क्या गरीब का बच्चा सब को चोर लगता है ?

गरीब का बच्चा होना कोई अपराध नहीं है । फिर दुनियां हीन भावना से क्यों देखती है । क्या वह चोर होते है । ये सोच किसी की भी हो सकती है । जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
इंसान की फितरत और मानसिकता ऐसी बन गई है कि वह इंसान की पोशाक उनकी रहन-सहन को देखकर अपना एक दृष्टिकोण बना लेता है। यह हकीकत है कि अमीरजादे कुछ भी करें उन्हें सभ्य नजर से आदर की दृष्टि से लोग देखते हैं जबकि गरीब के बच्चे की छोटी सी हरकत में भी अधिकांश लोगों को  बुराई नजर आती है। अमीरों की सोच ऐसी है कि वह दो पल में गरीबों पर चोरी का इल्जाम लगा देते हैं और साबित करने पर भी तुल जाते हैं जबकि ऐसी बात नहीं है हकीकत में गरीब अमीरों से ज्यादा ईमानदार और वफादार होते हैं। ईश्वर से डरते हैं, हर कदम सोच-समझकर रखते हुए कार्य करते हैं। 
हां, कभी-कभी ऐसी हालात उत्पन्न हो जाती है कि पेट की खातिर उनसे गलतियां हो जाती है पर उनकी इस हरकत से ऐसा कह देना कि गरीब चोर होते हैं यह नाइंसाफी है।
करोड़ों का घोटाला करने वाले अमीर लोग पाक साफ और इज्जतदार कहलाते हैं। अपनी हजार गलतियों को छुपा कर गरीबों पर इल्जाम लगाते हैं।
गरीब के बच्चे चोर होते हैं यह कहना बेबुनियाद और अमानवीयता का परिचायक है। मैंने अपने जीवन में जितना अधिक अमीरों को घोटाला करते, रिश्वत लेते हुए सुना है उसके अपेक्षा गरीबों को बहुत ही ईमानदारी से काम करते हुए देखा है।
       मेरा मानना है कि अमीर शौकिया लालच और स्वार्थ में घोटाले करते हैं जबकि गरीब मजबूरी में गलत काम करते हैं। इसलिए यह कहना कि गरीबों के बच्चे चोर होते हैं बिल्कुल सही नहीं है।
                        -  सुनीता रानी राठौर 
                          ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
अक्सर कहा जाता है-
गरीब का भूखा बच्चा भी चोर लगता है,
अमीर के घर बैठा कव्वा भी मोर लगता है.
वास्तव में न तो गरीब चोर होता है न अमीर, जिसकी नीयत खोटी होती है, वही चोर होता है. सड़क पर गुब्बारे बेचता गरीब बच्चा भी गलती से आए 1-2 अधिक रुपये लौटाने में संकोच नहीं करता, कभी-कभी छुट्टे के लिए भाग-भागकर अपने साथियों और राहगीरों से निहोरा करता दिखता है. अनेक ऐसे गरीब बच्चे देखे गए हैं, जो छोटा-मोटा सामान बेचकर धन कमाते हैं और मुफ्त के धन की भीख को स्वीकार नहीं करते हैं, फिर भी कभी-कभी उसको चोर-मक्कार का तमगा पकड़ा दिया जाता है. अमीर लाखों-करोड़ों का चूना लगाकर भी शराफत का नकाब ओढ़े रहता है. धन की चकाचौंध में उसे कोई भी सरेआम चोर कहने से कतराता है.
- लीला तिवानी 
दिल्ली
वक्त बलवान होता है सचमुच गरीब के बच्चे को लोग चोर समझते हैं। क्योंकि वह साधन संपन्न नहीं होता। उसे हर चीज का अभाव होता है। यदि वह मेहनत करके भी कुछ उपलब्ध करता है तो लोग उसे पैनी नजरों से देखते हैं और सोचते हैं इसके पास अमुक चीज कहां से आई इसके पास यह वस्तु कहां से आई कहीं चोरी तो नहीं की।
- पदमा ओजेंद्र तिवारी
 दमोह - मध्य प्रदेश
" दारिद्र्य वह कलंक है जो छिपाए नहीं छिपता.... केवल छिपता ही नहीं लाख-लाख गुणों को ढक देता है ।" 
यह सुप्रसिद्ध नाटक 'आषाढ़ का एक दिन' जो सुप्रसिद्ध नाटककार श्री 'मोहन राकेश ' द्वारा लिखा गया है जिसमें गरीबी का अत्यंत मर्मस्पर्शी चित्र खींचा गया है । 
 गरीबी अर्थात दरिद्रता वास्तव में अत्यंत कष्टकारी और दुखकारी होती है ।
 गरीबी से उबरने के लिए व्यक्ति कई बार अपराध की दुनिया के गहरे दलदल में भी फंस जाता है। गरीबी की मार झेल रहा परिवार अभाव को सहन करते हुए लालसा ,लालच, लोभ जैसे दुर्गुणों का शिकार भी हो जाता है । 
पेट की भूख मिटाने के लिए ,जरूरतें पूरी करने के लिए वह चोरी तक करने पर विवश हो जाता है ।  लेकिन समाज में भले ही कोई व्यक्ति गरीबी की मार झेल रहा है परंतु अच्छे संस्कारों से निहित है तो वह मेहनत और ईमानदारी पर अधिक विश्वास रखता है । दुख इस बात का होता है जब धनी वर्ग गरीब लोगों को हेय दृष्टि से देखता है ।
 गरीब के बच्चे के प्रति सद्भावना न होकर तिरस्कार की भावना होती है । किसी संपन्न परिवार में यदि कोई वस्तु चोरी हो जाती है तो सबसे पहले शक नौकरों पर ही जाता है । 
क्योंकि वह गरीब है आर्थिक रूप से अक्षम है । यह हमारे समाज की विडंबना ही रही है कि अमीर चाहे अपराधिक प्रवृत्ति का हो तो भी उसे सम्मान दिया जाता है ।
 लेकिन गरीब भले ही अपना ईमानदारी से जीवन यापन करें मगर घृणा, अस्पृश्यता, हीनभावना का शिकार होता है ।
 दबे कुचले लोगों के प्रति ऐसी मानसिकता सरासर  गलत है । यह सोच जब तक बदलती नहीं है एक स्वस्थ समाज का निर्माण ,स्वस्थ समाज निर्माण की कामना करना बहुत मुश्किल है । 
 महाकाव्य कृति 'रामचरितमानस' में भी गोस्वामी तुलसीदास जी ने गरीबी का मर्मस्पर्शी चित्रण किया है । उन्होंने लिखा है:-
 नहीं दरिद्र सम दुख जग माही,
 संत मिलन सम सुख कछु नाही ।
-  शीला सिंह 
बिलासपुर -  हिमाचल प्रदेश
       क्या गरीब का बच्चा सबको चोर लगता है? उक्त प्रश्न के उत्तर से पहले यह जानना अति आवश्यक है कि गरीब होता कौन है? गरीबी की परिभाषा क्या है? 
       तो मेरे संघर्षीय अनुभव कहते हैं कि धन की कमीं वाला मानव कदापि गरीब नहीं होता। बल्कि गरीब वह होता है जो आंखों से अंधा होता है। पैरों से लंगड़ा व लूला होता है। जिसके हाथ नहीं होते हैं। जो शारीरिक एवं मानसिक बीमार होता है। जो हर प्रकार से लाचार होता है। मात्र उसे ही गरीब की संज्ञा दी जा सकती है। जिसके बच्चे को गरीब का बच्चा और चोर माना जा सकता है।
       अन्यथा उल्लेखनीय है कि स्वस्थ परिश्रमिक बाप अपने बेटे को चोर बोलने वाले दुस्साहसियों का मूंह नोच लेंगे और दांत तोड़ कर उनके हाथों में दे देंगे। चूंकि आज देश आत्मनिर्भता की ओर बढ़ रहा है। उस आत्मनिर्भर भारत के दिहाड़ीदार को पांच सौ रुपए प्रति दिहाड़ी मिलती है और पांच सौ रुपए कमाने वाला मानव अपने परिवार का पालन पोषण करने में सक्षम होता है। 
       चूंकि मानव के लिए पेट भरने हेतु रोटी, शरीर ढकने के लिए कपड़ा और रहने के लिए मकान अनिवार्य है और उनसे अधिक सब ऐश्र्वर्य के साधन हैं। जिनके बिना सुखद जिया जा सकता है और जिसके पास रोटी कपड़ा और मकान है, उसे गरीब की संज्ञा नहीं दी जा सकती। क्योंकि गरीबी एक अभिशाप है। जिसे कलंक कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगा।
       अतः ध्यान रहे कि मेरी परिभाषा के अनुसार कभी किसी मानव को गरीब और उसके बच्चे को चोर कहने का दुस्साहसी पाप न करें। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि समय और स्वास्थ्य परिवर्तनशील होता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
हमारे तरक्की  करते हुए समाज की कुछ खामियां उभरकर सामने आ रही हैं।अब हमलोग पहले से अधिक एकाकीपन के मुरीद होते जा रहे हैं। अब हमने लोगों पर कम विश्वास करना शुरू कर दिया है। अपनी गलतियों को देखें बिना हम दूसरों पर तानाकशी करने में अधिक यक़ीन करते है।और अगर सामने वाला कमजोर और गरीब है तो वह आसानी से  किसी के द्वारा भी आरोपित किया जाता है।ये हमेशा तो नही परन्तु कभी कभी  अधिक प्रभावशाली लोगों के हाथों आसानी से सताये जाते हैं और कई बार बिना आरोप के भी अपराधी करार दिए जाते हैं।
-  संगीता राय
पंचकुला -  हरियाणा
यह कथन बिल्कुल अनुचित है गरीब का बच्चा दिखने में अवश्य गंदे वस्त्रों में रहता है पर उनके पास भी संस्कार आत्मसम्मान और खुद्दारी होती है रामायण में दो पंक्ति 
जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।
मनोविज्ञान में भी इन्हीं बातों को अपने शब्दों में मनोवैज्ञानिक द्वारा दी गई है
We perceive things not as they are but as we are.
यह दोनों पंक्ति इस बात को स्पष्ट कर देती है कि गरीब का बच्चा चोर हो यह बिल्कुल अनुचित है हर इंसान अपने अनुसार ही किसी दूसरे को देखता है
गरीब का बच्चा मेहनत करता है सिर्फ पेट की आग को शांत शांत करने के लिए लेकिन उसके घर में भी एक संस्कार होते हैं
यद्यपि की उन बच्चों को बचपन की खुशी अमीर के बच्चों जैसे नहीं मिलते फिर भी जो साधन है उसमें अपनी खुशी तलाश लेते हैं
गरीब के बच्चे चोर होतेहै यह कथन बिल्कुल ही अनुचित है।
- कुमकुम वेद सेन
 मुंबई - महाराष्ट्र
ये तो लोगों की सोच और नजरिए की बात है । किसी के सिर या चेहरे पर ऐसा कतई नहीं लिखा होता। हां , बहुत बार लोग ऐसी धारणा ग़रीब बच्चें को देखकर बना लेते हैं , कि वह अपनी भूख और मज़बूरी के कारण चोरी कर सकता है। पर ऐसी धारणा किसी के बारे में बना लेना ग़लत मानसिकता का परिचायक है। ऐसा जरूरी नहीं है, कि जितने भी गरीब के बच्चे होते हैं सब चोर हीं होते हैं। बहुत बार ऐसा देखा गया है कि वह बड़े खुद्दार होते हैं और अपनी मेहनत के बल पर हीं रोटी खाना चाहतें हैं। कुछ बुरी संगत या बेहद मज़बूरी में चोरी जैसा काम भी कर लेते हैं लेकिन उसके पीछे कुछ ना कुछ उनकी मजबूरियां होती हैं। कभी - कभार  तो अच्छे घर के बच्चे भी ग़लत मानसिकता ,ग़लत जरूरतों की पूर्ति हेतु चोरी छिनतई जैसी ग़लत  हरकतें कर बैठते हैं। इसलिए ऐसी धारणा ग़लत है मेरे विचार से कि गरीब का बच्चा सबको चोर लगता है।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
जनमानस की मानसिकता तो गरीबों के बच्चों को चोर ही मानते हैं लेकिन ऐसा नहीं है । कुछ प्रतिशत बच्चे चोर भी होते हैं । कुछ नहीं ।
गरीबी इंसान के लिए  चोरी मज़बूरी होती है । गरीबी समाज  देश के लिए कलंक होती है । 
नया जमाना पिक्चर में  गरीब नोकरानी अरुणा ईरानी पर यह गाना फिल्माया था जिसमें अमीर घराने ने उसपर चोरी का इल्जाम लगाया था 
चोरों को सारे नजर आते हैं चोर । यहवगाना हितवहुआ था 
गरीब तो बदनसीब बेसहारा  होता है । चोरी हो जाने पर शक की सुइयाँ उसी की ओर घूमती है ।
उन गरीब बच्चों पर चोरी  का इलजाम लगाना। आसान होता है जबकि अमीर के बच्चे को कोई चोरी का इल्जाम नहीं लगाता है क्योंकि इनको बचाने में सारे सिस्टम लग जाता है । 
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
मैं नहीं मानता गरीब का बच्चा सब चोर होते हैं। हमें यह सोचना चाहिए की सामने वाला गरीब हैं, तो किस कारण से हैं और उनके बच्चे भूखे अशिक्षित हैं तो उन्हें सहारा देने की आवश्यकता है। अगर आप सहारा देते हैं तो उनके दुआ से आप दिनों दिन प्रगति के पथ पर अग्रसर होंगे। तथा एक परिवार को धन उपार्जन मैं सहायक बनेंगे जिससे उसके बच्चे शिक्षित होंगे साथ ही साथ रहने का मैं परिवर्तन होगा।
 यह मोटिवेशन से देश का विकास संभव है।
 वैसे अमीर के घर में बैठा कौवा भी मोर लगता है।
गरीब के बच्चे चोर नहीं होते हां अमीर के बच्चे जो गलत संगत के शिकार मे फंस जाते हैं वे ही गरीब के बच्चे को चोर बनाते हैं।
लेखक का विचार:-सही में भारत में अब गरीबी नहीं है। ऐसा इसलिए हम कह रहे हैं  हर व्यक्ति के आए औसत तक पहुंच गया है।
यह सब नेता  का बोली है, वोट की राजनीति है । हां कुछ जगह अशिक्षित लोग हैं उसमें सुधार होने पर गरीब का बच्चा का दर्जा समाप्त हो जाएगा ।
अब तो अमीरों के बच्चे चोर होते जा रहे हैं कोई काम ना करके दलाली कर  पैसा कमाते हैं। यह भी बंद होने वाला है। जनता को सभी तरह का पेमेंट ऑनलाइन हो रहा है जिस से दलाली बंद हो जाए।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
 जो जैसा दिखता है वैसा होता नहीं और जो जैसा होता है वैसा दिखता नहीं। हर मनुष्य में संस्कार वर्तमान में एक समान नहीं है। गरीब का बेटा भी संस्कारी हो सकता है और धनवान का बेटा और संस्कारित हो सकता है जरूरी नहीं है कि गरीब का बेटा चोर हो और धनवान का बेटा चोर ना हो। धनवान का बेटा भी अगर संस्कारी नहीं है तो चोर हो सकता है गरीब का बेटा संस्कारित है तो गरीबी होते हुए भी चोर नहीं होगा जो गरीबी में जीते हैं उनके पास भी सत्य होती है। धनवान के पास धन होते हुए भी भी बेईमानी रहती है अर्थात असत्य से जीता जरूरी नहीं है कि धनवान का बेटा चोर ना हो और गरीब का बेटा चोर हो सॉरी हर मनुष्य के संस्कार पर निर्भर करता है जो व्यक्ति बेईमानी की राह जानता है वही व्यक्ति बेईमानी तड़का लगाकर गरीब के बच्चों को चोर नजर आता है। वह क्यों गरीब है इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता कोई नहीं समझते उनकी पीड़ा वर्ल्ड की उपेक्षा कर और जलील करते हुए नजर आते हैं शोषण वादी प्रवृत्ति या बेईमानी प्रवृत्ति के लोग इसलिए वह अपने जैसा ना समझ कर शोर समझता है हर व्यक्ति सुखी होना चाहता है अज्ञानता वश गलती हो जाती है सभी से गरीब हो या धनवान जब उसकी नियत सही है तो किसी की कहने से कोई चोर नहीं होता है अतः यही कहते बनता है कि जो जैसा दिखता है वैसा होता नहीं और जो जैसा होता है वैसा दिखता नहीं।
- उर्मिला सिदार 
रायगढ़ -  छत्तीसगढ़
एक कहावत है कि "चोरी से बड़ा पाप नहीं, गरीबी से बड़ा अभिशाप नहीं।" 
जी हां! अधिकांश दृष्टिगत होता है कि गरीबी और गरीब इस समाज की दृष्टि में सम्मान के पात्र नहीं होते और इससे बड़ा अभिशाप नहीं हो सकता कि मेहनत से जीवन-पथ पर चलने वाले मात्र अपनी गरीबी के कारण हेय दृष्टि से देखे जाते हैं। 
जिस प्रकार यह सत्य है कि सभी गरीब चोर नहीं होते उसी प्रकार यह शत-प्रतिशत सही नहीं है कि गरीब का बच्चा सबको चोर लगता है। समाज में अनेक संस्थाएं और व्यक्ति गरीब को प्रोत्साहित करने का कार्य करते हैं।
गरीब के बच्चों को चोर वही समझते हैं जिन्होंने कभी गरीबी को नहीं देखा, गरीब के संघर्षों को नहीं देखा। अपवाद हो सकते हैं परन्तु चांदी का चम्मच मुंह में लेकर पैदा होने वाले ही ऐसी सोच रखते हैं। 
विभिन्नता से परिपूर्ण इस संसार में भिन्न-भिन्न दृष्टि वाले व्यक्ति हैं और सबका दृष्टिकोण गरीब अथवा गरीब के बच्चों के प्रति नकारात्मक नहीं होता। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
ऐसी सोच के कारण ही तो हमारा नैतिक स्तर का ग्राफ नीचे की ओर गिरता दिखाई देता है !  अरे गरीब है तो क्या ? वह चोर हो गया !मानाकि वह अभाव में रहता है !उसकी अपनी इच्छाएं होती है जिसकी कमी वह पूरी नहीं कर पाता! अपनी दबी इच्क्षाओं को पूरा करने के लिए वह मौके की तलाश में होता है ! हुनर तो सभी के पास होता है केवल परखने वाला मिल जाए तो वह भी आगे बढ़ सकता है ! सही मार्गदर्शक मिलने की देर होती है ! उदाहरण के लिए बालकवि वैरागी बचपन में भीख मांगते थे किंतु उनके साहित्य को सभी ने जाना कितना सम्मान दिया पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित हुए ! सब का अपना स्वाभिमान होता है ! आज हमारी फिल्म इंडस्ट्रीज में 60 से 70% कलाकार ,गीतकार, लेखक सभी गरीबी की धूल चाटते हुए ही आये थे और आज अपने संघर्ष एवं हुनर की वजह से कहां से कहां हैं ! बस मौका और भाग्य साथ होना चाहिए ! ये सच है पेट की आग कभी कभी  आदमी को भटका देती है वरना पेट से कोई चोर नहीं होता ! मैं तो कहती हूं अमीर के बच्चे अनैतिक काम अधिक करते हैं बिना मेहनत के सब कुछ मिलता है ! गरीब के बच्चे संघर्ष कर अपना स्थान बनाते हैं जिसे हम गुदड़ी का लाल कहते हैं ! 
हमारे देश के दो दो प्रधानमंत्री गुदड़ी के लाल ही तो हैं ! आदरणीय लाल बहादुर शास्त्री जी एवं मोदी जी ! 
अमीर लोगों से ज्यादा गरीबों में खुद्दारी होती है यह हम कहें तो कितना खराब लगता है अतः गरीब के बच्चे अभाव की वजह से गंदे अवश्य दिखते हैं किंतु चोर नहीं लगते ! 
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
ऐसी बात नहीं है। गरीब का बच्चा सबको चोर नहीं लगता है। उन्हीं लोगों को चोर लगता है जो दुष्ट प्रकृति के होते हैं। वो सोचते हैं कि चोरी गरीब के बच्चे ही करते हैं। थोड़ी देर के लिए ये बात सही भी हो सकता है कि गरीब के बच्चे ही चोर होते हैं क्योंकि उन्हें अभाव है।अमीरों के बच्चे तो डकैती करते हैं। वे समझते हैं कि चोरी तो गरीबों का काम है हम अमीर या अमीर के बच्चे हम तो डकैती ही करेंगे और करते हैं।
        कभी-कभी ऐसा होता है अगर गरीब का बच्चा कोई अच्छा चीज या अच्छा कपड़ा पहनता है या अच्छा खाता है तो लोग समझते हैं ये जरूर चोरी कर के लाया होगा।वो ये नहीं समझते हैं कि वो मेहनत कर के भी ला सकता है या कोई उन्हें दान दिया होगा।लेकिन उनके दिमाग में घुसा रहता है कि गरीब के बच्चे ही चोर होते हैं।
        बहुत से लोगों के दिमाग में ये बात घर कर गई है कि गरीब के बच्चे ही चोर होते हैं जबकि ऐसी बात नहीं है।अमीरों के बच्चे भी बुरी लत के कारण चोर बन जाते हैं और चोरी करते हैं। इसलिए ये कहना सही नहीं होगा कि गरीब का बच्चा सबको चोर
लगता है। हाँ ये बात  गलत भी नहीं है कुछ लोगों को लगता है कि गरीब के बच्चे चोर होते हैं। जबकि बात ऐसी नहीं है। हो सकता है गरीब का बच्चा आभाव में चोरी करता हो लेकिन अमीर के स्वभाव में चोरी करते हैं।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
यह तथ्य वास्विकता का स्वरूप है ,समाज मे गरीबी एक अभिशाप है।जो समाज के लोगों की मानसिकता को गरीबी और गरीब के प्रति प्रकटीकरण करते है।सब को गरीबी से नफरत है और कुछ लोगों को गरीब के बच्चों से घृणा है और उन्हें चोर समझते है उनके राय मे गरीब का बच्चा चोर ही है।और समाज भी यही राय पर कायम होता है।संसार मे सत्य कही गुम हो गया है ।परिश्रमी गरीब का बच्चा भी जब अपनी मेहनत लगन से खुद को साबित करता है तो वह समाज की अच्छी नजरों से वंचित ही रहता है।समाज को विभिन्न हिस्सों श्रेणियों मे बाँट दिया गया है उच्चतम स्तर के लोगों को दिखावा के अलावा कुछ नही ,ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र ,समाज मे सबसे बुरा हाल निम्न वर्ग का है जो गरीबी रेखा के रूप धारण कर समाज मे अपमान की जिंदगी जीता है।कुछ करने की क्षमताओं को भी यह समाज समझने की कोशिश नही करता और सब गरीब के बच्चों को चोर की कसौटियों पर ला खड़ा करता है।यह समाज ही है जो अनाथ बच्चों को गालियां देते हूये उन्हें और उनके खानदान को चोर बता डालता है।बिडम्बना है हमारे देश की सियासत रोटियां सेकतीऔर गरीब का धब्बा गरीब परिवार के बच्चों को चोर की तुलना मे लाता है।समाज के रूपरेखा तय करने में ईश्वरीय ज्ञान शक्ति शामिल हैं सभी को अभिव्यक्ति की आजादी और रहने की आजादी संविधान मे उल्लेखनीय है पंरतु समाज से निकालने की अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है किसी गरीब परिवार के बच्चे ने तनिक भी गलती कि तो समाज चोर कह उसे बाहर कर देता ,हाँ सभी को चोर ही लगता है एक गरीब का बच्चा क्योंकि इनके सपनों पर एक लाचारी का तानाशाह होता है जो बेहद ही तकलीफों से गुजरता है ।गरीब होना अभिशाप सिद्ध होता है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
ऐसा नहीं है कि गरीब का बच्चा सबको चोर लगता है, किसी भी व्यक्ति को देखने का सबका अपना-अपना एक नजरिया होता है | आजकल लोग लोगों को उनके पहनावे से उनके रहन-सहन से उनका आकलन करते हैं कि वह गरीब है या अमीर, कोई व्यक्ति अच्छे कपड़े पहने हुए घूम रहा है तो सब उसको यह सोचेंगे कि यह अमीर व्यक्ति है, कोई व्यक्ति थोड़े से अच्छे कपड़े जिसने नहीं पहने हो वह उन में घूमता है तो उसको सोचते हैं कि यह बिल्कुल ही गरीब व्यक्ति है तो यह सब लोगों की सोच पर निर्भर करता है कि वह किसी व्यक्ति को किस नजरिए से देखते हैं
 अभी मैं अच्छे कपड़े पहन कर बाहर घूमने निकलो तो सब लोग सोचेंगे कि मैं काफी पैसे वाला हूं, और अगर मैं कुछ गंदे कपड़े पहन कर बाहर निकलता हूं तो मुझे सब सोचेंगे कि मैं बहुत ही गरीब व्यक्ति हूं निर्धन व्यक्ति तो यह लोगों की सोच होती है कि वह गरीब के बच्चों को चोर समझते हैं क्योंकि उन्हें यह लगता है कि  यह अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए चोरी करेगा, परंतु वैसा नहीं है गरीब लोग बहुत ही ज्यादा हिम्मत वाले होते हैं और वह काम करके पैसा कमाना पसंद करते हैं बजाई के चोरी करने के, कुछ परिस्थितियां जीवन में ऐसी बन जाती है कि अमीर व्यक्ति भी चोरी करने शुरू कर देता है कुछ उसकी जरूरत है ऐसी हो जाती हैं कि वह चोरी करने लगता है कुछ जरूरी नहीं है कि गरीब ही व्यक्ति चोरी करता है बस यह सब लोगों का अपना अपना नजरिया होता है |
 - रजत चौहान 
 बिजनौर - उत्तर प्रदेश
गरीब का बच्चा सबको तो नहीं पर अधिकतर लोगों को तो चोर लगता ही है ।गरीबी एक अभिशाप है क्योंकि जब पेट भरने के लिए कुछ भी न मिले तो क्या करेगा कोई ।ऐसे समय मे नीति अनीति को भूल जाना स्वाभाविक है ।इसी तथ्य को सम्मुख रखते हुए प्रत्येक व्यक्ति ऐसा सोच सकता है ।
लेकिन ऐसे तथ्य भी सामने आए हैं जब किसी गरीब के बच्चे ने रास्ते पर गिरा पर्स लौट दिया ।किसी का कोई सामान उठा कर दे दिया ।ऐसा भी हुआ है कि किसी गरीब के बच्चे से नोटों से भरा बैग थाने पंहुचाया हो।कुछ बच्चे तो  ऐसे होते हैं। जो रिक्शा चला लेंगे ।,मजदूरी कर लेंगे ,जूते पोलिश कर लेंगे या और भी कोई छोटा मोटा काम कर लेंगे पर चोरी नहीं करेंगे ।
घर से कोई चीज़  गायब हो जाये तो  सबसे पहले संदेह गरीब के बच्चे पर ही जाता है । अगर वह घर मे काम करता हो ।
असल में गरीब के बच्चे पर संदेह भी तभी होता है  जब अपने मन में चोर हो ।जब व्यक्ति खुद किसी न किसी प्रकार की चोरी करता हो ।
इसलिए मैं तो यही कहूंगी कि यह जरूरी नहीं कि गरीब का बच्चा चोर हो ।
- चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा
     परिस्थितियों के चलते ही गरीबी दिन देखने को मिलते हैं। फिर परिणाम कुछ भी हो, जिसके कारण  जनजीवन में हमेशा आते-जाते शंकाओं का सामना करते हुए, बच्चों को चोर समझने लग जाते हैं और पुलिस प्रशासन सबसे पहले उन्हें ही प्रथम दृष्टया निगाहें केन्द्रित करता हैं?  दूसरी ओर ध्यान केन्द्रित किया जायें, तो गरीब आदमी और गरीब किसान का बेटा उच्च पदों पर पदस्थ होकर अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल हो रहे हैं। अमीर का बेटा भी अनेकों घटनाओं में लिप्त रहते हुए भी सम्मानित होता रहता हैं। अमीरों के शिकार गरीबों को झूलना पड़ता हैं और आरोप-प्रत्यारोपण स्वयं सामना करते हुए, उनके सम्मानों को आंच आने नहीं देते। आज वर्तमान   परिदृश्य में सार्थक भूमिका गरीब के बच्चों की ही हैं, हर राजनीतिज्ञ इन्हीं का उपयोग कर पदासीन हैं। जब गरीब के बच्चों की भावनाओं का विपरीत प्रतिक्रिया होती हैं, तो स्वयं आगे आकर इसका विरोध प्रदर्शन करते हुए, सबके सामने चोर लगने लगता हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
गरीब का बच्चा सबको चोर लगता है - अत्यन्त संवेदनशील कथन और काफी हद तक सत्य भी है।  गरीब बच्चा हालांकि अमीर बच्चों की तरह भाग्यशाली नहीं होता परन्तु उसका क्या कसूर जो उसने गरीब परिवार में जन्म लिया?  गरीब बच्चों को वह सब नसीब नहीं होता जो अमीर बच्चों को बिना मांगे ही नसीब हो जाता है। अमीर बच्चों को जिन्दगी के हर ऐशो आराम करते देख, उन्हें अच्छे कपड़े पहने देख, महंगी कारों में बैठे देख, बाजारों में खाते पीते मौज उड़ाते देख गरीब बच्चों के मन भी मचलते हैं। पहली शुरुआत अपने माता-पिता से मांग करने की होती है। पर बार-बार मांगने पर सिर्फ झिड़कियां मिलती हैं तो उन्हें गरीबी के अभिशाप का अहसास होने लगता है। माता-पिता को असमर्थ पाकर गरीब बच्चा अपने यत्न करता है और ऐसे यत्न जिन्हें देख मानवता का सिर भी झुक जाए। झूठन खाना, कूड़ेदानों में फेंके गए आधे-अधूरे खानों को उठाकर खाना और उनका स्वाद लेना। अमीर बच्चों द्वारा फेंके गए कोल्ड-ड्रिंक के ग्लासों में बची बूंदों को अपने हलक में उतारना, जी हां, गरीब बच्चे ऐसा भी करते हैं। जब अमीर बच्चे सुबह-सुबह नरम गद्दों पर एयर कंडीशनर की ठंडी ठंडी हवा खाकर अलसा रहे होते हैं तो गरीब बच्चे कंधों पर बोरा उठाये बोतलें, प्लास्टिक के गिलास और अन्य कबाड़ इकट्ठा करने निकल पड़ते हैं ताकि उस दिन की रोटी नसीब हो सके। आखिर उनका भी तो परिवार के प्रति कुछ कर्तव्य है। पर अफसोस कुछ चोर भी उनकी भांति बोरा उठाकर निकल पड़ते हैं। जहां गरीब बच्चे कूड़ा बीन रहे होते हैं वहीं चोर महंगे माल पर हाथ साफ कर रहे होते हैं। पकड़े जाने पर उनकी सूरत और सीरत गरीब बच्चों के लिए अभिशाप बनती है और गरीब बच्चे भी चोर समझ लिये जाते हैं। दुःखद स्थिति।
- सुदर्शन खन्ना 
 दिल्ली
*जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत तिन देखी तैसी*
समाज में विभिन्न विचारों की धारणा वाले लोग रहते हैं उनके विचारों पर निर्भर है कि वह किस दृष्टि से उन गरीब बच्चों को देखते हैं संवेदनशील 
मानवता समाज प्रेम की भावना एक दूसरे की सहायता करने वाले लोगों के मन में इस तरह की धारणा नहीं उत्पन्न होती हैं वह गरीबों के प्रति भी संवेदनशीलता और प्रेम रखते हैं और तभी समाज में अनेक सामाजिक संस्थाएं उनके उत्थान के लिए सतत कार्य कर रही है किंतु जैसा मनुष्य देखता है व्यवहार में आता है टीवी में मीडिया में फिल्मों में और अपने आसपास दिखाई सुनाई देता है इस तरह की कई चीजें दिखाई  देती ‌है जिससे मनुष्य के मन में धारणा बन  जाती है‌ कि वह गरीब है स्वार्थी होगा चोर होगा या कोई लालच होगा जिसके कारण वह गरीब बच्चे की इमानदारी अच्छाई  सकारात्मक
बातों को नहीं देख पाता है अधिकतर देखने सुनने में आता है कि लोग बहुतायत यही सोचते हैं लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता है गरीब से गरीब बच्चों में इतनी इमानदारी होती है कि वह समाज और देश के लिए प्रेरणा बन जाते हैं इतिहास ऐसे लोगों से भरा पड़ा है।
*सब कुछ आपके नजरिए पर निर्भर करता है*गरीब है चोर होगा यह सोचना सिवाय अपना व्यक्तिगत धारणा*
- आरती तिवारी सनत
दिल्ली
आज आपने उस कड़वी सच्चाई पर परिचर्चा रख दी, जिससे इंकार नहीं किया जा सकता। गरीब के बालक को चोर ही समझा जाता है।जबकि वह बालक चोर नहीं होता। इसमें और तो  गैरों की बात ही क्या, परिवार में भी आर्थिक रुप से कमजोर सदस्य के बालक को ऐसा ही माना जाता है और गाहे-बगाहे,उस पर ऐसा आरोप लगाने में देरी नहीं की जाती।ऐसा मैंने देखा है,तभी कह रहा हूं।यह धारणा बहुत ही गलत है, जिसमें सुधार होना ही चाहिए।बालक क्या,बड़े भी हर उस वस्तु की ओर आकर्षित होते हैं जो पहली बार देखें और वह सुंदर लगे।जब हम कहीं घूमने गए तो सीपी, रंगीन पत्थर,पंख, सुंदर पुस्तक जैसी चीजें उठा लेते हैं देखने के लिए। यही प्रवृत्ति बालक की होती है,वह अमीर हो या गरीब।बस इसके कारण उसे चोर कह देना,यह ठीक नहीं। सच्चाई,यह है कि जीवन में जितनी ईमानदारी इन गरीब बच्चों में मिलती है, उतनी कथित अमीरों में नहीं।लगभग 30 वर्षों से मैं ऐसे ही बच्चों के बीच काम कर रहा हूं। वैसे अपवाद तो हर जगह होते हैं। लेकिन कुछ के कारण सबको उसी नजर से देखना उचित नहीं लगता।
- डॉ. अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
            सभी को तो नहीं पर हां कुछ अमीर लोगों को जरूर गरीब का बच्चा चोर लगता है। उनके दिमाग में कीड़ा रेंगता रहता है कि कोई उनका कुछ सामान चुरा ना ले जाए इसलिए उन्हें गरीब के बच्चे में सच्चाई की जगह चोर नजर आता है।
       हकीकत में हर गरीब चोर नहीं होता परिस्थिति वश या यूं कहें मजबूरीवश उसे यह काम करना पड़ता है। कभी भूख की खातिर कभी परिवार चलाने की खातिर या अन्य किसी वजह से। वास्तव में  चोर  वे होते हैं जो बचपन से ही चोरी करने के आदी हो और जिन्हें इस गलत काम के लिए परिवार ने रोका न हो। तभी वे आदतन चोर बन पाए।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
आज की चर्चा में जहां तक यह प्रश्न है कि क्या गरीब का बच्चा सभी को चोर लगता है तो इस पर मैं कहना चाहूंगा गरीबी वास्तव में एक अभिशाप है और गरीब व्यक्ति कोई है समाज अब ही मस्ती से देखता है समाज में ऐसी अवधारणा बन गई है की धनि और सबल व्यक्तियों का बोलबाला है गरीब और गुणी व्यक्ति को समाज उनके जितना मान सम्मान नहीं प्रदान करता और उसे है इस दृष्टि से देखता है परंतु ऐसा शत प्रतिशत हो यह बात भी सही नहीं है अभी कुछ ऐसे भी व्यक्ति हैं जो गुणों और इमानदारी की बहुत कद्र करते हैं और उन्हें प्रोत्साहित करने का भी प्रयास करते हैं ऐसी सामाजिक संस्थाएं भी आगे आ रही हैं जो गरीब बच्चों को आगे बढ़ाने में बहुत सहयोग प्रदान कर रही हैं उनके लिए उन्नति के मार्ग पर बढ़ने के लिए संसाधन मुहैया करा रही हैं और सरकारी स्तर पर भी विभिन्न योजनायें गरीब तबके के लिए चलायी जा रही है जिनके प्रति जागरूकता फैलानें की अभी और आवश्यकता है तथा लाभार्थियों को भी सजग रहने की जरूरत है तथा यह जानकारी अपने जैसे अनय लोगों तक पहुँचाने की आवश्यकता है पर कहीं कहीं यह भी देखने में आता है कि जब कोई लड़ाई झगड़ा या विवाद की स्थिति होती है और उसमें कोई प्रभावशाली व्यक्ति हंसता है तो इसमें शामिल गरीब और कमजोर व्यक्तियों पर ही पूरा दोष लगा देने के प्रयास. के मामले भी अनेकों वर्षों से  समय सामने आते रहे हैं सरकार इन चीजों पर काम रही है परन्तु देश की विशाल जनसंख्या की मनोदशा व विचार धारा को बदलनें में बहुत समय लगता है यह मामले  सामाजिक संरचना और सांस्कृतिक मूल्यों में बहुत गिरावट का परिणाम है इससे न केवल समाजाजिक सम्बन्धो को नुकसान पहुँचता है बल्कि वैमनस्यता भी बढती है़
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
जाकी रही भावना जैसी दिखे मूरत तिन तेही l 
     जैसे हमारे आचार -विचार और संस्कार होंगे, जैसा गरीब के प्रति हमारा दृष्टिकोण होगा l सुदामा गरीब थे, अब्दुल कलाम पेपर बॉय के रूप में अर्थार्जन करते थे, क्या चोर थे? गरीब का बच्चा सभी को चोर लगे, यह तथ्यों से कोसों दूर है l भारतीय संस्कृति तो पोषक रही है --
परहित सरिस धरम नहि भाईl परपीड़ा सम नहि अधमाई ll 
      ऐसी संस्कृति में पले -बढे व्यक्ति को गरीब का बच्चा
किस प्रकार से चोर नज़र आ सकता है? 
कबीर की सादगी देख एक शिष्य ने पूछ लिया "गुरुवर आप सादगी से क्यों रहते हैं? आप एक सिद्ध पुरुष हैं l आपका कपड़ा बुनना भी अजीब है l "कबीर मुस्कराकर बोले -पहले मैं अपना पेट पालने के लिए बुनता था, लेकिन अब सभी के अंदर समाये ईश्वर के तन ढकने के लिए और अपना मनोयोग साधने के लिए बुनता हूँ l
अर्थात हर व्यक्ति का दृष्टिकोण अलग अलग होता है जो जिस नजरिये से देखेगा अगला उसी रूप में गरीब का बच्चा नज़र आयेगा l 
      मनुष्य जिंदगीभर छाया रूपी अपनी इच्छाओं के पीछे भागता रहता है, जब उसका विवेक जागता है तो उसका दृष्टिकोण बदल जाता है l वह सकारात्मक पक्ष पर ईश्वर के घर की ओर जाता है l आत्मा से जो आवाज़ निकलती है, यही होता है l
सियाराममय सब जानि
करहु प्रणाम जोरि -जुग पानि ll  
          जिसमें ऐसा विवेक, निष्ठा होगी उसे गरीब के बच्चे में चोर नहीं साक्षात ईश्वर नज़र आयेगा l 
न जाने किसकी "हाय "बर्बाद कर दे 
न जाने "दुआ "कितनों को संवार  दे 
ये गरीब जरूर है मगर "चोर "नहीं 
आपकी कुछ मदद से शायद दो "वक़्त "
की रोटी इन्हें मिल जाये l 
          --------चलते चलते 
मरहम लगा सको तो किसी गरीब के ज़ख्म पर लगा देना l 
मगर चोर कहकर "नमक "मत छिड़क देना l
 हकीम बहुत है बाज़ार में अमीरों के इलाज़ की खातिर l 
  - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
ऐसा सोचना एकदम गलत है, अनुचित है। यह भी सच है कि ऐसा सभी नहीं सोचते। कुछ अहंकारी, स्वार्थी या संकुचित मानसिकता वाले ही ऐसा सोचते हैं।
 अपने आसपास जब भी इस सोच के लोग नजर आवें हमारा नैतिक धर्म है कि हम उनकी इस औछी मानसिकता को दूर करने का अनवरत प्रयास करें।
' चोर' , चारित्रिक पतन होना है। जो मनःस्थितियों और परिस्थितियों की वजह से संभवतः होता है। कुछ हद तक अच्छे संस्कारों से वंचित होना भी कारक है।
वजह कोई भी हो इसे गरीब होने के दायरे में नहीं रखा जाना चाहिए। ये न तर्कसंगत है, न न्याय संगत और न नीति संगत।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
  प्रथम दृष्टया ही नहीं , हमेशा सभी को गरीब का बच्चा ही चोर नजर आता है  क्योंकि हमारी सामाजिक संरचना में ही अदृश्य नियम कानून बने है ।जिसे हम लोग मानते भी है कि गरीब व्यक्ति का जीवन जन्म से मरण तक अभावों में ही बीत जाता है। उसकी मूलभूत आवश्यकताएं  भी कभी पूरी नहीं होती हैं । इस तबके के लोग ज्यादातर अशिक्षित होते हैं । हम सब यह मानते हैं कि नैतिकता किस चिड़िया का नाम है इन्हें पता नही है ।
ऐसे माहौल.में पले बढ़े बच्चे बिना संकोच चोरी कर सकते हैं । पर हमारी यह धारणा सही नही है ।
आमजीवन में भी हम लोग कई बार देख चुके हैं कि अमीरों के बच्चे अनैतिक काम, अनैतिक आचरण इतनी सफाई  और चतुराई से करते हैं  कि उन पर कोई शक नहीं करता है। वे इस बात को अच्छी तरह जानते भी हैं ।
दूसरी ओर गरीब का बच्चा ईमानदार भी हो तो भी उसकी शक्ल, चेहरे का भाव, आँखों की दहशत उसे चोर जैसा बना देती है ।दुनिया की ठोकरें उसको बहुत कुछ सीखा देती हैं 
गरीब के बच्चों. को अधिकतर लोग चोर ही समझते हैं जोकि सही नहीं है ।
       मौलिक और स्वरचित है ।
   ..  ड़ा.नीना छिब्बर 
     .जोधपुर - राजस्थान
आइयै आज तनिक गरीब  पर गौर करते हैं जो सारा दिन मेहनत मजदूरी करके  मुश्किल से दो टायम की रोटी कमा पाता है। 
क्या कभी आपने गरीब के बच्चे को मजदूरी करते हुए देखा है अगर हां तो इतना जरूर देखा होगा हर काम करबाने वाला उसे पैनी नजर से ही देखता है कि कहीं वो कोई गड़वड़ तो नहीं कर रहा काम से जी तो नहीं चुरा रहा या वो कुछ चुरा कर तो नहीं वे जाएगा। 
कहने का मतलब गरीब का वच्चा सब को चोर ही लगता है, असल  में वो ऐसा नहीं होता अपने काम में हमेशा इमामदारी  दिखाता है, फिर भी लोग  उसे शक की नजर से ही देखते हैं 
यही नहीं  हर पल उससे  काम ही ढुढते हैं जितन् ले सकें, 
सच कहा है, 
"अजीब मिठास है, मुझ गरीब के खून में भी, जिसे भी मौका मिलता है वो पीता जरूर है"। 
कहने का मतलब गरीव की मदद करना तो दूर हरेक उल्टा उससे कुछ लेने की उम्मीद करता है। 
 कभी आपने दिहाड़ीदार को  दिहाड़ी लगाते देखा होगा या किसी गरीब वच्चे को दिहाड़ी पर रखा होगा तो सच मानना कभी भी आप किसी के मन मैं यह विचार नहीं आया  होगा  वच्चा है थक गया होगा, जल्दी छोड़ देते हैं, उल्टा उसे  डांटा ही होगा, 
लेकिन कभी मोका मिले तो गरीब की मदद कर के देखना आपको कितना सकुन मिलेगा, 
सच कहा है, 
" मरहम  लगा सको तो किसी गरीब के जख्मों पर लगा देना, 
हकीम बहुत है बाजार में अमीरों के लिए"। 
सच कहा है, 
गरीबों की सुनों वो तुम्हारी सुनेगा, तुम  एक पैसा दोगे वो दस लाख देगा, 
कभी गरीब की मदद कर देखना आप को उनमें भी भगवान दिखेगा, वो वेचारा हमेशा अमीरों  की शक की नजर में पीसा जाता है और  हर वक्त चोर दिखता है, 
सच कहा है किसी गरीब ने, 
"कभी आंसू कभी खुशी वेची हम गरीबों ने बेकसी  बेची
चंद सांसे खरीदने के लिए, 
रोज थोड़ी सी जिन्दगी बेची"। 
कहना का मतलब गरीब तो  अपनी सांसे भी मोल में लेता, फिर भी वो क्यों सभी को चोर   लगता है, 
आखिरकार यही कहुंगा  गरीब हमेशा ईमानदार व दिल का सच्चा होता है वशर्ते हम उसे अपने बच्चों जैसा  प्यार दें, अत:गरीब का वच्चा सब को चोर नहीं दिखेगा वो भी हमारे बच्चों जैसा ही दिखेगा, वच्चे तो सब के एक जैसे होते हैं क्या अमीर क्या गरीब के वो तो दिल के अमीर  ही पैदा होते हैं। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर

" मेरी दृष्टि में " हर किसी को गरीब के बच्चे से हमदर्दी रखनी चाहिए । यह मानवता का प्रश्न है । जो गरीब के बच्चे को हीन भावना से देखता है । वह कभी कामयाब इंसान नहीं बन सकता है । यह दुनिया की सबसे बड़ी सचिन है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी

डिजिटल सम्मान 

Comments

  1. यह कहना सर्वथा गलत है कि गरीब के बच्चे चोर होते हैं। गरीब का बच्चा चोरी तभी करेगा जब उसके पास कोई दूसरा विकल्प ना हो। किसी की कमजोर परिस्थिति या दयनीय हालत के चलते उसे चोर कहना उचित नहीं। गरीब लोग अमीरों की तुलना में अधिक सहृदय एवं ईमानदार होते हैं। अमीरों के बच्चों पर कोई उंगली नहीं उठाता किंतु गरीब से जरा भी गलती हो जाए तो सब उसे बदनाम कर देते हैं। लोगों को अपने मापदंड का नजरिया बदलना चाहिए।

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