क्या प्रकृति से छेड़छाड़ का परिणाम है कोरोना ?

कोरोना का जन्म दाता चीन माना जाता है । जिस की दो स्थिति सामने आई हैं । एक तो कहा जाता है कि चीन प्रयोगशाला में  वायरस तैयार कर रहा था । वह जार ( बर्तन ) फट गया । जिससे कोरोना चीन के साथ - साथ दुनियां में फैल गया है ।  दूसरा चीन के लोगों विभिन्न तरह के पशु- पक्षी सहित विशेष रूप से चमगादड़ को मार कर खातें हैं और उन के अवशेषों को खुलें में फैंक देते हैं।जहाँ कोरोना वायरस उत्पन्न हुआ है और चीन सहित दुनिया में फैला है । जबकि चीन तो अमेरिकी के ऊपर आरोप लगा रहा है । जिसमें कोई सच्चाई नंजर नहीं आती है । जो भी हो स्पष्ट रूप से प्राकृतिक से छेड़छाड़ का परिणाम सामने आ रहा है । यही कोरोना के जन्म का रहस्य है । यहीं " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को भी देखतें हैं : -
     इसमें कोई संदेह नही है वर्तमान में मानव ने विकास के नाम पर विनाश के बीज बो दिए हैं प्रकृति के धैर्य की परीक्षा लेना अच्छा नहीं है अभी भी मानव को समझने की ज़रूरत है और इसको एक चेतावनी के रूप में स्वीकार करना चाहिए ।
    हम प्रगति के नाम पर जीवन प्रदान करने वाले वृक्षों, पहाड़ों और पौधों को निर्दयतापूर्वक काट रहे हैं. हम अहंकारवश जीवनदायी तत्व प्रदान करनेवाले वृक्षों को ही नष्ट कर रहे हैं. हम यह भूल जाते हैं कि इन वृक्षों में भी प्राण बसते हैं और आज हम इन्हीं वृक्षों को बेरहमी से काट कर वहां सड़कें और मॉल बना रहे हैं ।
      जब वृक्ष के अभाव में पूरी मनुष्य जाति समाप्त हो जायेगी, तो फिर इन सड़कों पर कौन चलेगा? हमारी पृथ्वी पर ये वृक्ष और पौधे अकारण नहीं हैं. पृथ्वी बनानेवाले महान वैज्ञानिक परमात्मा ने मनुष्य की रक्षा के लिए पृथ्वी पर इसलिए ही इन वृक्षों को उपजाया और नदियों को बहाया जिससे मनुष्यों को खुशहाल जीवन की प्राप्ति हो और इससे लाभ उठाने की समय-समय पर प्रकृति प्रेरणा भी देती रही है, लेकिन हम कुछ सीखने को तैयार ही नहीं हैं. हमने पेड़ को काटा , नदियों को गंदा किया, मशीनें बना कर प्रदूषण बढ़ाया और विकास के नाम पर सीमा से आगे निकल गए यह पूरी मानव जाति के लिए बहुत ही दुखद है कि हम अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति के साथ लगातार खिलवाड़ करते जा रहे हैं ये नहीं रूका तो हमारा जीवन दूभर हो जायेगा ।
   वैसे मनुष्य की प्रकृति के साथ सदैव एक जीवन के लिए खींचतान रही है भूतकाल के संघर्ष करने का नतीजा ही वर्तमान है । फिर भी मानव को अपनी गतिविधियों को नियंत्रित करने की ज़रूरत है और अपनी भूल सुधार करने का अवसर है ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
 कुछ लोगों का मानव की कु बुद्धि का देन कहा जा रहा है। अभी तक कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है की करो ना किसका देन है चिंतन करने से यह संभावना व्यक्त होता है की करो ना कहीं से उत्पत्ति हुआ हो आखिर गलतियों से ही हुआ है चाहे मनुष्य की गलती हो या प्रकृति की अव्यवस्था से ही प्रकृति की छेड़छाड़ से प्रकृति की संतुलन बिगड़ जाती है और प्रकृति अव्यवस्थित हो जाती है प्रकृति अपनी व्यवस्था को बनाए रखने के लिए कोई ना कोई घटनाएं प्रकृति में व्यक्त करती है जिसका परिणाम या प्रभाव प्रकृति में रहने वाले सभी पदार्थ पेड़-पौधे जीव-जंतु मानव पर पड़ता है ।जो अत्यंत समस्या भरी दुखद होता है प्रकृति में मूलतः देखा जाए तो प्रकृति स्वभाव गति में संचालित है अगर प्रकृति के नियम के विरुद्ध मनुष्य या अन्य छेड़छाड़ करता है तो प्रकृति आवेशित हो जाता है और कोई ना कोई नया समस्या खड़ा कर देता है जिसका परिणाम सभी को भुगतना पड़ता है इस दृष्टि से देखा जाए तो करो ना प्रकृति की अव्यवस्था से आई है ऐसा लगता है कुछ लोग मनुष्य ने अपनी कुबुद्धि का प्रयोग कर बनाया है ऐसा कहा जा रहा है। मनुष्य को प्रेरणा प्रकृति से ही मिलता है प्रकृति स्वयं नहीं करती किसी के माध्यम से करवाती है। शायद मनुष्य ही करो ना को बनाया होगा तो करो ना भी प्रकृति की वस्तु से ही बनाया होगा मनुष्य का इतना औकात नहीं की प्रकृति को बना सके उसकी सदुपयोग और संरक्षण सुरक्षा संवर्धन कर सकता है।
 प्रकृति की कोई भी वस्तु जैसे परमाणु नहीं बना सकता मनुष्य परमाणु अस्तित्व में बना हुआ है और प्रकृति की हर वस्तु परमाणु से रचित है परमाणु मूलतः स्वभाव गति में प्रकृति के नियम के आधार पर कार्य करता है स्व स्फुर्त से परमाणु को गति शक्ति जो मिलता है उसे कोई देता नहीं है  स्व ऊजित है क्योंकि वह मूल उर्जा में ही डूबा है  घिरा है।भिगा है। इसे लोग आज तक रहस्य कहा प्रकृति में कोई रहस्य नहीं है मनुष्य में अज्ञानता वश रहस्य है इसी रहता का परिणाम आज विश्वकर्मा से पीड़ित है प्रकृति स्पष्ट है मनुष्य स्पष्ट आया रहस्य है करोना प्रकृति की असंतुलन मनुष्य की अज्ञानता का परिणाम हो सकता है भविष्य में अनुसंधान से स्पष्ट हो जाएगा।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
कोरोना मनुष्य की विध्वंसक एवं विस्तारवादी प्रवृत्ति का परिणाम है। अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए जीवन जीने के लिए हर विषय( खान- पान, रहन-सहन) पर उचित को अनदेखा करना साथ ही अनुचित तरीकों के उपयोग में अपने को नवीन आविष्कारक मानकर स्वयं में प्रसन्न होना ही आज के मनुष्य की या विकसित देशों की मानसिकता बन गई है।अंततः जिसके दुष्परिणामों से प्रकृति और मनुष्य स्वयं ही आहत होते हैं और प्रकृति का संतुलन बिगड़ने लगता है।
          जीव- जंतुओं पर अत्याचार, अमानुषिक  व्यवहार की चरम स्थितियाँ नई- नई बीमारियों ओर आपदाओं को जन्म देती हैं । मनुष्य की अतिशयता मूकबधिर जीव- जंतुओं को मारकर खाना ,जैविक हथियार बनाकर, दूसरों पर प्रयोग करना, मनुष्य की यह विनाशक प्रवृत्ति सब तरह से उसका ही विनाश करके उसक लिए एक नया जीवन- मूल्य गढ़ देती है; जहां मनुष्य भौतिकता और विज्ञान की अति से त्राहि-त्राहि करता अध्यात्म की शरण व देवता बन जाने की स्थिति को पुनः प्राप्त करने को आतुर दीखता है। जहां बहुत देर हो चुकी होती है।
        प्रकृति भी मनुष्य की करतूतों का बदला लेकर प्रलयंकारी दृश्यों से मनुष्य को  स्वयं रूबरू कराती है और फिर बहुत कुछ विनाश करके नवीनता के प्रतिमान पुन: स्थापित करती  है। मनुष्य, जीव, जंतु सबके सब प्रकृति के साए में रहते हैं। अतः प्रकृति के बिना मनुष्य- जीवन की कल्पना भी  नहीं की जा सकती।
    देखा जाए तो वर्तमान समय में कोरोना  जैसी महामारी; चमगादड़ जैसे  जीव की मारकता का अभिशाप स्वयं मनुष्य को ही झेलना पड़ रहा है ।
- डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
      प्रकृति का पहला दूत कोरोना है।जो मानव जाति को समझा रहा है कि मानव हो मानव ही बन कर अपनी औकात में रहो।वह प्रेरणा दे रहा है कि पेड़ों को न काटो, धरा को अपनी ही धुरी पर घूमने दो,नदियों को गंदा न करो,विस्फोटक पदार्थ ना बनाओ,स्वयं जिओ और दूसरों को जीने दो।कोरोना ने सबको निठल्ला होने पर विवश कर दिया था।जो कहते थे कि उक्त मानव ने न्यायालय का अनमोल समय बर्बाद कर दिया है,मेरे पास पेड़ लगाने का समय नहीं है।इत्यादि-इत्यादि शब्द महत्वहीन हो गए हैं।गंगा साफ हो गई है।हवा-पानी का प्रदूषण बहुत कम हो गया है।भ्रष्टाचार को लगाम लगाने लगा है।जीवन थम गया है।जिसका सारा श्रेय कोरोना को जाता है।जो प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का ही परिणाम है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
प्रकृति से छेड़छाड़ कर  के स्वार्थी मानव  ने भौतिक सुख सुविधाओं के लिए भू लोक , पाताल लोक से लेकर अंतिरक्ष लोक में हीरे की पगडंडियाँ बिछाने में लगा है । जिससे जैव विविधता , पर्यावरण प्रदूषण , जलवायु परिवर्तन जैसी गम्भीर संकट  का खतरा मंडरा रहा है । जिस के कारण प्रकृति और  मनुष्य में असंतुलन उत्पन्न हो गया है ।जंगल काट रहे हैं  जिससे पारिस्थितिकी तंत्र  यानी प्रकृति की इकोलॉजी में असंतुलन आ गया है । जंगली जानवर शहरों में आ रहे हैं । एक दूसरे पर आश्रित जीव जंतु नष्ट हो रहे हैं ।
प्रकृति  कुपित होती है । मानव प्रकृतिविहीन जीवन जी रहे हैं । 18 वीं सदी में प्लेग की महामारी , 19 वीं सदी में
अंग्रेजों के शासनकाल में भारत में हैजा का संकट गहराया था ।  गुलामी में न दवा मिली और कितने लाखों  परिवार उजड़ गए थे ।  
अब 2019 के दिसम्बर में चीन द्वारा जनित कोरोना चीन के वुहान  में फैला था । वहाँ से इटली , फ्रांस आदि से सारी दुनिया में फैल गया ।कोई नियम को नहीं मान रहे हैं । अधिकतर वैज्ञानिक मान रहे हैकि चमागदड़ , पेंगोंलिन  से कोरोना का वायरस  आया है । चीन के वुहान से यह कोरोना सारी दुनिया  में कहर  बरसाया है ।  शक इसलिए होता है कि एक वीडियो में   चीन के वैज्ञानिक चमगादड़  को पकड़ते हुए दिखे हैं ।  मानव द्वारा जनित बीमारी कोरोना को बता रहे हैं ।मांसाहारी लोग चमगादड़ , जंगली जानवरों  का सूप आदि पीते हैं , व्यंजन भी बनाते हैं । 
चीन की सुपर पावर बनने की महत्त्वकांक्षा ने बायो वार कोरोना से करके दिखाया दिया है । चीन की सरकार का सपना कुछ हद तक पूर्ण भी मुझे लगता है । क्योंकि सभी विकसित देशों , 180 देशों के बाजार लाकडाउन से 
बंद पड़े हैं । वहीं चीन के बाजार व्यापार से गुलजार हो रहे हैं ।
कोरोना की महामारी  के संक्रमण से बचने के लिए इंसान को घर में कैद होना पड़ा है । वरना मानव को  विकास के बादल बन के  रुकना पसंद नहीं था ।
 इसी राक्षस  रक्तबीज  रूपी वायरस को खत्म करने के कारण  विश्व के देशों में लाकडाउन  हुआ है । जिससे संपूर्ण प्रकृति अपने आप संतुलन बना रही है । हर तरह का जैसे वायु , ध्वनि , जल , पर्यावरण  प्रदूषण में जरूर सुधार आया होगा । घर के अंदर भी शुद्ध वायु की बयार भ रही है । सड़कें साफ सुधरी पड़ी हैं । क्योंकि गंदगी करनेवाले लोग घर में बंद हैं । समुद्री तटों पर डॉल्फिन छलांग मारने लगी । नदियों की धाराओं के रंग में बदलाव आया है । बस अब तो पक्षियों , चिड़ियों की चहचाहट सुनाई देती है । प्रकृति हमें करोनो के जरिए जागरूक कर रही है । 
हमें  धैर्य , अनुशासन  , को मान के लाकडाउन का पालन करना चाहिए । हम सुरक्षित तो देश सुरक्षित रहेगा ।
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
क्या कोरोना वायरस प्रकृति ने बदला लेने के लिए फैलाया है? नहीं बल्कि यह मानवीय गलतियों का नतीजा है। कोरोना ने मगर मनुष्य को बहुत सी सीख लेने का मौका दिया है। 
कोरोना वायरस की दस्तक से मानव सृष्टि भयभीत हो गयी है।
हर कोई अपनी और एकदूसरे की जान बचाने के लिए प्रयत्न कर रहा है।
कोरोना वायरस की शुरुआत चीन देश के वुहान प्रान्त से होती है। वुहान का बाजार जहाँ प्रत्येक प्रकार के जीव को बेचा जाता है और लोग उन्हें शौक से खाते है। एक साधारण शाकाहारी मनुष्य तो उस बाजार में कदम रखते ही दहल जाएगा।
मनुष्य शाकाहारी और मांसाहारी दोनो प्रकार के होते है। प्रत्येक देश की जलवायु और परिस्थिति के फल से ही उनका खान पान बना है। हज़ारो वर्ष पहले से ही समुद्री तट पर रहने वाले मनुष्य मछली को अपना आहार बनाते रहे, वहीं जहाँ कृषि होने की संभावना रही वहाँ लोग शाकाहारी ही रहे। वहीं जहाँ समुद्र भी नही और कृषि लायक जमीन नही, वहाँ मनुष्य अन्य जानवरों को मार कर खाने लगे। मगर मनुष्य की भूख नही मिटती है। जितना मनुष्य सभ्यता की और गया उतना खतरनाक बनता चलता गया।
"सभ्य मनुज जितना होता है, उतना बर्बर बन जाता।
झूठी शान दिखावे में वो, इस धरती को तड़पाता।"
मनुष्य पहले भेड़, बकरी, मुर्गी, मछली इत्यादि को ही खाने का आदी था। मगर विगत कुछ दशकों से मनुष्य को पता नही क्या हुआ है कि साँप, बिच्छू से लेकर हर प्रकार के जानवर का सेवन करने लगा। शायद यही कोरोना महामारी के फैलने की वजह रही है। वैज्ञानिकों ने इस वायरस की वजह चमगादड़ बताई है।वुहान के बाजार में इसकी बिक्री धड़ल्ले से होती है। 
कोरोना अब विश्व के प्रायः प्रत्येक देश में अपने पैर जमा चुका है।कुछ देशों में हज़ारो लोग मारे जा चुके है। लोग भय से अपने घरों में नही निकल रहे है। इसकी दवाई भी नही होने के कारण यह बीमारी फिलहाल लाइलाज कहलाई जा रही है। मगर पूरी मानव सृष्टि इससे बचने का प्रयत्न कर रही है। कहीं इसकी रोक थाम की व्यवस्था की जा रही है, तो कहीं इससे बचने के लिए दवाइयों का प्रयोग किया जा रहा है।
विश्व मे इससे पहले भी महामारियां आई है और मनुष्य ने उसका डटकर सामना किया है। 
इस बीमारी से भी मुनष्य बच जाएगा क्योंकि आज विज्ञान बहुत उन्नत है। 
मगर यह कोरोना मनुष्य को बहुत कुछ सीख दे रहा है और जाते जाते दे कर जाएगा।
जिन नदियों को, समुद्री तटों को प्रत्येक देश की सरकारें दशकों में साफ नही कर पाई, उसे इस कोरोना ने मात्र दो महीने में कर दिया।
इससे एक बात तो साबित हो जाती है कि हम मानव प्रकृति के बहुत बड़े दुश्मन है। कोरोना महामारी हो सकता है मानवीय भूल का नतीजा है, मगर मनुष्य इतना निर्दयी बन चुका है कि प्रकृति पर प्रहार कर कर के उसने प्रकृति को बेदम कर दिया है। जब पूरा विश्व लॉक डाउन के दौर से गुजर रहा है तो मनुष्य को यह सीख लेनी चाहिए कि हमारा दो वक्त की रोटी से भी गुजारा चल सकता है हमारा।
हमें घूमने,फिरने की इतनी आवश्यकता नही, मगर हम क्या करते है हर थोड़े दिन में ऊब कर भ्रमण पर निकल जाते है। कभी पहाड़ों पर कभी समुद्री तटों पर और खुद की कुछ पल की शांति के लिए इन्हें कितना तड़पा कर आते है इसका अहसास शायद आज हो रहा होगा। हम ए सी, कूलर के बिना भी रह सकते है। जो हमे गर्मी में ठंडक तो देते है मगर प्रकृति को झुलसाते है। अगर बिजली ही नही होगी जो कि प्रकृति की देन है तो कहाँ से ए सी चलाएंगे?
हमें रोशनी की भी अधिक जरूरत नही है। जब विश्व में बिजली नही थी तो प्रकृति के अनुसार ही लोगों की दिनचर्या थी।
कोरोना ने हमें  यह अहसास दिला दिया है जिन जिन वस्तुओं की हमारे जीवन में जरूरत नही उनका हम त्याग कर सकते है। इससे प्रकृति के साथ साथ हम भी सुरक्षित रहेंगे।
कोरोना महामारी खत्म होगी आज नही तो कल मगर उसके बाद क्या?
मनुष्य फिर से अपनी पुरानी दिनचर्या में आ जायेगा और फिर से प्रकृति को नुकसान पहुँचाएगा। उसके लिए दो पंक्ति के साथ अपना लेख समाप्त कर रहा हूँ।
अब भी मनुज नही चेता तो अंत सुनिश्चित फल लिख लो।
काल समाहित होगी धरती इस धरती का कल लिख लो।
- कमल पुरोहित "अपरिचित"
कोलकत्ता - प. बंगाल
विषय बिल्कुल यथार्थ से जुड़ा है आज मानव और विज्ञान  दोनों विकास के नाम पर प्रकृति से बहुत ही छेड़छाड़ कर रहा था फलस्वरूप जलवायु परिवर्तन कार्बन उत्सर्जन नदियों का शोषण वायु ध्वनि प्रदुषण में भयानक परिवर्तन  से अनेकों समस्या उत्पन्न होती जा रही है।
जंगलों की कटाई बड़ी बड़ी इमारतों का निर्माण वायुसेना विमान इत्यादि अनेक तरीके से प्रकृति के साथ छेड़छाड़ किया गया है परिणाम आज़ पूरा विश्व  लाक डाउन में जी रहा है
    हर देश परमाणु बना कर बैठा रह गया और एक वायरस पूरे विश्व में आतंक मचा दिया ।
  मानव की जीवनशैली को बदल दिया है   प्रकृति को यथावत अपनाना ही होगा  
- डाँ. कुमकुम वेदसेन मनोवैज्ञानिक
मुम्बई - महाराष्ट्र
हम इस धरती पर प्रकृति की वजह से ही हैं ।वही हमें कुछ देती ही है, हम दिन पर दिन उसे प्रदूषित किए जा रहे हैं उसी वजह से नई-नई बीमारियां उत्पन्न हो रही है। बहुत से लोग ग्रसित हैं ,प्रकृति जितनी सुंदर और शांत है उतनी ही खतरनाक भी होती है अनेकों जड़ी बूटी और औषधि दी है ,प्रकृति में बहुत सहनशीलता है, हमें भोजन दवाइयां सब कुछ देती है। प्रकृति दानी है, प्रकृति ने सब कुछ दिया हैं और बदले में वह हम से स्नेह और सुरक्षा ही चाहती है ,हम उसे नष्ट करते जा रहे हैं अच्छी जलवायु मौसम बिल्कुल ठीक नहीं है दिन पर दिन बिगड़ता जा रहा है हम अपना दायित्व नहीं निभा रहे हैं। जब कोई व्यक्ति अपने दायित्व से पलायन करता है ,उसका परिणाम बहुत भयंकर होता है जैसा बीज बोओगे वैसा ही फल प्राप्त होगा यह जीवन का शाश्वत सच है अच्छे कार्यों का अच्छा परिणाम होता है बुरे कार्यों का बुरा परिणाम होता है यह प्रकृति का नियम है।
प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने के कारण ही यह वायरस उत्पन्न हुआ है।
जैसी करनी कीजिए वैसे ही फल पाए।
बोया पेड़ बबूल का आम कहां से खाए।।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
इस खूबसूरत धरती में जहाँ किसी समय स्वर्ग सा सुन्दर विशाल प्रकृति की बिखेरती छटा जहाँ चारो ओर हरियाली, फलों, फूलो से सजी और सभी प्रकार के जीव , जन्तु अपने हिसाब से आनंद पूर्वक रहते थे। किन्तु मानव ने अपने हिसाब से रहने के चक्कर में प्रकृति के हर चीज को पूरी तरह से नष्ट करते चला आ रहा है। इसके चक्कर में जंगल के जीव जन्तु शहर की ओर रूख कर रहे है। और मानव के हाथों मारे जा रहे है। आज का इंसान अपने को भगवान मान बैठा है। अपने आगे किसी की सुनने और समझने की इच्छा रखता ही नही है। इसलिए कोरोना जैसी बीमारी मानव को कुछ ही छड़ में खत्म कर रही है। प्रकृति के साथ महाघोर छेड़छाड़ का परिणाम कोरोना ही है । जहाँ आज मानव दवाईयों से भी बचने में असमर्थ हो गया है। वक्त रहते यदि प्रकृति की देखभाल नही की गई तो आगे चलकर इससे ज्यादा बदतर हालात हो सकते है।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
    जी हां, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कोरोना नामक यह महामारी वास्तव में प्रकृति से छेड़छाड़ के कारण ही फैली है।लेकिन उससे पहले मानव जाति ने अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए जब देखो,इस धरती मां पर सदा से ही कहर बरपाया है।न जाने कितनी ही बार ये धरती मां थर्र- थर्र करके कांपी,किंतु
हममें से अधिकांश ने सदियों से अपनी मनमानी की। ऐसे में एक सताई हुई मां क्या बदला भी नहीं ले सकती?
                कभी पलेग,कभी हैजा तो कभी कुछ।पता नहीं क्यों, मानव अपने ही जीवन से खिलवाड़ कर रहा है।वह क्यों नहीं समझता कि यदि हम अपनी मां पर ही कहर बरपाएंगे तो ऐसे में सिर्फ कोरोना ही नहीं बल्कि और न जाने कितनी ही अन्य भयंकर बीमारियों का भी बोलबाला हो सकता है।अत: हम सबको एकजुट होकर इसका सामना करना चाहिए और प्रकृति से वैर की भावना को अपने मन से निकाल अभी से दृढ़ संकल्प लेना होगा।तभी ऐसी महामारियों से शायद हम बच पाएं
अन्यथा ये सताई हुई प्रकृति यूं ही जहर
उगलती रहेगी।
        - मधु गोयल
     कैथल - हरियाणा
एकमात्र यही तो कारण है इस आपदा का, प्रकृति से छेड़छाड़। साथ ही यह ध्रुव सत्य है कि प्रकृति अपना संतुलन स्वयं बना लेती है। अब देखिए बना रही है न संतुलन। मानव की शरीर रचना में कुदरत ने व्यवस्था ही न दी कि वह मांसाहारी या सर्वभक्षी बने। इसकी शरीर संरचना सिर्फ शाकाहार की है। लेकिन, मानव तो ठहरा सर्वज्ञ। उसने खाना शुरू कर दिया कीट- पतंगों को,जलचर-नभचर को,जानवर -पक्षी को सबकुछ उदरस्थ कर लिया। अपनी प्रकृति के विपरीत जीवनचर्या अपना ली और बुला ली यह आपदा। ऐसा नहीं कि यह पहली बार हो रहा है,इससे पहले भी महामारियां फैली हैं, फिर भी हम नहीं सुधरेंगे। अंधाधुंध विकास के नाम पर प्रकृति का दोहन और स्वार्थी प्रवृत्ति के चलते ये तो होना ही था। अब यह कहना कि कुछ की गलती का परिणाम सब क्यों भुगत रहे हैं, बेमानी होगा। हमारा मौन भी उनके विपरीत जीवन आचरण के लिए स्वीकृति ही तो रहा। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा, प्रकृति हमें चेता रही है,चेत जाएं समय रहते वरना परिणाम भयंकर होने ही है।
- डॉ अनिल शर्मा'अनिल',
धामपुर - उत्तर प्रदेश
यह सत्य है प्रकृति से छेड़छाड़ का परिणाम कोरोना है
मानव ने प्रकृति के नियमों से छेड़छाड़ कर के इस संकट को निमंत्रण दिया है आज मानव दोषी है इस महामारी का प्रकृति व्यापकतम अर्थ मे प्राकृतिक या पदार्थिक जगत ब्रह्माण्ड है। प्रकृति का सन्दर्भ भौतिक जगत के दृगविष्य से होता है। मानव पशु पक्षी आदी सभी प्रकृति की देन है मानव प्रकृति को अनदेखा कर करके अपने विकास की और बढ़ता जा रहा है। हम प्रकृति से जितना दूर रहेगे प्रकृति उतना दूर कर देगी।
इसका परिणाम हम झेल रहे हैै घरो में कैद होकर
जब से मानव घरो कैद है कोरोना के कारण परिणाम
प्रकृति के पक्ष मे है पेड़ो पर हरियाली है। कोयल की आवाज. सुनायी देती है निर्मल जल है ठंडी शीतल 
हवा है। ईश्वर ने दुनिया बनायी है पेड़ पौधे जीव जन्तु
हम इसके रक्षक नही भक्षक बन गये उसे भक्षक नाम के राक्षस के हाथों हम छले गये वास्तव में कोरोना प्रकृति से छेड़छाड का नतीजा है।
- नीमा हँसमुख
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
आज विश्व जिस कोरोना नामक महामारी का शिकार हो रहा है उसका मूल कारण मानव द्वारा प्रकृति के साथ की छेड़छाड़ ही है। अपने स्वार्थ के लिए मानव ने जल, हवा को जहां प्रदूषित किया वहीं पृथ्वी का दोहन इतना किया कि उसकी क्षमता भी कमजोर हो गई। मानव की लाभ और लालसा का परिणाम है कि जल, थल, आकाश सब प्रभावित हो चुके हैं। कोरोना महामारी इंसान को स्पष्ट संदेश दे रही है कि अगर अब भी मानव ने प्रकृति के साथ छेड़छाड़ जारी रखी तो उसका व उसकी भावी पीढिय़ों का भविष्य अंधकारमय ही होगा।
हवा और पानी के बिना जीवन के बारे कोई कल्पना भी नहीं कर सकता और प्राकट्य सत्य यही है कि जल और हवा दोनों प्रदूषन से लबालब हैं।
प्रकृति परमार्थ की प्रतीक है, इंसान परमार्थ को भूलकर स्वार्थसिद्धि को लग गया है। प्रकृति ने एक ही झटके में समझा दिया है कि स्वार्थ की राह आत्मघाती है, परमार्थ ही जीवन का आधार है। कोरोना का हमारे जीवन पर एक सकारात्मक प्रभाव हो सकता है, अगर मानव समझ ले। मानव ने अगर अब भी जल, हवा, जंगल से खिलवाड़ जारी रखा और पृथ्वी का दोहन अपने स्वार्थ के लिए करता रहा तो फिर आने वाला कल अंधकारमय ही होगा और हमारी भावी पीढिय़ां हमें इसके लिए कभी माफ नहीं करेंगी।
- राघव तिवारी
कानपुर - उत्तर प्रदेश
प्रकृति समय-समय पर मानव जाति को सचेत करती रहती है, जिसको मानव अनदेखा करता रहता है। कोरोना वायरस ने हमें यह विचार करने पर विवश कर दिया है कि प्रकृति से छेड़छाड़ का परिणाम कितना घातक हो सकता है। जब-जब पृथ्वी पर कोई आपदा आती है तो हम प्रकृति को दोष देने लगते हैं, परन्तु मेरे विचार में....
"बात जब भी प्रकृति के कहर की होती है,
तब प्रकृति भी प्रकोप पर खून के आँसू पीती है।
दोषारोपण करता है इन्सान प्रकृति के माथे पर, 
पर ये सूरते हाल इन्सान के गुनाहों की तस्वीर होती है।" 
     मनुष्य ने जबसे मानवीय जीवन-शैली को छोड़कर हिंसक जीवनचर्या अपनाई है और प्रकृति के मौलिक नियमों की अवहेलना करना प्रारंभ किया है तभी से हमें समय-समय पर विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ा है। इस बार तो कोरोना के बहाने से जो भयंकर आपदा हमारे सम्मुख आयी है उससे यही आभास होता है कि मानव द्वारा प्रकृति से छेड़छाड़ चरम सीमा पर पहुंच गयी है। वैज्ञानिक तथ्य अपने स्थान पर हैं परन्तु मेरे विचार से मानव का प्रकृति से निरन्तर छेड़छाड़/खिलवाड़ का परिणाम है कोरोना की उत्पत्ति। 
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
 देहरादून -उत्तराखंड
प्रकृति से छेड़छाड़ का परिणाम है "कोरोना", शतप्रतिशत सही नहीं लगता मुझे, परंतु मानव उद्दंडता और उश्रखंलता का उदाहरण आवश्य है। जैसा कि यही अनुमान लगाया जा रहा है कि चीन ने चमगादड़ का सेवन किया और यह उसी का परिणाम है। हमारे हिन्दू धर्म में भी कुछ ही एक पशुओं का बलि दिया जाता है एवं उन्हीं पशुओं का भी ज़्यादातर लोग सेवन भी करते हैं,तो चीन के लोगों ने तो सारी हद ही पार कर दी। मानव जाति ने स्वयं अपना कब्र खोदा है। प्रकृति ने अभी चेताया है, मर्यादा का उलंघन अगर मानव जाति करेगा तो ऐसे ही मुल्य चुकाने होगे। प्रकृति ने हमें बुद्धिजीवी बनाया, फिर भी हम नादानी करते रहें और दोष प्रकृति के सर मढ दे, ऐसा करना दुसरा जघन्य अपराध होगा।
- ईशानी सरकार
पटना - बिहार
कोरोना वायरस के संक्रमण से उत्पन्न बीमारी कोविड-19 ने आज मानव जाति के इस विश्वास को पस्त कर दिया है कि हम तो आधुनिक विज्ञान के उस दौर में जी रहे है जहां विज्ञान हमारे समक्ष मौजूद संकटों का कुछ न कुछ समाधान ढूंढ ही लेगा। वह यह भूल जाता है कि प्रकृति की ऐसी हर करवट हमें जागने का संकेत देती है। 18वीं शताब्दी में प्लेग, 19वीं शताब्दी में हैजा, 20वीं शताब्दी में स्पेनिश फ्लू जैसी महामारियों के रूप में प्रकृति ने समय-समय पर हमारे सामने अपने क्रोध का इजहार किया है। इन महामारियों में लाखों लोग काल के ग्रास बने थे।
फिर 21वीं शताब्दी के 2000 में सार्स वायरस और 2003 में एच1एन1 ने हमें चेतने का अवसर दिया, परंतु हमने इसे भी गंभीरता से नही लिया, जिसके परिणामस्वरूप अब 2019 में कोरोना वायरस ने घातक आपदा के रूप में दस्तक दी। 2019 का समापन होते ही इस आपदा ने धीरे-धीरे करके पूरी दुनिया में अपना सिर उठा लिया। देखते ही देखते लाखों लोग उसके चपेट में आ गए और हजारों की मौत रोज़ हो रही है । 
कोरोना वायरस के कारण मानव के जीवन में इतना दुख, इतनी पीड़ा और इतना अवसाद बढ़ गया है कि आज प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान भी उसके सामने अपने को असहाय महसूस कर रहे हैं। समय-समय पर ऐसी महामारियों के आने का प्रमुख कारण है मानव का प्रकृति से संबंध विच्छेद। चीन के वुहान शहर में जानवरों के मांस की एक बड़ी मंडी है। कोविड-19 विषाणु अमूमन जंगल में रहने वाले जीवों में होता है। माना जा रहा है कि यह जंगली चमगादड़ों के जरिये वुहान के खाद्य बाजार के उन जानवरों के संपर्क में आया जिन्हें चीन के लोग खाते हैं।
दरअसल चीन में इन जानवरों को खाद्य पदार्थ के रूप में औद्योगिक रूप से तैयार किया जाता है। अब मनमाने मांसाहार के बुरे नतीजे सबके सामने हैं। इससे एक बात साफ होती है कि परिस्थितिकी के एक हिस्से में छोटी-सी हलचल दूसरे हिस्सों में तबाही ला सकती है। 
हम विकास के नाम पर पृथ्वी को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं, फिर बात चाहे पर्यावरण की हो, प्राकृतिक संसाधनों की हो या फिर जैव विविधता की। हमारी लालच भरी कारगुजारियों का ही यह नतीजा है कि धरती पर मौजूद तमाम जीवों के विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। कई तो विलुप्त भी हो चुके हैं।
अब भी हम नहीं संभले तो मानव जीवन बहुत बड़े संकट में फंस सकता है। आज हमें प्रकृति का संदेश समझने की आवश्यकता है कि ठहरिए, समझिए, विचारिए अन्यथा पृथ्वी को आप विनाश की तरफ ले जा रहे हैं। दरअसल विकास के नाम पर पर्यावरण से छेड़छाड़ का ही परिणाम है कि आज पर्यावरण क्षति, जलवायु परिवर्तन, कार्बन उत्सर्जन, ग्लोबल वार्मिंग, प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन, जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, तापीय प्रदूषण आदि भयानक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।
उद्योगीकरण के बढ़ने के साथ जंगलों की बेतहाशा कटाई ने इंसान एवं जीवों को आमने-सामने ला खड़ा कर दिया है। आज तेंदुए, हाथी आदि जानवरों का मनुष्य की बस्तियों एवं शहरों में आना, बंदरों की टोलियों द्वारा मानव बस्तियों में घुसना बेवजह नहीं है। उत्पादन की नई तकनीकों के कारण इन दिनों बड़ी संख्या में मुर्गियों, सुअरों एवं अन्य पशुओं को बड़ी तंग जगह में रखा जाता है, जिससे संक्रमण का खतरा उतना ही अधिक बढ़ जाता है। जानवरों से संबंधित मीट उद्योग ने भले ही खाद्य सुरक्षा को बढ़ाया है, परंतु इससे फैलने वाले स्वाइन फ्लू, एवियन फ्लू एवं अन्य बीमारियों से बचने के लिए हमारे पास सुरक्षा कवच कमजोर है।
कोरोना वायरस के संकट ने मनुष्य को उसके विकास के पुनर्मूल्यांकन के दोराहे पर खड़ा कर दिया है। आज हमें विकास के नए मापदंड अपनाने होंगे। कोरोना के बाद नई दुनिया का विकास पर्यावरण संरक्षण के साथ हो, जिससे वन्य प्राणियों के पर्यावास पर विशेष ध्यान दिया जा सके। खाद्य सुरक्षा के अंतर्गत आने वाले पशु-पक्षियों में संक्रमण न फैले, इसके लिए उनके रखरखाव संबंधी नए कानून बनें एवं जो कानून मौजूद हैं उनका कड़ाई से पालन हो जिससे फ्लू जैसी बीमारियों को रोका जा सके। हमें अपनी आहार शैली बदलने की सख्त जरूरत है। हमें यह तय करना होगा कि हम क्या खा सकते हैं और क्या नहीं?
मानव का वजूद प्रकृति से है न कि प्रकृति का अस्तित्व मानव से है। इस सच्चाई को जब तक मनुष्य स्वीकार नहीं करेगा, उसकी जीवनशैली में बदलाव भी नहीं होगा। इसके लिए मनुष्य को अधिक संवेदनशील होना होगा और वैश्विक समाज को एकजुट होकर काम करना होगा। साथ ही प्रकृति को अपने एक अंग के रूप में स्वीकार करना होगा। महात्मा गांधी ने कहा था कि पृथ्वी हर मनुष्य की जरूरत को पूरा कर सकती है, परंतु पृथ्वी मनुष्य के लालच को पूरा नहीं कर सकती है। कोरोना का संकट आज हमें इस सीख को अपनाने को संदेश दे रहा है।
 आपदा पर मेरी कविता : -
प्राकृतिक आपदा...
हो रही चर्चा हर तरफ़ बर्बादी की
पहले बारिस ने क़हर ढाया
अब कोरोना वायरस ले आया महामारी । 
प्रकृति के साथ करते हैं हम मन मानी , 
तब ही झेलनी पड़ती है प्राक़तिक आपदा . ।।
अभी तो कोरोना वायरस ले आई महामारी , 
आगे आगे देखो क्या क्या आता सामने , 
अब हाथ कोई मिलाता नही , 
नमस्कार कर हाथ जोड़ते 
दो फूट की दूरी से हाथ जोडते 
दूर ही से हँसते है ,इशारे में बात करते है . 
सबके चेहरे पर मास्क लगा है 
सेनेटाइजर सब लेकर चलते है 
डेटाल  डालकर हो रही सफाई है
जेब में कपूर लौंग लेकर रखने लगे . 
गर्म पानी की बोतल लेकर घुमने लगे 
कोरोना वायरस ने सब को सभ्यता सिखा दी । 
मजहब का भेद भाव मिटा दिया !
सब घबरा गये , क्यों घबराना 
तुमने की मनमानी ,अब क्यों घबराना । । 
ये तो प्रकृति का खेल है 
हम उसके साथ खेलते है 
वह फिर हमारे साथ खेलते है ।।
प्राकृतिक आपदाओं से निपट नहीं पाओगे ,
पश्चाताप में हाथ मलते रह जाओगें 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
कोरोना प्रकृति से छेड़छाड़ कि परिणाम हझ यह कहना अर्धसत्य है ।यह वायरस किसी जील -जन्तु, वन प्राणी या पेड़ो से नहीं आया है ।यह तो मानव के शैतानी दिमाग की सोची समझी साजिश है ।बस सबसे बड़ी भछल यह रही कि यह वायरस सारी सावधानियों के बावजूद लीक हो गया और मानव जाति के विनाश का कारण बन गया है।
 हाँ यह सच है कि इसके कारण जो मानवीय जीवन में कठोर व अनिवार्य परिवर्तन आया है उसने मानल को प्रकृति के करीब कर दिया है ।सब से पहले खाध्य -अखाध्य की सपष्ट लक्षम्ण रेखा खीच दी है । पेट को प्रयोगशाला मानने वाले सावधान हो गये हैं ।
शाकाहारी भोजन ,सात्विक आचार -विचार वाले बड़ी उम्र के नागरिक अभी भी सकरात्मक शैली बनाए  हुए हैं । अनावश्यक घूमना बंद हो जाने से पर्यावरण शुद्ध हुआ। साथ  रहने से एक -दूसरे को बेहतर जाना जा रहा है । जब तुलसी, अश्वगंधा, नीम , ऐलोवरा, गर्म पानी, दूध हल्दी सब  
 पूर्वजों के नुस्खे आ रहे हैं।  कोरोना यह जरूर सीखा दिया कि अति सर्वत्र वर्जित है ।
- ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
प्रकृति से छेड़छाड़ करना बुरा ही नहीं बहुत बुरा है। इससे हमारा नैसर्गिक नुकसान तो होता ही है, आध्यात्मिक और मानवीय भी जो क्षति होती है, उसकी पूर्ति  होना कठिन  ही नहीं असंभव होता है। अतः हमें व्यक्तिगत और सामाजिक रूप से जागरूक होने और अन्य को भी जागरूक करने की अत्यंत आवश्यकता है।
  परंतु कोरोना के लिए प्रकृति से छेड़छाड़ करने का कारण बताना , ऐसा कहना अभी तो न्यायोचित नहीं होगा। क्योंकि अभी तक ऐसे कोई तथ्य सामने नहीं आये हैं। लेकिन इसे भी झुठलाया नहीं जा सकता कि वजह कोई भी हो,इसके लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार विश्व स्तर पर ही सही कोई न कोई है मनुष्य ही है। कोरोना के जन्म के साथ-साथ फैलाव के लिए भी मनुष्य जाति की लापरवाही और असावधानी की ही वजह है और  दूसरा पक्ष देखा जावे तो इससे बचाव और नियंत्रण रखने में मिल रही सफलता के श्रेय लेना ने वाला भी मनुष्य ही है। 
इस आपदा से हमें बहुत कुछ सीखने मिला है, हममें जागरूक रहने की ललक और सामर्थ्य शक्ति आई है। निश्चित ही यह शक्ति हमारे भविष्य को सुखद और समृद्ध करने में संजीवनी का काम करेगी।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
प्रकृति की छेड़छाड़ करने का नतीजा कोरोना वायरस तो है ही। इसके अलावा असमान्य बारिश होना तथा अचानक मौसम परिवर्तन भी है जिससे प्रकृति संतुलन भी बिगड़ रहा है। प्रकृति द्वारा प्रदत्त हरेक प्राणी जीव जंतु की अपनी अपनी अहमियत है। इनकी निर्माण प्रकृति ने उद्देश्य के लिए किया होता है। इनका संतुलन बिगड़ गया तो इस तरह अनहोनी वारदातें होती ही रहेगी। अब भी मानव जाति नहीं संभाली कोरोना से अधिक भयंकर और अधिक होने वाला है। अतः प्रकृति से छेड़छाड़ बंद होनी चाहिए।
- हीरा सिंह कौशल 
मंडी - हिमाचल प्रदेश
 आज मानव स्वयं ही दानव है और स्वयं ही भगवान ईश्वर की दी हुई इस सुंदर रचित पृथ्वी पर हमने आकर जो तांडव मचाया है आज उसी का परिणाम कोरोना अभिशाप और दानव बन कर सामने आया है! पृथ्वी पर तो हम सभी जीव मेहमान बनकर आए हैं किंतु मनुष्य तो मालिक बन अपनी मर्जी से नाचने लगा !
मानव अपनी भौतिक सुख की खातिर बड़ी बड़ी बिल्डिंग, कल कारखाने ,वाहन आदि आदि अनेक भोग की चीजें बनाने में लगा रहा चाहे उसके लिए उसे जंगल ,उपवन सभी साफ करने पड़े ,चाहे वायुमंडल विषैली गैस से क्यों न भर जाए ,वन्य जीव जंतु जो जंगल में स्वच्छंद विचरण करते थे हमारा आहार न बन जाए ,नदी ,नाले, सरोवर क्यों न पाट दिए जाए, क्यों  न पर्वत काट दिए जाए उसे तो अपनी मनमानी करनी है या आज पर्यावरण की अनदेखी कर जो क्षति पहुंची है बहुत कुछ इसका परिणाम है !विषैली गैस के वातावरण में फैलने से जीव जीव जानवर भी अब जहरीले हो गए हैं मनुष्य उसको अपना आहार बनाते हैं स्वाभाविक है वह विष ही देकर उनकी करतूतों का बदला ले रहे हैं ! यदि किसी तरह का संक्रमण दूषित वातावरण से उनमें आता है तो उन्हें आहार बनाने के बाद मानव में आना स्वाभाविक है !
अतः प्रकृति से छेड़छाड़ तो कारण है ही किंतु दूसरा कारण मनुष्य का ज्ञान और दिमाग है !
आज विज्ञान की दौड़ में सभी देश एक-दूसरे से आगे बढ़ना चाहते हैं मैंने पहले ही कहा है आज मानव ही दानव है और मानव ही भगवान !
चाइना से यह वायरस आया है इसकी पुष्टि करण मैं नहीं कर सकती किंतु पूरा विश्व इसकी चपेट में है ! 
विज्ञान की खोज अथवा आपस की जंग में हवा में जहर आखिर मानव ने ही फैलाया है अतः हमारा बोया हुआ बीज कोरोना वायरस बन हमारे सामने आया है !
अंत में कहूंगी मानव अब भी जाग अपने आप को भगवान ना समझ और अपने आहार विहार ,पर्यावरण ,जीव दया की पार्शिता सभी का ध्यान रख वरना कुदरत की लीला क्या क्या दिखाती है यह कोई नहीं जानता !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का ,
यही तो वक्त h सूरज तेरे निकलने का l 
इस सियाह रात के जिम्मेदार हे  मानव !
 तू तो बड़ा अहंकारी हुआ ,निज स्वार्थ पागल हुआ l
बनाकर विनाशक हथियार ,धरती माँ पर ही प्रहार किया ll 
मल -जल गिराकर नदियों मेँ ,
वरुण देव को ही प्रदूषित किया l
मूक प्रकृति कब तक सहे नतीजा तेरे कर्मों का ,
सामने आ रही तेरे विनाश की घड़ी तेरे अँगने 
निःसंदेह कोविड महामारी प्रकृति से छेड़छाड़ का परिणाम है l सुधी जनों पर्यावरण की चिंता कीजिये नहीं तो स्वयं पर्यावरण अपने आप को संतुलित करता रहेगा क्योंकि संतुलन ही प्रकृति का नियम है और नियम तो नियम ही है l इसकी पालना मेँ ही हम सभी की भलाई है और जो नियम नहीं मानता उसे जबरदस्ती मनवाया जाता है लेकिन नियम तोड़ने के परिणाम लॉकडाउन बढ़ाने के फैसले के रूप मेँ नियम मानने वालों को भी भुगतने पड़ रहे हैं l 
मन मयूर नृत्य करने वाला था ,मानो चकोर चकोरनी से मिलने वाला था ,पर एक दिन बंद हो गई उम्मीद की रोशनी क्योंकि  मानसिक उन्मादी रूपी "बुलडोजर" हमारी उम्मीदों पर भारी पड़ा है ,भारी पड़ा है लेकिन -देखना है अंदाज हमारे उड़ने का तो ,कह दो इन काली डरावनी घटाओं से कि थोड़ा और उठ जाये ,थोड़ा और उठ जाये l
ये जिंदगी अनमोल है प्यारे ,इस पर ध्यान दीजिए l गर जिन्दा रहना है तो प्रकृति छेड़छाड़ bnd कर पर्यावरण रक्षा संकल्प कीजिये l लेकिन इस जीवन संकट काल मेँ घर मेँ ही रहकर खुद ही को बुलंद इतना कीजिये कि खुदा भी तुझसे पूछे बंदे !तेरी रज़ा क्या है ?
लॉकडाउन बढ़ाना है  परिणाम हमारी  करतूतो का नहीं बेमानी है येमौसम की 
समझ सको तो समझो "मित्रों "क्या मतलब बाद में पछताने का है,समय अब भी रुष्ठ प्रकृति को मनाने का l
मानव ह्रदय में है कोरोना का भय
घातक जहर सांस में भी
हाथ मे है तलवार हमारे,पर है नहीँ मूठ l
बोलो सच कह रही हूँ या झूँठ l
प्रकृति सामंजस्य स्थापित करने के लिए विनाश की लीलाये कर रही है l दैनिक भास्कर मार्च19 हेल्थ डेस्क के अनुसार नेचर मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार कोरोना वायरस प्रकृति मेंहुए परिवर्तन का परिणाम है l स्पाइक प्रोटीन का आवरण जो मानव व जानवरों की त्वचा को भेदकर उन कोशिकाओं पर आक्रमण करता है जो ब्लडप्रेशर को विपन्कित करती है l यह मनुष्यों को संक्रमित कर तेजी से विश्व मे फैल रहा है l घर में ही रहकर इस संक्रमण चेन को तोड़ना है l इस महामारी पर विजय पाने का एक मात्र विकल्प है l
      चलते चलते
प्रकृति से छेड़छाड़ कर,
कैसा ग़जब किया हमने ये हाल l
कोरोना आदमख़ोर पैदा कर 
हम हुए बेहाल ll
- डाँ छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
निस्संदेह प्रकृति से छेड़ छाड़  का नतीजा तो भुगतना पडता ही है ।  किन्तु मैं इस बात से सहमत नहीं कि करोना प्रकृति द्वारा मानव को दी गई सजा है ।मेरा मानना है कि करोना चीन देश की अति महत्वाकांक्षा और विस्तारवादी निति का दुष्परिणाम है ।मैं समझता हूँ कि करोना चीन के वुहान शहर कि प्रयोग शाला से निकला एक घातक वायरस है जिसने सारी दुनिया के दो सौ से ज्यादा देशों को अपने लपेटे में ले लिया है ।                                  - सुरेन्द्र मिन्हास
                                        बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
 जब व्यक्ति के प्रयास कम पड़ने लगते हैं , तब वह या तो प्रकृति को, या ईश्वर को इस असफलता की वजह मानने लगता है । विज्ञान के इस युग में जब कोरोना जैसे वायरस की चर्चा होती है, तो हममें से अधिकांश लोग वायरस और जीवाणु में फर्क नहीं समझ पाते । क्योंकि जीवाणु नाश करने के अनेक उपचार हैं ; पर कोरोना, जो कि जीवाणु नहीं, और चूँकि ये वैज्ञानिकों के लिए नया होने से, अभी तक इसकी कोई वैक्सीन ईजाद नहीं हुई ; इसलिए लोग इसे प्राकृतिक प्रकोप से जोड़ कर देखने लगे। 
प्रकृति जब अपना प्रकोप दिखाती तो सम्हलनेे का मौका  नहीं देती पर कोरोना वायरस के मामले में ऐसा नहीं है ।
अब जबकि इसका नाम ही कोविड-19 है, तो स्पष्ट है, कि यह सन्-2019 से सक्रिय हुआ। 
चीन के वुहान शहर में- 26 दिसंबर 2019 से यह चर्चा में आया  ; यह बात अलहदा है कि तीन महीने तक इसके तांडव को देखने के बाद , 25 मार्च  को हम सचेत हो पाए और  देश में लाॅकडाउन शुरू किया गया । इटली और अमेरिका में हो रही मौतों से भी हम सावधान नहीं हुए और न ही इससे बचने की तैयारी की ओर ध्यान  दे पाए । न हमारे पास जाँच किट थे , न माॅस्क , न मैडिकल स्टाफ के लिये पीपीई किट, न क्वारंटाइन करने के लिए पर्याप्त स्थान और न अधिक मात्रा में संभावित संक्रमितों के लिये पर्याप्त अस्पताल न और न स्टाफ ।
30 जनवरी को हमारे देश में पहला कोरोना पाॅजिटिव केस आया और 25 मार्च को लाॅकडाउन शुरू हुआ , और तब तक हमने क्या किया , यह सर्वविदित है । आज हमारे देश में  लगभग 9140  लोग कोरोना संक्रमित हैं और  300 लोगों की  मौत हो चुकी है  ; वह भी तब, जब पर्याप्त मात्रा में जाँच की व्यवस्था नहीं है । 
ऐसे में हमें अपनी नाकामी प्रकृति के उपर मढ़ने के अलावा कोई चारा है भी नहीं । 
 हाँ यह बात सच है कि कोरोना के लाॅकडाउन से मनुष्य द्वारा फैलाए जा प्रदूषण और प्रकृति के दोहन में कमी आने से, प्रकृति कुछ मुस्कुराई है । 
कारखानों की गंदगी रुकने से नदियाँ स्वच्छ हो गईं, हिम पर्वत जो मानव के अतिक्रमण और गाड़ियों के प्रदूषण से  मलीन और अदृश्य हो रहे थे उनमें आश्चर्य जनक सौंदर्य दिखाई दे रहा है। पूरे देश की वायु शुद्ध हो गई है पर्यावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ गई है ।  पक्षी स्वच्छंद होकर चहचहाने लगे हैं , ध्वनि प्रदूषण रुक जाने के कारण उनका मधुर कलरव हम तक पहुँच पा रहा है और इस खालीपन में हम उसे महसूस करके आनंदित भी हो रहे हैं  ।
जब प्रकृति इतने सुन्दर रूप में आ गई है तो कोरोना को प्रकृति की विकरालता का कारण नहीं माना जा सकता । क्योंकि न तो कोरोना प्रकृति जन्य है और न ही प्रकृति की छेड़छाड़ का परिणाम।  हाँ सावधानी और स्वच्छता से कोरोना को शिकस्त दी जा सकती है ।
संभवतः कुछ महीनों में कोरोना का प्रकोप कम हो जाए पर सीमित संसाधनों में रहकर प्रकृति से छेड़छाड़ न करने का सबक तो कोरोना दे ही जाएगा ।
- वंदना दुबे 
  धार - मध्य प्रदेश 


" मेरी दृष्टि में " प्राकृति के साथ छेड़छाड़ कभी अच्छी नहीं होती है । जिससे वातावरण परिवर्तन के साथ - साथ बिमारियों का जन्म होता है । जिस का भुगतान मानव जाति के साथ - साथ अन्य जीव जन्तुओं को भी करना पड़ता है ।
                                                 - बीजेन्द्र जैमिनी









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