क्या शाहीन बाग धरने का परिणाम है दिल्ली दंगे ?
शाहीन बाग के धरने को हर किसी ने अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया है । विशेष रूप से राजनीति पार्टियों ने तो ऐसा ही किया है । जिस का भुगतान दिल्ली की जनता और पुलिस आदि को करना पड़ा है । जिन्होंने अपना कोई खोया है वह परिवार तीन - तीन पीढियों तक नहीं भूल सकता है । यह हिन्दू - मुस्लिम का दंगा दिखाया गया है । जो किसी भी स्थिति में उचित नहीं कहा जा सकता है। यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय पर केन्द्रीय है। देखते है लोगों ने इसे किस नज़र से देखा है : -
किसी भी हादसे या दंगे आदि की पृष्ठभूमि पहले से बनती जाती है ।बहुत सारी छोटी बड़ी घटनाएँ उसे प्रेषित करने सहायक भूमिका निभाती है ।हम यह निश्चित तौर पर यह नहीं कह सकते कि दिल्ली के दंगे शाहीन बाग धरने का परिणाम है,लेकिन उसे इस्तेमाल करने की कोशिश जरूर कही जा सकती है ।अपने राजनीतिक फायदे के लिए हमेशा से निर्दोष आम लोगों भड़काना और इस्तेमाल करना हमेशा से होता आया है ।दिल्ली दंगे को देखकर लगता है कि यह अचानक नहीं हुआ,बल्कि इसकी तैयारी पहले की जा रही थी।
- रंजना वर्मा
रांची - झारखण्ड
जी हाँ , शाहीन बाग में 15 दिसम्बर 2019 में सीसीए नागरिकता संशोधन बिल के पास होने के विरोध में 50 लोगो से प्रदर्शन शुरू हुआ था । सैकड़ों लोगों की तादाद में भीड़ जमा होगयी । महिलाओं , बच्चों से शाहीन बाग धरना दे रहे हैं । जिससे इन लोगों की वजह से में रोड बन्द हो गयी है । ट्रैफिक जाम कर रखा है ।जिससे लोगो को आने , जाने में कई किलोमीटर सफर तय करना पड़ गया । दूसरों को तकलीफ दे के धरने पर बैठे लोगों का विरोध करना किसी भी हालत में सही नहीं है । सुप्रीम कोर्ट से आये वार्ताकारों से कोई हल नहीं निकला ।
आज पूरे 70 दिन हो गए हैं । इस इलाके में आज 144 - धारा लगा दी है । इसी साजिश की तहत दिल्ली के उत्तरी - पूर्वी इलाके में 23 फरवरी2020 को दंगाइयों ने हिंसा का रास्ता अपनाकर भजनपुरा चाँद बाग , करावल नगर, ब्रजपुरी आदि में तेजाब , पेट्रोलबम , गुलेल पत्थर से वार किए ।वीडियो उस समय की गवाह हैं । 40 लोगों की जान चली गयी । अमानवीयता का नंगा नाच 3 दिन तक दुनिया ने देखा । दंगाइयों कि उन्मादी लोगोंने निर्दोष जनता को निशाना बनाया । किसी परिवार, कहीं शिक्षा का मंदिर उजड़ा तो कहीं मस्जिद । 3 दिन तक दिल्ली जलती रही । कितने बच्चे ,परिजन लापता हो गए । जनता अपनों की तलाश में तस्वीर ले के उनकी तलाश कर रही है । दिल्ली का प्रशासन , दिल्ली पुलिस दंगा शांत कराने में नाकाम रही ।
समाज , राष्ट्र की संपत्तियों को जलाक़े जान -माल को नुकसान पहुँचाया । राजनैतिक दलों को स्वार्थ से दूर होकर राष्ट्र नीति बनाए । न कि ये पार्टी अपनी राजनैतिक रोटियां न सेंके । दिल्ली की जनता उम्मीद लगाए बैठी है इन अराजकता फैलाने वाले लोगों को पकड़ के जल्दी सलाखों में कैद हो । कब तक नफरत की राजनीति होगी ।अमन - चैन दिल्ली और राष्ट्र में होना चाहिए ।
- डॉ मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
दिल्ली है दिल हिंदुस्तान का,
यह तो तीरथ है सारे जहां का।
भारत की राजधानी ही नहीं अपितु भारत का दिल है यह संसार के सुंदर नगरों में एक है भारत का प्राचीन नगर है। एक ऐतिहासिक नगरी है मुगल शासकों की राजधानी और बाद में अंग्रेजों ने भी इसी को राजधानी बनाया वर्तमान समय पर हमारी भी राजधानी दिल्ली है ।जो भी व्यक्ति दंगे करते हैं या आतंकवादी होते हैं उनकी कोई जाति और धर्म नहीं होती उनका मकसद ही नकारात्मक सोच को समाज में फैलाना और किसी को व सुखी नहीं देखना चाहते दूसरों के सुख से दुखी होकर दंगे करते हैं स्वयं के स्वार्थ सिद्धि करते हैं अपने काम को अंजाम देने के लिए किसी भी हद तक गिर जाते हैं बाकि लोगों की या आम आदमी की उन्हें कोई चिंता नहीं रहती। उनका काम ही आतंक फैलाना है हमारे देश में हम सभी हिंदू मुस्लिम मिलजुल कर रहते हैं और कानून सबके लिए एक होते हैं लेकिन लोगों को भोली भाली जनता के मन में भय उत्पन्न करना और गलत जानकारी देने के कारण यह हुआ है। हमारे देश में हम हिंदुओं की यह बहुत बड़ी एक विडंबना रही है कि सारे कानून और मर्यादा हमें सिखाई गई है हमारे ऊपर मुगलो अंग्रेजों राज्य किया। हमारी संस्कृति को नष्ट किया हमारी संस्कृति इतनी विशाल है कि इसे कोई भी नष्ट नहीं कर पाया और हमें ऊपर उठते हुए कोई भी नहीं देखना चाहता इसलिए चंद लोगों ने अपनी गंदी सोच का यह अंजाम दंगे को दिया है हम हिंदुओं के मंदिरों का पैसा चाहे वह वैष्णो देवी साईं बाबा ट्रस्ट कानूनी तौर से गवर्नमेंट खजाने में जाने का कानून भी बनाया है सरकार ने मुस्लिम और इस साल मिशनरीज और मदरसों का पैसा उनके अपने समाज के विकास में लगता है हमारे देश में हमें बैरी हो गए हैं सब को बोलने की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी है हमारे धर्म में संविधान के अनुसार हमें ही दबाया जाता है कमजोर को सदा से ही दबाया गया है और कमजोर के ऊपर ही सदा दंगे हुए हैं जो लाठी की जोर पर करता है बात जिसकी लाठी उसी की भैंस होती है यह कहावत यह कहावत सिद्ध हो रही है। आजकल सभ्य तो मौन हैं मूर्खों का बोलबाला है इसी का अंजाम यह दंगे हैं आगे मैं क्या कहूं दंगे हर हाल में ही बहुत बुरे होते हैं यह विकास व संस्कृति को पीछे ले जाते हैं लेकिन शायद आगे बढ़ने वाली सोच ही लोगों के मस्जिद से खत्म हो चुकी है इन दंगों को देखकर भी कुछ सबक सीख ले तो बहुत अच्छी बात होगी और हमारा लिख लिखना भी सार्थक हो जाएगा।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
बिल्कुल शाहीन बाग धरने का ही परिणाम है दिल्ली के दंगे
लोगों को धरने पर एक दिन ले ज़्यादा बैठने नहीं देना चाहिए ।
और विरोध प्रदर्शन करना है तो शांति से करो देश और समाज का नुकशान क्यो ? नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के विरोध में 15 दिसंबर से शाहीन बाग के सामने सड़क पर स्थानीय लोग धरने पर बैठे हैं। रविवार दोपहर तीन बजे अचानक वहां कुछ पुलिस कर्मियों ने सड़क पर लगाए बैरीकेड हटाना शुरू किए, तो वहां मौजूद लोगों ने इसका वीडियो बनाकर वायरल कर दिया। लोगों ने व्हाट्सऐप पर मैसेज भेज दिए कि पुलिस जबरन धरना-प्रदर्शन खत्म करवा रही है। देखते ही देखते हजारों लोगों की भीड़ शाहीन बाग पहुंच गई। कुछ लोगों ने तो यहां तक अफवाह फैला दी कि शाहीन बाग में पुलिस और जनता के बीच पथराव हो गया है। अफवाह के बाद पूरे शाहीन बाग और जामिया नगर में तनाव का माहौल बन गया, लेकिन पुलिस ने साफ किया कि उनकी ओर से प्रदर्शनकारियों को नहीं हटाया जा रहा है।
मेरा कहना है आप भेडचाल क्यों
पहले समझे विचार करें क्या हमारे लिये सही है क्या ग़लत
बस बिना सोचे समझे कूद पड़े ...
नहीं होना चाहिये ।
दंगों से भला नहीं नुक़सान ही होता है ।
मेरा कहना है सरकार से दंगे करने वालों को सख़्त सजा देना चाहिए , दंगे कितने निर्दोष की जान लेता है दंगाईयों को भी मौत की सजा होना चाहिए ...
तभी भविष्य में दंगो पर अंकुश लगेगा ।
हमारी खा कर हम पर ही गुर्राने वालों को माफ़ नहीं करना चाहिए ..
अश्विन पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
शाहीन बाग की हरकत द्रोह का एलान था। आप आम जनता को एक हद में राह कर परेशान कर सकते हैं। लेकिन हद के बाहर बर्दाश्त नहीं हो सकता ।फिर उसका प्रतिकार झेलने के लिए तैयार रहें । दिल्ली दंगा उसी का प्रतिकार है । सरकार के हाथ बंधे होते हैं । वह अपने लोगों के साथ जबरदस्ती नहीं कर सकती है। जैसे कश्मीर में कठोर निर्णय लिए गए, लेकिन यहाँ उस तरह का बर्ताव अशोभनीय था । किसी भी तरह की जबरदस्ती विश्व में नए अफवाहों को जन्म देती। जिससे भारत की छवि बिगड़ने के डर था । ये दंगे तो होने ही थे । कब तक अन्याय सहते रहेंगे? कभी तो अपनी ज़मीन के लिए अच्छा सोचो ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
शाहीन बाग का धरना प्रदर्शन के कारण ही दिल्ली में दंगे हुये , साथ ही विपक्ष के भड़काऊ भाषणों ने आग का काम किया
शाहीन बाग में 15 दिसंबर से लगभग 30 से 50 लोग सीएए के विरोध में रोड पर प्रदर्शन पर बैठे थे, जो धीरे-धीरे राजनीतिक मंच बन गया. आप, कांग्रेस और वामपंथी नेता उस मंच पर पहुंचने लगे, अगले कुछ दिनों में वहां सैकड़ों की भीड़ जमा होने लगी, महिलाओं और बच्चों को आगे रखकर रोड ब्लॉक करके धरना-प्रदर्शन चलने लगा.
दो महीने तक शाहीन बाग की मेन रोड बंद होने से दिल्ली-नोएडा और फरीदाबाद के बीच रोजाना सफर करने वाले सैकड़ों वाहन चालक, स्कूली बच्चों की आफत हो गई, वे रोजाना कई किलोमीटर लंबे रूट और जाम के बीच सफर करते अजीज आने लगे तो गुस्सा बढ़ता गया.
जसौला विहार, सरिता विहार के गांववालों ने विरोध में प्रर्दशन की कोशिश की और शिकायत दर्ज कराई, लेकिन उन्हें पुलिस शांत करवाती गई. एक फरवरी को नाबालिग ने जामिया नगर में जामिया छात्रों के मार्च पर गोली चला दी, जो एक छात्र के हाथ में लगी. फिर 2 फरवरी को कपिल गुर्जर नामक शख्स ने वहां हवाई फायरिंग करके जय श्रीराम के नारे लगाए जिससे तनाव और बढ़ गया. ऐसे में 23 फरवरी को भाजपा नेता कपिल मिश्रा मौजपुर पहुंचे. पुलिस के सामने अल्टीमेटम दिया कि 24 घंटे में रास्ता खाली नहीं हुआ तो लोग खुद खाली करवा लेंगे. उसके बाद गुस्साए लोगों ने जाफराबाद के प्रदर्शन स्थल से आगे मौजपुर चौक को जाम कर दिया. यहां मंदिर पर हिन्दू जमा होते गए. सीएए का विरोध करने वालों के खिलाफ नारेबाजी होने लगी. उसी बीच कबीर नगर, कर्दमपुरी में सीएए विरोधियों की तरफ से पत्थरबाजी हुई. फिर मौजपुर की ओर से पत्थरबाजी होने लगी. शाम होते-होते दंगे शुरू हो गए. 24 फरवरी को दंगों का भीषण चेहरा सामने आया. मौजपुर में एक तरफ हिन्दू जमा थे. दूसरी ओर मुस्लिम। रात से चल रही पत्थरबाजी तेज हो गई. सुबह गोलियां चलने लगी. शाहरुख नामक युवक ने आठ राउंड फायरिंग की। वहां से फरार हो गया. बाद में पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया। दोनों तरफ से नारेबाजी और पत्थरबाजी होती रही.
दूसरी ओर भजनपुरा चांद बाग, करावल नगर मुस्तफाबाद में दंगे भड़क गए. वहां 23 फरवरी की रात से पथराव शुरू हो गया था. 24 फरवरी को दुकानें लूटी जाने लगीं. घरों में आग लगा दी. गोकलपुरी टायर मार्केट में आग लगा दी गई. भजनपुरा चौक पर मजार जला दी गई , पेट्रोल पंप में आग लगा दी, जिससे हालात बेकाबू हो गए. 24 फरवरी को भजनपुरा में दिल्ली पुलिस के हेड कॉस्टेबल रतनलाल की गोली मारकर हत्या कर दी गई. उसके बाद मौजपुर में फुरकान नामक आम मुस्लिम को पीट-पीटकर मार दिया गया. उपद्रवी और हिंसा पर उतारू लोग गैर धर्म के लोगों पर हमले करने लगे. 50 से ज्यादा लोग घायल हुए. भजनपुरा में हिन्दुओं की दुकानें लूट ली गईं. घरों पर पथराव हुआ. हिन्दू इलाकों में मुस्लिमों की दुकानें जला दीं. मौजपुर में एक घर को आग के हवाले कर दिया. मुस्लिम लोगों की दुकानों को बोर्ड तोड़ दिए.
24 फरवरी की रात तक दंगे की चपेट में भजनपुरा और मौजपुर के आसपास खजूरी खास, गोकलपुरी, यमुना विहार, कबीर नगर, ब्रिजपुरी, कर्दमपुरी भी आ गए.
इतना कुछ हुआ, लेकिन पुलिस ने ठोस कदम नहीं उठाया. 24 फरवरी को नॉर्थ ईस्ट डिस्ट्रिक्ट में धारा 144 लगा दी, जिसमें चार से ज्यादा लोग सार्वजनिक जगह पर जमा नहीं हो सकते, लाठी-डंडे लेकर नहीं चल सकते हैं. लेकिन, धारा 144 के नोटिस का माखौल बनकर रह गया. वह बिलकुल कागजी साबित हुआ. जाफराबाद, मौजपुर, भजनपुरा, ब्रह्मपुरी, करावल नगर में लोगों के ग्रुप हाथों में लाठी डंडे लेकर हिंसा करते रहे, लेकिन पुलिस धारा 144 का पालन नहीं करवा पाई. 25 फरवरी को भी वही हालात हैं, हेड कांस्टेबल समेत 9 लोगों की मौत हो चुकी है. पिछले 24 घंटों में दिल्ली फायर सर्विस को दंगा ग्रस्त इलाकों में आगजनी की 50 से ज्यादा कॉल्स मिल चुकी है. दमकल की गाड़ियों पर भी पथराव हुआ. 3 दमकल कर्मी घायल हो गए. दुष्प्रचार ने लोगों के मन में जहर घोलने का काम किया और इसी जहर ने दिल्ली में दंगे कराए। ये भीषण दंगे ऐसे समय हुए जब दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दिल्ली में थे और इस कारण दुनिया की निगाहें भारत की ओर थीं। यह साफ समझा जा सकता है कि दंगे कराने का मकसद सीएए का अंतरराष्ट्रीयकरण और भारत को बदनाम करना था।
जब इसका विरोध हुआ तो तनाव बढ़ा और फिर इसी तनाव ने दंगे का रूप ले लिया। इस दंगे में 40 से अधिक लोग मारे गए और अरबों रुपये की संपत्ति को जलाया गया। जान-माल के इस व्यापक नुकसान के कारण स्वाभाविक तौर पर दिल्ली पुलिस सबके निशाने पर है।
मुस्लिम समाज को इस पर विचार करना ही होगा कि उनका हित और देश का हित अलग-अलग नहीं हो सकता। आखिर जो कानून देश के हित में है वह मुस्लिम अथवा अन्य किसी समुदाय के खिलाफ कैसे हो सकता है? कोई भी देश हो वह घुसपैठियों को रोकने की कोशिश करता है और आवश्यक कानून बनाता है। क्या विपक्षी दल यह चाहते हैं कि भारत में जो भी चाहे, आकर बस जाए। यदि नहीं तो वे सीएए का विरोध करने के साथ-साथ मुसलमानों को उकसा क्यों रहे हैं?
मुस्लिम भाईयो को समझना होगा जिस देश ने आपको सब कुछ दिया मान सम्मान रोज़ी रोटी आश्रय वह आपको नुक़सान कैसे पहुँचा सकता है
आप कोजहां सब कुछ मिला वहाँ पर ही आप अविश्वास जता कर उन्हीं लोगों को मार पीट करना सही नहीं
पहले क़ानून समंझे फिर कुंछ करे किसी को दुष्प्रचार के बहकावे में आकर दंगे करना सही नहीं है ।
यह देश हमारा है यहाँ के लोग हमारे है । जब यह भावना आयेगी तब ही देश के नागरिक बनोगे वर्ना ...
- डा अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
शाहीन बाग में महीनों से धरना जारी है ।अभी भी समाप्त होने का कोई संकेत नहीं ।इसी मधल भारत का हृदय चीत्कार कर उठा ।भारत माँ की आँखों में आँसू आ गए ।पक्ष विपक्ष काफी समय से दिल्ली में आमने-सामने थे कभी प्रत्यक्ष कभी अप्रत्यक्ष रूप से ।मीडिया का जैसा रोल होना चाहिए था नहीं था दो फाड़ थी पक्ष विपक्ष की भांति ।शाहीन बाग में कुछ मीडिया सम्मान पा रही थी तो कुछ को अपनी जान कैमरे बचाने कठिन थे।ऊपर से आमजनता बच्चे बीमार नौकरी के लिये आवागमन करने वाले बहुत पीड़ित थे ।डेली यात्रियों का कहना है कि दिल्ली में यह सब घटने से पूर्व कई दिनों से सटे क्षेत्रों से एक समुदाय के लोग आ रहे हैं ।परिणामस्वरूप कुछ लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए दिल्ली को बदनाम कर दिया ।चौरासी की याद दिला दी ।दुर्भाग्य से इक्कीसवीं सदी में हमारी सोच हमारे निर्णय स्वयं के न होने से यह सब हो जा रहा है और शाहीन बाग की भूमिका तो है ही कितनी है भविष्य तय करेगा ।
- शशांक मिश्र भारती
शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश
दबाब की राजनीति करने हेतु सदैव से ही धरने किये जाते रहे । पर इस बार इसे प्रायोजित किया गया व धरने पर बैठे लोगों को न सिर्फ दैनिक भत्ता (आर्थिक मदद) मिलता रहा बल्कि भोजन भी मिला । लोग वहाँ आकर भाषण देते उनको उकसाते ये सब कुछ हुआ । इसी अवधि में दिल्ली चुनाव भी हो गये जिससे उन लोगों ने खूब फायदा उठाया व जन मानस परेशान हुआ । जिस तरह उत्तर प्रदेश में सख्ती से निर्णय लिया गया यदि वैसा ही दिल्ली सरकार भी लेती तो इतनी दर्दनाक स्थिति न होती । मानवता की सारी हदें पार हो गयी । भारी मात्रा में पत्थर, बम, एसिड, व अन्य ज्वलनशील पदार्थ एक जगह एकत्रित होते रहे और हम सद्भावना व धर्मनिरपेक्षता में ही उलझे रहे । सो ये सब तो होना ही था । उचित समय पर निर्णय न लेने का परिणाम है दिल्ली दंगे । जिस तरह रोग के प्रारम्भिक लक्षण देखने के बाद भी इलाज न होना व टालते जाने से वो भयावह हो जाता है , विष बेल पूरे शरीर में फैल जाती है वैसा ही दिल्ली रूपी शरीर में भी हुआ और परिणाम हम सबके सामने है ।
देश हित के कार्यों में जो भी बाधक बने उसे अवश्य ही समय रहते दंडित करना चाहिए क्योंकि *जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि न गरीयसी*
जन्मभूमि से बढ़कर कोई नहीं होता हम सबको इसका सम्मान करना चाहिए । हम सबका आदर्श गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा रचित ये पंक्तियां होनी चाहिए -
*जिसको न निज गौरव नहीं, निज देश पर अभिमान है ।*
*वह नर नहीं नर पशु निरा और मृतक समान है ।*
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
शाहीन बाग दिल्ली दंगों की मूल जड़ है।जिसे पहले ही उखाड़ फैंकने की परम आवश्यकता थी।चूंकि नागरिकता संशोधन अधिनियम उत्पीड़ित शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए बजूद में लाया गया है ना कि किसी की नागरिकता छीनने के लिए है। जिसके लिए कई बार माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी एवं सशक्त गृहमंत्री अमित शाह जी ने संसद से लेकर आम संबोधनों में भी उल्लेख किया है।किंतु भ्रष्ट विरोधी नेताओं ने अपने स्वार्थ हेतु शाहीन बाग को चुना।जहां पर माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी एवं सशक्त गृहमंत्री अमित शाह जी पर निराधार आरोप ही नहीं बल्कि उनको जान से मारने के लिए छोटे-छोटे बच्चों को प्रेरित भी किया गया।जो असहनीय और निंदनिय भी है। इसके अलावा उन पढ़े-लिखे लोगों के लिए शर्म की बात है।जो वहां जाकर अपनी अनपढ़ता व पागलपन का प्रमाण यह कह कर देते थे कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री देश को बांटने का कार्य कर रहे हैं।जबकि सच्चाई यह सामने आई कि जो पाक व पाक की गुप्त एजेंसी आईएसआई ना कर सकी, वो कांग्रेस सहित विपक्षी नेताओं ने कर दिया।जिसके सब से दुखद परिणाम दिल्ली दंगे हैं।वह भी तब जब अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत यात्रा पर थे।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
बचपन में गाँधीजी का एक लेख पढ़ा था "उपवास" । स्वयं को कष्ट देकर अपनी बात मनवाने एक पवित्र तरीका
। आंदोलन और धरना इसी उपवास का एक बड़ा रूप हैं । चूँकि लोकतांत्रिक देश होने के कारण हमारे देश का संविधान हमें अपनी बात कहने की आजादी देता है इसलिए आंदोलन और धरना प्रदर्शन द्वारा नागरिक अपनी बात जिम्मेदारों के समक्ष रख उन्हें झुकाने का प्रयास करते हैं बशर्ते कि उससे सामान्य जन को कोई परेशानी न हो । आजादी से अब तक देश में विभिन्न लोगों और दलों द्वारा न जाने कितने आंदोलन और धरना प्रदर्शन हुए । मांग उचित होने उसे मानने की विवशता और अनुचित होने पर चर्चा द्वारा उसे समाप्त करने का प्रयास होता है । जहाँ तक शाहीनबाग की बात की यहाँ हर ओर से राजनीति हुई । दल दो भागों में बँट गए ।दिल्ली चुनाव का परिणाम प्रभावित करने के लिए विपक्ष जहाँ इस धरने के समर्थन में खड़ा दिखा वहीं दिल्ली के मुख्य मंत्री
ने इस आंदोलन से दूरी बना कर, इस पर प्रतिक्रिया न देकर स्वयं इससे बचते रहे ताकि वोट बैंक प्रभावित न हो ।
- वन्दना दुबे
धार - मध्यप्रदेश
शाहीन बाग में सी ए ए के नाम पर अनजान मुसलमानों और मुस्लिम महिलाओं को विरोधी दलों ने भ्रामक विश्लेषण कर के बहका कर धरने पर बैठा दिया। कुछ ही दिनों में कट्टर लोगों और सरकार के विरुद्ध किसी भी हद तक जा सकने वाले वामपंथियों ने इस धरने को अपने कब्जे में ले लिया।
कुछ राजनैतिक दलों ने इसका दिल्ली चुनाव में फायदा उठाने का प्रयास किया। इस उद्देश्य से कुछ राजनैतिक नेता भी इस आंदोलन का समर्थन करने शाहीन बाग पहुँचे। सी ए ए का विरोध भी किया। चुनाव समाप्त हुआ तो राजनैतिक लोगों का शाहीन बाग जाना कम हो गया। लम्बे समय तक सड़क बंद होने से बहुत लोग खिन्न थे। वाम और कट्टर मुस्लिमों ने मोदी और शाह को कभी भी पसंद नहीं किया था। उनका धैर्य समाप्त हुआ और दंगा भड़क गया।
मेरे विचार से इस दंगे के लिए सारे राजनैतिक दल, मीडिया और पाकिस्तान जिम्मेदार है। शाहीन बाग के धरने का दुरुपयोग हुआ ।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखण्ड
हर आदमी अपनी सोच के आधार पर जो भी घटनाएं होती है, उस घटना को जाहिर करता है। कहीं भी दंगे होते हैं मनुष्य की मानसिकता को टेंशन देने के लिए होता है ,जबकि कोई भी मनुष्य टेंशन पाल कर जीना नहीं चाहता। दिल्ली में जो भी दंगे हो रहे हैं उसका दो परिणाम है या तो साहिन बाग धरने का परिणाम या स्वयं की नासमझी का परिणाम। कोई भी नकारात्मक घटना होती है, तो लोगों को उससे और तिल का ताड़ करने का अवसर मिल जाता है। आज तक अमानवीय नकारात्मक सोच से की गई निर्णय सफल नहीं हुआ है लोग बाग कहते हैं कि दंगा फसाद करने से या भय आतंक फैलाने से हमको कामयाबी मिल जाएगी लेकिन ऐसा होता नहीं है। बल्कि निर्दोष लोगों को बेवजह प्रताड़ित होना पड़ता है कभी-कभी भयंकर दुखद घटनाएं घट़ जाती है ,जो समाज के लिए एक निंदा का विषय बन जाता है। कोई भी दंगे कहीं भी होती है तो उसका कोई ना कोई कारण होता है। अगर कारण वास्तव में न्यायिक है ,तो उसका चर्चा करके न्याय किया जा सकता है और कुछ ऐसी दंगे होते हैं जो ईष्या और कुंठा के कारण होते हैं ,जो इसका परिणाम सुखद नहीं होता है । दंगे फसाद नकारात्मक और अमान्यवीय तत्व है जो राष्ट्र के विकास और समाज के हित के लिए सही नहीं होते या बाधा होते हैं ,अतः मनुष्य को दंगे फसाद न कर ,आपस में मैत्रीपूर्ण भाव से समझौता हो जाएऔर दंगे की नौबत ना आए।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
देश की राजधानी दिल्ली में नागरिकता कायदे में हुए संशोधन के विरोध में हो रहे प्रदर्शन ने हिंसक स्वरूप धारण कर लिया है वैसे मोदी सरकार के CAA कायदे के समर्थन और विरोध दोनों के बीच घर्षण के सर्जन के कारण हिंसा का रूप ले लिया है पिछले 2 महीने से CAA के विरोध में चल रहे आंदोलन के दरमियां कितने असामाजिक तत्वों द्वारा हिंसा भड़काने के प्रयास के बाद भी इतनी स्थिति नहीं बिगड़ी थी हिंसा की शुरुआत पिछले रविवार से हुई थी शाहीन बाग की तरह जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के पास सीएए के विरोध में महिलाओं ने किया था और यह खबर फैलते ही सीएए के समर्थक सामने आ गए और सोमवार को डोनाल्ड ट्रंप अहमदाबाद रोड शो एवं दूसरे कार्यक्रम में थे तभी उत्तर पूर्व दिल्ली के भजनपुरा गोकुलपुरी और जाफराबाद में हिंसा ने विकराल रूप लिया और अमित शाह ने इमरजेंसी बैठक की !
दिल्ली के शाहीन बाग में शांतिपूर्वक पिछले 2 महीने से नागरिकता कानून को लेकर विरोध हो रहा था जबकि इस संदर्भ में जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी और जेएनयू में हिंसक परिस्थिति आई थी किंतु यह कैसा योगानुयोग है अमेरिका के राष्ट्रपति जिस समय भारत की मुलाकात में आए तभी हिंसा भड़की ! गृहमंत्रालय ने भी हिंसा के समय को लेकर सवाल किया है !देश को बदनाम करने की साजिश है! सी एस के विरोध और समर्थन में हो रहे प्रदर्शन और हिंसा के मामलों को लेकर केंद्र सरकार एवं दिल्ली सरकार एक दूसरे पर आक्षेप लगा रही है यह समझ नहीं आ रहा विरोधियों ने वही जगह प्रदर्शन के लिए क्यों चुनी जहां लोगों को जीवन अस्त-व्यस्त हो और समर्थकों ने भी वही जगह क्यों चुनी !पुलिस और राजकीय पक्ष को भड़काऊ भाषण करने वालों पर एक्शन लेना चाहिए !सीएरा को लेकर देश के नागरिक आपस में लड़े यह काफी दुखद है !सीएए कानून लागू करवा संसद ने न्याय अथवा उल्लंघन किया है यह सुप्रीम कोर्ट तय करेगी!सीएए के फैसले के आने तक यह मुद्दा राजनीति मुद्दा नहीं बनना चाहिए ! अंत में मैं कहूंगी विचारों का वैविध्य ही लोकशाही को जीवंत रखता है किसी भी तरह के विरोध और समर्थन के मुद्दे को आपस में बातचीत द्वारा शांति से समाधान किया जा सकता है लेकिन खास मै कहना चाहूंगी कि यह होना चाहिए सीएए लागू होना चाहिए ! हमारे ही देश में रहकर जो शांति से समय सर अजान सुनने के बावजूद विरोध करें तो उन्हें तो कड़ा दंड देना चाहिए दादागिरी दिखाने वालों को देश से खदेड़ना ही अच्छा है ! दया की जरूरत नहीं है वह कहते हैं ना ----दया को डाकण खा जाती है !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
जी हां, दिल्ली का शाहीन बाग में सीएए के खिलाफ 70 दिनों से लोग धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। पिछले दिनों इस धरने प्रदर्शन की अति हो गई जिसे दिल्ली दंगे का नाम से जानकर आत्मा कराह उठती है। दिल्ली का एक बड़ा हिस्सा सांप्रदायिक हिंसा की भेंट चढ़ाया गया ;जब हमारे शहर में शक्तिशाली राष्ट्राध्यक्ष ट्रंपजी आए हुए थे। देखा जाए तो प्रधानमंत्री जी द्वारा लिए गए कई महत्वपूर्ण फैसले धारा 370,, तीन तलाक बिल तथा राम मंदिर फैसले से एक वर्ग अपने वर्चस्व को आहत होता मान रहा था; जो कि ठीक नहीं है और अब इसी दबी चिंगारी के फलस्वरूप सीएए का पुरजोर विरोध कर संपूर्ण देश में दो संप्रदायों के मध्य नफरत की आग लगा दी। शाहीन बाग को प्रदर्शनकारियों ने धरने का स्थल चुना। प्रदर्शनकारियों, को विपक्षी पार्टियों, जामिया, एएमयू, जैसे शिक्षण संस्थानों के महत्वपूर्ण लोगों ने भी अपनी कुत्सित योजनाओं का राक्षसी रूप, दिल्ली दंगे के रूप में दिखा ही दिया।कुछ राजनीतिक पार्टियों के हस्तक्षेप के चलते पुलिस प्रशासन बिना कारगार अधिकार मिले मूकदर्शक एवं ठगा सा रह गया।फिर क्या??? सर्व विदित ही है दिल्ली( विश्व प्रसिद्ध कुरुक्षेत्र )की भयावहता; जो बेहद निंदनीय है । किसी भी वर्ग की नागरिकता पर आंच नहीं आएगी ऐसा बार आश्वासन दिए जाने के बाद भी एक वर्ग का मजहबी उन्माद जो मानवता का विरोधी है; रोकना आवश्यक है ।ऐसी धार्मिक आजादी किस काम की? जब सब धर्मों के लोगों के खून का रंग एक ही है और एक ही आश्रयस्थली जन्मभूमि, भारतभूमि पर यह दंगे ठीक नहीं।
अतः राष्ट्रव्यापी अनुशासन बनाए रखने के लिए कठोर नियम भी आवश्यक है; जिन का सख्ती से पालन होना चाहिए ;अन्यथा कड़े दंड का विधान होना चाहिए।
- डाॅ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " समय रहते शाहीन बाग के धरने का कोई ना कोई समधान निकाल जा सकता था । लोगों की जान बचाईं जा सकती है । फिर भी कमी कहीं ना कहीं अवश्य थी । अब तो सिर्फ पछताने के अतिरिक्त कुछ नहीं है । अतः जब तक शाहीन बाग का धरना समाप्त नहीं होगा । तब तक दिल्ली सुरक्षित नहीं हो सकती है।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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