क्या विपत्ति में भी कोई अवसर अवश्य निकलता है ?
विपत्ति ऐसी स्थिति होती है। जिसमें चारों ओर से कोई रास्ता नज़र नहीं आता है । फिर भी कहते हैं कि कोई ना कोई रास्ता अवश्य होता है । जिससे स्थिति से निपटा जा सकता है । जरूरत है तो सहनशीलता से उचित मार्ग को ढूंढने की । ऐसा ही " आज की चर्चा " का विषय रखा गया हैं । अब देखते हैं आये विचारों को : -
अवसर तो हवा में तैरते हैं जरूरत है, हाथ बढाकर उन्हें पकड़ने की । खुशी के दिनों में व्यक्ति अवसरों के पीछे कम भागता है किंतु मुसीबत के समय जब व्यक्ति में मानसिक स्थिरता नहीं वह सही गलत का उचित निर्णय नहीं ले पाता ऐसे समय में अवसरों को खोजता फिरता है । ऐसे में अवसर हाथ आने पर भी वह तनाव और निराशा के कारण उसका लाभ नहीं ले पाता और स्वयं के भाग्य को कोसता है।
रात कितनी भी अंधकारमय और भयावनी क्यों न हो सहर होती ही है । उषा की एक चमकीली किरण सारा अंधकार हर लेती है । विपत्ति के समय धैर्य से ,संतुलित होकर किये गए कार्य निश्चित ही उबारने वाले होते हैं। अवसर अवश्य मिलते हैं विचारपूर्वक सही निर्णय की जरूरत होती है।
- वंदना दुबे
धार - मध्यप्रदेश
यह सच है कि हम कोई भी कार्य शुरू करते हैं तो पहले हम उसकी भूमिका तैयार करते हैं कैसे करेंगे कैसे होगा बाद में लक्ष्य निर्धारित करते हैं एक बात तो पक्की है नया कार्य करते समय हमारी उमंगों का स्त्राव बहुत ही तीव्र होता है एवं इतने उत्साहित होते हैं कि कितनी भी तकलीफ होती है थकान हमारी उमंगो को छूने से डरती है ! हमारा काम की सफलता का परिणाम शत प्रतिशत होगा यह हम सोचते नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास होता है ! हमारा आत्मविश्वास ही हमारे कार्य करने की क्षमता होता है कार्य को परिणाम देने से पहले हमारे मार्गदर्शक का अनुभव ही हमें प्रभावित करता है और लक्ष्य प्राप्ति को अंजाम देने की कोशिश करते हैं कार्य शुरू करते ही हमें क्या करना है कैसे करना है धीरे-धीरे पता चलता है ! तालाब में डूबने के बाद कोशिश करना आ ही जाता है यानी कि परिश्रम और पूर्ण जोश धैर्य, समय ,समस्या का समाधान आदि आदि गुण में हममें प्रवाहित होने लगते हैं ! मेहनत का फल मीठा होता है किंतु कभी-कभी मेहनत का फल परिस्थितियां ऐसी आ जाती है कि हमारी मेहनत रंग नहीं लाती किंतु उस पर अनुभव का रंग अवश्य चढ़ जाता है अतः धैर्य रख पुनः काम को अंजाम देने की कोशिश करनी चाहिए हमें हार नहीं माननी चाहिए !सकारात्मकता का भाव नसों में जो दौड़ने लगे वह पहाड़ काटकर भी उसमें से नदी का रास्ता बना पानी का स्त्रोत स्फुटित करता है! अतः शुरु में जरूर तकलीफ हो किंतु परिणाम सुखद ही होता है! और यह सब उसके द्वारा कार्य को समय देना सफलता दृढ़ संकल्पता का होना धैर्य परिश्रम आत्मविश्वास अनुभव जोश उमंग और हार न मानना यानी कि सफल होने की जिद्द का ही परिणाम होता है एवं अपने मार्गदर्शक और बड़ों का आशीर्वाद का होना भी है !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
जीवन अनिश्चितता का दौर भी होता है। कब, किसके साथ, क्या अच्छा-बुरा हो जाये,कुछ कह नहीं सकते। इसीलिए कहा गया है,हमेशा सजग,सावधान और सक्षम बनो ताकि विपदा, बीमारी या अन्य कोई बुरे अवसर पर साहस और धैर्यपूर्वक परिस्थितियों से सामना कर सकें। खुशी या सुख का समय तो सभी के लिये आनंद से भरा होता है और कब बीत जाता है,पता ही नहीं चलता। कष्टकारी तो दुःख, आपदा, विपदा और बीमारी जैसे संघर्षमयी समय होते हैं जिनमें एक-एक पल बोझिल और मुश्किलों भरा होता है। बीतने को तो यह समय भी बीत ही जाता है मगर इन दिनों के कटु अनुभव जीवन को बहुत कुछ सिखा जाते हैं। यह सीख हमें, हमारी कमियों, खामियों, गलतियों,धारणाओं का ज्ञान और भान दोनों करा देती है। जिसे हम दूर करने के लिये न केवल प्रयासरत होते हैं बल्कि अपने हौसले के बल पर अपने में छुपी प्रतिभा को पहचान कर उसे निखारने और संवारने का काम भी करते हैं और अवसर निकालकर अपनी सामर्थ्य से एक सफल मुकाम तलाशने में भी कामयाब हो जाते हैं।
तात्पर्य यह है कि विपत्ति में कोई अवसर अवश्य निकलता है... जरूर निकलता है,पर इसका यह मतलब नहीं निकाल लेना चाहिए कि ऐसे अवसर पाने के लिए हम किसी विपत्ति आने की प्रतीक्षा करें। उचित और सही तो यही होगा कि हम अध्ययन,ज्ञान, विवेक, मार्गदर्शन से सामर्थ्यवान व प्रतिभावान बनते हुये हमेशा सजग और दूरदर्शिता रखें।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
क्या विपत्ति में भी कोई अवसर अवश्य निकलता है ?
विपत्ति से उबरने के अवसर आते है । बस धैर्य की जरुरत है
विपत्ति दूर करने के लिये माँ दुर्गा के 32 नामो का जाप करना चाहिए
हिन्दू धर्म की परंपराएं, संस्कृति और मान्यताएं सिर्फ विश्वास या अंधविश्वास पर आधारित नहीं है, बल्कि शुभ-अशुभ परिणामों के आधार पर ये मान्यताएं सटीक भी बैठती हैं। धर्म में कई चीजें तर्क संगत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण लिए हुए होती हैं, जिन्हें समझ पाना कई बार हम मनुष्यों के बस की बात नहीं होती।
हमारे शास्त्रों में ऐसे कई संकेतों का जिक्र भी मिलता है जो आगामी शुभ-अशुभ घटनाओं या विपत्ति की ओर इशारा करते हैं। इन पर अगर यही तरीके से ध्यान दिया जाए, तो अनहोनी से भी बचा जा सकता है। आइए जानते हैं इन 5 संकेतों के बारे में
कुत्ते का रोना - अगर कोई कुत्ता किसी घर के मुख्य द्वार के सामने मुंह करके रोता है, तो इ सका मतलब है संबंधित घर में कोई समस्या आने वाली है या यह किसी की मृत्यु का संकेत भी हो सकता है।
आपदृष्टिकोण लिए हुए होती हैं, जिन्हें समझ पाना कई बार हम मनुष्यों के बस की बात नहीं होती।
काले चूहों की बढ़ती संख्या - अगर घर में अचानक से काले चूहे ज्यादा संख्या में आने लगे हैं और इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है, तो यह इशारा करता है, कि निकट भविष्य में कोई विपत्ति आने वाली है।
खुदाई में मरा हुआ जीव - अगर जमीन की खुदाई करते समय कोई मरा हुआ जीव मिलता है या सांप दिखाई देता है, तो यह आने वाले बुरे समय की ओर इशारा करता है।
घायल पक्षी - यदि आपके घर के आंगन में कोई पक्षी घायल होकर गिर जाता है, तो यह आने वाले समय में होने वाली दुर्घटना का संकेत है।
हड्डियां निकलना - अगर घर के आसपास खुदाई में हड्डियां निकलती हैं, तो यह उस भूमि के अशुभ होने का संकेत है।
कई बार विपत्तियों के आने के संकेत हमें मिलते है पर हम समझ नहीं पाते । विपत्ति आती है पर कोई न कोई मार्ग होता उनसे उबरने का हिम्मत धैर्य व आराधना से विपत्ति में प्रकाश किरण नज़र आती है और हम हँसते हँसते विपत्ति से निपट लेते है
- अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
*बिपति भए धन ना रहे, होय जो लाख करोर।*
*नभ तारे छिपि जात हैं, ज्यों रहीम भए भोर ।।*
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जब हमारे ऊपर विपत्ति आती है तो सब रास्ते बंद हो जाते हैं और कोई किसी की मदद नहीं करता सुख के सब साथी होते हैं पर दुख का कोई साथ ही नहीं होता परंतु भगवान परमात्मा जो हजार हाथों से सबकी मदद करता है वह एक कोई ना कोई रास्ता खोल देता है और किसी न किसी रूप में आकर हमारी मदद करता है उसके ऊपर हमें विश्वास रखना चाहिए और विपत्ति के समय हमें हिम्मत से सोच विचार करना चाहिए कोई ना कोई रास्ता जरूर खुल जाता है और कोई ना कोई जरुर भगवान बनकर हमारी मदद करता है विपत्ति में ही सही गलत का ज्ञान होता है क्योंकि इंसान इतना स्वार्थी है कि वह धन के मुंह में इतना अंधा हो जाता है कि उसे कुछ दिखाई नहीं देता और विपत्ति में ही उसे सच्चाई ज्ञात होती है।
सुदामा के ऊपर विपत्ति में भगवान कृष्ण ने मित्र होने का ऋण चुकाया था और उसको धनवान किया था।विपत्ति में कभी भी हमें अपना साहस नहीं खोना चाहिए और अधिक विपत्ति आए तो हमें गीता और रामायण पढ़ना चाहिए इसको पढ़ने से ऐसा महाकाव्य की मन को शांति मिलेगी और हमें कुछ ना कुछ रास्ता मिलेगा बहुत कमजोर दिल के लोग विपत्ति में मृत्यु का सहारा लेते हैं या सुसाइड करते हैं यह सब गलत है यह कायरों का काम है जीवन में सुख दुख तो धूप छांव की तरह लगे रहते हैं इसमें हमें अपनी हिम्मत दिखाते हुए सही महापुरुषों के चरित्र को जीवन की गाथाओं को पढ़ना चाहिए और हमें अपने अंदर के उत्साह और जोश को जगाना चाहिए और हमें अपने मस्तिष्क का सही इस्तेमाल करना चाहिए भगवान ने हमें मानव इसी लिए बनाया है कि हम सोच समझ सके उसके बनाए हुए इस सृष्टि को और इसकी रचना को देखकर हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है गम में डूबा हुआ इंसान सही गलत का फैसला नहीं कर पाता उस समय हमें अपनी हिम्मत का परिचय देना चाहिए डूबते हुए को एक तिनके का सहारा होता है। किसी महान इंसान ने कहां है कि - " *बीते की हर मुश्किल की घड़ी, गम छोटा उम्मीद बढ़ी।"*
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
विपत्ति हो या विपत्तियां धेर्य एक मात्र सुअवसर है।जो सब से उत्तम विकल्प है।विपत्तियों पर विजय पाने की सदृड़ इच्छाशक्ति किसी भी अवसर से अति आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है। कोई भी योद्धा युद्ध में शरीरिक शक्ति से अधिक इच्छाशक्ति से विजय प्राप्त करता है।सर्वविधित है कि जीवन के किसी भी संघर्ष में वही हारते हैं।जो संघर्ष से विमुख हो जाते हैं,अन्यथा युगों-युगों के इतिहास एवं धर्मग्रंथ साक्षी हैं कि निरंतर संघर्ष करने वाला कभी हारा नहीं है। उल्लेखनीय है कि पुरुषार्थ की परीक्षा की कसौटी का नाम विपत्ति है और विपत्तियों में ही मानव अपनी, अपने परिवार की, मित्र वर्ग की, अपने सगे संबंधियों के साथ-साथ सभ्य समाज की भी जांच कर सकता है। यही नहीं विपत्तियां ही मानव जीवन को उसकी कुशलता के साथ-साथ जीना-मरना सिखाती हैं।माना यह भी गया है कि समय रहते गृहस्थ संबंधियों से विरक्ति का ज्ञान भी विपत्तियां ही सिखाती हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जिस तरह घनघोर अंधकार में उजाले की एक किरण भी पर्याप्त होती है मार्ग दिखाने के लिए वैसे ही विपत्ति में भी कोई न कोई अवसर अवश्य निकलता है । कर्मरत एवं निष्ठावान व्यक्ति का समय भले ही कुछ दिनों के लिए खराब हो किन्तु ज्यादा समय तक वो परेशान नहीं हो सकता क्योंकि जो परिश्रम करता उसके लिए ईश्वर स्वयं मार्ग बनाते हैं । कहा भी गया है कि एक रास्ता बंद होने का मतलब कई रास्तों का खुलना होता है । इस सम्बंध में मलाला यूसुफजई का उदाहरण देखिए कि अफगानिस्तान में किस तरह उनके कार्यों का विरोध करने हेतु उन्हें सिर में गोली मार दी गयी कि वो 14 साल की बच्ची मर जाये किन्तु उसके हौसले ने उसे जीवित रखा उसने संघर्ष किया तो सभी देश उसके साथ खड़े हुए और वो न केवल मृत्यु पर विजयी हुयी वरन आज वो सभी के सामने एक उदाहरण के रूप प्रस्तुत कि दृढ़ इच्छाशक्ति से असंभव को भी संभव किया जा सकता है ।आज वो लेखिका, मोटिवेशनल लीडर के रूप में जानी- मानी जाती है ।
इसी तरह बहुत से लोग हैं जिन्होंने विपत्तियों से न घबराकर अवसरों की तलाश की और सबके समक्ष उदाहरण के रूप में उभर कर आगे आये हैं ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
विपत्ति का समय बहुत ही कष्टकर अवश्य होता है धैर्य रखने से समय कट भी जाता है और नये अवसर भी लाता है । अंधेरे के बाद सुबह होना निश्चित है।एक रास्ता बंद होने से दूसरे रास्ते खुलते हैं । इंसान मेहनत और परिश्रम करने को तैयार रहें, धैर्य लगन इच्छा शक्ति और सहनशीलता जैसें गुणों को
हथियार बना के रखना है। अवसर पहचानने की भी एक कला होती है। यह कला अनुभव और परामर्श के साथ रिस्क उठाने की हिम्मत से होती है हारिए न हिम्मत विसारिए न हरि नाम।
- डाँ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
विपत्ति, विपदा, विरोध, विपरित परिस्थितियों का चक्र भी वैसा ही है, जैसे कि रात-दिन । विपत्ति में यदि धैर्य बनाये रखें तो भारी विपत्ति से निश्चित रूप से बचा जा सकता है। पहले हमें विपत्ति के सही कारणों का पता लगाना चाहिए। फिर उन्हें हल करने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। कुछ न कुछ हल तो हमें मिल ही जाएगा।
कहते हैं कि विपत्ति में ही मित्रता की पहचान होती है। मुंशी प्रेमचंद जी ने कहा था कि विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई विद्यालय आज तक नहीं खुला।
विपत्ति में हुए विनाश की चिंता न करते हुए, शेष बचे हुए को संभालना अधिक महत्वपूर्ण है।
आशा ही जीवन की पतवार है।
- उदय श्री ताम्हणे
भोपाल - मध्यप्रदेश
कहते हैं कि जब हमारे किसी कार्य की सफलता का एक द्वार बंद होता है तो दस दूसरे और द्वार हमारे लिए खुल जाते हैं। तो विपत्ति भी हमारे लिए एक ऐसे ही द्वार की तरह होती है वह हमें चिंतन, मनन और मंथन करने का अवसर देती है। वह विभिन्न अनुभवों से हमें समृद्ध होने देती है। इस चिंतन, मनन, मंथन और प्राप्त अनुभवों से हम अपने लिए अवसरों के अन्य द्वार खुलते हुए पाते हैं । उन अवसरों को प्राप्त करके जब नये लक्ष्य निश्चित कर व्यक्ति कर्म पथ पर अपने आत्मविश्वास से कदम बढ़ाता है तो सफलता कदम चूमती है। जीवन में अवसर सदा हमारा द्वार खटखटाते हैं। कुछ इस पर ध्यान ही नहीं देते, पहचान नहीं पाते। जो अपने द्वार पर आये अवसर को पहचान कर उसका सदुपयोग कर लेता है उसे जीवन में कभी पछताना नहीं पड़ता। विपत्ति भी हमारे आत्मविश्वास और दृढ़ इच्छाशक्ति की परीक्षा होती है। जो इसने उत्तीर्ण हो जाता है वह इसे सुअवसर में परिवर्तित करके कठिन श्रम करते हुए जीवन में सफलता प्राप्त करता है। साधारण व्यक्ति विपत्ति के समय रोने-कलपने में लगे रहते हैं और असाधारण व्यक्ति प्रतिकूल समय को भी अनुकूल बना कर सफलता की गाथा लिख डालते हैं। जीवन में हर परिस्थिति, सुख-दुख, हर अनुभव व्यक्ति के लिए नये अवसर का निर्माण करता है, नये द्वार खोलता है। बस व्यक्ति को तैयार रहना चाहिए।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
जी हां विपत्ति में भी कोई अव सर अवश्य निकलता है। अवश्य निकलता ही नहीं ,अवसर हर पल हर क्षण मौजूद रहता है। इस अवसर का लाभ विपत्ति वाले व्यक्ति भी और सुखद वाले व्यक्ति भी उठा सकता है वह उसके विचार के ऊपर निर्भर करता है ।ऐसा नहीं है कि विपत्ति के समय अवसर नहीं मिलता ऐसा नहीं है, अव सर हर पल हर क्षण ह।ै इसे पहचानने की जरूरत है। जिसको अवसर का पहचान हो जाता है, वह व्यक्ति अपने जिंदगी में विपत्ति हो या सुखद इसका सदुपयोग कर ही लेता है अर्थात समाधान कर लेता है ।इसके लिए उसे अनुभव और धैर्य की आवश्यकता होती ह।ै अनुभव, धैर्य से ही व्यक्ति विपत्ति के समय भी अपना औरअव सर निकालकर सफलता को प्राप्त कर लेता है अतः कहा जा सकता है कि विपत्ति में भी कोई अवसर अवश्य निकलता है बस समझने की आवश्यकता है ।समस्या है तो, समाधान है ही। इसको पहचान कर उसका हल निकाला जाता है हल निकालने की अवसर को ही समस्या से मुक्त अवसर कहा जाता है।हर व्यक्ति विपत्ति में, विपत्ति से निकलने का अवसर ढूंढता है। अवसर मिल ही जाता अतः कहा जा सकता है कि विपत्ति में भी अवसर अवश्य मिलता है बशर्ते कि इसे पहचान कर सदुपयोग किया जाता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
विपत्ति यानी मुसीबत , कठिनाई , संकट ये सब शब्द विपत्ति के समानार्थी शब्द हैं । संसार में मानव जीवन श्रेष्ठ है । जो विपत्तियों से संघर्ष कर अपना सफल अवसर निकाल ले। जीवन की चुनोतियों को स्वीकार कर ले । वह मनुष्य कलाकार ही जो जीवन की विषम परिस्थिति को खेलकर अपने लिए जीत का अवसर निकाल लेता है । जीवन भी एक खेल है । जिसके पास आत्मबल , ज्ञान , बुद्धि , आत्मविश्वास , साहस , निडरता , साकारात्मक सोच है । तो वह उस विपत्ति यानी उस समस्या का हल निकाल लेगा ।वही जीवन जुझारू है जो दूसरों की दया पर नहीं जीये ।मानव को चाहिए कि वह प्रतिकूल हालातो , परिस्थिति से लड़े । एक सपना पूरा हो तो दूसरा गढ़े । क्योंकि विषमताएँ ही जीवन की चुनोतियाँ प्रेरणा देती हैं । आगे बढ़ने अवसर देती हैं । संघर्ष जीवन की सच्चाई , सार्थकता है । जो कल का सुख बनता है । साधारण व्यक्ति विपत्ति की आग में तप कर कुंदन बन जाता है । असाधारण बन जाता है । क्योंकि उसने कठिनाइयों को झेल कर सफलता हासिल की है । हाल ही में 24 फरवरी 2020 को हमारे देश का चर्चित सोनी चेनल के सिंगिंग बेस्ट टीवी रियल्टी शो के विजेता सनी हिंदुस्तानी पंजाब के मेहनतकश परिवार से हैं । जिन्होंने बूट पॉलिश करके जीवन यापन किया । कहने का मतलब है । विषम परिस्थितियों को अपने गायन के हुनर से अवसर को अनुकूल बनाया । उसने अपनी मेहनत से उस अवसर को अपने हाथ से जाने नहीं दिया । देश , विश्व के लोग सनी हिंदुस्तानी को सम्मान की नजरों से देखता है । अब वह शख्शियत बन गया । विषमताएँ , विपत्तियाँ हमारे व्यक्तित्व को निखारती हैं । जितने भी महापुरुष , संत , शख्शियत संसार में हुई हैं ।उन सबने विपत्तियों से लोहा लिया है । बाधाओं के तूफानों को पार किया है । वे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते जाते हैं । संकटों के सामने घुटने नहीं टेकते हैं ।
महात्मा गांधी जी साधरण से असाधरण बने । वे रेल के पहले दर्जे बैठे थे। अगर गौरा अंग्रेज उन्हें धक्का दे कर बाहर नहीं निकालता तो शायद कुछ और होते । गांधी जी का वह टर्निंग पॉइंट था । उनका जीवन ही बदल गया ।
अंत में स्वयं रचित कविता में कहती हूँ -
विपत्तियाँ झुकने का नाम नहीं,
मरुस्थलों में पानी की धार है ।
धूप में कदम करते आराम नहीं,
गंतव्य को छूने की ठंडी बयार है ।
- डॉ मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
प्रत्येक विपत्ति में उससे निकलने का अवसर छुपा हुआ होता है जैसे बादल में बिजली । ये सर्वविदित है कि रात के पश्चात दिन अवश्य आता है । जीवन प्रतिपल संघर्ष है कभी अपनों से, कभी परायों से तो कभी खुद से । जिसमें विपत्तियां आती जाती रहती हैं । उससे निकलने के अवसर भी किसी न किसी रूप में मिल ही जाते हैं । कहा जाता है कि डूबते को तिनके का सहारा ही बहुत होता है । इसी तरह यदि ऊपर वाला विपत्ति में डालता है तो निकालता भी वही है । चोंच दी है तो चुग्गा भी वही देता है, आवश्यकता है तो बस आस्था और विश्वास की ।
- बसन्ती पंवार
जोधपुर - राजस्थान
जीवन में विपत्ति का स्वाद किसने नहीं चखा स्वयं प्रभु भी अछूते नहीं रह पाए हैं राम सीता पर भी कितनी विपत्तियां आई थी ! कृष्ण मित्र सुदामा भी कितनी विपत्तियों से घिरे थेबिना घबराए उन्होने धैर्य से काम लिया था!
मनुष्य जन्म में जीवधारी प्राणी में विपत्ति और सुखद अवसर तो आते जाते रहते हैं बस विपत्ति आने पर हमें घबराना नहीं चाहिए संयम और समय को मान देना चाहिए सोच सकारात्मक होना चाहिए ! मनुष्य क्या जंगल में जानवर भी यदि शिकार नहीं मिलता तो वह निराश नहीं होते अवसर मिलते ही शिकार लपक लेते हैं और अपनी क्षुधा शांत करते हैं! मनुष्य तू कई विपत्तियों से घिरा रहता है केवल उसे समझदारी से काम लेना चाहिए अवसर मिलते ही सोचते नहीं रहना चाहिए तुरंत लपक लेना चाहिए कहते हैं ना आती लक्ष्मी को नहीं ठुकराना चाहिए ठीक उसी तरह अवसर को भी समय ना कब आते हुए लाभ ले लेना चाहिए बाकी तो सब ईश्वर की कृपा होती है विपत्ति हमें ईश्वर को याद करने का भी अवसर देती है इसका लाभ हमें लेना चाहिए!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
विपत्ति मानव जीवन में परीक्षाकाल होता है ;जिसमें उसे परिस्थितियों के साथ धैर्यपूर्वक उस समय को अपने सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ जीना होता है। तब सुख संपत्तिकारक अवसर, विपत्ति रूपी रात्रि के नष्ट हो जाने पर प्रातः कालीन सूर्य की प्रस्फुटित किरणों की तरह जीवन में उजाला होने लगता है । बस आवश्यकता है कृष्ण के द्वारा कहे सूक्तिपरक वाक्य को समझने की। जैसा कि वे अर्जुन से कहते हैं------- " *तितिक्षस्व* *भारत* "
"! हे कुंती पुत्र! सर्दी, गर्मी और सुख- दुख को देने वाले इंद्रिय और विषयों के संयोग तो उत्पत्ति- विनाशशील और अनित्य हैं, इसीलिए तू उनको सहन कर"। अतः स्पष्ट है धैर्य और प्रसन्नता के साथ कठिनाइयों को सहन करने की योग्यता ही विशेष और विजयी अवसर प्रदान करते हैं।
- डॉ रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
रामधारी सी दिनकर जी लिखते यहाँ ....
जब विघ्न सामने आते हैं,
सोते से हमें जगाते हैं,
मन को मरोड़ते हैं पल-पल,
तन को झँझोरते हैं पल-पल।
सत्पथ की ओर लगाकर ही,
जाते हैं हमें जगाकर ही।
विपत्ति में अवसर तो जरुर आते पर इंसान परेशानी वंश सोचने व समझने की शक्ति को क्षीर बैठता है ।
हमे आशा का दीपक जलाये रखना चाहिए ।
व्यक्ति थोड़ी सी विपत्ति, दिक्कत और परेशानी आती है तो अपना धैर्य खो देता है। अधीरता उसके दिल और दिमाग में छा जाती है। यही अधीरता उसकी ताकत को कमजोर बना देती है। किन्हीं विषम परिस्थितियों में व्यक्ति को धीरज से काम लेना चाहिए और उसे हल करने का मार्ग खोजना चाहिए, उसे सफलता शत प्रतिशत मिलती है। क्योंकि अधीरता ताकतवर को कमजोर और धीरज कमजोर को ताकतवर बनाने का काम करता है। सकारात्मक सोचे, आशावादी बनो, हताशा हावी मत होने दो। मन मे आशावादी दृष्टि रखो, धीरज अपनाओ, जीवन मे बड़ा चमत्कार घटित करेगा। हमें आशा का दीपक जलाए रखना चाहिए, क्योंकि प्रकृति के दस्तूर और रात के अंधेरे को सिर्फ प्रकृति ही दूर सकती है, मगर क्षण भर के लिए आए रात के अंधेरे को हम दीपक की रोशनी से भगाने का प्रयास तो कर ही सकते हैं। मुनिश्री ने कहा अंधेरा छा रहा है तो देखकर घबराओ मत, निपटे कैसे ये सोचो, वहीं सफल होगा। ये ताकत तो हमारे अंदर है। आपमें दृष्टि है तो अपनी कमजोरी को भी ताकत बना सकते हो। धीरज रखो, सोचो कि यह थोड़ी देर कि बात है। कोई भी विपत्ति स्थाई नहीं, रात कितनी भी लंबी हो शाश्वत नहीं है, तुम्हारे जीवन कि मुश्किल थोड़ी देर कि है, पार हो जाएगी।
सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
सूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।
- अश्विन पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
" मेरी दृष्टि में " विपत्ति में कोई ना कोई रास्ता अवश्य सामने आता है । जिससे आप स्थिति का सामना करने में सक्षम हो जाते है । यही तो सब कुछ है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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