लॉक डाउन में अपने आस - पास जरूरतमंद के लिए खाने की व्यवस्था अवश्य करें

लॉक डाउन में सबसे अधिक समस्या गरीबों पर आई है । जो रोज कमातें हैं या आय बहुत सीमित है । ऐसे लोगों की सहायता अपने आसपास अवश्य करनी चाहिए । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को भी देखते हैं : -
 कोरोना वायरस ने विश्व में ऐसी तहलका मचा दिया है की कितने लोग दुख से मर रहे हैं कुछ लोग भूखे होकर जिंदगी  झेल रहे हैं ।  सभी तरफ समस्याएं ही समस्याएं दिखाई दे रही है इन समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए सिर्फ सरकार ,समाज सेवी संस्था एवं अन्य संस्था की ही जिम्मेदारी नहीं है ।हम मानव हैं मानव की भी जिम्मेदारी है कि मानव का काम आए। कहा गया है जिसके पास जो होता है वही बाटता है। दुखी , दुख बाट़ता है ।सुखी ,सुख बाट़ता है। दुख बांटने वाले तो बाँट गए। अब हम मानव की बारी है सुख बांटने की अतः अपने आसपास जरूरतमंद व्यक्ति को अवश्य सहायता  करना है यही मानवीयता है। अभी की परिस्थिति में देखें तो सबसे अधिक आर्थिक और मानसिक टेंशन गरीब वर्ग के लोगों को है जो रोजी-रोटी पर ही अपना जीवन काटते हैं ऐसे लोग इस घटना से अधिक प्रभावित हैं उन्हीं लोगों को हमसे जितना बन पड़ता है अपने हैसियत के अनुसार जो भी उनको आवश्यकता है उनकी सहयोग करे। यही हमारा मानव धर्म है इससे बड़ा और कोई धर्म नहीं है मानव प्रकृति से लेता ही रहता है। प्रकृति को कुछ देता नहीं है अतः देने का काम मानव के साथ होता है अतः हर इंसान को अपने मन तन धन का सदुपयोग इस विषम परिस्थिति में करें ताकि हम भी अपने मानव जाति के लिए कुछ कर पाए ऐसे संतुष्टि के भाव के साथ यथाशक्ति के अनुसार सहयोग करें यह हमारी भारतीय संस्कृति की प्रवृत्ति है इस संस्कृति को बनाए रखते हुए आए हम जरूरतमंद लोगों को सहयोग करें एवं उन्हें ढांढस बनाएं अपने कि अपने पराए की दीवार खत्म करें अपनत्व का भाव एक दूसरे में भरे अभी विषम परिस्थिति में इसी की आवश्यकता है ।
 धनवान उसी को कहते हैं,
  जो धन दूसरों के काम आय।
  धनवान तो  संसार में कितने हैं,
 जो गरीबों का शोषण कर खाय।
    मानवीयता में जीने वाले इंसान हैं अभी शोषण नहीं पोषण की आवश्यकता है अतः अपने धन का उपयोग पोषण के अर्थ में जरूरतमंद भूखे प्यासे हमारे मानव बंधुओं का सहयोग करो।
 इसका प्रतिफल आपको आज नहीं तो कल जरूर मिलेगा क्योंकि जो सुख पहुंचाता है वही व्यक्ति सुख का अधिकारी होता है जो दुख पहुंचाता है वह व्यक्ति दुख का अधिकारी होता है अतः हम सुखी होकर अर्थात खुश हो कर हमारे मुसीबत में फंसे हुए लोगों का सहयोग करें।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
जी हाँ , अन्न दान सबसे बड़ा महादान है । लाकडाउन के समय कोरोना जैसे संकट में हमारा राष्ट्रीय धर्म , कर्तव्य है कि हम भूखों को भोजन कराएँ । हमारे आसपास के  गरीब , वंचित,  मजदूर वर्ग , असहाय , दिव्यांग आदि लोग  जो मजबूरी में अपने लिए आर्थिक रूप से तंगी होने के कारण , अन्य कारण , कहीं फंसे होने की वजह से वे अपने लिए खाने की व्यवस्था नहीं कर पा रहे हैं । ऐसे में होटल , ढावे , टपरी , चाय की दुकानें बंद पड़ी हैं ।
तब हम मानवता के लिए हम उन्हें भोजन , चाय , नाश्ता आदि देना चाहिए ।
बुजुर्ग लोगों , निराश्रित व्यक्तियों , अनाथों की हेल्प लाइन से नमंबर ले के भी हम उनकी जरूरतों में सहायता कर सकते हैं ।
वसुधैव कुटुम्बकम की संस्कृति को मानने वाले भारत में 
 पूरे भारत में सामाजिक , धार्मिक संस्थाएं , संगठन , व्यक्तिगत लोग ,  भोजन खिलाने की सेवा में लगे हुए हैं । भोजनालय में हर तबक़ा अपने , अपने हिसाब से जैसे सब्जी काटने , आटा गूंदने , पूरी बनाने आदि में मदद करने में लगा है ।
हमारी सोसाइटी में वाचमैन  को लाकडाउन की वजह से 
भोजन , चाय आदि की असुविधा हो रही थी । हम सब लोगों ने उसकी खाने व्यवस्था कर समस्या का समाधान किया । 
हमारे नगर सेवक ने हेल्प लाइन नमंबर भी दिया है ।जो व्यक्ति या संस्था जो तैयार भोजन , राशन , फल , सब्जी आदि देना चाहता है तो इन नम्बरों पर मदद कर सकता है ।
मुंबई , नवी मुंबई में शेल्टर होम , रेन -  बसेरे बने हैं ।
उनमें  लोग जी खोल के खाने - पीने की सेवाएँ दे रहे हैं ।
ये लोग आपदा के समय इंसानियत को जिंदा रखे हुए हैं । 
कोई भी मजबूर व्यक्ति भूखा नहीं सो सके ।
वाशी में व्यापारी संघ ने 2 हजार खाने के पैकेट की व्यवस्था  जारी है । जिन्हें जरूरतमंदों तक भेजा जा रहा है । हॉस्टलों में रह रहे  छात्र - छात्रों , कर्मचारियों को भी
भोजन उपलब्ध करवा रहे हैं ।
आज पूरा संसार भारत की विविधता एकता को देख रहा है । जहाँ अमीर -गरीब , छोटे - बड़े , जाति आदि भेदभाव नजर नहीं आता है ।  भारत की शक्ति सामूहिकता में है , संगठन में है । 
युद्ध स्तर पर आयी कोरोना महामारी में हर नागरिक  , मंत्री से लेकर संत्री तक हर कोई अपना भोजन , अन्न दान से कर्तव्य निभा के  राष्ट्रीय धर्म निभा रहा है । 
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
कोरोना के भय से, अचानक लाक डाउन से हमारे देश वासी भाई बहन संकट के दौर से गुजर रहे है। ऐसे समय मे हमे गरीब भाई बहनो की जरूरतो  को पूरा करना चाहिए। "भूखो को भोजन कराना चाहिए"मानव धर्म यही बताता है। कुछ नर पिशाच तो शासन व्दारा दी गई सहायता  भी हड़प जाते है । इस समय जहा है वही अपने पास बालो का ध्यान रखे। इस पुनीत कार्य मे सहायक बनकर मानव धर्म निभाए।
- बालकृष्ण पचौरी
भिण्ड - मध्यप्रदेश
लॉक डाउन के वजह से सबसे अधिक हमारे देश का गरीब वर्ग प्रभावित हुआ है,जिनकी रोजी रोटी प्रतिदिन काम के ऊपर निर्धारित होती है,जिन्हें हम दैनिक श्रमिक कहते है।सब बंद होने की वजह से घर मे बैठना पड़ रहा है।ऐसी महामारी की स्थिति में हमारा देश एकजूट होकर लोंगो की मदद कर रहा है।केंद्र सरकार,राज्य सरकारें,प्रशासन सभी अपने स्तर पर मदद को लगें हैं परन्तु अभी प्रत्येक नागरिक को इसके प्रति संवदेनशील होते हुए मदद को आगे आना पड़ेगा ।इसकी पहल करते हुए सबसे पहले जो हमारे घरों में दैनिक कार्य के  लिए आते है उनके लिए हमे खाने की व्यस्था  करनी चाहिये ।कभी कभार इस लॉक डाउन की स्थिति में भी घर के बाहर खाना मांगने के लिये आवाज़ सुनाई दे जाती है ।ऐसे में हमारा फ़र्ज़ है एहतियात बरतते हुए उन्हें खाना दे पर उन्हें यह भी बताएं की अभी घर से बाहर न निकले ,आप उनके रहने का स्थान पता कर लें और जो शहर में सामाजिक संस्थाएं मदद कर रही हैं, उन्हें फोन द्वारा इतला करके उस क्षेत्र में खाने की व्यवस्था करवा दें ।कोई भूखा न सोये ऐसी हमारी प्रतिज्ञा होऔर इस प्रतिज्ञा को पूरे सच्चे मन से निभाएं।
अंत मे यह कहना चाहूंगी की किसी जरूरत मंद को खाना खिलाने से बड़ा कोई उपकार नहीं है ।
- ज्योति वाजपेयी
अजमेर - राजस्थान
लॉकडाउन के समय हमें अपने आस पास के जरूरतमंद की खाने की व्यवस्था अवश्य करनी चाहिए क्योंकि हम वसुधैव कुटुम्बकम की भावना का पालन करते हुए आये है जिसका सीधा सा अर्थ है सम्पूर्ण पृथ्वी ही हमारा कुटुम्ब है और कुटुम्ब का प्रत्येक व्यक्ति परिवार का सदस्य होता है अतः हमारे आस पास के जरूरतमंद भी हमारे परिवार के सदस्यों की भाति ही है। इसलिए हमारा दायित्व है कि उन लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था करे। 
साथ ही न केवल मनुष्यो के लिए वरन पशु पशियो के लिए भी हमे ध्यान रखना जरुरी है।
आजकल पशु पक्षी भी भोजन के लिये परेशान दिखाई दे रहे है इसलिए उनके भोजन की व्यवस्था भी हमें ही करनी होगी क्योंकि ये बेजुबान तो अपने मुंह से मांग कर भी नहीं खा सकते।
- विभोर अग्रवाल 
धामपुर -उत्तर प्रदेश
लाकडाउन के समय दूसरों की मदद अवश्य करनी चाहिए
दूसरों की मदद करना हर मानव का पहला धर्म और कर्तव्य है।
यही सच्ची पूजा है
एक गाना याद आ गया है
तुम एक पैसा दोगे वो दस लाख देगा
मदद मांगी नहीं जाती मदद आगे बढ़कर की जाती है
आसपास के वातावरण के प्रति हमेशा चौकन्ना और सावधान रहना है।किसी को भोजन दवा या अन्य सहयोग की आवश्यकता हो उस के लिए तत्पर रहना ही तो मदद होगी।
भावनात्मक , संवेदनशीलता होना हीं तो मानव धर्म  है
- डाँ .कुमकुम वेदसेन 
मुम्बई - महाराष्ट्र
लॉक डाउन के चलते अपने आस-पास ज़रूरतमंदों के लिए खाने की व्यवस्था अवश्य करें - *वास्तव में ये ऐसा समय है जब हम नर सेवा नारायण सेवा को ध्यान में रखते हुए ज़रूरतमंदों को अपनी सेवा दे सकते हैं ।*
       यूँ तो शासन प्रशासन से लेकर विभिन्न राजनीतिक पार्टियाँ, धार्मिक संस्थाएँ अपनी यथासंभव सेवाएँ प्रदान कर रही हैं फिर भी ये देश के प्रत्येक नागरिक के लिए परीक्षा की घड़ी है घर से दूर जाकर सेवा देने का कष्ट उठाने की ज़रूरत नही । सभी अपने पास पड़ोसी का ध्यान रखें इससे सरकार के नियमों की अनदेखी भी नही होगी और सेवा भी हो जायेगी । वैसे ग़रीबों के लिए सरकार ने कार्ड के माध्यम से गेहूं चावल का वितरण किया है कुछ राज्य सरकारों ने तो धनराशि भी बैंक खातों के माध्यम से वितरित की है इससे भी राहत अवश्य मिलेगी फिर भी सभी अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी समझते हुए आपदा निवारण होने तक अवश्य ज़रूरतमंदों का ख़्याल रखें क्योंकि सबसे बड़ी चुनौती भूख की होती है सब कुछ होने पर भी खाना न मिले तो सब निरस लगता है पड़ोसी कोई भूखा न रे बस यही ध्यान बनाएँ रखना ।
 - डॉ भूपेन्द्र कुमार 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
जी हां जो जरूरतमंद  उनकी मदद करनी चाहिए
भगवान ने जिनको धन धन दिया है उन्हें जरूरतमंद की मदद करनी चाहिए। जो व्यक्ति दूसरों की मदद करता है उसकी स्वयं मदद भगवान करते हैं जब आपदाएं आती हैं तो सभी को एकजुट होकर उसका सामना करना चाहिए बहुत सारे लोग रोज मजदूरी करने वाले हैं वह बेचारे कैसे अपना काम चलाएंगे हमारे देश में तो वसुदेव कुटुंब  को मानने वाले लोग हैं। यदि हमारे पड़ोस में कोई भूखा रहे तो हमें नींद कैसे आएगी।
हमारी भारतीय संस्कृति भी हमें दूसरों की मदद करना सिखाती है।
महापुरुषों ने भी और महात्माओं ने भी परोपकार को ही परम धर्म बोला है।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर -  मध्य प्रदेश
वसुधैव कुटुंबकम् को मानने वाला सनातनधर्मी मन यह सहन ही नहीं कर सकता कि कोई भूखा रहे, परेशान रहे, साधनहीन रहे। जो भारतीय जनमानस सर्वे भवन्तु सुखिन: की कामना करता है,वह किसी का दुख सहन नहीं कर सकता। भंडारे और लंगर जिमाने की परंपरा वाले लोगों का पड़ोसी भूखा रह ही नहीं सकता।सब अपने अपने स्तर पर इस कार्य में यथा संभव,यथा शक्ति सहयोग कर रहे हैं। इतना ही नहीं बिना किसी भेदभाव के उन लोगों तक भी खाने की सामग्री पहुंचाने का कार्य जारी है,जिन लोगों के दिलो-दिमाग में नफ़रत भरी है जो न स्वयं अपने हैं न धर्म के है, न जाति के, देशहित में तो रहते ही नहीं।
शब्द कुछ कड़वे जरुर लग सकते हैं मित्रों, किंतु यह सच है कि खाने की व्यवस्थाएं भरपूर है,शायद किसी के भूखे सोने की स्थिति न थी,न है और न होगी।हम प्रभु से प्रार्थना भी करते हैं- सांई इतना दीजिए,जामे कुटुंब समाय/मैं भी भूखा न रहूं,साधू ने भूखा जाय। हम सबका प्रयास है कि किसी को खाद्य-सामग्री का अभाव न हो।
- डॉ अनिल शर्मा'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
                वर्तमान समय में लॉक डाउन के कारण हमारे देश में गरीब तबके के लोग, मजदूर वर्ग, दैनिक वेतन भोगी तथा आयास पर निर्भर लोग परेशानी का सामना कर रहे हैं। उनके पास  प्रतिदिन दोनों समय भोजन की व्यवस्था उपलब्ध नहीं है यद्यपि हमारी राज्य सरकारें व केंद्र सरकार उनके लिए व्यवस्थाएं जुटाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं फिर भी इतनी विशाल जनसंख्या में बहुत से लोग इस तरह की व्यवस्थाओं से आज भी महरूम रह जाते हैं ।ऐसी स्थिति में जो हमारे देश में आढ्य वर्ग है अथवा मध्यमवर्गीय लोग हैं वह उन्मन  चेहरों पर खुशी का भाव ला सकते हैं। उन्हें भोजन का अवलंबन दे सकते हैं कहा जाता है -' *अन्नं दानं परम दानं '* 
आप अपने आसपास के जरूरतमंद लोगों के लिए यथासंभव खाने की व्यवस्था करें और उन्हें तोष- परितोष प्रदान करने का  व स्वयं के मन की संतुष्टि का भाव प्राप्त करें। रामचरितमानस कहती है -'परहित सरिस धरम नहिं दूजा '।हम इस बात को अपने अंतःकरण में धारण करें।
    - डॉ अरविंद श्रीवास्तव 
दतिया - महाराष्ट्र
बुरे वक्त में लोगों की मदद करना हमारे देश की परम्परा रही है । उस समय हमसभी सारी दुश्मनी भूलकर एक दूसरे की मदद करते हैं ।हम सभी खायें और पता चले कि कोई भूख से मर गया ,आत्मा रो पड़ती है ।इस समय देश पर कोरोना जैसी महामारी का संकट सभी के ऊपर है ।यथा संभव हम सभी का धर्म बनता है संस्थाओं के जरिए धन राशी द्वारा या राहत समाग्री केजरिए मुसीबत में फंँसे लोगों की यथा संभव मदद करें । यह प्रयास हमारी आत्मा को मजबूती और शक्ति देगा ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
वर्तमान युग आर्थिक कठिनाई का युग है ऐसे वर्तमान में लाँक डाउन ने और बदत्तर आर्थिक कठिनाई का माहौल पैदा कर दिया है खासकर उन दैनिक मजदूरें के लिए परेशानी खड़ी कर दी है जो रोज कमाने खाने वाले हैं ऐसे में शासन की योजनाओं का लाभ हर उस अकिंचन ,दीन हीन व्यक्ति तक पहुंचना मुश्किल है जो भूखों मरने की कगार पर है ऐसे में हमारा दायित्व एक मनुष्य होने के नाते मानवता के नाते और अधिक बढ़ जाता है हम चाहें तो थोड़ा बहुत दान करके खाना खिलाकर ऐसे लोगों की मदद कर सकते हैं जिन तक शासन का पहुंच पाना सम्भव नहीं दिखता और जो केवल हमें आसपास दिखाई देते हैं आपकी थोड़ी सी मदद किसी के लिए जीवनदान बन सकती है ,बस आवश्यकता है थोड़ी उदारता की,दान में ही ईश्वर का वास होता है हमें यह नहीं भूलना चाहिए|
स्वामी रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे
"नर सेवा नारायण सेवा"
अत: लाँक डाउन में दूसरों के भोजन का अवश्य ध्यान रखें |
धन्यवाद ,जय हिन्द
- रवि भूषण खरे
दतिया - मध्यप्रदेश
कोविड 19 महामारी के संकटकाल में मानव जीवन संकट में है l ऐसे समय में जरूरतमंदों की सहायता करना हमारा नैतिक, धार्मिक  उत्तरदायित्व है l धर्म शब्द संस्कृत से घृत शब्दरूप से बना है जिसका व्यापक अर्थ है मनुष्य के धारण करने योग्य विधेयात्मक कृत्य है वो ही धर्म है l विश्व में सबसे बड़ा धर्म है" मानव धर्म "लेकिन ध्यान रहे दान में दी हुई वस्तु के बदले किसी प्रकार का विनिमय नहीं हो l आज मानव के दुःखों का मुख्य कारण यही है कि वह अपने किये दान का तुरंत प्रतिदान चाहता है l
मानसिक उन्माद की अवस्था से ऊपर उठकर मानव जीवन के संकटकाल में तन ,मन ,धन से मानव सेवा के लिए संकल्पित होना होगा l 
     आज हमें "सात्विक दान "अर्थात ऐसा दान जो पवित्र स्थान में उत्तम समय में ऐसे व्यक्ति को दिया गया दान जिसने दाता पर किसी प्रकार का उपकार नहीं किया हो l 
     सभी दानों में "अन्नदान"सर्वोपरि है l मानव जीवन संकट में है l ऐसे में इस दान की उपायदेयता कल्पनातीत है l 
धन की तीन परिस्थितियाँ (गति )हैं l दान ,भोग ओर नाश l उत्तम कोटि के व्यक्ति धन की प्रथम गति के उपासक होते हैं ,मध्यम कोटि के व्यक्ति धन का सदुपयोग करते हैं इसके अतिरिक्त द्रव्य की तीसरी गति तो येन केन प्रकारेण स्वतः हो ही जाती है l ऐसे व्यक्ति "अधम "कोटि के होते है l रामचरितमानस में कहा है -"पर हित सरिस धर्म नहीं भाई ,
पर पीड़ा सम नहीं अधिमाई "
   अर्थात परहित से बड़ा  कोई  धर्म नहीं और दूसरों को कष्ट देने से बड़ा कोई पाप नहीं है l 
वेदों में लिखा है कि "सैकड़ों हाथों से कमाना चाहिए और हजार हाथों वाला होकर दान करना चाहिए l तुलसीदास जी ने कहा है- "गगन चढ़हि रज पवन प्रसंगा"
हवा का साथ पाकर  धूल भीआकाश में चढ़ जाती है यदि 130 करोड़ देशवासी पवन वेग से उड़ने वाले माननीय प्रधानमंत्री के साथ उत्साह ,उमंग से आगामी 5,अप्रैल को होंसलों की उड़ान भरेंगे तो ऐसी कोई ताकत नहीं है जो जरूरतमंदों की मदद और कोविड -19को देश से बाहर निकाल ने में गतिरोध उतपन्न कर सके l मानवता संकट में है ,संगठित होकर जंग जीतिए l 
  "नहीं संगठित सज्जन लोग l
रहे इसी से संकट भोग ll"
                          श्री राम शर्मा 
जो रहीम उत्तम प्रकृति ,
का करी सकत कुसंग l 
चंदन विष व्यापत नहीं ,
लिपटे रहत भुजंग ll .....अर्थात सहयोग सफलता का सर्वश्रेष्ठ उपाय है यदि कोरोना जंग में हम सफलता चाहते है तो हमें मनसा ,वाचा ,कर्मणा मानवता का सहयोग करना ही होगा l कब कर सकेंगे आप सहयोग -
कबीरा मन निर्मल भया ,
जैसे गंगा नीर l
पीछे पीछे हरि फिरे ,
कहत कबीर कबीर ll अंत में -
कमाते बुजदिली हैं 
पस्त होना अपनी आँखों में l 
अपनी आँखों में उत्साह ,उमंग की जोत जलाइये l
आपके भाव अनूप है ,आपकी भक्ति अनूप l 
ह्रदय कर्ण सा आपका ,भामाशाह सा रूप ll 
जय हिन्द                  जय भारत 
चलते चलते ...
सुबह मरकज बनी ,उम्मीदों का 
शाम मायूसियों के काम आई l
- डाँ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
किसी भी व्यक्ति की मृत्यु भूख से न हो यह सुनिश्चित करना हम सभी का परम कर्तव्य। 
दिहाड़ी मजदूरों सहित गरीब, असहाय, जरूरतमंद एवं सड़क किनारे जीवन यापन करने वाले लोगों को हमें भोजन की व्यवस्था करना चाहिए हमारे पास जो भी हो अपने पास से जो भीमददत बन पड़े करे 
मेरे पास एक फ़ोन आया की आप के घर के पास ( एम आई डी ) म्हापें में कुछ लोग फंसे हैं उनके पास न खाना है न पासा 
मुझे वहाँ का नम्बर दिया , मैंने बात की तो पता लगा एक कान्टेक्ट्रर ने उन्हें इस बंद पड़ी कम्पनी में रहने को दिया , लांकडाउन  लगने के बाद कुछ पैसे देकर चला गया हम राशन लाकर बना था रहे थे कल सब ख़त्म है वह फ़ोन नहीं उठा रहा है 
हम क्या करें घर भी नहीं जा सकते , 
मैंने उनसे बात की और गुगल मेप   मंगाया और घर से सब समान निकाल बेटो को भेजा वो देकर आया तब पता लगा आठ लोग है 
मैंने कहाँ और जरुरत पड़े तोफोन करना भिजवा देंगे 
हमारे स्टेशन पर रात को सोने वाले तिस परिवार को दाल चावल दिया ताकी १५ दिन तक वो पेट भर सके । 
अपने आस पास के लोगों की मददत हम नहीं करेंगे तो वो कहाँ जायेगे 
जो भी हमसे बन पड़े हम करे , 
ईश्वर ने हमें सक्षम बनाया है तो हम कुछ दूसरों को भी दे ...
यहीहमारा ऊपर अकांऊट  में जमा होगा , 
भूखे को रोटी खिलानी सबसे बड़ा धर्म है 
भूख पर मेरी एक कविता :-
भूख ...
हम भूख के मारे है . 
हम क़िस्मत के मारे है 
कमजोर नहीं लाचार नही 
जो है पास हमारे 
आओ मिल कर भूख मिटा ले 
हम बच्चे भूखे है , पर स्वार्थी नही 
एक एक निवाला बाटेंगे ,
पानी पीकर पेट भरेंगे । 
भूख की ख़ातिर दर दर भटके 
चौराहे , बाज़ारों में अटकें ।
 अन्न के दाने की क़ीमत 
जानते है , 
भूख क्या है ? 
ग़रीबी क्या है ? 
कभी भूखे रहते , कभी पानी 
से काम चलाते है , 
बच्चे हम हिल मिल कर रहते ।

गंदे कपडें हाथ मैले 
रहने का नही ठिकाना 
फुटपाथ है बसेरा 
हम क़िस्मत के मारे 
जमी पर सो कर पलते है , 
ज़िंदगी भर गम ढोते है ।
रो रो कर कटती ज़िंदगानी 
नहीं कर पाते हम मनमानी 
ख़्वाबों में पेट भर पकवान खाते 
हम भूखे जीते भूखे ही मर जाते 
हम क़िस्मत मारे 
दर दर भटकते है । 

- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
बिलकुल करनी चाहिए ।जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक है और जिनके पास पैसा है वो आसानी से अपने खाने पीने की व्यवस्था कर सकते हैं ।लेकिन जो रोज कमाने और खाने वाले लोग उनके लिए यह मुश्किल की घड़ी है ।हमारा फर्ज है कि अपने सामर्थ्य के अनुसार अपने आस पास के ज़रूरतमंदों की मदद करें ।बहुत बार बुढ़े लोग और शारीरिक रूप से असमर्थ लोग पर्याप्त पैसा रहने के बावजूद अपने खाने पीने की व्यवस्था करने में असमर्थ होते है ।ऐसे लोगों की भी मदद करनी चाहिए ।
- रंजना वर्मा
रांची - झारखण्ड
बिल्कुल वर्तमान स्थिति में आसपास के जरूरत मंद लोगों की मदद से बढकर कोई काम हो ही नहीं सकता ।ऐसा समय चल रहा है कि बहुत से लोगों को कई प्रकार की सहायताओं की आवश्यकता है ।अगर पता चलता है तो अपनी सामर्थ्य के अनुसार सभी अवश्य करें ।आसपास के जीव जन्तुओं को भी खाने को दें ।किसी के जीवन को बचाना संकट से उबारना किसी परोपकार से कम नहीं है ।अभी धर्म भी यही है ।जो लोग नियमित रूप से ऐसा कर रहे हैं वह प्रशंसा के पात्र हैं ।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
   जीवन हमारा भी और औरों का भी,सबका महत्वपूर्ण है। कभी -कभी जीवन में ऐसा समय अक्सर आता ही है जब हमें  दूसरे की जरूरत पड़ती है। मुहावरा भी है" अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता " । आशय यह कि हमें मिलजुलकर रहना चाहिए और मदद भी करना चाहिए। सहयोग हो,मदद हो या दान सभी रूप मानवीय हैं,धार्मिक हैं,नैतिक हैं,श्रेष्ठ हैं,महत्वपूर्ण हैं,सम्माननीय हैं,वंदनीय हैं। अतः हमें सदैव अपने निजी दायित्वों के प्रति निष्ठावान रहते हुए, अपने आसपास भी सजग रह नजर रखना चाहिए कि कोई किसी अभाव से व्यथित  तो नहीं है, आप उसकी मदद के लिए जिस रूप में सामर्थ्य रखते हैं,उसे निभाने के लिए तत्पर और जागरूक रहेंगे तो ऐसा करना आपका सद्भाव और सद्कर्म होगा। जिसका वांछित प्रतिफल भी आपको कभी न कभी मिलेगा। 
ये उपदेश नहीं, अनुभव और मान्यताएं हैं।
  अतः वर्तमान में जब हम कोरोना -संघर्ष और लॉक डाउन की स्थिति से गुजर रहे हैं, हमारी सामर्थ्य के अनुसार जरूरतमंद की अवश्य मदद करें।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
आजकल लॉक डाउन में आमिर लोंगो या माध्यम वर्गीय परिवार को ज्यादा दिक्कत नहीं। जो गरीब वर्ग हैं देहरी मजदूर जो रोज कमाते हैं रोज खाते हैं ।ऐसे लोगों को खाने की दिक्कत हो गया हैं। ऐसे में सरकारी मदद नाकाफी साबित हो रहा है। हम सभी को आगे आकर इन बेचारों की मदद करना चाहिए।
बचपन से ही ये संस्कार दिया गया हैं जो भी तुम्हारे पास हो मिल बांटकर खाना चाहिए। यही हमारा धर्म और कर्तव्य भी हैं। किसी भूखे को खाना खिलाने से बढ़कर कोई दूसरा पुण्य नहीं होता। हमलोग अपने सोसायटी में ये निर्णय किये की इस लॉक डाउन बाई का पैसा नही काटेंगे बल्कि जरूरत पड़ने पर उनकी मदद करेंगे।
    - प्रेमलता सिंह
पटना - बिहार
भूखे को भोजन कराने से बड़ा धर्म कोई नहीं होता । इस समय तो खासतौर से क्योंकि जो लोग  कार्य भी कर सकते हैं वो भी लॉक डाउन के चलते परेशान हो रहे हैं । कुछ दिनों तक तो चल गया पर अब जो रोज कमाते- खाते थे वे लोग भी सड़क पर आ गए हैं । हालाँकि समाजसेवी संस्थाएँ व प्रशासन इस ओर सक्रिय है । फिर भी मानवता के नाते हमारा फर्ज है कि हम किसी को भूखा देखें तो अवश्य ही उसे खाना खिलाएँ । 
चीजों को बाँट कर  ही खाना चाहिए ऐसे संस्कार बचपन से ही बच्चों को देना चाहिए जिससे वे हमेशा इसे अपने आचरण का अंग बना सकें ।
याद रखें संकट की घड़ी में आपके द्वारा की गयी छोटी सी मदद भी आपको बाद में बड़े रूप में वापस मिलती है क्योंकि कर्म कभी निष्फल नहीं जाता ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
जी हां, मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म है कि मनुष्य मनुष्य के काम आए। विषम संकट की घड़ियों में हमें अपने आसपास जरूरतमंदों के लिए भोजन खाने एवं पीने की चीजों की यथासंभव अवश्य मदद करनी चाहिए।
     फोन के माध्यम से अपने आसपास रह रहे जरूरतमंद लोगों को खाने की चीजों में रोटी -चावल के स्थान पर बिस्किट पैकेट, दालमोठ, नमकीन ,भुने हुए आटे में चीनी मिलाकर भोज्य पदार्थ के रूप में प्रसाद की भांति पंजीरी, भी पैकेट बनाकर आसानी से उन लोगों को उपलब्ध करा सकते हैं। जो वह कई दिनों तक उसको प्रयोग कर भी सकते हैं भूखे को भोजन देना, इससे बड़ा कोई मानव धर्म नहीं है; विशेषकर वह भी विपत्ति काल में। असहाय ,गरीब, भूखे, नंगे, प्यासे को जरूरत की वस्तुएं उपलब्ध कराना राहत देना बहुत जरूरी है; यदि हम स्वयं बाहर नहीं निकल सकते तो समाजसेवी संस्थाओं को फोन करके उनकी सहायता लेकर यह भोज्य पदार्थ एवं आवश्यकताओं की चीजें जरूरतमंदों तक भिजवा सकते हैं। अधिक ना सही पर थोड़ी सी भी यह सेवा करना ही ईश्वर को प्रसन्न करना है। और इससे आत्मिक शांति भी मिलेगी ।
- डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
हमारा देश वसुधैवकुटुम्बकम की भावना रखने वाला देश है। इसी भावना के कारण सब किसी भी जरूरतमंद की सहायता करने के लिए तैयार रहते हैं। लॉकि डाउन के कारण इस समय ऐसी स्थिति है कि रोज कमा कर खाने वालों के लिए खाना जुटा पाना ही मुश्किल हो गया है।
        ऐसी स्थिति में हम सभी का यह कर्तव्य बनता है कि अपने आसपास जो भूखा, जरूरतमंद दिखाई दे तो उसे खाना अवश्य खिलायें, और भी किसी चीज जैसे दवाई, कपड़े की कमी दिखे तो पूरा करने का प्रयास करें।
       स्वयंसेवी संस्थाओं को भी जानकारी दी जा सकती है ताकि वे भी इसमें सहायता कर सकें। जिस तरह परिवार में संकट के समय परिवार के सभी व्यक्ति मदद करते हैं ठीक उसी तरह देश हमारा बहुत बड़ा परिवार है। तो जिसे जो भी संकट में दिखे उसकी सहायता अवश्य करे, दूसरों को भी बताये। साथ ही अपने आसपास के पशु-पक्षियों को भी खाना अवश्य दें। इस समय सबको मदद की आवश्यकता है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
   देहरादून - उत्तराखंड
 इस समय हमें उनकी मदद अवश्य करनी चाहिए !
आज इस महामारी के चलते अच्छे-अच्छे की हालत खराब हो रही है फिर उन गरीबों की दशा तो और दयनीय है जो रोज कमाते हैं और रोज खाते हैं ! 
वे अभाव और कष्टों की ज्वाला में जल रहे हैं और जीवन को अभिशाप समझ दिन काट रहे हैं ! लॉकडाउन के चलते मजदूर वर्ग भूखों मर रहे हैं अनेक संस्थाएं और प्रशासन उनकी भोजन देकर मदद कर रहे हैं किंतु सभी तक तो नहीं पहुंचता है! 
हमारा भी कोई धर्म है ज्यादा नहीं तो थोड़ा सही मदद तो कर ही सकते हैं ! अपनी घर की गली और आसपास के इलाके में रहने वाले गरीबों को तो भोजन अथवा भोजन सामग्री दे सकते हैं ! इतना तो परोपकार कर सकते हैं ! हमें इस अवसर को नहीं गुमाना चाहिए ! ईश्वर ने यदि हमें धन और मौका दिया है तो अवश्य खाने की व्यवस्था करनी चाहिए ! परोपकार कर हम स्वयं पर उपकार करते हैं ! इस कार्य  को करने से हमें आत्मिक आनंद प्राप्त होता है और यह आनंद कितना अद्भुत और दुर्लभ होता है !दान और वह भी अन्न दान करना इतना बड़ा पुण्य है पुण्य कमा हम अपना परलोक तो सुधारते हैं किंतु उस समय तो गरीब की क्षुधा शांत होती है !
मानव जीवन की सार्थकता इसी में है कि वह दूसरों के भी दुख देखें उनके आंसू पोंछे और यह हमें हमारे संस्कार में ही दिया जाता है जो दूसरे की मदद करता है ईश्वर भी उसकी मदद करते हैं !
अंत में मैं कहूंगी परोपकार कर जो खुशी हम दुखी व्यक्ति के चेहरे पर देखते हैं वही हमारा सबसे बड़ा सुख होता है और साथ ही हमें उनकी दुआएं भी मिलती हैं!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
जी हाँ। खाना ऐसी चीज है , जिसके बिना मानव लाचार हो जाता है । वह अपने ही पेट के लिए अन्न जुटा नहीं पा रहा है। क्योंकि सभी काम बंद हैं । लोग घर में बंद  हो गए हैं । कहीं भी बाहर से आने वालों पर पहरा बैठा दिया गया है । इसका सीधा असर, मजदूर, रिक्शा-ऑटो चालक व नौकरानियों पर पड़ा है। सभी अन्य कार्यों पर भी असर पड़ा है, लेकिन उपरोक्त वर्ग भूखा मर रहा है। पैसा नहीं है ,तो खाना कहाँ से आएगा? 
अब हमें उन लोगों को भी लड़ाई में खुशी- खुशी शामिल करवाना है तो मदद तो करनी पड़ेगी । इसलिए पहले खाने की व्यवस्था करें फिर टेस्ट की बात करें । जो समृद्ध हैं, उनसे आज देश को बहुत उम्मीद है। देश उनके द्वारा ही इस जंग को जीतना चाहता है । तो आगे बढ़े और साथ  दें ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार

" मेरी दृष्टि में " लॉक डाउन में सभी को अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार अपने - अपने क्षेत्र में गरीबों के लिए खाने की व्यवस्था कर देनी चाहिए । जिससे आप के आसपास कोई भी भूखा नहीं रहना चाहिए ।
                                                           - बीजेन्द्र जैमिनी










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