क्या जनप्रतिनिधियों को अयोग्य करने के स्पीकर के अघिकार को कोर्ट को दे देना चाहिए ?
स्पीकर की भूमिका हमेशा राजनीति से प्रभावित होतीं रहती है । जबकि न्याय कहीं किसी को नज़र नहीं आता है । ऐसी स्थिति में न्याय कहाँ खड़ा है । लोकतंत्र में न्याय अवश्य होना चाहिए । नहीं तो लोकतंत्र का महत्व खत्म हो जाता है । ऐसे में स्पीकर के अघिकार पर उगंली उठना लाजिमी है । ऐसे में " आज की चर्चा " का महत्व और भी बढ़ जाता है । अब देखते हैं आये विचारों को : -
नहीं देना चाहिए क्योंकि स्पीकर एक सम्मानित पद है ,इस पर आसीन होने से पहले वो व्यक्ति अपने दल से इस्तीफा देता तथा संविधान को साक्षी मान निष्पक्षता से निर्णय लेने की शपथ लेता है । स्पीकर का चुनाव सदन के जनप्रतिनिधियों द्वारा आपसी सहमति से होता है या सदन के सदस्यों के द्वारा मतदान द्वारा होता है । स्पीकर की उपस्थिति में सदन की सारी कार्यवाही , किस विषय पर चर्चा की जानी चाहिए, सारे नियम, किसी सदस्य के दुर्व्यवहार पर उसे बाहर करना, उसकी सदस्यता को अवैध घोषित करना ये सारे दायित्व उनके होते हैं । इसे न्यायालय को सौंपने से उनकी शक्ति कम होगी तथा लोकतंत्र पर भी आघात होगा क्योंकि जनतंत्र अर्थात जनता का शासन जनता द्वारा जनता के लिए ही हो यही सर्वमान्य होना चाहिए ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
स्स्पीकर यानि कि विधानसभा अध्यक्ष किसी न किसी दल का होता है और कई बार उसका निर्णय दल की अपेक्षा के अनुरूप होता है न कि सदन की गरिमा या आवश्यकता अनुसार अतः उसके निर्णय की प्रामाणिकता विश्वसनीयता व निष्पक्षता के लिए भारत की न्यायपालिका को समय-समय पर आवश्यकतानुसार हस्तक्षेप बदलाव अथवा दिशा निर्देश देने चाहिए ।यह जन जनतंत्र व उसकी अपेक्षा आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए बहुत ही आवश्यक है ।
- शशांक मिश्र भारती
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
नहीं जनप्रतिनिधियों को अयोग्य करने के स्पीकर के अधिकार को कोर्ट को नहीं देना चाहिए क्योंकि कोर्ट के फैसले आने में तो बहुत वक्त लगता है । संसद के दोनों सदनों की मर्यादा भी भंग होती है क्योंकि संसद में जनप्रतिनिधि अभद्र भाषा का प्रयोग, मार पिटाई, जूते चप्पल आदि असंवैधानिक भाषण का प्रयोग करते हैं इसलिए स्पीकर को उन्हें मर्यादा का पाठ सिखाने के लिए दंड देते हैं। कोर्ट को यह अधिकार देने के बाद तो वह नाममात्र का रह जाएगा और उसके बाद भी कोई नहीं सुनेगा अभी भी नेता सब मनमानी करते हैं। कोट के पास पहले से बहुत मामले हैं जिनकी सुनवाई होती ही नहीं है तो उसके ऊपर एक अतिरिक्त भार क्यों डाला जाए मेरे अनुसार जनप्रतिनिधि को जब चुने तो हमें पढ़े लिखे और सभ्य व्यक्तियों का ही चुनाव करना चाहिए।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
नहीं देना चाहिए? क्योंकि स्पीकर का पद सम्मानित पद होता है । हर व्यक्ति का सम्मान उसके कार्य व्यवहार के ऊपर आका जाता है अर्थात हर व्यक्ति का सम्मान उसकी उपयोगिता के आधार पर होता है ।उसकी उपयोगिता का मूल्यांकन जनता करती है।कि कौन प्रतिनिधि समाज, राष्ट्र के लिए कितना उपयोगी है ,उसकी महत्ता से ही उसकी आकलन होता है।जो जनता ओं के द्वारा होती है, ना कि जनप्रतिनिधियों को अयोग्य करने के स्पीकर के अधिकार कोर्ट को देना चाहिए।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
देश के अलग-अलग राज्यों के विधानसभा में कभी-कभी स्पीकर की भूमिका के विषय को लेकर सवाल उठते रहते हैं !विधानसभा के सभ्यों के व्यवहारों को लेकर स्पीकर ने जो निर्णय लिया है वह कितना न्याय संगत है चर्चा होती है ,खासकर विपक्ष तरफ की स्पीकर की भूमिका के विषय को लेकर सवाल उठते हैं क्योंकि विधानसभा स्पीकर भी तो आखिर किसी पक्ष के समय हैं ऐसी संजोग में उनके निर्णय निष्पक्ष है उस पर सवाल उठना स्वाभाविक है ! सामान्यतः विधानसभा के स्पीकर पद पर आने के बाद संसद नेता के तरीके निष्पक्ष न्याय होना चाहिए फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने संसद को निवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता के अंदर एक स्वतंत्र प्रणाली रचने का सूचन किया है ! आजकल राजनीति में सत्ता का प्रलोभन इतना बढ़ गया है कि भारी जन मतों से जीतने के बाद धारा सभ्य लोग दल बदल लेते हैं क्योंकि आज राजकारण जनसेवा नहीं धन सेवा बन गया है !इसके उपरांत बड़े-बड़े मंत्री पद का प्रलोभन भी होता है ऐसी स्थिति में वर्तमान व्यवस्था में बदलाव करना आवश्यक लगता है !
अब सुप्रीम कोर्ट ने यदि कठोर होकर विधानसभा के स्पीकर की सत्ता मर्यादित करने एवं जनप्रतिनिधियों को अयोग्य करने के लिए नया सिस्टम लागू करने का सोचती है तो शायद आगे इस दिशा में प्रगति होने की संभावना तंदुरुस्त लोकशाही के लिए जरूरी है वर्तमान व्यवस्था के स्थान पर कोई नई व्यवस्था और नियम लागू हो तो निष्पक्ष और प्रमाणिक निर्णय होना चाहिए! अंत में कहूंगी कि माना कि स्पीकर का पद सम्मानित है किंतु सरकार लोकतांत्रिक है और लोकतंत्र में न्यायालय का फैसला सर्वोच्च माना जाता है !अतः आज की स्थिति को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के अधिनियम ऐसे नियम बनाए जाए जिसमें फैसला ऐसा जो देश के हित में हो !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
जनप्रतिनिधियों को अयोग्य करार देने के लिए स्पीकर के बजाये कोर्ट को दे देना चाहिए क्योंकि स्पीकर अगर जनप्रतिनिधियों को अयोग्य करार देते हैं तो कोर्ट की शरण में जाते हैं। इसलिये यह अधिकार कोर्ट को दे देना चाहिए
- हीरा सिंह कौशल
मंडी - हिमाचल प्रदेश
21 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने संसद को एक सुझाव दिया. कहा कि सांसदों और विधायकों को अयोग्य करार देने के लिए एक अलग सिस्टम बनाना चाहिए. जैसे जजों को हटाने के लिए अलग सिस्टम है. अभी सदस्यों को हटाने पर फैसला सदन (लोकसभा/विधानसभा) का स्पीकर लेता है. सुप्रीम कोर्ट का तर्क है कि स्पीकर एक पार्टी का होता है, ऐसे में उसके पक्षपाती होने की आशंका है. स्पीकर के अलावा संसद के दोनों सदनों के सदस्यों को राष्ट्रपति अयोग्य करार दे सकते हैं. राज्यों में विधानसभा/विधानपरिषद के सदस्यों को राज्यपाल अयोग्य करार दे सकते हैं. लेकिन इसमें सदस्यों को अयोग्य घोषित करने के लिए निश्चित क्राइटेरिया होते हैं. उनमें फिट होने पर सदस्य अयोग्य घोषित किया जा सकता है.
लोकतंत्र में न्यायालय का निर्णय ही सही माना जाता है
इसलिये सही व निष्पक्ष निर्णय हो , न्यायालय को यह अधिकार दे देना चाहिये ।
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
संविधान में सभी संवैधानिक पदों के अधिकारों एवं कर्तव्यों की पूरी विवेचना की गई है। इसमें स्पीकर का अधिकार एवं कर्तव्य भी आते हैं। इन अधिकारों में स्पीकर को यह अधिकार भी प्राप्त है कि यदि कोई सदन का सदस्य, सदन में हो रही कार्यवाही में या अपनी स्वयं की पार्टी के विहप( whip )के विरुद्ध कार्य करता है या सदन के अनुशासन को भंग करता है या कोई अन्य अनैतिक क्रियाकलाप में संलग्न होता है या ऐसी गतिविधियों में संलग्न पाया जाता है जो संवैधानिक न्याय व्यवस्था के विरुद्ध हो तो स्पीकर उसकी सदस्यता को निरस्त कर सकता है । इन सब कार्यवाहियों में जिन साक्ष्यों के आधार पर जब स्पीकर अपना निर्णय देता है और फिर कोई जन -प्रतिनिधि यदि साक्ष्यों की वैधता पर किसी प्रकार से प्रश्न चिन्ह लगाता है। या सदस्य या पार्टी साक्ष्यों की वैधता पर कोई संदेह करते हैं; तो वह न्यायालय की चीफ जस्टिस द्वारा चयनित जजों की संविधान पीठ में जा सकते हैं;जहां संविधान पीठ इस पर निर्णय कर सकती है।अतःसदन की गरिमा बनाये रखने के लिए यह उचित है । इसी आधार पर वर्तमान में कर्नाटक सदन इसका प्रत्यक्ष प्रमाण रहा है।
- डॉ रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
लोकतंत्र मे न्यायालय की शक्ति सर्वोच्च मानी जाती है
स्पीकर का पद सम्मानित पद है उनके अधिकार की भी एक सीमा होती है ।यदि स्पीकर द्वारा किसी भी जनप्रतिनिधि को अयोग्य करने पर न्यायालय मे अपील करने का मौका मिलना चाहिए । यदि विषय मे यह राय मांगी गयी है कि कोर्ट को यह अधिकार स्पीकर को दे देना चाहिए तब भी लोकतंत्र की अवमानना ही होती है
डाँ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
" मेरी दृष्टि में " स्पीकर एक दल से सम्बंधित होता है । वह बाकि दलों के सदस्यों के साथ न्याय कैसा सम्भव है ? ऐसी स्थिति हमेशा होती है । इसलिए इस विषय पर गम्भीरता से " आज की चर्चा " का आयोजन किया गया है । प्रयास में सफलता भी मिली है
- बीजेन्द्र जैमिनी
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