मदन मोहन ' मोहन ' की स्मृति में ऑनलाइन कवि सम्मेलन
पानीपत साहित्य अकादमी के अध्यक्ष व जैमिनी अकादमी के कार्यकारिणी अध्यक्ष मदन मोहन ' मोहन ' जी 20 सितम्बर 2020 को कोरोना नसे मौत हो गई। आज दो अक्टूबर को रस्म क्रिया है । मदन मोहन ' मोहन ' जी की स्मृति में जैमिनी अकादमी ने WhatsApp ग्रुप द्वारा साप्ताहिक ऑनलाइन कवि सम्मेलन रखा है। यहां पर कविताओ के साथ सम्मान पत्र पेश हैं :-
पर्यावरण
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जीवन मे करती हैं पुलकित, वृक्षो की ये हरियाली ।
हर पल हर क्षण सुकूँ ये देती शोभित् हरित ये मतवाली ।।
चाहें अगर तू शुद्ध हवा को पाना हर पल सांसों मे
पेड़ पौधे लगाओ अब तुम घर आंगन और बागों में
निर्मल स्वच्छ हवा बहेगी खिलेगी फूलों से हर डाली
जीवन को करती है पुलकित...........
हरियाली ना होगी जग मे घर आंगन सूना तब होगा
ना नदियाँ मे होगा पानी जीवन वीरां तब होगा
चाहते हो तुम सुख से रहना लगा पौध झुमै हरियाली
जीवन को करती हैं पुलकित.........
ना होगा बीमार ये मानव कोरोना ना आयेगा
हरित धान्य के आभूषण से सब कुछ तू पा जायेगा
घर मे पौधों का कर आदर घर आयेगी खुशहाली
जीवन को करती हैं पुलकित..............
- डॉ असीम आनंद
आगरा - उत्तर प्रदेश
माँ
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प्रकृति का
अप्रतिम रूप !
सूरज की बेंदी लगा
संध्या औ उषा के संग
भर मांग सिंदूरी
स्वर्ण गागरिया
स्नेहामृत ढुलकाती
चिड़ियों के कलरव की
पायल
छनक छनक छन
आती है पहिने .
शीतल ,मंद ,सुगंधित
पवन मंद मंद
बही जाती है
जैसे पनघट पर
"राधा कान्हा संग "
चुपके चुपके
दबे पाँव
चले जाते .
इठलाती बलखाती नदियाँ
कल -कल करते
नद नाले
श्याम मिलन
की
आस लिए
इक नया संसार रचाते .
फुदक फुदक
नर्तन कर पंछी
कलरव गान
सुनाकर
मानो ,माँ के स्वागत में
उत्साह ,उमंग भर
नव सृजन
रच जाते .
श्वासें जिनकी देन हैं
वृक्ष हमारे
जीवन साथी
दे जीवन दान
क्षुधा मिटाते
क्लांत पथिक को
जीवन का
संदेश
सुनाते .
जीवन को
सदगति देना ,माँ
कल्पना के
अनगिनत रंगों से ,
सूर्य चन्द्रमा
प्रहरी जिसके
भटके मानव
पथ पाते .
हे करुणामयी
वार किया ,चमन
वीरान किया
कुठाराघात किया
खुद ही अपना विध्वंस
किया
अब तुझ बिन जीवन
नहीं है सम्भव
माँ ,क्षमा दान .. माँ, क्षमा दान दे.
डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
प्रकृति का पुनर्जीवन
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आज हम विध्वंस कर रहे हैं प्रकृति का,
काट रहे निर्दयता से,
उसकी गहरी जड़ों को,
जानते हुए भी कि उसका न केवल,
सांस्कृतिक, धार्मिक वरन वैज्ञानिक महत्व है।
पर आज ? हम विमुख क्यों प्रकृति से ?
कवियों ने प्रकृति की गोद में ही,
समझा था, जीवन का सुख,
ऋषियों ने भी खोजा इसी की गोद में,
जीवन का दर्शन,
फिर क्यों है हम प्रतिबद्ध ?
नष्ट करने को प्रकृति और पर्यावरण,
नदियां बे मौसम ही लाएंगी बाढ़ और
प्रलयंकारी दृश्य,
जो निर्मित भी मानव स्वार्थ के कारण हुये,
अब पूर्ण कटिबद्धता के साथ,
करना होगा हमें प्रकृति का संरक्षण,
उसका संवर्धन और पुनर्जीवन।
- प्रज्ञा गुप्ता
बाँसवाड़ा - राजस्थान
घाटी का संदेश
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पलाश के फूलों की वो सुगंध अब कहाँ है।
मखमली ओस से घिरी वो सुबह अब कहाँ है।।
अब नहीं ओड़ती ये घाटी चूनर सब्ज प्रेम की।
अब नही होती है वो सुबह सुर्ख पहले सी।।
हिरनी सी कूलाचे भरती वो पहाड़ी गोरीया।
गुनगुनी सी धूप की वो गाती है लोरीयाँ ।।
देवदार के वृक्षों की होड़ लगाता इमारतों का जंजाल है।
खैर के वृक्षों की जगह अब ठूंठ का जंगल है।।
बादलों की चहलकदमी अब दिखती नहीं आम है।
प्रदूषण की धुंध अब रहती यहाँ आम है।।
कहती ये घाटी कहता ये परिवेश है ।
संभल जा ऐ मानव कहता ये संदेश है।।
- जगदीप कौर
अजमेर - राजस्थान
मैं जीवन हूं
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मैं वृक्ष
हे ! मानव करता हूँ
हाथजोड़ कर विनती
मुझको मत निर्दयता से काटो
कुछ तो सोचो !
क्या होगा मेरे बिन
जीवन संभव..
खेतों में अन्न पैदा होता...
खाने को अनाज देता हूँ
मीठे -मीठे फल ,सब्जियाँ
स्वस्थ रहने को अनेकों जड़ी बूटियाँ
पीने को जल देता हूँ ,
तरोताजा तुमको रखता हूँ |
हरियाली देता तुमको
सभी ऋतुएं मुझसे ..
शीतल हवाएं
प्राणवायु देता हूं
स्वस्थ जीवन.
प्रकृति के सब रंग मुझसे संभव
मैं ही जीवन हूँ !
भौतिक सुख की चाह में..
अपने स्वार्थ की खातिर
मेरा वजूद मिटा रहे हो
तुम नादान यह भी
ना समझे..
मुझ बिन कैसे संभव जीवन
ना खाने को अनाज
ना पीने को जल होगा
भूकंप ,सूनामी
कहीं बाढ़ ,कहीं तूफान
ढायेगा तुम पर कहर बन
अकाल ,महामारी जग में होगा
स्वच्छता का ना होगा
कहीं नामो निशान !
महामारी फैली विश्व में..
थोडा़ संभल हे मानव
मुझसे ही है जीवन सारा तेरा
मैं ही जीवन का आधार हूँ
सुनो सौ पेड़ तुम लगाओ ..
तब एक पेड़ काटो .
यह मेरी बात मानो ..
करता हूँ तुमसे विनती
पर्यावरण को बचाओ
हरियाली ना होगी..
दुर्भिक्ष संसार में..
चेतावनी हर क्षण..
अब ना करो मानव ..
तुम प्रकृति से अत्याचार.
तुच्छ स्वार्थ के लिए..
पर्यावरण प्रदूषण करते हो..
वृक्ष लगाओ..
जल बचाओ..
पर्यावरण का आधार..
मेरे बिन तुम निराधार..
करता हूं विनती..
मैं वृक्ष....!!!
- आरती तिवारी सनत
दिल्ली
प्रदूषित होता पर्यावरण
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हर दिन बढ़ता जा रहा है ,प्रदूषण तो विश्व में,
प्रदूषित होता जा रहा ,पर्यावरण समूचे विश्व में ।
संपूर्ण विश्व में मच रहा है ,चारों ओर ही हाहाकार,
मानव की जिज्ञासा से, रुक गया पर्यावरण प्रसार।
गगनचुंबी अट्टालिकाएं, अंतरिक्ष में बढ़ते कदम,
पर्वत भेदतीं मशीनें, धरा का तो असीमित खनन।
ध्रुवों की और पहाड़ों की ,बर्फ अब पिघलने लगी,
भूकंप के प्रकोप से ,हर जगह पर धरा हिलने लगी।
वृक्षों की अंधाधुंध कटाई ,जंगलों का होता खात्मा,
चिमनियों का उठता धुआं, ग्लेशियरों का पिघलना।
कारखानों से निकलता, प्रदूषित रासायनिक जल,
पहुंचकर नदी नालों सागर में,कर देता प्रदूषित जल।
ओजोन परत है घट रही ,प्राणवायु कम हो रही,
गैस संयंत्रों के रिसाव से ,जहरीली गैसें फैल रहीं।
है बहुत जरूरी, पूर्ण विश्व पर्यावरण को बचाना,
नये वृक्षों को लगाकर, नवीन जंगलों को बनाना।
नदियों और जलाशयों को ,सुरक्षित व समृद्ध करना,
उनकी सफाई एवं बढ़ोत्तरी का निरंतर प्रयास करना।
पशु पक्षियों की मिटती, प्रजातियों का संवर्धन करना,
उनकी बसाहट के लिए ,उचित ढंग से व्यवस्था करना।
पर्यावरण है तो दुनिया है ,तभी मानव जीवन संभव है।
बिन पर्यावरण, हर जीव जंतु का जीवन असंभव है।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
पर्यावरण संरक्षण
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सृष्टि की रचना कर ईश्वर ने,
खूबसूरत आभूषण से श्रृंगार किया ।
नदियों की निर्मल जल प्रवाहित कर,
उसका अविरल रक्त संचार किया ।
स्वच्छ शुद्ध हवा प्रवाह से,
हृदय स्पंदन और संचार किया ।
पर्वत ,पेड़-पौधे पल्लवित कर,
सुन्दर स्वास्थ्य का प्रसाद दिया ।
पर ये कैसी प्रगति की रफ्तार ,
प्रदूषण से तबाह जग संसार ।
जंगल,पेड़,पहाड़ सब कट रहे ,
कर-कारखाने यहाँ खुल रहे।
शहरों की छाती पर छोड़ रहा,
असंख्य मोटर-गाड़ियों का धुआँ।
प्रदुषित सारा वातावरण है
विषाक्त सारा जन जीवन हुआ।
कर रहे सभी धरा का दोहन ,
नहीं सुनता कोई प्रकृति का रोदन ।
शुद्ध जल बाजार से खरीद रहे,
ऐसा न हो हवा भी खरीदनी पड़े।
वक़्त है अभी भी ,जरा संभल जाओ,
बहुत किया दोहन,अब ठहर जाओ।
मत करो खिलवाड़ प्रकृति से इतना ,
दस गुणा लगाओ पेड़, काटा था जितना ...
- रंजना वर्मा "उन्मुक्त "
रांची - झारखण्ड
पर्यावरण बचायें
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लगातार होता रहा पर्यावरण पर अत्याचार!
वंसुधरा का हरित आंचल काला होगा मचेगा हा हा कार !!
धरा पर चारों तरफ़ होगा विनाश और सर्वनाश !
न बारिश की रिमझिम , न इन्द्र धनुष की छटा !!
आओ मिलकर करे संकल्प पर्यावरण बचायें !
वृक्ष न कटने दे हरियाली बचायें !!
पेंड लगायें प्रकृति का जीवन बचायें !
जल का महत्व बतायें जल की एक एक बूँद बचायें
आओ पेड़ों की श्रृंखला लगाते जाये !
धरती का बढ़ा है तापमान कम करते जायें !!
शीतलता रहेगी वन उपवन तभी नाचेंगे मोर अनेक !
वृक्षो से ही शीतल मंद पवन लहर लहर लहराती जायें !!
कितनी हरित प्यारी धरा ये प्रकृति और पर्यावरण
कलरव करते पक्षी कोयल मधुर राग सुनाती !!
रंग बिरंगे फूलों पर भंवरे आ मंडराते !
तितली रानी उड़ उड़ कर फूलों पर इतराती !!
मत उजाड़ो धरा की कोंख उसमें जान भर दो !
हरियाली है माँ का आंचल उसको उसमें जीने दो !!
प्रकृति हमें जीवन देती करे इसका संरक्षण !
आओ संकल्प करे पल पल इसका ख़्याल रखेंगे !!
जगह जगह हम पेड़ लगाये पेड़ों को कटने से बचायें !
हर जीवों में आस जगायें , साँसों को स्वच्छ बनाये ! !
जीवन की बगिया महकाये , पर्यावरण बचायें !
नदी नाले झरने बचाये , कल कल बहता पानी बचायें !!
पर्यावरण बचायें , हरित क्रांति लायें ,जन जन को हर्षाये !
वन उपवन महकायें !!
पशु पक्षी में आस जगायें
धरती , अम्बर , पवन ,मुस्कायें !!
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
पेड़ पौधे
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स्वच्छ निर्मल सी बहती हवा
कहती है मैं तो गर्म हुई।
वो बाग गये वो पेड़ गये
जिनके पत्तो से नर्म हुई ॥
जब लहराते थे खेत कही
बहता नदियों का पानी था।
आती मिट्टी की खुशबु थी
मेरे देश में अब वो रबानी कहाँ II
स्वच्छ निर्मल सी बहती हवा
कहती है मैं तो गर्म हुई ।
न पेड़ रहे ना हरियाली
है विरानी फैली हुई ॥
पेड़ो के पत्ते हिलते थे
बागों में कोयल गाती थी
चिडियां भी चहचहाती थी ॥
अब पेड़ रहे न वो मंजर
अब धरती बनी है बंजर ।
लगता प्रकृति ने रूत बदली
जब से मानव ने मुंह फेरा।
सारी हरियाली नष्ट हुई
चहुं और डाला है डेरा ॥
आने वाले युग में हम
बच्चो को क्या दिखलाएगे
उनको क्या सिखलाएगे।
न बाग रहे न पेड़ रहे
उनको कैसे समझाएगे ॥
इसका जिम्मेदार मानव
मानव ने ये ठान लिया
अब धरती पर बस घर होगे
हरियाली का नामो निशान नही।।
स्वच्छ निर्मल सी.............
जब न होगे ये वृक्ष कही
मानव कैसे जी पायेगा
जब जीवन न होगा
घरौदा कहाँ बस पायेगा ॥
स्वच्छ निर्मल सी.....
- नीमा शर्मा हंसमुख
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
पर्यावरण
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हम और तुम दोनों धरती के संतान
तुम्हारा आवास महलों में,
मेरा वास छोटे से बगिया में,
मेरे रंग बिरंगी फूल है संतान
इसे ना कुचलो तोड़ो नष्ट करो
छिन जाएगी मेरी ममता,
हरियाली को मत हारो
सूख जाएंगे मेरे चेहरे
मेरी बाहों को मत काटो
बन जाऊंगा मैं अपंग
मुझे छोड़ दो तेरे बच्चों
ने झूलेंगे मेरे बाहों में
मेरी खुशियां लूट जाएगी
ना दे पाऊंगा तुम्हें
ऑक्सीजन।
तुम्हें दुखी होकर
जीना होगा।
मेरे बगिया को नष्ट ना करो
हम दोनों धरती मां के
सहोदर संतान।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
शुद्ध पर्यावरण स्वस्थ जीवन
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शुद्ध पर्यावरण पे टिका है जीवन,
न करना प्रदूषित कभी भी इनको।
बगीचों की हरियाली व पेड़-पौधे,
हर लेते हैं हर गम मेरे तन-मन के।
स्वस्थ, खुशहाल व निरोगी काया।
मिलेगा शुद्ध पर्यावरण से हमको।
स्वच्छ हवा में जब हम सांस लेते,
रक्त धमनियों को निरोगी बनाते।
शुद्ध ऑक्सीजन देते हैं पेड़-पौधे,
सदा पर्यावरण को हैं शुद्ध रखते।
मंद मंद बहते हैं जब शीतल समीर
विकल ह्रदय को सुकून शांति देते।
रात्रि-नीरवता में चमकते चांद-तारे,
रोशनी भर पौधों को रौशन करते।
सर्वत्र प्रकृति की सुंदरता निहारेंगे,
नई उर्जा भर जीवन को सजायेगें।
शीतॠतु की खिलखिलाती धूप-सी,
जीवन को रंगीन- खुशनुमा बनाएंगे।
प्रकृति पर है प्राणी का जीवन निर्भर,
सदा प्रदूषणरहित वातावरण बनायेंगे।
मानव अंधाधुंध वन की न कटाई करे,
प्रकृति संग जनहित में रख काम करे।
तांडव रूप न दिखे प्रकृति प्रकोप का,
प्रकृति से सर्वदा खुशहाली मिला करे।
वृक्षारोपण से धरा पे हरियाली लायेंगे,
पेड़-पौधों से जीवन सुरक्षित बनाएंगे।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
घायल पर्यावरण की पुकार
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मैं घायल पर्यावरण हूं, मुझे संवारो,
मुझे संवारकर सृष्टि का रूप निखारो,
मुझे संवारोगे तो सृष्टि रहने योग्य बन जाएगी,
अन्यथा सर्वनाश की ओर मुड़ जाएगी.
जल-प्रदूषण, भूमि-प्रदूषण, वायु-प्रदूषण से किनारा करो,
ध्वनि-प्रदूषण और वाक्-प्रदूषण से मुक्त रहो,
पॉलीथिन और प्लास्टिक का प्रयोग करना छोड़ो,
''मैं पर्यावरण के लिए समर्पित हूं'' शान से कहो.
अधिक-से-अधिक पेड़ लगाओ, पर्यावरण बचाओ
कार और मोटरसाइकिल का इस्तेमाल कम करो, पर्यावरण बचाओ
साइकिल का उपयोग बढ़ाओ, पर्यावरण बचाओ
बेजुबान पक्षियों-जानवरों को मारकर खाना छोड़ो, पर्यावरण बचाओ
पानी की बूंद-बूंद की कद्र करके पानी का अपव्यय रोको, पर्यावरण बचाओ
रासायनिक खाद व कीटनाशक का प्रयोग बंद करो, पर्यावरण बचाओ.
कंप्यूटर और लैपटॉप जैसे उपकरणों की रिसाइकलिंग करवाओ, पर्यावरण बचाओ.
मधुमक्खी-पालन बढ़ाओ, पर्यावरण बचाओ
कागज का इस्तेमाल घटाओ, पर्यावरण बचाओ
''मैं पर्यावरण के लिए समर्पित हूं'' शान से कहो.
परमात्मा ने प्रकृति का सृजन किया
फूलों, पक्षियों, फलदार वृक्षों ने अभिनंदन किया
तुमने फूलों को कुचलकर इत्र बना दिया
पक्षियों को मनोरंजन के लिए पिंजरे में कैद कर दिया
फलदार वृक्षों को रासायनिक खाद से जहरीला कर दिया
जंगलों को काटकर कंकरीट का जंगल बना दिया
ओज़ोन की छतरी के छेद को विस्तारित कर दिया
पर्यावरण दिवस मनाने का भड़कीला ढोंग किया
अरे तुमने तो मेरे साथ-साथ अपना भी सर्वनाश किया
अब तो मुझ घायल पर्यावरण को बचाने का कोई जतन करो,
मेरी पुकार सुनकर अपना भी भला करो, मुझ पर भी कुछ रहम करो
''मैं पर्यावरण के लिए समर्पित हूं'' शान से कहो.
- लीला तिवानी
द्वारका - दिल्ली
धरोहर
*****
दस-दस पौधे लगा
फोटो न खिंचाइए,
उन्हें आत्मप्रचार का
साधन न बनाइए।
पेड़ पर्यावरण जब
साँस लें अंतर्मन में,
तब एक पौधा कहीं
चल कर लगाइए।
प्रेरणा-संकल्प जगा
मिल काम करें सभी,
सार-संभाल करके
उसे वृक्ष बनाइए।
किसी की देखा-देखी
करें नहीं कोई काम,
मन की आवाज पर
हरियाली सरसाइए।
प्रकृति धरोहर अपनी
प्रेम-स्नेह चाहती है,
वात्सल्य से पूरित कर
इसे दर्शनीय बनाइए।
प्राण वायु मिले सबको
जीवन धरती पर रहे
जीवंत प्रकृति भावी पीढ़ी को
स्वयं सौंप कर जाइए।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
पर्यावरण
*******
वक़्त आ गया है कि संभल लो ,
जो दिया है प्रकृति ने हमको ,
उसकी भी अब पूरी सुध लो ,
वनों की रक्षा कर ऑक्सीजन का ,
भंडार अपने नाम कर को ,
नदियों के जल को संरक्षित कर ,
निर्मलता अपने नाम कर लो ,
भूमि को बेचकर कब तक पेट पालोगे ,
अब तो इसका पूजन कर लो ,
फल फूलों के बाग बगीचे सुंदर,
तुम न इनका नास करो ,
जो दिया है ईश्वर ने ,
मिलकर इस पर्यावरण की रक्षा करो ,
मन को भाते झरने इसके ,
झीलों में दिल पिघलता है ,
मृदा की कीमत अनमोल ,
इसमें तो सोना उगता है ,
तेल कोयला जैसी सम्पदा ,
इसके धरा के गर्भ में समाती है,
मिलकर प्रकृति के घटक ही ,
पर्यावरण की संरचना करते हैं,
हमें भी संकल्पित रहना है ,
अपने पर्यावरण को हमें ,
खुद ही संरक्षित करना है।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
पर्यावरण
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कितना और दिखावा मानव...
और कितना छलावा...
स्वयं को कहते हो प्रकृति प्रेमी?
दो पौधे बालकनी में सजा कर...
तुम्हारे ही आंगन में देखा मैंने..
पक्षी को बंद पिंजरे में...
बंद पिंजरे में वह रोता रहा..
आहा!तुम समझे मधुर संगीत..
अरे!मानव ओर कितना...
छलोगे स्वयं को?
कितना शान समझते हो तुम..
सजा कर घर को...
सोफे के कोने में देखा...
हाथी दांत का सुंदर नमुना..
चाबुक के प्रहार से...
विजय पाते देखा मैंने..
उन बेजुबान जानवरों पर...
कितनी पीड़ा दिया तुमने...
फिर भी कहते स्वयं को..
प्रेम तुम्हें है प्रकृति से..
अरे!और कितना दिखावा मानव..
कितना और छलोगे स्वयं को।
- सुधा कर्ण
रांची - झारखंड
नदी की पीड़ा
***********
खामोश थी बरसों से/
नदी-मेरे इलाके की
अविरल/अविकल बहा
करती थी-निश्चल/चंचल मन से
पूरे वेग के साथ!
प्यास बुझाती रही निःस्वार्थ भाव/
लिये हृदय में
किया उपकार बहुत/मानव समाज पर
परन्तु--
बदले में क्या दिया उसे हमने
मानव- रौंदता रहा /बरसों तक नदी को
अपने कुकर्मों से/गन्दगी-कूड़े कचरे/ प्लास्टिक का
भोज्य परोसा गया सदैव नदी को
पलती रही बीमारियां/नदी के गर्भ में
अंततः----
मृतप्रायः हो गया नदी का अस्तित्व
मानव लेता रहा /इम्तिहान, उसकी सहन शक्ति का
समय के साथ/सिमटता गया अस्तित्व नदी का/ प्रदूषण तले दब गई वह
परन्तु अब--खामोश नही रहेगी नदी/
उग्र है रूप उसका/उत्तेजित-आक्रमक
कुचल डालेगी वह 'सभ्य मानव समाज 'को
किया है जिसने खिलवाड़/नदी के
अस्तित्व के साथ !
शहर भयभीत है/प्रलय की आशंका में
प्रकृति ने सुन ली है/नदी की चीत्कार
आसमान से बरस रही है आफत
खत्म हो जायेगा इसमे / मानव का अस्तित्व भी?
यह समय चेतने का है/ बचा लेने का है
नदी का अस्तित्व/और प्रण लेने/प्रकृति से
क्षमा याचना का/समय है यह
ताकि शेष जीवन/न आये ऐसी दुश्वारियां
फिर कभी/ नदी- मुक्त हो प्लास्टिक के प्रदूषण से
और नदी /वरदान बने फिर हमारे लिए !
- मोहम्मद मुमताज़ हसन
गया - बिहार
गजल
*******
धरा पर हम सभी पौधें लगाते है |
घरों में फूल गमले हम सजाते है |
बढे जब रोज प्रदूषण घरों में तो
छिटक कर ये दवा मच्छर भगाते है|
यहां वो काटते रोज पेड़ों को
इन्हें वे बेच कर पैसा कमाते है |
बचाने हैं लगे जितने सभी पौधे
चलो दो चार को पानी पिलाते है |
बहारों में नहीं हो फूल पौधे तो
धरा उजड़ी लगे ऐसा बताते है|
स्वार्थवश बना नर है विनाशी अब
सभी झरने नदी सूखे नहाते है |
हुई बंजर धरा खाली पड़ी देखो
बता दीपा फसल कैसे उगाते है |
- दीपा परिहार
जोधपुर - राजस्थान
मनहरण घनाक्षरी छंद
*****************
प्रकृति जगत की है पर्यावरण अस्मिता
पेड पौधे फेफड़े हैं धरा साँस पाई है
धरती हमारी नहीं सेवक हम धरती के
प्रकृति रक्षति रक्षिता ही सिद्ध पाई है।।
समय के रथ चढ़, ऋतु संरक्षित चली
पंचतत्वों की महिमा वेदों ने भी गाई है
पत्तियों का झर जाना पेड़ का नहीं है अंत
परिवर्तन प्रक्रिया ये सृजन चिरंतनी है।।
प्रवृत्ति औ प्रकृति में, सामंजस्य साध चलें
धरती की आन-बान, शान बन आई है ।
हरियाले अंचरा में, अक्षय भंडार छिपे
चंद्र सूर्य नभ तारे, झरती जुन्हाई है।
प्रकृति कीआराधना जियो और जीने दो
वसुधैव कुटुम्बकम संस्कृति सुहाई है
वसुधा वसुंधरा वो, वसुधैव वसुमती
वाणी विरुदावली वो, वंद-वरदाई है।।
विश्व गुरु भारत की, संस्कृति का पर्यावरण
सरहदों के पार भी, स्नेही धुन गाई है।।
रक्षा करें नाते रिश्ते , सामाजिक पर्यावरण
सृष्टि और दृष्टि में सामंजस्य ले आई है
उऋण मनुज नहीं, उपकार धरणी के
दोहन क्षरण देख , सृष्टि भी गुस्साई है।
अति वृष्टि सूखा बाढ़, भूकंप प्रलय नाद
प्रकृति ने भौंहे जब, अपनी चढ़ाई है।।
पर्वत और सरिता ये मैदान और मरुस्थल
प्रकृति के सारे पर्व पर्यावरण संरक्षित हैं
चंद्र सूर्य नभ तारे, धरती के अंग सारे
वंदन स्वीकार करो, "मानवी" ले आई है!
- हेमलता मिश्र मानवी
नागपुर - महाराष्ट्र
पर्यावरण संरक्षण की ज्योति जलायें
***************************
हर हृदय में पर्यावरण संरक्षण की ज्योति जलायें,
पर्यावरण दूत बनकर इस विचार को संकल्प बनायें।
प्रकृति का अनमोल वरदान है पृथ्वी हमारी,
सब मिल-जुलकर इसे स्वर्ग से सुन्दर बनायें।।
आओ धरा पर पेड़ों की श्रृंखला बनायें,
प्रकृति के वरदानों से जीवन को सजाये।
पेड़ लगाकर अपनी मां भारती को महकायें,
जीवनदायक पेड़ों के साये में जीवन बिताये।।
पृथ्वी पर चहुं ओर जब हरियाली होगी,
हर मानव के जीवन में तब खुशहाली होगी।
पेड़ों की महत्ता अब समझनी ही होगी,
जीवन धारा हरी-भरी अब करनी ही होगी।।
जब दूर तक कंक्रीट का आसमान होगा,
केवल रंगीन दीवारों का जंगल बियांबान होगा।
गर्म हवा के थपेड़ों से मानव जब परेशान होगा,
भूल का अपनी तब मानव को अहसास होगा।।
पेड़ों से बचती हैं धरा पर संस्कृतियां,
पेड़ों से बनती हैं जीवन में सांसों की अनुकृतियां।
बैठकर पेड़ों की छांव में होती नई अनुभूतियां,
गौर से देखो तो सही कभी पेड़ों की आकृतियां।।
विचार करो काट-काट कर पेड़ों को क्या पाओगे,
हवा जब रुकेगी सांसों को गिनते रह जाओगे।
अमूल्य संपदा का जब तिरस्कार करते जाओगे,
पेड़ विहीन धरा को देखकर तब पछताओगे।।
जल संरक्षण भी मानव धर्म होना चाहिए,
जल का सदुपयोग सबका कर्म होना चाहिए।
जल की एक-एक बूंद का संरक्षण होना चाहिए,
संदेश ये जन-जन का आचरण होना चाहिए।।
प्रयोग प्लास्टिक का अब खत्म होना चाहिए,
विरूद्ध इसके अब एक युद्ध होना चाहिए।
शुद्ध कारकों का अब विकास होना चाहिए,
संहार प्लास्टिक का जन-जन का संकल्प होना चाहिए।
गाडि़यों से अब निस्तार होना चाहिए,
पैदल कदमों का अब विस्तार होना चाहिए।
जागें स्वयं भी औरों के हृदय में भी अलख जगायें,
हर हृदय में पर्यावरण संरक्षण की ज्योति जलायें।।
भारत भूमि को मां का हमने स्थान दिया,
जन्मदायिनी से ज्यादा इसका मान किया।
पृथ्वी की नियामतें वरदान हैं हमारे लिए,
इसके उपकारों को सम्मान हमने क्या दिया।।
पर्यावरण संरक्षण कर नमन इसको कर जायें,
पृथ्वी है मां हमारी पुत्र का फर्ज अदा कर जायें।
हर हृदय में पर्यावरण संरक्षण की ज्योति जलायें,
पर्यावरण दूत बनकर इस विचार को संकल्प बनायें।।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखंड
पर्यावरण
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जल लहरों की कलकल छलछल
अपने ही अन्तर्द्वन्द को लेकर
शांत होती है वह उस पल
मिलती है जब सागर के तल पर!
पलपल उठती और थमती
जलांधर के बोझ से दबती
हलाहल को निष्क्रिय है करती
शांत भाव लिए फिर से है उठती!
लहरे अपना काम दिखाती
सागर फिर भी कुछ न कहता
आगोश में अपने भर लेने को
हरदम बांहे फैलाए रखता!
सृष्टि की रचना तो देखो
इस धरा पर दृष्टि तो फेंको
तीन भाग में सागर है फैला
फिर भी पृथ्वी ने उसको है झेला!
धरा का यह विशाल स्वरुप
होता है नारी के अनुरूप
अपने मे समा लेने की क्षमता
नारी में ही होती है यह समता!
शांत भाव से पृथ्वी है सहती
बोझ उठाकर के वह कहती
सागर से अमृत पाकर भी
विष से भरी हुई हूं अब भी!
शीतल हवायें देती थी जो
आग वही बरसाती है
धैर्य की हर सीमा लांघे
उससे पहले हम उनको बांधे
जगह जगह हम पेड़ लगायें
वसुंधरा को हरित बनाये
उत्कृष्ट उपवन को लहरायें
शीतलता संग अमृत बरसायें!
आओ हम सब दृढ़संकल्प करे
समुद्र-मंथन से मिले अमृत को दे
मां पृथ्वी को विषमुक्त करें
विशाल हिर्दय वाली माता को
हम सब मिलकर नमन करे!
आओ हम सब दृढ़संकल्प करे
मंथन से मिले अमृत को दे
मां पृथ्वी को विषमुक्त करे!
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
पर्यावरण
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मत बरबाद करो कुदरत को ,
हम कुदरत के अंश ।
लता विटप सरिता सब रक्षक ,
हम कुदरत के अंश ।।
छेड़छाड़ मत करना इनसे ,
थोडा़ डर के रहना इनसे ।
वर्ना नहीं बचेगा वंश । ।
हम कुदरत ******
नाम कमाए गलत काम कर ,
सबसे गिरा हुआ है ये नर ।
इसीलिए करता है विध्वंश ।।
हम कुदरत ******
ऋषि औ मुनि सब भूल गये ,
डूब के मद में फूल गये ।
अंदर इनके पलते अब दंश ।।
हम कुदरत ******
दया धर्म कुछ याद नहीं अब ,
सुनते ये फरियाद नहीं अब ।
आज हुए हैं ये कौरव वंश ।।
हम कुदरत ******
कैसे हैं ये कुदरत के अंश ।।
-डा. नेहा इलाहाबादी
दिल्ली
प्रकृति का बदला
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काट डाले हम कितने
उजड़े कितने उपवन
ले रही प्रकृति जब बदला
क्यों बौखलता है मन
समतल किये हम पहाड़ कितने
उजड़े कितने जंगल
करवट ले रही जब पृथ्वी
क्यों हो रहा है तब दंगल
अपनी सुख की खातिर हमने
भर दिए कितने पोखर और तालाब
रो रहा है क्यों अब मानव
प्रकृति मांग रही है जवाब
कचरे से भर दिए हमने
नदियों सुर सागर को
पाइन के लिए शुद्ध पानी नहीं
अब क्यों फोड़ रहे गागर को
लगाए नहीं दस बीस पेड़ हम
बच्चों की लाइन लगाए हैं
मांग रही प्रकृति जब बलिदान
क्यों हम सर झुकाये हैं
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - प. बंगाल
पर्यावरण
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आओ हम पर्यावरण सजाएँं ,
धरा से प्रदूषण भगाएँं ।
शुद्ध जल हो शुद्ध हवाएंँ ,
शुद्ध धरा हो शुद्ध मृदाएँ।
आओ हम पर्यावरण सजाएँं।
वनस्थली हो या हो मैदान ,
बंजर जमीन हो या पठार ।
विपुल पौधे हम लगाएँं ,
आओ पर्यावरण हम सजाएँं।
जीव जंतुओं का करे संरक्षण,
पोषण हेतु हम सजाएँ वन।
जीना साथ सभी का बन जाए,
आओ हम पर्यावरण सजाएंँ।
पर्यावरण जीने का है आधार,
पर्यावरण से न करो अत्याचार।
पर्यावरण है ,अस्तित्व हमारे,
आओ हम पर्यावरण सजाएँ।
स्वास्थ्य मन हो, स्वास्थ्य तन हो,
स्वच्छ वातावरण,सुन्दर जग हो।
ऐसा सुविचार सुपथ हम लाएँ,
आओ हम पर्यावरण सजाएंँ।
समृद्ध परिवार ,मानत्व जन हो,
स्वच्छ गांँव, अभय समाज हो।
ऐसी वातावरण हम बनाएंँ,
आओ हम पर्यावरण सजाएंँ।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
सहरा वन
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अद्मुत विशाल भू मण्डल पर
बिखरे उपवन , घने सहरा
खड़े झूमते एक स्थान पर
मानों जैसे दे रहे पहरा ।
शुष्क वातावण में तुम्हें
धूल ग्वार जकड़ लेते हैं
वर्षा की रिमझिम फुहारे
तन तुम्हारा धो देते हैं ।
फल-फूल तुम्हीं से पांए
पांए पशुओं का चारा
फर्नीचर से ईंधन तक मिलता
मिलता हर सम्भव सहारा ।
शुद्ध शीतर वायू पांए तुम्हीं से
पांए मेघों की जलधारा
तुम न होते मेघ न आते
सूखा रहता भू मण्डल सारा ।
वन्य जीव तुम्हीं पर निर्भर
तुमहीं से जीवन पाते हैं
कई छुपते तेरे आँचल में
कई घास पत्ते तेरे खाते हैं ।
कई बसते तेरे कोटरों में
कई शाखाओं पर नीड़ बनातें हैं
कई बसते तेरी घनी ओट में
कई जड़ों में बिल बनाते हैं ।
- ललिता कश्यप सायर
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
स्वर्ग बनाते हैं
********
प्रकृति ने किया श्रृंगार, दिया है हमको जीवन दान
संसाधन का प्रयोग करके मानव फिर भी बनें अंजान
इसके उपवन झरनें नदियां धरा को स्वर्ग बनाते हैं
उपलब्ध करा कर जीवन साम्रगी जीवन दान वो देते हैं
मानव भूलवश इसके मूल्य को पहचान कर भी अंजान है
प्रकृति के रौद्र रूप से नहीं हुई अभी तक इसकी पहचान है
प्रकृति की गोद में रहकर स्नेह से सब कुछ पाकर मानव उजाड़ रहा अपना संसार झूठे सपनों में आकर
- शिवानी गुप्ता
हरिद्वार - उत्तराखंड
पर्यावरण
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प्रकृति का शुभ रंग कैसा
शुद्ध निखरा है
वक़्त मौसम संग ,मानो ख़ुद ही ठहरा है ।।
है हवा की शोख़ियाँ ,
पतझड़ के मौसम की
आसमाँ नीला बहुत ,
सागर से गहरा है ।।
गुनगुनाती धूप है ,बदरी है बारिश है
कुछ प्रदूषण छंट रहा है, रंग सुनहरा है।।
इन्द्रधनुषी रंग का ,सूरज है पूरब में
डूबता सूरज सदा ,दिखता सुनहरा है ।।
पंछियों की चहचहाहट ,
गूँजती रहती
पढ़ रहा मानो ,कोई बच्चा ककहरा है ।।
है ‘ उदार ‘ दौलत यही,
जीवन की मानव की
दोस्ती का रंग यहाँ, हर पल रुपहला है ।।
- डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
फ़रीदाबाद - हरियाणा
स्वार्थ का समंदर
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न जानें कहाँ
ले जायेगा हमें
स्वार्थ का समंदर
अपने बहाव में
हम नही संभले अगर
समय रहते अभी भी
कोरोना ने जबकि
दिखा दी है आदमी को
उसकी औकात कि
कितना बौना है प्रकृति के सामने
समझा दी है कीमत
साँसो की जो आ रही है
आक्सीजन के कारण
जिसके निशुल्क
प्रदाता है पेड हमारे लिए
जो दे रहे हैं न केवल
प्राण वायु फल औषधी
मेवे भूमि को उपजाऊपन
बदल रहें है आक्सीजन मे
वातावरणीय कार्बनडाई
आक्साइड कों लगातार
प्रदान कर रहें है शुद्धता
पर्यावरण को
न जाने कितने पंक्षियों को
सूक्ष्म जीवों को पेड देते है
जीवन व सुरक्षा
ये भी है हमारे लिए
अनेकानेक प्रकार से हितकर
और हम क्या देते है पेडों
को इस उपकार के बदले
काटते हैं पेडों इनको
निष्ठुरता के साथ कुछ तो सोचें
हम सभी .कुछ और नही
तो कम से कम इनसे होने हमें
वाले लाभ के विषय मे सोचें
एक मध्यम आकार के पेड की
कीमत होती है कम से कम
20 लाख से भी अधिक
क्या हम सोचते है यह सब
पेडों को बेचते व काटते
समय........ नही ना
आओ सोचें कुछ पर्यावरण के
विषय में भी समय रहते
कही हो न जाये अधिक देर
और हम सभी को न मिले
समय भी कुछ करने लिए
आओ सुरक्षित करें
जीवन लगायें पेड....बचायें
पर्यावरण समय रहते़!
- डा0 प्रमोद कुमार प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
पर्यावरण
********
मैं हूं पर्यावरण
धरती आकाश
हवा पानी
हरियाली है
मेरी पहचान
प्राणों की रक्षा
हम करते हैं
रोगों को हम
हर लेते हैं
बल बुद्धि यौवन
देकर कंचन काया
तुम्हें देते हैं
करना नहीं हनन मेरा
कुछ स्वार्थ सिद्धि के कारण
मेरे से होते
तुम पुष्पित पल्लवित
सांसे लेते जी भर के
फसलों को उपजाते जी भर
मनपसंद भोजन करते
कभी-कभी मुझे बनाते
किचन गार्डन गमलो की शोभा वन सुंदर उपवन
करती रहती हूं तेरी सेवा
आग धुआं शोर गंदगी
प्रदूषण के हैं कारक
बचा कर रखना है तेरा काम
कभी न पड़ना पैसों के भ्रम
देती जितना हूं कहलाती प्रकृति
प्रदूषण होने पर हानि पहुंचाती प्रकृति
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
पेड़
******
पेड़ हमें
हवा देते हैं
दुआ देते हैं
दवा देते हैं
पेड़ हमें
साँस देते हैं
आस देते हैं
विश्वास देते हैं
जीने का
अहसास देते हैं
पेड़ हमें
सहारा देते हैं
उजियारा देते हैं
सबेरा देते हैं
बसेरा देते हैं
पेड़ हमें
फल देते हैं
जल देते हैं
जीवन सफल
देते हैं
तो आओ,
हम पेड़
लगाएं
जीवन जी
जाएं
हँसें-
मुस्कराएँ
खुशहाल
जीवन पाएँ
आओ हम
पेड़ लगाएँ।
- डॉ नीलम खरे
मंडला - मध्यप्रदेश
पर्यावरण बचाओ
**************
दिनोंदिन नष्ट हो रहा , .
इंसान बना है दुश्मन,
पर्यावरण को बचाओ,
बच जाएगा तन मन।
हवा हो गई प्रदूषित, जीना हुआ हराम,
यूं ही प्रदूषण बढ़ा तो,
भजते रहना राम।
प्रकृति में पैदा हुए, प्रकृति से नाता है, पर्यावरण को दूषित कर ,
मन दुखी हो जाता है।
सोच अभी है वक्त वरना फिर पछताएगा,
जीवन नष्ट हो फिर मानव नहींलदझ बच पाएगा।
लगा पेड़ पौधे अधिक,
जीवन सफल हो जाएगा,
वरना वह दिन दूर नहीं ,
जब जन मिट्टी में मिल जाएगा।
- होशियार सिंह यादव
महेंद्रगढ़ - हरियाणा
पर्यावरण के दोहे
*************
बिगड़ा है पर्यावरण,बढ़ता जाता ताप ।
ज़हरीली सारी हवा,कैसा यह अभिशाप ।।
पेट्रोल,डीजल जले,बिजली जलती ख़ूब ।
हरियाली नित रो रही,सूख गई सब दूब ।।
यंत्रों ने दूषित किया,मौसम और समाज ।
हमने की है मूर्खता,हम ही भुगतें आज ।।
नगर घिर गये धुंध में,धूमिल सारे गांव ।
धुंआ-धुंआ जीवन हुआ,गायब सारी छांव ।।
दिखती ना पगडंडियां,चारों ओर गुबार ।
तिमिर विहँसता नित्य ही,रोता है उजियार ।।
जनजीवन रोने लगा,सिसक रहा इनसान ।
हर प्राणी भयभीत है,आफत में है जान ।।
आवाजाही रुक गई,मंद हुआ व्यापार ।
शिक्षा,ऑफिस,काम पर,हुई सघनतम् मार ।।
प्रकृति बिलखती आज तो,कारण है अविवेक ।
यदि हम चाहें निज भला,तो करनी हो नेक ।।
आत्मचेतना से मिटे,प्रियवर आज कलंक ।
सभी करें कुछ अब खरा,क्या राजा ,क्या रंक ।।
फिर से अब आबाद हों,सभी बस्तियां-गांव !
तभी मिलेगी वक़्त को,मनभावन इक छांव !!
- प्रो.शरद नारायण खरे
मंडला - मध्यप्रदेश
पर्यावरण
*******
धरती मैया करे पुकार
बदलो मानव निज व्यवहार।
शोषण कर ऐसे प्रकृति का
मत छीनों मेरा सिंगार ।।
वृक्ष रोपकर कीजिए
धरती का श्रृंगार ।
पानी वायु शुद्ध मिले
मिले प्रकृति प्यार ।।
पर्यावरण स्वच्छ हो
मिले स्वास्थ्य वरदान।
इसके हित वृक्षारोपण का
रखना प्रियवर ध्यान।।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
पर्यावरण
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जीवन में बढ़ते जाना है,
परोपकार को नित्य अपनाना है।
गीत मधुर हमको गाना है ,
वृक्षों से धरती को सजाना है।
जीव जंतु सबको हरदम चहचहाना है,
प्रदूषण मुक्त सारे जहां को बनाना है।
जो भूले भटके हैं उन को राह दिखाना है, पर्यावरण को स्वच्छ बनाना है।
परोपकार में जीवन का सुख है,
दृढ़ संकल्प लिए यह संदेश जन-जन को पहुंचाना है।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
पर्यावरण
********
नष्ट करने पर
क्यों तुले हमें ?
जबकि जीवन
देते हैं हम तुम्हे।
वक़्त पर बैठा,
दिया किसने पहरा ।
अकुलाया सबका,
जीवन और शहरा ।
मैं और प्रकृति ,
अद्भुत है ।
जीवन की कृति
आरेखित करो ,
सुंदर लगे आकृति ।
आरक्षित करो ,
पल्लवित करतीप्रकृति ।
मैं और प्रकृति ,
चलती है ऐसे ही सृष्टि ।
पर्यावरण नष्ट करने पर,
क्यों हो कटिबद्ध ।
वृक्ष लगाकर -
हमें भी बचाओ ,
निवेदन करूं प्रतिबद्ध ।
- रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
प्रकृति और हम
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प्रकृति स्वयं में सौम्य सुशोभित, सुन्दर लगती है।
देख समय अनुकूल हमेशा, सोती - जगती है ।।
जब मानव की छेड़खानियाँ, हद से बढ़ जाती ।
जग जननी नैसर्गिक माता, रोती बिलखाती ।।
लोभ मोह के वशीभूत हो, जब समता घायल ।
बिन्दी पाँवों में गिर जाती, माथे पर पायल।।
अट्टहास कर मानव चुनता, जब उल्टी राहें ।
महामारियाँ हँसकर गहतीं, फैलाकर बाहें ।।
चेचक हैजा प्लेग पीलिया, कर्क रोग टीबी ।
रक्तचाप से पीड़ित बापू, माँ बच्चे बीबी ।।
सूर्य कोप से जलती धरती, जलता है अम्बर ।
कहीं बाढ़, सूखे का आलम, जीना है दूभर ।।
भूमि कम्प से हिलती वसुधा, पेड़ों में पतझड़।
हरित प्रभावों से मुरझाती, जीवन आशा जड़ ।।
आबादी के बोझ तले भू, दबकर अकुलाती ।
जन घनत्व की कठिन वेदना, रोकर सह जाती ।।
जल विहीन नदियों से पानी, बादल ना पाए ।
प्यासी भू पर बोलो कैसे, पानी बरसाए ।।
अतुल सम्पदा का दोहन कर, मुस्काए थे हम ।
आँख मूँदकर कछुए जैसे, भूले थे हर ग़म ।।
बढ़ता जाय प्रदूषण प्रतिपल, मानव के कारण।
मानव ही लाया विनाश को, मानव ही तारण ।।
पंच भूत को मान साक्षी, कर लेंगे ये प्रण ।
पर्यावरण बचाव हेतु हम, जीतेंगे हर रण ।।
भू ध्वनि वायु रसायन जल में, मत खोना जीवन ।
चलो उगाकर पौधे निशदिन, है बोना जीवन ।।
कहता कवि अवधेश संतुलित, हो वसुधा अम्बर ।
स्वच्छ रखेंगे सारी दुनिया, जैसे अपना घर ।।
- डॉ अवधेश कुमार 'अवध'
चन्दौली - उत्तर प्रदेश
पर्यावरण
********
पेड़ पौधे लगा कर हमें जीवन बचाना है।
अपने जीवन को खुशहाली से भरना है।
पर्यावरण हमें जीवन देते है।
पर्यावरण हमें शुद्ध वायु देते है।
पर्यावरण हमें ऑक्सीजन देते है।
पर्यावरण हमें छाया देते है।
पर्यावरण हमें ठंडी हवा देते हैं।
पर्यावरण हमें फल देते है।
पर्यावरण ही हमें औषधियां देते हैं।
जिससे हम बीमारी से छुटकारा पाते है।
पर्यावरण से ही घर आंगन को सुंदर बनाते है।
पर्यावरण हमारे है।
हम सबके प्यारे है।
आओ हम सब इनसे प्यार करें।
और फिर मिल कर हरा भरा संसार करें।
पेड़ लगा कर सबका जीवन खुशहाली करते है।
आस पास के पर्यावरण को स्वच्छ करते है।
- गीता चौहान
जशपुर - छत्तीसगढ़
पर्यावरण
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जीवन जीने के लिए
हमे अन्न खाना जरूरी है।
भोजन से अधिक तन को
जल पिलाना जरूरी है।।
भोजन जल से भी अधिक
स्वास लेना जरूरी है।
स्वासा मे भी महत्वपुर्ण
आक्सीजन जरूरी है।।
सुद्ध आक्सीजन के लिए
शुद्ध परीर्यावरण जरूरी है।।
शुद्ध पर्यावरण के लिए
वृक्ष लगाना जरूरी है।
वृक्ष बचाने के लिए
इनका संरक्षण जरूरी है।।
समय मे वर्षा होवेगें
पर्यावरण जरूरी है।
कृषक यहाँ अन्न उपजाएगें
इस कारण वर्षा जरूरी है।।
वन से हमे औषधी मिलेगा
सावधान जरूरी है।पर्यावरण संरक्षण का
शिक्षा देना जरूरी है।।
प्रदुषण को स्वच्छ करने
पर्यावरण जरूरी है।
स्वच्छ पर्यावरण के लिए
सबको समझना जरूरी है।।
- गोवर्धन लाल बघेल
महासमुंद - छत्तीसढ
जीवन
*****
वायु- पेड़ और जल, पर्यावरण की श्वांस है।
इसी पर टीका है जन जीवन,
यही जीवन की श्वांस है।।
रोग, शोक का जन्म होता है दूषित पर्यावरण से सदा,
देश की ताकत कम होती है दूषित पर्यावरण से सदा,
अरबों डॉलर खर्च होते हैं दूषित पर्यावरण पर सदा,
जनजीवन अस्त व्यस्त होता है दूषित पर्यावरण से सदा,
यह महामारी है विकट रूप धर करो ना चिकनगुनिया डेंगू बन जाती है,
मानव जीवन के रत्नों को पल भर में लील जाती है,
जैसे गांधी ने किए थे आंदोलन देश भारत की आजादी के लिए।
मोदी जी के स्वच्छ भारत की आंदोलन का पग बन जाए हम।
पर्यावरण को बचाएं हम। पर्यावरण को बचाएं हम।।
- देवेन्द्र तूफान
पानीपत - हरियाणा
मानव, वृक्ष और धरती माँ
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धरती की ही संतान हैं
मानव और वृक्ष
दोनों को पालती पोसती...
उनके जीवन का भार सम्हालती
धरती माँ....
किन्तु जाने कब मानव ने अपनी ही
धरती माँ के आँचल में...
छेद कर दिया....
उजाड़ कर उसका दामन उसे...
वंजर कर दिया...
सड़कों और बस्तियों के जंजाल में...
जंगल और पेड़ कटकर...
धराशाही हो गये....
और प्रकृति गोद उजड़ी
हवा का जहर बिखरा
आज हर दिशा
आदमी की दुश्मन हो गई...
अपने स्वार्थ और लिप्सा में इतना...
मगरूर हुआ इंसान
अपने विनाश का
खुद ही लिख दिया इतिहास...
धरती को उजाड़ इंसान ने
मार ली अपने ही पैरों
पर कुल्हाड़ी
और अब कैद बैठा है...
जब हवाएँ हो गईं जहरीली...
अब भी सम्हालना होगा...
नहीं तो अस्तित्व बचाना भी..
मुश्किल ही होगा...
धरा को हरा भरा ही रखना होगा..
-पूजा नबीरा
नागपुर - महाराष्ट्र
पर्यावरण
*********
घोर संकट से घिरा पढ़ा
है आज हमारा पर्यावरण
कैसे हम इसे बचाए
क़ोई तो उपाय सुझाएँ
दिन प्रति दिन बढता जाए
दूषित पर्यावरण
कैसे कष्ट मिटेगा
आने वाला कल
संकट मय होगा
करो विचार घोर मंथणा
इसे बचाने कि
आज नहीं तो कल
देना होगा जवाब
आने वाली पीढ़ी को
जब पूछेगी वो
क्या किया आपने यह
क्यू हमको संकट में डाला
न होगा जवाब उनकीं
बातों का पास हमारे
बस मौन वृत्त हमको
धारण करना होगा
- कमलेश कुमार राठौर
मंदसौर - मध्यप्रदेश
बचाये रखना
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जीना है यदि चैन से तुमको पर्यावरण बचाये रखना
अपनें आसपास का मित्रों वातावरण बचाये रखना
पेड़ पौधों और पानी से ही ये जीवन जीवन है यारो
हर सम्भव कोशिश करना ये आवरण बचाये रखना
आ मत जाना लालच में ना कोई समझौता करना
ऐसे मौसम में भी अपना अन्तःकरण बचाये रखना
प्रदूषण भरा है आसपास का सारा वातावरण अभी
इस वातावरण का मित्रों अंधानुकरण बचाये रखना
काँटों भरी है डगर जीवन की इतना तो हम जानते हैं
जीवन में खुशियों का पारस संचरण बचाये रखना
- डॉ रमेश कटारिया पारस
ग्वालियर - मध्यप्रदेश
आओ कहीं और चलें
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इंसानी बस्ती से हम ऊब गए हैं।
सारी ज़मीन खूं से सनी पड़ी है।
चलो कहीं और चलकर जीएं
जिंदगी जितनी भी बाकी बची है।
दरख्त सारे हो चुके कंगाल हैं।।
क्या देंगे हमें छाँव क्या आशियां,।
कैसे सुरक्षित रहेंगी हमारी पीढियां।
हमी ले रहे हैं विषैली दहशती साँस।
हम इंसानों जैसे मजबूर नहीं हैं।
जो पिंजरों में भय से कैद रहेंगे।
थक जाएंगे उड़ते उड़ते कहीं।
निर्जन बस्तीआबाद करके जीए़गे।
नहीँ कुबूल हमें लम्बी उम्र।
जी लेंगे खुशी से छोटी उम्र ।
चाहे जीते जीते क्यों न मरना पड़े।
जिंदगानी किसी की भी हो दोस्तों।
कहते हैं सब ,होती है चार दिन की।
जीए कोई अबला के चीर सी।
हम जीते हैं मंदिर के दीप सी।
- डा. च़द्रा सायता
इदौर - मध्यप्रदेश
आदरणीय स्वर्गीय मदन मोहन सैनी जी को अश्रुपूरित भावभीनी श्रद्धांजलि श्रद्धांजलि 🙏💐🙏 ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें 🙏🙏
ReplyDeleteआदरणीय विजेंद्र जैमिनी सर और टीम के सम्मानित सदस्यों को आदरणीय मदन मोहन जी की स्मृति में कार्यक्रम आयोजन करने हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद और हार्दिक आभार 🙏🙏
ReplyDeleteसभी सम्मानित रचनाकारों को बहुत-बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं 🙏
आदरणीय आप लोगों ने हमें सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद और हृदय दिल से आभार 🙏💐🙏