लॉक डाउन के बाद भी शराब , गुटखा और तंबाकू पर प्रतिबंध जारी रहना चाहिए

लॉक डाउन के चलते शराब , गुटखा और तंबाकू पर प्रतिबंध लगा दिया गया है । क्यों कि थूकने से कोरोना वायरस फैलने की आंशका बहुत अधिक है। इसी वजह से प्रतिबंध लगा ।परन्तु इस का फायदा आम जनता को बहुत अधिक हुआ है । जनता उम्मीद करती है कि अब प्रतिबंध नहीं हटना चाहिए । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय भी है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
शराब, गुटखा, तंबाकू नशीले पदार्थों  का सेवन लॉक डाउन में इसीलिए वर्जित एवं निषेधित रहा क्योंकि लोग इनको प्रयोग करने के उपरांत इसकी  पीक को जगह-जगह थूक कर गंदगी एवम बीमारियों के संक्रमण को बढ़ाते। साथ ही संपूर्ण लाॅक डाउन एवं सोशल डिस्टेंसिंग बनाये रखने के  लिए यह महत्वपूर्ण कदम सरकारों को उठाना आवश्यक ही था।
               शराब का सेवन अपराध- जगत को बढ़ावा देता है ।इसके सेवन से निम्न वर्ग में घरेलू हिंसा तथा उच्च वर्ग द्वारा क्लब- पार्टियों में भी इसका सेवन आधुनिकता के दिखावे में मर्यादाओं का  अतिक्रमण कर क्या-क्या रंग दिखाता है ; सर्वविदित ही है।
                     भले ही शराब सरकार के राजस्व साधनों के स्रोत में सबसे महत्वपूर्ण है पर इस पर प्रतिबंध लाॅक डाउन के बाद भी हो तो यह देश की जनता के स्वास्थ्य- हित में ही होगा ;साथ ही पारिवारिक कलह, रिश्तो की टूटन, अपराध व हिंसा में भी कमी आएगी। 
              ऐसे ही गुटका, तंबाकू के प्रतिबंध से भारत के स्वच्छता- अभियान हेतु सकारात्मक परिणाम दर्शनीय होंगे। कैंसर एवं फेफड़ों से संबंधित भयंकर बीमारियों पर भी लगाम लगेगी।
     अतः लॉक डाउन के बाद भी सर्वजन- हिताय के संदर्भ में इन नशीले पदार्थों के प्रयोग पर सरकार द्वारा पूर्णत: प्रतिबंध होना चाहिए।
- डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
 इससे एक सभ्य समाज का उदय होगा जो नशा जैसे विनाशकारी रोग से मुक्त रहेगा। शराब जैसे विनाशकारी नशा जो शरीर के साथ परिवार को भी धीमी गति से बढ़ते हुए नष्ट कर देती है। कई परिवार के सदस्य इस शराब के  नशे से अपनो से बिछड़कर बर्बाद हो गए। यदि शराब बंद होती है तो एक खुशहाल परिवार बनेगा। जो नशा से कोशो दूर रहेगा। और गरीबी मुक्त भी रहेंगे।
गुटखा तम्बाकू खाने वालों की हालात शराब के नशे से भीज्यादा खराब है। गुटखा और तम्बाकू खाने वाले लोग ज्यादातर लोग कैंसर के शिकार  होते है या इनका मुह छोटा हो जाता है जिससे कि लोग ज्यादा मुँह खोल नही पाते।
ये मनुष्य को धीरे धीरे बीमारी का रूप लेकर  कैंसर के द्वारा फैलता रहता है। और इसी के चक्कर में सारा पैसा अस्पताल में खर्च हो जाता है। इसके बाद दवाई के चक्कर में घर और बिक जाते है।पैसा भी गया और घर भी। साथ में गुटखा खाने वाला भी ऊपर गया। लेकिन अपने पूरे घर वालो को बर्बाद कर बेघर करके चला गया। तम्बाकू और गुटखा बंद होगा तो कोई  मरेगा नही, और परिवार सहित लोग सम्पन्न रहेंगे।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
शराब गुटका तम्बाकू पर नियंत्रण अतिआवश्यक लाक डाउन के बाद भी प्रतिबंध लगा रहना अतिआवश्यक है
इस प्रतिबंध से शत-प्रतिशत तो कमी नहीं आएगी लेकिन मात्रा तो कम होगी। इस प्रतिबंध का मुख्य उद्देश्य वायरस के फैलने से इसे रोकना है थूकने से वायरस शरीर से बाहर निकलेंगे और फैलेगे । इसके सेवन करने वाले से अनुरोध है जिन्दगी अपकी है आप इसे अहम और जिद में बर्बाद न करें आप के साथ आपके अनेक चाहनेवाले है आप स्वयं के साथ साथ अपने परिवार की एक मुख्य व्यक्ति हैं  इसलिए समाज परिवार और देश को सुरक्षित स्वस्थ रखने के लिए यह प्रतिबंध अतिआवश्यक  है 
- डॉ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
शराब, गुटखा और तंबाकू इन पर प्रतिबंध रहना ही चाहिए, क्योंकि इनका सेवन किसी भी प्रकार से लाभकारी नहीं। केवल हानिकारक है, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को घटाता है, और शरीर के विभिन्न अंगों को हानि पहुंचाता है। यहां तक कि जानलेवा बीमारी कैंसर भी कर देता है। सरकार ने जो इन पर प्रतिबंध लगाए हैं और इनकी बिक्री को रोका है, वह एक सराहनीय कदम है। इन पर प्रतिबंध जारी रखते हुए इनकी बिक्री के साथ-साथ गुटखे के निर्माण पर भी रोक लगनी चाहिए,इसके बनाने वाले कारखाने बंद करवा देने चाहिए। तंबाकू और शराब, अल्कोहल का प्रयोग अनेक दवाइयों में होता है जो बीमारियों से लड़ने और मानव जीवन की रक्षा के काम में आती हैं। होम्योपैथी में तो 90% से अधिक अल्कोहल का ही प्रयोग होता है जो दवाई को संरक्षित करने में काम आता है। विभिन्न आयुर्वेदिक दवाओं में तंबाकू का प्रयोग होता है। इसलिए तंबाकू या शराब का उत्पादन रोका जाना संभव नहीं हो सकता,लेकिन इसकी बिक्री पर अवश्य अंकुश लगाया जा सकता है।इनकी खुली बिक्री प्रतिबंधित होनी चाहिए।इनका प्रयोग की जीवन रक्षक औषधि के लिए ही अनुमति होनी चाहिए,नशे की लिए नहीं।
- डॉ. अनिल शर्मा'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
शराब तंबाकू गुटका यह सभी व्यसन की चीजें हैं !
वैसे देखा जाए तो व्यसन किसी भी चीज का हो बुरा होता है !
आखिर व्यसन है क्या ? एक आदत !
 हम जैसी आदत लेते हैं वह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में आ जाती है !
 प्रयत्न करने से आदत बदली भी जा सकती है बस मन पर काबू होना चाहिए !
 आज लोग डाउन के कारण इन सभी चीजों पर प्रतिबंध लग चुका है ! कहते हैं रूस की डिक्शनरी में असंभव नाम का शब्द ही नहीं है और कहीं भी नहीं होना चाहिए !हमें कम से कम अपनी तरफ से प्रयत्न तो करना चाहिए ! 
आज इतना अच्छा मौका भी मिला है परिवार के बीच समय बिताएं बच्चे, पत्नी ,माता पिता के संग जो खुशियां प्राप्त करोगे आनंद लूटोगे  वही आपकी आदत ,व्यसन बन जाएगा जो ईश्वर करे कभी ना छूटे किंतु तंबाकू ,गुटखा ,शराब का व्यसन आपको तो नुकसान करता है साथ ही आपके परिवार को ले डूबता है!
 तंबाकू गुटके से कैंसर से पीड़ित होते हैं और शराब वह तो हिंसा को जन्म देती है शराब पीकर आदमी अपने होश खो बैठता है वह कब हिंसक बन जाता है उसे स्वयं नहीं मालूम पड़ता ! पत्नी ,बच्चे ,बूढ़े माता-पिता सभी को प्रताड़ित करता है बाद में पछताता है किंतु पुनः वही शराब मारपीट गाली-गलौज ! वैसे समाज में आपकी प्रतिष्ठा भी धूमिल होती है !व्यसन छोड़ते समय  आरंभ के दिनों में तलब तीव्र होगी किंतु इसी तरह उनके नियमों का पालन होता रहा तो हंड्रेड परसेंट आदत छूट जाएगी कहते हैं बीमारी में व्यसन लगभग छूट जाता है क्योंकि डॉक्टर के अंडर में रहते हैं ! मुझे पूर्ण विश्वास है लॉकडाउन में जरूर छूटेगा यदि ठान ले !
दुकानें बंद है इन सभी चीजों पर प्रतिबंध है !
"मन के हारे हार है मन के जीते जीत "
मोदी जी ने ठान लिया है कि कोरोना को हराना है और हमें जीतना है चाहे कितनी भी कठिनाइयों का सामना करना पड़े हम जीतेंगे ! यह उनका विश्वास है तो व्यसन को हरा हम क्यों नहीं जीत सकते !
अंत में कहूंगी पान ,तंबाकू खाकर थूकने से कोरोना फैल सकता है इसलिए प्रतिबंध लगाया गया है किंतु उसके बाद भी एक व्यसन करने वाला जिसने व्यसन छोड़ दिया है उसका परिवार तो प्रतिबंध लॉकडाउन के बाद भी लगाने को कहेगा किंतु प्रतिबंध लगाने के पक्ष की गुहार की कतार में प्रथम स्वयं व्यसनी होगा यही मेरी ईश्वर से प्रार्थना होगी !
- चन्द्रिका व्यापार
मुम्बई - महाराष्ट्र
सर्वविदित है कि शराब, गुटखा और तम्बाकू अन्य बीमारियों के साथ कैंसर जैसी भंयकर बीमारियों के संवाहक हैं। भारतीय परिवेश में, जहां मध्यम और निम्न आय वर्ग की बहुतायत है, वहां परिवार के एक भी सदस्य द्वारा इन चीजों की आदत से ग्रसित होना मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक दुश्वारियों का कारण बनता है। यह भी तथ्य है कि जब कोई वस्तु सुलभता से उपलब्ध होती है तो अधिकाधिक लोग उसके हानि-लाभ की जानकारी होने के बावजूद उसका सेवन करने लगते हैं। जबकि प्रतिबन्धित होने की स्थिति में विवशतावश ही उससे दूर होने लगते हैं। उदाहरण है लाॅकडाउन, जिसमें इन चीजों के प्रतिबन्धित होने के बावजूद जीवन चल रहा है बल्कि इन वस्तुओं की अनुपलब्धता के कारण कोरोना से उत्पन्न विषम परिस्थितियों का सामना अधिक मजबूती से हो रहा है। इसलिए मेरे विचार से "लाॅकडाउन के बाद भी शराब, गुटखा और तंबाकू पर प्रतिबंध जारी रहना चाहिए।" 
इसके लिए नागरिकों और राज्य सरकारों को दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
शराब के ज्यादा सेवन से प्रतिरोधी समता बढ़ जाती है। इसके चलते न्यूमीनिया और टी बी होने का खतरा बढ़ जाता है एच आई वी और दूसरी संक्रमित बिमारी बढ़ जाती है आर्थिक स्थिति कमजोर हो जाती है घरेलू हिंसा बढ़ जाती है। सिगरेट तम्बाकू से दिल से जुड़ी बिमारियो का खतरा बढ़ जाता है | तम्बाकू से कैंसर की सम्भावना बढ़ जाती है शराब और तम्बाकू खाने वाले व्यक्ति से शराब तम्बाकू छोड़ देने वाले व्यक्ति का खतरा दो गुना कम हो जाता है। लॉक डाउन के बाद भी गुटखा शराब पर प्रतिबंध लगाना चाहिए ताकि देश स्वस्थ रहे बिमारी मुक्त रहे जब से सरकार ने प्रतिबंध लगाया है तब से घरेलू हिंसा मार पिटाई कम हो गयी है। प्रतिबंध से आर्थिक स्थिति मे सुधार आया जो पैसा मादक पदार्थों को खरीदने में लगाते थे वो पैसा परिवार की जरूरतों को पूरा करने मे खर्च करते है बिमारी कम हुई है आसपास के अस्पतालो मे मरीजों की संख्या कम है सरकार को प्रतिबंध नही हटाना चाहिए।
रहेगे स्वस्थ नही पियेगे दारू
ना खायेगे तम्बाकूं और गुटखा।
बेवज़ह ही जान गवाने का ना होगा खटका।
- नीमा शर्मा हँसमुख
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
शराब,गुटखा और तंबाकू आदि समाज में फैली ऐसी नशा की वस्तुएं हैं जिनसे समाज सदैव जूझता रहा है। इन वस्तुओं से न स्वास्थ्य को नुकसान तो पहुंचता ही है, आर्थिक सामंजस्य भी गड़बड़ा जाता है। इनकी वजह से घरेलू हिंसा भी होते देखी गईं हैं।सामाजिक और पारिवारिक रिश्ते भी इनकी वजह से टूटते हैं। अनेक अपराधों की मूल वजह में भी यही वस्तुएं होती हैं। शारीरिक  और मानसिक तनाव में भी ये प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कारक होते हैं। इस सब के बावजूद भी न परिवार, न समाज,  और न ही शासन इन्हें लेकर गंभीर और कठोर नजर नहीं आते। सबसे पहला और सार्थक कदम तो यही होना उचित होगा कि इनके निर्माण और उपलब्धता पर रोक होनी चाहिए। ये क्या बात हुई कि गली-मोहल्ले, शहर,गांव की दुकानों में उपलब्ध है याने बेचने वाले को छूट , खरीदने या उपयोग करने वाले पर प्रतिबंध या दोष। ये न न्याय संगत है और न तर्क संगत।
लॉक डाउन हो या उसके हटने के बाद भी प्रतिबंध जारी ही रहना चाहिए और बेचने और खरीदने वाले दोनों पर सख्ती होनी चाहिए। साथ ही, परिवार, समाज और पड़ोस में जो समझदार, जागरूक ,समर्थ और जिम्मेदार लोग हैं उन्हें भी इस संबंध में सकारात्मक पहल करना चाहिए।    
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
इसमे कोई संदेह नही की इस कोरोनॉ काल मे जीवन अति संकटमय हो गया है कब किसे क्या हो कोई नही कह सकता लेकिन इस लॉक डाउन में सबसे अधिक और सुरक्षित कोई है तो वो है वह घर जहाँ पुरुषों ने शराब गुटखा  खाते पीते थे और आये दिन उनके घरों में सजे लिए कलह , मारपीट ,घरेलू हिंसा या अन्य तरह की घटनाओं को सुनने को मिलता है ..जिनके पास एज वक्तबकी रोटी खाने को पैसे नही होते थे वे भी शराब में डूबे रहते थे ,  पैसे पानी की तरह इन सभी मादक जहर पर खर्च किया जाता था  या ये कहें कि इनका जीना मुश्किल था इन सभी मादकों के बिना,
 लेकिन जब से लॉक डाउन हुआ उनको इसके बिना भी जीने की आदत लग गयी है और कहि न कही उनके घरों में भी शांतिपूर्ण माहौल रहा है  समाज की तो बाद  सोचें ऐसे लोग पहले अपने घर के वातावरण को उन्हें शुद्ध करना होगा अतः उसके लिए उन्हें यह नशे की आदत को छोड़ना होगा।
इसके लिए जरूरी है कि ये आदत जैसे लॉक डाउन में है वैसे ही लॉक डाउन में भी बनी रहे  अतः लॉक डाउन के बाद भी शराब ,गुटखा पर प्रतिबंध हिना ही चाहिये।
- बिनाकुमारी
धनबाद - झारखण्ड
निस्संदेह, लॉक डाउन समाप्त होने  के बाद भी शराब, गुटखा और तंबाकू पर प्रतिबंध जारी रखना हमारे देश की जनता के स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक है। हम सभी जानते हैं कि यह तीनों चीजें धीमा जहर है जो सेवन करने बाले के शरीर को खोखला करते हैं और धीरे-धीरे कई बीमारियों का शिकार बना देते हैं ।गुटखा और तंबाकू के सेवन से हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है ,दांत पीले हो जाते हैं ,मुंह से दुर्गंध आने लगती है तथा ब्लड प्रेशर कम या ज्यादा होने लगता है । निरंतर सेवन से फेफड़े भी खराब होने लग जाते हैं ।  शराब के सेवन से भी बहुत सारी हानियां होती है। कई बड़ी बीमारियां जैसे लिवर सिरोसिस पेनक्रियाटाइटिस हार्ट से संबंधित समस्याएं और  सात तरह के कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा भी कई अन्य गंभीर बीमारियां शरीर को जकड़ लेती है तो इन सब के सेवन से बचाने का और लोगों को स्वस्थ्य  रखने का एक तरीका यह है कि लॉक डाउन समाप्त होने  के बाद भी इन सभी पर कठोरता के साथ प्रतिबंध जारी रहना चाहिए । हमारा युवा वर्ग जो इनकी हानियों को नहीं समझ पाता हैं या किसी तरह से इनके सेवन से नहीं बच पाता हैं । यह हमारे देश की जनता की भलाई के लिए बहुत आवश्यक होगा कि इन पर प्रतिबंध जारी रखा जाए ।
- डॉ अरविंद श्रीवास्तव 
दतिया - मध्य प्रदेश 
जुबां केसरी बोल लेंगे ,हम दिल से वैसे ही पूरे केसरी हैं ,मगर "विमल" नहीं खाएंगे हम l ये जीवन बड़ा अनमोल है ,नशा बिगाड़े बात l तन -मन कोजर्जर करे ,घर में बरसावै दुःख ll
W.H.O.ने इस वर्ष की थीम तम्बाकू और वेक्स्क्यूलर डिजीज रखी है l विश्व में प्रतिवर्ष 70 लाख लोग नशे से काल का ग्रास बन जाते हैं l कैंसर ,हार्टअटैक ,दिमाग़ का पक्षाघात और गेंगरीन हो जाता है l स्वयं को और अपने परिवार को तम्बाकू छोड़कर बचा लें l 
      शराब ,तम्बाकू या अन्य व्यसनों को व्यक्तिगत और सामाजिक कारक काफी प्रभावित करते हैं l जबकि वास्तविक आदत प्रभाव डालने की अनुकूलता की क्रिया बनाती है या यों कहे कि युवा वर्ग परसनलटी डवलप करने के लिए नशा अपनाता है लेकिन अंतिम परिणाम तो आत्मविनाशकारी 
व्यवहार के रूप में सामने आता है l W.H.O.की भविष्वाणी आई है कि वर्ष 30 तक 10 मिलियन लोगों की मौत धूम्रपान से संबंधित बीमारियों से होंगी l नशा ज्यादातर ह्रदय और फेफड़ों को प्रभावित करता है l गले ,फेफड़े ,मुँह का कैंसर ,अग्नाशय का कैंसर इन्हीं के सेवन से होते हैं तदर्थ धूम्रपान निषेध नियम को प्रभावी बनाएं l टैक्स लगाए ,ऊँची क़ीमत होने से सिगरेट के समग्र उपयोग में कमी आती है l आशय यह है कि लॉक डाउन ही नहीं अपितु शराब ,तम्बाकू धूम्रपान को हमेशा के लिए प्रतिबंधित कर दिया जाएl  
यद्यपि सिगरेट तथा अन्य तम्बाकू उत्पादों काअधिनियम 2003 से पूरे भारतवर्ष में लागू है l लेकिन N.T.C.C.(राष्ट्रीय तम्बाकू नियंत्रण )का प्रभावी क्रियान्वयन करें जिसमें -
1. स्वास्थ्य एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं एन .जी .ओ .स्कूल 
शिक्षकों एवंप्रवर्तन अधिकारीयों को प्रशिक्षित करें l 
2. सूचना ,शिक्षा एवं संचार गतिविधियाँ संचालित करें l 
3. प्रभावी स्कूल कार्यक्रम संचालित करें l 
4. तम्बाकू नियंत्रण कानूनों की मॉनेटरिंग करें l 
5. ग्राम स्तरीय गतिविधियों के लिए पंचायती राज संस्थाओं से समन्वय स्थापित करें l 
6. जिला स्तर पर नशा मुक्ति केन्द्रों की स्थापना ,चिकित्सा सेवाओं का विस्तार करें l 
      येन केन प्रकारेण नशा परिवार ,समाज और राष्ट्र के लिए अभिशाप है l इसे लॉक डाउन में ही नहीं हमेशा के लिए प्रतिबंधित करें l 
चलते चलते -
तू ईश्वर की कलाकारी !नहीं तू महामारी 
नशे में डूबकर ,क्यों तू दिखाता है यूँ लाचारी 
नशे में जिंदगी बर्बाद की ,लुटा है तेरा घर 
नशे की फ़ांस में फंसाता ,तमन्ना तेरी है हारी 
कभी सोचा !क्या बनना चाहता था ,क्या बना है तू 
सुन ले !पहचान जा तुझको स्वयं को  खोज के ला तू 
नहीं जीवन मिला तुझको यूँ ही बर्बाद करने को 
तड़पते हैं तेरे अपने वहाँ ,अब होश में आ तू 
नशा हो देश भक्ति का ,नशा हो प्रेम शक्ति का 
नशा कुछ कर दिखाने का ,श्रेष्ठ जीवन बनाने का 
नशा माँ बाप की ममता ,नशा हो प्रेम प्रियतम का 
धुँए में क्यों उड़ाता जारहा ,,वो दुलार अपनों का 
तू ईश्वर की कलाकारी ,नहीं तू महामारी l
- डॉ. छाया शर्मा
अजेमर - राजस्थान
हमे लगता है ऐसा प्रतिबंध हमे सरकार के द्वारा नही बल्कि आत्मज्ञान से अपने अंदर लाना चाहिए, प्रतिबंध शराब पर बिहार में लगा ही हुआ है बावजूद उसके लोग की तस्वीरे आए दिन दिखती है, सरकार इस पर पूर्ण प्रतिबंध नही लगा सकती क्योंकि राजस्व का एक बड़ा हिस्सा उससे खिसक जाएगा , लेकिन हम धूम्रपान करने वाले भाइयो और दोस्तों से ये सवाल पूछना चाहते है  जब हम सुबह सो कर उठते है तो हमारे मुँह से जो दुर्गंध निकलती है उसको साफ़ करने के लिया तरह तरह के टूथपेस्ट इस्तेमाल करते है और दात और मुँह की सफाई के लिए जागरूक रहते है और पैसे की चिंता नहीं करते है तो फिर वह कौन सा कारण है, वह कौन सी मजबूरी है,जो हम अपने मुँह में खुद ही गंदगी और दुर्गन्ध डाल रहे है और अपने स्वास्थ और धन से खेल रहे है,निश्चित ही ये एक समझदार और सामान्य इंसान का काम नहीं हो सकता है।
ध्रूमपान -  धुरूम+पान ….अर्थार्त धुंए  का पीना. मेरे प्रिये दोस्तों और भाइयो  अब मै आपसे एक सवाल पूछता हूँ।
इस संसार में हमारे ईश्वर ने पीने के लिए हमें एक से एक आश्चर्यजनक चीजे दी है जैसे, पानी, दूध, जूस, लस्सी आदि तो फिर कौन सी वह मजबूरी है जिसमे हम अपनी शरीर को मारने वाला धुँए का सेवन रहे है। एक मिनट के लिए अपने दिमाग पर ज़रा जोर डाले बचपन में हमारा घरो में जब गैस नहीं हुआ करती थी, हमारे घरो मे कोयले या बुरादे की चूल्हे जला करते थे. हमारे घरो में खाना पकाने से पहले उस चूल्हे को हमारे घरो की महिलाएं (माता, बहिन या और सदस्य) उसको सुलगती थी तो उसके ज़रा से धुँए को हम सहन नहीं कर पाते थे. हमारे आँखों से आसू और आवाज़ में एक जाल सा बन जाता था और हम लोग घर से बाहर चले जाते थे ।
आज हमारा युवा-वर्ग स्मोकिंग (धूम्रपान) के माध्यम से अपनी या अपने पूर्वजो की मेहनत की कमाई को धुये में उड़ा रहा है। उसको ऐसा लगता है की वह भी फ़िल्मी हीरो शाहिद कपूर के कबीर फ़िल्म की तरह है ।
जो पर्दे और असल जिंदगी पर कुछ और है।
लेकिन शायद युवा वर्ग को पता नहीं की जिस धुँए को वो उड़ा रहा है वो अपने बल की अपनी मेहनत की कमाई और अपने स्वास्थ को ध्रूमपान में जला रहा ।
- राघव तिवारी 
कानपुर -उत्तर प्रदेश
समय जितना भी मुश्किल क्यों न हो कुछ न कुछ अच्छाइयां तो साथ लेकर  आता ही है। अब ऐसे समय में लोग सोचेंगे कि अच्छाई की क्या बात है?? जरा उन घर के लोगों से पूछो जिनके परिवार में लोग नशा करते हैं और घर की शांति को भंग करते हैं। ऐसे समय में लॉक डाउन पीरियड नशा उन्मूलन केंद्र का कार्य कर रहा है।इस समय बाजारों में तंबाकू, सिगरेट, पान मसाला प्रतिबंधित है। माना इसके कारण इसके आदी लोगों को असुविधा अवश्य हो रही है, परंतु उनकी आदत छूट भी रही है।नशा किसी भी प्रकार का क्यों न हो,कष्टकारी होता ही है।इसके आदी लोगों को शुरू शुरू में तकलीफ अवश्य हुई होगी,परंतु धीरे धीरे अब उसके बिना जीने की आदत पड़ ही जाएगी।आत्मशक्ति और आत्मविश्वास से इस बुराई पर भी जीत हासिल की जा सकती है।
   काश! यह प्रतिबंध लॉक डाउन के बाद भी जारी रहा तो उन परिवारों की हंसी खुशी वापस आ जाएगी जहां प्रति दिन घर की महिला ही नहीं बच्चा बच्चा भी डर और आतंक से ग्रसित रहता है।इस बुराई के कारण न जाने कितने ही परिवारों में प्रतिदिन घरेलू हिंसा होती है। न जाने नशे के कारण प्रतिदिन कितनी दुर्घटनाएं होती हैं जिसके चलते कितनी ही मौतें हो जाती  हैं। मैं इस बात से पूर्णतः सहमत हूं कि लॉक डाउन के बाद भी शराब,गुटखा और तंबाकू से प्रतिबन्ध नहीं हटना चाहिए।
- डॉ.विभा जोशी (विभूति)
दिल्ली
भारत मे पान ,तंबाकू ,  गुटखा व शराब के सेवन करने वालों की भरमार रही है ।ऐसे मे  सरकार का , कोरोना से बचाने के लिए  लॉक  डाउन  के फैसले  के साथ साथ  एक अति आवश्यक फैसला एवं महत्वपूर्ण फैसला   है शराब गुटखा और तंबाकू के सेवन पर प्रतिबंध  । जो कि स्वागत योग्य फैसला है । यह प्रतिबन्ध लॉक डाउन के बाद भी जारी रहना चाहिए ।लॉक डाउन के दौरान सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत शराब तंबाकू और गुटखा की बिक्री और सेवन पर प्रतिबंध लगा दिया ,इतना ही नहीं सरकार ने सार्वजनिक जगह पर थूकने पर भी पाबंदी लगा दी। ऐसा करते हुए पकड़े जाने पर ₹500 का जुर्माना लगाने का कड़ा निर्देश दिया गया है ।यूपी ,बिहार और दिल्ली अलग-अलग राज्यों में इसको लेकर अलग-अलग नियम बनाए गए हैं ।यूपी में पान मसाला गुटखा की उत्पाद व बिक्री पर बैन लगा है ।दिल्ली में 1 साल के लिए पान मसाला गुटखा के उत्पादन एवं बिक्री पर रोक लगी है ।बिहार में तो शराब पर पहले ही रोक लगी थी अब गुटखा और तंबाकू के उत्पादन और सेवन पर भी रोक लगा दी गई है । इनका सेवन करने वाले बहुतायत में पाए जाते हैं खासकर यूपी तंबाकू गुटखा सेवन के लिए खासा प्रसिद्ध है ।पान गुटखा तंबाकू खाने वालों की सबसे बुरी आदत होती है कि वह जगह जगह सार्वजनिक जगह पर  थूकते रहते हैं ,जिससे कोरोना वायरस के फैलने का सबसे बड़ा खतरा रहता है ,और संक्रमण की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। खाद्य सुरक्षा अधिनियम की धारा 32 ।2के तहत यह फैसला लिया गया है जो कि स्वागत योग्य है। क्योंकि पान मसाला व गुटखा  खाने वाले गुटखा चबा कर काम करते हैं और  जगह जगह थूकते रहते हैं , सार्वजिनक जगहों व कार्यालयों मे भी थूकते रहते है  जबकि थूक सबसे अहम फैक्टर  है कोरोना फैलाने मे ।  जिससे परिसर व सड़क की सुन्दरता व स्वच्छता तो प्रभावित ही होती है ,और  संक्रमण की भी सम्भावना काफी बढ़ती है ।इस लिए  जरूरी है , अब मामला गंभीर है अन्यथा संक्रमण को रोकना नामुमकिन हो जाएगा। लॉक डाउन के बाद फिर लोग जगह-जगह थूकेंगे और उसके बाद फिर संक्रमण बढ़ जायेगा तो इस तरह कोरोना मुक्त होना संभव नहीं होगा ।
इसलिए सबसे अच्छा तरीका यही है कि लॉक डाउन के  बाद भी लंबे समय के लिए शराब तंबाकू एवं गुटखा के उत्पादन एवं बिक्री पर पूर्णतया रोक लगा देनी चाहिए ।
-  सुषमा दिक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश 
भारत में पान, गुटखा, पान मसाला, तंबाकू जैसी चीजों का सेवन आम है. उत्तर प्रदेश तो इस मामले में अग्रणी है. ना सिर्फ बड़े पैमाने पर यहां इनकी खपत है बल्कि पान मसाला बनाने वाली ज्यादातर कंपनियां और फैक्ट्रियां भी यहां हैं.
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने की जंग के दौरान शुरू हुए लॉकडाउन के तुरंत बाद ही यानी 25 मार्च से ही उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में पान, पान-मसाला और गुटखा बनाने, उसके वितरण और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया. आदेश का उल्लंघन पाए जाने पर तत्काल लाइसेंस निरस्त कर प्रतिष्ठान को बंद कराए जाने के अलावा कठोर विधिक कार्रवाई की बात कही गई है.
इस संबंध में आदेश जारी करते वक्त बताया गया है कि कोविड-19 महामारी का संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है. पान मसाला खाकर थूकने और पान मसाले के पाउच के उपयोग से भी संक्रमण की आशंका रहती है, जिसकी वजह से यह निर्णय लिया गया है. उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार और कुछ अन्य राज्यों में भी इन सब पर प्रतिबंध लगाया गया है.
जहां तक उत्तर प्रदेश का सवाल है तो यहां के कई शहरों में पान मसाले का काफी प्रचलन है, खासकर राजधानी लखनऊ और कानपुर में. दूसरे शहरों में भी लोग पान मसाला बड़े शौक से खाते हैं. साथ ही पान और तंबाकू का भी बड़ी संख्या में लोग शौक रखते हैं. लॉकडाउन होने से एक तो दुकानें बंद हैं और दूसरी ओर तंबाकू उत्पादों और पान मसाले जैसी चीजों के उत्पादन, सेवन और बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध है. ऐसे में इन चीजों के शौकीन लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
सार्वजनिक स्थान पर थूकने के लिए अब कुछ सौ रुपये के जुर्माने की सजा से लेकर हत्या के प्रयास तक का आरोप लगाया जा सकता है। केंद्र सरकार ने पूरे देश में लॉकडाउन के लिए जारी अपने संशोधित दिशानिर्देशों में कहा कि यह कृत्य आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत अपराध होगा।
डॉक्टरों का कहना है कि खांसी और छींकने से हवा में फैलने वाली बूंदों से यह संक्रमण फैलता है। यही कारण है कि लोगों को एक दूसरे से दूरी बनाये रखने की सलाह दी जाती है। जब कोई गुटखा या पान खाने के बाद कहीं थूकता है तो इससे संक्रमण फैलने का खतरा होता है।
कोरोना वायरस संकट को देखते हुए लॉकडाउन लागू होने वाले दिन उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने पान मसाले पर प्रतिबंध लगा दिया था। यह भी उल्लेखनीय है कि गुटखे पर 2013 में प्रतिबंध लगा दिया गया था। बिहार, झारखंड, तेलंगाना, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, हरियाणा, नागालैंड और असम ने भी कोविड-19 के प्रकोप के बीच धूम्रपान रहित तंबाकू उत्पादों और सार्वजनिक स्थानों पर थूकने पर रोक लगाने के आदेश जारी किए हैं।
विभिन्न शहरों में नगरपालिका कानूनों के तहत सार्वजनिक स्थानों पर थूकना अपराध है, लेकिन देश में लोगों द्वारा इसे शायद ही गंभीरता से लिया जाता है।
बृह्न मुंबई महानगरपालिका ने सार्वजनिक स्थान पर थूकते पकड़े गए व्यक्ति के लिए 1,000 रुपये का जुर्माना निर्धारित किया है। इसी तरह के उपाय दिल्ली नगर निगमों और कई अन्य राज्यों में भी हैं।
लॉकडाउन तीन मई तक बढ़ाये जाने के मद्देनजर गृह मंत्रालय द्वारा जारी किए गए समेकित संशोधित दिशानिर्देशों में कहा गया है कि उल्लंघनकर्ताओं को दंडित किया जाएगा।
मंत्रालय द्वारा जारी किए गए राष्ट्रीय निर्देशों में कहा गया है, ‘‘सार्वजनिक स्थानों पर थूकना जुर्माने के साथ दंडनीय होगा। शराब, गुटखा, तंबाकू आदि की बिक्री पर सख्त प्रतिबंध होना चाहिए और थूकना पूरी तरह प्रतिबंधित होना चाहिए।’’
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
बिलकुल सही! यदि ऐसा संभव हो तो हमारी युवा पीढी जो नशे के गर्त में डूबती जा रही है वो नशे के दुष्प्रभाव से बच सकती है और युवा वर्ग देश के उत्थान में अपनी सौ प्रतिशत भागीदारी निभा सकता है । पर ये सम्भव नहीं लगता  तथा महामारी के गुजर जाने के बाद  देश और प्रदेशों  की सरकारें  खुलेआम या चोरी छुपे इन नशीले पदार्थों के क्रय विक्रय को जारी कर देंगी । यूं भी सरकारें इन नशीले पदार्थों के उत्पादन विपणन वा विक्रय से बहुत आधिक लाभ कमाती हैं ।   
-  सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
हां बिल्कुल सही है नशे के कारण ही घरों में हिंसा होती है। लॉक डॉग के कारण जो मजदूर वर्ग रोज काम करके शराब पीता है और नशा करता है उसे बहुत मुश्किल हो गई है इस मुसीबत में वह क्या कर रहा है जो सरकार की तरफ से उसे राशन का सामान भी दिया जा रहा है उससे भी व दुकानों में जाकर बेचकर अपनी पीने की व्यवस्था कर लेता है क्योंकि मैं सिर्फ और सिर्फ अपना नशा याद रहता उसे घर परिवार और देश से कुछ लेना-देना नहीं रहता है बंद कर देने के बाद भी इसकी कालाबाजारी बहुत होती है। क्योंकि लोग बिना भोजन के तो रह सकते हैं लेकिन उसके बिना नहीं।एक आदमी तंबाकू बनाता है अपने हाथ से मार कर तो दूसरा आदमी उसके पीछे पीछे बहुत दूर तक भी चला जाता है उसके खाने के लालच में और नशा देकर आप कोई भी काम करा सकते हैं आतंकवादी भी नशे की आदत डाल कर युवा वर्ग को आतंकवाद की ओर ढकेल ते हैं क्योंकि नशे में उसको होश नहीं रहता कि वह क्या सही कर रहा है क्या गलत कर रहा है। सरकार को इसकी ओर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाना चाहिए।
जिसके कारण घर परिवार और देश दोनों ही  बर्बाद हो रहे हैं।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
शराब, गुटका और तंबाकू पर कहने को ही प्रतिबंध लगा है । फर्क केवल इतना है कि पहले खुले आम मिलता था अब उसकी भी चोर-बाजारी हो रही है । लॉक डाउन में लोग कुछ डरे जरूर हैं , लेकिन अभी भी सुधरे नहीं हैं । यह लत ऐसी बुरी है कि मरने का खौफ भी उसे नहीं छुड़ा पा रहा है। बिहार में शराबबंदी के बाद एक माँ ने मुझसे कहा था, "कुछ बंद नहीं हुआ है। बदला केवल इतना है कि 100 रुपये की शराब 300 रुपये में मिलती है। हमको ज्यादा मार खाना पड़ता है।"
क्या यही शराबबंदी है? यह तो इस्तेमाल करने वालों को समझना पड़ेगा। बंद का अर्थ है "इस्तेमाल नहीं करना"। मतलब कहीं कुछ बुरा घट रहा है जिसके कारण इसे बंद किया गया है। प्रतिबंध जरूरी है । लेकिन फिर फैक्ट्री क्यों ? नौजवानों के जीवन को दांव पर लगाना क्या सही है?
शौक के लिए कभी खा लेना अलग बात है। लेकिन कुछ समाज के ठेकेदार धन के लालच में अपनी आनेवाली पीढ़ी को लाचार, बेबस और दुर्व्यसन का शिकार बना रहे हैं । ये लोग देश की युवा पीढ़ी को गड्ढे में धकेल रहे हैं । 
 इस पर सख्ती जरूरी है और जन मानस में इसके प्रति जागृति लानी होगी । हमारे नेताओं को भी सोचना होगा कि इसका दुष्प्रभाव एक दिन उनके घर में भी दिख सकता है । सबसे बड़ी बात है कि यह भी किसी कोरोना से कम नहीं है । समाज को नपुंसक बनाने में कोई कमी नहीं रह जायेगी, अगर इसका सेवन जाती रहा तो!
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
शराब तंबाकू और गुटका ऐसे व्यसन हैं , जो न केवल इंसान को शारीरिक क्षति पहुँचाते हैं, बल्कि इसके सेवन से सोचने समझने की क्षमता भी क्षीण हो जाती है । खतरनाक बीमारियों से शारीरिक कष्ट के साथ ही आर्थिक मार भी पड़ती है । परिवारों के विखंडन से बच्चों का अवसाद में आ जाना या गलत राह में चल पड़ना  समाजिक चारित्रिक पतन का कारण बनता है। ऐसे व्यसन करने वालों की   स्त्रियां परिवार की आर्थिक आपूर्ति के लिये बाहर काम करने को विवश हो जातीं हैं और इस प्रकार  बच्चों पर नियंत्रण नहीं रह पाता।  कहने का तात्पर्य एक व्यसनी अपना जीवन तो बर्बाद करता ही बच्चों का भविष्य भी चौपट कर देता है जिससे समाज के चरित्र का पतन होता है। 
समाज में अधिकतर अपराधों की वजह ये व्यसन ही हैं। 
ऐसा नहीं कि समाजसेवी संस्थाएँ , मनोवैज्ञानिक और सरकारें इस बात से अनभिज्ञ हैं , पर फिर भी आज तक इन नशीले पदार्थों पर प्रतिबंध नहीं लग सका।  वजह स्पष्ट है कि इन पर लगाए गए बिक्रीकर राजकोष में वृद्धि करते है ,इसलिए इनकी बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का साहस सरकारें नहीं कर पातीं ; यद्यपि कुछ राज्यों में शराब प्रतिबंधित है पर फिर भी चोरी छिपे लोगों तक पहुंच ही जाती है। 
यद्यपि सार्वजनिक जगहों पर इनका सेवन प्रतिबंधित है और जुर्माना भी तय है जिससे सिगरेट एवं बिड़ी के सेवन में बहुत हद तक कमी आई है, पर अब धूम्रपान का स्थान गुटका तंबाकू ने ले लिया है। 
लाॅकडाउन में यूँ तो शराब गुटका तंबाकू आदि की दुकाने बंद हैं । सोशल मीडिया पर इनसे संबंधित जोक्स भी देखने में आ रहे हैं । जो लोग अपने परिवार से चोरी छिपे इसका सेवन करते थे वे जरूर विचलित हैं , पर यह मान लेना कि ये नशीले पदार्थ लोगों को उपलब्ध नहीं हो रहे, यह पूर्ण रुप से सत्य नहीं है ; क्योंकि ऐसे व्यसनी इसकी व्यवस्था प्राथमिकता से करते हैं वे कहीं न कहीं से जुगाड़ कर ही लेते हैं। नशीले  पदार्थ उन्हें  उपलब्ध हो रहें हैं, पर पहले से कहीं अधिक महंगी कीमत में उपलब्ध हो रहें हैं। 
फिर भी खुले रूप में बिक्री न होने से इन नशीले अखाद्य पदार्थों के सेवन में कमी तो आई है । संभव है, एक डेढ़ महीने के लाॅकडाउन में कुछ लोग इनका सेवन न करने से परिलक्षित अच्छे परिणाम को देखते हुए, स्वयं ही इनका त्याग कर दें  , तथा इतने दिनों तक इनसे दूर रहनें की वजह से संभवतः उनकी तलब ही मर जाए ।
कुछ भी हो, इन नशीले पदार्थों के अभाव में परिवार एवं समाज की स्थिति बेहतर तो होगी ।
सामाजिक चारित्रिक उन्नति एवं अपराधों पर नियंत्रण हेतु सरकार को भले ही आर्थिक नुकसान उठाना पड़े ; 
शराब तंबाकू और गुटका सदा के लिए प्रतिबंधित कर ही देना चाहिए ।
- वंदना दुबे 
  धार - मध्य प्रदेश 
लाॅक डाउन में सभी घर में है। सुरक्षित है। कोरोना एक संक्रमित बीमारी है। ये एक - दूसरे के पास आने से फैलती है। लोग झुंड में इकट्ठे न हो, एक दूसरे के संपर्क में न आए, इसलिए सभी से लाॅक डाउन का पालन करने की अपील की गई है। इस स्थिति में आई टी सेक्टर में काम करने वाले लैपटॉप पर (वर्क फार्म होम) घर पर काम कर रहे हैं। डाक्टर्स, बैंकर, सफाईकर्मी और पुलिस घर से बाहर जाकर अपनी ड्यूटी सम्हाल रहे है ।पर सबसे बड़ी समस्या रोज कमाने और खाने वालों की है जैसे कि बिल्डिंग में काम करने वाले मजदूर, फेरी वाले, सड़कों पर ठेला लगाने वाले इन सब की आमदनी का कोई दूसरा साधन नहीं है। अभावों के बीच घर में तकरार हो रहा है। भूखे रहने के कारण चिड़चिड़ापन और गुस्से की स्थिति से भी घरेलू हिंसा बढ़ रहे हैं। सरकार अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रही है। कई तरह के सामाजिक संस्थान भी बढ़ - चढ़ कर इस कार्य में अपना योगदान दे रहे है। ये लोग इस बात को नहीं समझ रहे है कि जहाँ है, वहीं रहें। सभी अपने देश लौटना चाह रहे है। इस स्थिति में यातायात के साधनों का अभाव होने के कारण यह संभव नहीं है। 
                   दूसरा घरेलू हिंसा का कारण कौमी एकता में खलल डालने वाले कर रहे है। अपनी जान को जोखिम डालकर सेवा देने वाले डाॅक्टर, सफाईकर्मी और बैंक में बैठे आॅफिसर से लड़ रहे है। उन पर हमला कर रहे हैं। उन्हें यह समझना होगा कि कोरोना के सम्पर्क में जो आएगा। उसे वो निगल जाएगी। वो कौम ढूंढने नहीं जाएगी। इसलिए घर में रहें। सुरक्षित रहें, आदेश का पालन करें। इस मुहिम में एकमात्र हमारे सेलिब्रिटी सलमान खान ने पहल की है, जो काबिले तारीफ है।  हम सब मिलकर ईश्वर से प्रार्थना करते हैं, और कामना करते हैं कि ये बुरा वक्त जल्दी ही गुजर जाए और स्थिति सामान्य हो जाए।
                        - कल्याणी झा
                        राँची - झारखंड

" मेरी दृष्टि में " शराब, गुटखा, व तंबाकू पर कई बार राज्यों सरकारों ने प्रतिबंध लगाया है । वह सफल कभी नंजर नहीं आया है । परन्तु इस बार केन्द्रीय सरकार ने प्रतिबंध लगाया है । इसलिए आम जनता को ज्यादा उम्मीद है 
                                                       - बीजेन्द्र जैमिनी






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