कोरोना की जंग में गरीब मजदूरों का योगदान क्या है ?

कोरोना की जंग में गरीब मजदूर के योगदान को कोई भूला नहीं सकता है । गरीब मजदूरों के काम छूट गये है । आठ - आठ , दस - दस साल से कर रहे काम को छोड़ कर रेहड़ी पर फल - सब्जी आदि बेचने के लिए मजबूर हो गये हैं । यहीं कुछ " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
 कोरोना की जंग में प्रत्येक व्यक्ति का एक अहम योगदान रहा दूसरों के लिए ना सही अपने लिए तो अवश्य ही रहा है क्योंकि घरों में या जो जहां था वहीं  ठहरकर सभी ग़रीबों और अमीरों ने जो योगदान दिया है निःसंदेह सराहनीय है लेकिन विशेष बात यह है कि ग़रीबों ने जो अपने धैर्य का परिचय दिया है ये बहुत बड़ा योगदान रहा है क्योंकि ग़रीबों के पास साधन प्रसाधनों, सुख सुविधाओं का अभाव स्वभाविक रूप से होता है ऐसे में एक से दो दिन तक रूकना ठहरना तो सामान्य बात है परन्तु अभावों में एक माह तक घर में ठहरना वह भी बड़े परिवार के साथ वास्तव में यह किसी योगदान से कम नहीं है ।
  वैसे भारत में ग़रीब की परिभाषा बता पाना मुश्किल है फिर भी जो जाने अनजाने स्वभाविक रूप से अपने सपनों के लिए न जी कर दूसरों के सपनों के लिए जीता है या काम कर रहा होता है वह सदैव गरीब का पर्याय ही है और ऐसी जनसंख्या भारत मे ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में निवास करती है । कोरोना की जंग में संयोग ये रहा है कि इसमें गरीब और अमीर दोनों समान रूप से प्रभावित हुए हैं क्योंकि कोरोना वायरस ने सिंहासन पर प्रभुत्व स्थापित करने वालों को भी नहीं छोड़ा है । इस महामारी के लिए कोई दवा नही है केवल सोशल डिस्टेंशिग ही उपचार है ऐसे में गरीब मज़दूर किसानों ने खेतों में काम करके अहम योगदान दिया है । मज़दूर व सफ़ाई कर्मचारियों ने बड़े जोखिम के साथ अपना योगदान दिया है । सबसे बड़ा योगदान रहा है ग़रीबों के अपने धैर्य का परिचय ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार 
धामपुर - उत्तर प्रदेश
 मजदूरो का योगदान जी यह सत्य है देश की तरक्की में मजदूर वर्ग का भी एक हिस्सा है दिल्ली हो या बम्बई या गुजरात सभी शहरो मे मजदूरो का अहम योगदान रहा हैै। ना जाने कितने मजदूरो पर लॉक डाउन की मार पड़ी सब कंपनियो पर ताला लग गया दूर दूर से नौकरी करने आये शहर गाँव से बिहार बंगाल से मजदूरो के सामने चुनौती खड़ी हो गई आ० प्रधानमंत्री जी के लॉक डाउन घोषणा कर दी देश को लॉक डाउन की आवश्यता है। देश मे मजदूरो की भगदड़ मच गई हर कोई घर जाना चाहता था सरकार ने गुहार लगाई सब घरो मे रहे भोजन जरूरत की सामग्री मिलेगी। छोटे छोटे कमरो मे कई लोग एक साथ रहने को मजबूर है गरीबी क्या कम थी और कोरोना संक्रमण फैल गया हालातो से लड़ रहे हैै और लॉक डाउन का पालन कर रहे है
कोरोना संक्रमण का योगदान देने के लिए पर क्या भूख और बेरोजगारी से जंग लड़ पायेगे।
छोटे छोटे मकानों में
हुई जिदंगी कैद
ना मजदूरी है मजबूरी
फैली कोरोना बीमारी।
ना खाने को ना हाथ पैसा
दौर आया कैसा ।
मै मजदूर जिन्दगी मजबूर
घर से है मिलो दूर ।
अपनो का ना साथ
रुपया नही हाथ।
लॉक डाउन का नियम निभा रहे
पेट में भूख के बादल गड़गड़ा रहे।
हिम्मत हौसले का देना परिचय
मै अपने देश के लिए 
हर हालात से लडूंगा
एक ना एक दिन की कोरोना संक्रमण
दूर करूंगा।
बस कुछ दिन सहूंगा
घर से नही निकलुगां।
हाँ मजबूर हुँ मजदूर हुँ मजबूत हुँ
- नीमा शर्मा हँसमुख
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
कोरोना के विरुद्ध यूँ तो हम सब लड़ रहे हैं लेकिन गरीब मजदूरों की व्यथा सबको विचलित कर देती है। आश्चर्य होता है ये सुन कर कि कोई मजदूर 600 तो कोई 1100 किलोमीटर तक पैदल चलकर अपने घर लौट आने को मजबूर था क्योंकि दूसरे छोर पर उनके लिए भूख और लाचारी के सिवा कुछ नही था। कहीं तो ऐसा भी हुआ कि चलते चलते कदम थक गए और मौत ने रास्ते में ही दबोच लिया। 
बावजूद इस सबके मजदूरों की कोरोना से लड़ाई जारी है। काम नहीं मिल रहा, बच्चे भूख से बिलबिला रहे होंगे और उन्हें एक दिलासा दिया जा रहा होगा सुनहरी भोर का।
एक स्थान पर तो ऐसा भी हुआ कि शरण पाने के लिए जिस स्कूल में रुके वहाँ अपने श्रम से मजदूरों ने भवन की पुताई कर उसका काया कल्प ही कर दिया। इससे साबित हुआ कि जिसके पास देने को कुछ नहीं होता कभी कभी वो अद्भुत उपहार देकर सबको चमत्कृत कर देता है। इन वीरों को शत शत नमन।
- मनोज पाँचाल
इन्दौर - मध्यप्रदेश
कोरोना संक्रमण के कारण देश भर ने दिहाड़ी यानी गरीब मजदूरों की हालत बहुत ही खराब हो चुकी है। लाखों की संख्या में गरीब दुज़रे राज्यों में फंसे हुए है। वो सभी अपने राज्य व गांव वापस लौटना चाहते है, लेकिन लॉकडाउन के कारण सभी मजदूर फसे हुए हैं। इन मजदूरों के सामने  खाने पीने के लाले पड़े है। 
इसी बीच यह बात भी सामने आई है कि गरीब मजदूरों को जहा ठहराया गया है वो उस मकान व स्कूल भवन की रंगाई 
पोताई कर रहे हैं। खाना बना रहे हैं। बागवानी करने के साथ साथ साफ सफाई का काम कर रहे हैं। इस बात का जिक्र पिछले रविवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात में कह चुके है। 
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
कोरोना महामारी से जंग लड़ने के लिए समाज के प्रत्येक वर्ग को अपनी सीमाओं में रहते हुए अपनी क्षमतानुसार, संयमित, सचेत, सावधान होकर अपना-अपना योगदान देना होगा। विभिन्न रूपों में गरीब मजदूरों के योगदान को भी कम करके नहीं आंका जा सकता। 
कोरोना के चलते जीवन-यापन के लिए अत्यन्त दुष्कर परिस्थितियों में भी अपना संयम बनाए रखना ही इस जंग में गरीब मजदूरों का सबसे बड़ा योगदान है। जिनका दैनिक रोजगार छिन गया हो, जमापूंजी का अभाव हो और महानगरों के घुटन भरे एक-दो छोटे कमरों में लाॅकडाउन में रहने जैसी त्रासद परिस्थितियों का सामना करने के बावजूद धैर्य खोकर सड़कों पर न निकलना कोरोना की जंग में गरीब मजदूरों का योगदान है। 
अन्तराष्ट्रीय श्रम संगठन ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि भविष्य में कोरोना वायरस संकट का सबसे अधिक प्रभाव श्रमिकों पर पड़ेगा। 
भविष्य की ऐसी भयावह तस्वीरों को देखते हुए गरीब मजदूरों का महानगरों से सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने गांव-देहात को शासन-प्रशासन से कोई उम्मीद किये बगैर और बिना किसी शोर-शराबे के परिवार सहित पैदल ही चल देना भी एक योगदान के समान है क्योंकि यही गरीब मजदूर चाहते तो महानगरों के प्रशासन से मदद की मांग करते हुए सड़कों पर निकल सकते थे जिससे महानगर प्रशासन की दुश्वारियों में वृद्धि होती परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया और अपने गांव आकर क्वांरटाइन का पालन भी किया है। 
इसके साथ-साथ उन सब्जीवालों, दूधवालों, रेहड़ी वालों, सफाईकर्मी, गैस वितरणकर्मी, चिकित्सा क्षेत्र में परिचारकों आदि का योगदान भी वन्दनीय है जो कोरोना काल की विषम परिस्थितियों में अपनी सेवायें दे रहे हैं। 
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखंड
कोरोना की इस महामारी में मजदूर का अपना बड़ा योगदान है जो मजदूर रोज कमाता रोज खाता हो अपनें घर से सैकड़ौ कौस दूर हो किरेयें मकान में रहता हो हम उसके योगदान पर आज चर्चा कर रहे है तो मैं बे हिचक निसंकोच कह सकता हु की मजदुर का भी बहुत बड़ा महत्वपुर्ण योगदान है ओर वह है इस निर्धन बेसहार मजबुर मजदूर का सय्यम उसकी एकिग्रता भुखे प्यासे रहकर भी कोरोना जंग मे अभुतपुर्व सहयोग देना परिस्थितिया जब गम्मभीर हो जाती है जब उस मजदूर के बच्चें माता पिता भी भुख से व्याकुल रहते है जिसे एक पालक पिता के नजर से देखना कितना कठिन होता होगा फिर भी वह इस जंग में तन मन संयम से साथ दे रहा है फिर भी कुछ शरारती तत्व कुछ नेता अपनी हरकतो से बाज नही आते गलत बयान देते है ओर मजदुरों को पलायन को मजबुर करते है दिल्ली का ही लो पहले कहा जाता है की मजदुरो के लिये उनके प्रदेश भेडने की व्यवस्था कर रहै है ओर वे जब सडक पर आ जाते है तो लावारीस छोढ़ दिया जाता है इसी प्रकार मुम्बई की घटना घटती है मजदूरो को गुमराह किया जाता है उन की साधना भंग की जायी है ओर उनहें बदनाम किया जाता है यदी मजदुरो को गुमराह नही किया जाता तो यकीनन मजदूरो का कोरोना की जंग मे महत्व पुर्ण योगदान महसुस करता हु मजदूरो  के संयम एकाग्रता सहनसीलता को ही मै उनका योगदान मानता हु।
- कुन्दन पाटिल 
देवास - मध्यप्रदेश
इस समय पूरा विश्व कोरेना संक्रमण की चपेट में जनता न आए, उसके लिए हर प्रकार के प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन भारत में दूसरे प्रकार का भी संकट है। यहाँ बहुत अधिक गरीबी है।
रोजगार के अवसरों का भी समान वितरण नहीं है। इसलिए यहाँ के अधिकांश राज्यों की गरीब और पढ़ी लिखी जनता रोजगार की तलाश में दूसरे प्रदेशों में जाकर वहाँ अपनी रोटी का इंतजाम करते हुए अपने परिवार के भरण – पोषण और उनकी अन्य जरूरतों के लिए के लिए धनार्जन करैती है।
कोरेना संकट से निपटने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक कदम उठाते हुए पूरे देश में लॉक डाउन लागू कर दिया और साथ ही यह अपील की कि सभी लोग अपने घरों में रहें, वहीं पर उनके खाने – पीने का इंतजाम सरकार करेगी। यह कदम उनके द्वारा अचानक उठाया गया था।
इसलिए फौरी इंतजाम करने में सरकार और प्रशासन दोनो को कुछ वक़्त लगा हाँ, इतना जरूर हुआ कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुरोध पर स्वयंसेवी संस्थाए और सेवाभावी लोग आगे आए।
और मास्क से लेकर उनके लिए फूड पैकेट का इंतजाम करने लगे । इसके बावजूद भी हजारो अधीर लोग पैदल ही अपने-अपने घरों के लिए निकल पड़े, हजारों किलोमीटर चल कर वे भूखे-प्यासे अपने घर पहुंचे, उनके पैरों में फफोले पड़ गए, फूट कर घाव बन गए और उसे देखकर ही किसी भी संवेदनशील व्यक्ति का हृदय द्रवित हो सकता है ।
एक सकारात्मक योगदान इस वर्ग का यही है कि ये लोग भी कोरॉना वॉरियर्स की तरह काम करते हुए हमारे घरों तक दूध, राशन एवं सब्जियों की निरंतर सप्लाई कर रहे हैं।जहां हम कोरोना से स्वयं को बचाने के लिए अपने घरों में कैद होकर बैठे हैं वहीं यह लोग हमारी दैनिक मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपनी जान की बाजी लगाकर जरूरी सामान हमारे घरों तक पहुंचा रहे हैं। इनकी इस समर्पण भावना को मैं सलाम करता हूं।
- कवि कपिल जैन
नजीबाबाद -  उत्तरप्रदेश
मजदूर और गरीब पर का देश के विकास में बहुत आसानबड़ा योगदान होता है उन्हीं के कारण देश की प्रगति संभव होती है अगर वह मिलों में काम ना करें तो हमें नए नए उत्पाद क्या सामान कहां से प्राप्त होगा उदाहरण के लिए अगर मजदूर कपड़े मिल में काम ना करें तो कपड़े कहां से बनेंगे?
मजदूर और गरीब वर्ग दुकानों में घरों में छोटी मोटी दुकान में में सब्जी बेचना ,अखबार बेचना, रद्दी सामान खरीदना आदि रोजमर्रा के काम इन्हीं के ऊपर निर्भर रहते हैं । उसे अर्थों में आप इन्हें अपने देश की जीवन रेखा भी कह सकते हैं।
इस महामारी की जंग में गरीब लोग अपने घर में रह रहे हैं उनके रोजगार भी छूट रहे हैं।
रोज की जो काम वे करते हैं वह नहीं कर पा रहे हैं जिससे उनका रोजगार छूट रहा है। वह बेचारे बेरोजगार हैं इस महामारी की जंग में सरकार और कई सामाजिक संगठन उनका सहयोग कर रहे हैं उन तक खाना-पीना और दवाइयों को पहुंचा रहे हैं। इस स्थिति में सबसे ज्यादा मुसीबत तो उन्हीं लोगों की है। महामारी की जंग की मार बेचारे सह रहे हैं खाने को नहीं आए इसलिए पैदल चलकर अपने घर गांव तक भी पहुंच नहीं पा रहे हैं। सरकार उनका फिर भी बहुत सहयोग कर रही है इसके लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारें पुलिस, डॉक्टर आदि लोग मदद कर रहे।1 माह का राशन और गैस फ्री सरकार ने सभी सरकारी राशन की दुकानों के द्वारा उनके लिए उपलब्ध सेवा की है।
अंधकार के बाद एक नई सुबह होती है।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
हमारा जीवन की गाड़ी मज़दूर वर्ग की वजह से चलती हैं रोज़मर्रा कीजिंदगी में हर वक्त वो हमारे लिये खडें है , 
लाईटमेन , प्लम्बर , माली . वाटरमेन , दर्जी , मिस्त्री , कामवाली , ड्राइवर, कचरे वाले 
आदि न जाने कितने जो हमारा काम करते है , ये न हो तो जीवन की कल्पना करना .........
अब लाकडाऊन में भी ये काम कर रहे है कचरा गाड़ी कचरा ले जाती है सब्ज़ी , दूध , राशन सब
मिल
रहा है , 
पर इनकी परवाह कौन कर रहा
है ..,,
कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए देश लॉकडाउन है लेकिन गरीब-मजदूरों पर दोहरी मार पड़ी है. बड़े शहरों से पलायन करने को मजबूर हैं दो जून की रोटी कमाने वाले. ऐसे में योगी सरकार से लेकर कई सरकारें मदद के लिए आगे आई हैं. इस बीच इन राज्यों में फंसे बिहार के मजदूरों को स्पाइस जेट से घर पहुंचाने की तैयारी है. योगी सरकार ने ऐसे ही लोगों की मदद के लिए हाथ बढ़ा दिया है. लॉकडाउन में फंसे लोगों और गरीबों के लिए कम्यूनिटी किचन की शुरुआत कर दी है. लखनऊ में ऐसे ही कम्यूनिटी किचन का सीएम योगी ने जायजा लिया, खाने का पैकेट देखा. वहां काम करनेवाले लोगों से बातें की. यहां भी सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखा गया. देखें इन मजदूरों के लिए सरकार की क्या है तैयारी.
संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए पीएम गरीब कल्याण योजना के तहत भारत सरकार नियोक्ता और कर्मचारी दोनों के प्रोविडेंट फंड के 24 फीसदी योगदान का भुगतान अगले तीन महीने तक खुद करेगी. यह उन प्रतिष्ठानों के लिए किया जाएगा जिनमें 100 तक ही कर्मचारी हों और जिनके 90 फीसदी कर्मचारी 15 हजार से कम वेतन वाले हों. इससे करीब 80 लाख कर्मचारियों और लगभग 4 लाख प्रतिष्ठानों को फायदा होगा.
इसके अलावा सरकार, पीएफ स्कीम रेगुलेशन में बदलाव कर नॉन रिफंडेबल एडवांस निकालने की सुविधा 75 फीसदी जमा रकम या तीन महीने के वेतन के बराबर जो कम हो की सुविधा देगी.
गरीब परिवार की महिलाओं को उज्ज्वला योजना के तहत 8 करोड़ महिलाओं को मोदी सरकार ने एलपीजी सिलेंडर उपलब्ध कराया. रसोई गैस के सिलेंडर की दिक्कत न हो इसलिए ऐसी 8 करोड़ से अधिक महिलाओं को अगले तीन महीने तक मुफ़्त में एलपीजी सिलेंडर दिए जाते रहेंगे.
63 लाख स्वयं सहायता समूहों को जिनसे सात करोड़ परिवार जुड़े गुए हैं, उन्हें 10 लाख की जगह 20 लाख रुपये देने का प्रावधान किया गया है. यह लोन बिना किसी गारंटी के मिलेगा.
संगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए जो नौकरी करने वाले हैं या नौकरी देने वाले हैं, वो संस्थान जहां 100 से कम कर्मचारी हैं और वो कर्मचारी जिनकी आय 15000 रुपये से कम है इनके लिए सरकार पीएफ का कुल पैसा यानी करीब 24 फ़ीसदी पैसा तीन महीने तक ख़ुद वहन करेगी.
पीएफ स्कीम रेगुलेशन में बदलाव कर नॉन रिफंडेबल एडवांस यानी 75 फ़ीसदी जमा रकम या तीन महीने का वेतन निकालने की सुविधा दी जाएगी.
कंस्ट्रक्शन सेक्टर में काम कर रहे मजदूरों के लिए सरकार अलग से फंड जारी कर रही है. बिल्डिंग एंड कंस्ट्रक्शन वर्कर वेलफेयर फंड के तहत 31 हज़ार करोड़ का फंड उपलब्ध है. राज्य सरकारों को निर्देश दिए गए हैं कि इस फंड का इस्तेमाल उन गरीबों के कल्याण के लिए किया जाए. इसका फायदा 3.5 करोड मजदूरों को मिलेगा.
डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड राज्य की सरकारों के पास उपलब्ध होता है. इसका इस्तेमाल राज्य की सरकारें स्वास्थ्य की जांच और दूसरी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए करें.
सरकार ने निर्माण कार्य में लगे मजदूरों के लिए भी घोषणा की है. वित्त मंत्री ने कहा कि कोरोना संकट के समय कंस्ट्रक्शन वर्कर्स को काफी दिक्कतों को सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में इनको वेलफेयर फंड से मदद दी जाएगी. 3.5 करोड़ रजिस्टर्ड मजदूरों के लिए यह 31,000 करोड़ का फंड उपलब्ध है. राज्यों को निर्देश दिए गए हैं कि कोरोना से पैदा हुए व्यवधान से इस फंड का इस्तेमाल इन कंस्ट्रक्शन वर्कर्स के हित के लिए किया जाए.
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
कोरोना की जंग में गरीब मजदूरों का योगदान उनकी सहनशीलता,  और धैर्यता है। जीवन में सबसे बेबस, नीरस और सपने विहीन आँखों वाला कोई है तो वह गरीब मजदूर ही है। जो न गुजरे कल में जीता है और न आने वाले कल में। वह आज याने वर्तमान में जीता है । ये उसका शौक नहीं है। उसकी मजबूरी है। जीवन में पूँजी की जो अहमियत होती है,इन्हें पता तो है परंतु उपलब्ध नहीं है। पर्याप्त नहीं है। बस, इतनी कि आज का और दूसरे दिन घर से निकलने तक का काम चल जाये। इस सबके बावजूद संतोष इतना कि जो है, जो मिला उस में सहमत, उसमें ही खुश। इन्हें दूर की सोचना आता ही नहीं । लंबे पैर पसारे तो दीवार से सिर लगता है।
इसीलिए आज जब पूरा देश कोरोना आपदा से जूझ रहा है, संघर्षरत है और लॉक डाउन के सुरक्षा कवच में घर के भीतर है तब ये गरीब मजदूर जिन मुश्किलों में जी रहे हैं या जी रहे होंगे इसकी कल्पना करने से सिहरन हो उठती है। क्या बना रहे होंगे, क्या खा रहे होंगे? कैसे गुजर-बसर हो रही होगी। चिंतनीय और दुःखद पहलू है। उन सभी तक शासन की योजनाओं का लाभ, स्वयं सेवी संस्थाओं की सेवाएं पहुँच रहीं  हैं कि नहीं, संदेहजनक ही है।
   अतः उनका ये संघर्ष, उनकी पीड़ा, उनकी बेबसी इन सब का योगदान इस कोरोना की जंग में माना और गिना जाना चाहिए। साथ ही इस भीषण त्रासदी से जितने जल्दी हम सब उबरें ये भगवान से प्रार्थना करना चाहिए ताकि यह दुःखद संघर्ष का अँधेरा शीघ्र खत्म हो और खुशहाली के सूर्योदय के साथ नया सबेरा हो ।
 - नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
कोरोना से जंग में गरीब मजदूरों का योगदान वास्तव में बहुत बड़ा योगदान है,क्योंकि काम और आमदनी बंद होने पर, घर में रहते हुए जीवन यापन करना समर्थ और धनवान वर्ग के लिए तो आसान हो सकता है, लेकिन दिहाड़ी मजदूर और ठेकेदारी मजदूर के लिए कितनी मुश्किल होगी? अंदाजा लगाना बहुत आसान नहीं है। इस विषम परिस्थिति में अपने घरों में कैद रह कर, आधी अधूरी रोटी खाकर, कभी भूखे पेट भी रहकर, जो मजदूर सरकारी आदेशों का पालन करते हुए लाकडाउन की स्थिति में पूरा सहयोग कर रहा है,उसका योगदान महत्वपूर्ण है। मजदूर पर तो दोहरी मार पड़ी है। एक तरफ फैक्ट्रियां बंद, काम बंद,आवागमन के साधन बंद और मालिकों ने काम से भी हटा दिया।कितना भी पैदल चलना पड़ा हो, अपने घर पहुंच ही गये। अब क्या करें ? फिर भी लाकडाउन में जिस तरह से अपना जीवन यापन करते हुए, कोरोना से इस जंग में योद्धा की तरह मजबूती से डटा हुआ है। सेल्यूट है उसकी राष्ट्रहित की भावनाओं के लिए और इस जंग में मजबूती से लड़ने के लिए।
- डॉ अनिल शर्मा'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
कोरोना वायरस की वजह से लॉक डाउन में सरकार के आदेश का पालन  गरीब मजदूरों ने ईमानदारी से निभाया है। और जैसे भी करके घर से नही निकले इससे बड़ा योगदान और क्या हो सकता है।  जो मजदूर सुबह से काम के लिए निकलता है और रात को आता हो, और अचानक सब कुछ लॉक डाउन में बदल जाए। ऊपर से पालन भी ईमानदारी से । हालांकि ये लोग अनेक कठिनाईओ का सामना इन्होंने भी किया है। लेकिन अपनी जान के लिए ,अपने परिवार के लिए घर से नही निकले। यही बड़ा योगदान है।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
गरीब मजदूर राष्ट्र के रीढ़ होते हैं। राष्ट्र को सशक्त बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं । मेहनतकश मजदूर हीं राष्ट्र के नींव को मजबूती प्रदान करते हैं तभी उद्योगपति सफलता प्राप्त करते हैं।
करोना जैसी महामारी जिससे पूरा विश्व त्रस्त है उसका सबसे बड़ा खामियाजा गरीब मजदूरों को भुगतना पड़ रहा है। अमीरों द्वारा लाई गई बीमारी का शिकार गरीब मजदूरों को होना पड़ा। हम सभी को उनका शुक्रगुजार होना चाहिए क्योंकि उनकी रोजी-रोटी छिन गई , आय का कोई स्रोत नहीं , अपना व अपने परिवार के लिए दाने-दाने को मोहताज होने के बावजूद भी इस विकट परिस्थिति में देशहित को ध्यान में रखते हुए वे सभी लॉक डाउन का पालन करते हुए सरकार का साथ निभा रहे हैं । सरकार के फैसले के प्रति उनके मन में आक्रोश नहीं । ये मूक समर्थन ही सरकार और देश हित में उनका अमूल्य योगदान है।
       भविष्य सुरक्षित रहे, जीवन सुरक्षित रहे ,
 हमारा देश एकजुटता का मिशाल बन जाये----इस भावना को दिल में समेट वे कई कई दिन भूखे पेट काटे  पर गरीब भाई -बंधु विद्रोही रूप नहीं अख्तियार किए । लॉकडाउन की सबसे बड़ी मार उनके जीवनयापन पर पड़ी तदुपरान्त वे संयम व  सहनशीलता का परिचय देते हुए अपना योगदान देश हित में अप्रत्यक्ष रूप से प्रदान कर रहे हैं ।
    हम सभी को उनका हार्दिक आभार जताते हुए उनकी दयनीय स्थिति के बारे में गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है ।
                             - सुनीता रानी राठौर
                             ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
"  समरथ को नहिं दोष गुसाईं "
सामर्थ्यवान कोरोना जंग में सहयोग कर रहा है वे प्रशंसा के पात्र है ,लेकिन सुदामा के रूप में छोटे मोटे दिहाड़ी मजदूरों का सहयोग बेहद अहम है l उनके सामने रोजी रोटी का संकट है ,उसमें भी अपना सहयोग दे रहे हैं l वे डाक्टरों तथा सरकारी एजेंसियों की सलाह मानकर क्वारेंटाइन रह रहे हैं ,उनका यह कदम न केवल उनकी रक्षा करेगा उनके परिवार ,मित्र और राष्ट्र का जीवन बचाएगा l इतिहास इस बात का साक्षी रहेगा कि जब पूरा राष्ट्र एक जुट होकर कोरोना -19का युद्ध लड़ रहा था तो गिलहरी की भाँति यथायोग्य धन से नहीं तो तन मन से सहयोग हम सुदामाओं ने भी दिया था l 
      अनेक मत और मज़हब के लोगों ने सहयोग देकर इस महामारी को रोकने में अपनी अहम भूमिका निभाई है l 
   कोरोना मानवीय क्रांति लेकर आया है l भारत के गरीब और कामगार आबादी के लिए तो यह चुनौती भरा समय है l इस चुनौती में लॉक डाउन की पालना करके छोटे मजदूर "तिनके "की भाँति कारगर साबित हो रहे हैं l 
वीर प्रसूता राजस्थान की माटी के पुत्र गाड़िया लुहार कभी जंगलों में भटकते महाराणा प्रताप को भामाशाह ने अपनी जमा पूंजी समर्पित कर दी थी उसी तरह इस जाति के गरीब लोगों ने 51,000/=रूपये की जमा पूंजी लॉक डाउन में अपने से ज्यादा जरूरत मंदो की मदद के लिए भेंट कर दी l धन्यवाद के पात्र हैं ,ऐसे भामाशाह और उनका यह कदम /नेक कार्य हर भारतवासी को प्रेरित करने वाला है l ऐसे कर्मयोगी मजदूरों भामाशाहों के लिए ,उनके जज़्बे को सलाम l 
  चलते चलते -
 कभी तो इक दिया जलाये हम 
  यह अँधेरे के मंजर सिमट जायेंगे 
जो हाथ आदाब के लिए नहीं उठ सके 
वो भी कोरोना कर्मवीरों के लिए उठ जायेंगे l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
      करेला और ऊपर से नींमचड़ा वाली कहावत उपरोक्त प्रश्न "कोरोना की जंग में गरीब मजदूरों का योगदान क्या है?" पर पूरी तरह चरितार्थ हो रही है।
      क्योंकि उक्त प्रश्न में 'गरीब' और 'मजदूर' शब्द का प्रयोग एक साथ किया गया है।जबकि यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक गरीब, मजदूर हो और प्रत्येक मजदूर गरीब ही हो।
      सर्वविदित है कि अन्नदाता कहलाने वाले किसान भारत में सब से अधिक गरीब हैं। जिन्हें अपने छमाही कड़े परिश्रम के बदले सरकार द्वारा मजदूर के लिए निर्धारित मजदूरी भी नहीं मिलती। फिर भी इन विकट परिस्थितियों में आप अन्नदाता को मजदूर नहीं कह सकते। क्योंकि किसान ने कोरोना जैसी महामारी में भी देशवासियों के लिए अन्न उत्पादन कर महा योगदान दिया है।ताकि कोरोना महामारी से बचने के उपरांत कोई देशवासी भूख से ना मरे। जिस पर पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी का नारा 'जय जवान जय किसान' भी सटीक बैठता है।
      रही बात मजदूरों की तो उन्होंने संगरोध अर्थात लाॅकडाऊन में सिद्ध कर दिया है कि भले ही 70 वर्षीय भारतीय स्वतंत्र सरकार 40 दिन में ही आर्थिक बेबसी का रोना रो रही है।परंतु वह संगरोधी योद्धा सरकार की भांति "हैंड टू माउथ" अर्थात निर्धनता का जीवन नहीं जी रहे हैं।
      अतः कोरोना युद्ध में गरीबों, मजदूरों और किसानों का योगदान अकल्पनीय, अवर्णनीय, अनमोल, सर्वोच्च एवं अद्वितीय है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
भौतिक सुख सुविधाओं से दूर तन पर कुछ कपड़े, चटपटे स्वाद से दूर, पेट भरने हेतु वह भी परिश्रम के उपरांत दो वक्त की रोटी मिल जाए ।यह है हमारे गरीब भारतीय मजदूर की दशा। फिर भी आज करोना जंग में इनका बेमिसाल धैर्य, हिम्मत का दान दर्शनीय है। कोरोना  जंग में देश के अधिकतर गरीब मजदूरों के पुरुषार्थ- परिश्रम तथा देश की जनता की सहायता हेतु उनके अविस्मरणीय योगदान को प्रथम तो कोटिश: नमन करते हैं; क्योंकि यही सबसे अधिक ऊर्जावान देश के विकास को गति देने वाले इन गरीब मजदूर के ही श्रम- बिंदु हैं।
       बनावट से  कोसो दूर जीवन जीने वाला कोई दूध वाला, सब्जी वाला, पेपर वाला, गैस सिलेंडर का आवंटक या फिर कचरा उठाने वाला, दैनिक उपयोग की चीजें लोगों को उपलब्ध करा रहे हैं; उनका योगदान हम सब को उनके कर्तव्यपालन का बोध कराता है; वह भी इन दिनों सुरक्षा के तौर पर मास्क या गमछे के प्रयोग मात्र से ही।  
                अपने परिवार का पालन- पोषण एवं जनता के हित को ध्यान में रखकर वास्तव में यह मजदूर अपनी जीवन- जिंदगी का भी जोखिम उठा रहे हैं। हम सबको इनके योगदान एवम श्रम को देखते हुए उनके पारिश्रमिक में या हर प्रकार के सहायता हेतु किसी भी प्रकार की कटौती या कोताही नहीं बरतनी चाहिए; क्योंकि सत्य ही कहा गया है-----
 "   श्रमेव जयते"
 - डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
कोरोना के जंग में मजदूर का योगदान बहुत ही मार्मिक है।
गांव से से बड़े शहरों में जिन्दगी को नये ढंग से जीने आए थे लेकिन कोरोना ने उनकी जिंदगी को दाव पर लगा दिया अब जीने के लिए गांव कस्बों में शीघ्र ही लौटना चाहते हैं।
मजदूरों का योगदान बहुत ही महत्वपूर्ण है चूंकि आज इस वर्ग के कारण ही मध्यम या उच्च और अन्य वर्ग के सभी कार्य उनकी सहायताके आधार पर ही कर पाते हैं
- डॉ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र   
कोरोनावायरस की दुःखदायी स्थिति से देश मे लगे  लॉक डाउन मे मजदूरों का देश के लिए योगदान   अविस्मरणीय रहेगा। भारत में मजदूर भयंकर परिस्थिति का सामना कर रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक भारत में कम से कम 90 प्रतिशत लोग गैर संगठित क्षेत्रों में काम करते हैं ।यह लोग सिक्योरिटी गार्ड ,सफाई करने, वाले रिक्शा चलाने वाले, रेहड़ी लगाकर सामान बेचने वाले ,कूड़ा उठाने वाले ,सड़क के किनारे पानी की बोतल बेचने वाले ,बूट पॉलिश करने वाले और घरों में नौकर नौकरानी के रूप में काम करने वाले अनेकों लोग हैं ,जिनकी जिंदगी उनकी नकद आमदनी  पर टिकी होती है ।यह रोज कमाते हैं  रोज खाते हैं।रोज का रोज मेहनताना  जिसे यह पूरे दिन काम करके करने के बाद घर लेकर आते हैं ।इनमें से कोई प्रवासी मजदूर है और कोई अपने ही राज्य का है ।प्रवासी मजदूर का मतलब होता है कि यह किसी दूसरे राज्य के निवासी हैं ,और यह काम  करने के लिए दूसरे राज्य से आये हैं।इसके बाद समस्या आती है उन लोगों की जो लोग पूरे साल एक राज से दूसरे राज्य में काम की तलाश में आते जाते रहते हैं ।
भारत में ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं है जो सड़क के किनारे ठेला लगाकर अपना व्यापार करते हैं पानी बेचते हैं ,स्टेशनों पर बूट पॉलिश करते हैं ,वह सभी असहाय की स्थिति में इस समय बिखरे हुए हैं एवं स्तब्ध  हैं।उनका कथन है कोरोना वायरस से पूरी दुनिया संघर्ष कर रही है जिन लोगों के ठौर ठिकाना ही , वह घर के अंदर  हैं । अब हमारे जैसे लोगों के पास दो ही विकल्प हैं, एक सुरक्षा और दूसरा  भूख। किसे चुनना है यह हम कैसे  तय करें ।यहां पर यह कहना गलत ना होगा कि लॉक डाउन की स्थिति में कोरोना के दुष्प्रभाव से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले गरीब मजदूर ही हैं ।गरीब मजदूर इस समय चाहे वह अपने गांव पहुंच गए हों या अभी भी प्रवासी की स्थिति में  ही परन्तु उनका  चुपचाप अपने अपने ठिकानों पर विवशता की चादर ओढ़कर लाक डाउन का पालन करना एक बड़ा योगदान माना जायेगा समाज के प्रति।  क्योंकि उनके सामने रोजी-रोटी की भयंकर समस्या है हालांकि सरकार व निजी संस्थान भी इनको सहायता भी दे रहे हैं। भोजन राशन  आदि वितरित किया जा रहा है ।मगर फिर भी पूरी तरह से सरकार की भी हर सहायता इन तक सीधे नहीं पहुंच पा रही  है ।ऐसे में हाथ पर हाथ रखकर समाज का एवं स्वयं का बचाव करके ,अनिश्चितता की ओर टुकटुकी लगाकर अपने ठिकानों में खुद को कैद कर लिया हैं ,यही क्या कम है ।उन ग़रीबो का इस समय देश के लिए यही बलिदान है ,यही योगदान है ।
- सुषमा दिक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
घर, समाज और देश के विकास की मजदूरों के बिना कल्पना कर पाना कठिन है।मिलों, फैक्ट्रियों, खेतों आदि सभी जगह मजदूर काम करते हैं। कोई इनका विकल्प भी हो पाना कठिन है।
      अपने गाँव-कस्बों को छोड़ कर ये जीविकोपार्जन के लिए शहरों में आए थे। कोरोना संकट से पूर्व सब ठीक चल रहा था। पर कोरोना फैलने और लॉक डाउन के कारण इनके लिए आर्थिक संकट उत्पन्न हुआ। रोज काम कर खाने वाले को समस्याओं का सामना करना पड़ा और शायद इसी से प्रभावित होकर ये लोग अपने परिवार सहित भूखे-प्यासे पैदल ही गाँव के लिए निकल पड़े।
         शासन-प्रशासन के द्वारा इनके लिए कदम उठाए गए हैं, इनकी समस्याओं के समाधान भी करने का प्रयास किया जा रहा है, भोजन भी दिया जा रहा है। ये लोग भी नियमों का पालन कर रहे हैं।
      धीरे-धीरे सामान्य होते ही इनका जीवन भी पहले की तरह सामान्य होगा। ये भी हमारे सैनिकों की तरह अपने क्षेत्र में अपना योगदान देते रहे हैं। इनको उपेक्षित करके काम कर पाना तो हो ही नहीं सकेगा।
       हम सभी इस अंधेरे से निकल कर नया सवेरा देखेंगे यह विश्वास तो रखना ही होगा।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
 हमारा भारत गांव का देश है गांव में कृषि कार्य की जाती है कृषि कार्य कृषक और मजदूर दोनों मिलकर करते हैं दोनों के सहयोग से ही उत्पादन किया जाता है उत्पादन से वस्तु गांव और शहर तक पहुंचाई जाती है जिससे लोगों की आवश्यकता की पूर्ति होती है वर्तमान में करुणा की जंग में गरीबी मजदूरों का योगदान लाख डाउन में जो नियम व शर्तें बनाई गई है उसका गरीब लोग अपनी गरीबी खेलते हुए भी लाख डाउन का पालन कर अपने समझदारी का प्रमाण दे रहे हैं गांव में रहने वाले मजदूर किसानों के पास उत्पादन करने में योगदान दे रहे हैं और कुछ मत दो गांव से उत्पादित वस्तुओं को शहरों तक पहुंचाने में सहयोग दे रहे हैं शहर के मध्य सफाई कार्य और सामानों को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाने में और आवश्यकतानुसार विभिन्न कार्यों में अपना भागीदारी निर्वहन कर रहे हैं इस तरह देखा जाए तो करुणा की जंग में हमारे भारत के सभी भारतवासी चाहे मत दूर हो चाहे किसान हो चाहे व्यवसाई हो चाहे धनवान हो कोई भी व्यक्ति अपने यथाशक्ति सूझबूझ के साथ एक दूसरे का सहयोगी बनकर करुणा की जंग जीतने में लगे हुए हैं गरीब मजदूरों का योगदान हमारे भारतवर्ष के लिए बहुत महत्व रखता है अगर गरीब मजदूर नहीं होते तो आज मनुष्यों को भोजन नहीं मिल पाता क्योंकि उन्हीं के क्रम से किसान लोग आश्रित रहते हैं और दोनों मिलकर के कादन कर लोगों की पोषण करने में लगे होते हैं गरीब दोस्त दिखने में गरीब लगते हैं लेकिन उनका दिल बहुत बड़ा होता है तभी तो वह पूरे संसार को अपने श्रम से भोजन की व्यवस्था करने में अपने जीवन को सार्थक बना लेता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
सर्वप्रथम मैं यह कहूंगी कि हमारा देश कृषि प्रधान देश है और यदि कहूं कि देश की साठ सत्तर परसेंट लोग इस में संलग्न है तो अतिश्योक्ति न होगी ! कुदरत की आपदा जब इन पर बरसती है तब तो यह भगवान को याद करते हुए अपने पेट की आग बुझाने के लिए बैठ नहीं जाते बल्कि संघर्ष के साथ युद्ध के लिए पेट की आग बुझाने के लिए किसी दूसरे जगह बस जाते हैं ! देश के किसी भी राज्य में किसी भी शहर में जहां काम मिलता है बस जाते हैं ! 
 आज कोरोना महामारी के चलते जो लॉक डाउन है उसमें गरीब मजदूर खास जो प्रवासी हैं बहुत तकलीफ में आ गए हैं ! दिहाड़ी मजदूर जो रोज कमाते और रोज खाते हैं जिनको रहने का भी ठिकाना नहीं है वह काफी दयनीय अवस्था में आ गए हैं ! यह मजदूर गांव से आकर गृह निर्माण मजदूर, घरेलू श्रमिक,ईंट की भट्टी में काम करने वाले ,कृषि ,खदान ,परिवहन आदि आदि किसी भी काम के लिए श्रमिक बाजार में आते हैं और अपनी योग्यता अनुसार काम करते हैं और कोई किराए का घर लेता है ,कोई मालिक की साइड में ही झोपड़ी बनाकर रहते हैं ! मोटा खाते और मोटा पहनते हैं उनकी जरूरतें भी कम होती है उसी में खुश रहते हैं किंतु आज कोरोना के चलते इस लॉक डाउन से तकलीफ तो सभी को आई है! 
देश का आर्थिक तंत्र डगमगा गया है ! आज थम गए इस आर्थिक तंत्र को गति नहीं देनी होगी ?अवश्य देनी होगी इस संघर्ष के समय में सभी का सहयोग होना जरूरी है ! किसी भी समाज को देश को गतिमान बनाए रखने के लिए समाज में बहुत सारे लोग अपना सर्वस्व देकर छोटे-मोटे संघर्ष कर रहे होते हैं !
 मजबूरी में दो पैसे कमाने के लिए गांव से अपना घर बार छोड़कर आए हुए यह मजदूर सैनिक से कम नहीं है गांव से आकर अपना पेट तो भरते हैं साथ ही कुछ पैसे बचा अर्थव्यवस्था को गतिमान रखने वाले यह मजदूर गांव में खेती के लिए जमीन भी रखते हैं अर्थात ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में रीड की हड्डी का काम करते हैं ! 
देश की सीमा पर तो हमारे फौजी सैनिक हर पल संघर्षरत रहते हैं बिना जान की परवाह किए बिना उन्हें में शत-शत नमन करती हूं किंतु देश के विकास में मजदूर सैनिकों का भी कम योगदान नहीं है ! मैं इन्हें भी नमन करती हूं देश के विकास के लिए हर क्षेत्र में चाहे उद्योग के क्षेत्र में ,गृह निर्माण के क्षेत्र में, कृषि क्षेत्र में, मजदूरों के पसीने की बूंदे ना बही हो ! यही मजदूरों के पसीने की बूंद सोना बन निखरती है ! 
जब हमारे देश की अर्थव्यवस्था इतनी सुदृढ़ हो जाती है कि अन्य देशों की भी मदद कर पाती है !मजदूरों का हमारे देश के विकास में पूर्ण योगदान है और अभी तो लॉक डाउन के बाद हमारी आर्थिक व्यवस्था को सुधारने में इनकी पूरी भागीदारी रहेगी ! 
  अतः हमें  भी ऐसी स्थिति में दोबारा मजदूर गांव  ना भाग जाए अपने घर में  रहें इसके लिए  हमारा भी फर्ज  बनता है कि उनकी सुरक्षा के लिए कुछ किया जाए  !
सरकार को उन्हें एक पहचान देनी होगी! 
 श्रमिक बाजार में गांव से आए हुए मजदूरों को पहचान संख्या दे बैंक के साथ जोड़ देना चाहिए कोई कठिन नहीं है आईटी और डिजिटल का जमाना है !
अंत में कहूंगी हर नागरिक संघर्ष के समय कुरुक्षेत्र में समाज और देश का सैनिक है समय के अनुसार गलतियां होती है और सुधारी भी जाती है ! इस महामारी के हमले से कोई नहीं बचा है सभी ने कष्ट सहा है किसी के हिस्से कम तकलीफ आई किसी को ज्यादा तो -
 बीता हुआ हर लम्हा जिंदगी को समझने का एक अच्छा मौका है और आने वाला हर लम्हा जिंदगी जीने का दूसरा मौका है !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
कोरोना की जंग में जहाँ स्वास्थ्य कर्मी, पुलिस और सफाई कर्मियों का प्रत्यक्ष योगदान दिखाई दे रहा है वहीं उनके बाद मजदूर वर्ग का बहुत बड़ा अप्रत्यक्ष योगदान है ।
इतने लंबे लाॅकडाउन में जिनके घरों में खाने को नहीं है , चूल्हा जलाने की व्यवस्था खत्म हो गई है । पैसे नही है कहाँ से दूध की व्यवस्था हो , कहाँ से तेल की व्यवस्था हो, कहाँ से दवाईयों की व्यवस्था हो : यह एक बड़ा प्रश्न है  । कोरोना से सुरक्षा के लिए बार-बार  हाथ धोना है पर जिनके पास खाने को नहीं, वे हाथ धोने के लिए इतना साबुन कहाँ से लाएंगे ।
सरकार, समाजसेवी संस्थाएँ और उदारमना दानदाताओं द्वारा मदद के प्रयास नाकाफी हैं । क्योंकि सब तक मदद पहुँच पाना मुश्किल है। 
तंग गलियों, छोटी छोटी झोपड़ियों में आठ दस लोग इस प्रकार अभाव में भूखे रह कर भी जीवन जीने को विवश हैं ।
वास्तव में कोरोना की जंग में इनका यह त्याग बहुत बड़े योगदान के रूप सामने आया है ।
जहाँ मध्यम वर्गीय और उच्च आर्थिक स्थिति वाले लोग सक्षम है और उन्होंने आवश्यक वस्तुओं की कई दिनों की व्यवस्था कर ली है, वहीं ये रोज कमाकर गुजारा करने वाले लोग  भूखे ही अपने घरों में एक प्रकार से सजा भोग रहे हैं। 
इतना ही नहीं अचानक लाॅकडाउन घोषित होने के बाद बिना किसी से कुछ मांग और  शिकायत के ये चुपचाप पैदल ही छोटे छोटे बच्चों को लेकर  सैकडों किलोमीटर दूर अपने गांवों की ओर निकल पड़े ।
तपती धूप में लगातार पैदल चलने से कितने ही मौत के शिकार हो गए , कितने ही बीमार हो गए और फिर वे अब तक अपने घरों तक पहुँचे भी कि नहीं  यह भी नहीं मालूम । और यदि पहुँच भी गए तो उनकी जरूरी व्यवस्था कैसे पूरी हो रही है? यह सब 
सोच के विषय है 
पर इतना तो निश्चित है कि कोरोना की जंग में सबसे बड़ा त्याग और योगदान इन गरीब मजदूरों का ही है ।
- वंदना दुबे 
  धार - मध्य प्रदेश
हमारे देश का एक बहुत बड़ा तबका गरीब मजदूर संघ का है।इस वैश्विक महामारी के समय जब सारी दुनिया इस जंग से लड़ रही है,तब इन मजदूरों पर दुगनी मार पड़ रही है,मतलब एक तो महामारी का डर ,दूसरी रोजी रोटी, बेरोजगारी कि महा दिक्कतों से ये बेचारे रोज जूझ रहे हैं ।अपने घरों से कोसों ‌दूर रोजगार के लिए ये लोग अनगिनत महानगरों में फंसे हुए हैं ।आजकल काम_ काज तो लगभग बंद है,,फिर रोज़ कमा कर खाने वालों की हालत बद से बद्तर होती जा रही है ।काफी लंबे समय से बंदी के कारण ये मजदूर भाई बहुत परेशान हैं । सरकार उपाय कर रही है इन लोगों के लिए मगर वह पर्याप्त नहीं है, क्योंकि आबादी अत्याधिक है । मजदूरों की बेबसी हम सब ने दूरदर्शन पर भी देखा कि कैसे लाचारी ,बेबसी में घर ,गांव के लिए ये लोग पैदल हीं निकल पड़ते हैं । फिर भी सरकार के बोलने से ये लोग यथावत जो जहां है वहीं किसी तरह रह कर अपना समय काट रहे हैं,कि आगे फिर सब ठीक होगा ।इनका हर क्षेत्र में योगदान है । अभी किसी अखबार में प्रकाशित खबर आई थी कि एक स्कूल में रखे गये  मजदूरों ने उस स्कूल का रंग रोगन कर उस जर्जर अवस्था के स्कूल का कायाकल्प हीं बदल दिया । सारांश यह है कि हुनर , योग्यता का इस बुरे समय में इन लोगो ने कितना सही इस्तेमाल किया,ऐसे गरीब मजदूरों का सम्मान करना चाहिए । देखा जाए तो आज के इस भयानक परिस्थितियों में भी हर व्यक्ति एक चुनौती भरी जिंदगी जी रहा है सुनहरे सुबह के इंतजार में ।समय लंबा जरूर है मगर अंतिम में अच्छे दिनों की सबको उम्मीद है।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
कोरोना की जंग में सबसे ज्यादा यदि कोई परेशान हुआ है तो वो मजदूर  हैं । ये व्यथा ही है कि जो सबके लिए घर , उपयोगी समान व मिलों में अपना पसीना बहा कर  दिन रात एक कर रहे थे उन्हें लॉक डाउन के कुछ दिनों के भीतर ही अपनी जगह छोड़कर पैदल जाना पड़ा । लंबी यात्रा पर बिना कुछ सोचे चल दिये आखिर संकट की घड़ी में अपना मूल स्थान ही काम आता है । महानगरों में केवल तभी तक रह सकते हैं जब तक उपयोगी हैं जैसे ही काम रुका उनको अपने- राज्य को लौटा दिया गया । इस सबके बाद भी इन लोगों ने एक सच्चे भारतीय का धर्म निभाते हुए लॉक डाउन के नियमों का पालन किया व प्रशासन का  सहयोग किया । जो समझदारी इन लोगों ने दिखायी वो वास्तव में एक सच्चे नागरिक होने का सबूत है । 
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
       
" मेरी दृष्टि में " कोरोना की जंग में गरीब मजबूर का रोजगार चल गया । घर से बेघर हो गये । पैदल ही अपने गांव को चल दिये हैं । रास्ते में पकड़े जाते हैं ।शेल्टर होम में रह कर जीवन यापन कर रहे हैं । गरीब मजबूर के  इस योगदान को कभी भूलाया नहीं जा सकता है । यह योगदान असहनीय पीड़ा से भर हुआ है ।  हम सब को इन को सलाम करना चाहिए ।
                                                         - बीजेन्द्र जैमिनी

 सम्मान पत्र






Comments

  1. 'कोरोना के जंग में गरीब मजदूरों का योगदान' विषय पर एक साथ इन सभी लोगों के विचार को पढ़ना अच्छा लगा. एक अच्छी चर्चा के लिए आप सभी को बधाई.

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  2. गरीबो के योगदान की गाथा सदियों तक याद की जाएगी | गरीब मजदुर आज अपने आप से यह वादा करने के लिए मजबूर हैं कि वह जीवन में चाहे चटनी रोटी खा लेगा लेकिन अपना देश छोड़कर, अपना गांव छोड़कर कही भी मजदूरी करने नहीं जायेगा | एक मजदुर के पास न तो e pass बनवाने का अनुभव हैं न ही कोई वाहन हैं |मजदूरों कि इस समय यह हालत हैं कि वह मिलो पैदल चलकर सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखकर भी अपने घर जाना चाहता हैं | ऐसी भी घटना घाटी कि जब एक मजदुर पैदल चलते चलते कही पुलिस से डर कर जंगल में घुस गया या कही पहाड़ पर ही चढ़ गया ये सोचकर कि वह जंगल के रास्ते से निकल जायेगा | लेकिन उस समय उसे ये बिल्कुल ध्यान नहीं रहा कि उसके पास न तो पानी कि बोतल हैं और नहीं खाने के लिए खाना भूख प्यास से लड़ता रहा और उसकी सांसे रुक गई | दूसरी तरफ उसके परिजन फिर भी लॉकडाउन का पालन मरते रहे | आज मजदुर के पास काम नहीं हैं | वह जैसे तैसे समय काट रहा हैं, आर्थिक संकट से जुझ रहा हैं और परिवार कि सुरक्षा के लिए, इस देश कि सुरक्षा के लिए अपना योगदान दे रहा | कही दूर दराज अपनों से दूर एक दूसरे कि चिंता से व्याकुल और परेशान असहनीय पीड़ा झेल रहा हैं | कोरोना से लड़ने की जंग तो वास्तव में गरीबो और मजदूरों की ही हैं, वर्ना अमीर तो अपने अपने घरो में खूब कचौड़ी पकोड़े का आनंद ले रहे हैं | मजदूरों के इस योगदान को कभी भूलना नहीं चाहिए और सभी को भरपूर सहयोग करना चाहिए
    मनु नेगी

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  3. अच्छे लिंक्स के लिए आभार

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