दोस्तों ! फूलों की होली भी अच्छी होती है
दोस्तों ! होली तो होली है । फिर भी हर स्थिति में सुरक्षा जरूरी है । ऐसे में फूलों की होली हर दृष्टि से अच्छी होती है । कम से कम स्वास्थ्य एवं सुरक्षा अवश्य होती है । यहीं होली पर " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है। अब देखते हैं आये विचारों को : -
जी हाँ ,फूलो की होली भी अच्छी होती है ।फरजो आनंद, मस्ती ,उमंग रंगो की है वो किसी और.की नहीं।सभी चेहरे एक से रंगे,कोई भेदभाव नहीं। बड़ा, छोटा, स्त्री -पुरूष, बस रंगो में सराबोर ।प्रकृति की तरह खुशी के रंगों में और मदमस्त पवन में उल्हास घोलती। रंगों का अपना एक सौंदर्य है जो होली में बिखर जाता है चहू ओर। फूलों की होली तो मंदिरों में शोभयामान होती है ।आमजन तो रंगों से खिले , हसे ,मन का ताप धुले ।पानी की फुहारों से ।- ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
जी हाँ , फागुन महीने में कान्हा जी के संग राधा किशोरी जी की होली फूलों से ही खेलते थे । यह रंग - बिरंगी प्राकृतिक फूलों की होली सभी लोंगों को अच्छी लगती है । सतरंगी धरा आसमान फूलों के महक से महकने लगते हैं । होली में राधा रानी फूलों सोलह श्रृंगार करके नवयौवना दुल्हन सी लगे ।
प्रकृति भी रंग – बिरंगे कुसुमित फूलों , नव कोपोलों , हरियाली से नव श्रृंगार करती है ।धरा की गोद पर रंगों अंबार भर देती है । हमारी माँ टेसू के फूलों ,चुकन्दर को उबाल कर सूर्ख लाल रंग बनाया करती थी . हम बचपन में पिचकारी में इन्हीं हर्बल रंगों से होली खेलते थे ।सूखे लाल गुड़हल , गुलाब , गेंदा के फूलों से गुलाल बनाते थे । नीम के पत्तों से हरा रंग बनाते थी क्योंकि यह प्राकृतिक रंग हमारे लिए स्वास्थ्यवर्द्धक हैं. हमारे शरीर , त्वचा को सुरक्षित रखते हैं . जिनकी महक से बदन कई दिनों तक महकता था।अब हम रसायनिक रंगों से होली खेलते हैं .जो हमारी त्वचा के लिए हानिकारक है . हरे रंग में मरकरी सल्फेट होता है । जो कैंसर जैसी बीमारी को जन्म देता है । कोई भी साबुन ऐसा नहीं है । जो शरीर पर लगे रासायनिक रंगों को उतार दें । ये रंग से एलर्जी , जलन , बीमारियाँ को जन्म देता हैं . ऐसे में दोहों में कहती हूँ –
लाल - लाल टेसू झड़े , धरा हो गयी लाल ।
झूम - झूम मदमस्त हों , पवन हुयी खड़ताल.।
देने सुगंध का पता , चली बसंत बयार ।
पता प्रेम को दे गयी , महक अजब उपहार।।
फागुन फिर से आ गया , ले मदमस्त बयार।
टेसू , महुआ महकते , गजल , गीत के द्वार।
अमराई में झूमते , मधुर कोकिला बोल।
राग सुनाए फाग के , पुरवाई के ढोल।
हमारी माँ फूल गुलाब के इत्र को पानी में डालकर उस सुगंधित पानी को पिचकारी में भरके देती थी । हम उस महकते रंगीन गीले रंगों की होली खेलते थे ।
आज भी मथुरावासी फूलों की होली खेलते हैं । पूरा मथुरा कान्हामय हो जाता है । बच्चे , बड़े , युवा , युवती सभी मस्ती उमंग में झूम जाते हैं । सब एक रँग में रँग जाते हैं । जो है प्रेम का रंग । जिस में न ही ऊँच - नीच होती है ।न ही अमीर - गरीब होता है । सारी भेदभाव की खाई पट जाती है । एकता के रंग में पूरा भारत रँग जाता है ।
अंत में फूलों के रंगों , हर्बल गुलाल के संग होली की शुभकामनाएँ प्रेषित कर रही हूँ।होली के रंगों से जनमानस का जीवन प्रेम रस से सराबोर रहे ।
होली पर न कोई दुश्मन,
न कोई होता है छोटा ,
मिल जाते मन से मन ,
न कोई लगे है खोटा ।
- डा. मंजु गुप्ता
मुंबई- महाराष्ट्र
हंड्रेड परसेंट सच है अगर हम फूलों से होली खेले तो इससे हमारी त्वचा को भी कोई नुकसान नहीं होगा और हम सब प्रकृति के कलरों से होली खेलकर उमंग और भाईचारे का त्योहार मनाए सकते हैं भगवान कृष्ण राधा वृंदावन में फूलों की होली होती है तरह तरह के फूल के गुलाब के। हमारा मन भी प्रसन्न रहता है और हमें किसी तरह से नुस्कान का खतरा भी नहीं रहता आजकल भारत में रोना वायरस का भी सुनने को मिल रहा है हम अपने पुराने पारंपरिक तरीकों से भी होली को मना सकते हैं पूरा विश्व हमारे नमस्कार और हमारी संस्कृति को मान रहा है तो हम क्यों पाश्चात्य सभ्यता को अपनाते चल रहे हैं बाहरी कलर रंग इधर-उधर दिखावे से तो फूलों की होली बहुत अच्छी बात है।
होरी खेले गिरधारी
मुरली चंग बाजत डफ न्यारो, संग जुवति ब्रजनारी।
केसर चंदन तुम मोहन अपने हाथ बिहारी।।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
जी हां अगर फूलों से होली खेला जाए तो यह अच्छी ही नहीं बहुत अच्छी होगी हमारी परंपरा में फूल को सुख का प्रतीक माना जाता है जिस तरह हम रंग बिरंग रंगों से होली खेलते हैं और उसके छटा देख कर उत्साहित होते हैं यह तो ठीक बात है लेकिन मूलतः देखा जाए तो रंग बिरंगी फूलों से भी होली खेला जाए तो उतना ही आनंद होगा यह सब मानसिकता के ऊपर है आधुनिक युग में रंगो को अधिक महत्व देते हैं जिसमें हमारे शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले केमिकल डला रहता है यह केमिकल डला हुआ गुलाल कभी-कभी हमें नुकसान भी पहुंचाता है लेकिन फूल हमें नुकसान नहीं पहुंचाती और जब फूल से होली खेलने के बाद जो फूल भूमि पर गिरता है वह फूल बाद में उसका अपशिष्ट भौतिक रासायनिक क्रिया करके खाद बन जाता है जो मिट्टी का पोषक तत्व होता है हम खुशी जाहिर करते हुए रंग बिरंगी फूलों से होली भी खेल सकते हैं और इसका अपशिष्ट से हाथ के रूप में मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में मदद भी कर सकते हैं मिट्टी की उर्वरा शक्ति से पौधे विकसित होते हैं पौधे से हम अच्छी मात्रा में फूल पैदा कर सकते हैं इस तरह से होली खेलने से हमारे जीवन के लिए उपयोगी और सार्थक होगा फूल के परागकण को कीट पतंग पोषण के रूप में ग्रहण करते हैं इसलिए कहा जा सकता है कि फूल से कीट पतंग को भी भोजन मिल पाएगा और मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी तथा फूल से अगर होली खेलेंगे तो किसी भी प्रकार की हमें परेशानी नहीं होगी अगर हम फूल से होली खेलते हैं तो हमें फूल की आवश्यकता होगी इस फूल को हम उगा कर प्राप्त कर सकेंगे जिससे हमारी घर की आंगन की शोभा बढ जाएगी और पर्यावरण अभी अच्छा रहेगा इस तरह से हमें आधुनिक रंग बिरंगी दुनिया को कैसे वास्तविक दुनिया में बदले इसकी सोच हम बड़ों की जिम्मेदारी है ताकि आने वाली पीढ़ी को हम कैसे संस्कारित शिक्षा देकर हमारी दुनिया को एक सुंदर और स्वच्छ दुनिया बना पाए इसलिए कहा जा सकता है कि फूलों की होली भी अच्छी होती है या फूलों की होली भी अच्छी होगी अतः हम संपूर्ण मानव जाति को रंगीन होली के बजाय रंगीन फूलों की होली खेला जाए।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
हां फूलों की होली तो अच्छी ही होती है! आजकल जिस रंग से हम होली खेलते हैं वह मिलावट वाली होती है जिससे त्वचा और आंखों को नुकसान पहुंचता है !
(आज हम इस विषय पर क्यों सोचने लगे ? चूंकि मिलावटी रंग से तो आंखों और त्वचा को नुकसान होता है साथ ही कोरोनावायरस भी एक कारण है )
होली हम क्यों खेलते हैं परंपरा के अनुसार और पौराणिक गाथा बताती है कि बुराई से अच्छाई की जीत किंतु आज वैमनस्यता एक दूसरे के प्रति इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि हर कोई किसी भी बहाने नुकसान पहुंचाकर बदला लेना चाहता है और इस रंग भरी होली में तो उसे पूरा मौका मिलता है अतः केमिकल मिले रंगों से नुकसान ही होता है ! रंग जीवन में खुशियों के आने का संकेत है !बेरंगी जिंदगी भी कोई जिंदगी है वर्तमान में इन रंगों से होती हानि को देखते हुए हमारा रुख ऑर्गेनिक रंगों की ओर खींचा है और क्यों ना हो पहले फूलों से ही तो होली के रंग बनते थे टेसू के फूल फागुन में खूब होते हैं जिससे केसरी रंग बनता है,अमलतास ,गेंदा,सेवंती , हल्दी से पीला रंग, चुकंदर से गुलाबी रंग गुलाब से लाल रंग , नीले जासवंत और जामुन से नीला रंग, गुलमोहर के पत्ते से हरा रंग आदि आदि से रंग बना हम क्यों न खेले इससे कोई नुकसान नहीं पहुंचता अपितु फूलों के रस से उपजाऊ खाद तैयार हो जाती है ,फूलों के बीज गिरने से नए पौधों का जन्म होता है तो हम फूलों से और फूलों से बने रंगों से क्यों न खेलें !
हम कहते हैं ना कि हमारा जीवन फूलों की तरह महकता रहे यानी कि फूलों की महक ही है जो हमें बिना नुकसान पहुंचाए हमारी जिंदगी को भी सिखाती है कि खुद महको और फिजा में भी खुशबु फैलाओ अर्थात सुंदर भावनाओं के साथ जियो और औरों को जीने दो !
आज वृंदावन में जो भगवान कृष्ण राधा को फूल चढ़ाए जाते हैं हार माला फूलों से मंदिर सजाना सभी फूलों का उपयोग खाद बनाने ,गुलाल बनाने ,अन्य विभिन्न प्रकार के रंग बनाने में उपयोग किया जाता है और यह सभी कार्य वहां आश्रय सदन में रहने वाली आश्रित महिलाएं बनाती है जिससे उनका खर्च निकलता है कितनी अच्छी बात है फूलों से सजे उपवन हमारी जिंदगी को निराशा से दूर करते हैं और हमारी जिंदगी को आशावान बनाती हुई दुनिया में सभी के लिए अच्छी भावनाएं और अच्छे कार्य कर खुद की तरह महकने की प्रेरणा देती है!
अतः अंत में कहूंगी निःस्वार्थ की भावना लिए फूल हमें प्रेरणा देते हैं एवं अपनी सुवास छोटे बड़ों का भेदभाव ना कर सभी तक समान रूप से पहुंचाते हैं तो हम क्यों नहीं ?जाति-भेद भाव और द्वेष भुला हमें यह फूल प्रेम का पाठ पढ़ाते हैं !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
होली वास्तव में फूलों से ही होनी चाहिए । प्रकृति के रंगों से जब व्यक्ति जुड़ता है तो तन- मन दोनों हर्षित हो जाते हैं । टेसू , पलास के फूलों के रंग बना लें या जो भी पुष्प सहजता से उपलब्ध हों उनकी पंखुड़ियों से होली खेलने से न तो त्वचा खराब होगी न ही पर्यावरण ।
समय के साथ - साथ रासायनिक पदार्थ इससे जुड़ते चले गये ; जिनसे आँखों में, शरीर में, बालों में जलन होती है । अब लोग जागरूक हो रहे हैं वे पुरानी परम्पराओं को पुनः अपना रहे हैं । इस बार कारोना वायरस के चलते लोगों ने गीले रंगों से दूरी बनायी है व फूलों और गुलाल की ओर उनका ध्यान गया है ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
जी हाँ फ़ूलो से बहुत सुंदर होली खेलते है । आज नहीं पहले भी खेलते थे ! जब पेड़ों की शाखों पर बौर खिलने लगे, सर्द मौसम के बाद हवा का रुख मध्यम हो जाए और गर्म आहट हो तो फाल्गुन मास आता है। पौधों पर फूल खिलते हैं। प्र्रकृति रंगबिरंगे परिधान पहनती है। धरती पर हरियल चादर बिछ जाती है। सुबह मादक होने लगती है तो प्रकृति की सभी ऋतुओं में सबसे ज्यादा धनी और प्रिय बसंत ऋतु का आगमन होता है और उसके साथ ही होली का त्योहार शुरू हो जाता है। प्रकृति के रंग ओढ़ते ही रंग और उल्लास का पर्व होली मनाया जाता है। पूरी प्रकृति से लेकर भौतिक समारोहों तक प्रकृति के सात रंगों का विशेष महत्त्व है। इनमें लाल, हरा, पीला, नीला, गुलाबी, नारंगी, बैंगनी आदि शामिल हैं। इन सभी रंगों का अलग-अलग महत्त्व है। इन रंगों को खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है तो हरियाली, प्रेम, मादकता, अहसास, भावनाओं और समर्पण के लिए भी जाना जाता है। बृज में प्रेम का एक ही रंग माना जाता है और वह है श्याम रंग। बृज में श्याम रंग की बिंदी, काजल, लहंगा और श्याम की कारी कांवर का बड़ा महत्त्व है। श्याम का रंग की सर्वोत्तम रंग माना जाता है। श्याम रंग में डूबा यानि सब रंगों से पार।
पहले होता था फूलों का प्रयोग
रंग और अबीर के लिए पहले फूलों का प्रयोग होता था। कुछ जगहों पर विभिन्न रंगों की मिट्टी को भी रंगों के लिए इस्तेमाल किया जाता था। लताओं और पेड़ों के फूलों व पत्तों को पानी में डाल कर रंग तैयार किया जाता था। पलाश और टेसू के फूल बहुत गहरे रंग वाले होते हैं तो इन्हें पानी में उबाल कर रंग तैयार किया जाता था। चुकंदर आदि सब्जियों से भी रंग बनता था। लेकिन अब कृत्रिम रूप से बनाए जाने वाले रंगों और अबीर का चलन है।
सेहत के लिए फायदेमंद
होली खेलना मानसिक खुशहाली का त्योहार तो है ही, शारीरिक सुखों की खान भी है। पुराने जमाने में पत्तियों, फूलों और मिट्टियों के रंग को मिला कर रंग बनाए जाते थे। विभिन्न जड़ी-बूटियों से उबाल कर निकला हुआ अर्क जब हमारे शरीर पर पड़ता है तो औषधीय गुण प्राप्त होते हैं। इससे निरोगी रहने के साथ ही रोगों से लड़ने की क्षमता विकसित हो जाती है। रंगों की होली न खेल फूलों की होली खेलना काफ़ी फ़ायदा मंद
रहता है
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
फूलों की होली अच्छी है; क्योंकि त्वचा को विकृत होने से, वास्तविक रंगों की आड़ में पेंट व कृत्रिम गाढ़े रंगों के दुष्प्रभाव से, साथ ही कुछ रंग पुते झगड़ालू चेहरों की नकारात्मकता से बचने के लिए ,वास्तव में फूलों की होली का महत्व दीख पड़ रहा है पर सारे जहां के फूल कम पड़ जाएंगे। पौधों का सौंदर्य तो कई दिनों तक टिके रहने से बना रहता है, वह जाता रहेगा।
भावों के रंगों की पिचकारी की धार, रंग-बिरंगे गुलालो का मनमोहक हर्षोल्लासमय वातावरण, बच्चों की रंग, गुलाल के लिए छीना झपटी, पानी व रंग भरे गुब्बारों की अठखेलियां ,रंग बचाव के लिए होली की टोपियां, रंग पुते चेहरे, भीगे भीगे वस्त्रों को सुखाते बच्चों एवं बड़ों के हंसते चेहरे और दूसरे को भिगोने की भावना किसी प्रतियोगिता से कम नहीं लगती।
ठीक है रंगों की होली को विकृत न बनाया जाए इसके लिए टेसू के रंगों के साथ प्राकृतिक साधारण मन को भाने वाले रंगों का प्रयोग करें; तो अच्छा रहता है।
ऐसे ही फूलों की होली अच्छी तो है पर सारा देश जब फूलों की होली से खेलेगा तो फिर इतने भूल पाना वास्तविकता से परे होगा। सीमाओं में रहकर लाल, हरे, पीले, गुलाबी, नारंगी रंग का प्रयोग कर उमंग ,उत्साह, खुशी ,मधुरता का माहौल बनाए रखें ।संभव हो तो प्राकृतिक बिना मिलावट के सूखे गुलाल को भी लगाकर, उड़ाकर होली का आनंद लें; क्योंकि फूलों का सौंदर्य उनको कुचलने में नहीं.। होली मनाते सदियां बीत गई ;डरना क्या ?और यदा-कदा विकृति दीख पड़ती है तो उसे समझा कर दूर किया जा सकता है ।
अतः टेसू के रंग की राधा और कृष्ण की होली कौन भूल सकता है। वहां भी कीचड़ की होली को हटाने के लिए ही फूलों की होली शुरू हुई है, ठीक है। सभी को मेरी ओर से रंग बिरंगी होली की हार्दिक शुभकामनाएं ।
- डाॅ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
फूल के साथ होली ! यह बहुत हीं मनमोहक होगा । लेकिन फिर इसे रंगों का त्योहार कैसे कहेंगे ? फूलों की बौछार तो कभी भी की जा सकती है। परंतु रंग का होना महत्वपूर्ण है । कहा जाता है कि मौसम के बदलाव से बचने के लिए रंग बहुत जरूरी है। त्वचा को सुरक्षा प्रदान करने में भी रंग मदद करता है। अगर प्राकृतिक पदार्थों से बने रंगों का इस्तेमाल किया जाए तो यह कई तरह से हमारी रक्षा करता है।
फूलों के साथ की होली का आनंद उनकी कोमलता से है। उसमें कपड़ों व शरीर पर लगने वाले रंग की परेशानी नहीं होती है। घर में गंदगी नहीं फैलती है। लेकिन बेचारे फूलों का सोचें तो? कितनी बरबादी और कितना तिरस्कार होता है ।
'पुष्प की अभिलाषा' क्या थी? बस उस इच्छा को याद कर उनका मानवीकरण किया जाए तो दर्द समझा जा सकता है ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
फूलों की होली अच्छी ही नहीं बहुत अच्छी होती है ।कुछ लोगों द्वारा अभी भी देश में फूलों की होली खेली जाती है ।बाबा रामदेव भी फूलों की होली खेलते हैं ।मथुरा काशी अयोध्या हरिद्वार पुरी उज्जैन तिरुपति आदि यदि आरम्भ हो तो आने वाले समय में रंगों के साथ फूलों की होली भी दिखेगी ।रंगों में भी प्राकृतिक सूखे रंगों तक ठीक है पर होली को विकृत करने वाली तन मन को हानि पहुंचाने वाली चीजें बरदाश्त नहीं की जा सकतीं ।उनका विरोध होना ही चाहिए ।सकारात्मकता के लिये पहल भी हो
- शशांक मिश्र भारती
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
रंग-बिरंगे फूलों की पंखुड़ियां और उनकी भीनी-भीनी सुवास से तन-मन दोनों पुलकित हो जाते हैं । ऐसे में यदि इनसे होली खेली जाए प्रकृति भी आनंदित हो उठती है । क्योंकि इस मौसम में फूल भी खूब खिलते हैं । रंगों में मिलावट तो आम बात है जिससे त्वचा संबंधी समस्याएं हो सकती है जिसके इलाज में समय और पैसा खर्च होता है । शारीरिक और मानसिक परेशानियां झेलनी पड़ती सो अलग । फिर इनको साफ करने, घर की, कपड़ों आदि की धुलाई में पानी अधिक मात्रा में व्यर्थ खर्च होता है । वस्त्र भी बेकार हो जाते हैं । गलत अथवा बेकार रंगों का उपयोग कई बार आपसी झगड़े व मन-मुटाव का कारण भी बन जाता है । लेकिन फूलों से होली खेलने के फायदे ही फायदे हैं । उपरोक्त परेशानियों से बचाव तो होता ही है साथ ही तन-मन और घर-आंगन महक उठते हैं ।
- बसन्ती पंवार
जोधपुर - राजस्थान
आज के समय में यह सबसे उत्तम और सराहनीय तरीका है होली मनाने का ।आज के इस मिलावटी युग में अब रंग बनाने में फूलों के रंग से नहीं कैमिकल इस्तेमाल किया जाता है फलत: ऐसे रंग लगने से त्वचा का भारी नुक़सान होता है । इसलिए ऐसे रंगों से हम सभी बचना चाहतें हैं ।दूसरी ओर आज-कल पानी की कमी हो रही है तो होली में रंग छुड़ाने में बहुत सारा पानी जाया होगा , इसलिए भी हम सब यदि फूलों वाली होली मनाना प्रारम्भ कर दें तो यह अति सराहनीय और समयोचित बहुत सही कदम होगा।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
जो हुआ वह अच्छा हुआ। जो हो रहा है।वह अच्छा हो रहा है और जो होगा वह भी अच्छा ही होगा।यह गीता का ज्ञान है।जिसको ना मानने का साहस बड़े-बड़े विद्वानों में नहीं है।इसलिए सब कुछ अच्छा ही होता है।बस समझने और समझाने की आवश्यकता होती है।फूलों से होली खेलने के लिए सर्वप्रथम ढेर सारे फूलों की आवश्यकता होती है।जिन्हें खरीदने के लिए समस्त भारतीय सक्षम नहीं हैं।फिर कैसे खेलेंगे फूलों से होली?
सत्य तो यह है कि प्राकृतिक रंगों से होली खेलने का आनंद तभी संभव होता है।जब मन शांत,तृप्त और प्रसन्न होता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
" मेरी दृष्टि में " आज कल के रंग त्वचा को खराब करते हैं । जबकि फूल किसी भी तरह से स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं है और यह त्यौहार प्राकृतिक की ओर ले जाता है । इंसान को प्राकृतिक का प्रेमी बनता है यानि प्राकृतिक की आवश्यकता को महसूस करवाता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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