनात्मक  नियंत्रण  के  साथ  साथ  अभिव्यक्ति  भी  है। यह एक भाषा  है जिसके माध्यम  से  अनर्गल  विवाद  से स्वयं को  बचा  सकते  है  । मौन को मीठी  चुप्पी  भी कहा  गया  है  चूंकि  वाचाल होना घातक  सिद्ध  हो  जाता  है जिह्वा  से निकली  अप्रिय  शब्द  तीर समान होते है वह  व्यक्ति  के साथ  वातावरण  को भी चोट  पहुंचाता  हैवी मौन  रहना  सेविंग  अकाउंट  हैवी इससे  शारीरिक  उर्जा को  आसानी  से  बचाकर  अन्य  उपयोगी  समय  मे खर्च  करने  सेवा मानव  कल्याण  होगा 
मौन  रहना  एक  व्रत  हैवी जिससे  सहनशीलता  का  विकास  होता  है । मौन  एक  व्यायाम  है बचपन  मे बच्चो  को  मुहॅ पर अंगुली  रखकर चुप  रहने  का प्रयास  करवाया  जाता  है । व्यवहारिक  तौर  पर  क्रोध  पर  नियंत्रण  करने  का  सही  तरीका  चुप  रहना  है  क्षण  भर मे   क्रोध  खत्म  हो  जायेगा  । मौन  रहना  एक  साधना  है इस साधना  सेवा मानसिक  शांति  मिलती  है  और सकारात्मक  विचार  दिमाग  मे  आते  हैं  पर यह कभी कभी  परिस्थिति  को उलझा  भी  देता है मौन  कभी-कभी  हानिकारक  भी  हो  जाता  है सामने  वाला  व्यक्ति  परिस्थिति  का सही मूल्यांकन  नही  कर  पाता  है अतिशयोक्ति  तो  सभी  जगह  है
- डाँ. कुमकुम  वेदसेन  
मुम्बई - महाराष्ट्र
कहा गया है " जैसी मीठी कछु नहीं, जैसी मीठी चूप " याने चुप रहना अर्थात मौन रहना मीठा होता है। मीठा याने स्वादिष्ट, मन को भाना। तात्पर्य यह कि चुप रहना याने मौन रहना अच्छा होता है। मौन रहने से हम अनर्गल, अप्रिय और अनावश्यक संवाद और विवाद से बच सकते हैं।  क्रोध आने पर मौन रहते उसे रोक के संभावित  दुश्परिणामों और दुश्प्रभावों  से बच और बचा सकते हैं।  मौन आध्यात्म भी है। यह एक प्रकार का व्रत भी होता है। जो संकल्प,साधना और सिद्धि के अंतर्गत भी आता है।  मौन सबक भी है। कब और कहाँ मौन रखना उचित है और कहाँ नहीं, यह भी चिन्तन,मनन और चिंता का विषय है। बुद्धि, विवेक और दूरदर्शिता का सबब है। मौन के विषय में यह भी जताया गया है कि अन्याय,अनुचित और अप्रिय स्थिति का विरोध ना कर, मौन रहना अन्याय का साथ देना  होगा। मौन सहमति और स्वीकृति देना होगा। अतः कब मौन रहना है और कब मौन नहीं रहना है , इन दोनों स्थितियों का अत्यधिक महत्व है। उचित निर्णय लेना समझदारी होगी और नैतिक जिम्मेदारी का निष्ठा से निर्वहन भी होगा।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
मौन वाणी को संयमित करने का एक ढंग है । अनर्गल प्रताप जीवन को दुरूह बना देता है । घर, परिवार, समाज या देश के संवेदनशील विषयों पर मौन , आपकी गरिमा को कायम रखता है । मानसिक अशांति या क्रोध की स्थिति में मौन सबसे बड़ा वरदान साबित होता है।
- रेखा श्रीवास्तव
कानपुर - उत्तर प्रदेश
मौन शब्द की उत्पत्ति मुनि से हुयी से ।   जिसका अर्थ है ध्यान साधना । हम जितना मौन अर्थात मानसिक रूप से शांत रहेंगे उतना अपनी ऊर्जा को  बचा सकेंगे । जब भी कोई ध्यान योग करता है तो एक दिव्य शक्ति उसे अपने अंदर महसूस होती है , ऐसी अवस्था में उसे शीघ्रता से सुखद परिणाम मिलने लगते हैं । आत्मा से परमात्मा का संवाद भी मौन द्वारा ही संभव है ।
हम सभी ने  जैन मुनियों को देखा होगा वे अपने मुख में कपड़ा बांधे रहते जिससे न केवल वाणी का संयम रखा जा सकें वरन साँस के लेने पर भी नियंत्रण हो , शुद्धता हो इसका भी पूर्ण ध्यान रखा जाता है । मौन और ओशो का सम्बंध भी अपने आप में मिशाल है कि कैसे मौन को साध कर परम् सुख प्राप्त किया जा सकता है ।  प्राचीन काल से ही लोग मौनी अमावस्या पर स्नान कर मौन को साधते रहे हैं । कम बोलें अच्छा बोलें यही तो संस्कार हमें पीढ़ी दर पीढ़ी मिलते आ रहे हैं । भोजन करते समय भी मौन रहकर पूर्ण मनोयोग से जो भोजन करता है उसे  न केवल भोजन में समाहित पूर्ण ऊर्जा लाभ मिलता है बल्कि उसकी पाचन शक्ति भी मजबूत होती है । अक्सर देखने में आता है कि मौन रहने से क्रोध कम उत्पन्न होता है जिससे बड़े - बड़े विवाद टल जाते हैं । अपने अंदर की शक्ति को जाग्रत करने हेतु हमें न केवल मौन रहना चाहिए बल्कि आसपास उपस्थित व्यक्तियों से भी दूरी बनाते हुए प्रकृति से  मौन संवाद करना चाहिए जैसे ही हम लोगों के चेहरे को देखते हैं अपने आप ही विचारों का जन्म होता है और यही वाणी के रूप में प्रस्फुटित हो जाता है जिससे अनावश्यक वार्तालाप में समय व्यर्थ होता है । अतः मौन के साधक बन  ऊर्जा को बचाइये और इसे सार्थक कार्यों में लगाकर जन कल्याण करते हुए मानव जन्म को सफल बनाइए  ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
वाचालता पर अंकुश लगाने के लिए मौन साधना का अभ्यास थोड़ा लाभ दे सकेगा यह सच है। जितना गुड डाला जाय उतना ही मीठा होता है। जितना दाम खर्चा जाय उतना ही सामान मिलता है। जितना बीच बोया जाय उसी अनुपात से फसल काटने और उतना ही कोठा भरने का अवसर मिलता है। मौन मात्र दो घण्टे रोज साधा जाय या सप्ताह में मात्र दो घण्टे का क्रम रखा जाय तो उतना प्रयास भी निरर्थक नहीं जाता है। वाणी का असंयम रुकने से जीवनी शक्ति के अपव्यय से होने वाली क्षति में कमी आती है। बचत से सम्पन्नता बढ़ती है और आड़े समय में काम आती है। मौन साधना का यत्किंचित् प्रयास भी हर किस के लिए लाभदायक सिद्ध होता है। उससे जीवनी शक्ति का भण्डार बढ़ता चला जाता है, भले ही वह सीमित प्रयास के कारण स्वल्प मात्रा में ही उपलब्ध क्यों न हो? जिन्हें अवसर और अवकाश है, उन्हें मौन की अवधि भी बढ़ानी चाहिए और उसमें गम्भीरता भी लानी चाहिए। इस आधार पर मौन मात्र संयम ही नहीं रखता वरन् तपश्चर्या स्तर तक जा पहुँचता है और साधना से सिद्धि के सिद्धान्त को प्रत्यक्ष चरितार्थ कर दिखाता है। दरअसल, मौन साधना योग की एक बहुत बड़ी ताकत है. इसके द्वारा आप इतनी शक्ति अपने अंदर समाहित कर सकते हैं कि आप अपने अंदर छिपी बीमारियों पर भी विजय पा सकते हैं.
विशेषज्ञों के अनुसार चुप रहने से हमारी संवदेनशीलता, सोच और भावनाओं में चमत्कारिक सकारात्मक परिवर्तन आता है. मौन रहने से दिमाग में सकारात्मक विचार आते हैं.
मौन हमें जागरूक और सचेत रहना सिखाता है. मौन से हमारी भावनात्मक गतिविधियां नियंत्रण में रहती हैं. किसी बाहरी चीज से हम प्रभावित नहीं होते. शरीर का सबसे जटिल और ताकतवर हिस्सा दिमाग होता है. जिस तरह से मांसपेशियों को कसरत करने से फायदा पहुंचता है, वैसे दिमाग को मौन से फायदा होता है.
मौन साधना से मन की शक्ति तो बढ़ती ही है, साथ ही तन भी शक्तिशाली होता है. शक्तिशाली मन में किसी भी प्रकार का भय, क्रोध, चिंता और व्यग्रता नहीं रहती. सारे मानसिक विकार समाप्त होने के साथ ही रात की नींद भी अच्छी आती है.मौन साधना का निरंतर अभ्यास करने से शरीर में बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ती है. कहा जाता है कि जगत में सारे अच्छे विचार मौन से उत्पन्न होते हैं.
जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ रखने के लिए शुद्ध और पौष्टिक भोजन और गहरी नींद आवश्यक है, उसी प्रकार मानसिक स्वास्थ्य के लिए मौन साधना भी बहुत जरूरी है.
यहां तक कि मौन साधना की अहमियत को मनोवैज्ञानिक और कॅरियर काउंसलर भी स्वीकार करने लगे हैं. वे लोगों को स्मरण शक्ति बढ़ाने, एकाग्रता, शांति और सकारात्मक सोच के लिए मौन धारण करने की सलाह देते हैं.
- अश्विन पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र
मौन रहने के लिए बहुत संयम की आवश्यकता होती है क्योंकि मुख से एक बार कटु सत्य निकल जाए तो उन्हें वापस लेना बहुत मुश्किल होता है आसपास संबंधों में दरार हो जाती है कटु शब्दों के तीरों को वापस नहीं ले सकते। बड़े बुजुर्गों ने भी हमें संयम से काम लेने की सलाह दी है। मौन रहने का बहुत महत्व है मौन रहना बहुत कठिन कार्य है यह सबके बस की बात नहीं है। इसके लिए बहुत गहरे चाहिए। रहने वाला निर्बल नहीं होता। आत्मा गांधी ने भी हमें मौन रहने की शिक्षा दी है, साबरमती आश्रम में ऐसे में एक दिन व्यक्ति को मौन व्रत रहना चाहिए। रहने से मन में संयम माता है महात्मा जी योगी पुरुष सभी अधिक ज्ञान प्राप्त करने के बाद वे समाधि अवस्था को प्राप्त करते हैं जीवन की सभी बुराइयों और विकारों को नष्ट करते हैं देश का उत्थान, घर समाज सभी का विकास होता है जीवन जीने का नजरिया भी बदल जाता है आप समाज में हिंसा का बोलबाला है अज्ञानी व्यक्ति ही यह सब करता है ज्ञानी व्यक्ति तो सोचता है किमोन ही रहूं दीवार में सिर पटको इससे कोई फायदा नहीं है यह सब दशा देखकर वह मौन हो जाता है। थोथा चना ही घन घन बचता है भरा हुआ नहीं। मोनी व्यक्ति को कभी निर्बल समझना चाहिए। 
- प्रीति मिश्रा
 जबलपुर -मध्यप्रदेश  
मौन रहने वाले व्यक्ति सहनशील, समझदार और संवदेनशील होते हैं।गंभीरता उनके स्वभाव में होती है ।ऐसे लोग दूसरों को ध्यान से सुनते हैं और आवश्यकता पड़ने पर ही प्रतिक्रिया देते हैं ।उनकी भाषा तोल मोल की होती है ।अंतर्मुखी स्वभाव होने के कारण अधिकांश लोग उन्हें पसंद करते हैं ।ऐसे व्यक्ति कर्मठ होते हैं जो समय का सदुपयोग करते हैं ।बातों में समय व्यर्थ नहीं करते ।ये स्वांतःसुखाय भी होते हैं।किसी को परेशान नहीं करते ।इससे रक्त चाप भी सही रहता है।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
मौन  का जीवन में सार्थक महत्व है। मौन की महत्व को जानने के पहले मौन का अर्थ समझना होगा। मौन का अर्थ चुप रहना नहीं है। हम चुप हैं वाणी से व्यक्त नहीं कर रहे हैं लेकिन हमारे विचार में नकारात्मक सोच  मात्सर्य विचार चल रहा है अर्थात हमारा मन अशुद्ध है तो इसे मौन नहीं कहा जाता ।मौन का अर्थ है ऊर्जा(ज्ञान) हर पल   हर क्षणसुकर्म मे सदुपयोग  हो। चाहे मौन रह कर सदुपयोग  करे या ब्यक्त कर सदुपयोग  करे ले किन ऊर्जा  का सार्थक उपयोग करे जब कोई व्यक्ति  आवेश मे आकर अर्थ का अनर्थ  बोलता है। तो  मौन के अर्थ को समझने वाला व्यक्ति प्रतिक्रिया मे आवेशित न होकर मौन रहता है अर्थात चुप रहता है।  उसे पता रहता है कि मुझे ऊर्जा  का दुरुपयोग  नहीं  करना  है।और चुप रहता हैऔर मौन का परिचय देता है। ऐसी स्थिति में जो झगड़ा  होने की संभावना होती है, वह नही हो पाता  यहाँ पर मौन का महत्व स्पष्ट दिखता है, अर्थात ऊर्जा (ज्ञान) का सही उपयोग मौन के रुप मे ज्ञानी  लोग करते है। यही ऊर्जा (ज्ञान) का सम्मान ही मौन का महत्व  है अतः मौन का जीवन में विशेष  महत्व है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
मौन का जीवन में अत्याधिक महत्व है ।पर यह मौन सिर्फ शब्दों के आदान-प्रदान का ना होकर , वास्तविक मौन हो । मौन का अर्थ चुप रहना माना जाता है पर मेरे मतानुसार मौन वह जहाँ मन मस्तिष्क , हृदय विचारों की उथल -पुथल से भी मुक्त हो। मुँह से कुछ ना बोले पर मन  में विचारों का तूफान हो, सामने वाले के प्रति द्वेश हो तो ऐसा मौन जीवन को और निकृष्ट बनाता है मौन जो भीतर -बाहर आत्मिक शांति लाए। व्यक्तित्व में उत्थान लाए वही अर्थवान है। 
-  ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
    "वाणी का वर्चस्व रजत है किन्तु मौन कंचन है।"
ये छोटा सा वाक्य ही हमारे जीवन में मौन के महत्त्व को पूर्णतया दर्शाता है। कई बार ऐसी घटनाएं हमारे जीवन में घटित होती हैं जब हमारा मौन ही हमें कई अप्रिय  बातों से बचाता है। आक्रोश के क्षणों में भी हमारा मौन ही हमारे आपसी सद्भाव को बचाए रखने में सार्थक सिद्ध होता है।
        अतः हम कह सकते हैं कि मौन का हमारे जीवन में अत्यधिक महत्व है।
-  रूणा रश्मि
रांची - झारखण्ड
मौन  की  अवस्था  में  यदि  सिर्फ  शब्द  ही  मौन  हैं  और  मन  में  शब्दों  का  संघर्ष  जारी  है  तो  ऐसा  मौन  निरर्थक  है,  ये  तभी  सार्थक  कहा  जा  सकता  है  जब  मन  के  विचार  भी  संयमित  रहे  ।  ये  मात्र  दिखावा  न  हो  । 
           ये  हमारे  विचारों  को  संतुलित  करता  है,  इससे  वाणी  पर  नियंत्रण  होता  है  जिससे  रिश्ते  बिखरने  बच  जाते  हैं  ।  यह  एक  मानसिक  तपस्या  है  इससे  आंतरिक  भावनाएं  अक्षुण्ण  बनती  है,  विचार  संतुलित  रहते  हैं  ।  शक्ति  में  वृद्धि  होती  है  ।  मौन  रहकर  भोजन  करने  से  पाचन  अच्छा  होता  है,  वात  के  प्रकोप  से  बचाव  होता  है  ।   मौन  जीवन  को  संयमित  बनाने  व  मन  की  शांति  का  सर्वोत्तम  साधन  है  । 
           - बसन्ती पंवार 
            जोधपुर - राजस्थान 
हमारे आध्यात्मिक चिंतन , दर्शन में मौन का महत्त्व दर्शाया है । सन्तों , महात्माओं ने इस के गुण को जाना और अपने जीवन में धारा । जीवन की ऊँचाइयों को छू के ग्रन्थों , सत्संगों में महत्ता बतायी । मौन का अर्थ ही चुप रहना है । सांसारिक सन्दर्भ में  कहावत भी है एक चुप सौ के हरावे । जो पूर्णतः सत्य है । मौन रहने से  बहुत से लड़ाई झगड़े सुलझ जाते हैं । एक प्रसंग है एक बार एक चोर चोरी करके ब्राह्मण की कुटिया के सामने से भाग रहा था । कुछ देर बाद चोर को पकड़ने के लिए पुलिस ने ब्राह्मण से पूछा , तो वह चुप रहा और कोई सुराख नहीं बताया । इस तरह वह चोर बच गया । मुँह  खोलना समस्या को बुलाना है । अब मैं मौन को आध्यात्मिक सन्दर्भ में चिंतन कहती हूँ ।मौन का अर्थ है  वाणी को पूर्ण विराम देना । अर्थात कुछ न बोलना । पूर्ण विश्रांति । जीभ को मुँह में ही बंद रखना । जीभ का कुछ नहीं कहना । मन का शांत हो जाना है ।इंद्रियों को वश में करके ईश से तार जोड़ने की प्रक्रिया है। मनुष्य को अपने अंदर झाँकने की प्रक्रिया है । मौन  से अपनी शक्ति , ऊर्जा , ताकत को संचय  करता है । बोलने , चीखने से हमारी यही ऊर्जा खत्म हो जाती है । कहा भी वाणी से निकला तीर वापस नहीं आता है । इसलिए हम मौन रहे तो इस परिस्थिति का सामना ही नहीं करना पड़ेगा । आज इस विषय ने मुझे मेरा बचपन याद करा दिया ।
 बचपन में हमारे घर में मौनी बाबा संत , महापुरुष आते थे । उनके झोले में स्लेट बत्ती होती थी । वह स्लेट पर लिख संवाद करते थे ।  हमें तब आश्चर्य लगता था । तभी हमें पता लगा वे मौन में  रहने की साधना करने का व्रत लिया है । जिससे हमारे भीतर की सांसारिक मोह , लोभ की आग शांत होती है । हम अपने स्व को गहराई से जान सकते हैं । अपनी बुराइयों से लड़ सकते हैं । मानसिक संयम साधने का तपोबल है । वे सिद्ध संत थे । उनकी हर बात सच हो जाती थी । मौन साधना की ताकत से मानव ईश से साक्षात्कार कर  सकता है ।  मेरी  ईश से मौनावस्था में बात होती है । इस मौन शक्ति  का जब - जब मैंने अपनी 8 साहित्यिक  किताब लिखी । तब -तब ईश से मौन संवाद हुआ है । वहीं से मुझे प्रेरणा मिलती है । सफलता मिलती है । प्रकृति भी मौन रहती है । मौन रहकर वह परोपकार करने में लगी रहती है । ईश की तरह हमें जीवन देती है । हमें मौन को  भी अपने  जीवन का अंग बनाना चाहिए । संसार के तत्व ज्ञानी , चिंतकों ने मौन को अपनाया है ।अंत में बिनोबा जी ने कहा :-
" मौन और एंकात आत्मा के सर्वोपरि मित्र हैं । " 
कबीर ने कहा :-
"  कबीरा यह गक्त अटपटी , चटपट लखि  न जाय ।
जब मन की खटपट मिटे , अधर भया ठहराय । "
मैं दोहे में कहती हूँ 
जब मन की गगरी भरे ,  रहे नहीं है  मौन ।
छलके तब  हैं अधर से , अशांत  जब  मन  भौन ।
   - डॉ मंजु   गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
हम यदि ध्यान से अपने चारों ओर देखें तो पायेंगे कि लोग बहुत बोलते हैं। जिन्हें बहुत अधिक बोलने की आदत होती है वह सामने वाले को बोलने का अवसर तो देता ही नहीं, अपनी एक बार कही हुई बातों का दोहराव करने में लगा रहता है और सामने वाला केवल हाँ-हूँ करता रह जाता है। इस तरह व्यक्ति अपनी ऊर्जा और शक्ति दोनों को बिखेरने, नष्ट करने में लगा रहता है। कम बोलने वाले व्यक्तियों के साथ यह समस्या नहीं होती। वे सोच-समझ कर बोलते हैं। मौन हमारी इस बिखरती ऊर्जा और शक्ति को सहेज कर रखने का काम करता है। मौन में बहुत शक्ति होती है। यह कई समस्याओं का समाधान करता चलता है। क्रोध को भी नियंत्रण करने में मौन की बहुत बड़ी भूमिका होती है। मौन रह कर व्यक्ति सोच-समझ कर अपने सार्थक कार्यों के विषय में सोचता है और करके सफलता प्राप्त करता है। गांधी जी मौन व्रत रखते थे। जैन धर्म में भी व्रत का प्रावधान है। हर व्यक्ति यदि माह में एक दिन भी मौन व्रत करे तो वह अपनी बहुत सारी ऊर्जा और शक्ति संचय कर सकता है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
मौन वह हथियार है जो हर उलझन को सुलझाने में मदद करता है । मौन व्यक्ति अच्छा श्रोता और विचारक होता है । उसकी सोच सही समाधान खोजने में सफल होती है । उसकी सारी शक्ति समाधान ढूँढने में लगती है। जीवन के हर कदम पर सोच -समझ कर निर्णय लेना महत्वपूर्ण है। लेकिन मौन के बाद निर्णय लेना जरूरी है । इससे व्यक्ति का स्तर ऊँचा होता है और समाज का विश्वास बढ़ता है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
बत्तीस दांतों के बीच  रहकर भी अपना बचाव करने में  माहिर जीभ जो स्वाद में  तो लाखों को चट कर जाती है किंतु उसकी एक और विशेषता यह है कि वह अच्छी बात बुरी बात कुछ भी बोलकर  भोली बनकर तुरंत अपने को बचाती  हुई अंदर घुस जाती है ! किंतु इस चतुर जीभ को मनुष्य अपनी संयमता से मौन रहकर अपने बस में  कर सकता है ! 
मौन क्या है? 
मौन का मतलब केवल चुप रहना नहीं है! हमें  अपनी इन्द्रियों  को बस में  करना होता है! इसे हमारा संयम और अहं मुख्य भूमिका निभाता है!  मौन रहना साधारण बात नहीं है बहुत कठिन है! दो लोगों के झगड़े में  यदि एक चुप रह जाता है तो बात बढती नहीं !वरना तीर कमान से छुट ही जाता है और हानि ही हानि है! अपने रिश्तों की और बुद्धि समय के साथ हमेशा के लिए द्वेष पाल लेते हैं  !अतः जिह्वा को बस में  रखना जरुरी है  ! रही आध्यात्म में  मौन तो पहले हमे जीवन  में घटित घटनाएं सभी चलचित्र की तरह हमारे ध्यान में  चलती रहती है  वह जीवन का अनुभव बताती है फिर बोध होता है तत्पश्चात हम मौन रहकर धीरे धीरे संसार से विरक्त हो ईश्वर की आराधना में पर्ण रुप से लीन हो जाते हैं  किंतु यह आसान नहीं  है!  मन और  हमारी भावनाएं  सदा शब्दो के बाण के साथ संघर्ष  करते रहते हैं!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र

             " मेरी दृष्टि में " मौन से बहुत सी समस्याओं का समाधान हो जाता है । घर- परिवार में बहुत अधिक कारगर साबित होता है । साधना का प्रथम चरण मौन ही है । यही हर किसी के  जीवन में मौन का महत्व है ।
                                                      - बीजेन्द्र जैमिनी




Comments

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

लघुकथा - 2024 (लघुकथा संकलन) - सम्पादक ; बीजेन्द्र जैमिनी

इंसान अपनी परछाईं से क्यों डरता है ?