क्या जीवन में शान्ति से समृद्धि सम्भव है ?
शान्ति से तो समृद्धि के साथ - साथ सब कुछ सम्भव है । जो काम शान्ति से हो सकता है । वह लड़ाई - झगड़े से सम्भव नहीं है । फिर भी कुछ लोगों को हमेशा लड़ने मरने को तैयार रहते है । ऐसे लोग कभी तरक्की नहीं कर पाते हैं । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । फिलहाल आये विचारों को देखते हैं : -
जीवन में अगर शांति है तो भौतिक समृद्धि के साथ साथ अध्यात्मिक समृद्धि भी संभव है। क्योंकि अगर जिंदगी में संतोष नहीं जीवन कभी भी शांत नहीं रहेगा वह कामनाओं व इच्छापूर्ति के लिये मन भागेगा। इच्छापूर्ति नहीं होने मन शांत नहीं होगा जिससे मानव दुखी रहेगा जिससे शांति व समृद्धि नहीं होगी
- हीरा सिंह कौशल
मंडी - हिमाचल प्रदेश
माना जाए तो शान्ति ही समृद्धि का आधार है ।कोई भी व्यक्ति चंद दिनों में समृद्ध नहीं बन सकता ,क्योंकि कहा जाता है "समय पाय फल होत है "।दौलत और शोहरत कमाने के लिए बरसों लग जाते हैं ।उसके लिए धैर्य, त्याग और शान्ति की आवश्यकता होती है ।ये कोई वस्तु नहीं जो किसी से छीनी जा सके ।समृद्धि सिर्फ धन दौलत की ही नहीं होती, साथ ही हमारा व्यवहार भी विनम्र और शांत होना चाहिए तभी यह कायम रह सकती है ।जो लोग जीवन में सुखी हैं संतोषी हैं तो समृद्धि तो स्वयं ही उनको प्राप्त हो जाती है ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
जी हाँ , ! जीवन में शांति से समृद्धि संभव है ।भारतीय चिंतन , दर्शन , संस्कृति , मनीषियों ने शांति के शस्त्र से विश्व में हुए महायुद्धों को शांति का मार्ग दिखाया है । सम्यक जीवनचर्या में सन्तुलित जीवन जीने के लिए शांति के साकारत्मक भाव का होना जरूरी है । बिना शांति के हमारा जीवन क्रुद्ध समुद्र की लहरों की तरह अशांत हो जाएगा । जो हर प्राणी , चेतना , पर्यावरण , परिवेश , समाज , देश , विश्व स्वास्थ के लिए हानिकारक है । जिस परिवार में सद्गुणों का वास होता है । वहाँ अशांति नहीं रहती है । वहॉं पर प्रगति , उन्नति समृद्धि का वास होता है । जीवन की बाधाएं पर हो जाती है । मैं कह सकती हूँ कि शांति नैतिकता की जननी है । युद्धों की खूनी क्रांति से विनाश ही होता है । मानवता मरती है । मनुष्य मनुष्य का दुश्मन हो जाता है । पहला, द्वितीय युद्ध तो दुनिया ने देखा है । स्व , स्वार्थ की चाहत में संसार फिर से युद्ध के कगार पर खड़ा है । भौतिक उन्माद में खड़ा विश्व का मानव आज अशांत नजर आता है । तनाव , रोगों से त्रस्त है । कारण है । नकारात्मकता की स्वीकार करना है । स्वतंत्रता को स्वछंदता मान बैठा है । सदियों पर हम नजर डालें तो बुद्ध , महावीर , सम्राट अशोक , गांधी जी ने शांति का अहिंसक सूत्र संसार को दिया है । हिंदी साहित्य के नवरसों में शांत रास को सर्वोत्तम माना है । शांत रस से ही मानव - मानव से ईश जुड़ने का माध्यम है । जिसे हम भक्ति रस भी कह सकते हैं । मानसिक , शारीरिक स्वास्थ्य , समाज समृद्धि के लिए शांति को होना परमआवश्यक है । यह आलेख मैं शांत मन से शांत परिवेश में ही लिख पा रही हूँ । अब इसी बात से पता लगता है कि अशांत व्यक्ति कोई भी साकारत्मक सर्जन का काम नहीं कर सकता है । दुःस्वभाव वाला व्यक्ति इंद्रियों का तेज और शक्तियों खो बैठता है । हम शांति से ही समाज, देश को समृद्ध कर सकते हैं । मन में अमन हो तो हम शाश्वत सुख को पा सकते हैं । साँस हमें परोपकार , ओरिग्रह करना सिखाती है । त्याग संयम से हम जीवन में शांति ला सकते हैं । सन्तों , ग्रन्थों का सार ही शांति है । मानवधर्म भी यही सिखलाता है । वेद मन्त्र में मानव जाति की ही नहीं बल्कि जड़ - चेतन के लिए भी शांति की प्रार्थना की है । हर कोई शांति से परिचित है । लेकिन शांति में रहना नहीं जानता है । अशोक के संग पुत्र महेंद्र , पुत्री संद्यमित्रा ने संसार को शांति का पाठ पढ़ाया था । उस काल के शिलालेख , अशोक की लाट आदि शांति के स्तंभ हैं । आओ हम शांति से भारत , विश्व को सत्यं - शिवमं - सुंदरं बनाए । मानतावाद की संस्कृति बनाएँ ।अंत में मैं दोहे में कहती हूँ -
आम्रपाली वृद्ध थी , गए बुद्ध तब पास ।
चित्त शांति सीख से , मिला ज्ञानाकाश ।
- डा मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
व्यक्ति को यह सोचना होगा कि वह समृद्धि किसे मान रहा - धन या कर्म । एक दृष्टि से देखें तो घी दूध के अंदर सदा विद्यमान रहता है परंतु उसे दूध में से निकालो तो उसे मंथना पड़ता है, दूध से मट्ठा और उस मट्ठे से घी की उत्पत्ति होती है। मनुष्य के प्रत्येक क्रियाकलाप उसके साथ जुड़े रहते हैं परंतु उसको उभारने के लिए व्यक्ति को साधना की प्रतिक्रिया से गुजर ना होता है उदाहरण के लिए लक्ष्मी देवी जो धन की देवी हैं उनका वाहन उल्लू है लक्ष्मी को संभालना कठिन है। गीता और अनेक वेदों में कथाएं हैं कि लक्ष्मी और सरस्वती कभी एक साथ नहीं रहती विद्या और धन का कभी समावेश नहीं होता है , विद्या से सुख और संतुष्टि की अनुभूति होती है और धन से नींद और चैन खोता है। मेरे अनुसार यदि व्यक्ति स्वस्थ शरीर और अच्छे कर्म आचार विचारों की शुद्धता रखें तो उसके जीवन में शांति और समृद्धि संभव है।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
जी हाँ. एक चुप सौ बोलते हुए लोगों को हरा देता है.'मौनी बाबा'के मात्र दर्शन,अस्पतालों,धार्मिक स्थलों मंदिरों का शांत परिवेशविशेष स्थलों की दीवार पर लेखबद्ध वाक्य"कृपया शांत रहें" बेहद प्रभावी होते हैं. रीतिकालीन कवि बिहारी तो मौनालाप को ही युवा-प्रेम का प्रमाण बताते हैं.इस संदर्भ में उनका एक दोहा द्रष्टव्य है-
भरी महफिल में मूक प्रेमी-युगल प्रेमांत्रण देने में देर नहीं करते- कहत,नटत,रीझत,खिझत,मिलत खिलत लजियात । भरे भौन में करत हैं नैननु हों सौं बात . पूर्वजों की बातें सुनें तो वे भी मौन को सर्वोपरि मानते थे. रसोईघर में बर्तनों की तेज आवाजें होना,दूध,चाय आदि पेय पीते हुए सुड़कने का शोर करना निषेध मानते थे. एक शायर ने भी लिखा है-" कह रहा है मौजे-दरिया से समन्दर का सुकूत,जिसमें जितना जर्फ है,वो उतना ही खामोश है.लगभग सभी धर्मों में प्रभु की साकार छवि शांतचित्त ही दीखती हैं.
- डां अंजु लता सिंह
दिल्ली
जहां अशांति है कलह का साम्राज्य है वहाँ परतो ईश्वर भी नहीं रहते भाग जाते है जहां शांति है प्यार है वहाँ सुख समृद्धि निवास करती है । यदि हमारे पास दुनिया का पूरा वैभव और सुख-साधन उपलब्ध है परंतु शांति नहीं है तो हम भी आम आदमी की तरह ही हैं। संसार में मनुष्यों द्वारा जितने भी कार्य अथवा उद्यम किए जा रहे हैं सबका एक ही उद्देश्य है 'शांति'। सबसे पहले तो हमें ये जान लेना चाहिए कि शांति क्या है? शांति का केवल अर्थ यह नहीं कि केवल मुख से चुप रहें अपितु मन का चुप रहना ही सच्ची सुख-शांति का आधार है। कहते हैं कि जहाँ शांति है वहाँ सुख है। अर्थात सुख का शांति से गहरा नाता है। लड़ाई, दुख और लालच को भंग करने के लिए शांति सशक्त औजार है। कई लोग कहते हैं कि बिना इसके शांति नहीं हो सकती। इसके साथ ही भौतिक सुख-साधनों तथा अन्य संसाधनों से शांति होगी यह कहना भी गलत है। यदि इससे ही शांति हो जाती तो हम मंदिर आदि के चक्कर नहीं लगाते। धन-दौलत और संपदा से संसाधन खरीदे जा सकते हैं परंतु शांति नहीं। हम यही सोचते रह जाते हैं कि यह कर लूँगा तो शांति मिल जाएगी। आवश्यकताओं को पूरा करते-करते पूरा समय निकल जाता है और न तो शांति मिलती है और न ही खुशी। खुशहाल पारिवारिक जीवन के लिए जरूरी है कि पहले शांति रहे। जहाँ शांति है वहाँ विकास है। जहाँ विकास है वहाँ सुख है। इसलिए अमूल्य शांति के लिए सबसे पहले हमें अपने आप को देखना होगा। अपने बारे में जानना होगा। मैं कौन हूं, कहाँ से आया हूं और हमारे अंदर कौन-कौन सी शक्तियाँ हैं जो हम अपने अंदर ही प्राप्त कर सकते हैं। शांति का सागर परमात्मा है। हम आत्माएँ परमात्मा की संतान हैं। जब हमारे अंदर शांति आएगी तो हमारा विकास होगा। जब विकास होगा तो वहाँ सुख का साम्राज्य होगा। यह प्रक्रिया बिल्कुल सरल और सहज है जिसके जरिए हम यह जान और पहचान सकते हैं। वर्तमान समय अशांति और दुख के भयानक दौर से गुजर रहा है। ऐसे में जरूरत है कि हम अपने धर्म और शाश्वत सत्य को स्वीकारते हुए शांति के सागर परमात्मा से अपने तार जोड़ें। ताकि हमारे भीतर शांति का खजाना मिले। इससे हमारे अंदर शांति तो आएगी ही साथ ही हम दूसरों को भी शांति प्रदान कर सकेंगे।शांति है तो ही सब चैन से जी सकते हैं काम कर सकते है । हंस सकते हैं निरोगी रह सकते है शांति बहारी नहीं आंतरिक होना चाहिये । जिस दिन हम ने आंतरिक शांति पा लि हमारे पास समृद्धि, अपने आप आ जायेगी
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
जीवन में समृद्धि शांति से ही संभव है। शांति का संबंध संतोष से जुड़ा हुआ है। असंतुष्ट व्यक्ति कभी भी शांति प्राप्त नहीं कर सकता। शांति प्राप्त करने के लिए अपने असंतोष से बाहर निकलना होगा और यह तभी हो सकता है कि जब अपने अंदर व्याप्त लोभ- मोह, ईर्ष्या-द्वेष को अपने अंदर से निकाल फेंके, उन पर विजय पास लें। संतुष्ट व्यक्ति ही संतोष को अनुभव करता है। जब वह संतुष्ट है तो उसे असीम शांति का अनुभव होता है और अपने विवेक से वह अपने लिए समृद्धि की परिभाषा गढ़ सकता है। संतोषी व्यक्ति अधिक की कामना नहीं करता, वह उतना ही चाहता है जितना उसके लिए पर्याप्त हो। संतुष्ट व्यक्ति शांति पाता है और अपनी आध्यात्मिक और भौतिक समृद्धि पाने की ओर स्वयं कदम बढ़ाता जाता है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
शांति मधुरता और भाईचारे की अवस्था है, जिसमें बैर नही होता है।यह शब्द युद्ध और कलह का विलोम है। अगर देखा जाए तो शांति के बिना जीवन का आधार नही है ,लेकिन मानव की स्वार्थसिद्धी के कारण शांति का पतन होता जा रहा है। और आज आम आदमी के जीवन में भय और अशांति से जीवन भर गया है इसका मूल कारण स्वार्थ, कायरता, अविश्वास और ईश्वर प्रदत प्रेमभाव का आम जन में समाप्त होना है। शांति है वहाँ समृद्धि है । बिना शांता के समृद्धि नहीं आ सकती
हम सभी सुख और आनंद चाहते हैं; खुशी भौतिक समृद्धि नहीं है; यह दिमाग के खुश होने की अवस्था है, आंतरिक शांति। साथ ही, दुनिया में शांति तब तक नहीं आ सकती जब तक कि आपके दिल में शांति न हो। संभव है कि आप बौद्धिक रूप से उन्नत हो और आपके पास दुनियाभर का सामान हो लेकिन आप तब तक संतुष्ट नहीं हो सकते और खुशी व आनंद का अनुभव नहीं कर सकते जब तक कि आपके पास शांति न हो। शांति किसको कहते हैं? मन जब स्थिर हो जाता है तो उस अवस्था को कहते हैं शांति। मन की चचलता जब तक है तब तक मन अशांत रहता है। शांति पाने का उपाय क्या है? इसमें हर वस्तु-चाहे बड़ी हो या छोटी, सबमें एक ही सत्ता का अभिप्रकाश है।
न सुख बाहर है, न शांति बाहर है। सुख भी
हमारे अंदर है और शांति भी हमारे अंदर है।
लोग सोचते हैं कि शांति प्राप्त करने के लिए
अपने परिवार को त्यागना पड़ेगा। मैं ऐसा नहीं
कहता। मैं नहीं कहता कि अपनी नौकरी छोड़ो।
मैं नहीं कहता कि सिर मुड़ाकर किसी पर्वत के
ऊपर चढ़ जाओ, वहां तुम्हें भगवान मिलेंगे। नहीं, ऐसी चीज की मैं चर्चा कर रहा हूं कि तुम अपने परिवार में रहकर अपनी स्थिति में रहकर, उस ज्ञान के द्वारा परम शांति, परमानंद और सुख का अनुभव कर सकते हो।
शांति ही समृद्धि का आधार है
- अश्विन पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
अवश्य संभव है ,समृद्धि से ही शांति ,शांति से ही संतुष्टि और संतुष्टि से ही सूख की अनुभूति करता है मनुष्य ।यही सुख ही मनुष्य का लक्ष्य है ।इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मनुष्य हर पल प्रयासरत है ।समझ से समाधान और श्रम से समृद्धि मनुष्य को सुख पूर्वक जीने के लिए यह दो बातें ध्यान में रखना आवश्यक है । इस सूत्र से मनुष्य समृद्धि के साथ जीता हुआ शांति का अनुभव करता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
अवश्य हमारे बड़े बुजुर्ग भी कहते हैं कि जहां क्लेश कंकाश है वहां लक्ष्मी का वास नहीं होता जहां शांति प्रेम क्षमा और संतोष है वही समृद्धि है !यदि किसी के ऐश्वर्य को देखकर दुखी होते हैं कि मेरे पास क्यों नहीं है अथवा किसी की धारणा दूसरे के लिए गलत होती है या क्रोध ,मन की अशांति, पल-पल झगड़ते हैं तो हमारा मन अशांत होने की वजह से कुछ दूसरा कार्य कर ही नहीं पाता एवं करने की सोच भी नहीं पाता !शांति रख यदी हम किसी चीज का समाधान ढूंढते हैं तो हम उस में अवश्य सफल होते हैं ! यह शांति पहले तो हमारे घर से ही मिलनी चाहिए सुबह काम पर व्यक्ति शांत चित्त से निकलता है बिना टेंशन के तो वह अपनी नौकरी में, व्यवसाय में ,एवं किसी के साथ प्रफुल्ल मन से रहता है तो अपने हर कार्य प्रणाली को वह बहुत ही सुदृढता से और विश्वास के साथ करने में सफल होता है फिर क्या व्यवसाय भी फलता फूलता है ! संबंध अच्छे रहते हैं और सबसे बड़ी बात आदमी का मन कहीं भटकता नहीं, घर में प्यार ही प्यार होता है ! लक्ष्मी की समृद्धि तो होती है साथ-साथ परिवार का सुख जो हमारी सबसे बड़ी समृद्धि होती है सदा रहती है !अब देश के लिए भी शांति की बात से समृद्धि का बढ़ना तय है तो आज मोदी जी ने शांति रख अपने व्यवहार और संयम से विदेशों से अपने व्यापार विस्तार को बढ़ाया है !आज हमारा देश संपन्नता और अपने विभिन्न क्षेत्रों की कार्यकुशलता चाहे वह टेक्निकल हो अथवा विज्ञान की ओर बढ़ता कदम हो सभी में आगे बढ़ रहा है ! कहते हैं ना शांति से किया गया कार्य और मीठे बोल कितना भी बलवान और कठोर हो उसे धराशायी कर देता है !
दंगे फसाद का विद्रोह , किसी महिलाओं पर हुए अत्याचार पर मृत्यु को प्राप्त महिला के लिए कैंडल मार्च करते हैं यानी हम शांति चाहते हैं और शांत रहकर हमें स्थिति का समाधान कैसे किया जाए इसके लिए समय मिलता है ! मन भी शांत हो जाता है क्रोध में हम गलत कदम उठा लेते हैं किंतु शांति से हल ढूंढने पर विनाश की ओर बढ़ते कदम रुक जाते हैं ,जानमाल के नुकसान से बच जाते हैं! यदि देश में सभी तरह से शांति हो तो विकास की तरफ बढ़ते कदम कोई नहीं रोक सकता और देश की समृद्धि तो बढ़नी ही बढ़नी है! अंत में कहूंगी जीवन में शांति से समृद्धि संभव है !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
जी हाँ , शांत चित्त से कोई भी कार्य किया जाए तो उसमें मनुष्य अवश्य सफल होता है । शान्त हृदय में परस्पर प्रेम विश्वास पनपता है जिससे सुख समृद्धि के द्वार स्वतः खुल जाते हैं । समृद्धि अर्थात जहाँ मानसिक शांति के साथ - साथ भोग विलास की वस्तुएँ भी भरपूर होतीं हैं जिनका उपयोग मनुष्य मिलजुल कर परिवार व समाज के साथ करता है । जहाँ कलह होता है वहाँ दरिद्रता का निवास होता है जहाँ शांति वहाँ लक्ष्मी स्थायी रूप से निवास करती हैं । विवेक पूर्ण आचरण जहाँ होता है वहाँ मानसिक शांति रहती है और व्यक्ति सही आचरण करते हुए जीवन के सब सुख भोगता है ।
जहाँ सुमति तहँ सम्पति नाना ।
जहाँ कुमति तहँ विपति निदाना ।।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
जहाँ कलह का समावेश हो,वहाँ हानि की वृद्धि।
विपरीत दिशा में घूम जाती ,वहाँ विवेक व बुद्धि।
गुस्सा छोड़ो, ईर्ष्या छोड़ो ,शांति से होती समृद्धि।
जहाँ समृद्धि वही पर ,विराजित होती ऋद्धि सिद्धि।
- पूनम रानी
कैथल - हरियाणा
समृद्धि यानि धन वैभव,सुख संपदा| यदि मनुष्य के पास भौतिक सुख उपलब्ध हैं लेकिन जीवन में मानसिक शांति नहीं है |कोई कितना भी समृद्ध हो लेकिन उसके जीवन में झगड़ा,कलह,अशांति व्याप्त है तो वह इस संसार में सबसे दुखी व्यक्ति है |अकसर देखा गया समृद्ध व्यक्तियों को शांति की तलाश में धार्मिक स्थानों के चक्कर लगाते |धन दौलत से सुख समृद्धि ख़रीदा जा सकता है लेकिन शांति |शांति अपने आप में एक ख़ज़ाना है|अत: शांति से आत्मिक समृद्धि मिल सकती है ,भौतिक नही |
- सविता गुप्ता
राँची - झारखंड
समृद्धि खुशहाली लाती है । प्रसन्न व्यक्ति तभी हो सकता है जब चित्त शांत हो । अगर शाब्दिक अर्थ देखें तो समृद्धि कभी न खत्म होने वाली लालसा है । जहाँ आपका मन संतोष से विचरता है, प्रसन्न रहता है तथा हर क्षण का आनंद लेता है वही स्वर्ग है। वहीं वह समृद्ध है ।
- संगीता गोविल
पटना -बिहार
सुख, समृद्धि और शांति ये शब्द एक - दूसरे के पूरक है। हमारे घर का माहौल अगर शांत है। आपस में एक दूसरे से प्रेम और सौहार्द से रहते हैं। तो हम शांति का अनुभव करते हैं, और जीवन पथ पर कार्य करते हुए आगे बढ़ने में सहायक होते हैं। परन्तु आजकल सामाजिक वातावरण बहुत अशांत हो गया है, जिसके कई कारण है। जैसे कि आपस में एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश करना, हर चीज जल्दी हासिल करने की होड़, इसके साथ ही पर्व त्योहार, शादी-ब्याह में दिखावे पर अत्यधिक खर्च करना अशांति का कारण है। अक्सर देखा गया है कि राजनीति में एक दूसरे पर कीचड़ उछालना, अपने फायदे के लिए दो गुटों को आपस में लड़वाना तथा भ्रष्टाचार , बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराध भी घर समाज और देश में अशांति फैलाते है, और विकास की गति में बाधा उत्पन्न करते हैं। इसलिए घर, समाज और देश को समृद्ध बनाने के लिए शांति स्थापित करना आवश्यक है।
- कल्याणी झा
राँची - झारखंड
जी हां समृद्धि शान्ति से ही सम्भव है और शान्ति के लिए युद्ध आवश्यक है।जिसका इतिहास ही नहीं बल्कि धार्मिक ग्रंथ भी साक्षी हैं।जैसे कि त्रेता युग में श्री राम जी शान्ति से अपना वनवास काटना चाहते थे।किन्तु 16 कला सम्पन्न महापंडित राजा रावण माता सीता का हरन कर शान्ति भंग कर गया।जिसके कारण युद्ध हुआ और श्रीलंका भारत का भूभाग बना।जो समृद्धि का चिन्ह है। द्वापर युग की बात करें तो पांडव शान्ति से मात्र पांच गांव कौरवों से मांग रहे थे।परंतु उन्होंने नहीं दिए।जबकि श्रीकृष्ण जी शान्ति दूत भी बने।मगर कौरव नहीं माने थे।युद्ध से पहले अर्जुन द्वारा युद्ध से इन्कार करने पर श्रीकृष्ण जी द्वारा ईश्वरीय स्वरूप में गीता का उपदेश दिया गया।जिसका समृद्धि के रूप में सृजन हुआ।जो आज भी व्याकुल मन की शान्ति का प्रतीक है।
भारत द्वारा निरंतर शान्ति का राग अलापने पर पड़ोसी देश चीन ने 1962 में आक्रमण कर शिक्षा दी थी।जिससे भारत की समृद्धि सम्भव हुई।जिसके आधार पर 1965, 1971 एवं कारगिल युद्ध में विजयी होकर भारत ने विश्व में अपना तिरंगा झंडा ऊंचा लहराया था। फलस्वरूप विश्व के सर्वशक्तिमान राष्ट्र अमरीका के राष्ट्रपति ट्रंप आज भारत माता के सम्माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समीप आने को तरस रहे हैं।जो समृद्धि के स्पष्ट संकेत हैं कि भारत सर्वशक्तिमान राष्ट्र बनने की दौड़ में अग्रसर है।सम्माननीयों जय हिंद
- इंदु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
" मेरी दृष्टि में " समृद्धि का रहस्य शान्ति है । बिना शान्ति के समृद्धि सम्भव नहीं है । समृद्धि शान्त मन का उपहार है । जिससे हम तरक्की कहते हैं । जो जीवन की उपलब्धि मानीं जाती है । अतः यही शान्ति से समृद्धि का रहस्य है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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