बुढापे को कैसे रोकना चाहिए ?
बुढापा एक ऐसी अवस्था है । जिसमें बिमारियों से आमना सामना होता है । बिमारियों को रोकने के लिए व्यायाम व खाने पीने में सुधार कर के बुढापा को रोकना चाहिए । तभी जीवन को सरल बनाया जा सकता है । यहीं " आज की चर्चा " का उद्देश्य है ।आये विचारों को भी देखना चाहिए : -
बुढ़ापा जीवन का सार्वजनिक सत्य है, जीव -जगत का हर प्राणी, पशु- पक्षी यहां तक कि पेड़ -पौधौ के साथ-साथ सभी वस्तुओं को भी बुढ़ापा आता है। यथा- मनुष्य की शारीरिक, मानसिक क्षमता का कम होना, शरीर पर झुर्रियां और त्वचा का ढीला पड़ जाना, पेड़- पौधों का पत्र विहीन होकर ठूँठ बन जाना, वस्तुओं के रंग- रूप में परिवर्तन हो जाना। फिर भी मनुष्य को समय से पहले बुढ़ापा आ जाना यह चिंता का विषय है इसको रोकने के लिए मनुष्य को तन- मन से स्वस्थ रहना जरूरी है। उचित आहार-विहार, खान-पान, सम्यक दिनचर्या, योग इत्यादि से इसे समय- पूर्व आने से रोक सकते हैं। व्यर्थ की चिंता से मुक्ति पाकर शारीरिक और मानसिक सक्रियता बनाए रखनी चाहिए; क्योंकि यह देखा जाता है कि उचित रखरखाव के अभाव में कभी-कभी बुढ़ापा दस वर्ष पूर्व ही आ जाता है अथवा दस वर्ष बाद आता है। हम सोचें कि हम सदैव बच्चे या युवा ही बने रहें, यह तो असंभव है; क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है।
- डॉ रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
मनुष्य का शरीर एक मशीन है। जैसे हम मशीन से जितना काम लेंगे वह उतनी ही अच्छी रहेगी समय-समय पर दिल देते हैं झाड़ पूछ करते हैं और उसका रखरखाव करते हैं ठीक उसी तरह हमें अपने शरीर का भी ध्यान देना चाहिए और एक काम करना चाहिए अपने रोजमर्रा के काम जो हम दूसरों पर निर्भर हैं नौकरों पर आश्रित हो गए हैं वह हमें खुद ही करनी चाहिए। क्योंकि बैठे-बैठे फास्ट फूड खाने से आजकल युवाओं में अनेक बीमारी हो गई है पहले जो बीमारी लोगों को बुढ़ापे में होती थी या नहीं भी होती थी उनके इतने नाम भी नहीं थे इसका एक कारण खानपान सही तरीके से था आज की भाग दौड़ में लोग डब्बा बंद खाना और सब लोग बाहर का मैगी पास्ता आदि चाइनीस नूडल्स यह सब खान-पान के कारण डायबिटीज के कारण युवा भी बुजुर्ग लगने लग गए हैं उनके चेहरे पर झुर्रियां आ गई हैं उदाहरण के लिए आप फौजियों को देखिए या पायलट अभिनेत्री अभिनेता आदि लोग अपने आप को फिट रखने के लिए व्यायाम वह संतुलित खाना का ध्यान देते हैं। वे लोग कितनी भी तकलीफ है या कितना भी काम रहे अपने जीवन को संयमित और नियमों में बांध लेते हैं। हम लोग अपनी दिनचर्या को यदि सुधार लें और संतुलित खाना खाएं तो हम बुढ़ापे में भी युवा दिखेंगे आप लोग अपने आसपास बहुत लोगों को देख सकते हैं हमेशा व्यक्ति को आशावादी रहना चाहिए और खुश रहना चाहिए हर हाल में वही व्यक्ति सारी उम्र युवा रहेगा वृत्त होने के बाद भी उसका दिल बच्चा सा रहेगा क्योंकि हेल्थ इज वेल्थ।
- प्रीति मिश्रा जबलपुर
जबलपुर - मध्य प्रदेश
आज ज्यादातर लोग ऐसे हैं, जो स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रख पाते हैं और समय से पहले ही बुढ़ापे का शिकार हो जाते हैं। बुढ़ापा अर्थात जल्दी बाल सफेद होना, शरीर कमजोर हो जाना, दांत कमजोर होना, गाल अंदर बैठना, जल्दी थक जाना, चेहरा निस्तेज हो जाना, पाचन-तंत्र बिगड़ जाना, आंखें कमजोर होना आदि।
बहुत ज्यादा मात्रा में पानी पीना : कई लोग यह मानते हैं कि अधिक मात्रा में पानी पीने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है, लेकिन वे यह नहीं जानते हैं कि किडनी को उतना ही अधिक कार्य भी करना होगा। 'अति सर्वत्र वर्जयेत' (अधिकता सभी जगह बुरी होती है)। आयुर्वेद के अनुसार बहुत अधिक मात्रा में पानी पीने से व्यक्ति में जल्दी बुढ़ापा आता है। आयुर्वेदानुसार अधिक पानी पीने से आपके वात, पित्त और कफ का संतुलन बिगड़ जाता है। भोजन करते समय और भोजन के तुरंत बाद पानी नहीं पीना चाहिए। हमेशा बैठकर ही पानी पीना चाहिए, खड़े होकर नहीं। पानी स्वच्छ हो, इस बात का ध्यान रखना जरूरी है। हर कहीं का पानी पीने से परहेज करें।
दिन में सोना और रात में जागना : प्रकृति ने हमारे शरीर में एक घड़ी फिट कर दी है। प्राचीनकाल में मनुष्य उस घड़ी के अनुसार ही सो जाता और प्रात: काल जल्दी उठ जाता था। कहते हैं कि 'जो रात को जल्दी सोए और सुबह को जल्दी जागे, उस बच्चे का दूर-दूर तक दुनिया का दुख भागे।'
भारी यानी गरिष्ठ भोजन करना : गरिष्ठ भोजन को पचाने के लिए आंतों को अतिरिक्त श्रम करना पड़ता है। जो काम दांत नहीं करते, उस काम को भी आंतों को करना पड़ता है। यदि आप गरिष्ठ भोजन कर रहे हैं, तो दांतों का थोड़ी ज्यादा तकलीफ दे दें।
धातुक्षीणता या वीर्य स्खलन : धातुक्षीणता आज के अधिकांश युवकों की ज्वलंत समस्या है। कामुक विचार, कामुक चिंतन, कामुक हाव-भाव और कामुक क्रीड़ा करने के अलावा खट्टे, चटपटे, तेज मिर्च-मसाले वाले पदार्थों का अति सेवन करने से शरीर में कामाग्नि बनी रहती है जिससे शुक्र धातु पतली होकर क्षीण होने लगती है। इसके और भी कई कारण हैं। वीर्य बल का प्रतीक है। यह जितनी ज्यादा मात्रा में संचित होता रहता है, व्यक्ति उतना स्वस्थ और जवान बना रह सकता है।
मल-मूत्र का वेग रोकना : कभी भी पेशाब या मल आए तो उसे रोकना नहीं चाहिए। इसे रोके रखने से किडनी और आंतों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। यह आदत कई तरह के गंभीर रोगों को जन्म देने में सक्षम है।
अवसाद : अक्सर माना जाता है कि अवसाद या डिप्रेशन इंसान को मानसिक और भावनात्मक रूप से कमजोर बना देता है। मगर अब वैज्ञानिकों का कहना है कि इन समस्याओं के साथ ही अवसाद बुढ़ापा भी जल्दी लाता है।
अधिक नमक खाना : अधिक नमक खाने से बुढ़ापा जल्दी आता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सोडियम की बहुत अधिक मात्रा लेने से कोशिकाओं का क्षय होता है। इसका प्रभाव अधिक वजन वाले लोगों में सबसे ज्यादा देखा जाता है। जो किशोर मोटे होते हैं और चिप्स आदि के जरिए बहुत अधिक नमक खाते हैं, उनके शरीर में कोशिकाओं की आयु तेजी से बढ़ने लगती है। इस कारण वे जीवन में बाद के वर्षों में हृदय रोग के शिकार हो सकते हैं।
नशा करना : तंबाकू, धूम्रपान या शराब को पहले व्यक्ति पीता है, इसके बाद यह व्यक्ति को पीने लगती है। धूम्रपान से कुछ ही दिनों में त्वचा पर बुरा असर पड़ता है। शराब आपके लिवर, दिल और दिमाग को कमजोर करती जाती है। तंबाकू चबाने की आदत से व्यक्ति के दांत और गाल वक्त के पहले ही खत्म हो जाते हैं।
वायु-प्रदूषण : महानगरों में यह प्रदूषण अधिक फैला है। वहां चौबीसों घंटे कल-कारखानों का धुआं, मोटर-वाहनों का काला धुआं इस तरह फैल गया है कि स्वस्थ वायु में सांस लेना दूभर हो गया है। मुंबई की महिलाएं धोए हुए वस्त्र छत से उतारने जाती है तो उन पर काले-काले कण जमे हुए पाती है। ये कण सांस के साथ मनुष्य के फेफड़ों में चले जाते हैं और असाध्य रोगों को जन्म देते हैं! यह समस्या वहां अधिक होती हैं जहां सघन आबादी होती है, वृक्षों का अभाव होता है और वातावरण तंग होता है।
जल-प्रदूषण : कल-कारखानों का दूषित जल नदी-नालों में मिलकर भयंकर जल-प्रदूषण पैदा करता है। बाढ़ के समय तो कारखानों का दुर्गंधित जल सब नाली-नालों में घुल मिल जाता है। इससे अनेक बीमारियां पैदा होती है।
ध्वनि-प्रदूषण : मनुष्य को रहने के लिए शांत वातावरण चाहिए। परन्तु आजकल कल-कारखानों का शोर, यातायात का शोर, मोटर-गाड़ियों की चिल्ल-पों, लाउड स्पीकरों की कर्णभेदक ध्वनि ने बहरेपन और तनाव को जन्म दिया है।
यदि हम कुछ नियम संयम से चले व्यायाम को अपनी दिनचर्या में शामिल करे तो कुछ साल बुढापे को टाला जा सकता है
- अश्विन पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
बुढ़ापा रोका नहीं जा सकता। जो अटल व शाश्वत है आपको वह मानना ही पड़ेगा । जिसने जन्म लिया है उसकी एक दिन मृत्यु होनी ही है ।बुढ़ापा एक शारीरिक क्रिया के तौर पर है। जैसे एक मशीन लगातार चलने से उसके कल पुर्जे खराब हो जाते हैं ।उसी प्रकार जीवन के विभिन्न अवस्थाओं में हमारा शरीर जब प्रौढ़ हो जाता है विभिन्न प्रकार की बीमारियों से हम घिर जाते हैं। परंतु जो हमारा मन है यदि हम उसमें उत्तम विचार रखें और अपने आपको योग व विभिन्न क्रियाओं द्वारा स्वस्थ रखें । बुढ़ापे से बचा नहीं जा सकता परन्तु मन से जवान हमेशा रहा जा सकता है।
- मोनिका शर्मा मन
गुरुग्राम - हरियाणा
जन्म मृत्यु, बचपन, किशोरावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था... ये सब अपने समय पर आती हैं और अपने समय पर जाती हैं। बुढ़ापा एक ऐसी अवस्था है जो कब हमारे शरीर में आकर घर कर जाती है पता ही नहीं चलता। यह मृत्यु तक साथ चलता है। शरीर के बुढ़ापे को रोक पाना तो नितांत कठिन है, पर मानसिक बुढ़ापे को अपने विचारों से हम काफी हद तक रोक सकते है।
पहले शरीर के बुढ़ापे पर विचार करें तो मुझे लगता है सैर करना कभी नहीं छोड़ना चाहिए। घर के छोटे-मोटे काम कर शरीर को गतिशील रखें, समय पर पौष्टिकता से भरपूर भोजन करें, हल्का, कम मिर्च-मसालों का भोजन खायें।
पढ़ने से नाता बनायें रहें, घर के छोटे बच्चों के साथ समय बितायें, कामों में मीन-मेख न निकालें, अपने समवयस्कों के यहाँ आना जाना रखें, सेवा कार्यों से जुड़ें, घर के बच्चों से नयी जानकारी लेते रहें... तो मानसिक और शारीरिक बुढ़ापे को गरिमा से जिया और एक सीमा तक रोका भी जा सकता है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
बुढ़ापा को रोका नहीं जा सकता ?बुढ़ापा अवस्था शाश्वत प्राकृतिक घटना है ।यह परिवर्तन नहीं होता ,प्राकृतिक नियम से होता है। प्राकृतिक नियम को बदला नहीं जा सकता अर्थात प्राकृतिक नियम को रोका नहीं जा सकता बल्कि नियम को पहचा ना जाता है नियम के आधार पर ही कार्य व्यवहार किया जाता है। हां बुढ़ापा समय से पहले आ जाता है अर्थात जल्दी आ जाता है ,तो उसे कुछ हद तक रोका जा सकता है ।अपनी नियमित दिनचर्या में आहार-विहार व्यवहार ठीक होने से ।वर्तमान में मनुष्य बुढ़ापा छुपाने के लिए आधुनिक आडंबर करता है वह कार्य बुढ़ापा को रोकना नहीं है। आडंबर दिखावा कुछ पल अर्थात कुछ समय के लिए होताहै। हमेशा के लिए नहीं अतः बुढ़ापा को रोका नहीं जा सकता ,कुछ हद तक इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
बुढ़ापा एक सच है जिसे एक समय के बाद सभी को स्वीकार करना ही पड़ता है बुढ़ापे की बहुत सी नकारात्मक चीजें हम अपनी आचरण व्यवहार व दिनचर्या से म कर सकते हैं बदल सकते हैं ।सबसे अच्छा है कि हम समय के साथ बदलाव को स्वीकार करें ।जबरदस्ती बुढ़ापे की कुछ चीजें छुपाये न और न ही बलात् अपनी विचार धारा अनुभव आयु के अन्तर वालों पर थोपें ।
- शशांक मिश्र भारती
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
बुढ़ापा को रोका नहीं जा सकता है ,,यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है । हम बुढ़ापे को रोक तो सकते नहीं है,, लेकिन खुद को चुस्त दुरुस्त रखकर और इस सोच से खुद को परे रखकर हम काफ़ी हद तक बुढ़ापा को रोक सकते हैं।तन से व्यक्ति बुढा हो सकता है, परन्तु दिल से जवां खुद को महसूस करा कर भी बुढ़ापा को रोका जा सकता है। सेना में बुढ़े सैनिक को भी "जवान" हीं कहा जाता है और वह सैनिक बुढा होते हुए भी खुद को जवान समझता है ।कहने का अर्थ है कि व्यक्ति को मन से खुद को हमेशा "फिक्र नाट" वाले प्रिंसिपल को जीवन में अपनाएं तो बुढ़ापा को आप अपने पास आने से रोक सकते हैं ,यह अहसास हीं काफ़ी है ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
ईश्वर की लीला ही ऐसी है जो आया है वह जाएगा भी! यह नियम तो कुदरत ने सबके लिए एक से बनाए हैं ! चाहे पेड़ पौधे हो अथवा जीवधारी प्राणी हो ! वैसे जीवन है तो परिवर्तन तो आना ही है और इसकी शाश्वतता को कोई नहीं बदल सकता! हां प्रश्न है बुढ़ापे को कैसे रोका जाए ?
आजकल प्रायः देखा जा रहा है कि छोटी उम्र में ही लोग अपनी उम्र से बड़े दिखने लगते हैं ! चूंकि जीवन शैली ही इस तरह की तनाव से भरी, खानपान में परिवर्तन, नींद का न आना, देर रात तक जागना ,प्रदूषण से भरा वातावरण , वाहनों की उपलब्धि से पैरों की कसरत का कम हो जाना, बैठे-बैठे काम करने की वजह से कंधे और कमर का झुक जाना आदि आदि अनेक कारण है जिससे बुढ़ापा समय से पहले आ जाता है इसका हमें पहले से ध्यान रखना होगा ! किंतु यदि हमारी उम्र बुढ़ापे के अंतराल तक पहुंच गई है तब तो हमें खास ख्याल रखना होगा !प्रथम तो हमें सुबह उठकर यदि बाहर जाना सक्य ना हो तो बिस्तर पर ही हाथ पैर की हल्की कसरत करनी चाहिए ! घर पर धीरे धीरे अपना काम स्वयं करें! पौष्टिक आहार के साथ साथ खाने पर नियंत्रण और समय पर खाएं !चलते समय सावधानी ले गिरने का भय रहता है !
उम्र बढ़ रही है तो क्या ? मन प्रफुल्ल रखें ! अपनी वह इच्छा या शौक कहिऐ जिसे आप जीवन की भागदौड़ में पूरा ना कर पाए हो वह अब करें जैसे - संगीत में रुचि हो तो वह करें, साहित्य में रुचि, भ्रमण, बच्चों के साथ हसते खेलते समय गुजारे ! यदि आप सुबह बाहर घूमने जा सकते हैं तो और अच्छी बात है मित्र बनाएं आज की चर्चा पर बहस कर समय गुजारें आदि आदि..... किंतु इन सब कार्यकलापों के अलावा सबसे महत्व की बात आपके विचार सकारात्मक हो !आज के रहन-सहन के वातावरण के अनुसार बच्चों पर अंकुश लगाएं किंतु विचारों में परिवर्तन का होना भी जरूरी है ताकि घर का माहौल सुख शांति से भरा हो अन्यथा तनाव से हमारा बुढ़ापा भी कष्टदायी बन जाता है ! हां किंतु एक बात यह भी सच है कि बुढ़ापे में उनके खाने-पीने का ध्यान हमें ही रखना होगा समय पर भोजन देना, दवाइयां ,साफ कपड़े और कभी-कभी बच्चों की तरह उनकी जिद्द भी पूरी करनी पड़ती है ! उनको खुश रखना पड़ता है घर का वातावरण ठीक है तो आदमी का बुढ़ापा और जी जाता है!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
बुढ़ापे को रोकने के लिए सबसे जरूरी है सकारात्मक सोच ।उम्र बढ़ना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और इसके लिए हर उम्र में स्वस्थ रहना आवश्यक है ।अपनी दैनिक चर्या को यदि हम प्रारंभ से ही संतुलित रखेंगे, व्यायाम और पौष्टिक आहार की ओर विशेष ध्यान रखेंगे तो बुढ़ापे में भी हमारी आदतें वैसी ही बनी रहेंगी ।प्रकृति से जुड़ाव भी अति आवश्यक है ।चरक संहिता में कहा गया है यदि व्यक्ति वात, पित्त और कफ के संतुलन को बनाए रखे तो बुढ़ापे में निरोगी रह सकता है ।उम्र के साथ साथ पाचन क्रिया कमजोर होने लगती है ।ऐसे में हल्का, पौष्टिक और ताजा भोजन करना चाहिए ।ठंडी एवं गरिष्ठ खाद्य पदार्थ हमारे शरीर को रोगी बनाते हैं ।निरंतर हल्का व्यायाम, घूमना अति आवश्यक है ।इसके साथ सबसे जरूरी है लोगों से मिलना जुलना ।बातें करना ।हम उम्र साथियों के साथ हँसना, खुश रहना और सकारात्मक बातें करना ।अपनी हाॅबीज़ में समय व्यतीत करें ।अपने को हमेशा चुस्त दुरुस्त रखें, अच्छे कपड़े पहने, हमेशा कहें, मैं स्वस्थ हूँ, अपने आप पर गर्व करें, हीन भावना ना आने दें।अच्छी, रोचक पुस्तकें पढ़ें ।कभी-कभी बाल साहित्य ,हास्य-व्यंग्य रचनाएँ पढ़ें ।अपनी बीमारी का रोना ना रोएँ।किसी अच्छे ग्रुप से जुड़े और उनकी गतिविधियों में हिस्सा लें।सदा प्रसन्न रहेंगे तो बुढ़ापा आएगा ही नहीं ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
बुढ़ापा इंसान की उम्र का सबसे खराब दौर माना जाता है. आम हिंदुस्तानी तो इसे बुरा आपा भी कहते हैं. यानी उम्र का ये वो हिस्सा होता है जिसका आना तय है लेकिन कोई इसे जीना नहीं चाहता. बुढ़ापे में इंसान शारीरिक रूप से कमज़ोर और दूसरों पर आश्रित हो जाता है.
बुढ़ापे में ज़्यादातर लोगों की मौत शरीर के नाज़ुक अंगों जैसे दिल, जिगर और गुर्दों के काम बंद करने की वजह से होती है. अगर ये नाज़ुक अंग हमेशा स्वस्थ रहें या इनके ख़राब होने पर सेहतमंद अंग ट्रांसप्लांट कर दिए जाएं तो ज़्यादा वक़्त जिया जा सकता है. लेकिन, दुनिया में बुज़ुर्ग इतने ज़्यादा हैं कि सभी के लिए ये बंदोबस्त नहीं किया जा सकता. इसके अलावा डोनर और रिसीवर का अंग एक जैसा होना भी शर्त है और ऐसा अक्सर हो नहीं पाता.
बुढ़ापे को रोकने की कोशिशें हमेशा से ही होती रही हैं, लेकिन अभी तक एेसी कोर्इ दवा इजात नहीं की जा सकी है जो बुढ़ापे को रोक दे। हालांकि अब वैज्ञानिकों ने एक ऐसे पदार्थ को खोज निकाला है जो कि बुढ़ापे की प्रक्रिया को धीमा कर सकता है। माना जा रहा है कि ये खोज बुढ़ापे को रोककर स्वस्थ और लंबी उम्र हासिल करने में मददगार साबित होगी।
आप बातें आप सब जानते हैं बुढापा रोकने के , व्यायाम, चितां से मुक्त , स्वस्थवर्धक भोजन , पुरी निद्रा , ध्यान , साकारात्मक सोच , दोस्त , क्रोध से दूर आदि पर यहाँ में कुछ अलग बात करुगी ...
बुढ़ापा रोकने की औषधि -*
*5. बिलबेरी -*
बिलबेरी एंटीऑक्सीडेंट का एक भंडार है। यह झुर्रियों को रोकने में मदद करता है और त्वचा पर धब्बे को कम करता है। इसके अलावा, यह सेल जेनरेशन को बढ़ाता है, खासतौर से रोडोप्सिन जो आपकी आंखों में मौजूद हल्के संवेदनशील कोशिकाएं हैं। रोडोप्सिन आंखों के लिए ऐसा प्रोटीन होता है जिससे रेटिना के रिसेप्टर में रोशनी को समाहित करने की शक्ति आती है। खराब आँखों की दृष्टि और झुर्रियां वृद्धावस्था में एक बड़ी चिंता है। बिलबेरी दोनों से लड़ने में मदद करता है। यह मोतियाबिंद को भी रोकता है और आपके बुजुर्ग शरीर को स्वस्थ और मजबूत रखता है।
बुढ़ापे से संबंधित एंजाइम की पहचान 11 बीटा-एच.एस.डी. 1 के तौर पर हुई है । इस संबंध में किए गए शोध में 20 से 80 साल तक की उम्र के 134 स्वस्थ वालंटियरों को शामिल किया गया । शोधकर्ताओं ने पाया कि 60 साल की उम्र के बाद मांसपेशियों में एंजाइम 11 बीटा-एच.एस.डी.1 की मात्रा बढ़ जाती है ।
शरीर में इस एंजाइम की मात्रा बढऩे से मांसपेशियों की ताकत घटती है और बुढ़ापे से संबंधित अन्य लक्षण दिखाई देने लगते हैं । मिरर की रिपोर्ट के मुताबिक शोधकर्ताओं का कहना है कि इस शोध के बाद बुढ़ापा रोकने वाली दवाई आगामी 5 वर्षों में तैयार की जा सकती है ।
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
बुढ़ापे को रोकना तो असंभव है |हाँ !बुढ़ापे को ख़ुशी से जिया जा सकता है |इसे स्वयं पर हावी न होने दे |सबसे पहले स्वास्थ्य पर अब पहले से ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है|हर उम्र के लोगों से बातें करिए ,भ्रमण पर जाइए ,रिश्तेदारों और दोस्तों के संपर्क में रहिए |क्रोध ,अहंकार और मैं को त्याग सरल ,बिंदास और मृदु बनिए |बचपन ,युवावस्था,वृद्धावस्था हर अवस्था की अपनी मर्यादा होती है |ईश्वर का धन्यवाद किजीए कि हमें इस अवस्था को भी जीने का सुअवसर प्रदान किया |प्रकृति का नियम है पुराने पत्ते झड़ते हैं तभी तो नये पत्ते का आगमन होता है और धरा पर संतुलन बना रहता है|
- सविता गुप्ता
राँची - झारखंड
बुढ़ापे को रोका नही जा सकता है। यह तो हार्मोनल परिवर्तन है ।जिसका होना निश्चित है ।हा उसके आगमन की अवधि को बढाया जा सकता है सोच, रहन-सहन खानपान प्राणायाम व्यायाम व्यस्तता के माध्यम से खूब आनंद के साथ जिन्दगी बिताया जा सकता है । एक अनुभव अपना बता रही हू।एक रिटायर्ड जज साहब थे हमलोगो के अनुसार वे बहुत बीमार रहते थे पर वे स्वयं के अनुसार बिल्कुल स्वस्थ थे कोई इंसान यदि उनसे यह पूछ लेता कि कैसी तबियत है तो बडे ही सरलतापूर्वक हँसते हुए कहते बिल्कुल स्वस्थ हू उनके कपड़े लाजवाब रहते खाने-पीने का स्टाइल भी अनोखा बातचीत हर उम्र के साथ बहुत ही सरल मनमोहक ।उन्हे देखने के बाद जीवन को आनंद के साथ जाना सीख जाए
इंसान की एक ऐसी आदत है कि घर मे रहना है तो कुछ भी कैसे भी रह ले यह स्वभाव मे परिवर्तन करना आवश्यक है ।
प्राणायाम जीवन का आयाम है
व्यायाम शरीर को चुस्त बनाता ह।पौष्टिक आहार अल्पाहार स्वास्थ्य के लिए नितांत आवश्यक है ।
व्यस्त रहे मस्त रहे ।
म्यूजिक को जीवन मे शामिल करे।
हंसी के प्रसून पर बुढापे के दर्द कम होते है।
वुढापा के जगह पर वरीय अनुभवी शब्द का प्रयोग करे
अपने नजरिया को बदलने की कोशिश अवश्य करते रहना । अपने से थोडे कम उम्र की संगति बनाए।
आयोजन जैसे जन्म दिन सालगिरह बड़े धूमधाम से मनाए । निश्चित ही बुढ़ापे को हाबी नही होने देगे।
- डाँ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
मेरे ख्याल से "बुढ़ापे को कैसे रोकना चाहिए" सही सवाल नहीं है, क्योंकि जो शाश्वत है, उसे कैसे रोक सकते हैं। हाँ, बुढ़ापे को आनंद से बिताने के लिए तैयारियां की जा सकती हैं। सबसे पहले हमें बुढ़ापे को पूरे मन से स्वीकार करना होगा। हमउम्र मित्रों की सकारात्मक सोच वाली मंडली बनाकर अपने-अपने अनुभव साझा कर कुछ समस्याओं को सुलझाने की पहल करनी चाहिए। अपने आप को सदा व्यस्त रखने से नाउम्मीदी की नकारात्मक सोच से छुटकारा मिल जाएगा और बुढ़ापे को भी जिन्दादिली से जीने का मकसद मिलेगा।
- गीता चौबे "गूँज"
रांची - झारखण्ड
यह संसार परिवर्तनशील है | इस नश्वर संसार में पल, प्रतिपल समय बदल रहा है | इसी प्रकार यह मानव जीवन भी पल, प्रतिपल आयु के रूप में बदल रहा है | नित, नित ढल रहा है | शैशवावस्था से लेकर वृद्धावस्था का सफर तय करते, करते व्यक्ति के जीवन का सफर कब समाप्ति की ओर आ जाता है |जिम्मेदारियों का बोझ वहन करते, करते व्यक्ति को यह पता ही नहीं चलता | चूँकि, परिवर्तन संसार का अटल नियम है |
तो व्यक्ति को समय के साथ बुढापा भी अवश्य ही आयेगा |
क्योंकि बुढापे की अवस्था ऐसी होती है जिसे कोई भी लेना या जीना नहीं चाहता |जिस प्रकार से जगत में प्रत्येक दिवस अवसान के बाद निशा का आगमन होना सृष्टि का अद्भुत नियम है |उसी प्रकार से मानव जीवन में प्रत्येक अवस्था को प्राप्त होता हुये इस मानवी जीवन में वृद्धावस्था का आगमन भी एक निश्चित नियम है | किंतु मनुष्य चाहे या अनचाहे काल के वश में होकर बुढापा सभी को आता ही है | आयु के निरन्तर परिवर्तन शील होने के कारण बुढापे की प्रक्रिया को रोका तो नहीं जा सकता | किंतु हाँ,
वृद्धावस्था की ढलती आयु को आनंददायक बनाकर जिंदगी को हँसी, खुशी अवश्य ही बिताया जा सकता है | तो क्यों ना हँसते, हँसते बुढापे को अंगीकार करें और सार्थक चिंतन के द्वारा उम्र पर लगाम लगाकर जिंदादिली के साथ जिंदगी जीने के लिए प्रयास अवश्य ही करने चाहिए | बुढापे को रोकने के लिए युवावस्था से ही सजगता के साथ योगाभ्यास, कसरत, व्यायाम जैसे लाभदायक क्रिया अभ्यासों को दैनिक दिनचर्या में अपनाना चाहिए |अपने सभी कार्यों को नियत समय पर करने की आदत बनानी चाहिये | आलस्य भाव का सर्वथा त्याग करना चाहिए |कर्मठता के साथ कर्तव्यनिष्ठ रहना चाहिए | दया, करूणा, सदाशयता, सौहार्द,परोपकारी मनोवृत्ति को अपनाना चाहिए | क्रोध पर नियन्त्रण रखना चाहिए | वक्त वे वक्त छोटी बातों पर परिवार के सदस्यों को टोका टाकी करने से बचना चाहिये | जिससे परिवार की शांति भंग नहीं होती है | जीवंत प्रकृति अपनाते हुये गहन जिम्मेदारी का निर्वहन अब बच्चों को स्वतन्त्र रूप से करने देना चाहिए |
अब इस उम्र में चारों तरफ हाथ, पैर न मारते हुये केवल श्रेष्ठ कर्तव्य कर्मों की ओर अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए |
हँसमुख व्यक्तिव के धनी मधुरभाषी बनकर रहें | स्वच्छ, सुन्दर वस्त्र धारण करें |ढीली, ढाली प्रवृत्ति को त्यागकर सजग, सचेत रहें | वृद्धावस्था में पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है |अतः इस अवस्था में व्यक्ति को
अपने खानपान का विशेष ध्यान रखते हुये वसा और चर्बीयुक्त खाद्य पदार्थों से दूरी बना कर रखनी चाहिए |
जंकफूड और बाजारी खाने से परहेज करना चाहिए |
घर पर तैयार किया गया स्वच्छ, सुपाच्य, ताजा भोजन करना चाहिए | एक भोजन के बाद दूसरे भोजन के बीच तीन से चार घंटे का समयान्तराल होना चाहिए | अपनी मनपसन्द हॉबी गीत, संगीत,नृत्य,लेखन,मनन,चिंतन आदि को अपनाना चाहिए |किसी सीनियर सिटीजन क्लब के सदस्य बनकर अपने हमउम्र लोगों के साथ हँसते खेलते समय बिताना चाहिए |सदैव सकारात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए |
प्रातः भोर की नवल बेला का प्रारम्भ ईश स्तुति के साथ करना चाहिए | संक्षेप में, इन सभी उपायों को अपनाकर बुढापे को रोकने के साथ ही जीवनी शक्ति को बढाया जा सकता है |
साथ ही बुढापे में भी व्यक्ति सजग रहकर अपने और अन्य दूसरों के लिए भी आनन्ददायक वातावरण का निर्माण कर सकता है |
- सीमा गर्ग मंजरी
मेरठ - उत्तर प्रदेश
बढ़ती उम्र में अक्सर व्यक्ति चिड़चिड़ा हो जाता है । धीरे- धीरे उनका उत्साह खत्म होने लगता है । ऐसे व्यक्ति जल्दी युवा सोच से तारतम्य नहीं बना पाते, जनरेशन गैप की समस्या उन्हें बार - बार नकारात्मक विचारो की ओर ढकेल देती है । ऐसे में सबसे जरूरी होता है कि कोई न कोई हॉबी पर समय रहते ध्यान दिया जाए जिससे वे मानसिक व शारीरिक रूप से व्यस्त रहेंगे , उनमें खुद को फिट रखने व स्वस्थ जीवन शैली को अपनाने की सोच जाग्रत होगी । शारीरिक रूप से मजबूत रहने हेतु योग, ध्यान , प्राणायाम आदि नियमित रूप से करना चाहिए । दूसरी ओर देखने में आता है कि वे बुजुर्ग जो अपने हम उम्र दोस्तों के साथ आज भी अच्छा वक्त बिताते हैं वे बढ़ती उम्र में भी जवान व स्वस्थ नजर आते हैं उनके अंदर जीवन के प्रति जिजीविषा बनी रहती है
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
बुढापा आता है चिन्ता से,यदि जीवन हस्ते मुस्कराते जीयेंगे तो जीवन सुखमय होगा ,शायद यह कहानी कुछ समझा सके।
*सरला नाम की एक महिला थी। रोज वह और उसके पति सुबह ही काम पर निकल जाते थे।* दिन भर पति ऑफिस में अपना टारगेट पूरा करने की ‘डेडलाइन’ से जूझते हुए साथियों की होड़ का सामना करता था। *बॉस से कभी प्रशंसा तो मिली नहीं और तीखी-कटीली आलोचना चुपचाप सहता रहता था।* पत्नी सरला भी एक प्रावेट कम्पनी में जॉब करती थी। वह अपने ऑफिस में दिनभर परेशान रहती थी। ऐसी ही परेशानियों से जूझकर सरला लौटती है। खाना बनाती है। शाम को घर में प्रवेश करते ही बच्चों को वे दोनों नाकारा होने के लिए डाँटते थे पति और बच्चों की अलग-अलग फरमाइशें पूरी करते-करते बदहवास और चिड़चिड़ी हो जाती है। *घर और बाहर के सारे काम उसी की जिम्मेदारी हैं।*
*थक-हार कर वह अपने जीवन से निराश होने लगती है। उधर पति दिन पर दिन खूंखार होता जा रहा है।* बच्चे विद्रोही हो चले हैं। एक दिन सरला के घर का नल खराब हो जाता है। उसने प्लम्बर को नल ठीक करने के लिए बुलाया। प्लम्बर ने आने में देर कर दी। पूछने पर बताया कि साइकिल में पंक्चर के कारण देर हो गई। *घर से लाया खाना मिट्टी में गिर गया, ड्रिल मशीन खराब हो गई, जेब से पर्स गिर गया...।* इन सब का बोझ लिए वह नल ठीक करता रहा।
काम पूरा होने पर महिला को दया आ गई और वह उसे गाड़ी में छोड़ने चली गई। प्लंबर ने उसे बहुत आदर से चाय पीने का आग्रह किया। *प्लम्बर के घर के बाहर एक पेड़ था। प्लम्बर ने पास जाकर उसके पत्तों को सहलाया, चूमा और अपना थैला उस पर टांग दिया।* घर में प्रवेश करते ही उसका चेहरा खिल उठा। बच्चों को प्यार किया, मुस्कराती पत्नी को स्नेह भरी दृष्टि से देखा और चाय बनाने के लिए कहा।
सरला यह देखकर हैरान थी। *बाहर आकर पूछने पर प्लंबर ने बताया - यह मेरा परेशानियाँ दूर करने वाला पेड़ है। मैं सारी समस्याओं का बोझा रातभर के लिए इस पर टाँग देता हूं और घर में कदम रखने से पहले मुक्त हो जाता हूँ।* चिंताओं को अंदर नहीं ले जाता। सुबह जब थैला उतारता हूं तो वह पिछले दिन से कहीं हलका होता है। काम पर कई परेशानियाँ आती हैं, पर एक बात पक्की है- मेरी पत्नी और बच्चे उनसे अलग ही रहें, यह मेरी कोशिश रहती है। इसीलिए इन समस्याओं को बाहर छोड़ आता हूं। *प्रार्थना करता हूँ कि भगवान मेरी मुश्किलें आसान कर दें। मेरे बच्चे मुझे बहुत प्यार करते हैं, पत्नी मुझे बहुत स्नेह देती है, तो भला मैं उन्हें परेशानियों में क्यों रखूँ।* उसने राहत पाने के लिए कितना बड़ा दर्शन खोज निकाला था...!
यह घर-घर की हकीकत है। गृहस्थ का घर एक तपोभूमि है। *सहनशीलता और संयम खोकर कोई भी इसमें सुखी नहीं रह सकता। जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं, हमारी समस्याएं भी नहीं। प्लंबर का वह ‘समाधान-वृक्ष’ एक प्रतीक है।* क्यों न हम सब भी एक-एक वृक्ष ढूँढ लें ताकि घर की दहलीज पार करने से पहले अपनी सारी चिंताएं बाहर ही टाँग आएँ।
- नरेन्द्र आर्य
सम्पादक : चरित्रवान
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
आज 21 वीं सदी में भारत में पाश्चात्य संस्कृति को अपनाने से समाज में समय से पहले ही लोग बूढ़े नजर आते हैं । लोगों के चेहरे पर तेज , आभा नजर नहीं आती है । बल्कि झुर्रियाँ दिखाई देती हैं । इसका कारण है । हमारी जीवन शैली में बदलाव आया है । कहावत है जल्दी उठना जल्दी सोना इंसान को स्वस्थ होशियार बनाते हैं । आज की पीढ़ी के अधिकतर बच्चों , लोगों में सूर्योदय पर उठाना अच्छा नहीँ लगता है । सूर्य दर्शन कैसे होगा ? जिससे वे तरह - तरह के रोगों से पीड़ित हो जाते हैं । क्रोध, चिंता, तनाव, भय, घबराहट, चिड़चिड़ापन, ईर्ष्या आदि नकारात्मक भाव बुढ़ापे को घेर लेते हैं बुढापा रोकने के लिए हमें सकारात्मक जोना होगा । जिसके लिए हमें प्रसन्नचित्त रहने होगा । जीवन में किसी भी काम में उत्साह, संयम, संतुलन, समता, संतुष्टि व प्रेम का मानसिक भाव सदा बने रहे। फिट हैं तो हिट रहेंगे । हम फिट तभी होंगे जब हम अपने शरीर पर ध्यान देंगे । कोई भी वाहन हमारे पास है तो उसकी हम सर्विसिंग कराते हैं । तभी सही काम करती है । उसी तरह हमारे शरीर की मशीन चलाने के लिए हमें योग , व्यायाम , वॉकिंग , प्राणायाम आदि करने होंगे । भूख लगने पर ही खाना खाएँ । भूख से 2 रोटी कम खाना हमारे स्वास्थ्य के लिए ठीक है । अधिक खाना को खाना बीमारियों को दवात देना है । जो बुढापे को परोसता है । पानी भी ज्यादा न पीए ।
कहा भी है ' अति सर्वत्र वर्जयते ।' वात , पित्त , कफ सन्तुलन बिगाड़ देता है ।
व्यक्ति समय - समय पर मेडिकल चेकअप कराएँ ।
तीन सफेद चीज मैदा , चीनी , नमक कम लें ।
तेल , घी , गरिष्ठ चीज का कम उपयोग करें । मादक द्रव्यों का सेवन न करें । अपने घर परिवेश में स्वच्छता रखें । सफाई में लक्ष्मी का वास होता है । रोगों को भगाता है ।
अंत में दोहों में कहती हूँ
बने नहीं शरीर कभी , निर्बल अरु कमजोर ।
आशा के फूल महके , उठना मंजू भोर ।
- डा मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
चराचर जगत में सभी सजीवों को मुख्य तीन अवस्थाओं--बचपन, युवावस्था और वृद्धावस्था से अपने जीवनकाल में गुजरना पड़ता है । अंतिम अवस्था बुढ़ापा है, इसे रोका तो नहीं जा सकता परंतु इसकी गति को अवश्य कम किया जा सकता है ।
तन बूढ़ा होता है, मन नहीं अतः मन में आत्मविश्वास और सकारात्मक विचार होने आवश्यक है । इसके साथ ही सात्विक सुपाच्य भोजन, प्रकृति से निकटता, टहलना, ध्यान, योग , व्यायाम, अच्छा साहित्य पढ़ना एवं लिखना, स्वयं का हर प्रकार से ध्यान रखना । तनाव, ईर्ष्या, स्वार्थ से दूरी बनाए रखना, संतुलित वार्तालाप, संवाद बनाये रखना, बच्चों के साथ खेलना उन्हें कहानियां सुनाना । परिवार में अनावश्यक दखलनदाजी से बचना । जितना संभव हो स्वयं को सक्रिय व प्रसन्नचित्त रखना तथा खुद को बूढ़ा न समझना ।
- बसन्ती पंवार
जोधपुर - राजस्थान
बुढापा कभी रुकता नहीं है । उसके एहसास को कम किया जा सकता है जिंदा दिली से । उम्र तो साल दर साल इस किनारे से उस किनारे जाती ही है। उस बहाव में हँसते हुए रास्ते को तय करना है या थक कर किसी तरह हाँफते-हाँफते किनारे लगना है। यह सोच अपनी होती है। सोच ही बुढ़ापे में भी जवान बनाये रखता है ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
" मेरी दृष्टि में " बुढापा ऐसी अवस्था है। जिसमें सकारात्मक सोच से स्वास्थ्य बना रहा जा सकता है । यहीं जीवन के संघर्ष को पूर्ण करता है । जिसमें शान्ति यानि संयम बरकरार रहना चाहिए । तभी बुढापे को रोका जा सकेगा ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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