क्या ज्ञान के अभाव में प्रतिभा प्रकाशहीन हो जाती है ?
प्रतिभा अपने आप में वो जादू है । जो सिर चढ़ कर बोलता है । अगर ज्ञान का प्रकाश प्राप्त हो जाऐ तो दुनियां को अपना लोहा मनवा देता है । यही ज्ञान की ताकत है । कहते हैं कि प्रतिभा बच्चे के बचपन में ही नज़र आने लगती है । उस बच्चे को ,उस क्षेत्र के ज्ञाता के पास छोडऩे से , उस बच्चे की प्रतिभा को चार चांद लग जाते हैं । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब देखते हैं आये विचारों को : -
जी हाँ , ! शीर्षक ज्ञान के प्रकाश की सार्थकता को दर्शाता है । बिना ज्ञान के तो जीवन अमावस्या की घोर काली रात के सामान ही है । जिस व्यक्ति में ज्ञान नहीं है । उसे मूर्ख ही कहा जाता है । किवदंती भी है । राजा के दरबारी राजकुमारी विद्योत्तमा के वर की तलाश के लिए मूर्ख व्यक्ति को ढूँढने निकले । तो उन्होंने देखा जिस डाल पर व्यक्ति बैठा था । उसी डाल को काट रहा था । तो उन दरबारियों ने सोचा कि इससे ज्यादा मूर्ख , अज्ञानी व्यक्ति तो कोई हो नहीं सकता ।
विद्योत्तमा की शादी इसी व्यक्ति से करा देंगे ।इन दरबारियों ने इस व्यक्ति को शास्त्रार्थ में मौन रहके इशारे करने को कहा था । विद्वानों ने इनके इशारों का तर्क से सही संवाद कर के राजकुमारी विद्योत्तमा की शादी इस व्यक्ति से करा दी । बाद में यही व्यक्ति विद्या , ज्ञान , शिक्षा प्राप्त करके संस्कृत के महाज्ञानी , प्रतिभाशाली , विलक्षण बुद्धि के महाकवि कालिदास कहलाए । जी हाँ , यह दृष्टांत इस शीर्षक को सार्थक करता है ।ज्ञान के अभाव में प्रतिभा प्रकाशविहीन हो जाती है । कबीर , सूरदास जी अनपढ़ थे । लेकिन उन में ज्ञान का सागर बहता था । आज भी कबीर के दोहे, वाणी मानव जीवन का पथ प्रदर्शन करती हैं । अतः हमें ज्ञान प्राप्त करने के लिए शिक्षा लेनी पड़ेगी । गुरु ही हमें सर्वोच्च ज्ञान देते हैं । कबीर ने रामानन्द जी से शिक्षा दीक्षा ली थी । कबीर अपनी कविता अपने शिष्यों को सुनाते थे और शिष्य उन्हें लिख लेते थे । जो कबीर - वाणी से विख्यात हुयी ।
स्वामी विवेकानन्द जी ने तो रामकृष्ण परमहंस से दीक्षा ली थी । विवेकानन्द जी ने अपनी प्रतिभा के दम पर अमेरिका के शिकागो के धर्म सम्मेलन में भारत की हिन्दू संस्कृति , आध्यात्म के झंडे गाड़े थे । सोए हुए भारत को जगा दिया था । विदेश में भारत माता का नाम ऊँचा किया था ।
संत कबीर का गुरु को समर्पित दोहा है
गुरु गोविंद दोऊ खड़े , काके लागूं पाँव ।
बलिहारी गुरु आपने , गोविंद दियो बताय ।
गुरु तो गोविंद से बड़ा होता है । क्योंकि गुरु से ही भगवान के बारे में पता चलता है ।कहा भी जाता है अगर नारी शिक्षित हो जाती है । तो पूरा परिवार , पूरी पीढ़ी शिक्षित हो जाती है । शिक्षा , समाज की एक पीढ़ी से आने वाली पीढ़ी को ज्ञान का हस्तांतरण ही है । शिक्षिका होते हुए भी मुझे कम्प्यूटर तकनीकी का ज्ञान नहीं था । मेरी बेटी डॉक्टर शुचि ने मुझे इस ज्ञान को सिखाया और इंटरनेट के संसार से परिचित कराया । आज बीजेन्द्र जैमिनी जी के ब्लॉग से आपके सामने हूँ ।
फ़िल्म इंडस्ट्री की प्रसिद्ध अभिनेत्री करीना , करिश्मा पढ़ी लिखी नहीं हैं । लेकिन अभिनय के दम से दुनिया ने
उनका लोहा माना है । संगीत की प्रतिभा आशा भोंसले दीदी कक्षा 4 उत्तीर्ण हैं । संगीत की विद्या से गीतों में संसार में नाम कमाया । देश , समाज निर्माण , देश की प्रगति , उन्नति के लिए शिक्षा के अस्त्र से हम ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं । ज्ञान ही हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है । भारत में जनसंख्या विस्फोट हो रहा है । शिक्षित देश होता तो जनसंख्या पर नियंत्रण हो जाता । लेकिन ऐसा नहीं हुआ है । केरल राज्य साक्षरता के नाम पर अव्वल है । जनसंख्या भी अन्य राज्यों के मुकाबले कम है । ज्ञान ही सही को सही , गलत को गलत कहने दृष्टिकोण देता है । बिना ज्ञान से प्रतिभा प्रकाशविहीन है । अंत में दोहे में मैं कहती हूँ । ये पंक्तियाँ आपके पास पहुँचे ।
सबके अंतर में बसे , प्रतिभा की है खान ।
गुरु ज्ञान ,कृपा बरस के , मिलती है पहचान ।
- डॉ मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
हां ज्ञान के अभाव में प्रतिभा प्रकाश हीन हो जाती है, क्योंकि ज्ञान ही प्रतिभा को निखार ता है ।ज्ञान के आधार पर ही प्रतिभा फलती फूलती है, हमें सारी उम्र ज्ञान मिलता है ज्ञान का सबसे अच्छा साधन पुस्तकें हैं आधुनिक समय में गूगल से ज्ञान प्राप्त होता है मानव और जानवरों दोनों में अंतर है कि हम दोनों ज्ञान प्राप्त करते हैं ।जानवरों का ज्ञान उनकी मां से और प्रकृति से पूरा ज्ञान अर्जन करने के बाद ही वह उड़ते है। लेकिन मानव में अधिक उत्सुकता और उतावलापन के कारण वह अधूरे ज्ञान के बल पर ही अपने आप को प्रकांड पंडित समझ लेता है। जो भी महान व्यक्ति हैं वे बड़े-बड़े महापुरुषों की जीवनी से ज्ञान प्राप्त करते हैं और उसी ज्ञान के बल पर समाज का उत्थान करते हैं। हमें ज्ञान देने के लिए हितोपदेश पंचतंत्र अनेक ग्रंथ हैं उन्होंने हमें यही सिखाया है कि किताबी ज्ञान के साथ साथ व्यवहारिक ज्ञान होना चाहिए तभी हमारी प्रतिभा का चौमुखी विकास होता है और हम सफलता को प्राप्त होते हैं ।उदाहरण के लिए यदि हमें नदी पार करना है तो किताब के सहारे तो नहीं होगा उसके लिए नाव आवश्यक है ,या हमें तैरना आए इसलिए पूरा ज्ञान प्राप्त करके ही हम जिस क्षेत्र में हैं हमें आगे बढ़ना चाहिए उसका सही ज्ञान होने से इससे हमारी प्रतिभा प्रकाशमान हो जाएगी।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर -मध्य प्रदेश
ज्ञान के अभाव में प्रतिभा प्रकाशहीन तो नहीं होती, उसकी चमक थोड़ी कम हो जाती है। तब प्रतिभा को स्वयं को निखारने के लिए, आगे बढ़ कर अपना मार्ग बनाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है और कभी-कभी व्यक्ति संघर्ष ही करता रह जाता है। प्रतिभा और ज्ञान को इसलिए पूरक कहा जा सकता है। प्रतिभा जन्मजात भी होती है और व्यक्ति अपने आस-पास तथा वातावरण से भी उसे अर्जित करता है। ज्ञान उस प्रतिभा को निखारता है ताकि व्यक्ति ज्ञान के सही के उपयोग से अपनी प्रतिभा से अपना इच्छित लक्ष्य प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर सके। अब यह ज्ञान स्कूल-कॉलेज, विश्वविद्यालय में पढ़ कर डिग्री लेकर प्राप्त किया जाये या अपना स्वतंत्र अध्ययन करके प्राप्त किया जाये... यह व्यक्ति का अपना चुनाव हो सकता है।लेकिन प्रतिभा और ज्ञान का सामंजस्य करके आत्मविश्वास प्राप्त करना और अपने काम को सही ढंग से पूर्णता देना किसी भी व्यक्ति के लिए आवश्यक है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
किसी भी व्यक्ति में प्रतिभा कुदरती होती है यह ईश्वर की कृपा से मिली हुई दौलत है किंतु उसमें ज्ञान गंगा के सागर का समावेश हो तो यह तो "सोने में सुहागा " होगा !
प्रतिभावान व्यक्ति की प्रतिभा कहीं छुपती नहीं जैसे कोई कलाकार किसी भी क्षेत्र में हो शिल्पकार, गायक ,संगीतज्ञ हो डिजाइनर हो कहने का तात्पर्य है उसका यह गुण जन्म से ईश्वर प्रदत्त है किंतु ज्ञान प्राप्त कर यदि वह सोने की तरह और निखरता है तो हर्ज ही क्या है ! प्रतिभा तो ढांचा है यदि उस पर ज्ञान का आवरण आ जाए तो उसकी सुंदरता पर 'चार चांद लग जाते हैं ' ! ईश्वर ने हमें जन्म दिया किंतु जब हम उसे संवारते हैं तभी तो मनुष्य की उपलब्धि अपने आप में पूर्ण होती है ईश्वर सौंदर्य देता है सँवारना तो हमें है ! प्रतिभा और ज्ञान दोनों का अपना-अपना महत्व है ! आज हम जितनी भी भौतिक चीजों का उपयोग करते हैं सभी को जिसने भी तैयार किया उनकी प्रतिभा के अनुसार उनका चुनाव किया !
कई वैज्ञानिक है जो स्कूल जाने से कतराते थे ! जिन्हें किताबी ज्ञान से परहेज था ! ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे किंतु कुदरत ने उन्हें इतना प्रतिभाशाली बनाया था कि उन्होंने आविष्कार के रूप में कई विषयों के ढांचे तैयार कर दिए किंतु उसी आविष्कार के ढांचे में ज्ञान के आधार पर कई सुधार भी हुए हैं ! कहने का तात्पर्य है कि आपस में एक दूसरे के विचारों के परामर्शो का तालमेल अथवा सामंजस्य मिलता है वही 'ज्ञान है' ! एक दूसरे के विचारों को आपस में ग्रहण करना ही ज्ञान है ! यदि किसी की प्रतिभा दूसरे की सलाह लेने से निखरती है यानिकी एक की प्रतिभा दूसरे का ज्ञान उसी को आज हम गुरु शिष्य की संज्ञा देते हैं ! एकलव्य अच्छी तीरंदाज थे किंतु फिर भी उन्होंने द्रोणाचार्य को अपना गुरु बनाया और अर्जुन से भी ज्यादा प्रखर हुए ! अंत में मैं यही कहूंगी कि ज्ञान से प्रतिभा प्रकाश लेकर और प्रखरती है!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
किसी भी व्यक्ति के ज्ञान का आंकलन नहीं किया जा सकता क्योंकि ईश्वर ने प्रत्येक प्राणी के अंदर कोई न कोई प्रतिभा का समावेश करके ही जन्म दिया है ।हाँ ये जरूर है कि उस प्रतिभा को निखारने के लिए उसका पूर्ण ज्ञान लेना आवश्यक है तभी वह सफलता हासिल कर सकता है ।ज्ञान यदि अधूरा रह जाता है तो प्रतिभा अवश्य प्रकाशहीन हो जाती है ।हर मनुष्य को कठिन परिश्रम करना ही पड़ता है खुद को सर्वोत्तम बनाने के लिए ।मानव मस्तिष्क अथाह कल्पनाओं का सागर है जो नित नई खोज करता रहता है और ये उसके स्वज्ञान से ही संभव है ।जैसे-जैसे व्यक्ति बड़ा होता है, अपने आस-पास के वातावरण से कुछ न कुछ सीखता है ।यदि हम पढ़ाई को ही ज्ञान मानते हैं तो ये गलत है क्योंकि आवश्यक नहीं जिसने चार किताबें पढ़ ली वो ही ज्ञानी माना जाएगा ।हमारे देश के अनेक ऐसे प्रतिभाशाली लोग हैं जो कभी स्कूल नहीं गए लेकिन उनके हुनर देश विदेश में भी अपना परचम फहरा रहे हैं।ये अवश्य है कि उन्हें अपनी प्रतिभा का पूरा ज्ञान लेना ही होता है।इसमें ज्ञान का अर्थ होगा जानकारी लेना ।प्रतिस्पर्धा के युग में अपनी प्रतिभा को बेहतर से बेहतर बनाकर ही शिखर तक पहुँचा जा सकता है इसलिए ज्ञान तो आवश्यक है ही ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
ऐसा बिल्कुल नहीं है।कि ज्ञान के अभाव में प्रतिभा प्रकाशहीन नही होती हैं। प्रतिभा व्यक्ति की खुद की एक कला होती है। उसका ज्ञान से कोई लेना-देना नहीं प्रतिभावान व्यक्ति यदि अशिक्षित या शिक्षा के अभाव से वंचित है।और उसके हाथ में हुनर है, कला है तो वह भी आगे बढ़ सकता है। जैसे किसी मूर्तिकार के हाथ में मूर्ति बनाने की कला है। मगर वह शिक्षित नहीं है।तो भी वह एक कलाकार है। और उसकी कला का प्रदर्शन उसे उसके हुनर के अनुरूप उसे आगे बढ़ाता है।ऐसा मेरा विचार है।कि ज्ञान के अभाव में प्रतिभा प्रकाशहीन नहीं हो सकती।
- वंदना पुणतांबेकर
इंदौर - मध्यप्रदेश
ज्ञान और प्रतिभा का अपना अपना महत्व है प्रतिभा जन्मजात है ज्ञान पढकर अनुभव से आता है पर प्रतिभा ईश्वर प्रदत्त है
ज्ञान हमें हमारी योजनाओं को सही रुप से कार्यान्वित करने में सहायता करता है और सही व गलत के साथ ही अच्छे और बुरे में अन्तर करने में भी सक्षम बनाता है। यह हमारी अपनी कमजोरी और दोषों पर विजय पाने में मदद करने के साथ ही साहस और आत्मविश्वास के साथ खतरों और कठिनाइयों का सामना करने में सक्षम बनाता है। यह व्यक्ति के जीवन में मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करने के द्वारा अधिक शक्तिशाली बनाता है।और हमारी प्रतिभा को और निखारता है तथा उपयोगी बनाता है । प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती। इसके आगे सारी समस्याएँ बोनी हैं। लेकिन समस्या एक प्रतिभा को खुद दूसरी प्रतिभा से होती है। बहुमूखई प्रतिभा का होना, अपने भीतर एक प्रतिभा के बजाय दूसरी प्रतिभा को खड़ा करना है। इससे हमारा नुकसान होता है। मन की दुनिया की एक विशेषज्ञ कहती हैं कि बहुमुखी होना आसान है, बजाय एक ख़ास विषय के विशेषज्ञ होने की तुलना में । बहुमुखी लोग स्पर्धा से घबराते हैं। कई विषयों पर उनकी पकड़ इसलिए होती है कि वे एक में स्पर्धा होने पर दसरे की ओर भागते हैं। वे आलोचना से भी डरते हैं और अपने काम में तारीफ़ ही तारीफ़ सुनना चाहते हैं। एक के साधे सब सधे, सब साधे सब जाए’ का मंत्र ही शुरू से प्रभावी है । इस लिये प्रतिभा शाली मनुष्य में बहुत सम्भावना होती है उसके साथ ज्ञानी भी हो जाये तो सोने पर सुहागा ।
फिर वह जो चाहे कर सकता है अपनी प्रतिभा का यह बहुप्रतिभा का धनी है तो अपनी प्रतिभा का उपयोग सही तरीक़े से सही दिशा में कर शौहरत , दौलत दोनो कमा कर मौज कर सकता है । प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती। इसके आगे सारी समस्याएँ बौनी हैं। अगर किसी व्यक्ति में प्रतिभा है तो वो आसानी से सफलता प्राप्त कर सकता है फिर उसे किसी सहारे की जरूरत नहीं। प्रतिभाशाली व्यक्ति के आगे कोई समस्या टिक नहीं सकती।परन्तु ज्ञानी भी हो जाये तो फिर दुनिया की कोई ताक़त उसे हरा नहीं सकती
ज्ञान अजर अमर है वह प्रतिभा को निखार और संवार कर उसकी मंज़िल पर पहुँचाने का काम करता है ।
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
बिलकुल ज्ञान के अभाव में प्रतिभा प्रकाशहीन हो जाती है ।प्रतिभा को ज्ञान ही ज्ञात करता है, वो ज्ञान विद्या से प्राप्त हो या वह व्यवहारिक हो।प्रतिभा तभी प्रतिभा कहलाती है जब वह निखरती है।प्रतिभा के निखरने के लिए एवं उचित मार्गदर्शन हेतु समुचित ज्ञान का होना नितांत आवश्यक है ।ऐसा भी कह सकते हैं-ज्ञान के प्रकाश में ही प्रतिभा जगमगाती है ।
- रंजना वर्मा
रांची - झारखण्ड
परमात्मा ने अनंत संभावनाओं से युक्त साधारण और विलक्षण प्रतिभा के धनी मनुष्यों को जन्म दिया है। जिस व्यक्ति का आइक्यू 6 वर्ष के बच्चे जितना हो यदि वह एक बार में 12000 पुस्तकों को याद रख सकता हो, तो तो उस प्रतिभा को किसी ज्ञान की आवश्यकता नहीं ।"किम पिक" की इस प्रतिभा के साथ-साथ एक अद्भुत प्रतिभा भी और थी ,कि उसकी आंखें एक साथ दो विभिन्न प्रारूपों को पढ़ पाने में सक्षम थी; उसकी बाई आंख बाया पन्ना और दाईं आंख उसी समय पुस्तक का दाया पन्ना पढ़ रही होती थी। इस अपूर्व जीवन पर आधारित" हॉलीवुड" की प्रसिद्ध फिल्म "रेन मेन" बनी। स्वामी विवेकानंद, आदि शंकराचार्य एक बार में कई सौ व्यक्तियों के प्रश्नों को सुनकर उनका एक-एक कर उत्तर देने में सक्षम थे। संपूर्ण विश्व ऐसी प्रतिभाओं से भरा पड़ा है। ऐसी प्रतिभाएं अपने विशेष प्रकाश से सर्वत्र उदाहरण बन जाती हैं।
हां मनुष्य चाहें तो अपने अंदर की सोई हुई शक्तियों को जागृत करके ज्ञान विज्ञान के अपार भंडार खोल सकता है। दूसरी ओर ज्ञान मनुष्य की आवश्यकता है; क्योंकि ज्ञान के अभाव में चेतन होने पर भी सामाजिक, भौतिक उन्नति एवं विकास नहीं कर सकते। यथा प्राचीन काल का आदिमानव (वनमानुष) ज्ञान के अभाव में सामाजिक दायित्व की जिम्मेदारी गुण- कर्म, स्वभाव, खानपान, रहन-सहन यानि अपने गौरव, गरिमा से भी अनभिज्ञ रहता था। आज का मानव ज्ञान से ही विकासोन्मुखी हुआ है । प्रतिभा तो जन्मजात वरदान है।
- डॉ रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
ज्ञान के अभाव में प्रतिभा क्या मनुष्य का पूरा व्यक्तित्व ही धूमिल पड़ जाता है|जिस कारण मनुष्य एक हाड़ मांस का पुतला भर रह जाता है |प्रत्येक मनुष्य में कोई न कोई प्रतिभा अवश्य छिपी रहती है जिसे तराशने के लिए अगर कोई जौहरी मिल जाए तो वह हीरे की तरह चमकने लगता है |पत्थर को भी अपने ज्ञान के सहारे मूर्तिकार एक रूप देता हैं फिर वही निर्जीव पत्थर में ज्ञान के मंत्रों के सहारे प्राण प्रतिष्ठा कर हम पूजनीय बना देते हैं |हाँ,ज्ञान के अभाव में प्रतिभा प्रकाशहीन हो जाती है|संसार में प्रतिभाओं की कमी नहीं है |जरूरत है उसे एक मंच देने की,निखारने की,व्यक्त करने की |जिसे सही दिशा के पथ पर ज्ञान के सहारे ही प्रकाशित किया जा सकता है |कई व्यक्तियों मे बचपन से ही ईश्वरीय गुण होते हैं लेकिन उन्हें उसे उपयोग करना नहीं आता है |ऐसे में ज्ञान प्रकाश के सहारे वो शीर्ष पर पहुँच जाता है|जिससे पूरा समाज लाभान्वित होता है
- सविता गुप्ता
राँची -झारखंड
ज्ञान के अभाव में प्रतिभा का उभर कर सामने आना सम्भव नहीं हो पाता है । इसलिए एकलव्य को भी गुरू की आवश्यकता पड़ी थी । प्रतिभा भगवान का उपहार है , उसे संवारना मानव के हाथ में होता है । उसके लिए भी निपुणता चाहिए। वह एक अनुभवी उस्ताद ही कर सकता है । कुछ गवां कर कुछ पाना तो नियति है। प्रतिभा को समझ कर योग्य गुरु से बारीकियाँ जानना जरूरी है । जब दोनों की संधि होती है तब ही उसका प्रदीप्ति चारों ओर फैलती है ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
ज्ञान के अभाव में प्रतिभा प्रकाशहीन हो जाती है,इसे यूँ कहा जावे कि प्रकाशहीन हो सकती है, तो ज्यादा उपयुक्त होगा। हरेक में कोई न कोई विशेष गुण होता है,जिसे हम प्रतिभा कहते हैं। ज्ञान के अभाव में हरेक उसे पहचान नहीं पाता और उस प्रतिभा को अनदेखा कर देता है। जीवन में उसे प्रतिभा दिखाने के अवसर भी मिलते हैं जिसमें यदि सने अपने में छुपी प्रतिभा को पहचान लिया और फिर उसे संवारने और निखारने में जुट गया तो वह सफल भी होता चलता है। कभी असफलता भी मिलती है तब आत्मविश्वास बनाये रखना भी जरूरी होता है। वरना प्रतिभा का ह्रास भी होने लगता है।
अतः तात्पर्य यह है कि प्रतिभा के प्रकाशहीन होने के सिर्फ ज्ञान का अभाव ही नहीं, अनेक कारण हो सकते हैं। जैसे-निर्णायकों का पक्षपातपूर्ण रवैया, हतोत्साहित करना, या प्रतिभाशाली की घरेलू अन्य कोई परेशानियां या विशेष जिम्मेदारियां होना, उसमें आत्मविश्वास की कमी , उसके द्वारा प्रतिभा के लिये समुचित प्रयास न करना और अन्य किसी अच्छी या बुरी आदतों को प्राथमिकता देना आदि।
ऐसे में उसके निकटके परिजनों को भी चाहिए कि यदि किसी में कोई प्रतिभा नजर आती है तो उसको विकसित करने में समुचित सहयोग प्रदान करें।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
यह शतप्रतिशत सही है प्रतिभा ज्ञान के बिना प्रकाशहीन है । ज्ञान से ही प्रतिभा मे चार चांद लगते है ।प्रतिभा इश्वरीय देन है और ज्ञान अर्जित है। एक जौहरी हीरा को तराश तराश कर अमूल्य बना देता है उसी तरह ज्ञान प्रतिभा को तराश कर हीरा बना देता है ।प्रतिभा कभी भी छिपती नही उसे सिर्फ एक प्लेटफॉर्म की आवश्यकता है ।बहुत ऐसे गायक कलाकार विद्वान विदुषी है जिन्होंने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन बिना डिग्री के किया है।एकलव्य की प्रतिभा आदरणीय अब्दुल कलाम , प्रथम राष्ट्रपति डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद के जीवन उल्लेखनीय है । पुस्तकीय ज्ञान व्यवहारिक ज्ञान के माध्यम से ही बडे बडे अनुसंधान और तकनीकी आयाम का हम सभी आनंद उठा रहे है अतः ज्ञान के अभाव मे प्रतिभा प्रकाशहीन है इस मत से सहमत हू
- डाँ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
जी हाँ, ज्ञान के अभाव में प्रतिभा प्रकाशहीन हो जाती है । किसी न किसी स्त्रोत से ज्ञानार्जन करते रहना चाहिए । इसके कई रूप हैं -
आत्मज्ञान
पुस्तकीय ज्ञान
व्यवहारिक ज्ञान
ज्ञान का अर्थ होता है अज्ञानता का नाश , जब व्यक्ति ज्ञानी व्यक्तियों के सम्पर्क में आता है तो उसमें निहित प्रतिभा निखरने लगती है । यही कारण है जन मानस को संदेश देने के लिए श्रीराम व श्रीकृष्ण भगवान होते हुए भी अपनी प्रतिभा को निखारने हेतु गुरुकुल गए । गुरु द्वारा प्राप्त ज्ञान को आत्मसात करके ही वे प्रतिभावान बनें । एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में गुण स्थानांतरित होते हैं , बच्चे जो देखते हैं वो सीखते जाते हैं । यहाँ तक की माँ के गर्भ में स्थित शिशु भी वो सब सीख ता जाता है जो उस दौरान माँ सुनती व देखती है इसका सबसे अच्छा उदाहरण अष्ट्रावक्र जी व अभिमन्यु हैं । प्रकृति अपने क्रियाकलापों द्वारा नित्य ही हम सबको व्यवहारिक ज्ञान देती है । जीव जंतु भी अपने - अपने ज्ञान को अभ्यास द्वारा निखारते हैं । ज्ञान का होना बहुत आवश्यक है इसके बिना प्रतिभा में निखार नहीं हो सकता है ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
ज्ञान के समान इस संसार में कुछ भी नहीं है ।यह बात श्री मद्भागवत गीता में कही गई है अतः ज्ञान के बिना प्रतिभा का प्रकाशित होना असंभव है ।जहाँ ज्ञान है वहीं प्रतिभा वहीं प्रकाश निश्चित है ।अतः हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि ज्ञान के अभाव में प्रतिभा प्रकाशहीन हो जाती है ।
- शशांक मिश्र भारती
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " ज्ञान से किसी भी क्षेत्र में रोशनी यानि प्रकाश किया जा सकता है । ज्ञान के बिना जीवन में अधेरा रहता है । यही ज्ञान का प्रतिभा में महत्व है । बिना ज्ञान के प्रतिभा अधूरी है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
निरन्तर अच्छी चर्चाएं कराने के लिए जैमिनी जी आपका बहुत बहुत आभार
ReplyDeleteशशांक मिश्र भारती