क्या भरोसे के बल पर कर्म सरोकार होता है ?
भरोसे के बल पर अच्छे से अच्छे कर्म को सरोकार किया जा सकता है । कई बार तो असम्भव कार्य को भरोसे के बल पर सरोकार होते हुए देखा गया है । बाकी तो महेनत व किस्मत पर निर्भर करता है । यहीं जैमिनी अकादमी की " आज की चर्चा " प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
इसमें तीन तरह के मत प्रचलित हैं. कुछ मानते हैं कि जीवन में सब कुछ कर्म की बदौलत घटित होता है. दूसरा मत है- 'होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा.' ऐसे लोग भाग्य के भरोसे रहते हैं. तीसरा मत मध्यमार्गियों का है, जो कहते हैं कि जीवन में कर्म और भाग्य साथ-साथ चलते हैं और अकेले कर्म से भी काम नहीं चलता है और भाग्य भी अकेले कुछ नहीं कर सकता. बड़ी तादाद इसी मार्ग के पथिकों की है, जो कि सही भी है. एक ब्यक्त कड़ा परिश्रम करके भी कुछ नहीं हासिल कर पाता, जब कि दूसरा तनिक परिश्रम से ही सब कुछ हासिल कर लेता है. दोनों स्थितियों में कर्म करना तो अनिवार्य है.
इसके अतिरिक्त भरोसा भी दो प्रकार का है- पहला खुद पर भरोसा करके उड़ान भरना, दूसरा ईश्वर या कि कहिए भाग्य पर भरोसा करना. यहां ज्ञातव्य है, कि-
''मालिक केवल मार्गदर्शक है,
आत्मा के लिए तो आप को ही पुरुषार्थ करना पड़ता है.''
पुरुषार्थ करने वाले का भाग्य भी साथ देता है और जो आत्मसंतुष्टि मिलती है, उसका तो कोई मुकाबला ही नहीं है. एक कदम हम उठाते हैं, तो मालिक दस कदम उठाता है-
''ज़िंदगी कांटों का सफ़र है,
हौसला इसकी पहचान है,
रास्ते पर तो सभी चलते हैं,
जो रास्ता बनाए, वही इंसान है.''
हौसले को बनाए रखने के लिए कर्म तो करना नितांत आवश्यक ही है, हां फल भले ही भाग्य से मिलता है. नई दिल्ली के बलबीर पेशे से ड्राइवर थे. कोरोना के कारण गई नौकरी. वे जिस स्कूटी से ऑफिस जाते थे उसी पर खोला ढाबा, दोस्त को भी दी नौकरी. अपने कर्म के बल पर ही महाराष्ट्र की सिलबट्टे बेचने वाली महिला पद्मशीला तिरपुंडे सब-इंस्पेक्टर बनी. ऐसी अनेक मिसालें कर्म की प्रधानता को प्रोत्साहित करती हैं. मध्यमार्गी बनते हुए कर्म करना सर्वश्रेष्ठ है.
-लीला तिवानी
दिल्ली
भरोसा इंसान का सफलता का मुलमंत्रहोता है।हर कार्य मे विश्वास ही कर्म को सरोकार करता है।मानव जीवन मे भरोसा एक उच्चतम स्तर पर सफल पूंजी होता है।भरोसे के बल पर कर्म की सार्थकता सिद्ध होता होता है जीवन की राहों मे बेहद खूबसूरत पल भी आते है इसके पीछे भरोसे की पहचान होती है।भरोसा ही इंसान को आगे ले जाती है।मानवीय संवेदनाओं के आधार पर भरोसा कर्म को सरोकार करती हैं।हारा हुआ मानव भरोसा को अपने हृदय मे समावेश करके जीवन की यात्राओं मे सफलता प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहता है।भरोसेमंद होना एक उच्च स्तरीय गुणवत्ता मे शामिल है।भरोसे के बल पर बेहद खूबसूरत मुकाम को पाया जा सकता ।विश्वास की डोर परिवार मे हो तो वह परिवार हयर विपरीत परिस्थितियों मे संयम रख के अनुकरण कर सकता है।भरोसा ही इंसान का सबसे उच्तम और सरल भाव होता है।इसके सहारे मानव जीवन सफल और शांतिपूर्ण ढंग से व्यितत करता है।कठिन परिश्रम भरोसा का एक रूप होता है।इसके बल पर राहें बेहद आसान होती है।आजकल भरोसा तोडऩे का प्रचलन है।सब एकदूसरे के भरोसे को तोडऩे के लिए साजिश रचते है।कर्म की प्रधानता को भूलकर अविश्वसनीय कार्य को अंजाम देते है।जहाँ भरोसा नही वहां कार्य सफल नही होते आस्था का रूप भरोसा है।इसके बल पर इंसान के सारे कर्म सरोकार की सौपान चढने के लिए आतुर होते हैं।जीवन की डोर मजबूत रखने के लिए भरोसे की डोर को बाँधना अतिआवश्यक है।तभी कर्म सरोकार की राहों पर होती है।बिना भरोसे के मानव शरीर खोखला होता है ।भरोसा का रंग मनुष्य को विपरीत परिस्थितियों मे प्रभावशाली बनाता है।ईश्वरीय ज्ञान शक्ति मे भरोसा विश्वास एक बंधन है जहां मानवता का सुनहरे रंगों की परत चढ़ती है।भरोसे के बल पर जग जीतने की बात हो सकती है।तभी कर्म सरोकार होते है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
निस्संदेह हाँ ! क्योंकि स्वयं पर किये गए भरोसे व उसे डिगने न देने से ही आत्मविश्वास में वृद्धि व कार्य का संपादन संभव है। वैसे ही सामाजिक प्राणी होने के नाते दूसरों पर भरोसा करना, दूसरों के द्वारा अपने पर किये गए भरोसे को टूटने न देना भी कर्म सिद्धांत का महत्वपूर्ण पहलू है जो रिश्तों को मजबूती भी प्रदान करता है व जिसके बल पर कर्म सरोकार होता है।
- सरोज जैन
खंडवा - मध्यप्रदेश
क्या भरोसे के बल पर कर्म साकार होता है। भरोसा वह ताकत है जो कमजोर से कमजोर को भी विजेता बना सकती है । यह भरोसा खुद पर, और खुद के सपनों पर होना चाहिए । भरोसे को साथ लेकर ही नन्हा पक्षी भी आसमान नाप लेता है, चींटी भी विशालकाय हाथी से मुकाबला कर लेती है। हमारा जो भी काम है उसके साथ हमारी शारिरीक व मानसिक मेहनत और सच्ची सोच के साथ ईश्वर.पर भरोसा हमे उत्साह देता है।
जब भी हम बीमार पडते हैं या निराश हो जाते हैं तो सभी कहते हैं कि भरोसा रखो ,सब ठीक हो जाएगा। भाग्य से ज्यादा भरोसा अपने श्रम पर करना चाहिए। भरोसा घोर अँधेरी रात में एक जुगनू की तरह है जो अपनी क्षीणतम रोशनी से भी हिम्मत की मशाल बनकर उस पार पहुँचा देता है।
- ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
विश्वास एक ऐसा आधार है जहाँ से हम जीवन की शुरुआत करते हैं, वह है माता-पिता इसके बाद अन्य सदस्य श्रेणी में आ जाते हैं।फिर परिवार हमारे ऊपर विश्वास करता है और हम वो हर प्रयास करते हैं कि उनका भरोसा बना रहे।अटूट रिश्ते बनते जाते हैं यह सिलसिला जारी रहता है....।
एक समय ऐसा भी आता है कि हम भरोसा नही करते किसी बड़ा ही मुश्किल दौर पर होते हैं किस पर विश्वास करु किस पर नहीं.... इस बीच कुछ मजबूत व्यक्ति आपके हाथ से निकल सकते हैं, पर समझदारी सब पर भारी होती है,ऐसी स्थिति में उनके साथ बने रहना बहुत जरुरी है।वो करीबी हैं वहां आसानी से जीत सकते हैं आप उनकी बात सुन कर सही-गलत का निर्णय ले सकते हैं।
आप चरम सीमा पर हैं ...हर बात आपके हाथ मे होगी।विश्वास और अविश्वास में अंतर है जो हम समझ नहीं सकते या अंधविश्वास में पड़ जाते हैं,यह हमें हीन बना सकता है, आप सतर्क रहेंगे तो आप मजबूत बने रहेंगे ।
- तरसेम शर्मा
कैथल - हरियाणा
हम हमें भाग्य के भरोसे नहीं बैठना चाहिए। परमात्मा हमारा रक्षक जरूर है लेकिन हमारे अपने कर्म ही हमें फल की प्राप्ति कराते हैं। क्योंकि हम अपने भाग्य के सह निर्माता है। जैसा हमारा कर्म होगा वैसा ही भाग्य होगा। बिना कुछ किए फल नहीं मिलता। हमारे कर्म हमें अच्छे बुरे का बोध कराती हैं अच्छे कार्य का अच्छा फल बुरे कार्य का बुरा फल मिलता है।
लक्ष्य बनाकर कार्य करना चाहिए यदि अपने उद्देश्य में सफल हो तो भाग्य हम हमारे साथ हैं।
- पदमा तिवारी
दमोह - मध्य प्रदेश
इस विषय पर भिन्न-भिन्न अर्थ और विचारों के आधार पर इसे परिभाषित किया जा सकता है ।सर्वप्रथम भरोसा अर्थात विश्वास जो व्यक्ति, घटना, समय, स्थिति, परिस्थिति और वातावरण के अनुसार अपनी भूमिका एवं महत्त्व दर्शाता है ।
भरोसा मन की ताकत है। जब हम किसी सच्चे इंसान पर भरोसा करते हैं तो अपने कर्म भी सहज/आसान कर लेते हैं । मुश्किलों /समस्याओं पर काबू पा लेते हैं और अपने काम अथवा कर्म को पूर्णता प्रदान करते हैं ।
भरोसे के बल पर मनुष्य कठिन से कठिन काम भी आसानी से कर लेता है । किसी काम के प्रति लगन, उत्साह, उत्तेजना, मजबूती , हिम्मत , हृदय में बसे भरोसे की ही उपज होते हैं ।भरोसा व्यक्ति को कर्मठ बनाता है, आशावान और महत्वाकांक्षी बनाता है।
परिवार में माता-पिता अपनी संतान के हृदय में भरोसे का भाव भरते हैं परिणामस्वरूप संतान मेहनत के बल पर सफलता के मार्ग पर अग्रसर होती है । भरोसा केवल अच्छे कार्यों को लेकर होना चाहिए । श्रेष्ठ गुणों से युक्त मां-बाप का भरोसा संतान को जीने की राह दिखाता है । मुसीबत या संकट के समय आत्मरक्षा करना सिखाता है ।कर्म के प्रति कर्तव्यवान बनाता है । कर्म यदि जीवन का आधार है तो भरोसा उसे पुष्ट करता है ।
मानव जीवन में कर्म की पूर्णता या सार्थकता मुख्य रूप सेअपने आप के भरोसे पर टिकी है । स्वयं पर भरोसा सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि आत्मविश्वास ही जीवन को सफल बनाता है। कहा भी गया है --'मन के हारे हार ,मन के जीते जीत।' अपने आप से भरोसे अथवा विश्वास को खो देना अकर्मण्यता सिद्ध करता है । आलस्य और अनिश्चितता भरोसे और विश्वास के शत्रु है जो मनुष्य को कर्म हीन और अकर्मण्य बनाते हैं । कर्म की सार्थकता भरोसे और विश्वास पर ही टिकी है । एक योग्य शिक्षक आत्मविश्वास के आधार पर ही ज्ञान अर्जन करके ही शिक्षक धर्म निभाता हैं । क्योंकि शिक्षण कर्म से उसका सरोकार है । उसका कर्तव्य है अतः उसके ज्ञान की नींव भरोसे पर ही टिकी है जो उसके हृदय में विद्यमान है । यदि वह अपने कर्म के प्रति अनिश्चितता ,अनभिज्ञता दिखाता तो शिक्षण कर्म पूर्ण नहीं हो पाता ।
इसीलिए किसी भी कर्म की डोर हृदय में स्थित भरोसे से बंधी है । अकर्मण्यता, निराशा, हताशा, आलस्य , अनिश्चितता उस भरोसे रूपी डोर को कमजोर करते हैं । यह भी माना गया है कि भरोसे पर ही दुनिया के काम टिके है लेकिन उसमें जरूरत है तो केवल सबलता की कर्मठता , क्रियाशीलता और सक्रियता की।
- शीला सिंह
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
भाग्य के भरोसे रहना एक भ्रम है।इंसानों के दिमाग में सवाल घूमता रहता है कि जीवन में जो घटित होता है हमारे कर्मों का नतीजा है या भाग्य की देन है। कुछ लोगों का मानना है कि जीवन के सब कुछ कर्म की बदौलत घटित होता है। कुछ लोग यह कहते हैं पूर्व निर्धारित और इंसान के हाथ में वाकई कुछ नहीं है।
लेखक का विचार:-इंसान के जीवन में अक्सर ऐसे प्रसंग आते हैं कुछ लोग सड़क से उठकर राजमहल में पहुंच जाते हैं ।तो कुछ लोग राजमहल से सड़क पर आ जाते हैं। इंसान को सबक लेना चाहिए कि यह सब चीजें कब हो जाएगा कोई जानता नहीं हमारे पिछले कर्मों के अनुसार ही हमारे सुख-दुख यश- अपयश और जीवन की अवधि तय होती है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
भरोसे के बल पर कर्म सरोकार नहीं होता है। मानव जीवन को कर्म क्षेत्र कहा जाता है। कर्म क्षेत्र के कार्य के फल से ही जीवन में सुख दुःख आते हैं। कृष्ण जी ने भी गीता उपदेश में यही कहा है कि "कर्म किए जा,फल की इच्छा मत कर रे इंसान, जैसा कर्म करेगा, वैसा फल देगा भगवान। कहने का मतलब यह है कि कर्म ही हमारा भाग्य निर्धारित करता है। सिर्फ भरोसे के बल पर कर्म सरोकार नहीं होता है। जो हम हासिल करना चाहते हैं, उस ओर कार्यरत होना पड़ेगा। जो फल प्राप्त होगा, उस पर चिंतन मंथन करना पड़ेगा। क्या जिस ओर हम प्रयास रत थे,वो फल प्राप्त हुआ कि नहीं। केवल भरोसे के सहारे नहीं बैठ सकते हैं। भरोसे के सहारे और भाग्य का सहारा आलसी लेते हैं। कर्मशील अपना भाग्य खुद लिखते हैं।
- कैलाश ठाकुर
नंगल टाउनशिप - पंजाब
कर्म के फलदायी होने मे भरोसे की अत्यन्त आवश्यकता है। भरोसा यानि विश्वास जीवन का आधार है। जीवन में कोई भी कर्म करने से पहले मन में भरोसे का बल यानि शक्ति का संचार होगा तो कर्म सार्थक होगा।
भरोसे के बल पर कर्म का सरोकार मनुष्य को पूर्ण उर्जा से कर्म करने की प्रेरणा प्रदान करता है। इसलिए मनुष्य को अपने भरोसे को सदैव बनाये रखना चाहिए।
"चयन उत्तम राह का मनुष्य का काम,
उत्तम प्रयास ही करे सफलता प्रदान।
है सार्थकता कर्म की भरोसे के बल पर,
स्वयं को सिद्ध करे पुरुषार्थ निष्काम।।"
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
इसमें कोई दो राय नहीं है कि भरोसे के बल पर कर्म सरोकार होता है ! भरोसा होना यानी विश्वास का होना ! राम को उनकी वानर सेना के परिश्रम एवं संघर्ष पर पूर्ण भरोसा था ,विश्वास था कि वे समुद्र पर सेतु बनाने में अवश्य कामयाब होंगे ! उनकी सोच सकारात्मक थी ! माता पिता की गोद में छोटा बच्चा भी अपने साआप को सुरक्षित महसूस करता है !यह भी एक भरोसा ही तो है ! बड़े बड़े व्यवसाय भी भरोसे पर होते हैं! भरोसा हमे विजय पथ पर पहूंचने के लिए सकारात्मक सोच के साथ कर्म करने को बाध्य करती है बस एक बात का ध्यान रहे भरोसा अंधा ना हो ...भरोसा कर्म की शक्ती है !
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
भरोसे के बल पर ही तो सब काम होता है। भरोसा मतलब बिश्वास कोई भी काम करने पर मन में ये विश्वास रहता है कि ये काम सफ़ल होगा। भरोसा के बदौलत ही आदमी कर्म करता है। अगर मन में भरोसा न रहें पहले ही हम ये सोच लें कि काम होगा कि नहीं होगा तो हम कर्म कर ही नहीं पायेंगे।
किसान भरोसा कर के ही फसल की बुवाई करते हैं कि इस बार फसल अच्छी होगी। अगर किसान को ये भरोसा ही न रहे कि फसल होगी या नहीं तो वो खेती ढंग से कर ही नहीं सकता है। वो पहले ही सोच ले कि कहीं बाढ़ न आ जाय या कहीं सूखा न हो जाय, तो वह खेती ही न कर पायेगा। विद्यार्थी ये सोच ले कि वह परीक्षा में पास नहीं होगा तो वह पढ़ेगा क्या। माली ये सोच ले कि पौधा से फूल न निकले तो वह सिंचाई करेगा ही नहीं। इस तरह बहुत से कर्म जो भरोसा कर के विश्वास कर के ही किया जाता है।
इसलिए हम ये कह सकते हैं कि भरोसे के बल पर कर्म का सरोकार होता है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - पं.बंगाल
भरोसा शब्द में ही बल है भरोसे में होना मन की एक स्थिति है| भरोसा तभी तक जीवित रह सकता है जब तक हमारे विचार सकारात्मक होते हैं| ऐसी स्थिति में ही हमारे मन में भरोसा उत्पन्न होता है|, दुविधा में फंसा व्यक्ति कभी किसी पर भरोसा नहीं कर सकता, अपने पर भी नहीं| विचारों के आधार पर कर्म निर्धारित करते हैं तभी हमारे भीतर भरोसा उत्पन्न होता है |
अपने पर भरोसा होता ही तब है जब हमारे भीतर आत्मविश्वास हो |आत्मविश्वास भरोसे का दूसरा रूप है यूं तो हम सोच सकते हैं कि फिर दूसरों पर भरोसा करने के लिए कौन सा मापदंड निर्धारित करना चाहिए | अपने भरोसे को चिरस्थाई बनाने के लिए हम दूसरों पर उतना ही भरोसा करें जितना आवश्यक है| यहीं से हमारे सही कर्मों का सूत्रपात होता है| हमारे कर्मों में भरोसे का बल होना आवश्यक है |अपने पर भरोसा,, अपने बल पर भरोसा, अपनी शक्ति पर व अपने विचारों पर भरोसा करके ही हम किसी कार्य को कार्यान्वित कर सकते हैं भरोसा इतना हो कि असफलता मिलने पर भी व्यक्ति डगमगाए नहीं क्योंकि ऐसा भरोसा ही हमारे संकल्प को बल देता है और हम उचित कर्म करने के लिए प्रेरित होते हैं|
- चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा
जब तक मेहनत नहीं करेंगे, यानें कर्म नहीं करेंगे, तब तक भरोसा नहीं हो सकता हैं। कर्म किये जाओं, फल की चिंता नहीं। खाना तभी पेट में जायेगा, जब तक हाथ नहीं लगा सकते हैं। कर्म और भरोसा, एक दूसरे के पूरक हैं। जो दोनों के बिना नहीं रह सकते। जब तक अध्ययन
-अध्यापन होता, तब तक नौकरी नहीं लग सकती। आज जो भी घटित हो रहा हैं, जो भी भविष्य में कोई दुष्परिणाम सामने आयेंगे, उसके लिए कर्म और भरोसा उत्तरदायी हैं। मात्र इच्छानुसार जीवन यापन करने से कुछ नहीं होता। उसके लिए मन को चलायें, मान बनाना होगा। कई तो कुछ नहीं करते, फिर भी जीवित अवस्था में पहुँच कर, जीवित अवस्था में हैं। भरोसा और कर्म को ऐसे देखें जा रहें, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। हमें बाजार जाकर, खरीददारी करनी, स्वयं खरीददारी नहीं होगी। हमारी इच्छा शक्ति जितनी दृढ़ होगी, उतना ही भरोसा मजबूत होगा। पति-पत्नी का रिश्ता, दो अलग-अलग दिशाओं का मिलन, आस्था और विश्वास पर कायम हैं। बशर्ते समझदारी की जरूरत प्रतीत होती हैं। अनेकों महापुरुषों की विचारधारा, सब कर्म तो पृथ्वी पर भोगने हैं और अनन्त समय तक चलता रहता हैं और अंत में बुरी तरह से सामना करना पड़ता हैं, जहाँ स्वार्थों के बिना कोई भी तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा हैं। कब तक आशीर्वाद हमारे लिए संबल होंगे।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
भरोसे के बल पर कर्म सरोकार होता है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं। खुद पर भरोसा है तो लक्ष्य प्राप्ति निश्चित है। भरोसा ही तो सकारात्मक सोच है। यदि स्वयं पर भरोसा न हो तो आसान सा दिखने वाला लक्ष्य प्राप्त करना भी दुष्कर कार्य हो जाता है। यह भरोसा ही तो है जब क्रिकेट के मैच में आखिरी जोड़ी भी अपने पर रखकर हार को जीत में बदल देती है। भरोसा ही तो है जब मुश्किल कर्म को भी अंजाम दे देने में सफलता मिल जाती है। भरोसा ही मुश्किल परिस्थितियों में से बाहर निकलने का कर्म करने वाले को सफलता दिलाता है। अतः भरोसे के बल पर कर्म सरोकार होता है।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
भरोसे का और कर्म का घनिष्ठ संबंध है। किसी भी कार्य को करते समय अपने आप पर भरोसा करना बहुत जरूरी है। भरोसा कार्य करने की क्षमता एवं गति को बढ़ा देता है। वह एक हौसला देता है ,हां कार्य संपन्न होगा और अच्छी तरह से होगा। उससे सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और नकारात्मक ऊर्जा दूर भाग जाती है। कई बार क्षमता ना होते हुए भी लोगों ने कई प्रकार के कार्य किए हैं केवल भरोसे की वजह से।। उसकी वजह से सारी इंद्रियें एकजुट होकर शरीर का साथ देने लगती है परिणाम स्वरूप काम संपन्न हो जाता है।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
भरोसा और विश्वास मनुष्य के हृदय में एक अद्भुत शक्ति और ऊर्जा का संचार करता है, एक नई उम्मीद जगती है, आत्मविश्वास पैदा होता है--अपने उम्मीदों पर खरा उतरने हेतु इंसान सतत् प्रयत्नशील रहता है। अपने कर्म को पूर्ण करने का ध्येय रखता है और परिणामस्वरूप उसे शुभ फल की प्राप्ति होती है।
अगर वह किसी पर भरोसा न करें, उसके मन में कोई उम्मीद न हो, हमेशा नकारात्मक सोच लेकर वह कर्म करें तो सफलता मिलना नामुमकिन है।
हमें अपने कर्मों पर भरोसा रखना है, हम अच्छा कर्म करते हुए लगातार मेहनत कर रहे हैं तब थोड़ी देर से ही सही पर एक दिन सफलता जरूर हासिल होगी और इसी भरोसा के आधार पर हम निरंतर प्रयत्नशील रहते हुए कामयाबी को प्राप्त करते हैं। ऊंचाइयों तक पहुंचने का प्रयत्न करते हैं।
इसलिए जब भी हम हतोत्साहित होते हैं बड़े बुजुर्ग भी हमें सलाह देते हैं-- भरोसा रखो सब कुछ ठीक होगा। ईश्वर पर भरोसा --अपने कर्म पर भरोसा-- अपने आसपास रहने वाले लोगों पर भरोसा --सभी का सम्मिश्रित रूप हमें सफलता के पायदान तक पहुंचाने में मददगार साबित होता है। इसलिए निःसंदेह कहा जा सकता है कि भरोसे के बल पर कर्म सरोकार होता है।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
कर्म और भरोसे की बात करें तो इन दोंनो का आपस में गहरा सवंन्ध है क्योंकी मनुष्य कोई भी कार्य करता है तो भरोसा रख कर ही करता है कि जब वो कोई भी कर्म करेगा उसको कर्म के मुताबिक फल अवश्यक मिलेगा, इसलिए कर्म पर भरोसा रखिये, कर्म करोगे तो भाग्य अपनेआप ही बन जाएगा क्योंकी जो कर्मशील व्यक्ति होते है वह कर्म पर ही भरोसा करते हैं,
कृष्ण भगवान ने खुद कहा है, कर्म किए जा फल की इच्छा मत करना इंसान जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान,
अथार्त कर्म के अनुसार फल सब को मिलता है।
तो आईए बात करते हैं क्या भरोसे के बल पर कर्म का लगाव होता है।
यह सच भी है व्यक्ति कोई भी कर्म भरोसा रख कर ही करता है और वोही कर्म सबसे ज्यादा फलदायक भी होता है।
अगर हम किसी भी कार्य की बात करें तो जो कार्य हम भरोसे के मुताबिक करते हैं कि मुझे पुरा भरोसा कि मैं यह कार्य पुरा करके ही छोड़ुगा ऐसा कार्य लक्ष्य को शीघ्र ग्रहण कर लेता है, और ऐसा कार्य पुरे तन मन व लगन से होता है।
इसलिए कोई भी कार्य भरोसे के बल पर सरोकार होता है, आखिरकार यही कहुंगा भरोसा रखकर कार्य करना अति फलदायक होता है, किसान अपनी फसल को उगाते वक्त खूव मेहनत करता है क्येंकी उसको भरोसा होता है जितनी ज्यादा वो मेहनत करेगा इतनी ही ज्यादा वो फसल हासिल करेगा कहने का मतलब वो भरोसे के बल पर ही मेहनत करता है या कोई भी विद्यार्थी जव लक्ष्य व भरोसा करके जब मेहनत करता है तो उसका सपना जरूर साकार होता है, कहने का मतलब भरोसे पर दूनिया खड़ी है अत: जब हम भरोसे के साथ साथ कर्म में लगाव बढ़ांएगे हमारा वोही कार्य दिन दुगुनी रात चौगुनी तरक्की करेगा।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
भरोसे के बल पर ही व्यक्ति विकास करता है बिना भरोसा के व्यक्ति कार्य व्यवहार नहीं कर पाता भरोसा ही उसे विश्वास दिलाता है और उसी विश्वास के बल पर आगे कार्य किया जाता है बिना भरोसे के व्यक्ति अविश्वास में जीता है तो जिंदगी में कुछ नहीं पढ़ पाता है भरोसे से ही व्यक्ति अपने जिंदगी में धर्यता के साथ जो भी पाना चाहता है पा सकता है। अतः भरोसे के बल पर कर्म सरोकार होता है सभी व्यक्ति उपकार कर पाता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
जी नहीं! भरोसे के बल पर कर्म सरोकार नहीं होता। क्योंकि ईश्वर ने हमें कर्म करने हेतु सब-कुछ उपलब्ध कराया हुआ है। जैसे हाथ-पैर, आंखें, मन-मस्तिष्क, शरीर एवं शारीरिक-मानसिक बल इत्यादि भरपूर मात्रा में दिया हुआ है। फिर भी हम यदि दूसरों के भरोसे पर टिके हैं तो वह कर्म नहीं कायरता है और सर्वविदित है कि कायरता ईश्वर को भी पसंद नहीं है।
कहावत भी है कि ईश्वर उसी की सहायता करते हैं जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं। अर्थात उन्हीं को मंजिल मिलती है जो स्वयं चलते हुए अपने पैरों में छाले डालते हुए निरंतर चलने का कर्म करते रहते हैं।
उदाहरणार्थ अभी-अभी दिनांक 09 अक्तूबर 2020 को मुझे अपने निरंतर किए कर्मों द्वारा विजयी होने की संभावना जागृत हुई है। वह यह है कि माननीय जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने मेरी याचिका को 16 पृष्ठों का आदेश पारित कर यह कहते हुए खारिज कर दी कि आप दो दशकों की देरी से आए हैं। जिस पर मेरे 27 वर्षों के दौरान किए गए मेरे संघर्ष काम आए और मैंने अपने फेसबुक मित्रों के अवर्णनीय सहयोग से सम्पूर्ण संघर्षीय पत्राचार एवं माननीय दिव्यांगजन न्यायालय में चले केस की प्रतियां लगाते हुए 193 पृष्ठों की पुनर्विचार याचिका पुनः दाखिल की थी। जिसे स्वीकारते हुए उन्हीं माननीय न्यायाधीश जी ने खुलकर प्रशंसा की और याचिका को पूरा पढ़ने तक आदेश सुरक्षित रख लिया था।
अतः यदि मैं अधिवक्ताओं के भरोसे पर रहता तो आज विजयी होने की आशा से भी वंचित रहता जबकि अब मुझे दृढ़ विश्वास है कि सम्पूर्ण न्याय मुझे शीघ्र ही मिलने वाला है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन
मानव के लिए कर्म प्रधान है कर्म करते हुए उसे भरोसे के साथ आगे बढ़ना ही यही सिद्धांत है जीवन में आगे निरंतर अग्रसर होने का मेहनत लगन मनोबल द्दृढ़विश्वास के साथ किए गए कर्म
अवश्य ही आपको बेहतर प्रतिफल देते हैं समय अवश्य लगता है लेकिन आपको उसका पूर्ण प्रतिफल मिलता है
धैर्य धीरज विश्वास सदा फलदाई होता है किसी भी कर्म को करते हुए आप यह विचार ना करें कि हमें क्या मिलेगा क्या नहीं यदि आप सत्य के साथ ईमानदारी के साथ काम करते हैं तो निश्चित ही फल बेहतर और अच्छा होगा आपको स्वयं आत्म संतोष की अनुभव अनुभूति होगी। धैर्य का फल सदा मीठा होता है
- आरती तिवारी सनत
दिल्ली
भरोसे पर ही तो ये दुनिया टिकी है कभी इंसान पे भरोसा कभी भगवान पर और कभी खुद पर...... भरोसा ही है जो हमें काम करने की ताकत देता है....
भरोसा रखकर जो काम किया जाता है वह निश्चय ही पूरा होता है अन्यथा उस काम मे या तो त्रुटि रह जाती है या फिर वो काम कभी पूरा ही नही होता और बिन भरोसे तो कुछ काम ऐसे होते है जो सिर्फ सोच तक ही सीमित रह जाते हैं|
ये हमारा भरोसा ही तो है कि हम कल के लिए योजनाएँ आज ही बना लेते हैं बिन भरोसे हम सफलता नहीं पा सकते, यदि जिंदगी में कुछ मुकाम हासिल करना है तो भरोसा ही तो पहली पौड़ी है | और सबसे अच्छा भरोसा है खुद पर भरोसा करना |
- मोनिका सिंह
डलहौजी - हिमाचल प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " भरोसा वह ताकत है । जो हर किसी को प्राप्त नहीं होती है । यह ध्यान आदि से प्राप्त होती है । जो जीवन में आगे बढने में बहुत अधिक सहायक है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
डिजिटल सम्मान
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