निर्भया केस मेंं अपराधी बडे या वकील बड़ा या न्याय बड़ा ?

दिल्ली में पैरामेडिकल छात्रा निर्भया से 16 दिसंबर 2012 को 6 लोगों ने चलती बस में दरिदंगी की गई थी । गंभीर हालत के कारण 26 दिसम्बर को सिंगापुर में इलाज के दौरान मौत हो गई । घटना के नौ महीने के बाद सैक्शन कोर्ट ने पांच दोषियों राम सिंह , पवन गुप्ता , अक्षय सिंह , विनय शर्मा , मुकेश को फांसी की सजा सुनाई गई । मार्च 2014 को हाईकोर्ट और मई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा बरकरार रखी । ट्रायल के दौरान मुख्य दोषी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली । 22 जनवरी , एक फरवरी , तीन मार्च  को फांसी का डेथ वारंट के बाद भी सजा नहीं दी जा सकी । फिलहाल 20 मार्च को सुबह 5: 30 बजें तिहाड़ जेल में चारों दोषियों को फांसी देना का डेथ वारंट जारी हुआ है ।
निर्भया केस से लोगों को भारतीय न्याय प्रणाली की विस्तृत जानकारी मिल गई है । किस तरह से अपराधी सजा से बचने के लिए तरह तरह हथकंडे अपना कर कानून का इस्तेमाल किया जाता है ।  यही " आज की चर्चा " को प्रमुख विषय है । अब आये विचारों पर नज़र डालते हैं : -
   वास्तव में न्याय सबसे बड़ा है| लेकिन न्याय होना या मिलना दोनों ही दुर्लभ हैं| न्यायालय में न्याय नहीं, फैंसला यानि निर्णय सुनाया जाता है| निर्णय वादी-प्रतिवादी की जाति-धर्म, रसूख, पहुँच व रौब-दाब से प्रभावित होता है| बहुत निर्भयाओं को न्याय प्राप्त होना तो दूर की बात है, न्यायालय तक पहुँचना ही नहीं होता| सत्ता के साथ साज-बाज लोगों के मामले तो निरस्त तक हो जाते हैं| निर्भया के मामले में मौत की सजा होने के बावजूद दोषियों को अंजाम तक नहीं पहुचाया गया| यह वर्तमान की न्याय प्रणाली पर प्रश्नचिन्ह है| परिस्थितियां भले ही कितनी ही विकट क्यों न हों| सबसे बड़ा न्याय था, न्याय है, न्याय ही रहेगा| भले न्याय मिले या न मिले|
-विनोद सिल्ला
टोहाना - हरियाणा
कोट कचहरी और पुलिस के मामले भगवान बचाए अगर यह लोग हमारे दोस्त बनकर मिलने भी आते हैं तो समाज में सभी आसपास के पड़ोसी सोचते हैं, सोचते हैं कि क्या अपराध किया है।
आजकल बच्चों में संस्कार की कमी हो गई है 
निर्भया कांड में दोषियों को कोर्ट कचहरी के फैसले जल्दी नआने के कारण अभी तक फांसी की सजा नहीं दी गई है ऐसे ही कांड हैदराबाद में हुआ था वहां पर वहां की पुलिस ने उनका एनकाउंटर कर दिया था हमारा कानून बदला है इसीलिए अपराधी फायदा उठाते हैं और अपराध को बढ़ावा मिलता है हमारे संविधान में कमियां है मुजरिम को आजादी देता है। वकील भी मोटी मोटी फीस लेकर अधिकतर सही गलत का फैसला अपराध को बढ़ावा देते हैं। आजकल स्कूलों और बच्चे के साथ गलत क्या क्या गलत होता है। निर्भया कांड और जाने कितने कांड की खबरें अखबारों में आती रहती है। हम अपने बच्चों को घर से बाहर नौकरी भेजने में डरते हैं कोट में फैसले जल्दी होने चाहिए अपराधियों को तुरंत एनकाउंटर कर देना चाहिए फांसी की सजा देनी चाहिए दायर याचिका की अपील करने की भी नहीं देनी चाहिए 24 घंटे के अंदर फैसला होना चाहिए।
-  प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश 
निर्भया केस में न्यायिक प्रणाली और उसमें दांव पेंच फसाते वकील,,, दोनों ही बड़े साबित हुए ।इतना किलियर कट केस, प्रमाणित होने के बावजूद  वर्षों से निरंतर निर्भया की मां ,बेटी को न्याय दिलाने के लिए लड़ रही है । उच्चतम न्यायालय के फ़ैसले को भी वकील ने अपने दांव-पेंच लगा कर काफी  आजमाइश की फलत: फैसला होने के बावजूद मुजरिमों को राहत मिलती गयी ।लगभग सारा देश ऐसे जघन्य अपराध करने वालों के खिलाफ था फिर भी केस को तारीख़ पे तारीख मिलती गयी ।यह हमारे देश की लचर सदियों पुरानी न्याय व्यवस्था की ढुलमुल रवैए को दर्शाती है । कभी लगता है कि अगर ऐसे अपराधियों का केस कोइ वकील नहीं लड़ता तो क्या समाज में  अपराधियों में अपराध करने के पहले एक भय की लहर नहीं  होती ?? इतने बड़े जघन्य अपराध करने वालों पर  कैसी रहम और दया याचिका? क्या इन्होने तनिक भी दया की थी उस मासूम निर्भया पर ? इतनी निर्ममता से दुष्कर्म और अमानवीय प्रहार कर मरने को चलती बस से फेंक देना ।ऐसी  मानसिकता रखने वालों को वकील साहब "दया याचिका" की सिफारिश करतें हैं । निर्दोष को सज़ा ना हो जाए,ऐसा कहा गया है, लेकिन ऐसे जानवरों के लिए कैसी दया याचिका जो एक दो सुनवाई में हीं लगभग प्रमाणित हो चुका था कि ये सब उस मासूम के गुनहगार है । मुझे आज अपने इस पुराने और लचर कानूनी कार्रवाई से बहुत खेद है ।शायद इसीलिए हैदराबाद वाली घटना को ऐसा मौका हीं नहीं दिया गया और तुरंत अपराधियों का इनकाउंटर कर जड़ से ही समाप्त कर दिया गया । इसलिए ऐसे केसों में हमें अन्य  देशों में जो त्वरित कार्रवाई होती है,,वैसे नियम और कानून बनाने चाहिए । मुजरिम रोज नए _ नए तरीके अपराध करने में अपनाएं जा रहें हैं,,और बेख़ौफ़ अंजाम भी दिए जा रहे हैं,, फिर अब हमें भी न्यायालय,वकील सबको सिस्टम में सुधार लाना होगा ताकि,, हमारे न्यायालय की शाख बरकरार रहे और हम सब समाज में व्याप्त हो रहे ऐसे अनगिनत पनप रहे अपराधों से भयमुक्त वातावरण में जीवन यापन कर सकें ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
बहुत  ही समसामयिक और महत्वपूर्ण प्रश्न । 
*"सौ अपराधी छूट जाएँ पर एक बेगुनाह व्यक्ति दंडित न हो"* शायद इसलिए भारतीय न्याय प्रणाली में पंचायत, न्यायालय, उच्च न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय और अंत में राष्ट्रपति तक अपना पक्ष रखने की व्यवस्था है । 
अभी-अभी निर्भया केस में यह देखने में आया कि तीन बार की फांसी टल जाने के बाद, 20 मार्च की फांसी टालने के लिए वकील एपी सिंह ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ( ICJ) का दरवाजा खटखटाया,  कि कुछ एनआरआई एनजीओ इस केस पर नजर बनाए हुए थे और उन्होंने ही इस केस को ICJ में  ले जाने हेतु सारी जानकारी माँगी है। प्रश्न यह है कि अपराधियों का अपराध सिद्ध हो जाने और उन्हें तीन बार सजा मुकर्रर हो जाने के बाद भी पुनः न्यायिक प्रक्रिया से केस गुजारने के पीछे क्या वजह है ? मौटे तोर पर लोगों को लगता है अपराधी बड़े हैं । किन्तु यहाँ  अपराधी बस ड्राइवर कंडक्टर जैसे एक छोटे आर्थिक वर्ग से ताल्लुक रखते है ; उन हाई प्रोफाइल लोगों में से नहीं जो अपनी ताकत के बल पर जजों को खरीद कर या धमका कर कर न्यायालय के फैसले अपने पक्ष में करवा लें । तो निश्चित ही अपराधी तो बड़े नहीं । हाँ देखने वाली बात यह है कि किसी केस को लड़ने के लिए बेहिसाब धन की जरूरत होती है, तो इतने लंबे चले केस में उन साधारण आर्थिक परिस्थिति वालों ने धन की व्यवस्था कैसे की ? क्या इनके पीछे कोई और भी अदृश्य ताकतवर व्यक्ति है ,जो इन्हें धन मुहैया करा रहा है ?
जहाँ तक वकील की बात है तो कहा जा सकता है कि कानून का अध्ययन और अपनी तार्किक योग्यता के बल पर वह न्यायाधीशों को अपनी बात कन्वेंस कराने में हर बार सफल हो रहा है । वह जो भी तर्क दे रहा है, कानून के दायरे में हैं इसलिए उसकी चतुराई पर खीज जरुर व्यक्त की जा सकती है ; पर आरोपियों का वकील है सिर्फ इसलिए उसे गलत नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह तो उसका प्रोफेशन है। हाँ निर्भया केस, हम सब के दिल के बहुत करीब होने से हमारे मन में उसके प्रति सहानुभूति और अपराधियों के प्रति आक्रोश है, किंतु नैतिकता को आधार बता कर वकील को गलत नहीं माना जा सकता, वह अपने पेशे के दायरे में  है ।
जैसा कि मैने शुरू में  कहा कि "सौ अपराधी छूट जाएँ पर एक बेगुनाह को सजा न हो" इसलिए भारतीय न्याय व्यवस्था में अपील की व्यवस्था है। शायद इसी का लाभ लेकर केस को लंबा चलाया जाता है जिससे वकील को तो मोटी फीस मिल ही जाती है ; न्याय भी प्रभावित होता है । 
देश का दुर्भाग्य है कि जजों की कम संख्या के साथ ही जजों के भ्रष्टाचार जिसके कई उदाहरण अब हमारे  सामने हैं; के कारण न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित हो रही है वर्ना ऐसे मुकदमों को फास्ट ट्रैकमें चला कर शीघ्र फैसला दिया जा सकता है । 
इन सबके बाद भी न्याय प्रणाली पर विश्वास करते हुए अंत में यह कहा जा सकता है कि न्याय ही सबसे बड़ा है ।
देर से ही सही, पर न्याय मिलेगा जरूर । और यही हमारे विश्वास का आधार है ।
- वंदना दुबे
धार - मध्यप्रदेश
देर से मिला हुआ न्याय - - न्याय नहीं रह जाता। इसलिए निर्भया के केस में न्याय तो रह ही नहीं गया है उसे छोटा बड़ा क्या कहें?? रही बात वकील की तो काले कोट तो छोर से अछोर तक सर से दिल तक सिर्फ क्लाईंट के वफादार होते हैं। उनका तो काम ही होता है अपने क्लाईंट को बचाने के लिए तारीख पर तारीख बढाएं। वे अपना कार्य शुरू रखते हैं। उलझन बनाए रखना सुलझने नहीं देना इसी की फीस किस्तों में मिलती रहती है। इसलिए वे क्या हैं इसका निर्णय तो हर किसी की अपनी अलग सोच है परंतु ये तय है कि बड़े तो वे नहीं हैं। और रही बात दरिंदों अपराधियों की तो वे निकृष्ट जीव तो इंसान कहलाने के भी योग्य नहीं हैं लेकिन हमारे लोकतंत्र की लचर न्याय व्यवस्था उन्हें साथ देकर अवसर दे रही है कि वे नित नये बहानों का सहारा लेकर अपने जीवन को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। जरूरत है कि कानून व्यवस्था की धाराओं में तत्काल प्रभाव से बदलाव किए जाएं और उन्हें कानून के साथ खिलवाड़ का अवसर ना दिया जाए।
     मुमकिन है कि कुछ लोग दरिंदे ही बने रहते हैं हैं। 
इंसानों की दुनिया में हैवानों की भी चलती है।।
- हेमलता मिश्र "मानवी" 
नागपुर - महाराष्ट्र
निर्भया केस चूँकि पहला इतना जघन्य वारदात थी कि सजा देने में न्यायालय ने सभी पहलुओं पर ध्यान दिया ।एक नई व्यवस्था कायम करनी थी । अपराध की दुनिया में घुस कर सजा देनी थी ।तो एहतियात बरतना जरूरी था । इसलिये सर्वोच्च न्यायालय होते हुए भी बार-बार सजा को टालना पड़ा।  इसलिए न्याय सबसे ऊँचा है। आज सीतामढ़ी (बिहार) में भी न्यायालय ने सात दुष्कर्मियों को फाँसी की सजा दी है। आगे की राह आसान करने के लिए किसी को तो कांटे चुनने पड़ेंगे। यहाँ मैं जजों के धैर्य की सराहना करूँगी । जिस तरह धैर्यपूर्वक उन्होंने निर्णय को बदला और फिर से उसी किनारे अपराधियों को ला खड़ा किया अत्यंत सराहनीय है। क्या उन्हें गुस्सा नहीं आया होगा? क्या उन्हें बेबसी का मलाल नहीं हुआ होगा? लेकिन शांतिपूर्वक वे कार्यवाही में हिस्सा लेते रहे और अंतिम मुकाम पर पहुंचाया। जहाँ तक वकीलों की बात है तो उन्होंने भी अपनी सारी मेहनत झोंक दी । उनमें भी नफरत भरी होगी। लेकिन उनका पेशा ही ऐसा है। फिर भी नहीं बचा पाए। इन सभी प्रक्रिया में यह तो पता चल ही गया कि इस तरह के केस में क्या-क्या प्रावधान हैं और उनका तोड़ क्या है? यह भी साबित हुआ कि न्याय के आगे कोई बाधा मायने नहीं रखती।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
 इसमें कोई संदेह नहीं कि आज अपराधों की संख्या निरंतर बढ़ रही है और यह समस्या विचारणीय है! सवाल यह नहीं है कि अपराधी बड़े या वकील बड़ा या न्याय बड़ा--प्रथम सभी से आई समस्या का समय के अनुसार उचित उपचार जरूरी है ! निर्भया केस में अपराधियों को सजा मिली नहीं अतः 2019 में हैदराबाद 
 में वही अपराध दोहराया गया आखिर क्यों ?
 छोटे से छोटा अपराध क्यों ना हो सजा तुरंत मिलनी चाहिए वरना बेखौफ या अपराध निर्भया जैसे जघन्य अपराध के रूप में फलने लगते हैं और हुआ भी यही निर्भया केस को न्याय मिलने में देर क्या हुई ऐसा ही अपराध की पुनरावृत्ति र्हैदराबाद में हुई ! यहां पुलिस ने एनकाउंटर कर न्याय किया किंतु उन अपराधियों का क्या जो वकील की कृपा से न्यायालय से अपनी जान की गुहार लगा और बेल लेकर खुले सांड की तरह फिर रहे हैं ? वकील अपने पेशे के कारण किसी भी पक्ष को बचाकर नामी वकील बनता है तगड़ी फीस लेकर ,न्याय प्रणाली संविधान के नियमों से बंधा है ,यानी कि संविधान के नियमों का पालन करता है अपराधी छूट जाए किंतु एक निरपराध दंडित नहीं होना चाहिए चाहे अपराधी सांड के जैसे पुनः अपराध क्यों न करता हो! इसमें न्याय प्रणाली क्या कर सकती है उसके अपने हाथ बंधे हैं !हमारे यहां किसी पीड़ित को न्याय मिलते मिलते चप्पल घिस जाती है पर न्याय नहीं मिलता बल्कि पूरा परिवार समय ,धन ,कामकाज के ना होने से बर्बाद हो जाता है और अपराधी तो मौज करता है किंतु पीड़ित स्वयं बर्बाद हो जाता है और यही निर्भया केस में हो रहा है !
 ताजी ताजी घटना में तो लोग आक्रोश दिखाते हैं ,कैंडल मार्च ,नारी लगाना, विद्रोह करना किंतु दुर्घटना पुरानी होते ही चाहे उसे न्याय न मिला हो चुप कर जाते हैं सभी को जीवन में अपने काम होते हैं और फिर पुनः वही बलात्कार की घटना इसमें मैं यही कहूंगी कि यदि न्याय प्रणाली में सुधार हो संविधान के नियमों में बदलाव का होना जरूरी है तो अपराध कैसे बड़ा हो सकता है?  वकीलों की दलील भी अपने क्लाइंट के बचाव ही करेगी अतः जो जीतेगा उसके लिए तो उसका वकील ही भगवान! 
अंत में कहूंगी अपराधी को कोई सुविधा नहीं मिलनी चाहिए निर्भया केस के अपराधियों को सजा ए मौत होना चाहिए ताकि अपराधी अपराध करने के पहले सजा याद करें अन्य अपराध में मैं चाहूंगी हमारा संविधान सजा-ए-मौत का कानून प्रदान करें तभी तुरंत न्याय मिलेगा अपराध कम होंगे और न्याय बड़ा होगा!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र 
निर्भया केस में न्याय पक्ष बड़ा है। हमारी न्यायिक प्रक्रिया लंबे समय तक भले ही अपराधी को हंसाती- रुलाती हो। साथ ही अपने स्तर से उसके दुष्कृत्य के लिए नाना प्रकार से अपराधी को मंथन भी कराती है। अपराध बड़ा होने के बावजूद भी हर अपराधी अपने ही पक्ष में न्याय चाहता है। इसके लिए वह सारी हदें पार करने के लिए तैयार रहता है इस केस में भी अपराधियों द्वारा ऐसा ही किया गया है।
          वकील  भी कभी-कभी धन की लोलुपता में आरोपी को अपील कराने का ज्ञान देकर तथा अपनी तार्किकता से ऐसी धाराओं से केस को जीवन चाहने वाले अपराधी के पक्ष में लंबा खींच देता है। फिर मात्र  यही कहा जाता है  कि यह तो उसका पेशा है। कभी-कभी लगता है कि अत्यधिक अपराध और असंख्य केसों की सुनवाई में विलंब प्रक्रियाओं को देखते हुए अपराधियों को अंग - भंग करके महाभारत के अश्वत्थामा की तरह मणि विहीन करके उसके अपराध की सजा का प्रावधान द्रोपदी एवं कृष्ण द्वारा कर लिया गया था; पर आज की परिस्थितियों में तो यह भी  संभव नही  है ।
           अपराधियों एवं केसों की संख्या को देखते हुए अधिक से अधिक न्यायालयों के गठन होने चाहिए जिससे अपराधी प्रकरणों पर विशेष समय सीमा निर्धारित कर त्वरित निर्णय हो सके ।यदि इस तरफ ध्यान दिया जाता; तो निर्भया केस में इतना समय नहीं लगता। न्याय पक्ष में सुप्रीम कोर्ट जो उचित न्याय की पराकाष्ठा की अंतिम परिणति है; वहां विलंब से भले ही, पर अपराधी" जैसा बोया वैसा ही काटेगा" का फल प्राप्त करता है। इसी विश्वास के साथ न्याय का पक्ष ही बड़ा है।
-  डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
निर्भया केस में न अपराधी बड़े न वकील न न्याय बड़ा ,बड़ा तो हमारा सारा सिस्टम है|जो इस जघन्य अपराध करने वाले अपराधियों की सुन रहा हैं ;उन्हें वक्त दे रहा है ।ऐसे केस को न्याय प्रणाली में बदलाव कर फ़ास्ट ट्रैक सुनवाई कर उन अपराधियों को फाँसी दे दी जानी चाहिए थी |तभी अपराधियों में ख़ौफ़ आएगा | जिस तरह से अपराधों के भिन्न भिन्न घटनाएँ और अपराधियों की विभत्स मानसिकता सामने आ रही है तो इस परिस्थिति में सदियों पहले की न्याय व्यवस्था में सख़्ती से बदलाव लाना ज़रूरी है|निर्भया केस में न्याय व्यवस्था ही महान और बड़ा जान पड़ता है|
                 - सविता गुप्ता 
               राँची - झारखंड
निर्भया केस में न्याय को बड़ा होना चाहिए ।परन्तु यदि हम निर्भया केस के बारे में विचार करें तो न्याय अपराधियों और उनके वकीलों के आगे अपनी ही जंजीरों में जकड़ा नजर आता है । कहा गया है ना कि देरी से किया गया न्याय भी अन्याय के समान होता है ।इस केस में न्याय 
मिलने में बहुत देरी हो गई है जो कि अन्याय के समान ही है ।इस केस के माध्यम से समाज में जो सन्देश पहुँच रहा है वह यही है कि कितना भी जघन्य अपराध कर ले परन्तु हम हमारे कानूनों की कमजोरियों का लाभ उठा कर बच सकते हैं ।और यहाँ यह कहना आवश्यक है कि अपराधियों के वकील की भूमिका भी संदेहास्पद है??? तथा उसके बयान भी आपत्तिजनक है ।निम्न मध्यवर्गीय परिवारों से संबंधित अपराधियों का इतना लम्बा केस सुप्रीम कोर्ट में लड़ना भी विचार योग्य है? ??? उनका नये नये पैंतरे अपनाना ही यह दर्शाता है कि कोई इस सब के पीछे है जो कि यह नही चाहता कि बलात्कार जैसे अपराधों मे फाँसी की सजा सुनाई जाए और समाज में एक अच्छा संदेश जाए । आज हमें यह निर्धारित करने की आवश्यकता है कि हमें किन अपराधों में अपराधियों को अपील या मौके देने चाहिए?
यदि आज हम और आप यह न कर पाएँ तो भविष्य में भी हमारी बेटियों के साथ ऐसे जघन्य अपराध होते रहेंगे , जैसा कि हमने हैदराबाद की घटना में देखा था।हम सब मिलकर न्यायपालिका को इस निर्णय के लिए बाध्य कर सकते हैं जो कि हमें करना भी चाहिए और इसकी जरूरत भी है। 
-- जगदीप कौर
अजेमर - राजस्थान
बड़ा तो अंत में न्याय ही होगा । कानून  में बहुत से ऐसे बिंदु होते हैं जिनको निर्मित करते समय निर्माताओं ने ये नहीं सोचा होगा कि ऐसी भी व्याख्या की जा सकती है । बार - बार फाँसी की डेट का टलना ये जरूर दर्शा रहा है कि ये अपराधियों की जीत है या वकील अपने मुअक्किल को बचाने में सक्षम रहे । परन्तु ऐसा नहीं है ; दरसल ये भारतीय न्याय व्यवस्था है जो ये बताना चाह रही है कि मुजरिम को बहुत मौका दिया जाता है कि यदि वे बेगुनाह हैं तो बच सकते हैं पर यदि गुनाहगार हैं तो वकील केस को खींच अवश्य सकता है पर अंततः हारेगा ही । क्योंकि यहाँ कानून अंधा है जिससे बिना भेद भाव के मुजरिम को पूरा समय देता है व सबूतों के आधार पर वही निर्णय देता है जिससे न्याय व्यवस्था और शक्तिशाली बन कर उभरे । कहा भी गया है कानून के हाथ लंबे होते हैं जिनसे कोई अपराधी नहीं बच सकता ।
--छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
निर्भया का केस हो या कोई अन्य केस हो.. किसी भी केस में न्याय से बड़ा कोई नहीं हो सकता। वकील अपना काम करते हैं, केस लड़ना सजा या बचाव पक्ष में... यह उनका व्यवसाय है। अपराधी भी अपने बचने के लिए पूरा प्रयास करते हैं और न्याय प्रणाली सही न्याय करने के लिए अपने नियमों से कार्य करती है। निर्भया केस में भी यही हो रहा है। अपराधी किसी भी मूल्य पर बच नहीं सकता, यह सर्वविदित है, हाँ, नियमों के अनुसार विलंब हो सकता है। आक्रोश और आवेश में लिए निर्णय तुरंत न्याय तो कर डालते हैं, पर इसके दूरगामी परिणाम अच्छे ही होंगे यह कौन जान सकता है।  न्याय प्रणाली पर सबका विश्वास बना रहे, अपराधी को सजा मिले, वह किसी भी तरह बच न सके..इसीलिए वह अपने नियमों से कार्य कर रही है। अपराध तो अन्ततः पराजित ही होता है और विजय न्याय की ही होती है। अतः किसी भी, कैसे भी केस में न्याय ही बड़ा है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
    देहरादून - उत्तराखंड
यह व्यापक विषय है बहुत तथ्यों और आँकड़े पर पुरी बात रख पायेगे परन्तु अख़बार और न्यूज़ के आधार पर अपनी बात रखती हूँ ।हमारी न्याय व्यवस्था, पुलिस प्रशासन व जागरुक जनता सब को अपना क का ईमानदारी से करने की जरुरत है । 2012 में हुए निर्भया कांड ने पूरे देश को हिला दिया था। 2019 के अंतिम दिनों में हैदराबाद में हुये प्रियंका रेड्डी कांड ने भी देशभर के लोगों में गुस्सा भर दिया था। हैदराबाद में तो पुलिस ने सभी आरोपियों का एनकाउंटर करके जनता की वाहवाही लूट ली थी, लेकिन 2012 के निर्भया कांड में भारत की सुस्त न्यायिक प्रक्रिया अपना स्वरूप दर्शा गई। 2012 की घटना में दोषियों को फांसी 22 जनवरी 2020 में हो रही है। अब न तो हैदराबाद प्रकरण में पुलिस द्वारा आरोपियों को दोषी मानकर उनका एनकाउंटर करना न्योयोचित है न ही निर्भया के दोषियों को सात साल के लंबे अंतराल के बाद सज़ा मिलना। न्याय में देरी के कारण लोगों को पुलिस का सिंघम स्टाइल में एनकाउंटर करना रोमांचित तो कर सकता है किन्तु यह चरमराती व्यवस्था का जीता जागता उद्वारण है। अब आंध्र प्रदेश में बलात्कार के केस में 21 दिनो में निर्णय देने की शुरुआत तो हो गई है लेकिन इसके बावजूद भारत में जिस तरह से बलात्कार के मामले सामने आ रहे हैं और साल दर साल यह लगातार बढ़ते चले जा रहे हैं तब इसके समाधान का विषय सिर्फ सरकार और जनता तक सीमित नही रह गया है। कानून बनाने, धरना प्रदर्शन करने एवं मोमबत्ती जलाने से अगर कुछ सुधार होता तो अब तक कब का हो चुका होता। यह विषय इतना गंभीर हो चुका है कि अब यह राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने का विषय बन गया है। सामाजिक सुधार के माध्यम से हमारे अस्त व्यस्त सामाजिक, प्रशासनिक और न्यायिक ढांचे को दुरुस्त करने का समय अब आ चुका है। अदालत की कार्यवाही तर्कों पर आधारित होती है जहां तर्कों से तय होता है हू इज़ राइट? यानी दो में से एक सही साबित होगा और एक गलत। विमर्श में तय होता है वॉट इज़ राइट ? यह ‘हू’ और ‘वॉट’ का अंतर समस्या के हल का बीज़ मंत्र प्रदान करता है। बलात्कार और महिला संबंधी अपराध पर बात करते समय तर्क नहीं विमर्श महत्वपूर्ण एवं आवश्यक तत्व है। अब दो विषय ऐसे हैं जो हमारे विमर्श का हिस्सा होने चाहिए। एक समस्या का पूर्व निदान(प्रेवेंशन) और दूसरा समस्या का उपचार(क्योर)। कानून के द्वारा बलात्कार एवं महिला संबंधी अपराधों का उपचार मिलता है। सबसे पहले बात दूसरे विषय पर करते हैं। इस संदर्भ में पहले हम देश में बलात्कार के आंकड़ों पर गौर करते हैं। यह आंकड़े बहुत चौकाने वाले हैं। 2019 की पहली छमाही में जनवरी 2019 से 30 जून 2019 के बीच भारत में बलात्कार के 24,212 मामले दर्ज़ किए गए। इस हिसाब से 1 महीने में 4000, एक दिन में 130 और हर 5 मिनट में कहीं न कहीं बलात्कार हो रहा होता है। इसमे चौंकाने वाली एक बात यह है कि बलात्कार की शिकार महिलाओं में छह महीने की बच्ची से लेकर 60 साल तक की महिलाएं शामिल हैं। आरोपी को सज़ा दिलवाने के क्रम में सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया ट्रायल होती है। 2019 की पहली छमाही के आंकड़ों के केस में ट्रायल सिर्फ 6449 केस का ही चल रहा है। अभी 4871 मामले ऐसे हैं जिसमे अभी ट्रायल शुरू ही नहीं हुआ है। यदि फैसलों की तरफ देखें तो न्यायालय ने अभी तक 911 मामलों में ही फैसला सुनाया है, जो कि कुल संख्या का मात्र 4% है। न्यायालय की धीमी गति से फैसले देने के कारण न्यायपालिका पर लोगों का भरोसा कम होने लगता है। वह कानून अपने हाथ में लेकर निर्णय करने को बेहतर विकल्प मानने लगते हैं। हैदराबाद प्रकरण में पुलिस द्वारा जब आरोपियों का एंकाउंटर किया जाता है तो इसमे लोगों को राहत मिलने लगती है। जबकि ऐसा होना गलत परिपाटी भी शुरू कर सकता है।
इसके साथ ही शराब के द्वारा अपराध की बढ़ती मनोवृत्ति  है । इन सबके बीच सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सिर्फ कानून के भरोसे अपराध नहीं रोके जा सकते हैं क्योंकि भारतीय न्याय प्रक्रिया मे एक जुमला प्रचलित है। “भारत में विधि का शासन है न्याय का नहीं”। उस घटना को अपराध माना जायेगा जिसको विधि में अपराध माना गया है। इस प्रक्रिया मे न्याय हुआ है या नहीं ? इस पर विधि मौन है। शायद, इसलिए ही गुनाह को प्रेरित करने वाले तत्वों पर कोई खास कार्रवाई नहीं हो पाती है। ऐसे में यदि गुनाह के तत्वों को हम पूर्व में ही नियंत्रित कर लें तो महिला के साथ होने वाले दुष्कर्म जैसे अपराधों पर लगाम लग सकती है।
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
निर्भया के न्याय में विलम्ब ...? 
    भारत भूमि पर स्वतंत्रता का स्थान स्वच्छंदता ने ले लिया है और न्यायिक प्रणाली को तिरोहित करके रख दिया है l निर्भया के केस में आम जनता के मन में विश्वाश के स्थान पर भय ने अपना डेरा जमा लिया है l "बस्ती -बस्ती भय के साये ,कहाँ मुसाफ़िर रात बिताये "निःसंदेह इस केस में न अपराधी बड़ा ,न वकील बड़ा ,न न्याय बड़ा ,सबसे बड़ा रूपया भैया ....I तुलसीदास जी ने कहा है -"समरथ को नहिं दोष गुसाईं "आज के परिवेश में रुपइया भगवान नहीं तो भगवान से कम भी नहीं l निर्भया केस के पैरवी करने वाले वकीलों ने अपने ज़मीर की और मानवता की बलि चढ़ा दी है l इस केस में अपराधियों के हौंसले इतने बुलंद है की महामहिम राष्ट्रपति के फैसले के खिलाफ क्यूरेटिव याचिकाएं दायर कर रहें हैं l एक अपराधी की पत्नी को आज बारह वर्ष बाद आत्मसम्मान नज़र आने लगा है कि वह विधवा बनकर जीवन जीना नहीं चाहती l इतने लम्बे समय तक उसका आत्मसम्मान कहाँ गया ?शहीदों की विधवाएं अपने पति की शहादत पर गर्व करती हैं ,क्यों नहीं यह महिला ऐसे अपराधी पति को फांसी की सजा दिलाकर अपने आप को गौरवान्वित करे l 
          न्याय में विलम्ब से ऐसा लगने लगा है कि आज आम जन में भय ,अपराधियों में विश्वाश का वातावरण बना दिया है l एक लघु कथा -एक धोबी को राजा ने राज्य में बढ़ते हुए अपराधों पर नियंत्रण के लिए न्यायाधीश के पद पर बैठा दिया ,जिसने चोरी करने वाले अपराधी को दोनों हाथ काटने की सजा दी और उसकी सिफारिश करने वाले वज़ीर को जीभ काटने की सजा दी l राजा के राज्य में अमन चैन व्याप्त हो गया l बड़ी सुंदर पंक्तियाँ -"भय बिनु होय न प्रीति "..न्यायिक प्रक्रिया में तुरंत रचनात्मक सुधार की अपेक्षा की जानी चाहिए l कहा गया है -परमात्मा की लाठी की आवाज़ नहीं होती l यदि निर्भया के अपराधियों को दण्ड नहीं मिलता है तो परमात्मा ही उसे इंसाफ दिलाएगा l 
       गीता में श्री कृष्ण ने कहा है -जब जब भी भारत भूमि पर धर्म का नाश ,अधर्म का अभ्युत्थान होता है में धरती पर अवतरित होता हूँ लेकिन आज कृष्ण कह रहे हैं -मैं भारत कैसे आऊं ,कहते हैं कृष्ण मुरारी न्याय में बारह वर्ष का विलम्ब देख ,मैं भारत कभी न आऊं ..l 
   मैथिलीशरण गुप्त ने ठीक ही कहा था -
"अबला जीवन तेरी यही कहानी l 
आँचल में है दूध और आँखों में पानी ll"
निर्भया केप्रति न्याय में हो रहा विलम्ब इन पंक्तियों की पुष्टि कर रहा है l आज नारी शक्ति को दुर्गा का रूप धारण करके सामाजिक अन्याय के प्रति महिषासुरमर्दनी बनकर उभरना होगा l स्वर्ग से दामिनी नारी शक्ति का संदेश दे रही है ,श्यामनारायण की पंक्तियों में परिलक्षित है -
"थक गया यदि तू समर से ,
तो रक्षा का भार मुझे दे दे l
मैं रण चंडी सी बन जाऊ ,
अपनी  तलवार मुझे दे दे ll
- डाँ. छाया शर्मा
अजेमर - राजस्थान
तारीख 16, 17  दिसम्बर 2012 को निर्भया के सामूहिक  बलात्कार कांड से पूरे देश में हाहाकार मच गया था । अभी तक माँ  आशा देवी को निर्भया केस को इंसाफ नहीं मिला है । सुस्त न्यायिक प्रक्रिया ने  तारीख पर तारीख लगा के 18 मार्च 2020  साल तक न्याय नहीं मिला है  । यहाँ तो मुझे अपराधियों का वकील ही बड़ा लगता है । जो उनकी आपराधिक सजा को दलीलों से तारीखें बढ़वा रहा है । जी दूरदर्शन पर राष्ट्र के नाम संदेश में निर्भया की माँ का  बलात्कार के संबंध में पहला लोकतंत्र की जनता देर को जागरूक करने का संदेश देश , दुनिया सुना । किस तरह कोर्ट परिसर में अपराधियों के कुनबा  माँ आशा देवी को  जलील करता है । बेहद शर्मनाक है ।इससे तो भारतीय संस्कृति अपमानित होती है । अपराधियों के वकील कानून का लाभ ले उन्हें बचाने में लगा है । हमारे देश की न्यायपालिका संविधान से भी बड़ी है । जो फैसला होगा देर से ही सही सच के लिए होगा । यानी निर्भया के हक में ही होगा । 
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
अभी तक जो प्रक्रिया देखी व समझी है उसके आधार पर यह कहने में कोई संकोच नहीं कि निर्भया केस में वकील न्याय से  भी बड़ा हो गया है ।जिससे ही वह फांसी की सजा हो चुकने के बाद बार-बार टलवा देता है कभी यह दांव कभी वह दांव ऊपर से पेंच ही पेंच ।इस बार तो हद हो गई जब अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय तक पहुंच गया ।वर्तमान में चौथी बार फांसी के लिए वारंट जारी हुआ है ।परिणाम भविष्य के गर्भ में है ।
  अपराधी बड़े छोटे नहीं वह केवल अपराधी हैं ।आम जनता उनको निर्दयी व इंसान के रूप में हैवान बनकर अपराध करने वाले के रूप में ही देख रही है । न्याय बड़ा इसलिए नहीं रह गया क्योंकि यह देरी से हो रहा है ।जोकि एक तरह से अन्याय का ही एक रूप है ।जब समय से न हो ।देरी के कारण कुछ भी हो पर पीड़ित पक्ष तो लगातार मानसिक वेदना से ग्रसित है ही ।किसी एक के साथ भी अन्याय न होने देने न्याय प्रणाली की धारणा का मतलब यह नहीं हो सकता कि इतनी देर हो जाये कि न्याय अन्याय सा दिखने लगे ।
- शशांक मिश्र भारती
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
हमारे  न्याय  प्रक्रिया  की  धीमी  गति  को  देखते  हुए  ऐसा  लगता  है  मानो  अपराधी  बड़े  हो  गए  हैं  ।  न्याय  वकीलों  के  दांव-पेंच  और  गवाहों  पर  निर्भर  है  ।  गवाहों  की  खरीद फरोख्त  होती  रहती  है । वकीलों  की  जेबें  गर्म  होती  रहती  हैं  ।  सच्चे  सच  बोल-बोल  कर  गुनाहगार  और  झूठे  झूठ  बोल-बोल  कर  सच्चे  हो  जाते  हैं  ।  लगभग  ऐसा  ही   होता  है  । निर्भया  के  मामले  में  इतनी  देरी, बार-बार  फांसी  की  तारीख  बदलना  आखिर  क्यों  ?
        क्या  कोई  भी  दिन  ऐसा  जाता  है  जब  फीमेल  के  साथ  दरिंदगी  नहीं  हुई  हो ?  आखिर  क्यों  ?  आए  दिन  होने  वाली  ऐसी  घटनाओं  से  8 से 60 चाहे  कोई  भी  उम्र  हो  महिला  कितनी  सुरक्षित  है,  इसकी  हकीकत  से  मुंह  नहीं  मोड़ा  जा  सकता  है । इन  सबका  कारण  है- भय  अथवा  डर  का  अभाव । जब  तक  आम  और  खास  में  डर  नहीं  होगा  तब  तक  ऐसी  दरिंदगी  पर  अंकुश  नहीं  लगेगा  ।  ऐसे  लोगों  को  तो  सरेआम  फांसी  दी  जानी  चाहिए  अथवा  हाथ पांव  काट  कर  ताउम्र  तड़फने  के  लिए  चौराहों  पर  पटक  दिया  जाना  चाहिए, तभी  ये  सब  देख  कर  दूसरों  को  सबक  मिलेगा  । 
        बेगुनाह  को  सजा  न  मिले  इसका  ध्यान  रखते  हुए  ऐसी  दरिंदगी  करने  वालों  को   तुरंत  व  कठोर  से  कठोर  दंड  दिये  जाने  की  व्यवस्था  कानून  में  होनी  चाहिए  ।
          - बसन्ती पंवार 
            जोधपुर  - राजस्थान 
 कोई भी केस को देखने के लिए सबकी दृष्टि अलग अलग अपनी प्रवृत्ति के अनुसार होती है। निर्भय के कोई अपराधी को बड़ा मान रहा है कोई वकील को बड़ा मांग रहा है तो कोई न्याय को बड़ा मान रहा है ।सब केदेखने की नजरिया अलग अलग होती है। लेकिन मूलतः देखा जाए तो न्याय ही बड़ा होता है ।न्याय से बढ़कर कोई वस्तु नहीं है जो मनुष्य को संतुष्टि कर सके न्याय होने से मनुष्य संतुष्टि प्राप्त करता है। वर्तमान युग में अपराधी और वकील दोनों न्याय से गौण माने जाते हैं । अपराधी अपना अपराध स्वीकार नहीं कर पाता और वकील न्याय नहीं दे पाता अपराधी दंड से बचना चाहता है और वकील स्वार्थ के वशीभूत होकर दण्ड से बचाना चाहता है। न्याय के बदले में फैसला करता है एक पक्ष सुखी एक पक्ष दुखी। ऐसी फैसला सुनाना न्याय नहीं फैसला कहलाता है ।वर्तमान में फैसला होता है न्याय नहीं हो पाता ।न्याय का प्रमाण अगर दिखता तो निर्भया जैसे कांड समाज में आगे नहीं दिखता। भारतीय न्याय व्यवस्था की फैसला ऐसी कांड को और बढ़ावा दे रही है इसका प्रमाण समाज में आए दिन देखने को मिल रहा है। अतः इन सभी तथ्यों को देखने से कहा जा सकता है, कि ना तो अपराधी बड़ा ना तो वकील बडा ,बड़ा तो न्याय होता है लेकिन वर्तमान समाज में न्याय नहीं दिख रहा है ।यही मनुष्य जाति की विडंबना है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
निर्भया केस में कानून बड़ा है और कोई नहीं। वकील जो भी कर दांव पेंच लगाते हुये इस केस को पेचीदा बनाते जा रहा है वह यह बताने की पूरी कोशिश है कि इस देश मे पीड़ित को न्याय के लिये किस हद तक संघर्ष करना पड़ता है। वहीं मुजरिम तो जेल में रहते हुये चुनाव भी लड़ता है और संसद में भी पंहुच जाता हैं। कहीं न कहीं कमी है तो कानून व्यवस्था में यहां प्रश्न यह है कि कौन बड़ा तो कानून की धाराओं और उसके दांवपेच की छत्र छाया में मुजरिम बड़ा है वकील तो सिर्फ अपनी बात रख कर लोगो की आंख खोलना चाहता है क्योंकि देश मे रोजाना बलात्कार होते हैं निर्भया कांड के समय एक क्रांति का जन्म हुआ और पूरे देश के लोग इस केस पर अपनी नज़र बनायें हुये हैं। सारी बातों से यह सिद्ध होता है कि वकील ये बताना चाहता है कि यह केवल अकेली निर्भया के साथ ही नहीं हो रहा अपितु देश को सभी पीड़िता के साथ हो रहा है। वकील और आरोपी को कोसने के बजाय कानून में बदलाव की आवश्यकता है।
- अजय बनारसी
मुम्बई - महाराष्ट्र

" मेरी दृष्टि में " निर्भया केस को मीडिया ने घर - घर तक पहुंचा दिया । जिससे न्याय की स्थिति सब को पता चल गया है कि हम सब भारतीय सविधान पर विश्वास करते हैं परन्तु वकील को मुवक्किल को बचाने के लिए हर स्थिति में अन्तिम समय तक बचाने का अधिकार है । यही कारण है कि हैदराबाद के रेप व हत्या के आरोपियों का पुलिस के एनकाउंटर को जनता द्वारा बहुत ही सहारा गया है ।
                                                         - बीजेन्द्र जैमिनी






Comments

  1. केस मे गड़बड़ हो रही है
    भगवान न्याय देगा
    - मुरारी लाल शर्मा
    पानीपत - हरियाणा
    ( WhatsApp ग्रुप से साभार )

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