लॉक डाउन के चलते फूलों की खेती का क्या हुआ ?
कोरोना वायरस के चलते लॉक डाउन जारी है । जिसमें उत्सव जैसा कोई भी कार्य सम्भव नहीं है । फूलों की खेती अधिकतर उत्सव पर ही निर्भर है। बिना उत्सव के फूलों का कोई महत्व नहीं है । फूलों की खेल की इस समय बहुत बुरा हाल है । फूल खेतों में मुरझा कर दिन - प्रतिदिन नष्ट हो रहे हैं । यहीं " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
एक मुद्दतसे तिमिर की बन्द मुठ्ठी में।
रोशनी की कंज कलिका की कलाई है ll
कंज कलिका=कमल पुष्प की कलिका
हर क्यारी में है यहाँ शुद्र स्वार्थ की बेल
मूल्य सर्वथा हो गए उपवन से निर्मूल
मनोभूमि की हर क्यारी मेंशुद्र स्वार्थ की बेल पल्लवित, सुरभित और पुष्पित होकर उपवन से नैतिक मूल्यों का अवसान कर दिया परिणाम यह हुआ कि अंधेरे में बंद मुट्ठी में रोशनी रूपी कमल"पुष्प"की कलिका है l ऐसी बंजर भूमि में फूलों की खेती कीक्या स्थिति कोरोना जंग के मध्य हो रही होगी?आप स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं l कोरोना संकट ने तो कोढ़ में खाज वाली कहावत चरितार्थ कर दी है l कोरोना जंग में पुष्प की अभिलाषा-
मुझे तोड़ लेना हे प्राणी
उस पथ पर देना तुम फेंक
कोरोना जंग लड़ने
जिस पथ जाए वीर अनेक
फूलों की खेती भारतीय अर्थ व्यवस्था में रीढ़ की हड्डी है जो धर्मिक स्थल लोक डाउन के चलते बुरी तरह चरमरा गई है l फूलों की खपत कम हो गई है l करोङो रुपयों का नुकसान हुआ है l ऐसे में किसान वार्षिक कलेंडर बनाकर तैयारी करें l गुलाब की खेती वर्ष पर्यन्त होती है l माह में दो बार सिंचाई करें l दस बीघा जमीन पर 25किलो पुष्प प्रतिदिन आप ले सकते हैं l N. P. K. खाद12:32:16प्रयोग करेंl स्वयं को बचाकर फूलों की खेती को बचाइए l कोरोना काल में लोक डाउन के चलते किसानों को95%तक नुकसान हुआ है l भंडारण फूलों की फसल का नहीं कर सकते l सरकार की"पुष्पग्राम"योजना को पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में विस्तार करें l कोरोना योद्धाओं को"पुष्प समर्पण"योजना चलाकर खपत बढ़ावें और मानव धर्म की पालना भी करें l
मन तो बावरा है-
गम का अहसास यों करा रहा है
किसी काँटे से, कभी खोंफ नहीं खाये हम
कोरोना संकट में जख्म फूलों ने दिए हैं,
भूल नहीं पाए हैं हम।l
चलते चलते-
दुखते हुए जख्मों पर हवा कौन करे
कोरोना संकट में जीने की दुआ कौन करे
"बीमार"है जब खुद ही"हकीम"
अहाने वतन
खुदा तेरे मरीजों की"दवा"कौन करे।
- डाँ. छाया शर्मा
अजेमर - राजस्थान
लॉक डाउन के चलते हर वर्ग परेशान है। परंतु हमारी किसान
जो धरती को हल से चीर कर फसल उगाते है, उनका भी बहुत बडा हाल है। क्योंकि उन्हें ना मजदूर मिल रहे है खेतों में काम करने के लिए और ना कोई मजदूर बाहर निकाल पा रहे है।
1)हमारे किसानों के पास फूल के रकाहव - रखाव का कोई साधन नहीं है।
2) किसान फूलों को तोड़कर उन्हें सुखा सकते हैं। सुखाने से फूलों के नए बीज तैयार कर सकते हैं।
3) जो फूल पड़ गए हैं या खराब हो गए हैं उन्हें वह मिट्टी में गाड़ कर उसकी खाद बना सकते हैं।
4) फूलों को वह उन लोगों को लॉक डाउन के बाद दे सकते हैं जो फूलों से अगरबत्ती या स्प्रे बनाते हैं।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
विषम परिस्थिति में सभी लोग घरों में कैद हैं । लॉक डाउन से संपूर्ण देश को हर आर्थिक पहलुओं में हानि उठानी पड़ रही है ।उसमें से फूलों का व्यापार भी है । फूलों के हब बेजार, सुनसान , पड़े हैं । मंहगाई बढ़ी है । व्यापार चौपट हुआ है ।
फूलों की खेती करनेवाले किसानों को आर्थिक हानि उठानी पड़ी है । भारत का अन्नदाता किसान परेशान है । दुखों का पहाड़ उस पर टूट पड़ा है । लाकडाउन से पहले उसे ओलावृष्टि का सामना करना पड़ा और अब लाकडाउन से फूलों की खड़ी फसल बर्बाद हो गयी है ।
फूलों की मंडी , बाजार, राज्य , जिले , देश , विदेश में किसान फूलों का व्यापार करते हैं । संपूर्ण देश के बन्द होने से मजदूरों के नहीं मिलने से खेतों में ही रँग , बिरंगें सुंदर फूलों की खेती सड़ गयी है तो कहीं गर्मी से सूख रही है । किसानों की आशाओं पर पानी फिरा है । इसी खेती पर किसानों का सालभर का आर्थिक बजट टिका होता है । अब उनकी जिंदगी में गहरा सन्नाटा , दुख ,संकट छाया हुआ है । उनजे सारे सपने ध्वस्त हो गए हैं ।
किसान को अपनी फूलों की फसल बेचने के लिए बाजार उपलब्ध नहीं हैं ।सारे धर्मस्थल बन्द पड़ेहैं , शादी ,लगन भी ठप्प पड़ी हैं । फूलों की खेती लाकडाउन की मार से लाखों रुपये कमाने का सारा धंधा फुटकर और होलसेल का खत्म हो गया है । अब वे किसान ठन - ठन गोपाल पड़े हैं । खेतो में पानी नहीं दे पा रहे हैं । फूल सूख रहे हैं ।
ऐसे सोचनीय हालात में आगे की खेती कैसी होगी ? चिंतनीय दशा है । जमा पूँजी इस फसल ने चौपट कर दी है । कितने किसानों ने अचानक आयी आपदा से फूलों की फसल रौंद के सब्जी की फसल लगा रहे हैं ।
सैकड़ों एकड़ खेतों में फूल की खेती से फूल इत्र बनानी वालू फैक्ट्रियों में जाते थे । लाकडाउन और कोरोना की मार से किसान बेहाल है । अपनी गृहस्थी का भरण , पौषण के लाले पड़ गए हैं । राज्य , केंद्र सरकार ही इनकी डूबी नैया को पार लगाए ।
- डॉ मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
लाॅकडाउन में परिवहन व्यवस्था बंद होने से फूलों का व्यापार भी ठप्प पड़ा है । चूंकि अन्य वस्तुओं की बनिस्बत फूल
नाजुक होते हैं और उनकी आयु भी कम होती है और उनकी वर्तमान माँग लगभग खत्म हो जाने से फूलों की खेतीको बेहिसाब नुकसान पहुँचा है।
धार्मिक स्थलों में , शादी-विवाह में हार-फूल-माला के अतिरिक्त सजावट हेतु , उत्सवों एवं परिवारों में फूलों की प्रतिदिन की मांग को पूरा करने हेतु फूलों की जो खेती की जाती है वह आज भारी नुकसान में है क्योंकि फूलों का लंबे समय तक संचय नहीं हो सकता।
धार्मिक स्थल जहाँ क्विंटलों से फूलों की खपत होती थी ; लाॅकडाउन के चलते आज उन धर्म स्थलों के द्वार बंद होने से फूलों की खेती तो प्रभावित हुई ही है ।
लोग दो-तीन घंटों की छूट में आवश्यक वस्तुओं की ही , किसी तरह खरीददारी कर पा रहे हैं । इसके अतिरिक्त कोरोना संक्रमण के भय के कारण लोगों ने फूलों से दूरी बना ली है , अतः घरों में भी फूलों की मांग कम हो गई है, शादी-विवाह रुके हुए हैं , इस बीच कई बड़े त्योहारों के आने से , फूलों की मांग प्रभावित हुई है ।
इस प्रकार लाॅकडाउन में निश्चित रूप से फूलों की खेती को नुकसान तो पहुँचा ही है ।
- वंदना दुबे
धार - मध्य प्रदेश
लॉक डाउन के चलते फूलों की खेती का हाल फूल उगाने वाले ही जान रहे है। रंग बिरंगी फूलो से सजी बगिया की मुस्कान भी अब फीकी सी पड़ गई है। और फूलो की खेती करने वाले लोग भी खासा परेशान और हलकान है। जहाँ नवरात्रि में करोड़ो के फूल बिक जाते थे। हर प्रकार के धार्मिक कार्यो में जहाँ अधिक मात्रा में फूलो बिक जाते थे। अब सब रुक सा गया है। जहाँ चारो ओर फूलो की बिक्री खूब होती थी और लोग महकते खुशबू का आनन्द लेते थे लेकिन अब लॉक डाउन के चलते फूलो की खूबसूरती और खुशबू सिर्फ बगिया तक ही सीमित रह गई है।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
लाख डाउन के चलते फूलों की खेती पूर्णतया क्षत-विक्षत हो गई। खुशियों का प्रतीक माने जाने वाले, खुशियों की सौगात बनने वाले फूलों को व्यवसाय कोरोना के कारण लगे लॉक डाउन से ग्रहण ग्रस्त हो चुका है कोरोना का अप्रत्यक्ष शिकार बन चुका है । 20 से 25 लाख प्रति हेक्टेयर लाभ देने वाली इस खेती को कोरोना ने भयंकर चूना लगा दिया । गोंडा जिले मे ही 6 करोड़ रुपये से अधिक का फूलों का व्यवसाय प्रभावित हो चुका है।फूलों के अतिरिक्त दूसरी अन्य प्रकार की फसलें जैसे अनाज ,फल व सब्जियों की खपत भी हो रही है और भंडारण भी किया जा रहा है मगर फूलों की न तो खपत है ना भंडारण ही संभव है ।मंदिरों के कपाट बंद होने से पूजा पाठ में जो फूलों का प्रयोग होता था उस पर विराम लग गया ।नवरात्रि में भी श्रद्धालुओं की लंबी कतारें नदारद रही ।तो फूल खरीदे कौन? मांगलिक कार्यक्रम स्थगित होने से घरों की सजावट के लिए बनने वाली फूलों की लड़ियों की आवश्यकता ही न रही ।एवं ट्रांसपोर्ट भी बन्द हैं कही ले भी नही जा सकते ।कोई किसी भी प्रकार की खरीद फरोख्त नही रही । इस समय लॉक डाउन के हालात मे उसका कोई प्रयोग ही नही रहा ।
फूलों की खेती करने वाले किसान गुलाब ,गेंदा ,ऑर्किड , पान आदि की खेती करते थे, जिसकी भारी खपत होती थी परंतु अब हालात बदल चुके है । फूलों की फसलें खेतों मे खड़े खड़े मुरझा रही हैं ,एवं खेती करने वाले किसानों के चेहरे भी । भारी नुकसान के कारण उनकी खुशियां भी हैं छिन चुकी हैं ।
- सुषमा दिक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
लाकडाउन के चलते फ़ूलो की खेती को अत्यधिक नुकसान का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि देश में कोरोना के प्रभाव से शुरू किये गये इस लाकडाउन के कारण सभी कार्यक्रम सरकार द्वारा स्थगित कर दिये गये हैं। इनके अतिरिक्त फ़ूलो का उपयोग बड़ी मात्रा में पूजा कार्यो में किया जाता है परंतु सभी धार्मिक स्थल बन्द होने के कारण यहाँ भी इनका उपयोग नहीं हो पा रहा। इसके अतिरिक्त यातायात बन्द होने के कारण भी फ़ूलो को भेजा नहीं जा पा रहा जिससे फ़ूलो की खेती करने वाले किसानों को भारी मात्रा में नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
- विभोर अग्रवाल
धामपुर - उत्तर प्रदेश
लाकडाउन के कारण फूलों की खेती को बड़ा ही क्षति हो रहा है परिस्थिति बहुत ही विपरीत बनी हुई है । मंदिर के कपाट बंद शादी विवाह या आयोजन बंद है फूलों की सजावट ठप है ऐसी परिस्थिति में फूलों के व्यापारी फूलों की खेती दोनों ही नुकसान में है ।सिवा धैर्य के और कोई उपाय भी नहीं है
फिर से चमन में बहार आएगी गुलशन खिलेगा क्या हुआ एक ऋतु यूं ही गुजर गया कहीं न कहीं ईश्वर मानवीय संवेदना की परीक्षा ले रहें है । ईश्वर के सामने हम सभी नतमस्तक है आपने जिंदगी दिया है पार तो आप ही करेंगे
धैर्य और सहनशीलता की आवश्यकता है ईश्वर मानवीय संवेदना में एक ताक़त दे
- डाँ. कुमकुम वेदसेन मनोवैज्ञानिक
मुम्बई - महाराष्ट्र
आम तौर पर खेती से दो प्रकार से उत्पादन लिया जाता है एक वर्ष से कम समय में एक वर्ष में या इससे अधिक समयावधि में, फूलों की खेती एक वर्ष से कम समय में ही तैयार होती है यह बाग़वानी खेती कहलाती है इसमें सबसे बड़ी समस्या भंडारण की होती है फूलों का भंडारण किसी भी विधि से १ सप्ताह से अधिक नहीं किया जा सकता है जो किसान फूलों की खेती कर रहे हैं उन्हें लॉक डाउन के चलते भारी नुक़सान उठाना पड़ रहा है क्योंकि दिल्ली में फूलों की सबसे बड़ी मंडी है। इस मंडी में देश-विदेश के फूल व्यापारी खरीद-फरोख्त करते हैं। दिल्ली में लगभग सौ कंपनियों के एजेंट उपलब्ध हैं। किसान अपने खेतों में पैदा फूलों को बेचने के लिए इनसे संपर्क करके बेचते है ये किसान से पूरा खेत थोक भाव में खरीद कर मंडी में पहुंचा देते हैं इतना ही नही ये विदेशों को निर्यात तक कर देते हैं। इसके अलावा फूल सजावट के काम आते हैं। इससे माला, गजरा, सुगंधित तेल, गुलाब जल, गुलदस्ता, परफ्यूम आदि बनाए जाते हैं।धार्मिक स्थलों के बंद होने, आयोजनों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा होने से फूलों की माँग नहीं है । जिससे फूलों की खेती शुन्य आमदनी तक ही नही बल्कि भारी घाटे में है ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
यह सच है कि लॉकडाउन के चलते सभी वर्ग मुश्किल में आ गए हैं जिसमें एक किसान वर्ग भी है !
हर वर्ग में निम्न वर्ग की सहभागी होती है!
यदि किसान जिसके पास 8 बीघा जमीन है और वह उसमें फूलों की खेती करता है तो वह तो कमाता है साथ ही कई लोगों के पेट भरते हैं जैसे:-
होलसेल में बिकता है ,वहां से रिटेल जाता है फिर रोज फूल बेचने वाले ,फूलों की सप्लाई करने वाले, फूलों की माला बनाने वाले, फूलों से शादी की गाड़ी ,सेज सजाने वाले ,मंदिर को फूलों से सजाने वाले, खेत से फूल तोड़ने वाले ,रोज घरों में फूल माला देने वाले ,आदि आदि जाने कितनों का पेट भरता है !
रोज कमाते हैं और रोज खाते हैं किंतु इस लॉक डाउन के चलते फूलों के खेत से फूल तोड़ने वाले ,मार्केट ले जाने वाले ,खरीदने वाले कोई नहीं है !करोड़ों का नुकसान हो रहा है !
जिसके खेत है वह फिर भी नुकसान वहन कर लेते हैं फूल को सुखाकर ,पैकेट में बेच देंगे अगरबत्ती ,सेंट ,और गुलाब है तो गुलकंद बनाने के काम में ले ले लेंगे ,सूखने पर खाद बना लेंगे, बीज निकाल लेंगे ,किंतु इसके लिए समय लगता है !
गरीब तो रोज कमाता और रोज खाता है जिसका जीवन ही फूलों के ऊपर है वह क्या करें ?
छूट्क छूट्क फूल बेचने वाले ,बुके और शादी का हॉल सजाने वाले ,मंदिर के भगवान को फूलों से सजाने वाले , फूलों से जो कचरा होता है उसे साफ करने वाले सभी रोज कुआं खोदने वाले ही तो होते हैं !
अति दयनीय स्थिति है हम तो सिर्फ बातें करने वाले हैं किंतु इन फूलों के साथ जुड़े लोगों की स्थिति क्या है जिसकी खुशबू उनकी नस-नस में समाई है अतः इनकी मदद भी हमें करनी चाहिए !प्रशासन तो करता है और करेगा किंतु हमें भी मदद करनी चाहिए!
अंत में कहूंगी लॉकडाउन से ऐसे कई वर्ग है जिन पर हमारा ध्यान नहीं गया है हमें उनका ध्यान रखना है !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
फूलों की खेती करने वाले किसानों को इस लाक डाउन के चलते नुकसान ही झेलना पड़ रहा है। फूलों की सप्लाई बिल्कुल बंद है क्योंकि मंदिर,मस्जिद, गुरुद्वारे,चर्च,दरगाह धार्मिक स्थल,तीर्थ स्थल बंद हैं। विवाह- शादियां और अन्य सभी आयोजन सब बंद हैं।इत्र बनाने वाली,सौंदर्य सामग्री, औषधियां आदि बनाने वाली इकाइयों में काम बंद है। इससे फूलों की खेती करने वाले किसानों को भारी आर्थिक हानि हो रही है । साथ ही साथ फसल की सप्लाई ना होने पर फूल खराब हो रहे हैं। गुलाब के फूलों की खेती करने वाले किसान जरूर गुलाब के फूलों को तोड़ कर रख रहे हैं, जिसे बाद में वह औषधि के रूप में या गुलकंद में प्रयोग करने वालों को बेचेंगे। गेंदा और गुलदाउदी जैसे फूलों को तोड़कर खाद बनाने में ही प्रयोग किया जा सकता है।कुल मिलाकर लाक डाउन के चलते फूलों की खेती की उपज व्यर्थ जा रही है और किसान को नुकसान हो रहा है।
- डॉ अनिल शर्मा 'अनिल '
धामपुर - उत्तर प्रदेश
लाख डाउन के चलते फूलों की खेती प्रभावित हुए हैं। प्रकृति में फूल दो तरह से दृष्टाब्यहै। एक प्राकृतिक जो अपने आप प्रकृति में खेले हैं ऐसे फूलों में विकास हुआ है लाख डाउन से पर्यावरण पहले की अपेक्षा प्रदूषण रहित वातावरण से फूल पौधों में फूल अधिक आने लगे हैं पुलकित पतंगों का पोषण है कीटपतंगों का भरपूर पोषण मिल रहा है कहने का तात्पर्य है कि प्रकृति लाभ डाउन से कुछ प्रदूषित रहित हो गई है जिससे प्रकृति में विकास हुआ है। एक फूल वह है जो किसान आर्थिक लाभ हेतु उत्पादन करता है ऐसे फूलों का उपयोग अध्यात्म क्षेत्र पूजा पाठ में उपयोग किया जाता है हमारे देश के दक्षिण भारत में महिलाएं फूलों का श्रृंगार के रूप में उपयोग करते हैं कुछ फूलों का औषधीय एवं इत्र , पौष्टिक जैविक खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है। करो ना वायरस विश्व में महामारी का रूप धारण किया है। इसको मारने का आज तक कोई ठोस औषधि नहीं मिल पाया है। जिससे बचाव का कार्य लाभ डाउन एवं अन्य साधनों के माध्यम से किया जा रहा है यही वर्तमान में उपाय है पूरा लाक डाउन में पूरा भारत का विकास विनिमय व्यापार व्यवस्था प्रभावित है इस दशा में लोगों की आवश्यकता कम होकर सिमट गई है। पूजा पाठ धार्मिक स्थल औद्योगिक चंद्र विवाह संस्कार एवं अन्य कार्यक्रम थप्पड़ गए हैं जो किसान फूलों की खेती करके अपना आवश्यकता की पूर्ति करते हैं ऐसे किसानों को काफी आर्थिक हानि का सामना करना पड़ रहा है। फूलों का व्यापार प्रभावित हो गया है जिससे जनजीवन में भी आर्थिक संकट आन पड़ी है। कुल मिलाकर देखा जाए तो करो ना वायरस समस्या सिर्फ जान ही नहीं जीने के लिए भी समस्या खड़ी कर दी है तूने दिनों दिन बढ़ती जा रही है मरने वाले तो मर रहे हैं लेकिन जो जीने के लिए बचेगा उनके लिए इस समस्या को झेलने में काफी समय लग सकता है इस तरह से देखा जाए तो लाख डाउन फूलों से संबंधित जिओ उपार्जन को पूरा कर दिया है जिसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है समझने के बजाय समझकर करने से समस्या नहीं आती अतः मनुष्य को प्रकृति के साथ समझने की आवश्यकता है समझ कर जीने से ही सब का कल्याण है नहीं तो विनाश निश्चित है
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
लॉक डाउन के चलते फूलों की खेती बर्बाद हो रही है।
फूल की फसल पैदा करने वाले किसान बेरोजगार हो गये है कोई धंधा नही बचा कई गरीब परिवार भी फूलो की खेती से चलते थे प्रतिदिन 200 रू० तक कमा लेते थे उनके घर चलते थे। किसानो के घर का गुजारा भी फूल की खेती पर निर्धारित था। लॉक डाउन के चलते मन्दिर मस्जिद कई धार्मिक स्थल बंद है। विवाह समारोह भी स्थगित हो गये आजकल फूलो की सजावट का प्रचलन है लॉक डाउन के चलते सब स्थगित हो गये फूलो की खेती बर्बाद हो २ही है फूल पेड पर सुख कर झड़ रहे है सरकार ने स्थिति को देखते हुए लॉक डाउन की सीमा तीन मई तक बढ़ा दी है।
क्या होगा किसानो क्या का किसान फूल फेकने को मजबूर है सरकार को किसानों की मदद कोई कदम उठाने चाहिए।
मै पुष्प हुँ अभिलाषा है मेरी
लॉक डाउन में कठिन डगर निराशा है मेरी ।
ना सोचा था पेड़ पर मुरझाऊंगा
किसी देव के शीश न चढ़ पाऊँगा I
ना सोचा था मुझे यूँ तोड़ डाली से देगे फेंक
मै तो हमेशा वहाँ बिछा जहाँ जाते वीर अनेक ।
बड़ा संकट है भारी देश में छाई महामारी
पुष्प मुरझा गये बढ़ गयी बेराजगारी।
- नीमा हँसमुख
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
उपवन में मुस्कराते हुए रंग-बिरंगे खिले फूलों को देखकर फूल उत्पादक के चेहरे पर संतोषप्रद मुस्कान आ जाती है और वह वर्ष भर की चिन्ता से मुक्त हो जाता है। भारत में फूल उत्पादन की दृष्टि से नवम्बर-दिसम्बर माह के पश्चात मार्च-अप्रैल के महीने सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैं और फूलों की खेती भारत के विभिन्न राज्यों में अनेक परिवारों के जीविकोपार्जन का साधन है।
उत्तराखण्ड के सन्दर्भ में फ्लोरीकल्चर एसोसिएशन के अनुसार विगत कुछ समय से उत्तराखण्ड में फूलों का वार्षिक कारोबार 250 करोड़ का है। देहरादून के निकट बिहारी गढ़ में गुलाब, जरबेरा, कारनेशन, जिंफोविला, ग्लेडुला आदि की शानदार फसल प्रभावित हुई है। देहरादून, टिहरी हरिद्वार, उधमसिंहनगर समेत सभी जिलों में फूलों के कारोबार से जुड़े सभी व्यक्तियों को अत्याधिक हानि का सामना करना पड़ा है। मार्च-अप्रैल के महीने में फूलों से उत्पन्न आय से ही उनका आगामी महीनों में जीवनयापन होता है परन्तु लाॅकडाउन के कारण मांगलिक कार्य ना होने के कारण मांग नहीं है जिससे फूल खेत में ही मुरझा गये है और मुरझाये फूलों को देखकर इस व्यापार से जुड़े सभी व्यक्तियों के मन-मस्तिष्क भी कुम्हला गये हैं। यही स्थिति भारत के अन्य राज्यों के फूल उत्पादकों की भी है।
इसलिए मेरे विचार से लाॅकडाउन के चलते फूलों की खेती को अत्याधिक नुकसान हुआ है और सरकारों को फूलों से जुड़े किसानों की यथासंभव सहायता करनी चाहिए।
- सत्येन्द्र शर्मा ' तरंग '
देहरादून -उत्तराखंड
वैश्विक बीमारी कोरोना वायरस का असर फूलों की खेती करने वाले किसानों पर भी देखने को मिला है। इस बार लॉकडाउन के चलते पहले नवरात्र और अब शादी समारोहों पर भी खास असर देखने को मिल रहा है। ऐसे में फूल उत्पादकों को करोड़ो का नुकसान झेलना पड़ रहा है। फूलों के खरीदार नहीं मिल रहे हैं।
लॉकडाउन के कारण उनके फूल खेतों और पालीहाउसों में ही मुरझा रहे हैं, जिसके चलते उन्हें करोड़ों रुपये का नुकसान झेलना पड़ा है। है
इस बार लॉकडाउन के कारण नवरात्र पर्व में मंदिरों के कपाट पूरी तरह से बंद रहे, जिसके चलते इन फूलों की मांग नहीं हुई, जिसका खामियाजा किसानों को उठाना पड़ा।
हालत ऐसी है कि कई किसानों के फूल मुरझाने की कगार पर पहुंच गए हैं, जबकि पौधों से फूलों का तुड़ान न होने के कारण नए भी फूल भी पौधों पर नहीं उगे हैं। अब शादी-विवाह सहित अन्य समारोहों पर भी लॉकडाउन का ग्रहण लगा हुआ है, जिसके चलते किसानों को अब अपनी फूलों की खेती बर्बाद होती हुई दिख रही है।
लॉक डाउन के चलते फूल व्यापार हुआ बेपटरी, रोजी-रोटी को मौहताज हुए
कोरोना के कारण पुरे देश में लॉक डाउन है। ऐसे में रोज मर्रा की जिंदगी न तो पटरी पर है और न ही कोई काम चल रहा है। मानो जिंदगी जैसे कैद हो गई है। ऐसे हाल में संकट उन किसानों पर आ गया जो फूलों की खेती करते हैं।
लाखों किसानों की हालत पतली है करोड़ों का नुक़सान उठा रहे है
रोटी को हो रहे मोहताज है
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
लाकडाउन के चलते फूलों की खेतों इस बार बहुत अच्छी हुई प्रदूषण कम होने से फूलों और अच्छे से खिले खुशबू भी अधिक रही ।पर दुर्भाग्य से बाजार न मिला फूलों को बागों में ही नष्ट होना पड़ा ।नाममात्र को फूल अपनी मंजिल तक पहुंचने में सफल हुए ।अनेक फूलों के लिये प्रसिद्ध पार्क स्थानों व घाटियों में दर्शकों पर्यटकों की आवाजाही न हो पायी। कुल मिलाकर कोरोना फूलों की खेती को भी नुकसान पहुंचाने में सफल हुआ।
- शशांक मिश्र भारती
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
लॉक डाउन के चलते सभी को कुछ न कुछ हानि उठानी पड़ रही है परन्तु फूलों की खेती तो पूर्णतया नष्ट हो गयी है । ऐसे लोग जो इस व्यवसाय से जुड़े हैं उनको तो लागत मूल्य भी नहीं मिलेगा । जान है तो जहान है ये सोचकर धैर्य रखना चाहिए । अवश्य ही सरकार इस दिशा में कोई न कोई ठोस कदम उठायेगी । इससे जुड़े लोगों की मदद हेतु समाजसेवी संस्थाओं को भी आगे आना चाहिए ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
" मेरी दृष्टि में " फूलों की खेती की उम्र बहुत कम होती है । समय के अनुसार फूलों का उपयोग हो गया तो वह खेती कमाऊं साबित होती है । वरन् हानि तो निश्चित है। फूलों को मण्डी तक , मण्डी से उपभोक्ता तक बहुत बड़ा वर्ग फूलों की खेती पर निर्भर होता है । लॉक डाउन चलते सभी को हानि उठानी पड़ रही हैं ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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