सच्चे मित्र की पहचान कब और कैसे होती है ?

आज के युग में सच्चे मित्र मिलते कहाँ हैं ? मिलते हैं तो पहचाने कैसे ? परन्तु मित्र बिना जीवन नरकं के समान है । सुदामा का नाम इतिहास में दर्ज है । जिससे भारतीय सस्कृति को गर्व है कि भारतीय धरती पर ऐसे महानुभाव ने जन्म लिया है ।  ऐसा ही कुछ विषय जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : - 
मित्र के बिना हर व्यक्ति अकेला है। सच्चे मित्र मुश्किल से मिलते हैं। सच्चे मित्र की पहचान तब होती है जब हम दुखों, कष्टों और मुसीबतों मे चारों ओर से घिरे हों ।इस मुश्किल समय में जो हमारे साथ खड़ा हो।जो साथी खुशी में साथ हों और दुख में किनारा कर लें उसे मित्र नहीं कह सकते। सुदामा और कृष्ण जी की मित्रता, सच्ची मित्रता का उदाहरण है। 
       जो हमें ठीक गलत की पहचान कराये, हमें सहयोग दे,गलत काम करने से रोके,दुख सुख का साथी हो,झूठी तारीफें न करे,चापलूसी ना करे,दूसरे के सामने कभी नीचा ना दिखाए और दोस्ती के लिए दुनिया से लड़ जाने की हिम्मत रखे वो ही सच्चा मित्र है।
           सच्चे मित्र की पहचान कैसे होती है, बहुत सरल है।सुख के तो सभी साथी होते हैं। ऐसा मित्र जो हमें घोर निराशा से निकाले,हमारी परेशानी को अपनी परेशानी समझ कर तन मन से हमारी मदद करे,हमारी आंखों में आंसू ना देख सके।यदि कोई विपत्ति आ जाए तो चट्टान बन कर साथ खड़ा रहे वही सच्चा मित्र होगा। यदि कोई सुख में साथ हो और मुसीबतों में अकेला छोड़ जाए वो सच्चा मित्र नहीं होगा। ऐसे मित्रों से दूर रहने में ही भलाई है। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब 
यूं तो अधिकतर लोग एक दूसरे को दोस्त या मित्र का सम्बोधन करके पुकारते हैं किन्तु सही मायने में हर व्यक्ति के जीवन मे गिने चुने लोग ही सच्चे मित्र की श्रेणी में आते हैं ।
     किसी के भी जीवन में जो चुनिन्दा लोग उसके हितचिंतक होते हैं वे उस व्यक्ति को बुरी आदतों  ,बुरी संगत  , और बुरे कर्मों  से सचेत  , आगाह करते हुए रोकते हैं । यदि वो किसी मुसीबत में घिर जाये तो उसे सही रास्ता दिखा कर मुसीबत से बाहर निकालते हैं । खुशी के मौके पर वे लोग उसकी खुशी में बराबर शामिल होते हैं वहीं दुख की घड़ी में भी उसका पूरा साथ देते हुए उसे दुख से उबरने में पूरी मदद करते हैं ।
      सच्चे मित्र की असली पहचान मुसीबत में ही होती है।यदि मुसीबत में मित्र उसे छोड कर किनारा कर लेता है तो वो शख्श सच्चा मित्र कहलाने के काबिल नहीं ।।
     - सुरेन्द्र मिन्हास
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
जब हम मुश्किलों के भंवर में फंसे हों तब जो हमें उससे निकाल ले, जब राह में कांटे बिखरे हों उस समय जो राह में फूल बिछा दे, जब चिंताओं का अंधेरा छाया हो तब जो प्रकाश की किरण बन आ जाये, जब कदम डगमगाने लगे तब जो उन्हें स्थिरता दे, जब प्रेम की प्यास लगे तब जो उस प्यास को तृप्त कर दे, जब निराशा का सूखा पड़ा हो तब जो विश्वास की बरसात कर दे वही सच्चा मित्र है। इन्हीं हालातों में सच्चे मित्र की पहचान होती है।
- दर्शना जैन 
खंडवा - मध्यप्रदेश
विपत्ति में ही होती है सच्चे मित्र का पहचान। 
जो मित्र विपत्ति में आपका साथ दे वही सच्चा मित्र है। 
जो मित्र आपकी खुशी में शामिल होता है, और दुख आने पर आपसे दूर हो जाता है, वह आपका सच्चा मित्र नहीं है ।
ऐसा मित्र शत्रु से ज्यादा खतरनाक है।
मित्रता का हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। मित्र के बिना हर व्यक्ति अकेला है। सच्चे मित्र मुश्किल से मिलते हैं।
उदाहरण है:-सुदामा और कृष्ण की मित्रता सच्ची मित्रता की पहचान है।
अच्छे मित्र के संगति में मनुष्य अच्छा बनता है, सच्चा मित्र दुख -सुख के साथी है।
लेखक का विचार:-सच्चे मित्र की पहचान मुसीबत में ही होती है।यह धन से ज्यादा अनमोल होती है और हमें सुचारू रूप से चलने में मदद करती है। इसलिए हर एक के जीवन में सच्चे मित्र का होना आवश्यक है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
हमारे जीवन में खुशियां लाने और सफल बनाने में कुछ विशेष लोगों की  विशेष भूमिका रहती है ।
 परिवार से अपने रिश्तेदारों से तो हमें खुशियां मिलती ही हैं लेकिन यदि कोई सच्चा मित्र मिल जाता है तो बेहद भाग्यशाली भेंट मानी जाती है । 
सच्चा मित्र स्वार्थ रहित होना चाहिए तथा  बनावटी पन और दिखावे  के आधार पर दोस्ती नहीं होनी चाहिए।
 मित्रता में एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश नहीं होती । एक दूसरे की  इज्जत व सम्मान करना, समानता का भाव रखना, निंदा ,चुगली से सदैव दूर रहना  ,असली मित्रता का गुण है । 
स्वयं को श्रेष्ठ बताना और मित्र की कमियां आंकना सच्ची मित्रता नहीं होती । सच्चा मित्र किसी प्रतिद्वंदी की तरह व्यवहार नहीं करता तथा व्यर्थ की बहस भी नहीं करता । सदैव उन्नति प्रगति ,गतिशीलता और लक्ष्यों को पाने के लिए उत्साहित अच्छे मित्र ही करते हैं । 
एक अच्छा मित्र भावात्मक रूप से भी बुद्धिमान होता है क्योंकि वह बुरे से बुरे समय में आपका साथ देता है आपकी खुशी में खुश होता है । ईर्ष्या  ,द्वेष और जलन जैसे अवगुणों का मित्र भाव में कोई स्थान नहीं । 
मुसीबत के समय मित्र की अच्छी परख होती है वह आपका सहयोगी बनकर साथ देता है । आर्थिक रूप से यदि आप अक्षम है तो मदद करता है । 
अच्छा मित्र किसी भी व्यक्ति के लिए वैसा ही महत्वपूर्ण है जैसे किसी आभूषण के सौंदर्य को बढ़ाने के लिए रतन जड़ित, मोतियों का महत्व होता है ।
 यदि किसी के पास सच्चा मित्र है तो वह सचमुच भाग्यशाली है ।
- शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश 
 सच्चे मित्र की पहचान सुख और दुख के समय होती है। जब मित्र अपने मित्र के दुख और सुख मे अपना भागीदारी निर्वहन कर अगर सुख में भागीदारी करता है। तो हमारी सुख और दोगुनी हो जाती है। अगर दुख में मित्र भागीदारी करता है तो हमारी  दुख अर्थात समस्या का समाधान कर हमें, सुख देने की प्रयास करता है ।हर पल हर क्षण मित्र के दुख और सुख में भागीदारी निर्वाहन कर निरंतर मित्र को सुखी रखने का प्रयास करता है। वही सच्चे मित्र की पहचान है ।इस संसार में मित्र तो बहुत है। लेकिन स्वार्थी मित्र होते हैं ।कुछ ही सच्चे मित्र देखने को मिलते हैं
 ।सच्चे मित्र कभी भी स्वार्थी नहीं होता ।वह मित्र के साथ -साथ अन्य का भी सहयोगी होता है। मित्र उसी को कहते हैं  जो ,अपने मन ,तन ,धन का सदुपयोग के लिए अर्पण करते हैं। और दूसरों को सुख पहुचाने की चेष्टा करते हैं ।यही सच्चे मित्र की पहचान है।
- उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
सच्चे मित्र की पहचान वक्त आने पर ही की जाती है सच्चा मित्र मिलना बहुत मुश्किल होता है। रामचरितमानस के अनुसार जो मित्र के दुख में दुखी होता है वही मित्र हैं मानस में किष्किंधा कांड में बताया है जे न मित्र दुख होहिं दुखारी।
         तिन्हहि बिलोकत पाती भारी।। 
निज दुख गिरि सम रज कर जाना । 
मित्रक दुख रज मेरु समाना।।
कुपंथनिवार सुपंथ चलावा
जो अपने मित्र को परेशानियों से बचाता है। अनैतिक कार्य करने में रोक लगाता है। सन्मार्ग की ओर प्रेरित करता है।
देख लेत मन शंक न करइ 
लेन-देन में शंका ना करें विपत्ति में सौगुना स्नेह  करे। मित्र कितना ही धनी हो यदि वह समय पर अपने मित्र के काम नहीं आता तो मित्रता व्यर्थ है। ऐसे मित्र को देखने से भी पाप लगता है। सच्चा मित्र विपत्ति में सहयोगी अब प्रेम करने वाला ही  होना चाहिए। मित्र सच्चा मित्र कभी अपने मित्र को प्रसन्न रखने की बात नहीं करता जो उसके हित में हो भले कटु हो वही बात करेगा मित्रता  मे संदेह नहीं होना चाहिए।
- पदमा तिवारी 
दमोह -मध्य प्रदेश
जीवन में कम से कम एक-दो मित्र होना आवश्यक है। पारिवारिक सदस्यों से भी मित्रता हो सकती है। रक्त संबंध ईश्वर बनाता है परन्तु मित्र संबंध मनुष्य बनाता है। मित्रों की भीड़ होने से अच्छा एक-दो सच्चे मित्र होना कहीं बेहतर है। 
सुख के साथी तो बहुत होते हैं परन्तु विपरीत परिस्थितियों में कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहने वाला ही सच्चा मित्र होता है। मनुष्य की कमजोर स्थिति में ही सच्चे मित्र की पहचान होती है। 
रहीमदास जी सत्य ही कहते हैं कि..... 
"कहि रहीम संपत्ति सगे बनत बहुत बहु रीत। 
विपत्ति  कसौटी  जो कसे  तेई  सांचे  मीत।।"
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है-
''धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी॥''
अक्सर कहा जाता है- ''जो मित्र विपत्ति में आपका साथ दे वही सच्चा मित्र है.''
वास्तव में सच्चा मित्र हमेशा यादों में बसा होता है और हर दुःख-सुख का साथी होता है. कोई खुशी की खबर आए, तो प्रायः हम अपने सगे-संबंधियों से पहले अपने सबसे करीबी मित्र से साझा करते हैं. सच्चे मित्र को दुःख के बारे में बताना नहीं पड़ता, उसे स्वतः आभास हो जाता है और वह हर आपदा-विपदा में कंधे-से-कंधा मिलाकर साथ खड़ा होता है. विपत्ति आने पर जो आपसे दूर हो जाता है तो वह आपका सच्चा मित्र नहीं हो सकता, ऐसा मित्र शत्रु से भी ज्यादा खतरनाक है. सच्चे मित्र मुश्किल से मिलते हैं. सुदामा और कृष्ण की मित्रता, सच्ची मित्रता का अप्रतिम उदाहरण है. मित्रता में विश्वास की प्रमुखता होती है, इसमें छोटा-बड़ा, ऊंच-नीच और संदेह का कोई स्थान नहीं होता है. सच्चा मित्र हमारी सबसे अनमोल पूंजी है.
- लीला तिवानी 
दिल्ली
     सच्चे मन, एक ही निगाहों से मित्र की पहचान होती हैं। जिसमें भावनात्मकता के साथ शामिल किया गया, अपार हर्ष, प्रेम प्रकट कर निर्मला के साथ विभक्त किया जाता हैं। जो परस्पर प्रेम क्षणिक रुप से आत्मा प्रवेश कर, शनैः-शनैः  दो परिवार जनों में पहुँच जाता हैं और फिर अंत में बुरी तरह से सामना करना पड़ता जहाँ आपस में गलत संदेश के माध्यम से अहसास जनों के बीच दूरियाँ दिखाई देने लगती हैं। इसलिए कहा जाता हैं, कि "दोस्त से बढ़कर दुश्मनी नहीं" एक बार परिवार में सुलह हो सकती हैं, किन्तु दोस्ती में नहीं? सच्चाई में झलकती हैं, सच्चाई जहाँ समस्त प्रकार के कार्यों को 50-50 प्रतिशत से प्रारंभ होती और शत-प्रतिशत में जाकर रुक जाती हैं।
बशर्ते कि उसका उपयोग सही हो? एक बार परिवार को भूल जाते हैं, किन्तु मित्रों को नहीं, मित्र दो से प्रारंभ होती हैं और धीरे-धीरे संख्याओं में दिनोंदिन बढ़ोत्तियां होती जाती हैं। श्री कृष्ण और सुदामा का वह मित्रवत व्यवहार जो आनंदमयी जीवन का पंसग प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। सच्चा मित्र जरूरी नहीं पुरुष या महिला। यह तो अभिव्यक्ति हैं, दिल से ढूंढ लेता हैं, खुशी ही दिखाई देती हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
सच्चे दोस्त ईश्वरीय की अद्भुत सृष्टि रचना मे से है।दोस्त की भावनाओं को समझ पाना और ताउम्र साथ निभाने की कला सच्चे और अच्छे दोस्त की कसौटियों मे शामिल होते है।सुदामा और कृष्ण की दोस्ती एक मिशाल मानी जात है।दोस्त वहीं जो हर वक्त अपने निःस्वार्थ भाव से दोस्ती निभाये।सच को सच कहे।पथरीली राहो मे राहत बनकर सामने आये ।एकता की दीवारों मे अपनी दोस्ती के अफसाने लिख जाये।दोस्त हमेशा अपने दोस्त की बुराई को भी समक्ष रखने की शक्ति रखें।मुसीबतों मे दोस्तों की पहचान होती है।जो दुखद पहलू मे आपके साथ आत्मविश्वास बनके आपके हौसलों को नयी दिशा दे।ऐसे दोस्त ही जीवन के आधार होते है।सच्चा मित्र कभी आपको अपने पथ से भटकाव नही देगा सत्य की डोर थाम कर जीवन चक्रव्यूह मे हमेशा सुलझा हूआ राह को आपके सामने प्रस्तुत करेगा ताकि मंजिल की सिढि़याँ आप आसानी से चढाई कर सके।
वफादारी ईमानदारी की मुरत एक सच्चा मित्र ही होता है जिसे हर दम अपने मित्र की अच्छी बात ही नही बल्कि उसकी बुराइयों को भी उसके सामने लाता है।माँ जैसा ही होता है सच्चा मित्रजो मित्र की आँखों मे आसूओं की धार नही देख सकता और कुछ भी करने को तैयार रहता है।जब दुनियाभर के ताने दुख हो तो माँ और परिवार की भातिं सच्चा मित्र साथ देता है।आजकल की मित्रता के मायने बदल गये है मित्रों मे लोभ की चाहत जयादा है ।जहां मित्रता शर्मसार हो जाती है।विभिन्न  परिस्थितियों में शरीर के हिस्सों वफ़ा का रंग सच्ची मित्रता की होती है ।पंरतु मोह माया और लोभवश में मित्रता को घायल कर बेईमानी करते है ऐसे मित्र जहरीले साँप की भातिं होते जो मीठा बन कर विश्वासघात करते है।मित्रता पूजन तुलनात्मक रूप मे होती है।अतः जो दुख सुख मे एकसमान हो बादलों की तरह बदलते ना रहे ।वहीं सच्चे मित्र होता है।और उसकी पहचान उसके अडिगता सहनशीलता मानवता से हर दुखद पहलू और विपरीत परिस्थितियों मे होती है।जो समक्ष फरिस्ता बन राहें आसान कर दे वह मित्र सच्चे रूप से आपके साथ होते है
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर -  झारखंड
सच्चे मित्र हैं जिनके, भाग्य चमके हैं उनके।  मित्र तो अनेक हो सकते हैं पर सच्चे मित्र जब मित्रता निभाते हैं तो वह अलग से खड़े नज़र आते हैं। मित्र भले एक ही हो, मगर ऐसा हो जो शब्दों से ज्यादा खामोशी को समझे, ऐसा होता है सच्चा मित्र। मुसीबत में पड़ा कोई स्वाभिमानी अपनी व्यथा को मित्रों से नहीं कह पाता जबकि वह जानता है कि उनमें से कोई न कोई मुसीबत में से निकालने से उसकी मदद कर सकता है। परन्तु उन मित्रों में से कोई न कोई ऐसा होता है जो अपने मित्र की चुप्पी या चेहरे के भाव को पढ़कर, उसकी मुसीबत के बारे में जानकारी लेकर बिना कहे उसकी मदद कर देता है जिसका वह ढिंढोरा नहीं पीटता। ऐसा मित्र ही सच्चा मित्र होता है। 
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली
सच्ची दोस्ती ईश्वर का उपहार है और हमारे लिए ईश्वर का आशीर्वाद तब बन जाता है जब मित्र हमें जीवन में सही मार्ग दिखाता है ! सच्चे मित्र की पहचान विपत्ती के समय दोस्त का कंधा बन कहे चिंता मत कर मैं हूं ना ! मित्र की हर कमजोरियों को ढ़क दे ! जिससे दिल की हर बात शेयर कर सकें , परिवार में ऐसा मिल जाए जैसे दुध में शक्कर ! सच्चा मित्र वही है जो अपने दोस्त को सकारात्मक ऊर्जा देता है ! सच्चा मित्र अपनी मित्र के नकारात्मक सोच में सकारात्मक परिवर्तन लाते हैं !
रहिम जी ने कहा है ----
कहि रहिम संपति सगे बनत बहुत बहुरीति
विपत्ति कसौटी जे कसे सांई साचे मित !
(कृष्ण और सुदामा ,कर्ण और दुर्योधन की मित्रता आज भी याद की जाती है !)
सार में यही कहूंगी कठिनाई के समय जो अपना कंधा दे ,सही मार्गदर्शन दे  वही सच्चा मित्र है !
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
सच्चे मित्र की पहचान कोई संकट आने पर या कोई विपत्ति आने पर होती है। मित्र वही होता है जो विपत्ति में साथ दे। मान लीजिए परिवार में कोई शादी हो या कोई बीमार हो उस समय सच्चे मित्र की पहचान होती है। इस समय यदि मित्र कन्नी काट कर भाग जाय वो मित्र नहीं। मित्र वही है जो अपनी सामर्थ्य के अनुसार तन मन और धन से मदद करने के लिए तैयार रहे। अगर उसके पास धन नहीँ तो तन से हाजिर होकर अपने मित्र की मदद करे उसका उत्साह वर्धन करे। यदि तन से अक्षम है तो धन से मदद करे, वही सच्चा मित्र है। मित्र के दुःख से वो दुःखी हो मित्र के सुख से सुखी हो। जैसे राम ने बाली के साथ किये। कृष्ण ने सुदामा के साथ किये। खैर यर दोनों तो अवतारी पुरुष थे।
कर्ण ने दुर्योधन के साथ मित्रता निभाई अच्छे बुरे हर कर्म में साथ दिया। इनमें  कृष्ण की मित्रता ही सच्ची मित्रता है। बाकी दो आदमियों का तो अपना-अपना स्वार्थ था। सुख में भले शामिल न हो पर दुःख में अवश्य शामिल हो। वही सच्चा मित्र है।
तुलसी दास जी भी कहते हैं "जे न मित्र दुःख से हो ही दुखारी तिनहि विलोकत पातक भारी।" यानी जो व्यक्ति मित्र के दुःख से दुःखी नहीं होता उसे बहुत बड़ी होती है। बहुत से मित्र संकट पड़ने पर समय नहीं है या पैसा नहीं है कह कर भाग खडे होते हैं। ऐसे ही समय सच्चे मित्र की पहचान होतो है।
इसलिए सच्चे मित्र की पहचान विपत्ति में ही होती है। साथ दिया तो सही मित्र है यदि नहीं दिया तो मित्र नहीं।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
 कलकत्ता - पं बंगाल
सुख और दुख का साथी मतलब मित्र |सुख में तो पूरी दुनिया हमारे साथ खड़ी होती है परंतु जो विपत्ति में हमारे साथ प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में खड़ा हो, जो हमारी खुशी में हमसे ज्यादा खुशी का अनुभव करे व हमारे दुख व पीड़ा में उस दर्द को महसूस करे उसे बांटे व दूर करने में हर संभव प्रयास करे, हमें सही व गलत का एहसास दिलाए व हर प्रकार से गलत राह पर ना चलने दे मेरे मायने में यही सच्चे मित्र की पहचान है |
श्रीमति मोनिका सिंह
डलहौजी - हिमाचल प्रदेश
मित्र और वह भी सच्चा मित्र और उसकी भी पहचान कब और कैसे? बहुत जटिल विषय रख दिया जैमिनी जी। आज जब आदमी स्वयं को भी नहीं पहचान पा रहा,खुद को ही नहीं समझ पाता। तब मित्र की पहचान करने के लिए, आभासी संबंधों वाले इस युग में अतिरिक्त सतर्कता और मापदंड रखने ही होंगे।
मेरे विचार से तो, 
धीरज,धर्म,मित्र अरु नारी,
आपतकाल परखिए चारी।
यह मापदंड कभी कालातीत नहीं हुआ।
आपातकाल में साथ देने वाला ही सच्चा मित्र होता है। लेकिन वो आपातकाल यदि आपके
दुष्कर्मों से आया हो तो? यदि कोई हत्या, बलात्कार,चोरी, डकैती में अपराधी हो तो मित्र क्या करेगा? 
अब मित्र मिले, इसके लिए विद्या का होना जरुरी है और उसके लिए आलस्य नहीं होना चाहिए।विद्या से धन और धन से मित्र।
अलसस्य कुतो विद्या,अविद्यस्य कुतो धनम्
अधनस्य कुतो मित्रं,अमित्रस्य कुतो  सुखम्।
इसके आलोक में स्वयं को परखकर देखें।
वैसे मित्र की परख लिए कोई निर्धारित नियम आदि हो ऐसा नहीं। आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक स्थिति वालों में भी मित्रता के उदाहरण मौजूद हैं। इसके मूल में  कहीं न कहीं  मानसिक वैचारिक समानता तो जरुर होती है।
पहचान के लिए मैं एक सूत्र और मानता हूं,
जिसके व्यवहार, विचार और आचरण को आपका अंतर्मन गलत माने,वह सच्चा मित्र नहीं हो सकता। यही बात स्वयं पर भी लागू होती है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
*विपदा सर पर आन पड़े छोड़ दे सब साथ मित्र हाथ थाम खड़े यही सच्चे मित्र की पहचान*
मानव जीवन में मित्र का की अहम भूमिका है और जिसको सच्चा मित्र मिलता है उसके जीवन में आए कोई ही संकट पल भर में ही कम हो जाते हैं
सच्चे मित्र की परख मुसीबत परेशानी में ही हो सकती है आज के युग में सच्चा मित्र मिलना बहुत कठिन है
मित्रता के लिए कृष्ण सुदामा, अर्जुन कृष्ण, राम और सुग्रीव की मित्रता, दुर्योधन और कर्ण, मित्र किसी भी परिस्थिति में यह नहीं देखता कि वह सच  या झूठ,हार या जीत ,अमीर या गरीब, जाति और धर्म मित्र केवल मित्र होता है मित्रता ही उसका धर्म होता है।
सदियों से आज तक मित्रता की मिसाल समय-समय पर इतिहास में  वर्णित है सच्चा मित्र मिलना कठिन है
जिसको सच्चा मित्र मिल जाए उसकी किस्मत की सराहना करना मुश्किल है। आज के परिपेक्ष में या बहुत कठिन है किंतु असंभव नहीं है।
*मित्र का धर्म मित्रता*
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
एक सच्चा मित्र ही व्यक्ति के दुख में काम आता है, अतः वह अनमोल धन से भी बढ़कर होता है। मित्र रूपी यह धन किसी को मिलना कठिन होता है। जो लोग भाग्यशाली होते हैं, उन्हें ही सच्चे मित्र मिल पाते हैं। सच्चा मित्र उस औषधि के समान होता है जो उसे पीड़ा से बचाता है। इतना ही नहीं वह अपने मित्र को कुमार्ग से हटाकर सन्मार्ग की ओर ले जाता है और उसे पथभ्रष्ट होने से बचाता है।
सच्चे मित्र की पहचान करना बड़ा कठिन काम होता है। किसी व्यक्ति में कुछ गुणों को देखकर लोग उसे मित्र बना बैठते हैं। ऐसे मित्र बुरा समय आने पर उसी तरह साथ छोड़ जाते हैं, जैसे-जाल पर पानी मछलियों का साथ छोड देता है। ऐसे में हमें जल जैसे स्वभाव वाले व्यक्ति को मित्र बनाने की भूल नहीं करनी चाहिए।इतिहास में अनेक उदहारण हैं, जब लोगों ने अपने मित्र के साथ सच्ची मित्रता का निर्वाह किया। उनकी मित्रता दूसरों के लिए आदर्श और अनुकरणीय बन गई। इस क्रम में कृष्ण और सुदामा की मित्रता विशेष रूप से उल्लेखनीय है। श्रीकृष्ण और सुदामा की स्थिति में ज़मीन आसमान का अंतर था। कहाँ कृष्ण द्वारिका के राजा और कहाँ सुदामा भीख माँगकर जीवन यापन करने वाले ब्राह्मण। कृष्ण ने ‘कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली’ की लोकोक्ति झुठलाकर सुदामा को इतना कुछ दिया कि उन्हें अपने समान बना दिया और सुदामा को इसका पता भी न लगने दिया।
- रजत चौहान 
 बिजनौर - उत्तर प्रदेश 
            वक्त आने पर सच्चे मित्र की पहचान होती है। साधारण  रूप से तो सभी अपने को सच्चा मित्र बताते हैं किंतु जब बुरा समय चल रहा हो, परिस्थितियां साथ नहीं दे रही हो, उस समय साथ देने वाला मित्र ही सच्चा मित्र होता है।
       देखने में आता है बहुत से संपन्न लोगों के साथ काफी तादाद में लोग अपनी मित्रता प्रदर्शित करते हैं, दिन रात साथ में लगे रहते हैं और उसके रुपयों का उपभोग करते हैं। किंतु दुर्दिन आने पर वही दिन-रात साथ रहने वाले पास में भी नहीं फटकते।
       सच्चा मित्र विपरीत परिस्थितियों में भी हमेशा साथ निभाता है तथा मदद करता है। यही विपरीत परिस्थितियां उसकी पहचान साबित करती हैं।
 श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
आज की चर्चा में जहांँ तक यह प्रश्न है की सच्चे मित्र की पहचान कब और कैसे होती है तो ईश्वर मैं कहना चाहूँंगा जब आदमी का समय सही चल रहा होता है  सभी कुछ उसके अनुरूप हो रहा होता है तो ऐसी स्थिति में अपने तो उसके साथ होते ही हैं पराए लोग भी मित्रता का भाव दर्शाने लगते हैं और अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए उसके आसपास बने रहते हैं परंतु जब स्थिति विपरीत होती है तो यह सभी लोग किनारा कर लेते और अपना अपना मतलब सिद्ध करके अलग हो जाते हैं और जब व्यक्ति को इनकी जरूरत होती है यह दूर तक नहीं दिखते जबकि सच्चे मित्र यदि आपके पास हैं तो वह प्रत्येक स्थिति में आप का साथ देते हैं समय अच्छा हो या बुरा उनका  आपके इनकी निष्ठा वही रहती है परिवर्तित नहीं होती दूसरी बात यह है कि वह केवल अपने ही स्वार्थ सिद्धि की बातें नहीं करते आपका भी अच्छा भला और बुरा सोच कर आपको सही सलाह देते इसीलिए कहा जाता है कि सच्चे मित्र की पहचान बुरे वक्त में ही व्यक्ति को होती है और अपना वास्तव में वही है जो बुरे वक्त में अपने काम आए़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़
मित्रता हेतू मेरी ही पुराना पंक्तियाँ
आप सभी मित्रों के लिए............
हर चीज बदलती है यहाँ साथ वक्त के
सिर्फ दोस्ती है जो कभी बूढी नही होती.....
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
    मित्रता वह रिश्ता है जो हम स्वयं बनाते हैं, बढ़ाते हैं और निभाते हैं। खून के रिश्तों की तरह यह भाग्य प्रदत नहीं होते हैं । सच्चे मित्र  की पहचान सुख दुख ,परेशानी कठिनाई ,उन्नति अवन्नति सब परिस्थितियों में हो जाती है । मित्र जिसे हमारी हर आहट का एहसास बिन कहे हो जाए।  वो हमारी खुशी में दिखावे की चीजे नहीं करता पर उस का चेहरा ,हावभाव सब यह बता देते हैं कि वो खुश है ।उसी प्रकार दुख के समय वो चाहे पास हो या दूर उस का प्रयास हमारे दुखों को नष्ट करना ही होता है ।
     सच्चा मित्र हमारी अंतर्मन की परतों को भी पढ़ लेता है ।  एक बार साया हमारा साथ छोड़ सकता है पर सच्चा मित्र नहीं।
    -  ड़ा.नीना छिब्बर
   .   जोधपुर - राजस्थान
रहिमन विपदा हु भली,जो थोरे दिन होय।हित अनहित या जगत में,जानि परत सब कोय।।
अर्थात सुख के दिनों में यह जान पाना अत्यंत दुष्कर होता है कि कौन हितकारी या अहितकारी है।जो भी यार या मित्र की यारी में दम या वह खोखले दावे करता है।
रहिमन कहते हैं विपत्ति आने पर घबराना नही चाहिए।विपति हमेशा रहने वाली नही  है इसके बाद सुदिनों कि शुरुआत भी होगी,आप प्रतीक्षा कर सकते हैं क्योंकि विपति थोड़े दिन की मेहमान होती है।इस दौर में यह पता चलता है कि कौन अपना कौन पराया।
कृष्ण -सुदामा की दोस्ती की हम बात करे गरीबी से बुरा हाल जब सुदामा अपने मित्र कृष्ण के पास जाते हैं, तो दरबान कहता है कि कौन हो,किस से मिलना है।वो बताते की श्री कृष्ण से मिलना है वो मित्र हैं मेरे,एक पल अचरज होता है, कहां राजा और कहां साधु जैसे भेस में ये मित्र...।
कृष्ण गले लगा वो हर सम्मान देते हैं, दो से तीन दिन  बाद घर जाने की इच्छा जताई,पर कुछ बोल नही पाए सोच रहे मन ही मन जिस प्रयोजन को आए वो तो हुआ नहीं, पर जब घर आए तो ठाठ-बाट लगे थे सुदामा जी सोचे कि मैं कैसे धन्यवाद करू उस मित्र का।
यही मित्रता है सोच समझ कर मित्रता करनी चाहिए इसी में भलाई है।मित्रता वही सर्वोपरि है मुश्किल वक्त में काम आए।
                 - तरसेम शर्मा
            कैथल -हरियाणा

मित्रता का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका और योगदान होता है। मित्र की संगति का मनुष्य पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। इसलिए मित्रता भी सोच-समझकर और अच्छे संस्कार वाले व्यक्ति से करने का प्रयास होना चाहिए। सच्चा मित्र सुख -दुख का साथी होता है और सदैव हमें गलत काम करने से रोकता है।
सच्चे मित्र की पहचान मुसीबत और विपत्ति के समय होती है। बुरे समय में अगर वह साथ दे आपका साथ छोड़कर दूर न जाए, हितैषी बनकर हर पल सहयोग करे,आप को प्रोत्साहित करे, आप की कमियों की ओर इंगित करके उसे सुधारने का भी प्रयास करें-- वही सच्चा मित्र कहलाने के योग्य होता है।
सच्चा मित्र कभी नीचा दिखाने की कोशिश नहीं करता।आपके व्यक्तिगत या गोपनीय बातें दूसरे लोगों से शेयर नहीं करता। उसमें कोई बनावटीपन भी नहीं होता। अगर वह आपको दिल से दोस्त मानता है तो वह कभी प्रतिद्वंदी की तरह व्यवहार नहीं करेगा। आपके दुख में वह दुखी और सुख में आनंदित महसूस करेगा। ऐसे मौके पर ही हम अपने दोस्तों की पहचान कर पाते हैं।
                     - सुनीता रानी राठौर
                   ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
               एक सामाजिक प्राणी होने के नाते हमें विभिन्न प्रकार के रिश्ते/संबंधों की आवश्यकता पड़ती है।हमारे जीवन में सुख और दुःख भी आते रहते है।संकट काल अथवा विपत्ति के समय रिश्ते ही हमारे मददगार साबित होते है।इसी प्रकार एक रिश्ता है मित्रता । आजकल मित्र तो बहुत होते है लेकिन अधिकांश लोभी,लालची और स्वार्थी होते हैं।सच्चे मित्र का दावा करने वाले भी न जाने कितने मित्र धोखेबाज व मतलबी ही साबित होते हैं।
             सच्चा मित्र हमारी खुशी में खुश और दुःख में दुःखी होता है।वह झूठे वायदे नहीं करता है।वह हमारी मुसीबत को अपनी मुसीबत समझते हुए सहयोग करता है।वह हमें गलत रास्ते पर जाने से भी रोकता है।वह विश्वसनीय और सच्चा हितैषी होता है।
          सच्चे मित्र की पहचान संकट या बुरे वक्त पर ही की जा सकती है।जो बुरे वक्त में भी समाज या अन्य किसी की परवाह किए बिना भी कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग करता है, वही वास्तव में सच्चा मित्र होता है।
- सुरेंद्र सिंह
अफ़ज़लगढ़ - उत्तर प्रदेश
आज का विषय बहुत ही मधुर कहा जा सकता है, सच्चे मित्र चाहे कितने भी दूर हो वो अपने दोस्त की आँखों से अपने दोस्त के भावों को पढ़ लेते हैं और सच्चे मित्र को कोई भी बात बताने या जताने की आवश्यकता नहीं होती है वो पल भर में ही अपने मित्र के अच्छे बुरे हालात को भांप लेते है
मित्र जीवन में वो इत्र के समान होता है जिसकी महक से पूरा चमन गुलजार होता है, आपका मित्र आपके चरित्र का आईना होता है, हम अपने भावों और आदतों के अनुरूप अपने मित्र चुनते हैं,सच्चा मित्र आपका शुभचिंतक होता है और आपके हर सुख दुख में आपके साथ खड़ा होता हैं,और ये कहना  अतिश्योक्ति होगा कि मित्र है तो सब सुख है।
- मंजुला ठाकुर  
भोपाल - मध्यप्रदेश
     मित्र शब्द का उच्चारण होते ही मित्र के मन में विश्वास की मीठी तिरंगें उत्पन्न हो जाती हैं। उसके रग-रग में अच्छे दिनों के एहसासों के चित्र चित्रण हो जाते हैं। वह मन ही मन कहने लगता है कि मेरे मित्र के होते हुए 'मौत' की भी क्या औकात कि वह मेरा बाल भी बांका कर सके?
      उल्लेखनीय है कि ऐसे मित्र निस्संदेह भाग्यशाली होते हैं। जिन विभूतियों की उपरोक्त धारणाएं जीवन भर बनी रहती हैं। उनकी खुशनसीबी बनी रहती है कि मेरा मित्र मेरी प्रत्येक विपत्ति में काम आएगा। चूंकि कहते हैं कि मित्र वह जो विपत्ति में काम आए।
       परंतु मैं तो उन मित्रों की परछाई से भी जीवन भर दूर रहा हूं। मेरे मित्र तो शराब के मित्र निकले। वह स्वार्थी निकले। वह मेरे लिए विपत्तियां उत्पन्न करते रहे। वह मुझे अमीरी और गरीबी की तराजू में तोलते रहे। वह मित्र कम और व्यापारी अधिक निकले। वह स्वयंभू बुद्धिमान और मुझे पागल बताते रहे। मेरी समस्याओं को वह मेरा पागलपन कहकर उपहास उड़ाते रहे। वह मेरे विरुद्ध साजिशकर्ताओं को प्रोत्साहन देते रहे और तब तक देते रहे। जब तक मेरी आंखों से पड़ी उनकी मित्रता की पट्टी उतर नहीं गई। 
      अतः मेरा सौभाग्य यह रहा कि मैंने समस्त सांसारिक मोह-माया एवं मित्रता के बंधनों से मुक्त होकर अपने शेष बचे संघर्ष को प्राथमिकता दी और उस कहावत को तिलांजलि दे दी, जिसमें कहा गया है कि मित्र वह जो विपत्ति में काम आए। जबकि इस कहावत को मेरे फेसबुक मित्रों ने चरितार्थ कर दिखाया। जिनके कारण मित्र शब्द कलंकित होने से बच गया।
- इन्दु भूषण बाली
 जम्मू - जम्मू  कश्मीर
तुलसीकृत रामचरितमानस की एक चौपाई  जो  कि ज्यादातर लोग जानते होंगे ,,,,
  धीरज धर्म मित्र अरु नारी ।
आपति काल परखिए चारी।
  यह  पूर्णतया सत्य है कि सच्चे मित्र की पहचान विपत्ति के समय ही होती है।
जो मित्र विपत्ति में आपका साथ दे वही सच्चा मित्र है ।
जो मित्रों की खुशी में शामिल होता है और दुख आने पर आपसे दूर हो जाता है तो वह आपका सच्चा मित्र नहीं हो सकता बल्कि ऐसा मित्र तो शत्रु से भी ज्यादा खतरनाक है।
 मित्रता हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है।
 मित्र के बिना हर व्यक्ति अकेला है ।
सच्चे मित्र मुश्किल से मिलते हैं।
 सुदामा कृष्ण की मित्रता सच्ची मित्रता का सबसे बड़ा  उदाहरण है ।
जिस प्रकार पौधों को जीवित रखने के लिए खाद और पानी की जरूरत होती है ,उसी तरह मित्रता को बरकरार रखने के लिए सहयोग और सहनशक्ति की आवश्यकता होती है ।
मित्रता अनमोल है,,,,,  और हमें सुचारू रूप से चलने में सहायता करती है ।
हम सभी के जीवन में सच्चे मित्र का होना परम आवश्यक है ,अतः मित्रता को हर हाल में बचा कर रखना चाहिए ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
दोस्ती तो वह है..... 
जो पानी में गिरा हुआ आँसू भी पहचान लेती है l 
जो मित्र विपत्ति में आपका साथ दे वही सच्चा मित्र है l मित्रता ऐसा बंधन है जो खून का रिश्ता न होकर भी हमारे आसूं न देख सके, खुद भी रोये और हमें भी चुपकराये l यद्यपि ऐसे मित्र बहुत कम होते हैं लेकिन वह जीवन भर साथ निभाते हैं l 
सच्चे मित्र में निस्वार्थ समर्पण का भाव होता है l सच्चे मित्र की पहचानबुरे दिनों में होती है l पद प्रतिष्ठा और पैसा होने पर व्यक्ति में  अहंकार आ ही जाता है,  वह अकेला हो जाता है lऐसे में सच्चा मित्र बहुमूल्य वस्तुओं से भी अधिक उपयोगी सिद्ध होता है क्योंकि इस परिस्थिति में असुरक्षा की भावना घेर लेती है, उसका निराकरण सच्चा मित्र ही करता हैl 
संघर्ष के समय में तो हर मोड़ पर सच्चे मित्र की आवश्यकता होती है तथा उसकी पहचान भी होती है l चाणक्य के अनुसार जो व्यक्ति दुःख के समय निस्वार्थ भाव से आपका साथ दे वही सच्चा मित्र है l जो मित्र संकट में, विपत्ति में, दुश्मन के हमला करने पर राजदरबार में और श्मशान में आपके साथ खड़ा रहता है तो वह आपका सच्चा मित्र है l 
स्वार्थ के बल पर बनी दोस्ती हमेशा दुश्मनी का कारण बन जाती है l 
जैसी मित्रता कृष्ण -सुदामा, कृष्ण -अर्जुन की रही वह जगत प्रसिद्ध है l सच्चा मित्र पीठ पीछे बुराई नहीं करते, आपको नीचा दिखाने की कोशिश नहीं करता है l 
         चलते चलते ----
दोस्त बेशक एक हो लेकिन हो ऐसा जो, 
अल्फाज से ज्यादा ख़ामोशी को समझे l 
लेकिन स्वार्थ लोलुपता के चलते दोस्ती का परिवेश यह है 
दोस्ती किससे न थी, किससे मुझे प्यार न था l 
जब बुरे वक़्त में देखा तो कोई यार न था ll 
       - डॉo छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
आज का विषय है अच्छे दोस्त की पहचान कब होती है
अच्छी मित्रता अच्छे दोस्त परछाई की तरह होते हैं हर सुख दुख के साथी होते हैं हमेशा एक दूसरे के हाथ थामें रहते हैं।
दोस्त बहुत होते हैं पर सच्ची मित्रता सच्ची दोस्ती मुश्किल से इसी को मिलती है जिसे मिल गई वह बड़ा खुशनसीब है शायद वो खुशनसीबी मुझे भी मिली है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
सच्चे मित्र की पहचान उसके निस्वार्थ स्वभाव से होती है। जो सच्चा मित्र होता है वह बहुत बार बिना बताए मित्र के सुख- दुःख को पहचानने की शक्ति रखता है। हमारे दुःख में दुखी और  सुख में सुखी हो वही हमारा सच्चा मित्र है। आज के इस परिवेश में सच्चे मित्र की पहचान बड़ी मुश्किल से हीं होती है। लेकिन एक सच्चा मित्र अनेक रिश्तेदारों से बढ़कर होता है। मित्र से हम अपनी सारी बातें दिल  खोल कर बता सकते हैं और वह कहीं और  किसी से हमारी किसी भी समस्या का मज़ाक नहीं उड़ाएगा बल्कि समस्या का निदान करने का हीं प्रयास करेगा। यही एक बहुत बड़ी पहचान है सच्चे मित्र की। कहा भी गया है कि मुसीबत और विपत्ति में हीं सच्चे मित्र की पहचान होती है। यह बात अक्षरशः सत्य है। सब कुछ जानते हुए भी अंत तक दुर्योधन का हीं साथ कर्ण जैसे सच्चे मित्र ने देकर एक मिशाल कायम किया। हमें जो सही मायने में समझ सके वही हमारा सच्चा मित्र होता है। जिंदगी के निरंतर उतार चढ़ाव में अच्छे और ग़लत की पहचान हमें स्वयं और स्वत: हो हीं जाती है। 
- डॉ पूनम देवा
पटना -  बिहार
मित्रता ही एक ऐसा प्रेम है जो बेशर्त होता है ।जिसमे कोई अपेक्षा नहीं होती ।कोई शिकायत नहीं होती।न भी मिलें ।या न मिल सकें तो भी मित्रों में एक याद बनी रहती है ।जब किसी को किसी के पद प्रतिष्ठा से सरोकार नहीं होता ।ऐसा व्यक्ति ही जो ऐसा सोचता है वही मित्रता का हकदार है और वही उसकी पहचान है । उसे मित्र कहा जा सकता ।मुसीबत में काम आए तो ठीक न आये तो भी ठीक ।अगर हमारा मित्र कभी हमारे काम न भी आ सके तो जरूर कोई बात होगी ,कोई मजबूरी होगी  ।केवल इसी बात से किसी की मित्रता को कम नहीं आंका जा सकता । कोई हमारे काम आया या नहीं।।नहीं तो इतने प्रेम से भरा व्यक्ति किसी की अवहेलना कैसे  कर सकता  है ?  मित्रता की पहचान केवल प्रेम है । और प्रेम की कोई परिभाषा नहीं हो सकती ।
- चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा
मित्रता की बात चले तो कृष्ण का नाम स्मरण आता है । सच्चा मित्र अपने मित्र की जरुरत को बिना बताये जान लेता है जैसे कृष्ण ने सुदामा के  न मांगने पर भी दो मुठ्ठी चावल खाकर दो लोकों का राज्य दिया ।
सच्चा मित्र अपने मित्र  को संकट के समय सही रास्ता सुझाता है जैसे कृष्ण ने युद्ध क्षेत्र में विचलित अर्जुन को गीता का उपदेश देकरके धर्म की स्थापना के लिए युद्ध को  प्रेरित किया ।सच्चा साथी संकट के समय एक पुकार पर हाजिर होता है जैसे वस्त्र हरण के समय द्रौपदी के पुकारने पर कृष्ण ने लाज बचाई ।दुर्योधन भले बुरा था लेकिन कर्ण ने उसका साथ न छोड़ कर मित्रता की मिसाल कायम की । दोस्ती ऊँच -नीच ,गरीब -अमीर ,हरेक कमियों से परे मन का विश्वास है ।अपने मतलब के खातिर जुड़े लोग कभी दोस्त नहीं होते ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
कहते हैं चलते फिरते के सभी दोस्त होते हैं, लेकिन जब अपना शरीर काम  नहीं करता  तो कोई साथ नहीं देता सिवाय सच्चे मित्र के, 
तो आइयै आज चर्चा करते हैं सच्चे मित्र पर कि सच्चे मित्र कि पहचान कब और कैसे होती है। 
 सच्चे मित्र कि पहचान विप्पति के समय होती है, 
जो मित्र विप्पति में साथ दे    वोही सच्चा  मित्र होता है,   लेकि  जो मित्र आपकी खुशी में शामिल होता है और दुख आने पर आपसे दूर हो जाता है वो सच्चा मित्र नहीं है ऐसा मित्र शत्रु से भी ज्यादा खतरनाक होता है। 
एक सच्चा मित्र तो वो होता है जो आपके साथ हर परिस्थिति मैं रहे़, कोई भी गल्त काम  करते देख परिणाम कि चिन्ता किए  विना आपको सही सलाह जरूर दे, सच्चे दोस्त तो यहां तक कह डालते हैं, 
"आंसू तेरे निकलें तो आंखें मेरी हों,
दिल तेरा धड़के तो धड़कन मेरी हो, खुदा करे हमारी दोस्ती इतनी गहरी हो कि
 दोस्त तू बने और दोस्ती मेरी हो"।  
कहने का मतलब  सच्चे दोस्त बेवजह नाटकपन या बनावटीपन नहीं दिखाते। 
 अगर आपका मित्र आपकी गोपनिय बातें दुसरे लोगों से शेयर करता है तो वो आपका सच्चा मित्र नहीं है उसे तरूंत छोड़ देना चाहिए, यहां तक की सच्चे मित्र शान्ति से बात करते हैं  और व्यर्थ की वहस नहीं करते वो अपने मित्र की बात अच्छी तरह से सुनता है और समझता है और  दोस्त की बात में वादा नहीं डालता। 
सच कहा है, 
" सच्चे दोस्त हमें कभी गिरने नहीं देते न किसी की नजरों में न किसी केकदमों में"। 
यही नहीं सच्चा दोस्त आपके अतीत के सबंध की कभी बात नहीं करता वो आपके अतीत की  गलतियों को भुलाने की बात करता है, 
यहां तक के एक अच्छा दोस्त भावनात्मक रूप से बुदिमान हेता है और वो आपकी सफलता से कभी इर्ष्या नहीं करता। 
सच कहा है, 
"मित्र वोही है जो तुमको  रोते हुए भी वहला दे, 
खुद न खाकर अपने मुहं का गुस्सा  तुझे खला दै"। 
लेकिन ऐसे दोस्त बहुत कम मिलते हैं आजकल तो दो पल की दोस्ती है जब मतलब निकल जाता है कोई अपना नहीं दिखता  यह भी सच है, 
" महफिल में कुछ सुनाना पड़ता है, 
गम छुपाकर मुस्कराना पड़ता
 है, कभी उनके हम भी थे दोस्त, आजकल उन्हें याद दिलाना पड़ता है"।  
इसलिए दुख मुसीबत में ही परम मित्र की सत्यता का प्रमाण मिलता है, 
यह सच कहा है सच्चा प्यार तो मिल जाता है लेकिन सच्चा मित्र नहीं मिलता, 
आखिरकार यही कहुंगा जो मित्र के धूल के जैसे कष्ट को किसी पहाड़ की तरह मानता है, असल में वही सच्चा मित्र है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर

" मेरी दृष्टि में " सच्चे मित्र वह होते हैं । जो संकट में भी साथ खड़े होते हैं । फिर वह कोई भी हो , उसे से कोई फर्क नहीं पड़ता है । यही वास्तविकता हैं ।
     - बीजेन्द्र जैमिनी
डिजिटल सम्मान

Comments

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

लघुकथा - 2024 (लघुकथा संकलन) - सम्पादक ; बीजेन्द्र जैमिनी

इंसान अपनी परछाईं से क्यों डरता है ?