कर्म की सफलता का मूल - मंत्र क्या है ?
कर्म का संघर्ष ही सफलता है । जिसके लिए मार्गदर्शन भी आवश्यक है । जितना बड़ा संघर्ष , उतनी बड़ी सफलता प्राप्त होती है । यही कर्म की सफलता का मूलमंत्र कहा जाता है । फिर लोगों के विचारों में विभिन्नता देखने को मिलती है । इस का लाभ भी होता है । जो संघर्ष के समय काम आता है । यही " आज की चर्चा " का विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
कर्म की सफलता का मूल मंत्र परिश्रम है ।परिश्रम के बिना कुछ भी संभव नहीं है कर्म और परिश्रम एक दूसरे के पूरक है जिस तरह खरे सिक्के सोने की तरह है जिनका मूल कभी नहीं घटता "जहां चाह वहां राह" हिलेरी और तेनजिंग उदाहरण है । उन्होंने खतरनाक कठिनाइयों का सामना करते हुए संसार के सर्वोत्तम शिखर एवरेस्ट पर विजय प्राप्त की लगन के बल पर ही महामूर्ख कालिदास एक प्रकांड विद्वान महान साहित्यकार और विक्रमादित्य के दरबार में नवरत्न बने परिश्रम के बल पर ही चांद पर विजय संभव हुई हरित क्रांति , महामारी का विनाश ,संचार, चिकित्सा आदि क्षेत्रों में क्रांति हुई। कर्मवीर ही मानवता के कर्णधार होते हैं उनके पसीने को सुगंध से ही हमारी संस्कृति और सभ्यता में महक है।
प्रकृति भी इसका उदाहरण है ।सूरज भी खुद जलकर औरों को रोशनी देता है।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्यप्रदेश
कर्म की सफलता मूलतः हमारे उद्देश्य, लक्ष्य एवं आत्मविश्वास और हमारे विचार के अनुसार मिलता है! बिना कर्म के तो जीवन ही व्यर्थ है! प्रकृति का नियम है जो पृथ्वी पर आया है उसे कर्म तो करना ही पड़ेगा,! देखना यह है आप अपने कर्म की सफलता कैसे प्राप्त करते हैं! एक कर्मठ इंसान अपने जिस उद्देश्य को लेकर चलता है, उसे वह बहुत ही इमानदारी, लगन, मेहनत एवं आत्मविश्वास और सद विचारों के साथ पूर्ण करने की सोचता है !कार्य शुरु करने से पहले वह यह नहीं सोचता कि मैं अपने कर्म में अथवा जिस लक्ष को लेकर मैं चल रहा हूं उसमे सफलता मिलेगी या नहीं! प्रभु कृष्ण ने भी कहा है "फल की इच्छा न करें कर्म करते जाओ "
अपने कर्म के अनुसार फल तो मिलना ही है फिर अच्छे कर्म क्यों ना करें! किसी भी उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए जब हम कर्म करते हैं तो हमारा परिऋम, लगन, भावनाएं एवं आत्मविश्वास को लगाकर हम शतप्रतिशत सफलता प्राप्ति की आशा रखते हैं किंतु ,यदि इसके साथ हम अंधविश्वास, ईष्या, अनैतिकता भरे विचारों का त्याग कर कर्म करते हैं तो हमें बिन मांगे ही अच्छा फल प्राप्त होता है यानिकी पूर्ण सफलता का फल..... वो कहते हैं ना --"जैसा बोओगे वैसा पाओगे"
अतः कर्म की सफलता का मूलमंत्र आत्मविश्वास, परिऋम, एवं विचार है!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
अवश्य ही कर्म सफलता का मूल मंत्र है। कर्म ही हमारी पूजा है। बिना कर्म के फल की प्राप्ति असंभव है। एक साधक बनकर जब हम कर्म की साधना करते हैं तभी हमें इच्छित फल की प्राप्ति होती है। आत्मविश्वास और दृढ़संकल्प के साथ किया गया कर्म हमें अवश्य ही अपनी मंजिल तक पहुँचाता है।
- रूणा रश्मि
राँची - झारखंड
कर्म की सफलता का मूल मंत्र है आत्मविश्वास ।जब हमें अपनी मेहनत पर भरोसा होता है तो सफलता स्वयं हमारे कदम चूमती है ।कर्मठ व्यक्ति कभी नहीं थकता ना ही हिम्मत हारता है ।वह अपने कर्म पर निरंतर परिश्रम करता है ।उसका लक्ष्य निर्धारित होता है ।साथ ही ऐसे व्यक्ति अनुशासित, स्वावलंबी, स्वनियंत्रित और स्वाभिमानी होते हैं ।उन्हें अपने किए कर्म पर पूरा भरोसा होता है। तभी वह सफलता हासिल करता है ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
कर्म की सफलता का मूल मंत्र है.. "कर्म ही पूजा" "कर्म ही विश्वास"हमारे कर्मों के आधार पर ही हमारी दिशा और दशा तय होती है। कर्म बिन जीवन ऐसा है। जैसा "जल बिन मछली" इस सृष्टि में जितने भी मानव पशु-पक्षी आदि है।उन सभी को परमात्मा ने अलग-अलग कर्म हेतु। सृष्टि का सृजन करने का दायित्व दिया है। हम अति भाग्यशाली हैं, कि हमें मनुष्य रूप में जन्म मिला है। हमें अपने मानव धर्म और कर्म के आधार पर ही कर्म कर परिवार, समाज, देश को एक सही दिशा देने के लिए कर्म करना जरूरी है। और प्रत्येक व्यक्ति को कर्म के अनुरूप ही सफलता की प्राप्ति होती है। सफलता का मूल मंत्र कर्म ही है। बिना कर्म के जीवन निर्जीव प्राणी की तरह होता है। जिसका कोई लक्ष्य,उद्देश्य नहीं होता। ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को या हर प्राणी को अपने कर्मों के अनुरूप ही निहित सफलता प्राप्त होती है। कर्म ही सृष्टि सृजन का एक अंग है।अतः सफलता का मूल मंत्र कर्म ही है।
- वंदना पुणतांबेकर
इंदौर - मध्यप्रदेश
कर्म ही सफलता का मूलमंत्र है गीता में भी कृष्ण ने अर्जुन से कर्म करते जाओ फल की इच्छा मत करो , कर्म पर पूरी गीता है हमारे जीवन में कर्म का ही महत्व है हमारे कर्म ही हमारा भाग्य लिखते है । व्यक्ति का आचरण एवं उसके कर्म ही उसकी पहचान होते हैं। यदि हम दूसरों के हृदय में स्थायी जगह चाहते हैं तो इसका आधार हमारे ईमानदारीपूर्ण कर्म ही हो सकते हैं। महज शब्दों द्वारा अपनत्व बताना रेत पर बनी लकीरों की तरह होता है जिन्हें हर आती-जाती सागर की लहर बनाती-मिटाती रहती है। पर कर्म पाषाण पर उकेरी आकृति की तरह होता, जो एक स्थायी स्मृति बन जाता है।
हमेशा हमें कर्म के साथ साकारात्मकसोच को रखना होगा
अंधेरे में रास्ता दिखाने हेतु एक दीपक पर्याप्त होता है। आशावाद के जहाज पर चढ़कर हम मुसीबतों एवं समस्याओं के तूफानों से उफनते असफलताओं के महासागर को भी पार कर सकते हैं। कर्म करते रहना ही सफलता की सिढी है ।
कोई भी व्यक्ति जीवन में सफल तभी होता है जब वो अपने लक्ष्य का निर्धारण करता है. बिना लक्ष्य साधे निशाना सही जगह नहीं लगता है और व्यक्ति को असफलता ही हाथ लगती है. लोभ-लोलच में आकर कई बार आदमी रास्ते से भटक जाता है. लेकिन जो व्यकित मेहनत के बल पर बिना लालच के कर्म करता है, सफलता उसी को मिलती है.कर्म ही सफलता का एक मात्र पर्याय है । कर्म करने वाला इंसान सफल होता है ।
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - राजस्थान
जिस प्रकार पूजा ,ध्यान से हमें ईश्वर के क़रीब पहुँचने की अनुभूति होती है |हमें आत्मसंतुष्टि मिलती है |उसी प्रकार कोई भी काम करते समय अपना शतप्रतिशत लगाएँ तो सफलता देर हो या सबेर अवश्य मिलती है|जो व्यक्ति अपना काम ईमानदारी और सच्ची निष्ठा से करता है तो सफलता उसकी क़दम चूमती है|टाल मटोल या बेमन से किए कार्य कभी फलीभूत नहीं होते |
Work is worship यानि कर्म ही पूजा का मूलमंत्र को आत्मसात् करके ही हम सफलता का परचम लहरा सकते हैं |जमीन पर खड़े होकर देखने से पहाड़ पर नहीं चढ़ सकते उसके लिए चढ़ाई चढ़ना पड़ता है|तभी हम चोटी तक पहुँच सकते हैं |वैसे ही जीवन में सफल होने के लिए सही रास्ता ,दृढ़ इच्छाशक्ति ,परिश्रम के पथ पर चलने से सफलता ज़रूर मिलती है |
- सविता गुप्ता
राँची - झारखंड
कर्म की सफलता का मूल मंत्र है व्यक्ति का सच्चे मन से प्रयास . ईमानदारी से किया गया परिश्रम भी कर्म की सफलता निर्धारित करता है . इंसान को बिना फल की इच्छा के कर्म करना चाहिए क्यूंकि जैसे कर्म होंगे वैसा ही फल होगा . यही सच्चाई है व गीता का ज्ञान भी .
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
कर्म की सफलता का मूल परिश्रम है जो कि कैसे किया गया है ।कर्म की निरन्तरता व सही दिशा कई बार भाग्य की दिशा बदल देती है ।हम कठिन से कठिन लक्ष्य को भी अपने कर्म से पा ही लेते हैं ।अतः हमें श्रम को कभी न छोड़ना चाहिए ।
- शशांक मिश्र भारती
शाहजहांपुर -उत्तर प्रदेश
तुलसीदास जी ने मानस में लिखा है -
*सकल पदारथ हैं जग माहीं। करम हीन नर पावत नाहीं ।*
ये सत्य है कि कर्म के बिना कुछ भी नहीं मिलता परन्तु केवल कर्म ही आपको सफल नहीं बना सकता है । बहुत से ऐसे लोग है जो मेहनत करते हैं पर सफलता के पर्याय नहीं कहलाते । सफल व्यक्ति में निम्नलिखित गुण होते हैं -
लगनशीलता
आत्मविश्वास
एकाग्रता
दृढ़ परिश्रमी
कर्तव्यनिष्ठ
कृतज्ञता
इन सबमें लगनशीलता का गुण सबसे महत्वपूर्ण है । आप सभी ने बचपन में खरगोश और कछुआ की कहानी सुनी होगी कि कैसे लगातार बिना रुके चल कर कछुआ तेज चलने वाले खरगोश से जीत जाता है । कारण साफ है चूँकि कछुआ एकाग्रता से लगनशील रहा अतः वह सफल हुआ ।
आइये एक और उदाहरण देखते हैं कि माउंटेनमैन कहलाने वाले दशरथ मांझी ने अपने दम पर कैसे पर्वत का सीना चीर कर सड़क का निर्माण किया । बिहार राज्य के गया जिले के गहलौर गांव के एक मजदूर ने हथौड़ा और छेनी से अकेले ही 360 फुट लंबे, 30 फुट चौड़े और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काट कर एक सड़क बना डाली। ऐसा करने में उन्हें 22 वर्ष लगे । उनके द्वारा बनायी सड़क से अतरी और वजीरगंज ब्लाक की दूरी 55 किमी से घट कर 15 किलोमीटर हो गयी । क्या इन 22 वर्षों में उनका मन विचलित नहीं हुआ होगा पर उन्होंने कर्म के प्रति लगनशीलता नहीं छोड़ी और अन्ततः सफलता के पर्याय बनें और हम सबके प्रेरक । इतिहास ऐसे ही अनेको उदाहरणों से भरा पड़ा है । अतः हम कह सकते हैं कि लगन शीलता ही कर्म की सफलता का मूल मंत्र है ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
जी हाँ ! , मेहनत , ईमानदारी , लगन , सत्संगति , प्रेरणा कर्म की सफलता का होता मूलमंत्र
भारतीय मनीषियों , भारतीय दर्शन , भारतीय चिंतन में कर्म करने को श्रेष्ठ बताया है । हमारा हर कर्म किसी न किसी के फल से जुड़ा है । हर चेतना हर प्राणी संसार में अपने कर्मों का फल भोगने के लिए जन्म लेता है । कहा भी है -जैसी करनी वैसी भरनी ।वर्तमान में व्यक्ति को अपने कर्मों का मिलता है । कोई प्रधानमंत्री बनता है । तो कोई सफाई कर्मचारी बनताः है ।कर्म 2 प्रकार के हैं । अशुभ कर्म और शुभ कर्म । अशुभ कर्म से प्रतिकूलता मिलती है । शुभ कर्म से अनुकूलता होती है । अगर हम गलत कार्य करते हैं तो हमारी आत्मा उसे न करने को कहती है । जबकि मन नहीं कहता है मानव को अपनी करनी से सुख -दुख मिलता है । सिद्ध मानव गलत काम करने की सोचेंगे नहीं । संचित कर्मों से हमारा भाग्य बनता है । पूरे संसार की चेतनाओं का प्रारब्ध के अनुसार फल भुगतना पड़ता है । आज संक्रांत का शुभ दिन है । लाखो भिखारी सड़को पर बैठे भीख मांग रहे हैं । यह अशुभ कर्म का फल ही है । एक वे लोग जो इन्हें दान देते हैं । उनके शुभ कर्म को दर्शाता है । परिश्रम तथा कर्म की महत्ता बताते हए गीता में प्रभु श्री कृष्ण ने कहा -
" कर्मण्येवाधिकारस्ते, मा फलेषु कदाचना "
अर्थात कर्म करते जाओ ।फल की चिंता मत करो ।
परिश्रमी व्यक्ति अपने सकारात्मक , विधायक भावों से अपने सपनों को साकार करते हैं । वे सफलता का आसमान को छूते हैं । मैं कह सकती हूँ कि कर्म यानी परिश्रम सफलता का मूलमंत्र है । परिश्रम से ही अपने भाग्य को बदल सकते हैं ।
परिश्रमी व्यक्ति ही नित्य नए देश समाज , विश्व और अपने लिए प्रतिमान गढ़ते हैं । आलंपिक खेलों में कितने रिकार्ड बनते हैं और टूटते हैं । कहते हैं लक्ष्मी पुरुषार्थी व्यक्ति के यहाँ लक्ष्मी टिकी रहती है । रघुवंश इसका उदाहरण है ।
कर्म की सफलता हमारे परिश्रम , आत्मविश्वास , आत्मशक्ति , दृढ़निश्चय , गतिशीलता , समर्पण पर टिकी है ।
संस्कृत में कहा है - " सुप्तस्य सिंहस्य न प्रविष्यति मुखे मृगा । " अर्थात सोते हुए शेर के मुंह में हिरण प्रवेश नहीं होता है । सिंह को शिकार करने के जंगल में जाना ही पड़ेगा ।
जो परिश्रम करता है। उसे मीठा फल मिलता है ।मन आनन्दित रहता है । साकारत्मकता का भाव चेहरे से झलकता है । पूरा ब्रह्मांड गतिमान है । सदियों से हरी -भरी प्रकृति अनवरत अपना काम कर रही है ।शुभ कर्म से किया कर्म हमारे शारीरिक , मानसिक सुस्वास्थ्य का जन्मदाता है ।
कहा भी है कि जैसा करोगे वैसा भरोगे । कितना आसान उक्ति है । क्या आज का मानव इसे समझ पा रहा है ?
मन,वचन,कर्म से जिसके प्रति सोचते हैं । वैसा ही फल मिलता है । हमारे राष्ट्रपति मा अबब्दुल कलाम के कर्मों से सारी दुनिया परिचित हैं । वे महामानव थे । आखिरी समय भी विद्यार्थियों को अपना ज्ञान बाँटते रहे ।मौत ने भी उन्हें हँसते हुए गला लगाया । पलभर में उनके प्राण निकल गए ।
जब तक हम बहते रहेंगे । हम गतिशील बने रहेंगे । आलसी व्यक्ति तो म्रुत्यु के सामान है । उक्ति है " दैव- दैव
आलसी पुकारा । "
आलसी के लिए यह भी दोहा है -
" अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम ।
दासमूलका कह गए , सबके दाता राम ।"
इसलिए मैंने तो चैरेवती के सुकर्म प्रधान के मूलमंत्र को अपने जीवन में अपनाया है । जिसका परिणाम सुखद मिला है । आप सबके समक्ष भी है । अंत में मैं अपने दोहे में कहती हूँ -
उद्यम से हार भी है , सच में जाती भाग ।
स्वास्थ्य जीवन सृजन का , गाती प्यारा राग ।
- डॉ मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
दृढ़ संकल्प, पक्का इरादा, कड़ी मेहनत,सच्ची लगन,परिपक्व ज्ञान, सहृदयता, सौहार्दपूर्ण व्यवहार, सच्चरित्रता इन सबके समन्वय से सफलता भी मिलती है ,मान और यश भी मिलता है। जीवन की सार्थकता भी यही कहलाती है और कर्म का मूल मंत्र भी यही होता है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
कर्म की सफलता का एक ही मूल मंत्र है भगीरथ प्रयास यानी कठिन और निरंतर परिश्रम। अपने ऊपर दृढ़ आत्मविश्वास हो, दृढ़ इच्छाशक्ति हो, एकाग्रता के साथ पूर्ण समर्पण के भाव से अपने कर्म के प्रति समर्पित होकर सतत परिश्रम करने की संकल्पशक्ति हो... तो कोई ताकत, कोई बाधा कर्म की सफलता को रोक नहीं सकती। कर्म जब निष्काम और निस्वार्थ भाव से किया जाता है तो वह ईश्वरीय कर्म हो जाता है। तब वह कार्य अवश्य सफल होता है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
वांछित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु व्यक्ति कर्म करता है और सफलता के लिए लगातार प्रयास करता है फिर भी सफलता संदिग्ध होती है .सफलता के लिए -1 अच्छा सोचे "यथाः भावम तथा भवतु l"ऊँचा लक्ष्य रखें ,सृजनात्मक सोचे ,सकारात्मक सोचे .
2 उचित मार्ग दर्शन प्राप्त करें क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति कर्म पथ पर कंफ्यूस होता है ऐसेमें उचित कृष्ण रूपी मार्ग दर्शककी आपको आवश्यकता होगी .
3 कर्म पथ पर आगे बढिये ,काम कीजिये ,कुछ करिये .विज्ञान का भी नियम है कि -बिना कुछ किये कुछ नहीं होता है .बिना गति के तो सदगति भी नहीं होती है .
जब करने लगो तो प्रेरणा लें हनुमान जी महाराज से .हनुमान जी ने पूरा जीवन कर्म किया बिना बहाना बनाये .रातों रात संजीवनी लानी थी .विकट समस्याओं का निवारण करते संजीवनी बूटी लेकर आ ही गए . हमारा समय और जीवन अनमोल है .सफल व्यक्ति अपनी कमियों को पहचानते हैं और शक्तियों को बढ़ाते हैं -हारने के लिए नहीं ,जीतने के लिए खेलें .लक्ष्य प्राप्ति के लिए मन में आतुरता हो ,अनुशासन हो और कार्य की समीक्षा भी करें .कामयाबी के लिए मेहनत एवं एकाग्रता की नितांत आवश्यक है .प्रबल इच्छा शक्ति कर्म में सफलता की मूल धुरी है .कहा भी गयाहै कि -जिसे आप दिल से चाहते हैं उसे दिलाने में पूरी की पूरी कायनात आपके साथ लग जाती है .आप सफल होना चाहते हो लेकिन कामयाबी आप सेदूर है तो ऐसे समय में दोस्त ,प्यार और रिश्ते भी आपका साथ छोड़ देते हैं तब दो प्रकार के व्यक्ति पैदा होते हैं -एक वे जो टूट जाते हैं ,दूसरे वे होते हैं जो दुनियाँ को बदल देते हैं .अपने आपको पहचानिये .टुटो मत परिवार ने साथ छोड़ा है ,आपके परमात्मा ने साथ नहीं छोड़ा है .कमियों को तलाशे ,अपने आप को तराशे .सफलता आपके कदमों में होगी .शेर अर्ज है -हाथों की लकीरों पर मत जा ए "ग़ालिब "
किस्मत उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते .
कितना ख़ौफ़ होता है शाम के उन अंधेरों में
पूंछ उन परिंदों से जिनके घर भी नहीं होते .
अंत में -सफलता का मूल मंत्र
कर्म किये जा ,फल की इच्छा मत कर रे इंसान
जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान
ये है गीता का ज्ञान ,ये है गीता का ज्ञान .
- डाँ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
व्यक्ति की कर्म के प्रति दृढ़ निश्चयता, लग्न एवं अथक परिश्रम। इनके द्वारा कर्म प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अबाध गति से सफलता के शिखर पर दृश्य मान होता है यथा--- एवरेस्ट विजेता, पक्षियों द्वारा भी, काक -पिपासा, नीड- निर्माणम इत्यादि। इसके साथ ही जब कर्म का उद्देश्य और उसकी सार्थकता का बोध हो जाता है तो स्वयं की उत्कृष्टता (आत्मिक शांति) उसे पुरस्कृत करने लगती है। इसके विपरीत तो ---" छलनी में दूध दुहना और कर्म को टटोलना"। हास्यास्पद एवं असफलतादायक ही तो होगा।
- डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
दृढ़ निश्चयी,आत्म विश्वासी, लगनशील, परिश्रम जैसे सदगुण ही कर्म की सफलता का मूलमन्त्र कहलाते हैं |इन्हीं सब गुणों को अपनाने वाले व्यक्ति को सफलता पग, पग पर प्राप्त होती है | जो व्यक्ति जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल होना चाहते हैं उन्हें सफलता प्राप्त करने के लिए हाथ में लिये गए कार्य के प्रति मन में जुनून जगाना होगा | इतिहास गवाह है कि अपने कर्तव्य कर्मो को निष्ठापूर्वक नियमित करने वाले व्यक्ति सफलता की नवीन ऊँचाइयों के सोपान चढते चले जाते हैं |
- सीमा गर्ग मंजरी
मेरठ - उत्तर प्रदेश
कर्म की सफलता का मूलमंत्र है कर्तव्य करना । कर्म के लिए लगन, दृढ़ता और विधि का पता होना भी जरूरी है । अच्छे कर्म में तो देवता भी सहायता करते हैं । कर्म करना अपना धर्म है सफलता तो भविष्य बताएगा ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
सफलता के लिए सर्वप्रथम लक्ष्य निर्धारित कर दृढ़ निश्चय के साथ कठोर परिश्रम करना, संयम रख कर उतावलेपन से बचना, जिस कार्य को करने जा रहे हैं उसकी जानकारी रखते हुए धीरे-धीरे उसमें दक्षता हासिल करना, असफल होने पर धैर्य के साथ पुनः प्रयास करना, कार्य को सावधानी पूर्वक संपन्न करना, जो किया अथवा करने जा रहे हैं उसे स्मृति पटल पर रखना और जो भी करने जा रहे हैं गहन सोच-विचार करना आवश्यक है क्योंकि--
" बिना विचारे जो करे सो पाछै पछिताय । काम बिगाड़ै आपणौ जग में होत हंसाय ।।"
- बसन्ती पंवार
जोधपुर - राजस्थान
कर्म करने के बाद ही सफलता की उम्मीद जागता हैं। कर्म ही सफलता की कुंजी हैं। मेहनत लगन से की गई कर्म ही फलदायी होती हैं। व्यक्ति को ईमानदारी से कर्म करना चाहिए ,तभी सफलता आपकी कदम चूमेगी।
- प्रेमलता सिंह
पटना - बिहार
" मेरी दृष्टि में " कर्म की सफलता का मूलमंत्र तो संघर्ष है दूसरा कानूनी रूप से उचित होना चाहिए । बाकी किसी अनुभवी का मार्गदर्शन हो तो सफलता निश्चित हो जाती है ।ऐसा कुछ कहा जा सकता है । कहने में तो सफलता में भाग्य की भी भूमिका होती है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
पानीपत साहित्य अकादमी
द्वारा
कवि सम्मेलन - 2009 के अवसर पर
मुख्य अतिथि : श्री गौतम सिगला
अकादमी अध्यक्ष : मदन मोहन ' मोहन '
कवि : प्रकाश सूना
अकादमी संस्थापक : बीजेन्द्र जैमिनी
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